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  • I want to Marry - Our Response for all Kumaris (part 1)

    Received this letter via email by a Kumari: 'I want to marry, is this ok as I have taken Gyan also?' - The full letter and our guidance. Part 1 of 2. Original Email received: मै शादी नहीं करना चाहती थी क्यूकी दुनिया को देख के मुझे नफरत हो गई थी शादी से। फिर मेरे जीवन में एक लड़का आया उसने मेरा ख्याल बदल दिया और हम दोनों शादी करके साथ जीवन बिताना चाहते थे पर उसकी आर्थिक स्तिथि ठीक ना होने के कारण उसने मुझे कुछ टाइम इंतजार करने के लिए कहा, बातचीत चलती रही। पर मेरे मात पिता ( सेंटर पर किसी बहन ने भी कहा कि शादी तो करनी चाहिए ड्रामा के अनुसार ) मेरी शादी करना चाहते है ( अब तक तो मैंने शादी के लिए मना किया हुआ है क्यूकि उस लड़के और मेरी बात अभी छुपी हुई है) पर आज जब मेरे परिवार वालो ने किसी रिश्ते की बात की तो मैंने उस लड़के को बताया की स्तिथि ये है अब हमें सबको बता देना चाहिए रिश्ता कर लो भले ही अभी शादी मत करना। तो उस लड़के ने साफ मना कर दिया कि शादी ही नहीं करनी है (वजह ये है उसकी कि एक तो कुंडली का मंगल दोष बता रहा है और कोई जॉब भी नहीं है) पर मै जानती हूं वो भी इस फैसले से खुश नहीं है और ना वो मेरी बात समझ रहा है ( मै ये चाहती हूं हम शादी करते और फिर हम मिल के उसकी मनचाही जॉब के लिए प्रयास करते, इससे मेरे परिवार वालो को मेरी चिंता भी ना होती और हम अपना रिश्ता भी सबके सामने ला पाते।) तो अब ज्ञान के अनुसार मुझे पता है ये सब कार्मिक अकाउंट से सम्बन्धित है तो मुझे ये बताओ कि मै कौन सी पावरफुल संकल्प से हमारे बीच सब सही करू किस तरह से योग में लाइन बोलू जिससे मेरी सोच मेरा मर्जी का भाग्य बनाए। मेरी उससे शादी हो गई है हम एक साथ खुश है ऐसा सोचूं या क्या सोचूं कृपा करके बताओ। मुझे अब ज्ञान का लाभ लेना है मुझे मेरा भाग्य बनाना है। आपके जवाब की प्रतीक्षा में, नमस्ते. Our Response (and Guidance) आपका पत्र मिला। आपने बहुत कुछ विस्तार से बताया है। देखो पहले तो आपने सही निर्णय लिया हुआ था - की शादी नहीं करनी चाहिए। फिर किसीको देख, ख्याल आया - की शादी करना है। तो यह जरूर आप दोनों आत्माओ का कर्मा बंधन होगा। अकाउंट होंगे। समाज सकते है की शादी करने की इच्छा होंगी, लेकिन यह भी है जरूर, की अभी के समय शादी अर्थात बर्बादी करना। दलदल देखा है न - एक बार गिरे तो गिरे, फिर मुश्किल होती जाएगी बहार आना। जहा तक बात प्यार की है तो राजयोग का अर्थ ही है हमारे परमपिता (शिव) से प्यार करना, उनको याद करना। तो हम शिव बाबा से शादी करते है। बाप ने तो श्रीमत दी है- यह तुम्हारा अंतिम जनम है - इसमें तुम पवित्र बनो, मुझसे अपनी बुद्धि का योग लगाओ, तो तुम्हारा जनम जनम का भाग्य बन जायेगा। देखो, शादी के बाद पवित्र रहना और भी मुश्किल है। तो बाप कभी नहीं आपको परमिशन देंगे। आपकी बात सुनकर लगा की आपकी बुद्धि अच्छी है। विचार करने की शक्ति आपमें अच्छी है। तो यह विचार करो - भगवान् के अवतरण का यह अनमोल समय है - वो हमसे बात कर रहा है। हम उनसे ज्ञान मिल रहा है, जिनको मनुस्य मंदिर में, मस्जिद में, चर्च, गुरु द्वारा, आदि में खोज रहे है। तो क्या हमे अभी किसी मनुस्य से सम्बन्ध बनाना चाहिए, व भगवन से ? यह सोचो। ... आपके मात पिता अगर शादी की बात भी करे, तो उनको समझाओ - युक्ति से समझाओ। रोज की मुरली में बाबा ज्ञान और श्रीमत देते है। आप भी रोज मुरली सुनो: http://babamurli.com हम भी यह मुरली द्वारा ही सुनते और समझते है। अगर आपको और भी guidance चाहिए, तो यहाँ इस को पढ़े: https://www.brahma-kumaris.com/forum/question-answers/marry-to-god-shiv-baba-a-message-for-kumaris विचार करके हमे अपना निर्णय जरूर से सुनना। अब आपको यह वीडियो (videos) भेज रहे है जिसमे बहुत अच्छे सन्देश है: https://www.brahma-kumaris.com/single-post/videos-Films-and-Documentaries-1 ऊपर की link save कर लीजिये और समय मिलने पर देखे। आपके प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा है। अच्छा नमस्ते 00 Read PART 2 of this conversation: https://www.brahma-kumaris.com/single-post/I-want-to-Marry-our-response-for-Kumaris-part-2 .

