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Writer's pictureShiv Baba, Brahma Kumaris

18 May 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Gyan Murli


Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - madhuban -18-05-2018

प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन"

मीठे बच्चे - कभी जिस्म (साकार शरीर) को याद नहीं करना है, ऑखों से भल इन्हें देखते हो परन्तु याद सुप्रीम टीचर शिवबाबा को करना है"

प्रश्नः-तुम बच्चे किस एक कायदे को जानने के कारण हार-फूल अभी स्वीकार नहीं कर सकते?

उत्तर:-हम जानते हैं कि जिनकी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं, वही हार-फूल के हकदार हैं। इस कायदे अनुसार हम फूल-हार स्वीकार नहीं कर सकते। बाबा कहते हैं मैं भी तुम्हारे फूल-हार स्वीकार नहीं करता क्योंकि मैं न पूज्य बनता हूँ, न पुजारी। मैं तो तुम्हारा ओबीडियन्ट फादर और टीचर हूँ।

गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...

ओम् शान्ति।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना। इस गीत से सर्वव्यापी का ज्ञान उड़ जाता है। याद करते हैं अब भारत बहुत दु:खी है। ड्रामा अनुसार यह सब गीत बने हुए हैं। दुनिया वाले नहीं जानते हैं। बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने वा दु:खियों को दु:ख से लिबरेट करने। दु:ख हरकर सुख देने लिए। बच्चे जान गये हैं वही बाप आया हुआ है। बच्चों को पहचान मिल गई है। स्वयं बैठ बतलाते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश कर फिर तुम बच्चों को सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ। सृष्टि एक ही है सिर्फ नई और पुरानी होती है। जैसे शरीर बचपन में नया होता है फिर पुराना होता है। नया शरीर, पुराना शरीर - दो चीज़ तो नहीं कहेंगे। है एक ही, सिर्फ नये से पुराना बनता है। वैसे दुनिया एक ही है, नई से अब पुरानी हुई है। नई कब थी - यह फिर कोई भी बता नहीं सकते हैं। बाप आकर समझाते हैं - बच्चे, जब नई दुनिया थी तो भारत नया था। सतयुग कहा जाता है। वही भारत अब पुराना बना है। इसको पुरानी ओल्ड वर्ल्ड कहा जाता है। न्यु वर्ल्ड से फिर ओल्ड बनी है, फिर इनको नया जरूर बनना है। नई दुनिया का बच्चों ने साक्षात्कार किया है। अच्छा, उस नई दुनिया के मालिक कौन थे? बरोबर यह लक्ष्मी-नारायण थे। आदि सनातन देवी-देवतायें मालिक थे, यह बाप बच्चों को समझा रहे हैं। बाप कहते हैं अब निरन्तर यही याद करो। बाप परमधाम से हमको पढ़ाने, राजयोग सिखाने आया हुआ है। महिमा सारी उस एक की ही है, इनकी महिमा कुछ नहीं है। इस समय सब तुच्छ बुद्धि हैं, कुछ नहीं समझते हैं, इसलिए मैं आता हूँ तब तो यह गीत भी बना हुआ है। सर्वव्यापी का ज्ञान तो उड़ जाता है। हरेक का पार्ट अपना-अपना है। बाप बार-बार कहते हैं देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो और याद शिवबाबा को करो। ऐसे ही समझो - शिवबाबा ही सब कुछ करते हैं। ब्रह्मा है ही नहीं। भल इनका रूप इन ऑखों से दिखाई पड़ता है परन्तु तुम्हारी बुद्धि शिवबाबा के तऱफ जानी चाहिए। शिवबाबा न हो तो इनकी आत्मा इनका शरीर कोई काम का नहीं है। हमेशा समझो इसमें शिवबाबा है जो इस द्वारा पढ़ाते हैं। तुम्हारा यह टीचर नहीं है। सुप्रीम टीचर वह है, याद उनको करना है। कभी भी इस जिस्म को याद नहीं करना है। बुद्धियोग बाप के साथ लगाना है। तो सर्वव्यापी का ज्ञान ठहर भी न सके। बच्चे याद करते हैं फिर से आकर ज्ञान योग सिखाओ। परमपिता परमात्मा के सिवाए तो कोई राजयोग सिखला न सके। