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- BK murli today in Hindi 14 July 2018 - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - madhuban - 14-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन'' मीठे बच्चे - बाप से जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करने के लिए माया के सर्व बन्धनों से मुक्त बनो, यहाँ के जीवनमुक्त ही वहाँ जीवन-मुक्ति पद पाते हैं'' प्रश्नः- इस ज्ञान का बीज अविनाशी है - कैसे? उत्तर:- इस ज्ञान से सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन होती है, वह राजधानी बहुत बड़ी है, जो आत्मायें एक बार भी ज्ञान ले लेती हैं, भल बीच में छोड़कर चली जायें, फिर वह अन्त में आ जायेंगी, क्योंकि उन्हें भी राजधानी में आना ही है। जिसमें थोड़ा भी ज्ञान का बीज पड़ा है, वह आ जायेगा। जा नहीं सकता। यह बात ही ज्ञान को अविनाशी सिद्ध करती है। गीत:- भोलेनाथ से निराला....... ओम् शान्ति।बच्चे अब अपने भोलानाथ प्राणेश्वर के सम्मुख बैठे हैं और अच्छी रीति जानते हैं कि इस बेहद के मालिक भोलानाथ से हमको फिर से स्वर्ग का वर्सा मिल रहा है। बुद्धि वहाँ चली जाती है, बरोबर बाप द्वारा ही हम बाप के घर जाते हैं। बाप बुलाने आये हैं, जैसे साजन सजनी को बुलाने आते हैं। एक साजन आकर सब सजनियों को गुल-गुल बनाते हैं। उनका नाम ही है - पतित-पावन। परन्तु बच्चे बाप को भूल जाते हैं। यह भूलना भी ड्रामा के अन्दर है। बाप आकर सभी राज़ समझाते हैं। तुम लक्की सितारों का मर्तबा बाप से भी ऊंच है। जैसे बाप ब्रह्माण्ड का मालिक है, वैसे तुम भी ब्रह्माण्ड के मालिक हो। तुम भी मुझ बाप के साथ रहने वाले थे। फिर तुम बच्चों को तो पार्ट बजाना ही होता है। तुम जानते हो हम वैकुण्ठनाथ बनने के लिए त्रिलोकीनाथ के पास आये हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम भी इस समय त्रिलोकीनाथ हो, तो मैं भी त्रिलोकीनाथ हूँ। फिर सतयुग आता है तो उसके नाथ तुम बनते हो, मैं नहीं बनता हूँ। मैं आता ही हूँ तुम्हारी आत्मा को रावण के दु:खों से छुड़ाने। रावण से तुम्हें बहुत दु:ख मिला है। ड्रामा को तो बच्चे समझ गये हैं। इनके चार युग नहीं, बल्कि पांच युग हैं। चार हैं बड़े, एक संगमयुग लीप युग है। यह नॉलेज भी बच्चों के ध्यान में होनी चाहिए क्योंकि ज्ञान सागर के तुम बच्चे बने हो। भक्ति मार्ग में उसकी महिमा की जाती है। तुम ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर हो। यह महिमा फिर वैकुण्ठनाथ की नहीं होती। उनको फिर कहा जाता है - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला........। इस कलियुग में तो होते नहीं, तो जरूर कोई बनाने वाला आया होगा। तो स्वर्ग के मालिक सिर्फ तुम ही बनते हो। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर जो सूक्ष्मवतनवासी देवतायें हैं उनको भी युगल दिखाते हैं - प्रवृत्ति मार्ग दिखाने लिए। तो स्वर्ग भी यहाँ ही होता है। ब्राह्मण वर्ण से तुम देवता वर्ण में आयेंगे फिर क्षत्रिय वर्ण में आयेंगे।सयाने बच्चे जो होते हैं वह अच्छी रीति पढ़ाई पर ध्यान देते हैं। अज्ञान काल में भी बच्चा होता है तो समझते हैं वारिस आया है। तुम भी मम्मा-बाबा कहते हो तो वारिस ठहरे ना। जैसे गाँधी को बापू जी कहते थे, यूँ तो भारत में मात-पिता बहुतों को कहते हैं। बुजुर्ग को पिता जी कहते हैं। सिर्फ कहने मात्र कह देते। यह तो सभी का बापू जी है ही। प्राणेश्वर अर्थात् सभी आत्माओं का ईश्वर बाप है। बाप कहने से वर्से की खुशी दिल में आती है। वह भासना आती है। तुम बच्चों को भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार भासना आती है। बरोबर बेहद का बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो राजयोग सिखला न सकें। भगवानुवाच है। देवी-देवतायें हैं दैवीगुण वाले मनुष्य। परमेश्वर माना गॉड फादर। भारत में भी कहते हैं - परमपिता परमात्मा, सुप्रीम गॉड फादर, तो बुद्धि ऊपर में चली जाती है क्योंकि जानते हैं - फादर ऊपर में रहते हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो - हम भी वहाँ के रहने वाले हैं। अभी हम उस प्राणेश्वर के सम्मुख बैठे हैं। बाप सम्मुख याद दिलाते हैं तो निश्चय करते हो - बरोबर यह कोई साधू-महात्मा नहीं, हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। क्यों उनके बने हो? मात-पिता से भविष्य 21 जन्मों का वर्सा लेने। अगर निश्चय नहीं तो क्यों बैठे हो? कारण चाहिए। बिना पहचान कोई किसी के सम्मुख बैठ न सके। दुनिया में तो एक-दो की पहचान होती है - यह सन्यासी है, यह गवर्नर है.......। यहाँ यह बाप तो है गुप्त। जबकि समझते हैं परमपिता परमात्मा परमधाम का रहने वाला है। फिर उसमें सर्वव्यापी की बात उठती ही नहीं। आत्मा याद करती है - ओ गॉड फादर। खुद ही परमात्मा होते तो फिर पुकारते किसके लिए? बहुत थोड़ी समझने की बात है। परन्तु माया ऐसा बना देती है जो समझते ही नहीं। जो बात मुख से कहते उस पर फिर विश्वास नहीं करते। माया संशयबुद्धि बना देती है। पुकारते भी हैं - ओ गॉड फादर, फिर कह देते हम ही फादर हैं तब पुकारते क्यों हैं? फादर अक्षर तो बच्चा ही कहेगा। याद एक को ही करना है। अभी तुम सम्मुख बैठे हो। जानते हो हम परमपिता परमात्मा के बने हैं। उससे वर्सा लेते हैं। अब तो नहीं भूलेंगे ना।बाप कहते हैं - बच्चे, अशरीरी बनो, पवित्र बनो। मैं तुमको लेने आया हूँ। देवताओं के आगे गाते भी हैं - मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। देवताओं की महिमा गाते हैं, अपने को नीच पापी समझते हैं। जरूर पहले सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया थी। उसको स्वर्ग शिवालय कहा जाता था। शिवबाबा का स्थापन किया हुआ स्वर्ग। भारतवासी जानते भी हैं - स्वर्ग होता है। परन्तु भारत स्वर्ग था, आदि सनातन देवी-देवतायें राज्य करते थे - यह भूले हुए हैं। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा। स्वर्ग तो होता है सतयुग में। कलियुग में थोड़ेही होता है। जब अखबार में लिखते हैं - स्वर्ग पधारा तो तुम पूछो स्वर्ग होता कहाँ है? समझते हैं - परमधाम में परमात्मा के पास गया वही स्वर्ग है। या तो कहते निर्वाणधाम गया या फिर कहते ज्योति ज्योत समाया। अक्षरों का कितना फ़र्क है। उसको कहा जाता है-ब्रह्म महतत्व। यह है आकाश तत्व। इनको महतत्व नहीं कहेंगे। महतत्व वह है - ब्रह्म महतत्व, ब्रह्माण्ड, जहाँ हम आत्मायें अण्डे मिसल रहती हैं। बाप भी वहाँ रहते हैं। उसको परमधाम कहा जाता है। बाकी ब्रह्म में कोई लीन नहीं हो सकता। बच्चों को बहुत प्वाइंट्स समझाई जाती है, जबकि सम्मुख बैठे हो। भक्त तो भगवान को ढूँढते रहते हैं।तुम जानते हो - भक्ति मार्ग में सबसे जास्ती भक्ति कौन करते हैं? जरूर जो पहले पूज्य थे, वही फिर पहले पुजारी भक्त बनते हैं। यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। गाते भी हैं - आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। परन्तु वह समझते हैं कि परमात्मा बाप खुद ही पूज्य-पुजारी बनते हैं। यह तो रांग है। बाप आकर बच्चों को ऊंच महिमा लायक बनाते हैं। परन्तु सभी को स्वर्ग की जीवनमुक्ति नहीं मिलेगी। जीवनमुक्ति तो मिलेगी तब, जब माया के बंधनों से मुक्त होंगे। जीवनमुक्त अर्थात् माया के बन्धन से मुक्त। ऐसे नहीं कि सभी सतयुग में आयेंगे। सतयुग में तो वही आयेंगे जो राजयोग सीखते हैं। ज्ञान मार्ग में कितने बंधनों से निकलना पड़ता है! मीरा को कोई इतने बंधन नहीं थे। वह सिर्फ कहती थी - कृष्ण से मिलना है इसलिए पवित्र बनूँगी। तुमको तो कृष्णपुरी में जाना है। वह मीरा थी भक्त शिरोमणी। तुम हो विजय माला शिरोमणी, जो विजयमाला पूजी जाती है। भक्तों की माला कोई पूजी नहीं जाती। जो भारत को स्वर्ग बनाते हैं उन्हों की माला पूजी जाती है। भक्त तुम बच्चों की माला को पूजते हैं। पहले है रूद्र माला, फिर विष्णु की माला बनती है। यह कोई नहीं जानते कि माला किसकी बनी हुई है। सिर्फ माला सिमरते रहते हैं। अभी तुम भक्तों की माला तो नहीं सिमरेंगे। भक्त तुम बच्चों की माला सिमरते हैं। तुम जानते हो - हमारी विजयमाला बन रही है। फिर हम ही खुद पुजारी बन माला फेरेंगे। तुम राज्य भी करते हो फिर जाकर सबसे पहले तुम ही माला फेरेंगे। तुम से ही फिर भक्ति और भी सीखेंगे। तुम विश्व को स्वर्ग बनाते हो।बाप राजयोग सिखलाते हैं - जिसका नाम गीता रखा है। धर्मशास्त्र का नाम तो चाहिए ना। भल ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है परन्तु शास्त्र तो बनेंगे ना। शास्त्र बनाए उसका नाम श्रीमत भगवत गीता रखा है। भक्ति मार्ग के लिए गीता बनाते हैं। वह गीता कोई ज्ञान मार्ग के लिए नहीं है। कितनी गीतायें सुनाते रहते हैं! ऐसे कभी नहीं कहते कि तुमको राजयोग सिखाते हैं। कहेंगे भगवान राजयोग सिखाकर गया था। फिर उसके शास्त्र बैठ पढ़ते हैं। अब भगवान द्वारा सम्मुख वही गीता सुनकर हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। बाप कहते हैं - मैं तुम बच्चों को एक ही बार राजयोग सिखलाए सो राजाओं का राजा बनाने आया हूँ। जब तक सद्गति देने वाला न आये तब तक भक्ति मार्ग की महिमा जरूर चलेगी। जो कल्प पहले आये होंगे वही आकर यह सुनेंगे। अजुन तो बहुत बनने वाले हैं। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन हो रही है, तो कितने आयेंगे! इसलिए ज्ञान का विनाश नहीं होता है। साहूकार प्रजा, साधारण प्रजा, नौकर-चाकर आदि भी चाहिए ना। कितनी बड़ी राजधानी स्थापन होती है! मनुष्य थोड़ेही जानते हैं कि कैसे सतयुगी राजधानी स्थापन होती है, अगर यह जान जायें तो सुनायें। बाप को ही भूल गये हैं। निराकार शिव भगवानुवाच के बदले कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है। शिव जयन्ती के बाद फट से कृष्ण जयन्ती आती है। वह कृष्ण है वैकुण्ठनाथ। यह बैठ तुमको वैकुण्ठनाथ बनाते हैं। कृष्ण को फिर द्वापर में ले गये हैं। कितना भारत के ज्ञान का सूत मूँझा हुआ है!अब अच्छी रीति धारण कर नॉलेजफुल बनना है। देखना है - हम कितने मार्क्स से पास होते हैं? अभी पास होंगे तो कल्प-कल्पान्तर होंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते पढ़ना है। ऐसे तो कहाँ भी होता नहीं जो बूढ़े-बुढ़ियां, स्त्री-पुरुष, बहू आदि सब आकर पढ़े। शास्त्र भी ऐसे नहीं पढ़ते। माताओं को तो कहते - तुमको शास्त्र पढ़ना नहीं है। पुरुष ही पण्डित बन पढ़ते हैं। यहाँ देखो कौन-कौन पढ़ते हैं! कैसी-कैसी बुढ़िया आती हैं! वन्डर है ना। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रह राजयोग सीखना है। गॉड फादरली स्टूडेन्ट बनना है। इसका नाम ही है - ईश्वरीय ब्रह्माकुमार-कुमारियों का कॉलेज। ईश्वर ब्रह्मा द्वारा पढ़ा रहे हैं। ब्रह्मा कोई विष्णु की नाभी से थोड़ेही निकला है। यह तो परमपिता परमात्मा की नाभी ही कहेंगे। बीजरूप तो शिवबाबा है ना। उनसे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर निकले। तीनों का अर्थ ही अलग-अलग है। अभी तुम बच्चे समझते हो - बरोबर विष्णु को हमेशा लक्ष्मी देते हैं। नर-नारायण का मन्दिर है तो उनको भी चतुर्भुज बनाते हैं। नारायण होगा तो उनके साथ लक्ष्मी जरूर होगी। नर - नारायण, नारी - लक्ष्मी। नर-नारायण को 4 भुजा देते हैं। नारायण को अलग, लक्ष्मी को अलग तो दो-दो भुजा देनी चाहिए। ऐसा कायदे अनुसार मन्दिर बनाना चाहिए। परन्तु बिचारे नर-नारायण के मन्दिर से कुछ भी समझते नहीं। नर-नारायण के साथ लक्ष्मी भी देते हैं। दीपमाला में महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। माताओं की कितनी महिमा है! जगत अम्बा की बड़ी महिमा है। अम्बा बड़ी मीठी लगती है क्योंकि कुमारी है। यह अधर है। तो कुमारियों का भारत में मान बहुत है। परन्तु महत्व को जानते नहीं हैं। जगत अम्बा का बहुत मान है। बाप का इतना नहीं। बाप ने आकर माताओं को ऊंच उठाया है। तो बहादुर बनना चाहिए। शेर पर सवारी चाहिए। अत्याचार होंगे। परन्तु बाप के बने तो धरत परिये धर्म न छोड़िये। पवित्र बनकर ऊंच पद जरूर पाना है। मीरा भी पवित्र बनी ना। बाप कुमारियों को कहते हैं - बोलो, हम पवित्र बन वैकुण्ठ का मालिक बनना चाहती हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सच्चा वारिस बनने के लिए सयाना बनना है, पढ़ाई को अच्छी रीति धारण कर नॉलेजफुल बनना है। बाप समान महिमा योग्य बनना है। 2) विजय माला में शिरोमणी बनने के लिए माया के बंधनों को काटते जाना है। बहुत-बहुत बहादुर बन पवित्र जरूर बनना है। वरदान:- छोटी-छोटी अवज्ञाओं के बोझ को समाप्त कर सदा समर्थ रहने वाले श्रेष्ठ चरित्रवान भव l जैसे अमृतवेले उठने की आज्ञा है तो उठकर बैठ जाते हैं लेकिन विधि से सिद्धि को प्राप्त नहीं करते, स्वीट साइलेन्स के साथ निद्रा की साइलेन्स मिक्स हो जाती है। 2-बाप की आज्ञा है किसी भी आत्मा को न दु:ख दो, न दु:ख लो, इसमें दु:ख देते नहीं हैं लेकिन ले लेते हैं। 3- क्रोध नहीं करते लेकिन रोब में आ जाते हैं, ऐसी छोटी-छोटी अवज्ञायें मन को भारी कर देती हैं। अब इन्हें समाप्त कर आज्ञाकारी चरित्र का चित्र बनाओ तब कहेंगे सदा समर्थ चरित्रवान आत्मा। स्लोगन:- सम्मान मांगने के बजाए सबको सम्मान दो तो सबका सम्मान मिलता रहेगा। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi
- 14 July 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English - 14/07/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, in order to claim your inheritance of liberation-in-life from the Father, become free from all the bondages of Maya. Only those who are liberated in life here can claim the status of liberation-in-life there. Question: How is the seed of this knowledge imperishable? Answer: The sun and moon dynasty kingdoms are established through this knowledge. The kingdom is very big. Even though souls who have taken knowledge might leave the path of knowledge in the middle, they still come back at the end because they too have to come into the kingdom. Those who have had even the slightest seed of knowledge sown in them will come; they cannot go anywhere else. This aspect proves knowledge to be imperishable. Song: No one is unique like the Innocent Lord. Om ShantiYou children are now sitting in front of the Innocent Lord, Praneshwar (the Bestower of Life), and you know very well that you are once again receiving your inheritance of heaven from the unlimited Master, the Innocent Lord. Your intellects go there. Truly, you go back to the Father's home with the Father. The Father has come to collect you, just as a bridegroom comes to collect his bride. The one Bridegroom comes and makes all the brides beautiful. His name is the Purifier. However, children forget the Father. It is in the drama for them to forget. The Father comes and explains all the secrets to you. The status of you lucky stars is even higher than that of the Father. Just as the Father is the Master of Brahmand, in the same way you too are masters of Brahmand. You used to reside with Me, your Father. Then, you children definitely had to play your parts. You know that you have come to Trilokinath (Master of the Three Worlds) in order to become the Vaikunthnaths (lords of Paradise). The Father says: Children, at this time, you are the masters of the three worlds and I am also the Master of the Three Worlds. Then, when the golden age comes, you become the masters of it; I don’t become that. I come to liberate you souls from the sorrow of Ravan. You have received a lot of sorrow from Ravan. You children have understood the drama. It doesn't have four ages; it has five ages. The four ages are long ages whereas the confluence age is a leap age. You children should be aware of this knowledge because you have become the children of the Ocean of Knowledge. He is praised on the path of devotion: You are the Ocean of Knowledge and the Ocean of Peace. This cannot be the praise of the lords of Paradise. They are said to be full of all virtues, 16 celestial degrees full. There is no one like that in this iron age and so, surely, someone must have come and made them like that. Therefore, only you become the masters of heaven. Brahma, Vishnu and Shankar, who are the deities of the subtle region, are also shown with partners in order to depict the family path. So heaven also exists here. From the Brahmin clan you will go into the deity clan and then into the warrior clan. Sensible children pay very good attention to their studies. On the path of ignorance, when they have a son, they believe that an heir has come. You too say "Mama, Baba" and so you are heirs. Gandhiji was called Bapuji. In fact, in Bharat, they call many "mother and father". People call an elderly person "Pitaji" (father). They say that just for the sake of saying it. This one is the Bapuji of all anyway. The Father is Praneshwar, that is, God of all souls. When you say "Father" your hearts experience the happiness of the inheritance and you have that feeling. The feeling that you children have is also numberwise, according to your efforts. Truly, the unlimited Father comes and teaches you Raja Yoga. Brahma, Vishnu and Shankar cannot teach Raja Yoga. God speaks: Deities are human beings with divine virtues. “Parmeshwar” means God, the Father. In Bharat, they speak of the Supreme Father, the Supreme Soul, Supreme God, the Father, and so your intellects go up above because you know that the Father resides up above. You children now understand that you too are residents of that place. We are now sitting personally in front of that Praneshwar. The Father personally reminds you and you therefore have the faith that you are not sitting in front of a sage or great soul, but truly in front of the Mother and Father. Why do you belong to Him? In order to claim your inheritance for your future 21 births from the Mother and Father. If you don’t have faith, why are you sitting here? There has to be a reason. No one without recognition can sit in front of someone. In the world, people recognise one another: this one is a sannyasi, this one is a governor. Here, this Father is incognito, but you understand that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Resident of the supreme abode. Then the question of omnipresence doesn't arise. Souls remember “O God, the Father!” If they themselves are God, why do they call out? This is something that needs little understanding. However, Maya makes you such that you don't understand at all. One can’t trust what people say. Maya makes their intellects doubtful. They call out: “O God, the Father!” and then they say that they are the Father. So, why do they call out? Only a child would say "Father". You only have to remember One. You are now sitting in front of the Father in person. You know that you now belong to the Supreme Father, the Supreme Soul. You are claiming the inheritance from Him. You will now not forget Him. The Father says: Children, become bodiless! Become pure! I have come to take you back. People sing in front of the deities: I am without virtue, I have no virtues. They sing praise of the deities. They consider themselves to be degraded sinners. The world was definitely completely viceless at the beginning. That was called heaven, Shivalaya. It was heaven established by Shiv Baba. The people of Bharat know that heaven exists, but they have forgotten that Bharat was heaven and that the original eternal deities used to rule there. When someone dies, people say that he has gone to heaven. Heaven exists in the golden age; it cannot exist in the iron age. When people print in the papers that someone has gone to heaven, ask them where heaven is. They believe that that person went to God in the supreme abode and that that is heaven. Or, they say that he has gone to the land of nirvana or that he has merged into the light. There is so much difference in the terms they use. That is called the great element of brahm. This is the element of the sky. This cannot be called the great element. That is the great element of brahm, Brahmand, where we souls reside egg-shaped. The Father too resides there. That is called the supreme abode. However, no one can merge into the element of brahm. Many points are explained to you children because you are sitting in front of the Father. Devotees continue to look for God. You know who does the most devotion on the path of devotion. Definitely, those who were worthy of worship at the beginning then became the first worshippers, devotees. Only you children know this. It is sung: You are worthy of worship and you are worshippers. However, those people think that God, the Father, Himself, becomes worthy of worship and a worshipper. That is wrong. The Father comes and makes you children worthy of elevated praise. However, not everyone will receive the liberation-in-life of heaven. Liberation-in-life will be received when you become free from the bondages of Maya. “Liberation-in-life” means to be free from the bondages of Maya. It isn't that everyone will come in the golden age. Only those who study Raja Yoga will come in the golden age. On the path of knowledge, you have to become free from so many bondages. Meera didn't have that many bondages. She simply used to say that she wanted to meet Krishna and would therefore remain pure. You have to go to the land of Krishna. Meera was one of the main, important devotees. You are part of the rosary of victory which is the most elevated and worshipped. A rosary of devotees is not worshipped. The rosary of those who make Bharat into heaven is worshipped. Devotees worship the rosary of you children. First of all, there is the rosary of Rudra and then it becomes the rosary of Vishnu. No one knows who the rosary represents; they simply continue to turn its beads. You will now no longer turn the beads of the rosary of devotees. Devotees turn the beads of the rosary of you children. You know that your rosary of victory is being created. Then, we ourselves will become worshippers and turn the beads of a rosary. You rule the kingdom and you will then become the first ones to turn the beads of a rosary. Others will learn devotion from you. You make the world