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- 14 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki murli BapDada Madhuban 14-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 18-02-84 मधुबन ब्राह्मण जीवन - अमूल्य जीवन आज सदा स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों से स्नेह के सागर मिलन मनाने आये हैं। जैसे स्नेह से बाप को याद करते हैं वैसे बाप भी स्नेही बच्चों को पदमगुणा रिटर्न देने के लिए, साकारी सृष्टि में मिलने के लिए आते हैं। बाप बच्चों को आप समान अशरीरी निराकार बनाते और बच्चे स्नेह से निराकारी और आकारी बाप को आप समान साकारी बना देते हैं। यह है बच्चों के स्नेह की कमाल। बच्चों के ऐसे स्नेह की कमाल देख बापदादा हर्षित होते हैं। बच्चों के गुणों के गीत गाते हैं कि कैसे सदा बाप के संग के रंग में बाप समान बनते जा रहे हैं। बापदादा ऐसे फालो फादर करने वाले बच्चों को आज्ञाकारी, वफादार, फरमानबरदार सच्चे-सच्चे अमूल्य रत्न कहते हैं। आप बच्चों के आगे यह स्थूल हीरे जवाहरात भी मिट्टी के समान हैं। इतने अमूल्य हो। ऐसे अपने को अनुभव करते हो कि बापदादा के गले की माला के विजयी अमूल्य रत्न मैं हूँ। ऐसा स्वमान रहता है?डबल विदेशी बच्चों को नशा और खुशी रहती है कि हमें बापदादा ने इतना दूर होते हुए भी दूरदेश से चुनकर अपना बना लिया है। दुनिया बाप को ढूँढती और बाप ने हमें ढूँढा। ऐसे अपने को समझते हो? दुनिया पुकार रही है कि आ जाओ और आप सभी नम्बरवार क्या गीत गाते हो? तुम्हीं से बैठूँ, तुम्ही से खाऊं, तुम्हीं से सदा साथ रहूँ। कहाँ पुकार और कहाँ सदा साथ! रात दिन का अन्तर हो गया ना। कहाँ एक सेकण्ड की सच्ची अविनाशी प्राप्ति के प्यासी आत्मायें और कहाँ आप सभी प्राप्ति स्वरूप आत्मायें! वह गायन करने वाली और आप सभी बाप की गोदी में बैठने वाले। वह चिल्लाने वाली और आप हर कदम उनकी मत पर चलने वाले। वह दर्शन की प्यासी और आप बाप द्वारा स्वयं दर्शनीय मूर्त बन गये। थोड़ा सा दु:ख दर्द का अनुभव और बढ़ने दो फिर देखना आपके सेकण्ड के दर्शन, सेकण्ड की दृष्टि के लिए कितना प्यासे बन आपके सामने आते हैं।अभी आप निमंत्रण देते हो, बुलाते हो। फिर आपसे सेकण्ड के मिलने के लिए बहुत मेहनत करेंगे कि हमें मिलने दो। ऐसा साक्षात साक्षात्कार स्वरूप आप सभी का होगा। ऐसे समय पर अपनी श्रेष्ठ जीवन और श्रेष्ठ प्राप्ति का महत्व आप बच्चों में से भी उस समय ज्यादा पहचानेंगे। अभी अलबेलेपन और साधारणता के कारण अपनी श्रेष्ठता और विशेषता को भूल भी जाते हो। लेकिन जब अप्राप्ति वाली आत्मायें प्राप्ति की प्यास से आपके सामने आयेंगी तब ज्यादा अनुभव करेंगे कि हम कौन और यह कौन! अभी बापदादा द्वारा सहज और बहुत खजाना मिलने के कारण कभी-कभी स्वयं की और खजाने की वैल्यू को साधारण समझ लेते हो - लेकिन एक-एक महावाक्य, एक-एक सेकण्ड, एक-एक ब्राह्मण जीवन का श्वास कितना श्रेष्ठ है। वह आगे चल ज्यादा अनुभव करेंगे। ब्राह्मण जीवन का हर सेकण्ड, एक जन्म नहीं लेकिन जन्म-जन्म की प्रालब्ध बनाने वाला है। सेकण्ड गया अर्थात् अनेक जन्मों की प्रालब्ध गई। ऐसी अमूल्य जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसी श्रेष्ठ तकदीरवान विशेष आत्मायें हो। समझा कौन हो? ऐसे श्रेष्ठ बच्चों से बाप मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों को यह सदा याद रहता है ना! वा कभी भूलता, कभी याद रहता है? याद स्वरूप बने हो ना! जो स्वरूप बन जाते हैं वह कभी भूल नहीं सकते। याद करने वाले नहीं याद स्वरूप बनना है। अच्छा!ऐसे सदा मिलन मनाने वाले, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले, सदा स्वयं के समय के सर्व प्राप्ति के महत्व को जानने वाले, सदा हर कदम में फालो फादर करने वाले, ऐसे सिकीलधे सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।पोलैण्ड तथा अन्य देशों से आये हुए नये-नये बच्चों से:- सभी अपने को भाग्यवान समझते हो, कौन सा भाग्य है? इस श्रेष्ठ भूमि पर आना - यही सबसे बड़ा भाग्य है। यह भूमि महान् तीर्थ की भूमि है। तो यहाँ पहुँचे यह तो भाग्य है ही। लेकिन अभी आगे क्या करेंगे? याद में रहना, याद के अभ्यास को सदा आगे बढ़ाते रहना। जो जितना भी सीखे उसको आगे बढ़ाते रहना। अगर सदा सम्बन्ध में रहते रहेंगे तो सम्बन्ध द्वारा बहुत प्राप्ति करते रहेंगे। क्यों? आज के विश्व में सभी को खुशी और शान्ति दोनों चाहिए। तो यह दोनों ही इस राजयोग के अभ्यास द्वारा सदा के लिए प्राप्त हो जायेंगी। यह प्राप्ति चाहते हो तो सहज साधन यह है, इसको छोड़ना नहीं। साथ रखना। बहुत खुशी मिलेगी। जैसे खुशी की खान मिल जायेगी, जिससे औरों को भी सच्ची खुशी बांट सकेंगे। औरों को भी सुनाना, औरों को भी यह रास्ता बताना। विश्व में इतनी आत्मायें हैं लेकिन उन आत्माओं में से आप थोड़ी आत्मायें यहाँ पहुँची हो। यह भी बहुत तकदीर की निशानी है। शान्ति कुण्ड में पहुँच गये। शान्ति तो सभी को आवश्यक है ना। स्वयं भी शान्त और सर्व को भी शान्ति देते रहें, यही मानव की विशेषता है। अगर शान्ति नहीं तो मानव जीवन ही क्या है। आत्मिक, अविनाशी शान्ति। स्वयं को और अनेकों को भी सच्ची शान्ति प्राप्त करने का रास्ता बता सकते हो। पुण्य आत्मा बन जायेंगे। किसी अशान्त आत्मा को शान्ति दे दो तो कितना बड़ा पुण्य है। स्वयं पहले भरपूर बनो फिर औरों के प्रति भी पुण्यात्मा बन सकते हो। इस जैसा पुण्य और कोई नहीं। दु:खी आत्माओं को सुख शान्ति की झलक दिखा सकते हो। जहाँ लगन है वहाँ दिल का संकल्प पूरा हो जाता है। अभी बाप द्वारा जो सन्देश मिला है वह सन्देश सुनाने वाले सन्देशी बनकर चलते रहो।सेवाधारियों से:- सेवा की लाटरी भी सदाकाल के लिए सम्पन्न बना देती है। सेवा से सदाकाल के लिए खजाने से भरपूर हो जाते हैं। सभी ने नम्बरवन सेवा की। सब फर्स्ट प्राइज लेने वाले हो ना! फर्स्ट प्राइज़ है सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना। तो क्या समझते हो, जितने दिन सेवा की उतने दिन स्वयं भी सन्तुष्ट रहे और दूसरों को भी किया या कोई नाराज़ हुआ? सन्तुष्ट रहे और सन्तुष्ट किया तो नम्बरवन हो गये। हर कार्य में विजयी बनना अर्थात् नम्बरवन होना। यही सफलता है। न स्वयं डिस्टर्ब हो और न दूसरों को करो, यही विजय है। तो ऐसे सदा के विजयी रत्न। विजय संगमयुग का अधिकार है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो ना!सच्चे सेवाधारी वह जो सदा रूहानी दृष्टि से, रूहानी वृत्ति से रूहे गुलाब बन रूहों को खुश करने वाले हों। तो जितना समय भी सेवा की उतना समय रूहानी गुलाब बन सेवा की? कोई बीच में कांटा तो नहीं आया। सदा ही रूहानी स्मृति में रहे अर्थात् रूहानी गुलाब स्थिति में रहे। जैसे यहाँ यह अभ्यास किया वैसे अपने-अपने स्थानों पर भी ऐसे ही श्रेष्ठ स्थिति में रहना। नीचे नहीं आना। कुछ भी हो, कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन जैसे गुलाब का पुष्प कांटों में रहते भी स्वयं सदा खुशबू देता, कांटों के साथ स्वयं कांटा नहीं बनता। ऐसे रूहानी गुलाब सदा वातावरण के प्रभाव से न्यारे और प्यारे। वहाँ जाकर यह नहीं लिखना कि क्या करें माया आ गई। सदा मायाजीत बनकर जा रहे हो ना। माया को आने की छुट्टी नहीं देना। दरवाजा सदा बन्द कर देना। डबल लाक है याद और सेवा, जहाँ डबल लाक है। वहाँ माया नहीं आ सकती है।दादी जी तथा अन्य बड़ी बहनों से:- जैसे बाप सदा बच्चों का उमंग-उत्साह बढ़ाते रहते वैसे फालो फादर करने वाले बच्चे हैं। विशेष सभी टीचर्स को देश-विदेश से जो भी आई, सबको बापदादा सेवा की मुबारक देते हैं। हरेक अपने को नाम सहित बाप के याद और प्यार के अधिकारी समझकर अपने आपको ही प्यार कर लेना। एक-एक के गुण गायें तो कितने के गुण गायें। सभी ने बहुत मेहनत की है। अगले वर्ष से अभी उन्नति को प्राप्त किया है और आगे भी इससे ज्यादा से ज्यादा स्वयं और सेवा से उन्नति को पाते रहेंगे। समझा - ऐसे नहीं समझना कि हमको बापदादा ने नहीं कहा, सभी को कह रहे हैं। भक्त बाप का नाम लेने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं, सोचते हैं बाप का नाम मुख पर रहे लेकिन बाप के मुख पर किसका नाम रहता? आप बच्चों का नाम बाप के मुख पर है, समझा। अच्छा।डबल विदेशी भाई बहिनों के प्रश्न - बापदादा के उत्तरप्रश्न:- इस वर्ष की सेवा के लिए नया प्लैन क्या है?उत्तर:- समय को समीप लाने के लिए एक तो वृत्ति से वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करनी है। इसके लिए स्व की वृत्ति पर विशेष अटेन्शन देना है और दूसरा औरों की सेवा करने के लिए विशेष ऐसी आत्मायें निकालो जो समझें कि सचमुच शान्ति की विधि यहाँ से ही मिल सकती है। यह आवाज इस वर्ष में हो कि अगर शान्ति होगी तो इसी विधि से होगी। एक ही विधि है यह, जो विश्व को आवश्यकता है - वह इस विधि के सिवाए नहीं है। यह वातावरण चारों ओर इकट्ठा बनना चाहिए। भारत में चाहे विदेश में शान्ति की झलक प्रसिद्ध रूप में होनी चाहिए। चारों ओर से यह सभी को टच हो, आकर्षण हो कि यथार्थ स्थान है तो यही है। जैसे गवर्मेन्ट की तरफ से यू.एन.ओ. बनी हुई है तो जब भी कुछ होता है तो सभी का अटेन्शन उसी तरफ जाता है। ऐसे जब भी कोई अशान्ति का वातावरण हो तो सबका अटेन्शन शान्ति का सन्देश देने वाली यह आत्मायें हैं, इस तरफ जावे। अनुभव करें कि अशान्ति से बचने का यही एक स्थान है, जहाँ पनाह ली जा सकती है। इस वर्ष यह वायुमण्डल बनना चाहिए। ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छी है, राजयोग अच्छा है, यह तो सब कहते हैं लेकिन असली प्राप्ति यहाँ से ही होनी है, विश्व का कल्याण इसी स्थान और विधि से होना है, यह आवाज बुलन्द हो। समझा- इसके लिए विशेष शान्ति की एडवरटाइज करो, किसको शान्ति चाहिए तो यहाँ से विधि मिल सकती है। शान्ति सप्ताह रखो, शान्ति के समागम रखो, शान्ति अनुभूति के शिविर रखो, ऐसे शान्ति का वायब्रेशन फैलाओ।सर्विस में जैसे स्टूडेन्ट बनाते हो वह तो बहुत अच्छा है, वह तो जरूर वृद्धि को प्राप्त करना ही है। लेकिन अभी हर वैरायटी के लोग जैसे काले गोरे भिन्न-भिन्न धर्म की आत्मायें हैं, वैसे भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले हर स्थान पर होने चाहिए। कोई कहाँ भी जावे तो हर आक्यूपेशन वाला अपनी रीति से उन्हें अनुभव सुनाये। जैसे यहाँ वर्कशाप रखाते हैं - कभी डाक्टर की, कभी वकील की तो भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले एक ही शान्ति की बात अपने आक्यूपेशन के आधार से बोलते हैं तो अच्छा लगता है। ऐसे कोई भी सेन्टर पर आवें तो हर आक्यूपेशन वाले अपना शान्ति का अनुभव सुनायें, इसका प्रभाव पड़ता है। सभी आक्यूपेशन वालों के लिए यह सहज विधि है, यह अनुभव हो। जैसे कुछ समय के अन्दर यह एडवरटाइज अच्छी हो गई है कि सब धर्म वालों के लिए यही एक विधि है, यह आवाज हो। इसी रीति से अभी आवाज फैलाओ। जो सम्पर्क में आते हैं या स्टूडेन्ट हैं उन्हों तक तो यह आवाज होता है लेकिन अभी थोड़ा और चारों ओर फैले इसका अभी और अटेन्शन। ब्राह्मण भी अभी बहुत थोड़े बने हैं। नम्बरवार ब्राह्मण बनने की जो यह गति है, उसको फास्ट नहीं कहेंगे ना। अभी तो कम से कम नौ लाख तो चाहिए। कम से कम सतयुग की आदि में नौ लाख के ऊपर तो राज्य करेंगे ना! उसमें प्रजा भी होगी लेकिन सम्पर्क में अच्छे आयेंगे तब तो प्रजा बनेंगे। तो इस हिसाब से गति कैसी होनी चाहिए! अभी तो संख्या बहुत कम है। अभी टोटल विदेश की संख्या कितनी होगी? कम से कम विदेश की संख्या दो-तीन लाख तो होनी चाहिए। मेहनत तो अच्छी कर रहे हो, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन थोड़ी स्पीड और तेज होनी चाहिए। स्पीट तेज होगी - जनरल वातावरण से। अच्छा।प्रश्न:- ऐसा पावरफुल वातावरण बनाने की युक्ति क्या है?उत्तर:- स्वयं पावरफुल बनो। उसके लिए अमृतवेले से लेकर हर कर्म में अपनी स्टेज शक्तिशाली है या नहीं, उसकी चेकिंग के ऊपर और थोड़ा विशेष अटेन्शन दो। दूसरों की सेवा में या सेवा के प्लैन्स में बिजी होने से अपनी स्थिति में कहाँ-कहाँ हल्कापन आ जाता है इसलिए यह वातावरण शक्तिशाली नहीं होता। सेवा होती है लेकिन वातावरण शक्तिशाली नहीं होता है। इसके लिए अपने ऊपर विशेष अटेन्शन रखना पड़े। कर्म और योग, कर्म के साथ शक्तिशाली स्टेज, इस बैलेन्स की थोड़ी कमी है। सिर्फ सेवा में बिजी होने के कारण स्व की स्थिति शक्तिशाली नहीं रहती। जितना समय सेवा में देते हो, जितना तन-मन-धन सेवा में लगाते हो, उसी प्रमाण एक का लाख गुणा जो मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है। इसका कारण है, कर्म और योग का बैलेन्स नहीं है। जैसे सेवा के प्लैन बनाते हो, पर्चे छपाते हो, टी.वी., रेडियो में करना है। जैसे वह बाहर के साधन बनाते हो वैसे पहले अपनी मंसा शक्तिशाली बनाने का साधन विशेष होना चाहिए। यह अटेन्शन कम है। फिर कह देते हो, बिजी रहे इसलिए थोड़ा-सा मिस हो गया। फिर डबल फायदा नहीं हो सकता। अच्छा। वरदान:- सेवा द्वारा प्राप्त मान मर्तबे का त्याग कर अविनाशी भाग्य बनाने वाले महात्यागी भव आप बच्चे जो श्रेष्ठ कर्म करते हो-इस श्रेष्ठ कर्म अथवा सेवा का प्रत्यक्षफल है-सर्व द्वारा महिमा होना। सेवाधारी को श्रेष्ठ गायन की सीट मिलती है। मान, मर्तबे की सीट मिलती है, यह सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। लेकिन यह सिद्धियां रास्ते की चट्टियाँ हैं, यह कोई फाइनल मंजिल नहीं है इसलिए इसके त्यागवान, भाग्यवान बनो, इसको ही कहा जाता है महात्यागी बनना। गुप्त महादानी की विशेषता ही है त्याग के भी त्यागी। स्लोगन:- फरिश्ता बनना है तो साक्षी हो हर आत्मा का पार्ट देखो और सकाश दो। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- 30 Sep 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris Murli today in English 30/09/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 20/01/84 Become a great donor and a bestower of blessings. Today, BapDada is seeing in all the children the personality of purity, the royalty of being an embodiment of all attainments and the reality of being a spiritual embodiment of remembrance. He is seeing all the children crowned with the sparkling light of the personality of purity. On the one side He is seeing the gathering of the children who are embodiments of all attainments. On the other side are the souls of the world who always lack something and are never embodiments of attainment. Even though they constantly have all temporary attainments, they are never content; they are always want something or other. They constantly chant, "I want this, I want that." They are running around. They are thirsty and constantly wandering around here and there with the desire to attain something in terms of body, mind, wealth or other people. They especially want three things and make all sorts of effort for them. Firstly, they want power, of the body, of wealth, of status or of their intellect. Secondly, they also want devotion. They want to be able to perform devotion with an honest heart for a few moments. Devotee souls have the desire to perform such devotion. Thirdly, since the copper age, many souls have been seeing the world of sorrow and crying out in distress and, because of this sorrow and peacelessness, have been considering temporary attainment to be like a mirage. Therefore, they want liberation from the world of sorrow and the bondage of the sorrow of vices. Devotees want devotion, others want power and others want liberation. Who are the jewels of contentment who can give such discontented souls a drop of happiness, peace, purity and knowledge and enable them to attain something? Are you this? You are the children of the Merciful Father. The Father has compassion for you that, as the children of the Bestower, you still constantly cry out, "I want this! I want that! I want this!" for some temporary attainment. So, do you children, who are master bestowers and embodiments of attainment, feel mercy for the souls of the world? Do you have the enthusiasm to help your brothers who are wandering around so much chasing after temporary desires? Children of the Bestower, cast your vision of mercy and compassion on your brothers! Become great donors! Become bestowers of blessings! Become sparkling jewels of contentment and make everyone content. Nowadays, people call out to the goddess of contentment a great deal because where there is contentment, nothing is lacking. On the basis of contentment, one is also able to experience having plenty of physical wealth. If you give even just two rupees to someone who is content, that is equivalent to a hundred thousand. If someone is a millionaire and not content, then that million is not a million, for he is a beggar for desires. Desires mean distress. Desires (ichcha) can never make you become good (achcha) because, although your perishable desires may be fulfilled, they also give birth to many other desires. This is why you become trapped in circles of desires, as through you are trapped in a spider’s web. You cannot become free even though you want to. Therefore, make your brothers, who are trapped in such a web ignorant of even knowing about perishable desires. To be distressed (pareshaan) means to act beneath your dignity (shaan). All of you are children of God, children of the Bestower and all attainments are your birthright. When you lose your dignity, you become distressed. Show such souls their elevated dignity. Do you understand what you have to do?All you double-foreign children are going back to your respective places. What will you do when you get back? Become great donors and bestowers of blessings and fill the aprons of all souls with the attainments of peace and happiness. This is the thought you are going back with, is it not? Seeing the children's courage and love, BapDada gives the children multimillion-fold return of their constant love. Those who live in faraway lands have come closer through their recognition and attainment, whereas those of this land have become distant through their recognition and attainment. Therefore, double-foreign children, with the determination to be embodiments of attainment and having the enthusiasm of contentment, constantly continue to move forward. The Bestower of Fortune, the Bestower of All Attainments, is always with you. Achcha.To such merciful children of the Merciful Father, to the children who are jewels of contentment and who make everyone full of the treasure of contentment, to the children who are always embodiments of all attainments and who remain well-wishers for others with the good wishes to enable them to attain something, to those who make everyone ignorant of the knowledge of perishable desires, to the all-powerful children BapDada's love, remembrance and namaste.Seeing the double-foreign children, BapDada said:If anyone in this group is told to stay