  • 3 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumari murli today in Hindi Aaj ki Gyan Murli BapDada Madhuban 03-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - तुम्हें बड़ा विचित्र उस्ताद मिला है, तुम उसकी श्रीमत पर चलो तो डबल सिरताज देवता बन जायेंगे'' प्रश्नः- पढ़ाई में कभी भी थकावट न आये उसका सहज पुरुषार्थ क्या है? उत्तर:- पढ़ाई के बीच में जो कभी निंदा-स्तुति, मान-अपमान होता है, उसमें स्थिति समान रहे, उसे एक खेल समझो तो कभी थकावट नहीं आयेगी। सबसे जास्ती निंदा तो कृष्ण की हुई है, कितने कलंक लगाये हैं, फिर ऐसे कृष्ण को पूजते भी हैं। तो यह गाली मिलना कोई नई बात नहीं है इसलिए पढ़ाई में थकना नहीं है, जब तक बाप पढ़ा रहे हैं, पढ़ते रहना है। गीत:- बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम..... ओम् शान्ति।यह किसने कहा? किसने फ़रमाया और किसको? यह तो तुम बच्चे ही जानते हो, जिनको ही गोप-गोपियाँ कहा जाता है। तो उन्होंने अपने बाप गोपीवल्लभ को याद किया। ऐसा बाप सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई हो नहीं सकता। तो याद उनको करते हैं, जो होकर जाते हैं। उनका फिर बाद में गायन होता है। मिसाल - जैसे क्राईस्ट आया, क्रिश्चियन धर्म स्थापन करके कहाँ चला नहीं गया, उनको पालना तो जरूर करनी है, पुनर्जन्म में आना है। परन्तु जो धर्म स्थापन करके गये हैं उनका वर्ष-वर्ष बर्थ डे मनाते हैं। भक्ति मार्ग में उनको याद किया जाता है। वैसे ही आजकल दशहरे का भी उत्सव मनाते हैं। मनाना होता है तो जरूर शुभ ही होगा। कोई अच्छा करके जाते हैं तो उनका उत्सव मनाया जाता है। दीपमाला का भी उत्सव मनाया जाता है। कृष्ण जयन्ती मनाई जाती है। जो होकर जाते हैं उनका फिर उत्सव मनाते हैं। अब भारतवासियों को तो यह पता है नहीं कि यह राखी उत्सव आदि क्यों मनाते हैं। क्या हुआ था? क्राइस्ट-बुद्ध आदि को जानते हैं कि यह धर्म स्थापन करने आये थे। इस समय सभी आसुरी सम्प्रदाय हैं। तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय। अब बाप राम आकर दैवी श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं अथवा ऐसे कहें कि परमपिता आकर स्वर्ग का उद्घाटन कर रहे हैं अथवा फाउन्डेशन डाल रहे हैं। ओपनिंग सेरीमनी भी कह सकते हैं। भारत में श्रेष्ठाचारी महाराजा-महारानी होकर गये हैं, सतयुगी देवी-देवतायें डबल सिरताज थे। पवित्रता का ताज भी था और रत्नजड़ित ताज भी था। विकारी राजाओं को सिर्फ रत्नजड़ित ताज होता है। डबल ताज वालों की सिंगल ताज वाले पूजा करते हैं। परन्तु कब होकर गये, कैसे राज्य पाया यह किसको पता नहीं है। लक्ष्मी-नारायण इतने श्रेष्ठ डबल सिरताज देवी-देवता थे, उन्हों को ऐसा श्रेष्ठ बनाने वाला कौन, यह बाप बैठ समझाते हैं। अभी दशहरा मनाते हैं, तुम जानते हो जरूर कुछ हुआ है जिस कारण दशहरा मनाते हैं, रावण को जलाते हैं। परन्तु वह जलने की चीज है नहीं। अभी उनका राज्य पूरा होता है। जब तक रामराज्य स्थापन हो जाए तब तक यह भ्रष्टाचारी राज्य चलना है। रावण राज्य ख़त्म हो रामराज्य स्थापन हुआ था, उसकी सेरीमनी मनाते रहते हैं। रावण को जलाते हैं, इससे सिद्ध करते हैं बरोबर भ्रष्टाचारी आसुरी राज्य है। भ्रष्टाचार की भी ग्रेड्स रहती हैं। भ्रष्टाचार द्वापर से शुरू होता है। पहले दो कला भ्रष्टाचार रहता है फिर 4 कला, फिर 8 कला, 10 कला, बढ़ते-बढ़ते 16 कला भ्रष्टाचार हो गया है। अभी फिर 16 कला भ्रष्टाचार को बदलाए 16 कला श्रेष्ठाचारी बनाना एक बाप का ही काम है।बाप समझाते हैं इस समय रावणराज्य है, रामराज्य श्रेष्ठ राज्य था। अभी वह भ्रष्ट बन गये हैं। श्रेष्ठाचारी भारत को स्वर्ग कहा जाता है। वही राज्य अब भ्रष्टाचारी हो गया है। अब बाप कहते हैं - मैं आया हूँ भ्रष्टाचारी राज्य को श्रेष्ठाचारी राज्य बनाने लिए। यादव कुल भी है, कौरव कुल भी है। यादव कुल में भी अनेक धर्म हैं। जो श्रेष्ठाचारी दैवी धर्म के थे वह धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं। फिर बाप श्रेष्ठ कर्म सिखलाते हैं। भक्ति मार्ग में उत्सव मनाते आये हैं। जरूर भगवान् आया था, 5 हज़ार वर्ष की बात है। बाप ने आकर भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी बनाया था। सारी दुनिया को श्रेष्ठाचारी बनाना बाप का ही काम है, फिर उनकी पालना करने लिए तुमको ऊपर से भेज देते हैं। तुमने जो दैवी धर्म की स्थापना की है, उसकी फिर जाकर पालना करो। ऐसे कोई कहते नहीं, आटोमेटिकली यह ड्रामा अनुसार होता है। तुम श्रेष्ठाचारी बन जायेंगे फिर सृष्टि भी सतोप्रधान श्रेष्ठाचारी बन जायेगी। अभी तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। कितनी उथल-पाथल होती रहती है। मनुष्य कितने दु:खी होते हैं। करोड़ों का नुकसान हो जाता है। सतयुग में यह कोई भी उपद्रव नहीं होते। उपद्रव होते हैं नर्क में। उपद्रव भी पहले दो कला वाले थे, अभी 16 कला वाले बन गये हैं। यह सब डीटेल में समझाने की बातें हैं और हैं बहुत सहज, परन्तु समझते नहीं, न समझा सकते हैं। तो यह रावण को जलाना द्वापर से शुरू होता है। ऐसे थोड़ेही कहेंगे 5 हज़ार वर्ष हुए। भक्ति मार्ग शुरू होता है तो यह उपद्रव भी शुरू होते हैं। अब फिर रावण राज्य का विनाश, रामराज्य की स्थापना कैसे होती है सो तुम जानते हो। मनुष्य नहीं जानते रावण क्या है। बाप कहते हैं लंका तो कोई थी नहीं। सतयुग में लंका होती नहीं। बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। जमुना का कण्ठा है। अजमेर में वैकुण्ठ का मॉडल भी दिखाते हैं परन्तु समझते नहीं। सोने के महल आदि बनाने में वहाँ कोई देर नहीं लगती है। मशीनरी पर झट गलाकर टाइल्स बनाते हैं।तुम बच्चे जानते हो यह जो साइंस है, जिससे विनाश होता है, वही फिर तुमको वहाँ काम में आयेगी। अभी यह एरोप्लेन आदि बड़ी खुशी के लिए बनाते हैं, उनसे ही विनाश करेंगे। तो यह एरोप्लेन सुख के लिए भी है तो दु:ख के लिए भी है। अल्पकाल लिए सुख है। 100 वर्ष के अन्दर यह सब चीजें निकली हैं। तो 100 वर्ष के अन्दर इतना सब हुआ है। तो तुम विचार करो जब विनाश होगा फिर नई दुनिया में कितने थोड़े समय में सब चीज़े बन जायेंगी। वहाँ तो झट सोने के महल बन जाते हैं। भारत में सोने चाँदी के कितने महल जड़ित से जड़े हुए बनते हैं। वहाँ दरबार बड़ी बनती है। राजे रजवाड़े आपस में मिलते होंगे। उसको पाण्डव सभा नहीं कहेंगे। उसको कहेंगे लक्ष्मी-नारायण के राजधानी की सभा। प्रिन्स-प्रिन्सेज सब आकर बैठते हैं। ब्रिटिश गवर्मेन्ट थी तो प्रिन्स-प्रिन्सेज महाराजाओं की बड़ी सभा लगती थी। सब राजाई ताज लगाकर बैठते थे। नेपाल में बाबा जाते थे तो वहाँ राणा फैमिली की सभा लगती थी। बड़े ताज वाले राणे बैठते थे। उनको महाराजा-महारानी कहते हैं, फिर उनमें भी नम्बरवार होते हैं। रानियाँ नहीं बैठती हैं। वह पर्देनशीन होती हैं। बड़े भभके से बैठते हैं। हम कहते थे यह तो पाण्डव राज्य है। वह अपने को कहते भी सूर्यवंशी हैं। यहाँ थे परन्तु सिंगल ताज वाले। उनसे पहले डबल सिरताज थे। कृष्ण के लिए अनेक बातें लिख दी हैं - फलानी को भगाया, यह किया। परन्तु ऐसी बात तो है नहीं।जो उत्सव पास्ट हो जाते हैं वह फिर मनाते आते हैं। यह भी उत्सव मनाते हैं। जबकि रावण राज्य को ख़लास कर रामराज्य की स्थापना की, यह तो वर्ष-वर्ष मनाते हैं। तो सिद्ध होता है आसुरी रावण राज्य 5 हजार वर्ष पहले भी था। बाप आया था, आकर रावण राज्य का विनाश कराया था। वही महाभारत लड़ाई खड़ी है। बाकी रावण कोई चीज़ नहीं है। रावण की स्त्री मदोदरी दिखाते हैं। उनको फिर 10 शीश नहीं दिखाते हैं। रावण को 10 शीश दिखाते हैं। विष्णु को 4 भुजा दिखाते हैं। दो लक्ष्मी की, दो नारायण की। वैसे रावण को 10 शीश दिखाते हैं - 5 विकार उनके, 5 विकार मदोदरी के। विष्णु चतुर्भुज भी अर्थ सहित दिखाया है। पूजा भी महालक्ष्मी की करते हैं। महालक्ष्मी को कभी दो भुजा वाला नहीं दिखायेंगे। दीपमाला में लक्ष्मी का आह्वान करते हैं। क्यों, नारायण ने कोई गुनाह किया क्या? लक्ष्मी को भी धन तो नारायण ही देता होगा ना। हाफ पार्टनर होंगे। तो नारायण ने क्या गुनाह किया? वास्तव में धन कोई लक्ष्मी से नहीं मिलता, धन तो जगदम्बा से मिलता है। तुम जानते हो जगत अम्बा सो ही फिर लक्ष्मी बनती है। तो उन्होंने अलग-अलग कर दिया है। जगत अम्बा से हर चीज़ माँगते हैं। कोई भी दु:ख होगा, बच्चा मर जायेगा तो जगत अम्बा को कहेंगे रक्षा करो, बच्चा दो, यह बीमारी दूर करो। बहुत कामनायें रखते हैं। लक्ष्मी के पास एक ही कामना रखकर जाते हैं - धन की। बस। जगत अम्बा सभी कामनायें पूरी करने वाली है। धनवान तो यह बनाती है। इस समय तुम्हारी सब कामनायें पूरी होती हैं। कोई धन नहीं देते हैं, सिर्फ पढ़ाते हैं - जिससे तुम क्या से क्या बन जाते हो और फिर लक्ष्मी बनती हो तो धनवान बन जाती हो। ताकत इस समय तुम्हारे में है जो तुम सब कामनायें पूरी कर सकती हो। जगत अम्बा दान देती है, लक्ष्मी दान थोड़ेही देगी। वहाँ दान देते नहीं। भूख होती ही नहीं। कंगाल कोई होते नहीं। सतयुग में रावण होता नहीं। यहाँ रावण को जलाते हैं। दशहरे के बाद फिर दीपमाला मनाते हैं, खुशियाँ मनाते हैं क्योंकि रावण राज्य विनाश हो रामराज्य स्थापन होगा तो खुशियाँ होंगी। घर-घर में रोशनी हो जाती है। तुम्हारी आत्मा में रोशनी आ जाती है। जो चीज़ संगम पर है वह सतयुग में नहीं होगी। तुम त्रिकालदर्शी हो, वहाँ तो तुम प्रालब्ध भोगते हो। यह नॉलेज सारी भूल जाते हो। संगम पर है ही स्थापना और विनाश। स्थापना हो गई फिर बस। इन सब उत्सवों आदि का तुमको ही ज्ञान है। अज्ञानी मनुष्य तो कुछ भी नहीं समझते। बड़े बखेरे बना देते हैं, है कुछ भी नहीं। तुम प्रैक्टिकल में देख रहे हो सतयुग में यह बातें नहीं होती हैं। नारद की भी बात शास्त्रों में है। तुमसे भी पूछा जाता है - तुम कहते हो बाबा हम लक्ष्मी को वरेंगे अथवा नारायण को वरेंगे। तो बाप कहते हैं अपने में देखो कोई विकार तो नहीं है। अगर क्रोध आदि होगा तो कैसे वर सकेंगे? हाँ, अभी सम्पूर्ण तो कोई बने नहीं है। परन्तु बनना है, इन भूतों को भगाना है तब ही इतना मर्तबा पा सकेंगे। उस्ताद भी बड़ा विचित्र मिला है। बाप तो सर्वगुण सम्पन्न, ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर है तो जो आकर बच्चे बनते हैं उनको भी सर्वगुण सम्पन्न, डबल सिरताज देवता बनाते हैं। बरोबर तुम बन रहे हो। देवताओं को दोनों ताज रहते हैं। तुम आये हो बाप से वर्सा लेने। वर्सा लेना है, पढ़ना है। प्वाइन्ट्स तो बहुत निकलती रहती हैं। अगर पढ़ेंगे नहीं तो औरों को कैसे समझा सकेंगे? ड्रामा हूबहू रिपीट हो रहा है। यह नॉलेज अभी तुम समझते हो फिर यह गुम हो जायेगी। यह जो लंका आदि दिखाते हैं, वह भी है नहीं। रावण का जन्म कब हुआ? लिखा हुआ है द्वापर से देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो विकारी बनना शुरू होते हैं। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी थी फिर व्यभिचारी बन जाती है। अभी तो मनुष्य अपनी पूजा कराने लग पड़े हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ भ्रष्टाचारी दुनिया का विनाश और श्रेष्ठाचारी दुनिया की स्थापना करने। जरूर पहले स्थापना करेंगे फिर विनाश करेंगे। यह हमारा पार्ट कल्प-कल्प का है। भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाने में भी टाईम लगता है। जब तक बाप बैठ पढ़ा रहे हैं, पढ़ना है। कल्प पहले जिन्होंने जितना पढ़ा है वही पढ़ेंगे। बहुत बच्चे चलते-चलते कहते - बस, हम चल नहीं सकेंगे। अरे, स्तुति-निंदा, मान-अपमान यह तो सब होगा। तुम पढ़ाई को क्यों छोड़ते हो। सबसे जास्ती निंदा तो कृष्ण की हुई है। कितने कलंक लगाये हैं। फिर ऐसे कृष्ण को पूजते क्यों हैं? वास्तव में गाली अभी इनको (ब्रह्मा को) मिलती है। सारे सिन्ध में निंदा हुई फिर कर तो कुछ भी नहीं सके। यह भी सब खेल है। नई बात नहीं, कल्प पहले भी गाली खाई थी, नदी पार की थी। तुम सिन्ध से निकल इस पार चले आये ना। कृष्ण तो नहीं था, यह दादा आता-जाता था। तुम जानते हो अभी हम राज्य पाते हैं फिर गंवाते हैं। यह भी खेल है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाली कामधेनु (जगदम्बा) बनना है। दान देते रहना है। 2) स्तुति-निंदा में स्थिति समान रखनी है। यह सब होते पढ़ाई नहीं छोड़नी है। इसे खेल समझ पार करना है। वरदान:- शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा सेकण्ड में स्वीट होम की यात्रा करने वाले मा. सर्वशक्तिवान भव साइन्स वाले फास्ट गति के यंत्र निकालने का प्रयत्न करते हैं, उसके लिए कितना खर्चा करते हैं, कितना समय और एनर्जी लगाते हैं, लेकिन आपके पास इतनी तीव्रगति का यंत्र है जो बिना खर्च के सोचा और पहुंचा, आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। इस शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा जब चाहे तब चले जाओ और जब चाहे तब लौट आओ। मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं सकता। स्लोगन:- दिल सदा सच्ची हो तो दिलाराम बाप की आशीर्वाद मिलती रहेगी। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 11 Sep 2018 Aaj ki Murli

