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- Creation of the World, Evolution of Life - Part 2
(Read Part 1)God reminds souls that He is their spiritual father and that they can fill themselves with His powers and virtues simply by being aware that they are souls and remembering Him. Such remembrance of God is called Rajyoga. Since this is an easy method of meditation and does not involve any physical rigours, chanting or other rituals it is also called easy yoga. Being easy, it can be practiced constantly. Regular practice of this form of meditation eventually makes one naturally soul conscious — aware that one is a soul, a sentient point of light separate from the body but living within the body and using it as a medium to think, feel, see, hear, smell, speak and act. This mental link with the Supreme Soul also fills the soul with God’s powers and virtues. When the soul is enriched and strengthened in this way, it is no longer influenced by vices and consequently gets liberated from sorrow. The thoughts, words and actions of such purified souls spread peace and happiness all around. When a critical number of humans start transmitting positive energy all over the world in this way, all negativity begins to get eliminated and the elements of nature also get purified. In this process the world undergoes a major transformation whereby the Iron Age ends and the planet returns to its pristine state for the Golden Age to dawn once again. God and all human souls return to the soul world at this time, just as the director and actors in a play go home at the end of a performance, to come down again and play their respective roles when the drama begins anew as the wheel of time begins to turn a new circle. This cyclical process goes on eternally, with rejuvenation taking place at the end of each turn of the wheel of time through the intervention of God. This cyclical process goes on eternally, with rejuvenation taking place at the end of each turn of the wheel of time through the intervention of God. The soul of Brahma, by virtue of being the first soul to achieve complete self-transformation and playing a key role in bringing about this rejuvenation, goes on to play the most prominent role in the Golden Age – that of Shri Krishna. However, since the Supreme Soul is always incorporeal and Brahma was His visible medium, people have attributed the task of creation of the new world to Brahma. They have also mistakenly credited Shri Krishna with giving humans spiritual knowledge in the form of the Bhagavad Gita as is depicted in the Mahabharata. The battle shown in the Mahabharata is a spiritual one that each soul has to fight within itself to overcome vices and negative tendencies. God helps us in this battle by reminding us of our original goodness and empowering us to return to that state. Those who recognize the truth revealed by God and make the effort to transform themselves attain the powers and virtues that entitle them to play a leading role in the world drama right from the start of the Golden Age. It is an entitlement God offers to all His children. Claiming it is up to us. Om Shanti. #bkmurlitoday #english #Murli
- 4 Nov 2018 BK murli in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumari murli today Hindi Aaj ki Gyan murli Madhuban 04-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 24-02-84 मधुबन ब्राह्मण जन्म - अवतरित जन्म बापदादा आवाज में आते सभी को आवाज से परे की स्थिति में ले जाने के लिए, व्यक्त देश में व्यक्त शरीर में प्रवेश होते हैं अव्यक्त बनाने के लिए। सदा अपने को अव्यक्त स्थिति वाले सूक्ष्म फरिश्ता समझ व्यक्त देह में अवतरित होते हो? सभी अवतरित होने वाले अवतार हो। इसी स्मृति में सदा हर कर्म करते, कर्म के बन्धनों से मुक्त कर्मातीत अवतार हो। अवतार अर्थात् ऊपर से श्रेष्ठ कर्म के लिए नीचे आते हैं। आप सभी भी ऊंची ऊपर की स्थिति से नीचे अर्थात् देह का आधार ले सेवा के प्रति कर्म करने के लिए पुरानी देह में, पुरानी दुनिया में आते हो। लेकिन स्थिति ऊपर की रहती है, इसलिए अवतार हो। अवतार सदा परमात्म पैगाम ले आते हैं। आप सभी संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें भी परमात्म पैगाम देने के लिए, परमात्म मिलन कराने के लिए अवतरित हुए हो। यह देह अब आपकी देह नहीं रही। देह भी बाप को दे दी। सब तेरा कहा अर्थात् मेरा कुछ नहीं। यह देह सेवा के अर्थ बाप ने लोन में दी है। लोन में मिली हुई वस्तु पर मेरे-पन का अधिकार हो नहीं सकता। जब मेरी देह नहीं तो देह का भान कैसे आ सकता। आत्मा भी बाप की बन गई, देह भी बाप की हो गई तो मैं और मेरा कहाँ से आया! मैं-पन सिर्फ एक बेहद का रहा - "मैं बाप का हूँ'', जैसा बाप वैसा मैं मास्टर हूँ। तो यह बेहद का मैं-पन रहा। हद का मैं-पन विघ्नों में लाता है। बेहद का मैं-पन निर्विघ्न, विघ्नविनाशक बनाता है। ऐसे ही हद का मेरा पन मेरे-मेरे के फेरे में लाता है और बेहद का मेरा-पन जन्मों के फेरों से छुड़ाता है।बेहद का मेरा-पन है - "मेरा बाबा''। तो हद छूट गई ना। अवतार बन देह का आधार ले सेवा के कर्म में आओ। बाप ने लोन अर्थात् अमानत दी है सेवा के लिए। और कोई व्यर्थ कार्य में लगा नहीं सकते। नहीं तो अमानत में ख्यानत का खाता बन जाता है। अवतार व्यर्थ खाता नहीं बनाता। आया, सन्देश दिया और गया। आप सभी भी सेवा-अर्थ, सन्देश देने अर्थ ब्राह्मण जन्म में आये हो। ब्राह्मण जन्म अवतरित जन्म है, साधारण जन्म नहीं। तो सदा अपने को अवतरित हुई विश्व कल्याणकारी, सदा श्रेष्ठ अवतरित आत्मा हैं - इसी निश्चय और नशे में रहो। टैप्रेरी समय के लिए आये हो और फिर जाना भी है। अब जाना है, यह सदा याद रहता है? अवतार हैं, आये हैं, अब जाना है। यही स्मृति उपराम और अपरमअपार प्राप्ति की अनुभूति कराने वाली है। एक तरफ उपराम, दूसरे तरफ अपरमअपार प्राप्ति। दोनों अनुभव साथ-साथ रहते हैं। ऐसे अनुभवी मूर्त हो ना! अच्छा!अब सुनने को स्वरूप में लाना है। सुनना अर्थात् बनना। आज विशेष हमजिन्स से मिलने आये हैं। हमशरीक हो गये ना। सत शिक्षक निमित्त शिक्षकों से मिलने आये हैं। सेवा के साथियों से मिलने आये हैं। अच्छा!सदा बेहद के मैं-पन के स्मृति स्वरूप, सदा बेहद का मेरा बाप इसी समर्थ स्वरूप में स्थित रहने वाले, सदा ऊंची स्थिति में स्थित रह, देह का आधार ले अवतरित होने वाले अवतार बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।टीचर्स के साथ:- सदा सेवाधारी आत्माओं का यह संगठन है ना। सदा अपने को बेहद के विश्व सेवाधारी समझते हो? हद के सेवाधारी तो नहीं हो ना। सब बेहद के हो? किसी को भी किसी स्थान से किसी भी स्थान पर भेज दें तो तैयार हो? सभी उड़ते पंछी हो? अपने देह के भान की डाली से भी उड़ते पंछी हो? सबसे ज्यादा अपने तरफ आकर्षित करने वाली डाली - यह देह का भान है। जरा भी पुराने संस्कार, अपने तरफ आकर्षित करते माना देह का भान है। मेरा स्वभाव ऐसा है, मेरा संस्कार ऐसा है, मेरी रहन-सहन ऐसी है, मेरी आदत ऐसी है, यह सब देह भान की निशानी है। तो इस डाली से उड़ते पंछी हो? इसको ही कहा जाता है कर्मातीत स्थिति। कोई भी बन्धन नहीं। कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो लेकिन कर्म के बन्धन से न्यारे। तो देह के कर्म, जैसे किसका नेचर होता है - आराम से रहना, आराम से समय पर खाना, चलना यह भी कर्म का बन्धन अपने तरफ खींचता है। इस कर्म के बन्धन अर्थात् आदत से भी परे क्योंकि निमित्त हो ना।जब तक आप सभी निमित्त आत्मायें कर्म के बन्धनों से, देह के संस्कार-स्वभाव से न्यारे नहीं होंगे तो औरों को कैसे करेंगे! जैसे शरीर की बीमारी कर्म का भोग है, इसी रीति से अगर कोई भी कर्म का बन्धन अपने तरफ खींचता है, तो यह भी कर्म का भोग विघ्न डालता है। जैसे शारीरिक व्याधि कर्म भोग अपनी तरफ बार-बार खींचता है, दर्द होता है तो खींचता है ना। तो कहते हो क्या करें, वैसे तो ठीक है लेकिन कर्मभोग कड़ा है। ऐसे कोई भी विशेष पुराना संस्कार-स्वभाव वा आदत अपने तरफ खींचती है तो वह भी कर्मभोग हो गया। कोई भी कर्मभोग कर्मयोगी बना नहीं सकेगा। तो इससे भी पार। क्यों? सभी नम्बरवन जाने वाली आत्मायें हो ना। वन नम्बर का अर्थ ही है - हर बात में विन करने वाली। कोई भी कमी नहीं। टीचर्स का अर्थ ही है सदा अपनी मूर्त द्वारा कर्मातीत ब्रह्मा बाप और न्यारे तथा प्यारे शिव बाप की अनुभूति कराने वाले। तो यह विशेषता है ना। फ्रैन्डस हो ना आप! फ्रैन्डस कैसे बनते हैं? बिना समान के फ्रैन्डस नहीं बन सकते। तो आप सब बाप के फ्रैन्डस हो, गाडली फ्रैन्डस हो। समान होना ही फ्रैन्डशिप है। बाप के कदम पर कदम रखने वाले क्योंकि फ्रैन्डस भी हो और फिर माशूक के आशिक भी हो। तो आशिक सदा माशूक के पांव के ऊपर पांव रखते हैं। यह रसम है ना। जब शादी होती है तो क्या कराते हैं! यही कराते हैं ना। तो यह सिस्टम भी कहाँ से बनी? आप लोगों से बनी है। आपका है बुद्धि रूपी पांव और उन्होंने स्थूल पांव समझ लिया है। हर सम्बन्ध से विशेषता का सम्बन्ध निभाने वाली निमित्त आत्मायें हो।निमित्त शिक्षकों को औरों से बहुत सहज साधन हैं। दूसरों को तो फिर भी सम्बन्ध में रहना पड़ता है और आपका सम्बन्ध सदा सेवा और बाप से है। चाहे लौकिक कार्य भी करते हो तो भी सदा यही याद रहता है कि टाइम हो और सेवा पर जाएं। और लौकिक कार्य जिसके लिए किया जाता है, उसकी स्मृति स्वत: आती है। जैसे लौकिक में माँ-बाप कमाते हैं बच्चे के लिए। तो उनकी स्वत: याद आती है। तो आप भी जिस समय लौकिक कार्य करते हो तो किसके प्रति करते हो? सेवा के लिए करते हो - या अपने लिए? क्योंकि जितना सेवा में लगाते उतनी खुशी होती है। कभी लौकिक सेवा समझकर नहीं करो। यह भी एक सेवा का तरीका है, रूप भिन्न है लेकिन है सेवा के प्रति। नहीं तो देखो अगर लौकिक सेवा करके सेवा का साधन नहीं होता तो संकल्प चलता है कि कहाँ से आवे! कैसे आवे! चलता नहीं है। पता नहीं कब होगा! यह संकल्प व्यर्थ समय नहीं गंवाता? इसलिए कभी भी लौकिक जॉब (धन्धा) करते हैं, यह शब्द नहीं बोलो। यह अलौकिक जॉब है। सेवा निमित्त है। तो कभी भी बोझ नहीं लगेगा। नहीं तो कभी-कभी भारी हो जाते हैं, कब तक होगा, क्या होगा! यह तो आप लोगों के लिए प्रालब्ध बहुत सहज बनाने का साधन है।तन-मन-धन तीन चीज़ें हैं ना! अगर तीनों ही चीज़ें सेवा में लगाते हैं तो तीनों का फल किसको मिलेगा? आपको मिलेगा या बाप को! तीनों ही रीति से अपनी प्रालब्ध बनाना, तो यह औरों से एडीशन प्रालब्ध हो गई इसलिए कभी भी इसमें भारी नहीं। सिर्फ भाव को बदली करो। लौकिक नहीं अलौकिक सेवा के प्रति ही है। इसी भाव को बदली करो। समझा - यह तो और ही डबल सरेन्डर हुए। धन से भी सरेन्डर हो गये, सब बाप के प्रति है। सरेन्डर का अर्थ क्या है? जो कुछ है बाप के प्रति है अर्थात् सेवा के प्रति है। इसे ही सरेन्डर कहा जाता है। जो समझते हैं हम सरेन्डर नहीं हैं, वह हाथ उठाओ! उनकी सरेमनी मना लेंगे! बाल बच्चे भी पैदा हो गये और कहते हो सरेन्डर नहीं हुए। अपना मैरेज डे भले मनाओ लेकिन मैरेज हुई नहीं यह तो नहीं कहो। क्या समझते हो, सारा ही ग्रुप सरेन्डर ग्रुप है ना!बापदादा तो डबल विदेशी वा डबल विदेश के स्थान पर निमित्त बनी हुई टीचर्स की बहुत महिमा करते हैं। ऐसे ही नहीं महिमा करते हैं लेकिन मुहब्बत से विशेष मेहनत भी करते हो। मेहनत तो बहुत करनी पड़ती है लेकिन मुहब्बत से मेहनत महसूस नहीं होती, देखो, कितने दूर-दूर से ग्रुप तैयार करके लाते हैं, तो बापदादा बच्चों की मेहनत पर बलिहार जाते हैं। एक विशेषता डबल फारेन के निमित्त सेवाधारियों की बहुत अच्छी है। जानते हो कौन-सी विशेषता है? (अनेक विशेषतायें निकली) जो भी बातें निकाली वह स्वयं में चेक करके कम हो तो भर लेना क्योंकि बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी निकाली हैं। बापदादा सुना रहे हैं - एक विशेषता डबल विदेशी सेवाधारियों में देखी कि जो बापदादा डायरेक्शन देते हैं - यह करके लाना, वह प्रैक्टिकल में लाने के लिए हमेशा कितना भी प्रयत्न करना पड़े लेकिन प्रैक्टिकल में लाना ही है, यह लक्ष्य प्रैक्टिकल अच्छा है। जैसे बापदादा ने कहा कि ग्रुप लाने हैं तो ग्रुप्स भी ला रहे हैं।बापदादा ने कहा वी.आई.पीज की सर्विस करनी है, पहले कितना मुश्किल कहते थे, बहुत मुश्किल - लेकिन हिम्मत रखी करना ही है तो अभी देखो दो साल से ग्रुप्स आ रहे हैं ना। कहते थे लण्डन से वी.आई.पी. आना बहुत मुश्किल है। लेकिन अभी देखो प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाया ना। इस बारी तो भारत वालों ने भी राष्ट्रपति को लाकर दिखाया। लेकिन फिर भी डबल विदेशियों का यह उमंग डायरेक्शन मिला और करना ही है, यह लगन अच्छी है। प्रैक्टिकल रिजल्ट देख बापदादा विशेषता का गायन करते हैं। सेन्टर खोलते हो वह तो पुरानी बात हो गई। वह तो खोलते ही रहेंगे क्योंकि वहाँ साधन बहुत सहज हैं। यहाँ से वहाँ जा करके खोल सकते हो, यह भारत में साधन नहीं है इसलिए सेन्टर खोलना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन ऐसे अच्छे-अच्छे वारिस क्वालिटी तैयार करना। एक है वारिस क्वालिटी तैयार करना और दूसरा है बुलन्द आवाज वाले तैयार करना। दोनों ही आवश्यक हैं। वारिस क्वालिटी - जैसे आप सेवा के उमंग-उत्साह में तन-मन-धन सहित रहते हुए भी सरेन्डर बुद्धि हो, इसको कहते हैं वारिस क्वालिटी। तो वारिस क्वालिटी भी निकालनी है। इसके ऊपर भी विशेष अटेन्शन। हरेक सेवाकेन्द्र में ऐसे वारिस क्वालिटी हों तो सेवाकेन्द्र सबसे नम्बरवन में जाता है।एक है सेवा में सहयोगी होना, दूसरे हैं पूरा ही सरेन्डर होना। ऐसे वारिस कितने हैं? हरेक सेवाकेन्द्र पर ऐसे वारिस हैं? गाडली स्टूडेन्ट बनाना, सेवा में सहयोगी बनना - वह लिस्ट तो लम्बी होती है लेकिन वारिस कोई-कोई होते हैं। जिसको जिस समय जो डायरेक्शन मिले, जो श्रीमत मिले उसी प्रमाण चलता रहे। तो दोनों ही लक्ष्य रखो, वह भी बनाना है और वह भी बनाना है। ऐसा वारिस क्वालिटी वाला एक अनेक सेन्टर खोलने के निमित्त बन सकता है। यह भी लक्ष्य से प्रैक्टिकल होता रहेगा। विशेषता तो अपनी समझी ना। अच्छा।सन्तुष्ट तो हैं ही, या पूछना पड़े। हैं ही सन्तुष्ट करने वाले। तो जो सन्तुष्ट करने वाला होगा वह स्वयं तो होगा ना। कभी सर्विस थोड़ी कम देख करके हलचल में तो नहीं आते हो? सेवाकेन्द्र पर जब कोई विघ्न आता है तो विघ्न को देख घबराते हो? समझो, बड़े ते बड़ा विघ्न आ गया - कोई अच्छा अनन्य एन्टी हो जाता है और डिस्टर्ब करता है आपकी सेवा में तो क्या करेंगे? क्या घबरायेंगे? एक होता है उसके प्रति कल्याण के भाव से तरस रखना वह दूसरी बात है लेकिन स्वयं की स्थिति नीचे-ऊपर हो या व्यर्थ संकल्प चले इसको कहते हैं हलचल में आना। तो संकल्प की सृष्टि भी नहीं रचें। यह संकल्प भी हिला न सकें! इसको कहते हैं अचल अडोल स्थिति। ऐसे भी नहीं कि अलबेले हो जाएं कि नथिंग न्यु। सेवा भी करें, उसके प्रति रहमदिल भी बनें लेकिन हलचल में नहीं आयें। तो न अलबेले, न फीलिंग में आने वाले। सदा ही किसी भी वातावरण में, वायुमण्डल में हो लेकिन अचल-अडोल रहो। कभी कोई निमित्त बने हुए राय देते हैं, उनमें कनफ्यूज़ नहीं हो। ऐसे नहीं सोचो कि यह क्यों कहते हैं या यह कैसे होगा! क्योंकि जो निमित्त बने हुए हैं वह अनुभवी हो चुके हैं, और जो प्रैक्टिकल में चलने वाले हैं कोई नये हैं, कोई थोड़े पुराने भी हैं लेकिन जिस समय जो बात उसके सामने आती है, तो बात के कारण इतनी क्लीयर बुद्धि आदि मध्य अन्त को नहीं जान सकती है। सिर्फ वर्तमान को जान सकती है इसलिए सिर्फ वर्तमान देख करके, आदि मध्य उस समय क्लीयर नहीं होता तो कनफ्यूज़ हो जाते हैं। कभी भी कोई डायरेक्शन अगर नहीं भी स्पष्ट हो तो कनफ्यूज़ कभी नहीं होना। धैर्य से कहो इसको समझने की कोशिश करेंगे। थोड़ा टाइम दो उसको। उसी समय कनफ्यूज़ होकर यह नहीं, वह नहीं, ऐसे नहीं करो क्योंकि डबल विदेशी फ्री माइन्ड ज्यादा हैं इसलिए ना भी फ्री माइन्ड से कह देते हैं इसलिए थोड़ा-सा जो भी बात मिलती है - उसको गम्भीरता से पहले सोचो, उसमें कोई न कोई रहस्य अवश्य छिपा होता है। उससे पूछ सकते हो इसका रहस्य क्या है? इससे क्या फायदा होगा? हमें और स्पष्ट समझाओ। यह कह सकते हो। लेकिन कभी भी डायरेक्शन को रिफ्यूज़ नहीं करो। रिफ्यूज़ करते हो इसलिए कनफ्यूज़ होते हो। यह थोड़ा विशेष अटेन्शन डबल विदेशी बच्चों को देते हैं। नहीं तो क्या होगा जैसे आप निमित्त बने हुए, बहनों के डायरेक्शन को जानने का प्रयत्न नहीं करेंगे और हलचल में आ जायेंगे तो आपको देखकर जिन्हों के निमित्त आप बने हो, उन्हों में यह संस्कार भर जायेंगे। फिर कभी कोई रुसेगा, कभी कोई रुसेगा। फिर सेन्टर पर यही खेल चलेगा। समझा!। अच्छा। वरदान:- ज्ञान और योग की शक्ति से हर परिस्थिति को सेकण्ड में पास करने वाले महावीर भव महावीर अर्थात् सदा लाइट और माइट हाउस। ज्ञान है लाइट और योग है माइट। जो इन दोनों शक्तियों से सम्पन्न हैं वह हर परिस्थिति को सेकण्ड में पास कर लेते हैं। अगर समय पर पास न होने के संस्कार पड़ जाते हैं तो फाइनल में भी वह संस्कार फुल पास होने नहीं देते। जो समय पर फुल पास होता है उसको कहते हैं पास विद ऑनर। धर्मराज भी उसको ऑनर देता है। स्लोगन:- योग अग्नि से विकारों के बीज को भस्म कर दो तो समय पर धोखा मिल नहीं सकता। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- 5 Nov 2018 BK murli today in English
