Received this letter via email by a Kumari: 'I want to marry, is this ok as I have taken Gyan also?' - The full letter and our guidance. Part 2 of 2.
Original second Email we received:
आपका कहना भी सही है लेकिन मेरी मन, बुद्धि में यही संकल्प आ रहे है कि ये जन्म भी इसीलिए मिला है कि ज्ञान में रह कर गृहस्थी में रहकर और आत्माओं (इंसानों) को सुख दूं उन्हें भी ज्ञान में लाऊं। जाने कितनी आत्माएं (इंसान) बहुत अशांत और भटकी हुई है। मुझे खुद पर विश्वास है कि शादी करके मै अब भटकने वाली नहीं हूं। जिस लड़के से मै शादी करना चाहती हूं वो बहुत अच्छी प्रवृति का है। पर असल ज्ञान नहीं है उसमे, और मै ये ज्ञान उसे उसके साथ रहकर अनुभव करवा सकती हूं जिसे उसकी जरूरत है। बस आप मुझे ये बताइए कि कैसे मेरी उससे शादी हो कैसे अपने किरदार को मै निर्विघ्न निभा सकू।
अच्छा नमस्ते।
Our Response (and Guidance)
आपका पत्र मिला।
अब ध्यान से समझो।
गृहस्थ में रहकर ज्ञान लेना है - इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं, की शादी करनी है। लेकिन अर्थ है - की लौकिक परिवार में रहते यह ज्ञान लेना है। है अगर ज्ञान में आने से पहले अगर किसीने विवाह (शादी) की हुई है, तो बात और है। बाप कभी दलदल में गिरने को नहीं कहेंगे।
दूसरी बात - कोई का वर्त्तमान देख उसका भविष्य भी ऐसा ही रहेगा - यह नहीं है '' अगर व्यक्ति अच्छी प्रवृति का है, तो यह उसका वर्त्तमान का एक संस्कार है। हो सकता है भविष्य में संस्कार बदल जाये। परिवर्तन संसार का नियम है।
सबसे जरुरी बात
आत्मा को ज्ञान देने लिए उससे शादी करने की जरुरत है ? अगर ऐसा है, तो हम रोज शिव बाबा का सन्देश बहुतो को देते है - तो हमे क्या सभी से शादी करनी पड़ेगी ! हास्य की बात है ना। ..
ज्ञान क्या कहता है? क्या स्मृति मिली है ??
जवाब:
हम सभी आत्माए है - हम परमात्मा की संतान है - भाई भाई है। .. अथवा भाई और बेहेन है। ..
अब आप ज्ञान में हो, प्रकाश में हो.. क्या अपने भाई शादी करनी है ?
आप एक दिव्य आत्मा हो.. हम आपके लिखे पात्र से कह सकते है की आपमें सोचने की शक्ति है। तो समज भी अब आ गयी होंगी।।।
वैसे तो शार्ट में यही कहेंगे - की रोज मुरली सुनो।।मुरली ही हमारा भोजन है.. रोज अच्छा भोजन करोगे, तो आत्मा की तबियत ठीक रहेगी, और माया से बचे रहोगे।।।
और कोई प्रश्न मैं में आये, तो लिखो।।
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