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- I want to Marry - Our Response for all Kumaris (part 2)
Received this letter via email by a Kumari: 'I want to marry, is this ok as I have taken Gyan also?' - The full letter and our guidance. Part 2 of 2. Original second Email we received: आपका कहना भी सही है लेकिन मेरी मन, बुद्धि में यही संकल्प आ रहे है कि ये जन्म भी इसीलिए मिला है कि ज्ञान में रह कर गृहस्थी में रहकर और आत्माओं (इंसानों) को सुख दूं उन्हें भी ज्ञान में लाऊं। जाने कितनी आत्माएं (इंसान) बहुत अशांत और भटकी हुई है। मुझे खुद पर विश्वास है कि शादी करके मै अब भटकने वाली नहीं हूं। जिस लड़के से मै शादी करना चाहती हूं वो बहुत अच्छी प्रवृति का है। पर असल ज्ञान नहीं है उसमे, और मै ये ज्ञान उसे उसके साथ रहकर अनुभव करवा सकती हूं जिसे उसकी जरूरत है। बस आप मुझे ये बताइए कि कैसे मेरी उससे शादी हो कैसे अपने किरदार को मै निर्विघ्न निभा सकू। अच्छा नमस्ते। Our Response (and Guidance) आपका पत्र मिला। अब ध्यान से समझो। गृहस्थ में रहकर ज्ञान लेना है - इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं, की शादी करनी है। लेकिन अर्थ है - की लौकिक परिवार में रहते यह ज्ञान लेना है। है अगर ज्ञान में आने से पहले अगर किसीने विवाह (शादी) की हुई है, तो बात और है। बाप कभी दलदल में गिरने को नहीं कहेंगे। दूसरी बात - कोई का वर्त्तमान देख उसका भविष्य भी ऐसा ही रहेगा - यह नहीं है '' अगर व्यक्ति अच्छी प्रवृति का है, तो यह उसका वर्त्तमान का एक संस्कार है। हो सकता है भविष्य में संस्कार बदल जाये। परिवर्तन संसार का नियम है। सबसे जरुरी बात आत्मा को ज्ञान देने लिए उससे शादी करने की जरुरत है ? अगर ऐसा है, तो हम रोज शिव बाबा का सन्देश बहुतो को देते है - तो हमे क्या सभी से शादी करनी पड़ेगी ! हास्य की बात है ना। .. ज्ञान क्या कहता है? क्या स्मृति मिली है ?? जवाब: हम सभी आत्माए है - हम परमात्मा की संतान है - भाई भाई है। .. अथवा भाई और बेहेन है। .. अब आप ज्ञान में हो, प्रकाश में हो.. क्या अपने भाई शादी करनी है ? आप एक दिव्य आत्मा हो.. हम आपके लिखे पात्र से कह सकते है की आपमें सोचने की शक्ति है। तो समज भी अब आ गयी होंगी।।। वैसे तो शार्ट में यही कहेंगे - की रोज मुरली सुनो।।मुरली ही हमारा भोजन है.. रोज अच्छा भोजन करोगे, तो आत्मा की तबियत ठीक रहेगी, और माया से बचे रहोगे।।। और कोई प्रश्न मैं में आये, तो लिखो।। Read PART 1: https://www.brahma-kumaris.com/single-post/I-want-to-Marry-for-kumaris-part-1 .
- 7 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumari murli today in Hindi Aaj ki Murli BapDada Madhuban 07-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 22-01-84 मधुबन नामीग्रामी सेवाधारी बनने की विधिआज बापदादा अपने एक टिक जगते हुए दीपकों की दीपमाला को देख रहे हैं। कैसे हर एक जगा हुआ दीपक अचल निर्विघ्न, अपनी ज्योति से विश्व को रोशनी दे रहे हैं। यह दीपकों की रोशनी आत्मा को जगाने की रोशनी है। विश्व की सर्व आत्माओं के आगे जो अज्ञान का आवरण है, उसको मिटाने के लिए कैसे जागकर और जगा रहे हैं, अंधकार के कारण अनेक प्रकार की ठोकरें खाने वाले आप जगे हुए दीपकों की तरफ बड़े प्यार से रोशनी की इच्छा से, आवश्यकता से, आप दीपकों की तरफ देख रहे हैं। ऐसे अंधकार में भटकने वाली आत्माओं को ज्ञान की रोशनी दो, जो घर-घर में दीपक जग जायें। (बत्ती चली गई) अभी भी देखो अंधकार अच्छा लगा? रोशनी प्रिय लगती है ना। तो ऐसे बाप से कनेक्शन जुड़ाओ। कनेक्शन जोड़ने का ज्ञान दो।सभी डबल विदेशी रिफ्रेश हो अर्थात् शक्तिशाली बन, लाइट हाउस, माइट हाउस बन नॉलेजफुल बन पावरफुल बन, सक्सेसफुल बन करके सेवास्थानों पर जा रहे हो फिर से आने के लिए। जाना अर्थात् सफलता स्वरूप का पार्ट बजाकर एक से अनेक हो करके आना। जाते हो अन्य अपने परिवार की आत्माओं को बाप के घर में ले आने के लिए। जैसे हद की लड़ाई करने वाले योद्धे बाहुबल, साइन्स बल वाले योद्धे सर्व शस्त्रों से सजकर युद्ध के मैदान पर जाते हैं, विजय का मैडल लेने के लिए। ऐसे आप सभी रूहानी योद्धे सेवा के मैदान पर जा रहे हो विजय का झण्डा लहराने के लिए। जितना-जितना विजयी बनते हो उतना बाप द्वारा स्नेह, सहयोग, समीपता, सम्पूर्णता के विजयी मैडल्स प्राप्त करते हो। तो यह चेक करो कि अब तक कितने मैडल्स मिले हैं? जो विशेषताऍ हैं वा टाइटल्स देते हैं वह कितने मैडल्स धारण किये हैं। विशेष टाइटल्स की लिस्ट निकाली है ना, वह लिस्ट सामने रखकर स्वयं को देखना कि यह सब मैडल्स हमें प्राप्त हैं? अभी तो यह बहुत थोड़े निकाले हैं। कम से कम 108 तो होने चाहिए। और अपने इतने मैडल्स को देख नशे में रहो। कितने मैडल्स से सजे हुए हो। जाना अर्थात् विशेषता का कार्य कर सदा नये ते नये मैडल्स लेते जाना। जैसा कार्य वैसा मैडल मिलता है। तो इस वर्ष हर एक सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों को यह लक्ष्य रखना है कि कोई न कोई ऐसा नवीनता का विशेष कार्य करें जो अब तक ड्रामा में छिपा हुआ, नूँधा हुआ है। उस कार्य को प्रत्यक्ष करें। जैसे लौकिक कार्य में कोई विशेषता का कार्य करते हैं तो नामीग्रामी बन जाते हैं। चारों ओर विशेषता के साथ विशेष आत्मा का नाम हो जाता है। ऐसे हरेक समझे कि मुझे विशेष कार्य करना है। विजय का मैडल लेना है। ब्राह्मण परिवार के बीच विशेष सेवाधारियों की लिस्ट में नामीग्रामी बनना है। रूहानी नशे में रहना है। नाम के नशे में नहीं। रूहानी सेवा के नशे में निमित्त और निर्माण के सर्टीफिकेट सहित नामीग्रामी होना है।आज डबल विदेशी ग्रुप का विजयी बन विजय स्थल पर जाने का बधाई समारोह है। कोई भी विजय स्थल पर जाते हैं तो बड़ी धूमधाम से खुशी के बाजे गाजे से विजय का तिलक लगाकर बधाई मनाई जाती है। विदाई नहीं, बधाई क्योंकि बापदादा और परिवार जानते हैं कि ऐसे सेवाधारियों की विजय निश्चित है इसलिए बधाई का समारोह मनाते हैं। विजय हुई पड़ी है ना। सिर्फ निमित्त बन रिपीट करना है क्योंकि करने से निमित्त बन करेंगे और पायेंगे! जो निमित्त कर्म है और निश्चित प्रत्यक्ष फल है! इस निश्चय के उमंग-उत्साह से जा रहे हो औरों को अधिकारी बनाकर ले आने के लिए। अधिकार का अखुट खजाना महादानी बन दान पुण्य करने के लिए जा रहे हो। अब देखेंगे पाण्डव आगे जाते हैं वा शक्तियाँ आगे जाती हैं। विशेष नया कार्य कौन करते हैं, उसका मैडल मिलेगा। चाहे कोई ऐसी विशेष सेवा के निमित्त आत्माओं को निकालो। चाहे सेवा के स्थान और वृद्धि को प्राप्त कराओ। चाहे चारों ओर नाम फैलने का कोई विशेष कार्य करके दिखाओ। चाहे ऐसा बड़ा ग्रुप तैयार कर बापदादा के सामने लाओ। किसी भी प्रकार की विशेष सेवा करने वाले को विजय का मैडल मिलेगा। ऐसे विशेष कार्य करने वाले को सब सहयोग भी मिल जाता है। स्वयं ही कोई टिकेट भी आफर कर लेंगे। शुरू-शुरू में जब आप सभी सेवा पर निकले थे तो सेवा कर फर्स्टक्लास में सफर करते थे। और अभी टिकेट भी लेते और सेकण्ड थर्ड में आते। ऐसी कोई कम्पनी की सेवा करो, सब हो जायेगा। सेवाधारी को साधन भी मिल जाता है। समझा! सभी सन्तुष्ट होकर विजयी बनकर जा रहे हैं ना। किसी भी प्रकार की कमजोरी अपने साथ तो नहीं ले जा रहे हो। कमजोरियों को स्वाहा कर शक्तिशाली आत्मायें बनकर जा रहे हो ना! कोई कमज़ोरी रह तो नहीं गई! अगर कुछ रह गया हो जो स्पेशल समय लेकर समाप्ति करके जाना। अच्छा!ऐसे सदा अचल, जगे हुए दीपक सदा ज्ञान रोशनी द्वारा अंधकार को मिटाने वाले, हर समय सेवा की विशेषता में विशेष पार्ट बजाने वाले, बाप द्वारा सर्व प्राप्त हुए मैडल्स को धारण करने वाले, सदा विजय निश्चित के निश्चय में रहने वाले, ऐसे अविनाशी विजय के तिलकधारी, सदा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न, सन्तुष्ट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!जगदीश भाई से - बापदादा के साकार पालना के पले हुए रत्नों की वैल्यु होती है। जैसे लौकिक रीति में भी पेड़ (वृक्ष) में पके हुए फल कितने शोभनिक होते हैं। ऐसे आप अनुभवी आत्माओं को सभी कितना प्यार से देखते हैं। पहले मिलन में ही वरदान पा लिया ना। पालना अर्थात् वृद्धि ही वरदानों से हुई ना इसलिए सदा पालना के अनुभव से अनेक आत्माओं की पालना करते उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सागर के भिन्न-भिन्न सम्बन्ध की लहरों में, अनुभवों की लहरों में लहराते रहेंगे। सेवा के आदि में एकॉनामी के समय निमित्त बने। एकॉनामी के समय निमित्त बनने के कारण सेवा का फल सदा श्रेष्ठ है। समय प्रमाण सहयोगी बने इसलिए वरदान मिला। अच्छा -कानफ्रेन्स के प्रति - सभी मिलकर जब कोई एक उमंग-उत्साह से कार्य करते हैं तो उसमें सफलता सहज होती है। सभी के उमंग से कार्य हो रहा है ना तो सफलता अवश्य होगी। सभी को मिलाना यह भी एक श्रेष्ठता की निशानी है। सभी के मिलने से अन्य आत्मायें भी मिलन मनाने के समीप आती हैं। दिल का संकल्प मिलाना अर्थात् अनेक आत्माओं का मिलन मनाना। इसी लक्ष्य को देखते हुए कर रहे हो और करते रहेंगे। अच्छा - फारेनर्स सब ठीक हैं? सन्तुष्ट हैं? अभी सब बड़े हो गये हैं। सम्भालने वाले हैं। पहले छोटे-छोटे थे तो नाज़-नखरे करते थे, अभी औरों को सम्भालने वाले बन गये। हमें कोई सम्भाले, यह नहीं। अभी मेहनत लेने वाले नहीं, मेहनत देने वाले। कम्पलेन्ट करने वाले नहीं, कम्पलीट । कोई भी कम्पलेन्ट अभी भी नहीं, फिर पीछे भी नहीं, ऐसा है ना! सदा खुशखबरी के समाचार देना। और जो नहीं भी आये हैं उन्हों को भी मायाजीत बनाना। फिर ज्यादा पत्र नहीं लिखने पड़ेंगे। बस सिर्फ ओ.के.। अच्छी-अच्छी बातें भले लिखो लेकिन शार्ट में। अच्छा।टीचर्स से:- बापदादा का टीचर्स से विशेष प्यार है क्योंकि समान हैं। बाप भी टीचर और आप मास्टर टीचर। वैसे भी समान प्यारे लगते हैं। बहुत अच्छा उमंग-उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रही हो। सभी चक्रवर्ती हो। चक्र लगाते अनेक आत्माओं के सम्बन्ध में आए, अनेक आत्माओं को समीप लाने का कार्य कर रही हो। बापदादा खुश हैं। ऐसे लगता है ना कि बापदादा हमारे पर खुश हैं, या समझती हो कि अभी थोड़ा सा और खुश करना है। खुश हैं और भी खुश करना है। मेहनत अच्छी करती हो, मेहनत मुहब्बत से करती हो इसलिए मेहनत नहीं लगती। बापदादा सर्विसएबुल बच्चों को सदा ही सिर का ताज कहते हैं। सिरताज हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख और आगे उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहयोग देते हैं। एक कदम बच्चों का, पदम कदम बाप के। जहाँ हिम्मत है वहाँ उल्लास की प्राप्ति स्वत: होती है। हिम्मत है तो बाप की मदद है, इसलिए बेपरवाह बादशाह हो, सेवा करते चलो। सफलता मिलती रहेगी। अच्छा -07-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज 13-02-84 मधुबन''अशान्ति का कारण अप्राप्ति और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता है''(कान्फ्रेन्स के पश्चात मेहमानों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात)आज प्रेम के सागर, शान्ति के सागर बाप अपने शान्त प्रिय, प्रेम स्वरूप बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा सारे विश्व के आत्माओं की एक ही आश शान्ति और सच्चे प्यार को देख सर्व बच्चों की यह आश पूर्ण करने के लिए सहज विधि बताने बच्चों के पास पहुँच गये हैं। बहुत समय से भिन्न-भिन्न रूपों से इसी आश को पूर्ण करने के लिए बच्चों ने जो प्रयत्न किये वह देख-देख रहमदिल बाप को, बच्चों पर रहम आता है, दाता के बच्चे और मांग रहे हैं एक घड़ी के लिए, थोड़े समय के लिए शान्ति दे दो। अधिकारी बच्चे भिखारी बन शान्ति और स्नेह के लिए भटक रहे हैं। भटकते-भटकते कई बच्चे दिलशिकस्त बन गये हैं। प्रश्न उठता है कि क्या अविनाशी शान्ति विश्व में हो सकती है? सर्व आत्माओं में नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह हो सकता है?बच्चों के इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए बाप को स्वयं आना ही पड़ा। बापदादा बच्चों को यही खुशखबरी बताने के लिए आये हैं कि तुम ही मेरे बच्चे कल शान्ति और सुखमय दुनिया के मालिक थे। सर्व आत्मायें सच्चे स्नेह के सूत्र में बंधी हुई थी। शान्ति और प्रेम तो आपके जीवन की विशेषता थी। प्यार का संसार, सुख का संसार, जीवन मुक्त संसार जिसकी अभी आश रखते हो, सोचते हो कि ऐसा होना चाहिए, उसी संसार के कल मालिक थे। आज वह संसार बना रहे हो और कल फिर उसी संसार में होंगे। कल की ही तो बात है। यही आपकी भूमि कल स्वर्ग भूमि होगी, क्या भूल गये हो? अपना राज्य, सुख सम्पन्न राज्य जहाँ दु:ख अशान्ति का नाम निशान नहीं, अप्राप्ति नहीं। अप्राप्ति ही अशान्ति का कारण है और अप्राप्ति का कारण है अपवित्रता। तो जहाँ अपवित्रता नहीं, अप्राप्ति नहीं वहाँ क्या होगा? जो इच्छा है, जो प्लैन सोचते हो वह प्रैक्टिकल में होगा। वह ड्रामा की भावी अटल अचल है, इसको कोई बदल नहीं सकता। बनी बनाई बनी हुई है। बाप द्वारा नई रचना हो ही गई है। आप सब कौन हो? नई रचना के फाउन्डेशन स्टोन आप हो। अपने को ऐसे फाउन्डेशन स्टोन समझते हो तब तो यहाँ आये हो ना! ब्राह्मण आत्मा अर्थात् नई दुनिया के आधार मूर्त। बापदादा ऐसे आधार मूर्त बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा भी गीत गाते हैं वाह मेरे लाडले सिकीलधे मीठे-मीठे बच्चे! आप भी गीत गाते हो ना। आप कहते हो तुम ही मेरे और बाप भी कहते तुम ही मेरे। बचपन में यह गीत बहुत गाते थे ना। (दो तीन बहनों ने वह गीत गाया और बापदादा रिटर्न में रेसपान्ड दे रहे थे।)बापदादा तो दिल का आवाज सुनते हैं। मुख का आवाज भले कैसा भी हो। बाप ने गीत बनाया और बच्चों ने गाया। अच्छा। (कुछ भाई बहनें नीचे हाल में तथा ओम् शान्ति भवन में मुरली सुन रहे हैं, बापदादा सम्मेलन में आये हुए मेहमानों से मेडीटेशन हाल में मिल रहे हैं) नीचे भी बहुत बच्चे बैठे हुए हैं। स्नेह की सूरतें और मीठे-मीठे उल्हनें बापदादा सुन रहे हैं। सभी बच्चों ने दिल वा जान सिक वा प्रेम से विश्व सेवा का पार्ट बजाया। बापदादा सभी की लगन पर सभी को स्नेह के झूले में झुलाते हुए मुबारक दे रहे हैं। जीते रहो, बढ़ते रहो, उड़ते रहो, सदा सफल रहो। सभी के स्नेह के सहयोग ने विश्व के कार्य को सफल किया। अगर एक-एक बच्चे की मुहब्बत भरी मेहनत को देखें तो बापदादा दिन-रात वर्णन करते रहें तो भी कम हो जायेगा। जैसे बाप की महिमा अपरम-अपार है ऐसे बाप के सेवाधारी बच्चों की महिमा भी अपरम-अपार है। एक लगन, एक उमंग एक दृढ़ संकल्प कि हमें विश्व की सर्व आत्माओं को शान्ति का सन्देश जरूर देना ही है। इसी लगन के प्रत्यक्ष स्वरूप में सफलता है और सदा ही रहेगी। दूर वाले भी समीप ही हैं। नीचे नहीं बैठे हैं लेकिन बापदादा के नयनों पर हैं। कोई ट्रेन में, कोई बस में जा रहे हैं लेकिन सभी बाप को याद हैं। उन्हों के मन का संकल्प भी बापदादा के पास पहुँच रहा है। अच्छा।बाप के घर में मेहमान नहीं लेकिन महान आत्मा बनने वाले आये हैं। बापदादा तो सभी को आई.पी. या वी.आई.पी. नहीं देखते लेकिन सिकीलधे बच्चे देखते हैं। वी.आई.पी. तो आयेंगे और थोड़ा समय देख, सुनकर चले जायेंगे। लेकिन बच्चे सदा दिल पर रहते हैं। चाहे कहीं भी जायेंगे लेकिन रहेंगे दिल पर। अपने वा बाप के घर में पहुँचने की मुबारक हो। बापदादा सभी बच्चों को मधुबन का अर्थात् अपने घर का श्रृंगार समझते हैं। बच्चे घर का श्रृंगार हैं। आप सभी कौन हो? श्रृंगार हो ना। अच्छा।ऐसे सदा दृढ़ संकल्पधारी, सफलता के सितारे, सदा दिलतख्तनशीन, सदा याद और सेवा की लगन में मगन रहने वाले, नई रचना के आधार मूर्त, विश्व को सदा के लिए नई रोशनी नई जीवन देने वाले, सर्व को सच्चे स्नेह का अनुभव कराने वाले, स्नेही सहयोगी, निरन्तर साथी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। वरदान:- अपने हर कर्म द्वारा दिव्यता की अनुभूति कराने वाले दिव्य जीवनधारी भव बापदादा ने हर एक बच्चे को दिव्य जीवन अर्थात् दिव्य संकल्प, दिव्य बोल, दिव्य कर्म करने वाली दिव्य मूर्तियां बनाया है। दिव्यता संगमयुगी ब्राह्मणों का श्रेष्ठ श्रृंगार है। दिव्य-जीवनधारी आत्मा किसी भी आत्मा को अपने हर कर्म द्वारा साधारणता से परे दिव्यता की अनुभूतियां करायेगी। दिव्य जन्मधारी ब्राह्मण तन से साधारण कर्म और मन से साधारण संकल्प कर नहीं सकते। वे धन को भी साधारण रीति से कार्य में नहीं लगा सकते। स्लोगन:- दिल से सदा यही गाते रहो कि पाना था सो पा लिया...