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  • BK murli today in Hindi 27 July 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Bapdada - madhuban - 27-07-2018 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन'' मीठे बच्चे - इस ज्ञान में गम्भीरता का गुण धारण करना बहुत जरूरी है, कभी भी अपना अभिमान नहीं आना चाहिए, माताओं का रिगार्ड रखो'' प्रश्न: सभी बच्चों के प्रति बाप की आश क्या है? वह आश पूरी कब कर सकेंगे? उत्तर: बाप की आश है - बच्चे ऐसा पुरुषार्थ करें जो नर से नारायण बनकर दिखायें। इसमें ही बाप का शो होगा। ऐसा शो निकालो जो बाप का भी गायन हो तो बच्चों का भी गायन हो। बाबा कहे - बच्चे, अगर तुम नर से नारायण बनेंगे तो तुम्हारा भी मन्दिर बनेगा और हमारा भी बनेगा। ऐसा पूज्य बनने लिए फॉलो फादर। अपने आपसे प्रण करो - हम पूरा ही फॉलो करेंगे। गीत:- जिस दिन से मिले हम तुम....... ओम् शान्ति।बच्चे महसूस करते हैं - बच्चों को भासना आती है। तो जरूर हम नई दुनिया के लिए सब नई बातें सुनते हैं। यह हमारी प्रीत नई लगती है। और कोई की भी प्रीत सम्मुख परमपिता परमात्मा साथ होती ही नहीं। तो यह नई बात है ना। तुम जानते हो बाबा पतित-पावन है। पुरानी दुनिया को पतित, नई दुनिया को पावन कहेंगे। तो तुम्हारी प्रीत नई दुनिया से लगेगी। तुम यह जानते हो हमारी प्रीत अब नई दुनिया स्वर्ग से है। उसको शिवालय कहा जाता है, इनको वेश्यालय कहा जाता है। बरोबर यहाँ विकारी मनुष्य हैं। सतयुग में निर्विकारी हैं तो शिवालय कहेंगे ना। शिवबाबा ही ऐसी निर्विकारी दुनिया स्थापन करते हैं। और जानते हो बरोबर इस पुरानी दुनिया में देवताओं के चित्र हैं जो देवतायें नई दुनिया में रहने वाले हैं। भारतवासी तो सब भूल गये वह तो हिन्दुस्तान कह देते हैं। हिन्दुस्तान हमारा प्यारा, हाँ, जरूर प्यारा था। परन्तु वास्तव में हिन्दुस्तान नाम है नहीं। भारतखण्ड कहा जाता है। तो बच्चे जानते हैं बरोबर यह नई बातें लगती हैं। ऐसी बातें कब नहीं सुनी। यह ज्ञान सारी दुनिया से निराला है। भारतवासियों के मन्दिर भी बहुत हैं। क्रिश्चियन की एक ही चर्च होगी। फिर करके अलग-अलग चर्च बनायेंगे। सतयुग में तो कोई मन्दिर नहीं होता क्योंकि चैतन्य देवताओं का राज्य चलता है। देवतायें शिवालय नई दुनिया में राज्य करते थे। तुम जानते हो अब हम नई दुनिया में जा रहे हैं। यह भी ख्याल कभी नहीं करना कि बाबा ने यह नया मकान बनाया है। वास्तव में पुरानी दुनिया में यह भी पुराना ही है। हमारी प्रीत अब नई दुनिया से लगी है। आत्माओं की परमात्मा साथ प्रीत लगी है, जो सम्मुख बैठे हैं। मनुष्य समझते हैं - ब्रह्माकुमार-कुमारियों की ब्रह्मा से प्रीत लगी है। तुम जानते हो हमारी प्रीत एक शिवबाबा से है। दूसरा न कोई। भल तुम्हारा नाम बी.के. है परन्तु ब्रह्मा से प्रीत नहीं है। यह ब्रह्मा तो देहधारी है ना। जन्म-मरण में आते हैं। तुमको देह से संबंध नहीं जोड़ना है। वह गुरू लोग तो अपना नाम रख देते हैं - सच्चिदानंद। परन्तु सत-चित-आनंद स्वरूप तो एक परमात्मा को ही कहा जाता है। आत्मा सत-चित-आनंद रूप, शान्त रूप, ज्ञान रूप थी। अब तुम फिर से इस संगम पर बनते हो। जैसे बाप की महिमा है ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर........ तुम भी सत-चित-आनंद रूप हो। बीज और झाड़ को याद करने से सारा ज्ञान आ जाता है। बरोबर 5 युग हैं। अभी है संगमयुग। इस संगमयुग को दुनिया नहीं जानती। करके मालूम भी हो परन्तु डिटेल में नहीं जानती कि सतयुग में कौन राज्य करते थे? कैसे राज्य लिया? तुम अब राज्य ले रहे हो। पुनर्जन्म लेते चक्र में तो जरूर आना पड़े। सदैव स्वर्ग में कोई रह न सके। स्वर्ग और नर्क की पहचान अभी मिली है। अभी कलियुग है फिर सतयुग जरूर होगा। तो जरूर संगम पर ही परमपिता परमात्मा आया होगा। उनकी महिमा ही अलग है। ऐसे थोड़ेही कि एक की महिमा दूसरे कोई की हो सकती। हर एक का कर्तव्य अपना, संस्कार अपने, एक न मिले दूसरे से। हर एक आत्मा में अपना-अपना पार्ट है। तुम बच्चों को समझाया गया है - आत्मा 84 जन्म लेती है। तुम नई बातें सुनते हो। दुनिया समझती है गीता का भगवान् कृष्ण था। अब बाप कहते हैं कृष्ण गीता का भगवान् नहीं था। भगवानुवाच - मैं राजयोग सिखाए तुमको राजाओं का राजा अर्थात् नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनाता हूँ। बाबा पूछते भी हैं तुम सूर्यवंशी नारायण बनेंगे या चन्द्रवंशी राम बनेंगे? कहते हैं बाबा एम ऑब्जेक्ट तो सूर्यवंशी बनने की हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। बैरिस्टर कोई बहुत अच्छा, कोई हल्का होता है। कोई सर्जन तो लाखों रूपया कमाते, कोई बहुत थोड़ा कमाते। पढ़ाई पर मदार रहता है। तुम्हारे में भी कोई तो बहुत कमाई वाले बनेंगे, तख्त पर बैठेंगे। यह बड़ा बेहद का ईश्वरीय कॉलेज है। उन कॉलेजों में हद होती है। इतने पास होंगे, यह है बेहद का कालेज। तो तुम नई बातें सुनते हो। अभी तुम समझ रहे हो - तुम अबलाओं को बल देने वाला वह परमपिता परमात्मा ही है। जानते हो परमात्मा बाप से हमको कितना बल मिलता है। हम वारियर्स (सेना) हैं। युद्ध के मैदान में खड़े हैं। नई बात है ना। गीता में पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई दिखाई है परन्तु लड़ाई की तो बात है नहीं। हर एक बात नई है। कृष्ण भगवान् नहीं, वह तो नई दुनिया का अल्फ़ है। अल्फ़ से लेकर सब नई बातें हैं। नई दुनिया का अल्फ़ है लक्ष्मी-नारायण फिर उनके पीछे उनके बच्चे। तो लक्ष्मी-नारायण हैं सतयुगी मनुष्य सृष्टि के अल्फ़। यहाँ मनुष्य सृष्टि का रचयिता अल्फ़ ब्रह्मा है। पहले-पहले है परमपिता परमात्मा अल्फ़। पीछे ब्रह्मा को अल्फ़ बनाते हैं। फिर लक्ष्मी-नारायण को अल्फ़ बनाते हैं। यहाँ तुम ब्राह्मण कुल के हो। ब्राह्मण कुल का बड़ा ब्रह्मा ही गाया जाता है। ब्राह्मण तो भल वह भी हैं परन्तु ब्रह्माकुमार-कुमारियां नाम कभी नहीं सुना है। गीता में भी यह नाम नहीं है। तो नई बात है ना। भारत को हिन्दुस्तान कहने कारण हिन्दु धर्म कह देते हैं। अपने प्राचीन धर्म की पहचान नहीं है। जैसेकि देवता धर्म है ही नहीं। अपने धर्म को न जानने कारण कहते हैं सब धर्म एक ही हैं। भल सब धर्म यहाँ रह सकते हैं, जिसको चाहे सो रहे, फ्री है। सभी धर्मों को मान देते हैं। कोई भी धर्म वाला आकर रह सकता है। बाहर में देखो वह दूसरे धर्म वालों को निकालते रहते हैं। सीलॉन, बर्मा आदि से इन्डियन को निकालते रहते हैं। भारत तो वास्तव में प्राचीन देवी-देवता धर्म वाला है। परन्तु वह तो कहते कोई भी आकर रहे। सब इकट्ठे तो रह न सकें। जहाँ-तहाँ धर्मों की बहुत खिटपिट है। कहते हैं भारत सभी धर्मों को एशलम देगा, इसलिए भारत की महिमा है। अब तुम सभी नई बातें सुनते हो। इस समय भारत में देवी-देवता धर्म का कोई है नहीं। हम उस नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। शिवबाबा स्वर्ग रचते हैं। यूँ तो ब्रह्मा की सन्तान सब हैं परन्तु ब्राह्मण ख़ास गाये हुए हैं। उनको कब रचा? जरूर संगम पर रचा। वर्ण भी अच्छी रीति दिखाने हैं। हम ब्राह्मण चोटी फिर देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। तो यह ज्ञान बड़ा गुह्य रमणीक है। मुश्किल किसकी बुद्धि में बैठता है।तुम बच्चे इस ज्ञान को अच्छी रीति धारण करो, कभी भी ब्राह्मणी से रूठना नहीं। रूठ करके पढ़ाई को नहीं छोड़ना है। नहीं तो रसातल में चले जायेंगे। बाप आया है सुनाने तो सुनना चाहिए। भक्ति मार्ग में कितना नियम होता है गीता सुनने का, वह पूरे नेम से सुनते हैं। मन्दिर में भी नेम पूर्वक जाते हैं। रोज़ पक्का नेम रखते हैं। तुम्हारा नेम तो बड़ा कड़ा है। एक घड़ी आधी घड़ी........ फिर बढ़ाते रहना है। बाबा को याद करने से बुद्धि का ताला खुलेगा। विचार सागर मंथन कोई शिवबाबा नहीं करते हैं, उनको दरकार ही नहीं विचार सागर मंथन की। तुमको दरकार रहती है - किसको कैसे समझायें? तो कभी भी रूठना नहीं चाहिए। एक दो का रिगॉर्ड रखना चाहिए। कई बच्चों को महारथियों का रिगॉर्ड रखना आता नहीं। ब्राह्मणियां जो हैं वह फिर भी मुख्य हैं। 10-12 को आपसमान तो बनाती हैं ना। तो उनका रिगॉर्ड रखना पड़े। तुम जैसेकि शिवबाबा के एजेन्ट हो। सभी एजेन्ट्स एक जैसे तो नहीं होते हैं। नम्बरवार होते हैं फिर भी एजेन्ट्स तो हैं ना। कोई तो बहुत अच्छी रीति धारणा करते हैं। रात-दिन सर्विस में तत्पर रहते हैं। शिवबाबा भी यहाँ सर्विस पर आये हैं ना। बाबा कहते हैं मैं डबल काम करता हूँ। भक्तों की भी सर्विस करता हूँ। तुम जानते हो सारी दुनिया में साक्षात्कार कराने का कर्तव्य कौन करते हैं? भल ड्रामा में सब पहले से नूँध है। उसी समय साक्षात्कार होता है। समझते हैं गॉड फादर ने दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार कराया, जहाँ-तहाँ साक्षात्कार होते हैं। यह साक्षात्कार भी ड्रामा में नूँध है, इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए। यह हैं नई बातें। सृष्टि का चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। कोई-कोई का यह स्वदर्शन चक्र अच्छा तीखा फिरता है, कोई का कम। तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो। सर्विस के लिए बुद्धि चलती रहेगी नम्बरवार। कोई का तो स्वदर्शन चक्र फिरता ही नहीं। हवा तो लगती है परन्तु कोई का बहुत तीखा फिरता है, कोई का बहुत कम फिरता है। कोई का तो बिल्कुल फिरता ही नहीं। स्वदर्शन चक्र नहीं फिरेगा तो बाकी क्या पद पायेंगे? तो यह नई बात हुई ना। बाप समझाते रहते हैं वर्सा लेना है तो अभी लो। नहीं तो फिर पछतायेंगे, रोयेंगे। टीचर का शो करना है ना। यह कितना बड़ा कॉलेज है। अच्छी रीति पढ़ते हैं तो पद भी अच्छा पाते हैं। प्रण करना चाहिए - हम पूरा फॉलो करेंगे। फॉलो मदर-फादर। ऐसे भी नहीं है बैरिस्टर का बच्चा बैरिस्टर ही बनेगा। नहीं। कोई डाक्टर बनेगा, कोई इन्जीनियर, कोई तो शैतान डाकू भी निकल पड़ते हैं। बाप कहते हैं मेरा शो निकालने तुम नर से नारायण बनकर दिखाओ। मेरा भी गायन होगा, तुम्हारा भी गायन होगा। तुम भी देवता बनेंगे। हमारा मन्दिर बनेगा तो तुम्हारा भी बनेगा। मुख्य मन्दिर होना चाहिए एक शिवबाबा का। फिर उनके साथ ब्रह्मा और बच्चे। देलवाड़ा मन्दिर में वैराइटी है ना। यही बड़े ते बड़ा यादगार है। तुम चैतन्य में बैठे हो। शक्ति की शेर पर सवारी, महारथी की हाथी पर सवारी दिखाते हैं। गज को ग्राह ने हप किया। बाप की याद नहीं रहती है तो माया ग्राह हप कर लेता है। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी माया ग्राह खा लेती है। इसमें बड़ी गम्भीरता चाहिए और अभिमान नहीं आना चाहिए - मैं यह करता हूँ। जितना हो सके हर बात में माताओं को आगे रखना है। माता का रिगॉर्ड रखना है। सब चाबी माता के हाथ में होनी चाहिए। माता द्वारा समाचार आना चाहिए। हाँ, कहाँ-कहाँ कन्या अथवा माता से कुमार होशियार होते हैं। उनको फिर राय लिखनी है। हुक्म सरकार का राज्य रानी का है। पहले रानी, फिर राजा। पहले माता गुरू चाहिए। पुरुष को गुरू बनने का कायदा नहीं। माता को आगे करना है। लॉ ऐसे कहता है। भल कहाँ पुरुष भी निमित्त बनते हैं, जो माताओं को ज्ञान में ले आते हैं परन्तु मैजॉरिटी माताओं की है। अहंकार नहीं होना चाहिए - मैं सब जानता हूँ, मैं होशियार हूँ। होशियार माताओं को बनाना है। माता द्वारा सेन्टर आदि चलाना है। अन्त में सन्यासी आदि को भी माताओं के ही बाण लगने हैं। तो कायदेसिर चलना है। परमपिता परमात्मा की निंदा करने वाले ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। बाबा सावधान सबको करते हैं। बहुत मीठा बनना है। कोई की बात पसन्द नहीं आती है तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो। क्रोध बहुत नुकसान करता है। कोई-कोई लिखते हैं - काम से क्रोध को क्यों नहीं तीखा रखें। परन्तु नहीं। काम तो आदि-मध्य-अन्त दु:ख को प्राप्त कराता है। पतित पावन एक ही बाप गाया हुआ है। सन्यासी पावन नहीं बना सकते। तो तुम नई बातें सुनते हो ऊंच ते ऊंच भगवान् बैठ तुमको पढ़ाते हैं। उनको ही श्री श्री कहा जाता है। फिर मनुष्य सृष्टि में श्री लक्ष्मी, श्री नारायण, श्री राम, श्री सीता को कहते हैं। अच्छा, उन्हों को ऐसा श्रेष्ठ किसने बनाया? श्री श्री शिवबाबा ने। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1. आपस में एकमत होकर रहना है। एक दो को रिगॉर्ड देना है। रूठकर कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है। 2. क्रोध बहुत नुकसान-कारक है इसलिए जो बात पसन्द नहीं आती है, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है। क्रोध नहीं करना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। वरदान: बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त भव l बाह्यमुखता अर्थात् व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और संबंध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के व्यर्थ चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से दूर.....यह बाह्यमुखता के रस भी बाहर से बहुत आकर्षित करते हैं, इसलिए पहले इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं, जब इन बंधनों से मुक्त बनो तब कहेंगे जीवनमुक्त। स्लोगन: जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त साक्षी व रहमदिल है वही तपस्वी है। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi

  • Question Answers on God (Shiv Baba)

    Questions on God, his role and nature were asked by Deepayan from India. Here is the explanation given via email. Good Morning Deepayan Your letter is recieved and read. To get the perfect answer, you have to understand MANY things. What you need to know is: 1. Who is called as GOD? 2. What is our 'relationship' with God? 3. What does God create and when does he come in world? 4. Does God control the behavior of animals and human beings? ANSWERS: 1. God is the supreme soul, the creator of heaven the golden age. God is the highest authority, the supreme truth that exist without a reason. It is a point of light and energy - a tiny point of spiritual light and might (energy). God does not have a body or a form like us. 2. 'Father'. God is the father (creator) of all human souls (us). Just as a father gives inheritance (property) to his children - so God gives his property of Peace, Purity, Bliss, Love and Powers to us. God is the ocean of 7 virtues (knowledge, love, purity, peace, happiness, bliss, power). He gives us all this virtues as an inheritance. We have and can experience every direct relationship with God. Shiv Baba as our father (we get inheritance of happiness), a mother (we get unconditional love), a teacher (we get knowledge of entire creation), a friend (we can share any secret), a guide (he takes us back to home of peace) 3. God comes at the end of kaliyug (old world) and creates NEW WORLD. This is a detail explanation. Visit History page. 4. Does is one - ever detached from world. He DOES NOT interfior with anyone's part in world drama. He is world benefector. Only comes 1 time in entire cycle - at the very end, when all are in sorrow. He frees us from sorrow and takes back home, our sweet silence home. Visit World Drama Cycle page to learn more. Animals have this nature of killing other animals to live - this is NOT given or decided by God. It is a nature of animal souls. We human souls are all different in our nature. Some are extremely wise and good, while some are not wise or not good. This all is results of our own Karma. Hope you have received the understanding that is needed to start the journey. --- Useful Links --- About God - Who is Shiv Baba 7 days RajYog course About Us - Introduction of Yagya ~~ Our View on Religions of World ~~ This letter is for you. Clarify all you doubts. 1. All religions are created to show a better path to humanity. No religion is bad. Any religion does not propogate violence. 2. There may be kings in past who destroyed Hindu temples. That DOES NOT mean that Islam or Christainty is wrong. 3. Everything happens arroding to DRAMA. Bharat (India) is most ancient land. Richest and diverse. Bharat is the donor of wealth and wisdom. Hence Islam, Buddhist and Christain religions were sustained by Bharat's wealth and wisdom. This is in World Drama. 4. Now you may see, that christains are donating wealth to India. There are ONLY returning what they received in past. This is all done by God's inspiration. 5. In near future, Bharat will again become the most important land, the richest. How?? When they will know that their Godfather (Shiv baba) has come in Bharat (ancient land) then they all will support to make Bharat the golden age (again). Source: 'Revelations' from Gyan Murli Accha In Godly World Service 00

  • आज की मुरली 2 Dec 2018 BK murli in Hindi