into heaven. The Father is teaching you Raja Yoga and it is named the Gita. There has to be a name for a religious scripture. Although the knowledge disappears, the scriptures will be created. They have made it into a scripture and called it "Shrimad Bhagawad Gita". They wrote the Gita for the path of devotion. That Gita is not for the path of knowledge. They relate so many different types of Gita. They never say: I am teaching you Raja Yoga. They would say: God departed having taught Raja Yoga. Then they sit and study the scripture of that. We are now listening to that same Gita from God in person and becoming the masters of heaven. The Father says: I only come once to teach you children Raja Yoga and to make you into kings of kings. Until the Bestower of Salvation comes, there will definitely continue to be praise of the path of devotion. Those who came in the previous cycle will come and listen to this again. Many are yet to become this. The sun and moon dynasty-kingdoms are being established and, therefore, very many people will come. This is why knowledge is never destroyed. Wealthy subjects, ordinary subjects, maids and servants are all needed. Such a big kingdom is being established. People don't know how the golden-aged kingdom is established. If they were to know this, they would tell you about it. They have forgotten the Father. Instead of writing “Incorporeal God Shiva speaks” they have written “God Krishna speaks”. Immediately after Shiva Jayanti, there is Krishna Jayanti. Krishna is the Lord of Paradise. This One sits here and makes you into lords of Paradise. They have then shown Krishna in the copper age. The thread of knowledge of Bharat is so entangled. You now have to imbibe this very well and become knowledge-full. You have to see with how many marks you pass. If you pass now, you will pass every cycle. You have to study while living at home with your family. Nowhere else do old men and women, husband and wife, daughter-in-law etc. all study together. They don't even study the scriptures like that. They tell women that they mustn't study the scriptures. Only men become pandits. Here, just see who is studying! It is a wonder of the variety of old women who come here. While living at home, you have to remain as pure as a lotus and study Raja Yoga. You have to become Godfatherly students. This is called the Godly college of the Brahma Kumars and Kumaris. God is teaching through Brahma. Brahma didn't emerge from the navel of Vishnu. It would be said to be the navel of the Supreme Father, the Supreme Soul. Shiv Baba is the Seed. Brahma, Vishnu and Shankar emerged from Him. The meaning of all three are different. You children now understand that Vishnu is always shown with Lakshmi: there is the Nar-Narayan Temple (ordinary human and Narayan), and so they have also made him four-armed. If they have Narayan, Lakshmi would surely also be with him. Nar (male) becomes Narayan and nari (woman) becomes Lakshmi. They show Nar-Narayan with four arms. They should show Narayan and Lakshmi separately with two arms each. Such an accurate temple should be built. However, people don't understand anything from the Nar-Narayan Temple. Together with Nar-Narayan, they also show Lakshmi. Mahalakshmi is worshipped at Deepmala (festival of lights). Mothers are praised so much. There is great praise of Jagadamba. Amba is very sweet because she is a kumari. This one is a half kumar. There is a lot of praise of kumaris in Bharat. However, they don't know the importance of that. Jagadamba is praised a lot; the Father isn't praised as much. The Father has come and uplifted the mothers and so you should become courageous. One has to be courageous to ride a lion. There will be assaults, but now that you belong to the Father, you mustn't let go of your religion, no matter what happens. Become pure and definitely claim a high status. Meera also became pure. The Father tells you kumaris: Say that you want to become pure and the masters of Paradise. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. In order to become true heirs, you have to become sensible. Imbibe the study very well and become knowledge-full. Become praiseworthy like the Father. 2. In order to become the most elevated in the rosary of victory, continue to cut away the bondage of Maya. Become very, very brave and courageous and definitely become pure. Blessing: May you be one with an elevated character and remain constantly powerful by finishing the burden of being disobedient in small ways. You have the order to wake up at amrit vela and so you get up and sit down. However, you are unable to achieve success with that method because the silence of sleep becomes mixed with that sweet silence. 2) The Father’s order is: Do not cause sorrow for any soul and do not take any sorrow. So, you do not cause sorrow, but you do take sorrow. 3) You do not get angry but you do become bossy. Being disobedient in such small ways makes your mind heavy. Now, finish this and make your image of being one who is obedient. You will then be said to be a constantly powerful soul with an elevated character. Slogan: Instead of asking for regard, give everyone regard and you will continue to receive regard from everyone. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday
- 24 June 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English - 24/06/18 Morning class Mateshwari Saraswati Mamma - Om Shanti Revised 24/04/65 The third eye of knowledge (wisdom) is the basis of happiness and peace in life. Song: People of today are in darkness… Om shanti. In the song you heard that we people are in darkness. However, today, the world thinks that we are very enlightened (in a lot of light). There has been so much enlightenment! We can go up to the moon, we can travel to the sky and the stars. What can people not do today? Seeing all of these things, people think that there has been a lot of enlightenment. However, in the song it then says: We are in darkness. So, in what sense is there darkness since they are researching so much and having the courage to go to the moon and the stars? While there is all of this, they do not have the things you need in life; life that should be full of happiness and peace is not so. People are not advanced in this aspect, are they? Instead of them experiencing happiness and peace in life, sorrow and peacelessness are increasing even more: this shows that people are having less and less of what they need. There is darkness in this sense. Now, just see how, while sitting at home, they are able to see things somewhere else, they are able to talk to people in other places – they have all the things such as television, radio, etc. but they still do not have what we call happiness and peace in life. There is darkness in this sense and this is why it is said that the people of today are in darkness. Today, people are creating so many medicines and finding cures for illnesses and diseases but, even then, the number of sick people is continually increasing, and so sorrow and peacelessness continues to increase for them. This is why they call out: You have to come now! Who are they calling out to? They are not calling out to a person for this, they are calling out to God. People do not have anything to give. When we say ‘people’, sages, holy men and great souls are all included in that. Those who you think are going to take you across are themselves human beings, and all human beings are in darkness and this is why we are not able to find what we want. Then, we call out to God and also sing: You are the Stick for the Blind. However, in what way are we blind? It is not that we do not have eyes with which to see. Although we have eyes that enable us to see all the material possessions and everything else, we do not have that eye which is called the eye of knowledge. We do not have the eye or the wisdom to see how we can bring complete happiness and peace in our lives. However, that eye of knowledge is not going to stick out here (on the forehead). Because the third eye of the deities has been depicted in the pictures of the deities, some people think that perhaps there were human beings with three eyes. However, such human beings with three eyes cannot exist. The ornaments that have been depicted in the pictures have to be understood. Human beings can never have three eyes, whether they are deities or anyone else. It is human beings that are deities and human beings that are devils. That is the qualification of human beings. However, it isn’t that the form of a human being can change such that someone would have four arms or someone would have three eyes; or that if someone is devilish, there will be something different in his form. When a person is disqualified, he is called a devil and when he is filled with all virtues, 16 celestial degrees complete, completely viceless in his qualifications, then he or she is a deity. However, there cannot be any difference in the make-up (form) of the body: there can definitely be a difference in their qualifications, whether you call it pure and impure, full of virtues or defects, or you call it being elevated or corrupt. All these terms apply to the behaviour.There is a meaning behind the four arms – two arms of a woman and two arms of a man. So when man and woman are pure, they have the double crown of being the four-armed image shown as a symbol of the kingdom. When such a kingdom existed, all men and women were happy in that kingdom, so they have portrayed that with the four-armed image and they have shown Ravan with 10 heads. This too is symbolic; there cannot be any person with 10 heads. This is a symbol of the vices. When there is an impure household, there are five vices of a woman and five vices of a man, and so altogether, they have shown the 10 heads. When men and women are impure, the world is so unhappy and when men and women are pure, the world is happy. When people are pure, they are naturally healthy; there can be a difference in their make-up, features or natural beauty. It isn’t that they would have three eyes or 10 heads.The Father says: Look, this is the eye of knowledge. It is only with this eye of knowledge that you can attain happiness and peace for all time. Here, all human beings have got tired searching. The more they search, the more their sorrow and peacelessness increase. Look, they are searching for happiness and yet they still keep making things that cause even more sorrow. Just look at the bombs etc. that they have invented. If this very science were to be used in a better way, they could experience happiness from lots of things. However, they have divorced intellects at the time of destruction and this is why all the work done by those intellects is wrong. This is the time for destruction and this is why the intellects do everything wrong. They only think about the destruction of the world and this is why it is said, “A divorced intellect at the time of destruction”. What is the intellect divorced from? From God. So no one now has love for God. Everyone has love for Maya.Some then think that whatever they see with their eyes is Maya, that even these bodies are Maya, this world is Maya, this wealth and prosperity is Maya. However, all these things are not Maya. Even the deities had wealth and prosperity. Even the deities had bodies and they too existed in the world. So was that Maya? No. The five vices are said to be Maya. The vices are Maya and Maya causes sorrow. Wealth and prosperity are not things that cause sorrow. Prosperity is a means for happiness, but who made that prosperity impure? The five vices (Maya) did that. Because of the vices in the form of Maya, everything has become a reason for sorrow. Now, there is sorrow from wealth, sorrow from the body; sorrow is received from everything because Maya now exists in everything. This is why the Father says: Now, get rid of Maya and you will then receive happiness for all time from your body, from your wealth and from the world, just as the deities did.To be saved from Maya does not mean that you leave of the body, or that you do not come back into this world. There are some people who think that the world is Maya, or they say that the world is an illusion, but the world is not an illusion, the world is eternal; it has been made false. It is because of the vices that people have become unhappy. This world now has to be made pure. This world was pure and deities used to reside in that pure world. They too were human beings of this world. The world of the deities was not up above. When we human beings were deities, that world was called swarg, heaven. We human beings were residents of heaven, that is, that was the time of heaven and our generations continued in heaven. We have to understand all of these things and finish Maya, that is, we have to conquer Maya, because even the wealth earned from actions based on vice is filled with sorrow. Because bodies are created through vice, they are diseased. There continues to be untimely death through which there is sorrow. Otherwise, our bodies were not diseased. There was never untimely death because they were made with the power of purity (being viceless). Now, they are made out of vice and this is why there is sorrow in that. Now, in order to come away from that sorrow and for this world to be made happy, people call out to that One (the Supreme Soul). So, look, the Father is now giving us the third eye of knowledge (understanding) which we have to imbibe in our intellects. We Brahmins have the third eye of knowledge, the deities do not have it. Previously, we were shudras; shudras means those who indulge in vice. Now, from being vicious, we have stepped onto the path of purity. So we have become Brahmins. It is only Brahmins who have the third eye, and when we are deities, we experience the reward. The deities do not need the eye of knowledge and this is why all the ornaments they have been portrayed with – the shell, discus, mace and lotus – belong to the Brahmins, not to the deities.This is the shell of knowledge, but on the path of devotion, they have taken all these things to be physical. The mace means we have conquered the five vices. The discus is of the four ages. At first we were deities and then we came down. The Father has now come to elevate us once again. We have now completed our cycle. So, this is the discus of self-realisation, that is, the self has had a vision of itself. Some may ask how the world becomes old. Oh, this is a law of nature. Everything has to become old with time. When something becomes old, then the new is created. All of these things have to be understood. Every object and every situation has its own natural law and this is why we have to make effort and elevate ourselves; we have to become new. You cannot say: Since the Father exists, why did He let us fall? He did not let us fall, but if we hadn’t fallen, how could the Father come to elevate us? It is because we have fallen that He has come. He is remembered as the One who purifies the impure. If there were no impure beings, how could we say that He is the One who purifies everyone? We have to become impure and then we have to become pure and then we have to become impure from being pure. This is a cycle and therefore this cycle has to be understood and we have to make ourselves pure from impure. We have to become worthy of worship, for it is only then that we are praised. Praise is sung of those who become that and the One who makes you become that. So, there have to be the two – the one who becomes that and the One who makes you like that. It is not that the One who makes others that is the same one who becomes that. “The soul is the Supreme Soul and the Supreme Soul is the soul”. It is not like that, is it? The ones who become that and the One who makes you become like that are different and this is why you must not be confused by these things. We have to become that, we have to elevate ourselves, we have to make effort. The Father comes and gives us the understanding of what real effort is. What is the effort for elevated attainment? He comes and teaches us that. For all this time, no one taught us how to make that effort, because all those who teach are themselves caught up in the cycle. The One who elevates us has come now and He shows us the effort we have to make to become elevated. To the extent that we imbibe this, accordingly we receive a reward. We have all of this knowledge in our intellects. For this, we have to pay attention to what we have to do and what effort we have to make. The cycle has to continue in its own time.The Father has now become present to carry out such an elevated task and we have to benefit ourselves fully from that. Christ, Buddha or whoever came and carried out their tasks; however those tasks are different, they are of our descending period. Now, this is our ascending period and so we also have to understand time. This is the time when all souls are taken back, when they are taken up above. Those religious founders who come in the copper age and the iron age have to come down. So, they have to come down, they have to become impure from pure and this is why it cannot be said for them that they are the ones who make impure ones pure. No, it is only the One who comes and purifies the impure, that is, He takes all souls into liberation and salvation and so it is the responsibility of just the One. No matter how great a soul may be, when that soul first comes down, he is pure and then he has to descend, because the cycle turns in that way and so he has to come down. According to each one’s time, everyone has to go through the cycle. So, it is now the time to ascend and only the One is the Instrument to take us up high. Therefore, we now have to claim that fortune from the Father. Achcha.Now, you are earning a huge income here. From one, you are earning a hundred-fold or a thousand-fold. When you do something with enthusiasm, you receive the reward of that enthusiasm. Those who do something under compulsion, those who do something with great difficulty, because they are distressed by it or they are doing it for show, they receive a reward accordingly. Many people think that the world should know about the things they have done. When some people donate, they do it to show everyone, so that everyone knows about it. Half the power of that donation is lost and this is why incognito donation has a lot of significance. There is power in that. You receive a greater reward of that, whereas by making a show of it, its value is reduced. So, there is a way of doing it. There is an account of doing everything in a satoguni, rajoguni or tamoguni way. How can we make our actions elevated and how should we do everything so that we make our fortune elevated? So, you need to know the way to do that too. If you are moving along in a good way, then your fortune is definitely becoming elevated too. Achcha.Love, remembrance and good morning from BapDada and Maa to the sweetest, very good and worthy children. Blessing: May you be a master world benefactor who has an unlimited attitude, the same as the Father. “An unlimited attitude” means to have a benevolent attitude for all souls. This is what it means to be a master world benefactor. It is not that there should only be benefit of yourself or the limited souls for whom you are an instrument, but that you have an attitude that is benevolent for all. Those who move along while content with their progress, with their attainment and their contentment are benefactors for themselves.However, those who have an unlimited attitude and who remain busy with unlimited service are said to be master world benefactors, the same as the Father. Slogan: Those who maintain equanimous in praise and defamation, in respect and insult, in benefit and loss are said to be yogi souls.