तो चेहरा खुशनुम: रहेगा। . #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- 25 Nov 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English 25/11/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 01/03/84 The Account of One. Today, Baba is pleased to see all the easy yogi and constantly co-operative children. All the Father’s children who have come from all directions constantly have one faith and one Support. They follow the directions of One and are constant and stable. They sing praise of the One alone. They fulfil the responsibility of all relationships with the One. They always remain with the One. They all belong to the one family of God and all have the same aim and the same qualifications. They see everyone with the same pure and elevated good wishes. They constantly enable everyone to fly high with the same elevated pure desire. They all belong to the one world and experience all attainment in this one world. As soon as they open their eyes, they only see the one Baba. Whilst performing every action, they only have one Baba as their Companion. When coming to the end of the day and ending their karma yoga and service, they become absorbed in the love of One; they become merged in the love of One, that is, they become merged in the lap of love of the One. Their whole timetable is around spending the day and the night with the One. Whilst coming into connection with others in terms of service or as a family, whilst seeing all the many, they see just the One. This is the family of the one Father and the one Father has made them instruments for service. They come into connections and relationships with others in this way and see the One in the many. In this Brahmin life, in the life of playing a hero part , in the life of passing with honours , what is the one thing that you have to learn? The account of One. That’s all! When you know the One, you know everything. You have then attained everything. To write One, to learn about the One and to remember the One is the easiest of all.In Bharat, they have a saying: “Don't speak of three or five. Simply speak of One.” It becomes difficult to speak of three or five. To remember One and to know One is extremely easy. So, what do you learn here? You learn the lesson of One. Multimillions are merged in the One. This is why BapDada shows you the easy path of One. Know the importance of One and become great. All the expansion is merged in the One. All knowledge is included in this, is it not? You double foreigners now know the One very well, do you not? Achcha. Today, Baba has come just to give regard to you children. In welcoming you, Baba has told you the account of One.Today, BapDada has just come to meet you all. Nevertheless, for the sake of the long-lost and now-found children who came yesterday and today, Baba has spoken something. BapDada knows how, out of love, you find so many different ways and make so much effort to come here. Because of your efforts, you children have with you the Father's multi-million fold love. This is why BapDada is welcoming all of you children with love and golden versions. Achcha.To all the children everywhere who are merged in love, to all the children who are friends of the heart and who remain absorbed in love, to the children who always sing songs of the one Father, to the companion children who always fulfil the responsibility of love, BapDada's love, remembrance and namaste.BapDada's chit-chat with brothers and sisters from abroad – 03/03/84:“Double -foreign” means those who constantly experience the land of the self and the sweet home . You are constant residents of that land, the ones who reside in the sweet home and have come to this land abroad, to a foreign kingdom to establish self-sovereignty, that is, to establish the soul-conscious kingdom, the kingdom of happiness and have taken the support of nature (matter) in order to play your parts in an incognito way. You are residents of the land of the self, you are playing your parts in a foreign land. This is the land of matter. The original land is the land of souls. Matter is now under the influence of Maya. It is Maya's kingdom and this is why it has become a foreign land. When you become a conqueror of Maya, this matter will become your server and give you happiness. When you become a conqueror of Maya and a conqueror of matter, it will become your kingdom of happiness, the satopradhan kingdom and the golden world. Do you have this awareness clearly? You simply have to change your costume in a second. You have to renounce the old costume and adopt a new one. How long will it take? It takes just as long to become a deity from an angel as it does to change your costume. You will also do this via the sweet home. However, at the end, you will have the awareness that you are now about to change from an angel to a deity. Do you have any awareness of the deity body, the deity life, the deity world and the time of satopradhan matter? Do the sanskars of the kingdom you have had many times, and the deity life with which you are filled, emerge? Because, until the sanskars emerge in you who are to become deities, how would the golden world emerge in the corporeal form? By your thoughts emerging, the deity world will be revealed on this earth. Do these thoughts emerge automatically by themselves? Or, do you feel that there is still a lot more time? Your deity bodies are invoking you deity souls. Can you see your deity bodies? When will you adopt them? Your heart is not attached to the old body, is it? You aren't wearing your old tight costume, are you? You are still wearing your old body, your old costume, which you are unable to renounce in a second at the relevant time. To be free from bondage means to wear a loose dress. So what do the double-foreigners prefer: loose or tight? You don't like tight, do you? You don't have any bondage, do you?Are you yourself ever ready? Put time aside. Don't look at the time: this is now to happen; this is yet to happen. Time knows and the Father knows. Service knows and the Father knows. Are you content with service of the self? Put aside world service; look at yourself. Are you content with yourself in your own stage and in your own independent kingdom? Are you able to rule your own kingdom well? Are all your workers, all your ministers and senior ministers under your control? There isn't any dependency, is there? Do your own ministers and senior ministers sometimes deceive you? Sometimes, internally, your own workers don't secretly become companions of Maya, do they? In your own kingdoms, is the ruling power and the controlling power of you kings working accurately? It isn’t that you order pure thoughts to come but waste thoughts come instead, is it? That you order the virtue of tolerance and the defect of upheaval comes instead, is it? O self-sovereigns, are all your powers and virtues under your control? They are companions in your kingdom. So, are they all under your control? When kings issue an order, everyone says, “Yes, my Lord” ("Ji hazoor") in a second and salutes the king. So, do you also have such controlling power and ruling power? Are you ever ready in this? Your own weaknesses and your own bondages do not deceive you, do they?Today, BapDada is asking you self-sovereigns about the welfare of the kingdom of the self. All of you sitting here are kings, are you not? You are not subjects, are you? To be dependent on something means to be a subject. To have all rights means to be a king. So, who are all of you? Are you Raja Yogis or praja yogis (subjects)? The court of all kings is held now, is it not? In the court of the kingdom of the golden age, you will have forgotten everything. You won't recognise one another as the same confluence-aged souls. It is now that you become trikaldarshi and know and see one another. Each one's court of the kingdom now is even more elevated than that of the golden age. Only at the confluence age does such a royal court exist. So, the condition of everyone's kingdom is fine, is it not? You didn’t say loudly that everything is fine!BapDada too loves this royal court. Nevertheless, check yourself every day. Hold your royal court every day. If any one of your workers became even a little careless, what would you do? Would you sack him? All of you have heard about the divine activities of the beginning, have you not? If a small child was being mischievous, what punishment was he given? To stop his food or tie him with string was a common thing, but the punishment given was for him to sit in solitude for many hours. He was a child and children can't sit still. Therefore, his punishment for him to sit in one place for four to five hours without moving at all was a big thing! So they were given such royal punishment! Therefore, here, too, if any of your workers cause mischief, make them sit in the furnace (bhatthi) of introversion. You mustn't become extroverted. Punish them in this way. If any come out, send them back in. Children do this, don't they? When you make children sit down, they still do whatever they want and you then make them sit down again. Therefore, in this way, you will develop the habit of becoming introverted from extroverted. A habit is instilled in little children: Sit down and remember Baba. That child will not want to sit down, but you will again and again make the child sit down. No matter how much the child moves his legs, you would still say: No, sit like this. In this way, make them sit in the bhatthi of the practice of introversion by tying them properly with thoughts of determination. You don't have to tie them with any other string, for the thought of determination is itself the string. Make them sit in the bhatthi of the practice of introversion. Punish yourself. What would happen when others give you punishment? If others tell you that these workers of yours are not good and you should therefore punish them, what would you do? You would feel a little like this: “What is this one talking about?” However, if you yourself give yourself punishment, it remains for all time. By others telling you, it won't remain for all time. Until you have made the signals from others your own, they won't last all the time. Do you understand?How are you kings? You are enjoying the royal court, are you not? All of you are great kings, are you not? You are not small kings, you are great kings. Achcha. Today, seeing the double foreigners, Father Brahma especially had a chit-chat. Baba will tell you about that later. Achcha.To the souls who are constantly conquerors of Maya, conquerors of matter and those who have a right to self-sovereignty, to those who always use the treasures of virtues and all powers by right, to those who, with self-sovereignty, make all their workers into their loving companions for all time, to those who are constantly free from bondage and remain ever ready, to the contented souls, BapDada's love, remembrance and namaste.BapDada meeting a group from Australia:You are souls who receive blessings from BapDada and all souls by constantly keeping a balance of remembrance and service, are you not? It is a speciality of Brahmin life that, together with making effort, you always receive blessings and also continue to make progress. These blessings work in Brahmin life like a lift. You will continue to experience the flying stage through these.Why does BapDada have special love for the residents of Australia? Because each one of you always has the courage and enthusiasm to bring many others. The Father loves this speciality because it is also the Father's task to enable the maximum number of souls to receive their right to the inheritance. Therefore, the children who follow the Father are especially loved. As soon as you come, you have great enthusiasm. This is a blessing that the land of Australia has received. One becomes an instrument for many. BapDada continues to turn the beads of the rosary of the virtues of each child. Australia has a lot of specialities. However, Maya too loves those from Australia a lot more. Those who are loved by the Father also become loved by Maya. So many good ones, even if only for a short time, have become Maya's, have they not? None of you are weak like them, are you? You are not going to get caught in any spinning, are you? BapDada remembers those children even now. What happens is that, because of not understanding something fully, they have questions of "Why?" and "What?" So, the door for Maya to enter opens. You now know the door for Maya, do you not? So, don't get caught up in “Why?” or What?” and Maya won't then receive a chance to come in. Always put on the double lock. Remembrance and service is the double lock. Just service by itself is a single lock. If there is just remembrance and no service, that too is just a single lock. Let there be a balance of the two. This is the double lock. Your photograph is being taken on BapDada's TV. Later, BapDada will show you: Look, you are in this picture! Achcha. With your courage and your faith, there is still a good number. You are very much loved by the Father and this is why Baba told you the way to remain safe from Maya. Blessing: May you be a destroyer of attachment and an embodiment of remembrance who puts a full stop in a second with the power to pack up. At the end, the question in the final paper will be: Put a full stop in a second! Let nothing else be remembered, but just “The Father and me, and no third thing”. In a second, you belong to the Father, “My Baba and none other”. It takes time to think it, but you have to become stable in that stage and not fluctuate at all. Let there be no questions of “Why?” or “What?” for only then will you become a destroyer of attachment and an embodiment of remembrance. So, practise coming into expansion when you want and packing up everything when you want. Let your brake be powerful. Slogan: Those who have no arrogance of their self-respect are always humble. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday
- 5 Forms of Soul Practice for Swaman