BrahmaKumaris murli today in English 05/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, in order to become ever healthy and ever wealthy, you now have to insure your body, mind and wealth directly. It is only at this time that you can take out unlimited insurance. Question: What should you remind one another about so that you can all progress? Answer: Remind one another that the drama is about to end and that we have to return home. We have played these parts innumerable times before. We have completed our 84 births. We will now remove these costumes, these bodies, and return home. This is the service of you spiritual social workers. You spiritual social workers must continue to give this message to everyone: Forget your body and all your bodily relations and remember the Father and the home. Song: Leave Your throne in the sky and come down to earth! Om Shanti This song is especially sung where there are Gita Pathshalas (Gita study-places). Those who speak the Gita first sing this verse, but they don’t understand who it is they are calling out to. At this time, there is defamation of religion. First, there are the prayers, then there is the response (from the Gita). They call out: Come and speak the knowledge of the Gita because sin has increased a lot. Then, there is the response (from the Gita): When the souls of Bharat become unhappy and sinful, when there is defamation of religion, it is then that I come. He has to change His form, and so He would surely enter a human body. All souls change their form. You souls are originally incorporeal, you become corporeal when you come here and you are then called human beings. Human souls are now impure and sinful and so I have to change My form and come. Just as you become corporeal from incorporeal, in the same way, I also have to become this. Shri Krishna cannot come into this impure world; he is the master of heaven. People think that Shri Krishna spoke the Gita, but Krishna cannot exist in this impure world. His name, form, country, time and act are totally separate from this. The Father explains all of this. Krishna has his own mother and father; he has his form created in his mother’s womb. I do not enter a womb, but I definitely do need a chariot. I enter this one when he is in the final one of his many births. He is Shri Krishna in his first birth. This birth is now his 84th and final one of his many births. Therefore, I enter him. He did not know of his births. Shri Krishna does not say that he does not know of his own births. God says: The one whom I enter did not know his own births. Only I know this. Krishna is the master of the kingdom. In the golden age, there is the sun-dynasty kingdom; it is the land of Vishnu. The combined form of Lakshmi and Narayan is called Vishnu. Wherever you give a lecture, it is enough to play this song because the people of Bharat sing this song themselves. Only when this religion has disappeared can I come and speak the Gita again and establish the same religion again. Since there are no human beings of that religion now, where did the knowledge of the Gita emerge from? The Father explains: There are no scriptures etc. in the golden and silver ages. All of those are the paraphernalia of the path of devotion. No one can meet Me through them. I definitely have to come. I come and grant all of you salvation via liberation. Everyone has to return home. After going into liberation, you will go to heaven. You will go into liberation and then into liberation-in-life. The Father says: You can receive liberation-in-life in a second . It has been said: While living in your household, you can attain liberation-in-life in a second, that is, you can become free from sorrow. Sannyasis cannot grant you liberation-in- life. They don’t even believe in liberation-in-life. The religion of the sannyasis does not exist in the golden age at all. The religion of the sannyasis comes into existence later on. The Islamic religion and the Buddhists etc. are not there in the golden age. All the religions, except the deity religion, are in existence now. They have all been converted to other religions. They do not know of their own religion. No one considers himself to be of the deity religion. They say: “Jayhind” (Victory for Hindustan). However, there is no victory now. No one knows when Bharat is victorious and when Bharat is defeated. Only when you receive your fortune of the kingdom and the old world is destroyed is Bharat victorious. It is Ravan who defeats you and Rama who makes you victorious. It is said: “Victory for Bharat.” It is not “Victory for Hindustan”. They changed the words. The words of the Gita are very good. God, the Highest on High, says: I do not have a mother or father. I have to create My own form for Myself. I enter this one. A mother gives birth to Krishna. I am the Creator. According to the drama, all of those scriptures etc. have been created for the path of devotion. The Gita, the Bhagawad etc. are all created on the basis of the deity religion. The deity religion that the Father created has now passed, and it will exist again in the future. The beginning, the middle and the end are called the past, present and future. In this, the beginning, middle and end have a different meaning. That which has become the past will become the present again. Whatever stories are told of the past will be repeated in the future. Human beings don’t know these things. Baba tells you in the present the story of whatever happened in the past and that will be repeated again in the future. These aspects have to be understood and you need a very refined intellect to do this. You children should go and give lectures wherever you are invited to go. Son shows Father! Children will reveal who their Father is. The Father is definitely needed. Otherwise, how could you claim the inheritance? You are the highest on high. However, those eminent people also have to be given respect. You have to give the Father’s introduction to everyone. Everyone calls out: O God, the Father! They pray to God: O God, the Father, come! However, they don’t know who He is. You have to sing Shiv Baba’s praise, sing Shri Krishna’s praise and also sing the praise of Bharat. Bharat was the Temple of Shiva; it was heaven. Five thousand years ago, it was the kingdom of deities. Who established that? Surely, it must have been God, the Highest on High. Salutations are given to Shiva, the Highest on High, the incorporeal One, who is also called the Supreme Father, the Supreme Soul. Although the people of Bharat celebrate the birthday of Shiva, they don’t know when Shiva came. Surely, He must have come at the confluence age before heaven was created. He says: I come at the confluence age of every cycle, not in every age. Even if He did come in all the ages, there would then have to be four incarnations. They have shown many incarnations. Only the one Father, who creates heaven, is the Highest on High. Bharat was heaven, it was viceless, and so you cannot question how children are born there. Whatever customs and systems exist, it is those that will continue. Why do you worry about that? You should first recognise the Father. There, you have knowledge of the soul. We souls shed bodies and take others. There, there is no question of crying; there is never any untimely death. You shed your bodies in happiness. So the Father has explained how He changes His form and comes. This cannot be said of Krishna. He takes birth through a womb. Brahma, Vishnu and Shankar reside in the subtle region. The Father of Humanity is definitely needed here; we are his children. That incorporeal Father is imperishable and we souls are also imperishable. However, we definitely do have to take birth and rebirth. This drama is predestined. You say: Come and speak the knowledge of the Gita again. All of those who came and went away will definitely come into the cycle. The Father also came and went away and has now come again. He says: I come and speak the Gita to you again. People call out “O Purifier come!” Therefore, this world must definitely be impure. All are impure, which is why they go to wash away their sins by bathing in the Ganges. Heaven existed in this Bharat. Bharat is the highest, the eternal land; it is the pilgrimage place for everyone. All human beings are impure. The Father is the One who grants liberation-in-life to all. The praise must definitely be sung for the One who does such great service. Bharat is the birthplace of the imperishable Father. He is the One who makes everyone pure. The Father cannot leave His birthplace and go somewhere else. Therefore, the Father sits here and explains how He creates His own form. Everything depends on your dharna. Your status depends on how much you imbibe. Not everyone can read the murli in the same way. Even though everyone might be able to play a wooden flute, they wouldn’t all be able to play it in the same way. Everyone acts his part differently. Such a huge role is contained within such a tiny soul! The Supreme Soul says: I too have to play a part. I come when there is defamation of religion. I also give the return on the path of devotion. People give donations and do charity in the name of God, and so it is God who gives the fruit of that. Each one insures himself. They believe that they will receive in their next birth the fruit of what they have given, whereas you insure yourselves for 21 births. That is limited, indirect insurance whereas this is unlimited, direct insurance. You will attain limitless wealth when you insure your mind, body and wealth. You will become ever healthy and wealthy. You are insuring yourselves directly. Human beings donate in the name of God, because they believe that God will give them the return of that. They don’t understand how He gives that return. Human beings think that whatever they have received has been given by God, that God gave them a child. Achcha, if God gives them a child, He can then also take it back. All of you definitely have to die. Nothing will go with you. Your bodies will also finish. Therefore, insure whatever you want now, so that it will be insured for 21 births. It is not that you can insure everything and then not do any service but continue to eat here. You have to do service. The expense of keeping you also continues. If you insure everything and continue to eat here, you will receive nothing. You will receive something when you do service. Only then will you claim a high status. The more service you do, the more you receive. The less service you do, the less you receive. Government social workers are also numberwise. They have many important heads. There are many types of social worker. Theirs is physical service, whereas yours is spiritual service . You make everyone into a pilgrim. This is the spiritual pilgrimage to take you to the Father. The Father says: Renounce the consciousness of your body, your bodily relations and also the gurus etc. and remember Me alone. The Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. He adopts a corporeal form in order to explain to you. He says: I take this body on loan; I take the support of matter. You came naked and you now all have to return home again. He says to the souls of all religions that death is standing ahead. The Yadavas and the Kauravas will all be destroyed and the Pandavas will come again to rule their kingdom. The Gita episode is once again repeating. The old world is about to be destroyed. While you have been taking 84 births, this world has become old. Now that you have completed your 84 births, the play is about to end. We now have to return home; we will renounce our bodies and return home. Keep reminding each other that we now have to return home. We have played these parts of 84 births innumerable times. This play is eternally created. People have to return to their own section of the religion they belong to. The sapling of the deity religion that has disappeared is now being planted. Those who were flowers will come again. Many good flowers come, but, due to the storms of Maya, they fall. Then, by receiving the life-giving herb of knowledge, they stand up once again. The Father says: You have been studying scriptures etc. This one also had gurus etc. There is only the One who can grant salvation to all, including the gurus. There is liberation and liberation-in-life in a second. There are the king and queen, and so it becomes the family path. It was the viceless family path, whereas it has now become a completely vicious one. The kingdom of Ravan does not exist there. The kingdom of Ravan begins after half a cycle. It is the people of Bharat who become defeated by Ravan. People of all other religions pass through the stages of sato, rajo and tamo during their own time. First, they have happiness and then they become unhappy. After liberation, there is liberation-in-life. At this time, everyone is completely impure and decayed. Each soul has to shed his body and then take another new one. The Father says: I do not come into the cycle of birth and rebirth. No one can be My father. Everyone else has a father. Even Krishna’s birth takes place through a mother’s womb. This Brahma will take birth through a womb and he then receives the kingdom. It is he who has to become new from old. He is 84 births old. It is with great difficulty that this sits in people’s intellects accurately so that they have great intoxication. This knowledge is like musk; it is very fragrant. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Become a spiritual social worker and teach everyone this spiritual pilgrimage. Plant the sapling of your deity religion. 2. Use your refined intellect to reveal the Father. First imbibe everything yourself, and then explain it to others. Blessing: May you be a powerful server who gives souls this immortal knowledge and liberates them from their fear of untimely death. People everywhere in the world fear untimely death. They eat in fear, move in fear and also sleep in fear. Tell something of happiness to such souls and liberate them from their fears. Give them the good news that you can save them from untimely death for 21 births. Make every soul immortal by giving them the immortal knowledge with which they are saved from untimely death for birth after birth. With your vibrations of peace and happiness, become powerful servers who give everyone the experience of happiness and comfort. Slogan: Only by keeping a balance of remembrance and service can you receive everyone’s blessings. #english #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday
- आज की मुरली 11 Nov 2018 BK murli in Hindi
Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki Gyan Murli madhuban 11-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 26-02-84 मधुबन बापदादा की अद्भुत चित्रशाला बापदादा आज अपनी चित्रशाला को देख रहे हैं। बापदादा के पास कौन सी चित्रशाला है, यह जानते हो? आज वतन में हर बच्चे के चरित्र का चित्र देख रहे थे। हर एक का आदि से अब तक का चरित्र का चित्र कैसा रहा! तो सोचो, चित्रशाला कितनी बड़ी होगी! उस चित्र में हर एक बच्चे की विशेष तीन बातें देखीं! एक-पवित्रता की पर्सनैलिटी। दूसरा - रीयल्टी की रॉयल्टी। तीसरा - सम्बन्धों की समीपता - यह तीन बातें हरेक चित्र में देखी।प्युरिटी की पर्सनैलिटी आकार रूप में चित्र के चारों ओर चमकती हुई लाइट दिखाई दे रही थी। रीयल्टी की रॉयल्टी चेहरे पर हर्षितमुखता और स्वच्छता चमक रही थी और सम्बन्धों की समीपता मस्तक बीच चमकता हुआ सितारा कोई ज्यादा चारों ओर फैली हुई किरणों से चमक रहा था, कोई थोड़ी-सी किरणों से चमक रहा था। समीपता वाली आत्मायें बाप समान बेहद की अर्थात् चारों ओर फैलती हुई किरणों वाली थीं। लाइट और माइट दोनों में बाप समान दिखाई दे रही थीं। ऐसे तीनों विशेषताओं से हरेक के चरित्र का चित्र देखा। साथ-साथ आदि से अन्त अर्थात् अब तक तीनों ही बातों में सदा श्रेष्ठ रहे हैं वा कब कैसे, कब कैसे रहे हैं, उसकी रिजल्ट हर-एक के चित्र के अन्दर देखी। जैसे स्थूल शरीर में नब्ज से चेक करते हैं कि ठीक गति से चल रही है वा नीचे ऊपर होती है। तेज है वा स्लो है, इससे तन्दरुस्ती का मालूम पड़ जाता है। ऐसे हर चित्र के बीच हृदय में लाइट नीचे से ऊपर तक जा रही थी। उसमें गति भी दिखाई दे रही थी कि एक ही गति से लाइट नीचे से ऊपर जा रही है या समय प्रति समय गति में अन्तर आता है। साथ-साथ बीच-बीच में लाइट का कलर बदलता है वा एक ही जैसा रहा है। तीसरा - चलते-चलते लाइट कहाँ-कहाँ रुकती है वा लगातार चलती रहती है। इसी विधि द्वारा हरेक के चरित्र का चित्र देखा। आप भी अपना चित्र देख सकते हो ना।पर्सनैलिटी, रॉयल्टी और समीपता इन तीन विशेषताओं से चेक करो कि मेरा चित्र कैसा होगा। मेरे लाइट की गति कैसी होगी। नम्बरवार तो हैं ही। लेकिन तीनों विशेषतायें और तीनों प्रकार की लाइट की गति आदि से अब तक सदा ही रही हो - ऐसे चित्र मैजारिटी नहीं लेकिन मैनारटी में थे। तीन लाइटस की गति और तीन विशेषतायें छह बातें हुई ना। छह बातों में से मैजारिटी चार-पांच तक और कुछ तीन तक थे। प्युरिटी की पर्सनैलिटी का लाइट का आकार किसका सिर्फ ताज के समान फेस के आसपास था और किसका आधे शरीर तक और किसका सारे शरीर के आस-पास दिखाई दे रहा था। जैसे फोटो निकालते हो ना! जो मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों में आदि से अब तक पवित्र रहे हैं। मन्सा में स्वयं प्रति या किसी के प्रति व्यर्थ रूपी अपवित्र संकल्प भी न चला हो। किसी भी कमजोरी वा अवगुण रूपी अपवित्रता का संकल्प भी धारण नहीं किया हो, संकल्प में जन्म से वैष्णव, संकल्प बुद्धि का भोजन है। जन्म से वैष्णव अर्थात् अशुद्धि वा अवगुण, व्यर्थ संकल्प को बुद्धि द्वारा, मन्सा द्वारा ग्रहण न किया हो, इसी को ही सच्चा वैष्णव वा बाल ब्रह्मचारी कहा जाता है। तो हरेक के चित्र में ऐसे प्युरिटी की पर्सनैलिटी की रेखायें लाइट के आकार द्वारा देखी। जो मंसा-वाचा-कर्मणा तीनों में पवित्र रहे हैं! (कर्मणा में सम्बन्ध, सम्पर्क सब आ जाता है) उनका मस्तक से पैर तक लाइट के आकार में चमकता हुआ चित्र था। समझा! नॉलेज के दर्पण में अपना चित्र देख रहे हो? अच्छी तरह से देख लेना कि मेरा चित्र क्या रहा, जो बापदादा ने देखा। अच्छा!मिलने वालों की लिस्ट लम्बी है। अव्यक्त वतन में तो न नम्बर मिलेगा और न समय की कोई बात है। जब चाहे, जितना समय चाहे और जितने मिलने चाहें मिल सकते हैं क्योंकि वह हद की दुनिया से परे हैं। इस साकार दुनिया में यह सब बन्धन हैं इसलिए निरबन्धन को भी बन्धन में बंधना पड़ता है। अच्छा!टीचर्स तो सन्तुष्ट हो गये ना। सभी को अपना पूरा हिस्सा मिला ना। निमित्त बनी हुई विशेष आत्मायें हैं। बापदादा भी विशेष आत्माओं का विशेष रिगार्ड रखते हैं। फिर भी सेवा के साथी हैं ना। ऐसे तो सभी साथी हैं फिर भी निमित्त को निमित्त समझने में ही सेवा की सफलता है। ऐसे तो सर्विस में कई बच्चे बहुत तीव्र उमंग-उत्साह में बढ़ते रहते हैं फिर भी निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को रिगार्ड देना अर्थात् बाप को रिगार्ड देना है और बाप द्वारा रिगार्ड के रिटर्न में दिल का स्नेह लेना है। समझा! टीचर्स को रिगार्ड नहीं देते हो लेकिन बाप से दिल के स्नेह का रिटर्न लेते हो। अच्छा।ऐसे सदा दिलाराम बाप द्वारा दिल का स्नेह लेने के पात्र अर्थात् सुपात्र आत्माओं को सदा स्वयं को प्युरिटी की पर्सनैलिटी, रॉयल्टी की रीयल्टी में अनुभव करने वाले समीप और समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।यु.के. ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकातसभी सर्व राज़ों से सम्पन्न राज़युक्त, योगयुक्त आत्मायें हो ना! शुरू से बापदादा का नाम चारों ओर प्रत्यक्ष करने के निमित्त आत्मायें हो। बापदादा ऐसे आदि रत्नों को, सेवा के साथियों को देखकर सदा खुश होते हैं। सभी बापदादा के राइट-हैण्ड ग्रुप हो। बहुत अच्छे-अच्छे रत्न हैं। कोई कौन सा, कोई कौन सा, लेकिन हैं सब रत्न क्योंकि स्वयं अनुभवी बन औरों को भी अनुभवी बनाने के निमित्त बनी हुई आत्मायें हो। बापदादा जानते हैं कि सभी कितने उमंग-उत्साह से याद और सेवा में सदा मगन रहने वाली आत्मायें हैं। याद और सेवा के सिवाए और सब तरफ समाप्त हो गये। बस एक हैं, एक के हैं, एकरस स्थिति वाले हैं, यही सबका आवाज है। यही वास्तविक श्रेष्ठ जीवन है। ऐसी श्रेष्ठ जीवन वाले सदा ही बापदादा के समीप हैं। निश्चयबुद्धि का प्रत्यक्ष प्रमाण देने वाले हैं। सदा वाह मेरा बाबा और वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य - यही याद रहता है ना। बापदादा ऐसे स्मृति स्वरूप बच्चों को देखकर सदा हर्षित होते हैं कि वाह मेरे श्रेष्ठ बच्चे। बापदादा ऐसे बच्चों के गीत गाते हैं। लण्डन विदेश के सेवा का फाउण्डेशन है। आप सब सेवा के फाउण्डेशन स्टोन हो। आप सबके पक्के होने के प्रभाव से सेवा में वृद्धि होती जा रही है। भले फाउण्डेशन वृक्ष के विस्तार में छिप जाता है लेकिन है तो फाउण्डेशन ना। वृक्ष के विस्तार को सुन्दर देख उस तरफ ज्यादा नज़र होती है। फाउन्डेशन गुप्त रह जाता है। ऐसे आप भी थोड़ा सा निमित्त बन औरों को चांस देने वाले बन गये लेकिन फिर भी आदि, आदि है। औरों को चांस देकर आगे लाने में आपको खुशी होती है ना। ऐसे तो नहीं समझते हो कि यह डबल विदेशी आये हैं तो हम छिप गये हैं? फिर भी निमित्त आप ही हैं। उन्हों को उमंग-उत्साह देने के निमित्त हो। जो दूसरों को आगे रखता है वह स्वयं आगे ही है। जैसे छोटे बच्चे को सदा कहते हैं आगे चलो, बड़े पीछे रहते हैं। छोटों को आगे करना ही बड़ों का आगे होना है। उसका प्रत्यक्षफल मिलता ही रहता है। अगर आप लोग सहयोगी नहीं बनते तो लण्डन में इतने सेन्टर नहीं खुलते। कोई कहाँ निमित्त बन गये, कोई कहाँ निमित्त बन गये। अच्छा।मलेशिया, सिंगापुर से:- सभी अपने को बाप की स्नेही आत्मायें अनुभव करते हो! सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी स्थिति में स्थित रहते हो? इसी स्थिति को ही एकरस स्थिति कहा जाता है क्योंकि जहाँ एक है वहाँ एकरस हैं। अनेक हैं तो स्थिति भी डगमग होती है। बाप ने सहज रास्ता बताया है कि एक में सब कुछ देखो। अनेकों को याद करने से, अनेक तरफ भटकने से छूट गये। एक हैं, एक के हैं, इसी एकरस स्थिति द्वारा सदा अपने को आगे बढ़ा सकते हो।सिंगापुर और हांगकांग को अभी चाइना में सेन्टर खोलने का संकल्प करना चाहिए। सारे चाइना में अभी कोई केन्द्र नहीं है। उन्हों को कनेक्शन में लाते हुए अनुभव कराओ। हिम्मत में आकर संकल्प करो तो हो जायेगा। राजयोग से प्रभु प्रेम, शान्ति, शक्ति का अनुभव कराओ, तो आत्मायें आटोमेटिकली परिवर्तन हो जायेंगी। राजयोगी बनाओ, डीटी नहीं बनाओ, राजयोगी डीटी आपेही बन जायेंगे। अच्छा।पोलैण्ड ग्रुप से:- बापदादा को खुशी है कि सभी बच्चे अपने स्वीट होम में पहुँच गये। आप सबको भी यह खुशी है ना कि हम ऐसे महान तीर्थ पर पहुँच गये। श्रेष्ठ जीवन तो अभ्यास करते-करते बन ही जायेगी लेकिन ऐसा श्रेष्ठ भाग्य पा लिया जो इस स्थान पर अपने सच्चे ईश्वरीय स्नेह वाले परिवार में पहुँच गये। इतना खर्च करके आये हो, इतनी मेहनत से आये हो, अभी समझते हो कि खर्चा और मेहनत सफल हुई। ऐसे तो नहीं समझते हो पता नहीं कहाँ पहुँच गये! कितना परिवार के और बाप के प्यारे हो। बापदादा सदा बच्चों की विशेषता को देखते हैं। आप लोग अपनी विशेषता को जानते हो? यह विशेषता तो है - जो लगन से इतना दूर से यहाँ पहुँचे। अभी सदा अपने ईश्वरीय परिवार को और इस ईश्वरीय विधि राजयोग को सदा साथ में रखते रहना। अभी वहाँ जाकर राजयोग केन्द्र अच्छी तरह से आगे बढ़ाना क्योंकि कई ऐसी आत्मायें हैं जो सच्चे शान्ति, सच्चे प्रेम और सच्चे सुख की प्यासी हैं। उन्हों को रास्ता तो बतायेंगे ना। वैसे भी कोई पानी का प्यासा हो, अगर समय पर कोई उसे पानी पिलाता है तो जीवन भर वह उसके गुण गाता रहता है। तो आप जन्म-जन्मान्तर के लिए आत्माओं की सुख-शान्ति की प्यास बुझाना, इससे पुण्य आत्मा बन जायेंगे। आपकी खुशी देखकर सब खुश हो जायेंगे। खुशी ही सेवा का साधन है।इस महान तीर्थ स्थान पर पहुँचने से सभी तीर्थ इसमें समाये हुए हैं। इस महान तीर्थ पर ज्ञान स्नान करो और जो कुछ कमजोरी है उसका दान करो। तीर्थ पर कुछ छोड़ना भी होता है। क्या छोड़ेंगे? जिस बात में आप परेशान होते हो वही छोड़ना है। बस। तब महान तीर्थ सफल हो जाता है। यही दान करो और इसी दान से पुण्य आत्मा बन जायेंगे क्योंकि बुराई छोड़ना अर्थात् अच्छाई धारण करना। जब अवगुण छोड़ेंगे, गुण धारण करेंगे तो पुण्य आत्मा हो जायेंगे। यही है इस महान तीर्थ की सफलता। महान तीर्थ पर आये यह तो बहुत अच्छा - आना अर्थात् भाग्यवान की लिस्ट में हो जाना, इतनी शक्ति है इस महान तीर्थ की। लेकिन आगे क्या करना है? एक है भाग्यवान बनना, दूसरा है सौभाग्यवान बनना और उसके आगे है पदमापदम भाग्यवान बनना। जितना संग करते रहेंगे, गुणों की धारणा करते रहेंगे, उतना पदमापदम भाग्यवान बनते जायेंगे। अच्छा!डबल विदेशी टीचर्स सेकभी भी अपने को अभी हम दूसरे धर्म के यहाँ आये हैं, यह टीचर्स में संकल्प नहीं होना चाहिए। यह नयों की बातें हैं। आप तो पुराने हो तभी निमित्त भी बने हो। हम दूसरे धर्म के इस धर्म में आये हैं, नहीं। इसी धर्म के थे और इसी धर्म में आये हैं। हम और यह अलग हैं, यह संकल्प स्वप्न में भी नहीं। भारत अलग है, विदेश अलग है नहीं। यह संकल्प एकमत को दो मत कर देगा। फिर हम और तुम हो गया ना। जहाँ हम और तुम हो गया वहाँ क्या होगा? खिटपिट होगी ना इसलिए एक हैं। डबल विदेशी, बापदादा निशानी के लिए कहते हैं, बाकी ऐसे नहीं अलग हो। ऐसे नहीं समझना कि हम डबल विदेशी हैं तो अलग हैं, देश वाले अलग हैं। नहीं। जब ब्राह्मण जन्म हुआ तो ब्राह्मण जन्म से ही कौन हुए? ब्राह्मण एक धर्म के हैं, विदेशी देशी उसमें नहीं होते। हम सब एक ब्राह्मण धर्म के हैं, ब्राह्मण जीवन के हैं और एक ही बाप की सेवा के निमित्त हैं। कभी यह भाषा भी यूज़ नहीं करना कि हमारा विचार ऐसे हैं, आप इन्डिया वालों का ऐसे है, यह भाषा रांग है। गलती से भी ऐसे शब्द नहीं बोलना। विचार भिन्न-भिन्न तो भारत वालों का भी हो सकता है, यह दूसरी बात है। बाकी भारत और विदेश, यह फर्क कभी नहीं करना। हम विदेशियों का ऐसे ही चलता है, यह नहीं। हमारे स्वभाव ऐसे हैं, हमारी नेचर ऐसे है, यह नहीं। ऐसे कभी भी नहीं सोचना। बाप एक है और एक के ही सब हैं। यह निमित्त टीचर्स जैसी भाषा बोलेंगे वैसे और भी बोलेंगे इसलिए बहुत युक्तियुक्त एक-एक शब्द बोलना। योगयुक्त और युक्तियुक्त दोनों ही साथ-साथ चलें। कोई योग में बहुत आगे जाने का करते लेकिन कर्म में युक्तियुक्त नहीं होते। दोनों का बैलेन्स हो। योगयुक्त की निशानी है ही युक्तियुक्त। अच्छा।सेवाधारियों से:- यज्ञ सेवा का भाग्य मिलना, यह भी बहुत बड़े भाग्य की निशानी है। चाहे भाषण नहीं करो, कोर्स नहीं कराओ लेकिन सेवा की मार्क्स तो मिलेंगी ना। इसमें भी पास हो जायेंगे। हर सब्जेक्ट की अपनी-अपनी मार्क्स है। ऐसे नहीं समझो कि हम भाषण नहीं कर सकते तो पीछे हैं। सेवाधारी सदा ही वर्तमान और भविष्य फल के अधिकारी हैं। खुशी होती है ना! माताओं को मन का नाचना आता है और कुछ भी नहीं करो, सिर्फ खुशी में मन से नाचती रहो तो भी बहुत सेवा हो जायेगी। वरदान:- समानता की भावना होते भी हर कदम में विशेषता का अनुभव कराने वाले विशेष आत्मा भव हर एक बच्चे में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं। विशेष आत्माओं का कर्म साधारण आत्माओं से भिन्न है। हर एक में भावना तो समानता की रखनी है लेकिन दिखाई दे कि यह विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली, सिर्फ कहने वाली नहीं। उनसे सबको फीलिंग आयेगी कि यह स्नेह के भण्डार हैं, हर कदम में, हर नज़र में स्नेह अनुभव हो - यही तो विशेषता है। स्लोगन:- सृष्टि की कयामत के पहले अपनी कमियों और र्कैमजोरियों की कयामत करो। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- 2 Dec 2018 BK murli today in English
Brahma KUmaris murli today in English 02/12/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 05/03/84 The importance of the power of peace. The Father, the Ocean of Peace, has come to meet His children who are incarnations of peace. In today's world, the most essential thing is peace and you children are the bestowers of that peace. No matter how much people try to attain peace with perishable wealth or perishable means, they cannot attain true, imperishable peace with that. Although today's world is wealthy and has all the facilities for happiness, it is still a beggar of imperishable and permanent peace. You souls, who are master bestowers of peace, treasure-stores of peace and embodiments of peace have to give a drop of peace to such souls who are beggars of peace and quench their thirst and fulfil their desire for peace. Seeing the peaceless children, BapDada feels mercy for them. They make so much effort; through the power of science they reach so many places and make so many things. They are able to change day into night and night into day but they are not able to attain their original religion of peace. However much they chase after peace, after some temporary attainment of peace, the result is just peacelessness. Imperishable peace is the birthright of all souls from God, but they are making so much effort for their birthright. It is an attainment of just a second. However, because of not having the full introduction, they stumble so much even to attain the attainment of a second; they call and shout out and are in distress. Give the drishti (vision) of brotherhood to your brother souls who are wandering around for peace. Their world will be changed with this drishti.Do all of you souls, who are incarnations of peace, remain constantly stable as embodiments of peace? You have bidden farewell to peacelessness for all time, have you not? Have you celebrated the ceremony of saying farewell to peacelessness? Or, are you going to do that now? Are those who have not yet celebrated the ceremony of saying farewell to peacelessness now going to do that here? Should we fix a date for this? Those who want to have this ceremony now, raise your hands! Let there not be peacelessness even in your dreams. Even your dreams have become peaceful, have they not? The Father is the Bestower of Peace and you are embodiments of peace. Your dharma (religion) is peace and your karma (action) is peace. Therefore, how can there be peacelessness? What is the karma of all of you? To give peace. Even now, when your devotees perform arti (form of worship), what do they say? "Bestower of Peace". So, whose arti do they sing? Yours or just the Father's? The children who are bestowers of peace are constantly great donors of peace and also the ones who give this blessing. You are those who become master suns of knowledge and spread rays of peace throughout the world. You have the intoxication, do you not, that, along with the Father, you are also master suns of knowledge and master suns who spread rays of peace?Are you able to give the introduction of the religion of