here, are you ever ready? None of you has any bondage back home, do you? This will also happen. The time will come when everyone's ticket is cancelled and you will be made to stay here. At such a time, no one will want to take salvation (facilities). Do all of you remember how you spent those four days when Brahma Baba became avyakt? Was the building big enough? Did you cook anything? So, how did you spend those four days? The days of destruction will also be spent just like that. You were absorbed in love at that time, were you not? Completion will also take place in a stage just like that when you will be absorbed in love. You will then stay here on the mountains and do tapasya. You will see the whole of destruction with your third eye. You are carefree in this way, are you not? You don't have any worries about your house, your family or your work. You are always carefree. There is no question as to what will happen. Whatever happens will be good. This is called being carefree. You might remember the building of your centre or your bank balance. Nothing should be remembered. Yours is true wealth, whether it has been used for the building or is in the bank. You will receive your wealth multiplied multimillion-fold. You have insured everything, have you not? Dust will turn to dust and you will receive your wealth multiplied multimillion-fold. What else do you want? True wealth can never go to waste. Do you understand? Remain constantly carefree in this way. “I don't know what will happen to the centre afterwards? What will happen to our home?” Let there not be this question. All of it has already been used in a worthwhile way. You no longer have any question as to whether it will be used in a worthwhile way or not. You have already willed it in advance. When someone has made his will beforehand, he remains carefree. All of you have willed your every breath, thought, second, wealth and body, have you not? You cannot use anything for yourself that you have already willed.You cannot use even a second or a penny without shrimat; it all belongs to God. Therefore, souls cannot use it for themselves or for other souls. You can use it according to the directions you receive. Otherwise, it is being dishonest with the treasures you have been entrusted with. If you use even a little of your wealth without a direction for any task, that wealth will then pull you to where it has been used. The wealth will pull the mind and the mind will pull the body and distress you. So, you have willed it all, have you not? If you use everything according to the directions you receive, there is no sin and no burden; you are free from that. You do understand the directions, do you not? You have received directions for everything. It is clear, is it not? You never become confused, do you? You never become confused as to whether you should do something or not for a particular task, do you? Whenever there is a little confusion, have it verified by the instruments. Or, if your stage is powerful, then the touchings you receive at amrit vela will always be accurate. Don't sit at amrit vela with mixed feelings in your mind, but sit with a plain intellect and the touchings will be accurate.Whenever some children have problems, they sit with only their own feelings in their minds. “This is what I should do. That is what should happen. In my opinion, this is fine.” Therefore, the touchings too would not be accurate. They would then only receive a response of the thoughts of their own mind. This is why, somewhere or other, there is no success. They then become confused about the direction they received at amrit vela, and thereby don't understand why something happened or why they weren't successful. However, they had mixed feelings in their own minds and so they just received the fruit of those feelings. What fruit would you receive from the dictates of your own mind? There would only be confusion, would there not? This is called willing even the thoughts of your mind. This is my thought, but what does Baba say? Achcha.Speaking to the teachers:BapDada has special love for teachers because you are equal. The Father is the Teacher and you are master teachers. In any case, those who are equal are loved very much. You are moving forward in service with very good zeal and enthusiasm. All of you are rulers of the globe. You toured around and came into relationship with many souls and are carrying out the task of bringing many souls close. BapDada is pleased. You feel that BapDada is pleased with you, do you not? Or, do you feel that you still have to do a little more? He is pleased, but you have to please Him a little more. You are working very hard. You work hard with love and this is why it doesn't feel like hard work. BapDada always says that serviceable children are the crowns on the head. You are the crowns on the head. Seeing the zeal and enthusiasm of the children, BapDada gives further co-operation to increase the zeal and enthusiasm. One step of the children and multimillion steps of the Father. Where there is courage, there is automatically the attainment of enthusiasm. When you have courage, you receive the Father's help. This is why you are carefree emperors. Continue to serve and you will continue to receive success. Achcha.BapDada meeting guests who have come for the Mt. Abu Conference (13/02/84)Dr. James Jonah, Assistant Secretary General, United NationsBapDada will always give co-operation and fulfil the child’s thoughts in his heart. Whatever your thoughts are, you have reached exactly the right place for you to put those thoughts into a practical form. Do you believe that all of these are your companions who will help you to fulfil your thoughts? By having remembrance you will constantly experience peace. You will continue to experience very sweet peace filled with happiness. You have reached the family that loves peace and so you have become an instrument for service. As a return for becoming an instrument, whenever you remember the Father, you will easily continue to experience success. Always keep yourself in the awareness, “I am a soul who is an embodiment of peace, I am a child of the Ocean of Peace, I am a soul who loves peace”. Use this experience to continue to give this message to whoever comes into connection with you. This alokik occupation will constantly enable you to perform elevated actions and those elevated actions will enable you to experience an elevated attainment. Then, both your present and your future will be elevated. You are a soul who is worthy of experiencing peace. Constantly continue to move along in the waves in the Ocean of Peace.Whenever you find a task difficult, stay in connection with the angels of peace and the difficulties will become easy. Do you understand? Even so, you are very fortunate. It is only a handful out of multi-millions, and a few from that handful who reach this land of the Bestower of Fortune. So, you have become fortunate. Now, you definitely have to become multi-million times fortunate. You have this aim, do you not? You will definitely become this, simply continue to keep your connection with the angels of peace. It is special souls that play special parts who reach here. You have a special part in the future too, which you will come to know as you progress further. This task is already accomplished successfully. This is just a means of service to enable those who want to create their fortune to do so. However, otherwise, it is already accomplished and it has been accomplished many times before. Your thought is very good. Give all your companions who have gone from here, those who are loving and co-operative, special flowers of love together with BapDada’s love, remembrance and namaste.Avyakt BapDada meeting Madam Anwar Sadat – A message for Egypt . Go back to your country and show them the method of economy of wealth. You experience wealth with happiness in the mind and economy of wealth is the basis of happiness in the mind. In this way, show them the way to be economical with wealth and the means of happiness of the mind and they will experience you to be an angel of happiness who gives them wealth (dhan) and the mind (man). So, go from here having become an angel of peace and happiness. Constantly keep with you the imperishable blessings from this sacrificial fire of peace. Whenever any situation arises, when you say, “My Baba”, that situation will become easy. When you wake up, first of all, always have a sweet conversation with the Father and, during the day, every now and then, check yourself as to whether you are with the Father. At night, go to sleep with the Father, do not sleep alone and you will constantly continue to experience the Father’s company. You will continue to give the Father’s message to everyone. You can do a lot of service because you have the desire that everyone should receive happiness and peace and when you do something from your heart’s desire you definitely have success in that. Achcha. Blessing: May you be an easy yogi who forges all your relationships with the one Father and thereby bids farewell to Maya. When there is a relationship, remembrance is automatically easy. To have all your relationships with the one Father is to be an easy yogi. By being an easy yogi, you can easily bid farewell to Maya. When Maya has taken leave, the greetings from the Father enable you to make a great deal of progress. Those who continue to receive blessings from God and from the Brahmin family at every step easily continue to fly. Slogan: Become businessmen who remain constantly busy and you will have an income of multimillions at every step. #bkmurlitoday #Murli #brahmakumari #english
- 17 Aug 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English - 17/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, in order to be saved from deep suffering by Maya, take asylum with the Father. By taking asylum with God, you will be liberated from the bondage of Maya for 21 births. Question: By making which effort do you children become worthy of worship and worthy of being in a temple? Answer: In order to become worthy of worship and seated in a temple, make effort to save yourselves from evil spirits. No evil spirit should ever enter you. When you see an evil spirit in anyone, when someone is getting angry or influenced by attachment, step away from that person. Promise yourself that you will remain pure. Tie a true rakhi. Song: The heart desires to call out to You. Om Shanti. Devotees always call out to God. God is called the Supreme Father, the Supreme Soul. They call out: O Purifier, Supreme Father, Supreme Soul, come and make us children pure from impure. Therefore, all are surely impure, because this is the kingdom of Ravan and the five vices are omnipresent. It isn't that the five vices are still omnipresent in the golden age; no. That is called the completely viceless world. This is the completely vicious world. They have forgotten that Bharat was completely viceless. They go to the temples and praise the deities: You are full of all virtues, completely viceless. Here, people are completely vicious. This is why they call out to the Father. The Father comes and gives asylum to those who are completely vicious. He gives them refuge. Now all are refugees and so they are calling out. Souls call out to their Father: Baba, we souls have become completely vicious. Come and make us viceless. People continue to kill one another and this is why they are called devilish. They don't know that Bharat was the deity world. Truly, people do not know that Bharat was the land of the deities and that they used to rule there. However, for half the cycle, Maya has gradually made everyone become totally impure. This is why people say: Now come and give us impure ones refuge. You have now come and taken the lap of the Supreme Father, the Supreme Soul, in order to become future deities. This is God’s spiritual Godfatherly mission; it is the mission for making impure ones pure and thorns into flowers. It is the children's business to follow the directions of the Supreme Father, the Supreme Soul, and change thorns into flowers and make residents of hell into residents of heaven. You say: O God, the Father! Therefore, you surely know Him, do you not? So then, you cannot ask where God is. The soul says: O God the Father! Souls call out to the Supreme Soul. He is not visible through these eyes. Souls too are not visible. This is something to be understood. Souls have the form of light. The Supreme Father, the Supreme Soul, has the same form. The Father says: You souls shed costumes and take others. You souls are imperishable whereas the bodies are perishable. The soul sheds the body. They say, "My father has died", but the soul doesn't actually die. They invoke the (departed) soul. You now understand this. Human beings of the world don’t know the Father at all. This is why they fight and quarrel so much among themselves. Now you can't tell what they will do with the missiles. They are said to be devilish. Baba says: I don't create such a world. Baba creates heaven. He makes you into the masters of heaven. Therefore, the Father surely has to come. The Father says: Children, I have come to make those who have become impure and unhappy ever happy. There, no one would say: O Purifier, come!, or: O God, the Father, have mercy! They never call out in this way because they are happy anyway. Everyone in sorrow remembers Him. Souls remember Him. There is happiness and sorrow experienced through their bodies. When a soul doesn't have a body, he is beyond happiness and sorrow. The Father says: I enter this one and name him Brahma. Some understand this very clearly whereas others don't. So, it is understood that they are not worthy of going to the pure world, and this is why they don’t follow shrimat. This is the devilish community of Ravan. People burn an effigy of Ravan every year. That is a symbol. They also have a rakhi tied every year because they don't remain pure. They have a rakhi tied and then become impure. This is why they have the rakhi tied year after year. The rakhi is a symbol of purity. A rakhi is sent to those who indulge in vice: Promise that you will remain pure. By becoming pure, you will receive the fortune of the kingdom for 21 births. Baba says: I alone come and make all of you worthy of worship. You are now worshippers. You worship deities, pebbles and stones etc. and continue to stumble around. I liberate you from that stumbling and make you worthy of worship like Lakshmi and Narayan. You have come here to change from an ordinary man into Narayan. You have been suffering from Maya for half the cycle and you have now taken asylum with the Supreme Father, the Supreme Soul. Mama too has taken asylum. This Baba has also taken asylum with Shiv Baba. That One doesn't have a body of His own. His name is Shiva. Shiv Baba's name never changes. The names of human souls keep changing. Souls receive 84 names. Human beings don't know these things. They speak of 84 births but no one knows who takes 84 births. The people of Bharat who were deities are the ones who take 84 births. This is the unlimited drama. It is human beings who have to know this. You know that God, the Father, is the Creator of heaven and so you should certainly receive your inheritance of heaven. Bharat was heaven and then Maya, Ravan, snatched away that inheritance. You now have to conquer Maya once again. Those who conquer Maya conquer the world. When you are defeated by Ravan, you become devils and you now have to become deities. Thorns have to become buds and then buds have to be made into flowers. When storms of Maya come, the buds and flowers fall off. Some belong to the Mother and Father and then divorce them. These matters have to be understood, do they not? Everything is explained with dates and time periods etc. This is the inverted human world tree and the Seed is up above. This is why people remember Him and say: O God, the Father! It is very difficult to understand this knowledge. You children know that everyone remembers the One who is the Father of all souls. We are brothers. Everyone should receive the inheritance from the Father. This is called a brotherhood. You are brothers. You have to receive the inheritance from the Father. He gives everyone the inheritance of happiness and peace. The Father comes and teaches you in the form of the Teacher. Then He becomes the Satguru and takes you back with Him. Only God, the Father, is called the Truth. This