Five forms of Soul are (Angel, Brahman, Worship worthy idol, Devta, Eternal form of Light). These are our 5 forms throughout the Kalpa (world cycle of 500 years) within the 3 dimensions (worlds) - Corporeal, Subtle and Incorporeal. I am a sparkling soul. In the beginning, I was in my complete and perfect 'deity' form. Then in bhakti (time of devotion) my deity form was worshipped. Now at the confluence age, I have become an elevated brahmin, the direct child (creation) of god and at the end time, I will fully become an angel (God's hand for service in world). 1. Anadi (Eternal) Form POINT LIGHT FORM – THE SPARKLING LOVELY FORM I am a sparkling light... rays are spread through me in all four directions.....i have entered into this body... I am an embodiment of peace...an embodiment of purity... the rays of purity emerged through me is spreading in my entire body... I am owner of this body...owner of motor organs...owner of mind, intellect, sanskars also...owner of all powers...the rays of power emerged through me is spreading in all four directions... I detach from the body and move towards Paramdham (Soul world)...Now, I am in Paramdham, in a liberated state...in front of Shivbaba... go on experiencing the original form (point of light- Soul) Through this form practice, the soul regains all its virtues, detachment will enhance and vices will get eliminated. 2. Our First Form (Deity / Devi-Devta) DEITY FORM – LOVELY AND VIRTUES I descend from Paramdham and enter into deity form...i am devi (goddesses), I am devta (god)... I am in divine and pure body...in heaven...in golden palace...seated on throne...I am 16 degree complete, full with divine virtues...complete viceless...pushpak vimanas are parked in front of me...the beauty of nature is everywhere...nature is my slave...nature is comforting and mind pleasing... chirping of beautiful birds in all direction, sweet music of nature...deities are seen roaming everywhere. Through this form practice, we will start gaining all the virtues of deities easily, our joy will increase, sanskars will start transforming and imbibing purity will become easier. 3. Middle Aged Form (Bhakti / worshipped) WORSHIP WORTHY FORM –AS A SYMBOL OF OUR SANGAM AGE PART My devotees are worshipping me, the Isht dev (desired god) with so much systematic methods and disciplines...I am eight armed Durga... I am destroyer of devil...destroyer of sins...world uplifter...I am in temple... thousands of devotees are standing with their various desires...sakash (currents) are coming out through my head and falling over them... everyone’s desire is being fulfilled. I am destroyer of obstacles Siddhi vinayak Ganesha... bestower of intellect, power... merciful...fulfiller of wishes... they are having visions of my Isht (desired) form... they are singing praises...everyone’s obstacles are destroyed. By remaining in this form, self-respect will get awakened...sanskar of giver and merciful will be created... internal powers will increase and purity will start becoming natural. 4. Confluence Aged Form (Brahman - Effort making) BRAHMIN FORM – ELEVATED BIRTH IN GOD's LAP, HAND IN HAND I am that Brahmin soul who has been chosen by God, selected by him...No one is as fortunate as me... since I am fostered by Godly sustenance... I am master almighty authority... I am an ancestor...I am a victory jewel... I am an image of support, Image of upliftment, Image of example, I am a World server, World transformer & World benefactor...Wow...I had never thought that God would become mine...never visualized that we would come so closer to him... he has given me blessings...he has given me never-ending treasures...in this way by remembering your brahmin life experience joy, bliss and self-respect...now after acquiring the true knowledge my thirst of innumerable births has been quenched. Through this five forms practice, daily our importance of life, awareness of godly blessings and intoxication of attainments will increase and the impact of Kaliyuga won’t be there on mind. 5. Last Form (Angel) ANGELIC FORM – COMPLETE KARMATEET ( BEYOND ALL ATTRACTIONS ) I, the soul is present in the sparkling body of light...I am double light... light is spread through my each organ... I am completely liberated...equal to Father Brahma... completely pure...detached... at rest... completely free... can go anywhere within a second... I am an avyakt (imperceptible) subtle angel...seated on lotus throne... white pure rays of baba are falling on me from upwards. Through this form practice, awareness of body will start vanishing. Mind will remain completely lighter, bondages and attachment will come to an end and various subtle services will happen. Experience that there is no limit for me, beyond all limitations, I am wandering in the open sky like a free bird... the rays of peace, bliss, love is emerging through me and reaching to the entire globe. The sorrowful and restless souls of the world are experiencing peace. * BENEFIT To practice these five forms is to become Swadarshan Chakradhari (spinner of the discus of self-realization). This will burn away the sins, enable to practice elevated part in various births of the entire cycle and the mind will easily be stabilized in seed form experiencing supreme bliss. This drill has to be practised for 5 minutes many times a day. This drill needs to be practised at least 8 times. This drill of mind, exercise will make the mind ever happy, keep in zeal and enthusiasm and enable to experience the flying stage. Useful Links Download or View PDF file BK Articles (Hindi & English) Rajyoga Meditation Commentaries Swamaan Practice in Hindi Swaman (Self respects) Practice in English
- 12 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki Murli BapDada Madhuban 12-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - अभी घोर अन्धियारा, भयानक रात पूरी हो रही है, तुम्हें दिन में चलना है, यह ब्रह्मा के बेहद दिन और रात की ही कहानी है'' प्रश्नः- सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करने वा हीरे तुल्य जीवन बनाने का आधार क्या है? उत्तर:- सच्ची गीता। जो श्रीमद् भगवानुवाच है। बाप तुम्हें सम्मुख जो डायरेक्शन दे रहे हैं यह सच्ची गीता है, जिससे तुम्हें सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पद की प्राप्ति होती है। तुम हीरे तुल्य बनते हो। उस गीता से तो भारत कौड़ी तुल्य बना है क्योंकि बाप को भूल गीता को खण्डन कर दिया है। गीत:- रात के राही थक मत जाना........ ओम् शान्ति। अभी यह गीत तुम बच्चों ने नहीं बनवाये हैं। यह तो फिल्म वालों ने बैठ बनवाये हैं। अर्थ तो कुछ भी समझते नहीं। हर एक बात का यथार्थ अर्थ न जानने से अनर्थ हो जाता है। गाते हैं, समझते कुछ भी नहीं हैं। अब तुम बच्चों को श्रीमत मिली हुई है। किसकी? भगवान् की। भगवान् को ही भक्त नहीं जानते तो उन भक्तों की सद्गति कैसे हो सकती है। भक्तों का रक्षक है भगवान्। रक्षा मांगते हैं, जरूर कोई दु:ख है। हमारी रक्षा करो। बहुत गाते हैं परन्तु भगवान् कौन है, किससे रक्षा करते हैं, जरा भी नहीं जानते। भक्त अथवा बच्चे अपने बाप को न जानने कारण कितने दु:खी हो पड़े हैं। अभी इनका अर्थ तुम बच्चे समझते हो। अभी है घोर अन्धियारी भयानक रात, आधाकल्प की रात है। कोई भी विद्वान, आचार्य, पण्डित नहीं जानते कि रात किसको कहा जाता है। यूँ तो यह जानवर भी जानते हैं रात सोने की, दिन जागने का होता है। चिड़ियायें भी रात को सो जाती हैं। सुबह होते ही उड़ने लगती हैं। वह दिन-रात तो कॉमन है। यह ब्रह्मा की बेहद की रात और बेहद का दिन है। बेहद का दिन सतयुग-त्रेता और रात द्वापर-कलियुग। आधा-आधा चाहिए ना। दिन की आयु भी 2500 वर्ष है। इस दिन-रात का तो किसको पता नहीं है। अभी तुम बच्चे जानते हो कि रात पूरी होती है अर्थात् 84 जन्म पूरे होते हैं अथवा ड्रामा का चक्र पूरा होता है फिर दिन शुरू होता है। रात को दिन और दिन को रात बनाने वाला कौन है, यह भी कोई नहीं जानते। भगवान् को ही नहीं जानते तो यह सब बातें कैसे जान सकते। मनुष्य पूजा करते हैं परन्तु समझते नहीं कि यह कौन हैं, जिसकी हम पूजा करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं - पहली-पहली मुख्य बात है गीता को खण्डन करने की। कहते हैं श्रीमत भगवत गीता। गीता का पति है भगवान्, न कि कोई मनुष्य। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा जाता है और सतयुग के मनुष्यों को देवताई गुणों वाला कहा जाता है। दैवी धर्म वाले श्रेष्ठाचारियों को देवताई गुणों वाले कहते हैं। भारत के मनुष्य श्रेष्ठाचारी थे। वही फिर आसुरी गुण वाले बन पड़े हैं। मुख्य धर्म शास्त्र चार हैं। और कोई धर्म शास्त्र हैं नहीं। अगर हैं तो भी बहुत छोटे-छोटे मठ स्थापन किये हैं। जैसे सन्यासियों का मठ, बौद्धियों का मठ। बुद्ध ने बौद्धी धर्म स्थापन किया। वह कहेंगे हमारा फलाना धर्म शास्त्र है। अब भारतवासियों का धर्म शास्त्र है एक। सतयुगी देवी-देवता धर्म का शास्त्र है एक, उनको श्रीमत भगवत गीता कहा जाता है। गीता माता, उनका रचयिता है परमपिता परमात्मा। कृष्ण की आत्मा जब 84 जन्म पूरे करती है तब फिर गीता के भगवान्, ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा से सहज राजयोग और ज्ञान सीख ऊंच पद पाती है। ऐसे ऊंच ते ऊंच धर्म शास्त्र को खण्डन कर दिया है। जिस कारण ही भारत कौड़ी तुल्य बना है। यह भी ड्रामा में एकज़ भूल है, जो गीता को खण्डन कर दिया है। बाप अब जो सच्ची गीता सुना रहे हैं वह निकलनी चाहिए। सच्ची गीता गवर्मेंट को छपाना चाहिए। यह है श्रीमत भगवानुवाच। बच्चों प्रति बाप डायरेक्शन देते हैं - अच्छी रीति लिखना चाहिए शार्ट में। तुम जानते हो सच्ची गीता से सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल जाती है। बाप का बन बाप से वर्सा लेना है। बीज, झाड़ और ड्रामा के चक्र को समझाना है, गाते भी हैं सतयुग आदि सत, है भी सत, होसी भी सत। झाड़ को जानना भी सहज है। इनका बीज ऊपर में है, यह वैरायटी धर्मों का झाड़ है। इसमें सब आ गये। बाकी छोटी-छोटी टालियां तो अथाह हैं, मठ-पन्थ बहुत हैं। भारत का आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, वह किसने स्थापन किया? भगवान् ने। कोई मनुष्य ने नहीं किया। श्रीकृष्ण तो दैवी गुणों वाला मनुष्य था, वह 84 जन्म पूरे कर अब अन्तिम जन्म में है। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी बनते-बनते कलायें कम होती जाती हैं। सूर्यवंशी राजधानी जो सतयुग में श्रेष्ठाचारी थी सो कलियुग में अब भ्रष्टाचारी है। अब फिर श्रेष्ठाचारी बन रही है। तुम्हारी बुद्धि में है कि ऊंच ते ऊंच पार्ट किसका होगा? अभी तुम जान गये हो। मुख्य है ही शिवाए नम:, जो उसकी महिमा है वह ब्रह्मा-विष्णु-शंकर के लिए नहीं गा सकेंगे। प्रेजीडेण्ट की महिमा प्राइममिनिस्टर को अथवा और कोई को देंगे क्या? नहीं। अलग-अलग टाइटिल हैं ना। सब एक तो नहीं हो सकते। तुम बच्चों को अभी बुद्धि मिली है। तुम जानते हो क्राइस्ट को भी अपना क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने का पार्ट मिला हुआ है। आत्मा है तो बिन्दी। उस आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। क्रिश्चियन धर्म की स्थापना कर फिर पुनर्जन्म लेते पालना करते सतो-रजो-तमो में आना है। पिछाड़ी में सारा झाड़ जड़जड़ीभूत होना ही है। हरेक को कितना-कितना समय पार्ट मिला हुआ है। बुद्ध को कितना समय पालना करनी है - यह तुम जानते हो। भिन्न-भिन्न नाम-रूप में जन्म लेते रहते हैं। अभी बाबा तुम्हारी कितनी विशाल बुद्धि बनाते हैं। परन्तु कोई तो शिवबाबा को याद भी नहीं कर सकते। बेहद का बाप बेहद स्वर्ग का वर्सा देते हैं। यह भी तुम समझा नहीं सकते। बाबा ने बहुत बार समझाया है, आत्मा में अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेना है। कितनी गुह्य बातें हैं समझने की। जो स्कूल में रोज़ पढ़ते होंगे, वही समझेंगे। कोई तो चलते-चलते थक जाते हैं। गाते भी हैं तुम मात पिता हम बालक तेरे..... बाप कहते हैं हम तुमको स्वर्ग के सुख घनेरे देने का पुरुषार्थ करा रहे हैं। तुम थक नहीं जाना। इतनी ऊंच ते ऊंच पढ़ाई पढ़ना तुम छोड़ देते हो। कोई तो पढ़ाई छोड़ फिर विकार में भी चले जाते हैं। जैसे का तैसा बन जाते हैं। चलते-चलते गिर पड़ेंगे तो और क्या होगा। भल वहाँ सुख में हैं परन्तु पद में तो फ़र्क है ना। यहाँ सब दु:खी हैं। वहाँ राजा-प्रजा सबको सुख है। फिर भी पद तो ऊंचा लेना चाहिए ना। पढ़ाई छोड़ दी तो मात-पिता कहेंगे तुम तो लायक नहीं हो। बाप से स्वर्ग का वर्सा लेते-लेते कई बच्चे थक जाते हैं। चलते-चलते माया वार कर देती है तो लौट जाते हैं। जो जमा किया वह फिर ना हो जाती। बाकी क्या बनेंगे? स्वर्ग में भल जायेंगे, लेकिन बिल्कुल साधारण प्रजा जाकर बनेंगे। बाप कहते हैं हमारा बनकर फिर थक कर बैठ गये वा ट्रेटर बन गये तो प्रजा में चण्डाल जाकर बनेंगे। सभी चाहिए ना। स्वर्ग का मालिक बनते-बनते अगर पढ़ाई को छोड़ देते तो उन जैसा महान् मूर्ख दुनिया में कोई होता नहीं। लिखते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हारी कृपा से स्वर्ग के बहुत सुख घनेरे मिलते हैं। कृपा करो। बाप कहेंगे कृपा की तो बात ही नहीं। मैं टीचर हूँ, पढ़ाऊंगा, पुरुषार्थ तुम करो, अच्छे मार्क्स से पास होने का। बाकी मैं थोड़ेही बैठ सब पर आशीर्वाद करुँगा। तुम योग में रहो तो ताकत मिलती रहेगी। सभी थोड़ेही गद्दी पर बैठेंगे। एक दो के सिर पर बैठेंगे क्या। तो धर्म मुख्य हैं ही 4, शास्त्र भी 4 हैं। उनमें मुख्य है गीता। बाकी सब उनके बच्चे हैं। वर्सा तो मात-पिता से ही मिलता है। अब बाप सम्मुख समझा रहे हैं। सिर्फ गीता पढ़ने से ही थोड़ेही राजाओं का राजा बन जायेंगे। बाबा ने तो गीता पढ़ी है। परन्तु उनसे होता कुछ भी नहीं है। यह सब है भक्ति मार्ग के शास्त्र, तुमको पुरुषार्थ कर 16 कला सम्पूर्ण बनना है। अभी तो तुम्हारे में कोई कला, कोई गुण नहीं रहा है। गाते भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं, आपेही तरस परोई.... हमको फिर 16 कला सम्पूर्ण बनाओ। जो हम थे फिर बनाओ। अब तुम जानते हो बाप सम्मुख आकर समझा रहे हैं। एक निर्गुण संस्था भी बना दी है। निर्गुण निराकार का अर्थ भी नहीं जानते हैं। शिव का तो आकार भी है। जिसका नाम है, तो जरूर चीज़ भी है ना। आत्मा इतनी सूक्ष्म है, उनका भी नाम है। ब्रह्म महतत्व, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं, वह भी नाम है ना। नाम-रूप से न्यारी तो कोई चीज़ होती नहीं। भगवान् को कहते नाम-रूप से न्यारा, फिर उनको सर्वव्यापी कह देते हैं। यह कितनी बड़ी भूल है। मनुष्य जब इन बातों को समझें तब तो निश्चय करें। बाबा हमने आपको जाना है। कल्प-कल्प आपसे राज्य-भाग्य लेते आये हैं। ऐसा निश्चय हो तब पढ़ सकते हैं। यहाँ से बाहर निकलते और भूल जाते हैं इसलिए पहले-पहले तो लिखवा लेना चाहिए बरोबर शिवबाबा आया है - राजयोग सिखलाने। लिखकर भी देते फिर पढ़ते नहीं। ब्लड से भी लिखकर देते हैं। परन्तु आज हैं नहीं, माया कितनी तीखी है। बाप कितना बैठ समझाते हैं। तुम्हारी विहंग मार्ग की सर्विस तब होगी जब ऐसे-ऐसे पत्र लिखेंगे। तुम्हारी शक्ति सेना में भी नम्बरवार हैं। कोई चीफ कमान्डर है, कोई कैप्टन है, कोई मेजर्स हैं। कोई सिपाहियों के साथ बोझा उठाने वाले भी हैं। सारी सेना है। बाबा तो पुरुषार्थ करायेंगे ना। हर एक के पुरुषार्थ करने से समझ में आता है - यह राजा-रानी बनेंगे वा अच्छी साहूकार प्रजा में जायेंगे, यह साधारण प्रजा में जायेंगे, यह दास-दासी बनेंगे। यह तो बिल्कुल सहज है समझने का। तो पहली मुख्य बात को उठाना है। बाबा कितनी ललकार करते हैं महारथियों को। तो विहंग मार्ग की सेवा के लिए विचार चलने चाहिए। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) पढ़ाई में थकना नहीं है। ऊंच ते ऊंच पढ़ाई रोज़ पढ़नी और पढ़ानी है। 2) विहंग मार्ग की सर्विस करने की युक्तियाँ निकालनी हैं। योग में रह बाप से ताकत लेनी है। कृपा, आर्शीवाद मांगनी नहीं है। वरदान:- ब्राह्मण जीवन में खुशी के वरदान को सदा कायम रखने वाले महान आत्मा भव ब्राह्मण जीवन में खुशी ही जन्म सिद्ध अधिकार है, सदा खुश रहना ही महानता है। जो इस खुशी के वरदान को कायम रखते हैं वही महान हैं। तो खुशी को कभी खोना नहीं। समस्या तो आयेगी और जायेगी लेकिन खुशी नहीं जाये क्योंकि समस्या, परस्थिति है, दूसरे के तरफ से आई है, वह तो आयेगी, जायेगी। खुशी अपनी चीज़ है, अपनी चीज़ को सदा साथ रखते हैं इसलिए चाहे शरीर भी चला जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। खुशी से शरीर भी जायेगा तो बढ़िया और नया मिलेगा। स्लोगन:- बापदादा के दिल की मुबारक लेनी है तो अनेक बातों को न देख अथक सेवा पर उपस्थित रहो। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- Specialities & Virtues of Jagadamba Saraswati Mamma