the self in a second and stabilise them in their original form with your attitude? Which attitude? That these souls who are your brothers should also receive their inheritance from the Father. With this pure attitude, that is, with these pure feelings, are you able to give souls an experience? Why? The return of pure feelings is definitely received. All of you have elevated wishes, good wishes without any selfish motives. You have feelings of mercy and benevolence. It is impossible for you not to receive the fruit of these feelings. When a seed is powerful, you definitely receive the fruit. Simply constantly continue to water this seed of elevated wishes with the water of awareness and you will definitely attain powerful fruit in the form of instant visible fruit. There will be no question as to whether something will happen or not. To have the water of constant awareness means to have good wishes for all souls. You will definitely receive the visible fruit of world peace. Together with the Father, all of you children are also fulfilling the desires of many births of all souls so that everyone's desires will be fulfilled.The sound of peacelessness is now echoing everywhere and people are experiencing peacelessness in all directions – in their bodies, minds, wealth and relationships. Due to fear, instead of experiencing peace, they experience peacelessness through all their means of attainment. Souls today are influenced by one type of fear or another. They eat, move along, earn an income and experience pleasure temporarily, but it is all in fear. They don't know what will happen tomorrow. So, where there is the throne of fear, when the leader is sitting on a chair (position) of fear, what would the condition be of the people? The greater the leader, the more security guards he would have. Why? Because there is fear. So, what would the temporary pleasure be whilst sitting on the throne of fear? Would it be peaceful or peaceless? In order to give such children who are filled with fear a life of constant happiness and peace, BapDada has made all of you children into instruments as incarnations of peace. With the power of peace, how far can you go from one place to another without spending anything? Even beyond this world. You can reach your sweet home so easily. Does it take any effort? With the power of peace (silence), how easily do you become a conqueror of matter and a conqueror of Maya? Through what? With the power of soul consciousness. When both atomic power and the power of soul (atma) become united, when atomic power also carries out tasks of happiness through satopradhan intellects with the power of souls, then, with the unity of both powers, the world of peace will be revealed on this earth, because both powers exist in the kingdom of peaceful and happy heaven. Therefore, a satopradhan intellect means an intellect that always performs elevated and truthful actions. Truth also means imperishable. By performing every action in the awareness of the imperishable Father and the imperishable soul, the attainment would also be imperishable. This is why they speak of truthful actions. Therefore, you are incarnations of peace who constantly give peace. Do you understand? Achcha.To the souls who, with their satopradhan stage, always perform truthful actions, to the souls who give souls the fruit of peace with their powerful good wishes, to those who, as constant master bestowers of peace and deities of peace, spread rays of peace throughout the world, to the souls who co-operate with the Father in His special task, BapDada's love, remembrance and namaste.Nobel Laureate Professor Brian Josephson (Scientist) meeting BapDada:Are you experiencing the experience of the power of peace? The power of peace will make the whole world peaceful. You too are a soul who loves peace, are you not? By using the power of science accurately with the power of silence, you can become an instrument to benefit the world. The power of science is also essential but you can use it accurately with a satopradhan intellect. Today, the knowledge of how to use it in an accurate way is lacking. On the basis of this knowledge, the same science will become instrumental in the establishment of the new world. However, because of not having this knowledge, you are moving towards destruction. Therefore, now, on the basis of the power of peace, become an instrument who uses the power of science for very good tasks. You will claim a Nobel Prize in this also, will you not? Because, there is a need for this task. Whenever there is a need for something in particular and someone becomes an instrument for that, everyone regards that soul with elevated vision. So, do you understand what you have to do? So research what the connection between science and silence is at present and how much success there can be with the connection of the two. You are interested in research, are you not? Now do this. You have to carry out such a big task. You will create such a world, will you not? Achcha.BapDada meeting the UK group:The long-lost and now-found children are always with the Father. You always experience the Father to be with you, do you not? If you move away from the Father's company even a little, Maya's vision is very sharp. She sees that you have moved away a little and so she makes you belong to her. This is why you must never move away even a little. Constantly stay in the Father’s company. Since BapDada Himself is offering to stay with you all the time, take this company. Throughout the whole cycle you will not find such company as the Father’s who says: Come and stay in My company. You will not have such fortune even in the golden age. Even in the golden age you will be in the company of souls. For how long do you have the Father's company throughout the whole cycle? It is for a very short time, is it not? You receive such great fortune in such a short time. Therefore, you should always stay with Him, should you not? BapDada is looking at the children who remain constantly stable in a strong stage. Such loving children are in front of BapDada. Each and every child is very lovely. BapDada has selected and gathered together each one of you from so many different far-away places with so much love. Children who are selected in this way are always strong; they cannot be weak. Achcha.Personal meeting:A special actor means one who is always alert at every step and at every second, not careless.Do you constantly experience yourself to be a special actor on the unlimited world drama stage while walking and moving along and while eating and drinking? Those who are special actors always pay attention to their actions, that is, to their parts at all times, because the whole drama depends on the hero actor. So, you are the basis of this whole drama, are you not? So, do you special souls or you special actors always pay this much attention? Special actors are never careless, they are alert. So, you never become careless, do you? “I am doing everything I can, I will reach there”. You do not think in this way, do you? You are doing everything, but at what speed? You move along, but at what speed do you move along? There is a difference in the speed, is there not? There is a vast difference between one who is walking and one who is flying in a plane. It would be said that the one who is walking is moving along and that the one who is flying is also moving along, but there is so much difference. So, if you are just moving along, having become a Brahma Kumar, it means that you are moving along, but at what speed? It is only those who have a fast speed who will reach their destination on time. Otherwise, they will be left behind. You have an attainment here too, but is it that of the sun dynasty or the moon dynasty? There is a difference, is there not? So, in order to become part of the sun dynasty, remove all ordinariness from your every thought and every word. When a hero actor performs an ordinary act, everyone laughs at him, do they not? So, here, too, always have the awareness that you are a special actor and so your every action has to be special, your every step has to be special, your every second, every moment and every thought has to be elevated. Do not think that they were just five minutes that were ordinary. Five minutes are not just five minutes, but the five minutes of the confluence are very important and significant. Five minutes are greater than five years and so pay that much attention. This is known as being an intense effort-maker. What is the slogan of intense effort-makers? “If not now, then never.” So, do you always remember this? If you wish to claim your fortune of the kingdom for all time, you also have to pay attention all the time. A little time of paying attention all the time will enable you to attain constant attainment over a long period of time. So, have this awareness at all times and also check yourself that you do not become ordinary while walking and moving along. The Father is called the Supreme Soul, and so He is the Supreme. So, as is the Father, so the children too are supreme, that is, they are elevated in every way.So, now let your efforts be intense and let less time and less effort be required in your service whilst you experience greater success. Let one person do the work of many. So, make such a plan. Punjab is very old. It has been involved in service from the beginning, and so, those from the original place must now find some original jewels. In any case, Punjab is known as the lion and a lion roars. Roaring means a loud sound. We shall now see what you do and who does it? Blessing: May you be an embodiment of success who does everything from amrit vela till night time accurately with the discipline of remembrance. Whatever you do from amrit vela till night time, let it be according to the discipline of remembrance and you will achieve success in every action. The greatest success of all is to experience supersensuous joy as the practical fruit. Constantly continue to move along in the waves of happiness and joy. So, you receive this instant fruit and you also receive the fruit in the future. The practical, instant fruit of this time is greater than the fruit of your many future births. You do something now and you immediately receive the reward of it. This is called the practical instant fruit. Slogan: Perform every act while considering yourself to be an instrument and you will remain loving and detached and there will be no consciousness of “I”. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday
- BK murli today in Hindi 10 Sep 2018 Aaj ki Murli
Brahma Kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 10-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - सत का संग एक ही है जिससे तुम्हारी सद्गति होती है, आत्मा पावन बनती है, बाकी सब हैं कुसंग, इसलिए कहा जाता - संग तारे कुसंग बोरे'' प्रश्नः- बाप का ऐसा कौनसा कर्तव्य है जो कोई भी धर्म स्थापक नहीं कर सकता? उत्तर:- बाप का कर्तव्य है सबको पतित से पावन बनाकर वापिस घर ले जाना। बाप आते हैं - सबको इन शरीरों से मुक्त करने अर्थात् मौत देने। यह काम कोई धर्म स्थापक नहीं कर सकता। उनके पिछाड़ी तो उनके धर्म की पावन आत्मायें ऊपर से उतरती हैं और अपना-अपना पार्ट बजाए पावन से पतित बनती हैं। गीत:- जाग सजनिया जाग....... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। किसने सुनाया? साजन ने। सब हैं सजनियां जिसको भक्तियां कहा जाता है। भगवान् एक है, जिसको भक्त याद करते हैं। तो उसको कहा जाता है साजन। भक्त कहने से मेल अथवा फीमेल दोनों उसमें आ जाते हैं। तो सब हो गई सीतायें। राम एक है। भक्त अनेक हैं, भगवान् एक है। उस भगवान् को कहा जाता है परमपिता। लौकिक बाप को परमपिता नहीं कहेंगे। वह है लौकिक शरीर देने वाला पिता। परमपिता है परमधाम में रहने वाला, सब आत्माओं का पिता। हर एक मनुष्य को दो बाप हैं - एक लौकिक, दूसरा पारलौकिक बाप। लौकिक बाप का जन्म बाई जन्म वर्सा अलग होता है। हर एक जन्म में बाप अलग-अलग रहते हैं। तुम विचार करो कितने जन्म लेते हैं, कितने बाप मिलते होंगे? (84) हाँ 84 जन्मों में जरूर 84 बाप और 84 माँ मिलेंगे। हर जन्म में एक ही लौकिक बाप और एक ही माँ रहती है। दूसरा बाप है परमपिता परमात्मा। परन्तु सतयुग-त्रेता में कभी ओ गॉड फादर कह याद नहीं करते। हे परमपिता परमात्मा मेहर करो - ऐसे कभी नहीं कहते इसलिए समझाया जाता है - सतयुग-त्रेता में एक ही बाप होता है। फिर द्वापर-कलियुग, जिसको भक्ति मार्ग कहा जाता है - वहाँ सबको दो बाप हैं। मेल अथवा फीमेल सबको दो बाप हैं। पारलौकिक बाप को याद करते हैं क्योंकि यह दु:खधाम है। दु:खधाम में दो बाप, सुखधाम में है एक ही बाप। यहाँ तो एक लौकिक बाप है, दूसरा फिर सबके दु:ख निवारण करने वाला बाप है। जिसको सभी याद करते हैं कि इस दु:ख से छुड़ाओ, रहम करो। आधाकल्प है दु:खधाम, आधाकल्प है सुखधाम। सतयुग है नया युग, कलियुग है पुराना युग। बाप कहते हैं अब हम सतयुग नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। कलियुग पुराने युग का विनाश होना है। कलियुग के बाद फिर सतयुग आना है। कलियुग के अन्त, सतयुग के आदि को कल्प का संगम कहा जाता है। यह है कल्याणकारी युग क्योंकि पतित से पावन बनना होता है। कलियुग में हैं पतित मनुष्य, सतयुग में हैं पावन देवतायें। बाप समझाते हैं कि यह आसुरी रावण सम्प्रदाय है। हरेक के अन्दर 5 विकारों की प्रवेशता है। उसको कहेंगे रावण ओमनी प्रेजेन्ट, गॉड ओमनी प्रेजेन्ट नहीं। 5 विकार प्रवेश हैं, इसलिए इनको पतित दुनिया कहा जाता है। सतयुग-त्रेता को पावन दुनिया शिवालय कहा जाता है। कलियुग है वेश्यालय। तो शिव परमपिता परमात्मा आकर नव युग की स्थापना करते हैं। बाप समझाते हैं अब जागो, नव युग अथवा सुखधाम का समय अब आया है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य आ रहा है। यह है ही राजयोग। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। एक होता है सत संग, दूसरा होता है झूठा संग, कुसंग। सत का संग तारे, कुसंग बोरे....... सत तो एक ही बाप है। उनको कहते हैं पतित-पावन आओ। वही आकर पावन बनाते हैं - आधाकल्प के लिए। फिर माया रावण आकर आधाकल्प पतित बनाती है। ऐसे नहीं, बाप ही पतित बनाते हैं। अभी है ही रावण राज्य। जब तक सत बाप न आये तब तक सतसंग नहीं। सब हैं झूठ संग अथवा कुसंग। तुम हो सीतायें, तुम भक्ति करती हो। समझती हो भक्ति का फल भगवान् आकर देंगे। तो जरूर जब भक्ति का समय समाप्त होना होगा तब तो आयेंगे ना। आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध और आधाकल्प है भक्ति की प्रालब्ध। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो भगवान् की श्रीमत पर। भगवान् एक होता है, वह है निराकार परमपिता परमात्मा, आत्माओं का बाप। वह आते ही हैं संगम पर। द्वापर-कलियुग को भक्ति काण्ड कहा जाता है। सतयुग-त्रेता को ज्ञान काण्ड कहा जाता है। ज्ञान है ही ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा के पास। शास्त्रों का ज्ञान कोई ज्ञान नहीं। अगर उनमें ज्ञान होता तो सद्गति होती। भारत जो हीरे जैसा था अब है नहीं। फिर बाप बनाते हैं। तुम अब हीरे जैसा बन रहे हो। तुम्हारा जीवन पलट रहा है। आत्मा दैवीगुण धारण कर रही है। यूँ तो मनुष्य बैरिस्टर, इन्जीनियर, सर्जन आदि बनते हैं। बाकी मनुष्य को देवता बनाना यह परमपिता परमात्मा, ज्ञान सागर का कर्तव्य है। उनको ही ट्रुथ कहा जाता है। वही सच बतलाते हैं अर्थात् सचखण्ड की स्थापना करते हैं। बाकी सब हैं झूठ बोलने वाले, झूठ खण्ड की स्थापना करते हैं। रावण की मत पर चलते हैं। तुम श्रीमत से श्रेष्ठ बनते हो। नये युग में भारत नया था। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उन्हों को किसने यह राज्य भाग्य दिया? जरूर जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला होगा। अभी वह वर्सा गँवाया है - 84 जन्म लेकर। अब फिर चक्र पूरा होता है। सबको वापिस जाना है। लिबरेटर एक ही बाप है। वही लिबरेट कर सबको ले जाते हैं इसलिए उनको कालों का काल भी कहा जाता है। बाप कहते हैं अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। अब वापिस चलना है। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है - सो बाप बैठ समझाते हैं अर्थात् त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीनों लोकों, तीनों कालों की नॉलेज देते हैं। वही पतित-पावन, ज्ञान सागर, बीजरूप है। उनसे ही सचखण्ड का तुमको वर्सा मिलता है। यहाँ तुम आये हो परमपिता परमात्मा से वर्सा लेने के लिए, जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। तुम जानते हो हम ही फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे।सतयुग के लक्ष्मी-नारायण आदि को कहा जाता है डीटी रिलीजन, वह है श्रेष्ठ धर्म। उन्हों का धर्म भी श्रेष्ठ है तो कर्म भी श्रेष्ठ है। वहाँ भ्रष्टाचारी कोई नहीं रहते। द्वापर-कलियुग में फिर एक भी श्रेष्ठाचारी नहीं रहते। बाप को भूलने के कारण ही बुरी गति होती है। फिर बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं। धर्म स्थापक कोई पतित से पावन बनाने नहीं आते। पतित-पावन तो एक ही बाप है। वही सच्चा गुरू है। बाकी वह तो आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। ऊपर से पावन आत्मायें आती हैं फिर पतित बनती हैं। इस समय सब पतित हैं। सबको पावन बनाना बाप का ही काम है। वही पतित-पावन है। गुरूनानक ने भी उस सतगुरू की महिमा की है। इस पुरानी दुनिया के विनाश लिए ही यह महाभारत लड़ाई है। बाकी ऐसे नहीं, तुमको लड़ाई के मैदान में ज्ञान देते हैं। ज्ञान के लिए तो एकान्त चाहिए। 7 रोज भट्ठी में रहना पड़े। बाकी तो है भक्ति की सामग्री। भक्तों में भी कोई बड़े तीखे-तीखे होते हैं। रूद्र माला भी है तो भक्त माला भी है। वह है भक्तों की माला, यह है ज्ञान माला। ऊपर में शिव फिर युगल दाना फिर है उनकी वंशावली जो माला मनुष्य सिमरते हैं। राम-राम कहते रहते हैं क्योंकि दु:खी हैं, रावण सम्प्रदाय राम को याद करते हैं कि आकर अपना बनाओ। अभी तुम ईश्वरीय गोद में आये हो। वास्तव में सब आत्मायें परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। मनुष्य सृष्टि प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रची है। आत्मा तो अविनाशी है। आत्माओं का अविनाशी बाप है। अभी तुमको दो बाप हैं - एक विनाशी, दूसरा अविनाशी। ब्रह्मा भी शरीर छोड़ देते हैं। शिवबाबा को तो अपना शरीर है नहीं। वह तो जन्म-मरण रहित है। जन्म-मरण में तुम बच्चे आते हो। तुम आदि सनातन देवी-देवताओं के ही 84 जन्म हैं। हिसाब है ना। गुरूनानक को तो 500 वर्ष हुए। तो इतने में 84 जन्म कैसे लेंगे। बाकी लाखों जन्म की तो बात ही नहीं। बाप समझाते हैं अभी सबके जन्म आकर पूरे हुए हैं। फिर नयेसिर खेल सतयुग से शुरू होगा। सतयुग में तो थोड़े चाहिए। बाकी इतने सब कहाँ जायेंगे? उन्हों के लिए ही यह भंभोर को आग लगनी है। इन बाम्बस नैचरल कैलेमिटीज आदि से सब ख़त्म हो जायेंगे। बाकी आत्मायें सब चली जायेंगी मुक्तिधाम। यह कयामत का समय है, सबको वापिस जाना है। भारत को अविनाशी खण्ड कहा जाता है क्योंकि भारत ही बाप का जन्म स्थान है। शिवबाबा भारत में ही आते हैं। पतित-पावन बाप यहाँ जन्म लेते हैं तो गोया सभी धर्म वालों के लिए भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। इतना भारत का महत्व है परन्तु महत्व को उड़ा दिया है। यह भी ड्रामा का खेल है जो बाप ही आकर समझाते हैं। बाप कहते हैं मैं ही ज्ञान का सागर हूँ। लक्ष्मी-नारायण को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता। उनमें रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है।वह ज्ञान जरूर तुम्हारे में है। तुम ही मनुष्य से देवता बनते हो। तुम यहाँ आते हो पतित से पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनने। बाप आत्माओं से बैठ बात करते हैं। निराकार बाप इनके आरगन्स का लोन लेकर पढ़ाते हैं। तुम्हारी आत्मा भी इन आरगन्स से सुनती है। बाबा ने समझाया है आत्मा स्टॉर है, जो भ्रकुटी के बीच रहती है और वह बाप है सुप्रीम आत्मा। वह सुप्रीम आकर इनको आप समान सुप्रीम बनाए साथ ले जाते हैं। सब आत्माओं का गाइड है। उनको ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है। दु:ख से तुमको लिबरेट कर ले जायेंगे। सतयुग में दु:ख होता नहीं। नवयुग की नॉलेज भी नई है ना। यह बातें मनुष्यों ने कभी सुनी नहीं हैं। भल अच्छे और बुरे मनुष्य हैं। परन्तु हैं सब पतित, तब तो गंगा पर स्नान करने, पावन बनने जाते हैं। गंगा का पतित-पावनी नाम रख दिया है। वास्तव में पतित-पावन तो बाप को ही कहा जाता है। पतित दुनिया के बाद फिर पावन दुनिया की स्थापना होती है। सतयुग को वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। और वह है साइलेन्स इनकारपोरिअल वर्ल्ड। आत्मायें यहाँ आकर पार्ट बजाती हैं। पार्ट है 84 जन्मों का। तुम आलराउन्ड पार्ट बजाते हो। यह है बना-बनाया ड्रामा। हरेक में अपना-अपना पार्ट अविनाशी है। वह कभी मिटता नहीं है। तुम 84 जन्म भोगते रहेंगे। चक्र का आदि, अन्त नहीं है। ड्रामा कब शुरू हुआ - यह प्रश्न नहीं उठता। न आदि है, न अन्त है। सतयुग आदि सत, है भी सत, होसी भी सत......। इस चक्र को समझने से तुम स्वर्ग के चक्रवर्ती महाराजा महारानी बनते हो। उसको वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य कहा जाता है, जो वर्ल्ड आलमाइटी बाप से मिलता है। तुम बेहद के बाप से 21 पीढ़ी के लिए सदा सुख का वर्सा पाते हो। बाप को कहा जाता है हेविनली गॉड फादर। हेविन का वर्सा देने वाला बाप कहते हैं मैं कल्प के संगमयुग पर आकर स्वर्ग का वर्सा देता हूँ। जो पुरुषार्थ करेंगे वह सूर्यवंशी राजाई में आयेंगे। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं। यह है गाडली युनिवर्सिटी। भगवानुवाच है ना। भगवान् पढ़ाकर मनुष्य को देवता बनाते हैं। ऐसा कोई सतसंग नहीं होगा जिसमें कहें कि हम मनुष्य से देवता बनायेंगे।अभी तुम बच्चे नई दुनिया में देवी-देवता पद पाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। समझाना चाहिए दो बाप होते हैं - एक बेहद का बाप, एक हद का। हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं। तुमको भी राय देते हैं वर्सा लो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परमपिता परमात्मा की मत पर चलने से तुम स्वर्ग का मालिक बनेंगे। सच्चा है ही एक बाप। वह आकर पढ़ाते हैं। इनके आरगन्स द्वारा कहते हैं ब्रह्मा तन से ब्रह्मा मुख वंशावली को वर्सा देता हूँ। ब्रह्मा द्वारा तुमको दादे का वर्सा मिलता है। दादे के वर्से पर सभी आत्माओं का हक है। लौकिक सम्बन्ध में सिर्फ मेल को वर्सा मिलता है। तुम तो आत्मायें हो। सब ब्रदर्स ठहरे। सबको शिवबाबा से वर्सा मिलता है। तुमको दादे से वर्सा मिल रहा है।बाप कहते हैं हम तुमको मन्दिर लायक बनाते हैं। मनुष्यों में देखो क्रोध कितना है। एक-दो का विनाश कर देते हैं। यह है वेश्यालय। शिवालय था, सो फिर अब बनना है। परमपिता परमात्मा शिव आकर शिवालय बनाते हैं। वेश्यालय से लिबरेट कर फिर गाइड बन सबको वापिस शिवालय में ले जाते हैं। सभी अपने पुराने शरीरों से मुक्त हो मेरे साथ चलेंगे। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) दैवी गुण धारण कर स्वयं की जीवन को पलटाना है। सचखण्ड में चलने के लिए सच्चे बाप से सच्चा रहना है। 2) एक सत बाप के संग में रहना है। मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई अच्छी तरह पढ़कर बेहद का वर्सा लेना है। वरदान:- श्रेष्ठ कर्मधारी बन ऊंची तकदीर बनाने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव l जिसके जितने श्रेष्ठ कर्म हैं उसकी तकदीर की लकीर उतनी लम्बी और स्पष्ट है। तकदीर बनाने का साधन है ही श्रेष्ठ कर्म। तो श्रेष्ठ कर्मधारी बनो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। लेकिन श्रेष्ठ कर्म का आधार है श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहने से ही श्रेष्ठ कर्म होंगे इसलिए जितना चाहो उतना लम्बी भाग्य की लकीर खींच लो। इस एक जन्म में अनेक जन्मों की तकदीर बन सकती है। स्लोगन:- अपने सन्तुष्टता की पर्सनैलिटी द्वारा अनेकों को सन्तुष्ट करना ही सन्तुष्टमणि बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- 14 Oct 2018 BK Murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English 14/10/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 18/02/84 Brahmin life is the invaluable life. Today, the Ocean of Love has come to celebrate a meeting with the children who are always absorbed in love. Just as you remember the Father with love, in the same way, in order to give multi-million fold return to the loving children, the Father comes into the corporeal world to celebrate a meeting. The Father makes you children bodiless and incorporeal, the same as He is, and the children, with love, make the incorporeal and subtle fathers corporeal, the same as they are. This is the wonder of the children's love. Seeing the wonder of the children's love, BapDada is pleased. The Father sings songs of the children's virtues, of how they are becoming equal to the Father by being constantly coloured by the Father's company. BapDada calls such children who follow the Father obedient, faithful, trustworthy, true invaluable jewels. Compared to you children even physical diamonds and jewels are like dust. You are invaluable. Do you experience yourselves to be the victorious invaluable jewels of the garland around BapDada's neck? Do you have such self-respect?Double-foreign children have the intoxication and happiness that although they are very far away, BapDada has selected them from a faraway land and made them belong to Him. The world is looking for the Father whereas the Father has found you. Do you think of yourselves in this way? The world is calling out to Him to come here, and what song do all of you sing, numberwise? “I sit with You, I eat with You and I am constantly in your company.” There is such a big difference between calling out and being constantly in someone’s company. It is the difference of day and night, is it not? There is such a difference between souls who are thirsty for imperishable attainment even for a second and you souls who are embodiments of attainment. Those souls constantly sing songs whereas you are those who constantly sit in the Father's lap. They are those who cry out and you are those who follow His directions at every step. They are thirsty for just a glimpse (vision) and you are those whom the Father has made an image that grants visions. Let them experience a bit more pain and sorrow and then see how they come in front of you thirsting for a second's glimpse or a second's drishti from all of you.Now you invite them and call them. When the time comes, they will make a lot of effort to meet you for even a second: “Please let us meet you!” All of you will have the practical form of being an image that grants visions. Amongst you children too, you will recognise the importance of your elevated life and elevated attainment a lot more at such a time. Now, because of carelessness and being ordinary, you even forget your greatness and your speciality. However, when souls who lack attainment come in front of you thirsting for attainment, you will experience more who you are and who they are. At the moment, because you receive many treasures easily from BapDada, you sometimes consider your value and even the treasures to be ordinary. However, every elevated version, every second, and every breath of Brahmin life is so elevated. You will experience this a lot more as you progress further. Every second of Brahmin life creates not just a reward for one birth, but for birth after birth. A second gone means a reward for many births gone. You are the elevated souls with such an invaluable life. You are such special souls with an elevated fortune. Do you understand who you are? Baba has come to meet such elevated children. You double-foreign children constantly remember this, do you not? Or is it that you sometimes forget and sometimes remember? You have become embodiments of remembrance, have you not? Those who have become an embodiment can never forget. Don't become those who have to remember, but become embodiments of remembrance. Achcha.To those who constantly celebrate a meeting, to those who are constantly coloured by the Father's company, to those who understand the importance of all attainments of the self and of time, to those who constantly follow the Father at every step; to such long-lost and now-found obedient children, BapDada's love, remembrance and namaste.BapDada meeting new children who have come from Poland and other countries:Do all of you consider yourselves to be fortunate? What fortune do you have? To come to this elevated land is the greatest fortune of all. This land is the land of the great pilgrimage. To have arrived here is fortune anyway. So what more will you now do? Stay in remembrance; constantly continue to increase the practice of remembrance. However much each of you learns, continue to increase that. If you constantly continue to maintain a relationship, then with that relationship you will continue to attain a great deal. Why? In today's world, everyone wants both happiness and peace. So, both of these can be attained for all time through the practice of this Raja Yoga. If you want this attainment, this is the easy method. Don't let go of it. Keep it with you. You will receive a lot of happiness. It will be as though you have received a mine of happiness, through which you will be able to distribute true happiness to others. Relate this to others and also show this path to others. There are so many souls in the world, but out of all of those souls, it is you few souls who have reached here. This is also a sign of great fortune. You have reached the shanti-kund (power house). Peace is essential for everyone. To be peaceful themselves and continue to give everyone peace is the speciality of humans. If there is no peace, what is the life of a human being? You have spiritual, imperishable peace. You can show yourself and many others the way to attain real peace. You will become charitable souls. It is such great charity to give peace to a peaceless soul. First of all, become full yourself and then you can become charitable souls with others. There is no other charity like this. You can show unhappy souls the sparkle of peace and happiness. Where there is deep love, the thought of the heart is fulfilled. Continue to move along as messengers who give the message that you have just received from the Father.BapDada meeting servers:The lottery of service makes you full for all time. By doing service, you become full of treasures for all time. All of you did number one service. All of you are those who claim the first prize, are you not? The first prize is to remain content and to make everyone content. So, what do you think? For the number of days that you did service, did you remain content for all of that time and also make others content or did some of you become upset? If you remained content and made others content, you are number one. To be victorious in every task means to be number one. This is success. Don’t allow yourselves to be disturbed and don't disturb others. This is victory. Therefore, you are such victorious jewels for all time. Victory is the right of the confluence age because you are master almighty authorities.True serviceable