is His Company of the Truth. “The Company of the Truth takes you across.” Destruction now has to take place. You all have to go to the land of peace and the land of happiness. People say: Take my boat across. We are drowning in the ocean of poison. Therefore, the Father has to come to take you to the land of peace and the land of happiness. For half the cycle it is the land of happiness and for half the cycle it is the land of sorrow. This Bharat is completely impure. It has become the land of bhogis (people who indulge in sensual pleasures). It would not be called the land of yogis. The golden and silver ages are called the kingdom of Yogeshwar. They also call Krishna, Yogeshwar. You have to have yoga with God and claim that status. You are now claiming that. The Father explains to you so well. The One who is explaining to you is the Ocean of Knowledge. There cannot be a human ocean of knowledge. This Baba doesn't call himself an ocean of knowledge. You are now becoming master oceans of knowledge. You swallow all the knowledge from the Ocean of Knowledge. Just as students swallow all the knowledge from a teacher and become barristers, in the same way, you swallow the whole ocean of knowledge. When you have taken all the knowledge, you will then receive your reward. The Father will go back to the land of nirvana. You children claim your inheritance, numberwise, according to your efforts. Through this knowledge, you become deities and are constantly happy. You are now in God's asylum. Baba is liberating you from the bondage of Maya for 21 births. The Father explains to you and makes everything very easy. Only those who are to become ones with divine intellects will become those. You understand that you claim your inheritance from Baba every cycle. Maya snatches it away from you and then I come and give you your inheritance of happiness and peace. Ravan gives you the inheritance of sorrow and Rama gives you the inheritance of happiness. Baba tells you for how many births and for how long you receive the inheritances of happiness and sorrow. The Father says: Simply remember Me, the Father. I, the soul, am a child of the Supreme Father, the Supreme Soul. That’s all! Continue to remember the Father and your sins will be absolved. You will become the kings who are conquerors of sin. The era of King Vikarmajeet (who conquered sins) began in year one and then, after 2500 years, the era of King Vikram (who committed sins) began. Vikarmajeet and Vikram are the two eras of Bharat. Everyone knows about the era of Vikram, but they have forgotten about the era of Vikarmajeet. This is a study. Look how far the murli travels . How else would the murlis reach the brothers and sisters? Tapes are also sent everywhere. People at all the centres will continue to listen to the tapes. This murli is wonderful. It is remembered of this that the gopis were desperate to listen to it. The Father says: I come into the impure world. In the golden age, the deities have limitless happiness. No one else can have as much happiness. They live in palaces studded with diamonds and jewels. Here, gold is so expensive. There, you will build palaces with golden bricks. There, they will be studded with diamonds. Look what the Father makes you children from what you were. You simply have to promise to remain pure. There should be no evil spirit of anger. One understands when that evil spirit has entered someone. Therefore, you have to separate that one from everyone else. There are many who are unable to destroy their attachment even now. Just as a female monkey has attachment, so people, too, have attachment to their children. Monkeys have the vices in them the most. From being like monkeys, you are now being made worthy of being in a temple. The significance of Raksha Bandhan has been explained to you. It is not just a question of tying a rakhi. A promise is made to the Father. Sweet Baba, unlimited Baba, for half the cycle we devotees remembered You. You have now come to make us into the masters of Paradise. This is why we become Your helpers. We promise that we will never become impure. We will become pure and make Bharat pure.This is such an easy thing. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Follow shrimat and do the service of making impure human beings into pure deities. Become a full helper of the Father. 2. Swallow all the knowledge of the Ocean of Knowledge. Burn away your sins with remembrance of the Father and become a conqueror of sinful actions. Blessing: May you be a hero actor who plays a special part on the special stage with the awareness of an elevated life. As soon as you children were given a divine birth through Father Brahma, he gave you the blessing, “May you be pure, may you be yogi”. As soon as you took birth, he sustained you in the form of the senior mother with love for purity. He made you constantly swing in the swings of happiness, and sang you the lullaby of becoming images of all virtues, images of knowledge, and embodiments of happiness and peace. The elevated children of such a mother and Father are the Brahma Kumars and Kumaris. By keeping the importance of this life in your awareness, you play special parts, hero parts on the special stage. Slogan: To know the importance of the word “point”, to become a point and to remember the Father, the Point, is to be a yogi. #Murli #english #bkmurlitoday #brahmakumari
- BK murli today in Hindi 25 July 2018
Brahma Kumaris murli today in Hindi - BapDada - Madhuban - 25-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन'' मीठे बच्चे - भोलानाथ बाबा आये हैं भक्तों को भक्ति का फल देने, उन्हें अगम-निगम का भेद सुनाकर मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा देने'' प्रश्न: 21 जन्मों के लिए राजाई पद की प्राप्ति किन बच्चों को होती है? प्रजा में कौन जाते हैं? उत्तर: जो मातेले बन बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाते हैं उन्हें राजाई पद प्राप्त होता है और जो सौतेले हैं, बलिहार नहीं जाते हैं वो 21 जन्म ही प्रजा में चले जाते हैं। तुम श्रीमत पर चल अपने ही योगबल से राजाई का तिलक लेते हो। यहाँ हथियार आदि की बात नहीं। तुम्हें बुद्धियोग बल से मायाजीत-जगतजीत बनना है। गीत:- भोलेनाथ से निराला.... ओम् शान्ति।देखो, क्या कहते हैं? भक्तों की रक्षा करने वाला। तो जरूर भक्त कोई आ़फत में आये हुए हैं। भक्तों का रखवाला। रक्षा किसकी होती है? जो आ़फत में फँसा हुआ है। इन भक्तों का रक्षक शिवबाबा है। भक्तों को भक्ति का फल जरूर मिलता है। मेहनत तो करते हैं ना। कायदा कहता है पुरुषार्थ से प्रालब्ध मिलती है। अब इस दुनिया में पुरुषार्थ कराने वाले सब हैं आसुरी सम्प्रदाय। वास्तव में पुरुषार्थ कराने वाला चाहिए कोई अच्छा। सच्चा पुरुषार्थ सिर्फ एक भोलानाथ बाप ही कराते हैं। जिस्मानी लौकिक माँ, बाप, टीचर सभी हद का पुरुषार्थ कराते हैं। बेहद की नॉलेज कोई दे न सके। भल कोई बैरिस्टर-जज बनेंगे फिर दूसरे जन्म में नयेसिर पुरुषार्थ करना पड़े। बैरिस्टर तो कायम नहीं रहेंगे। प्रालब्ध तो कुछ बनी नहीं। गुरू भी करके कुछ सिखलाते हैं, शास्त्र सुनाते हैं परन्तु वह भी अल्पकाल का सुख मिला। प्रालब्ध तो कुछ बनी नहीं। फिर दूसरे जन्म में गुरू करना पड़े। यह भोलानाथ है सतगुरू। सतगुरू हमेशा सत्य ही बोलता है। वही आकर सत्य कथा सुनाते हैं। यह है सतगुरू की मत जिससे मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है। यह है नर को नारायण बनाने की मत। भोलानाथ अगम-निगम, आदि-मध्य-अन्त का राज़ बैठ बताते हैं। और कोई मुक्तिधाम, जीवनमुक्तिधाम (स्वर्ग) को जानते ही नहीं। मुक्तिधाम का मालिक है परमपिता परमात्मा, जो परमधाम में रहने वाला है। अब बच्चों को मत मिलती है। बाबा ने बार-बार समझाया है कि यह बाप-टीचर-गुरू है। अगर कृष्ण भगवान् था तो क्या उसने सिर्फ मुरली बजाई? बस! श्रीकृष्ण को बाप-टीचर-सतगुरू भी कोई नहीं कहेंगे। अब बाबा जबकि सच्चा रास्ता बताते हैं तो फिर झूठा छोड़ देना चाहिए। गुरू शुरू हुए हैं द्वापर से। सतयुग-त्रेता में गुरू होते नहीं। माता गुरू ने ज्ञान अमृत पिलाए स्वर्ग बनाया फिर वहाँ गुरू की दरकार नहीं। अब देखो - तुम बच्चों को कितनी अच्छी मत देता हूँ। सबको युद्ध के मैदान में बाबा ने खड़ा किया है कि 5 विकारों पर जीत पहनो और फिर ऐसे श्रीकृष्ण समान देवता बनो। हम जानते हैं - यह श्रीकृष्ण मायाजीत बन जगतजीत अर्थात् जगत का प्रिन्स बना। (श्रीकृष्ण का चित्र हाथ में उठाए समझाना) तुम बच्चियां जानती हो कि हम युद्ध के मैदान पर हैं। मायाजीत-जगतजीत बनना है। जैसे कृष्ण जो फिर नारायण बना फिर उनके साथ और भी सारी राजधानी थी तो वह सब जरूर युद्ध के मैदान में होंगे, जो माया पर जीत पाते होंगे। 5 हजार वर्ष पहले यह श्रीकृष्ण भी अपने अन्तिम जन्म में युद्ध के मैदान में थे। वैसे अब यह भी युद्ध के मैदान में हैं। तुम भी युद्ध के मैदान में हो। 5 विकारों पर जीत पाकर तुमको यह बनना है। इसको कहा जाता है नारायणी नशा। मायाजीत-जगतजीत बनना है। कितनी सहज बात है! सिर्फ एक द्रोपदी तो नहीं थी। सब मातायें द्रोपदियां हैं। सबको सतयुग में नंगन होने से बचाते हैं। वहाँ कोई विकार में नहीं जाते। कहेंगे - भला तब बच्चे कैसे पैदा होंगे? अरे, वह तो पवित्र दुनिया है। तुम सन्यासी लोग घरबार छोड़ते हो तो फिर दुनिया खत्म हो जाती है क्या? दुनिया तो बढ़ती रहती। सन्यासी जानते हैं पवित्रता अच्छी है। विकारों का सन्यास तो अच्छा है। सन्यास करने वालों को सन्यास न करने वाले माथा टेक गुरू बनाते हैं। उस सच्चे सतगुरू द्वारा यह मातायें गुरू बनती हैं, जिन्हों की ही विजय माला बनी हुई है। बाबा कहते हैं - बच्चे, तुम पढ़कर पद पाओ। अब बाप ने युद्ध के मैदान में खड़ा किया है - श्रीकृष्ण जैसा बनाने के लिए। उनकी सारी राजधानी है। प्रिन्स-प्रिन्सेज तो होंगे ना। अभी तो न राजा-महाराजा कहला सकते, न प्रिन्स-प्रिन्सेज। अब तुमको बाप की दैवी मत मिलती है। अब माताओं को ज्ञान-कलष मिला है। यह बच्चियां अमृत पिलाए असुरों को देवता बनाती हैं। देवतायें पुरानी दुनिया पर थोड़ेही राज्य करेंगे। नई दुनिया भी बन रही है। तो बच्चे, अब जल्दी-जल्दी करो। एक तो है विकारों का बंधन, दूसरा फिर है कर्मबन्धन। उनसे छूटने लिए श्रीमत पर चलना पड़े। बाबा कहते हैं - मुझे याद कर अशरीरी बनो। ऐसे नहीं कि आत्मा परमात्मा में मिल एक हो जाती है। न कोई ज्योति ज्योत समाया है, न समाने ही हैं। आत्मा समा जाए तो जड़ हो जाए। आत्मा तो अविनाशी है। शरीर को विनाशी कहा जाता है। आत्मा मेरे साथ योग लगाकर पवित्र बनती है। फिर शरीर भी पवित्र मिलेगा। आत्मा पवित्र हो जायेगी फिर यह शरीर ख़लास हो जायेगा। फिर पवित्र तत्वों से पवित्र शरीर बनेंगे। यह शरीर पूजन लायक नहीं बनते। पूज्य तो सिर्फ देवतायें ही हैं। उन पर फूल चढ़ा सकते हैं। उन्हों को श्री श्री अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कहा जाता है। श्री श्री दो बार क्यों कहते हैं? क्योंकि सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण हैं ऊंच ते ऊंच, उनकी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। उन्हों को 16 कला सम्पूर्ण कहेंगे। चन्द्रवंशी हैं 14 कला तो चन्द्रवंशी को सिर्फ श्री कहेंगे। लक्ष्मी-नारायण को ऊंच टाइटिल मिलता है - श्री श्री लक्ष्मी, श्री श्री नारायण। वह है महाराजा-महारानी और राम-सीता हैं राजा-रानी। नम्बरवार जो जैसा बनता है उनको ऐसा टाइटिल मिलता है। यहाँ भी महाराजायें और राजायें हैं। बड़े को महाराजा कहा जाता है। राजायें महाराजाओं के आगे सिर झुकायेंगे। महाराजा पहले हैं। राजा पीछे हैं। तो अब श्रीमत पर चलना है। श्री श्री जगत गुरू। रूद्र माला है ना। जगत का मालिक भी वह है। टीचर भी वह है तो गुरू भी वह है। ऐसे बाबा को याद करना पड़े। कहते हैं - बंधन है कोई छुड़ावे। (तोते का मिसाल) अरे, भगवान् कहते हैं अब मैं तुमको लेने आया हूँ, तुम सिर्फ अंगुली पकड़ो। वह जो कहे सो करो, पवित्र तो जरूर बनना पड़े। इस कब्रिस्तान को क्या याद करना है। रहना भल यहाँ है परन्तु सिर्फ बुद्धियोग वहाँ लगाना है। इसको कहा जाता है शान्तिधाम, सुखधाम को याद करना। नष्टोमोहा भी बनना है। वह है पतियों का पति, बापों का बाप, गुरूओं का गुरू। तो ऐसा (श्रीकृष्ण) बनने लिए मेहनत करनी पड़े। कल्प पहले भी पुरुषार्थ किया था और सतयुग की राजधानी स्थापन हुई थी। फिर हो रही है। इसमें पवित्र रहना है। पति जो सेवा कहे वह तुम करो बाकी सिर्फ पवित्र रहना है। पवित्र नहीं बनेंगे तो वैकुण्ठ का मालिक नहीं बनेंगे। अब बाप आकर तुम बच्चों को स्वर्गवासी बनाते हैं। पतितों को पावन करने वाला भी वह है। जगत का मालिक भी वह है।अब तुम बच्चियाँ ज्ञान धन से मनुष्यों को देवता बनाओ। यह तो नॉलेज है। बुद्धि में कितनी रोशनी आ गई है। और कोई को यह नॉलेज नहीं। सब दर-दर धक्के खाते रहते हैं। यहाँ हमको बाबा ने कितना साइलेन्स में बिठा दिया है। बाबा कहते - मरने लायक हो तो भी बैठकर सुनो। ज्ञान अमृत मुख में हो, शिवबाबा की याद हो तब प्राण तन से निकलें। फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। नहीं तो न विकर्म विनाश होंगे, न मोह जीत बनेंगे। मुफ्त भक्ति का फल गंवा देंगे। सब भक्त हैं ना, माया के बंधन में फँसे हुए हैं। रखवाला है भोलानाथ शिव। रक्षा करने आये हैं तो उनकी राय पर चलना है। श्रीकृष्ण के कुल में जाना है। श्रीकृष्ण है फुल पास, सम्पूर्ण चन्द्रमा। जब चन्द्रवंशियों का समय आता है तो वह अपना राज्य ले लेते हैं। तो नापास क्यों होना चाहिए? फुल पास होना है तो पुरुषार्थ करो। डरने का काम नहीं। निर्भय-निर्वैर बनना है। समझाना तो पड़ेगा ना। जो कहते हैं भगवान् सर्वव्यापी है उन्होंने ही भारत को ऐसी दुर्दशा में लाया है। भगवान् तो एक ही भोलानाथ है, जो सब भक्तों का रखवाला है। कृष्ण जो पूज्य था सो अब पुजारी है। अब कृष्ण की आत्मा यहाँ है। अब कुछ समझो। बहुत बड़ी लॉटरी है। घोड़े दौड़ है। हमको दौड़ना है बुद्धियोग से। जितना हम दौड़ेंगे उतना जल्दी बाबा के पास पहुँचेंगे। विकर्म विनाश होंगे। बाबा ने बार-बार समझाया हैं - हम युद्ध के मैदान में खड़े हैं। मनुष्य कहेंगे हथियार आदि कहाँ हैं - जो सारी सृष्टि पर विजय पायेंगे? (बाबा ने एक्ट कर दिखाई) हम बुद्धियोग बल से मायाजीत-जगतजीत बन रहे हैं। हम नेष्ठा में बैठे हैं अर्थात् शिवबाबा की याद में हैं। बुद्धि वहाँ लटकी हुई है। पतियों के पति ने कहा है - पतिव्रता बनना, और कोई को याद नहीं करना। योग लगाते-लगाते परिपक्व अवस्था को पाना है। कन्या भी पति को याद करती है ना। वह तो हैं देहधारी। परमात्मा तो अशरीरी है, उनको बुद्धि से ही याद कर सकते हैं। देह-अभिमान तोड़ देही-अभिमानी बन जायेंगे। बुद्धि में चक्र तो फिरता रहता है। हम अपने स्वर्गधाम जरूर पधारेंगे। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी फिर वैश्य, शूद्र वंशी बनेंगे। फिर बाबा आकर शूद्र से ब्राह्मण बनायेंगे। ऐसे-ऐसे अपने से बात करनी है। बच्चे लोग बगीचों में जाकर पढ़ते हैं। तुम भी एकान्त में बैठ शिवबाबा को याद करो। हमारा पुराना हिसाब-किताब चुक्तू होगा फिर हम राज्य करेंगे। अभी हम युद्ध के मैदान में है। फिर हम भारत पर अटल-अखण्ड सुख-शान्ति का राज्य करेंगे। वी आर एट वार........ हम सब लड़ाई के मैदान पर हैं। यह है सारी योगबल की बात। इनमें तकलीफ तो कोई नहीं। सिर्फ बाबा की श्रीमत पर चलना है। फिर आटोमेटिकली राजाई का तिलक लग जायेगा। वरदान मिल जाता है - आयुश्वान भव, पुत्रवान भव। वहाँ धन आदि सब अकीचार रहता है। पहले से साक्षात्कार होता है कि बच्चा आने वाला है। वहाँ मुख का प्यार होता है। विकार की बात ही नहीं है। वह है ही निर्विकारी दुनिया। श्रीकृष्ण देखो - कितना फर्स्टक्लास मीठा है! अब ऐसा बनना है। तुमको तो पटरानी बनना है, मीरा तो सिर्फ भजन गाती थी उनको भगवान् थोड़ेही मिला, वह तो है ही भक्ति मार्ग। मीरा भी अभी कहाँ न कहाँ है। उसने भी ज्ञान लिया होगा, अगर पक्की भक्तिन होगी। हम भी द्वापर से भक्ति करते आये हैं ना। बुद्धि से समझना है - शिवबाबा मैं आपकी हूँ। आप से पूरा वर्सा लूंगी। मैं आप पर बलिहार जाती हूँ। तो बाबा भी 21 बार बलिहार जायेंगे। अगर बलिहार नहीं जायेंगे, सौतेले बनेंगे तो 21 बार प्रजा में आयेंगे। बाबा कहते हैं - तुम मेरे को याद करो तो हम मदद भी करेंगे। मदद तो जरूर अपने बच्चों को ही करेंगे, दूसरे को क्यों करेंगे! अच्छा!मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) माया पर जीत पाकर हमें श्रीकृष्ण समान जगतजीत बनना है। इस युद्ध के मैदान में सदा विजयी बनना है। हार नहीं खानी है। 2) श्रीमत से स्वयं को विकारों के बंधन और कर्मबन्धन से मुक्त करना है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। बुद्धियोग की दौड़ी लगानी है। वरदान: बैलेन्स की विशेषता को धारण कर सर्व को ब्लैसिंग देने वाले शक्तिशाली, सेवाधारी भव l अभी आप शक्तिशाली आत्माओं की सेवा है सर्व को ब्लैसिंग देना। चाहे नयनों से दो, चाहे मस्तकमणी द्वारा दो। जैसे साकार को लास्ट कर्मातीत स्टेज के समय देखा - कैसे बैलेन्स की विशेषता थी और ब्लैसिंग की कमाल थी। तो फालो फादर करो - यही सहज और शक्तिशाली सेवा है। इसमें समय भी कम, मेहनत भी कम और रिजल्ट ज्यादा निकलती है। तो आत्मिक स्वरूप से सबको ब्लैसिंग देते चलो। स्लोगन: विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव कराना ही लाइट-माइट हाउस बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- BK murli today in Hindi 25 Aug 2018 Aaj ki Murli