- BK murli today in Hindi 5 Aug 2018 - Aaj ki Murli
Brahma kumaris murli today in Hindi -BapDada -Madhuban -05-08-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 07-12-83 मधुबन श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार - "मुरली" आज मुरलीधर बाप अपने मुरली के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं कि कितना मुरलीधर बाप से स्नेह है और कितना मुरली से स्नेह है। मुरली के पीछे कैसे मस्त हो जाते हैं। अपनी देह की सुध-बुध भूल देही बन विदेही बाप से सुनते हैं। जरा भी देहधारी स्मृति की सुध-बुध नहीं। इस विधि से मस्त हो कैसे खुशी में नाचते हैं। स्व्यं को भाग्य-विधाता बाप के सम्मुख पदमापदम भाग्यवान समझ रुहानी नशे में रहते हैं। जैसे-जैसे यह रुहानी नशा, मुरलीधर की मुरली का नशा चढ़ जाता है तो अपने को इस धरनी और देह से ऊपर उड़ता हुआ अनुभव करते हैं। मुरली की तान से अर्थात् मुरली के साज़ और राज़ से मुरलीधर बाप के साथ अनेक अनुभवों में चलते जाते। कभी मूलवतन, कभी सूक्ष्मवतन में चले जाते, कभी अपने राज्य में चले जाते। कभी लाइट हाउस, माइट हाउस बन इस दु:खी अशान्त संसार की आत्माओं को सुख-शान्ति की किरणें देते, रोज़ तीनों लोकों की सैर करते हैं। किसके साथ? मुरलीधर बाप के साथ। मुरली सुन-सुनकर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हैं। मुरलीधर की मुरली के साज़ से अविनाशी दुआ की दवा मिलते ही तन तन्दरुस्त, मन मनदुरुस्त हो जाता है। मस्ती में मस्त हो बेपरवाह बादशाह बन जाते हैं। बेगमपुर के बादशाह बन जाते हैं। स्वराज्य-अधिकारी बन जाते हैं। ऐसे विधि पूर्वक मुरली के स्नेही बच्चों को देख रहे थे। एक ही मुरली द्वारा कोई राजा, कोई प्रजा बन जाता है क्योंकि विधि द्वारा सिद्धि होती है, जितना जो विधिपूर्वक सुनते उतना ही सिद्धि स्वरुप बनते हैं।एक हैं विधिपूर्वक सुनने वाले अर्थात् समाने वाले। दूसरे हैं नियम पूर्वक सुनने, कुछ समाने, कुछ वर्णन करने वाले। तीसरों की तो बात ही नहीं। यथार्थ विधिपूर्वक सुनने और समाने वाले स्वरुप बन जाते हैं। उन्हों का हर कर्म मुरली का स्वरुप है। अपने आप से पूछो - किस नम्बर में हैं? पहले वा दूसरे में? मुरलीधर बाप का रिगार्ड अर्थात् मुरली के एक-एक बोल का रिगार्ड। एक-एक वरशन (महावाक्य) 2500 वर्षो की कमाई का आधार है। पदमों की कमाई का आधार है। उसी हिसाब प्रमाण एक वरदान मिस हुआ तो पदमों की कमाई मिस हुई। एक वरदान खजानों की खान बना देता है। ऐसे मुरली के हर बोल को विधिपूर्वक सुनने और उससे प्राप्त हुई सिद्धि के हिसाब-किताब की गति को जानने वाले श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं। जैसे कर्मो की गति गहन है वैसे विधिपूर्वक मुरली सुनने समाने की गति भी अति श्रेष्ठ है। मुरली ही ब्राह्मण जीवन की साँस (श्वाँस) है। श्वाँस नहीं तो जीवन नहीं - ऐसी अनुभवी आत्माएं हो ना। अपने आपको रोज़ चेक करो कि आज इसी महत्व पूर्वक, विधि पूर्वक मुरली सुनी? अमृतवेले की यह विधि सारा दिन हर कर्म में सिद्धि स्वरुप स्वत: और सहज बनाती है। समझा।नये-नये आये हो ना। तो लास्ट सो फास्ट जाने का तरीका सुना रहे हैं। इससे फास्ट चले जायेंगे। समय की दूरी को इसी विधि से गैलप कर सकते हो। साधन तो बापदादा सुनाते हैं जिससे किसी भी बच्चे का उल्हना रह न जाये। पीछे क्यों आये वा क्यों बुलाया... लेकिन आगे बढ़ सकते हो। आगे बढ़ो श्रेष्ठ विधि से श्रेष्ठ नम्बर लो। उल्हना तो नहीं रहेगा ना। रिफाइन रास्ता बता रहे हैं। बने बनाये पर आये हो। निकले हुए मक्खन को खाने के समय पर आये हो। एक मेहनत से तो पहले ही मुक्त हो। अभी सिर्फ खाओ और हज़म करो। सहज है ना। अच्छा!ऐसे सर्व विधि सम्पन्न, सर्व सिद्धि को प्राप्त करने वाले, मुरलीधर की मुरली पर देह की सुध-बुध भूलने वाले, खुशियों के झूले में झूलने वाले, रुहानी नशे में मस्त योगी बन रहने वाले, मुरलीधर और मुरली का रिगार्ड रखने वाले, ऐसे मास्टर मुरलीधर, मुरली वा मुरलीधर स्वरुप बच्चों को बापदादा का साकारी और आकारी दोनों बच्चों को स्नेह सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात1. सदा एक बाप की याद में रहने वाली, एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! सदैव एकरस आत्मा हो या और कोई भी रस अपनी तरफ खींच लेता है? कोई अन्य रस अपनी तरफ खींचता तो नहीं है ना? आप सबको तो है ही एक। एक में सब समाया हुआ है। जब है ही एक, और कोई है नहीं। तो जायेंगे कहाँ। कोई काका, मामा, चाचा तो नहीं है ना। आप सबने क्या वायदा किया? यही वायदा किया है ना कि सब कुछ आप ही हो। कुमारियों ने पक्का वायदा किया है? पक्का वायदा किया और वरमाला गले में पड़ी। वायदा किया और वर मिला। वर भी मिला और घर भी मिला। तो वर और घर मिल गया। कुमारियों के लिए मां-बाप को क्या सोचना पड़ता है। वर और घर अच्छा मिले। तुम्हें तो ऐसा वर मिल गया जिसकी महिमा जग करता है। घर भी ऐसा मिला है, जहाँ अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। तो पक्की वरमाला पहनी है? ऐसी कुमारियों को कहा जाता है समझदार। कुमारियां तो हैं ही समझदार। बापदादा को कुमारियों को देखकर खुशी होती है क्योंकि बच गयीं। कोई गिरने से बच जाए तो खुशी होगी ना। माताएं जो गिरी हुई थी उनको तो कहेंगे कि गिरे हुए को बचा लिया लेकिन कुमारियों के लिए कहेंगे गिरने से बच गई। तो आप कितनी लक्की हो। माताओं का अपना लक है, कुमारियों का अपना लक है। मातायें भी लकी हैं क्योंकि फिर भी गऊपाल की गऊएं हैं।2. सदा मायाजीत हो? जो मायाजीत होंगे उनको विश्व कल्याणकारी का नशा जरूर होगा। ऐसा नशा रहता है? बेहद की सेवा अर्थात् विश्व की सेवा। हम बेहद के मालिक के बालक हैं, यह स्मृति सदा रहे। क्या बन गये, क्या मिल गया, यह स्मृति रहती है! बस, इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। बढ़ने वालों को देख बापदादा हर्षित होते हैं।सदा बाप के याद की मस्ती में मस्त रहो। ईश्वरीय मस्ती क्या बना देती है? एकदम फर्श से अर्श निवासी। तो सदा अर्श पर रहते हो या फर्श पर क्योंकि ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे बने, तो नीचे कैसे रहेंगे। फर्श तो नीचे होता है। अर्श है ऊंचा, तो नीचे कैसे आयेंगे। कभी भी बुद्धि रुपी पांव फर्श पर नहीं, ऊपर। इसको कहा जाता है ऊंचे ते ऊंचे बाप के ऊंचे बच्चे। यही नशा रहे। सदा अचल अडोल सर्व खजानों से सम्पन्न रहो। थोड़ा भी माया में डगमग हुए तो सर्व खजानों का अनुभव नहीं होगा। बाप द्वारा कितने खजाने मिले हुए हैं, उन खजानों को सदा कायम रखने का साधन है, सदा अचल अडोल रहो। अचल रहने से सदा ही खुशी की अनुभूति होती रहेगी। विनाशी धन की भी खुशी रहती है ना। विनाशी नेतापन की कुर्सी मिलती है, नाम-शान मिलता है तो भी कितनी खुशी होती है। यह तो अविनाशी खुशी है। यह खुशी उसे रहेगी जो अचल-अडोल होंगे।सभी ब्राह्मणों को स्वराज्य प्राप्त हो गया है। पहले गुलाम थे, गाते थे मैं गुलाम, मैं गुलाम.. अब स्वराज्यधारी बन गये। गुलाम से राजा बन गये। कितना फर्क पड़ गया। रात दिन का अन्तर है ना। बाप को याद करना और गुलाम से राजा बनना। ऐसा राज्य सारे कल्प में नहीं प्राप्त हो सकता। इसी स्वराज्य से विश्व का राज्य मिलता है। तो अभी इसी नशे में सदा रहो हम स्वराज्य अधिकारी हैं, तो यह कर्मेन्द्रियां स्वत: ही श्रेष्ठ रास्ते पर चलेंगी। सदा इसी खुशी में रहो कि पाना था जो पा लिया.. क्या से क्या बन गये। कहाँ पड़े थे और कहाँ पहुँच गये।अव्यक्त बापदादा के महावाक्यों से चुने हुए प्रश्न-उत्तरप्रश्न:- पुरुषार्थ का अन्तिम लक्ष्य कौनसा है? जिसका विशेष अटेन्शन रखना है?उत्तर:- अव्यक्त-फरिश्ता होकर रहना - यही पुरूषार्थ का अन्तिम लक्ष्य है। यह लक्ष्य सामने रखने से अनुभव करेंगे कि लाइट के कार्ब में मेरा यह लाइट का शरीर है। जैसे व्यक्त, पाँच तत्वों के कार्ब में है, ऐसे अव्यक्त, लाइट के कार्ब में है। लाइट का रुप तो है, लेकिन आसपास चारों ओर लाइट ही लाइट है। मैं आत्मा ज्योति रूप हूँ-यह तो लक्ष्य है ही। लेकिन मैं आकार में भी कार्ब में हूँ।प्रश्न:- हर कार्य करते हुए किस स्मृति को विशेष बढ़ाओ तो निराकारी स्टेज सहज बन जायेगी?उत्तर:- हर कार्य करते हुए स्मृति रहे कि मैं फरिश्ता निमित्त इस कार्य अर्थ पृथ्वी पर पाँव रख रहा हूँ, लेकिन मैं हूँ अव्यक्त देश का वासी, मैं इस कार्य-अर्थ पृथ्वी पर वतन से आया हूँ, कारोबार पूरी हुई, फिर वापस अपने वतन में। इस स्मृति से सहज ही निराकारी स्टेज बन जायेगी।प्रश्न:- साकार स्वरूप के नशे की पाइंटस के साथ-साथ किस अनुभव में रहने से ही साक्षात्कार मूर्त बन सकेंगे?उत्तर:- जैसे यह स्मृति में रहता है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ, मैं शक्ति हूँ। इस स्मृति से नशे और खुशी का अनुभव होता है। लेकिन जब अव्यक्त स्वरुप में, लाइट के कार्ब में स्वयं को अनुभव करेंगे तब साक्षात्कार मूर्त बनेंगे क्योंकि साक्षात्कार लाइट के बिना नहीं होता है। तो आपके लाइट रूप के प्रभाव से ही उनको दैवी स्वरुप का साक्षात्कार होगा।प्रश्न:- वर्तमान समय के प्रमाण आपका कौन सा स्वरूप चाहिए? अभी कौन सा पार्ट समाप्त हुआ?उत्तर:- वर्तमान समय के प्रमाण आप सबका ज्वालामुखी स्वरूप चाहिए। साधारण स्वरूप, साधारण बोल नज़र न आयें, अनुभव करें कि यह देवी मेरे प्रति क्या आकाशवाणी करती है। अब आपका गोपी-पन का पार्ट समाप्त हुआ। जब आप शक्ति रूप में रहेंगे तो आप द्वारा सबको अनुभव होगा कि यह कोई अवतार हैं - यह कोई साधारण शरीरधारी नहीं हैं। अवतार प्रगट हुए हैं। महावाक्य बोले और प्राय:लोप। अभी की स्टेज व पुरुषार्थ का लक्ष्य यह होना चाहिए।प्रश्न:- निमित्त बने हुए मुख्य सर्विसएबुल, राज्यभागय की गद्दी लेने वाले अनन्य रत्नों की सेवा क्या है?उत्तर:- वे लाइट हाउस मिसल घूमते और चारों ओर लाइट देते रहेंगे। एक अनेकों को लाइट देंगे। स्थूल कारोबार से उपराम होते जायेंगे। इशारे में सुना, डायरेक्शन दिया और फिर अव्यक्त वतन में। अभी जिम्मेवारियाँ और सर्विस का विस्तार तो चारों ओर और बढ़ेगा। भिन्न-भिन्न प्रकार की जो सर्विस हो रही है, वह बढ़ेगी।प्रश्न:- चक्रवर्ती महाराजा कौन बनते हैं, उनकी निशानियां सुनाओ।उत्तर:- जो अभी चक्रधारी हैं वही चक्रवर्ती महाराजा बनेंगे। जिसमें लाइट का भी चक्र हो और सेवा में प्रकाश फैलाने वाला चक्र भी हो, तब ही कहेंगे - चक्रधारी। ऐसा चक्रधारी ही चक्रवर्ती बन सकता है। आपके लाइट का रुप और लाइट का क्राउन ऐसा कॉमन हो जाये जो चलते - फिरते सबको दिखाई दे कि यह लाइट के ताजधारी हैं।प्रश्न:- किस अभ्यास से शरीर के हिसाब-किताब हल्के हो जायेंगे, शरीर को नींद की खुराक मिल जायेगी?उत्तर:- अव्यक्त लाइट रूप में स्थित होने का, शरीर से परे होने का अभ्यास हो तो 2-4 मिनट की अशरीरी स्थिति से शरीर को नींद की खुराक मिल जायेगी। शरीर तो पुराने ही रहेंगे। हिसाब-किताब भी पुराना होगा ही। लेकिन लाइट-स्वरुप के स्मृति को मजबूत करने से हिसाब-किताब चुक्त करने में लाइट रुप हो जायेंगे, इसके लिए अमृतवेले विशेष यह अभ्यास करो कि मैं अशरीरी और परमधाम का निवासी हूँ, अथवा अव्यक्त रुप में अवतरित हुआ हूँ। प्रश्न:- मायाजीत बनने का सहज साधन क्या है? उत्तर:- मायाजीत बनने के लिए अपनी बुराईयों पर क्रोध करो। जब क्रोध आये तो आपस में नहीं करना, बुराईयों से क्रोध करो, अपनी कमजोरियों पर क्रोध करो तो मायाजीत सहज बन जायेंगे। प्रश्न:- गांव वालों को देख बापदादा विशेष खुश होते हैं क्यों? उत्तर:- क्योंकि गांव वाले बहुत भोले होते हैं। बाप को भी भोलानाथ कहते हैं। जैसे भोलानाथ बाप वैसे भोले गांव वाले तो सदा यह खुशी रहे कि हम विशेष भोलानाथ के प्यारे हैं। अच्छा।वरदान:-साइलेन्स की शक्ति द्वारा नई सृष्टि की स्थापना के निमित्त बनने वाले मास्टर शान्ति देवा भवसाइलेन्स की शक्ति जमा करने के लिए इस शरीर से परे अशरीरी हो जाओ। यह साइलेन्स की शक्ति बहुत महान शक्ति है, इससे नई सृष्टि की स्थापना होती है। तो जो आवाज से परे साइलेन्स रूप में स्थित होंगे वही स्थापना का कार्य कर सकेंगे इसलिए शान्ति देवा अर्थात् शान्त स्वरूप बन अशान्त आत्माओं को शान्ति की किरणें दो। विशेष शान्ति की शक्ति को बढ़ाओ। यही सबसे बड़े से बड़ा महादान है, यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। स्लोगन:- हर आत्मा वा प्रकृति के प्रति शुभ भावना रखना ही विश्व कल्याणकारी बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- BK murli today in Hindi 29 Aug 2018 Aaj ki Murli
