top of page
Writer's pictureShiv Baba, Brahma Kumaris

BK murli today in Hindi 2 July 2018 - aaj ki murli


Brahma Kumaris murli today in Hindi - aaj ki murli - BapDada - Madhuban - 02-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन''

मीठे बच्चे - बाप का राइट हैण्ड बन, सर्विस का शौक रख श्रीमत पर पूरा-पूरा अटेन्शन दो, अखबारों में कोई सर्विस की बात निकले तो उसे पढ़कर सर्विस में लग जाओ''

प्रश्नः- बाप का नाम तुम बच्चे कब बाला कर सकेंगे?

उत्तर:- जब तुम्हारी चलन बड़ी रॉयल और गम्भीर होगी। तुम शक्तियों की चाल ऐसी चाहिए जैसे डेल (मोरनी)। तुम्हारे मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए, पत्थर नहीं। पत्थर निकालने वाले नाम बदनाम करते हैं। फिर उनका पद भी भ्रष्ट हो जाता है। बाप का बनकर कोई भी विकर्म न हो - इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना है।

गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन.......

ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। याद करते हैं - हे परमपिता परमात्मा, निराकार रूप बदलकर साकार में आ जाओ। वह क्या रूप बदलेगा। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि कच्छ-मच्छ का रूप बनकर आओ। नहीं। यह है पाप आत्माओं की दुनिया। पुकारते हैं पावन बनाने के लिए। अगर सर्वव्यापी है तो फिर किसको पुकारते हैं? अब यह गीत तो रेडियो में भी बजते हैं। परन्तु कोई भी समझते नहीं। अब तुम बच्चियां तो अखबार आदि पढ़ती नहीं हो। भल पढ़ी-लिखी हैं परन्तु अखबार पढ़ने का शौक नहीं। बाकी रहे गोप, उनमें भी कोई-कोई को सर्विस का शौक रहता है कि किस रीति अखबार से सर्विस का रास्ता निकालें। ब्राह्मण कुलभूषण हैं तो बहुत, परन्तु उनमें भी कोटो में कोई निकलते हैं जो अखबार में देख फौरन सर्विस करने लग पड़ते हैं। बाबा ने राइटहैण्ड बनाया है माताओं को। गोप मुश्किल खड़े होते हैं, कोई बिरला यथार्थ रीति से श्रीमत पर अटेन्शन देते हैं। यह एक प्वाइंट है - भ्रष्टाचार और श्रेष्ठाचार की। भ्रष्टाचारी बुलाते हैं कि - हे भगवान्, आओ, आकर श्रेष्ठाचारी बनाओ। सभी भ्रष्टाचारी जरूर हैं। कहा जाता है यथा राजा-रानी तथा प्रजा। यथा राजा-रानी माना गवर्मेन्ट तथा प्रजा माना रैयत। तो बच्चों को समझाया गया है कि भारत सदा श्रेष्ठाचारी था, स्वर्ग था। स्वर्ग में भी अगर भ्रष्टाचारी हों तो उनको स्वर्ग कैसे कहा जाए? स्वर्ग की स्थापना जरूर बाप ही करते होंगे, जिसको ही याद करते हैं। भ्रष्टाचारी ही बुलाते हैं, श्रेष्ठाचारी कब बुलाते नहीं। भारत बड़ा श्रेष्ठाचारी था, स्वर्ग था, अब तो नर्क है। तो नर्क में जरूर भ्रष्टाचारी होंगे। श्रेष्ठाचारी का सबूत दिखाओ। तुम चित्र दिखला सकते हो - बरोबर सतयुग में यथा राजा रानी तथा प्रजा, यह लक्ष्मी-नारायण देखो श्रेष्ठाचारी थे ना। नाम ही है स्वर्ग। द्वापर में ऐसे श्रेष्ठाचारी राजा-रानियों के मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं। तो जरूर खुद भ्रष्टाचारी हैं। अपने को कहते भी हैं कि हम भ्रष्टाचारी हैं, कामी, क्रोधी, पापी हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न........ हैं। भारत में भ्रष्टाचारी, श्रेष्ठाचारी की महिमा करते हैं। भ्रष्टाचारी राजाओं के पास श्रेष्ठाचारी देवताओं के मन्दिर हैं। महिमा गाते रहते हैं, नमन, वन्दन, पूजा करते रहते हैं। बाबा ने समझाया है धर्म स्थापन करने अर्थ ऊपर से जो आत्मायें आती हैं वह जरूर सतोप्रधान श्रेष्ठाचारी होंगी। भल माया का राज्य है परन्तु पहले-पहले आने वाले जरूर सतोप्रधान होंगे तब तो उनकी महिमा होती है। फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। देवतायें भी श्रेष्ठाचारी थे। हरेक को सतो, रजो, तमो में आना ही है, भ्रष्टाचारी बनना ही है। अखबारों में पड़ता है - कई संस्थायें हैं जो भ्रष्टाचार को बंद करने का पुरुषार्थ करती हैं। अब श्रेष्ठाचारी देवताओं के मन्दिर बनाए पूजा करते आये हैं। आप ही पूज्य श्रेष्ठाचारी थे फिर आप ही पुजारी भ्रष्टाचारी फिर पूज्य देवी-देवताओं की बैठ पूजा करते हैं। अभी तुम लिख सकते हो कि यथा राजा-रानी तथा प्रजा सतयुग में श्रेष्ठाचारी थे, वाइसलेस वर्ल्ड थी। बाद में फिर कलायें कम होती हैं। भारत को नीचे आना ही है। यह खेल ही भारत पर है। आधाकल्प भारत श्रेष्ठाचारी था। सदा एकरस भी नहीं रहते। 