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  • आज की मुरली 29 Nov 2018 BK murli in Hindi

    Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki gyan murli Madhuban 29-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - ज्ञान है मक्खन, भक्ति है छांछ, बाप तुम्हें ज्ञान रूपी मक्खन देकर विश्व का मालिक बना देते हैं, इसलिए कृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं'' प्रश्नः- निश्चयबुद्धि की परख क्या है? निश्चय के आधार पर क्या प्राप्ति होती है? उत्तर:- 1. निश्चयबुद्धि बच्चे शमा पर फिदा होने वाले सच्चे परवाने होंगे, फेरी लगाने वाले नहीं। जो शमा पर फिदा हो जाते हैं वही राजाई में आते हैं, फेरी लगाने वाले प्रजा में चले जाते। 2. धरत परिये धर्म न छोड़िये - यह प्रतिज्ञा निश्चयबुद्धि बच्चों की है। वे सच्चे प्रीत बुद्धि बन देह सहित देह के सब धर्मों को भूल बाप की याद में रहते हैं। गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन.... ओम् शान्ति।भगवानुवाच। भगवान् कहा जाता है निराकार परमपिता को। भगवानुवाच किसने कहा? उस निराकार परमपिता परमात्मा ने। निराकार बाप निराकार आत्माओं को बैठ समझाते हैं। निराकार आत्मा इस शरीर रूपी कर्मेन्द्रियों से सुनती है। आत्मा को न मेल, न फीमेल कहा जाता है। उनको आत्मा ही कहा जाता है। आत्मा स्वयं इन आरगन्स द्वारा कहती है - मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। जो भी मनुष्य मात्र हैं वह सब ब्रदर्स हैं। जब निराकार परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं तो आपस में सब भाई-भाई हैं, जब प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान हैं तो भाई-बहन हैं। यह हमेशा सबको समझाते रहो। भगवान् रक्षक है, भक्तों को भक्ति का फल देने वाला है।बाप समझाते हैं सर्व का सद्गति दाता एक मैं हूँ। सर्व का शिक्षक बन श्रीमत देता हूँ और फिर सर्व का सतगुरू भी हूँ। उनको कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। वही बाप प्राचीन भारत का राजयोग सिखलाने वाला है, कृष्ण नहीं। कृष्ण को बाप नहीं कह सकते। उनको दैवीगुणधारी स्वर्ग का प्रिन्स कहा जाता है। पतित-पावन सद्गति दाता एक को कहा जाता है। अभी सब दु:खी, पाप आत्मा, भ्रष्टाचारी हैं। भारत ही सतयुग में दैवी श्रेष्ठाचारी था। फिर वह भ्रष्टाचारी आसुरी राज्य होता है। सब कहते हैं पतित-पावन आओ, आकर रामराज्य स्थापन करो। तो अब रावण राज्य है। रावण को जलाते भी हैं लेकिन रावण को कोई भी विद्वान, आचार्य, पण्डित नहीं जानते। सतयुग से त्रेता तक रामराज्य, द्वापर से कलियुग तक रावणराज्य। ब्रह्मा का दिन सो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का दिन। ब्रह्मा की रात सो बी.के. की रात। अभी रात पूरी हो दिन आना है। गाया हुआ है विनाश काले विपरीत बुद्धि। तीन सेनायें भी हैं। परमपिता को कहा जाता है बीलव्ड मोस्ट गॉड फादर, ओशन ऑफ नॉलेज। तो जरूर नॉलेज देते होंगे ना। सृष्टि का चैतन्य बीजरूप है। सुप्रीम सोल है अर्थात् ऊंच से ऊंच भगवान् है। ऐसे नहीं कि सर्वव्यापी है। सर्वव्यापी कहना यह तो बाप को डिफेम करना है। बाप कहते हैं ग्लानि करते-करते धर्म ग्लानि हो गई है, भारत कंगाल, भ्रष्टाचारी बन गया है। ऐसे समय पर ही मुझे आना पड़ता है। भारत ही मेरा बर्थप्लेस है। सोमनाथ का मन्दिर, शिव का मन्दिर भी यहाँ है। मैं अपने बर्थ प्लेस को ही स्वर्ग बनाता हूँ, फिर रावण नर्क बनाता है अर्थात् रावण की मत पर चल नर्कवासी, आसुरी सम्प्रदाय बन पड़ते हैं। फिर उन्हों को बदलकर मैं दैवी सम्प्रदाय, श्रेष्ठाचारी बनाता हूँ। यह विषय सागर है। वह है क्षीर सागर। वहाँ घी की नदियाँ बहती हैं। सतयुग-त्रेता में भारत सदा सुखी सालवेन्ट था, हीरे जवाहरों के महल थे। अभी तो भारत 100 परसेन्ट इनसालवेन्ट है। मैं ही आकर 100 परसेन्ट सालवेन्ट, श्रेष्ठाचारी बनाता हूँ। अब तो ऐसे भ्रष्टाचारी बन गये हैं जो अपने दैवी धर्म को भूल गये हैं।बाप बैठ समझाते हैं कि भक्ति मार्ग है छांछ, ज्ञान मार्ग है मक्खन। कृष्ण के मुख में मक्खन दिखलाते हैं यानि विश्व का राज्य था, लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। बाप ही आकर बेहद का वर्सा देते हैं अर्थात् विश्व का मालिक बनाते हैं। कहते हैं मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ। अगर मालिक बनूँ तो फिर माया से हार भी खानी पड़े। माया से हार तुम खाते हो। फिर जीत भी तुमको पानी है। यह 5 विकारों में फँसे हुए हैं। अभी मैं तुमको मन्दिर में रहने लायक बनाता हूँ। सतयुग बड़ा मन्दिर है, उसको शिवालय कहा जाता है, शिव का स्थापन किया हुआ। कलियुग को वेश्यालय कहा जाता है, सब विकारी हैं। अब बाप कहते हैं देह के धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। तुम बच्चों की अब बाप से प्रीत है। तुम और कोई को याद नहीं करते हो। तुम हो विनाश काले प्रीत बुद्धि। तुम जानते हो कि श्री श्री 108 परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। 