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि यह गीता का ज्ञान स्वयं बाप सुनाते हैं, फिर यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। वहाँ दरकार ही नहीं है। राजधानी स्थापन हो गई, सद्गति हो जाती है। ज्ञान दिया जाता है दुर्गति से सद्गति में जाने लिए। बाकी वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। मनुष्य जप, तप, दान, पुण्य आदि जो कुछ भी करते हैं सब भक्ति मार्ग की बातें हैं, इससे मुझे कोई मिल नहीं सकता है। आत्मा के पंख टूट गये हैं। पत्थर बन गये हैं। पत्थर से फिर पारस बनाने मुझे आना पड़ता है।बाप कहते हैं अब कितने मनुष्य हैं, सरसों मिसल संसार भरा हुआ है। सब खत्म हो जाने हैं। सतयुग में तो इतने मनुष्य होते नहीं। नई दुनिया में वैभव बहुत, मनुष्य थोड़े होते हैं। यहाँ तो इतने मनुष्य हैं जो खाने के लिए भी नहीं मिलता है। पुरानी कलराठी जमीन है। फिर नई हो जायेगी। वहाँ है एवरीथिंग न्यु। नाम ही कितना मीठा है - हेविन, बहिश्त। देवताओं की नई दुनिया। पुराने घर को तोड़ नये में बैठने की दिल होती है ना। अब है नई दुनिया स्वर्ग में आने की तात (लगन)। इस पुराने शरीर की कोई वैल्यु नहीं है। शिवबाबा को तो कोई शरीर है नहीं। बच्चे कहते हैं हार पहनायें। लेकिन इनको हार पहनायेंगे तो तुम्हारा बुद्धियोग इसमें चला जायेगा। शिवबाबा कहते हैं हमको हार की दरकार नहीं है, तुम ही पूज्य बनते हो। पुजारी भी बनते हो। आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी बनते हो। तो अपने ही चित्र की पूजा करने लग पड़ते हो। बाबा कहते हैं - मैं न पूज्य बनता हूँ, न फूलों आदि की दरकार है। मैं क्यों पहनूँ? इसलिए कब फूल लेते नहीं हैं। तुम जब पूज्य बनो फिर जितना चाहिए उतना फूल पहनना। मैं तो तुम बच्चों का मोस्ट ओबीडियन्ट फादर भी हूँ, टीचर भी हूँ, सर्वेन्ट भी हूँ। बड़े-बड़े रॉयल आदमी जब नीचे सही डालते हैं तो लिखते हैं - मेन्टोकरजिन... अपने को लार्ड कभी नहीं लिखते हैं। यहाँ तो लिखते - श्री श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री फलाना। एकदम ‘श्री' अक्षर डाल देते हैं। तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, अब इस शरीर को याद न करो। अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो। इस पुरानी दुनिया में आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं। सोना 9 कैरेट का होगा तो जेवर भी 9 कैरेट का होगा। सोने में ही खाद पड़ती है। तो आत्मा को निर्लेप नहीं समझना चाहिए। तुमको अभी ही यह ज्ञान है फिर 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पा लेते हो, तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए। परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको शिक्षा दे रहे हैं। ब्रह्मा की आत्मा भी उनको याद करती है। एक भगवान को सब भक्त याद करते हैं। परन्तु तमोप्रधान बन गये हैं तो बाप को भूल ठिक्कर-भित्तर सबकी पूजा करते हैं। हम जानते हैं जो कुछ चलता है, ड्रामा शूट होता जाता है। ड्रामा में एक बार जो शूटिंग होती है, समझो बीच में