16 कला से 14 कला में तो आना ही है। धीरे-धीरे कलायें कम होती जाती हैं। तमोप्रधान बन पड़ते हैं। बाप कहते हैं जब-जब अति भ्रष्टाचार होता है तब मैं आता हूँ। पतित को भ्रष्टाचारी, पावन को श्रेष्ठाचारी कहेंगे। यह तो बिल्कुल समझ की बात है।श्रीमद् भगवत कहा जाता है। श्रीमत क्या करती है? वह तो श्रेष्ठ राजाओं का राजा बनाती है। कहते हैं इन माया पर जीत पहनो तो तुम प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। भेंट करनी हैं - क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत 16 कला सम्पूर्ण श्रेष्ठाचारी था। भारत सोने की चिड़िया था। यथा राजा-रानी तथा प्रजा स्वर्ग में सदा सुखी थे फिर जब से रावण राज्य शुरू होता है तो भ्रष्टाचारी बनने लगते हैं। खुद ही कहते हैं हमारे ऑफीसर्स में भ्रष्टाचार है। राजा-रानी तो हैं नहीं जो कहे प्रजा में भ्रष्टाचार है। यहाँ तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य। सब भ्रष्टाचारी हैं। पहले तो गवर्मेन्ट श्रेष्ठाचारी बननी चाहिए। उनको कौन बनावे? अब तुम गरीब बच्चियां ही नम्बरवन श्रेष्ठाचारी बन रही हो। बाप कहते हैं कि मैं सबको श्रेष्ठाचारी आकर बनाता हूँ। ड्रामा अनुसार यह सारा खेल बना हुआ है। फिर भी वही गीता चित्र आदि निकलेंगे। अब बंगाल में काली का मन्दिर है। काली माँ माँ कह प्राण देते हैं। अब ऐसी काली माँ वा चण्डिका देवी आई कहाँ से? नाम तो देखो कैसा है। जो भागन्ती होते हैं वे तो प्रजा में चण्डाल बनते हैं। परन्तु जो यहाँ रहकर विकर्म आदि करते हैं वे रॉयल घराने के चण्डाल बनते हैं। फिर भी पिछाड़ी में उनको ताज पतलून मिल जाती है क्योंकि यहाँ गोद तो लेते हैं ना, इसलिए चण्डिका देवी की पूजा होती है।ज्ञान तो बहुत गुह्य है परन्तु कोई धारण करे। जैसे बैरिस्टर कोई तो लाख कमाते, कोई का कोट भी फटा रहता है। यह तो पढ़ाई है बेहद की। बाप ने जो विस्तार में समझाया उसको सार में लाकर 5 मिनट का भाषण बनाए अखबार में डालना चाहिए। यह भी पूछना चाहिए कि भला हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया? तो बता नहीं सकेंगे। कुछ नहीं जानते। तुम शक्तियों की चलन ऐसी गम्भीर होनी चाहिए जैसे डेल (मोरनी) चलती है। मुख से रत्न निकलते रहें, पत्थर नहीं। वह तो पत्थर मारेंगे। तुम कभी पत्थर नहीं मारो। नाम बदनाम न करो। अच्छा।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।रात्रि क्लास:- यहाँ अच्छे-बुरे मनुष्य हैं। सतयुग में ऐसे अक्षर नहीं निकलेंगे। बुरा वा पाप आत्मा अक्षर नहीं निकलेगा। वहाँ है वाइसलेस वर्ल्ड। बच्चे जानते हैं - हम विश्व के मालिक थे। यह भारत जो देवी-देवताओं का राजस्थान था, अब पुराना है। मनुष्य नहीं जानते हैं - यह है संगमयुग। अब यहाँ से लंगर उठाया हुआ है। हम इस दुनिया से पार जाते हैं। खिवैया है ना। नईयां को पार ले जाते हैं। बच्चों की बुद्धि में है - बहुत धक्के खाये हैं। भक्त नहीं जानते हैं - हम धक्का खाते हैं। वह तो दूर-दूर जाते हैं। तुम बच्चों को सिर्फ याद करना है। ऐसे नहीं कि हम याद करते थक जाते हैं। परन्तु माया विघ्न डालती है। आत्मा ही परमात्मा की आशिक होती है - यह कोई नहीं जानते। परमात्मा माशूक है। तो बच्चों में भी कोई बहुत आशिक हैं, माशूक को याद करते हैं। पुरुषार्थ करना है - हम निरन्तर याद करते रहें। ‘सिमरण' अक्षर भी भक्तिमार्ग का है। हम बाबा को याद करते हैं। प्रवृत्ति मार्ग का अक्षर है ‘याद'। बहुत मीठा भी है। कहते हैं हम भूल जाते हैं। अरे, बच्चा कह थोड़ेही सकता कि हम बाप को भूल जाते हैं। याद तो बहुत अच्छी है। अपने से बातें करनी चाहिए। तुम मात-पिता के सम्मुख बैठे हो। खुशी भी होनी चाहिए। जिसके लिए कहते थे - तुम मात पिता........। बरोबर हम वर्सा पा रहे हैं। याद की ही मेहनत है। तुम्हारी बहुत आमदनी है, बहुत बड़ी प्राप्ति है। सिर्फ चुप रहकर याद करना है। अच्छा।