108 की माला फेरते हैं। ऊपर में है शिवबाबा फिर मात-पिता ब्रह्मा-सरस्वती, फिर उनके बच्चे जो भारत को पावन बनाते हैं। रुद्राक्ष की माला गाई हुई है, उसको रूद्र यज्ञ भी कहा जाता है। कितना बड़ा राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ है। कितने वर्षों से चला आता है। जो भी अनेक धर्म आदि हैं, सब इस यज्ञ में खत्म हो जाने हैं तब यह यज्ञ पूरा होगा। यह है अविनाशी बाबा का अविनाशी यज्ञ। सब सामग्री इसमें स्वाहा हो जानी है। पूछते हैं विनाश कब होगा? अरे, जो स्थापना करते हैं, उनको ही फिर पालना करनी होती है। यह है शिवबाबा का रथ। शिवबाबा इसमें रथी है। बाकी कोई घोड़े-गाड़ी आदि नहीं हैं। वह तो भक्तिमार्ग की सामग्री बैठ बनाई है। बाबा कहते हैं मैं इस प्रकृति का आधार लेता हूँ।बाप समझाते हैं - पहले अव्यभिचारी भक्ति है फिर कलियुग अन्त में पूरी व्यभिचारी बन जाती है। फिर बाप आकर भारत को मक्खन देते हैं। तुम विश्व के मालिक बनने लिए पढ़ रहे हो। बाप आकर मक्खन खिलाते हैं। रावण राज्य में छांछ शुरू हो जाती है। ये सब समझने की बातें हैं। नये बच्चे तो इन बातों को समझ न सकें। परमपिता परमात्मा को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं इस भक्ति मार्ग से किसी को भी नहीं मिलता हूँ। मैं जब आता हूँ तब ही आकर भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ। मैं लिबरेटर बनता हूँ, दु:ख से छुड़ाकर सबको शान्तिधाम, सुखधाम ले जाता हूँ। निश्चय बुद्धि विजयन्ति, संशय बुद्धि विनशन्ति।बाप शमा है। उस पर परवाने कोई तो एकदम फिदा हो जाते हैं, कोई फेरी पहनकर चले जाते हैं। समझते कुछ नहीं हैं। फिदा होने वाले बच्चे जानते हैं बरोबर बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है। जो सिर्फ फेरी पहनकर चले जाते हैं वह तो फिर प्रजा में ही नम्बरवार आ जायेंगे। जो फिदा होते हैं वह वर्सा लेते हैं नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। पुरुषार्थ से ही प्रालब्ध मिलती है। ज्ञान का सागर एक ही बाप है। फिर ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। तुम सद्गति को पा लेते हो। सतयुग-त्रेता में कोई गुरू-गोसाई आदि नहीं होते। अभी सब उस बाप को याद करते हैं क्योंकि वह है ओशन ऑफ नॉलेज। सबकी सद्गति कर देते हैं। फिर हाहाकार बन्द हो जयजयकार हो जाती है, तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुम अब त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बने हो। तुमको रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की सारी नॉलेज मिल रही है। यह कोई दन्त कथा नहीं है। गीता है भगवान् की गाई हुई परन्तु कृष्ण का नाम डाल खण्डन कर दिया है। तुम बच्चों को अब सबका कल्याण करना है। तुम हो शिव शक्ति सेना। वन्दे मातरम् गाया हुआ है। वन्दना पवित्र की ही की जाती है। कन्या पवित्र है तो सब उनकी वन्दना करते हैं। ससुर घर गई और विकारी बनी तो सबको माथा टेकती रहती है। सारा मदार पवित्रता पर है। भारत पवित्र गृहस्थ धर्म था। अभी अपवित्र गृहस्थ धर्म है। दु:ख ही दु:ख है। सतयुग में ऐसे नहीं होता। बाप बच्चों के लिए तिरी (हथेली) पर बहिश्त ले आते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप से जीवनमुक्ति का वर्सा ले सकते हो। घर-बार छोड़ने की कोई बात नहीं। सन्यासियों का निवृत्ति मार्ग अलग है। अब बाप से प्रतिज्ञा करते हैं - बाबा, हम पवित्र बन, पवित्र दुनिया के मालिक जरूर बनेंगे। फिर धरत परिये धर्म न छोड़िये। 5 विकारों का दान दो तो माया का ग्रहण छूटे, तब 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे। सतयुग में हैं 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी...., अब श्रीमत पर चलकर फिर से ऐसा बनना है।भगवान् है ही गरीब निवाज़। साहूकार इस ज्ञान को उठा नहीं सकते क्योंकि वह तो समझते हैं हमको धन आदि बहुत है, हम तो स्वर्ग में बैठे हैं इसलिए अबलायें, अहिल्यायें ही ज्ञान लेती हैं। भारत तो गरीब है। उनमें भी जो गरीब साधारण हैं, उन्हों को ही बाप अपना बनाते हैं। उन्हों की ही तकदीर में है। सुदामा का मिसाल गाया हुआ है ना। साहूकारों को समझने की फुर्सत नहीं। राजेन्द्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) के पास बच्चियाँ जाती थी, कहती थी बेहद के बाप को जानो तो तुम हीरे तुल्य बन जायेंगे। 7 रोज़ का कोर्स करो। कहता था - हाँ, बात तो बहुत अच्छी है, रिटायर होने के बाद कोर्स उठाऊंगा। रिटायर हुआ तो बोले, बीमार हूँ। बड़े-बड़े आदमियों को फुर्सत नहीं है। पहले जब 7 रोज़ का कोर्स पूरा करे तब नारायणी नशा चढ़े। ऐसे थोड़ेही रंग चढ़ेगा। 7 रोज के बाद पता चलता है - यह लायक है वा नहीं है? लायक होगा तो फिर पढ़ने के लिए पुरुषार्थ में लग जायेगा। जब तक भट्ठी में पक्का रंग नहीं लगा है तब तक बाहर जाने से रंग ही उड़ जाता है, इसलिए पहले पक्का रंग चढ़ाना है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) शिव शक्ति बन विश्व कल्याण करना है। पवित्रता के आधार पर कौड़ी तुल्य मनुष्यों को हीरे तुल्य बनाना है। 