Brahma kumari murli today in Hindi -BapDada -Madhuban -29-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - 21 जन्मों के लिए पुण्य का खाता जमा करना है, योगबल से पापों के खाते को भस्म करना है इसलिए अन्तर्मुखी बनो" प्रश्नः- किस श्रीमत का पालन करने से वाणी से परे जाने का पुरुषार्थ सहज हो जायेगा? उत्तर:- श्रीमत कहती है - बच्चे, अन्तर्मुखी हो जाओ, बाहर से कुछ भी न बोलो। इस श्रीमत को पालन करेंगे तो सहज ही वाणी से परे जा सकेंगे। जितना याद करेंगे, स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे उतना कमाई जमा होती जायेगी। याद के लिए अमृतवेले का समय बहुत अच्छा है। उस समय उठकर अन्तर्मुखी बन आत्म स्वरूप में स्थित होकर बैठ जाओ। गीत:- तूने रात गँवाई...... ओम् शान्ति।यह कौन समझाते हैं कि अन्तर्मुखी हो जाओ, बाहर से कुछ भी न बोलो, अपनी आत्मा के स्वरूप में स्थित होकर बैठो? बाप बच्चों से कहते हैं मुख से कुछ भी बोलो नहीं। राम-राम आदि तो बहुत कहते आये परन्तु उस कहने से भी मनुष्य पावन नहीं बन सकते। मनुष्य पतित से पावन तब बन सकते जब पतित-पावन बाप की श्रीमत पर चलें। पतित-पावन कहने से बाप याद आता है। बाप कहते है कि तुम बरोबर पतित थे ना। अब तुम पावन बन रहे हो। सतयुग में कोई पतित होता नहीं। पांच हजार वर्ष पहले जब भारत पावन था तो एक ही धर्म था। बाप तो सुख की ही सृष्टि रचेंगे ना। भारत सुखधाम था। लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता आदि के मन्दिर सतयुग-त्रेता की निशानी हैं। सतयुग में बरोबर लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी थी। यही भारत था जिसमें सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी का राज्य चलता था, जो अब फिर से स्थापन हो रहा है। इसको कहा जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी। यह मनुष्य ही तो जानेंगे। मनुष्य नहीं जानते तो जानवर से भी बदतर कहा जाता है। बाप को जानने लिए कितने धक्के खाते हैं, परन्तु जान नहीं सकते। तुम बाप के बच्चे बने हो तो बाप अपना परिचय देते हैं। पहले परिचय नहीं था तो इसका परिणाम क्या हुआ? आरफन, नास्तिक, निधन के बन जाते हैं। अभी तुम बाप के बने हो, बाप से वर्सा ले रहे हो। बड़ा भारी वर्सा है, 21 जन्म स्वर्ग की राजधानी मिलती है, कोई कम बात है क्या! लक्ष्मी-नारायण को पांच हजार वर्ष हुआ राज्य करते। फिर से हिस्ट्री रिपीट होती है।बाप समझाते हैं - मेरी श्रीमत पर चलो, अन्तर्मुखी बनो, बाहरमुखी मत बनो। अब इस समय है घोर अन्धियारा, इनको रात कहा जाता है। अभी सवेरा आ रहा है। कलियुग अन्त को घोर अन्धियारा, सतयुग आदि को घोर सोझरा कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर जबकि सभी मनुष्य पतित हैं। अभी तुम बच्चों को सदा सुख का वर्सा देने आया हूँ। विनाश सामने खड़ा है। बहुत गई थोड़ी रही.... इसलिए अब जल्दी-जल्दी पुरुषार्थ कर बेहद के बाप से वर्सा लो, जैसे सब ले रहे हैं। सब पुरुषार्थी हैं। अब सबको स्वीट होम, वाणी से परे जाना है। वह है हम आत्माओं का घर, निर्वाणधाम। धाम में कोई एक नहीं रहते। जितनी भी जीव आत्मायें हैं,, वे सभी शरीर छोड़ जायेंगे अपने घर बाबा के पास। वह है निराकारी झाड़। जैसे चित्र में भी झाड़ दिखाया जाता है। वह है हम आत्माओं का घर - शान्तिधाम। फिर हम आयेंगे सुखधाम। अभी 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है, कलियुग के बाद सतयुग जरूर आयेगा ना। द्वापर के बाद कलियुग जरूर आयेगा। बाप कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ, पुरानी दुनिया का विनाश कराता हूँ। जब तक नई दुनिया स्थापन हो जाए तब तक इस पुरानी दुनिया में रहना पड़े। जब तक नया मकान बन जायें तब तक पुराने मकान में बैठे रहते हैं ना। फिर जब नया बन जाये फिर पुराने को तोड़ा जाता है। यह भी पुरानी चीज़ है ना। इसके विनाश के लिए यह है महाभारत लड़ाई। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। आत्मा ही समझती है - जिस्मानी नॉलेज भी आत्मा सीखती है ना। आत्मा कहती है मैं प्रिन्सीपाल हूँ, सर्जन हूँ। आत्मा की नॉलेज न होने कारण देह-अभिमानी हो जाते हैं। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। तुम बच्चे समझते हो शिवबाबा हम आत्माओं को समझा रहे हैं। हम आत्मा यह पुराना शरीर छोड़ फिर नया जाकर लेंगी। अभी हम श्याम हैं फिर सुन्दर बनेंगे। सुन्दर से श्याम बनते हैं। 84 जन्म लग जाते हैं। फिर बाबा काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाए गोल्डन एज का मालिक बना देते हैं। बेहद का बाप जरूर बेहद का वर्सा देगा ना। बाप तो ऊंच ते ऊंच है। कहते हैं बच्चों के लिए वैकुण्ठ की सौगात लाये है। हथेली पर बहिश्त लाया हूँ। सेकेण्ड में तुम साक्षात्कार कर लेते हो। कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। जरूर ब्रह्मा के बच्चे हैं और शिवबाबा के पोत्रे हैं। तुम कहते हो हम शिवबाबा से वर्सा लेते हैं। वही सर्व का सद्गति दाता है। राजयोग सिखलाते हैं। निराकार कैसे सिखलाये, इसलिए आरगन्स द्वारा पढ़ाते हैं। सृष्टि चक्र की नॉलेज देते हैं। जिसको परम आत्मा, सुप्रीम सोल कहते हैं उसकी ही सारी महिमा है। ज्ञान का सागर, पतित-पावन वह है तो जरूर आना पड़े। तुमको भी मास्टर सुप्रीम अथवा पावन बनाते हैं। वह है बेहद का बाप जिसको सभी भक्त बुलाते हैं। सभी भक्तों का बाप वह भगवान् है - परमपिता परमात्मा। अगर उनको सर्वव्यापी कह देते तो फिर वर्सा कैसे मिलेगा? मनुष्य को भगवान् नहीं कह सकते। कृष्ण को भी दैवीगुणधारी मनुष्य कहा जाता है, वह है फर्स्ट प्रिन्स। सभी उनको झूले में झुलाते हैं। शिवबाबा को कभी झुलाते नहीं होंगे क्योंकि वह कभी बच्चा बनता ही नहीं। यह तो साक्षात्कार कराते हैं समझाने के लिए - हम तुम्हारा बच्चा हूँ, तुम हमको अपना वारिस बनायेंगे, बलिहार जायेंगे तो मैं भी बलिहार जाऊंगा। बलिहार जाते हो तो जैसे मैं तुम्हारा बालक हो गया।मनुष्यों में कितनी अन्धश्रद्धा है जहाँ तहाँ माथा टेकते रहते हैं इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। नवरात्रि में बहुत गुड़ियां बनायेंगे। उनके आक्यूपेशन का किसको पता नहीं है। 4-6 भुजा वाली देवी थोड़ेही होती है और फिर तलवार आदि दे देते हैं। देवतायें हिंसक थोड़ेही होते हैं। शास्त्रवादियों ने उन्हें भी हिंसक बना दिया है। नेपाल में भी काली को पूजते हैं फिर ऐसे है थोड़ेही। मम्मा ऐसी काली जीभ वाली है थोड़ेही। मनुष्य तो मनुष्य ही होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी। बस, और कोई चीज़ ही नहीं है फिर 8-10 भुजा वाले कहाँ से आये! यह सब भक्ति मार्ग के अलंकार बनाते हैं। पैसा कमाने के लिए कुछ तो चाहिए ना। फिर किस्म-किस्म के चित्र बैठ बना देते हैं। वहाँ ही देखो सुन्दर कृष्ण का मन्दिर, वहाँ ही सांवरे कृष्ण का मन्दिर। कारण तो चाहिए ना। कितनी अन्धश्रद्धा है! अब भक्ति मार्ग खत्म हो ज्ञान मार्ग जिंदाबाद होता है। बाकी समय तो थोड़ा है, सबको मरना तो जरूर है। पुत्र-पोत्रे वारिस बनने नहीं हैं। वहाँ तुमको यह ज्ञान ही नहीं रहेगा कि संगम पर हमने राजाई के लिए यह पुरुषार्थ किया था। वहाँ तो पवित्र सृष्टि चल पड़ती है। यहाँ तुम जानते हो कि बरोबर हम बाबा की राजधानी के हकदार हैं। वहाँ यह पता नहीं रहेगा कि कौन-से कर्म किये थे, कैसे बनें - यह सब भूल जाता है। वहाँ पतित होते ही नहीं, जो पावन बनने के लिए गुरू की दरकार पड़े। बाप पैर धोकर बच्चों को तख्त पर बिठाते हैं। गुरू चाहिए सद्गति के लिए। वहाँ तो है ही सद्गति। गुरू की दरकार ही नहीं। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, देह-अभिमान में न रहो। मैं आत्मा अभी डॉक्टर के रूप में हूँ, मैं आत्मा मजिस्ट्रेट हूँ फिर यह शरीर छोड़ने के बाद पता नहीं क्या बनूँगा? हम इस शरीर द्वारा पढ़ते हैं। आत्मा ही इन आरगन्स द्वारा पढ़ती है, आत्मा ही सुनती है - यह समझने की बातें हैं, न कि दन्त कथायें हैं।बाप कहते हैं यह सारी दुनिया कब्रिस्तान होनी है। अब जागो, नहीं तो भंभोर को आग लगने के समय हाय-हाय करेंगे। परन्तु कुछ भी कर नहीं सकेंगे, काल खा जायेगा, त्राहि-त्राहि करके रह जायेंगे। सजायें भी बहुत खायेंगे। अभी हमें पापों का खाता ख़लास कर पुण्य के खाते को जमा करना है। नयेसिर 21 जन्मों के लिए जमा करना है। जमा होगा बाप को याद करने से। पुराना खाता चुक्तू हो जाना चाहिए। ज्ञान कितना सहज है! तुम्हारी रोज कितनी कमाई होती है! जितना जो याद करते हैं, स्वदर्शन चक्र फिराते हैं तो अथाह कमाई करते हैं, अनगिनत। वहाँ कोई गिनती थोड़ेही होती है। अभी झोपड़ियों में बैठे हैं फिर महलों में बैठेंगे। फ़र्क तो रहता है ना - झोपड़ी और महल में। ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया स्थापन हो जायेगी तो पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। अभी की बात है ना। राजधानी की स्थापना हो जायेगी फिर जिसने जितना पुरुषार्थ किया सो किया फिर विनाश हो जायेगा इसलिए अब ग़फलत नहीं करनी चाहिए। सवेरे उठकर याद में बैठ जाना चाहिए। जितना याद का चार्ट रखो उतना अच्छा है और फिर उतना ही ऊंच पद पायेंगे। शिवबाबा के गले का हार बनेंगे। दिल दर्पण में देखना है कि मैं लायक बना हूँ - लक्ष्मी-नारायण को वरने? हम बाबा-मम्मा जैसी सर्विस करते हैं? किस्म-किस्म के फूल हैं। यह बागवान बाबा का ह्युमन गुलशन है। कहेंगे - देखो, कुमारका, मनोहर कितने अच्छे-अच्छे फूल हैं! यह रतन ज्योत है। बाबा इस बगीचे को देखते फिर उस बगीचे में जाकर फूलों को देखते हैं। बागवान जांच करते हैं फूलों की, तो बच्चों को फालो करना चाहिए - नम्बर वन, टू फूल कौन-कौन हैं? ऐसा बनना चाहिए। 21 जन्मों के लिए राजाई पद पाना कोई कम बात थोड़ेही है! अथाह सुख हैं। विश्व का मालिक बनना है। यह स्कूल है। उस जिस्मानी पढ़ाई के साथ यह रूहानी पढ़ाई करो। टीचर्स के हमेशा अच्छे मैनर्स होते हैं। ऑनेस्ट होते हैं। स्कूल में अन्धश्रद्धा की बात नहीं। वहाँ बैरिस्टरी पढ़ते, इन्जीनियरिंग पढ़ते। यहाँ तुम राजाओं का राजा बनने के लिए पढ़ते हो। सन्यासी तो कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है। बस, खेल ही खत्म। बेहद का बाप बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो। तुम बहुत सर्विस कर सकते हो।वहाँ भी एज्युकेशन डिपार्टमेन्ट है। यह भी गॉडली एज्युकेशन डिपार्टमेन्ट है। तुम बच्चे हो राजऋषि। वह तो घरबार छोड़ देते हैं। तुम घर में रहते सारी दुनिया का त्याग करते हो। तुम्हारी बुद्धि में अब नई दुनिया है, जो बाप ही बनाते हैं, इसलिए बाप कहते हैं तुम मुझे याद करो, यह पुरानी दुनिया ख़लास हो जायेगी। यह रूहानी कॉलेज अथवा हॉस्पिटल भी बहुत बड़ा है, जिससे तुम एवरेहल्दी, एवरवेल्दी बनते हो। घर-घर में तुम यह हॉस्पिटल अथवा कॉलेज खोल सकते हो, इसमें खर्चा कुछ भी नहीं। सिर्फ तीन पैर पृथ्वी के चाहिए। अच्छा!मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सवेरे-सवेरे उठकर याद में जरूर बैठना है, इसमें ग़फलत नहीं करनी है। पुण्य का खाता जमा करना है। 2) एम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख अच्छे मैनर्स धारण करने हैं। रूहानी पढ़ाई जरूर करनी है। अन्तर्मुखी होकर रहना है। वरदान:- न्यारे और प्यारे पन की विशेषता द्वारा बाप के प्रिय बनने वाले निरन्तर योगी भव l मैं बाप का कितना प्यारा हूँ - इसका हिसाब न्यारेपन से लगा सकते हो। अगर थोड़ा न्यारे हैं, बाकी फंस जाते हैं तो प्यारे भी इतने होंगे। जो सदा बाप के प्यारे हैं उसकी निशानी है स्वत: याद। प्यारी चीज़ स्वत: और निरन्तर याद रहती है। तो यह कल्प-कल्प की प्रिय चीज़ है। ऐसी प्रिय वस्तु भूल कैसे सकते! भूलते तब हो जब बाप से भी अधिक कोई व्यक्ति या वस्तु को प्रिय समझने लगते हो। अगर सदा बाप को प्रिय समझो तो निरन्तर योगी बन जायेंगे। स्लोगन:- जो अपने नाम-मान और शान का त्याग कर बेहद सेवा में रहते हैं वही परोपकारी हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- Significance of ZERO and Meaning of word 'Shiv'
ZERO is nothing. But what if you keep it at right place? GOD is a subtle point of light and might. Shiv is the name of GOD. Here is the significance of the meaning of word Shiv, who is the supreme soul, almighty, the creator of world (( ZERO )). In many cultures the name for God means * ZERO * In Sanskrit the word *‘SHAMBHO’* is a name for God, meaning a 'Self creator, who exist without a reason - ZERO. One interpretation of *‘SHIVA’* is *‘ZERO.’* and hence he is worshipped as an oval shaped stone. The Zero has a name : *Bindu* *Always Shiva - Sada Shiva* * IN WHAT RESPECT IS HE ZERO?* He remains Zero i.e. * ZERO DESIRE *, in His attitude towards the physical world (Sakar Duniya -in Hindi) In relation to the physical world : ☆ He *OWNS* nothing ☆ He *NEEDS* nothing ☆ He *LOSES* nothing ☆ He *GAINS* nothing ☆ He *MISSES* nothing ☆ He *LACKS* nothing ☆ He *IDENTIFIES* with nothing ☆ He *FEELS* nothing ☆ He *KNOWS* that He has entitlement to nothing ☆ He *TAKES* credit for nothing ☆ He *EXPECTS* nothing. and yet that supreme being is Ocean of all Information (is knowledgeful and THE ONLY one who knows the past, present and the future of the world) He remains *FREE* from the WEB, the TRAP, the BONDAGES, of the physical world. He cannot be compared with anything of this world. Supreme soul is a point of metaphysical light (of consciousness, of knowledge and of bliss) When you look *"AT"* a zero, you see nothing. When you look *"THROUGH"* a zero, *YOU SEE EVERYTHING*! . Since *GOD SHIV (baba)* has zero bondage, it allows Him to experience the ‘OCEAN.’ Only him can tell you whether you are right, have you done right or wrong. Hence God is said as the judge. He experiences and is: Ocean of Knowledge Ocean of Bliss. . . Ocean of Love. . . Ocean of Contentment . . . … unlimited 🧘🏾♀ treasures within .... --- Useful Links & Pages --- About God (Shiv Baba) - Complete Introduction 'Revelations' from Gyan Murli Read other Articles .