कोई पंछी आदि उड़ता है तो वही शूटिंग में घड़ी-घड़ी दिखाई देगा। पतंग का उड़ना हुआ, शूट हो गया तो फिर रिपीट होता रहेगा। यह भी ड्रामा सेकण्ड-सेकण्ड रिपीट होता रहता है। शूट होता रहता है। बना-बनाया ड्रामा है, तुम एक्टर्स हो। सारे ड्रामा को साक्षी हो देखते हो। एक-एक सेकण्ड ड्रामा अनुसार पास होता रहता है। पत्ता हिला, ड्रामा पास हुआ। ऐसे नहीं, पत्ता-पत्ता भगवान के हुक्म पर चलता है। यह सब ड्रामा की नूँध है, इनको अच्छी रीति समझाना पड़ता है। बाप ही आकर राजयोग सिखाते हैं और ड्रामा की नॉलेज देते हैं। चित्र भी कितने अच्छे बने हुए हैं! संगमयुग पर काँटा भी लगा हुआ है। कलियुग अन्त, सतयुग आदि का संगम है। अभी पुरानी दुनिया में अनेक धर्म हैं। नई दुनिया में फिर यह नहीं होंगे। तुम बच्चे हमेशा ऐसे समझो बाप हमको पढ़ाते हैं। हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। राजे लोग भी इन लक्ष्मी-नारायण को पूजते हैं। तो उन्हों को पूज्य बनाने वाला भी मैं हूँ। पूज्य जो थे वह अब पुजारी हो गये हैं। तुम बच्चे अब समझ गये हो हम सो पूज्य थे, फिर हम सो पुजारी बने। बाबा तो नहीं बनते हैं। तुम बच्चे अभी फूल हार आदि स्वीकार नहीं कर सकते हो, कायदे अनुसार जिनकी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं वही हकदार हैं फूलों के। वहाँ स्वर्ग में है ही खुशबूदार फूल। खुशबू लेने लिए फूल होते हैं। हार पहनने के लिए भी फूल होते हैं। बाप कहते हैं अब तुम बच्चे विष्णु के गले का हार बनते हो, नम्बरवार तुमको तख्त पर बैठना है। जिन्होंने जितना कल्प पहले पुरुषार्थ किया है वह करते हैं, करने लग पड़ेंगे। नम्बरवार तो हैं ही। बुद्धि कहती है फलाना बच्चा बहुत सर्विसएबुल है। जैसे दुकान में होता है - सेठ बनते हैं, भागीदार बनते हैं, मैनेजर बनते हैं। यह भी ऐसे है।तुम बच्चों को मात-पिता पर जीत पानी है। तुम वन्डर खाते हो मात-पिता के आगे कैसे जा सकते हैं। बाप तो बच्चों को मेहनत कर लायक बनाते हैं, तख्तनशीन बनाने इसलिए कहते हैं हमारे तख्त पर जीत पहनना। एक दो पर जीत पहनते हैं ना। पुरुषार्थ इतना करो जो नर से नारायण बनो। एम ऑबजेक्ट मुख्य है ही एक। फिर कहते हैं किंगडम स्थापन हो रही है, फिर उसमें वैराइटी पद है। माया को जीतने का पूरा पुरुषार्थ करो। बच्चों आदि को भी प्यार से चलाओ। परन्तु ट्रस्टी होकर रहो। भक्तिमार्ग में कहते थे ना - प्रभु, यह सब कुछ आपका दिया हुआ है। आपकी अमानत आपने ले ली फिर रोने की बात ही नहीं। परन्तु यह है ही रोने की दुनिया। मनुष्य कथायें सुनाते हैं, मोह जीत राजा की भी कथा सुनाते हैं। वहाँ कोई दु:ख फील नहीं होता है, एक शरीर छोड़ दूसरा लिया। वहाँ कभी कोई बीमारी होती नहीं। एवर-हेल्दी निरोगी काया रहती है। शादी आदि कैसे होती है, क्या ड्रेस पहनते हैं, वहाँ की रस्म-रिवाज कैसे चलती है - यह सब बच्चों ने साक्षात्कार किया है। वह पार्ट सब बीत गया। उस समय इतना ज्ञान नहीं था। अब दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों में ताकत बहुत जोर से आती जाती है। यह भी सब पार्ट ड्रामा में नूँधा हुआ है। वन्डर है - परमात्मा में भी कितना भारी पार्ट है। खुद बैठ समझाते हैं - ब्रह्माण्ड में ऊपर बैठ मैं कितना काम करता हूँ! नीचे तो कल्प में एक ही बार आता हूँ। बहुत निराकार के भी पुजारी होते हैं। परन्तु निराकार परमपिता परमात्मा कैसे आकर पढ़ाते हैं - यह बात गुम कर दी है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है, तो निराकार से प्रीत ही टूट गई है। यह तो परमात्मा ने ही सहज राजयोग सिखाया और दुनिया को बताया। दुनिया बदलती रहती है, युग बदलते रहते हैं। इस ड्रामा के चक्र को अब तुम समझ गये हो। मनुष्य कुछ नहीं जानते। सतयुग के देवी-देवताओं को भी नहीं जानते। सिर्फ देवताओं की निशानियाँ रह गई हैं।