Brahma kumari murli today Hindi -BapDada -Madhuban -25-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - पवित्र रहने की कसम लेना ही सच्चा रक्षाबंधन है, बाप कल्प में एक ही बार यह राखी तुम बच्चों को बांधते हैं" प्रश्नः- पवित्रता की प्रतिज्ञा करने वालों को भी योग में रहने का इशारा क्यों मिलता है? उत्तर:- क्योंकि योग की शक्ति से ही वायुमण्डल को शान्त बना सकते हो। सारी दुनिया को शान्ति का वर्सा देने का उपाय ही योग है। तुम बाप को याद करते हो - विश्व में शान्ति फैलाने के लिए। जितना बाप को याद करेंगे उतना माया का असर नहीं होगा। बाप का यही फ़रमान है - बच्चे, अशरीरी भव। गीत:- भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना....... ओम् शान्ति।बेहद के बाप का बच्चों प्रति फ़रमान है कि अशरीरी होकर रहो अर्थात् अपने को आत्मा निश्चय कर इन कर्मेन्द्रियों से अपने को अलग समझो। यह शरीर डिपेन्ड करता ही है आत्मा के ऊपर। आत्मा अलग हो जाती है तो शरीर कोई काम की चीज़ नहीं रहता, जिसको फिर जलाया जाता है। जब आत्मा निकल जाती है तो जैसे मुर्दा, किचड़ा हो जाता। किचड़ा होता है तो कहते हैं कि इस किचड़े को जला दो। आत्मा बिगर यह शरीर काम का नहीं है। तो अहम् आत्मा इमार्टल है। यह शरीर जो पार्ट बजाने लिए मिलता है, यह विनाशी है। आत्मा निकल जाती है तो यह शरीर कोई काम का नहीं रहता। बदबू हो जाती है। शरीर के बिगर आत्मा साइलेन्स रहती है। बाप समझाते हैं तुम्हारी आत्मा का स्वधर्म है साइलेन्स। तुम जानते हो हम आत्मा वास्तव में परमधाम की रहने वाली हैं। परमपिता परमात्मा भी वहाँ रहते हैं। जब कोई दु:ख होता है तो बाप को याद करते हैं - मुझे इस दु:ख से छुड़ाओ। आत्मा ही सुख-दु:ख में आती है। बहुत सन्यासी आदि हैं जो कहते हैं आत्मा निर्लेप है परन्तु नहीं, आत्मा में ही खाद पड़ती है। सच्चे सोने में सिलवर पड़ती है तो सोना 24 कैरेट से 22 कैरेट बन जाता है। सच्चे सोने में खाद डाल देते हैं तो जेवर मुलम्मे का हो जाता है। आत्मा ही मुख्य है। आत्माओं का बाप है परमपिता परमात्मा। वही आकर इस समय बच्चों को कहते हैं अब शरीर का भान छोड़ दो। मैं आत्मा हूँ, बाप के पास जाता हूँ। हम हैं पाण्डव। पाण्डवों का प्लैन यह है। पहले यादव यूरोपवासी फिर कौरव और यह हैं पाण्डव। बरोबर महाभारी लड़ाई लगी और फिर जयजयकार हो गया। यह राजयोग है ही नई दुनिया स्वर्ग के लिए। पाण्डवों की जयजयकार हुई और सब ख़लास हो गये। जयजयकार होती ही है सतयुग में।राखी का त्योहार भारतवासी मनाते हैं। राखी बांधते हैं। अभी यह बच्चे जानते हैं राखी एक ही बार बांधते हैं, जो फिर हम 21 जन्म पवित्र रहें। तो जरूर कलियुग अन्त में राखी बांधने वाला चाहिए। राखी कौन आकर बांधते हैं? कौन प्रतिज्ञा कराते हैं? स्वयं बाप और जो उनके वंशावली ब्राह्मण हैं। सच्चे-सच्चे ब्राह्मण तुम हो। ब्राह्मण ही राखी बांधते हैं। बहन भाई को बांधे - यह भी झूठी बनावट है। बुजुर्ग लोग जानते हैं - आगे ब्राह्मण ही आकर धागे की राखी बांधते थे। वह कोई ऐसे नहीं कहते कि तुमको पवित्र रहना है। पवित्रता को वह जानते ही नहीं। तो यह राखी उत्सव जरूर संगम पर हुआ है। कितना वर्ष हुआ? 5 हजार वर्ष। संगम पर बाप ने राखी बांधी फिर हम सतयुग-त्रेता अन्त तक पवित्र रहे फिर भक्ति मार्ग से यह राखी त्योहार शुरू हो गया। कहते हैं - यह उत्सव परम्परा से मनाते आये हैं। परन्तु ऐसे तो है नहीं। 5 हजार वर्ष में हम एक ही बार राखी बांधते हैं। जब द्वापर से पतित बनते हैं तो वर्ष-वर्ष राखी बांधते हैं क्योंकि अपवित्र बनते हैं। जैसे वर्ष-वर्ष रावण को भी जलाते हैं, वैसे वर्ष-वर्ष राखी भी बांधते हैं। वास्तव में इनका अर्थ तुम समझते हो। बाप आकर कहते हैं - बच्चे, प्रतिज्ञा करो। राखी बांधने से कुछ नहीं होता है। यह तो कसम उठाया जाता है कि - बाबा, हम अभी पवित्र रहेंगे। तो ड्रामा में इन उत्सवों की नूँध है। सतयुग-त्रेता में राखी बांधने की दरकार नहीं रहती। वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड। इस समय अपनी है चढ़ती कला। फिर तो उतरना होता है। हम फिर सो सतोप्रधान देवता बनेंगे। ब्राह्मण कहते हैं हम अभी ईश्वर की सन्तान है फिर सो देवता बनते हैं। बनाने वाला है परमपिता परमात्मा। मनुष्य से देवता निराकार परमपिता परमात्मा बनाते हैं। मनुष्य नहीं बना सकते। उन्होंने मनुष्य का नाम डाल दिया है। कृष्ण को भी द्वापर में ले गये हैं। तुम पतित से पावन कलियुग अन्त में बनते हो। फिर सतयुग आना है। अगर द्वापर में आये तो फिर कलियुग का नाम गुम हो जाना चाहिए। यह रांग बात है, जब रांग हो तब तो बाप आकर राइट बनाये ना। अभी सब झूठे हैं। झूठी माया, झूठी काया........। बाप आकर बच्चों को सच्चा बनाते हैं। सतयुग-त्रेता में कभी झूठ बोलते ही नहीं। यहाँ तो पाप करते झूठ बोलते रहते हैं। पाप आत्माओं को पुण्य आत्मा तो बाप ही बनायेंगे। जैसे दीपमाला पर सारे वर्ष का हिसाब-किताब चुक्तू करते हैं ना। तुम्हारा फिर आधाकल्प का जो पापों का खाता है वह भस्म होता है और पुण्य का खाता तुम जमा करते जाते हो। यहाँ ही जमा करेंगे तब 21 जन्म लिए फल मिलेगा। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। नया कोई पाप नहीं करना चाहिए। पुराना खाता ख़लास करना है। बाप को बतलाते हैं कि बाबा हमसे यह पाप हुआ। अच्छा, आधा माफ है। इस जीवन में भी छोटेपन में पाप किया है तो वह बतलाने से आधा दण्ड कट जायेगा। बाकी आधा के लिए फिर भी मेहनत करनी पड़ेगी। इस जन्म की जीवन कहानी से आगे का भी पता पड़ जाता है क्योंकि संस्कार ले आते हैं ना। फिर उनकी अवस्था का पता पड़ जाता। यह तो समझते हैं दिन-प्रतिदिन नीचे ही गिरते आये हैं। दुनिया तमोप्रधान बनती जाती। पाप बढ़ते जाते हैं। फिर पतित-पावन बाप आकर राखी बांधते हैं अर्थात् प्रतिज्ञा कराते हैं तो तुम पवित्र बन जाते हो। परम्परा अर्थात् हर पांच हजार वर्ष बाद यह सच्ची-सच्ची राखी बाप से बंधवाते फिर उसकी रस्म-रिवाज आधा कल्प चलती है। उसका महत्व बहुत है। पहले-पहले महत्व है जो राखी बांधते हैं। उनका उत्सव है मुख्य। ऊंच ते ऊंच उत्सव है शिव जयन्ती, जिसका कोई को पता नहीं है कि वह कब आये, क्या आकर किया? इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि कब आये यह तो सब जानते हैं ना। उनसे आगे सतयुग-त्रेता में क्या था - वह हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई जानते नहीं। देवी-देवताओं की राजधानी कैसे स्थापन हुई, कितना समय चली - यह कोई जानते नहीं। मुख से कहते हैं - सतयुग के लक्ष्मी-नारायण सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी थे। लक्ष्मी-नारायण तो हुए महाराजा-महारानी। उन्हों का बचपन भी चाहिए। बच्चों का किसको पता नहीं हैं। राधे-कृष्ण को फिर उल्टा द्वापर में ले जाते हैं। यह मनुष्यों की अपनी कल्पना है। सतयुग की आयु भी लाखों वर्ष लिख दी है, इतनी तो होनी नहीं चाहिए। खुद भी कहते हैं - 3 हजार वर्ष बिफोर क्राइस्ट बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था। तो फिर सतयुग को इतने वर्ष क्यों देते हैं? सहज बात है ना। परन्तु माया पत्थरबुद्धि बना देती है जो बिल्कुल ही भूल जाते हैं कि हम देवी-देवता थे। नम्बरवन ही जब नारायण बनता तो उनको यह ज्ञान नहीं होता। ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। बाप कहते हैं अभी तुमको ज्ञान देता हूँ - मनुष्य से देवता बनाने का। देवता बन गये फिर क्या सिखलायेंगे? दरकार ही नहीं। तो राखी का उत्सव भी तुम जानते हो। यह सब उत्सव वर्ष-वर्ष होते हैं। कुम्भ का मेला, सागर-नदी का मेला भी बड़ा भारी लगता है। सागर और ब्रह्म पुत्रा नदी का मेला मशहूर है। सागर तो बाप है। उनसे पहले यह ब्रह्म पुत्रा निकली फिर वृद्धि होती जाती है। सागर और ब्रह्म पुत्रा का मेला देखने में आता है। वहाँ फिर है नदियों का मेला, उसमें भी साफ पानी और मैला पानी दिखाई पड़ता है। वहाँ भी हर वर्ष मेला लगता है। वर्ष-वर्ष जाकर पतित से पावन बनने स्नान करते हैं। अभी तुम संगमयुग पर हो। बरोबर इस समय तुम ज्ञान सागर से आकर मिले हो। यह है संगम का सुहावना समय जबकि आत्माओं का परमपिता परमात्मा से मिलन होता है।तुम बच्चे जानते हो - जो भी पर्व मनाते हैं वह सब अभी के हैं। आज है रक्षाबन्धन। बाबा थोड़ी राखी भी ले आये हैं। अब बाबा पूछते हैं - किसको शिवबाबा से राखी बंधवानी है वह हाथ उठावें (पहले दो चार ने हाथ उठाया) फिर बाबा ने कहा - शिवबाबा से जिनको राखी बंधवानी हो वह हाथ उठावे। (मैजारिटी ने हाथ उठाया) बापदादा बोले - क्या तुम सब पावन नहीं बने हो जो राखी बंधवाते हो? फिर मम्मा से बापदादा ने पूछा तो मम्मा बोली राखी तो बांधी ही हुई है। देखो, बाबा ने बच्चों की परीक्षा ली तो सब फेल हो गये। मम्मा ने ठीक कहा। तुम तो पवित्र हो ही। बाकी ज्ञान की धारणा पर मदार है। खजाना तो मिलता ही रहेगा। जब तक जीते हो तब तक खजाना इकट्ठा करते रहो। पवित्र तो तुम हो परन्तु याद में रहने से तुम वायुमण्डल को शान्त बनाते हो। सारी दुनिया को शान्ति का वर्सा दे रहे हो। पवित्रता की ही प्रतिज्ञा की जाती है। बाप को याद करते हो - शान्ति फैलाने लिए। यह भी तुम जानते हो जितना बाप को याद करेंगे, माया का असर नहीं होगा। माया के तूफान भी आते हैं ना। बाप तुम बच्चों को पढ़ाकर त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। तुम्हारा यह भूलना भी ड्रामा में है इसलिए फिर से मुझे आना पड़ता है - तुम बच्चों को राजयोग सिखलाने। शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। बाबा ने राखी लाई थी क्योंकि एक बच्चा नया आया था। यह पान का बीड़ा उठाना होता है। बाबा हम राखी बंधवाते हैं। हम पवित्र बन क्यों नहीं बेहद के बाप से वर्सा लेंगे क्योंकि इसमें पवित्रता है फर्स्ट। बेहद का बाप कहते हैं आधा कल्प तुमने विषय गटर में बहुत गोते खाये हैं। यह है ही कुम्भी पाक नर्क। 63 जन्म गोते खाये हैं अब प्रतिज्ञा करो - बाबा, हम भी पवित्र दुनिया में चल सुख का वर्सा लूँगा। परन्तु हिम्मत नहीं देखते हैं। यह है ज्ञान मान सरोवर। इसमें ज्ञान स्नान करने से मनुष्य स्वर्ग की परी बन जाते हैं। भारतवासी लक्ष्मी-नारायण आदि के मन्दिर बनाते हैं परन्तु उनको पता थोड़ेही है कि वह कब आये थे, तो यह हुई अन्धश्रद्धा।तुम बच्चों को अब बाप ने आप समान मास्टर ज्ञान सागर बनाया है। जैसे बैरिस्टर पढ़कर आप समान बनाते हैं, फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार पास होते हैं। यह भी पढ़ाई है। एम ऑब्जेक्ट क्लीयर लिखा हुआ है। शिवबाबा का भी चित्र है। परन्तु समझते कुछ नहीं हैं। गाते हैं पतित-पावन सीताराम। यह है ही रावण सम्प्र दाय इसलिए बाप कहते हैं अपनी शक्ल देखो - 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी हो? अपने को आत्मा निश्चय करते हो? तुम्हारी आत्मा का बाप कौन है? उनको नहीं जानते तो तुम नास्तिक ठहरे। फिर नास्तिक लक्ष्मी को कैसे वरेंगे? तुम जानते हो बरोबर हम बन्दर सम्प्रनदाय थे। अब हम श्री नारायण को वरने लायक बनते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको माया रावण के राज्य से लिबरेट करने आया हूँ। फिर रावण का बुत कभी जलायेंगे ही नहीं। यह समझने की बातें हैं। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना अच्छा वर्सा पायेंगे। बाबा बता सकते हैं - तुम इस समय के पुरुषार्थ अनुसार क्या बनेंगे? आजकल मनुष्यों की मौत तो बड़ी चीप (सस्ती) है। वहाँ तो समय पर आयु पूरी हुई झट मालूम पड़ेगा हमको यह चोला छोड़ दूसरा नया लेना है। नई-नई आत्मायें आती हैं तो पहले-पहले उन्हों की महिमा होती है, फिर कम हो जाती है। सतो, रजो, तमो से हरेक को पास करना पड़ता है। बाबा आकर सतोप्रधान बनाते हैं। यह भी वन्डर है। इतनी करोड़ आत्माओं को अपना अविनाशी पार्ट मिला हुआ है जो कभी विनाश नहीं हो सकता। आत्मा इतनी छोटी-सी बिन्दी है, उनमें सारा अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, इसको कुदरत कहा जाता है। नया कोई इन बातों को समझ न सके। बड़ी गुह्य बातें हैं। शिव का रूप तो यही दिखाते हैं ना। अगर हम इनका रूप बदला दें तो कहें इनकी तो दुनिया से न्यारी बातें हैं। नई दुनिया के लिए नई बातें अभी तुम सुनते हो। फिर कल्प बाद भी तुम ही आकर सुनेंगे। तो पतित-पावन बाप ने प्रतिज्ञा कराई थी, जिन्हों ने यह प्रतिज्ञा की वही स्वर्ग के मालिक बनें इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है। सच्चे-सच्चे ब्राह्मण तुम हो। सरस्वती ब्राह्मणी ऊंची गाई जाती है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) पुराने विकर्मों का खाता ख़लास कर पुण्य का खाता जमा करना है। याद में रह शान्ति का वायुमण्डल बनाना है। 2) पवित्रता की प्रतिज्ञा कर पवित्र रहने की सच्ची राखी हरेक को बांधनी है। वरदान:- एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों से सेफ रहने वाले मायाप्रूफ भव l जो बच्चे एक बाप के लव में लवलीन रहते हैं वे सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से, वायुमण्डल से दूर रहते हैं क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली सर्व बातों से सेफ रहना। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना, जो समाये हुए हैं वही मायाप्रूफ हैं। यही है सहज पुरुषार्थ, लेकिन सहज पुरुषार्थ के नाम पर अलबेले नहीं बनना। अलबेले पुरुषार्थी का मन अन्दर से खाता है और बाहर से वह अपनी महिमा के गीत गाता है। स्लोगन:- पूर्वज पन की पोजीशन पर स्थित रहो तो माया और प्रकृति के बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi
- दादी प्रकाशमणि जी की जीवनी (Biography of Dadi ji in Hindi)
Dadi Prakashmani Biography story in Hindi. Today is 25 August, a day which is remembered by Brahma Kumar and Kumaris as the day of Dadi ji (Prakashmani aka Dadi Kumarka). Here is the detilaed biography of a great soul of Shiv baba's Yagya. The administrating head of Prajapita Brahma Kumari Ishwariya Vishwa Vidhyalay since 1969 till Aug 2007. दादी (बड़ी बहन) प्रकाशमणी (प्रकाश का हीरा या गहना) उर्फ कुमारका दादी प्रजापिता ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की दूसरी मुख्य प्रशाशिका (leader)रही है l मममा के बाद साकार मे यज्ञ की प्रमुख, दादी प्रकाशमणी ही रही.l चाहे देश विदेश की सेवा की देखभाल हो, या ब्राह्मण परिवार मे कोई समस्या आए, तो परिवार के बड़े के पास ही जाते है। दादी 1969 से 2007 तक संस्था की मुख्य प्रशशिका रही l इसी समय मे बहुत गीता पाठशाला और बड़े सेंटर्स खुले l दादी का लौकिक नाम रमा था । रमा का जन्म उत्तरी भारतीय प्रांत हैदराबाद, सिंध (पाकिस्तान) में 01 सितंबर 1922 को हुआ था । उनके पिता विष्णु के एक महान उपासक और भक्त थे l रमा का भी श्री कृष्णा के प्रति प्रेम और भक्ति भाव रहता था । रमा केवल 15 वर्ष की आयु मे पहली बार ओम मंडली के संपर्क में आई थीं, जिसे 1936 मे स्थापन क्या गया था । रमा को ओम मंडली मे पहली बार आने से पहले ही घर बैठे श्री कृष्ण का शक्षात्कार हुआ था, जहा शिव बाबा का लाइट स्वरूप भी दिखा था । इसलिए रमा को अस्चर्य हुआ, की यह क्या और किसने किया l शरूवात मे बहुतो को ऐसे शक्षात्कार हुए । यह 1937 का समय बहुत वंडरफुल समय रहा। रमा की दीवाली के दौरान छुट्टियां थीं और इसलिए उनके लॉकिक पिता ने रमा (दादी) से अपने घर के पास सत्संग जाने के लिए कहा । असल में, इस आध्यात्मिक सभा (सत्संग) का गठन दादा लेखराज (जिन्हे अब ब्रह्मा बाबा के नाम से जाना जाता है) द्वारा किया गया था, जो भगवान स्वयं (शिव बाबा) द्वारा दिए गए निर्देशों पर आधारित थे। इसे ओम मंडली के नाम से जाना जाता था। ''पहले दिन ही जब मे बापदादा से मिली और धृिस्टी ली, तो एक अलग ही दिव्य अनुभव हुआ'' - दादी प्रकाशमणी। उन्होंने एक विशाल शाही बगीचे में श्री कृष्ण का दृश्य देखा । दादा लखराज (ब्रह्मा) को देखते हुए उन्हें वही दृष्टि मिली। उसने तुरंत स्वीकार किया कि यह कोई मानव काम नहीं कर रहा है। उन्ही दीनो मे बाबा ने रमा क 'प्रकाशमणी' नाम दिया l तो ऐसे हुआ था दादी प्रकाशमणी का अलौकिक जन्म l 1939 मे पूरा ईश्वरीय परिवार (ओम मंडली) कराची (पाकिस्तान) मे जाकर बस गया l 12 साल की तपस्या के बाद मार्च 1950 मे (भारत के स्वतंत्र होने के बाद) ओम मंडली माउंट अबू मे आई, जो अभी भी प्रजापिता ब्रह्मा कुमारीज का मुख्य सेंटर है l 1952 से मधुबन - माउंट अबू से पहली बार ईश्वरिया सेवा शरु की गयी l ब्रह्मा कुमारिया जगह जगह जाकर यह ज्ञान सुनती और धारणा करवाती रही l दादी प्रकाशमनी भी यही सेवा मे जाती थी l ज़्यादा तर दादी जी मूबाई मे ही रहती थी l साकार बाबा (ब्रह्मा) के अव्यक्त होने बाद से, दादीजी मधुबन मे ही रही और सभी सेंटर की देखरेख की l 2007 के ऑगस्ट महीने मे दादीजी का स्वस्थ ठीक ना होने पर, उन्हे हॉस्पिटल मे दाखिल किया गया l वही पर 25 को उन्होने अपना देह त्याग कर बाबा की गोद ली . अच्छा नमस्ते 000 Main Bio-Link: Biography of Great Souls Link: History of Brahma Kumaris Hindi Homepage
- BK murli today in English 15 June 2018
Brahma Kumaris murli today in English - 15/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, “Manmanabhav” is the injection that will liberate you from all the illnesses of sorrow. Become soul conscious and you will receive the inheritance of purity, peace and happiness. Question: Which praise of the Father have you children tasted in a practical way? Answer: It is sung in praise of the Father: How sweet and lovely Innocent God Shiva is! You children have tasted this in a practical way. You say with experience: Sweet Baba, You are making us so sweet. Baba blesses His sweet children: Child, may you live for ever! You now belong to the most beloved Father and so you should become a sweet flower like Him. Song: Have patience, o mind! Your days of happiness are about to come. Om ShantiWhen a person is ill, surgeons give him patience to liberate him. That is a physical illness. You children now know that that One is the spiritual Surgeon. It is the soul that is ill. This is why He is giving souls the injection of knowledge. It is the soul, not the body that is injected with knowledge. It is not with a needle or medicine etc. This one injection is sufficient. Which injection? “Manmanabhav”, may you be bodiless. This is the injection. By you remaining soul conscious, your inheritance of purity, peace and happiness accumulates. The more soul conscious you become and the more you remember the Father, the more your inheritance will continue to accumulate. You children know that the One who removes your sorrow for half the cycle has come. It is said: Har har mahadev (Mahadev is the one who removes your sorrow.) That one is not the one who removes your sorrow. Only the one Father will remove your sorrow. It is the Father who removes your sorrow and gives you happiness. You children know that you have truly been experiencing one sorrow or another for half the cycle. Your illnesses have now increased. The five vices have made you very unhappy. This is why the Father says: Now put right the account of the whole cycle. Businessmen keep their annual profit and loss accounts. Employees wouldn't know about profit and loss. The most elevated business is the jewellery business. These are the jewels of knowledge. Businessmen can tell whether they are earning an income or incurring a loss somewhere. Sometimes, there is a loss and sometimes there is a profit; this continues all the time. The Father says: Your account that has been in loss for half the cycle now has to go into profit. Why was it in loss? Because you became body conscious. Maya, Ravan, spoilt your account. Maya has put everyone in loss and this is why you have become poverty-stricken. You children now say: Baba, You speak the truth when you say this. Maya has truly created a great loss. By going into loss, everyone has now become worth shells. The true Father is now giving us directions to change from an ordinary man into Narayan. Through this shrimat we will become elevated and we will accumulate for half the cycle. You accumulate this account only once. The Father says: You have to accumulate in your account very well. If you want to claim the most elevated status of all, become soul conscious. Remember the Father. It is the soul that