- 29 Oct 2018 English Murli for today
Brahma Kumaris murli today in English (BK murli) 29/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, become obedient. The Father’s first order is: Consider yourself to be a soul and remember the Father. Question: Why have the vessels of souls become unclean? What is the way to clean them? Answer: The vessels of souls have become unclean by listening to and speaking of wasteful matters. In order to clean them, the Father’s orders are: Hear no evil! See no evil! Listen to the one Father. Only remember the one Father and vessels of souls will become clean. Souls and bodies will both become pure. Song: There are showers of rain on those who are with the Beloved. Om shanti. You children have understood the meaning of ‘Om shanti’. Points of knowledge are given to you children again and again, just as you are repeatedly told to remember the Father and the inheritance. Here, you do not remember human beings. Human beings only remind you of human beings or deities. Because no human being knows the parlokik Father, none of them can inspire you to remember Him. Here, you are told again and again: Consider yourself to be a soul and remember the Father. When a father has a son, everyone understands that his son has come to claim his inheritance from his father. The child would remember his father and his inheritance. It is the same here. Certainly the children don’t know the Father, which is why He has to come. This knowledge is showered on the children who are with the Father. The knowledge in the Vedas and scriptures is just the paraphernalia of the path of devotion. Chanting, donating, performing charity, evening prayers, mantras etc. – whatever people do is the paraphernalia of the path of devotion. Sannyasis are also devotees. No one can go to the land of peace without having purity. This is why they leave home and go off somewhere. However, not everyone in the whole world would do that. Their hatha yoga is fixed in the drama. I only come once every cycle to teach you children Raja Yoga. I do not incarnate in any other way. It is said: “Reincarnation of God”. He is the Highest on High. Then, there definitely has to be the reincarnation of the world mother and the world father. In fact, the word ‘reincarnation’ is only applied to the Father. Only the one Father is the Bestower of Salvation but, in fact, everything reincarnates again. Because there is now corruption, it would be said: Corruption has reincarnated; they became corrupt once again. Later, there will be righteousness. Everything reincarnates. It is now the old world, and then the new world will come again. It would be said that after the new world, the old world will come again. The Father sits here and explains all of these things. When you sit in remembrance, always think: I am a soul and I have received instructions from the Father to remember Him. No one, apart from you children, can receive instructions from the Father. Among you children too, some are obedient and others are disobedient. The Father says: O souls, connect your intellects in yoga to Me. The Father speaks to you souls. None of the scholars or pundits would say that they are speaking to souls. They consider each soul to be the Supreme Soul. That is wrong. You children know that Shiv Baba is explaining to you through this body. One cannot act without a body. First of all, you need faith. Unless you have faith, nothing will sit in your intellect. First of all, you need the faith that the Father of souls is the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, and that Prajapita Brahma, the Father of People is in the corporeal form. You are Brahma Kumars and Kumaris. All souls are sons of Shiva and so they are called Shiv Kumars, not Shiv Kumaris. You have to imbibe all of these things. It is only when you continue to stay in constant remembrance that you are able to imbibe them. It is only by staying in remembrance that your intellects’ vessels can be cleansed. Because you have been listening to wasteful things, your vessels have become unclean. You have to make them clean. The Father's instructions are: Remember Me and your intellect will be purified. Alloy has been mixed into souls. Therefore, you now have to become pure. Sannyasis say that souls are immune to the effect of action, whereas the Father says that alloy has been mixed into souls. Both the soul and the body of Shri Krishna are pure, but it is only in the golden age that both are pure; they cannot be pure here. You souls are becoming pure, numberwise. You have not become pure yet. No one has become pure yet. All of you are making effort for this. Everyone’s result will be given, numberwise, at the end. The Father comes and issues this order to all souls: Consider yourselves to be bodiless and remember Me. Become soul conscious. No one but the Father can explain this main thing. If you first of all have full faith in this, you can gain victory. If you do not have faith, you cannot gain victory. “A faithful intellect will be victorious, whereas a doubtful intellect will be led to destruction.” Some words in the Gita are very good. They are called a pinch of salt in a sackful of flour. The Father says: I explain to you the essence of all the Vedas and scriptures. All of those things are from the path of devotion. That too is fixed in the drama. The question of why the path of devotion was created doesn’t arise. This drama is eternally predestined. You have received your inheritance of becoming the masters of heaven from the Father many times in the drama, and you will continue to receive it; it can never end. This cycle rotates eternally. You children are now in the land of sorrow. You are soon to go to the land of peace, and you will go from there to the land of happiness. Then you will go to the land of sorrow. This cycle continues to rotate eternally. It takes you children 5000 years to go from the land of happiness to the land of sorrow and, while doing that, you take 84 births. Only you children take 84 births. Not everyone can take 84 births. The unlimited Father explains this to you children directly. Other children will simply listen to the murli being read, or will read the murli themselves or listen to the tape. Not everyone can listen to the tape. So, first of all, you children have to stay in remembrance as you sit and as you walk etc. People simply turn the beads of a rosary and chant the name of Rama. They speak of the rosary of Rudra. Rudra is God. Then there is the combined bead which represents the dual-form of Vishnu. Who is that? It is the mother and father who become the dual-form of Vishnu, Lakshmi and Narayan. This is why they are called the dual-bead. Shiv Baba is the Tassel, and then the dual-bead is Mama and Baba, who are called the mother and father. Vishnu wouldn’t be called mother and father. Only Lakshmi and Narayan’s children would call them mother and father. People nowadays go in front of anyone and say: You are the Mother and You are the Father. Once someone said this praise, everyone else started to follow it. This is an unrighteous world. The iron age is called the unrighteous world, whereas the golden age is called the righteous world. There, souls and bodies are both pure. In the golden age, Krishna is beautiful and then, by his last birth, that soul has become ugly. Brahma and Saraswati are impure at this time. The soul has become impure and so its jewellery (body) has also become impure (mixed). When gold has alloy mixed with it, the jewellery that is made from it also has alloy mixed with it. When the golden age is governed by the deities, there is nothing that is false or has alloy mixed with it. There, there will be palaces of real gold. Bharat was once the ‘Golden Sparrow’, but it has now become gilded (coated). Only the Father can make this Bharat into such a heaven once again. The Father explains: “Shrimat” means the versions of God. Krishna is a human being with divine virtues; he has two arms and two legs. Lakshmi is shown in those images with four arms and Narayan is also shown with four arms. People don’t understand anything. When they speak of the word "Om", they say that it means “I am God. Wherever I look, I only see God.” However, that is wrong. "Om" means “I am a soul.” The Father says: I too am a soul, but, because I am the Supreme, I am called the Supreme Soul. I reside in the supreme abode. The Highest on High is God. Then, in the subtle region, there are the souls of Brahma, Vishnu and Shankar. Then, down here, there is this human world. That is the deity world and the other world is the world of souls which is also called the incorporeal world. These matters have to be understood. You children are receiving the donation of the imperishable jewels of knowledge through which you become prosperous and double-crowned in the future. Look at the picture of Shri Krishna: he has both crowns. Then, when that child goes into the moon dynasty, he has two degrees fewer. Then, when he goes into the merchant dynasty, he loses four more degrees and his crown of light no longer remains; only the crown of jewels remains. At that time, whoever gives a lot of donations or performs a lot of charity receives a very good kingdom for one birth. Then, in their next birth, if they donate a lot again, they can receive a kingdom once again. Here, you can claim a kingdom for 21 births, but you do have to make effort. So the Father gives His own introduction. He says: I am the Supreme Soul. This is why He is called the Supreme Father, the Supreme Soul, that is, God. You children remember that Supreme. You are saligrams and He is Shiva. People create a huge lingam of Shiva and saligrams out of clay. No one even knows which souls those memorials represent. Because you children of Shiv Baba make Bharat into heaven, you are worshipped in that form. Then, after you have become deities, you are also worshipped in that form. You do so much service with Shiv Baba that even you saligrams (of clay) are worshipped. It is those who perform the most elevated tasks who are worshipped. Those who perform good tasks in the iron age have memorials built to them. The Father comes every cycle and explains to you the secrets of the world cycle, that is, He makes you swadarshanchakradhari. Vishnu cannot have the swadarshanchakra. He would have become a deity. You are given all of this knowledge now, but when you become Lakshmi and Narayan, you will no longer have this knowledge. Everyone there will have received salvation. You children listen to this knowledge at this time and then claim your kingdom. Once heaven has been established, there is no longer any need for this knowledge. Only when the Father comes does He give the full introduction of the Creator and His creation. Sannyasis defame the mothers, but the Father comes and uplifts the mothers. The Father explains: If it were not for the sannyasis, Bharat would have turned to ashes because everyone is sitting on the pyre of lust. When the deities fall onto the path of sin, there are big earthquakes and everything is swallowed up. No other lands exist at that time. Only Bharat exists at that time. Those of Islam etc. come later on. The things of the golden age do not remain here. The Somnath Temple that you see was not built in heaven. It was built on the path of devotion and was looted by Mahmud Guznavi. However, the palaces of the deities etc. all vanish in the earthquakes. It is not that all the palaces go down below and that the things that have gone down below then come up again. No; they stay underground or disintegrate. If excavations were made at that time, something might be found, but nothing would be found now. These things are not mentioned in the scriptures. Only the one Father is the Bestower of Salvation. First of all, you need this faith. It is in faith that Maya creates obstacles. Some say: How can God come here? Since Shiv Jayanti is celebrated (festival of the birth of Shiva) He must surely have come. The Father has explained: I come at the confluence of the unlimited day and the unlimited night. No one except you children knows at what time I come. The Father has given you this knowledge and has had these pictures made by giving you divine visions. There is some mention of the kalpa tree in the Gita. He says to the children: You and I exist now. We also existed a cycle ago and we will continue to meet cycle after cycle. I will give you this knowledge every cycle. This too proves the cycle. However, only you, and no one else, can understand this. Look at this picture of the whole cycle. Someone must definitely have had it created. The Father explains this, but you children also have to use this picture and explain it. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for dharna: 1. In every aspect, the basis of victory is faith. Therefore, become those whose intellects have faith. Never doubt the Father, the Bestower of Salvation. 2. In order to purify and cleanse your intellect, practise becoming bodiless. Do not speak of or listen to wasteful things. Blessing: May you become volcanic in your Shakti form and give the experience of your spirituality. Until now there has been the attraction of the Father, the Flame. His task and the children’s task is being carried out in an incognito way. However, when you stabilize yourselves in your Shakti form, the souls who come into contact with you will experience your spirituality. Those who say, “This is good, this is good”, will be inspired to become good when you all collectively become the volcanic form and lighthouse s. When you master almighty authorities come onto this stage, everyone will circle around you like moths. Slogan: Those who heat their physical senses in the fire of yoga become completely pure. #english #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday
- 26 Oct 2018 BK murli in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli in Hindi Aaj ki Gyan Murli Madhuban 26-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - श्रीमत पर चलो तो तुम्हारे सब भण्डारे भरपूर हो जायेंगे, तुम्हारी तकदीर ऊंची बन जायेगी'' प्रश्नः- इस कलियुग में किस चीज़ का देवाला निकल चुका है? देवाला निकलने से इसकी गति क्या हुई है? उत्तर:- कलियुग में पवित्रता, सुख और शान्ति का देवाला निकल चुका है इसलिए भारत सुखधाम से दु:खधाम, हीरे से कौड़ी जैसा बन गया है। यह खेल सारा भारत पर है। खेल के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान अभी बाप तुम्हें सुना रहे हैं। तकदीरवान, सौभाग्यशाली बच्चे ही इस ज्ञान को अच्छी रीति समझ सकते हैं। गीत:- भोलेनाथ से निराला ........ ओम् शान्ति। भगवानुवाच। कौन-सा भगवान्? भोलानाथ शिव भगवानुवाच। बाप भी समझाते हैं, टीचर का भी काम है समझाना। सतगुरू का भी काम है समझाना। शिवबाबा को ही सत बाबा, भोलानाथ कहा जाता है। शंकर को भोला नहीं कहेंगे। उनके लिए तो कहते हैं आंख खोली तो सृष्टि को भस्म कर दिया। भोला भण्डारी शिव को कहते हैं अर्थात् भण्डारा भरपूर करने वाला। कौनसा भण्डारा? धन-दौलत, सुख-शान्ति का। बाप आये ही हैं पवित्रता-सुख-शान्ति का भण्डारा भरपूर करने। कलियुग में पवित्रता-सुख-शान्ति का देवाला है क्योंकि रावण ने श्राप दिया हुआ है। सब शोक वाटिका में रोते पीटते रहते हैं। भोलानाथ शिव बैठ सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं अर्थात् तुम बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाते हैं। ड्रामा को तो और कोई जानते नहीं। माया ने बिल्कुल ही बेसमझ बना दिया है। भारत का ही यह हार-जीत, दु:ख-सुख का नाटक है। भारत हीरे जैसा सालवेन्ट था, अब कौड़ी जैसा इनसालवेन्ट है। भारत सुखधाम था, अब दु:खधाम है। भारत हेविन था, अब हेल है। हेल से फिर हेविन कैसे बनता है, उसके आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिवाए ज्ञान सागर के कोई समझा न सके। यह भी बुद्धि में निश्चय होना चाहिए। निश्चय उनको होता है जिनकी तकदीर खुलनी होती है, जो सौभाग्यशाली बनने वाले हैं। दुर्भाग्यशाली तो सब हैं ही। दुर्भाग्यशाली माना तकदीर बिगड़ी हुई है। भ्रष्टाचारी हैं। बाप आकर श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। परन्तु उस बाप को भी कोई मुश्किल समझ सकते हैं क्योंकि उनको देह नहीं है। सुप्रीम आत्मा बात करती है। पावन आत्मायें होती ही हैं सतयुग में। कलियुग में सब पतित हैं। अनेक मनोकामनायें लेकर जगदम्बा के पास जाते हैं, जानते कुछ भी नहीं फिर भी बाप कहते हैं जो-जो, जिस-जिस भावना से पूजा करते हैं तो मैं उनको अल्पकाल क्षणभंगुर लिए फल दे देता हूँ। जड़ मूर्ति कभी उसका फल नहीं दे सकती। फल देने वाला, अल्पकाल सुख देने वाला मैं ही हूँ और बेहद के सुख का दाता भी मैं ही हूँ। मैं दु:खदाता नहीं हूँ। मैं तो दु:ख हर्ता सुख कर्ता हूँ। तुम आये हो सुखधाम में स्वर्ग का वर्सा पाने। इसमें परहेज बहुत है। बाप समझाते हैं आदि में है सुख, फिर मध्य में भक्ति मार्ग शुरू होता है तो सुख पूरा हो दु:ख शुरू होता है। फिर देवी-देवता वाम मार्ग, विकारी मार्ग में गिर पड़ते हैं। जहाँ से ही फिर भक्ति शुरू होती है। तो आदि में सुख, मध्य में दु:ख शुरू होता है। अन्त में तो महान् दु:ख है। बाप कहते हैं अब सर्व का शान्ति, सुख दाता मैं हूँ। तुमको सुखधाम में चलने लिए तैयार कर रहा हूँ। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर शान्तिधाम में चले जायेंगे। सजायें तो बहुत खायेंगे। ट्रिब्युनल बैठती है। बाबा ने समझाया है काशी में भी बलि चढ़ते थे। काशी कलवट कहते हैं ना। अब काशी में है शिव का मन्दिर। वहाँ भक्ति मार्ग में शिवबाबा की याद में रहते हैं। कहते हैं - बस, अब आपके पास आऊं। बहुत रो-रो कर शिव पर बलि चढ़ते हैं तो अल्पकाल क्षण भंगुर थोड़ा फल मिल जाता है। यहाँ तुम बलि चढ़ते हो अर्थात् जीते जी शिवबाबा का बनते हो 21 जन्म का वर्सा पाने के लिए। जीवघात की बात नहीं। जीते जी बाबा मैं आपका हूँ। वह तो शिव पर बलि चढ़ते हैं, मर जाते हैं, समझते हैं हम शिवबाबा का बन जाऊंगा। परन्तु बनते नहीं हैं। यहाँ तो जीते जी बाप का बने, गोद में आये फिर बाप की मत पर चलना पड़े, तब ही श्रेष्ठ देवता बन सकते हैं। तुम अब बन रहे हो। कल्प-कल्प तुम यह पुरुषार्थ करते आये हो। यह कोई नई बात नहीं। दुनिया पुरानी होती है। फिर जरूर नई चाहिए ना। भारत नया सुखधाम था, अब पुराना दु:खधाम है। मनुष्य इतने पत्थरबुद्धि हैं जो यह नहीं समझते कि सृष्टि एक ही है। वह सिर्फ नई और पुरानी होती है। माया ने बुद्धि को ताला लगाए बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि बना दिया है, इसलिए आक्यूपेशन जानने बिगर ही देवताओं की पूजा करते रहते हैं, इसको ब्लाइन्डफेथ कहा जाता है। देवियों की पूजा में करोड़ों रूपया खर्च करते हैं, उनकी पूजा कर खिला-पिलाकर फिर समुद्र में डुबो देते हैं तो यह गुड़ियों की पूजा हुई ना। इससे क्या फायदा? कितना धूमधाम से मनाते हैं, खर्चा करते हैं, हफ्ता बाद जैसे शमशान में दफन करते हैं वैसे यह फिर सागर में डुबो देते हैं। भगवानुवाच - यह आसुरी सम्प्रदाय का राज्य है, मैं तुमको दैवी सम्प्रदाय बनाता हूँ। कोई को निश्चय बैठना बड़ा कठिन है क्योंकि साकार में नहीं देखते। आगाखां साकार में था तो उनके कितने फालोअर्स थे, उनको सोने-हीरों में वज़न करते थे। इतनी महिमा कोई बादशाह की भी नहीं होती। तो बाप समझाते हैं - इसको अन्धश्रधा कहा जाता है क्योंकि स्थाई सुख तो नहीं है ना। बहुत गन्दे भी होते हैं, बड़े-बड़े आदमियों से बड़े पाप होते हैं। बाप कहते हैं मैं गरीब निवाज हूँ। गरीबों से इतने पाप नहीं होंगे। इस समय सब पाप आत्मायें है। अभी तुमको बेहद का बाप मिला है फिर भी घड़ी-घड़ी उनको भूल जाते हो। अरे, तुम आत्मा हो ना! आत्मा को भी कभी कोई ने देखा नहीं है। समझते हैं स्टॉर मिसल भ्रकुटी के बीच रहती है। जब आत्मा निकल जाती है तो शरीर खलास हो जाता है। आत्मा स्टॉर मिसल है तो जरूर मुझ आत्मा का बाप भी हमारे जैसा होगा। परन्तु वह सुख का सागर, शान्ति का सागर है। निराकार वर्सा कैसे देंगे? जरूर भ्रकुटी के बीच आकर बैठेंगे। आत्मा अब ज्ञान धारण कर दुर्गति से सद्गति में जाती है। अब जो करेगा सो पायेगा। बाप को याद नहीं करते तो वर्सा भी नहीं पायेंगे। कोई को आप समान वर्सा पाने लायक नहीं बनाते हैं तो समझते हैं पाई-पैसे का पद पा लेंगे। श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी किसको कहा जाता है, यह बाप बैठ समझाते हैं। भारत में ही श्रेष्ठाचारी देवतायें होकर गये हैं। गाते भी हैं हेविनली गॉड फादर...... परन्तु जानते नहीं हैं कि हेविनली गॉड फादर कब आकर सृष्टि को हेविन बनाते हैं। तुम जानते हो, सिर्फ पूरा पुरुषार्थ नहीं करते हो, वह भी ड्रामा अनुसार होना है, जितना जिसकी तकदीर में है। बाबा से अगर कोई पूछे तो बाबा झट बता सकते हैं कि इस चलन में अगर तुम्हारा शरीर छूट जाए तो यह पद पायेंगे। परन्तु पूछने की भी हिम्मत कोई नहीं रखते हैं। जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं वह समझ सकते हैं हम कितने अंधों की लाठी बनते हैं? बाप भी समझ जाते हैं - यह अच्छा पद पायेंगे, यह बच्चा कुछ भी सर्विस नहीं करता तो वहाँ भी दास-दासी जाकर बनेंगे। झाड़ू आदि लगाने वाले, कृष्ण की पालना करने वाले, महारानी का श्रृंगार करने वाले दास-दासियां भी होते हैं ना। वह हैं पावन राजायें, यह हैं पतित राजायें। तो पतित राजायें पावन राजाओं के मन्दिर बनाकर उन्हों की पूजा करते हैं। जानते कुछ भी नहीं। बिरला मन्दिर कितना बड़ा है। कितने लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते हैं, परन्तु जानते नहीं कि लक्ष्मी-नारायण कौन हैं? फिर उनको कितना फ़ायदा मिलेगा? अल्पकाल का सुख। जगत अम्बा के पास जाते हैं, यह थोड़ेही जानते कि यह जगत-अम्बा ही लक्ष्मी बनती है। इस समय तुम जगत अम्बा से विश्व की सब मनोकामनायें पूरी कर रहे हो। विश्व का राज्य ले रहे हो। जगत अम्बा तुमको पढ़ा रही है। वही फिर लक्ष्मी बनती है। जिससे फिर वर्ष-वर्ष भीख मांगते हैं। कितना फ़र्क है! लक्ष्मी से हर वर्ष पैसे की भीख मांगते हैं। लक्ष्मी को ऐसे नहीं कहेंगे हमको बच्चा चाहिए या बीमारी दूर करो। नहीं, लक्ष्मी से सिर्फ धन मांगते हैं। नाम ही है लक्ष्मी-पूजन। जगत अम्बा से तो बहुत कुछ मांगते हैं। वह सब कामनायें पूरी करने वाली है। अभी तुमको जगत अम्बा से मिलती है - स्वर्ग की बादशाही। लक्ष्मी से हर वर्ष कुछ न कुछ धन का फल मिलता है, तब तो हर वर्ष पूजा करते हैं। समझते हैं धन देने वाली है। धन से फिर पाप करते रहते। धन प्राप्ति के लिए भी पाप करते हैं। अभी तुम बच्चों को मिलते हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, जिससे तुम मालामाल बन जायेंगे। जगत अम्बा से स्वर्ग की राजाई मिलती है। वहाँ पाप होता नहीं। कितनी समझ की बातें हैं। कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, कोई तो कुछ समझते नहीं हैं क्योकि तकदीर में नहीं है। श्रीमत पर नहीं चलते तो श्रेष्ठ थोड़ेही बनेंगे। फिर पद भ्रष्ट हो जाता है। सारी राजधानी स्थापन हो रही है - यह समझना है। गॉड फादर हेविनली किंगडम स्थापन कर रहे हैं फिर भारत हेविन बन जायेगा। इसको कहा जाता है कल्याणकारी युग। यह है बहुत से बहुत 100 वर्ष का युग। और सभी युग 1250 वर्ष के हैं। अजमेर में वैकुण्ठ का मॉडल है, दिखलाते हैं स्वर्ग कैसा होता है। स्वर्ग तो जरूर यहाँ ही होगा ना। थोड़ा भी सुना तो स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु पढ़ेंगे नहीं तो जैसे भील हैं। प्रजा भी नम्बरवार होती है ना। परन्तु वहाँ गरीब, साहूकार सुख सबको रहता है। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। भारत सतयुग में सुखधाम था, कलियुग में दु:खधाम है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होनी है। गॉड एक है। वर्ल्ड भी एक है। नई वर्ल्ड में पहले है भारत। अभी भारत पुराना है जिसको फिर नया बनना है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी ऐसे रिपीट होती रहती है और कोई इन बातों को नहीं जानते। सब तो एक जैसे नहीं होते हैं। मर्तबे तो वहाँ भी रहेंगे। वहाँ सिपाही लोग होते नहीं क्योंकि वहाँ डर होता नहीं। यहाँ तो डर है इसलिए सिपाही आदि रखते हैं। भारत में टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं। सतयुग में पार्टीशन होता नहीं। लक्ष्मी-नारायण का एक ही राज्य चलता है। पाप कोई होता नहीं। अब बाप कहते हैं - बच्चे, मेरे से सदा सुख का वर्सा लो, मेरी मत पर चलकर। सद्गति का मार्ग एक ही बाप दिखाते हैं। यह है शिव शक्ति सेना, जो भारत को स्वर्ग बनाती है। यह तन-मन-धन सब इस सेवा में लगाते हैं। उस बापू जी ने क्रिश्चियन को भगाया, यह भी ड्रामा में था। परन्तु उनसे कोई सुख नहीं हुआ और ही दु:ख है। अन्न है नहीं, गपोड़े मारते रहते हैं, यह मिलेगा, यह होगा......। मिलना है सिर्फ बाप से। बाकी यह तो सब ख़त्म हो जायेगा। कहते हैं बर्थ कन्ट्रोल करो, उसके लिए माथा मारते रहते हैं, होगा कुछ भी नहीं। अभी थोड़ी लड़ाई शुरू हो जाए तो फेमन पड़ जायेगा। एक-दो में मारामारी हो जायेगी। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) जीते जी बाप पर बलि चढ़ना है अर्थात् बाप का बनकर बाप की ही श्रीमत पर चलना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है। 2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर जगदम्बा समान सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाला बनना है। वरदान:- हर बात में कल्याण समझकर अचल, अडोल महावीर बनने वाले त्रिकालदर्शी भव कोई भी बात एक काल की दृष्टि से नहीं देखो, त्रिकालदर्शी होकर देखो। क्यों, क्या के बजाए सदा यही संकल्प रहे कि जो रहा है उसमें कल्याण है। जो बाबा कहे वह करते चलो, फिर बाबा जाने बाबा का काम जाने। जैसे बाबा चलाये वैसे चलो तो उसमें कल्याण भरा हुआ है। इस निश्चय से कभी डगमग नहीं होंगे। संकल्प और स्वप्न में भी व्यर्थ संकल्प न आयें तब कहेंगे अचल, अडोल महावीर। स्लोगन:- तपस्वी वह है जो श्रीमत के इशारे प्रमाण सेकण्ड में न्यारा और प्यारा बन जाये। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- 28 Oct 2018 BK murli in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli in Hindi Aaj ki Murli Madhuban 28-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 22-02-84 मधुबन संगम पर चार कम्बाइन्ड रूपों का अनुभव आज बापदादा सभी बच्चों के कम्बाइन्ड रूप को देख रहे हैं। सभी बच्चे भी अपने कम्बाइन्ड रूप को अच्छी रीति जानते हो? एक - श्रेष्ठ आत्मायें, इस अन्तिम पुराने लेकिन अति अमूल्य बनाने वाले शरीर के साथ कम्बाइन्ड हो। सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस शरीर के आधार से श्रेष्ठ कार्य और बापदादा से मिलन का अनुभव कर रही हो। है पुराना शरीर लेकिन बलिहारी इस अन्तिम शरीर की है जो श्रेष्ठ आत्मा इसके आधार से अलौकिक अनुभव करती है। तो आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है। पुराने शरीर के भान में नहीं आना है लेकिन मालिक बन इस द्वारा कार्य कराने हैं इसलिए आत्म-अभिमानी बन, कर्मयोगी बन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराते हैं।दूसरा-अलौकिक विचित्र कम्बाइन्ड रूप। जो सारे कल्प में इस कम्बाइन्ड रूप का अनुभव सिर्फ अब कर सकते हो। वह है ''आप और बाप''। इस कम्बाइन्ड रूप का अनुभव। सदा मास्टर सर्वशक्तिवान सदा विजयी सदा सर्व के विघ्न-विनाशक। सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वाणी, श्रेष्ठ दृष्टि, श्रेष्ठ कर्म द्वारा विश्व कल्याणकारी स्वरूप का अनुभव कराता है। सेकण्ड में सर्व समस्याओं का समाधान स्वरूप बनाता है। स्वयं के प्रति वा सर्व के प्रति दाता और मास्टर वरदाता बनाता है। सिर्फ इस कम्बाइन्ड रूप में सदा स्थित रहो तो सहज ही याद और सेवा के सिद्धि स्वरूप बन जाओ। विधि निमित्त मात्र हो जायेगी और सिद्धि सदा साथ रहेगी। अभी विधि में ज्यादा समय लगता है। सिद्धि यथा शक्ति अनुभव होती है। लेकिन जितना इस अलौकिक शक्तिशाली कम्बाइन्ड रूप में सदा रहेंगे तो विधि से ज्यादा सिद्धि अनुभव होगी। पुरुषार्थ से प्राप्ति ज्यादा अनुभव होगी। सिद्धि स्वरूप का अर्थ ही है हर कार्य में सिद्धि हुई पड़ी है। यह प्रैक्टिकल में अनुभव हो।तीसरा कम्बाइन्ड रूप - हम सो ब्राह्मण सो फरिश्ता। ब्राह्मण रूप और अन्तिम कर्मातीत फरिश्ता स्वरूप। इस कम्बाइन्ड रूप की अनुभूति विश्व के आगे साक्षात्कार मूर्त बनायेगी। ब्राह्मण सो फरिश्ता इस स्मृति द्वारा चलते-फिरते अपने को व्यक्त शरीर, व्यक्त देश में पार्ट बजाते हुए भी ब्रह्मा बाप के साथी अव्यक्त वतन के फरिश्ते, व्यक्त देश और देह में आये हैं विश्व सेवा के लिए। ऐसे व्यक्त भाव से परे अव्यक्त रूपधारी अनुभव करेंगे। यह अव्यक्त भाव अर्थात् फरिश्तेपन का भाव स्वत: ही अव्यक्त अर्थात् व्यक्तपन के बोल-चाल, व्यक्त भाव के स्वभाव, व्यक्त भाव के संस्कार सहज ही परिवर्तन कर लेंगे। भाव बदल गया तो सब कुछ बदल जायेगा। ऐसा अव्यक्त भाव सदा स्वरूप में लाओ। स्मृति में है कि ब्राह्मण सो फरिश्ता। अब स्मृति को स्वरूप में लाओ। स्वरूप निरन्तर स्वत: और सहज हो जाता है। स्वरूप में लाना अर्थात् सदा हैं ही अव्यक्त फरिश्ता। कभी भूले, कभी स्मृति में आवे - इस स्मृति में रहना पहली स्टेज है। स्वरूप बन जाना यह श्रेष्ठ स्टेज है।चौथा है - भविष्य चतुर्भुज स्वरूप। लक्ष्मी और नारायण का कम्बाइन्ड रूप क्योंकि आत्मा में इस समय लक्ष्मी और नारायण दोनों बनने के संस्कार भर रहे हैं। कब लक्ष्मी बनेंगे, कब नारायण बनेंगे। भविष्य प्रालब्ध का यह कम्बाइन्ड स्वरूप इतना ही स्पष्ट हो। आज फरिश्ता, कल देवता। अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी देवता। अपना राज्य, अपना राज्य स्वरूप आया कि आया। बना कि बना। ऐसे संकल्प स्पष्ट और शक्तिशाली हों क्योंकि आपके इस स्पष्ट समर्थ संकल्प के इमर्ज रूप से आपका राज्य समीप आयेगा। आपका इमर्ज संकल्प नई सृष्टि को रचेगा अर्थात् सृष्टि पर लायेगा। आपका संकल्प मर्ज है तो नई सृष्टि इमर्ज नहीं हो सकती। ब्रह्मा के साथ ब्राह्मणों के इस संकल्प द्वारा नई सृष्टि इस भूमि पर प्रत्यक्ष होगी। ब्रह्मा बाप भी नई सृष्टि में नया पहला पार्ट बजाने के लिए आप ब्राह्मण बच्चों के लिए, साथ चलेंगे के वायदे कारण इन्तजार कर रहे हैं। अकेला ब्रह्मा सो कृष्ण बन जाए, तो अकेला क्या करेगा? साथ में पढ़ने वाले, खेलने वाले भी चाहिए ना इसलिए ब्रह्मा बाप ब्राह्मणों प्रति बोले, कि मुझ अव्यक्त रूपधारी बाप समान अव्यक्त रूपधारी, अव्यक्त स्थितिधारी फरिश्ता रूप बनो। फरिश्ता सो देवता बनेंगे। समझा। इन सब कम्बाइन्ड रूप में स्थित रहने से ही सम्पन्न और सम्पूर्ण बन जायेंगे। बाप समान बन सहज ही कर्म में सिद्धि का अनुभव करेंगे।डबल विदेशी बच्चों को बापदादा से रूह-रूहान करने वा मिलन मनाने की इच्छा तीव्र है। सभी समझते हैं कि हम आज ही मिल लेवें। परन्तु इस साकार दुनिया में सब देखना पड़ता है। सूर्य चांद के अन्दर की दुनिया है ना। उनसे परे की दुनिया में आ जाओ तो सारा समय बैठ जाओ। बापदादा को भी हर बच्चा अपनी-अपनी विशेषताओं से प्रिय है। कोई समझे यह प्रिय है, हम कम प्रिय हैं। ऐसी बात नहीं है। महारथी अपनी विशेषता से प्रिय हैं और बाप के आगे अपने-अपने रूप से सब महारथी हैं। महान आत्मायें हैं इसलिए महारथी हैं। यह तो कार्य चलाने के लिए किसको स्नेह से निमित्त बनाना होता है। नहीं तो कार्य के निमित्त अपना-अपना स्थान मिला हुआ है। अगर सभी दादी बन जाएं तो काम चलेगा? निमित्त तो बनाना पड़े ना। वैसे अपनी रीति से सब दादियां हो। सभी को दीदी वा दादी कहते तो हैं ना। फिर भी आप सबने मिलकर एक को निमित्त तो बनाया है ना। सभी ने बनाया वा सिर्फ बाप ने बनाया। या सिर्फ निमित्त कारोबार अर्थ अपने-अपने कार्य अनुसार निमित्त बनाना ही पड़ता है। इसका यह मतलब नहीं कि आप महारथी नहीं हो। आप भी महारथी हो। महावीर हो। माया को चैलेन्ज करने वाले महारथी नहीं हुए तो क्या हुए!बापदादा के लिए सप्ताह कोर्स करने वाला बच्चा भी महारथी है क्योंकि सप्ताह कोर्स भी तब करते जब समझते हैं कि यह श्रेष्ठ जीवन बनानी है। चैलेन्ज किया तो महारथी, महावीर हुआ। बापदादा सदैव एक स्लोगन सभी बच्चों को कार्य में लाने लिए याद दिलाते रहते। एक है अपनी स्वस्थिति में रहना, दूसरा है कारोबार में आना। स्वस्थिति में तो सभी बड़े हो कोई छोटा नहीं। कारोबार में निमित्त बनाना ही पड़ता है इसलिए कारोबार में सदा सफल होने का स्लोगान है - रिगार्ड देना, रिगार्ड लेना। दूसरे को रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। देने में लेना भरा हुआ है। रिगार्ड दो तो रिगार्ड मिलेगा। रिगार्ड लेने का साधन ही है देना। आप रिगार्ड दो और आपको नहीं मिले, यह हो नहीं सकता। लेकिन दिल से दो, मतलब से नहीं। जो दिल से रिगार्ड देता है उसको दिल से रिगार्ड मिलता है। मतलब का रिगार्ड देंगे तो मिलेगा भी मतलब का। सदैव दिल से दो और दिल से लो। इस स्लोगन द्वारा सदा ही निर्विघ्न, निरसंकल्प, निश्चिन्त रहेंगे। मेरा क्या होगा यह चिन्ता नहीं रहेगी। मेरा हुआ ही पड़ा है, बना ही पड़ा है, निश्चिन्त रहेंगे। और ऐसी श्रेष्ठ आत्मा की श्रेष्ठ प्रालब्ध वर्तमान और भविष्य निश्चित ही है। इसको कोई बदल नहीं सकता। कोई किसकी सीट ले नहीं सकता, निश्चित है। निश्चित है इसलिए निश्चिंत है, इसको कहा जाता है बाप समान फालो फादर करने वाले। समझा।डबल विदेशी बच्चों पर तो विशेष स्नेह है। मतलब का नहीं। दिल का स्नेह है। बापदादा ने सुनाया था एक पुराना गीत है - ऊंची-ऊंची दीवारें... यह डबल विदेशियों का गीत है। समुद्र पार करते हुए, धर्म, देश, भाषा सब ऊंची-ऊंची दीवारें पार करके बाप के बन गये, इसलिए बाप को प्रिय हो। भारतवासी तो थे ही देवताओं के पुजारी। उन्होंने ऊंची दीवारें पार नहीं की। लेकिन आप डबल विदेशियों ने यह ऊंची-ऊंची दीवारें कितना सहज पार की इसलिए बापदादा दिल से बच्चों की इस विशेषता का गीत गाते हैं। समझा। सिर्फ खुश करने के लिए नहीं कह रहे हैं। कई बच्चे रमत-गमत में कहते हैं कि बापदादा तो सभी को खुश कर देते हैं। लेकिन खुश करते हैं अर्थ से। आप अपने से पूछो बापदादा ऐसे ही कहते हैं या यह प्रैक्टिकल है! ऊंची-ऊंची दीवारें पार कर आ गये हो ना! कितनी मेहनत से टिकेट निकालते हो। यहाँ से जाते ही पैसे इकट्ठे करते हो ना। बापदादा जब बच्चों का स्नेह देखते हैं, स्नेह से कैसे पहुँचने के लिए साधन अपनाते हैं, किस तरीके से पहुँचते हैं, बापदादा स्नेही आत्माओं का स्नेह का साधन देख, लगन देख, खुश होते हैं। दूर वालों से पूछो कैसे आते हैं? मेहनत करके फिर भी पहुँच तो जाते हैं ना। अच्छा।सदा कम्बाइन्ड रूप में स्थित रहने वाले, सदा बाप समान अव्यक्त भाव में स्थित रहने वाले, सदा सिद्धि स्वरूप अनुभव करने वाले, अपने समर्थ समान स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने वाले, ऐसे सदा निश्चिन्त, सदा निश्चित विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।सानफ्रंसिसको ग्रुप से:- सभी स्वयं को सारे विश्व में विशेष आत्मायें हैं - ऐसे अनुभव करते हो? क्योंकि सारे विश्व की अनेक आत्माओं में से बाप को पहचानने का भाग्य आप विशेष आत्माओं को मिला है। ऊंचे ते ऊंचे बाप को पहचानना यह कितना बड़ा भाग्य है! पहचाना, सम्बन्ध जोड़ा और प्राप्ति हुई। अभी अपने को बाप के सर्व खजानों के मालिक अनुभव करते हो? जब सदा बच्चे हैं तो बच्चे माना ही अधिकारी। इसी स्मृति से बार-बार रिवाइज़ करो। मैं कौन हूँ! किसका बच्चा हूँ! अमृतवेले शक्तिशाली स्मृति स्वरूप का अनुभव करने वाले ही शक्तिशाली रहते हैं। अमृतवेला शक्तिशाली नहीं तो सारे दिन में भी बहुत विघ्न आयेंगे इसलिए अमृतवेला सदा शक्तिशाली रहे। अमृतवेले स्वयं बाप बच्चों को विशेष वरदान देने आते हैं। उस समय जो वरदान लेता है उसका सारा दिन सहजयोगी की स्थिति में रहता है। तो पढ़ाई और अमृतवेले का मिलन यह दोनों ही विशेष शक्तिशाली रहें। तो सदा ही सेफ रहेंगे।जर्मनी ग्रुप से:- सदा अपने को विश्व कल्याणकारी बाप के बच्चे विश्व कल्याणकारी आत्मायें समझते हो? अर्थात् सर्व खजानों से भरपूर। जब अपने पास खजाने सम्पन्न होंगे तब दूसरों को देंगे ना! तो सदा सर्व खजानों से भरपूर आत्मायें बालक सो मालिक हैं! ऐसा अनुभव करते हो? बाप कहा माना बालक सो मालिक हो गया। यही स्मृति विश्व कल्याणकारी स्वत: बना देती है। और यही स्मृति सदा खुशी में उड़ाती है। यही ब्राह्मण जीवन है। सम्पन्न रहना, खुशी में उड़ना और सदा बाप के खजानों के अधिकार के नशे में रहना। ऐसे श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें हो। अच्छा। वरदान:- अपने हर कर्म और बोल द्वारा चलते फिरते हर आत्मा को शिक्षा देने वाले मास्टर शिक्षक भव जैसे आजकल चलती-फिरती लाइब्रेरी होती है, ऐसे आप भी चलते-फिरते मास्टर शिक्षक हो। सदा अपने सामने स्टूडेन्ट देखो, अकेले नहीं हो, सदा स्टूडेन्ट के सामने हो। सदा स्टडी कर भी रहे हो और करा भी रहे हो। योग्य शिक्षक कभी स्टूडेन्ट के आगे अलबेले नहीं होंगे, अटेन्शन रखेंगे। आप सोते हो, उठते हो, चलते हो, खाते हो, हर समय समझो हम बड़े कालेज में बैठे हैं, स्टूडेन्ट देख रहे हैं। स्लोगन:- आत्म निश्चय से अपने संस्कारों को सम्पूर्ण पावन बनाना ही श्रेष्ठ योग है। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- आज की मुरली 9 Nov 2018 BK murli in Hindi