बाप समझाते हैं हमेशा ऐसे समझो - हम शिवबाबा के हैं, शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं, शिवबाबा हमको इस ब्रह्मा तन द्वारा शिक्षा दे रहे हैं। शिवबाबा की याद में फिर बहुत मजा आता रहेगा। ऐसा गॉड फादर कौन कहलाये। फादर भी है, टीचर भी है। परन्तु वह फादर गुरू भी हो - ऐसा हो नहीं सकता। टीचर हो सकता है, फादर को गुरू कभी नहीं कहेंगे। इनका (बाबा का) फादर भी टीचर था, पढ़ाते थे। हम भी पढ़ते थे। वह है हद का फादर टीचर। यह है बेहद का फादर टीचर। तुम अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझो तो भी अहो सौभाग्य। गॉड फादर पढ़ाते हैं। कितना क्लीयर है। तो कितना मीठा बाप है! मीठी चीज़ को याद किया जाता है। जैसे आशिक-माशुक का प्यार होता है। उनका विकार के लिए प्यार नहीं होता है। बस, एक दो को देखते रहते हैं। तुम्हारा फिर है आत्माओं का परमात्मा के साथ। आत्मा कहती है - बाबा कितना ज्ञान का, प्रेम का सागर है! इस पतित शरीर में आकर कितना हमको ऊंच बनाते हैं! गायन भी है - मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। सेकण्ड में वैकुण्ठ में चले जाते हैं। सेकण्ड में मनुष्य से देवता बन जाते हैं। यह है एम ऑबजेक्ट, इसके लिए पढ़ाई करनी चाहिए। गुरू नानक ने भी कहा है मूत पलीती कपड़ धोए.. लक्ष्य सोप है ना। बाबा कहते हैं मैं कितना बड़ा धोबी हूँ। तुम्हारे वस्त्र (आत्मा और शरीर) कितना शुद्ध बनाता हूँ! ऐसा धोबी कभी देखा? आत्मा जो बिल्कुल काली हो गई है उनको योगबल से कितना स्वच्छ बनाता हूँ! तो इनको (दादा को) कभी याद नहीं करना है। यह काम सारा शिवबाबा का है, उनको ही याद करो। इन ब्रह्मा से मीठा वह है। आत्माओं को कहते हैं तुमको इन ऑखों से यह ब्रह्मा का रथ देखने में आता है परन्तु तुम याद शिवबाबा को करो। शिवबाबा तुमको इनके द्वारा कौड़ी से हीरे जैसा बना रहे हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं, भगवान टीचर बन पढ़ाते हैं - इसी स्मृति में रहना है। घर गृहस्थ में रहते पूरा ट्रस्टी बनना है।

2) अभी हार-फूल स्वीकार नहीं करने हैं। विष्णु के गले का हार बनने के लिए माया को जीतने का पुरुषार्थ करना है।

वरदान:- अलौकिक जीवन की स्मृति द्वारा वृत्ति, स्मृति और दृष्टि का परिवर्तन करने वाले मर-जीवा भव l

ब्राह्मण जीवन को अलौकिक जीवन कहते हैं, अलौकिक का अर्थ है इस लोक जैसे नहीं। दृष्टि, स्मृति और वृत्ति सबमें परिवर्तन हो। सदा आत्मा भाई-भाई की वृत्ति वा भाई-बहिन की वृत्ति रहे। हम सब आपस में एक परिवार के हैं - यह वृत्ति रहे और दृष्टि से भी आत्मा को देखो, शरीर को नहीं - तब कहेंगे मरजीवा। ऐसी श्रेष्ठ जीवन मिल गई तो पुरानी जीवन याद आ नहीं सकती।

स्लोगन:-सदा शुद्ध फीलिंग में रहो तो अशुद्ध फीलिंग का फ्लू पास भी नहीं आ सकता।

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