    Brahma kumari murli oday Hindi BapDada Madhuban 11-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन' 'मीठे बच्चे - घर-घर को स्वर्ग बनाने की जिम्मेवारी तुम बच्चों पर है, सबको पतित से पावन होने का लक्ष्य देना है, दैवीगुण धारण करने हैं'' प्रश्नः- ईश्वरीय गोद में आने से तुम बच्चों को कौन सा अनुभव होता है? उत्तर:- मंगल मिलन मनाने का अनुभव ईश्वरीय गोद में आने वाले बच्चों को होता है। तुम जानते हो संगमयुग है ईश्वर से मिलन मनाने का युग। तुम ईश्वर से मिलन मनाकर भारत को स्वर्ग बना देते हो। इस समय तुम बच्चे सम्मुख मिलते हो। सारा कल्प कोई भी सम्मुख मिलन नहीं मना सकते। तुम्हारा यह बहुत छोटा सा ईश्वरीय कुल है, शिवबाबा है दादा, ब्रह्मा है बाबा और तुम बच्चे हो भाई-बहिन, दूसरा कोई संबंध नहीं। गीत:- नई उमर की कलियां....... ओम् शान्ति।बाबा जब आते हैं तो पहले कुछ समय साइलेन्स में बैठना चाहिए क्योंकि पहले-पहले दान दिया जाता है याद का। याद से ही पतितों को पावन बनाना है। तुम बच्चे दान दे रहे हो और ले रहे हो। बाप आकर कांटों से कलियां बनाते हैं फिर कलियों से फूल बनते हैं। तुम जानते हो हमारी सर्विस ही है - हर एक को स्वर्ग के लायक बनाना। जैसे तुम बन रहे हो।बाप आकर पहले हेल्थ, पीछे वेल्थ देते हैं। पहले शान्ति फिर सुख। वास्तव में सुख दोनों में है। तुम बच्चों को सुख और शान्ति दोनों चाहिए और जो सन्यासी आदि हैं वह सिर्फ शान्ति चाहते हैं। सन्यासी सुख नहीं चाहते हैं। सुख तो वह दे न सकें। अगर शान्ति देवें तो भी अल्पकाल क्षण भंगुर सुख के लिए। कहते हैं कि सुख तो काग विष्टा समान है। सन्यासी बहुत करके शान्ति चाहते हैं मुक्ति के लिए। मुक्ति दूसरा कोई तो दे नहीं सकता। इसको बेहद की मुक्ति, बेहद की जीवनमुक्ति कहा जाता है, सो बेहद का बाप ही दे सकते हैं। तुम जानते हो इस समय सब कांटे हैं। कांटे चुभते हैं। बाप कहते हैं सब एक-दो को काम कटारी से मारते हैं। उनको पता नहीं है कि काम कटारी को हिंसा कहा जाता है। तुम विकार में जाते हो तो आदि-मध्य-अन्त एक-दो को दु:ख देते हो। यह है दु:ख की दुनिया। सुख की दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है - जबकि नई सृष्टि नया भारत है। भारतवासी जो देवी-देवताओं के पुजारी हैं, जानते हैं कि इन देवताओं का राज्य था जिसको स्वर्ग कहा जाता है। यह भी महसूसता आती है। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर उनकी महिमा गाते हैं। समझते हैं भारत के यह मालिक थे। भारत स्वर्ग था - यह भी महसूसता आती है, परन्तु हवा के मुआफिक। समझते तो हैं भारत में लक्ष्मी-नारायण के इतने मन्दिर बनाते हैं तो उन्हों की राजधानी थी। महाराजा-महारानी कहा जाता है। परन्तु कब थे सो भूल गये हैं। कितनी साधारण भूल है। कोई जास्ती टाइम नहीं हुआ है। पांच हजार वर्ष की बात है। क्राइस्ट, बुद्ध आदि को दो-अढ़ाई हजार वर्ष हुए हैं। उनके लिये ऐसे कहते हैं कि रीइनकारनेशन किया। यूँ तो री-इनकॉरनेट हरेक करते हैं। आत्मा आकर प्रवेश करती है इसको भी री-इनकारनेट कहेंगे। परन्तु पहले बड़ों का नाम गाया जाता है। कहा जाता है - परमपिता परमात्मा रीइनकारनेट करेंगे, तब आकर शरीर में प्रवेश करेंगे। रीइनकारनेट का अर्थ यह है। तो जो बड़े नामीग्रामी होते हैं उनके लिये यह कहा जाता है। जैसे बुद्ध का रीइनकारनेशन, क्राइस्ट का रीइनकारनेशन। बौद्धी और क्रिश्चियन का भारत से कने-क्शन देखने में आता है। गुरूनानक को 500 वर्ष के लगभग ही दिखाते हैं। उनका भी छोटा रीइनकारने-शन है। वह बड़े हैं। तो रीइनकारनेशन सब करते हैं। अब परमपिता परमात्मा को बुलाते हैं। परन्तु वह कब आयेगा, कैसे आयेगा - यह नहीं जानते। शरीर में तो जरूर आना होता है। परन्तु जन्म न लेने कारण उनको रीइनकारनेशन कहा जाता है। छोटा बच्चा तो नहीं बनते हैं। सबसे बड़ा रीइनकारनेशन परमपिता परमात्मा का कहेंगे। गाते हैं - परमात्मा 24 अवतार लेते हैं। अब कह देते पत्थर-पत्थर में अवतार लिया। गिरते जाते हैं। जैसे भारत गिरता जाता है वैसे उनकी कथनी भी गिरती जाती है। बाप नई दुनिया का रचयिता है। सो जरूर नई और पुरानी के संगम पर आयेंगे। उनको सबसे बड़ा रीइनकारनेशन कहेंगे। शिव का सबसे बड़ा रीइनकारनेशन है। परन्तु मनुष्य समझते नहीं हैं क्योंकि परमात्मा से बेमुख हुए हैं। निराकार से परिचित जरूर हैं परन्तु वह यह नहीं जानते कि परमात्मा कब आते हैं, क्या आकर करते हैं? ऐसे नहीं कि विष्णु का रीइनकारनेशन कहेंगे। देवी-देवता धर्म का रीइनकारनेशन नहीं कहेंगे। देवी-देवता धर्म की स्थापना कहेंगे।विष्णु अवतरण का एक नाटक भी बनाते हैं। अब वास्तव में विष्णु अवतरण की तो बात ही नहीं। तुम अब विष्णु के कुल के बन रहे हो। ईश्वर का कुल है ना। यह शिव का बच्चा ब्रह्मा, ब्रह्मा के बच्चे तुम। इसको ईश्वरीय कुल कहा जाता है। परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं आकर तुमको अपना बनाता हूँ। मैं आकर तुम बच्चों का बाप बनता हूँ। हूँ तो सबका बाप। परन्तु अभी तुम ब्रह्मा द्वारा मेरे बने हो, इसलिये तुम मुझे दादा कहते हो। आत्माओं का बाप तो है ही। सब जानते हैं इस समय मैं आया हुआ हूँ। तुम ही अभी मिलते हो। बेहद के बाप से तब मिलते हो जब बाप जन्म देते हैं। अभी तुमको धर्म का बच्चा बनाया है ब्रह्मा द्वारा। विकार के तो बच्चे हो न सकें। इतनी प्रजा है। बहनभाई कितने हैं तो यह सब मुख-वंशावली ठहरे ना। सन्यासियों की वंशावली नहीं होती है क्योंकि उनमें दादा-बाबा का कोई कनेक्शन नहीं है। यहाँ बाप भी है, दादा भी है। दादा इनको (बड़े भाई को) कहा जाता है। बाप आकर अपना बनाते हैं। तुम जानते हो हम ईश्वर की गोद में आये हैं। यह मंगल-मिलन है। कलियुग का अन्त और सतयुग की आदि - इसको ही संगम कहा जाता है। संगम में मिलन होता है। जैसे 3 नदियों का संगम है। उसमें क्या होता है? गुरू लोग और जिज्ञासू का मंगल-मिलन होता है। वह तो हो गया जिस्मानी। गाया भी हुआ है - आत्मा और परमात्मा का मंगल-मिलन। यह सबसे अच्छा है। आत्मायें मिलती हैं - परमपिता परमात्मा से। इसमें पानी के नदी की बात नहीं है। यहाँ तुम बैठे हो। यह तुम्हारा बहुत भारी मंगल-मिलन है। आत्मायें भी चैतन्य हैं। परमपिता परमात्मा का यह लोन लिया हुआ शरीर है, इनको मंगल मिलन कहा जाता है। कुम्भ का मेला कहा जाता है ना। कुम्भ को भी संगम कहेंगे। 3 नदियों के संगम का नाम कुम्भ रख दिया है। सबसे बड़ा संगम कौन-सा है? सागर और नदियों का। सबसे बड़ी नदी है ब्रह्मपुत्रा। उसमें बाबा आते हैं इसलिये सागर और ब्रह्मपुत्रा नदी का इकट्ठा मेला तो है ही। अब कुम्भ का मेला है - संगम पर। तुम सब ज्ञान सागर बाप से मिलते हो, इसको ईश्वरीय कुम्भ का मेला कह सकते हैं। यह है आत्माओं और परमात्मा का संगम। कुम्भ वा संगम, बात एक ही है। तो तुम बच्चे जानते हो हम अपने लिये स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। हमको घर में पवित्र होकर रहना है। जहाँ पवित्रता है, वहाँ ही स्वर्ग कहेंगे। बच्चे पवित्र रहते हैं तो पवित्रता सुख-शान्ति है। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिये जैसे देवताओं की होती है। कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिये, इसको ही स्वर्ग कहेंगे। वही फिर स्थाई स्वर्ग बन जाता है। घर में ऐसा लायक बनना है, इसलिये कहा जाता है घर-घर को स्वर्ग बनाओ। तुम मनुष्यों को स्वर्ग में चलने लायक बनाते हो। तुम्हारे लिये ही गीत है - घर-घर को स्वर्ग बनाओ। सतयुग में घर-घर में स्वर्ग था, अब नहीं है। जो बच्चे बाप से वर्सा लेते हैं उन्हों को अपने घर बैठे पतित से पावन बनने का लक्ष्य देना है।यह बड़े ते बड़ा चैतन्य तीर्थ है। जहाँ शिवबाबा सागर है, वहाँ तुम आत्मायें गंगायें जरूर होंगी। यह सबसे बड़ा ऊंच ते ऊंच मेला है। वह सब हैं भक्ति मार्ग के मेले, यह है ज्ञान मार्ग का मेला। भक्ति मार्ग के मेले तो जन्म बाई जन्म लगते रहते हैं। ज्ञान मार्ग का मेला एक ही बार लगता है। यह है रूहानी मिलन। सुप्रीम रूह परमधाम से आकर बच्चों से मिलते हैं। सबसे अच्छी यात्रा या मेला यह है। यह चैतन्य सागर तो कहाँ भी जा सकते हैं। वह जड़ सागर तो कहाँ नहीं जाता। यह सागर जाता है। तुम नदियां भी जाती हो निमंत्रण पर। ज्ञान सागर इस ब्रह्मपुत्रा नदी के साथ चलते हैं। तुम भिन्न-भिन्न प्रकार की नदियां हो - कोई पवित्र हैं, कोई अपवित्र हैं। कोई-कोई समय ऐसे बहुत आ जाते हैं जो पवित्र नहीं रह सकते हैं। फिर भी आते तो हैं ना। बाहर के गृहस्थी भी आते हैं। एलाउ किया जाता है। ऐसे भी नहीं, सबको एलाउ करेंगे। कोई मित्र-सम्बन्धी आदि आते हैं, जिन्हों को उठाने के लिये एलाउ करते हैं। नहीं तो कायदे बहुत हैं। इन्द्रप्रस्थ में कोई पतित आ न सकें। कोई भी पण्डा वा सब्जपरी आदि कोई भी पतित को साथ में ले आ नहीं सकती इसलिये बाप कहते हैं ख़बरदार रहना, सर्टीफिकेट तुमको मिलता है। किसको साथ ले आती हो या भेज देती हो, रेसपान्सिबिलिटी तुम्हारे पर है। यूँ तो सेन्टर्स पर तो निमंत्रण भी देते हैं। कितने पतित आते होंगे। सेन्टर पर पतित आयें तब तो उनको पावन बनाओ। यहाँ तो सागर बैठा हुआ है तो नियम रखे हुए हैं। नब्ज देखी जाती है। डॉक्टर्स सर्जन तो भिन्न-भिन्न होते हैं ना। मम्मा-बाबा वा अनन्य बच्चे बात करेंगे तो झट पता लगेगा कि बुद्धि में बैठता है वा नहीं। तुम कोई को भी समझायेंगे कि दो बाप हैं तो झट मानेंगे। युक्ति बतलाई जाती है। परमपिता परमात्मा को तो सब याद करते हैं। हम फलाने बाप के बच्चे हैं। सिर्फ उनके आक्यूपेशन को नहीं जानते। यह तो तुम बच्चे समझ गये हो कि जिस-जिस नाम-रूप से जो मनुष्य आते हैं, उसी नाम-रूप से 5 हजार वर्ष बाद फिर आना है जरूर। क्राइस्ट का जो चित्र है, हूबहू फिर उसी समय ही हो सकता। ऐसा और किसी मनुष्य का हो नहीं सकता। कृष्ण का जो चित्र है वह फिर और किसी मनुष्य रूप में हो न सके। आत्मा भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल में जन्म लेते-लेते अब पतित हो गई है, उसको फिर पावन बनाते हैं।तुम जानते हो कल्याणकारी बाप है, अकल्याणकारी रावण है। सबको सद्गति देने वाला बाप है। फिर इसमें मनुष्य तो क्या सब चीज़ों की सद्गति हो जाती है। नर्क का विनाश, स्वर्ग की स्थापना होती है। जो कल्प पहले आये थे - कोई पंजाबी, कोई पारसी आते हैं ना, सभी को निमंत्रण देना है। बाप आया हुआ है - ढिंढोरा पीटने में भी हर्जा नहीं है। तुम्हारे चित्र भी बड़े अच्छे हैं। अभी तुम मन्दिर लायक बनते हो। अब भूतों को निकालने में बड़ी मेहनत है। लक्ष्मी अथवा नारायण को वरने लिये विकारी अवगुण निकालने में कितनी मेहनत लगती है। कोई को काम का भूत, कोई को क्रोध का भूत, किसको मोह का भूत थप्पड़ मार देते हैं। एकदम गिर पड़ते हैं। लोभवश भी गिर पड़ते हैं। अच्छे-अच्छे घर की बच्चियां मिठाई देखेंगी तो छिपाकर खा लेंगी। लोभ ने भी कितनों को नुकसान पहुँचाया है। लोभ के वश ही चोरी करते हैं। पहले तुम भट्ठी में थे। अभी तो सबको अपने घर में भट्ठी बनानी पड़े। बाप ने एक ही बड़ी भट्ठी बनाई। अभी तो कहते हैं पहले 7 रोज भट्ठी में रहना पड़े। आजकल किसका भट्ठी में बैठना बड़ा मुश्किल है। सेन्टर में भी आते हैं तो रंग चढ़ाते हो फिर घर में जाने से उड़ जाता है। संगदोष लग जाता है। अभी तो बड़ी मेहनत है।अभी तुम बच्चे जानते हो हम ईश्वरीय कुल में बैठे हैं। दादा, बाबा और हम भाई-बहन हैं। ब्राह्मण कुल सर्वोत्तम गाया हुआ है। उन ब्राह्मणों को भी तुम ज्ञान दे सकते हो - ब्राह्मण हैं उत्तम चोटी, यह संगमयुगी ब्राह्मण ही फिर देवता बनते हैं, पहले तो देवताओं से भी ऊंच ब्राह्मण हैं, चोटी तो ऊंची ठहरी ना, तुम ब्राह्मण देवताओं की पूजा करते हो, अपने को पुजारी, उनको पूज्य समझते हो। तुम उन पुजारियों, ब्राह्मणों को भी यह समझा सकते हो। तुम तो हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण संगमयुगी। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली हो, फिर तुम सो देवता बनते हो। स्वर्ग का देवता जरूर परमपिता परमात्मा ही बनायेंगे। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. अन्दर के अवगुणों की जांच कर उन्हें निकालना है। संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है। देवताई गुण धारण कर स्वयं को लायक बनाना है। 2. घर-घर को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है। भूतों को बाप की याद से भगाना है। बाप के साथ मंगल मिलन मनाते रहना है। वरदान:- सहज विधि द्वारा विधाता को अपना बनाने वाले सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर भव l भाग्य विधाता को अपना बनाने की विधि है-बाप और दादा दोनों के साथ संबंध। कई बच्चे कहते हैं हमारा तो डायरेक्ट निराकार से कनेक्शन है, साकार ने भी तो निराकार से पाया हम भी उनसे सब कुछ पा लेंगे। लेकिन यह खण्डित चाबी है, सिवाए ब्रह्माकुमार कुमारी बनने के भाग्य बन नहीं सकता। साकार के बिना सर्व भाग्य के भण्डारे का मालिक बन नहीं सकते क्योंकि भाग्य विधाता भाग्य बांटते ही हैं ब्रह्मा द्वारा। तो विधि को जानकर सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर बनो। स्लोगन:- स्वयं से, सेवा से, सर्व से सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट लो तब सिद्धि स्वरूप बनेंगे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • अजन्मा परमात्मा शिव का दिव्य जन्म