    BrahmaKumaris murli today in Hindi Aaj ki gyan murli Madhuban 02-12-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 05-03-84 मधुबन शान्ति की शक्ति का महत्व शान्ति के सागर बाप अपने शान्ति के अवतार बच्चों से मिलने आये हैं। आज के संसार में सबसे आवश्यक चीज़ शान्ति है। उसी शान्ति के दाता तुम बच्चे हो। कितना भी कोई विनाशी धन, विनाशी साधन द्वारा शान्ति लेने चाहें तो सच्ची अविनाशी शान्ति मिल नहीं सकती। आज का संसार धनवान होते, सुख के साधन होते फिर भी अविनाशी सदाकाल की शान्ति के भिखारी हैं। ऐसे शान्ति की भिखारी आत्माओं को आप मास्टर शान्ति दाता, शान्ति के भण्डार, शान्ति स्वरूप आत्मायें अंचली दे सर्व के शान्ति की प्यास, शान्ति की इच्छा पूर्ण करो। बापदादा को अशान्त बच्चों को देख रहम आता है। इतना प्रयत्न कर साइन्स की शक्ति से कहाँ से कहाँ पहुँच रहे हैं, क्या-क्या बना रहे हैं, दिन को रात भी बना सकते, रात को दिन भी बना सकते लेकिन अपनी आत्मा का स्वधर्म शान्ति, उसको प्राप्त नहीं कर सकते। जितना ही शान्ति के पीछे भाग-दौड करते हैं उतना ही अल्पकाल की शान्ति के बाद परिणाम अशान्ति ही मिलती है। अविनाशी शान्ति सर्व आत्माओं का ईश्वरीय जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन जन्मसिद्ध अधिकार के पीछे कितनी मेहनत करते हैं। सेकण्ड की प्राप्ति है लेकिन सेकण्ड की प्राप्ति के पीछे पूरा परिचय न होने कारण कितने धक्के खाते हैं, पुकारते हैं, चिल्लाते हैं, परेशान होते हैं। ऐसे शान्ति के पीछे भटकने वाले अपने आत्मिक रूप के भाईयों को, भाई-भाई की दृष्टि दो। इसी दृष्टि से ही उन्हों की सृष्टि बदल जायेगी।आप सभी शान्ति के अवतार आत्मायें सदा शान्त स्वरूप स्थिति में रहते हो ना? अशान्ति को सदा के लिए विदाई दे दी है ना! अशान्ति की विदाई सेरीमनी कर ली है या अभी करनी है? जिसने अभी अशान्ति की विदाई सेरीमनी नहीं की है, अभी करनी है, वह यहाँ हैं? उनकी डेट फिक्स कर दें? जिसको अभी सेरीमनी करनी है, वह हाथ उठाओ। कभी स्वप्न में भी अशान्ति न आवे। स्वप्न भी शान्तिमय हो गये हैं ना! शान्ति दाता बाप है, शान्ति स्वरूप आप हो। धर्म भी शान्त, कर्म भी शान्त तो अशान्ति कहाँ से आयेगी। आप सबका कर्म क्या है? शान्ति देना। अभी भी आप सबके भक्त लोग आरती करते हैं तो क्या कहते हैं? शान्ति देवा। तो यह किसकी आरती करते हैं? आपकी या सिर्फ बाप की? शान्ति देवा बच्चे सदा शान्ति के महादानी, वरदानी आत्मायें हैं। शान्ति की किरणें विश्व में मास्टर ज्ञान सूर्य बन फैलाने वाले हैं, यही नशा है ना कि बाप के साथ-साथ हम भी मास्टर ज्ञान सूर्य हैं वा शान्ति की किरणें फैलाने वाले मास्टर सूर्य हैं।सेकण्ड में स्वधर्म का परिचय दे स्व स्वरूप में स्थित करा सकते हो ना? अपनी वृत्ति द्वारा, कौन-सी वृत्ति? इस आत्मा को भी अर्थात् हमारे इस भाई को भी बाप का वर्सा मिल जाए। इस शुभ वृत्ति वा इस शुभ भावना से अनेक आत्माओं को अनुभव करा सकते हो, क्यों? भावना का फल अवश्य मिलता है। आप सबको श्रेष्ठ भावना है, स्वार्थ रहित भावना है, रहम की भावना है, कल्याण की भावना है। ऐसी भावना का फल नहीं मिले, यह हो नहीं सकता। जब बीज शक्तिशाली है तो फल जरूर मिलता है। सिर्फ इस श्रेष्ठ भावना के बीज को सदा स्मृति का पानी देते रहो तो समर्थ फल, प्रत्यक्ष फल के रूप में अवश्य प्राप्त होना ही है। क्वेश्चन नहीं, होगा या नहीं होगा। सदा समर्थ स्मृति का पानी है अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना है तो विश्व शान्ति का प्रत्यक्षफल मिलना ही है। सर्व आत्माओं की जन्म-जन्म की आश बाप के साथ-साथ सभी बच्चे भी पूर्ण कर रहे हो और सर्व की हो जानी है।जैसे अभी अशान्ति के आवाज चारों ओर गूँज रहे हैं। तन-मन-धन-जन सब तरफ से अशान्ति अनुभव कर रहे हैं। भय सर्व प्राप्ति के साधनों को भी शान्ति के बजाए अशान्ति का अनुभव करा रहा है। आज की आत्मायें किसी न किसी भय के वशीभूत हैं। खा रहे हैं, चल रहे हैं, कमा रहे हैं, अल्पकाल की मौज भी मना रहे हैं लेकिन भय के साथ। ना मालूम कल क्या होगा। तो जहाँ भय का सिंहासन है, जब नेता ही भय की कुर्सी पर बैठे हैं तो प्रजा क्या होगी। जितने बड़े नेता उतने अंगरक्षक होंगे। क्यों? भय है ना। तो भय के सिंहसान पर अल्पकाल की मौज क्या होगी? शान्तिमय वा अशान्तिमय? बापदादा ने ऐसे भयभीत बच्चों को सदाकाल की सुखमय, शान्तिमय जीवन देने के लिए आप सभी बच्चों को शान्ति के अवतार के रूप में निमित्त बनाया है। शान्ति की शक्ति से बिना खर्चे कहाँ से कहाँ तक पहुँच सकते हो? इस लोक से भी परे। अपने स्वीट होम में कितना सहज पहुँचते हो! मेहनत लगती है? शान्ति की शक्ति से प्रकृतिजीत, मायाजीत कितना सहज बनते हो? किस द्वारा? आत्मिक शक्ति द्वारा। जब एटामिक और आत्मिक दोनों शक्तियों का मेल हो जायेगा। आत्मिक शक्ति से एटामिक शक्ति भी सतोप्रधान बुद्धि द्वारा सुख के कार्य में लगेगी तब दोनों शक्तियों के मिलन द्वारा शान्तिमय दुनिया इस भूमि पर प्रत्यक्ष होगी क्योंकि शान्ति, सुखमय स्वर्ग के राज्य में दोनों शक्तियाँ हैं। तो सतोप्रधान बुद्धि अर्थात् सदा श्रेष्ठ, सत्य कर्म करने वाली बुद्धि। सत अर्थात् अविनाशी भी है। हर कर्म अविनाशी बाप, अविनाशी आत्मा इस स्मृति से अविनाशी प्राप्ति वाला होगा इसलिए कहते हैं सत कर्म। तो ऐसे सदा के लिए शान्ति देने वाले, शान्ति के अवतार हो। समझा। अच्छा-ऐसे सदा सतोप्रधान स्थिति द्वारा, सत कर्म करने वाली आत्मायें, सदा अपने शक्तिशाली भावना द्वारा अनेक आत्माओं को शान्ति का फल देने वाली, सदा मास्टर दाता बन, शान्ति देवा बन शान्ति की किरणें विश्व में फैलाने वाली, ऐसे बाप के विशेष कार्य के सहयोगी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।लन्दन के नोबल विजेता वैज्ञानिक जोसिफसन बापदादा से मिल रहे हैं:-शान्ति की शक्ति के अनुभव को भी अनुभव करते हो? क्योंकि शान्ति की शक्ति सारे विश्व को शान्तिमय बनाने वाली है। आप भी शान्तिप्रिय आत्मा हो ना! शान्ति की शक्ति द्वारा साइन्स की शक्ति को भी यथार्थ रूप से कार्य में लगाने से विश्व का कल्याण करने के निमित्त बन सकते हो। साइन्स की शक्ति भी आवश्यक है लेकिन सिर्फ सतोप्रधान बुद्धि बनने से इसका यथार्थ रूप से प्रयोग कर सकते हैं। आज सिर्फ इसी नॉलेज की कमी है कि यथार्थ रीति से इसको कार्य में कैसे लगायें। यही साइन्स इस नॉलेज के आधार पर नई सृष्टि की स्थापना के निमित्त बनेंगी। लेकिन आज वह नॉलेज न होने कारण विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। तो अभी इसी साइन्स की शक्ति को साइलेन्स की शक्ति के आधार से बहुत ही अच्छे कार्य में लगाने के निमित्त बनो। इसमें भी नोबिल प्राइज लेंगे ना! क्योंकि आवश्यकता इसी कार्य की है। तो जब जिस कार्य की आवश्यकता है उसमें निमित्त बनने वाले को सभी श्रेष्ठ आत्मा की नज़र से देखेंगे। तो समझा क्या करना है! अभी साइन्स और साइलेन्स का कनेक्शन कैसा है और दोनों के कनेक्शन से कितनी सफलता हो सकती है, इसकी रिसर्च करो। रिसर्च की रूचि है ना! अभी यह करना। इतना बड़ा कार्य करना है। ऐसी दुनिया बनायेंगे ना। अच्छा-यू.के.ग्रुप:- सिकीलधे बच्चे सदा ही बाप से मिले हुए हैं। सदा बाप साथ है, यह अनुभव सदा रहता है ना? अगर बाप के साथ से थोड़ा भी किनारा किया तो माया की ऑख बड़ी तेज है। वह देख लेती है यह थोड़ा-सा किनारे हुआ है तो अपना बना लेती है, इसलिए किनारे कभी भी नहीं होना। सदा साथ। जब बापदादा स्वयं सदा साथ रहने की आफर कर रहे हैं तो साथ लेना चाहिए ना। ऐसा साथ सारे कल्प में कभी नहीं मिलेगा, जो बाप आकर कहे मेरे साथ रहो। ऐसा भाग्य सतयुग में भी नहीं होगा। सतयुग में भी आत्माओं के संग रहेंगे। सारे कल्प में बाप का साथ कितना समय मिलता है? बहुत थोड़ा समय है ना। तो थोड़े समय में इतना बड़ा भाग्य मिले, तो सदा रहना चाहिए ना। बापदादा सदा परिपक्व स्थिति में स्थित रहने वाले बच्चों को देख रहे हैं। कितने प्यारे-प्यारे बच्चे बापदादा के सामने हैं। एक-एक बच्चे बहुत लवली हैं। बापदादा ने इतने प्यार से सभी को कहाँ-कहाँ से चुनकर इकट्ठा किया है। ऐसे चुने हुए बच्चे सदा ही पक्के होंगे, कच्चे नहीं हो सकते। अच्छा-पर्सनल महावाक्य -- विशेष पार्टधारी अर्थात् हर क़दम, हर सेकेण्ड सदा अलर्ट, अलबेले नहींसदा अपने को चलते-फिरते, खाते-पीते बेहद वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर विशेष पार्टधारी आत्मा अनुभव करते हो? जो विशेष पार्टधारी होता है उसको सदा हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट के ऊपर अटेन्शन रहता है क्योंकि सारे ड्रामा का आधार हीरो पार्टधारी होता है। तो इस सारे ड्रामा का आधार आप हो ना। तो विशेष आत्माओं को वा विशेष पार्टधारियों को सदा इतना ही अटेन्शन रहता है? विशेष पार्टधारी कभी भी अलबेले नहीं होते, अलर्ट होते हैं। तो कभी अलबेलापन तो नहीं आ जाता? कर तो रहे हैं, पहुँच ही जायेंगे........ ऐसे तो नहीं सोचते? कर रहे हैं लेकिन किस गति से कर रहे हैं? चल रहे हैं लेकिन किस गति से चल रहे हैं? गति में तो अन्तर होता है ना। कहाँ पैदल चलने वाला और कहाँ प्लेन में चलने वाला! कहने में तो आयेगा कि पैदल वाला भी चल रहा है और प्लेन वाला भी चल रहा है लेकिन फ़र्क कितना है? तो सिर्फ चल रहे हैं, ब्रह्माकुमार बन गये माना चल रहे हैं लेकिन किस गति से? तीव्रगति वाला ही समय पर मंज़िल पर पहुँचेगा, नहीं तो पीछे रह जायेगा। यहाँ भी प्राप्ति तो होती है लेकिन सूर्यवंशी की होती है या चन्द्रवंशी की होती है, अन्तर तो होता है ना। तो सूर्यवंशी में आने के लिए हर संकल्प, हर बोल से साधारणता समाप्त हो। अगर कोई हीरो एक्टर साधारण एक्ट करे तो सभी उस पर हंसेंगे ना। तो यह सदा स्मृति रहे कि मैं विशेष पार्टधारी हूँ इसलिये हर कर्म विशेष हो, हर क़दम विशेष हो, हर सेकेण्ड, हर समय, हर संकल्प श्रेष्ठ हो। ऐसे नहीं कि ये तो 5 मिनट साधारण हुआ। पांच मिनट, पांच मिनट नहीं है, संगमयुग के पांच मिनट बहुत महत्व वाले हैं, पांच मिनट पांच साल से भी ज्यादा हैं इसलिए इतना अटेन्शन रहे। इसको कहते हैं तीव्र पुरुषार्थी। तीव्र पुरुषार्थियों का स्लोगन कौन-सा है? ''अभी नहीं तो कभी नहीं।'' तो यह सदा याद रहता है? क्योंकि सदा का राज्य-भाग्य प्राप्त करना चाहते हो तो अटेन्शन भी सदा हो। अब थोड़ा समय सदा का अटेन्शन बहुत-काल, सदा की प्राप्ति कराने वाला है। तो हर समय यह स्मृति रहे और चेकिंग हो कि चलते-चलते कभी साधारणता तो नहीं आ जाती? जैसे बाप को परम आत्मा कहा जाता है, तो परम है ना। तो जैसे बाप वैसे बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ हो।तो अभी स्वयं का पुरुषार्थ भी तीव्र हो और सेवा में भी कम समय, कम मेहनत लगे और सफलता ज्यादा हो। एक अनेकों जितना काम करे। तो ऐसा प्लैन बनाओ। पंजाब है तो बहुत पुराना। सेवा के आदि से हो तो आदि स्थान वाले कोई आदि रत्न निकालो। वैसे भी पंजाब को शेर कहते हैं ना। तो शेर गजघोर करता है। तो गजघोर अर्थात् बुलन्द आवाज़। अब देखेंगे - क्या करते हैं और कौन करते हैं? वरदान:- अमृतवेले से रात तक याद के विधिपूर्वक हर कर्म करने वाले सिद्धि स्वरूप भव अमृतवेले से लेकर रात तक जो भी कर्म करो, याद के विधिपूर्वक करो तो हर कर्म की सिद्धि मिलेगी। सबसे बड़े से बड़ी सिद्धि है - प्रत्यक्षफल के रूप में अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होना। सदा सुख की लहरों में, खुशी की लहरों में लहराते रहेंगे। तो यह प्रत्यक्षफल भी मिलता है और फिर भविष्य फल भी मिलता है। इस समय का प्रत्यक्षफल अनेक भविष्य जन्मों के फल से श्रेष्ठ है। अभी-अभी किया, अभी-अभी मिला - इसको ही कहते हैं प्रत्यक्षफल। स्लोगन:- स्वयं को निमित्त समझ हर कर्म करो तो न्यारे और प्यारे रहेंगे, मैं पन आ नहीं सकता। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • 20 Aug 2018 BK murli today in English

    Brahma kumaris murli today in English -20/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, continue to give time to the pilgrimage of remembrance and your sins will continue to be absolved. Attachment to everyone will end and you will become the garland around the Father's neck. Question: Which few words do you study with God, the Father? What secrets are merged in those few words? Answer: God, the Father, is just teaching you this much: O souls, renounce the consciousness of the body and remember Me. This is why this study of just few words is taught to you because you are not going to take an old skin (costume) in the old world now. You have to go to the new world. I have come to take you back with Me. Therefore, continue to forget everyone as well as your body. Song: You are the Mother and the Father. Om ShantiYou saligram children know that you are not listening to any scriptures from human beings. This is not called a spiritual gathering (satsang), but a study. If you ask people, they would say that they go to a spiritual gathering or to a college. You know that there would be scholars, sages and holy men in a spiritual gathering giving them knowledge. At school, human beings are professors and teachers etc. Here, it is not a human being. That One is the unlimited spiritual Father to whom you say: You are the Mother and the Father. This cannot be the praise of deities or even of Brahma, Vishnu or Shankar. This is the praise of the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. You children now know that, having adopted a body, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is playing a part. No one, except this incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, can teach you Brahma Kumars and Kumaris. Even Brahma cannot be called the Ocean of Knowledge. He is called Prajapita (Father of humanity). Only the one incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is called the Ocean of Knowledge. He alone is the One who makes impure ones pure, for salvation can only be received from the Ocean of Knowledge. These are new things. By writing Krishna's name in the Gita, they have falsified the Gita. How can human beings know that the knowledge-full Supreme Father, the Supreme Soul, comes and enters a human body and gives knowledge? People forget this. It isn't that the scriptures are written at the beginning of the copper age; no! It is explained that they first create the Father's image and the temples etc. through which devotion begins. The devotion of the Supreme Soul should last for a long time because He is the Highest on High. Worship of Him begins first. Shiva alone is worthy of worship. It isn't that Brahma, Vishnu or Shankar, Jagadamba or Jagadpita are worthy of worship. It is just the one Father who makes all of them worthy of worship. He would definitely be worshipped a lot more. This one (Brahma) is nothing; how could he be worshipped unless the Supreme Father, the Supreme Soul, entered him? The Bestower of Salvation for All is just the one Father. These things have to be churned. How does devotion begin? Shiv Baba doesn't churn the ocean of knowledge. Children have to churn the ocean of knowledge. Saraswati, who is a mouth-born creation of Brahma, also has to churn the ocean of knowledge. The Highest on High is the One and if He didn't come, who would make the world pure from impure? All human beings are impure. If Shiv Baba didn't come, who would give you the inheritance of heaven? If your intellects don't have faith, you cannot be threaded in the rosary of victory. Worthy children always become the garland around the neck. A father would also be pleased if his child is very worthy and obedient. Many parents have 12 to 14 children and some are worthy and others are unworthy. No one, apart from the Purifier Father, can uplift impure ones. You know that there is a temple to the Ganges on the banks of the River Ganges. So, you should explain what the Ganges is. Is it some power through whom you become pure from impure or do you become pure through water? The Father says: The Ganges is not the Purifier. No one can become pure without yoga. This is why you don't have to bathe in the Ganges. Yoga means remembrance. You have to connect your intellects in yoga. Those people have many different yoga positions etc. They perform many different types of hatha yoga. That is not called yoga. What would mothers and poor innocent women know about hatha yoga? When people are studying at school, there is no question of stumbling around in that. They pass one examination or another and they know what they will become after passing