souls are those who constantly have spiritual vision, a spiritual attitude and, as spiritual roses, make all spirits happy. So, for however long you served, did you serve as a spiritual rose? There weren't any thorns in between, were there? Did you always maintain spiritual awareness, that is, did you always stay in the stage of a spiritual rose? Just as you practised this here, in the same way, maintain such an elevated stage at your own places. Don’t come down, no matter what happens or what the atmosphere is like. Roses live amidst thorns and yet constantly continue to give fragrance; they don't become thorns whilst living amidst thorns. In the same way, spiritual roses always stay beyond the influence of the atmosphere and remain loving and detached. When you get back, don't write: What can I do? Maya came! You are going back as those who are constant conquerors of Maya, are you not? Don't give Maya permission to come. Keep the door closed for all time. The double lock is remembrance and service. Maya cannot come where there is a double lock.BapDada meeting Dadiji and other senior sisters:Just as the Father constantly increases the zeal and enthusiasm of you children, in the same way, it is you children who follow the Father. BapDada is especially congratulating all of you teachers who have come from this land and abroad for service. Each one of you, consider yourself to have a right to love and remembrance personally by name and give yourself love in that way. If Baba were to sing each one's praise individually, how many people's praise could He sing? All of you have made a lot of effort. You have progressed well since last year and, in the future too, you will continue to progress the maximum for yourself and also in service. Do you understand? Don't think that BapDada hasn't spoken to you. He is speaking to all of you. Devotees are making effort to remember the Father's name and are thinking that the Father's name should remain on their lips, whereas whose name is on the Father's lips? The names of you children are on the Father's lips. Do you understand? Achcha.Questions from double foreign brothers and sisters and BapDada's answers:Question: What is the new plan for this year’s service?Answer: In order to bring time close, you first have to do the service of making the atmosphere powerful through your attitude. For this, pay special attention to your attitude. Secondly, in order to serve others, especially make those souls emerge; who truly believe that the method for peace can only be found here. Let the sound emerge this year that, if there is to be peace, it will only be through this method. This is the only method. What the world needs is nothing else but this method. Let this atmosphere be created everywhere simultaneously. In Bharat or abroad, let the sparkle of peace be very visible way. Let everyone everywhere be touched and be attracted and say that if there is a right place, it is here. Just as the Government has the UNO, so that, when anything happens, everyone's attention is drawn there, in the same way, whenever something happens and it creates peacelessness, let everyone's attention be drawn to you as the souls who give the message of peace. Let them experience that this is the only place where they can remain safe from peacelessness and where they can seek refuge. Let this atmosphere be created this year. "The knowledge is good, your life is good, Raja Yoga is good." Everyone says this, but now let the sound be heard that real attainment can be attained here, that the world will benefit at this place with this method. Do you understand? For this, especially advertise peace: If anyone wants peace, you can find the method here. Have a Peace Week. Have a gathering for peace. Have yoga camps for giving them the experience of peace. Spread vibrations of peace in this way.Creating students through service is very good. That expansion definitely has to happen. However, now, just as you have a variety of nationalities and souls of different religions, let there be souls of all different occupations at every place. Anyone who goes to a centre should be able to find someone of his own occupation at that centre who can share his experience, just as you have workshops here, sometimes with doctors, sometimes with lawyers etc. When people of different occupations speak of the one subject of peace on the basis of their own occupation, they enjoy that. So, in this way, let people of every occupation relate their experience of peace to anyone who comes to the centre and this will have an impact on them. Let them experience that this is an easy method for people of all occupations. For instance, for some time now, there has been good advertising about this being the only method for those of all religions. Let there be this sound. So, now spread the sound in this way. This sound reaches those who are in contact with you and the students but, now, let there be a bit more attention paid to enable this sound to be spread in all directions. Only a few Brahmins have been created so far. The speed of becoming Brahmins numberwise cannot be said to be fast. There needs to be at least 900,000 now. At the beginning of the golden age you will rule over at least 900,000, will you not? There will be subjects in that number too, but only when they come into close contact with you now will they then become subjects. So, bearing this figure in mind, how fast should the speed be? As yet, the number is very small. What is the total number of those abroad? At the very least, the number of those abroad should be two to three hundred thousand. You are making very good effort. There isn't anything wrong but, now, let the speed be a little faster. The speed will increase through the general atmosphere. Achcha.Question: What is the way to create a very powerful atmosphere?Answer: You yourself become powerful. For this, pay special attention to checking whether in every action from amrit vela onwards your stage is powerful or not. When you are busy serving others and making plans for service, there is sometimes a little lightness (slackness) in your own stage. This is why the atmosphere doesn't become powerful. Service takes place, but the atmosphere doesn't become powerful. For this you have to pay special attention to yourself. Karma and yoga; together with karma, there has to be a powerful stage: this balance is lacking a little. When you are just being busy in service, your own stage doesn't remain powerful. Given the amount of time you give for service, and the extent to which you use your body, mind and wealth for service, you don't receive the hundred-thousandfold return of one that you should be receiving. The reason for this is that there isn't the balance of karma and yoga. Just as you make plans for service – you have leaflets printed, you have programmes on the TV and Radio – just as you use these external facilities, in the same way, first of all, have a special method to make the stage of your mind powerful. This attention is lacking. You then say that because you were busy, you missed out on this a little. There cannot then be double benefit. Blessing: May you be a great renunciate who renounces the respect and status received through service and creates an imperishable fortune. The practical fruit of the elevated actions that you perform and service that you children do is to be praised by everyone. A server receives a seat of elevated praise, he receives a seat of respect and status. Such a soul definitely receives this success. However, all of these forms of success are the steps of the journey and not the final destination. So, renounce this and become fortunate. This is known as being a great renunciate. The speciality of a great, incognito donor is to be a renunciate of even the renunciation. Slogan: In order to be an angel, observe the part of every soul as a detached observer and give them sakaash. #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday #english
- How to Grow Up Your Children the best way? Advice for Parents
Complete Guidance on Personal Development of a child. Both mental and physical. How one can guide and shape the child's future the best way? These are guidelines for parents on parenting, nurturing and overall child development. Original Question via Email: Sister, I have a son, aged 7 years. The problem is, during study time he becomes restless and divert his mind to something else. This also happens during music class, abacus class as well. Sometimes, we loose our temper and scold him. Later on we feel sorry for our behavior. We are not very ambitious parents, but we want him study on regular basis. Please suggest us how to deal with the child. We have watched many videos of your's and we like all of them. Regards, tensed parents Our Response: To: All Parents From: Prajapita Brahma Kumaris Godly Spiritual University Topic: How to best guide your child at young age? How to improve their study and concentration?, in a Balanced way. First: General Advice As you may observe, today's children are prone to diverge their mind from study, because Science has given many instruments, especially mobile - which is very dangerous also. Children can access the entire world of information with that small device. This information can be negative. So parent's responsibility is to save their children from such technology. Yes, mobile is useful. But only to some extent which is needed. You MUST first teach the child - How to use the resources (in general - all resources) Second - About Studies The power of concentration of mind is most important for studies. Hence this power should be empowered. Concentration is achieved only when there is no distractions or when we are doing what we love the most. Hence if you can develop the love of knowledge and study in the mind of your children, then this is your success. Know that most of successful scholars and scientists had love for what they were doing and hence they can focus on their research for any long. This is the KEY for success - Concentration power. Every child is different. We call a child - to a Soul who have a small body and small organs. They may not properly express what they wish to do in life. Hence parents are there for them. Parents should think for the child's happiness also. As time is going, education system has given a big burden to small children and almost killed their innocence. Remember, before only few decades (50 years ago), world was much better. Children were 'children'. Innocence, playful and happy. The real meaning of education is - HOW TO THINK? Studies is important for mental growth and playing is important for physical and emotional growth. This is our opinion. Based on this understanding, you can lovefully guide your child towards studies. HOW? Give him a good time for playing outside or watching cartoon. Playing chess is also a game and also a way of improving concentration power. Then after tell him to study. Love can only transform, not scolding. This is a balanced way of living. Children are like a wet mud. As you shape them now, they will remain for their entire life. So be very careful what you teach them NOW. SOURCE: This wisdom is given to us, by God himself. God, our supreme father has come. Come, know this and everything that was hidden: https://www.brahma-kumaris.com/about-us We are always for everyone in world service. Either personal advice or spiritual, you are free to contact us. Videos to watch: https://www.brahma-kumaris.com/single-post/videos-Films-and-Documentaries-1 In God Fatherly World Service 00
- BK murli today in Hindi 3 Sept 2018 Aaj ki Murli
Brahma kumari murli today in Hindi BapDada Madhuban 03-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - कोई भी भूल हो तो बाप से छिपाओ मत, अगर छिपायेंगे तो छिपाते-छिपाते स्वयं भी छिप जायेंगे'' प्रश्नः- बिगड़ी को बनाने वाला बाप तुम बच्चों की बिगड़ी किस आधार पर बनाते हैं? उत्तर:- पवित्रता के आधार पर। तुम बच्चे जानते हो जब बाप बिगड़ी को सुधारने आते हैं तो इस पवित्रता पर ही अनेक झगड़े होते हैं। अबलाओं को सितम सहन करने पड़ते। पवित्र बनने बिगर देवता बन नहीं सकते। भारत को कौड़ी से हीरा, दु:खधाम से सुखधाम, पुराने को नया बनाने के लिए पवित्र जरूर बनना पड़े। तुम बच्चे इसी बात की मदद बाप को करते हो इसलिए बाप के साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा होती है। गीत:- भोलेनाथ से निराला....... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना? कौन से बच्चों ने? प्रजापिता ब्रह्माकुमार और कुमारियों ने। बाप कहते हैं मैं बी.के. के आगे ही ज्ञान सुनाता हूँ। बच्चे जानते हैं यहाँ कोई भी शूद्र कुमार वा रावण कुमार बैठ नहीं सकते। नाम ही पड़ा है ब्रह्माकुमार और कुमारियां अर्थात् प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान। तुम जानते हो कि हमारे ब्रह्मा बाबा का बाबा तो शिव है। हम आत्माओं का भी बाप शिव है। वह बाप ही है बिगड़ी को बनाने वाला। भारत की ही बिगड़ी है, उसको ही बनाते हैं। बाप कहते हैं भारत हीरे जैसा था, सुखधाम था। नई दुनिया में नया भारत, नया देवी-देवताओं का राज्य था। अभी भारत की बिगड़ी हुई है, असुरों का राज्य है। बिगड़ी को बनाने वाला अथवा सुधारने वाला कौन है? यह तुम ब्राह्मणों के सिवाए और कोई जान न सके। बरोबर भारत बहुत ऊंच था, अब नीच है। दूसरे कोई धर्म के लिए नहीं कहेंगे कि वह बहुत ऊंच थे, अब नीच हैं। जिन्होंने राजाई गंवाई है वही फिर से राजाई करते हैं। तब कहते हैं फिर से बिगड़ी को बनाने वाला। सतयुग के बाद फिर जरूर त्रेता, द्वापर, कलियुग आना ही है। सबकी बिगड़नी ही है। सतो, रजो, तमो में आना है जरूर। अब सभी की बिगड़ी हुई है। सब धर्मों का आपस में हंगामा बहुत है। चीनियों का आपस में, बौद्धियों का आपस में, सभी आपस में कितना लड़ते-झगड़ते रहते हैं। इतने जो अनेक धर्म हैं सबकी बिगड़ी हुई है। सब तमोप्रधान जड़-जड़ीभूत अवस्था में हैं। सबको सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना ही है। रावण तमोप्रधान बना देते हैं फिर राम आकर रावण की बिगड़ी को बनाते हैं।तुम जानते हो राम किसको कहा जाता है। राम-राम कह माला फेरते हैं तो परमात्मा को ही याद करते हैं। नाम ही है रूद्र माला। रूद्र शिव के गले की माला। सब धर्म वाले याद जरूर करते हैं। सभी धर्म वालों का सद्गति दाता शिव है। साथ में जरूर मददगार होंगे। रुद्र की माला बहुत सर्विस करती है। तुम बच्चों को बहुत सर्विस करनी है। सर्विस करते हो तब तो तुम्हारा पूजन होता है। रुद्र यज्ञ भी रचते हैं, न सिर्फ भारत में परन्तु सारी दुनिया में क्योंकि तुम सारी दुनिया को पावन बनाते हो। सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति लेकर तुम स्वर्ग बनाते हो तो जरूर सारी सृष्टि को तुम्हारी पूजा करनी चाहिए। रुद्र है बाप। उनका बड़ा शिवलिंग मिट्टी का बनाते हैं और छोटे-छोटे सालिग्राम भी बनाते हैं। नाम है रुद्र यज्ञ। तुम्हारी पूजा होती है क्योंकि तुम सेवा करके गये हो। रुद्र यज्ञ रचते हैं, बहुत पूजा करते हैं। लाखों सालिग्राम बनाते हैं। पहले है आठ की माला फिर है 108 की और 16108 की। उन्होंने मदद की है, जो मदद बहुत करेंगे वही नज़दीक वाले होंगे।