    परमपितापरमात्मा शिव किसी पुरुष के बीज से अथवा किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे तो स्वयं ही सबके माता-पिता है, मनुष्य-सृष्टि के चेतन बीज रूप है और जन्म-मरण तथा कर्म-बन्धन से रहित है |अत: वे एक साधारण मनुष्य के वृद्धावस्था वाले तन में प्रवेश करते है | इसे ही परमात्मा शिव का ‘दिव्य-जन्म’ अथवा ‘अवतरण’ भी कहा जाता है क्योंकि जिस तन में वे प्रवेश करते है वह एक जन्म-मरण तथा कर्म बन्धन के चक्कर में आने वाली मनुष्यात्मा ही का शरीर होता है, वह परमात्मा का ‘अपना’ शरीर नहीं होता | अत: चित्र में दिखाया गया है कि जब सारी सृष्टि माया (अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि पाँच विकारों) के पंजे में फंस जाती है तब परमपिता परमात्मा शिव, जो कि आवागमन के चक्कर से मुक्त है, मनुष्यात्माओं को पवित्रता, सुख और शान्ति का वरदान देकर माया के पंजे से छुड़ाते है | वे ही सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देते है तथा सभी आत्माओं को परमधाम में ले जाते है तथा मुक्ति एवं जीवनमुक्ति का वरदान देते है | शिव रात्रि का त्यौहार फाल्गुन मास, जो कि विक्रमी सम्वत का अंतिम मास होता है, में आता है | उस समय कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती है और पूर्ण अन्धकार होता है | उसके पश्चात शुक्ल पक्ष का आरम्भ होता हुई और कुछ ही दिनों बाद नया संवत आरम्भ होता है | अत: रात्री की तरह फाल्गुन की कृष्ण चतुर्दशी भी आत्माओं को अज्ञान अन्धकार, विकार अथवा आसुरी लक्षणों की पराकाष्ठा के अन्तिम चरण का बोधक है | इसके पश्चात आत्माओं का शुक्ल पक्ष अथवा नया कल्प प्रारम्भ होता है, अर्थात अज्ञान और दुःख के समय का अन्त होकर पवित्र तथा सुख अ समय शुरू होता है | परमात्मा शिव अवतरित होकर अपने ज्ञान, योग तथा पवित्रता द्वारा आत्माओं में आध्यात्मिक जागृति उत्पन्न करते है इसी महत्व के फलस्वरूप भक्त लोग शिवरात्रि को जागरण करते है | इस दिन मनुष्य उपवास, व्रत आदि भी रखते है | उपवास (उप-निकट, वास-रहना) का वास्तविक अर्थ है ही परमत्मा के समीप हो जाना | अब परमात्मा से युक्त होने के लिए पवित्रता का व्रत लेना जरूरी है |

  • BK murli today in English 30 June 2018

    Brahma Kumaris murli today in English - 30/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, continue to say "Baba, Baba" from your hearts and there will be unlimited happiness. This is not just something to say, but let there be this continual remembrance internally and all your sorrow and suffering will be removed. Question: When some children say, "Baba, my mind is confused, I have problems", what teaching does Baba give to show them how to stay in happiness? Answer: Baba says: Children, these words that you say are wrong. It is wrong to say, "My mind is confused." When the intellect's yoga with the Father breaks, the intellect wanders and there is unhappiness. This is why Baba shows you a method: Keep your chart. Continue to say "Baba, Baba" internally. Take shrimat at every step and your confusion will finish. Song: Dweller of the Forest, your name is the support of my life! Om ShantiIncorporeal God speaks to you incorporeal children. Through whom does incorporeal God speak? Through this body that He has taken on loan. It has been explained that the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, doesn't have a bodily name. All human souls have bodily names and they are called by those names. Here, the incorporeal Father says to the incorporeal children: Forget those bodies. You souls have to shed those bodies and come to Me. You must no longer take birth in this land of death. Those physical parents bring you into relationships with bodies - “This one is your so-and-so” - whereas the Father from beyond says: I am the Incorporeal. I am called the Supreme Father, the Supreme Soul. You too are incorporeal souls. I have taken the support of this body, whereas you have your own bodies. This body I take is on loan. Now, remember Me, your Father. I am the incorporeal Father of you souls. Say, "Baba, Baba." Sometimes, some children say: My mind is confused. My mind is unhappy. Oh! but why do you use the word ‘mind’? Say, "Why do I forget Baba? Why do I forget Baba who makes me worthy of heaven?” Renounce the consciousness of the body and become soul conscious. Baba says: You now have to return home. Remember Me. Incorporeal Baba says to incorporeal souls: Continue to say, "Baba, Baba." That One is the Father whereas the mother is incognito. A mother is definitely needed with the Father. No one in the world knows that the Father creates the mouth-born creation through this one and that that is why He is called the Father. So, where is the mother? Jagadamba would not be called the mother. Jagadamba is the instrument to look after everyone because this one cannot look after everyone as he is a male. This is why there is Jagadamba. Her mother is also this one; Brahma is the senior mother. All of you are Brahma Kumars and Kumaris. They speak of the Mother and Father, and so the Father sits here and explains. This is not the task of a sage or holy man. The Father establishes heaven. Maya Ravan begins to change it into hell. The Father gives happiness and Maya causes sorrow. This is a play about happiness and sorrow, and it is about Bharat. Bharat was like a diamond. It has now become like a shell. There was the pure household religion in Bharat and there are its images. There used to be the kingdom of Lakshmi and Narayan, but no one knows when it was established. They say that the duration of a cycle is hundreds of thousands of years. It has been explained to you children that 5000 years ago it was the kingdom of Lakshmi and Narayan. There were Lakshmi and Narayan the First, the Second, the Third etc. There were eight in the dynasty. Then there were twelve in the moon dynasty. There are the dynasties: the dynasty of Mughals, the dynasty of Sikhs. It has been explained to you children that 5000 years ago there was just the one kingdom of Lakshmi and Narayan in Bharat. There used to be the World Almighty Authority Government. Only the Father creates that. This is what the people of Bharat ask for. Now, there is no kingdom; there is no king nor queen. This is the temporary rule of people over people. There is no happiness in this. As time goes by, there will continue to be more sorrow. This is called happiness like a mirage. In the scriptures there is the example of Draupadi and Duryodhan. In fact, it was not like that. They sat and made up all of those stories. This kingdom is like a mirage. They (the people of Bharat) got their kingdom and yet they continue to be even more unhappy. There wasn't as much sorrow at the time of the British Government. Everything was very cheap. Everything now is so expensive! Famine, torrential rainfall, earthquakes etc. will all come in front of you. People will be desperate for water. You children are now sacrificing your bodies, minds and wealth in the service of making Bharat into heaven. You help the Father. The Father then establishes the one World Almighty Authority Government, the one kingdom. After the cries of distress, there will be cries of victory. You are to see with your eyes in a practical way the visions you had of destruction. The Father sits here and explains: Consider yourselves to be souls. You are the children of Baba. Therefore, continue to say "Baba, Baba!" When you say, "My mind is confused” or “My mind is unhappy", remove the word ‘mind’. How can there be happiness if you don't remember Baba? You become unhappy because of not knowing yourself. Why do you use the word ‘mind’? Oh! can you not remember the Father? Is it that you forget the Father? Do you ever say of your physical father that you can’t remember him? Even little children are taught: This is your mother and father. Here, the unlimited Father says: Remember Me and I will take you to heaven. You simply have to belong to Baba. The Father says: Continue to follow My directions. You have to show your account to the Father. A father is aware of how much his children earn. So, the Father, too, will only know when you tell Him. The Father quickly tells you: I am making you into the masters of Paradise. Baba says: I am the Bestower. I have come to give to you. Also use everything you have in a worthwhile way because this is how you now have to create your future. You will receive the huge sovereignty of Paradise to the extent that you use everything in a worthwhile way. There is the account of give and take; you exchange everything. In return for the old, He gives you everything new. He is a first-class Customer. Give with one hand and take with the other. There is a saying: Lord, let my first customer be such that the earning from that customer is enough. The Father comes to make you into a complete master of the world. The Father says: All of this wealth and property is to turn to dust. Therefore renounce it. Forget all your bodily relations, including your own body, and consider yourself to be a trustee. All of this has been given by God; it is all His. However, you have to perform actions for the livelihood of your body. If Baba is aware of everything He can continue to advise you. Some ask: “Baba, should I buy a car?” OK, if you have the money, you may buy a car. “Baba, I want to build a building.” OK, you may build it. Baba will continue to advise you. If you have money, build many buildings, travel by aeroplane; experience a lot of happiness. Baba only gives directions to the children. Some ask about getting their daughter married. If she is unable to follow the path of knowledge, get her married. The father (Brahma) would always give right directions. If he gives wrong directions, Shiv Baba is responsible. He is also Dharamraj. This is not a common spiritual gathering. This is the Godfatherly University. The Father advises you: Children, become the masters of heaven. Follow shrimat. Become soul conscious. The names there are so beautiful. There are no names such as ‘Mr. Basarmal’ etc. there. There, the names are those such as Ramachandra, Krishnachandra. They also receive the title Shri because they are elevated. Here, they continue to give the title Shri Shri to cats and dogs etc. The Father explains: This is a dirty old world. It is all to be destroyed. You now have to follow My shrimat. The Shrimad Bhagawad Gita is the main one. However, there are innumerable Vedas and scriptures. The Father establishes all three religions: Brahmin, deity and warrior. Then Abraham establishes his own religion. His scripture is such-and-such. Achcha, which religion are the Vedas a scripture of? They don't know anything. The Vedas are not the scripture of the sannyas religion. If their scripture is the Vedas, they should just study that. So, why do they take up the Gita? Christians are sensible: they would never take up a scripture of another religion. The people of Bharat make many people their gurus. Baba has explained that when a group of four or five people come, you should explain to each one individually, just as you used to sit with each one individually in Pakistan. By explaining to each one individually, you would be able to feel each one’s pulse. Get each one to fill in a form because the illness of each one is different. A surgeon would call each patient individually, feel the pulse and give medicine after seeing each one. Have the faith: I am a soul. It is the soul that listens. It is the soul that becomes impure. To say that souls are immune to the effect of action is a lie. Whatever actions a soul performs, he receives the fruit of that accordingly. People say: This one has performed such actions. Now, Baba is teaching us such good actions that we will remain happy for 21 births. There is the philosophy of karma. In the golden age, actions become neutral. There are no sins committed there. Maya, who makes you commit sin, doesn’t exist there. The kingdom is being established and so you would definitely receive the inheritance. You have to reach your karmateet stage. There are the sins of many births on your head. Your sins cannot be absolved by your bathing in the Ganges or by chanting or doing tapasya. Sins can only be absolved with the fire of yoga. At the end, everyone's karmic accounts will be settled, numberwise. If they are not settled, there will have to be punishment. They have to be settled by having remembrance of the Father. It is because you don't remember the Father that you souls wilt. The Father says: If you don't remember Me, Maya will attack you. Remember Me as much as possible. If you remember Me for a minimum of eight hours, you will pass. Keep your chart. Storms come when you don't consider yourself to be a soul and remember the Father. It is remembered: Receive happiness by having constant remembrance. You have to remember internally. You have to remain silent. You don't have to say "Rama, Rama" or "Shiva, Shiva". Your sorrow and suffering will be removed by having remembrance and you will become free from disease. This is a straightforward matter. You are slapped by Maya when you forget the Father. The Father says: You may live at home with your family. Continue to ask Baba for advice at every step so that you don’t do anything sinful. If your daughter doesn't follow the path of knowledge, you have to give something to her. If a son is unable to remain pure, he can earn his own income; he can go and get married. Some have big fights over their father's property. They don’t give their full news. They are stepchildren, whereas real ones will definitely tell Baba. How can the Father know unless you give Him your news? If your face is cheerful here, you will remain constantly cheerful there too. In the Birla temple, there is a first-class picture of Lakshmi and Narayan. However, people don’t know when they came. Where did that kingdom of Bharat go? You can go and explain to them. At first, there was satopradhan, unadulterated devotion. Then, later, devotion became adulterated, rajo and then tamopradhan. Earlier, they used to say that God is infinite. Now they say that all are God. That is called a tamo intellect. Therefore, you shouldn't say that you can't focus your mind. Why do you say this? Your condition becomes like that when you forget the Father. Remember the Father and your mercury of happiness will remain high. By remembering the Father, there is a huge income. Remember the Father the whole night. Become conquerors of sleep. You have been singing: I will surrender to you. He says: I have come. Therefore constantly remember Me. He is the Father of me, the soul. You have to remember Him. All attachment to this one should be broken. Become a destroyer of attachment and connect your intellect to the One and you will become strong. I now have to go to the new home. Why should I have attachment to the old world? When a new house is being built, the heart is removed from the old one. The Father says: Everything, including this body, is old. Now remember the Father and your inheritance. Through this study, we will become princes and princesses in the golden age. Baba gives the practical fruit in a second. This is a college for becoming princes and princesses. It is not a college where princes and princesses study. You have to become that here. Then, having become princes, you will surely become kings. Achcha.To the sweetest beloved long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from BapDada and sweetest Mama. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Sacrifice your body, mind and wealth in serving Bharat to make it into heaven. Become a full helper of the Father. 2. Remain cheerful here. Don’t wilt in any situation. End all your sorrow and suffering through having remembrance of the Father. Blessing: May you be a constant yogi and a constant server and serve with your activity and your face. Constantly maintain the awareness that you are one out of a handful of multimillion souls who know the Father and who have found Him. Maintain this happiness and your face will become a mobile centre for service. People will continue to receive the Father’s introduction from your cheerful face. BapDada considers every child to be so worthy and capable. So, while moving along, while eating and drinking and by doing the service of giving the Father’s introduction through your behaviour and face, you will easily become a constant yogi and a constant server. Slogan: Those who remain constantly unshakeable and immovable like Angad cannot be shaken even by the enemy, Maya. #english #Murli #brahmakumari #bkmurlitoday