2) श्रीमत पर विकारों का दान दे सम्पूर्ण निर्विकारी 16 कला सम्पूर्ण बनना है। शमा पर फिदा होने वाला परवाना बनना है। वरदान:- सदा अपने को सारथी और साक्षी समझ देह-भान से न्यारे रहने वाले योगयुक्त भव योगयुक्त रहने की सरल विधि है - सदा अपने को सारथी और साक्षी समझकर चलना। इस रथ को चलाने वाली हम आत्मा सारथी हैं, यह स्मृति स्वत: इस रथ अथवा देह से वा किसी भी प्रकार के देह-भान से न्यारा (साक्षी) बना देती है। देह-भान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म भी युक्तियुक्त होता है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियां अपने कन्ट्रोल में रहती हैं। वह किसी भी कर्मेन्द्रिय के वश नहीं हो सकते। स्लोगन:- विजयी आत्मा बनना है तो अटेन्शन और अभ्यास - इसे निज़ी संस्कार बना लो। मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य "सिर्फ ओम् के शब्द के उच्चारण से कोई फायदा नहीं'' ओम् रटो माना ओम् जपो, जिस समय हम ओम् शब्द कहते हैं तो ओम् कहने का मतलब यह नहीं कि ओम् शब्द का उच्चारण करना है सिर्फ ओम् कहने से कोई जीवन में फायदा नहीं। परन्तु ओम् के अर्थ स्वरूप में स्थित होना, उस ओम् के अर्थ को जानने से मनुष्य को वो शान्ति प्राप्त होती है। अब मनुष्य चाहते तो अवश्य हैं कि हमें शान्ति प्राप्त होवे। उस शान्ति स्थापन के लिये बहुत सम्मेलन करते हैं परन्तु रिजल्ट ऐसे ही दिखाई दे रही है जो और अशान्ति दु:ख का कारण बनता रहता है क्योंकि मुख्य कारण है कि मनुष्यात्मा ने जब तक 5 विकारों को नष्ट नहीं किया है तब तक दुनिया पर शान्ति कदाचित हो नहीं सकती। तो पहले हरेक मनुष्य को अपने 5 विकारों को वश करना है और अपनी आत्मा की डोर परमात्मा के साथ जोड़नी है तब ही शान्ति स्थापन होगी। तो मनुष्य अपने आपसे पूछें मैंने अपने 5 विकारों को नष्ट किया है? उन्हों को जीतने का प्रयत्न किया है? अगर कोई पूछे तो हम अपने 5 विकारों को वश कैसे करें, तो उन्हों को यह तरीका बताया जाता है कि पहले उन्हों को ज्ञान और योग का वास धूप लगाओ और साथ में परमपिता परमात्मा के महावाक्य हैं - मेरे साथ बुद्धियोग लगाए मेरे बल को लेकर मुझ सर्वशक्तिवान प्रभु को याद करने से विकार हटते रहेंगे। अब इतनी चाहिए साधना, जो खुद परमात्मा आकर हमें सिखाता है। अच्छा - ओम् शान्ति। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 25 Oct 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English 25/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, this study is very inexpensive and easy. The basis of your status is not whether you are rich or poor, but how you study. Therefore, pay full attention to studying. Question: What is the first qualification of knowledgeable souls? Answer: Their interaction with everyone is extremely sweet. To have friendship with some and enmity with others is not the qualification of knowledgeable souls. The Father's shrimat is: Children, become extremely sweet. Practise: I, the soul, am making this body function. I now have to return home. Song: You are the Ocean of Love. We thirst for one drop. Om Shanti . Whose praise did the children hear? That of the Incorporeal, the unlimited Father. He is the Ocean of Knowledge, the Highest on High. He alone is called the highest-on-high Father. He is also called the Supreme Teacher, that is, the Ocean of Knowledge. You now understand that this is the praise of our Father. Through Him the stage of us children also has to become like His. He is the greatest of all fathers. He is not a sage or holy man. That One is the unlimited Father, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. It is in the intellects of you children that that One is our unlimited Mother, Father, Husband etc. He is everything for us but, nonetheless, that intoxication doesn't stay all the time; children repeatedly forget this. That One is the highest Father of all and the sweetest Father of all whom everyone has been remembering for half the cycle. They do not remember Lakshmi and Narayan as much. The God of the devotees is only the one incorporeal One. Everyone remembers that One alone. Although some believe in Lakshmi and Narayan or Ganesh etc., they would still say the words "O God!" The words "O Supreme Soul" definitely emerge from everyone's lips. Souls remember Him. Physical devotees remember physical things. In spite of that, souls are so faithful to their Father that they definitely remember Him. In their sorrow, the sound quickly emerges: Oh Supreme Soul! They definitely understand that God is incorporeal, but they don't know the importance of that. Now that He has come personally in front of you, you have come to know the importance. He is the Creator of heaven. He is teaching us personally. This is the only study. There are many different types of study of physical things. If someone's