अभी तुम पुरुषार्थ करते हो रुद्र माला में नजदीक पिरो जायें। सिर्फ बाप को याद करना है। बहुत सहज है। बच्चे के लिए बाप को याद करना बहुत सहज है, जन्मते ही बाबा-मम्मा कहना सीख जाते हैं। तो तुम भी बाबा-मम्मा के बच्चे बने हो। कहते भी हो तुम मात-पिता......। अभी तुम जानते हो हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। वह मात-पिता हमको राजाई प्राप्त करने के लिए शिक्षा देते हैं। यूं तो शिक्षा राजा को देनी चाहिए, राजा बनाने की। जैसे बैरिस्टर बनाने की शिक्षा बैरिस्टर देते हैं परन्तु यहाँ तो वन्डरफुल बात है। परमपिता परमात्मा ही ज्ञान का सागर है। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है। सभी वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों आदि को वह जानते हैं। वह है निराकार, नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, रहमदिल। सबके ऊपर रहम करते हैं। सारी सृष्टि पर दया करते हैं क्योंकि सारी सृष्टि तमोप्रधान बनी हुई है। 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। उन पर भी दया करते हैं, वह भी सतोप्रधान बन जायेंगे इसलिए उनको बेहद का सर्वोदया कहा जाता है। यह भी ड्रामा में नूंध है। आत्मा पवित्र बनने से हर चीज़ पवित्र बन जाती है। अभी यह तत्व आदि भी कितने ऩुकसान करते हैं। वहाँ तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। कभी कोई बूढ़े नहीं होते। तो बिगड़ी को बनाने वाला बाप है। उनको ही वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है। वही वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य स्थापन करते हैं। खुद तो निराकार है, उनको महाराजा या विश्व का मालिक, विश्व पर राज्य करने वाला नहीं कहेंगे। वह तो करनकरावनहार है। देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन कराते हैं। खुद राजाई करते नहीं हैं।तुम बच्चे कहते हो हम वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी विश्व के मालिक बनते हैं। फिर तुम्हारे पर कोई की अथॉरिटी नहीं चलती। कोई हुक्म नहीं कर सकते। सतयुग-त्रेता में और कोई होते ही नहीं। तो तुम बच्चों को सिद्ध कर बताना है सर्व शास्त्र शिरोमणी गीता है। भगवान् ने ही राजयोग सिखलाया है। तुम बच्चे जानते हो हम मनुष्य से देवता बनते हैं। मनुष्यों की बिगड़ी है तब तो बाप आकर देवता बनाते हैं। सारा मदार है पवित्रता पर। बच्चियां लिखती हैं - बाबा, पवित्र बनने लिए बहुत सितम करते हैं। बच्चों को समझाया गया है बड़ा युक्ति से चलना चाहिए। इसमें बड़ी होशियारी चाहिए। एक खेल है जिसमें दिखाया है अपने को बचाने लिए स्त्री कितने चरित्र करती है। बाप कहते हैं - बच्चे, इसमें नष्टोमोहा बनना पड़े। बहुतों की पति में, बच्चों में मोह की रग जाती है। कन्या का तो सिर्फ माँ-बाप और भाई-बहन में मोह होगा फिर जब शादी करती है तो प्लस और भी बढ़ जाते हैं। पति, सासू फिर बच्चे पैदा हुए तो उनमें कितना मोह जुट जाता है। डबल वृद्धि हो जाती है इसलिए पहले तो नष्टोमोहा चाहिए, फिर परीक्षायें भी आती हैं। जैसे राजायें लोग घरबार छोड़ते हैं तो पहले गुरू के पास जाते हैं, वह फिर उनसे काठी (लकड़ी) कटाते, आश्रम की सफाई आदि कराते हैं ताकि देह-अभिमान टूट जाए। यहाँ भी ऐसे कायदे हैं। गरीब तो यह सब काम करते रहते हैं। बड़े घर वालों में बड़ा देह-अभिमान रहता है तो उन्हों की परीक्षा ली जाती है। शुरूआत में बाबा ने भी परीक्षा ली ना। देह-अभिमान तोड़ने लिए तुम सब कुछ करते थे। मोटर साफ करना, धोबी का काम करना। कोई भी आये तो बोलो - पहले तो यह काम करना पड़ेगा। बड़े घर वालों के लिए तो आना ही बड़ा मुश्किल है। गरीबों पर फिर मार खाने की मुसीबत है। पवित्र रहने नहीं देते हैं। उनके साथ फिर युक्ति से चलना पड़ता है लेकिन पूरा नष्टोमोहा जरूर चाहिए। अधूरे नष्टोमोहा होंगे तो एक टांग उस तरफ, एक टांग इस तरफ, लटक पड़ेंगे। फिर ऐसे बहुत लटक दु:खी हो पड़ते हैं। बाप को भूलने से छी-छी हो जाते हैं।बाप बच्चों को निरन्तर याद करने के लिए कितनी युक्तियां बतलाते हैं। याद से ही विकर्माजीत बनेंगे। कल्प-कल्प श्रीमत देते आये हैं। राजधानी तो जरूर स्थापन होती है। जो कल्प पहले मुआफिक पुरुषार्थ करते हैं वह छिपे नहीं रह सकते। झट मालूम पड़ जाता है। दास-दासियां भी बनने हैं ना। यहाँ रहते हैं तो राजधानी में तो आ जाते हैं क्योंकि बच्चे तो फिर भी बने ना। दास-दासी बन फिर कुछ न कुछ पद पा लेते हैं। नहीं तो दास-दासियां कहाँ से आये। प्रजा को तो अन्दर आने का एलाउ हो न सके। दास-दासियां तो अन्दर रहते हैं। बहुत कहते हैं हम कृष्ण के दास-दासी बनें तो भी अच्छा है। माँ से भी जास्ती उनकी गोद में आयेगा। आजकल बच्चों को नर्सें ही सम्भालती हैं। वहाँ तो कृष्ण को सम्भालने में बड़ी खुशी होती है। कृष्ण जन्माष्टमी पर सब मातायें कृष्ण को झुलाती हैं। वहाँ भी दासियां सम्भालती हैं।बापदादा को बच्चे बड़े अच्छे चाहिए। बाप तो कहते हैं, कितनी मेहनत करनी पड़ती है - राजधानी स्थापन करने में। झाड़-झाड़ की काठी है, सम्भालने वाले ही तंग हो जाते हैं। कोई-कोई पर चलते-चलते ग्रहचारी बैठ जाती है। बात मत पूछो। यह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने, यानी बापदादा जाने। गुड़ तो है ही बाप, मीठा है ना। उनकी गोथरी, जिनमें वह आते हैं तो वह जाने और यह जानें। माया रावण ऐसा थप्पड़ लगा देती जो पता भी नहीं पड़ता है। अवज्ञा हो जाती है तो म़ाफी तो ले लो, नहीं तो कर्म भोगना बहुत हो जाती है। समझाने से भी समझते नहीं। ऐसा माया का ग्रहण लग जाता है। बाबा खुद बतलाते हैं। कभी तो योग बड़ा अच्छा लगता है, कभी तो माया इतना त़ूफान में ले आती है, बात मत पूछो। बाबा कहते हैं पहले तुम अनुभव करेंगे, तब तो औरों को बतायेंगे ना। तो त़ूफान पहले सब बाबा के आगे आते हैं। बाबा बतलाते हैं अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। स़ाफ दिल है तो ऊंची मुराद हांसिल होती है। अन्दर बाहर दिल के स़ाफ हों तब ही सच्ची दिल पर साहेब राज़ी हो सकता है। तुम बच्चे जानते हो हमारी बिगड़ी को बाबा बना रहे हैं। हम एकदम बन्दर मिसल थे। बाबा मन्दिर लायक बनाते हैं। विश्व के हम मालिक बनते हैं फिर मन्दिर में बैठने की एक कोठरी मिलती है। सतयुग को कहा जाता है शिवालय। सारे विश्व के मालिक बन राज्य करते हैं फिर बाद में हमारे लिए मन्दिर बनते हैं जिनमें हम पूजे जाते हैं। पूजा करने वाले भी पहले हम ही थे, हम ही पूज्य थे फिर हम ही पुजारी बने हैं फिर पूज्य बनते हैं। समझाया तो बहुत अच्छा जाता है। माया अच्छे-अच्छे बच्चों का भी माथा खराब कर देती है। देह-अभिमान बड़ा ऩुकसान कर देता है फिर कुछ न कुछ पाप हो जाता है। शिवबाबा की शल कोई अवज्ञा न करे, उनसे कोई न छिपाये। धर्मराज भी है, बड़ा दण्ड देते हैं। उनका डर रहना चाहिए। अवज्ञा होती है तो क्षमा ले लेनी चाहिए - बाबा, आज हमसे यह भूल हुई। शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा। डर रहता है ब्रह्मा तो पहले पढ़ेंगे। अरे, वह तो बाबा है, शिक्षा देते हैं। मम्मा भी शिक्षा देती है। तुमको भी कोई बतलाते हैं तो तुम फिर शिवबाबा को समाचार देते हो। मम्मा-बाबा को भी मालूम पड़ जाता है। समझाया तो बहुत जाता है। मकनाहाथी नहीं बनना है। हाथी को बहुत देह-अभिमान होता है। देह-अभिमान भी बहुत नुकसानकारक है, आधाकल्प चला है ना। वहाँ तो समझते हैं हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ नया लेते हैं। वहाँ आत्म-अभिमानी कहेंगे। यहाँ तो सब देह-अभिमानी हैं। तो बच्चों को श्रीमत लेते रहना है। भूल कभी छिपाना नहीं चाहिए। छिपाते-छिपाते छिप ही जाते हैं। योग टूट पड़ता है। बिगड़ी को बनाने वाला एक ही भगवान् अथॉरिटी है। अभी तुम उनके बच्चे बने हो। अच्छा!अति मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अन्दर-बाहर दिल की सफाई से साहेब बाप को राज़ी रखना है। माया के ग्रहण से बचने के लिए बाप को सच्चाई से सब सुनाना है। 2) नष्टोमोहा पूरा बनना है। जरा भी किसी देहधारी में रग नहीं रखनी है। देह-अभिमान को तोड़ने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है। वरदान:- मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्व शक्तियों की किरणें देने वाले विश्व कल्याणकारी भव l जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है ऐसे आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य हो तो अपने सर्व शक्तियों की किरणें विश्व को देते रहो। यह ब्राह्मण जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहो। जो बिजी रहते हैं वो स्वयं भी निर्विघ्न रहते और सर्व के प्रति भी विघ्न-विनाशक बनते। उनके पास कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। स्लोगन:- जिम्मेवारी सम्भालते हुए सब कुछ बाप को अर्पण कर डबल लाइट रहना ही फरिश्ता बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- 13 Aug 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English -13/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, the time of Brahmins is at this confluence age when you become the children of Brahma. You have to claim your inheritance from the unlimited Father and also enable others to claim it. Question: What type of intellect do you need in order to understand this knowledge very well? Answer: Those with business intellects will understand this knowledge very well. This is an unlimited business. The Father continues to show you children many different methods with which you can earn an income. The duty of you children is to make effort. You should invent such methods that you continue to accumulate an income for yourselves and in which there is also benefit for others. Remembering the Father and doing service are the means of your earning an income. Song: O traveller of the night do not become weary! Your days of happiness are about to come. Om ShantiThe Father from beyond explains to the children. He says: Children, don’t forget Me, your Supreme Father from beyond, the Supreme Soul. The God of the Gita is remembered. No one ever speaks of the God of the Bible or the God of the Koran. None of the founders of religions have said: O children, remember Me, your Father from beyond. No one would be able to say this to anyone. When a baby is born, it recognises his father. Because he is an heir, he will continue to remember his father. Now, the Father from beyond says: O My long-lost and now- found children, you now have to come to Me. I have come to take you children back to the supreme abode, the land of nirvana. You devotees used to remember Me, God. I now tell you to remember Me constantly. I take you to the land of happiness. Look in the mirror of your heart and see how much sorrow you have experienced for half a cycle. You didn’t experience as much sorrow in the beginning. It is later that sorrow increases. The Father from beyond now says: Remember Me! He says to souls of all religions: O My children, you have all been considering yourselves to be brothers. Now, the Father from beyond of you children, the One all human souls remember at the time of sorrow, has come and explains to you children through the lotus mouth of Brahma. Explanation is given to Brahmins, the mouth-born children of Brahma. Prajapita Brahma did not only have kumaris; he had both kumars and kumaris. There were brothers and sisters, Brahma Kumars and Kumaris. All are the children of the one Father, the granddaughters and grandsons of the one Grandfather. You children are having it explained to you personally. You listen personally and you understand that you are all children of incorporeal Shiv Baba. You are definitely studying Raja Yoga in order to claim your sovereignty of heaven from Shiv Baba through Brahma. Whatever the Supreme Father, the Supreme Soul, explains through Brahma’s mouth, you have to explain that to others. You have to explain to your physical brothers and sisters. You are now called parlokik (from beyond). You are claiming your inheritance from the Father from beyond. Therefore, you call yourselves parlokik brothers and sisters, whereas others are physical brothers and sisters. The Father explains: Children, connect your intellects in yoga to Me, exactly as you did 5000 years ago and your sins will be absolved; your sins will be burnt away. Remembrance of the Father is called the fire of yoga. By staying in remembrance of the Almighty Authority you receive power. He is the one and only incorporeal Father. He gives you knowledge through this Brahma’s mouth. He definitely needs a chariot to do this, a chariot in which He can ride. This is the chariot which the Supreme Father, the Supreme Soul, enters and teaches these things to you children. He gives you the explanation of this world from its beginning, through its middle to its end whereby you become rulers of the globe, future kings and queens. By staying in constant remembrance, you will become conquerors of vice; you will become pure, charitable souls. You will become rulers of the globe, world emperors and empresses for 21 births in the heaven that Baba establishes. We can relate the importance of all the festivals that take place in Bharat such as Shiv Jayanti, Holi, Rakhi, Janamashtami, Diwali etc., and also the biographies of all the deities. Come, brothers and sisters, we will give you the introduction of your Father from beyond. By receiving this introduction and studying easy Raja Yoga, you can become the masters of the world. You will rule the unshakeable and constant World Almighty kingdom of purity, peace and happiness. It is very easy to explain this to anyone. You should also write in this way: We will explain the secrets that the Father has explained to us. You will claim your inheritance from the Father if you become a child of Him. You too can come and claim your unlimited inheritance from your unlimited Father. For birth after birth you have been claiming limited inheritances. Those are inheritances of sorrow, because it is the kingdom of Ravan. There was constant happiness in the kingdom of Rama. Then, in the kingdom of Maya, Ravan, you became unhappy. You can explain this to anyone. You can also explain these things in a public lecture. God is the Highest on High. Then there are Brahma, Vishnu and Shankar and their praise. It is remembered that establishment took place through Brahma. Therefore, he must surely have been in the corporeal world. Brahmins are the children of Brahma. He is called Brahma, the Father of Humanity. So, the Brahmin caste is needed first. The Brahmin caste is the highest of all. Who creates this caste? The Supreme Father, the Supreme Soul. All are children of the Father. He sits here and teaches you Brahma Kumars and Kumaris through Brahma. This confluence age is the land of Brahmins. Then you will go to the land of Rudra and then to the land of Vishnu. The ones who stay in constant remembrance will be the first ones to go into the rosary of Rudra. They will become the kings and queens of the sun dynasty and the moon dynasty. Therefore, by studying Raja Yoga from the Supreme Father, the Supreme Soul, at this time you can claim a royal status. The Father says: Constantly remember Me, your Father. Connect your intellects in yoga to Me. This is a spiritual pilgrimage. You have been going on physical pilgrimages for birth after birth. The Father now comes and teaches you the spiritual pilgrimage. He says: Remember Me, your Father and your sweet home, the place from where you came to play your parts. When you were beautiful you ruled the world. Then, when you sat on the pyre of lust, you became ugly; from beautiful, you became ugly. Bharat was very beautiful; the very name was heaven; now it is hell. You are those who become worshippers from being worthy of worship. Therefore, the Highest on High is God Shiva, who accomplishes His tasks through Brahma, Vishnu and Shankar. They have been made the instruments responsible for this. He is Karankaravanhar. He teaches Raja Yoga through Brahma in order to make Bharat into heaven. The Father says: Only when I finish the task of teaching you Raja Yoga will destruction take place. You will then go and rule the kingdom of the new world, which is now being established. However, this depends on how much effort you make. Everything depends on effort. They say that the Ganges is the Purifier. So, why do they call out to the Supreme Soul, “O Purifier, come.”