becomes impure and this is why it is said: Sinful soul and charitable soul. It is not said: Sinful body. It is Maya, Ravan that makes you a sinful soul. If you don't remember the Father, how could you become a charitable soul? Impure arrogance is the number one evil spirit. Maya has caused so much loss. No one in the world knows about this profit and loss. Only the Father tells you about this. God speaks shrimat. There is only one God who comes and teaches Raja Yoga. This yoga is very beneficial; it elevates human beings. Simply have faith in one aspect and continue to remember the one Father. That is all. You know that you have to remain patient. Truly, our fortune has now awakened. Baba is going to take us across. Baba has come to take us from this brothel to the Temple of Shiva. The Boatman is only One. The Purifier is the Boatman. Clever swimmers swim very skillfully. They are taught how to swim easily. You children also know how easily Baba is taking you from the shores of the iron age to the shores of the golden age with your intellects’ yoga, that is, with remembrance. He speaks to souls. The Father comes and ignites the lights of souls. He is called the Flame and also the form of Light. When someone dies, people light an earthenware lamp and continue to pour oil into it. Because you haven't received the oil of knowledge for half the cycle from anywhere, it is as though all your lamps have once again become extinguished. Only a little is now left. At this time there is extreme darkness. In the golden age, there is extreme light. The lamps of you souls are now being ignited once again. Together with that, you are also receiving the third eye of knowledge. Baba writes in the letters: Sweetest, beloved long-lost and now-found children. The Father is very sweet. You taste this in a practical way: Baba is so sweet and lovely. He is making us so sweet! You know that we were also as sweet and lovely. Then, we changed from being worthy of worship to worshippers and continued to worship ourselves. We were Lakshmi and Narayan and the sun dynasty. Then we became the moon dynasty. We are now once again becoming the sun dynasty, that is, we are going into profit. This is why we have to remember the Father and also study. These are very wonderful matters. It is remembered that King Janak received liberation-in-life in a second. We also want knowledge just as Janak did. All of you are Janak, are you not? You are the masters of the home, are you not? Some are very wealthy and some less wealthy. However, you are Janak, are you not? Even the poor consider themselves to be masters of the home. Therefore, all of you consider yourselves to be Janak; you receive liberation-in-life in a second. The Father is called the Lord of the Poor because it is the people of Bharat that have become the poorest. You now have to become complete beggars. Consider those bodies not to be yours either. There is a story in which someone was told not to take the support of even a stick. The Father says: The main thing is arrogance of the body. Now forget that. Remember the one Father. All of you know that you are souls and that those are your bodies. You shed one body and take another. Everyone believes in rebirth. You would definitely receive rebirth in the same age that you are in. There are 84 births. This is a cycle. The beginning begins with you children. You then come down. This is self-realisation. You have each received a third eye of knowledge. The more you remember the Father, the higher the status you will receive. Everyone receives liberation-in-life. First of all, you have to go into liberation. You first go into liberation and then you go into liberation-in-life. Those of the deity religion will first go to heaven. That religion has now disappeared. The Father now gives you a blessing: Sweetest children, may you remain constantly peaceful! May you have a long life, that is, may you have many births! You receive blessings from the Father. Then each of you has to make your own effort over how to have a long life. By remembering the Father, you are becoming those who have long lives. The Father gives you this blessing. Brahmin priests say: May you have a long life! The Father also says: Children, may you live for ever! You understand that you are now becoming those with long lives. Death will not come to you for half the cycle. There is no mention of death in the golden age. Here, people are afraid of dying. You are making effort to die. We will shed our bodies and go to the Father. We will become residents of heaven. In order to go to the land of nirvana, you simply continue to make effort. Sannyasis cannot do this. They neither attain liberation themselves nor give liberation to others. You know that you will shed your bodies whilst remembering Baba. Some say: Baba, I want to go soon. When will destruction take place? When will we go? You mustn't ask: When will we go? To ask this means to ask: Baba, when will You go back? This is the account. You are sitting with Shiv Baba. You are the children of God. Your memorial has been created. You have become the children of the most beloved Father. Therefore, you have to become very sweet and lovely like the Father and make others the same. This does take time. Some race ahead very fast and others less so. Some have been racing up to the present time and becoming flowers exactly as they did in the previous cycle. Some have become buds to this extent. Some become buds, then flowers from buds and then become thorns. When storms of Maya come, they neither remain buds nor flowers; they become big thorns. Many innocent ones are assaulted; they are put in bondage. There is a lot of loss incurred. It is said of Vrindavan: Dancing used to take place there. That was a matter of the dance of knowledge. You children come from different, faraway places to learn the dance of knowledge. Therefore, Baba says: A cloud is someone who refreshes the self and performs the dance of knowledge. Baba says: Only a few more days remain. This time is very good. The more time you have, the better it is. Our stage will continue to become stronger. The Father has been giving you jewels. At the moment you are still weak. Not everyone accumulates. A very big kingdom is being established. Only you know that you are establishing a kingdom by remembering the Father. You remember the Father and the treasures. We are establishing our sovereignty by having remembrance. The self, the soul, doesn't have a kingdom at this time. We will now become kings of kings once again. The soul has this intoxication. The soul speaks through these organs. Only you souls have received the knowledge of the world cycle. You now know the Seed and the tree. The Father says: You and I existed in the previous cycle, we exist now and we will exist after this cycle. You now know the whole kalpa tree. First of all, give the introduction of the Father. That One is the incorporeal Father of all souls. He first of all creates Brahmins. He changes the shudra clan into the Brahmin clan. This is the topmost genealogical tree. From Brahmins, there are deities and then warriors. Then, those of Islam and the Buddhists etc. emerge. This one is the great-great-grandfather, the physical father, highest-on-high Brahma. Shiv Baba is the spiritual Father. There is the incorporeal world, the subtle region and the corporeal world. Brahmins are created through Brahma. Then you will become deities, warriors, merchants and shudras. You have everything in your intellects in a nutshell. You have to earn for your livelihood because you are also karma yogis. You have eight hours free for doing your work and business etc. You have to do that anyway. A governmental job is for eight hours. There is the Chief Justice of the Government too. However, they don't give proper judgement. That One is the Pandava Government and also Dharamraj. It is explained to you children: If you don't stay in Baba's service very well, if you don't become soul conscious and you perform wrong actions, a lot of punishment will have to be experienced. This is the highest Government and also the Highest Supreme Judge. If you make any mistakes, the tribunal will sit especially for you children. Whatever actions each one performs, he receives the fruit of that. This is the spiritual Government. The spirit receives punishment. There (in the world) physical punishment is received. This is incognito punishment. Punishment is experienced in the womb. The soul then cries out: Let me out! However, you had to become a jailbird for half the cycle. Then, for half the cycle, you will live in the palace of a womb. The Father says: I serve you children so much by coming into this impure world and this impure body. I have to enter this one who has been named Brahma. Brahma and Saraswati become Shri Narayan and Shri Lakshmi; the same applies to you, their children. You know that you are going to gain the throne of the mother and father. You continue to become one another’s heirs. The first ones then continue to come down. Here, it is said: Become conquerors of Maya and you will become the masters of heaven. Impure human beings cannot become the masters of heaven. Baba says: I too have a part in the drama every cycle. You know that the drama is now coming to an end. The history and geography of the golden age is once again to be repeated. Then we will become deities. You know this cycle. Your fortune has now awakened. The Sun of Knowledge is awakening your fortune. Body consciousness crosses out your line of fortune. The main thing is: Become soul conscious! Remember the Father! Consider yourself to be a soul! This is something so easy. You know that this is a matter of 5000 years. The main thing Baba explains is: Continue to become soul conscious. You have to explain that God, whom the devotees remember, is only One. If the devotees are God, whom do they remember? Devotees, that is, holy men, make spiritual endeavour to attain God. They say that they will merge into the light. However, there has to be the Master of the land of nirvana. It isn't that the brahm element is God. God says: That is your illusion. I am the Star who resides in the brahm element. Just as an imperishable part of 84 births is recorded in a soul and can never be erased, in the same way, the Father says: I too am tied in the bondage of this drama. This will repeat identically. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Donate the imperishable jewels of knowledge and become a true businessman. Do this true business. 2. Make effort to become soul conscious. Study and teach others the dance of knowledge. Blessing: May you be a powerful soul who finishes the seed of obstacles with the awareness of Karankaravanhar. The seed of all types of problems are two words: 1) Ego. 2) Insult. On the field of service, there is either the ego of you having done something and that only you can do that or you feel insulted as to why you were not placed in the front or why you were not told something. These feelings come in the form of many different obstacles. When you are God’s helpers, and there is also the Karamkaravanhar Father, then where could ego come from, where could any insult come from? So, with the awareness of the combined form, become a powerful soul and the seed of obstacles will finish for all time. Slogan: In order to be an embodiment of knowledge, let there be equal love for the Father and the study. #bkmurlitoday #Murli #english #brahmakumari
- प्यारे बापदादा की 108 श्रीमत (Shiv Baba's 108 Shrimat)
परमपिता परमात्मा शिव बाबा व प्यारे बापदादा की 108 श्रीमत (108 points of Shrimat in Hindi, derived from Shiv Baba's Gyan Murli - BapDada's aspirations for all Brahman children) ➤Visit the PDF version to download or print. शिव बाबा कहते है : 1. पवित्र बनो, योगी बनो । 2. देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों को भूल एक बाप को ही याद करना है । 3. ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं का पालन करना है । 4. कभी भी संगदोष में नहीं आना है । 5. सदा श्रेष्ठ संग, ईश्वरीय संग में रहना है । 6. सब को सुख ही देना है । 7. किसी को भी मन्सा, वाचा, कर्मणा से दुख नहीं देना है । 8. सदा शान्तचित, हर्षितचित, गंभीर और एकान्तप्रिय बनकर रहना है । 9. सबको बाप का परिचय देना है, सुख, शान्ति का रास्ता बताना है । 10. किसी भी देहधारी से दिल नहीं लगाना है । 11. सभी को आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास करना है । 12. अपनी चलन देवताओं जैसी बड़ी रॉयल रखनी है । 13. कभी भी मुरली मिस नहीं करनी है । 14. कभी भी रूठना नहीं है । 15. कभी भी मूड ऑफ नहीं करना है । 16. सदा रूहानी खुशी में रहना है । 17. सबको सुखदायी वरदानी बोल से उमंग-उत्साह में लाकर आगें बढाना है । 18. सदा ईश्वरीय याद में रह रूहानी नशे में रहना है । 19. विश्वकल्याण की सेवा में तत्पर रहना है । 20. अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन का विश्व सेवा के नए नए प्लान बनाने हैं । 21. अमृतवेले उठ बाप को बडे, प्यार से, दिल से याद करना है । 22. किसी भी आत्मा पर क्रोध नहीं करना हे । 23. बहुत-बहुत मीठा बन सबको मीठा बनाने की सेवा करनी है । 24. कभी भी विकारों में नहीं जाना है । 25. आत्म अभिमानी बन बाप को याद करना है । 26. कोई भी विकर्म नहीं करना है । 27. दैवी गुण धारण करने हैं । 28. आसुरी अवगुणों को निकाल देना है । 29. स्वदर्शनचक्र फिराते रहना है । 30. आपस में ज्ञान की ही लेन देन करनी है । 31. आपस में कभी भी लूनपानी नहीं होना है । 32. माया से कभी भी हार नहीं खानी है । 33. इस मायावी संसार के आकर्षण में नहीं आना है । 34. लोभवृत्ति नहीं रखनी है । 35. चोरी नहीं करनी है । 36. झूठ नहीं बोलना है । 37. बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है । 38. बाप के भण्डारे से जो भी मिले उसमें ही सदा सन्तुष्ट रहना है । 39. सचखण्ड की स्थापना के कार्य में बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है । 40. संगठन को मजबूत बनाने के लिए सदा एकमत होकर रहना है । 41. सदा ज्ञान का सिमरन करते रहना है । 42. व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद नहीं करना है । 43. सभी की विशेषताओं को ही देखना है । 44. किसी से भी पैसे की लेन-देन का अब हिसाब-किताब नहीं रखना है । 45. एक दो के स्नेही सहयोगी बनकर रहना है । 46. न्यारा प्यारा कमल पुष्प समान बनकर रहना है । 47. बीमारी में भी सदा खुश रहना है । 48. किसी की भी निन्दा अथवा परचिन्तन नहीं करना है । 49. सबको शान्तिधाम, सुखधाम की राह दिखानी है । 50. निन्दा-स्तुति , मान-अपमान में एकरस स्थिति रखनी है । 51. कभी भी झरमुहीं- झंगमुहीं नहीं होना है । 52. ट्रस्टी होकर रहना है । 53. सिवाए एक बाप के किसी से भी मोह नहीं रखना है । 54. योगयुक्त अवस्था में रहकर ही हर कर्म करना है । 55. ज्ञान की टिकलू-टिकलू, भूं- भूं और शंखध्वनि करते रहना है । 56. भोजन की एक-एक गीटटी बाप की याद में रहकर बाप के साथ खानी है । 57. किसी की मी विशेषताओं के ऊपर प्रभावित नहीं होना है । 58. सदैव सात्विक भोजन ही स्वीकार करना है । 59. भोजन पर एक दो को बाप और वर्से की ही याद दिलानी है । 60. कोई मी उल्टी चलन नहीं चलनी है । 61. सर्विस में कमी मी बहाना नहीं देना है । 62. बड़ों को रिगार्ड और छोटो को स्नेह देना है । 63. संगम पर अपना तन-मन-धन सबकुछ सफल करना है । 64. चलते-फिरते, उठते-बैठते भी बाप की याद में रहकर दूसरों को भी बाप की याद दिलानी है । 65. सदा श्रेष्ठ से श्रेष्ठ स्वमान में रहना है । 66. ट्राफिक कंट्रोल का उल्लंघन नहीं करना है । 67. रात्रि सोने से पूर्व भी बाप को अपना सच्चा पोतामेल देना है । 68. ज्यादा से ज्यादा अशरीरी बनने की प्रेक्टिस करनी है । 69. सर्ब सम्बन्ध एक बाप से ही रखने हैं । 70. सर्विस में अपनी हड्डियां स्वाहा करनी हैं । 71. कभी भी ईश्वरीय कुल का नाम बदनाम नहीं करना है । 72. खाने-पीने की चीजों में भी अनासक्त वृति रखनी है । 73. अपने स्वीटहोम, शान्तिधाम को याद करना है । 74. ज्यादा हंसी मजाक में नहीं आना है । 75. जरुरत से ज्यादा चीजें संग्रह नहीं करनी हैं । 76. विनाश के पहले पहले अपना सबकुछ सफल कर लेना है । 77. अपनी विशेषताओं पर कभी भी अहंकार नहीं करना है । 78. देह-अभिभान वश कोई भी विकर्म नहीं करना है । 79. किसी भी बात में संशयबुद्धि नहीं बनना है । 80. याद की फांसी पर लटके रहना है । 81. ब्रह्मा बाप समान बनने का पुरूषार्थ करना है । 82. पढ़ाई में रेग्युलर, पंक्चुअल बनना है । 83. न बुरा देखना, न बुरा बोलना, न करना, न सोचना और न ही बुरा सुनना है । 84. सबको मुक्ति, जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है । 85. सेवा में विघ्न रूप नहीं बनना है । 86. कोई भी नया कर्मबन्धन नहीं बनाना है । 87. सम्बन्ध सम्पर्क में आते सदा रूहानियत में रहना है । 88. अशरीरी बनने का अभ्यास करते ही रहना है । 89. पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है । 90. वायुमण्डल में शान्ति, शक्ति, खुशी, उमंग-उत्साह के वायब्रेशन फैलाने की सेवा करनी है । 91. मम्मा बाबा को फालो करना है । 92. सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना है । 93. इस पुरानी दुनिया से बेहद के वैरागी बनना है । 94. साक्षी अवस्था में रह अपनी स्थिति को मजबूत बनाना है । 95. सच्ची दिल से बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है । 96. दैवी मैनर्स धारण करने और कराने हैं । 97. किसी के भी नाम, रूप में नहीं फंसना है । 98. कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है । 99. और सब संग तोड एक बाप के संग में रहना है । 100. योगबल से अपने पुराने सब हिसाब-किताब चुक्तु करने हैं । 101. अपना स्वभाव सरल बनाकर सबसे मिलनसार होकर रहना है । 102. योग-ज्वाला से अपने पुराने अवगुणी स्वभाव-संस्कार को जड़ से निकाल भस्म कर देना है । 103. सर्व आत्माओं को सुख देकर दुआओं का पात्र बन, अविनाशी खाता जमा करना है । 104. अपना बोल, चाल बहुत-बहुत मीठा रखना है सबको उमंग-उत्साह में लाने वाले बोल बोलने हैं । 105. सदैव बाबा को अपना साथी बनाकर रखना है । 106. बाप समान बन सबको शीतलता के छीटें डालकर शीतल बनाना है । 107. पवित्रता के बल पर श्रीमत द्वारा विश्व को पावन बनाने की निरंतर सेवा करते रहना है । 108. बाबा को इतना प्यार से, दिल से याद करना है जो आंखों से प्रेम के आंसू आ जायें । Useful links All BK Articles - Hindi & English 7 दिवस का राजयोग कोर्स (Hindi course) RESOURCES - Everything Audio Explore the Sitemap BK Google - Search engine