The World Mother - Mateshwari Jagadamba Saraswati aka Mamma had all the given virtues and powers. BK Saraswati was the first head of Yagya (Brahma Kumaris Ishwariya Vidhyalay) Mamma had many virtues and as the devotees worship 9 forms of goddess, mamma indeed had all the 9 powers imbibed naturally which she used for upliftment of other souls. SARASWATI - Goddess of Knowledge - Mama listened to the Knowledge (murli) from Shiv Baba andimbibed it and played the Sitar of Knowledge, and inspired everyone through her own inculcation (dharna), and brought realization to all. JAGADAMBA - Goddess of Fulfilment - giving love and bestowing eternal blessing of peace and happiness. DURGA - Goddess of Shakti - who takes power from Shiva and removes all weaknesses (durgunn) within the self, and also helps to remove weaknesses of others. KALI - Goddess of Fearlessness - who is fearless and courageous and destroys all negativity, evil and devilish personality traits. GAYATRI - Goddess of Auspicious Omens - Mama gave importance to the elevated versions spoken by Shiv Baba and used each version as a mantra and this is why there is importance of Gayatri mantra, which works like magic to remove all bad omens. VAISHNAV - Goddess of Purity - who radiates light of purity and empowers all to become divine through pure vision, pure thoughts, pure words and deeds. UMA - Goddess of Enthusiasm - who brings hope, zeal and enthusiasm (umang/utsaha). SANTOSHI - Goddess of Contentment – The one who brings a feeling of deep contentment. LAXMI - Goddess of Wealth – The one who bestows upon souls the unlimited Wealth of spiritual knowledge and virtues. Mamma's personality for very powerful. Mamma would look at you and not saying a word, you will understand. Such a spiritual stage was achieved. There was magical force in her words. Mamma's words had changed lives and inspired to become great. Mamma became right hand in service with Prajapita Brahma baba. During services across country, Mamma's voice was recorded. Do you wish to listen her Murli? Here it is. After continuous 28 years of effort making and churning of knowledge, Mamma became complete on in June 1965 and flew to God to be his right hand in World Transformation. Brahmans yet remember the life of Mamma, her virtues, words, and actions (karma) and take inspiration. Guidance: There are 7 virtues of Soul and 8 powers (visit pages for details) #bkmurlitoday
- 1 Aug 2018 BK murli today in English
Brahma kumaris murli today in English - 01/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, become victorious by having faith in the intellect. Only on the basis of your faith can you become worthy of the kingdom of heaven. The first faith you need to have is that God has become the Teacher and is teaching you. Question: Although the Father is the Almighty Authority, why does He not do everything through inspiration? Answer: Baba says: I am the Ocean of Knowledge. I have to come to speak knowledge. If a professor were to sit at home, how would he be able to teach? I have to educate you children and make you worthy and give you the inheritance of heaven. This is why I come and take the support of a body. You children should not have the slightest doubt about this. Song: The rain of knowledge is for those who are with the Beloved. Om ShantiThe Father is called the Beloved. The Father would not shower rain of water. This is something to be understood. When someone doesn't understand anything, it is said: You have a stone intellect. Now, the Lord of Divinity is very well known. The Lord of Divinity makes you divine. Who makes you into stone? Ravan is called the lord who makes you into stone. You belong to the community of Rama. From having stone intellects you continue to become lords of divinity, numberwise. How do the king, queen and subjects all become those with divine intellects? There must definitely be someone who makes them into those with divine intellects. However, some will go into the sun dynasty, some into the moon dynasty, some will become maids and servants and some will become wealthy subjects; it all depends on effort. It is surely the Supreme Father, the Supreme Soul, who is called the Lord of Divinity. No human being is called the Ocean of Knowledge. This praise is only of the incorporeal Father. He is the Ocean of Knowledge and He therefore definitely needs a body to speak the knowledge. A soul definitely needs a body to perform actions according to the sanskars that he carries. The Father is the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, and He is praised a great deal. The Father of all is incorporeal; He too is just a soul. The soul says through these organs: These are my children. The Father has explained that human beings feed a brahmin priest. Achcha, they invite that soul to come into the brahmin priest and they ask that soul questions. Even if they don't ask questions, they at least feed the brahmin. When someone's husband has died, his widow would say: I am feeding the departed soul of my husband. Achcha. Your husband has died, so whom are you going to call? The soul or the body? It is a matter of understanding that you would definitely call the soul; the body is no more. They feed the brahmin priest, that is, the departed soul enters the brahmin and eats the food. What is the proof that that dead person's soul comes? He definitely comes. The soul comes and speaks. When you ask that soul where a particular thing has been placed, the soul tells you. Therefore, she definitely believes that she is feeding the soul of her husband and that she is bowing down to her husband. She doesn’t see the brahmin at that time. It is as though she sees the name and form of her husband and bows down to him. That name and form (of the husband) has been burnt, but she still remembers that body. Souls enter brahmins. It can be felt that another soul has entered. The soul has come and so they definitely have to have that faith. It has been explained to you children that the Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. He doesn't have a body of His own, so how can He give the inheritance? Surely this is why He has to take the support of a body. First of all, there definitely has to be the faith that there is the Supreme Father, the Supreme Soul, and that He has come to give the inheritance through this one. He would not do that through inspiration. He has to come and teach you. He is the Ocean of Knowledge. These matters have to be understood. Those who don't have the future elevated reward in their fortune won't be able to understand. This one's soul says: I am not the Ocean of Knowledge. That Supreme Father, the Supreme Soul, says: I am the Ocean of Knowledge, but how could I, the incorporeal One, sit up above and teach through inspiration? Education never takes place in that way. If a professor were to sit at home, would he be able to teach through inspiration? He would definitely have to go to the school. The Supreme Father, the Supreme Soul, too, would not teach you while sitting at home. Pictures can't be explained through inspiration. Shiv Baba has had these pictures made. He Himself then comes and says: I have had these pictures made. This one (Brahma) didn't even know this. I had them made by giving divine visions to the children. The Father is Karankaravanhar. First of all, the Father explains: I am the Father of you souls. How else would you children receive the inheritance? There definitely are temples. There is also the temple to that One's soul. All the rest are temples to living beings (embodied souls) because living beings come into birth and death, whereas God doesn't. Therefore, He has only been shown as incorporeal. The Father says: I teach you Raja Yoga. This Baba also says: I too am studying. Now, there is no question of inspiration or power in this. If someone says that there is some power, how could he receive the inheritance? That Father says: I teach you Raja Yoga. If God speaks, He surely has to enter a body. It isn't that this one has some power in him. Here, it is a question of studying. I am your Father and I also have to become your Teacher. How could I inspire everyone? I would then have to teach everyone in the same way. However, a kingdom is being established. Some have to become maids and servants and others have to become subjects. If any of you want to ask, you can ask Baba to what extent you have become worthy and whether you will become the sun or moon dynasty or maids and servants. What status would I claim if I were to shed my body at this time? If you come and study with Baba, Baba can tell you that, according to how you study. Would a student in a school ask his teacher: Masterji, with how many marks will I pass? The master would tell you approximately: You have not studied fully and so how can you claim many marks? You yourself can understand if you are not truly studying fully. Each one's heart would tell the self. The unlimited Father can also tell you. To some, Baba would say: You are a very good flower. You can come in this number in the rosary of victory, according to the present time. This is because, while moving along, some also fall. Many of Baba’s children are no longer here today because they didn't follow shrimat and are now influenced by lust and body consciousness. Some are influenced by greed or attachment. Maya is such that she even makes you steal. Maya makes you do all of that. It is said: One who steals a straw can also steal a hundred thousand. Some have bad habits. Those who have the habit of lust would run away from here. They wouldn’t be able to remain here. Some would even steal under the influence of greed. Maya makes them steal. Maya enters them. They don't let go of the first number body consciousness. Baba says: Have the faith that you are a soul. Souls are immortal and bodies are mortal. Become soul conscious. Some become soul conscious in two to three months and some don't become that in even 25 years. This one course is very long and it continues for 50 to 60 years. If you don't know the course of the study and the teacher who teaches you, what would you study? By knowing this Baba, you can also know Shiv Baba, the One to whom you have to connect your intellects in yoga. We have to become the masters of the world, and it wouldn't be a human being who makes us that. Until you have faith, you haven't understood anything. Even some of those who have been here for 20 to 25 years don't have full faith; they continue to fluctuate. One minute, they have faith and the next minute, they have doubt. Baba explains: You speak of God, the Father, and so you souls are His children. He is your Father. Everyone should write: Yes, He is our one and only God, the Father. You received your inheritance of the kingdom of heaven from the Father and He would therefore have definitely taught you Raja Yoga. Only the Father would teach you that. Until someone has firm faith in the Father, you can understand that that one is not worthy of heaven. They don't know the Father, so how could they receive the inheritance? The Father comes to give the inheritance, but some don’t take it because it is not in their fortune. Those whose intellects have faith become victorious whereas those whose intellects have doubt are led to destruction. First of all, know the Father. The incorporeal Father is the Supreme Father, the Supreme Soul. He comes and teaches you. You receive the inheritance from Him. He has to teach you Raja Yoga. There is no question of inspiration in this. It is impossible that a teacher would teach you from his home. Baba says: I come. There is also a temple built to Me. The incorporeal One cannot do anything alone and this is why He has to take a body. Otherwise, how would I teach you the knowledge of the world cycle that I have? I definitely have to enter a body. The number of children continues to grow; they continue to bring others. The sapling of those who belong to the deity religion will be planted. The sapling is planted of those who come and become Brahmins. The Father of Brahmins is Brahma and the Father of Brahma is Shiv Baba. So, there is the spiritual Father and also the physical father. You are the spiritual children of Shiv Baba and the Brahma soul is also a child of Shiv Baba. Then he is also the father of physical Brahmins. It is through him that the Brahma Kumars and Kumaris emerge. You are the children of Brahma and the grandchildren of Shiv Baba. You receive the inheritance from Him. This too is something to be understood. If any child asks Baba what status he would claim, Baba would tell him. Some bring new ones, don't even ask! Sometimes, the arrow strikes the target the first time they meet. Children write very good letters: Baba, So-and-so related such good things that I had firm faith that You have now come; I will definitely claim my full inheritance from You. When children who have never even met Baba write such letters, it is understood that they are long-lost and now-found children, that that one is a good sapling and able to understand quickly. When the Shrinagar centre opened, the new children there wrote letters: Now, there is the attraction to meet You, but there are these bondages. They even write their reasons. Only those who belong to the deity religion will come. Only those who are to go to the land of Shri Krishna will come on to the land of Brahma, not the land of brahm (brahmpuri). Some people write, "Brahm Kumaris", but that is wrong. Brahm is the element of light. How could there be a kumari of the element of light? Prajapita Brahma is well known. The Father of Humanity would exist here, would he not? The children of Prajapita Brahma, the Brahma Kumars and Kumaris, means the Shaktis of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. You receive power from Shiv Baba, not from the soul of this one (Brahma). Therefore, you have to remember Shiv Baba. It is by doing this that we will become pure from impure. At this time, all are sinful souls. Everyone takes birth through vice. Some understand these things very quickly whereas others don't understand these things at all. This knowledge is so wonderful. God has to come to give you the fruit of your devotion. He teaches you children. He says: I am your Father, Teacher and also the Satguru. I have come to take all of you back home. Therefore, He is also called the Liberator. He will not liberate anyone through inspiration. Growth takes place in schools too. However, if you remember the old world, you forget the Father. By gradually forgetting, you will eventually go back to the old world. Then, nothing of knowledge will remain. The deal will be cancelled. That’s it! They take back whatever they gave to the Father; the intellects become completely locked. The Father is the Intellect of the Wise. He explains to you so clearly. You can tell from the eyes and features of those listening to what extent they are imbibing this and whether they will be able to claim a high status or not. Baba quickly understands whether they will understand or not and whether their intellects’ yoga is wandering somewhere. Their pulses are felt. Someone who feels the pulse of others has to be clever. The destination is very high. You will quickly understand whether someone will be able to be uplifted or not; it is numberwise. Although this one (Brahma) is Brahmaputra (big river), he will not praise himself. Saraswati is also clever. In those studies, the examinations take place here. The examination of this study will not take place now. Continue to drink the nectar of knowledge for as long as you live. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Don’t be influenced by any old habits and thereby perform wrong actions. Renounce the habit of body consciousness and complete the course of remaining soul conscious. 2. Never fluctuate in your faith. For as long as you live, you have to study and teach others. Blessing: May you play an all-round part, the same as the Father, with your flying stage as a ruler of the globe. Just as the Father is an all-round actor - He can be the Friend and also the Father, in the same way, those with a flying stage will be able to play their parts perfectly any time there is a need for any type of service. This is called being an all-round flying bird. They would be free from bondage to such an extent that they would go to wherever there is service to be done. They will be successful in every type of service. They are called rulers of the globe, all-round actors. Slogan: Be faithful and keep the specialities of one another in your awareness and the gathering will then be united. #brahmakumari #Murli #english #bkmurlitoday