that examination. Here, too, you know that this is an examination and that God, the Father, is teaching you. He is the Purifier. Yours is a Godfatherly student life. How does the Father make you pure from impure? He says: O souls, renounce the consciousness of those bodies. You have to renounce those old bodies. First of all, your bodies were beautiful, but they have now become iron aged. You are not going to receive a new skin (body) here because the five elements here are tamopradhan. I will now take you children back with Me. I also took you back in the previous cycle. I am the Death of all Deaths. I will take everyone back. Then, I will send you to the land of immortality. This is the land of death, the dirty world. This is why the confluence age has to have a duration of 100 years. All the other ages have a duration of 1250 years. The duration of this confluence age at the end is very short. Just as the topknots of brahmins are very short, in the same way, the duration of the confluence age is also very short. Then, this world will end and you will then begin to construct new buildings etc. Shri Krishna comes first in that. He is very keen and interested to have palaces etc. built. There must have been someone who was very keen and therefore had the Somnath Temple built. Birla was also so keen that he built such a beautiful temple. The foremost worthy-of-worship One is Shiv Baba. On the path of devotion, the first temple to be built is the Somnath Temple (Temple to the Lord of Nectar). It must have been built after a little time (into the copper age), when worshipping began. Now, there is extreme darkness. The night will end and then the day will come. The Father says: I come in-between the night and the day. There is also the great war. It is written: Such things will emerge from their stomachs that they will destroy the whole clan. You can see that they are really making preparations for destruction. They believe that someone is inspiring them. Both sides have manufactured bombs for destruction. Calamities too will come. You see in a practical way that establishment is taking place and that destruction is also just ahead. If someone has not seen destruction, no matter, he can still see Paradise. Study well and claim the full unlimited inheritance from the Father. This isn't a corporeal being teaching you. There is no question of scriptures etc. This is the Ocean of Knowledge, Himself, who is teaching you. Consider yourselves to be bodiless souls and remember the Father. God speaks. He says to His children: I am personally in front of you children. Out of those who become My children, some are stepchildren and others are real children. Only real children have a right to the inheritance. Those who have intellects with doubt are called stepchildren; they cannot receive the inheritance. They then become part of the subjects according to their efforts. Real ones go into the kingdom. They love the Father and the Father loves them. You sing: I will sacrifice myself to You. I will surrender myself to You. The Father says: If you remember Me, I will help you. When children maintain courage, God helps. Break your intellects’ yoga away from everyone else and connect it to the One alone. You say that you belong to Baba and that all of this belongs to Baba. Everything we give to Baba is worth straws and we claim our inheritance of the unlimited sovereignty of heaven in return. We don't have attachment to these old bodies. These are tamopradhan, diseased bodies. What else do we have? When a person dies, everything is left behind. Then, everything of his is given to a Karnighor (brahmin priest): We are giving you everything. In order to end our attachment, we constantly make effort to remember Baba. Maya then creates obstacles. Therefore, by your gradually continuing to give time to remembering Me, your sins are absolved. They are the ones who will become the garland around My neck. Baba explains so easily. The Father says: According to the drama, this chariot is also fixed for Me. I cannot enter anyone else. You say: Baba, we also met You in this building, in this dress and claimed our inheritance from You in the previous cycle. Therefore, this is so easy. Baba says: Simply remember Me alone. Let your intellects not go to anyone else. Remember: Those who remember their sons at the end…. If you remember anyone, you will have to take birth to them. Let there not be attachment to anyone.Those who remember a woman at the end….The Father comes to purify the impure.He is praised so much: The One Oval Image ("Ek Omkar"). He has just the one name. He doesn't take any other body that His name could change. You take 84 births and so you also have 84 names. The praise sung of Baba is: Fearless, free from animosity, the Immortal Image. He is the Death of all Deaths. Death cannot come to Him. I will take everyone back to the land of liberation. I am free from animosity. I don’t hold a grudge against anyone. I am the Immortal Image, I am beyond birth, I don't enter the cycle of birth and death. He is praised so much. It is remembered: He is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. He removes the sorrow of the iron age and gives the happiness of the golden age. You children know that there was liberation-in-life in Bharat in the golden age. All the rest of the souls were in the land of peace. Do you remember this? So, it surely is only at the confluence age when the Father comes that He can take everyone back to the land of peace and then send you to the land of happiness. These things are so easy, but Maya is such that, as soon as you go out from here, you forget. I inspire punishment to be given by Dharamraj in the jail of a womb, and you cry out in distress and ask for forgiveness and say: I will not commit such sin again. Then, as soon as you come out of the womb, you begin to commit sin again. This is the kingdom of Maya. Maya doesn't exist in the golden and silver ages. There, there is nothing but happiness. You are now studying. There is no question of leaving your home and family in this. Baba says: Forget everything including your body. This is your unlimited renunciation. Those sannyasis have limited renunciation. They go to the forests and then return to the cities. They give themselves such big names. The Father says: I explain everything so easily. There are so many old mothers who say: We are unable to imbibe anything. Achcha, you know that God is teaching you, do you not? He says: Simply remember Me. There is no difficulty in this. We have now completed the cycle of 84 births. This is the discus of self-realisation. The soul receives a vision of the cycle. The body becomes free from disease here. By knowing the cycle, you will claim a high status. This is why Baba says: Become a spinner of the discus of self-realisation. He explains to you so easily. Remembrance is easy. Spinning the world cycle is easy. There is no difficulty. This is the true income. All the wealth and possessions are going to finish. Everything is to be left behind. There will be tidal waves from the oceans and natural calamities will also come. Bharat was the land of truth; there were no other lands. Bharat is the birthplace of Shiv Baba. It is the greatest pilgrimage place. Such a beautiful temple to Somnath is built in Bharat. Now they build so many temples. Baba says: To get married at this time is to ruin yourself completely, whereas to get married to Shiv Baba is to make yourself successful. Shiv Baba is also the Bridegroom. He sends you to heaven. You have come here and you know that you will truly become Narayan from an ordinary man and Lakshmi from an ordinary woman. It isn't that souls in male costumes will always be in male costumes; they continue to change: sometimes they have male costumes and sometimes female costumes. It has also been explained to you how the golden age changes into the silver age. Knowledge-full, God, the Father, is teaching you children. A human being can’t be a father, teacher and satguru. He could be a father and teacher, but not a guru at the same time. However, that too is only a worldly education that he gives. This Baba makes you into the complete masters of heaven. If you don't understand something, then ask a thousand times. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Become worthy and obedient and be threaded in the rosary of victory. Give everything worth straws that you have to the Father, surrender yourself and end your attachment to everyone. 2. In order that you only have remembrance of the one Father at the end, break your intellect's yoga away from everyone else and make effort to stay constantly in remembrance of the Father. Blessing: May you hand over yourself and also surrender yourself to the Father with your intellect and remain double light. Hand over your responsibilities to the Father and hand yourself over to the Father, that is, give all your burdens to the Father and you will become double light. Surrender yourself with your intellect and nothing else will then enter your intellect; everything belongs to the Father, everything is in the Father and so nothing else remains. Since nothing else remains, where would the intellect go? Simply remember the one Father, with the one method of remembrance and you will easily reach your destination on this path. Slogan: Those who are seated on an unshakeable throne and play a part of detached observers are elevated actors. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 16 Aug 2018 Aaj ki Murli

    Brahma kumaris murli today in Hindi -Aaj ki Murli -BapDada -Madhuban -16-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - ज्ञान की धारणा तब होगी जब देही-अभिमानी बनेंगे, देही-अभिमानी बनने वाले बच्चों को ही बाप की याद रहेगी।" प्रश्नः- किस एक भूल के कारण मनुष्यों ने आत्मा को निर्लेप कह दिया है? उत्तर:- मनुष्यों ने आत्मा सो परमात्मा कहा, इसी भूल के कारण आत्मा को निर्लेप मान लिया लेकिन निर्लेप तो एक शिवबाबा है, जिसे दु:ख-सुख, मीठे-कड़ुवे का अनुभव नहीं। आत्मा तो कहती है फलानी चीज़ खट्टी है। बाप कहते हैं मेरे पर किसी भी चीज़ का असर नहीं होता है, मैं इन लेप-छेप से निर्लेप हूँ, ज्ञान का सागर हूँ, वही ज्ञान तुम्हें सुनाता हूँ। गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ....... ओम् शान्ति।यह किसने कहा? आत्माओं ने कहा इन आरगन्स द्वारा। आत्मा शान्त स्वरूप है। मुझ आत्मा को यह शरीर मिलता है, तब टॉकी बनती हूँ। शरीर द्वारा अनेक प्रकार का कर्म करती हूँ। पहले-पहले यह निश्चय करना है। और सतसंग में मनुष्य, मनुष्य को सुनाते हैं, देहधारी बोलते हैं। कहेंगे फलाना महात्मा बैठा है। यहाँ यह बातें नहीं हैं। तुम समझते हो हम तो आत्मा हैं, यह शरीर रूपी आरगन्स हैं। आत्मा परमपिता परमात्मा द्वारा सुन रही है, जिसका एक ही नाम है शिव। इस समय बच्चे बैठे हैं सुनने लिए। कौन सुनाते हैं? बेहद का बाप। जब परमपिता परमात्मा कहा जाता है तो बुद्धियोग ऊपर चला जाता है। शिव माना बिन्दी। आत्मा भी बिन्दी है, परमात्मा भी बिन्दी है। परन्तु उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। वह बाप हुआ और आत्मायें बच्चे ठहरे। समझना है कि हम आत्मा इस शरीर द्वारा अपने पारलौकिक बाप की सन्तान बनी हूँ। तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनना पड़े। और सब जगह मनुष्य, मनुष्य को समझाते हैं। कोई गीता पाठी होते हैं वह भी गीता को याद कर कहेंगे गीता में भगवान् ने ऐसे-ऐसे कहा है। समझते हैं भगवान् ने साकार में यह गीता सुनाई थी। कोई बैठ वेद-शास्त्र सुनाते हैं। वेद तो मनुष्यों ने रचे हैं। निराकार भगवान् वेद नहीं बनायेंगे। व्यास तो मनुष्य था। व्यास को परमात्मा नहीं कहेंगे। परमपिता परमात्मा तो बिन्दी है। बच्चे साकार में हैं, साकारी रूप है। बाप तो है निराकार।बाप कहते हैं मुझे तो कभी छोटा-बड़ा नहीं बनना है। तुम छोटे-बड़े होते हो। मुझे तो कहते ही हैं परमपिता। मनुष्य पहले बालक बन फिर बड़े हो बाप बनते हैं, फिर बालक बनते हैं। मैं तो हमेशा पिता ही हूँ, मैं बालक नहीं बनता हूँ। मेरा एक ही नाम शिव है। तुम्हारे 84 नाम पड़ते हैं क्योंकि 84 जन्म लेते हो। मैं परमपिता तो बिन्दी रूप हूँ। सिर्फ पूजा के लिए भक्ति मार्ग वालों ने बड़ा रूप बनाकर रखा है। जैसे कोई का बड़ा चित्र बनाते हैं ना। बुद्ध का बहुत बड़ा चित्र बनाते हैं। इतना लम्बा मनुष्य तो होता नहीं। यह मान देते हैं। समझते हैं बहुत बड़ा था। बाप तो ऊंचे ते ऊंच है, बड़े ते बड़ा परमपिता परम आत्मा। बाप अपना परिचय बैठ देते हैं - मेरे को शिव कहते हैं। बच्चों को समझाया जाता है - तुमको समझना है हम निराकार शिवबाबा के सम्मुख जाते हैं। मुझे तो हमेशा परमपिता परमात्मा ही कहेंगे। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। परम आत्मा बैठ समझाते हैं। आत्मा को ही नॉलेज है। गाते भी हैं परमपिता परम आत्मा (परमात्मा), वह ज्ञान का सागर है। हमको ज्ञान सुना रहे हैं। पहले-पहले आत्म-अभिमानी होना चाहिए। देह-अभिमानी नहीं बनना है। परन्तु ड्रामा अनुसार तुमको देह-अभिमानी बनना ही है। अब फिर बाप देही-अभिमानी बनाते हैं।तुम सब बच्चे हो। यह भी बच्चा है। आत्मा परमपिता परमात्मा दादे से वर्सा लेती है। लौकिक सम्बन्ध में सिर्फ बच्चों को ही वर्सा मिलता है, कन्या को नहीं मिलता है। बेहद का बाप कहते हैं तुम सब आत्मायें हो, तुम हर एक को हक है। तुम मुझ परमपिता परमात्मा के थे और हो। कहते हैं ना ओ गॉड फादर, ओ परमपिता परमात्मा। महिमा करते हैं। कौन करते हैं? आत्मा। वह लौकिक फादर तो शरीर का है, यह है आत्माओं का बाप। आत्मा बुलाती है ओ परमपिता परमात्मा। अविनाशी बाप को याद करते ही आये हैं क्योंकि रावण राज्य में दु:ख ही दु:ख है। जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से याद करना शुरू होता है। याद तो बाप को ही करना है क्योंकि वर्सा बाप से ही मिलता है। यहाँ तो मनुष्यों को बहुतों की याद रहती है। गुरू लोग एक की याद भुला देते हैं। अगर सर्वव्यापी है तो फिर गॉड वा फादर किसको कहें? बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी बनो, उठते-बैठते मुझ बाप को याद करो। समझो, हम श्रीमत पर चल रहे हैं। मैं आत्मा खा रही हूँ बाबा की याद में। याद से विकर्म विनाश होंगे। मंज़िल है बड़ी भारी। योग कोई मासी का घर नहीं है। मनुष्यों ने तो बाप का नाम ही प्राय:लोप कर दिया है। श्री कृष्ण तो बच्चा ठहरा। इतनी बड़ी प्रालब्ध जरूर बाप ने ही दी है।