mind is not set on studying, he would leave that study. There is no question of money etc. in this study. That Government also gives free education to the poor. Here, this study is free anyway; there are no fees etc. The Father is called the Lord of the Poor. Only the poor study here. This is a very easy and inexpensive study. Human beings insure themselves. Here, you also insure everything. You say: Baba, You Yourself give us the return for 21 births in heaven. On the path of devotion, they don't say: O Supreme Father, Supreme Soul, give us an inheritance for 21 births. You now know that you are insuring yourselves directly. This one always says that it is God who gives the fruit. God gives to everyone. Whether it is to a sage or holy man or to someone with occult powers, it is God who gives to everyone. The soul says: It is God who gives to everyone. When someone donates or performs charity, it is still God who gives the fruit of that. There is no expense in this study. Baba has explained that the poor also insure just as much. A wealthy person might have insurance for one hundred thousand and he would receive the return of one hundred thousand. When a poor person insures one rupee, and a wealthy person insures 5000, the return of both is equal. It is very easy for the poor; there are no fees etc. Poor and wealthy - both have a right to receive the inheritance from the Father. Everything depends on how you study. When the poor study well, their status becomes even higher than that of the wealthy. This study is an income. It is very inexpensive and very easy. You simply have to know the beginning, the middle and the end of the human world tree. No human being knows it. No one can be trikaldarshi. Everyone says that God is infinite. They believe that the Supreme Soul is the Seed of the human world tree. This is an inverted tree. Nevertheless, they say that they don't know it accurately. It would only be the Father who is knowledge-full who tells you about it accurately. Everything depends on how you children study. You now know this, numberwise, according to the effort you make. You are master oceans of knowledge. Not everyone can be the same. Some are big rivers and others are small rivers. You all study according to your own efforts. You children know that that is our unlimited Father. You have to belong to Him and follow His shrimat. For some, it is said: That poor person is under the influence of someone else. They are influenced by Maya and follow wrong dictates. Shrimat are the versions of God through which you become the most elevated of all deities. When you first have faith, you can then meet Shiv Baba. Baba can understand when someone doesn’t have accurate faith. They understand that the Father of souls is the One, but it is very difficult for them to have the faith that He has entered this one and is giving us the inheritance. When this sits in their intellects and they put it in writing, you can then bring that writing to Baba. They would understand that this is right and that what they previously understood for so long was wrong. God is not omnipresent. He is the unlimited Father. Bharat truly receives the inheritance every cycle at the confluence age from the unlimited Father. It received it at the confluence age at this same time and it is once again receiving it now. They should be made to write this: Truly, the Father only comes at the confluence age. He comes and creates heaven through the BKs. When they put this in writing, you will be able to explain whom they have come to and what they have come to take. God's form is incorporeal. Because of not knowing the form of God, they say that He is the brahm element. It has been explained to you children that He is a point. It would not sit in the intellect of anyone else that God is a point. They say of a soul that a star shines in the centre of the forehead. That is a tiny thing. So you have to think about who the actor is. Such a tiny soul has such a big, imperishable part recorded within Him. When someone goes deep into these things, you have to explain to him. You, the soul, say: I have taken 84 births. The whole of that part is merged in the tiny soul, the point, and it continues to emerge. People will be amazed by these things. No one can understand