  • God's Incarnation and His Medium

    All men, except perhaps the hard core atheists, at the time of a calamity or in the state of disquiet or some sort of grief, look up to God for help. They pray to Him thus: “O Lord, our Redeemer, O Thou purifier of sinful souls, the Remover of sufferings and the Bestower of Happiness, our most propitious Father, have mercy on us. Come and liberate us from this incarceration. O Kindly Light, lead us out of the whirl of vices, back to our Sweet Home!” Such prayers are a token of the fact that there was a time in the remote past, when God, the Merciful Father, descended into this world and salvaged the souls from the ocean of vices and bestowed peace and prosperity on them. It is because of His having done some supreme good to mankind by incarnating in this world that He is worshipped even today through His image, the ‘Shivlinga’. It is because of His having given peace to mankind by descending in a corporeal medium in this world that His advent into this world of mortals is sought again and again and is commemorated every year on the occasion of what is known as ‘Shiva Ratri’ and people daily sing very highly of Him and His deeds. But, even those who celebrate Shiva Ratri and worship Him zealously have little knowledge of how the Incorporeal God Father Shiva, who is regarded as ever above the cycle of birth, death and re-birth, incarnates into this world and brings about the welfare and renovation of mankind. We can say it on the basis of our own experiences that if man assimilates the interesting and beneficial knowledge of this supernatural birth of God, the knowledge which God Shiva Himself has revealed to us, he can surely rise from a debased sinner into a highly purified man. He can change himself from an estranged and orphaned soul into a God-embraced and Godblessed one, from a powerless human being into a doublycrowned deity of heaven.