बाप समझाते हैं - देह सहित देह के सब धर्म भूल जाओ। यह नाम तो सब बाद में रखे गये हैं। तो यह समझना है कि परमपिता परमात्मा द्वारा हम यह नॉलेज पढ़ रहे हैं। और कोई ऐसे स्कूल नहीं हैं जहाँ समझें कि हम आत्मा हैं। तुम जानते हो पहले सतोप्रधान थे फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। खाद आत्मा में पड़ती है। मेरे में तो कभी खाद नहीं पड़ती। मैं एवर सच्चा सोना हूँ। तुम्हारी आत्मायें सब इस समय आइरन एजेड बन गई हैं। मम्मा भी कहेगी - हमने शिवबाबा से जो सुना है, वही सुनाते हैं। शिवबाबा तो खुद ज्ञान का सागर है। यह बड़ी समझ की बातें हैं। बरोबर हम बाबा के बने हैं, वह हमें पढ़ाते हैं। बाबा से पढ़कर हम जीवनमुक्त बनते हैं। जीवनमुक्त माना इस शरीर में तो आना है, परन्तु सुख भोगना है। मुक्ति सबको मिलती है परन्तु जीवनमुक्ति में तो नम्बरवार आते हैं। मुक्त तो सब आत्मायें होती हैं। दु:ख से आधाकल्प के लिए मुक्त कर देते हैं। कहते हैं तुमको लिबरेट कर जीवनमुक्त बनाता हूँ। फिर कोई कितने जन्म लेते, कोई कितने जन्म लेते हैं। जीवनमुक्त तो सब बनते हैं। सद्गति दाता है ही एक। जो भी धर्म स्थापक हैं, सब पुनर्जन्म लेते-लेते अब तमोप्रधान बने हैं। मैं आकर सबको इन दु:खों से छुड़ाता हूँ इसलिए मुझे लिबरेटर कहते हैं, मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता कहते हैं। मुक्ति अर्थात् अपने घर साइलेन्स धाम में जाना। बाप भी परमधाम से आते हैं, जिसको परलोक कहा जाता है। तुम निर्वाणधाम और स्वर्गधाम दोनों को याद करते हो। स्वर्ग और नर्क यहाँ ही होता है। इस समय सब समझते हैं - यह नर्क है। कितना दु:ख पाते रहते हैं। गरूड़ पुराण में तो बहुत रोचक बातें लिख दी हैं जिससे मनुष्यों को डर हो और पाप करने से बच जायें इसलिए ऐसी-ऐसी बातें बैठ बनाई हैं। द्वापर से यह शास्त्र बनाना शुरू करते हैं। बाप कहते हैं मैं आकर ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म रचता हूँ। वह फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनते हैं। दो युग में कोई धर्म स्थापन करने वाला नहीं आता है, फिर एक-दो के पीछे सब नम्बरवार आते हैं और अपने-अपने धर्म को जानते हैं। यह देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जायेगा फिर अपने को देवता कहला नहीं सकेंगे। पतित कैसे श्री श्री अथवा श्रेष्ठ कहलायेंगे? बाप ही श्रेष्ठ बनाते हैं। देवी-देवताओं को श्रेष्ठ कहा जाता है। उनके चित्र भी हैं परन्तु समझते नहीं कि देवी-देवता धर्म कब था, किसने स्थापन किया? सतयुग की आयु ही लम्बी कर दी है।अब बाबा कहते हैं - बच्चे, अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो। अब खेल पूरा होता है। देखते नहीं हो अब मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खुल रहे हैं? मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता तो एक ही है। यहाँ तो देखो जगत माता का टाइटिल भी कोई-कोई को देते रहते हैं। वास्तव में जगत अम्बा यह है ना। ऐसे कोई भी नहीं होगा जो जगत पिता भी हो, शिक्षक भी हो, जगत गुरू भी हो। भल मनुष्य अपने पर नाम बहुत रखाते हैं, परन्तु हैं नहीं। कहाँ वह लक्ष्मी-नारायण, कहाँ यह विकारी भी अपने ऊपर टाइटिल रख देते हैं। मनुष्य कितने बुद्धू बन गये हैं! आदि सनातन देवी-देवता धर्म को भूल उन्हों के टाइटल फिर अपने को दे देते हैं। वास्तव में ऊंच ते ऊंच मर्तबा तो एक का ही है, सद्गति दाता एक ही है। राम कहो तो भी वह एक ही निराकार ठहरा।बाप कहते हैं भारतवासियों को अपने धर्म का पता नहीं - कब और किसने स्थापन किया? कोई किस देवी को याद करते, कोई कृष्ण को, कोई गुरू को याद करते। गुरू का फोटो भी लगा देते हैं। तुम्हारा चित्र से काम नहीं। जिसका कोई चित्र नहीं, वह है विचित्र। आत्मा विचित्र है। जैसे बाप विचित्र है वैसे बच्चे भी विचित्र हैं। आत्मा ही सुनती है। बाबा ने यह तन लोन लिया है। कहते हैं प्रकृति के आधार बिगर मैं ज्ञान कैसे दूँ? राजयोग कैसे सिखलाऊं? भगवान् निराकार को ही कहा जाता है। उनको आना ही है पतित दुनिया में। कृष्ण को दिखाते हैं कि पीपल के पत्ते पर सागर में आया, ऐसी कोई बात नहीं है। कृष्ण तो फर्स्ट प्रिन्स है विश्व का। वहाँ और कोई धर्म नहीं। अद्वेत राज्य है, फिर द्वेत हो जाती है, फिर अनेक प्रकार के धर्म स्थापन होते जाते हैं। तो बच्चों को यह समझना है कि बाबा इस शरीर में आकर हमको पढ़ाते हैं। बाबा कहते हैं मैं अशरीरी हूँ, इस शरीर द्वारा तुमको ज्ञान देता हूँ। मैं हूँ ज्ञान का सागर। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। सिर्फ ईश्वर वा परमात्मा कहने से बाप का सम्बन्ध भूल जाता है। परमात्मा बाप है, उनसे वर्सा मिलता है - यह भूल जाते हैं। वह हमारा बाप है, क्रियेटर है, हम उनकी रचना हैं। उसने क्रियेट किया है। कोई तो रचता होगा ना। बाबा ने समझाया है - पुरुष हद का ब्रह्मा है। बच्चों को क्रियेट करते हैं। पहले स्त्री को एडाप्ट करते हैं फिर उनके द्वारा बच्चे क्रियेट करते हैं। बाबा भी कहते हैं मैं इन द्वारा क्रियेट करता हूँ। स्त्री तो जरूर चाहिए ना। बाबा को कहते ही हैं तुम मात-पिता, तो यह (ब्रह्मा) माता हो गई, इन द्वारा एडाप्ट करते हैं। तो तुमको ब्रह्मा मुख वंशावली कहेंगे। तुम बाप के बने हो इन द्वारा। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। शास्त्रों में यह नहीं है। मुझे कहते हैं नॉलेजफुल, जानीजाननहार। मनुष्य समझते हैं परमात्मा सबके अन्दर की बातें जानते हैं, थॉट रीडर हैं। लेकिन इतने सबका थॉट रीडर कैसे बनेगा? बाप कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। मैं चैतन्य हूँ, सत हूँ। आत्मा भी चैतन्य है। शरीर असत है, घड़ी-घड़ी बदलता रहता है। आत्मा तो नहीं मरती। आत्मा यह नॉलेज ग्रहण करती है।बाप समझाते हैं मैं परमपिता परमात्मा निर्लेप हूँ अर्थात् दु:ख-सुख का अथवा कड़ुवी-मीठी चीज़ का मुझे कोई असर नहीं होता है। मैं इन लेप-छेप से निर्लेप हूँ। ज्ञान का सागर हूँ। मनुष्य फिर कहते हैं कि आत्मा निर्लेप है क्योंकि आत्मा सो परमात्मा एक है। एक ने कहा - बस, उसके पीछे फॉलो करते रहते। बाप कहते हैं मैं निर्लेप हूँ। मुझे कोई खट्टा खारा नहीं लगता। यह इनकी आत्मा कहती है - फलानी चीज़ खट्टी है। मेरे में सारे सृष्टि का ज्ञान है जो आत्माओं को पढ़ाता हूँ। तुम हर एक को समझना है - हम आत्मा परमपिता परमात्मा द्वारा सुन रहे हैं। यहाँ तो बरोबर भगवानुवाच है। निश्चय करना चाहिए - गॉड क्रियेटर इज़ वन।पहले-पहले मुख्य बात है भारत की। भारत को अविनाशी खण्ड कहा जाता है। यह भारत है बर्थ प्लेस पतित-पावन बाप का। यह बहुत ऊंच खण्ड है। यहाँ लक्ष्मी-नारायण की राजधानी होगी। यह तुम जानते हो कि बाप फिर से देवी-देवता धर्म की सैपलिंग लगा रहे हैं। जो इस धर्म के होंगे वही आकर वर्सा लेंगे। इसको सैपलिंग कहा जाता है। बाबा ने समझाया - देही-अभिमानी बनना है। बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। हम इन कानों से सुनते हैं, पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं। अच्छा!-मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) चित्र को भूल विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है। देह सहित देह के सब धर्मों को बुद्धि से भूलना है, देही-अभिमानी हो रहने का अभ्यास करना है। 2) देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है, इसलिए पावन जरूर बनना है। दैवीगुण धारण करने हैं। वरदान:- ज्ञान को रमणीकता से सिमरण कर आगे बढ़ने वाले सदा हर्षित, खुशनसीब भव l यह सिर्फ आत्मा, परमात्मा का सूखा ज्ञान नहीं है। बहुत रमणीक ज्ञान है, सिर्फ रोज़ अपना नया-नया टाइटिल याद रखो - मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन सी आत्मा हूँ, कभी आर्टिस्ट की आत्मा हूँ, कभी बिजनेसमैन की आत्मा हूँ... ऐसे रमणीकता से आगे बढ़ते रहो। जैसे बाप भी रमणीक है देखो कभी धोबी बन जाता तो कभी विश्व का रचयिता, कभी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट...तो जैसा बाप वैसे बच्चे....ऐसे ही इस रमणीक ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहो, तब कहेंगे खुशनसीब। स्लोगन:- सच्चे सेवाधारी वह हैं जिनकी हर नस अर्थात् संकल्प में सेवा के उमंग-उत्साह का खून भरा हुआ है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • Brahma Kumaris Videos Gallery - Films and Documentaries

    Short Films, documentaries and message clips from Prajapita Brahma Kumaris Godly University. Best of selected videos free to watch from YouTube. One platform for access to all the useful and important films made on Shiv baba, Shivratri, Murli, Brahma baba, Mamma, biography documentaries, Gyan related videos and Godly message (sandesh). Maha Shivratri truth - Shiv baba - 2018 Aadi Dev (Brahma Baba short Introduction) 2017 film Adi Devi (Jagadamba Saraswati - Mamma) Avtaran - ParamAtma Shiv ka Divya Avtaran Somnath Darshan and Meaning Discover the Spirit Within (Trailer) Voice of Truth - Full Movie (English) Voice of Truth - Full Movie (Hindi) MORE VIDEOS - CLICK HERE Online Services Search on BK Google (our search engine) . #brahmakumari #brahmakumaris #Hindi #english

  • BK murli today in Hindi 15 June 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 15-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “ मीठे बच्चे-मन्मनाभव रूपी इन्जेक्शन सर्व दु:खों की बीमारी से मुक्त करने वाला है, देही- अभिमानी बनो तो पवित्रता-सुख-शान्ति का वर्सा मिल जायेगा” प्रश्न: बाप की किस महिमा का प्रैक्टिकल टेस्ट तुम बच्चों ने किया है? उत्तर- बाप की महिमा में गाते हैं-कितना मीठा, कितना प्यारा शिव भाेला भगवान... इसका प्रैक्टिकल टेस्ट तुम बच्चों ने किया है। तुम अनुभव से कहते हो मीठा बाबा हमको कितना मीठा बना रहे हैं! बाबा अपने मीठे बच्चों को आशीर्वाद भी करते-बच्चे, सदा जीते रहो। मोस्ट बिलवेड बाप के बने हो तो उन जैसा मीठा फूल बनो। गीत: धीरज धर मनुवा... ओम् शान्ति।मनुष्य जब बीमार होते हैं तो सर्जन धीरज देते हैं छूटने लिए। वह तो है जिस्मानी बीमारी। अब तुम बच्चों को पता पड़ा है कि यह है रूहानी सर्जन। रूह को ही बीमारी लगी है, इसलिए रूह को ज्ञान का इन्जेक्शन लगा रहे हैं। आत्मा को ही ज्ञान इन्जेक्शन लगता है, न कि शरीर को। कोई सुई वा दवाई आदि नहीं है। यह एक ही इन्जेक्शन काफी है। कौन सा इन्जेक्शन? मन्मनाभव, अशरीरी भव-यह इन्जेक्शन है। देही-अभिमानी हो रहने से पवित्रता-सुख-शान्ति का वर्सा जमा होता है। जितना-जितना देही-अभिमानी बन बाप को याद करते रहेंगे, उतना वर्सा जमा होता रहेगा। बच्चे जानते हैं आधा-कल्प के दु:ख दूर करने वाला आया हुआ है। हर-हर महादेव कहते हैं। अब वह महादेव नहीं है, दु:ख तो बाप ही हरेंगे। दु:ख हर कर सुख देने वाला बाप है। बच्चे जानते हैं बरोबर हम आधा-कल्प से कुछ न कुछ दु:ख देखते आये हैं। अब बीमारी बढ़ गई है। पाँच विकारों ने बहुत दु:खी किया है इसलिए बाप कहते हैं यह जो कल्प का खाता है, उनको अब ठीक करो। व्यापारी लोग 12 मास का खाता ना और जमा का रखते हैं ना। नौकरी वाले ना व जमा को नहीं जानते। ऊंच ते ऊंच व्यापार है जवाहरात का। यह भी हैं ज्ञान-रत्न। व्यापारी लोग जानते हैं हमारी कमाई होती है या कहाँ नुकसान होता है। कभी नुकसान, कभी फायदा, यह तो चलता ही है। बाप कहते हैं तुम्हारा आधा-कल्प जो खाता ना की तरफ चला गया है, अब फिर जमा करना है। ना की तरफ क्यों गया है? क्योंकि तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो, माया रावण ने खाता खराब कर दिया है। माया ने सबको घाटे में डाला है इसलिए कंगाल बन पड़े हैं। अभी तुम बच्चे कहते हो-बाबा, आप तो सत्य कहते हो, बरोबर माया ने बड़ा घाटा डाला है। घाटा होते-होते सब कौड़ी तुल्य बन पड़े हैं। अभी सत्य बाप हमको नर से नारायण बनने की मत दे रहे हैं। जिस श्रीमत से हम श्रेष्ठ बनेंगे और हमारा आधा-कल्प के लिए जमा हो जाता है। यह एक ही बार खाता जमा होता है। बाप कहते हैं अच्छी रीति खाता जमा करना है। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पद पाना है तो देही-अभिमानी भव। बाप को याद करो। आत्मा ही पतित बनती है इसलिए पाप-आत्मा, पुण्य-आत्मा कहा जाता है। पाप शरीर नहीं कहा जाता है। पाप-आत्मा बनाती है माया रावण। बाप को याद ही नहीं करते तो पुण्य-आत्मा कैसे बनें। अशुद्ध अहंकार है नम्बरवन भूत। माया ने कितना घाटा डाला है। दुनिया में इस फायदे और घाटे का किसको पता नहीं है। यह बाप ही बतलाते हैं। श्रीमत भगवानुवाच। भगवान एक होता है जो आकर राजयोग सिखलाते हैं। यह योग बहुत फायदे का है। मनुष्य को चढ़ा देता है। सिर्फ एक बात में निश्चय रहे और एक बाप को याद करते रहो, बस। यह तो जानते हो धीरज रखना है। बरोबर हमारी तकदीर जगी है। बाबा हमको पार ले जाने वाला है। इस वेश्यालय से शिवालय में ले जाने बाबा आया है। खिवैया एक ही है। पतित-पावन ही खिवैया ठहरा। होशियार तैरने वाले जो होते हैं वह बहुत युक्ति से तैरते हैं। सहज रीति तैरना सिखलाते हैं। तुम बच्चे भी जानते हो-बाबा हमको कितना सहज कलियुगी किनारे से सतयुगी किनारे में ले जा रहे हैं, बुद्धियोग अथवा याद द्वारा। यह आत्माओं से बात कर रहे हैं। बाप ही आकर आत्माओं की ज्योति जगाते हैं। उनको शमा भी कहा जाता है। ज्योति स्वरूप भी कहा जाता है। मनुष्य मरते हैं तो दीवा जगाकर रखते हैं। उसमें घृत डालते रहते हैं। तुमको ज्ञान घृत आधा-कल्प से कहाँ भी न मिलने कारण सबके दीवे प्राय: जैसे बुझ गये हैं। बाकी थोड़ा जाकर रहा है। इस समय है घोर अंधियारा। सतयुग में होता है घोर सोझरा। अब फिर से तुम आत्माओं के दीप जग रहे हैं। साथ में ज्ञान का तीसरा नेत्र भी तुमको मिल रहा है। पत्रों में भी लिखते हैं मीठे-मीठे लाडले सिकीलधे बच्चों.... बाप भी बहुत मीठा है ना। तुमको प्रैक्टिकल में यह टेस्ट आती है कि बाबा कितना मीठा, कितना प्यारा है! हमको कितना मीठा बनाते हैं! यह भी तुम जानते हो-हम भी कितने मीठे, कितने प्यारे थे! फिर हम ही पूज्य से पुजारी बने तो खुद को पूजते रहे। हम सो लक्ष्मी-नारायण अथवा सूर्यवंशी थे। फिर हम सो चन्द्रवंशी बनें। अब फिर सूर्यवंशी बनते हैं अर्थात् फायदे में जाते हैं, इसलिए बाप को याद करना है और पढ़ना है। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। गाते भी हैं जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली। हमको भी जनक मिसल ज्ञान चाहिए। जनक तो तुम सब हो ना। घर के मालिक हो ना। कोई बड़ा धनवान है, कोई कम। जनक तो हो ना। गरीब भी अपने को घर का मालिक समझेगा। तो तुम हरेक अपने को जनक समझो। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है। गरीब निवाज बाप को कहते हैं क्योंकि सबसे गरीब भारतवासी ही बने हैं। अभी तो तुमको बिल्कुल बेगर बनना है। यह देह भी अपनी न समझो। एक कहानी है ना-कहा, लाठी भी न उठाओ। बाप कहते हैं मुख्य है देह अहंकार। उसको भूलो। एव बाप को याद करो। यह तुम सब जानते हो-मैं आत्मा हूँ, यह शरीर है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। पुनर्जन्म को सब मानते हैं। जरूर जिस युग में रहेंगे पुनर्जन्म भी वहाँ ही मिलेगा। चौरासी जन्म हैं ना। यह चक्र है। तुम बच्चों से ही आदि शुरू होती है। फिर नीचे आते हो। यह स्वदर्शन हुआ। तीसरा नेत्र भी तुमको मिला है। जितना-जितना बाप को याद करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। जीवनमुक्ति तो सभी को मिलती है। पहले तो मुक्ति में जाना है। तुम भी पहले मुक्ति में जाते हो फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। स्वर्ग में पहलेपहले देवी-देवता धर्म वाले आयेंगे, जो धर्म अभी प्राय: लोप हो गया है। अब बाप आशीर्वाद करते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, सदा शान्ति भव। चिरन्जीवी भव अर्थात् बहुत जन्म जिओ। आशीर्वाद तो बाप से मिलती है। परन्तु फिर हर एक को अपना पुरूषार्थ करना है कि हम चिरन्जीवी कैसे बनें। बाप को याद करने से ही तुम चिरन्जीवी बन रहे हो। यह आशीर्वाद बाप करते हैं। ब्राह्मण लोग भी कहते हैं आयुषवान भव। बाप भी कहते हैं-सदा जीते रहो बच्चे। तुम भी समझते हो हम चिरन्जीवी बन रहे हैं। आधाकल्प के लिए कभी काल नहीं खायेगा। सतयुग में मरने का नाम नहीं होता। यहाँ तो मनुष्य मरने से डरते हैं ना। तुम तो पुरूषार्थ कर रहे हो मरने लिए। शरीर छोड़ हम अपने बाप पास जायेंगे, स्वर्गवासी बनने। निर्वाणधाम जाने लिए सिर्फ पुरूषार्थ करते हो, सन्यासी नहीं कर सकते। वह न खुद मुक्ति पाते हैं, न किसको देते हैं। तुम जानते हो हम बाबा को याद करते-करते बस शरीर छोड़ देंगे। कोई कहते हैं-बाबा, हम जल्दी जावें। कब विनाश होगा? हम कब जायेंगे? तुम ऐसे मत कहो-हम कब जायेंगे! यह कहना माना बाबा आप वापिस कब जायेंगे! यह हिसाब हुआ। तुम शिवबाबा पास बैठे हो। तुम ईश्वरीय सन्तान हो। तुम्हारा ही यादगार बना हुआ है। मोस्ट बिलवेड बाप के बच्चे बने हो, तो तुमको भी बाप जैसा बहुत मीठा, बहुत प्यारा बनना है और सबको बनाना है। टाइम तो लगता है। कोई बहुत तीखी दौड़ी लगाते हैं, कोई कम। कल्प पहले मुआिफक कहेंगे इस समय तक फलाने इतनी दौड़ी पहन फूल बने हैं। इतनी कली बने हैं। कोई तो कली बन कली से फूल बन, फिर काँटे बन पड़ते हैं। माया का तूफान आया तो न कली, न फूल रहे। बड़े काँटे बन जाते हैं। बहुत अबलाओं पर अत्याचार होने लग पड़ते हैं। बाँध हो जाती हैं। बहुत नुकसान हो जाता है। वृन्दावन की बात है-अन्दर डान्स होता था..... है यह ज्ञान डान्स की बात। तुम बच्चे कहाँ-कहाँ से आते हो ज्ञान डान्स सीखने। तब बाबा कहते हैं बादल वह जो रिफ्रेश हो फिर ज्ञान डान्स करें। बाबा कहते हैं बाकी थोड़े रोज हैं। यह तो बड़ा अच्छा समय है। जितना भी टाइम हो उतना अच्छा। हमारी अवस्था पक्की होती जायेगी। बाप रत्न देते आये हैं ना। अभी तो अजुन बहुत कच्चे हैं। सबका जमा नहीं होता है। बहुत बड़ी राजधानी स्थापना होनी है। यह तुम ही जानते हो कि हम बाप को याद करने से राजधानी स्थापना करते हैं। बाप और खजाना याद रहता है। याद से ही हम अपना स्वराज्य स्थापना करते हैं। स्व आत्मा को अभी राजाई नहीं है। अब फिर हम सो राजाओं का राजा बनेंगे। यह नशा आत्मा को रहता है। आत्मा इन आरगन्स द्वारा वर्णन करती है। आत्माओं को ही यह सृष्टि चक्र का नॉलेज मिला है। बीज और झाड़ को जान गये हैं। बाप कहते हैं हम तुम कल्प पहले भी थे, अब हैं फिर कल्प बाद भी होंगे। सारे कल्प वृक्ष को जान लिया है। पहलेपहले बाप की पहचान देनी है। यह सब आत्माओं का निराकारी बाप है। पहले-पहले ब्राह्मणों को रचते हैं। शूद्र वर्ण को ब्राह्मण वर्ण बनाते हैं। यह है टॉप मोस्ट सिजरा। ब्राह्मण से देवता फिर क्षत्रिय, फिर इस्लामी, फिर बौद्धी आदि-आदि सब निकलते हैं। यह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर, जिस्मानी बाप ऊंच ते ऊंच ब्रह्मा। रूहानी बाप शिवबाबा। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूलवतन। ब्रह्मा द्वारा यह ब्राह्मण पैदा हुए। फिर यह देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। नटशेल में सारा बुद्धि में है। शरीर निर्वाह भी करना है क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। नौकरी आदि धन्धा करने लिए 8 घण्टा तुमको फ्रा है। वह तो करना ही है। गवर्मेन्ट की नौकरी 8 घण्टा होती है। गवर्मेन्ट का भी फिर चीफ जस्टिस होता है। परन्तु वह तो पूरी जजमेन्ट नहीं देते। यह पाण्डव गवर्मेन्ट भी है तो फिर धर्मराज भी है। बच्चों को समझाया जाता है अगर अच्छी रीति बाबा की सर्विस में नहीं रहे, देही-अभिमानी न बने और कोई उल्टा काम कर लिया तो उन पर दण्ड बहुत पड़ जाता है। यह हाईएस्ट गवर्मेन्ट भी है, हाईएस्ट सुप्रीम जज भी है। कोई गफलत की तो फिर ट्रिबुनल बैठेगी। खास तुम बच्चों के लिए। जो जैसा कर्म करते हैं वैसा उसको फल मिलता है। यह है रूहानी गवर्मेन्ट। रूह को सजा मिलती है। यहाँ तो स्थूल सजा मिलती है। वह फिर है गुप्त सजा, गर्भ में सजा भोगते हैं। फिर कहते हैं हमको बाहर निकालो। परन्तु जेल बर्ड तो आधा-कल्प बनना ही है। फिर आधा-कल्प तुम गर्भ महल में रहते हो। बाप कहते हैं तुम बच्चों की मैं कितनी सर्विस करता हूँ, इस पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर। मुझे आना भी इसमें ही है, जिसका नाम ब्रह्मा रखा है। ब्रह्मा-सरस्वती ही श्री नारायण और श्री लक्ष्मी बनते हैं, ततत्वम् उनके बच्चे। तुम जानते हो हम माँ-बाप के तख्त पर जीत पहनने वाले हैं। एक दो का वारिस बनते जाते हैं। पहले वाले फिर नीचे आते जाते हैं। यहाँ फिर कहा जाता है माया पर जीत पहनो तो स्वर्ग के मालिक बनोगे। पतित मनुष्य स्वर्ग का मालिक बन न सकें। बाबा कहते हैं ड्रामा में कल्प-कल्प मेरा ही पार्ट है। तुम जानते हो अभी ड्रामा पूरा होता है। सतयुग की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर से रिपीट होगी। फिर हम ही देवी-देवता बनेंगे। तुम इस चक्र को जानते हो। तुम्हारी तकदीर जगी हुई है। ज्ञान सूर्य तुम्हारी तकदीर जगा रहे हैं। तकदीर पर लकीर लगाता है-देह-अभिमान। मूल बात है देही-अभिमानी बनो। बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। कितनी सहज बात है। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष की यह बात है। मूल बात बाबा समझाते हैं-देही-अभिमानी बनते रहो। समझाना है भगवान तो एक है ना, जिसको भक्त याद करते हैं। भक्त ही भगवान होते तो फिर याद किसको करते। भक्त अथवा साधू साधना करते हैं भगवान की। कहते हैं ज्योति ज्योत समायेंगे। परन्तु निर्वाणधाम का मालिक तो चाहिए ना। ऐसे नहीं ब्रह्म ही भगवान है। भगवान कहते हैं-तुम्हारा यह भ्रम है। मैं तो ब्रह्म में रहने वाला स्टॉर हूँ। जैसे आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है, यह कभी विनाश नहीं हो सकता। ऐसे बाप कहते हैं मैं आत्मा भी इस ड्रामा के बन्धन में हूँ। यह फिर हूबहू रिपीट होगा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर सच्चा व्यापारी बनना है। सच्चा धन्धा करना है। 2) देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। ज्ञान डान्स सीखनी और सिखानी है। वरदानः करनकरावनहार की स्मृति से विघ्नों के बीज को समाप्त करने वाले समर्थ आत्मा भव l सर्व प्रकार के विघ्नों का बीज दो शब्दों में हैं: 1-अभिमान और 2-अपमान। सेवा के क्षेत्र में या तो अभिमान आता कि मैंने यह किया, मैं ही कर सकता...या तो मेरे को आगे क्यों नहीं रखा गया, मेरे को यह क्यों कहा गया, यह मेरा अपमान किया गया। यही भावना भिन्न-भिन्न विघ्नों के रूप में आती है। जब खुदाई खिदमतगार हैं, करनकरावनहार बाप है तो अभिमान कहाँ से आया, अपमान कहाँ से हुआ? इसलिए कम्बाइन्ड रूप की स्मृति द्वारा समर्थ आत्मा बनो तो विघ्नों का बीज सदा के लिए समाप्त हो जायेगा। स्लोगनः ज्ञान स्वरूप बनना है तो बाप और पढ़ाई से समान प्यार हो। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi

  • BK murli today in Hindi 14 June 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - BapDada - Madhuban - 14-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन“ मीठे बच्चे-सर्विस की नई-नई युक्तियाँ निकालते रहो। भारत को दैवी स्वराज्य बनाने में बाप का पूरा-पूरा मददगार बनो” प्रश्न: बाप बच्चों को कौन-सी स्मृति दिलाकर एक आश रखते हैं? उत्तर- बाबा स्मृति दिलाते-बच्चे, तुम कल्प-कल्प मायाजीत जगतजीत बने हो। तुमने मात-पिता के तख्त पर जीत पाई है इसलिए अभी तुम्हें माया के तूफानों से डरना नहीं है। कभी भी माया के वश होकर कुल कलंकित नहीं बनना है। लाडले बच्चे, इस बूढ़े बाप की दाढ़ी की लाज रखना। ऐसा कोई काम न हो जो बाप का नाम बदनाम हो जाये। तुम योग बल से विकारों को भगाते रहो, बाप समान निराकारी, निरहंकारी बनो। गीत: दर पर आये हैं कसम ले के... ओम् शान्ति।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे अच्छी रीति जान गये हैं कि बेहद के बाप से बच्चों को प्यार मिलता है जरूर। जैसे हद के लौकिक बाप अपने रचे हुए बच्चों को प्यार करते हैं। अच्छी तरह से सम्भालते हैं, उनकी सेवा करते हैं कि हमारा कुल वृद्धि को पाये। भक्ति मार्ग में भी बेहद के बाप को सभी याद करते हैं। जरूर कभी बाप से मिलना होता है। यहाँ भी बाप तो कहते हैं-मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, शिक्षा देने वाला भी हूँ अर्थात् ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज देने वाला भी हूँ। इसको ही ज्ञान कहा जाता है। बाकी शास्त्रों में है भक्ति मार्ग का ज्ञान। उससे कोई मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती। बाप कहते हैं सर्व का मुक्ति-जीवन्मुक्ति दाता मैं हूँ। मुझे ही मुक्ति-जीवन्मुक्ति देने के लिए आना पड़ता है। तो कल्प-कल्प, कल्प के संगम पर मुझे ही आना पड़ता है। ड्रामा अनुसार माया 5 विकार तुमको दु:खी बना देते हैं। तुम जानते हो अभी दु:ख के पहाड़ गिरने हैं। विनाश होना है। उसी समय खूनी नाहेक खेल का पार्ट बजना है। कितनी खून की नदियाँ बहेंगी और सतयुग में घी की नदियाँ बहनी हैं। खून की नदियाँ बहती हैं फिर उसी समय हाहाकार हो जाता है। बहुत दु:खी होंगे। अब बच्चों को अच्छी तरह बाबा की सर्विस भी बढ़ानी है। तुम मददगारों से ही भारत स्वर्ग बनता है। तुम जानते हो हम ही सिकीलधे ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे भारत को फिर से दैवी स्वराज्य बनाते हैं। बाबा से दैवी स्वराज्य का वर्सा लेते हैं। बाबा कहते हैं-बच्चे, सर्विस की युक्तियाँ निकालते रहो। बाबा का भी ख्याल चलता है ना। इसको ही स्वदर्शन चक्र कहा जाता है। यह बहुत अच्छी चीज है, इससे तुम सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हो। यह राजधानी स्थापना करने में अथवा भारत को रावण राज्य से बदल राम राज्य स्थापना करने में कोई खर्च नहीं है। तुम हो ही नान- वायोलेन्स, अहिंसक। सर्व गुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमो-धर्म वाले तुम बनते हो। तुम कहते हो हमको बाबा का मददगार बनकर भारत को हीरे जैसा बनाना है। कल्प-कल्प हम यह सर्विस करते रहते हैं। अभी हम हैं गॉड फादरली सर्विस पर। गॉड फादरली स्टूडेण्ट भी हैं, गॉड फादरली चिल्ड्रेन भी हैं। हमारे ऊपर बहुत बड़ी रेस्पान्सिबिलिटी है। बच्चे जो बनते हैं उन पर रेस्पान्सिबिलिटी रहती है। बाबा कहते हैं खबरदार रहना, कोई भूल चूक नहीं करना। बाबा किस्म-किस्म की सर्विस बताते हैं। किस प्रकार भारतवासियों को बेहद के बाप से वर्सा लेने का रास्ता बतायें। समझाया जाता है यह वर्सा तो 21 जन्म सतयुग का जन्म-सिद्ध अधिकार है। सतयुगी डीटी सावरन्टी इज योर गॉड फादरली बर्थ राइट। बाप है ही स्वर्ग की स्थापना करने वाला। पुरूषार्थ यहाँ करना है। ऐसे नहीं सतयुग में करेंगे। बाबा को समझाना पड़ता है तो सभी बच्चे सुनें। यह गोला है स्वदर्शन चक्र, यह आइरन सीट पर बड़े-बड़े बनवाकर फिर बड़े-बड़े स्थानों पर रखो। नीचे सब कुछ लिखा हुआ है। जो देखेंगे, समझेंगे यह तो राइट बात है। समय नजदीक होता जायेगा। मनुष्यों को यह दिल अन्दर आयेगा बरोबर अब सतयुग नजदीक है। समय प्रति समय बच्चों को सर्विस प्रति राय देते रहते हैं। ऐसे करो तो सर्विस बढ़ेगी। हरेक अपने घर में भी यह बोर्ड लगाओ। शिवबाबा का चित्र भी हो, यह है गीता का भगवान। फिर लिखा हुआ हो डीटी वर्ल्ड सावरन्टी आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। हरेक अपने घर पर बोर्ड लगा दे। तुम ज्ञान गंगायें हो ना। बोर्ड देखकर बहुत आयेंगे। उनको समझाना है। तुम आत्माओं का बाप वह निराकार है। तुम भाई- भाई हो। हम उस बाप से वर्सा ले रहे हैं। आगे चलकर बहुत धूमधाम होगी कि वही भगवान आकर पधारे हैं। नाम तो है ब्रह्माकुमार-कुमारी। शिवबाबा का भी नाम है। आगे चलकर मनुष्य समझेंगे राजधानी तो जरूर स्थापना होगी। यज्ञ में विघ्न पड़ते हैं क्योंकि राजा-रानी तो कोई है नहीं। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। कोई को समझाओ और वह ब्रह्माकुमारियों का तरफ ले तो भी हंगामा कर देंगे। समझते हैं सब धर्म मिल एक हो जायें। अब जो धर्म भिन्न-भिन्न हैं, वह सब एक कैसे होंगे। खुद कहते हैं हम कोई धर्म को नहीं मानते। अपने धर्म को भूलना, यह भी ड्रामा है। और धर्म स्थापना होते हैं तो देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है इसलिए सब अपने को हिन्दू कह देते हैं। देवता धर्म लोप है, तब बाबा कहते हैं फिर से हम देवी-देवता धर्म की स्थापना करने आये हैं। अनेक धर्मों का विनाश भी सामने खड़ा है। बाकी कितना समय ठहरेंगे। आफतें भी आनी हैं। मनुष्य तो कहते हैं सतयुग आने में लाखों वर्ष हैं। तुम जानते हो आज नर्क में हैं, कल स्वर्ग में जायेंगे। हम आत्मायें दौड़ रही हैं। अभी 84 जन्म पूरे हुए। दु:ख का पार्ट पूरा हुआ। बस बाबा, अभी हम आये कि आये। यह अन्तिम जन्म है। बाबा साजन आया हुआ है। कहते हैं अभी पवित्र दुनिया के लायक बनो तो साथ ले जाऊंगा। योग से लायक नहीं बनेंगे तो सजा खायेंगे। फिर पद भी कम हो जायेगा। बात तो बहुत सहज है। बेहद के बाप से बेहद का सुख मिलता है, इसलिए बेहद के बाप को और बेहद सुख के वर्से को याद करना है। जितना चाहिए याद करो, जितना याद करेंगे वैसा पद मिलेगा। आठ घण्टा जरूर याद करना चाहिए। पुरूषार्थ करना है। यह भी जानते हैं कल्प पहले मुआिफक ही बच्चे पुरूषार्थ करते हैं। इसको साक्षी हो देखा जाता है-कौन कितना पुरूषार्थ करते हैं, मोस्ट बिलवेड बाप से वर्सा लेने। कल्प-कल्पान्तर वही लेने लिए अधिकारी बनेंगे। बाप ने राजयोग सिखाया है स्वर्ग के लिए। लौकिक बाप भी बच्चों की कितनी सम्भाल करते हैं! बेहद के बाप को भी कितनी सम्भाल करनी पड़ती है। माया बड़ा हैरान करती है, बीमार कर देती है। फिर बाबा आकर दवाई देते हैं। यह है संजीवनी बूटी। बाकी कोई पहाड़ की बूटी हनूमान नहीं ले आया। सिर्फ बाप और वर्से को याद करना है। बाप को याद करने बिगर वर्से को याद नहीं कर सकेंगे। अब भक्ति मार्ग अर्थात् ब्रह्मा की रात पूरी होती है। फिर बाबा आकर दिन स्थापना करते हैं। आधा कल्प है ब्रह्मा का दिन, आधा कल्प है ब्रह्मा की रात। घोर अंधियारा है ना। घड़ी-घड़ी बच्चियाँ बैठ समझायें तो लौकिक-पारलौकिक मात-पिता का अच्छा शो करेंगी। बाप रचयिता का काम है-स्त्री-बच्चों आदि को अपना साथी बनाना। अपनी रचना को भी रास्ता बताना है। काम चिता का सौदा बदल ज्ञान चिता पर बैठना है। यह बोर्ड बहुत अच्छे बन सकते हैं। बाप को तो बहुत ओना रहता है। बाप निराकार, निरहंकारी है। कैसे बैठ बच्चों की पालना करते हैं। कहते हैं ना वाट वेंदे वामन फाथो.... (रास्ते चलते ब्राह्मण फँस गया) बाबा को थोड़ेही पता था कि ऐसे प्रवेश करेंगे, मैं ब्रह्मा बन फिर श्री नारायण बनूंगा। कितनी गाली खाई है! बाबा कहते हैं तुम्हारे से भी मेरी ग्लानी जास्ती करते हैं। तुमको तो करके एक दो गाली देते हैं, मुझे तो पत्थर भित्तर में ठोक दिया है। मेरी कितनी निन्दा की है! राज्य-भाग्य पाना है, तो गाली खाई तो क्या बड़ी बात है। मुझे तो आधा कल्प से गाली देते रहते हैं। यह भी ड्रामा का खेल बना हुआ है। बाबा कहते हैं-लाडले बच्चे, मैं इसमें आया हुआ हूँ। इनकी दाढ़ी का कुछ ख्याल रखो। इनकी दाढ़ी सो उनकी। अब कोई कलंक नहीं लगाना है। विकारों को योगबल से भगाते रहो। कल्प-कल्प तुम माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते आये हो। स्वर्ग का मालिक प्रजा भी बनती है। परन्तु पुरूषार्थ कर मात-पिता के तख्त पर जीत पहनो। यह है ही राजयोग। बाप जानते हैं यह मम्मा-बाबा पहले नम्बर में जाते हैं। मम्मा कुवांरी कन्या, यह अधरकुमार है। घर में बच्चे ऐसा कुछ काम करते हैं तो बाप कहते हैं हमारे दाढ़ी की लाज रखो। नाम बदनाम न करो। अच्छी रीति घर-घर में बोर्ड लगा हुआ हो-आकर बेहद के बाप से वर्सा लो। राजाओं को, सन्यासियों को पिछाड़ी में जगना है। दिन-प्रतिदिन तुम भी तीखे होते जाते हो। शक्ति मिलती जाती है। देखते हो सामने विनाश खड़ा है, लड़ाईयाँ लग रही हैं और यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। हम ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण फिर सो देवता बनेंगे। जितना पुरूषार्थ करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। दिन-प्रतिदिन बहुत सहज होता जाता है। बाप का रूप भी तो समझाया है। वह स्टॉर है। परन्तु नये को पहले ही यह नहीं बताना है। जब अच्छी रीति समझें। पूछे इतना बड़ा रूप है? तब समझाना है। यह साक्षात्कार तो बहुतों को होता है। परन्तु मतलब कुछ भी नहीं समझते। जैसे आत्मा चमकता हुआ स्टार है, वैसे ही बाप है। उनको भी परमपिता परम-आत्मा कहा जाता है। तो हो गया परमात्मा। वह इनमें आते हैं। आकर बाजू में बैठ जाते हैं। गुरू के बाजू में शिष्य बैठ जाते हैं ना। वह सिखलाते हैं तुम बच्चों को। यह भी बाजू में रहते हैं। बापदादा कम्बाइण्ड है। परन्तु गुह्य राज है। जब कोई पूछे तब समझाना है। नहीं तो बाबा-बाबा कहते रहो। बाबा स्वर्ग के लिए राजयोग सिखलाते हैं। यह तो बच्चे जानते हैं इस समय तक जो पास्ट हुआ सो ड्रामा। विघ्न तो पड़ते रहेंगे। बच्चों को भी माया जोर से तूफान में लायेगी। परन्तु हाथ नहीं छोड़ना है। माया अजगर है। अच्छे-अच्छे लाल को भी खा लेगी। कल्प पहले भी हुआ था। जो तीखे विशालबुद्धि बच्चे हैं वह हर बात को समझ सकते हैं। विचार सागर मंथन करेंगे-हम ऐसे-ऐसे किसको समझायें, दान करें। बाबा रूप-बसन्त है। तुम भी रूप-बसन्त हो। बाबा कहते हैं मैं स्टार हूँ, मेरे में ये पार्ट भरा हुआ है। हर एक आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। यह बातें साइन्स घमण्डी समझ न सकें। वह रिकॉर्ड घिस जाये, टूट-फूट जाये, यह आत्मा स्टार इमार्टल है, जिसमें इमार्टल पार्ट भरा हुआ है। इसका कभी एण्ड (अन्त) नहीं होता। एण्ड नहीं तो आदि भी नहीं, चलता आता है। इस ड्रामा के राज को भी तुम समझते जाते हो। तुम हो - नैनहीन अन्धों की लाठी। उन्हों को रास्ता बताना है। अभी सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। वाणी से परे जाना है। बाबा कहते हैं मैं सबको ले जाऊंगा इसलिए जितना हो सके बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। इसको रूहानी यात्रा कहा जाता है। बाबा कहते हैं-हे राही बच्चे, थक मत जाना। बाप और रचना को याद करना है। रचना का मालिक बनना है। यह तो अति सहज है। हमेशा शिवबाबा को याद करते रहो। मोटर चलाते भी बुद्धि का योग कहाँ रहना चाहिए? बाबा अपना मिसाल बताते हैं-हम नारायण की पूजा करने बैठता था तो बुद्धि और तरफ चली जाती थी। फिर अपने को चमाट मारता था। तो अभी भी बुद्धि दौड़ती है। पुरूषार्थ करते-करते उनकी याद में शरीर छोड़ना है। मनुष्य भक्ति करते हैं कि कृष्ण की याद में हम शरीर छोड़ें तो कृष्णपुरी पहुँच जायें। परन्तु कृष्ण तो सबका बाप नहीं है। बाप सभी का एक है। सबका सद्गति दाता राम बाप ही आकर सब की सद्गति करते हैं। मुक्ति तो सबको मिल जाती है फिर जो भी आते हैं पहले उनको सुख देखना है जरूर। नई आत्मा ऊपर से आती है इसलिए उनका मान होता है। भल किसमें भी प्रवेश करती है तो उनका नाम बाला हो जाता है। तुम बच्चे जानते हो राजधानी स्थापना हो रही है। हम सो देवी-देवता बन रहे हैं। सिर्फ तुम ब्राह्मण ही संगमयुग पर हो, बाकी सब हैं कलियुग में। यहाँ आने वाले मानते जायेंगे बरोबर कलियुग का अन्त है। दुनिया बदल रही है। इसलिए ही यह महाभारी महाभारत लड़ाई है। तुम्हारे द्वारा सबको नॉलेज मिलती है। माताओं को लिफ्ट देने बाप आते हैं क्योंकि माताओं पर अत्याचार बहुत होते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) मोस्ट बिलवेड बाप को याद करने का पुरूषार्थ कौन कितना करते हैं, यह साक्षी हो देखते, स्वयं 8 घण्टे तक बाप की याद में रहने का अभ्यास करना है। 