these things. Our 84 births are repeating. This drama is predestined. People become amazed when they hear how a part is fixed in each soul. Truly, I, the soul, say: I, the soul, shed one body and take another. This part of mine is fixed and it repeats according to the drama. Those who have weak intellects can’t imbibe these things. You have to remember this: I take 84 births and play my part; I adopt a body. When you continue to remember these things, it would be said that you are fully trikaldarshi and that you are also making effort to make others trikaldarshi. You children need courage to be able to explain this. You have to become sticks for the blind and awaken everyone from their sleep. Awaken, o brides, awaken! The new world is now being established. The old world is to be destroyed. Have you not heard the names of Trimurti Brahma, Vishnu and Shankar? Establishment takes place through Brahma. All of these are Brahma Kumars and Kumaris. Brahma does not do this alone. Together with Prajapita, there are definitely also the Brahma Kumars and Kumaris. This one's Father who teaches him would also surely be here. This one (Brahma) cannot be called the Ocean of Knowledge. They show Brahma with scriptures in his hands. However, it is the Supreme Father, the Supreme Soul, who enters him and tells you the essence of all the Vedas and scriptures through him. Brahma doesn't tell you the essence of all the scriptures. Where would he learn that from? There definitely has to be his Father and Guru. Prajapita is definitely a human being and he has to exist here. He is the one who creates people. He cannot be called the Creator, the Ocean of Knowledge or knowledge -full. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. He comes and teaches you through Prajapita Brahma. This is called the urn of knowledge. Everything depends on your dharna. Whether you insure yourselves or not is up to you. Baba insures everything very well. He is the Insurance Magnate on the path of devotion as well as on the path of knowledge. All souls remember the Father on the path of devotion and say: Baba, come and liberate us from sorrow. The Father gives you the inheritance. He either sends you to the land of peace or the land of happiness. Those who are to receive the inheritance of peace will claim that same inheritance of peace every cycle. You are now making effort to claim your inheritance of happiness. For that, you have to study and also teach others. Just as the Father is the sweetest of all, in the same way, His creation is also the sweetest of all. Heaven is so sweet! Everyone speaks of heaven. When someone dies, they say that he has gone to heaven. So, he was definitely in hell and has now gone to heaven. Even though that soul doesn’t go there, they still say it. You should write that he definitely was in hell. This is hell, so why do they still try to invoke that soul here and feed him the things of here? They invoke the departed spirits. To invite a soul is to invite a departed spirit. You then invite the Father of all the departed spirits. The Father of all souls sits here and teaches you. You are such an incognito army, the Shiv Shaktis. Shiva is incorporeal. You Shaktis are His children. Power is received by the soul. People show their physical power whereas you show your spiritual power. Yours is the power of yoga. When you souls have yoga, you become pure. The soul develops strength. Out of all of you, Mama’s sword of knowledge was the sharpest. This is not a question of a physical sword. A soul understands when he has very good power to blow the conch shell of knowledge. “I can blow the conch shell.” Some say: I am unable to blow the conch shell. The Father says: I have deep love for those who blow the conch shell of knowledge. You would give My introduction with knowledge, would you not? “Remember the unlimited Father.” This too is giving knowledge, is it not? In remembering the Father, you don’t have to say anything in words. Internally, you have to understand that the Father is giving you knowledge. The Father says: You have to return home. Remember Me and your sins will be absolved. God speaks: Manmanabhav! So, He would definitely be incorporeal. How could a corporeal one say: Remember me? Only the Incorporeal says: O souls, remember