Brahma Kumaris murli today Hindi Aaj ki Gyan murli Madhuban 09-11-18 प्रात: मुरली ओम् शान्ति मधुबन "मीठे बच्चे - सेकेण्ड में मुक्ति और जीवनमुक्ति प्राप्त करने के लिए मनमनाभव, मध्याजी भव। बाप को यथार्थ पहचान कर याद करो और सबको बाप का परिचय दो'' प्रश्नः- किस नशे के आधार पर ही तुम बाप का शो कर सकते हो? उत्तर:- नशा हो कि हम अभी भगवान् के बच्चे बने हैं, वह हमें पढ़ा रहे हैं। हमें ही सब मनुष्य मात्र को सच्चा रास्ता बताना है। हम अभी संगमयुग पर हैं। हमें अपनी रॉयल चलन से बाप का नाम बाला करना है। बाप और श्रीकृष्ण की महिमा सबको सुनानी है। गीत:- आने वाले कल की तुम तकदीर हो.... ओम् शान्ति।यह गीत तो गाये हुए हैं स्वतंत्रता सेनानियों के, बाकी दुनिया की तकदीर किसको कहा जाता है, यह भारतवासी नहीं जानते हैं। सारी दुनिया का प्रश्न है, सारी दुनिया की तकदीर बदल हेल से हेविन बनाने वाला कोई मनुष्य हो नहीं सकता। यह महिमा किसी मनुष्य की नहीं है। अगर कृष्ण के लिए कहें तो उनको गाली कोई दे न सके। मनुष्य यह भी नहीं समझते कि कृष्ण ने चौथ का चन्द्रमा कैसे देखा जो कलंक लगा। कलंक वास्तव में न कृष्ण को लगते हैं, न गीता के भगवान् को लगते हैं। कलंक लगते हैं ब्रह्मा को। कृष्ण को कलंक लगाये भी हैं तो भगाने के। शिवबाबा का तो किसको भी पता नहीं है। ईश्वर के पिछाड़ी भागे हैं जरूर, परन्तु ईश्वर तो गाली खा न सके। न ईश्वर को, न कृष्ण को गाली दे सकते। दोनों की महिमा जबरदस्त है। कृष्ण की भी महिमा नम्बरवन है। लक्ष्मी-नारायण की इतनी महिमा नहीं है क्योंकि वह शादीशुदा है। कृष्ण तो कुमार है इसलिए उसकी महिमा ज्यादा है, भल लक्ष्मी-नारायण की महिमा भी ऐसे ही गायेंगे - 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी........ कृष्ण को तो द्वापर में कहते हैं। समझते हैं यह महिमा परम्परा से चली आई है। इन सब बातों को भी तुम बच्चे जानते हो। यह तो ईश्वरीय नॉलेज है, ईश्वर ने ही राम राज्य स्थापन किया है। राम राज्य को मनुष्य समझते नहीं हैं। बाप ही आकर इन सबकी समझ देते हैं। सारा मदार है गीता पर, गीता में ही रांग लिख दिया है। कौरव और पाण्डवों की लड़ाई तो लगी ही नहीं तो अर्जुन की बात ही नहीं। यह तो बाप बैठ पाठशाला में पढ़ाते हैं। पाठशाला युद्ध के मैदान में थोड़ेही होगी। हाँ, यह माया रावण से युद्ध है। उन पर जीत पानी है। माया जीते जगतजीत बनना है। परन्तु इन बातों को जरा भी समझ नहीं सकते। ड्रामा में नूंध ही ऐसी है। उन्हों को पिछाड़ी में आकर समझना है। और तुम बच्चे ही समझा सकते हो। भीष्म पितामह आदि को हिंसक बाण आदि मारने की बात ही नहीं है। शास्त्रों में तो बहुत ही बातें लिख दी हैं। माताओं को उनके पास जाकर टाइम लेना चाहिए। बोलो, हम आपसे इस सम्बन्ध में बात करना चाहते हैं। यह गीता तो भगवान् ने गाई है। भगवान् की महिमा है। श्रीकृष्ण तो अलग है। हमको तो इस बात में संशय आता है। रुद्र भगवानुवाच, उनका यह रुद्र ज्ञान यज्ञ है। यह निराकार परमपिता परमात्मा का ज्ञान यज्ञ है। मनुष्य फिर कहते कृष्ण भगवानुवाच। भगवान् तो वास्तव में एक को ही कहते हैं, उनकी फिर महिमा लिखनी चाहिए। कृष्ण की महिमा यह है, अब दोनों में गीता का भगवान् कौन है? गीता में लिखा हुआ है सहज राजयोग। बाप कहते हैं कि बेहद का सन्यास करो। देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो, मनमनाभव, मध्याजी भव। बाप समझाते तो बहुत अच्छी राति से हैं। गीता में है श्रीमद् भगवानुवाच। श्री अर्थात् श्रेष्ठ तो परमपिता परमात्मा शिव को ही कहेंगे। कृष्ण तो दैवी गुण वाला मनुष्य है। गीता का भगवान् तो शिव है जिसने राजयोग सिखाया है। बरोबर पिछाड़ी में सब धर्म विनाश हो एक धर्म की स्थापना हुई है। सतयुग में एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। वह कृष्ण ने नहीं परन्तु भगवान् ने स्थापन किया। उनकी महिमा यह है। उनको त्वमेव माताश्च पिता कहा जाता है। कृष्ण को तो नहीं कहेंगे। तुम्हें सत्य बाप का परिचय देना है। तुम समझा सकते हो कि भगवान् ही लिबरेटर और गाइड है जो सबको ले जाते हैं, मच्छरों सदृश्य सबको ले जाना यह तो शिव का काम है। सुप्रीम अक्षर भी बड़ा अच्छा है। तो शिव परमपिता परमात्मा की महिमा अलग, कृष्ण की महिमा अलग, दोनों सिद्ध कर समझानी है। शिव तो जन्म-मरण में आने वाला नहीं है। वह पतित-पावन है। कृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। अब परमात्मा किसको कहा जाए? यह भी लिखना चाहिए। बेहद के बाप को न जानने के कारण ही आरफन, दु:खी हुए हैं। सतयुग में जब धणके बन जाते हैं तो जरूर सुखी होंगे। ऐसे स्पष्ट अक्षर होने चाहिए। बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्सा लो। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, अभी भी शिवबाबा ऐसे कहते हैं। महिमा पूरी लिखनी है। शिवाए नम:, उनसे स्वर्ग का वर्सा मिलता है। इस सृष्टि चक्र को समझने से तुम स्वर्गवासी बन जायेंगे। अब जज करो - राइट क्या है? तुम बच्चों को सन्यासियों के आश्रम में जाकर पर्सनल मिलना चाहिए। सभा में तो उन्हों को बहुत घमण्ड रहता है।तुम बच्चों की बुद्धि में यह भी रहना चाहिए कि मनुष्यों को सच्चा रास्ता कैसे बतायें? भगवानुवाच - मैं इन साधुओं आदि का भी उद्धार करता हूँ। लिबरेटर अक्षर भी है। बेहद का बाप ही कहते हैं मेरे बनो। फादर शोज़ सन फिर सन शोज़ फादर। श्रीकृष्ण को तो फादर नहीं कहेंगे। गॉड फादर के सब बच्चे हो सकते हैं। मनुष्य मात्र के तो सब बच्चे हो न सके। तो तुम बच्चों को समझाने का बड़ा नशा होना चाहिए। बेहद के बाप के हम बच्चे हैं, राजा के बच्चे राजकुमार की तुम चलन तो देखो कितनी रायॅल होती है। परन्तु उस बिचारे पर (श्रीकृष्ण पर) तो भारतवासियों ने कलंक लगा दिया है। कहेंगे भारतवासी तो तुम भी हो। बोलो हाँ, हम भी हैं परन्तु हम अभी संगम पर हैं। हम भगवान् के बच्चे बने हैं और उनसे पढ़ रहे हैं। भगवानुवाच - तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। कृष्ण की बात हो नहीं सकती। आगे चलकर समझते जायेंगे। राजा जनक ने भी इशारे से समझा है ना। परमपिता परमात्मा को याद किया और ध्यान में चला गया। ध्यान में तो बहुत जाते रहते हैं। ध्यान में निराकारी दुनिया और वैकुण्ठ देखेंगे। यह तो जानते हो हम निराकारी दुनिया के रहने वाले हैं। परमधाम से यहाँ आकर पार्ट बजाते हैं। विनाश भी सामने खड़ा है। साइन्स वाले मून के ऊपर जाने लिए माथा मारते रहते हैं - यह है अति साइन्स के घमण्ड में जाना जिससे फिर अपना ही विनाश करते हैं। बाकी मून आदि में कुछ है नहीं। बातें तो बड़ी अच्छी हैं सिर्फ समझाने की युक्ति चाहिए। हमको शिक्षा देने वाला ऊंच ते ऊंच बाप है। वह तुम्हारा भी बाप है। उनकी महिमा अलग, कृष्ण की महिमा अलग है। रुद्र अविनाशी ज्ञान यज्ञ है, जिसमें सब आहुति पड़नी है। प्वाइन्ट्स बहुत अच्छी हैं परन्तु शायद अभी देरी है।यह प्वाइन्ट भी अच्छी है - एक है रूहानी यात्रा, दूसरी है जिस्मानी यात्रा। बाप कहते हैं कि मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। प्रीचुअल फादर के बिना और कोई सिखला न सके। ऐसी-ऐसी प्वाइन्ट लिखनी चाहिए। मनमनाभव-मध्याजीभव, यह है मुक्ति-जीवनमुक्ति की यात्रा। यात्रा तो बाप ही करायेंगे, कृष्ण तो करा न सके। याद करने की ही आदत डालनी है। जितना याद करेंगे उतना खुशी होगी। परन्तु माया याद करने नहीं देती है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। सर्विस तो सब करते हैं, परन्तु ऊंच और नीच सर्विस तो है ना। किसको बाप का परिचय देना है बहुत सहज। अच्छा - रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।रात्रि क्लासजैसे पहाड़ों पर हवा खाने, रिफ्रेश होने जाते हैं। घर वा आफिस में रहने से बुद्धि में काम रहता है। बाहर जाने से आफिस के ख्याल से फ्री हो जाते हैं। यहाँ भी बच्चे रिफ्रेश होने के लिए आते हैं। आधाकल्प भक्ति करते-करते थक गये हैं, पुरुषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान मिलता है। ज्ञान और योग से तुम रिफ्रेश हो जाते हो। तुम जानते हो अभी पुरानी दुनिया विनाश होती है, नई दुनिया स्थापन होती है। प्रलय तो होती नहीं। वो लोग समझते हैं दुनिया एकदम खत्म हो जाती है, परन्तु नहीं। चेंज होती है। यह है ही नर्क, पुरानी दुनिया। नई दुनिया और पुरानी दुनिया क्या होती है, यह भी तुम जानते हो। तुमको डिटेल में समझाया गया है। तुम्हारी बुद्धि में विस्तार है सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। समझाने में भी बहुत रिफाइननेस चाहिए। किसी को ऐसा समझाओ जो झट बुद्धि में बैठ जाये। कई बच्चे कच्चे हैं जो चलते-चलते टूट पड़ते हैं। भगवानुवाच भी है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती...। यहाँ है माया से युद्ध। माया से मरकर ईश्वर का बनते हैं, फिर ईश्वर से मरकर माया के बन जाते हैं। एडाप्ट हो फिर फारकती दे देते हैं। माया बड़ी प्रबल है, बहुतों को तूफान में लाती है। बच्चे भी समझते हैं - हार जीत होती है। यह खेल ही हार जीत का है। 5 विकारों से हारे हैं। अभी तुम जीतने का पुरुषार्थ करते हो। आखरीन जीत तुम्हारी है। जब बाप के बने हो तो पक्का बनना चाहिए। तुम देखते हो माया कितने टेम्पटेशन देती है! कई बार ध्यान दीदार में जाने से भी खेल खलास हो जाता है। तुम बच्चों की बुद्धि में है अब 84 जन्म का चक्र लगाकर पूरा किया है। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने, अभी शूद्र से ब्राह्मण बने हैं। ब्राह्मण बन फिर देवता बन जाते हैं। यह भूलना नहीं है। अगर यह भी भूलते हो तो पाँव पीछे हट जाते हैं फिर दुनियावी बातों में बुद्धि लग जाती है। मुरली आदि भी याद नहीं रहती। याद की यात्रा भी डिफीकल्ट भासती है। यह भी वन्डर है।कई बच्चों को बैज लगाने में भी लज्जा आती हैं, यह भी देह-अभिमान है ना। गाली तो खानी ही है। कृष्ण ने कितनी गाली खाई है! सबसे जास्ती गाली खाई है शिव ने। फिर कृष्ण ने। फिर सबसे जास्ती गाली खाई है राम ने। नम्बरवार है। डिफेम करने से भारत की कितनी ग्लानि हुई है! तुम बच्चों को इसमें डरना नहीं है। अच्छा - मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडनाइट। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बुद्धि से बेहद का सन्यास कर, रूहानी यात्रा पर तत्पर रहना है। याद में रहने की आदत डालनी है। 2) फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर सभी को बाप का सत्य परिचय देना है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है। वरदान:- श्रेष्ठ कर्म रूपी डाली में लटकने के बजाए उड़ती पंछी बनने वाले हीरो पार्टधारी भव संगमयुग पर जो श्रेष्ठ कर्म करते हो - यह श्रेष्ठ कर्म हीरे की डाली है। संगमयुग का कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के बंधन में भी फंसना अथवा हद की कामना रखना - यह सोने की जंजीर है। इस सोने की जंजीर अथवा हीरे की डाली में भी लटकना नहीं है क्योंकि बंधन तो बंधन है इसलिए बापदादा सभी उड़ते पंछियों को स्मृति दिलाते हैं कि सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर हीरो पार्टधारी बनो। स्लोगन:- अन्दर की स्थिति का दर्पण चेहरा है, चेहरा कभी खुश्क न हो, खुशी का हो। मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य: "कलियुगी असार संसार से सतयुगी सार वाली दुनिया में ले चलना किसका काम है''इस कलियुगी संसार को असार संसार क्यों कहते हैं? क्योंकि इस दुनिया में कोई सार नहीं है माना कोई भी वस्तु में वो ताकत नहीं रही अर्थात् सुख शान्ति पवित्रता नहीं है, जो इस सृष्टि पर कोई समय सुख शान्ति पवित्रता थी। अब वो ताकत नहीं हैं क्योंकि इस सृष्टि में 5 भूतों की प्रवेशता है इसलिए ही इस सृष्टि को भय का सागर अथवा कर्मबन्धन का सागर कहते हैं इसलिए ही मनुष्य दु:खी हो परमात्मा को पुकार रहे हैं, परमात्मा हमको भव सागर से पार करो इससे सिद्ध है कि जरुर कोई अभय अर्थात् निर्भयता का भी संसार है जिसमें चलना चाहते हैं इसलिए इस संसार को पाप का सागर कहते हैं, जिससे पार कर पुण्य आत्मा वाली दुनिया में चलना चाहते हैं। तो दुनियायें दो हैं, एक सतयुगी सार वाली दुनिया दूसरी है कलियुगी असार की दुनिया। दोनों दुनियायें इस सृष्टि पर होती हैं। अच्छा - ओम् शान्ति। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- 16 Sep 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English 16/09/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 16/01/84 Self-sovereignty is your birthright. Today, BapDada is seeing the gathering of those who have a right to the kingdom. Throughout the whole cycle, it is only at this confluence age that the biggest gathering of those who have a right to the kingdom takes place. BapDada is seeing the gathering of Brahmin children from all over the world. All of you who have a right to the kingdom are set on the seat of your perfect stage, numberwise. Look how you are all sitting like carefree emperors with the spiritual intoxication of your self-sovereignty! The jewel sparkling in the centre of each one's forehead looks so beautiful. Baba is seeing on each one's head a crown of light that is sparkling numberwise. All of you have a crown, but you are numberwise. Because remembrance of BapDada is merged in each one's eyes, the light of remembrance is spreading everywhere through your eyes. BapDada is very pleased to see such a beautifully decorated gathering. Wah! My children who have a right to the kingdom, wah! All of you have received this self-sovereignty, the kingdom of those who have conquered Maya, as your birthright. The children of the Creator of the world automatically have a right to self-sovereignty. Self-sovereignty has been the birthright of all of you many times over, not just now. However, do you remember your rights that you attained many times in the past? You do remember them, do you not? You have attained the kingdom of the world many times through self-sovereignty. You are double sovereigns. You have self-sovereignty, and also the kingdom of the world. Self-sovereignty makes you into Raja Yogis who have a right to the kingdom for all time. Self-sovereignty makes you into one with the third eye, a knower of the three aspects of time and knowledgeable of the three worlds, that is, a master of the three worlds. Self-sovereignty makes you into a soul who is one of the souls selected out of millions of souls and a special soul among those selected few. Self-sovereignty puts you in the garland around the Father's neck. It makes you part of the rosary of which devotees turn the beads. Self-sovereignty seats you on the Father's heart-throne. Self-sovereignty makes you into masters of all the treasures of attainments. It makes you firm, unshakeable and constant and enables you to attain all rights. You are such elevated souls who have a right to self-sovereignty, are you not?You now know very well the answer to the riddle "Who am I?" do you not? The rosary of the title "Who am I?" is so long. Continue to remember this and turn each bead. There will be so much happiness. Become aware of your own rosary and you will experience so much intoxication. Do you have such intoxication? Double foreigners would have double intoxication, would they not? You have imperishable intoxication, do you not? Can anyone reduce this intoxication of yours? In front of the Almighty Authority, what other authority is there? It is just that you fall asleep in the deep sleep of carelessness and so Maya steals the key of your authority, that is, your awareness. Some sleep in such a way that they are not aware of anything. This sleep of carelessness sometimes deceives you so that you feel that you are not sleeping, but are awake. However, even when something gets stolen, you are not aware of it. In fact, there is no other authority in front of the constantly ignited light of the Almighty Authority. No authority can shake you even in your dreams. You are such sovereigns who have a right to the kingdom. Do you understand? Achcha.Today, Baba has come into the gathering to celebrate a meeting. Just as children are waiting for their turn to meet Baba, in the same way, the Father also invokes the meeting with you children. The loveliest work that the Father has to do is to meet you children, whether it is in the subtle form or the corporeal form. The most important task in the Father's daily schedule is to meet the long-lost and now-found loving children, to decorate them, to sustain them, to make them similar to Himself and make them instruments in front of the world. This is His work. This is what He is always busy doing. He inspires scientists, but that too is for you children. Even when He gives devotees the fruit of their love and devotion, he keeps you children in front. None of them knows the Point; they only know the deities. He reveals “Himself” to only you children even before the devotees. He takes everyone else into liberation, and that too is in order to give you children a happy and peaceful kingdom. Achcha.To those who constantly have a right to self-sovereignty, to those who remain constantly stable in a firm, constant, unshakeable stage, to those who constantly remain in spiritual intoxication eternally, to those who have a right to the double kingdom, to the lights of the eyes who are merged in BapDada's eyes, BapDada's love, remembrance and namaste. Dadiji just arrived back in Madhuban from a tour of Madras, Bangalore, Mysore and Calcutta.Seeing Dadiji, BapDada said:Service of multimillions is merged in your every step. You became the ruler of the globe, went on a tour and created your memorial places. How many pilgrimage places did you create? For mahavir children, to tour around means to create their memorial. Every tour has its own speciality. In this tour too, there was the speciality of fulfilling the desires of many souls. To fulfil the desires of their hearts means to become a bestower of blessings. You became a bestower of blessings and also a great donor. According to the drama, whatever programmes are created are filled with significance. The significance make you fly. Achcha.BapDada meeting Dadi Janki:You give everyone the donation of a name. What is the donation of a name? What is your name? To give the donation of a name means to be a trustee and to give a blessing. What would everyone remember