2- तुम ब्राह्मण बच्चों बिगर किसको भी यह पता नहीं है कि संगमयुग कब होता है। इस कल्प के संगम युग की महिमा बहुत है। बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। सतयुग के लिये तो जरूर संगमयुग ही आयेगा। हैं भी मनुष्य। उनमें कोई कनिष्ट, कोई उत्तम हैं। उनके आगे महिमा गाते हैं आप पुरुषोत्तम हो, हम कनिष्ट हैं। आपेही बताते हैं कि मैं ऐसे हूँ, ऐसे हूँ।अभी इस पुरुषोत्तम संगमयुग को तुम ब्राह्मणों बिगर कोई भी नहीं जानते। इनकी एडवरटाईज कैसे करें जो मनुष्यों को पता पड़े। संगमयुग पर भगवान ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। तुम जानते हो हम राजयोग सीख रहे हैं। अभी ऐसी क्या युक्ति रचें जो मनुष्यों को मालूम पड़े। परन्तु होगा धीरे। अभी समय पड़ा है। बहुत गई थोड़ी रही......। हम कहते हैं तो मनुष्य जल्दी पुरुषार्थ करें। नहीं तो ज्ञान सेकण्ड में मिलता है, जिससे तुम उसी समय सेकण्ड में जीवनमुक्ति पा लेंगे। परन्तु तुम्हारे सिर पर आधाकल्प के पाप हैं, वह थोड़ेही सेकण्ड में कटेंगे। इसमें तो टाइम लगता है। मनुष्य समझते हैं अभी तो समय पड़ा है, अभी हम ब्रह्माकुमारियों पास क्यों जायें। तकदीर में नहीं है तो लिटरेचर से भी उल्टा उठा लेते हैं। तुम समझते हो यह पुरुषोत्तम बनने का युग है। हीरे जैसा गायन है ना। फिर कम हो जाता है। गोल्डन एज, सिल्वर एज। यह संगमयुग है डायमण्ड एज। सतयुग है गोल्डन एज। यह तुम जानते हो स्वर्ग से भी यह संगम अच्छा है, हीरे जैसा जन्म है। अमरलोक का गायन है ना। फिर कम होता जाता है। तो यह भी लिख सकते हो पुरुषोत्तम संगमयुग है डायमण्ड, सतयुग है गोल्डन, त्रेता है सिलवर.....। यह भी तुम समझा सकते हो - संगम पर ही हम मनुष्य से देवता बनते हैं। आठ रत्नों की अंगूठी बनाते हैं, तो डायमण्ड को बीच में रखा जाता है। संगम का शो होता है। संगमयुग है ही हीरे जैसा। हीरे का मान संगमयुग पर है। योग आदि सिखलाते हैं, जिसको प्रीचुअल योग कहते हैं। परन्तु प्रीचुअल तो फादर ही है। रूहानी फादर और रूहानी नॉलेज संगम पर ही मिलती है। मनुष्य जिनमें देह-अहंकार है, वह इतना जल्दी कैसे मानेंगे। गरीब आदि को समझाया जाता है। तो यह भी लिखना है संगमयुग इज़ डायमण्ड। उनकी आयु इतनी। सतयुग गोल्डन एज तो उनकी भी आयु इतनी। शास्त्रों में भी स्वास्तिका निकालते हैं। तो तुम बच्चों को भी यह याद रहे तो कितनी खुशी रहनी चाहिए। स्टूडेन्ट्स को खुशी होती है ना। स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट लाइफ। यह तो सोर्स आफ इनकम है। यह है मनुष्य से देवता बनने की पाठशाला। देवतायें तो विश्व के मालिक थे। यह भी तुमको मालूम है। तो अथाह खुशी होनी चाहिए। इसलिये गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो। टीचर अन्त तक पढ़ाते हैं तो उनको अन्त तक याद करना चाहिए। भगवान पढ़ाते हैं और फिर भगवान साथ भी ले जायेंगे। पुकारते भी हैं लिबरेटर गाईड। दु:ख से छुड़ाओ। सतयुग में दु:ख होता ही नहीं। कहते हैं विश्व में शान्ति हो। बोलो, आगे कब थी? वह कौन सा युग था? किसको पता नहीं है। राम राज्य सतयुग, रावण राज्य कलियुग। यह तो जानते हो ना। बच्चों को अनुभव सुनाना चाहिए। बस क्या सुनाऊं दिल की बात। बेहद का बाप बेहद की बादशाही देने वाला मिला और क्या अनुभव सुनाऊं। और कोई बात ही नहीं। इस जैसी खुशी और कोई होती ही नहीं। कभी भी किसी से रूठकर वास्तव में घर में नहीं बैठना चहिए। यह जैसे अपनी तकदीर से रूठना है। पढ़ाई से रूठा तो क्या सीखेंगे! बाप को पढ़ाना ही है - ब्रह्मा द्वारा। तो एक दो से कभी रूठना नहीं चाहिए। यह है माया। यज्ञ में असुरों के विघ्न तो पड़ते हैं ना। अच्छा!मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार गुडनाईट। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) श्रीमत पर श्रेष्ठाचारी बनकर श्रेष्ठाचारी बनाने की सेवा करनी है। कोई ऐसी चलन नहीं चलनी है जिससे नाम बदनाम हो। मुख से सदा रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं।