- BK murli today in Hindi 8 July 2018 - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 08-07-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 19-12-83 मधुबन परमात्म प्यार - नि:स्वार्थ प्यार आज स्नेह के सागर बाप अपने स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। स्नेही सब बच्चे हैं फिर भी नम्बरवार हैं। एक हैं स्नेह करने वाले। दूसरे हैं स्नेह निभाने वाले। तीसरे हैं सदा स्नेह स्वरूप बन स्नेह के सागर में समाए हुए, जिसको लवलीन बच्चे कहते। लवली और लवलीन दोनों में अन्तर है। बाप का बनना अर्थात् स्नेही, लवलीन बनना। सारे कल्प में कभी भी और किस द्वारा भी यह ईश्वरीय स्नेह, परमात्म प्यार प्राप्त हो नहीं सकता। परमात्म प्यार अर्थात् नि:स्वार्थ प्यार। परमात्म प्यार इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है। परमात्म प्यार जन्म-जन्म की पुकार का प्रत्यक्ष फल है। परमात्म प्यार नये जीवन का जीयदान है। परमात्म प्यार नहीं तो जीवन नीरस, सूखे गन्ने के मुआफिक है। परमात्म प्यार बाप के समीप लाने का साधन है। परमात्म प्यार सदा बापदादा के साथ अर्थात् परमात्मा को साथी अनुभव कराता है। परमात्म प्यार मेहनत से छुड़ाए सहज और सदा के योगी, योगयुक्त स्थिति का अनुभव कराता है। परमात्म प्यार सहज ही तीन मंजिल पार करा देता है।1. देहभान की विस्मृति। 2. देह के सर्व सम्बन्धों की विस्मृति। 3. देह की, देह के दुनिया की अल्पकाल की प्राप्ति के आकर्षणमय पदार्थों का आकर्षण सहज समाप्त हो जाता है। त्याग करना नहीं पड़ता लेकिन श्रेष्ठ सर्व प्राप्ति का भाग्य स्वत: ही त्याग करा देता है। तो आप प्रभु प्रेमी बच्चों ने त्याग किया वा भाग्य लिया? क्या त्याग किया? अनेक चत्तियां लगा हुआ वस्त्र, जड़जड़ीभूत पुरानी अन्तिम जन्म की देह का त्याग, यह त्याग है? जिसे स्वयं भी चलाने में मजबूर हो, उसके बदले फरिश्ता स्वरूप लाइट का आकार जिसमें कोई व्याधि नहीं, कोई पुराने संस्कार स्वभाव का अंश नहीं, कोई देह का रिश्ता नहीं, कोई मन की चंचलता नहीं, कोई बुद्धि के भटकने की आदत नहीं - ऐसा फरिश्ता स्वरूप, प्रकाशमय काया प्राप्त होने के बाद पुराना छोड़ना, यह छोड़ना हुआ? लिया क्या और दिया क्या? त्याग है वा भाग्य है? ऐसे ही देह के स्वार्थी सम्बन्ध, सुख-शान्ति का चैन छीनने वाले विनाशी सम्बन्धी, अभी भाई है अभी स्वार्थवश दुश्मन हो जाते, दु:ख और धोखा देने वाले हो जाते, मोह की रस्सियों में बांधने वाले, ऐसे अनेक सम्बन्ध छोड़ एक में सर्व सुखदाई सम्बन्ध प्राप्त करते तो क्या त्याग किया? सदा लेने वाले सम्बन्ध छोड़े, क्योंकि सभी आत्मायें लेती ही हैं, देती नहीं। एक बाप ही दातापन का प्यार देने वाला है, लेने की कोई कामना नहीं। चाहे कितनी भी धर्मात्मा, महात्मा, पुण्य आत्मा हो, गुप्त दानी हो, फिर भी लेता है, दाता नहीं है। स्नेह भी शुभ लेने की कामना वाला होगा। बाप तो सम्पन्न सागर है इसलिए वह दाता है, परमात्म प्यार ही दातापन का प्यार है, इसलिए उनको देना नहीं, लेना है। ऐसे ही विनाशी पदार्थ विषय भोग अर्थात् विष भरे भोग हैं। मेरे-मेरे की जाल में फँसाने वाले विनाशी पदार्थ भोग-भोग क्या बन गये? पिंजड़े के पंछी बन गये ना। ऐसे पदार्थ, जिसने कखपति बना दिया, उसके बदले सर्वश्रेष्ठ पदार्थ देते जो पदमापद्मपति बनाने वाले हैं। तो पदम पाकर, कख छोड़ना, क्या यह त्याग हुआ! परमात्म प्यार भाग्य देने वाला है। त्याग स्वत: ही हुआ पड़ा है। ऐसे सहज सदा के त्यागी ही श्रेष्ठ भाग्यवान बनते हैं।कभी-कभी बाप के आगे कई लाडले ही कहें, लाड-प्यार दिखाते हैं कि हमने इतना त्याग किया, इतना छोड़ा फिर भी ऐसे क्यों! बापदादा मुस्कराते हुए बच्चों को पूछते हैं कि छोड़ा क्या और पाया क्या? इसकी लिस्ट निकालो। कौन सा तरफ भारी है - छोड़ने का वा पाने का? आज नहीं तो कल जो छोड़ना ही है, मजबूरी से भी छोड़ना ही पड़ेगा, अगर पहले से ही समझदार बन प्राप्त कर फिर छोड़ा तो वह छोड़ना हुआ क्या! भाग्य के वर्णन के आगे त्याग कौड़ी है, भाग्य हीरा है। ऐसे समझते हो ना! वा बहुत त्याग किया है? बहुत छोड़ा है? छोड़ने वाले हो या लेने वाले हो? कभी भी स्वप्न में भी ऐसा संकल्प किया तो क्या होगा? अपने भाग्य की रेखा, मैंने किया, मैंने छोड़ा, इससे लकीर को मिटाने के निमित्त बन जाते इसलिए स्वप्न में भी कब ऐसा संकल्प नहीं करना।प्रभु प्यार सदा समर्पण भाव स्वत: ही अनुभव कराता है। समर्पण भाव बाप समान बनाता। परमात्म प्यार बाप के सर्व खजानों की चाबी है क्योंकि प्यार व स्नेह अधिकारी आत्मा बनाता है। विनाशी स्नेह, देह का स्नेह राज्य भाग्य गंवाता है। अनेक राजाओं ने विनाशी स्नेह के पीछे राज्य भाग्य गंवाया। विनाशी स्नेह भी राज्य भाग्य से श्रेष्ठ माना गया है। परमात्म प्यार, गंवाया हुआ राज्य भाग्य सदाकाल के लिए प्राप्त कराता है। डबल राज्य अधिकारी बनाता है। स्वराज्य और विश्व का राज्य पाते। ऐसे परमात्म प्यार प्राप्त करने वाली विशेष आत्मायें हो। तो प्यार करने वाले नहीं लेकिन प्यार में सदा समाये हुए लवलीन आत्माएं बनो। समाये हुए समान हैं - ऐसे अनुभव करते हो ना!नये-नये आये हैं तो नये आगे जाने के लिए सिर्फ एक ही बात का ध्यान रखो। सदा प्रभु प्यार के प्यासे नहीं लेकिन प्रभु प्यार के ही पात्र बनो। पात्र बनना ही सुपात्र बनना है। सहज है ना। तो ऐसे आगे बढ़ो। अच्छा!ऐसे पात्र सो सुपात्र बच्चों को, प्रभु प्रेम की अधिकारी आत्माओं को, प्रभु प्यार द्वारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्माओं को, सदा स्नेह के सागर में समाये हुए बाप समान बच्चों को, सर्व प्राप्तियों के भण्डार सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।अब समय प्रमाण सकाश देने की सेवा करो (अव्यक्त महावाक्य)समय प्रमाण अब चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का कार्य करना है। अब इसी सेवा की आवश्यकता है क्योंकि समय बहुत नाज़ुक आना है इसलिए अपनी उड़ती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाओ और जिसको शान्ति चाहिए, खुशी चाहिए, सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में उन्हें अनुभूति कराओ। वह अनुभव करें कि इन फरिश्तों द्वारा शान्ति, शक्ति, खुशी मिल गई। अन्त:वाहक अर्थात् अन्तिम स्थिति, पावरफुल स्थिति ही आपका अन्तिम वाहन है। अपना यह रूप सामने इमर्ज कर फरिश्ते रूप में चक्कर लगाओ, सकाश दो, तब गीत गायेंगे कि शक्तियां आ गई.... फिर शक्तियों द्वारा सर्व-शक्तिवान स्वत: ही सिद्ध हो जायेगा।जैसे साकार रूप को देखा, कोई भी ऐसी लहर का समय जब आता था तो दिन-रात सकाश देने, निर्बल आत्माओं में बल भरने का विशेष अटेन्शन रहता था, रात-रात को भी समय निकाल आत्माओं में सकाश भरने की सर्विस चलती थी। तो अभी आप सबको लाइट माइट हाउस बनकर यह सकाश देने की सर्विस खास करनी है जो चारों ओर लाइट माइट का प्रभाव फैल जाए। इस देह की दुनिया में कुछ भी होता रहे, लेकिन आप फरिश्ते ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखते सकाश देते रहो क्योंकि आप सब बेहद विश्व कल्याण के प्रति निमित्त हो, तो साक्षी हो सब खेल देखते सकाश अर्थात् सहयोग देने की सेवा करो। सीट से उतर कर सकाश नहीं देना। ऊंची स्टेज पर स्थित होकर देना तो किसी भी प्रकार के वातावरण का सेक नहीं आयेगा।जैसे बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व के बच्चों की पालना कर रहे हैं, ऐसे आप बच्चे भी एक स्थान पर बैठे कर बाप समान बेहद की सेवा करो। फालो फादर करो। बेहद में सकाश दो। बेहद की सेवा में अपने को बिजी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वत: ही आयेगा। यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात, समय की बात.. सब सहज हो जाती है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। जब बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले भी ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा।आप ब्राह्मण आदि रत्न विशेष तना हो। तना से सबको सकाश पहुंचती है। तो कमजोरों को बल दो। अपने पुरुषार्थ का समय दूसरों को सहयोग देने में लगाओ। दूसरों को सहयोग देना अर्थात् अपना जमा करना। अभी ऐसी लहर फैलाओ - देना है, देना है, देना ही देना है। सैलवेशन लेना नहीं है, सैलवेशन देना है। देने में लेना समाया हुआ है। अगर अभी से स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन नहीं बनायेंगे तो विश्व सेवा में सकाश नहीं मिल सकेगी इसलिए अभी सकाश द्वारा सबकी बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा करो। फिर देखो सफलता आपके सामने स्वयं झुकेगी। मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्नों का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई देगा।ज्ञान के मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का या ट्रैफिक कन्ट्रोल का बीच-बीच में दिन मुकरर करो। अगर किसको छुट्टी नहीं भी मिलती हो, सप्ताह में एक दिन तो छुट्टी मिलती है तो उसी प्रमाण अपने-अपने स्थान के प्रोग्राम फिक्स करो। लेकिन विशेष एकान्तवासी और खजानों के एकानामी का प्रोग्राम अवश्य बनाओ क्योंकि अभी चारों ओर मन का दु:ख और अशान्ति, मन की परेशानियां बहुत तीव्रगति से बढ़ रही हैं। बापदादा को विश्व की आत्माओं के ऊपर रहम आता है। तो जितना तीव्रगति से दु:ख ही लहर बढ़ रही है उतना ही आप सुख दाता के बच्चे अपने मन्सा शक्ति से, मन्सा सेवा व सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर सुख की अंचली का अनुभव कराओ। हे देव आत्मायें, पूज्य आत्मायें अपने भक्तों को सकाश दो।साइन्स वाले भी सोचते हैं ऐसी इन्वेन्शन निकालें जो दु:ख समाप्त हो जाए, साधन सुख के साथ दु:ख भी देता है, सोचते जरूर हैं कि दु:ख न हो, सिर्फ सुख की प्राप्ति हो लेकिन स्वयं की आत्मा में अविनाशी सुख का अनुभव नहीं है तो दूसरों को कैसे दे सकते हैं। आप सबके पास तो सुख का, शान्ति का, नि:स्वार्थ सच्चे प्यार का स्टॉक जमा है, तो उसका दान दो। स्पेशल अटेन्शन रखो कि हमें चारों ओर पावरफुल याद के वायब्रेशन फैलाने हैं। जैसे ऊंची टावर होती है, वह सकाश देती है, उससे लाइट माइट फैलाते हैं, ऐसे ऊंची स्टेज पर रह रोज़ कम से कम 4 घण्टे ऐसे समझो हम ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर बैठे विश्व को लाइट और माइट दे रहा हूँ। बापदादा बच्चों से चाहते हैं कि अभी फास्ट सेवा शुरू करें। जो हुआ वह बहुत अच्छा। अब समय प्रमाण औरों को ज्यादा वाणी का चांस दो। अभी औरों को माइक बनाओ, आप माइट बनकर सकाश दो। तो आपकी सकाश और उन्हों की वाणी, यह डबल काम करेगी।पार्टियों के साथ प्रश्न:- महा-तपस्या कौन सी है? जिस तपस्या का बल विश्व को परिवर्तन कर सकता है? उत्तर:- एक बाप दूसरा न कोई यह है महा-तपस्या। ऐसी स्थिति में स्थित रहने वाले महातपस्वी हुए। तपस्या का बल श्रेष्ठ बल गाया जाता है। जो इस तपस्या में रहते - एक बाप दूसरा न कोई, उनमें बहुत बल है। इस तपस्या का बल विश्व परिवर्तन कर लेता है। हठ योगी एक टांग पर खड़े होकर तपस्या करते हैं लेकिन आप बच्चे एक टांग पर नहीं, एक की स्मृति में रहते हो, बस एक ही एक। ऐसी तपस्या विश्व परिवर्तन कर देगी। तो ऐसे विश्व कल्याणकारी अर्थात् महान तपस्वी बनो। अच्छा। वरदान:- समर्थ संकल्पों द्वारा जमा का खाता बढ़ाने वाले होलीहंस भव l जैसे हंस कंकड़ और रत्न को अलग करते हैं, ऐसे आप होलीहंस अर्थात् समर्थ और व्यर्थ को परखने वाले। जैसे हंस कभी कंकड़ को चुग नहीं सकते, अलग करके रख देते, छोड़ देते, ग्रहण नहीं करते। ऐसे आप होलीहंस व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्पों को धारण करते हो। व्यर्थ तो बहुत समय सुना, बोला किया लेकिन उसके परिणाम में सब कुछ गंवाया। अब गंवाने वाले नहीं, जमा का खाता बढ़ाने वाले हो। स्लोगन:- स्वयं को ईश्वरीय मार्यादाओं के कंगन में बांध लो तो सर्व बंधन समाप्त हो जायेंगे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- BK murli today in English 10 June 2018
Brahma Kumaris murli today in English - 10/06/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 25/05/83 Father Brahma’s one desire for the children. Today, BapDada was seeing all the children’s charts of service, remembrance and of becoming equal to the Father. You have received so many treasures from BapDada. You have called the Father into the corporeal form from the incorporeal and subtle forms and, out of love for you, BapDada has responded to the call of love of you children and celebrated a meeting. So, as a result of that, what fruit have all of you children become? Have you become instant, visible fruit? Have you become the fruit of the season? Have you become the fruit in just the form or the fruit in the form with sweetness? Have you become the fruit of direct sustenance, that is, the fruit ripened on the tree? Or, has the unripe fruit been made colourful and beautiful on the basis of the chemicals of one or two specialities? Or, is the fruit still unripe? Baba was seeing those charts of you children. According to the speciality of the confluence age, according to this time of instant visible fruit, in every subject and at every step, the ones who give instant fruit and the ones who eat instant fruit in every action, you have to be the invaluable fruit that is full in all three - colour, beauty and sweetness – because of having ripened with the Father’s sustenance. Now ask yourself: Who am I? Have I become equal to the Father in having the colour (rang) of constant company (sang), in having the form of constantly being equal to Father Brahma in revealing the Father, and in having the sweetness of all attainments? Nowadays, Father Brahma especially is constantly seeing to what extent the Brahmin children have become complete and equal. All the time, He keeps the images and activities of all the special children in particular in front of him and is constantly seeing to what extent they have become equal. Who have become the beads of the rosary and how many have become set in their own number? Seeing the results in terms of this, Father Brahma especially said: A Brahmin soul means one who reveals BapDada in every deed. You have become spiritual artists who, with the pencil of your deeds, draw the image and form of the Father on the heart and intellect of every soul, have you not? Now, Father Brahma has one desire for the children's result this season. What desire does he have? The father constantly desires that every child should give a vision of the Father through the mirror of his actions, that is, that the child follows the father at every step, becomes a subtle angel equal to the father and plays the part of a karma yogi. Is it difficult or easy to fulfil this desire? From the beginning Father Brahma always put into the practical form, the sanskar of "Instant donation is great charity". Did you ever see practically any sanskars in him of "I will do it, I will think about it, I will make plans later"? You saw him with the sanskar of doing everything immediately through his thoughts and actions, did you not? Given that, what desire would he have for the Brahmin children? He would have the desire for the children to become equal to him, would he not? First of all, BapDada keeps those from Madhuban in the front. You are at the front, are you not? Where does everyone see the best samples of all? Madhuban is the biggest showcase of all, is it not? People from this land and abroad all come to Madhuban to experience everything, do they not? So, Madhuban is the biggest showcase. The showpieces to be placed in such a showcase would be so valuable, would they not? You don’t come here just to meet BapDada, but you also come here to see the practical forms of the family. Who will show you those forms? Who are the practical samples of the family, the practical samples of karma yogis, the practical samples of the tireless servers and the practical samples of being the forms of embodiments of blessings? It is the residents of Madhuban, is it not?Great importance is given to listening to what is most important in the Bhagawad; there isn't as much importance in the whole Bhagawad. So, you Brahmins are what is the most important in the land of divine activities, are you not? You do remember your own importance, do you not? Does it take effort or is it easy for the residents of Madhuban to become embodiments of remembrance? Madhuban is a place that gives blessings to both kinds of souls - subjects and kings.Nowadays, even subject souls are going back having claimed a right to their blessings. Since the subjects are claiming their blessings, imagine how full of blessings the souls who live in the land of blessings would be! According to the present time, all types of subjects have begun to come here from all over to claim their rights. Everywhere, the number of co-operative souls and souls in connection is increasing. The season of subjects has begun. So, the kings are ready, are they not? Or, is it that the crown of the king sometimes fits you and at other times doesn’t? Only those who are seated on the throne can be crowned. Those who are not seated on the throne cannot be fitted with a crown. This is why you get upset over trivial matters. This getting upset is a sign of not being set on your throne. Let alone people, not even nature can upset souls who are seated on the throne. There is no name or trace of Maya. So, you are such crowned souls who are seated on the throne and are bestowers of blessings, are you not? Do you understand the