2) बाप समान रूप बसन्त बन विचार सागर मंथन कर ज्ञान दान देना है। अन्धों की लाठी बनना है। वरदानः अल्पकाल के संस्कारों को अनादि संस्कारों से परिवर्तन करने वाले वरदानी महादानी भव l अल्पकाल के संस्कार जो न चाहते हुए भी बोल और कर्म कराते रहते हैं इसलिए कहते हो मेरा भाव नहीं था, मेरा लक्ष्य नहीं था लेकिन हो गया। कई कहते हैं हमने क्रोध नहीं किया लेकिन मेरे बोलने के संस्कार ही ऐसे हैं...तो यह अल्पकाल के संस्कार भी मजबूर बना देते हैं। अब इन संस्कारों को अनादि संस्कारों से परिवर्तन करो। आत्मा के अनादि ओरीज्नल संस्कार हैं सदा सम्पन्न, सदा वरदानी और महादानी। स्लोगनः परिस्थिति रूपी पहाड़ को उड़ती कला के पुरूषार्थ द्वारा पार कर लेना ही उड़ता योगी बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 24 May 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 24/05/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, surrender everything you have, including your body, and then take care of it all as a trustee and your attachment will be removed from it. Question: What method should each Brahmin child definitely learn? Answer: :Definitely learn the method of doing service. Have the interest to prove who God is. You have received the Father's shrimat: Become sensible and give everyone the Father's message. Print such good introduction cards that people come to know that calling God omnipresent is to insult Him. You children can serve pilgrims very well. Song: What can storms do to those whose Companion is God? Om Shanti. You children heard the song. Only you children understand the meaning of this, because those who sang this song don't understand the meaning of it at all. Neither do they have God with them nor do they know when God comes and gives His children their inheritance of heaven. The Father Himself came and personally gave His children His introduction. That Father is now personally sitting in front of you and you are listening to Him. Only you understand the meaning of ‘storms’. Those people consider calamities to be storms. The storms that you experience are the storms of the five vices of Maya. Maya creates many obstacles to your efforts. However, you must not be concerned about them. Simply remember Baba very well and the storms will go away. The son of an emperor would have the faith that his father is an emperor and that he is the master of that sovereignty; he would have that intoxication. Among you children too, some of you have this firm faith and have made the Father belong to you. To make Him belong to you is not like going to your aunty's home! Mine is one Shiv Baba and none other, that’s all! Many children don't understand these things which is why the storms of Maya harass them and they then leave the Father. No one in the world knows God accurately. You children were originally residents of the Temple of Shiva (Shivalaya). This is now a brothel. At this time, human beings have become worse than monkeys. The anger of human beings is worse than that of monkeys. Even though they are human beings, they perform such actions, and this is why they are called worse than monkeys. No one knows who the greatest enemy of Bharat is, the one who made them worse than monkeys. The Father says: Look at your face in the mirror of your heart and see what were you before! The Father is now making you worthy. However, Maya makes those who don't follow shrimat unworthy. The Father gives you shrimat: Surrender everything you have including your bodies. Then Baba will make you trustees and enable you to end your attachment to them. It is very easy for you innocent mothers. When the kings of Rajasthan don't have their own children, they adopt children. When wealthy parents adopt a poor child, he becomes so happy: I am a master of so much property. Children of wealthy people also have a lot of intoxication that they are the children of multimillionaires. They don't know anything about this knowledge. You know how you have so much intoxication of this knowledge. By following shrimat, you become elevated whereas by not following shrimat, you don't become elevated. God says: You don’t have to be concerned about anything. Day and night, you should have the intoxication that Baba is giving you the inheritance of the kingdom of heaven for 21 births. We have become Baba's children. In fact, all are children of Shiv Baba, but Shiv Baba has now come and made you His children in a practical way. You are now sitting here personally and you know that Shiv Baba has made you belong to Him and is giving you directions to make you worthy of heaven: Children, don't become trapped in anyone's name or form. Only keep the name and form of Shiv Baba in your intellects. His name and form are different from those of human beings. The Father says: You used to belong to Me. You used to live in the land of nirvana. Have you souls forgotten that you are residents of the supreme abode, the land of peace, the land of nirvana (beyond sound) and that your original religion is peace? Those bodies are the organs with which to perform actions. How else would you play your parts? You don't know at all that we souls are residents of the incorporeal world. Only human beings would know all of these things; animals would not know them. They have said that God is omnipresent and they have thereby forgotten that they themselves are souls. They say that the Supreme Father, the Supreme Soul, sent Christ and Abraham here. Therefore, it was surely the Father who sent them here. You know that everyone continues to come here according to the drama. There is no question of sending anyone anywhere. At this time, human beings are in the darkness of ignorance. They neither know the Father nor themselves or creation. I am a soul and this body is separate. We souls have come from there. Baba alone reminds us of all of these things and He says: Remind everyone else too. You have had very good invitation cards printed. They also have a picture of Shiva. This is Baba, and this is Lakshmi and Narayan, the inheritance. It is written: Come and claim your inheritance from the Supreme Father, the Supreme Soul, to become like Lakshmi and Narayan. You are students who are changing from human beings into Narayan. When children of wealthy people study, they become so happy. However, they are nothing compared to us. They make effort for temporary happiness. You children will receive constant happiness. Only you can say this. Wherever you go, you should always have invitation cards with you. Explain to them: It is written on the card: “This is the Father of all souls, the Creator of heaven, and how you can receive the inheritance of heaven from Him.” You can drop these invitation cards from aeroplanes. You can even print it in newspapers. Then, big, eminent people will receive an invitation. These aeroplanes are for destruction and also for your service. Poor people cannot do this work, but the Father is the Lord of the Poor. Only the poor receive the inheritance. Wealthy people are trapped by attachment. Their hearts shrink in surrendering themselves. It is only at this time that the fortune of kumaris and mothers becomes bright. The Father says: I have to uplift Bharat, sages, scholars and holy men through you mothers. As you progress further, they will all come. At the moment, they think that there is no one like them. They don't know that the Father taught you Raja Yoga while you were living at home. Their hatha yoga and renunciation of karma is separate. God definitely comes and makes you into the masters of heaven. Therefore, you should have so much happiness. On the path of devotion, Baba used to keep a picture of Lakshmi and Narayan with him with a lot of love. He would be very happy seeing the picture of Shri Krishna. Baba explains to you children: If you want to benefit yourselves and others, keep yourself busy in service. The aim and objective is very clear. The inheritance is the deity world sovereignty. Up above is Shiv Baba and below Him are Lakshmi and Narayan. It is so easy to explain this. So, invite everyone! You are definitely to receive the inheritance of heaven from the unlimited Father. You must definitely distribute these leaflets where many people go. No one can say anything to you. If anyone does say something, we can explain and prove to him: How can you say that the Father from whom we receive the inheritance of heaven is omnipresent? The Father says: Look, you are insulting Me in this way. I made you into the masters of heaven and you then said that I am in the pebbles and stones! You are now receiving shrimat: Distribute many of these leaflets. Groups of people go on the pilgrimage to Amarnath and you can go there and distribute these leaflets. Written on them should be: I cannot be found by having sacrificial fires, doing tapasya and going on pilgrimages etc. However, those who explain to them have to be sensible. You have to explain that He is God, the Father. When you simply say, "Bhagwan, Ishwar, Paramatma", the word ‘Father’ is not included. When you say "God the Father", the word ‘Father’ is included. All of us are children of the one Father. If God is omnipresent, has He now become impure? He is the Highest on High. There is also a temple built as a memorial to Him. Therefore, you children should have the interest to do service tactfully. You can go on pilgrimages and do a lot of service. Those people are physical pilgrims whereas you are spiritual pilgrims. You should explain to them: Where are you going? Shankar and Parvati reside in the subtle region. How could they have come here? All of that is the path of devotion. So, you can do a lot of service in this way. Devotees, poor people, are stumbling around everywhere. Baba feels sorry for them. Tell them: You have forgotten your religion. Who established the Hindu religion? There is a lot of service to be done. You children have to become alert. The Father has come to give you the inheritance of heaven but, in spite of that, Maya catches hold of you by the nose and completely turns your face in the opposite direction. Therefore, remain very careful of Maya. You children are now sitting personally in front of BapDada. The world doesn't know that the Father has personally come here. The light of all souls has been extinguished. It hasn't been totally extinguished; a little light still remains. Then Baba comes and pours in the oil of knowledge. When a person dies, people light an earthenware lamp. Here, the lights of souls are awakened with yoga. You continue to imbibe knowledge. The ancient Raja Yoga of Bharat is very well known. Those of the path of isolation teach many different types of hatha yoga. There is no benefit through that; they continue to come down. No one except Yogeshwar (God of yoga) can teach yoga. It is God who teaches you yoga. He is incorporeal. The Father says: I am teaching you yoga. Your parts of 84 births have now ended. Some take 84 births, some take 60 and some even take one or two births. You children have to do a lot of service. Bharat itself was heaven; it was the kingdom of gods and goddesses. No one, apart from you, can explain these things. You are the ones who have to take insults. Baba had to take them, so can’t you children do the same? You have to tolerate the assaults. That too is fixed in the drama. The same will happen again. I am now making the intellects of you children divine. You should remember a great deal the Father who makes you into the masters of the world. He says: Children, may you remain alive! Claim the kingdom of heaven. Can you not remember such a sweet Father? Only by having remembrance will your sins be absolved. Any account of sin that still remains has to be settled here. If you don't have yoga, there will have to be punishment.At that time, Baba will grant you visions: You belonged to Me, you divorced Me and then became a traitor. You had visions in the beginning too. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children who are always safe and sound, love, remembrance and good morning from the Mother and Father. You children have to understand that you will shed your bodies and go to your sweet home. There is no pleasure at all in living here. We are now going to Baba. We have to remember Baba alone. From there, we will then go to the land of heaven. This pilgrimage is so wonderful! Maya causes a lot of obstacles in this. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Keep the name and form of Shiv Baba alone in your intellect. Do not become trapped in the name or form of anyone else.2. Don't be concerned about the storms of Maya. Mine is one Shiv Baba and none other: remove all storms in this way. Blessing: May you be a constant (non stop – akhand) server remaining free from any spinning of wasteful thoughts and do service free from obstacles. Everyone does service, but those who remain free from obstacles while serving have greater importance. Let there not be any type of obstacle in service. If there is any type of obstacle of the atmosphere, of the company or of laziness, that service is then damaged. A constant server can never be caught up in any obstacle. Let there not be the slightest obstacle even in your mind. Remain free from all the spinning of waste and you will be said to be a successful and constant server. Slogan: Those whose heads and hearts are honest are worthy of the Father’s and the family’s love. #english #Murli #bkmurlitoday #brahmakumari

  • Hindi - BK murli today 3-05-2018