  • BK murli today in Hindi 2 July 2018 - aaj ki murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - aaj ki murli - BapDada - Madhuban - 02-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन'' मीठे बच्चे - बाप का राइट हैण्ड बन, सर्विस का शौक रख श्रीमत पर पूरा-पूरा अटेन्शन दो, अखबारों में कोई सर्विस की बात निकले तो उसे पढ़कर सर्विस में लग जाओ'' प्रश्नः- बाप का नाम तुम बच्चे कब बाला कर सकेंगे? उत्तर:- जब तुम्हारी चलन बड़ी रॉयल और गम्भीर होगी। तुम शक्तियों की चाल ऐसी चाहिए जैसे डेल (मोरनी)। तुम्हारे मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए, पत्थर नहीं। पत्थर निकालने वाले नाम बदनाम करते हैं। फिर उनका पद भी भ्रष्ट हो जाता है। बाप का बनकर कोई भी विकर्म न हो - इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना है। गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन....... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। याद करते हैं - हे परमपिता परमात्मा, निराकार रूप बदलकर साकार में आ जाओ। वह क्या रूप बदलेगा। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि कच्छ-मच्छ का रूप बनकर आओ। नहीं। यह है पाप आत्माओं की दुनिया। पुकारते हैं पावन बनाने के लिए। अगर सर्वव्यापी है तो फिर किसको पुकारते हैं? अब यह गीत तो रेडियो में भी बजते हैं। परन्तु कोई भी समझते नहीं। अब तुम बच्चियां तो अखबार आदि पढ़ती नहीं हो। भल पढ़ी-लिखी हैं परन्तु अखबार पढ़ने का शौक नहीं। बाकी रहे गोप, उनमें भी कोई-कोई को सर्विस का शौक रहता है कि किस रीति अखबार से सर्विस का रास्ता निकालें। ब्राह्मण कुलभूषण हैं तो बहुत, परन्तु उनमें भी कोटो में कोई निकलते हैं जो अखबार में देख फौरन सर्विस करने लग पड़ते हैं। बाबा ने राइटहैण्ड बनाया है माताओं को। गोप मुश्किल खड़े होते हैं, कोई बिरला यथार्थ रीति से श्रीमत पर अटेन्शन देते हैं। यह एक प्वाइंट है - भ्रष्टाचार और श्रेष्ठाचार की। भ्रष्टाचारी बुलाते हैं कि - हे भगवान्, आओ, आकर श्रेष्ठाचारी बनाओ। सभी भ्रष्टाचारी जरूर हैं। कहा जाता है यथा राजा-रानी तथा प्रजा। यथा राजा-रानी माना गवर्मेन्ट तथा प्रजा माना रैयत। तो बच्चों को समझाया गया है कि भारत सदा श्रेष्ठाचारी था, स्वर्ग था। स्वर्ग में भी अगर भ्रष्टाचारी हों तो उनको स्वर्ग कैसे कहा जाए? स्वर्ग की स्थापना जरूर बाप ही करते होंगे, जिसको ही याद करते हैं। भ्रष्टाचारी ही बुलाते हैं, श्रेष्ठाचारी कब बुलाते नहीं। भारत बड़ा श्रेष्ठाचारी था, स्वर्ग था, अब तो नर्क है। तो नर्क में जरूर भ्रष्टाचारी होंगे। श्रेष्ठाचारी का सबूत दिखाओ। तुम चित्र दिखला सकते हो - बरोबर सतयुग में यथा राजा रानी तथा प्रजा, यह लक्ष्मी-नारायण देखो श्रेष्ठाचारी थे ना। नाम ही है स्वर्ग। द्वापर में ऐसे श्रेष्ठाचारी राजा-रानियों के मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं। तो जरूर खुद भ्रष्टाचारी हैं। अपने को कहते भी हैं कि हम भ्रष्टाचारी हैं, कामी, क्रोधी, पापी हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न........ हैं। भारत में भ्रष्टाचारी, श्रेष्ठाचारी की महिमा करते हैं। भ्रष्टाचारी राजाओं के पास श्रेष्ठाचारी देवताओं के मन्दिर हैं। महिमा गाते रहते हैं, नमन, वन्दन, पूजा करते रहते हैं। बाबा ने समझाया है धर्म स्थापन करने अर्थ ऊपर से जो आत्मायें आती हैं वह जरूर सतोप्रधान श्रेष्ठाचारी होंगी। भल माया का राज्य है परन्तु पहले-पहले आने वाले जरूर सतोप्रधान होंगे तब तो उनकी महिमा होती है। फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। देवतायें भी श्रेष्ठाचारी थे। हरेक को सतो, रजो, तमो में आना ही है, भ्रष्टाचारी बनना ही है। अखबारों में पड़ता है - कई संस्थायें हैं जो भ्रष्टाचार को बंद करने का पुरुषार्थ करती हैं। अब श्रेष्ठाचारी देवताओं के मन्दिर बनाए पूजा करते आये हैं। आप ही पूज्य श्रेष्ठाचारी थे फिर आप ही पुजारी भ्रष्टाचारी फिर पूज्य देवी-देवताओं की बैठ पूजा करते हैं। अभी तुम लिख सकते हो कि यथा राजा-रानी तथा प्रजा सतयुग में श्रेष्ठाचारी थे, वाइसलेस वर्ल्ड थी। बाद में फिर कलायें कम होती हैं। भारत को नीचे आना ही है। यह खेल ही भारत पर है। आधाकल्प भारत श्रेष्ठाचारी था। सदा एकरस भी नहीं रहते। 16 कला से 14 कला में तो आना ही है। धीरे-धीरे कलायें कम होती जाती हैं। तमोप्रधान बन पड़ते हैं। बाप कहते हैं जब-जब अति भ्रष्टाचार होता है तब मैं आता हूँ। पतित को भ्रष्टाचारी, पावन को श्रेष्ठाचारी कहेंगे। यह तो बिल्कुल समझ की बात है।श्रीमद् भगवत कहा जाता है। श्रीमत क्या करती है? वह तो श्रेष्ठ राजाओं का राजा बनाती है। कहते हैं इन माया पर जीत पहनो तो तुम प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। भेंट करनी हैं - क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत 16 कला सम्पूर्ण श्रेष्ठाचारी था। भारत सोने की चिड़िया था। यथा राजा-रानी तथा प्रजा स्वर्ग में सदा सुखी थे फिर जब से रावण राज्य शुरू होता है तो भ्रष्टाचारी बनने लगते हैं। खुद ही कहते हैं हमारे ऑफीसर्स में भ्रष्टाचार है। राजा-रानी तो हैं नहीं जो कहे प्रजा में भ्रष्टाचार है। यहाँ तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य। सब भ्रष्टाचारी हैं। पहले तो गवर्मेन्ट श्रेष्ठाचारी बननी चाहिए। उनको कौन बनावे? अब तुम गरीब बच्चियां ही नम्बरवन श्रेष्ठाचारी बन रही हो। बाप कहते हैं कि मैं सबको श्रेष्ठाचारी आकर बनाता हूँ। ड्रामा अनुसार यह सारा खेल बना हुआ है। फिर भी वही गीता चित्र आदि निकलेंगे। अब बंगाल में काली का मन्दिर है। काली माँ माँ कह प्राण देते हैं। अब ऐसी काली माँ वा चण्डिका देवी आई कहाँ से? नाम तो देखो कैसा है। जो भागन्ती होते हैं वे तो प्रजा में चण्डाल बनते हैं। परन्तु जो यहाँ रहकर विकर्म आदि करते हैं वे रॉयल घराने के चण्डाल बनते हैं। फिर भी पिछाड़ी में उनको ताज पतलून मिल जाती है क्योंकि यहाँ गोद तो लेते हैं ना, इसलिए चण्डिका देवी की पूजा होती है।ज्ञान तो बहुत गुह्य है परन्तु कोई धारण करे। जैसे बैरिस्टर कोई तो लाख कमाते, कोई का कोट भी फटा रहता है। यह तो पढ़ाई है बेहद की। बाप ने जो विस्तार में समझाया उसको सार में लाकर 5 मिनट का भाषण बनाए अखबार में डालना चाहिए। यह भी पूछना चाहिए कि भला हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया? तो बता नहीं सकेंगे। कुछ नहीं जानते। तुम शक्तियों की चलन ऐसी गम्भीर होनी चाहिए जैसे डेल (मोरनी) चलती है। मुख से रत्न निकलते रहें, पत्थर नहीं। वह तो पत्थर मारेंगे। तुम कभी पत्थर नहीं मारो। नाम बदनाम न करो। अच्छा।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।रात्रि क्लास:- यहाँ अच्छे-बुरे मनुष्य हैं। सतयुग में ऐसे अक्षर नहीं निकलेंगे। बुरा वा पाप आत्मा अक्षर नहीं निकलेगा। वहाँ है वाइसलेस वर्ल्ड। बच्चे जानते हैं - हम विश्व के मालिक थे। यह भारत जो देवी-देवताओं का राजस्थान था, अब पुराना है। मनुष्य नहीं जानते हैं - यह है संगमयुग। अब यहाँ से लंगर उठाया हुआ है। हम इस दुनिया से पार जाते हैं। खिवैया है ना। नईयां को पार ले जाते हैं। बच्चों की बुद्धि में है - बहुत धक्के खाये हैं। भक्त नहीं जानते हैं - हम धक्का खाते हैं। वह तो दूर-दूर जाते हैं। तुम बच्चों को सिर्फ याद करना है। ऐसे नहीं कि हम याद करते थक जाते हैं। परन्तु माया विघ्न डालती है। आत्मा ही परमात्मा की आशिक होती है - यह कोई नहीं जानते। परमात्मा माशूक है। तो बच्चों में भी कोई बहुत आशिक हैं, माशूक को याद करते हैं। पुरुषार्थ करना है - हम निरन्तर याद करते रहें। ‘सिमरण' अक्षर भी भक्तिमार्ग का है। हम बाबा को याद करते हैं। प्रवृत्ति मार्ग का अक्षर है ‘याद'। बहुत मीठा भी है। कहते हैं हम भूल जाते हैं। अरे, बच्चा कह थोड़ेही सकता कि हम बाप को भूल जाते हैं। याद तो बहुत अच्छी है। अपने से बातें करनी चाहिए। तुम मात-पिता के सम्मुख बैठे हो। खुशी भी होनी चाहिए। जिसके लिए कहते थे - तुम मात पिता........। बरोबर हम वर्सा पा रहे हैं। याद की ही मेहनत है। तुम्हारी बहुत आमदनी है, बहुत बड़ी प्राप्ति है। सिर्फ चुप रहकर याद करना है। अच्छा।2- तुम ब्राह्मण बच्चों बिगर किसको भी यह पता नहीं है कि संगमयुग कब होता है। इस कल्प के संगम युग की महिमा बहुत है। बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। सतयुग के लिये तो जरूर संगमयुग ही आयेगा। हैं भी मनुष्य। उनमें कोई कनिष्ट, कोई उत्तम हैं। उनके आगे महिमा गाते हैं आप पुरुषोत्तम हो, हम कनिष्ट हैं। आपेही बताते हैं कि मैं ऐसे हूँ, ऐसे हूँ।अभी इस पुरुषोत्तम संगमयुग को तुम ब्राह्मणों बिगर कोई भी नहीं जानते। इनकी एडवरटाईज कैसे करें जो मनुष्यों को पता पड़े। संगमयुग पर भगवान ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। तुम जानते हो हम राजयोग सीख रहे हैं। अभी ऐसी क्या युक्ति रचें जो मनुष्यों को मालूम पड़े। परन्तु होगा धीरे। अभी समय पड़ा है। बहुत गई थोड़ी रही......। हम कहते हैं तो मनुष्य जल्दी पुरुषार्थ करें। नहीं तो ज्ञान सेकण्ड में मिलता है, जिससे तुम उसी समय सेकण्ड में जीवनमुक्ति पा लेंगे। परन्तु तुम्हारे सिर पर आधाकल्प के पाप हैं, वह थोड़ेही सेकण्ड में कटेंगे। इसमें तो टाइम लगता है। मनुष्य समझते हैं अभी तो समय पड़ा है, अभी हम ब्रह्माकुमारियों पास क्यों जायें। तकदीर में नहीं है तो लिटरेचर से भी उल्टा उठा लेते हैं। तुम समझते हो यह पुरुषोत्तम बनने का युग है। हीरे जैसा गायन है ना। फिर कम हो जाता है। गोल्डन एज, सिल्वर एज। यह संगमयुग है डायमण्ड एज। सतयुग है गोल्डन एज। यह तुम जानते हो स्वर्ग से भी यह संगम अच्छा है, हीरे जैसा जन्म है। अमरलोक का गायन है ना। फिर कम होता जाता है। तो यह भी लिख सकते हो पुरुषोत्तम संगमयुग है डायमण्ड, सतयुग है गोल्डन, त्रेता है सिलवर.....। यह भी तुम समझा सकते हो - संगम पर ही हम मनुष्य से देवता बनते हैं। आठ रत्नों की अंगूठी बनाते हैं, तो डायमण्ड को बीच में रखा जाता है। संगम का शो होता है। संगमयुग है ही हीरे जैसा। हीरे का मान संगमयुग पर है। योग आदि सिखलाते हैं, जिसको प्रीचुअल योग कहते हैं। परन्तु प्रीचुअल तो फादर ही है। रूहानी फादर और रूहानी नॉलेज संगम पर ही मिलती है। मनुष्य जिनमें देह-अहंकार है, वह इतना जल्दी कैसे मानेंगे। गरीब आदि को समझाया जाता है। तो यह भी लिखना है संगमयुग इज़ डायमण्ड। उनकी आयु इतनी। सतयुग गोल्डन एज तो उनकी भी आयु इतनी। शास्त्रों में भी स्वास्तिका निकालते हैं। तो तुम बच्चों को भी यह याद रहे तो कितनी खुशी रहनी चाहिए। स्टूडेन्ट्स को खुशी होती है ना। स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट लाइफ। यह तो सोर्स आफ इनकम है। यह है मनुष्य से देवता बनने की पाठशाला। देवतायें तो विश्व के मालिक थे। यह भी तुमको मालूम है। तो अथाह खुशी होनी चाहिए। इसलिये गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो। टीचर अन्त तक पढ़ाते हैं तो उनको अन्त तक याद करना चाहिए। भगवान पढ़ाते हैं और फिर भगवान साथ भी ले जायेंगे। पुकारते भी हैं लिबरेटर गाईड। दु:ख से छुड़ाओ। सतयुग में दु:ख होता ही नहीं। कहते हैं विश्व में शान्ति हो। बोलो, आगे कब थी? वह कौन सा युग था? किसको पता नहीं है। राम राज्य सतयुग, रावण राज्य कलियुग। यह तो जानते हो ना। बच्चों को अनुभव सुनाना चाहिए। बस क्या सुनाऊं दिल की बात। बेहद का बाप बेहद की बादशाही देने वाला मिला और क्या अनुभव सुनाऊं। और कोई बात ही नहीं। इस जैसी खुशी और कोई होती ही नहीं। कभी भी किसी से रूठकर वास्तव में घर में नहीं बैठना चहिए। यह जैसे अपनी तकदीर से रूठना है। पढ़ाई से रूठा तो क्या सीखेंगे! बाप को पढ़ाना ही है - ब्रह्मा द्वारा। तो एक दो से कभी रूठना नहीं चाहिए। यह है माया। यज्ञ में असुरों के विघ्न तो पड़ते हैं ना। अच्छा!मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार गुडनाईट। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) श्रीमत पर श्रेष्ठाचारी बनकर श्रेष्ठाचारी बनाने की सेवा करनी है। कोई ऐसी चलन नहीं चलनी है जिससे नाम बदनाम हो। मुख से सदा रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं। 2) बेहद की गुह्य पढ़ाई को विस्तार से सुनते उसे सार में समाकर दूसरों की सेवा करनी है। श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देना है। वरदान:- समय की रफ्तार प्रमाण सर्व प्राप्तियों से भरपूर रह मायाजीत बनने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव l बापदादा ने जो भी प्राप्तियां कराई हैं, उन सर्व प्राप्तियों को स्वयं में जमा कर भरपूर रहो, कोई भी कमी न रहे। जहाँ भरपूरता में कमी है वहाँ माया हिलाती है। मायाजीत बनने का सहज साधन है - सदा प्राप्तियों से भरपूर रहना। कोई एक भी प्राप्ति से वंचित नहीं रहो, सर्व प्राप्ति हों। समय की रफ्तार प्रमाण कोई भी समय कुछ भी हो सकता है इसलिए तीव्र पुरुषार्थी बन अभी से भरपूर बनो। अब नहीं तो कभी नहीं। स्लोगन:- सत्यता और निर्भयता की शक्ति साथ हो तो कोई भी कारण हिला नहीं सकता। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 23 June 2018 BK Murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 23/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, promise that you will definitely pass with honours, that your intellects will never have doubts about the Mother and Father and that you will always be obedient and follow shrimat. Question: What aspect do you children have to be very careful about while boxing Maya? Answer: While boxing, be very careful that you don't develop doubts about the Mother and Father. If there is impure arrogance or impure attachment or greed, your status will be destroyed. You should have pure greed to claim your inheritance of heaven from the unlimited Father and have full attachment to the one Father. You have to die alive. “I belong to the one Father and I will claim my inheritance from the Father alone, no matter what happens” Promise yourself this. Become real children and there will be unlimited attainment. When you have doubts you lose your status. Song: The heart desires to call out to You! Om ShantiThe meaning of ‘Om’ is very easy: I am a soul. I am silence. Souls are definitely immortal. Who is explaining this? The unlimited Father. There are many children. Among them too, only a handful out of multimillions, and only a few of that handful understand. You children know that the unlimited Father is making you worthy so that He can give you the inheritance of unlimited happiness. When we were deities, we were worthy of worship and the worthy masters of the world. Bharat was the Golden Sparrow. Bharat at that time was righteous, lawful and 100% solvent. The Father explains this. Truly, we were so worthy, we were the masters of the world. The Father is now giving us the right to be able to rule over the whole world. Maya has made you so bankrupt that you are not even worth a shell. You only perform unrighteous acts. Only the one Father teaches you righteous things and He is also called the Truth. You used to sing to Him: You are the Mother and Father. You are sitting personally in front of Him and are making effort to claim your unlimited inheritance from Him. You know that you belong to Him. The Father also says: You belong to Me. At this time, no one knows Me, the Father. Sometimes, you say: He is beyond name and form. Sometimes, you put Me into every name and form and say: God is in all the pebbles and stones. There are innumerable religions and innumerable opinions. Therefore, Baba says: Renounce all of those bodily religions. Souls say: I am a Christian, I am a Muslim. You have to forget those bodily religions. The Father now says: Beloved children, when you say "Mama, Baba" no one can ever forget Mama and Baba. Here, the wonder is that children forget such a Mother and Father from whom you receive the inheritance for 21 births. You remembered your physical parents for birth after birth. This is now your final birth. You have the faith that the same Father truly comes every cycle and makes you into deities. So, then, why do you forget such a Father? Children say: According to the drama, we also forgot You in the previous cycle. Some belong to the Father and then leave Him. Those who were amazed by knowledge, who belonged to God, listened to knowledge and related it to others were then affected by Maya and ran away. Maya doesn't separate you from your physical parents. Some children do divorce their father. The Father from beyond makes you worthy of heaven and gives you such a huge inheritance. Those are limited parents, whereas that One is the unlimited Mother and Father who gives you the sovereignty of heaven. Even when you have faith, why do you divorce such a Father? Good children stay here for five to ten years, play good parts and are then defeated. This is a battlefield. You must never stop remembering the Father. When remembrance is reduced, there is great damage. Maya has conquered many children; she swallowed them raw. It was as though an alligator swallowed them. You are becoming maharathis, so Maya makes you fall and completely swallows you. Very good first-class children who used to go into trance, on whose directions the mother and father played their parts, are no longer here today. What happened? They developed doubts about some things. Baba explains: Those whose intellects have faith become victorious whereas those whose intellects have doubts are led to destruction. Such ones then reach such a low stage. You come here to claim from the Father your full inheritance of becoming princes and princesses. What would your status be if you became those who were amazed by knowledge and then ran away? You would become part of the subjects with a low status. There will also have to be a lot of punishment. There are the Chief Judges etc. in that Government. Here, all are One. The Father says: I come to make you pure from impure. If you do not become completely pure, you will become the impure of the impure. If you disregard the Almighty Authority Father, there will be very severe punishment from Dharamraj. These matters have to be understood. You say, "You are the Mother and Father." Therefore, you have to follow His directions. While following the directions of Shri Shri, you have to stay in complete yoga. You were elevated. You will take 21 elevated births in the sun dynasty and the moon dynasty and become emperors and empresses. You need the directions of Shri Shri in order to become elevated. Only the One is called Shri Shri. Deities are only called Shri. At this time, there is the devilish community, that is, those who follow the dictates of devils, the five vices. You children now receive the directions of Shri Shri through which you become Shri Lakshmi and Shri Narayan. You receive this title. You receive your fortune of the kingdom. In the golden and silver ages there are the crowns of purity and of jewels. The sun and moon dynasties are shown with crowns. Only the emperors and empresses are shown with crowns. The subjects are not shown with crowns. Then, when they become impure in the copper age, they are not shown with the crowns of light. Impure kings and queens worship the pure kings and queens. At this time, neither crown exists; they have become crown-less. This is government of the people by the people, which is called the People's Government. You are Pandavas. You too have no crowns. You have become so wise. You know the incorporeal world, the subtle region and the corporeal world, that is, the beginning, the middle and the end of the world. You know that you are once again becoming double crowned. You receive both health and wealth. The unlimited Father is teaching you and so you are students of the Pandava Government. God speaks: I teach you Raja Yoga. They have simply changed the name in the Gita. This mistake has been caused because of the confluence. You are now receiving the inheritance from the unlimited Father. You receive happiness in the golden and silver ages and then, from the copper age onwards, memorials will begin to be built in your name. The memorials of those who die here are created here in the land of death, just as when Nehru died, his memorial was created here. Your memorials will not remain in the land of immortality. Your memorials will be later, in the copper age. Therefore, all of them that you see began to be built in the copper age. No one knows who Jagadamba, Adi Devi etc. are. They should know this. People should know about the beginning, middle and end of the drama, should they not? Even Lakshmi and Narayan are not aware of it. The Father is knowledge-full. We are His children and we have become master knowledge-full, numberwise, according to our efforts. The Father is the Ocean of Purity and we are also becoming that. Souls that have become impure become pure again. However, no one can become pure by bathing in the Ganges. Only the one Father is called the Purifier. You are sitting personally in front of Him. Once you have faith, that’s it! Children never forget their father. Even when he dies, they invoke his soul. He comes and speaks. This part is according to the drama, and so that soul comes and converses. Whatever happened in the past is fixed in the drama. You should understand the drama in the right way. Don't say: “If it is in my fortune, I will make effort.” It isn't that if you just sit somewhere, water would enter your mouth by itself. No; effort is first required for everything. No one can sit down just like that. If they were simply to sit idly, they would die. Sannyasis have renunciation of karma but, for as long as they have physical organs, they cannot renounce performing actions. How would they get up or sit down? It is the soul that makes the body function. Sanskars are in the soul. At night the soul becomes bodiless. The soul says: I have become tired from performing actions. Therefore, I take a rest at night and become bodiless. It is a soul that eats and drinks and a soul that says through those organs: I am a barrister, I am so-and-so. Souls call out to the Father. Souls remember: O God, the Father, have mercy! He is knowledge-full and blissful. He has full knowledge. Here, you have incomplete knowledge. No one knows what Brahmand is, what the subtle region is, how the drama repeats, where souls go, how they take rebirth and how many births they take. You children continue to know this according to the effort you make. You have to inspire others to sit on this pyre of knowledge and show them the path to Paradise. No one else knows it. The Father explains: Children, don't let go of the Father's hand. By remembering the Father, your sins will be absolved. The Father doesn't remember any children. He knows that all are His children. All of them remember Me. They are going to stay with Me in the land of nirvana. Therefore, you mustn't forget the Father, even by mistake. You mustn't have doubts. The Father is now ordering you: Constantly remember Me alone and also remember your inheritance. Even if there is any conflict, don't forget the Father. Your boat will sink when you forget the Father. You have many enemies because you yourselves say that the flames of destruction emerged from this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. You tell everyone clearly that only after this war will the gates to liberation and liberation-in-life open. Many souls go to the land of liberation and then go into liberation-in-life. Those of the deity religion will go first. All the others establish their own religions. The Father says: I first of all establish the small Brahmin religion, and then, together with that, I change Brahmins into deities. How could shudras claim the Grandfather's inheritance unless they became Brahmins? They surely have to go into the clans. It can be understood when someone appears to belong to the deity clan. The saplings of those who belong to this clan are being planted. The Father explains: You must never forget such a sweet BapDada to whom you say: You are the Mother and Father. Through Your teachings we will receive happiness for 21 unlimited births. You have to make effort and claim the highest status of all. Worthy children promise: Baba, I will definitely pass with honours and show you. I will definitely claim my fortune of the sun-dynasty kingdom. The Father says: You have to be very careful. Maya is no less. Each one of you has to make so much effort that you claim a sun-dynasty status in heaven. If you make effort now, your efforts will continue in the same way every cycle. Baba says: Sweetest children, be careful! Never let your intellects have doubts. In worldly relationships, children can never have doubts about their parents; it is impossible. Here, too, your intellects should have remembrance of Baba. This Baba is the One who gives you unlimited happiness. In spite of that, Maya defeats you children in boxing. The Father says: Never have impure arrogance or impure greed. In fact, you are very greedy. However, this is the pure greed to claim your inheritance of heaven from the unlimited Father. You also have pure attachment. Have total attachment to the one Father. You have to die alive. That’s all! “I belong to the one Father. I will claim my inheritance from the Father alone, no matter what happens”- you have to promise yourself this. You have unlimited attainment. There is no attainment anywhere else. You should have no doubt about this. You might have doubts about other things, but you do belong to the Father, do you not? You must never have doubts about the Father. Those who are completely pure are said to be real ones. Impure ones are step ones. As you make progress, you will continue to understand what status others would claim if they were to leave their bodies at that time. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Move along while understanding the drama very clearly. Make effort and create your reward. Don't just sit down saying, “It’s the drama.” 2. Never disregard the Father. Follow His shrimat at every step. Never have doubts about the Father. Blessing: May you remain double light and remain tireless while fulfilling your mundane responsibilities as a trustee. There is double benefit in looking after your mundane responsibilities while looking after your service responsibilities. Since there is double responsibility, there is double attainment. However, in order to remain double light while having double responsibility, look after your responsibilities as a trustee and you will not feel tired. Those who consider it to be their household and their family experience a burden. Since it is not yours, how can there be a burden? Slogan: Remain constantly in front of the sun of knowledge and the shadow of fortune will remain with you. #bkmurlitoday #brahmakumari #Murli #english