importance of the Brahmins of Madhuban? Achcha. Today, it is the turn of the Madhuban residents. All the rest are sitting in the gallery. You have been given a very good gallery. Achcha.You original jewels have come in your original stage, have you not? You have forgotten the middle, have you not? You have let go of all the branches etc., have you not? All of you original jewels are going back as flying birds, are you not? Don't go chasing the golden deer. Don't come down due to any type of attraction. No matter what type of circumstances come to shake the feet of your intellects, constantly remain unshakeable and immovable, destroyers of attachment and humble, for only then will you become flying birds and enable others to fly. You will constantly be detached and loving to the Father. Don't have love for any being or for any limited attainment. It is those limited attainments that come in front of knowledgeable gyani souls as the golden deer. Therefore, o original jewels, remain constantly incorporeal, viceless and egoless like Adi Pita, the First Father. Do you understand? Achcha.To the charitable souls who reveal the practical form of the Father through their every deed, to those who follow Father Brahma in their every action, to those who become artists in front of the world and show the picture of the Father, to the elevated souls who are equal to Father Brahma, BapDada's love, remembrance and namaste.Amongst the plans that the maharathis have made for service, there have been plans made especially for the youth, have there not? Before you do service of the youth, since the youth wing is moving forward with the thought of revealing themselves in front of the Government, since you are coming onto the field, always pay attention to one thing: Speak less and do more. You mustn't show them through your words; you have to show them practically. Give a lecture of actions on the stage. If you want to learn how to give lectures with your mouth, learn that from politicians! However, the spiritual youth wing is not one that gives lectures just with their mouths, but their eyes, their foreheads and their actions become instruments to give lectures. No one can give lectures with actions, but many people give lectures with words. Actions can reveal the Father. Actions can prove spirituality. Secondly, the youth wing must always keep with them a spiritual lucky charm for constant success. What would that be? To give regard is to receive regard. This record of giving regard will become an imperishable record of success. Let the youth wing constantly have on their lips just the one mantra of success: You first! Make this great mantra firm in your minds. Not that you say, "You first" with your lips and internally you feel that it should be “Me first”. There are some such clever children who say in words, "You first", but they have the feeling internally, "Me first". When you accurately finish “I first” and make others move forward and so move forward yourself, moving ahead with this great mantra, you will continue to achieve success. Do you understand? If you constantly have this mantra and lucky charm with you, then the drums of revelation will beat. Achcha.The plans are very good, but you have to put the plans into the practical form with a plain intellect. You may do service, but definitely also reveal the knowledge. Everyone in the world also says, “peace, peace” and they mix peace with peacelessness. Externally, everyone is chanting the slogan that there should be peace. Even those who are peaceless chant slogans for peace. Peace is needed, but when you have programmes on your own stage, then speak with your own authority, and not according to the environment. You have been doing that for a long time, and at that time, it was fine. However, now that the land has been prepared, sow the seeds of knowledge. Let there be such topics. You people change the topics so that people of the world take an interest. However, only let those who are interested come. You have had so many melas, conferences, seminars, etc., and for so many years you had topics based on those people. For how much longer are you going to remain incognito! Now be revealed! Whatever happened, happened according to the time. Now, through the Godly bomb on your own stage, at least let their heads turn as to what you are saying! Otherwise, they simply say that you said very good things. So, it just remained good and they stayed where they were. At least create some upheaval. Each one has his own right. Give them the points with authority and love, and no one will be able to do anything. In many places, they believe that you are very powerful in making your things clear. You have to consider what methods to use, but let there not be just authority – both love and authority have to be together. BapDada always says: Shoot the arrow and then also massage them. Give a lot of regard and also prove your truth. You speak God’s versions, do you not? You do not speak your own words. Those who are going to get upset will get upset even with the pictures, so what do you do then? You don’t get rid of the pictures, do you? What was the impact of the sakar form speaking in front of anyone with authority and intoxication? Was there ever a quarrel? You learnt this method of lecturing, did you not? You studied how you have to speak when it comes to sharing knowledge, did you not? Now, study this. You changed yourselves in terms of the world, and you also changed your language. So, when you were able to change yourselves for the world, then what can you not achieve in the practical form? For how much longer are you going to continue in this way? You are happy when they tell you that what you say is very good. Ultimately, it has to be known in the world that this alone is real knowledge. It is only through this that there will be liberation and salvation. There is no liberation or salvation without this knowledge. Now, people go away having done the yoga camps. When they go outside, they say the same things about God being omnipresent. Here, although they would say that they enjoyed the yoga very much, their foundation hasn’t changed. They are able to be transformed on the basis of your power, but they themselves do not become powerful. Whatever happened was also essential. This was the only right method to plough the land which had become infertile and to make it fertile. However, ultimately the Shaktis are going to come in their Shakti form, are they not? They came in the form of love, but these are the Shaktis and each word of theirs is one that transforms the heart and changes the intellect so that ‘no’ becomes ‘yes’. This form will also be revealed, will it not? Now reveal it! Make a plan for that. They come and they go back happy. Those who have such rest and comfort, receive so much love and hospitality would definitely go back content. However, they do not go back as a form of Shakti. Father Brahma used to ask for a questionnaire to be used at all the exhibitions. What was in that? The things mentioned were like arrows, were they not? They were asked to fill in the forms. Write down whether this is right or wrong, yes or no. You used to get them to fill in the forms. So what was the plan? To get them to fill in the forms just like that? Just to get them quickly to say whether something is right or wrong? However, instead, you must explain to them and then get them to fill the forms. In this way, they will fill in the forms accurately. You have to prove it to them. Make those plans among yourselves, so that there is authority and also love; so that there is regard and also that the truth is revealed. You will not insult anyone just like that, will you? You know that they are your branches and that they have emerged from here. It is your duty to give them regard. It is your custom to give love to the young ones. Achcha. Blessing: May you be a master bestower who imbibes kindness and finishes everyone’s problems. Whoever you come into connection with, no matter what type of sanskars they have, whether they create opposition or have a conflict in nature or are angry and go against you, your feelings of kindness will finish their strong karmic accounts of many births in a second. You simply have to make your original and eternal sanskars of being a donor emerge, imbibe kindness and all the problems of the Brahmin family will finish. Slogan: To transform every soul with your merciful form and drishti is to be a charitable soul. #bkmurlitoday #english #Murli #brahmakumari
- 15 May 2018 BK murli today in English
Brahma kumais murli today in English for 15 May 2018 - BapDada - Madhuban - 15/05/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, become worthy, follow shrimat and, with the blessings of the Mother and Father, continue to move forward. Never become careless in claiming blessings. Question: Which good path, that no human being can show, does the Father show you children? Answer: The path to become pure from impure. Only the one Father shows the good path to attain liberation and liberation-in-life. No one else knows of this path. If any souls knew of this, and they had the slightest experience of sorrow, they would immediately run here. The Father has shown you the path: Children, forget everything including your bodies, and remember the Father. It is through this that you will become pure. Song: Claim your blessings from your Mother and Father. Om Shanti You sweetest children heard the song. We now call the Mother and Father the Purifier. You children understand that the bundle of sins of many births has to be removed. How? Simply by remembering the Mother and Father. Everyone calls out to Shiv Baba. Baba continues to explain the highest knowledge of all. Children claim their inheritance from the Father. However, until they have been adopted and become the mouth-born creation, how could they be called children? Those on the path of devotion simply sing, whereas you are sitting here personally in front of Him. The Father says: I have now come to give you advice on how to remove the bundle of sins of many births and to make you follow shrimat. It is Shiv Baba, not this Baba, who says: My beloved, long-lost and now-found children. Do you understand that it is definitely the Purifier Father who shows you the path for removing the burden of sin, that only He shows the path to become pure from impure? Just as they have named a street ‘Subhash Marg’, so this is the path (marg) to become pure from impure. The Father says: Sweetest children, I have come to show you the path. Human beings call out: O Purifier, come and show us the path to become pure from impure. Now, who shows you this path? The most beloved Father. Sages and holy men etc. make spiritual endeavour to go to the land of liberation, but they cannot go there. When the world becomes impure, the Father has to come to show the path to the pure world. No human being can show the path to liberation or liberation-in-life. Therefore, you have to follow shrimat. Break all other connections. It is said: Renounce all other religions and remember Me alone. Forget all the religions of the body and consider yourself to be a soul. “I am so-and-so and this is my property”. Forget all of that, consider yourself to be a soul and make effort constantly. Remember Me! I show you a very good path. There is no other path as good as this one. This play of sorrow is now about to end. Do you still want to continue playing that part of sorrow, even now? If so, you will experience even more sorrow. No human being here is happy. There is untimely death etc., and so many other matters of such great sorrow. It is rare for someone to live to a very old age; all the rest are diseased. The Father says: I have come as your Guide. Now remember the Mother and Father. You receive so many blessings by following shrimat so that you all become fortunate. The Father says: You are the ones who are going to become the masters of the world. It is not a small thing to claim the mastership of the world from the unlimited Father. People cheat so much for the sake of money. There is no question of such things here. The Father says: Remember Me, and you will become forever free from disease. He gives you such a great inheritance for 21 births. On the path of devotion, you have been making promises to such a Father of how you would sacrifice yourselves to Him and claim the inheritance of heaven from Him. You now understand that you are sitting in front of the most beloved Father. The Father has been remembered as being incorporeal and egoless. He is such a highest-on-high Father! When devotion ends, I come to give you the fruit of your devotion. He also tells you who His real and true devotees are. They are those who were at first worthy of worship, who were gods and goddesses, who then declined through the stages of sato, rajo and tamo and who have now become completely decayed. You understand that you were the ones who were the masters of the world. There is great praise of Bharat. This is why everyone helps Bharat. They know that Bharat was once very wealthy. It has now become poor and so everyone feels sorry for it. They consider Bharat to be very poor and so they offer help. If someone who is very wealthy becomes poor, everyone wants to donate something to him. The Father says: The people of Bharat have become so confused. They celebrate the birthday of Shiva, but they don’t know when Shiv Baba came or what He did when He came. The Father must surely have brought the inheritance with Him and made you into the masters of heaven. He says: I make you children constantly happy, give you the throne and go into retirement. I do not have any desires. I do not become the master of the world. How you should hold on to such a beloved Father! It is not a question of holding Him by the hand; it is a question of holding Him in the intellect. All of you have to live at home with your families and also look after your children. This is unlimited renunciation. Renounce everything including your bodies. Everything here is tamopradhan and decayed and causes sorrow. Even the elements cause sorrow. There is famine when there is no rainfall. Sometimes there are floods. There, all the elements etc. will be under your control. The five elements will not disobey you. You children are now claiming blessings from the Father. You receive blessings by following shrimat. Become My helpers by following shrimat and remember Me, but live like a lotus flower. It is simply by having remembrance that you will make Bharat into heaven. The Father says: Simply become pure! It is not that every human being will lend a finger. Only those who became the Father’s helpers by following shrimat a cycle ago will do so again. You should have the pure pride that you are becoming right hands of the Supreme Father, the Supreme Soul. You will become completely righteous by becoming right hands and you will become threaded in the rosary of victory. It is very easy. No one makes you do hatha yoga for this. The play is ending and the parts of 84 births are also ending, and so you now have to renounce those dirty clothes. Now, while remembering Me, you will go to the land of peace. First you will reside there and I will then send you into relationships of happiness. We souls definitely come from up there. Everyone has forgotten that sweet home. People sacrifice themselves at Kashi. They think: There is sorrow here; I will go to Shiva. However, they cannot reach Shiv Baba. He is teaching you children here. You are earning an income. First you become Baba’s children, then Baba begins to teach you and takes you back home and then later sends you to heaven. Prajapita Brahma is definitely needed here. Therefore, you can explain: We are Brahma Kumars and Brahma Kumaris. Brahma is Shiv Baba’s child. Shiv Baba is our Grandfather. The inheritance is received from the Grandfather. He is the Creator of heaven. It is from Him that you receive the inheritance of heaven. Therefore, you have to follow the Father’s directions and take blessings from Him. It is only obedient children who are worthy of claiming blessings. The Father says: Don’t become unworthy; become worthy. Take hold of Baba’s hand firmly. He will take you back in great comfort. All souls receive wings. You know that, to whatever extent you remember the Father, you accordingly receive wings to fly. Those who have to endure punishment will not claim a high status. Follow shrimat and you will not have