- BK murli today in Hindi 13 Aug 2018 - Aaj ki Murli
Brahma kumaris murli today Hindi -Aaj ki Murli -BapDada -Madhuban -13-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे - यह संगमयुग है ब्राह्मणों की पुरी, इसमें तुम ब्रह्मा के बच्चे बने हो, तुम्हें बेहद के बाप का वर्सा लेना है और सभी को दिलाना है" प्रश्नः- इस ज्ञान को अच्छी रीति समझने के लिए किस प्रकार की बुद्धि चाहिए? उत्तर:- व्यापारी बुद्धि वाले ही इस ज्ञान को अच्छी रीति समझेंगे। यह है बेहद का व्यापार। बाप बच्चों को भिन्न-भिन्न कमाई की युक्तियां बताते रहते हैं। बच्चों का काम है मेहनत करना। ऐसी युक्ति निकालनी चाहिए जिससे स्वयं की भी कमाई जमा होती रहे और सर्व का भी कल्याण हो। बाप की याद और सेवा ही कमाई का साधन है। गीत:- रात के राही थक मत जाना....... ओम् शान्ति।पारलौकिक बाप बच्चों के प्रति समझा रहे हैं, कहते हैं कि बच्चे मुझ अपने पारलौकिक परमपिता परमात्मा को भूलना नहीं है। गाया भी जाता है गीता का भगवान्। बाइबिल का भगवान् वा कुरान का भगवान् कभी कोई नहीं कहेंगे। कोई भी धर्म स्थापन करने वाले ऐसे नहीं कहेंगे कि हे बच्चे अब मुझ पारलौकिक बाप को याद करो। ऐसे कोई किसको कह नहीं सकते। बच्चा पैदा होता है, बाप को जानते हैं। बाप को ही याद करते रहेंगे क्योंकि वारिस है। अब पारलौकिक बाप कहते हैं - हे मेरे सिकीलधे बच्चे, अब तुमको मेरे पास आना है। मैं तुम बच्चों को परमधाम निर्वाणधाम ले चलने लिए आया हूँ। तुम भक्त मुझ भगवान् को याद करते थे। अब मैं कहता हूँ तुम मुझे निरन्तर याद करो। मैं तुमको सुखधाम ले चलता हूँ। अपने दिल अन्दर देखो - तुमने आधाकल्प कितना दु:ख उठाया है! पहले से ही इतना दु:ख नहीं मिलता है। पीछे दु:ख वृद्धि को पाता है। अब पारलौकिक बाप कहते हैं मुझे याद करो। सभी धर्म वालों को कहते हैं - हे मेरे बच्चे, तुम अपने को भाई-भाई समझते आये हो। अब तुम आत्माओं का जो पारलौकिक बाप है, जिसको सब जीव आत्मायें दु:ख में याद करती आई हैं - वह अब ब्रह्मा मुख कमल द्वारा तुम बच्चों को समझा रहे हैं। समझानी दी जाती है - ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों को। प्रजापिता ब्रह्मा को सिर्फ कुमारियां ही नहीं थी। कुमार-कुमारियां दोनों थे। भाई-बहिन थे - ब्रह्माकुमार-कुमारियां। एक ही बाप के बच्चे एक ही दादे के पोत्रे पोत्रियां ठहरे। तुम बच्चों को सम्मुख समझाया जाता है। तुम सम्मुख सुनते हो, समझते हो कि हम निराकार शिवबाबा के सब बच्चे हैं। बरोबर हम ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से स्वर्ग की बादशाही पाने के लिए राजयोग सीख रहे हैं। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख द्वारा जो तुमको समझाते हैं वह फिर औरों को समझाना है। जो लौकिक भाई-बहन हैं, उन्हों को समझाना है। तुम हो गये पारलौकिक। पारलौकिक बाप से तुम वर्सा लेते हो। तुम कहलायेंगे पारलौकिक भाई-बहन। वह हुए लौकिक भाई-बहन।तो बाप समझाते हैं - बच्चे, हूबहू 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक तुम बुद्धि का योग लगाओ तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। पाप भस्म हो जायेंगे। बाप की याद को ही योग-अग्नि कहा जाता है। इस सर्व-शक्तिमान बाप की याद में रहने से तुमको शक्ति मिलेगी। वह एक ही निराकार बाप है, इस ब्रह्मा मुख से सुनाते हैं। जरूर रथ तो चाहिए ना, जिस रथ के ऊपर उनकी सवारी हो। यह रथ है, इसमें परमपिता परमात्मा सवार हो बच्चों को यह सिखलाते हैं। इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की समझानी देते हैं, जिससे तुम भविष्य में चक्रवर्ती राजा-रानी बन जायेंगे और निरन्तर याद करने से विकर्माजीत बन जायेंगे, पावन पुण्य आत्मायें बन जायेंगे। बाबा जो स्वर्ग स्थापन करते हैं उस स्वर्ग के तुम चक्रवर्ती महाराजा-महारानी बनेंगे। सो भी 21 जन्मों के लिए और भारत में जो भी उत्सव होते हैं - शिव जयन्ती, होली, राखी, जन्माष्टमी, दीवाली आदि इन सब उत्सवों का महत्व और हरेक की बायोग्राफी हम आपको सुनाते हैं। आओ बहनों-भाइयों, हम आपको पारलौकिक बाप का परिचय देवें। परिचय ले सहज राजयोग सीख तुम विश्व के मालिक बनेंगे। वर्ल्ड ऑलमाइटी, पवित्रता-सुख-शान्तिमय अटल-अखण्ड राज्य करेंगे। यह किसको भी समझाना बहुत सहज है। इस रीति लिखना भी है। बाप के समझाये हुए यह राज़ हम तुमको समझायेंगे। बाप के बच्चे बनेंगे तब तो वर्सा मिलेगा ना। तुम भी बेहद के बाप से बेहद का वर्सा आकर लो। जन्म-जन्म तो हद का वर्सा लेते आये हो। वह है दु:ख का वर्सा क्योंकि यह है ही रावण राज्य। राम के राज्य में सदा सुख था। फिर माया रावण के राज्य में तुम दु:खी हुए हो। यह तो तुम कोई को भी समझा सकते हो। पब्लिक भाषण में भी तुम समझा सकते हो। ऊंच ते ऊंच है भगवान्। फिर हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, फिर उन्हों की महिमा। गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। तो जरूर वह स्थूलवतन में होगा। ब्राह्मण हैं ब्रह्मा की सन्तान। उनको ही प्रजापिता ब्रह्मा कहा जाता है। पहले-पहले ब्राह्मण वर्ण चाहिए। ऊंच ते ऊंच है ब्राह्मण वर्ण। कौन स्थापन करते हैं? परमपिता परमात्मा। पिता के सब बच्चे ठहरे। ब्रह्मा द्वारा इन ब्रह्माकुमार-कुमारियों को बैठ पढ़ाते हैं। यह संगमयुग है ब्राह्मणों की पुरी। फिर रुद्र पुरी में जाकर विष्णुपुरी में आते हैं। पहले-पहले रुद्र माला में वह आयेंगे जो निरन्तर याद करेंगे। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजायें बनते हैं ना। तो इस समय परमपिता परमात्मा द्वारा राजयोग सीखने से राजाई पद पाते हैं। बाप कहते हैं कि निरन्तर मुझ बाप को याद करो, बुद्धि का योग मेरे साथ लगाओ। यह है रूहानी यात्रा। जन्म-जन्म से तो जिस्मानी यात्रायें करते आये, अब बाप आकर रूहानी यात्रा सिखलाते हैं। कहते हैं मुझ बाप को और स्वीट होम को याद करो, जहाँ से तुम आये हो पार्ट बजाने। तुम गोरे थे, विश्व पर राज्य करते थे फिर तुम काम चिता पर बैठ काले हो गये हो, सुन्दर से श्याम बन गये हो। भारत बड़ा सुन्दर था। नाम ही था स्वर्ग, अब तो नर्क है ना। तुम ही पूज्य से फिर पुजारी बनते हो तो ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव फिर ब्रह्मा विष्णु, शंकर, इन द्वारा बाप कार्य करवाते हैं। इन्हों को निमित्त बनाया है। करनकरावनहार है ना। ब्रह्मा द्वारा भारत को स्वर्ग बनाने के लिए राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं कि यह राजयोग सिखलाकर पूरा करुँगा तो फिर विनाश होगा। फिर जो नई दुनिया स्थापन करते हैं उनमें जाकर राज्य करेंगे फिर जितना जो पुरुषार्थ करे। सारा पुरुषार्थ पर मदार है। कहते हैं गंगा पतित-पावनी फिर परमात्मा को पुकारते क्यों हो - हे पतित पावन आओ? तो पुजारी भक्तों को भक्ति का फल मिलना चाहिए ना। स्वर्ग में तुमको जीवन्मुक्ति का फल मिलता है और सबको शान्ति का फल मिल जाता है। स्वर्ग में सुख-शान्ति दोनों ही थे, सब सुखी थे - जिन्होंने राजयोग सीखा। विकर्म विनाश तो करना ही है, हिसाब-किताब चुक्तू तो होना ही है। फिर नयेसिर पार्ट बजाना है। सबका हिसाब-किताब चुक्तू कराए पावन बनाए बाप साथ में ले जाते हैं। यह सब राज़ समझने के हैं।मनुष्य भगवान् को याद करते हैं तो जरूर भगवान् को सृष्टि पर आना पड़े। कहते हैं कि सृष्टि पर आकर भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ। मुक्ति वा जीवनमुक्ति, शान्ति वा सुख देता हूँ। दुनिया में सुख, शान्ति वा सम्पत्ति ही मांगते हैं। मनुष्य तो सम्पत्ति के लिए ही पुरुषार्थ करते हैं कि धनवान बनें। समझते हैं सम्पत्ति में ही सुख होगा। परन्तु भल किसको कितनी भी सम्पत्ति है, राज्य तो फिर भी माया का है ना। पतित दुनिया है ना, तो पाप जरूर होंगे। सम्पत्ति के लिए बहुत पाप करते हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। इसमें कोई भी पुण्य आत्मा होती नहीं। पुण्य आत्माओं की दुनिया में फिर कोई पाप आत्मा नहीं होती। यथा राजा रानी तथा प्रजा पुण्य आत्मा होते हैं। इन पावन देवी-देवताओं को पतित दुनिया में राजा लोग भी पूजते हैं क्योंकि समझते हैं - यह सर्वगुण सम्पन्न हैं। हमारे में कोई गुण नाहीं, आपेही तरस परोई..... फिर यह कहते हम ही भगवान् हैं। पतितों को पावन बनाने वाला तो एक ही बाप है। पतित-पावन कहने से बुद्धि चली जानी चाहिए निराकार भगवान् की तरफ। निराकार उपासी भी होते हैं ना। तो वह निराकार बाप है ऊंच ते ऊंच, जब तक उनका पूरा परिचय नहीं तो उपासना क्या करेंगे? भल कहते हैं परमपिता परमात्मा शिव है। निराकार उपासी हैं ना। निराकार को याद करने वाले। परन्तु वह है कौन? पूरा परिचय चाहिए ना। निराकार को क्यों याद करते हैं, उससे क्या मिलेगा? क्या निराकारी दुनिया में जायेंगे? आत्माओं को तो निराकारी दुनिया में जाने के रास्ते का पता नहीं है। भल सब याद करते हैं परन्तु बिगर परिचय। इस प्रकार याद करने से तो कोई पावन नहीं बनेंगे। यहाँ तो निराकार खुद साकार में आते हैं। मनुष्य तो निराकारी दुनिया में जाने के लिए कितने शास्त्र आदि पढ़ते हैं! परन्तु कोई जा नहीं सकते। रास्ते का भी पता नहीं है। जिस्मानी यात्रा के पण्डे लोग रास्ता जानते हैं तब तो ले जाते हैं ना। यहाँ इस रास्ते को कोई जानता नहीं, जो समझाये। इसके लिए कहते - बेअन्त है, तो फिर याद कैसे करें? कुछ भी समझते नहीं। कोई ने कहा बेअन्त है, फिर कोई ने कहा निराकार है, तो फिर निराकार उपासी बने। आजकल तो फिर कह देते कि हम वही हैं। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान मत होती जाती है। जो आता वह कहते रहते हैं। बाप समझाते हैं ऊंच ते ऊंच बाप गाया जाता है। सर्वव्यापी कहने से तो सब ऊंच ते ऊंच हो जाते हैं। इतने पतित-दु:खी वह फिर ऊंच ते ऊंच कैसे होंगे। एक तरफ कहते नाम रूप से न्यारा है फिर उनको पत्थर भित्तर में लगाना इसको ही धर्म ग्लानी कहा जाता है। अभी फिर कहते हम ही परमात्मा हैं। अभी जो कुछ पास्ट हुआ, सब ड्रामा है। वह फिर भी होगा। भूल पिछाड़ी भूल, ग्लानी पिछाड़ी ग्लानि करते-करते भारत ऐसा पतित हो गया है। बाप का परिचय तो सबको मिलना है। तुम्हारा प्रभाव निकलेगा इतने ढेर ब्रह्माकुमार कुमारियों द्वारा ज्ञान मिलता है। यह तो बरोबर परमपिता परमात्मा की ही बात है। सबसे ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा, उनकी महिमा बहुत है, पारावार नहीं। अब बाप बैठ अपना परिचय देते हैं - मैं क्या करता हूँ? मैं आकर सभी पाप आत्माओं को पुण्य आत्मा बनाता हूँ, राजयोग सिखलाता हूँ। गाया भी जाता है ईश्वर की गत-मत न्यारी। सो तो जरूर जब यहाँ आयेंगे तब तो मत देंगे ना। क्राइस्ट की सोल आई, क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने। बाप की मत तो सबसे न्यारी है। यह बाप तो है सबसे ऊंच। भारत में मनुष्य मात्र में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवी-देवतायें ही डबल सिरताज बने हैं। बाप की है श्रीमत। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ जो और कोई सिखला न सके। लिखा हुआ है भगवानुवाच। वह है ही हेविनली गॉड फादर जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं, स्वर्ग के लिए तुम ब्राह्मणों को राजयोग सिखलाते हैं। ब्राह्मण वर्ण सबसे ऊंच हो गया। बाप सर्विस की युक्तियां बहुत बतलाते हैं। भल कोई गालियां भी दे, तुम चित्र रख दो, उनमें लिखा होगा कि इन वर्णों में भारत ही आता है। अब है कलियुग, शूद्र वर्ण। फिर तुम बाप द्वारा ब्राह्मण बने हो। तुम्हारा नाम है - ब्रह्माकुमार-कुमारी। तुम्हारे चित्र ऐसे होने चाहिए जो मनुष्यों को वन्डर लगे कि ऐसे चित्र तो कहीं नहीं देखे। यह ज्ञान व्यापारी बुद्धि वाले अच्छी रीति समझ सकते हैं। यह व्यापार भी अच्छा है। तो श्रीमत देने वाला भी सर्वोत्तम है। परन्तु बहुत बच्चे मेहनत नहीं करते। घर में सोये पड़े रहते तो बाबा खड़ा करते हैं। तुम एक चित्र बनायेंगे, इससे हजारों का कल्याण होगा, सब तुम्हारी वाह-वाह करेंगे। वन्दे मातरम् कहेंगे। अच्छा!मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) रुद्र माला में पहला नम्बर आने के लिए निरन्तर बाप की याद में रहना है। बाप और स्वीट होम की याद से स्वयं को पावन बनाना है। 2 रूहानी पण्डा बन सबको सच्ची यात्रा करानी है। एक बाप की श्रीमत से स्वयं को डबल सिरताज बनाना है। वरदान:- अमृतवेले से लेकर रात तक मर्यादापूर्वक चलने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव l संगमयुग की मर्यादायें ही पुरुषोत्तम बनाती हैं इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। तमो-गुणी वायुमण्डल, वायब्रेशन से बचने का सहज साधन यह मर्यादायें हैं। मर्यादाओं के अन्दर रहने वाले मेहनत से बच जाते हैं। हर कदम के लिए बापदादा द्वारा मर्यादायें मिली हुई हैं, उसी प्रमाण कदम उठाने से स्वत: ही मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाते हैं। तो अमृतवेले से रात तक मर्यादापूर्वक जीवन हो तब कहेंगे पुरूषोत्तम अर्थात् साधारण पुरुषों से उत्तम आत्मायें। स्लोगन:- जो किसी भी बात में स्वयं को मोल्ड कर लेते हैं वही सर्व की दुआओं के पात्र बनते हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- BK murli today in Hindi 21 June 2018 - aaj ki murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - 11/06/2018 - BapDada - Madhuban - 21-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “ मीठे बच्चे-ईश्वरीय बचपन को भूल ऊंचे ते ऊंचा वर्सा गँवा नहीं देना, फुल पास होंगे तो सूर्यवंशी घराने में राज्य मिलेगा” प्रश्न: सतयुग और त्रेता में किसी भी आत्मा को अपने कर्म नहीं कूटने पड़ते-क्यों? उत्तर: क्योंकि सतयुग-त्रेता में जो भी आत्मायें आती हैं वह संगम की ही प्रालब्ध भोगती हैं, उन्होंने संगम पर बाप द्वारा ऐसे कर्म सीखे हैं तो 21 जन्म तक उन्हें कोई कर्म कूटना न पड़े। अभी बाप ऐसे कर्म सिखलाते हैं जिससे आत्मा कर्मातीत बन जाती है। फिर किसी भी कर्म का फल दु:ख नहीं भोगना पड़ता है। गीत: बचपन के दिन भुला न देना... ओम् शान्ति।बच्चों ने मीठा-मीठा गीत सुना। बेहद का बाप बच्चों प्रति समझा रहे हैं। परमपिता परमात्मा उसको ही कहा जाता है जो श्री श्री यानी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है। कहते भी हैं शिव भगवानुवाच अथवा रूद्र भगवानुवाच। रूद्र परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। तो परमपिता परमात्मा इस शरीर द्वारा अपने बच्चों को समझा रहे हैं। ऐसे और कोई मनुष्य, साधू, सन्त आदि नहीं कहेंगे कि तुम आत्मा हो। तुम्हारा परमपिता इस मुख कमल से बोल रहा है। कहते हैं गऊमुख। अब पानी की तो कोई बात नहीं। बाप है ज्ञान का सागर। श्री श्री 108 रूद्र माला वा शिव माला है ना। तो पहले-पहले यह पक्का निश्चय करो कि बाबा हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। आत्मा ही पढ़ती है, आरगन्स द्वारा। आत्मा खुद कहती है-मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल..... सतयुग में पुनर्जन्म लेता हूँ तो नाम-रूप बदल जाता है। यह आत्मा बोलती है। सतयुग में हूँ तो पुनर्जन्म भी सतयुग में होता है अथवा बाप समझाते हैं तुम स्वर्ग में हो तो पुनर्जन्म वहाँ लेते हो फिर नाम-रूप बदलता जाता है। बाप निराकार शिवबाबा इस रथ में आकर समझा रहे हैं-बच्चे, अब तुम हमारे बच्चे बने हो। तुमको बहुत खुशी चढ़ी हुई है। हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं इस ब्रह्मा द्वारा। आत्मा कहती है-मैं इस शरीर द्वारा बैरिस्टरी अथवा डाक्टरी का पार्ट बजाती हूँ। हम आत्मा अशरीरी थी फिर गर्भ में आकर शरीर धारण किया है। बाप कहते हैं मैं तो गर्भ में नहीं आता हूँ। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। नहीं, तुम लेते हो। यह (दादा) लेता है। इस आत्मा ने 84 जन्म पूरे लिए हैं। यह आत्मा अपने जन्मों को नहीं जानती थी। अब 84 जन्मों को जाना है। आत्मा ही कहती है-मैंने सूर्यवंशी घराने में जन्म लिया। फिर पुनर्जन्म लेते आये। फिर चन्द्रवंशी घराने में जन्म लिया। फिर पुनर्जन्म लेते-लेते सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग में आये। आत्मा कहती है द्वापर में हमने बाप को बहुत याद किया। परमपिता परमात्मा के लिंग रूप की पूजा भी की। मैं आत्मा सतयुग में मालिक थी, वहाँ किसकी पूजा नहीं करती थी। स्वर्ग में भक्ति होती नहीं। आधा-कल्प भक्ति की। अब फिर बाप के सम्मुख आये हैं। अभी तुम सब निराकार बाप के सम्मुख आये हो साकार द्वारा। बाप कहते हैं यह ईश्वरीय जन्म भूल नहीं जाना। कहते हैं-बाबा, यह तो बड़ा मुश्किल है। अरे, मुश्किल क्या बात है। तुम आत्माओं का बाप मैं हूँ। मैं आया हूँ तुमको पतित से पावन बनाने। तुम स्वर्ग की बादशाही करने लिए पढ़ते हो। ज्ञान के संस्कार मुझ परमपिता परमात्मा में हैं इसलिए मुझे ज्ञान सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप कहते हैं। खुद कहते हैं-बरोबर, मैं रचयिता हूँ। मैं परमधाम में रहता हूँ। मैं यहाँ एक ही बार आता हूँ जबकि मुझे पढ़ाना होता है। पतित सृष्टि को आकर पावन बनाता हूँ। जरूर पतित ही याद करेंगे। सतयुग में पावन तो याद नहीं करेंगे। ऐसे तो कोई नहीं कहेंगे कि आकर हम आत्माओं को पतित बनाओ। नहीं, पतित माया ने बनाया है, तब कहते हैं पावन बनाओ। परन्तु उन्हों को यह पता नहीं है कि मैं कब आता हूँ। मैं आता ही हूँ संगम पर। और कोई समय नहीं आता हूँ। अभी आया हूँ। तुम मीठे बच्चों ने हमारी गोद ली है। जानते हो बाबा फिर से प्राचीन राजयोग सिखलाते हैं, जिससे भारत पावन बनता है। यह है निराकार, ईश्वर की पाठशाला। निराकार बाबा कहते हैं-मैं इस तन में आता हूँ। यह ब्रह्मा तुम्हारी बड़ी मम्मा है। वह मम्मा सरस्वती जगत अम्बा है - ब्रह्मा की बेटी। बड़ी मम्मा पालना तो नहीं कर सकती, इसलिए वह जगदम्बा मुकरर रखी है। इसके (ब्रह्मा के) शरीर को जगत अम्बा नहीं कहेंगे। यह मात-पिता है। यह ब्रह्मा माता भी है। वर्सा माता से नहीं मिल सकता। वर्सा फिर भी बाप से मिलेगा। इस ब्रह्मा माता के तुम मुख वंशावली हो। बाप कहते हैं-बच्चे, मेरा बनकर तुम स्वर्ग की बादशाही लेने लिए पुरूषार्थ करते-करते फिर कहाँ माया की युद्ध में हार नहीं जाना। भाग नही जाना। यह ईश्वरीय बचपन भुलाना नहीं। अगर भुलाया तो रोना पड़ेगा। तो बी0के0 सरस्वती जिसको जगत अम्बा कहते हैं-वह पालना करने निमित्त बनी हुई है। यह (ब्रह्मा) पालना कैसे कर सके। कलष पहले-पहले इनको मिलता है। पहले इनके कान सुनते हैं, फिर जगदम्बा है सम्भालने के लिए। अब बाप कहते हैं मैं संगम युग पर आया हूँ, तुमको वापिस ले जाने। जैसे धर्माऊ मास, जिसको पुरूषोत्तम मास कहते हैं ना। वैसे यह भी पुरूषोत्तम युग है। जहाँ उत्तम से उत्तम पुरूष बनना होता है। पुरूषोत्तम माना उत्तम ते उत्तम पुरूष कौन है? यह श्री लक्ष्मी-नारायण, यह नर-नारी ऊंच ते ऊंच कैसे और किस द्वारा बने? बाप कहते हैं मेरे द्वारा। मेरा नाम भी है श्री श्री श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ। ऐसा श्री नारायण जैसा मनुष्य मैं बनाता हूँ। पतितों को पावन बनाता हूँ। जिससे फिर ऐसे लक्ष्मी-नारायण पुरूषोत्तम और पुरूषोत्तमनी बनते हैं। बाप कहते हैं-बच्चे, देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं सबको भूलते जाओ। मुझ एक के साथ योग लगाओ। तुम कहते हो हम बाप के बच्चे बने हैं। बाप के स्थापना किये हुए स्वर्ग के हम मालिक बनेंगे। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। यह है आत्मा की अथवा बुद्धि की यात्रा। धारणा सब आत्मा को करनी है। शरीर तो जड़ है। आत्मा की प्रवेशता से यह चैतन्य बनता है। तो बाप समझाते हैं-लाडले बच्चे, यह याद की मंजिल बड़ी लम्बी है। तीर्थों पर तो मनुष्य चक्र लगाकर लौट आते हैं। तीर्थों पर तो कभी विकार में नहीं जाते हैं। क्रोध, लोभ आदि हो जाये, परन्तु पवित्र जरूर रहेंगे। फिर घर में लौट आते हैं तो अपवित्र बन पड़ते हैं। इस समय सबकी आत्मा भी झूठी तो शरीर भी झूठे हैं। लक्ष्मी-नारायण की राजधानी से लेकर जो भी आत्मायें आती गई हैं इस समय सब पतित हैं। सतयुग में बेहद का सुख, शान्ति, पवित्रता रहती है। कलियुग में तीनों नहीं है। घर-घर में दु:ख-अशान्ति है। कोई-कोई घर में तो इतनी अशान्ति होती है जैसे नर्क। आपस में बहुत लड़ते-झगड़ते रहते है। तो बाप कहते हैं-यह बचपन भुलाना न्हीं। अगर भूले तो ऊंच ते ऊंच वर्सा गँवा देंगे। भुला दिया, फारकती दे दी तो अधम गति को पायेंगे। अगर श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ श्री लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। सीता-राम त्रेता में आ जाते हैं। दो कला कम हो गई इसलिए उनको क्षत्रियपन की निशानी दे दी है। ऐसे नहीं, वहाँ कोई राम-रावण की लड़ाई लगी। जो माया पर जीत पहनते हैं वह देवता वर्ण में जाते हैं और जो माया पर जीत नहीं पहन सकेंगे, नापास होंगे उनको क्षत्रिय कहेंगे। वह राम-सीता के घराने में चले जायेंगे। पूरे मार्क्स हैं 100, सूर्यवंशी नम्बरवन जो गद्दी पर बैठेंगे। थोड़े कम मार्क्स होंगे तो सेकेण्ड नम्बर,33 प्रतिशत मार्क्स के नीचे आ जाते हैं तो राज्य पीछे मिलता है। सूर्यवंशी का पूरा हो फिर चन्द्रवंशी का चलता है। सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी बन जाते हैं। सूर्यवंशी राजधानी पास्ट हो गई। ड्रामा को भी समझना है। सतयुग के बाद त्रेता, सतोप्रधान से सतो हो जाते हैं। खाद पड़ती जाती है। पहले गोल्डन फिर सिलवर, कॉपर..... अब तुम्हारी आत्मा में खाद पड़ी हुई है। आत्मा की ज्योति उझाई हुई है। पत्थर बुद्धि बन पड़े हैं, बाप फिर पारस बुद्धि बनाते हैं। कहते हैं-हे आत्मायें, चलते-फिरते कोई भी कार्य करते बाप को याद करो। आठ घण्टा तो पाण्डव गवर्मेन्ट को मदद करो। अभी तुम आसुरी कुल से ईश्वरीय कुल में आये हो फिर अगर आसुरी कुल में गये अथवा उनको याद किया तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। मेहनत सारी इसमें है। नहीं तो अन्त में बहुत रोना पछताना पड़ेगा। पापों का बोझा रह जाता है तो फिर तुम्हारे लिए ट्रिब्युनल बैठती है। साक्षात्कार कराते हैं-तुमने फलाने जन्म में यह किया। काशी कलवट में भी साक्षात्कार कराके सजा देते हैं। यहाँ भी साक्षात्कार कराए धर्मराज कहेंगे-देखो, बाप तुमको इस ब्रह्मा तन से पढ़ाता था, तुमको इतना सिखलाया फिर भी तुमने यह-यह पाप किये, न सिर्फ इस जन्म के परन्तु जन्म-जन्मान्तर के पापों का साक्षात्कार करायेंगे। टाइम बहुत लगता है। जैसे कि बहुत जन्म सजा खा रहा हूँ फिर बहुत पछतायेंगे, रोयेंगे। परन्तु हो क्या सकेगा? इसलिए पहले से बता देता हूँ। नाम बदनाम किया तो बहुत सजा खानी पड़ेगी इसलिए बच्चे, मुझ अपने सतगुरू के निन्दक मत बनना। नहीं तो सजायें भी खायेंगे और पद भी कम हो जायेगा। तुम्हारा सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू एक ही है। अब बाप कहते हैं यह ब्रह्मा बच्चा हमको बहुत याद करता है। ज्ञान भी धारण करते हैं। यह और मम्मा नम्बरवन पास हो फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, इनकी डिनायस्टी बनती है। जब सब पुरूषार्थ करते हैं तो हम भी मम्मा-बाबा के मिसल मेहनत कर उनके तख्त के मालिक बनें, मात-पिता को फालो करें और भविष्य तख्त नशीन बनें। यह रचयिता और रचना की नॉलेज कोई जान नहीं सकते। वह तो बेअन्त कह देते हैं-हम नहीं जानते हैं, नास्तिक हैं। न जानने के कारण ही भारतवासी अथवा सब बच्चे दु:खी हुए हैं। लड़ते-झगड़ते रहते हैं-पानी के लिए, जमीन के लिए..... कहा भी जाता है-यह पास्ट जन्मों के कर्मों का फल है। अभी बाप से तुम ऐसे कर्म सीखते हो जो तुमको 21 जन्म कभी कर्म कूटना नहीं पड़ेगा। एकदम कर्मातीत अवस्था में पहुँचा देते हैं। भगवानुवाच-हे बच्चे, मुझ बाप के अथवा मुझ साजन के बनकर फिर कभी फारकती मत देना। फारकती देने का कभी संकल्प भी नहीं आना चाहिए। वहाँ कभी स्त्री पति को डायवोर्स देने का संकल्प भी नहीं करेगी। बच्चा कभी बाप को फारकती नहीं देगा। आजकल तो बहुत देते हैं। सतयुग में कभी फारकती नहीं देते हैं क्योंकि वहाँ तुम अभी के पुरूषार्थ की प्रालब्ध भोगते हो इसलिए कोई दु:ख का अथवा फारकती का प्रश्न ही नहीं। यह याद की यात्रा है - परमपिता परमात्मा के पास जाने की रूहानी यात्रा। निराकार बाप निराकार आत्माओं से बात करते है इस मुख द्वारा। तो यह गऊ मुख हुआ ना। बड़ी माँ है। तुम हो मुख वंशावली। उनसे ज्ञान रत्न निकलते हैं। बाकी गऊ के मुख से जल कैसे निकलेगा? बाबा इस मुख द्वारा अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं। एक-एक रत्न लाखों रूपयों का है। जितना तुम धारण करेंगे.....। मुख्य है ही मन्मनाभव। यह एक रत्न ही मुख्य है। बेहद का बाप कहते हैं मुझे याद करने से मैं बेहद सुख का वर्सा देने लिए बाँधा हुआ हूँ। जब तक शरीर है मुझे याद करते रहो तो तुमको स्वर्ग की बादशाही देंगे क्योंकि तुम आज्ञाकारी, वफादार बनते हो। जितना जो याद में रहते हैं उतना दुनिया को पवित्र बनाते हैं। याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। बच्चों को माया घड़ी-घड़ी भुला देती है इसलिए खबरदार करते हैं। कभी बाप को भुला नहीं देना। मैं तुमको लेने आया हूँ। सतयुग से फिर नाटक रिपीट होगा। मैं सतयुग का मालिक नहीं बनूँगा। तुमको स्वर्ग की राजाई देता हूँ। मैं फिर आधा-कल्प वानप्रस्थ में बैठ जाऊंगा। फिर आधा-कल्प मुझे कोई याद नहीं करते। दु:ख में सभी याद करते हैं। सुख में करे न कोई..... अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) 8 घण्टा पाण्डव गवर्मेन्ट की मदद जरूर करनी है। याद में रह विश्व को पावन बनाने की सेवा करनी है। 2) कभी कोई उल्टा कर्म करके सतगुरू की निन्दा नहीं व्रानी है। मम्मा-बाबा जैसा पुरूषार्थ कर सूर्यवंशी राजाई लेनी है। वरदानः अपने पन के अधिकार की अनुभूति द्वारा अधीनता को समाप्त करने वाले सर्व अधिकारी भव l बाप को अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना। जहाँ अधिकार है वहाँ न तो स्व के प्रति अधीनता है, न सम्बन्ध-सम्पर्क में आने की अधीनता है, न प्रकृति और परिस्थितियों में आने की अधीनता है। जब इन सब प्रकारों की अधीनता समाप्त हो जाती है तब सर्व अधिकारी बन जाते। जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वही महान हैं और अधिकारी हैं। स्लोगनः अपने संस्कार वा गुणों को सर्व के साथ मिलाकर चलना - यही विशेष आत्माओं की विशेषता है। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi
- BK murli today in Hindi 17 June 2018 - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - BapDada - Madhuban - 17-06-18 प्रात: मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज 12-12-83 मधुबन एकाग्रता से सर्व शक्तियों की प्राप्ति आज सभी मिलन मनाने के एक ही शुद्ध संकल्प में स्थित हो ना! एक ही समय, एक ही संकल्प- यह एकाग्रता की शक्ति अति श्रेष्ठ है। यह संगठन की एक संकल्प के एकाग्रता की शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। जहाँ एकाग्रता की शक्ति है वहाँ सर्व शक्तियां साथ हैं इसलिए एकाग्रत् ही सहज सफलता की चाबी है। एक श्रेष्ठ आत्मा की एकाग्रता की शक्ति भी कमाल कर दिखा सकती है, तो जहाँ अनेक श्रेष्ठ आत्माओं के एकाग्रता की शक्ति संगठित रूप में है, वह क्या नहीं कर सकती। जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ श्रेष्ठता और स्पष्टता स्वत: होगी। किसी भी नवीनता की इन्वेन्शन के लिए एकाग्रता की आवश्यकता है। चाहे लौकिक दुनिया की इन्वेन्शन हो, चाहे आध्यात्मिक इन्वेन्शन हो। एकाग्रता अर्थात् एक ही संकल्प में टिक जाना। एक ही लगन में मगन हो जाना। एकाग्रता अनेक तरफ भटकाना सहज ही छुड़ा देती है। जितना समय एकाग्रता की स्थिति में स्थित होंगे उतना समय देह और देह की दुनिया सहज भूली हुई होगी क्योंकि उस समय के लिए संसार ही वह होता है, जिसमें ही मगन होते। ऐसे एकाग्रता की शक्ति के अनुभवी हो? एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना! सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो। एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरूषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है। अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो। इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अन्त में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकान्त का अनुभव करेंगे। लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी आप अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी-मूर्त बनना अति आवश्यक है। आप सभी अभी भी अपने को बहुत बिजी समझते हो लेकिन अभी फिर भी बहुत फ्रा हो। आगे चल और बिजी होते जायेंगेइसलिए ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के स्व अभ्यास, स्व-साधना अभी कर सकते हो। चलते-फिरते स्व प्रति जितना भी समय मिले अभ्यास में सफल करते जाओ। दिन-प्रतिदिन वातावरण प्रमाण एमर्जेन्सी केसेज ज्यादा आयेंगे। अभी तो आराम से दवाई कर रहे हो। फिर तो एमर्जेन्सी केसेज में समय और शक्तियां थोड़े समय में ज्यादा केसेज करने पड़ेंगे। जब चैलेन्ज करते हो कि अविनाशी निरोगी बनने की एक ही विश्व की हॉस्पिटल है तो चारों ओर के रोगी कहाँ जायेंगे। एमर्जेन्सी केसेज की लाइन होगी। उस समय क्या करेंगे? अमर भव का वरदान तो देंगे ना। स्व अभ्यास के आक्सीजन द्वारा साहस का श्वास देना पड़ेगा। होपलेस केस अर्थात् चारो ओर के दिलशिकस्त के केसेज ज्यादा आयेंगे। ऐसी होपलेस आत्माओं को साहस दिलाना, यही श्वांस भरना है। तो फटाफट आक्सीजन देना पड़ेगा। उस स्व अभ्यास के आधार पर ऐसी आत्माओं को शक्तिशाली बना सकेंगे! इसलिए फुर्सत नहीं है, यह नहीं कहो। फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते हो फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पड़ेगी। समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है। ऐसे कहते हो ना! तो स्व अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पड़ेगा। स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौन सी? फुरी-फुरी तालाब (बूंदबूंद से तालाब) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। सेकण्ड मिले, वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड-सेकण्ड करते कितना हो जायेगा! इकठ्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। ऐसे स्व अभ्यासी चात्रक एक-एक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे। स्व अभ्यास में अलबेले मत बनो क्योंकि अन्त में विशेष शक्तियों के अभ्यास की आवश्यकता है। उसी प्रैक्टिकल पेपर्स द्वारा ही नम्बर मिलने हैं इसलिए फर्स्ट डिवीजन लेने के लिए स्व अभ्यास को फास्ट करो। उसमें भी एकाग्रता के शक्ति की विशेष प्रैक्टिस करते रहो। हंगामा हो और आप एकाग्र हो। साइलेन्स के स्थान और परिस्थिति में एकाग्र होना यह तो साधारण बात है, लेकिन चारों प्रकार की हलचल के बीच एक के अन्त में खो जाओ अर्थात् एकान्तवासी हो जाओ। एकान्तवासी हो एकाग्र स्थिति में स्थित हो जाओ - यह है महारथियों का महान पुरूषार्थ। नये-नये बच्चों के लिए तो बहुत सहज साधन है। एक ही बात याद करो और एक ही बात सभी को सुनाओ। तो एक बात याद करना वा सुनाना मुश्किल तो नहीं है ना। बहुत बातें तो भूल जाते हो लेकिन एक बात तो नहीं भूलेगी। एक ही की महिमा करते रहो, एक के ही गीत गाते रहो और एक का ही परिचय देते रहो। यह तो सहज है ना कि यह भी मुश्किल है। जहाँ एक है वहाँ एकरस स्थिति स्वत: बन जाती है। और चाहिए ही क्या! एकरस स्थिति ही चाहिए ना। तो बस एक शब्द याद रखो। एक का ग्त गाना है, एक को याद करना है, कितना सहज है? नये-नये बच्चों के लिए सहज शार्टकट रास्ता बता रहे हैं। तो जल्दी पहुँच जायेंगे। यही चाहते हो ना। आये पीछे हैं लेकिन जावें आगे, तो यही शार्टकट रास्ता है, इससे चलो तो आगे पहुंच जायेंगे। माताओं को तो सब बातों में सहज चाहिए ना क्योंकि बहुत थकी हुई हैं, जन्म-जन्म की, तो सहज चाहिए। कितने भटके हो! 