as soon as they mention your name? Liberation-in-life in a second and to become a trustee. This is the speciality of your name. Therefore, even if you donate a name, anyone's boat can go across. The Father just now praised your speciality of being a trustee. This is the memorial. He must have been given that word "Janak". There are two stories of the one Janak. One Janak is the one who became bodiless in a second, and the second Janak became a trustee in a second. "Not mine, but Yours." They also show the Janak of the silver age. However, you are the Janak who belongs to the Father, not the one who is Sita's father. Conduct a class on why there is significance in giving the donation of a name. One is able to go across even with the boat of just a name. Even if you don't understand anything else, even if you just say, "Shiv Baba, Shiv Baba", you can receive a gate pass to heaven. Achcha.BapDada meeting a group from Australia:BapDada has deep love for the residents of Australia. Why? What is the speciality of Australia? The speciality of Australia is the good method you have of maintaining courage in yourselves and becoming servers and opening centres everywhere. The Father is especially pleased to see children who have courage. The speciality of London is that everyone there continues to receive special sustenance from many experienced jewels, but Australia doesn't have the chance to receive so much sustenance. Nevertheless, you have been standing on your own feet and bringing about good growth and success in service. All of you have a keen interest in having remembrance and doing service. You have a great interest in having remembrance and this is why you are moving forward and will continue to do so. The majority of you are free from obstacles. Some good children have left, but they still continue to remember the Father even now. Therefore, constantly have good wishes for them too and definitely bring them close to the Father once again. You have such enthusiasm, do you not? Of course some fruit of a tree would fall; this is nothing new. Therefore, make yourself and others so strong that you become embodiments of success. All of you in this group that has come are strong, are you not? Maya will not catch hold of you, will she? If there is a weakness, remove it and become complete before you leave Madhuban. Take the blessing with you from Madhuban of being immortal. Keep such a blessing with you at all times and also revive others with this blessing. BapDada is proud of the double-foreign children. You are proud of the Father, too, are you not? You do have the intoxication that, out of the whole world, you are the ones who have recognised the Father, do you not? Eternally maintain this intoxication and happiness. BapDada has now taken everyone's photograph. Baba will then show you the photograph - that you had come here. Move along whilst being knowledge-full of Maya. Those who are knowledge-full are never deceived because when you know when and how Maya comes, you remain constantly safe. You know when Maya comes, do you not? When you step away from the Father and are alone, Maya comes. When you remain constantly combined, Maya will never come. The speciality of Australia is that it is mostly the Pandava Army who is responsible. Elsewhere, the majority is Shaktis. The Pandavas there have performed wonders. “Pandavas” means those who are always with the Father of the Pandavas (Pandava-Pati). You have maintained great courage. BapDada is congratulating you children for your service. Now simply keep the blessing of being immortal with you always. Achcha.BapDada meeting a group from Brazil:BapDada knows that loving souls remain merged in the Ocean of Love. No matter how far away you live physically, the children who are constantly loving are always personally in front of BapDada. Your love enables you to overcome all obstacles and helps you to come close to the Father. This is why BapDada is congratulating you children. BapDada knows how you have transformed so much effort into love and have reached here. This is why BapDada constantly massages you children with His hands of love. Parents constantly massage their much-loved children with a lot of love. BapDada sees the stars of fortune of you children. You are sparkling stars. No matter what the condition of the country is, the children of the Father will always remain safe because of the fact that they stay in the Father's love. You always have BapDada's canopy of protection over you. You are such beloved, long-lost and now-found children. Children have garlanded BapDada with garlands of many letters. In return, BapDada is giving all of those children love and remembrance. Tell everyone: Just as you have written letters and given your news with so much love, so Baba accepted them with just as much love. And, of course, children who remain courageous definitely receive the Father's help and He always will help them. He received a rosary and even now, BapDada is turning the beads of the rosary in remembrance.BapDada knows that, although you may be far away physically, in your minds you are residents of Madhuban. Because of being constantly “Manmanabhav” in your minds, you are close to the Father and in front of Him. BapDada is seeing personally in front of Him such children who remain close and in front of Baba and is giving each one personal love and remembrance and is giving all the long-lost and now-found children the blessing of becoming elevated and moving forward in the service of making others elevated. All of you should accept love and remembrance, personally, by name. Achcha. Blessing: May you be a master bestower of peace and with the power of silence attract everyone. Just as you have learned the art of serving through words, similarly, now shoot the arrow of peace. With this power of silence, you can make greenery appear even on sand. No matter how hard a mountain may be, you can make water come out of it. Put this great power of silence into a practical form through your thoughts, words and deeds and you will become a master bestower of peace. Then the rays of peace will attract all souls of the world to the experience of peace and you will become magnets of peace. Slogan: Observe the fast of the stage of soul consciousness and attitudes will be transformed. #english #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday
- BK murli today in Hindi 10 June 2018 - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - madhuban - 10-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 25-05-83 मधुबन ब्रह्मा बाप की बच्चों से एक आशा आज बापदादा सर्व बच्चों की सेवा का, याद का और बाप समान बनने का चार्ट देख रहे थे। बापदादा द्वारा जो भी सर्व खजाने मिले, बाप को निराकार और आकार रूप से साकार में बुलाया और बाप-दादा भी बच्चो के स्नेह में बच्चों के बुलावे पर आये, मिलन मनाया, अब उसके फलस्वरूप सभी बच्चे कौन से फल बने - प्रत्यक्षफल बने? सीजन के फल बने? रूप वाले फल बने वा रूप रस वाले फल बने? डायेरक्ट पालना के अर्थात् पेड़ के पके हुए फल बने वा कच्चे फलों को कोई एक दो विशेषता के मसालों के आधार पर स्वयं को रंग रूप में लाया है वा अब तक भी कच्चे फल हैं? यह चार्ट बच्चों का देख रहे थे। संगमयुग की विशेषता प्रमाण, प्रत्यक्ष फल के समय प्रमाण, हर सबजेक्ट में, हर कदम में, कर्म में प्रत्यक्षफल देने वाले, प्रत्यक्षफल खाने वाले बाप की पालना के पके हुए रंग, रूप, रस तीनों से सम्पन्न अमूल्य फल होना चाहिए। अभी अपने आप से पूछो - मैं कौन? सदा संग रहने का रंग सदा ब्रह्मा बाप समान बाप को प्रत्यक्ष करने का रूप, सदा सर्व प्राप्तियों का रस - ऐसा बाप समान बने हैं? आजकल ब्रह्मा बाप ब्राह्मण बच्चों की समान सम्पन्नता को विशेष देखते रहते हैं। सारा समय हर एक विशेष बच्चे का चित्र और चरित्र दोनों सामने रख देखते रहते हैं कि कहाँ तक सम्पन्न बने हैं! माला के मणके कौन और कितने अपने नम्बर पर सेट हो गये हैं! उसी हिसाब से रिजल्ट को देख विशेष ब्रह्मा बाप बोले - ब्राह्मण आत्मा अर्थात् हर कर्म में बापदादा को प्रत्यक्ष करने वाली। कर्म की कलम से हर आत्मा के दिल पर, बुद्धि पर, बाप का चित्र वा स्वरूप खींचने वाले रूहानी चित्रकार बने हो ना! अभी ब्रह्मा बाप की, इस सीजन के रिज़ल्ट में बच्चों के प्रति एक आशा है। क्या आशा होगी? बाप की सदा यही आशा रहती कि हर बच्चा अपने कर्मो के दर्पण द्वारा बाप का साक्षात्कार करावे अर्थात् हर कदम में फालो फादर कर बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बन कर्मयोगी का पार्ट बजावे। यह आशा पूर्ण करना मुश्किल है वा सहज है? ब्रह्मा बाप तो सदा आदि से "तुरन्त दान महापुण्य" इसी संस्कार को साकार रूप में लाने वाले रहे ना। करेंगे, सोचेंगे, प्लैन बनायेंगे, यह संस्कार कभी साकार रूप में देखे? अभी-अभी करने का महामंत्र हर संकल्प और कर्म में देखा ना! उसी संस्कार प्रमाण बच्चों से भी क्या आशा रखेंगे? समान बनने की आशा रखेंगे ना? सबसे पहले बापदादा मधुबन वालों को आगे रखते हैं। हो भी आगे ना। सबसे अच्छे ते अच्छे सैम्पल कहाँ देखते हैं सभी? सबसे बड़े ते बड़ा शोकेस मधुबन है ना। देश-विदेश से सब अनुभव करने के लिए मधुबन में आते हैं ना। तो मधुबन सबसे बड़ा शोकेस है। ऐसे शोकेस में रखने वाले शोपीस कितने अमूल्य होंगे। सिर्फ बापदादा से मिलने के लिए नहीं आते हैं लेकिन परिवार का प्रत्यक्ष रूप भी देखने आते हैं। वह रूप दिखाने वाले कौन? परिवार का प्रत्यक्ष सैम्पल, कर्मयोगी का प्रत्यक्ष सैम्पल, अथक सेवाधारी का प्रत्यक्ष सैम्पल, वरदान भूमि के वरदानी स्वरूप का प्रत्यक्ष सैम्पल कौन हैं? मधुबन निवासी हो ना!भागवत का महात्तम सुनने का बड़ा महत्व होता है। सारे भागवत का इतना नहीं होता। तो चरित्र भूमि का महात्तम मधुबन वाले हैं ना। अपने महत्व को तो याद रखते हो ना। मधुबन निवासियों को याद स्वरूप बनने में मेहनत है वा सहज है? मधुबन है ही प्रजा और राजा दोनों आत्माओं को वरदान देने वाला।आजकल तो प्रजा आत्मायें भी अपना वरदान का हक लेकर जा रहीं हैं। जब प्रजा भी वरदान ले रही है तो वरदान भूमि में रहने वाले कितने वरदानों से सम्पन्न आत्मायें होंगी। अभी के समय प्रमाण सभी प्रकार की प्रजा अपना अधिकार लेने के लिए चारों ओर आने शुरू हो गई है। चारों ओर सहयोगी और सम्पर्क वाले वृद्धि को पा रहे हैं। प्रजा की सीजन शुरू हो गई है। तो राजे तो तैयार हो ना वा राजाओं का छत्र कब फिट होता है कब नहीं होता। तख्तनशीन ही ताजधारी बन सकते हैं। तख्तनशीन नहीं तो ताज भी सेट नहीं हो सकता। इसलिए छोटी-छोटी बातों में अपसेट होते रहते। यह (अपसेट होना) निशानी है तख्तनशीन अर्थात् तख्त पर सेट न होने की। तख्तनशीन आत्मा को व्यक्ति तो क्या लेकिन प्रकृति भी अपसेट नहीं कर सकती। माया का तो नाम निशान ही नहीं। तो ऐसे तख्तनशीन ताजधारी वरदानी आत्मायें हो ना। समझा - मधुबन के ब्राह्मणों के महात्तम का महत्व। अच्छा - आज तो मधुबन निवासियों का टर्न है। बाकी सब गैलरी में बैठे हैं। गैलरी भी अच्छी मिली है ना। अच्छा।आदि रत्न आदि स्थिति में आ गये ना। मध्य भूल गया ना। डालियाँ वगैरा सब छूट गई ना। आदि रत्न सभी उड़ते पंछी बनकर जा रहे हो ना। सोने हिरण के पीछे भी नहीं जाना। किसी भी तरह की आकर्षण वश नीचे नहीं आना। चाहे किसी भी प्रकार के सरकमस्टांस बुद्धि रूपी पाँव को हिलाने आवें लेकिन सदा अचल अडोल, नष्टोमोहा और निर्माण रहना तभी उड़ते पंछी बन उड़ते और उड़ाते रहेंगे। सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे। न किसी व्यक्ति के, न किसी हद के प्राप्ति के प्यारे बनना। ज्ञानी तू आत्मा के आगे यह हद की प्राप्तियाँ ही सोने हिरण के रूप में आती हैं इसलिए हे आदि रत्नों, आदि पिता समान सदा निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी रहना। समझा। अच्छा-ऐसे हर कर्म में बाप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले, पुण्य आत्मायें, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, विश्व के आगे चित्रकार बन बाप का चित्र दिखाने वाले - ऐसे ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।सभी महारथियों ने सेवा के जो प्लैन्स बनाये हैं उसमें भी विशेष यूथ का बनाया है ना। यूथ वा युवा वर्ग की सेवा के पहले जब युवा वर्ग गवर्मेंन्ट के आगे प्रत्यक्ष होने का संकल्प रख आगे बढ़ रहा है तो मैदान में आने से पहले एक बात सदा ध्यान में रहे कि बोलना कम है, करना ज्यादा है। मुख द्वारा बताना नहीं है लेकिन दिखाना है। कर्म का भाषण स्टेज पर करें। मुख का भाषण करना तो नेताओं से सीखना हो तो सीखो। लेकिन रूहानी युवा वर्ग सिर्फ मुख से भाषण करने वाले नहीं लेकिन उनके नयन, मस्तक, उनके कर्म भाषण करने के निमित्त बन जाऍ। कर्म का भाषण कोई नहीं कर सकता है। मुख का भाषण अनेक कर सकते । कर्म बाप को प्रत्यक्ष कर सकता है। कर्म रूहानियत को सिद्ध कर सकता है। दूसरी बात - युवा वर्ग सदा सफलता के लिए अपने पास एक रूहानी तावीज रखे। वह कौन सा? रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। यह रिगार्ड का रिकार्ड सफलता का अविनाशी रिकार्ड हो जायेगा। युवा वर्ग के लिए सदा मुख पर एक ही सफलता का मंत्र हो - "पहले आप" - यह महामंत्र मन से पक्का रहे। सिर्फ मुख के बोल हों कि पहले आप और अन्दर में रहे कि पहले मैं, ऐसे नहीं। ऐसे भी कई चतुर होते हैं मुख से कहते पहले आप, लेकिन अन्दर भावना पहले मैं की रहती है। यथार्थ रूप से पहलें मैं को मिटाकर दूसरे को आगे बढ़ाना सो अपना बढ़ना समझते हुए इस महामंत्र को आगे बढ़ाते सफलता को पाते रहेंगे। समझा। यह मंत्र और तावीज सदा साथ रहा तो प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा।प्लैन्स तो बहुत अच्छे हैं लेकिन प्लेन बुद्धि बन प्लैन प्रैक्टिकल में लाओ। सेवा भले करो लेकिन ज्ञान को जरूर प्रत्यक्ष करो। सिर्फ शान्ति, शान्ति तो विश्व में भी सब कह रहे हैं। अशान्ति में शान्ति मिक्स कर देते हैं। बाहर से तो सब यही नारे लगा रहे हैं कि शान्ति हो। अशान्ति वाले भी नारा शान्ति का ही लगा रहे हैं। शान्ति तो चाहिए लेकिन जब अपनी स्टेज पर प्रोग्राम करते हो तो अपनी अथॉरिटी से बोलो! वायुमण्डल को देखकर नहीं। वह तो बहुत समय किया और उस समय के प्रमाण यही ठीक रहा। लेकिन अब जबकि धरती बन गई है तो ज्ञान का बीज डालो। टॉपिक भी ऐसी हो। तुम लोग टॉपिक इसलिए चेन्ज करते हो कि दुनिया वाले इन्ट्रेस्ट लें। लेकिन आवे ही इन्ट्रेस्ट वाले। कितने मेले, कितनी कान्फ्रेन्स, कितने सेमीनार आदि किये हैं। इतने वर्ष तो लोगों के आधार पर टॉपिक्स बनाये। आखिर गुप्त वेष में कितना रहेंगे! अब तो प्रत्यक्ष हो जाओ। वह समय अनुसार जो हुआ वह तो हुआ ही। लेकिन अभी अपनी स्टेज पर परमात्म बॉम तो लगाओ। उन्हों का दिमाग तो घूमे कि यह क्या कहते हैं! नहीं तो सिर्फ कहते कि बहुत अच्छी बातें बोलीं। तो अच्छी, अच्छी ही रही और वह वहाँ के वहाँ रह जाते। कुछ हलचल तो मचाओ ना। हरेक को अपना हक होता है। प्वाइन्टस भी दो तो अथॉरिटी और स्नेह से दो तो कोई कुछ नहीं कर सकता। ऐसे तो कई स्थानों पर अच्छा भी मानते हैं कि अपनी बात को स्पष्ट करने में बहुत शक्तिशाली हैं। ढंग कैसा हो वह तो देखना पड़ेगा। लेकिन सिर्फ अथॉरिटी नहीं, स्नेह और अथॉरिटी दोनों साथ-साथ चाहिए। बापदादा सैदव कहते हैं कि तीर भी लगाओ साथ-साथ मालिश भी करो। रिगार्ड भी अच्छी तरह से दो लेकिन अपनी सत्यता को भी सिद्ध करो। भगवानुवाच कहते हो ना! अपना थोड़े ही कहते हो। बिगड़ने वाले तो चित्रों से भी बिगड़ते हैं फिर क्या करते हो? चित्र तो नहीं निकालते हो ना! साकार रूप में तो फलक से किसी के भी आगे अथॉरिटी से बोलने का प्रभाव क्या निकला। कब झगड़ा हुआ क्या? यह तरीका भाषण का भी सीखे ना। ज्ञान की रीति कैसे बोलना है - स्टडी की ना। अब फिर यह स्टडी करो। दुनिया के हिसाब से अपने को बदला, भाषा को चेन्ज किया ना। तो जब दुनिया के रूप में चेन्ज कर सके तो यथार्थ रूप से क्या नहीं कर सकते। कब तक ऐसे चलेंगे? इसमें तो खुश हैं कि यह जो कहते हैं बहुत अच्छा है। आखिर दुनिया में यह प्रसिद्ध हो कि -‘यही यथार्थ ज्ञान है'। इससे ही गति सद्गति होगी। इस ज्ञान बिना गति सद्गति नहीं। अभी तो देखो योग शिविर करके जाते हैं। बाहर जाते फिर वही की वही बात कहेंगे कि परमात्मा सर्वव्यापी है। यहाँ तो कहते योग बहुत अच्छा लगा, फाउण्डेशन नहीं बदलता। आपके शक्ति के प्रभाव से परिवर्तन हो जाते हैं। लेकिन स्वयं शक्तिशाली नहीं बनते। जो हुआ है यह भी जरूरी था। जो धरनी कलराठी बन गई थी वह धरनी को हल चलाके योग्य धरनी बनाने का यही साधन यथार्थ था। लेकिन आखिर तो शक्तियाँ अपने शक्ति स्वरूप में भी आयेंगी ना! स्नेह के रूप में आयें, लेकिन यह शक्तियाँ हैं, इनका एक-एक बोल हृदय को परिवर्तन करने वाला है, बुद्धि बदल जाये, `ना' से ‘`हाँ' में आ जायें। यह रूप भी प्रत्यक्ष होगा ना। अभी उसको प्रत्यक्ष करो। उसका प्लैन बनाओ। आते हैं खुश होकर जाते हैं। वो तो जिन्हों को इतना आराम, इतना स्नेह, खातिरी मिलेगी तो जरूर सन्तुष्ट होकर जाते हैं। लेकिन शक्ति रूप बनकर नहीं जाते। ब्रह्मा बाप कहते थे कि सब प्रदर्शनियों में प्रश्नावली लगाओ। उसमें कौन सी बातें थी? तीर समान बातें थी ना! फार्म भराने के लिए कहते थे। यह राइट है वा रांग, हाँ वा ना लिखो। फार्म भराते थे ना। तो क्या योजनायें रहीं? एक है ऐसे ही भरवाना। जल्दी-जल्दी में रांग वा राइट कर दिया, लेकिन समझाकर भराओ। तो उसी अनुसार यथार्थ फार्म भरेंगे। सिद्ध तो करना ही पड़ेगा। वह आपस में प्लैन बनाओ। जो अथॉरिटी भी रहे और स्नेह भी रहे। रिगार्ड भी रहे और सत्यता भी प्रसिद्ध हो। ऐसे किसकी इन्सल्ट थोड़ेही करेंगे? यह भी लक्ष्य है कि हमारी ही ब्रान्चेज हैं, हमारे से ही निकले हुए हैं। उन्हों को रिगार्ड देना तो अपना कर्तव्य है। छोटों को प्यार देना यह तो परम्परा ही है। अच्छा। वरदान:- दया भाव को धारण कर सर्व की समस्याओं को समाप्त करने वाले मास्टर दाता भव l जिन आत्माओं के भी सम्पर्क में आते हो, चाहे कोई कैसे भी संस्कार वाला हो, आपोजीशन करने वाला हो, स्वभाव के टक्कर खाने वाला हो, क्रोधी हो, कितना भी विरोधी हो, आपकी दया भावना उसके अनेक जन्मों के कड़े हिसाब-किताब को सेकण्ड में समाप्त कर देगी। आप सिर्फ अपने अनादि आदि दाता पन के संस्कारों को इमर्ज कर दया भाव को धारण कर लो तो ब्राह्मण परिवार की सर्व समस्यायें समाप्त हो जायेंगी। स्लोगन:- अपने रहमदिल स्वरूप वा दृष्टि से हर आत्मा को परिवर्तन करना ही पुण्यात्मा बनना है। #Hindi #bkmurlitoday #brahmakumaris
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