  • 8 May Essence of Murli today in Hindi

    Brahma Kumaris essence of murli today in Hindi for 8 May 2018 - BapDada - Madhuban - "मीठे बच्चे - यह ज्ञान बड़े मजे का है, तुम हरेक अपने लिए कमाई करते हो। तुम्हें और किसी का भी ख्याल नहीं करना है, अपनी इस देह को भी भूल कमाई में लग जाना है।" Q- अविनाशी कमाई करने की विधि क्या है? इस कमाई से वंचित कौन रह जाता है? A- यह अविनाशी कमाई करने के लिए रात को वा अमृतवेले जागकर बाप को याद करते रहो, विचार सागर मंथन करो। कमाई में कभी उबासी या नींद नहीं आती। तुम चलते-फिरते भी बाप की याद में रहो तो हर सेकेण्ड कमाई है। तुम्हें इन्डिपेन्डेंट अपने लिए कमाई करनी है। जो उस विनाशी कमाई के लोभ में ज्यादा जाते, वह इस कमाई से वंचित हो जाते हैं। D- 1) स्थाई खुशी में रहने के लिए विचार सागर मंथन करना है। नशे में रहना है कि हम ब्रह्माण्ड और विश्व के मालिक बनने वाले हैं।-----2) एक बाप से सच्ची प्रीत रख कमाई करनी है। हम आत्मा इस देह में रथी हैं। रथी समझ देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करना है। V- बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेवा समझ हर कार्य करने वाले सदा अथक और बन्धनमुक्त भव-----प्रवृत्ति को सेवा समझकर सम्भालो, बंधन समझकर नहीं। बाप ने डायरेक्शन दिया है - योग से हिसाब-किताब चुक्तू करो। यह तो मालूम है कि वह बंधन है लेकिन घड़ी-घड़ी कहने वा सोचने से और भी कड़ा बंधन हो जाता है और अन्त घड़ी में अगर बंधन ही याद रहा तो गर्भ-जेल में जाना पड़ेगा इसलिए कभी भी अपने से तंग नहीं हो। फंसो भी नहीं और मजबूर भी न हो, खेल-खेल में हर कार्य करते चलो तो अथक भी रहेंगे और बंधनमुक्त भी बनते जायेंगे। S- भ्रकुटी की कुटिया में बैठकर तपस्वीमूर्त होकर रहो - यही अन्तर्मुखता है।

  • 10 May Essence of Murli in English

    Brahma Kumaris essence of murli today in English for 10 May 2018 - BapDada - Madhuban - Sweet children, forget whatever you see with your eyes. Forget all bodily beings and practise remembering the bodiless Father. Question: Why are the mouths of you children sweetened with knowledge and not with devotion? Answer: 1. On the path of devotion, people say that God is omnipresent. By Him being called omnipresent, there is no longer the idea of the Father and the inheritance and this is why your mouths cannot be sweetened there. You children now say with love “Baba” and so the inheritance is remembered. This is why your mouths are sweetened with knowledge. 2. On the path of devotion, you have been playing with toys without any recognition and so how could your mouths be sweetened? Song: Salutations to Shiva. (you are our mother and the Father) Essence for dharna: 1. Give one another happiness according to Godly directions. Never cause anyone sorrow. 2. Become a bestower of happiness, the same as the Father. 2. Remove your attachment from those bodies and become a destroyer of attachment. Become a worthy child and make effort to remember the Father constantly. Blessing: May you wear an imperishable tilak of sovereignty and experience the confluence-aged sovereignty by handing over everything to the Father. Nowadays, sovereignty is received either by donating money or through votes, but the Father Himself has given you each of you children the tilak of the kingdom. To be a carefree emperor is such a good stage. Since you have handed over everything to the Father, who would be concerned about everything? The Father. However, let it not be that you also keep a little authority or the dictates of your own mind hidden away somewhere in yourself. If you are following shrimat, you have handed over everything to the Father. Such children who hand over everything to the Father with their true hearts remain double light and have the imperishable tilak of sovereignty. Slogan: Let each version be a great elevated version. When no word goes to waste you would then be called a master satguru.