63 जन्मों में कितने भटके हो! तो भटकी हुई आत्माओं को सहज मार्ग चाहिए। सहज मार्ग अपनाने से मंजिल पर पहुँच ही जायेंगे। समझा, अच्छा। नये भी बैठे हैं और महारथी भी बैठे हैं। दोनों सामने हैं। सबसे ज्यादा समीप गुजरात है ना। समीप के साथ सहयोगी भी गुजरात वाले हैं। सहयोग में गुजरात का नम्बर राजस्थान से आगे हैं। आबू राजस्थान है, वैसे राजस्थान नजदीक है ना। राजस्थान के राजे भी जागें तो कमाल करेंगे। अभी गुप्त हैं। फिर प्रत्यक्ष हो जायेंगे। गुजरात का जन्म कैसे हुआ, पता है? गुजरात को पहले सहयोग दिया गया। सहयोग के जल से बीज पड़ा हुआ है। तो फल भी सहयोग का ही निकलेगा ना। गुजरात को डायरेक्ट बापदादा के संकल्प के सहयोग का पानी मिला है इसलिए फल भी सहयोग का ही निकलता है। समझा! गुजरात वाले कितने भाग्यवान हो! गुजरात में बापदादा ने सेन्टर खोला है। गुजरात ने नहीं खोला है इसलिए न चाहते हुए भी सहज ही सहयोग का फल निकलता ही रहेगा। आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। किसी भी कार्य में आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। धरनी सहयोग के फल की है। अच्छा! सभी स्व अभ्यास के चात्रकों को, सदा एकान्तवासी, एकाग्रता की शक्तिशाली आत्माओं को, सदा स्व अभ्यास के शक्तियों द्वारा सर्व को दिलशिकस्त से सदा दिल खुश बनाने वाले, सदा सर्व शक्तियों को प्रैक्टिकल में लगाने वाले, ऐसी श्रेष्ठ स्व अभ्यासी, स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, महावीरों को और नये-नये बच्चों को, सभी को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। एक आते और एक जाते। आने जाने का मेला है। बापदादा तो सभी बच्चों को देख खुश होते हैं। नये हैं, चाहे पुराने हैं, भाषा जानते हैं वा नहीं जानते हैं, मुरली समझते हैं वा नहीं समझते हैं, लेकिन हैं तो बाप के। फिर भी प्यार से पहुँच जाते हैं। बाप किस बात का भूखा है? प्यार का। समझदारी का भूखा नहीं। बाप प्यार देखते हैं, दिल का प्यार है। जितना ही भोले- भाले हैं उतना ही सच्चा प्यार है, चतुराई का प्यार नहीं है इसलिए भोले भाले बच्चे सबसे प्रिय हैं। जैसे नॉलेजफुल का टाइटिल है वैसे भोलानाथ का भी टाइटिल है, दोनों का यादगार है, नये-नये बच्चे भावना वाले अच्छे हैं। अच्छापार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात 1. सदा अपने को डबल लाइट फरिश्ता समझते हो? फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। जितना-जितना हल्कापन होगा उतना स्वयं को फरिश्ता अनुभव करेंगे। फरिश्ता सदा चमकता रहेगा, चमकने के कारण सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करता है। ऐसे फरिश्ते जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है। घर वही है, परिवार वही है, लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्मबन्धन के वशीभूत होकर नहीं रहते। सेवा के सम्बन्ध में क्या, क्यूं नहीं होता। कैसी भी आत्मायें हैं, सेवा का सम्बन्ध प्यारा है। जहाँ देह है वहाँ विकार हैं। देह के सम्बन्ध से विकार आते हैं, देह का सम्बन्ध नहीं तो विकार नहीं। किसी भी आत्मा को सेवा के सम्बन्ध से देखो तो विकारों की उत्पत्ति नहीं होगी। ऐसे फरिश्ते होकर रहो। रिश्तेदार होकर नहीं। जहाँ सेवा का भाव रहता है वहाँ सदा शुभ भावना रहती है, और कोई भाव नहीं। इसको कहा जाता है अति न्यारा और अति प्यारा, कमल समान। सर्व पुरूषों से उत्तम फरिश्ता बनो तब देवता बनेंगे। 2. सभी बेगमपुर के बादशाह, गमों से परे सुख के संसार का अनुभवी समझते हुए चलते हो? पहले दु:ख के संसार के अनुभवी थे, अभी दु:ख के संसार से निकल सुख के संसार के अनुभवी बन गये। अभी एक सुख का मंत्र मिलने से दु:ख समाप्त हो गया। सुखदाता की सुख स्वरूप आत्मायें हैं, सुख के सागर बाप के बच्चे हैं, यही मंत्र मिला है। जब मन बाप की तरफ लग गया तो दु:ख कहाँ से आया। जब मन को बाप के सिवाए और कहाँ लगाते हो तब मन का दु:ख होता। मनमनाभव हैं तो दु:ख नहीं हो सकता। तो मन बाप की तरफ है या और कहाँ हैं? उल्टे रास्ते पर लगता है तब दु:ख होता है। जब सीधा रास्ता है तो उल्टे पर क्यों जाते हो? जिस रास्ते पर जाने की मना है उस रास्ते पर कोई जाए तो गवर्मेन्ट भी दण्ड डालेगी ना। जब रास्ता बन्द कर दिया तो क्यों जाते हो? जब तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा, मेरा है ही नहीं तो दु:ख कहाँ से आया। तेरा है तो दु:ख नहीं। मेरा है तो दु:ख है। तेरा-तेरा करते तेरा हो गया। 3. सदा एकबल और एक भरोसा, इसी स्थिति में रहते हो? एक में भरोसा अर्थात् बल की प्राप्ति। ऐसे अनुभव करते हो? निश्चयबुद्धि विजयी, इसी को दूसरे शब्दों में कहा जाता है - एक बल, एक भरोसा। निश्चय बुद्धि की विजय न हो, यह हो नहीं सकता। अपने में ही जरा-सा संकल्प मात्र भी संशय आता कि यह होगा या नहीं होगा, तो विजय नहीं। अपने में, बाप में और ड्रामा में पूरा-पूरा निश्चय हो तो कभी विजय न मिले यह हो नहीं सकता। अगर विजय नहीं होती तो जरूर कोई न कोई प्वाइन्ट में निश्चय की कमी है। जब बाप में निश्चय है तो स्वयं में भी निश्चय है। मास्टर है ना। जब मास्टर सर्वशक्तिमान हैं तो ड्रामा की हर बात को भी निश्चयबुद्धि होकर देखेंगे। ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चों के अन्दर सदा यही उमंग होगा कि मेरी विजय तो हुई पड़ी है। ऐसे विजयी ही विजय माला के मणके बनते हैं। विजय उनका वर्सा है। जन्म-सिद्ध अधिकार में यह वर्सा प्राप्त हो जाता है। माताओं से मुलाकात बापदादा भी माताओं को सदा ही नमस्कार करते हैं क्योंकि माताओं ने सदा सेवा में आगे कदम रखा है। बापदादा माताओं के गुण गाते हैं, कितनी श्रेष्ठ मातायें बन गई, जो बापदादा भी देख हर्षित होते हैं। बस सदा अपने इसी भाग्य को स्मृति में रख खुश रहो। मन में खुशी का गीत सदा बजता रहे और माताओं को काम ही क्या है! ब्राह्मण बन गये तो गाना और नाचना यही काम है। मन से नाचो, मन से गीत गाओ। एक-एक जगत माता अगर एक-एक दीपक जगाये तो कितने दीपक जग जायेंगे। जग की मातायें जग के दीपक जगा रही हो ना। दीपक जगते-जगते दीपमाला हो ही जायेगी। अच्छा। प्रश्न: सेवा का सहज साधन, सर्व को आकर्षित करने का सहज साधन वा पुरूषार्थ कौन सा है? उत्तर: हर्षितमुख चेहरा। जो सदा हर्षित रहता है वह स्वत: ही सर्व को आकर्षित करता है और सहज ही सेवा के निमित्त भी बन जाता है। हर्षितमुखता खुशी की निशानी है। खुशी का चेहरा देख स्वत: पूछेंगे क्या पाया, क्या मिला! तो सदा खुशी में रहो क्या थे, क्या बन गये, इससे ही सेवा होती रहेगी। प्रश्न: तिलक का अर्थ क्या है? किस तिलक को धारण करो तो सदा नशे और खुशी में रहेंगे? उत्तर: तिलक का अर्थ है स्मृति स्वरूप। तो सदा स्मृति रहे कि हम तख्तनशीन हैं। हम वह सिकीलधी आत्मायें हैं जो प्रभु तख्त के अधिकारी बनी हैं। इस तिलक को धारण करने से सदा खुशी और नशे में रहेंगे। वैसे भी कहा जाता है तख्त और बख्त। तख्तनशीन बनने का बख्त अर्थात् भाग्य मिला। तो सदा श्रेष्ठ तख्त और बख्त वाली आत्माएं हैं, यही नशा और खुशी सदा रहे। वरदानः याद और सेवा द्वारा सब चक्करों को समाप्त कर शमा पर फिदा होने वाले सच्चे परवाने भव l जो बच्चे याद और सेवा में सदा बिजी रहते हैं वह सभी चक्करों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं। कोई भी चक्र रहा हुआ होगा तो चक्कर ही लगाते रहेंगे। कभी सम्बन्धों का चक्कर, कभी अपने स्वभाव संस्कार का चक्कर, ऐसे व्यर्थ के सभी चक्कर समाप्त तब होंगे जब बुद्धि में सिवाए शमा के और कुछ भी न हो। शमा पर फिदा होने वाले शमा के समान बन जाते हैं। ऐसे फिदा होने वाले अर्थात् समा जाने वाले ही सच्चे परवाने हैं। स्लोगनः जो सच्चे पारस बने हैं उनके संग में लोहे सदृश्य आत्मायें भी सोना बन जाती हैं। #Hindi #bkmurlitoday #brahmakumaris
- BK murli today in Hindi 12 June 2018 - Aaj ki Muri
Brahma Kumaris murli today in Hindi aaj ki murli - BapDada - Madhuban - 12-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “ मीठे बच्चे-तुम ज्ञान सागर बाप के पास आते हो - सम्मुख मिलन मनाने, बादल भरने, तुम यहाँ कोई तीर्थ करने वा पहाड़ी की हवा खाने नहीं आते हो।” प्रश्न: गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए किस विधि से चलते रहो तो एवरहेल्दी बन जायेंगे? उत्तर- एवरहेल्दी बनने के लिए सदैव बाबा-बाबा करते रहो। तुम्हीं से खाऊं, तुम्ही संग घूमूं.... सब कुछ बुद्धि से बाप हवाले कर दो। ऐसा समझकर चलो कि हम शिवबाबा की परवरिश के अन्दर पल रहे हैं। किसी भी चीज में ममत्व न रहे। अर्पण करके उसके हुक्म से खाओ तो सब पवित्र हो जायेगा और तुम एवरहेल्दी बन जायेंगे। गीत: दूर देश का रहने वाला.... ओम् शान्ति।दूर देश के रहने वाले पास बच्चियाँ मिलने आती हैं। बच्चियाँ कोई तीर्थ पर नहीं आती हैं वा पहाड़ी पर हवा खाने नहीं आती हैं। मनुष्य तो पहाड़ों पर जाते हैं हवा खाने। परन्तु बच्चे यहाँ पर आते हैं मात-पिता पास मिलने। यह जानते हो मात-पिता दूरदेश के रहने वाले आते हैं पराये देश में। क्यों आते है? स्वर्ग रचने। उनसे मिलने लिए बच्चे भिन्न-भिन्न गाँव से, कितना दूरदेश से आते हैं। विलायत से भी आयेंगे। किसलिए? कोई चीज देखने लिए नहीं। आत्मायें अथवा जीव आत्मायें आती हैं मात-पिता से मिलने। मात-पिता भी है दूरदेश का रहने वाला। अब तुम किसके आगे बैठे हो? मात-पिता के सामने बैठे हैं, जिससे स्वर्ग के सुख मिलने हैं परन्तु उनकी मत पर चलने से, इसलिए श्रीमत का इतना गायन है। भगवानुवाच श्रीमत गाई हुई है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की श्रीमत का गायन नहीं है। सबसे श्रेष्ठ मात-पिता है जिसका गायन करते हैं। इस सृष्टि के रचयिता मात-पिता का आह्वान करते हैं कि इस छी-छी पतित दुनिया में आओ, हमको पावन बनाओ। अब वह पराये देश में आया है। तुम भी पराये देश में बैठे हो। यह रावण का देश है। यह अकासुर, बकासुर, पूतनायें, सूपनखायें, हिरण्यकश्यप आदि सब इस मनुष्य सृष्टि के मनुष्यों पर नाम हैं। असुरों का कोई दूसरा रूप नहीं है। न देवताओं का कोई दूसरा रूप है, न 4 भुजायें हैं। हैं तो वह भी मनुष्य और देवतायें भी मनुष्य। परन्तु देवताओं का पावन देश में पुनर्जन्म था। सतयुग-त्रेता जैसे ईश्वर का घर है। स्वर्ग में आते हो तो अपने घर में आते हो। अब हो पराये घर रावण के घर में। तो बाप आकर तुमको रावण के घर से छुड़ाते हैं, लिबरेट करते हैं। आधा कल्प तो तुम माया के देश में पुनर्जन्म लेते रहते हो। सतयुग-त्रेता में तो राम राज्य अर्थात् ईश्वर का राज्य है क्योंकि ईश्वर ने स्थापना किया है। आधा कल्प वहाँ पुनर्जन्म लेते आये। आधा कल्प रावण के राज्य में पुनर्जन्म लिया। अब बच्चों को समझ पड़ी है कि हम किसके सामने बैठे हैं। यह टीचर भी है, सतगुरू भी है। तुम मातायें भी टीचर हो, सतगुरू भी हो। तुम भी पढ़ाती हो-मनुष्य से देवता बनाने लिए। अब तो तुम आसुरी सम्प्रदाय से दैवी सम्प्रदाय बन रहे हो। तुमको काँटों से फूल बनाने इस रथ पर बाप सवार हो आये हैं। यह तो बच्चों से मिलने और देशों में भी जाते हैं क्योंकि चैतन्य ज्ञान सागर है। जड़ सागर ताे नहीं है जो डुबो दे। नहीं, यह चैतन्य है। गायन है-आत्मा परमात्मा अलग रहे... तो परमात्मा भी आते हैं। तो उनसे मिलने आत्मायें भी आती हैं। कहाँ-कहाँ से बच्चियाँ आती हैं। बाप भी चक्र लगाते हैं। भक्तों ने तो जहाँ-तहाँ मन्दिर बनाये हैं। जैसे क्राइस्ट के जड़ चित्र भी बनाते हैं। अब वह तो है देहधारी और जो भी हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देहधारी हैं। इन सबसे ऊंच ते ऊंच है भगवान, उनको अपना शरीर नहीं है। उनको तो सभी बाप कहेंगे। परमपिता गॉड फादर। उनको तो न स्थूल शरीर है, न सूक्ष्म शरीर है। आते भी हैं जरूर। कैसे आते हैं? यह सब भूल गये हैं। ऐसे तो नहीं कहेंगे कृष्ण पतित-पावन है। न कृष्ण के शरीर में आकर पावन बनाते हैं। तो श्रीकृष्ण भगवानुवाच राँग हो गया। कृष्ण के मुख द्वारा क्या रचे? क्या देवतायें? नहीं। पहले तो ब्राह्मण चाहिए। उसके लिए ब्रह्मा चाहिए। नहीं तो ब्रह्मा का आक्यूपेशन कहाँ? कृष्ण का नाम लगाने से ब्रह्मा की बायोग्राफी गुम हो जाती है। कृष्ण द्वारा सतयुग स्थापना किया तो ब्रह्मा का आक्यूपेशन ही गुम कर दिया। परन्तु तुम बच्चे जानते हो जो यहाँ आते हो, बाकी जो नहीं जानते वह समझेंगे कि यह भी एक सतसंग है जहाँ गीता सुनाते हैं। परन्तु यहाँ कौन सुनाते हैं-यह तुम बच्चे जानते हो। ज्ञान का सागर मोस्ट बिलवेड मात-पिता सुनाते हैं। कितना मीठा, कितना प्यारा है! तुम कोई मनुष्य को मीठा कह नहीं सकते क्योंकि सभी कड़ुवे विकारी हैं। बाप उनको पावन बना रहे हैं। तो ऊंच ते ऊंच है भगवान। उसके बाद जो भी मनुष्य होकर गये हैं, उसमें लक्ष्मी-नारायण और सीताराम। अब तो वह भी पतित हैं। जब तक बाप आकर पावन न बनाये तो सब पतित दु:खी रह जाते हैं। जैसे मनुष्य कहते हैं-कलियुग हजारों वर्ष का है, यह तो इम्पासिबुल है। महाभारी लड़ाई सामने खड़ी है, जिसमें मुक्ति-जीवन्मुक्ति के गेट्स खुलते हैं, तब तक कोई मुक्तिजीवन्मुक्ति में जा नहीं सकते। सभी यहाँ भटकते रहते हैं। जैसे भूल-भुलैया है। सभी ठोकर खाते रहते हैं। दरवाजा मिलता नहीं। चाहते हैं मुक्ति-जीवन्मुक्ति के गेट में जायें। कोई मरता है तो भी कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। परन्तु यह तो नर्क है। स्वर्ग में तब जा सकते हैं जब बाप आये, राजयोग सिखलाये, तब राजाई वा प्रजा पद पा सकते हैं। अब यह है कमाई। कहते हैं ना-इसने कौन-सी कमाई की जो यह इतना साहूकार बना। तो सतयुग के देवताओं ने कौन-सी कमाई और कब की जो यह ऐसे बनें? जरूर कलियुग के अन्त में की होगी तब सतयुग में बनें। अब तुम जानते हो हम ऐसी कमाई कर रहे हैं, जो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। जरूर उसकी रिजल्ट तुम स्वर्ग में भोगेंगे। अब तुम कलियुग और सतयुग के संगम पर हो। उनको अलग युग कर दिया है। सारे कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बाप समझाते हैं। कहते हैं-बच्चे, अब जो कर्म मैं तुमको सिखाता हूँ वही करो। इसको कलियुग नहीं कहेंगे, संगमयुग का किसको पता नहीं है। जब सतयुग से त्रेता होता है तब भी किसको पता नहीं पड़ता कि सतयुग-त्रेता का संगम पास हो रहा है। यह पीछे गाया जाता है कि सतयुग में फलाने राज्य करते थे, त्रेता में फलाने राज्य करते थे। द्वापर हुआ तो देवी-देवता वाम मार्ग में चले गये, यह सब अब तुमको पता पड़ता है। यह ज्ञान और कोई में नहीं है। तुम ही वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हो। तुम्हारे पास एम आब्जेक्ट है। जो भी दुनिया में गीता पाठशालायें हैं वहाँ वेद-शास्त्रो सुनाते हैं। एम आब्जेक्ट कोई नहीं है। स्कूल-कॉलेज को पाठशाला कहते हैं। वह पढ़ाई फिर भी सोर्स ऑफ इन्कम है। तो तुम्हारे पास एम ऑब्जेक्ट है कि इस पढ़ाई से पावन बन मुक्तिधाम में जायेंगे। फिर वहाँ से पार्ट बजाने सतयुग में आयेंगे। तुमको सतयुग से कलियुग तक कौन-सा पार्ट बजाना है-वह सारा पता है। तुम बादल यहाँ आये हो भरने के लिए। 