2) बेहद की गुह्य पढ़ाई को विस्तार से सुनते उसे सार में समाकर दूसरों की सेवा करनी है। श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देना है।

वरदान:- समय की रफ्तार प्रमाण सर्व प्राप्तियों से भरपूर रह मायाजीत बनने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव l

बापदादा ने जो भी प्राप्तियां कराई हैं, उन सर्व प्राप्तियों को स्वयं में जमा कर भरपूर रहो, कोई भी कमी न रहे। जहाँ भरपूरता में कमी है वहाँ माया हिलाती है। मायाजीत बनने का सहज साधन है - सदा प्राप्तियों से भरपूर रहना। कोई एक भी प्राप्ति से वंचित नहीं रहो, सर्व प्राप्ति हों। समय की रफ्तार प्रमाण कोई भी समय कुछ भी हो सकता है इसलिए तीव्र पुरुषार्थी बन अभी से भरपूर बनो। अब नहीं तो कभी नहीं।

स्लोगन:- सत्यता और निर्भयता की शक्ति साथ हो तो कोई भी कारण हिला नहीं सकता।

0 views

Related Posts

See All

आज की मुरली 3 Dec 2018 BK murli in Hindi

BrahmaKumaris murli today in Hindi Aaj ki gyan murli Madhuban 03-12-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन' 'मीठे बच्चे - ज्ञान और...

आज की मुरली 2 Dec 2018 BK murli in Hindi

BrahmaKumaris murli today in Hindi Aaj ki gyan murli Madhuban 02-12-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 05-03-84 मधुबन...

आज की मुरली 1 Dec 2018 BK murli in Hindi

BrahmaKumaris murli today in Hindi Aaj ki gyan murli Madhuban 01-12-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - तुम सबको...

Kommentare


bottom of page