  • Creation of World, Evolution of Life - Part 2

    God reminds souls that He is their spiritual father and that they can fill themselves with His powers and virtues simply by being aware that they are souls and remembering Him. Such remembrance of God is called Rajyoga. Since this is an easy method of meditation and does not involve any physical rigours, chanting or other rituals it is also called easy yoga. Being easy, it can be practised constantly. Regular practise of this form of meditation eventually makes one naturally soul conscious — aware that one is a soul, a sentient point of light separate from the body but living within the body and using it as a medium to think, feel, see, hear, smell, speak and act. This mental link with the Supreme Soul also fills the soul with God’s powers and virtues. When the soul is enriched and strengthened in this way, it is no longer influenced by vices and consequently gets liberated from sorrow. The thoughts, words and actions of such purified souls spread peace and happiness all around. When a critical number of humans start transmitting positive energy all over the world in this way, all negativity begins to get eliminated and the elements of nature also get purified. In this process the world undergoes a major transformation whereby the Iron Age ends and the planet returns to its pristine state for the Golden Age to dawn once again. God and all human souls return to the soul world at this time, just as the director and actors in a play go home at the end of a performance, to come down again and play their respective roles when the drama begins anew as the wheel of time begins to turn a new circle. This cyclical process goes on eternally, with rejuvenation taking place at the end of each turn of the wheel of time through the intervention of God. This cyclical process goes on eternally, with rejuvenation taking place at the end of each turn of the wheel of time through the intervention of God. The soul of Brahma, by virtue of being the first soul to achieve complete self-transformation and playing a key role in bringing about this rejuvenation, goes on to play the most prominent role in the Golden Age – that of Shri Krishna. However, since the Supreme Soul is always incorporeal and Brahma was His visible medium, people have attributed the task of creation of the new world to Brahma. They have also mistakenly credited Shri Krishna with giving humans spiritual knowledge in the form of the Bhagavad Gita as is depicted in the Mahabharata. The battle shown in the Mahabharata is a spiritual one that each soul has to fight within itself to overcome vices and negative tendencies. God helps us in this battle by reminding us of our original goodness and empowering us to return to that state. Those who recognize the truth revealed by God and make the effort to transform themselves attain the powers and virtues that entitle them to play a leading role in the world drama right from the start of the Golden Age. It is an entitlement God offers to all His children. Claiming it is up to us. Om Shanti.

  • English - BK murli today 2 May 2018

    02/05/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, first of all, have mercy on yourselves. Then, it is your duty to show your family the true way to go to heaven. Therefore, make full effort to make them worthy too. Question: On the basis of which race will you become the masters of Shivalaya? Answer: Follow the Mother and Father. Make a promise of purity for just one birth. Remove your heart from hell. Shiv Baba is establishing Shivalaya for you where you will rule in the living form. By remembering the Father and heaven while at your business you will receive the tilak of sovereignty, that is, you will become the masters of Shivalaya. Song: You are the Mother and Father. Om Shanti You have to say something or other: “Om shanti” or “Salutations to Shiva”. They say "Salutations to the Supreme Soul" whereas we say "Om shanti". This is giving the introduction of the self and of the Father. Those devotees sing the praise: “You are the Mother and Father…”, whereas you are the children. The Father, whom devotees praise on the path of devotion, is personally sitting here in front of you today. He definitely was in front of you and is now once again sitting personally in front of you. Only you children now know these things. Devotees don't know this. You children know that there is only the one Father who is praised. That Father is giving you children so much happiness that you won't become unhappy again for 21 births. You are personally sitting in front of such a Father. You know that He is your unlimited Father and that He is now serving to give us the happiness of heaven. The Father always creates the children, serves them and makes them worthy. It is as though the Father becomes a slave of the children. A physical father also makes so much effort to sustain his children. Day and night, he is concerned to serve his children and make them worthy. He is the slave of a limited creation whereas this One is the unlimited Father. This One also says: Children, follow fully and become the masters of heaven by claiming your full inheritance. You always have to have mercy for children. A sensible father would say: Why should I not enable the children to earn this true income with me? Physical sustenance has been given to physical children for half the cycle. They sustained the children, brought them up and made them worthy. They made wills for the children, then shed their bodies and took other births. Those are limited fathers whereas this One is the unlimited Father. Those are limited Brahmas. They create creations and then become their slave. They have to work very hard to ensure that their children don't become spoilt through bad company and defame their name. However, that is temporary happiness. They don’t know whether their children will turn out to be worthy or unworthy. Some are so unworthy that they completely ruin everything. They completely waste their father’s wealth. This is why there has to be great caution. The unlimited Father is so concerned. He says: You claim your inheritance and also give the inheritance to your creation. However, even then, if the children are unworthy, they disobey the Father. The Father says: “Study” but they don't study; they don't become pure. Scarcely a few, a handful out of multimillions, emerge who are obedient. You receive shrimat here. “You are the Mother and Father.” This is praise of just the One. However, because of not knowing, people say in front of Krishna and Lakshmi and Narayan: You are the Mother and Father. That too is blind faith. Lakshmi and Narayan experience their reward. They have their own children. How can we call them the Mother and Father? In fact, this praise belongs to only the One. You heard in the song: The Highest on High is Shiv Baba. He is the Bestower of Salvation for All. He is the One who takes everyone to the land of peace and the land of happiness. Therefore, you must definitely follow the shrimat of such a Father. They understand that it is only from the Mother and Father that they receive a lot of happiness for 21 births. However, hardly anyone follows such shrimat. You receive a very elevated inheritance. The Father says: I have brought heaven on the palm of My hand for you children. You will become worthy when you follow shrimat. You have to take shrimat at every step. If you don't follow His directions, you won't be able to claim a high status. There was the kingdom of Lakshmi and Narayan in heaven. No one knows this. Previously, we also used to say: So-and-so became a resident of heaven. Or, when a sannyasis died, they would say that he merged into the light. However, no one goes there. Only the one Father is the Bestower of Liberation and Liberation-in-life. No one can go back until He comes. That is the incorporeal world. Incorporeal souls and the incorporeal Father reside there and that is also called the supreme abode. Those who have arrogance of science understand that they take birth here and die here too, just like mosquitoes. No one knows about the world cycle. No one can understand anything from the notion of omnipresence. You have now found the Father. He says: Children, now return home. I have come to take everyone back exactly as in the previous cycle. You souls have a lot of alloy in you. All souls and their bodies have become iron aged. They have to become satopradhan once again. When you souls were satopradhan, the world was golden aged. Pure souls had bodies that were like pure gold; they were called real jewellery. Look what they have become now. Not even one per cent real gold remains now. Alloy has been mixed in. The Father now says: Simply remember Me, your Father, and you will continue to become real gold and the soul will begin to fly. The wings are now broken. You will attain a status according to how much effort you make. This study is so elevated. God speaks: I teach you Raja Yoga through which you become the kings of kings. You will become worthy of being worshipped by even the kings who are worshippers and who indulge in vice. It is remembered: You are worthy of worship and you become a worshipper yourself. You know that you were worthy-of-worship deities and that you then became moon-dynasty worthy of worship. We become worthy of worship and worshippers. The Father comes and makes us worthy of worship from worshippers. There is now victory for knowledge. The night of Brahma and the Brahma Kumars and Kumaris is now coming to an end. Those who study the scriptures do not know when the night begins. The day of Brahma is the golden and silver ages. The night begins in the copper age. All of these things are in the intellects of you children. Having completed our 84 births we will once again experience our fortune of the kingdom. This knowledge will not remain in the golden age. There, there is the reward. There, too, you receive your inheritance from your father. However, that is the reward of this time that you receive for 21 births. The whole play is based on Bharat. The kingdom of deities that existed in the golden age has now become devilish. There is the rule of the people over the people. The Father says: Children, hear no evil, see no evil… They show an image of monkeys. At present, humans have become like monkeys. This is why they show the faces of monkeys, but it applies to this time. This is called the extreme depths of hell. They continue to sting one another like scorpions. Children even kill their father. Maya has made everyone dirty. Bharat was heaven and it is now hell. The 84 births are those of the people of Bharat. The Father says: I explain so much to you. He says: I am your most obedient Father, Father-Servant, Teacher-Servant and Guru-Servant. I have now come. Guides too are servants of the pilgrims; they show them the path. I have now become the Guide to take you children to heaven. I liberate you. History will definitely repeat. In the Granth, it says: I am the Truth and that which is true will take place… God is incorporeal. This is the praise of God. On the one hand, they say that He is beyond birth (ajoni) and, on the other hand, they say that He is omnipresent. Wherever I look, I only see You. We have come here to enjoy ourselves. Many people say this. The Father now says: Children, all of those things will make you drown. The notion of omnipresence drowns you. The Father explains so much to you. Some very quickly have the faith that they have to claim their inheritance from the Father. You cannot find another Father as sweet as this One. It is the Father who establishes heaven. Only when we find the Father do we become the masters of heaven. You should quickly make such a Father belong to you. I want the children who belonged to Me in the previous cycle; they are the ones who will come and become worthy or unworthy as they did in the previous cycle. The responsibility for the mother and the children is with the Father, the Creator. It is also His duty to make the children into the masters of heaven. First of all, have mercy on yourself. It isn't that Baba gives blessings, otherwise everyone would become Lakshmi or Narayan! This is a big examination. Only eight win the scholarship. Then, there are the 108. There is a lottery. The Father says: Forget your body and all bodily relations. Consider yourself to be bodiless and have the faith that you a soul. It isn't that you are God. They say that each soul becomes the Supreme Soul. They believe that a soul will merge into the Supreme Soul and that, until he merges into Him, a soul cannot be called the Supreme Soul. However, no one merges into the Supreme Soul. This drama is eternally predestined. There are five to six billons actors. All actors have received their own parts which they have to play. Every soul has an immortal part recorded in him. No one but the Father can explain to you. The Father comes and gives you children the knowledge of the beginning, the middle and the end and makes you trikaldarshi. In pictures, they show deities with a third eye. In fact, neither deities nor shudras have a third eye. Only you Brahmins have the third eye of knowledge with which you know the occupation of everyone. You know the condition of the land of truth and of the land of falsehood. Among you, too, it is numberwise according to the efforts you make. This is a school. There is no question of blind faith here. Continue to do your business etc. Simply remember your Father and heaven and the tilak of the sovereignty will be applied to you. It is the soul that remembers. The sanskars are in the soul. Baba speaks to souls: I am your Father. You claimed your inheritance in the previous cycle too. You ruled the sun-dynasty kingdom and you then went into the moon dynasty. The degrees continued to decrease as you became merchants and then shudras. You are now aware that the play is coming to an end. Constantly remember Me alone and your sins will be absolved. If you don't follow shrimat but become body conscious, you will be hurt. Then the omens of Jupiter will change and omens of Rahu will come. If you divorce the Father, you will become a resident of extreme hell. The Father says: If you want to claim a high status, then race. If you claim a high status now, you will claim it every cycle. Simply promise to remain pure for one birth and you will become the masters of heaven for 21 births. Now remove your heart from hell. Shiv Baba is establishing Shivalaya for you where you will rule as living deities. So, do you want to become a master of Shivalaya? Follow the Mother and Father. Whatever they have is all for you children. You are the ones who will become kings. You were that. You have now become beggars. It is not a question of those of other religions. It is those who belonged to the deity religion who have been converted into other religions. This is why the population of Hindus has declined. Otherwise, the population of Bharat should be the largest. God is teaching you. Therefore, you should pay so much attention. This is a very wonderful study. Old ones, children and young ones are all studying here. Even those who are ill can study. If you don't remember the Father and the inheritance, Maya will slap you. You should write in blood: I will remember Baba day and night. I will hold on to Baba's hand very tightly. I will do whatever Baba says. Shiv Baba says: Look after your children; give two handfuls for Shiv Baba's service from whatever is left and, in return for that, the reward you receive will be equal to what a wealthy person would receive by giving a hundred thousand. You receive the instant practical fruit. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Forget your body and all bodily relations and practise becoming a bodiless soul. Take shrimat from the Father and follow it at every step. 2. Pay full attention to the study. Have the determined thought: I will remember Baba alone day and night and I will definitely do that which Baba tells me to do. Hear no evil, see no evil. Blessing: May you have a right to double fruit by considering yourself to be a server while doing service and performing any duty. While carrying out any task, going to the office or running your business, always have the awareness that you are performing that duty for service. I am doing this for the sake of service. Service will then automatically come to you and the more service you do, the more your happiness will increase. Of course, you will accumulate for your future and you will also receive the instant fruit of happiness. So, you will claim a right to double fruit. If your intellect is busy in remembrance and service, you will constantly continue to eat that fruit. Slogan: Those who are constantly happy are loved by themselves and by others. #brahmakumari #english

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