to experience punishment. You should make effort to pass with honours. You have to even win over Mama and Baba. Baba tells you repeatedly: Children, don’t turn your faces away from the Father. Some establish a centre and do a lot of service, whereas there are others who sulk while moving along; no one has become perfect yet. There is one conflict or another, but you must never leave the Father. “Baba, I belong to You and I am claiming my inheritance from You.” You also have to look after your homes and families. This is not the path of renunciation. You have created children, so you also have to sustain them. Among them, there will definitely be worthy and also unworthy children. Unworthy children will harass everyone. The Father says: Give everyone the introduction of the Father from beyond. Say to them: Since you say “O God, the Father”, how can He be omnipresent? They even say that God, the Father, is the Purifier. This world is impure and there was definitely a pure world too. That One alone is the Father of all souls. You now know that you are sitting in front of that Father who purifies you and blesses you: May you have a long life. Death cannot eat you there. Therefore, the Father tells you: Follow shrimat and give happiness to everyone. He has come in order to make everyone happy. He gives the inheritance of both peace and happiness. Maya doesn’t exist there, so where would sorrow come from? Here, they continue to fight and quarrel with each other. The Father has come to make you into the masters of the land of peace and the land of happiness. You are studying for that. The Father has provided you with all the facilities. Everything belongs to the children anyway. The Father says: I am your Servant. Children say: Shiv Baba, build a house in my name. OK, whatever you order. The Father says: Whatever are the children’s orders. Shiv Baba is having buildings constructed for you children through Brahma. Shiv Baba does everything. Baba has said: If you write a letter, write “Shiv Baba care of (c/o) Brahma”. This habit should be instilled. By your remembering Shiv Baba, so many sins are cut away. Baba shows you many wise methods. Shiv Baba c/o Brahma. It is very easy! Even the name is ‘Easy Raja Yoga and easy knowledge’. The Father is the Ocean of Knowledge, knowledge-full. He tells you the secrets of the beginning, the middle and the end of the whole world. This too is a matter of just a second. The omens of Saturn are changing and the omens of Jupiter are now over the residents of Bharat. The Father says: O children, take blessings from the Father so that your bundle of sins can be removed. Practise remembering Me alone. The Father says: While sitting, walking and moving around, remember Me, the most beloved Father. Just look at the inheritance I give you! Therefore, you should become worthy of claiming blessings from the Mother and Father. This one (Brahma) also claimed many blessings from his physical father. He served his father a great deal. At the end, his father said: Take me to live at Kashi. Baba said: OK father, let’s go. He settled him there and gave him servants and everything. He fulfilled all his desires there, and so Baba received his father’s blessings. He served everyone, and so he received blessings. The blessings from a mother and father enable you to move forward. It is now a question of the unlimited. Therefore, become a worthy child and claim blessings. Continue to follow shrimat and show the path to everyone. The people of Bharat became the masters of heaven. Baba has now come to give you the inheritance. He says: Simply remember Me and do not become trapped in anyone’s name or form. Become soul conscious, remember the Father and your boat will go across. You used to sing: You are the Mother and Father and I am Your child. That Mother and Father is now sitting in front of you. Baba, You definitely came a cycle ago and You continue to come in this way every cycle. Only we know this; no one else does. You have come to know the cycle of 84 births. Now, do not become careless in claiming blessings from the Father. These are very powerful blessings. Baba makes you children into the masters of the world and then goes and sits in the land of nirvana. He does not experience the happiness of that world Himself. Achcha. The Father says: What can I tell you in detail? Just understand these few words. You forget to remember the Father, and so tie a knot to remind yourself. People tie a knot to remind themselves not to forget to do something. Therefore, you too must not forget this. Those who open centres receive so many blessings. People remember the Founder of Heaven so much: O God, the Father, have mercy on me! He is the Bestower of Salvation and the Bestower of Peace for all. Just see how the Father sits here and serves you children. He makes you the most elevated of all. No one recognises what the Father is making you into. The Father is present in the children’s service. He is extremely egoless. There are many varieties of children and yet He says: Their destiny is fixed in that way. The Father says: My acts continue exactly as they did a cycle ago. Gandhi and Nehru also wanted there to be one almighty authority government. The Father is now accomplishing that task. Gradually, people will come to know this, but it will then have become too late. Once you reach your karmateet stage, the body does not remain. Those who come at the end will have to make very good effort. However, those who come at the end will go very fast anyway. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Follow the Father’s shrimat fully and become His right hand and completely righteous.Become a full helper of the Father. 2. The blessings of the Mother and Father enable you to move forward. Therefore, become obedient and claim those blessings. Become egoless, the same as the Father. Blessing: May you be a true server who does subtle service at a fast speed by paying attention to solitude (ekant) and concentration (ekagrata). In order to serve the unlimited souls of the world while you are sitting far away, your mind and intellect have to be free all the time. Do not let your mind or intellect get busy over trivial or ordinary matters. In order to do subtle service at a fast speed, pay special attention to being in solitude and having concentration. Even when you are busy, take a few moments and experience solitude. Even though the external situation may be of upheaval, concentrate your mind and intellect on the depths of One whenever you want in one second and then you can be a true server and become an instrument for unlimited service. Slogan: An enlightened soul understands every secret of knowledge and performs every act while knowing all secrets (raazyukt), yuktiyukt and yogyukt. #brahmakumari #english #bkmurlitoday
- 1 June 2018 BK muril today in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban -01-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे - अशरीरी बनने की ड्रिल नम्बरवन ड्रिल है, इससे वायुमण्डल में सन्नाटा छा जाता है, बाप का डायरेक्शन है - इसी ड्रिल का अभ्यास करो" प्रश्नः- दुनिया के अनेक विघ्नों के बीच में रहते हुए एकरस और खुशी में कौन रह सकते हैं? उत्तर:- जो किसी भी विघ्न की परवाह नहीं करते। तुम्हारे दुश्मन तो अनेक हैं, विघ्न डालेंगे, कलंक लगायेंगे, गाली देंगे - लेकिन याद रहे कि कलंक लगने से ही तुम कलंगीघर बनते हो। कहते हैं कृष्ण ने चौथ का चन्द्रमा देखा इसलिए उस पर कलंक लगे। लेकिन अभी तुम बच्चों पर बहुत कलंक लगते हैं। अन्त में तुम कहेंगे - हे भारतवासियों, देखो तुमने बहुत कलंक लगाये और हम अभी कलंगीधर बनते हैं। ओम् शान्ति।बच्चों प्रति शिवबाबा का फरमान है। शिवबाबा कहते हैं मैं ड्रिल टीचर हूँ ना। कहते हैं अशरीरी भव। बच्चे, स्वधर्म में टिक जाओ। मनमनाभव, मामेकम् याद करो। यह तो जानते हो अब धर्म की ग्लानि है। गीता में है - यदा यदाहि .... यह श्लोक जन्म-जन्मान्तर हम गाते आये हैं। जबसे भक्ति मार्ग शुरू हुआ गीता का पाठ करते आये हैं। शिवबाबा की पूजा करते आये हैं। वही शिवबाबा अब कहते हैं मामेकम् याद करो। तुम पर फिर से माया का परछाया पड़ गया है। अब मैं आया हूँ माया पर जीत पहनाने के लिए इसलिए मनमनाभव क्योंकि तुमको वापिस जाना है मेरे परमधाम में। अगर कृष्ण होता तो कहते - मध्याजीत भव। कृष्ण को कृष्णपुरी में याद करो। ज्ञान का दाता कोई कृष्ण नहीं है। वह तो है शिव। शिव की ही पूजा होती है, उनको परमात्मा कहा जाता है। तो हम आत्माओं को वहाँ जाना है, इसलिए बाबा ड्रिल सिखलाते हैं। यह है नम्बरवन ड्रिल - मनमनाभव, अशरीरी भव। तुम सब ब्राह्मण उनको याद करेंगे, अगर कोई शूद्र यहाँ और कोई ख्यालात में बैठा होगा तो वायुमण्डल को खराब कर देगा। उस एक को जब सभी याद करेंगे तो सन्नाटा छा जायेगा। जैसे कोई मरता है तो सन्नाटा हो जाता है। आत्मा के अशरीरी होने का प्रभाव पड़ता है। तो अब बाबा कहते हैं - तुम सब आत्माओं को वापिस ले जाऊंगा। काल तो एक आत्मा को ले जाता है। मैं तो कालों का काल हूँ। मैं सबको लेने आया हूँ। और मैं आता हूँ साधारण ब्रह्मा तन में। मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप चैतन्य हूँ। मैने ही गीता सुनाई थी। देखो, तुम्हारे पर अब कलष रखा है ना। कृष्ण की गोपियों को भी कलष दिखाते हैं। कहते हैं - कृष्ण ने मटकी तोड़ी। अब वह मटकी काहे की? तुम्हारे सिर पर जो विकारों की मटकी है, उनको तोड़ते हैं और ज्ञान अमृत का कलष देते हैं। बाकी सतयुग में थोड़ेही कोई ऐसी बात हो सकती है। गोपियाँ तुम हो। गोपी वल्लभ की गोपियों पर जो जहर का कलष था - वह फोड़ ज्ञान अमृत का कलष रखते हैं। तो इसमें बुद्धि बहुत अच्छी चाहिए तब धारणा हो सकेगी। गोपियों का वल्लभ (बाप) तो है शिवबाबा। कृष्ण को वल्लभ नहीं कह सकते। लिखा है कि गोपियों को भगाया। अब बाप थोड़ेही भगायेंगे। यह तो कायदा नहीं है। बाबा समझाते हैं जब कोई महात्मा कहे कि शिवोहम् तो बोलो कि एक तरफ कहते हो महात्मा यानि महान् आत्मा फिर अपने को परमात्मा अथवा शिवोहम् क्यों कहते हो? महान् आत्मा तो पवित्र आत्मा ठहरे। यह राज़ समझाना है। इसको ज्ञान का धर्म युद्ध कहा जाता है। उन्हों के पास है शास्त्रों की मत और तुम्हारे पास है श्रीमत। बाबा कहते हैं - मैं आता ही तब हूँ जब राजयोग सिखलाना है। भारत के ऊपर ही यह सारा खेल है। हीरो-हीरोइन का पार्ट भारतवासियों को मिला हुआ है। वास्तव में वन्दे मातरम् भी इन माताओं को कहा जाता है। वह कांग्रेसी लोग तो भूमि को मातरम् कहते हैं। भूमि तो तत्व है। उनको थोड़ेही माता कहा जा सकता है। इस धरनी में रहने वाली तुम मातायें हो। तुमको वन्दे मातरम् कहा जाता है। वह भूमि को वन्दे मातरम् कहते हैं, तो भूत पूजा हो गई। अभी तुम बच्चे योगबल से अपनी बादशाही लेते हो। सब मेहनत करते रहते हैं - पवित्र बन बादशाही लेने लिए। जिस तरफ साक्षात् सर्व समर्थ सर्वशक्तिमान है, उनकी ही जीत होनी है। परमात्मा की महिमा बिल्कुल अलग है। वह आकर ड्रिल सिखलाते हैं कि मामेकम् याद करो। और सब तुमको दु:ख देने वाले हैं। सभी दुश्मन बन विघ्न डालते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। हमको कोई दुनिया की परवाह थोड़ेही है। कृष्ण के लिए कहते हैं - चौथ का चन्द्रमा देखा तब इतनी गाली खाई। कलंक जिन पर लगाते हैं वही फिर कलंगीधर बनेंगे। फिर अन्त में कहेंगे - अरे भारतवासियों, तुमने हमें कितनी गाली दी! देखो, हम यह बन रहे हैं, राज्य-भाग्य ले रहे हैं। लड़ाई के मैदान पर तो बहुत सहन करना पड़ता है। तो जो राज्य-भाग्य देते हैं, उन पर बलिहार जाना पड़ता है। यह शिवबाबा समझा रहे हैं। यह दादा अपने को भगवान नहीं समझते हैं इसलिए शिवबाबा कहते हैं - बच्चे, यह तुम्हारा कल्प-कल्प का पार्ट है। तुम भी कहेंगे जब-जब धर्म की ग्लानि होती है तब बाबा आते हैं। अब बाबा आया हुआ है और हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं। निमंत्रण पत्र में भी लौकिक बाप के हद के वर्से और पारलौकिक बाप के वर्से वाली प्वॉइन्ट बहुत अच्छी लिखी हुई है। बेहद के बाप से ही बेहद का वर्सा मिलता है। लक्ष्मी-नारायण को बेहद का वर्सा किसने दिया? बाबा ने। तो यह सब समझने की बातें हैं। हमारा यह सितम सहन करने का भी पार्ट है। 21 जन्मों के लिए बादशाही मिलती है। तो इसमें मेहनत करनी पड़ती है। गाया जाता है सन शोज़ फादर, स्टूडेन्ट शोज़ टीचर। अब तुम्हारा रीयल पार्ट है। तुम समझा सकते हो वही हमारा बाप, टीचर, सत्गुरू है। वही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप रचयिता है। सब जीव आत्माओं का बाप है। उनको सर्वव्यापी कैसे कहेंगे! बाप तो ऊपर रहने वाला है तब तो दु:ख में उनको याद करते हैं। वह आते तब हैं जब धर्म ग्लानि होती है। बाबा कहते हैं हमारी जन्म भूमि भारत के रहवासी जब दु:खी होते हैं तब मुझे आना पड़ता है। परमात्मा की जन्म भूमि भारत है। यह अक्षर कोई के मुख से कभी निकलेगा नहीं। अगर सब परमात्मा हों तो सबकी जन्म भूमि भारत होगी। बाबा कहते हैं सभी प्रीसेप्टर्स को भी मैं मुक्तिधाम ले जाता हूँ। जब उन्हों को यह मालूम पड़े कि हमको मुक्ति देने वाला बाबा है, वह भारत में जन्म लेते हैं तो भारत बहुत बड़ा भारी तीर्थ बन जाये। समझो, सभी को मालूम पड़े परन्तु आ कैसे सकें! सभी तो भारत में आ न सकें। इतना तो अन्न नहीं है भारत में। यह सुनकर बहुत-बहुत खुश होंगे कि ओहो, हमारा बाबा, जो इन गुरूओं आदि को भी मुक्ति देते हैं उनका जन्म भारत में होता है! पहचानेंगे तो नॉलेज से ना और क्या देखेंगे! ब्राह्मणों में जब किसकी सोल आती है तो उनके भी बोलने से पहचानते हैं ना। बिगर बोलने पहचान कैसे हो सकती? बात करने से मालूम पड़ेगा - बरोबर फलानी आत्मा है। शिवबाबा भी जब नॉलेज दें तब समझें कि शिवबाबा बोलते हैं। ज्ञान यह तो दे न सकें। यह सिवाए बाप के कोई समझा न सके।कभी-कभी कोई कहते हैं - हम शिवबाबा से बात करें, परन्तु उनको पहचानेंगे कैसे? समझ भी नहीं सकेंगे। बुद्धि से समझना चाहिए कि यह नॉलेज बाबा के सिवाए कोई दे नहीं सकता। देखो, कहाँ-कहाँ बच्चियाँ बिगर देखे तड़फ रही हैं - शिवबाबा से मिलने। जरूर उनकी ताकत है जो खींचती है, कशिश होती है। तो उन्हों को सफेद-पोश का साक्षात्कार कराते हैं इसलिए बाबा कभी हमारी ड्रेस बदलने नहीं देते हैं। तो उनकी नॉलेज से मालूम पड़ता है। बहुतों को भिन्न-भिन्न प्रकार के साक्षात्कार भी होते हैं। परन्तु उनसे क्या फायदा? तुम्हारा काम नॉलेज से है। यह नॉलेज कोई दे न सके। तो यह सारा गुप्त पार्ट हुआ। कहते हैं - मैं आत्मा का रूप धारण कर इसमें प्रवेश हो जाता हूँ। तो यह नॉलेज इतनी बाबा ही देते हैं। हम थोड़ेही जानते थे। बाबा देखो कितनी कमाल करते हैं! कहते हैं - मुझे अपना वारिस बनाओ। मैं तुम्हारी इतनी सेवा करूँगा जो तुम्हारा बच्चा भी कभी नहीं कर सकेगा। मैं तुमको 21 जन्म के लिए राज्य-भाग्य दूँगा। फिर भी अगर वारिस न बनावे तो तकदीर कहा जाता। तुम बच्चियाँ जानती हो - हम शिवबाबा से वर्सा लेने लिए यहाँ आये हैं। शिवबाबा को और वैकुण्ठ को तुम सिवाए दिव्य दृष्टि के देख न सको। ज्ञान तो बिल्कुल क्लीयर मिल रहा है ना। हमको बाबा राजयोग सिखलाते हैं। ऊंच ते ऊंच वर्सा है वैकुण्ठ की बादशाही। सो भी पढ़ाई से मिलती है। कोई भी राजयोग सिखला न सके। हम नर से नारायण बनते हैं। यह राजयोग सिखलाते ही अन्त में हैं तब तो फिर सतयुग में राजा-रानी बनेंगे। यह मूसलों की लड़ाई प्रसिद्ध है। गीता से देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। उस समय तो और कोई धर्म था नहीं। वे सब कहाँ गये? विनाश हुआ। बिल्कुल सहज बात है। ट्रेन में तो तुम बच्चे बहुत सर्विस कर सकते हो फिर भी प्रजा तो बन जायेगी। गाड़ी का डिब्बा ही तुम्हारी प्रजा बन जायेगी। बैठकर सुनेंगे तो उनको बहुत अच्छा लगेगा। लिटरेचर हाथ में होना चाहिए। साथ में लाडला श्रीकृष्ण भी होना चाहिए। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1- 21 जन्मों की तकदीर बनाने के लिए शिवबाबा को अपना वारिस बनाना है। हर कर्म से बाप, टीचर, सतगुरू - तीनों का शो करना है। 2- ज्ञान क्लीयर मिल रहा है इसलिए साक्षात्कार की आश नहीं रखनी है। साक्षात् सर्व समर्थ बाप हमारे साथ है - इसलिए विघ्नों से घबराना नहीं है। वरदान:- अलौकिक स्वरूप की स्मृति द्वारा अलौकिक कर्म करने वाले सदा समर्थ आत्मा भव l ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक, हीरे तुल्य अमूल्य जीवन। इस अलौकिक जीवन की स्मृति से वा अलौकिक स्वरूप में स्थित रहने से साधारण चलन, साधारण कर्म नहीं हो सकता। जो भी कर्म करेंगे वह अलौकिक ही होगा क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है। स्मृति में रहे एक बाप दूसरा न कोई। तो बाप की स्मृति सदा समर्थ बना देगी इसलिए हर कर्म भी श्रेष्ठ, अलौकिक होगा।स्लोगन:-स्व-उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन लो तो सबकी विशेषतायें ही दिखाई देंगी। मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य' सृष्टि की आदि कैसे होगी? "बहुत मनुष्य यह प्रश्न पूछते हैं कि परमात्मा ने सृष्टि कैसे रची है? आदि में कौनसा मनुष्य रचा अब उसका नाम रूप समझना चाहते हैं। अब उस पर उन्हों को समझाया जाता है कि परमात्मा ने सृष्टि की आदि ब्रह्मा तन से की है, पहला आदमी ब्रह्मा रचा है। तो जिस परमात्मा ने सृष्टि की आदि की है तो अवश्य परमात्मा ने भी इस सृष्टि में अपना पार्ट अवश्य बजाया है। अब परमात्मा ने कैसे पार्ट बजाया? पहले तो परमात्मा ने सृष्टि को रचा, उसमें भी पहले ब्रह्मा को रचा तो गोया पहले ब्रह्मा की पवित्र आत्मा हुई वही जाकर श्रीकृष्ण बनी, उसी तन द्वारा फिर देवी देवताओं के सृष्टि की स्थापना की। तो दैवी सृष्टि की रचना ब्रह्मा तन द्वारा कराई, तो देवी देवतायें का आदि पिता ठहरा ब्रह्मा, ब्रह्मा सो श्रीकृष्ण बनता है वही श्रीकृष्ण का फिर अन्त का जन्म ब्रह्मा तन है। अब ऐसे ही सृष्टि का नियम चलता आता है। अब वही आत्मा सुख का पार्ट पूरा कर दु:ख के पार्ट में आती है तो रजो तमो अवस्था पास कर फिर शूद्र से ब्राह्मण बनते हैं। तो हम हैं ब्रह्मा वंशी सो शिव वंशी सच्चे ब्राह्मण। अब ब्रह्मा वंशी उसको कहते हैं - जो ब्रह्मा के द्वारा अविनाशी ज्ञान लेकर पवित्र बनते हैं तो इससे सिद्ध है कि इस सृष्टि का आदि पिता है बाबा ब्रह्मा। अच्छा। ओम् शान्ति। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
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