21 जन्म के लिए सोर्स आफ इनकम बनाने। कितनी ऊंच पढ़ाई है तो पढ़ाने वाला भी ऊंच ते ऊंच भगवान एक है। बाकी तो सब हैं बहन-भाई। ब्रह्मा-सरस्वती, शंकर-पार्वती, विष्णु सब इनके बच्चे हैं। बच्चों को बच्चों से वर्सा नहीं मिलता है। वर्सा बाप से मिलता है। जो जैसा पुरूषार्थ करेंगे वैसा वर्सा मिलेगा। और पुरूषार्थ कितना सहज है। अच्छा, इतना ज्ञान नहीं सुना सकते तो तीन पैर पृथ्वी का लेकर छोटे कमरे में ही गीता पाठशाला खोल दो। बोर्ड में लिख दो-आकर बाप से 21 जन्मों के लिए वर्सा लो। छोटा बोर्ड ही लगाओ। उसमें लिखो कि 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। भल आकर पूछो। तुम जिसको मात-पिता कहते हो वह तो जरूर स्वर्ग का रचता है तो तुमको जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। वह कहते हैं निरन्तर मुझे याद करो और सबको भूलो। इनके साथ रहते हुए, सामने देखते हुए बुद्धि वहाँ लगानी है। बाबा का फरमान मिलता है तो सिर पर रखना चाहिए ना। बाप आर्डानेन्स निकालते हैं-बच्चे, अब विष का धन्धा बन्द करो। और कोई से बात नहीं करते, बच्चों को ही समझाते हैं। बाहर वाला तो यहाँ सभा में कोई बैठ नहीं सकता। जब तक 7 रोज आकर न समझे। कहानी है ना इन्द्रप्रस्थ में पुखराज परी एक पतित मनुष्य को ले आई तो उनको सजा मिल गई। तो यह कायदा नहीं। जब तक 7 रोज भठ्ठी में नहीं डाला है। भठ्ठी में स्वच्छ होने बिगर बैठ नहीं सकते। हाँ, कोई बड़े मनुष्य मिलने को आते हैं, सुनते तो हैं ना सुबह का क्लास देखें, तो ऊपर से पूछ कर श्रीमत से बताते हैं। देखते हैं अच्छा है, उल्टा नहीं उठायेगा तो उनको थोड़ा पहले समझाया जाता है। फिर आने की छुट्टी देनी पड़ती है। तुम सबको समझाओ कि यह हमारे मात-पिता हैं जिससे स्वर्ग के सुख मिलते हैं। यह बाप, टीचर, सतगुरू तीनों हैं। तुमको जैसे 3 इन्जन मिले हैं। इसी समय तीनों इकठ्ठे मिलते हैं। वहाँ तो अलग-अलग मिलते हैं। पहले बाप फिर टीचर और वृद्ध अवस्था में गुरू करते हैं। तुम अब किसकी परवरिश के नीचे हो? शिवबाबा की क्योंकि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह शिवबाबा को अर्पण किया है। तुम्हारी परवरिश जैसेकि शिवबाबा के भण्डारे से होती है। तुमने अपना सब कुछ शिवबाबा को दान किया है। अब उनसे ही तुम पलते हो। कितना पवित्र अन्न मिलता है। ऐसे कभी होता नहीं जो कोई धर्म (दान) करे उससे ही उनकी परवरिश हो। वह तो जिसको दान करते वह खा जाता है। यहाँ तो तुम शिवबाबा को देते हो तो कितना पवित्र बन जाता है! इससे तुम्हारी ही परवरिश होती है। बाप कहते हैं घर में रहकर ऐसा समझो सब बाबा का है। ऐसे समझ खाते हो तो हू-ब-हू तुम शिव के भण्डारे से खाते हो। इसमें कोई ममत्व नहीं। बाप का समझते हो। बाप का दिया हुआ है। बाप को अर्पण किया हुआ है। उनके हुक्म से खा रहे हैं। भल बैठा घर में है परन्तु शिव के भण्डारे से खाते हैं। कहते हो ना तुम्हीं से खाऊं... तुम्हीं से घूमूं। बाबा-बाबा कहने से उनसे योग लगा रहेगा। एवरहेल्दी बन जायेंगे। यह है हेल्दी बनने की सेनेटोरियम। उस सेनेटोरियम में सारी आयु थोड़ेही रहते हैं। थोड़ा टाइम रहकर चले जाते हैं। यहाँ तो तुम बैठे हुए हो। एवरहेल्दी 21 जन्मों लिए बनते हो। यहाँ आते हो किसलिए? आधा कल्प लिए एवरहेल्दी, एवरवेल्दी, एवरहैप्पी बनने लिए। इस ख्यालात से आते हो ना। यहाँ हवा खाने लिए वा तीर्थ करने तो नहीं आते हो। यहाँ आते हो शिवबाबा पास। बाप भी आते हैं पराये देश, पराये तन में। गीता जो गाई हुई है, कुछ तो राइट होगा। आह्वान करते हैं-बाप के आने लिए। तो जरूर उनको पतित से पावन बनाने लिए आना पड़े। पतित तो नहीं परमधाम में उनके पास जायेंगे, पावन होने लिए। जा नहीं सकते। हरेक भक्त की आत्मा पुकारती है कि बाबा आओ। बाप कहते हैं मैं आता हूँ सबकी गतिसद्गति करने। सर्व के ऊपर दया करने वाला, सर्वोदया तो एक बाप है ना। कौन-सी दया करते हैं? श्रीमत देते हैं। श्रीमत तो मशहूर है। जिस पर चलने से श्रेष्ठ अर्थात् स्वर्ग के मालिक बनेंगे। फिर जो जितना डायरेक्शन पर चले। कोई तकलीफ तो नहीं देते-हठयोग करने अथवा तीर्थों पर धक्का खाने की। अमेरिका हो, फिलीपाइन हो.... कहाँ भी हो गृहस्थ व्यवहार में तो रहना चाहिए। परन्तु रहते हुए कमल पुष्प समान रहना है। जनक का मिसाल है। तुम्हारा है राजयोग। वह तो कहेंगे स्वर्ग के सुख तो काग विष्टा के समान हैं। परन्तु भारत का राजयोग तो मशहूर है। इसको कोई जानते नहीं। प्राचीन योग तो प्राचीन बाप ही सिखायेंगे। गीता वेद शास्त्रो आदि सब भक्तिमार्ग की सामग्री है। झाड़ को पूरा होना ही है, फिर इसी झाड़ को सब्ज होना है। तो तुम आये हो मात-पिता पास रिफ्रेश होने और घड़ी-घड़ी आयेंगे क्योंकि सम्मुख मजा आता है। यहाँ सदा के लिए तो बैठ नहीं सकते। लॉ नहीं। अपना गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है जरूर। बाकी यह पाठशाला अजुन बहुत वृद्धि को पायेगी। यह विघ्न आदि न पड़ें तो यह बहुत बढ़ जायें इसलिए विघ्न पड़ते हैं। पाँच हजार इकठ्ठे बैठ कैसे पढ़ेंगे इसलिए लिमिट है, जिनको बाप सम्मुख देख भी सके। बाप देखते तो आत्माओं को हैं ना। शरीर को नहीं देखते। जोर से देखेंगे तो उनको शरीर ही भूल जायेगा। चुम्बक है ना। तो जैसे अनकॉन्सेस होता जायेगा। अच्छा।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) ऊंची मंजिल पर जाने के लिए बाप-टीचर-गुरू के रूप में हमें तीन इन्जन मिले हैं-सदा इसी स्मृति से आगे बढ़ना है। 2) बुद्धि से सब कुछ बाप हवाले कर उनकी परवरिश के नीचे पलना है। बहुत मीठा पावन बनना है। पतितपने का कड़ुवापन निकाल देना है| वरदानः संगमयुग के इस नये युग में हर सेकण्ड नवीनता का अनुभव करने वाले फास्ट पुरुषार्थी भव l संगमयुग पर सब कुछ नया हो जाता है, इसलिए इसे नया युग भी कहते हैं। यहाँ उठना भी नया, बोलना भी नया, चलना भी नया। नया अर्थात् अलौकिक। स्मृति में भी नवीनता आ गई। बातें भी नई, मिलना भी नया, देखना भी नया। देखेंगे तो आत्मा, आत्मा को देखेंगे, शरीर को नहीं। भाई-भाई की दृष्टि से सम्पर्क में आयेंगे, दैहिक संबंध से नहीं। ऐसे हर सेकण्ड अपने में नवीनता का अनुभव करना, जो एक सेकण्ड पहले अवस्था थी वह दूसरे सेकण्ड नहीं, उससे आगे हो इसको ही फास्ट पुरुषार्थी कहा जाता है। स्लोगनः परमात्म प्यार द्वारा जीवन में सदा अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करना ही सहजयोग है। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi
- 18 May 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Gyan Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - madhuban -18-05-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे - कभी जिस्म (साकार शरीर) को याद नहीं करना है, ऑखों से भल इन्हें देखते हो परन्तु याद सुप्रीम टीचर शिवबाबा को करना है" प्रश्नः-तुम बच्चे किस एक कायदे को जानने के कारण हार-फूल अभी स्वीकार नहीं कर सकते? उत्तर:-हम जानते हैं कि जिनकी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं, वही हार-फूल के हकदार हैं। इस कायदे अनुसार हम फूल-हार स्वीकार नहीं कर सकते। बाबा कहते हैं मैं भी तुम्हारे फूल-हार स्वीकार नहीं करता क्योंकि मैं न पूज्य बनता हूँ, न पुजारी। मैं तो तुम्हारा ओबीडियन्ट फादर और टीचर हूँ। गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन... ओम् शान्ति।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना। इस गीत से सर्वव्यापी का ज्ञान उड़ जाता है। याद करते हैं अब भारत बहुत दु:खी है। ड्रामा अनुसार यह सब गीत बने हुए हैं। दुनिया वाले नहीं जानते हैं। बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने वा दु:खियों को दु:ख से लिबरेट करने। दु:ख हरकर सुख देने लिए। बच्चे जान गये हैं वही बाप आया हुआ है। बच्चों को पहचान मिल गई है। स्वयं बैठ बतलाते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश कर फिर तुम बच्चों को सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ। सृष्टि एक ही है सिर्फ नई और पुरानी होती है। जैसे शरीर बचपन में नया होता है फिर पुराना होता है। नया शरीर, पुराना शरीर - दो चीज़ तो नहीं कहेंगे। है एक ही, सिर्फ नये से पुराना बनता है। वैसे दुनिया एक ही है, नई से अब पुरानी हुई है। नई कब थी - यह फिर कोई भी बता नहीं सकते हैं। बाप आकर समझाते हैं - बच्चे, जब नई दुनिया थी तो भारत नया था। सतयुग कहा जाता है। वही भारत अब पुराना बना है। इसको पुरानी ओल्ड वर्ल्ड कहा जाता है। न्यु वर्ल्ड से फिर ओल्ड बनी है, फिर इनको नया जरूर बनना है। नई दुनिया का बच्चों ने साक्षात्कार किया है। अच्छा, उस नई दुनिया के मालिक कौन थे? बरोबर यह लक्ष्मी-नारायण थे। आदि सनातन देवी-देवतायें मालिक थे, यह बाप बच्चों को समझा रहे हैं। बाप कहते हैं अब निरन्तर यही याद करो। बाप परमधाम से हमको पढ़ाने, राजयोग सिखाने आया हुआ है। महिमा सारी उस एक की ही है, इनकी महिमा कुछ नहीं है। इस समय सब तुच्छ बुद्धि हैं, कुछ नहीं समझते हैं, इसलिए मैं आता हूँ तब तो यह गीत भी बना हुआ है। सर्वव्यापी का ज्ञान तो उड़ जाता है। हरेक का पार्ट अपना-अपना है। बाप बार-बार कहते हैं देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो और याद शिवबाबा को करो। ऐसे ही समझो - शिवबाबा ही सब कुछ करते हैं। ब्रह्मा है ही नहीं। भल इनका रूप इन ऑखों से दिखाई पड़ता है परन्तु तुम्हारी बुद्धि शिवबाबा के तऱफ जानी चाहिए। शिवबाबा न हो तो इनकी आत्मा इनका शरीर कोई काम का नहीं है। हमेशा समझो इसमें शिवबाबा है जो इस द्वारा पढ़ाते हैं। तुम्हारा यह टीचर नहीं है। सुप्रीम टीचर वह है, याद उनको करना है। कभी भी इस जिस्म को याद नहीं करना है। बुद्धियोग बाप के साथ लगाना है। तो सर्वव्यापी का ज्ञान ठहर भी न सके। बच्चे याद करते हैं फिर से आकर ज्ञान योग सिखाओ। परमपिता परमात्मा के सिवाए तो कोई राजयोग सिखला न सके। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि यह गीता का ज्ञान स्वयं बाप सुनाते हैं, फिर यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। वहाँ दरकार ही नहीं है। राजधानी स्थापन हो गई, सद्गति हो जाती है। ज्ञान दिया जाता है दुर्गति से सद्गति में जाने लिए। बाकी वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। मनुष्य जप, तप, दान, पुण्य आदि जो कुछ भी करते हैं सब भक्ति मार्ग की बातें हैं, इससे मुझे कोई मिल नहीं सकता है। आत्मा के पंख टूट गये हैं। पत्थर बन गये हैं। पत्थर से फिर पारस बनाने मुझे आना पड़ता है।बाप कहते हैं अब कितने मनुष्य हैं, सरसों मिसल संसार भरा हुआ है। सब खत्म हो जाने हैं। सतयुग में तो इतने मनुष्य होते नहीं। नई दुनिया में वैभव बहुत, मनुष्य थोड़े होते हैं। यहाँ तो इतने मनुष्य हैं जो खाने के लिए भी नहीं मिलता है। पुरानी कलराठी जमीन है। फिर नई हो जायेगी। वहाँ है एवरीथिंग न्यु। नाम ही कितना मीठा है - हेविन, बहिश्त। देवताओं की नई दुनिया। पुराने घर को तोड़ नये में बैठने की दिल होती है ना। अब है नई दुनिया स्वर्ग में आने की तात (लगन)। इस पुराने शरीर की कोई वैल्यु नहीं है। शिवबाबा को तो कोई शरीर है नहीं। बच्चे कहते हैं हार पहनायें। लेकिन इनको हार पहनायेंगे तो तुम्हारा बुद्धियोग इसमें चला जायेगा। शिवबाबा कहते हैं हमको हार की दरकार नहीं है, तुम ही पूज्य बनते हो। पुजारी भी बनते हो। आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी बनते हो। तो अपने ही चित्र की पूजा करने लग पड़ते हो। बाबा कहते हैं - मैं न पूज्य बनता हूँ, न फूलों आदि की दरकार है। मैं क्यों पहनूँ? इसलिए कब फूल लेते नहीं हैं। तुम जब पूज्य बनो फिर जितना चाहिए उतना फूल पहनना। मैं तो तुम बच्चों का मोस्ट ओबीडियन्ट फादर भी हूँ, टीचर भी हूँ, सर्वेन्ट भी हूँ। बड़े-बड़े रॉयल आदमी जब नीचे सही डालते हैं तो लिखते हैं - मेन्टोकरजिन... अपने को लार्ड कभी नहीं लिखते हैं। यहाँ तो लिखते - श्री श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री फलाना। एकदम ‘श्री' अक्षर डाल देते हैं। तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, अब इस शरीर को याद न करो। अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो। इस पुरानी दुनिया में आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं। सोना 9 कैरेट का होगा तो जेवर भी 9 कैरेट का होगा। सोने में ही खाद पड़ती है। तो आत्मा को निर्लेप नहीं समझना चाहिए। तुमको अभी ही यह ज्ञान है फिर 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पा लेते हो, तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए। परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको शिक्षा दे रहे हैं। ब्रह्मा की आत्मा भी उनको याद करती है। एक भगवान को सब भक्त याद करते हैं। परन्तु तमोप्रधान बन गये हैं तो बाप को भूल ठिक्कर-भित्तर सबकी पूजा करते हैं। हम जानते हैं जो कुछ चलता है, ड्रामा शूट होता जाता है। ड्रामा में एक बार जो शूटिंग होती है, समझो बीच में कोई पंछी आदि उड़ता है तो वही शूटिंग में घड़ी-घड़ी दिखाई देगा। पतंग का उड़ना हुआ, शूट हो गया तो फिर रिपीट होता रहेगा। यह भी ड्रामा सेकण्ड-सेकण्ड रिपीट होता रहता है। शूट होता रहता है। बना-बनाया ड्रामा है, तुम एक्टर्स हो। सारे ड्रामा को साक्षी हो देखते हो। एक-एक सेकण्ड ड्रामा अनुसार पास होता रहता है। पत्ता हिला, ड्रामा पास हुआ। ऐसे नहीं, पत्ता-पत्ता भगवान के हुक्म पर चलता है। यह सब ड्रामा की नूँध है, इनको अच्छी रीति समझाना पड़ता है। बाप ही आकर राजयोग सिखाते हैं और ड्रामा की नॉलेज देते हैं। चित्र भी कितने अच्छे बने हुए हैं! संगमयुग पर काँटा भी लगा हुआ है। कलियुग अन्त, सतयुग आदि का संगम है। अभी पुरानी दुनिया में अनेक धर्म हैं। नई दुनिया में फिर यह नहीं होंगे। तुम बच्चे हमेशा ऐसे समझो बाप हमको पढ़ाते हैं। हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। राजे लोग भी इन लक्ष्मी-नारायण को पूजते हैं। तो उन्हों को पूज्य बनाने वाला भी मैं हूँ। पूज्य जो थे वह अब पुजारी हो गये हैं। तुम बच्चे अब समझ गये हो हम सो पूज्य थे, फिर हम सो पुजारी बने। बाबा तो नहीं बनते हैं। तुम बच्चे अभी फूल हार आदि स्वीकार नहीं कर सकते हो, कायदे अनुसार जिनकी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं वही हकदार हैं फूलों के। वहाँ स्वर्ग में है ही खुशबूदार फूल। खुशबू लेने लिए फूल होते हैं। हार पहनने के लिए भी फूल होते हैं। बाप कहते हैं अब तुम बच्चे विष्णु के गले का हार बनते हो, नम्बरवार तुमको तख्त पर बैठना है। जिन्होंने जितना कल्प पहले पुरुषार्थ किया है वह करते हैं, करने लग पड़ेंगे। नम्बरवार तो हैं ही। बुद्धि कहती है फलाना बच्चा बहुत सर्विसएबुल है। जैसे दुकान में होता है - सेठ बनते हैं, भागीदार बनते हैं, मैनेजर बनते हैं। यह भी ऐसे है।तुम बच्चों को मात-पिता पर जीत पानी है। तुम वन्डर खाते हो मात-पिता के आगे कैसे जा सकते हैं। बाप तो बच्चों को मेहनत कर लायक बनाते हैं, तख्तनशीन बनाने इसलिए कहते हैं हमारे तख्त पर जीत पहनना। एक दो पर जीत पहनते हैं ना। पुरुषार्थ इतना करो जो नर से नारायण बनो। एम ऑबजेक्ट मुख्य है ही एक। फिर कहते हैं किंगडम स्थापन हो रही है, फिर उसमें वैराइटी पद है। माया को जीतने का पूरा पुरुषार्थ करो। बच्चों आदि को भी प्यार से चलाओ। परन्तु ट्रस्टी होकर रहो। भक्तिमार्ग में कहते थे ना - प्रभु, यह सब कुछ आपका दिया हुआ है। आपकी अमानत आपने ले ली फिर रोने की बात ही नहीं। परन्तु यह है ही रोने की दुनिया। मनुष्य कथायें सुनाते हैं, मोह जीत राजा की भी कथा सुनाते हैं। वहाँ कोई दु:ख फील नहीं होता है, एक शरीर छोड़ दूसरा लिया। वहाँ कभी कोई बीमारी होती नहीं। एवर-हेल्दी निरोगी काया रहती है। शादी आदि कैसे होती है, क्या ड्रेस पहनते हैं, वहाँ की रस्म-रिवाज कैसे चलती है - यह सब बच्चों ने साक्षात्कार किया है। वह पार्ट सब बीत गया। उस समय इतना ज्ञान नहीं था। अब दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों में ताकत बहुत जोर से आती जाती है। यह भी सब पार्ट ड्रामा में नूँधा हुआ है। वन्डर है - परमात्मा में भी कितना भारी पार्ट है। खुद बैठ समझाते हैं - ब्रह्माण्ड में ऊपर बैठ मैं कितना काम करता हूँ! नीचे तो कल्प में एक ही बार आता हूँ। बहुत निराकार के भी पुजारी होते हैं। परन्तु निराकार परमपिता परमात्मा कैसे आकर पढ़ाते हैं - यह बात गुम कर दी है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है, तो निराकार से प्रीत ही टूट गई है। यह तो परमात्मा ने ही सहज राजयोग सिखाया और दुनिया को बताया। दुनिया बदलती रहती है, युग बदलते रहते हैं। इस ड्रामा के चक्र को अब तुम समझ गये हो। मनुष्य कुछ नहीं जानते। सतयुग के देवी-देवताओं को भी नहीं जानते। सिर्फ देवताओं की निशानियाँ रह गई हैं।बाप समझाते हैं हमेशा ऐसे समझो - हम शिवबाबा के हैं, शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं, शिवबाबा हमको इस ब्रह्मा तन द्वारा शिक्षा दे रहे हैं। शिवबाबा की याद में फिर बहुत मजा आता रहेगा। ऐसा गॉड फादर कौन कहलाये। फादर भी है, टीचर भी है। परन्तु वह फादर गुरू भी हो - ऐसा हो नहीं सकता। टीचर हो सकता है, फादर को गुरू कभी नहीं कहेंगे। इनका (बाबा का) फादर भी टीचर था, पढ़ाते थे। हम भी पढ़ते थे। वह है हद का फादर टीचर। यह है बेहद का फादर टीचर। तुम अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझो तो भी अहो सौभाग्य। गॉड फादर पढ़ाते हैं। कितना क्लीयर है। तो कितना मीठा बाप है! मीठी चीज़ को याद किया जाता है। जैसे आशिक-माशुक का प्यार होता है। उनका विकार के लिए प्यार नहीं होता है। बस, एक दो को देखते रहते हैं। तुम्हारा फिर है आत्माओं का परमात्मा के साथ। आत्मा कहती है - बाबा कितना ज्ञान का, प्रेम का सागर है! इस पतित शरीर में आकर कितना हमको ऊंच बनाते हैं! गायन भी है - मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। सेकण्ड में वैकुण्ठ में चले जाते हैं। सेकण्ड में मनुष्य से देवता बन जाते हैं। यह है एम ऑबजेक्ट, इसके लिए पढ़ाई करनी चाहिए। गुरू नानक ने भी कहा है मूत पलीती कपड़ धोए.. लक्ष्य सोप है ना। बाबा कहते हैं मैं कितना बड़ा धोबी हूँ। तुम्हारे वस्त्र (आत्मा और शरीर) कितना शुद्ध बनाता हूँ! ऐसा धोबी कभी देखा? आत्मा जो बिल्कुल काली हो गई है उनको योगबल से कितना स्वच्छ बनाता हूँ! तो इनको (दादा को) कभी याद नहीं करना है। यह काम सारा शिवबाबा का है, उनको ही याद करो। इन ब्रह्मा से मीठा वह है। आत्माओं को कहते हैं तुमको इन ऑखों से यह ब्रह्मा का रथ देखने में आता है परन्तु तुम याद शिवबाबा को करो। शिवबाबा तुमको इनके द्वारा कौड़ी से हीरे जैसा बना रहे हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं, भगवान टीचर बन पढ़ाते हैं - इसी स्मृति में रहना है। घर गृहस्थ में रहते पूरा ट्रस्टी बनना है। 2) अभी हार-फूल स्वीकार नहीं करने हैं। विष्णु के गले का हार बनने के लिए माया को जीतने का पुरुषार्थ करना है। वरदान:- अलौकिक जीवन की स्मृति द्वारा वृत्ति, स्मृति और दृष्टि का परिवर्तन करने वाले मर-जीवा भव l ब्राह्मण जीवन को अलौकिक जीवन कहते हैं, अलौकिक का अर्थ है इस लोक जैसे नहीं। दृष्टि, स्मृति और वृत्ति सबमें परिवर्तन हो। सदा आत्मा भाई-भाई की वृत्ति वा भाई-बहिन की वृत्ति रहे। हम सब आपस में एक परिवार के हैं - यह वृत्ति रहे और दृष्टि से भी आत्मा को देखो, शरीर को नहीं - तब कहेंगे मरजीवा। ऐसी श्रेष्ठ जीवन मिल गई तो पुरानी जीवन याद आ नहीं सकती। स्लोगन:-सदा शुद्ध फीलिंग में रहो तो अशुद्ध फीलिंग का फ्लू पास भी नहीं आ सकता। #Hindi #bkmurlitoday
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