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Writer's pictureShiv Baba, Brahma Kumaris

दादी प्रकाशमणि जी की जीवनी (Biography of Dadi ji in Hindi)

Dadi Prakashmani Biography story in Hindi. Today is 25 August, a day which is remembered by Brahma Kumar and Kumaris as the day of Dadi ji (Prakashmani aka Dadi Kumarka). Here is the detilaed biography of a great soul of Shiv baba's Yagya. The administrating head of Prajapita Brahma Kumari Ishwariya Vishwa Vidhyalay since 1969 till Aug 2007.


Dadi Prakashmani

दादी (बड़ी बहन) प्रकाशमणी (प्रकाश का हीरा या गहना) उर्फ कुमारका दादी प्रजापिता ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की दूसरी मुख्य प्रशाशिका (leader)रही है l मममा के बाद साकार मे यज्ञ की प्रमुख, दादी प्रकाशमणी ही रही.l चाहे देश विदेश की सेवा की देखभाल हो, या ब्राह्मण परिवार मे कोई समस्या आए, तो परिवार के बड़े के पास ही जाते है।

दादी 1969 से 2007 तक संस्था की मुख्य प्रशशिका रही l इसी समय मे बहुत गीता पाठशाला और बड़े सेंटर्स खुले l

दादी का लौकिक नाम रमा था । रमा का जन्म उत्तरी भारतीय प्रांत हैदराबाद, सिंध (पाकिस्तान) में 01 सितंबर 1922 को हुआ था । उनके पिता विष्णु के एक महान उपासक और भक्त थे l रमा का भी श्री कृष्णा के प्रति प्रेम और भक्ति भाव रहता था । रमा केवल 15 वर्ष की आयु मे पहली बार ओम मंडली के संपर्क में आई थीं, जिसे 1936 मे स्थापन क्या गया था । रमा को ओम मंडली मे पहली बार आने से पहले ही घर बैठे श्री कृष्ण का शक्षात्कार हुआ था, जहा शिव बाबा का लाइट स्वरूप भी दिखा था । इसलिए रमा को अस्चर्य हुआ, की यह क्या और किसने किया l शरूवात मे बहुतो को ऐसे शक्षात्कार हुए । यह 1937 का समय बहुत वंडरफुल समय रहा।

रमा की दीवाली के दौरान छुट्टियां थीं और इसलिए उनके लॉकिक पिता ने रमा (दादी) से अपने घर के पास सत्संग जाने के लिए कहा । असल में, इस आध्यात्मिक सभा (सत्संग) का गठन दादा लेखराज (जिन्हे अब ब्रह्मा बाबा के नाम से जाना जाता है) द्वारा किया गया था, जो भगवान स्वयं (शिव बाबा) द्वारा दिए गए निर्देशों पर आधारित थे। इसे ओम मंडली के नाम से जाना जाता था।


''पहले दिन ही जब मे बापदादा से मिली और धृिस्टी ली, तो एक अलग ही दिव्य अनुभव हुआ'' - दादी प्रकाशमणी। उन्होंने एक विशाल शाही बगीचे में श्री कृष्ण का दृश्य देखा । दादा लखराज (ब्रह्मा) को देखते हुए उन्हें वही दृष्टि मिली। उसने तुरंत स्वीकार किया कि यह कोई मानव काम नहीं कर रहा है।

उन्ही दीनो मे बाबा ने रमा क 'प्रकाशमणी' नाम दिया l तो ऐसे हुआ था दादी प्रकाशमणी का अलौकिक जन्म l

1939 मे पूरा ईश्वरीय परिवार (ओम मंडली) कराची (पाकिस्तान) मे जाकर बस गया l 12 साल की तपस्या के बाद मार्च 1950 मे (भारत के स्वतंत्र होने के बाद) ओम मंडली माउंट अबू मे आई, जो अभी भी प्रजापिता ब्रह्मा कुमारीज का मुख्य सेंटर है l 1952 से मधुबन - माउंट अबू से पहली बार ईश्वरिया सेवा शरु की गयी l ब्रह्मा कुमारिया जगह जगह जाकर यह ज्ञान सुनती और धारणा करवाती रही l दादी प्रकाशमनी भी यही सेवा मे जाती थी l ज़्यादा तर दादी जी मूबाई मे ही रहती थी l

साकार बाबा (ब्रह्मा) के अव्यक्त होने बाद से, दादीजी मधुबन मे ही रही और सभी सेंटर की देखरेख की l 2007 के ऑगस्ट महीने मे दादीजी का स्वस्थ ठीक ना होने पर, उन्हे हॉस्पिटल मे दाखिल किया गया l वही पर 25 को उन्होने अपना देह त्याग कर बाबा की गोद ली .

अच्छा

नमस्ते

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