Me. I am your Father. Remember Me, and your final thoughts will lead you to your destination. Krishna cannot say this because he is a human being. You souls say through your bodies: O embodied soul, remember your Father. The Father also says to souls: Manmanabhav! You souls have to come to Me. You have to become soul conscious. Practise very well: I, the soul, am the one who is making this body function. I now have to return home to the Father. The Father says: While walking and moving around, whether sitting or standing, remember Me. Those who spread peacelessness are destroying their own status. You have to become very sweet. There is also the song: How sweet and lovely Shiva, the Innocent Lord, is! You, His children, are also innocent. You show the first-class path: Remember the Father and you will become the masters of heaven. No one else can make such a deal with you. So, you should remember the Father a great deal. They remember the One from whom they receive so much happiness and they say: O Purifier, come! Souls have become impure and, together with that, their bodies too have become impure. Both souls and bodies have become impure. Those people say that souls are immune to the effect of action and cannot become impure, but that is not so. Only the one Supreme Father, the Supreme Soul, never has alloy mixed in Him. All the rest definitely have to have alloy mixed in them. Each one of you has to go through the stages of sato, rajo and tamo. You should imbibe all of these points and become very sweet. It shouldn’t be that you have enmity with some and friendship with others. To be body conscious and take personal service from someone while you just sit there is totally wrong. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Churn knowledge, become trikaldarshi and make others trikaldarshi. Become a stick for the blind and awaken everyone from the sleep of ignorance. 2. Insure everything of yours for 21 births. Together with that, also blow the conch shell of knowledge. Blessing: May you happily settle your karmic accounts as a carefree soul instead of becoming upset. When someone says something, do not instantly get upset. First of all, have it clarified or verified as to what intention it was said with. If it was not your fault, then become carefree. Let it be in your awareness that everything with Brahmin souls has to be settled here. In order to be saved from the land of Dharamraj, Brahmins become instruments somewhere or other. Therefore, do not be afraid, but happily settle everything. There is only going to be progress through this. Slogan: Constantly to maintain the awareness “The Father is my world” is to have easy yoga. #english #Murli #bkmurlitoday #brahmakumari

  • आज की मुरली 16 Nov 2018 BK murli in Hindi

    Brahma Kumaris murli today Hindi Aaj ki Gyan Murli madhuban 16-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - तुम्हें रूहानी पण्डा बन यात्रा करनी और करानी है, याद ही तुम्हारी यात्रा है, याद करते रहो तो खुशी का पारा चढ़े'' प्रश्नः- निराकारी दुनिया में जाते ही कौन-से संस्कार समाप्त हो जाते और कौन से संस्कार रह जाते हैं? उत्तर:- वहाँ नॉलेज के संस्कार समाप्त हो जाते, प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं। जिन संस्कारों के आधार पर तुम बच्चे सतयुग में प्रालब्ध भोगते हो, वहाँ फिर पढ़ाई का वा पुरुषार्थ का संस्कार नहीं रहता है। प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म हो जाता है। गीत:- रात के राही थक मत जाना....... ओम् शान्ति।यहाँ सम्मुख शिव भगवानुवाच है। गीता में दिखाते हैं - श्रीकृष्ण भगवानुवाच परन्तु कृष्ण तो उस नाम-रूप से सम्मुख हो न सके। यह तो सम्मुख कहते हैं, निराकार भगवानुवाच। कृष्णवाच कहें तो वह साकार हो जाता है। जो भी वेद-शास्त्र आदि सुनाते हैं, वह ऐसे नहीं कहेंगे कि भगवानुवाच क्योंकि वह साधू, सन्त, महात्मा आदि सब साकार में बैठे हैं। और फिर बाप कहते हैं - हे रूहानी राही। रूहानी बाप जरूर रूहों को ही कहेंगे कि बच्चे, थक मत जाना। यात्रा पर कई थक जाते हैं तो फिर वापस आ जाते हैं। वह है जिस्मानी यात्रा। भिन्न-भिन्न मन्दिरों में जिस्मानी तीर्थ यात्रा करने जाते हैं। कोई शिव के मन्दिर में जाते हैं, वहाँ सब जिस्मानी चित्र रखे हैं भक्ति मार्ग के। यह तो सुप्रीम रूह परमपिता परमात्मा आत्माओं को कहते हैं कि हे बच्चे, अब मुझ एक के साथ बुद्धि का योग लगाओ और ज्ञान भी देते हैं। तीर्थों पर जाते हैं तो वहाँ भी ब्राह्मण लोग बैठे हैं, कथा-कीर्तन करते हैं। तुम्हारी तो एक ही