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki madhur Murli - BapDada - 03-05-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - ऊंची मत एक बाप की है, उसी पर सदा चलते रहो, मातेले बन बाप से पूरा-पूरा वर्सा लो" प्रश्नः- सौतेले बच्चों को किस बात का निश्चय न होने के कारण बाप के पूरे मददगार नहीं बन सकते हैं? उत्तर:- सौतेले बच्चों को यह निश्चय ही नहीं होता कि अभी पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। बिना पवित्र बनें पवित्र दुनिया स्थापन नहीं हो सकती। यह निश्चय हो तो पूरे-पूरे मददगार बनें। मातेले बच्चे बाप को पूरा पहचान लायक बनने का पुरुषार्थ करते हैं। बाप की श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनते हैं। गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ.... ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। यह बच्चों का कहना है कि हम पाठशाला में आये हुए हैं। इनको कामॅन सतसंग नहीं कहेंगे। सत के साथ संग तुम्हारा ही है। सत कहा जाता है एक परमपिता परमात्मा को। अब तुम बच्चे उस सत अर्थात् बेहद बाप के संग में बैठे हो। बाप हैं वास्तव में दो। हद का बाप और बेहद का बाप। एक है सभी आत्माओं का निराकारी बाप, दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम बच्चों को अब दोनों बाप मिले हैं। बेहद का बाप, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, वह एक ही सब भक्तों का भगवान है। भक्त तो अथाह हैं। भगवान है एक। वह है निराकार बेहद का बाप। दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा बेहद का बाप और तीसरा है लौकिक बाप। शरीर तो विकार से जन्म लेने वाला है। उनको कुख वंशावली कहा जाता है। इस कलियुगी दुनिया को पाप आत्माओं की दुनिया कहा जाता है। दूसरी है पुण्य आत्माओं की दुनिया - वाइसलेस वर्ल्ड, नई दुनिया। दुनिया एक ही है, दो नहीं हैं। घर एक ही होता है, दो नहीं। शुरू में उसको नया घर कहा जाता है, फिर पुराना हो जाता है। भारत नया था तो उसको सतयुग कहा जाता है। अब पुराना है, तो उनको कलियुग कहा जाता है। इनको दु:ख देने वाली विकारी दुनिया कहा जाता है। जब विश्व नई थी तो भारत भी नया था। अब सृष्टि पुरानी है तो भारत भी पुराना हो गया है। नये भारत में सिवाए देवी-देवताओं के और कोई धर्म नहीं था। एक ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था और कोई खण्ड नहीं था, 5 हज़ार वर्ष की बात है। भारत को स्वर्ग कहा जाता था। दो कला कम हुई तो त्रेता में राम-सीता का राज्य हुआ। देवता, क्षत्रिय धर्म में आ गये। सतयुग त्रेता दोनों को मिलाकर सुखधाम कहा जाता है। जब दु:खधाम द्वापर से शुरू होता है तो भक्ति मार्ग शुरू होता है। भारत जो सद्गति में था सो दुर्गति में आ जाता है। पहले 16 कला सद्गति फिर 14 कला सद्गति फिर जब द्वापर से वाम मार्ग शुरू हुआ तो भारतवासी दु:खी होने शुरू हुए। दु:खी बनाया है रावण ने। अब सब रावण मत पर चल रहे हैं। ईश्वर को कोई जानते नहीं। ऊंचे ते ऊंची मत उनकी गाई हुई है। अब तुम आये हो नई दुनिया के लिए तकदीर जगाने। मनुष्य तो सब पुरानी दुनिया के लिए मेहनत करते हैं। तुम जानते हो अभी इस पुरानी दुनिया के विनाश के लिए महाभारत लड़ाई है। परन्तु विनाश होने के पहले नई सृष्टि भी चाहिए। अब बाप नई सृष्टि रच रहे हैं। तुम सब हो ईश्वर की सन्तान। पहले आसुरी सन्तान थे। अभी सदा पावन की सन्तान बने हो - सुखधाम का वर्सा पाने अर्थात् देवता पद पाने। तुम बेहद के बाप से तकदीर बनाने आये हो। बाप तुम बच्चों को बेहद का सुख देने फिर से आया है। भारतवासी बिल्कुल कौड़ी तुल्य बन पड़े हैं। अब राजा कोई नहीं, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। देवी-देवता जो पवित्र थे, अब पतित बन पड़े हैं। गाते हैं पतित-पावन आओ। रावण को जलाते हैं परन्तु रावण जलता नहीं। सतयुग में थोड़ेही जलायेंगे। सतयुग में वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी देवी-देवताओं का राज्य था। इस समय सब नर्क-वासी बन पड़े हैं। अब इस पार से उस पार जाना है। खिवैया एक ही है, वह आकर विषय सागर से क्षीर-सागर में ले जाते हैं। यहाँ के साहूकार लोग समझते हैं हम तो स्वर्ग में हैं। जो गरीब हैं वह नर्क में हैं। उनको मालूम नहीं स्वर्ग किसको कहा जाता है। तुम जानते हो सतयुग में था पारसनाथ और पारसनाथियों का राज्य। बेहद के बाप को तुम पहचान कर बाप कहते हो तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए। तुमको यह याद रखना है कि हम शान्तिधाम के वासी हैं। परमधाम से यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। 84 जन्म कैसे लेते हो - यह बाप बैठ सारा हिसाब समझाते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, अब कलियुग का अन्त है। यहाँ तुम बाप से सहज योग सीख रहे हो। तुम कहते हो - बाबा, हम सूर्यवंशी घराने में जरूर आयेंगे। यह एम ऑब्जेक्ट है। यह पाठशाला है भगवान की। भगवानुवाच - बच्चे, मैं तुमको मनुष्य से देवता बनाने आया हूँ। तुम राजाओं का राजा बनो। मातेले बन पूरा वर्सा लो। श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनेंगे। बाप है ऊंचे ते ऊंचा। निराकार भगवान, न साकारी, न आकारी। आकारी है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर देवतायें। उनको भगवान नहीं कहा जाता है। भगवान है एक, भक्त हैं अनेक। बाबा पूछते हैं भक्त कितने हैं? 5-6 सौ करोड़। भक्ति मार्ग वाले भक्त अब धक्के खा रहे हैं। कोई कहाँ, कोई कहाँ। तुम सब ड्रामा के एक्टर्स हो तो ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर का मालूम होना चाहिए। परन्तु कुछ भी नहीं जानते। सतयुग में सूर्यवंशी देवतायें थे उन्हों की महिमा गाते हैं। हैं तो दोनों मनुष्य फिर उन्हों की महिमा क्यों गाते हैं? क्योंकि उन्हों को ईश्वर ने ऐसा बनाया है। तुमको भी बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। फिर तुम देवता से क्षत्रिय... आदि बनेंगे। नई दुनिया में रहने वाले देवतायें फिर पुरानी दुनिया में तमोप्रधान पतित बन जाते हैं। बाबा आकर फिर लायक बनाते हैं। कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं। तुम्हारे में कोई अच्छी रीति पहचानते हैं कोई सेमी। सेमी को सौतेला कहा जाता है। निश्चय नहीं करते कि बाबा हम जरूर पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। मददगार नहीं बनते। पहले तो मात-पिता का बनना पड़े। बाबा हम आपके थे फिर आधा कल्प बाप को भूल माया के वश हो गये। अब फिर आपके बने हैं। इस पतित दुनिया में पतितों का ही मान है। स्वर्ग में ऐसी कोई बात नहीं होती। बाबा ने समझाया है स्वर्ग में शरीर छोड़ने के पहले साक्षात्कार होता है। अभी हम यह शरीर छोड़ जाए बालक बनेंगे। शरीर की आयु पूरी हुई है। अकाले मृत्यु होता नहीं। पुराना शरीर छोड़ नया ले लेते हैं। सर्प का मिसाल, भ्रमरी का मिसाल... भ्रमरी में भी अक्ल है। आज के मनुष्य में यह अक्ल नहीं रहा है। तुम सच्ची-सच्ची भ्रमरियाँ हो। वैरायटी कीड़ों को भूँ-भूँ करके मनुष्य से देवता बनाती हो। तुमको बाप सुखी बनाने आया है। सहज योग सिखलाने आया है। बाप ने राजयोग कब सिखलाया था, यह कोई नहीं जानते इसलिए बाप कहते हैं - बच्चे, तुम मेरी मत पर चलकर श्रेष्ठ बनो। इस समय सबकी आसुरी मत है। सर्व-व्यापी के ज्ञान ने भारत को बिल्कुल कौड़ी मिसल बनाया है। कर्जा लेते रहते हैं। भगवान कौन है, कहाँ रहते हैं - मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। वह तो निराकार है फिर यहाँ कैसे ढूँढते हो। भगवान कहते हैं तुम कहते हो हम शिवानंद के फालोअर्स हैं फिर उनको फालो कहाँ करते हो। आजकल उन्हों का कितना मान है। परन्तु श्रीमत तो एक ही परमपिता परमात्मा की गाई हुई है। अब तुम आये हो ईश्वर की मत पर चल ईश्वर से वर्सा लेने के लिए। बाप कहते हैं जो धक्के खाते हैं वह मुझे नहीं जानते हैं। उनको पता ही नहीं कि बाप पढ़ाकर वर्सा दे विश्व का मालिक बनाते हैं। तुम अभी धक्का खाने से छूट गये हो। भगवानु-वाच - तुम्हें देवता बनाने आया हूँ। तुम बी.के.जानते हो भगवान आकर बच्चों को विश्व के मालिकपने का वर्सा देते हैं। तुम पुरुषार्थ से विश्व के मालिक बनते हो। बाप है विश्व का रचता। अब तुमको धक्का नहीं खाना है। धक्के खाने वाले को भगवान नहीं मिलता है। तुम तो बाप से सुख का वर्सा लेते हो। बाकी सबको शान्तिधाम का वर्सा मिल जायेगा। अब दु:ख का खाता खलास कर सुख का जमा करते हो। बाकी सब सजा खाकर अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। बच्चों ने गीत सुना। नई दुनिया के लिए नई तकदीर बनाने आये हैं। वही तकदीर फिर 21 जन्म पूरा होने से पुरानी बनती है। अब पुरुषार्थ करना है - चाहे सूर्यवंशी राज्य लो, चाहे साहूकार प्रजा बनो, चाहे गरीब प्रजा बनो। प्रजा भी बहुत साहूकार होती है जो कई राजे लोग भी उन्हों से कर्जा लेते हैं। अभी भी प्रजा साहूकार है। सतयुग में ऐसे नहीं होता। जो पिछाड़ी में राजा-रानी बनते हैं उनसे प्रजा में बहुत साहूकार होते हैं। बड़े-बड़े महलों में रहते हैं। अब जो चाहे बनो। अभी सब दु:खी हैं, बाबा आये हैं तुमको स्वर्ग में सदा सुखी अथवा स्वर्गवासी बनाने। इस समय नर्क के वासी फिर भी जन्म नर्क में ही लेंगे। तुम स्वर्गवासी बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो। बाबा के शरीर का कोई नाम नहीं है। मनुष्यों को 84 जन्म में 84 नाम मिलते हैं। भिन्न नाम, रूप, देश, काल। शिवबाबा को न आकारी, न साकारी शरीर मिलता है। कहते हैं मैं लोन लेता हूँ। आता तब हूँ जब इनकी वानप्रस्थ अवस्था होती है। यह ड्रामा सेकेण्ड बाई सेकेण्ड शूट होता जाता है। हम तुम कल्प पहले मिले थे, अब मिले हैं, फिर मिलेंगे। जो सेकेण्ड बीता सो ड्रामा। बाप भी ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ है। बाप कहते हैं तुम बच्चों को आकर हीरे जैसा बनाता हूँ। मैं तुम्हारा मोस्ट ओबिडियेन्ट, मोस्ट बिलवेड फादर, टीचर और सतगुरू भी बनता हूँ। मेरा कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। सबका बाप मैं स्वयं हूँ। नॉलेजफुल हूँ। मेरा कोई गुरू नहीं। स्वयं सबका सद्गति दाता हूँ। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) भ्रमरी की तरह भूँ-भूँ कर मनुष्य को देवता बनाने की सेवा करनी है। बाप की श्रीमत पर सदा सुखी बनना और बनाना है। 2) ऊंच तकदीर बनाने के लिए पावन जरूर बनना है। सबको विषय सागर से क्षीरसागर में ले चलने के लिए बाप समान खिवैया बनना है। वरदान:- रूहानी प्रसन्नता के वायब्रेशन द्वारा सर्व को शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव जो परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न, सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चे हैं, उनके चेहरे द्वारा रूहानी प्रसन्नता के वायब्रेशन अन्य आत्माओं तक पहुंचते हैं और वे भी शान्ति और शक्ति की अनुभूति करते हैं। जैसे फलदायक वृक्ष अपने शीतलता की छाया में मानव को शीतलता का अनुभव कराता है और मानव प्रसन्न हो जाता है, ऐसे आपकी प्रसन्नता के वायब्रेशन अपने प्राप्तियों की छाया द्वारा तन-मन के शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराते हैं। स्लोगन:- जो स्मृति स्वरूप रहते हैं उन्हें कोई भी परिस्थिति खेल अनुभव होती है। #brahmakumaris #Hindi

  • 20 Oct 2018 BK murli in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today Hindi Aaj ki Murli Madhuban 20-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन'' 'मीठे बच्चे - याद में रहने की ऐसी प्रैक्टिस करो जो अन्त में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी याद न आये'' प्रश्नः- किस एक श्रीमत को पालन करने से तुम बच्चे तकदीरवान बन सकते हो? उत्तर:- बाप की श्रीमत है - बच्चे, नींद को जीतने वाले बनो। सवेरे का समय बहुत अच्छा होता है। उस समय उठकर मुझ बाप को याद करो तो तुम बख्तावर बन जायेंगे। अगर सवेरे-सवेरे उठते नहीं हैं तो जिन सोया तिन खोया। सिर्फ सोना और खाना - यह तो गँवाना है इसलिए सवेरे उठने की आदत डालो। गीत:- तूने रात गँवाई सोय के........ ओम् शान्ति।यह कहानी बच्चों प्रति है। बाप कहते हैं बच्चे खाना और सोना, यह कोई लाइफ नहीं। जबकि तुम बच्चों को यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान मिल रहा है, झोली भर रही है। फिर सोना और खाना यह तो गँवाना है। सवेरे उठने की बड़ी महिमा है। भक्ति मार्ग में भी, ज्ञान मार्ग में भी, क्योंकि सवेरे के समय बहुत शान्ति रहती है। आत्मायें सब अपने स्वधर्म में रहती हैं। अशरीरी होकर विश्राम पाती हैं। उस समय याद बहुत रहती है। दिन में तो माया का धमपा रहता है, यह एक ही टाइम अच्छा है। अभी हम कौड़ी से हीरे जैसा बन रहे हैं। बच्चों को बाप कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो, हम तुम्हारे बच्चे हैं। बाप बच्चा बनता है, यह भी समझने की बात है। बाप अपने बच्चों को वर्सा देते हैं। वैसे मैं सौदागर तो हूँ ही। तुम्हारा कौड़ी जैसा तन-मन यह सब वर्थ नाट ए पेनी है। वह पुराना तुम्हारा सब कुछ लेकर फिर तुमको दे देता हूँ कि ट्रस्टी होकर सम्भालो। तुम जन्म बाई जन्म गाते आये हो - कुर्बान जाऊंगी, बलिहार जाऊंगी। हमारा तो एक, दूसरा न कोई क्योंकि सजनियां तो सब हैं। तो एक ही साजन को याद करेंगी। देह सहित सब सम्बन्धों को भूलते-भूलते एक की ही इतनी याद रहे जो अन्त में न यह शरीर, न और कोई याद आये। इतनी प्रैक्टिस करनी है। सवेरे का समय बड़ा अच्छा है। तुम्हारी यह सच्ची-सच्ची यात्रा है। वह तो जन्म बाई जन्म यात्रायें करते आये लेकिन मुक्ति को तो पाया नहीं, तो झूठी यात्रा हुई ना। यह है रूहानी और सच्ची मुक्ति और जीवनमुक्ति की यात्रा। मनुष्य तीर्थो पर जाते हैं तो अमरनाथ, बद्रीनाथ याद रहते हैं ना। ख़ास 4 धाम कहते हैं। तुमने कितने धाम किये होंगे! कितनी भक्ति की होगी! आधा-कल्प करते आये हो। अब इन बातों को कोई भी जानते ही नहीं। बाप ही आकर लिबरेट करके फिर गाइड बन साथ ले जाते हैं। कितना वन्डरफुल गाइड है। बच्चों को ले जाते हैं - मुक्ति-जीवनमुक्ति धाम। ऐसा गाइड कोई होता नहीं। सन्यासी लोग सिर्फ मुक्तिधाम कहेंगे, जीवनमुक्ति अक्षर उनके मुख से निकलेगा नहीं। उसको तो वह काग विष्टा समान अल्पकाल का सुख समझते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाप है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। हे मात-पिता, आपके जब हम बालक बनते हैं तो हमारे सब दु:ख दूर हो जाते हैं। आधाकल्प हम सुखी बन जाते हैं। यह तो बुद्धि में रहता है ना। परन्तु धन्धे आदि में जाने से भूल जाते हैं। सवेरे उठते नहीं हैं। जिन सोया तिन खोया।तुम जानते हो - बरोबर हमको हीरे जैसा जन्म मिला है। अब भी अगर नींद से सवेरे नहीं उठेंगे तो समझेंगे यह बख्तावर नहीं है। सुबह को उठकर मोस्ट बिलवेड बाप को, साजन को याद नहीं करते हैं। आधा-कल्प से साजन बिछुड़ा है और बाप को तुम सारा कल्प भूल जाते हो फिर भक्ति मार्ग में तुम साजन के रूप में वा बाप के रूप में याद करते हो। सजनी साजन को भी याद करती है। उनको फिर बाप भी कहा जाता है। अभी बाप सम्मुख है तो उनकी श्रीमत पर चलना पड़े। श्रीमत पर अगर नहीं चलते तो यह गिरे। श्रीमत अर्थात् शिवबाबा की मत। ऐसे नहीं, हमको क्या पता, किसकी मत मिलती है। समझना चाहिए इनकी मत का भी वह रेसपान्सिबुल है। जैसे लौकिक रीति बच्चों का बाप रेसपान्सिबुल है, सन शोज़ फादर। यह ब्रह्मा तन भी फादर का शो करता है। मुरब्बी बच्चा है। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे हैं जो यह नहीं जानते कि हम किसकी मत पर चलते हैं, कौन डायरेक्शन देते हैं? बाबा को तो याद नहीं करते। सवेरे उठते नहीं, याद नहीं करते तो विकर्म भी विनाश नहीं होते। बाबा बतलाते हैं इतनी मेहनत करता हूँ तो भी कर्मभोग चलता रहता है क्योंकि एक जन्म की तो बात नहीं है ना। अनेक जन्मों का हिसाब-किताब है। डायरेक्शन मिला हुआ है, इस जन्म के भी पाप बतलाने से आधा कट सकता है। यह तो बाप कहते हैं - मैं जानता हूँ और धर्मराज जानते हैं। पाप बहुत किये हुए हैं। धर्मराज गर्भजेल में सजा देते आये हैं। अभी तो तुम पुरुषार्थ कर, विकर्म विनाश करते हो तो फिर गर्भ महल मिलता है। वहाँ तो माया होती नहीं जो मनुष्य को पाप करावे और सजा खानी पड़े। आधाकल्प है ईश्वरीय राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य। सर्प का मिसाल भी यहाँ का है। सन्यासियों ने कॉपी की है। जैसे भ्रमरी का मिसाल बाबा देते हैं। भ्रमरी कीड़े को अपने घर में ले आती है। तुम भी पतितों को ले आते हो। फिर उनको बैठ शूद्र से ब्राह्मण बनाते हो। तुम्हारा नाम ब्राह्मणी है। यह भ्रमरी का दृष्टान्त बहुत अच्छा है। प्रैक्टिकल में आते तो बहुत हैं फिर कोई कच्चे रह जाते, कोई सड़ जाते, कोई ख़त्म हो पड़ते। माया बड़ा त़ूफान में लाती है। तुम हर एक वास्तव में हनूमान हो। माया कितना भी तूफान लाये हम बाबा को और स्वर्ग को कभी नहीं भूलेंगे। घड़ी-घड़ी बाबा कहते हैं - सावधान! मनुष्य तो तीर्थो पर धक्के खाने लिए जाते हैं। यहाँ और तो कहाँ नहीं जाते। एक ही बाप और सुखधाम को याद करते रहना है। तुम तो बरोबर विजय पहनने वाले ही हो। इनको बुद्धियोग बल, ज्ञान बल कहा जाता है। याद करने से बल मिलता है, बुद्धि का ताला खुलता है। अगर कोई भी बेकायदे चलन चलते हैं तो उनकी बुद्धि का ताला ही बंद हो जाता है। बाप समझाते भी हैं अगर तुम ऐसा करेंगे तो ड्रामा अनुसार बुद्धि का ताला बन्द हो जायेगा। किसको कह नहीं सकेंगे कि विकार में मत जाओ। अन्दर खाता रहेगा - हमने इतने पाप किये हैं! अज्ञानकाल में भी खाता है। मरते हैं फिर तोबां-तोबां करते हैं। फिर पिछाड़ी में सब पाप सामने आ जाते हैं। गर्भजेल में गया फट से सजायें शुरू हो जाती हैं। पिछाड़ी में याद जरूर आता है। तो अब बाप कहते हैं तुमको तो तोबां-तोबां नहीं करनी है, तुम पाप मत करो। जेल बर्ड होते हैं ना। तुम भी जेल बर्ड थे। अभी बाबा गर्भ जेल की सजाओं से छुड़ाते हैं। कहते हैं मुझ बाप को याद करो तो पापों की सजाओं से छूट जायेंगे, तुम पावन बन जायेंगे। अगर फिर गिरे तो बहुत चोट लग जायेगी। अशुद्ध अहंकार है पहले। फिर है काम, क्रोध। काम महाशत्रु है। यह तुमको आदि-मघ्य-अन्त दु:ख देते आये हैं। तुम आदि-मध्य-अन्त सुख के लिए पुरुषार्थ करते हो। तो पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए। बोलते हैं सवेरे जाग नहीं सकते हैं तो फिर पद भी ऊंच पा नहीं सकेंगे। दास-दासी बनना पड़ेगा। वहाँ कोई गोबर आदि नहीं उठाना पड़ता, मेहतर नहीं होते। अभी भी विलायत में नौकर आदि नहीं रखते हैं। आपेही सफाई हो जाती है। वहाँ तो गन्दगी होती नहीं। बाकी चण्डाल, दास-दासियां आदि होते हैं।