सुद्ध संकल्पो के ख़ज़ाने द्वारा विश्व मनसा सेवा l
प्रश्न: आज 19-10-18 की मुरली के स्लोगन में आया है कि मनसा सेवा वही कर सकते हैं जिनके पास शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा है । हम अपने शुद्ध संकल्पों की शक्ति को बढ़ा या जमा कैसे कर सकते हैं ? कृपया इसे थोड़ा स्पष्ट करें ।*
उत्तर:
मनसा सेवा *शुद्ध एवं श्रेष्ठ संकल्पों* द्वारा सूक्ष्म सेवा है । जब तक हम अपने मन बुद्धि को *एकाग्र* नहीं कर सकते और प्रकृति सहित विश्व की आत्माओं प्रति *कल्याण करने की बेहद की भावना* नहीं रखते तब तक यह सेवा अच्छी व ठीक रीती से नहीं कर सकते । इस सेवा के लिए संकल्पों का शुद्ध व शक्तिशाली होना अत्यावश्यक है ।
संकल्प हमारे शुद्ध व शक्तिशाली तब होते हैं :
१) जब हम ऊँची स्टेज पर स्थित होते हैं या आत्मिक स्वरुप में रहते हैं
२) सूक्ष्म – स्थूल इन्द्रियों के प्रभाव से मुक्त रहते हैं।
स्थिति बनाने का महत्वपूर्ण साधन है -
1. अमृतवेला योग
2. मुरली के पॉइंट्स का मनन चिंतन । योग के अंतर्गत कंबाइंड स्वरुप का अभ्यास, पाँच स्वरूपों का अभ्यास, फ़रिश्ता स्थिति का अभ्यास, अशरीरी (बीजरूप स्थिति ) का अभ्यास l
यह अभ्यास करने से हमारे संकल्प शुद्ध एवं शक्तिशाली होने लगते हैं l दूसरी ओर हमारे संचित संकल्पों की शक्ति *विकारों और व्यर्थ संकल्पों* के कारण *नीचे की ओर* ना बहे अथवा *कमजोर* ना बने इस पर भी अटेंशन देना पड़ेगा । स्थूल की ही बात नहीं, मनसा में भी विकारी संकल्पों की प्रवेशता न हो इसका पुरुषार्थ बहुत जरुरी है क्योंकि ये मन को अशुद्ध करते हैं,बुद्धि को भटकाते हैं और व्यर्थ संकल्प हमारी उर्जा को नष्ट करते हैं । जितना हमारा *उर्जा का स्टॉक* बढेगा उतना उसकी *intensity* बढ़ेगी और ज्यादा से ज्यादा दूर तक उसको प्रवाहित कर सूक्ष्म शरीर द्वारा सेवा कर सकने में सक्षम होंगे । मनसा सेवा से ज्यादा से ज्यादा आत्माओं की सेवा कम समय में कर सकते हैं क्योंकि इसमें *न शरीर का न समय का और न स्थान का बंधन* होता है । अंतिम समय में जब स्थूल सेवा के लिए scope नहीं रहेगा तब मनसा सेवा ही कर के आत्माओं को *मार्गदर्शन और संतुष्ट* कर सकेंगे ।
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