सत्य नारायण की कथा है, नर से नारायण बनने की। तुम जानते हो पहले स्वीट होम में जायेंगे फिर विष्णुपुरी में आयेंगे। इस समय तुम हो ब्रह्मापुरी में, इसको पियरघर कहा जाता है। तुमको जेवर आदि कुछ नहीं हैं क्योंकि तुम पियरघर में हो। तुम जानते हो ससुरघर में हमको अपार सुख मिलने हैं। यहाँ कलियुगी ससुरघर में तो अपार दु:ख हैं। तुमको तो जाना है उस पार सुखधाम में। यहाँ से ट्रांसफर होना है। बाप सभी को नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं। दिखाते हैं ना कृष्ण का बाप उनको टोकरी में बिठाकर उस पार ले गया तो यह बेहद का बाप तुम बच्चों को उस पार ससुरघर ले जाते हैं। पहले अपने निराकारी घर में ले जायेंगे फिर ससुरघर भेज देंगे। तो वहाँ यह सब पियरघर, ससुरघर की बातें भूल जायेंगी। वह है निराकारी पियरघर, वहाँ यह नॉलेज भूल जाती है, नॉलेज के संस्कार निकल जाते हैं, बाकी प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं। फिर तुम बच्चों को प्रालब्ध ही ध्यान में रहती है। प्रालब्ध अनुसार जाकर सुख के जन्म लेंगे। सुखधाम जाना है। प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म। तुम जानते हो प्रालब्ध में हमारी फिर वही एक्ट चलेगी। तुम्हारे संस्कार ही प्रालब्ध के हो जायेंगे। अभी हैं पुरुषार्थ के संस्कार। ऐसे नहीं कि पुरुषार्थ और प्रालब्ध दोनों संस्कार वहाँ रहेंगे। नहीं, वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता। तो यह तुम्हारी रूहानी यात्रा है, तुम्हारा चीफ पण्डा है बाप। यूं तो तुम भी रूहानी पण्डे बन जाते हो, सबको साथ में ले जाते हो। वह हैं जिस्मानी पण्डे, तुम हो रूहानी पण्डे। वह लोग अमरनाथ पर बड़े धूमधाम से जाते हैं, झुण्ड के झुण्ड ख़ास अमरनाथ पर बहुत धूमधाम से जाते हैं। बाबा ने देखा है कितने साधू-सन्त बाजे गाजे ले जाते हैं। साथ में डॉक्टर आदि भी ले जाते हैं क्योंकि ठण्डी का समय होता है। कई बीमार पड़ जाते हैं। तुम्हारी यात्रा तो बहुत सहज है। बाप कहते हैं याद में रहना ही तुम्हारी यात्रा है। याद मुख्य है। बच्चे याद करते रहें तो खुशी का पारा चढ़ा रहे। साथ में औरों को भी यात्रा पर ले जाना है। यह यात्रा एक ही बार होती है। वह जिस्मानी यात्रायें तो भक्ति मार्ग से शुरू होती हैं। वह भी कोई शुरूआत में नहीं होती। ऐसे नहीं कि फट से मन्दिर, चित्र आदि बन जाते हैं। वह तो आहिस्ते-आहिस्ते बाद में बनते जाते हैं। पहले-पहले शिव का मन्दिर बनेगा। वह भी पहले घर में सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं तो फिर कहाँ जाने की दरकार नहीं रहती। यह मन्दिर आदि बाद में बनते हैं, समय लगता है। आहिस्ते-आहिस्ते नये शास्त्र, नये चित्र, नये मन्दिर आदि बनते रहते। टाइम लगता है क्योंकि पढ़ने वाले भी चाहिए ना। मठ आदि जब वृद्धि को पायेंगे, फिर विचार होगा शास्त्र बनायें। तो इतने तीर्थस्थान बनें, मन्दिर बनें, चित्र बनें, टाइम लगता है ना। भल कहा जाता है कि भक्ति मार्ग द्वापर से शुरू होता है परन्तु टाइम तो लगता है ना। फिर कलायें कमती होती जायेंगी। पहले अव्यभिचारी भक्ति, फिर व्यभिचारी भक्ति हो जाती है। यह सब बातें अच्छी रीति चित्रों पर सिद्ध कर बताई जाती हैं। समझाने वालों की बुद्धि में यही चलता रहेगा कि ऐसे-ऐसे चित्र बनायें, यह समझायें। सबकी बुद्धि में नहीं चलेगा। नम्बरवार है ना। कोई की बुद्धि बिल्कुल चलती नहीं, वह फिर पद भी ऐसे पायेंगे। मालूम पड़ जाता है - यह क्या बनेंगे? जितना आगे चलेंगे - तुम समझते जायेंगे। जब लड़ाई आदि लगेगी फिर प्रैक्टिकल देख लेंगे। फिर बहुत पछतायेंगे। उस समय पढ़ाई तो हो न सके। लड़ाई के समय त्राहि-त्राहि होती रहेगी, सुन नहीं सकेंगे। पता नहीं क्या हो जायेगा। पार्टीशन हुआ तो क्या हो गया, देखा ना। यह विनाश का समय बहुत कड़ा है। हाँ, बाकी साक्षात्कार आदि बहुत होंगे, जिससे जान जायेंगे कि यह कितना पढ़ा है। बहुत पछतायेंगे भी और साक्षात्कार होंगे - देखो तुमने पढ़ाई छोड़ दी तब यह हाल हुआ है। धर्मराज साक्षात्कार कराने सिवाए सजायें कैसे देंगे? सब साक्षात्कार करायेंगे। फिर उस समय कर कुछ नहीं सकेंगे। कहेंगे हाय तकदीर। तदबीर का समय तो गया। तो बाप कहते हैं क्यों नहीं अभी पुरुषार्थ करते हो। सर्विस से ही दिल पर चढ़ेंगे। बाप कहेंगे यह बच्चे अच्छी सर्विस करते हैं। मिलेट्री का कोई मरता है तो उनके मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी इनाम देते हैं। यहाँ तुमको इनाम देने वाला है बेहद का बाप। बाप से भविष्य 21 जन्मों के लिए इनाम मिलता है। यह तो हरेक को अपनी दिल पर हाथ रख पूछना है कि मैं कितना पढ़ता हूँ। धारणा नहीं होती तो गोया तकदीर में नहीं है। कहेंगे कर्म ही ऐसे फूटे हुए हैं। बहुत खराब कर्म करने वाले कुछ उठा नहीं सकते हैं।बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, तुम्हें इस रूहानी यात्रा पर अपने साथियों को भी ले जाना है। फ़र्ज है हरेक को यह यात्रा की बात बताना। बोलो, हमारी यह रूहानी यात्रा है। वह है जिस्मानी। दिखाते हैं रंगून की तरफ एक छम-छम तलाव है, जहाँ स्नान करने से परी बन जाते हैं। लेकिन वह परी आदि तो बनते नहीं। यह है ज्ञान स्नान करने की बात, जिससे फिर तुम बहिश्त की बीबी बन जाते हो और ज्ञान-योगबल से वैकुण्ठ में आना-जाना तो तुम्हारे लिए कॉमन बात है। और ही तुमको रोका जाता है, घड़ी-घड़ी ध्यान में नहीं जाओ, आदत पड़ जायेगी। तो यह ज्ञान मान-सरोवर है, परमपिता परमात्मा आकर इस मनुष्य तन द्वारा ज्ञान सुनाते हैं, इसलिए इनको मान-सरोवर कहा जाता है। मान-सरोवर अक्षर सागर से निकला है। ज्ञान सागर में ज्ञान स्नान करना तो बहुत अच्छा है। बहिश्त की बीबी को महारानी कहा जाता है। बाप कहेंगे तुम भी बहिश्त के मालिक बनो। बच्चों पर लव रहता है। हरेक पर रहम पड़ता है, साधुओं पर भी रहम आता है। यह तो गीता में लिखा हुआ है कि साधुओं का भी उद्धार करते हैं। उद्धार होता है - ज्ञान योग से। तुम बच्चों में समझाने की बड़ी फुर्ती चाहिए। बोलो - तुम और तो सब जानते हो लेकिन छांछ जानते हो, बाकी मक्खन खिलाने वाले को तुम जानते ही नहीं हो। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु किसकी बुद्धि में भी बैठे ना। बाप को जानने से मनुष्य हीरे जैसा बनते हैं, न जानने से मनुष्य कौड़ी मिसल, बिल्कुल पतित हैं। बाप को जानने से ही पावन बनते हैं। पतित दुनिया में कोई पावन हो न सके। तो जो महारथी बच्चे हैं, वह अच्छी रीति समझा सकेंगे। कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा नाम भी मशहूर है। प्रजापिता ब्रह्मा के यह हैं मुख वंशावली। ब्रह्मा को ही 100 भुजा, 1000 भुजा दिखाते हैं। यह भी समझाया जाता है इतनी भुजायें तो हो नहीं सकती। बाकी ब्रहमा तो बहुत बचड़े वाला है। ब्रह्मा फिर किसका बच्चा? इनका तो बाप है ना। ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा। इनका और कौन बाप हो सकता? मनुष्य तो कोई हो नहीं सकता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर गाये जाते हैं सूक्ष्मवतन के। वह तो यहाँ आ न सकें। प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ होगा ना। सूक्ष्मवतन में तो प्रजा नहीं रचेंगे। तो परमपिता परमात्मा आकर इस ब्रह्मा मुख द्वारा शक्ति सेना रचते हैं। पहले-पहले परिचय देना है हम ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तुम भी ब्रह्मा के बच्चे हो ना। प्रजापिता ब्रह्मा है सबका बाप। फिर उनसे और बिरादरियाँ निकलती हैं, नाम बदलते जाते हैं। अब तुम ब्राह्मण हो। प्रैक्टिकल में देखो प्रजापिता ब्रह्मा की कितनी औलाद हैं। जरूर औलाद को वर्सा मिलता होगा। ब्रह्मा के पास तो कोई प्रापर्टी है नहीं, प्रापर्टी है शिवबाबा के पास। ब्रह्मा वल्द शिव। बेहद के बाप से ही वर्सा मिलता है। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा बैठ पढ़ाते हैं। हमको दादे का वर्सा मिलता है। बाबा समझाते तो बहुत हैं, परन्तु योग नहीं। कायदे पर नहीं चलते तो बाप भी क्या करे। बाप कहते हैं इनकी तकदीर। अगर बाबा से पूछें तो बाबा बता सकते हैं - इस हालत में तुम्हारा क्या पद होगा? दिल भी गवाही देता है, मैं कितनी सर्विस करता हूँ? श्रीमत पर कहाँ तक चलता हूँ? श्रीमत कहती है मनमनाभव। सबको बाप और वर्से का परिचय देते रहते हैं, ढिंढोरा भी पीटते रहते हैं। बाबा ईशारा देते रहते हैं, तुम्हें गवर्मेन्ट को भी समझाना है। जो वह भी समझें बरोबर भारत की ताकत ही चली गई है। परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान से योग ही नहीं है। इनसे तुम योग लगाते हो तो एकदम विश्व के मालिक बनते हो, माया पर भी तुम जीत पहनते हो। गृहस्थ व्यवहार में रहते माया पर जीत पानी है। हमारा मददगार बाप है। कितना समझाया जाता है, धारणा करनी चाहिए। बाबा ने समझाया है धन दिये धन ना खुटे। सर्विस करेंगे तब बाबा की दिल पर चढ़ सकेंगे। नहीं तो इम्पासिबुल है। इसका मतलब यह नहीं कि बाबा प्यार नहीं करते। बाबा प्यार सर्विसएबुल को करेंगे। मेहनत करनी चाहिए। सबको यात्रा लायक बनाते हैं। मनमनाभव। यह है रूहानी यात्रा, मुझे याद करो तो तुम मेरे पास पहुँच जायेंगे। शिव पुरी में आकर फिर विष्णुपुरी में चले जायेंगे। यह बातें सिर्फ तुम बच्चे जानते हो। कोई और मनमनाभव का अर्थ समझते नहीं, पढ़ते तो बहुत हैं। बाप महामंत्र देते हैं, मुझे याद करो तो तुम विकर्माजीत बन जायेंगे। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) ज्ञान स्नान करना है। प्यार से सर्विस कर बाप के दिलतख्त पर बैठना है। पुरुषार्थ के समय में अलबेला नहीं बनना है। 2) बाप की पलकों पर बैठ कलियुगी दु:खधाम से सुखधाम चलना है इसलिए अपना सब कुछ ट्रांसफर कर देना है। वरदान:- स्नेह के सागर में समाकर मेरे पन की मैल को समाप्त करने वाले पवित्र आत्मा भव जो सदा स्नेह के सागर में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण वे सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दुनिया की स्मृति नहीं, मेरा-मेरा सब खत्म। अनेक मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता और आत्मा पवित्र बन जाती है। स्लोगन:- बुद्धि में ज्ञान रत्नों को ग्रहण करना और कराना ही होलीहंस बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

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