बाप तुम बच्चों को सब राज़ समझाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में सारी राजधानी है। तुम ड्रामा को समझ गये हो। पहले-पहले मुख्य इस चक्र को समझाना है। अब ओपनिंग के लिए गवर्नर आदि को बुलाते हैं। तो बच्चों को डायरेक्शन मिलते हैं ओपनिंग कराने के पहले उनको कुछ समझाओ कि भारत श्रेष्ठाचारी था, अब फिर भारत भ्रष्टाचारी बना है। भारत के पूज्य देवी-देवतायें ही फिर पुजारी मनुष्य बने हैं। यह जरूर समझाना है। जो वह खुद भी कहें कि सृष्टि चक्र का राज़ यह समझाते हैं। जो यह जानते हैं उनको त्रिकालदर्शी कहा जाता है। मनुष्य होकर अगर ड्रामा को न जाने तो बाकी क्या काम का। ऐसे तो बहुत कहते हैं बी.के. की पवित्रता बहुत अच्छी है। पवित्रता तो सबको अच्छी लगती है। सन्यासी पवित्र हैं, देवतायें पवित्र हैं तब तो उन्हों के आगे माथा झुकाते हैं ना। परन्तु यह और बात है। पतित-पावन एक परमात्मा ही हो सकता है। पतित से पावन बनाने वाला मनुष्य गुरू हो न सके। यह समझाना चाहिए। कृपा करके इस बात को आप समझो, तो आपका पद बहुत ऊंच हो जायेगा। भारत पूज्य से पुजारी कैसे बना है, भारतवासी देवी-देवता 84 जन्म कैसे लेते हैं - यह समझाओ। यह बातें जरूर समझानी है। क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारतवासी देवी-देवता ही थे। उसको सुखधाम हेवन कहा जाता है। स्वर्ग सो अब फिर नर्क बना है। यह फिर तुम बैठ समझायेंगे तो बहुत भारी तुम्हारी महिमा होगी। अखबार वालों को भी पार्टी देनी है। फिर वह आग लगायें या पानी डालें, उन पर सारा मदार है। यह तो तुम बच्चे जानते हो लड़ाई लगनी ही है। खून की नदी बहेगी भारत में। हमेशा यहाँ से ही खून की नदी बहती आई है। हिन्दू-मुसलमानों की बहुत मारा-मारी होती है। अभी पार्टीशन हुआ तो कितने मनुष्य दरबदर हुए। एकदम अलग-अलग राजधानी हो गई। यह भी ड्रामा में नूँध है। आपस में लड़ते, फ्रैक्शन डालते हैं। पहले कोई हिन्दुस्तान, पाकिस्तान अलग थोड़ेही था। भारत में ही रक्त की नदी बहनी है तब फिर घी की नदी बहेगी। नतीजा क्या होता है? थोड़े बच जाते हैं। तुम पाण्डव हो गुप्त वेष में।तो गवर्नर को पहले परिचय देना है। जिसके पास जाना होता है, उनकी पहले महिमा की जाती है। परन्तु उन्हों के लिए क्या लिखा हुआ है, यह राज़ तुम ही जानो। वह थोड़ेही समझते हैं कि यह मृगतृष्णा के समान राज्य है। ड्रामा अनुसार उन्हों के भी अपने प्लैन्स बनते ही हैं। महाभारत में दिखाते हैं प्रलय हो गई। अब महाप्रलय तो होती नहीं। तुम बच्चों के अन्दर सृष्टि चक्र का ज्ञान हर वक्त गूँजना चाहिए। पहले तो वह समझें कि इन्हों को शिक्षा देने वाला कौन है! तब समझें बरोबर हम भी तो शिव के बच्चे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। यह सिजरा है। प्रजापिता ब्रह्मा है ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर। मनुष्य सृष्टि का बड़ा तो ब्रह्मा हो गया ना। शिव को ऐसे नहीं कहेंगे, उनको सिर्फ फादर कहेंगे। ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर - यह टाइटिल हो गया प्रजापिता ब्रह्मा का। जरूर ग्रैन्ड मदर, ग्रैन्ड चिल्ड्रेन भी होंगे। तुम बच्चों को यह सब समझाना है। शिव है सभी आत्माओं का बाप। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं। तुम जानते हो हमारी फिर कितनी बिरादरियां निकलती हैं। गवर्नर को समझाना चाहिए कि ऐसी एग्जीवीशन तो कोने-कोने में करानी चाहिए, आप प्रबन्ध कराके दो। हमको तो देखो तीन पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते और फिर हम विश्व के मालिक बन जाते है। तुम प्रबन्ध करके दो तो हम भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करें। वह तुमको थोड़ी मदद देंगे तो भी सब उनको कहने लग पड़ेंगे कि गवर्नर भी ब्रह्माकुमार बना है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) कौड़ी जैसा तन-मन-धन जो भी है उसे बाप पर कुर्बान कर फिर ट्रस्टी होकर सम्भालना है। ममत्व निकाल देना है। 2) सवेरे-सवेरे उठ बाप को प्यार से याद करना है। ज्ञान बल और बुद्धियोग बल से माया पर विजय पानी है। वरदान:- सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती कला में उड़ने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव ज्ञान-योग के साथ-साथ हर समय, हर कर्म में, हर दिन नया उमंग-उत्साह बना रहे, यही उड़ती कला का आधार है। कैसा भी कार्य हो, चाहे सफाई का हो, बर्तन मांजने का हो, साधारण कर्म हो, उसमें भी उमंग-उत्साह नैचुरल और निरन्तर हो। उड़ती कला वाली श्रेष्ठ आत्मा उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ती रहेगी, वह कभी कनफ्युज़ नहीं होगी, छोटी-छोटी बातों में थककर रुकेगी नहीं। स्लोगन:- जो निमार्णचित, अथक और सदा जागती ज्योत हैं - वही विश्व कल्याणकारी हैं। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 5 Sep 2018 Aaj ki Murli

    Brahma Kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 05-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन' 'मीठे बच्चे - सर्विस का शौक रखो, विशाल बुद्धि बन सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियां निकालो, जो बातें बिगर अर्थ हैं, उन्हें करेक्ट करो'' प्रश्नः- आत्मा जो अजामिल जैसी गंदी बन गई है उसको साफ करने का साधन क्या है? उत्तर:- उसे ज्ञान मान सरोवर में डुबो दो, अगर ज्ञान सागर में डूबे रहे तो आत्मा की मैल साफ हो जायेगी। गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन....... ओम् शान्ति।बच्चों की बुद्धि में क्या आता है? कौन आया है? (बाप, टीचर, सतगुरू) मात-पिता अक्षर तो जरूर चाहिए। मात-पिता अक्षर भारत में प्रचलित है। तुम मात-पिता...... पीछे तुम कह सकते हो बाप-दादा। वैसे तो मात-पिता में बाप-दादा आ जाता है परन्तु नहीं, यह समझाने का तरीका है क्योंकि बाप है माँ भी जरूर चाहिए। अब माता पहले कौन है? यह है गुह्य ते गुह्य बात, जो कोई समझ न सके। क्या प्रजापिता ब्रह्मा होने से भी माता चाहिए? प्रजापिता ब्रह्मा के साथ कोई प्रजापत्नी भी चाहिए? नहीं। प्रजापत्नी नहीं चाहिए, क्योंकि यह मुख वंशावली हैं इसलिए ब्रह्मा की पत्नी कोई हो नहीं सकती। यह बहुत गुह्य और गम्भीर बातें हैं, इसे समझने और धारण करने के लिए बुद्धि चाहिए। यह एक ही बाप है जो बच्चों के सम्मुख आते हैं। तुम तो समझते हो मात-पिता बाप-दादा सम्मुख आया है। बच्चे बाहर में सर्विस करते हैं, सेन्टर्स पर जो रहते हैं वह यह नहीं समझेंगे कि मात-पिता, बाप-दादा सम्मुख आये हैं। वह समझेंगे फलानी बी.के. वा ब्रह्माकुमारी आई है। यह मम्मा एडाप्ट की हुई है। सबसे लक्की सितारा जगत अम्बा है, यह सम्भालने के लिए मुख्य है इसलिए इन पर कलष रहता है और यह (ब्रह्मा) तो हो गई ब्रह्म पुत्रा, मेल के रूप में। तो सरस्वती जरूर चाहिए। सरस्वती को ही जगत अम्बा कहा जाए। इस मेल को तो जगत अम्बा नहीं कहेंगे। यह बड़ा अच्छा राज़ है जो कोई भी गीता-भागवत में नहीं है। शास्त्रों में कहानियां बैठ लिखी हैं। 5 हजार वर्ष पहले वा 2500 वर्ष पहले क्या हुआ था सो बैठ लिखते हैं। वह नाम, रूप, देश, काल तो कुछ है नहीं। नाटक भी अनेक प्रकार के बनाते हैं। यह बाप बैठ सम्मुख अच्छी रीति समझाते हैं कि बच्चे, हर एक बात को पूरा समझ जायें। इन गीतों में भी कई बिगर अर्थ अक्षर हैं। अब आकाश तत्व तो यह है, इसमें तो हम बैठे हैं। जिस पारलौकिक बाप को सब याद करते हैं वह कोई आकाश तत्व से आते नहीं हैं। अगर कृष्ण की आत्मा कहें वह तो यहाँ ही है। सब मुख्य-मुख्य आत्मायें, धर्म स्थापक आदि यहाँ ही हैं। कृष्ण की आत्मा भी 84 वें जन्म में यहाँ ही है। उनकी आत्मा को तो बुला न सकें। यह परमपिता परमात्मा को बुलाया जाता है कि आओ, अपना महतत्व निर्वाणधाम छोड़कर वहाँ से आओ। तुम आत्माओं का सिंहासन तो महतत्व है। आकाश में तो तुम जीव आत्मायें रहती हो। यह माण्डवा है, खेल चलने का। जब गीत सुनते हो, दिल में आपेही करेक्ट करते जाओ। यह तो जिन्होंने नाटक बनाये हैं उन्होंने ही फिर गीत बनाये हैं। फिल्म शूट करने वालों को भी समझाना चाहिए। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा राय देते हैं सर्विस करने लिए। यह ड्रामा जिसने बनाया है, उन्हें समझाना चाहिए। उनसे मिलना चाहिए। इतनी समझ चाहिए। बाप तो डायरेक्शन देंगे। बाप को तो जाकर नहीं पूछना है। बाप तुम बच्चों को डायरेक्शन देंगे - ऐसे-ऐसे करो, श्रीमत पर चलो। (गीत) वास्तव में धरती यह भारत खण्ड है। भारत में ही उनका आना होता है। भारत ही उनका बर्थ प्लेस है। सभी उस निराकार फादर को ही बुलाते हैं। कृष्ण तो सबका फादर नहीं है। और मुरली जो दिखाते हैं वह कोई काठ की तुतारी तो नहीं है, जो कृष्ण के हाथ में देते हैं। मुरली तो वास्तव में ज्ञान की है।गॉडेज ऑफ नॉलेज सरस्वती को कहते हैं। राधे को नहीं कहेंगे, कृष्ण को भी नहीं कहेंगे। यह तो जोड़ी है बाप और बच्चे की। सरस्वती को कहा जाता है गॉडेज ऑफ नॉलेज। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा भी गॉड ऑफ नॉलेज होना चाहिए। लेकिन ब्रह्मा के लिए तो गाया नहीं जाता। गॉड इज नॉलेजफुल कहा जाता है। ब्रह्मा नॉलेजफुल नहीं, गॉड इज नॉलेजफुल। परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर है तो जरूर अपने बच्चों को ज्ञान देंगे। पहले-पहले इनमें प्रवेश कर इन द्वारा दूसरों को देते हैं, इनमें सब लक्की सितारे आ जाते हैं। ज्ञान सूर्य, फिर ज्ञान चन्द्रमा यह (ब्रह्मा) हुए, फिर चाहिए ज्ञान चन्द्रमा के नज़दीक एक सितारा, जो चन्द्रमा के सामने खड़ा रहता है। वह बहुत तीखा होता है। उनको ज्ञान लक्की सितारा कहेंगे। उनका नाम सरस्वती रखा हुआ है। सरस्वती बेटी हो गई ना। यह तो बाप भी हुआ, बड़ी नदी भी हुई। बहुत बड़ी नदी है। सब नदियों का मेल सागर में होता है। सागर और नदियों का मेला होता है। सरस्वती भी सागर में मिलती है। उनका मेला नहीं लगता है। मेला ब्रह्म पुत्रा नदी का लगता है। यह नदी वन्डरफुल है, मेल है। नदी तो फीमेल को कहा जाता है। यह गुह्य राज़ बहुत समझने लायक है। परन्तु यह बातें पहले-पहले कोई को नहीं बतानी चाहिए। पहले तो लौकिक मात-पिता, पारलौकिक मात-पिता का राज़ समझाना चाहिए। लौकिक मात-पिता से अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता आया है। यह तो पक्का याद रहना चाहिए। दूसरा कोई दो बाप का राज़ समझा न सके। वह तो जानते ही नहीं। गाते हैं - तुम मात-पिता....... अब पिता सर्वव्यापी है तो माता कहाँ गई? यह समझने की बात है ना। मात-पिता चाहिए ना। मात-पिता कहा जाता है निराकार को। परन्तु यह समझते नहीं कि इनको मात-पिता क्यों कहा जाता है! वह तो गॉड फादर है। फिर कहते हैं एडम और ईव। एडम ही ईव है, यह नहीं समझते। प्रजापिता ब्रह्मा वही फिर माता हो जाती है। एडम और ईव अथवा आदम-बीबी कहते हैं। परन्तु अर्थ नहीं समझ सकते हैं। बच्चे समझ सकते हैं आदम-बीबी वास्तव में यह है। बीबी सो आदम है। इनको बीबी-आदम दोनों कह देते हैं। वह तो है बाप। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। भारत में गाते भी हैं तुम मात-पिता..... ऐसे ही सुनी-सुनाई पर गाते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते।सतयुग को बहुत दूर ले गये हैं। लाखों वर्ष कह देते हैं। लांग लांग भी कितना? कहानी तो नज़दीक की ही सुनाई जाती है। तुम समझा सकते हो लांग-लांग एगो यानी 5 हजार वर्ष पहले इस भारत में देवी-देवताओं का अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य था। और कोई राज्य नहीं था। यह अक्षर कोई विद्वान, आचार्य कह नहीं सकते। देवी-देवताओं का राज्य था, मालूम होना चाहिए कैसे स्थापन हुआ? लक्ष्मी-नारायण कैसे बनें? कैसे उन्हों की राजाई स्थापन हुई? उनके पहले तो कलियुग था। बरोबर कलियुग का अन्त अब है और कलियुग के बाद फिर सतयुग होगा। सतयुग सामने आ गया है। जो लांग-लांग था वह सामने आ गया। 84 जन्म लेते-लेते अब कलियुग का अन्त आकर हुआ है। अभी तुमको कहेंगे 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का सतयुग में राज्य था, अभी नहीं है। अभी टाइम आकर पूरा हुआ है। फिर से लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन हो रहा है, यह तुम्हारी बुद्धि में है। जिसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। यह है समझाने की बात। यह तो सच्ची गीता आदि इसलिए लिखी जाती है कि कोई पढ़कर रिफ्रेश होते रहें। यह जानते हैं जो लिखा जाता है वह फिर प्राय:लोप हो जायेगा। यह सच्ची गीता भी नहीं रहेगी। जो तुम लिखते हो वह सच्चा ज्ञान प्राय:लोप हो जाना है और साथ-साथ शास्त्र भी सब प्राय:लोप हो जायेंगे। सतयुग-त्रेता में शास्त्र होते नहीं। फिर कल्प पहले जैसे द्वापर से बने थे वैसे बनने लग पड़ेंगे। यह है भक्ति मार्ग की सामग्री। रचना की सामग्री बहुत बड़ी है। तुम ज्ञान सेकेण्ड में ले लेते हो। सारी रचना के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। अंगे-अखरे (तिथि-तारीख सहित) पूरा हिसाब-किताब है। 84 जन्म सब नहीं लेते हैं। कोई 70 लेते, कोई 60 लेते, कोई दो भी लेते हैं। वह सारा मिनीमम और मैक्सीमम का हिसाब है। पीछे आने वालों के जरूर नम्बरवार थोड़े-थोड़े जन्म होंगे। उसका फिर विस्तार करना फालतू हो जाता है। तुम बच्चे नटशेल में समझ सकते हो। 84 लाख जन्म तो हैं नहीं, 84 जन्म भी हर एक नहीं ले सकते हैं। ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं 84 का चक्र है। 84 लाख जन्मों का चक्र नहीं गाया जाता। (गीत) पाप कपट की छाया पड़ गई है। अब रावण का राज्य है ना। आत्मा पर मैल की छाया पड़ते-पड़ते अब बिल्कुल ही अजामिल हो गये हैं। इतनी मैल चढ़ी है जो साफ होती ही नहीं। उस मैल को निकालने लिए फिर गाया हुआ है ज्ञान मानसरोवर, उसमें डूबा रहे। जैसे जंक लगती है तो उनको उतारने के लिए घासलेट में डाला जाता है। यह भी जंक लगी है इसलिए ज्ञान सागर में डूबे रहो। कोई पानी की नदी वा सागर की बात नहीं है। ज्ञान सागर जो ज्ञान देते हैं उस नॉलेज में तत्पर रहना है। गृहस्थ व्यवहार को भी सम्भालना है। उसमें कोई मत चाहिए तो लेते रहो। हर एक का कर्मबन्धन अपना-अपना है। सर्जन सबके लिए एक ही दवा नहीं देते हैं। हर एक का कर्मबन्धन, हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है। यह 5 विकारों की बीमारी महाभारी है। इस बीमारी को कोई जानते ही नहीं हैं। यह कब से शुरू होती है? आत्मा को बीमारी लगने से शरीर को भी बीमारी लग जाती है। आत्मा में दु:ख पड़ता है तो शरीर में भी पड़ जाता है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। वह तो भक्ति मार्ग का भक्ति काण्ड है। भक्ति का भी बाबा ने बताया है कि पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति फिर रजोगुणी व्यभिचारी भक्ति। फिर व्यभिचारी तमोगुणी भक्ति। जैसी-जैसी भक्तों की अवस्था, वैसी भक्ति भी हो जाती है। ज्ञान भी ऐसे उतरता है। पहले 16 कला फिर 14 कला फिर 12 कला ...प्रालब्ध जो बनती है, वह फिर उतरती जाती है। तुम बच्चे जानते हो यह कमाई है। कमाई में विघ्न पड़ते हैं। दशायें बदलती हैं। पूछते हैं हमारे ऊपर कौनसी दशा बैठी हुई है? फिर वह लोग बतलाते हैं। इस सच्ची कमाई में भी बच्चों पर दशायें बैठती हैं। कोई पर राहू की दशा बैठती है, काला मुंह कर लेते हैं। बृह्स्पति की दशा थी फिर माया ने थप्पड़ लगाया तो राहू की दशा बैठ गई। काम में गिरा और फट से राहू का ग्रहण लगा। ताला बन्द हो जाता है। यह है गुप्त कड़ी सजा। वह फिर कभी कह नहीं सकेंगे कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। सन्यासी भी काम महाशत्रु के कारण ही स्त्री को छोड़ चले जाते हैं। यह भी निवृत्ति मार्ग की पवित्रता भारतवासियों के लिए अच्छी है। भारतवासी ही पवित्र से अपवित्र बनते हैं तो उन्हों को थमाने के लिए यह सन्यासी हैं। मरम्मत के लिए यह पवित्रता है। पवित्रता की ताकत से ही सृष्टि इतना चलती है। अभी तो वे भी पतित बन पड़े हैं। तुम्हें उनकी भी सर्विस करनी है। सर्विस का तुम बच्चों को बहुत-बहुत शौक रहना चाहिए।बेकायदे कोई भी चलन नहीं चलनी है। भल पुरुषार्थी हो, सम्पूर्ण तो कोई नहीं बना है। कुछ न कुछ पाप होते रहते हैं। बाप की आज्ञा न माना यह भी बड़ा पाप है। बाप का फ़रमान है निरन्तर मुझे याद करो। जानता हूँ कि कर नहीं सकेंगे। परन्तु तुम पूरा पुरुषार्थ ही नहीं करते हो। जो करेंगे वह अच्छा पद पायेंगे। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) 5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने के लिए सर्जन की राय लेते रहना है। आत्मा पर कोई बीमारी न लगे, इसकी सम्भाल करनी है। 2) सच्ची कमाई करनी और करानी है। कोई भी बेकायदे चलन नहीं चलनी है। राहू की दशा कभी न बैठे इसके लिए बाप के फ़रमान पर सदा चलना है। वरदान:- स्वदर्शन चक्रधारी बन हर कर्म चरित्र के रूप में करने वाले मायाजीत, सफलतामूर्त भव l जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रूप में गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र के समान हों। जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म नहीं हो सकते। स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी ही है सफलता स्वरूप। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होने के कारण सफलता मूर्त होंगे और जो सफलतामूर्त हैं वह हर कदम में पदमापदम पति हैं। स्लोगन:- खुशी के समर्थ संकल्पों की रचना करो तो तन-मन से सदा खुश रहेंगे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

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