? The worshipper devotees have to receive the fruit of their worship and devotion. They receive the reward of liberation-in- life in heaven and all the rest receive their reward of peace. All those who studied Raja Yoga were happy in heaven; there was both peace and happiness. You have to have your sins absolved. All the karmic accounts have to be settled, and you then have to play your parts again from the beginning. The Father enables everyone to settle their karmic accounts. He makes them pure and takes them back with Him. The significance of this aspect has to be understood. Human beings remember God. Therefore, He definitely has to come onto this earth. He says: I come onto this earth to give devotees the fruit of their devotion. I grant them liberation and liberation-in-life and also peace and happiness. People everywhere in the world ask for peace, happiness and wealth. Human beings make so much effort to attain money so that they can become wealthy. They consider happiness to be in wealth. However, it doesn’t matter how much wealth anyone has, this is still the kingdom of Maya; it is still the impure world. Therefore, there must definitely be sin here. People commit a lot of sin to attain wealth. This is the world of sinful souls. There is not a single pure, charitable soul here, whereas there are no sinful souls in the world of pure, charitable souls. The king, queen and subjects are all pure, charitable souls. Kings in the impure world also worship those pure deities because they consider the deities to be completely virtuous and that they themselves have no virtue. They say: Have mercy on us! Then they say that they are God! There is only the one Father who purifies the impure. By saying “Purifier” your intellect should go up to incorporeal God. There are worshippers who worship the incorporeal One. Therefore, the incorporeal Father is the Highest-on-High. Until they have His proper introduction, how can they worship Him? They say that Shiva is God, because they remember the Incorporeal, but who is He? They need His full introduction. Why do they remember the incorporeal One? What do they receive from Him? Will they go to the incorporeal world? Souls do not know the path to the incorporeal world. Even though everyone remembers Him, they don’t have His introduction. No one can become pure through that type of remembrance. The incorporeal One, Himself, comes here into the corporeal. People study so many scriptures etc. in order to go to the incorporeal world, but no one can go there. They don’t know the way there. The guides of physical pilgrimages know those ways, which is why they are able take people there. No one here knows this path, so how could they explain? This is why they say that God is infinite. In that case, how could they remember Him? They don’t understand anything at all. Someone said that He was infinite and someone else said that He was incorporeal. Therefore, they became worshippers of the incorporeal One. Nowadays, they say that they are God! Day by day, people’s ideas are becoming tamopradhan; they say whatever they think. The Father explains that He has been remembered as the Highest on High. Through the idea of omnipresence, everyone becomes the Highest on High. How can those who are impure and unhappy be the Highest on High? On the one hand, they say that He is beyond name and form, and on the other, they put Him into the pebbles and stones. That is called defamation of religion. Now they say: We are the Supreme Soul. Whatever has passed was in the drama. It will happen again. By them making mistake after mistake, by giving insult after insult, Bharat has become so impure. Everyone has to receive the Father’s introduction. Your influence will spread. People receive knowledge through so many Brahma Kumars and Kumaris. These things are surely spoken by the Supreme Father, the Supreme Soul. The highest of all is the Supreme Father, the Supreme Soul. He is praised a great deal; there is no limit to His praise. The Father now sits here and gives His own introduction. What do I do? I come and teach Raja Yoga and transform impure souls into pure souls. It is remembered: “God, Your ways and means are unique!” Therefore, it is definitely when He comes here that He would give directions. The Christ soul came to establish the Christian religion. The Father’s directions are unique. This Father is the highest of all. Out of all the human beings in Bharat, it is the highest-on-high deities who wear the double crown. This is the Father’s shrimat. God speaks: I teach you Raja Yoga, which no one else can teach. It is written: “God speaks”. He is Heavenly God, the Father, who establishes heaven. He teaches you Brahmins Raja Yoga for heaven. The Brahmin caste is the highest of all. The Father shows you many methods for doing service. Even though someone insults you, you must still put up the pictures. It must be written on them that Bharat goes through these castes. Now that it is the iron age, it is the shudra caste. Then you become Brahmins through the Father. You are called Brahma Kumars and Kumaris. Your pictures should be such that human beings become amazed and say that they have never seen such pictures anywhere else. Those with business intellects can understand these things very well. This business is very good, and the One who gives elevated directions is also the most elevated. However, there are many children who don’t make effort at all; they stay at home sleeping. So Baba comes to uplift them. If you create one picture, thousands will experience benefit from that. Everyone will sing your praise. They will say: Salutations to you mothers. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. In order to become the first ones in the rosary of Rudra, stay in constant remembrance of the Father. Make yourself pure by remembering the Father and the sweet home. 2. Become a spiritual guide and take everyone on the true pilgrimage. Follow the shrimat of the one Father and make yourself double crowned. Blessing: May you become a most elevated being by following the highest codes of conduct and who moves along according to the codes of conduct from amrit vela till night time. The codes of conduct of the confluence age make you great and this is why you are called “maryada purshottam” (Those who become the highest by following the highest codes of conduct). The easiest way to protect yourself from the tamoguni atmosphere and its vibrations is to follow the codes of conduct. Those who stay within the codes of conduct are saved from labouring. You have received the codes of conduct for every step you take and by taking steps accordingly, you automatically become maryada purshottam. So, from amrit vela till night time, let your life be according to the codes of conduct and you will then be said to be the highest beings, that is, the elevated souls amidst ordinary people. Slogan: Those who mould themselves to any situation become worthy of everyone’s blessings. #english #Murli #brahmakumari #bkmurlitoday
- Short Films and Documentaries from YouTube
Short Films and movies, documentaries and message clips from Prajapita Brahma Kumaris God Fatherly University. Best of selected videos free to watch from YouTube. One platform for access to all films made on Shiv baba, Murli, World Drama Cycle with scientific explanation, and Godly message (sandesh). In this post, we present you 8 videos on World Drama, Raja Yoga meditation and GOD Shiv. Please SHARE this page to your contacts. Polaris Star - World Transformer Brahmastra FULL movie - MUST watch 'Polaris Star' movie in English 'Polaris Star' film in Hindi True Love - Short Film Meditation for Beginners - Life changing Video RajYog & Holy Science of GOD Shiva (English) RajYog and Holy Science of ParamAtma Shiv (Hindi) Raja Yoga commentary to remove 5 vices (English) Raja Yog commentary to remove 5 vices (vikar)- Hindi FOR MORE VIDEOS - CLICK HERE Video Gallery Online Services .
- BK murli today in Hindi 27 July 2018 - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Bapdada - madhuban - 27-07-2018 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन'' मीठे बच्चे - इस ज्ञान में गम्भीरता का गुण धारण करना बहुत जरूरी है, कभी भी अपना अभिमान नहीं आना चाहिए, माताओं का रिगार्ड रखो'' प्रश्न: सभी बच्चों के प्रति बाप की आश क्या है? वह आश पूरी कब कर सकेंगे? उत्तर: बाप की आश है - बच्चे ऐसा पुरुषार्थ करें जो नर से नारायण बनकर दिखायें। इसमें ही बाप का शो होगा। ऐसा शो निकालो जो बाप का भी गायन हो तो बच्चों का भी गायन हो। बाबा कहे - बच्चे, अगर तुम नर से नारायण बनेंगे तो तुम्हारा भी मन्दिर बनेगा और हमारा भी बनेगा। ऐसा पूज्य बनने लिए फॉलो फादर। अपने आपसे प्रण करो - हम पूरा ही फॉलो करेंगे। गीत:- जिस दिन से मिले हम तुम....... ओम् शान्ति।बच्चे महसूस करते हैं - बच्चों को भासना आती है। तो जरूर हम नई दुनिया के लिए सब नई बातें सुनते हैं। यह हमारी प्रीत नई लगती है। और कोई की भी प्रीत सम्मुख परमपिता परमात्मा साथ होती ही नहीं। तो यह नई बात है ना। तुम जानते हो बाबा पतित-पावन है। पुरानी दुनिया को पतित, नई दुनिया को पावन कहेंगे। तो तुम्हारी प्रीत नई दुनिया से लगेगी। तुम यह जानते हो हमारी प्रीत अब नई दुनिया स्वर्ग से है। उसको शिवालय कहा जाता है, इनको वेश्यालय कहा जाता है। बरोबर यहाँ विकारी मनुष्य हैं। सतयुग में निर्विकारी हैं तो शिवालय कहेंगे ना। शिवबाबा ही ऐसी निर्विकारी दुनिया स्थापन करते हैं। और जानते हो बरोबर इस पुरानी दुनिया में देवताओं के चित्र हैं जो देवतायें नई दुनिया में रहने वाले हैं। भारतवासी तो सब भूल गये वह तो हिन्दुस्तान कह देते हैं। हिन्दुस्तान हमारा प्यारा, हाँ, जरूर प्यारा था। परन्तु वास्तव में हिन्दुस्तान नाम है नहीं। भारतखण्ड कहा जाता है। तो बच्चे जानते हैं बरोबर यह नई बातें लगती हैं। ऐसी बातें कब नहीं सुनी। यह ज्ञान सारी दुनिया से निराला है। भारतवासियों के मन्दिर भी बहुत हैं। क्रिश्चियन की एक ही चर्च होगी। फिर करके अलग-अलग चर्च बनायेंगे। सतयुग में तो कोई मन्दिर नहीं होता क्योंकि चैतन्य देवताओं का राज्य चलता है। देवतायें शिवालय नई दुनिया में राज्य करते थे। तुम जानते हो अब हम नई दुनिया में जा रहे हैं। यह भी ख्याल कभी नहीं करना कि बाबा ने यह नया मकान बनाया है। वास्तव में पुरानी दुनिया में यह भी पुराना ही है। हमारी प्रीत अब नई दुनिया से लगी है। आत्माओं की परमात्मा साथ प्रीत लगी है, जो सम्मुख बैठे हैं। मनुष्य समझते हैं - ब्रह्माकुमार-कुमारियों की ब्रह्मा से प्रीत लगी है। तुम जानते हो हमारी प्रीत एक शिवबाबा से है। दूसरा न कोई। भल तुम्हारा नाम बी.के. है परन्तु ब्रह्मा से प्रीत नहीं है। यह ब्रह्मा तो देहधारी है ना। जन्म-मरण में आते हैं। तुमको देह से संबंध नहीं जोड़ना है। वह गुरू लोग तो अपना नाम रख देते हैं - सच्चिदानंद। परन्तु सत-चित-आनंद स्वरूप तो एक परमात्मा को ही कहा जाता है। आत्मा सत-चित-आनंद रूप, शान्त रूप, ज्ञान रूप थी। अब तुम फिर से इस संगम पर बनते हो। जैसे बाप की महिमा है ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर........ तुम भी सत-चित-आनंद रूप हो। बीज और झाड़ को याद करने से सारा ज्ञान आ जाता है। बरोबर 5 युग हैं। अभी है संगमयुग। इस संगमयुग को दुनिया नहीं जानती। करके मालूम भी हो परन्तु डिटेल में नहीं जानती कि सतयुग में कौन राज्य करते थे? कैसे राज्य लिया? तुम अब राज्य ले रहे हो। पुनर्जन्म लेते चक्र में तो जरूर आना पड़े। सदैव स्वर्ग में कोई रह न सके। स्वर्ग और नर्क की पहचान अभी मिली है। अभी कलियुग है फिर सतयुग जरूर होगा। तो जरूर संगम पर ही परमपिता परमात्मा आया होगा। उनकी महिमा ही अलग है। ऐसे थोड़ेही कि एक की महिमा दूसरे कोई की हो सकती। हर एक का कर्तव्य अपना, संस्कार अपने, एक न मिले दूसरे से। हर एक आत्मा में अपना-अपना पार्ट है। तुम बच्चों को समझाया गया है - आत्मा 84 जन्म लेती है। तुम नई बातें सुनते हो। दुनिया समझती है गीता का भगवान् कृष्ण था। अब बाप कहते हैं कृष्ण गीता का भगवान् नहीं था। भगवानुवाच - मैं राजयोग सिखाए तुमको राजाओं का राजा अर्थात् नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनाता हूँ। बाबा पूछते भी हैं तुम सूर्यवंशी नारायण बनेंगे या चन्द्रवंशी राम बनेंगे? कहते हैं बाबा एम ऑब्जेक्ट तो सूर्यवंशी बनने की हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। बैरिस्टर कोई बहुत अच्छा, कोई हल्का होता है। कोई सर्जन तो लाखों रूपया कमाते, कोई बहुत थोड़ा कमाते। पढ़ाई पर मदार रहता है। तुम्हारे में भी कोई तो बहुत कमाई वाले बनेंगे, तख्त पर बैठेंगे। यह बड़ा बेहद का ईश्वरीय कॉलेज है। उन कॉलेजों में हद होती है। इतने पास होंगे, यह है बेहद का कालेज। तो तुम नई बातें सुनते हो। अभी तुम समझ रहे हो - तुम अबलाओं को बल देने वाला वह परमपिता परमात्मा ही है। जानते हो परमात्मा बाप से हमको कितना बल मिलता है। हम वारियर्स (सेना) हैं। युद्ध के मैदान में खड़े हैं। नई बात है ना। गीता में पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई दिखाई है परन्तु लड़ाई की तो बात है नहीं। हर एक बात नई है। कृष्ण भगवान् नहीं, वह तो नई दुनिया का अल्फ़ है। अल्फ़ से लेकर सब नई बातें हैं। नई दुनिया का अल्फ़ है लक्ष्मी-नारायण फिर उनके पीछे उनके बच्चे। तो लक्ष्मी-नारायण हैं सतयुगी मनुष्य सृष्टि के अल्फ़। यहाँ मनुष्य सृष्टि का रचयिता अल्फ़ ब्रह्मा है। पहले-पहले है परमपिता परमात्मा अल्फ़। पीछे ब्रह्मा को अल्फ़ बनाते हैं। फिर लक्ष्मी-नारायण को अल्फ़ बनाते हैं। यहाँ तुम ब्राह्मण कुल के हो। ब्राह्मण कुल का बड़ा ब्रह्मा ही गाया जाता है। ब्राह्मण तो भल वह भी हैं परन्तु ब्रह्माकुमार-कुमारियां नाम कभी नहीं सुना है। गीता में भी यह नाम नहीं है। तो नई बात है ना। भारत को हिन्दुस्तान कहने कारण हिन्दु धर्म कह देते हैं। अपने प्राचीन धर्म की पहचान नहीं है। जैसेकि देवता धर्म है ही नहीं। अपने धर्म को न जानने कारण कहते हैं सब धर्म एक ही हैं। भल सब धर्म यहाँ रह सकते हैं, जिसको चाहे सो रहे, फ्री है। सभी धर्मों को मान देते हैं। कोई भी धर्म वाला आकर रह सकता है। बाहर में देखो वह दूसरे धर्म वालों को निकालते रहते हैं। सीलॉन, बर्मा आदि से इन्डियन को निकालते रहते हैं। भारत तो वास्तव में प्राचीन देवी-देवता धर्म वाला है। परन्तु वह तो कहते कोई भी आकर रहे। सब इकट्ठे तो रह न सकें। जहाँ-तहाँ धर्मों की बहुत खिटपिट है। कहते हैं भारत सभी धर्मों को एशलम देगा, इसलिए भारत की महिमा है। अब तुम सभी नई बातें सुनते हो। इस समय भारत में देवी-देवता धर्म का कोई है नहीं। हम उस नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। शिवबाबा स्वर्ग रचते हैं। यूँ तो ब्रह्मा की सन्तान सब हैं परन्तु ब्राह्मण ख़ास गाये हुए हैं। उनको कब रचा? जरूर संगम पर रचा। वर्ण भी अच्छी रीति दिखाने हैं। हम ब्राह्मण चोटी फिर देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। तो यह ज्ञान बड़ा गुह्य रमणीक है। मुश्किल किसकी बुद्धि में बैठता है।तुम बच्चे इस ज्ञान को अच्छी रीति धारण करो, कभी भी ब्राह्मणी से रूठना नहीं। रूठ करके पढ़ाई को नहीं छोड़ना है। नहीं तो रसातल में चले जायेंगे। बाप आया है सुनाने तो सुनना चाहिए। भक्ति मार्ग में कितना नियम होता है गीता सुनने का, वह पूरे नेम से सुनते हैं। मन्दिर में भी नेम पूर्वक जाते हैं। रोज़ पक्का नेम रखते हैं। तुम्हारा नेम तो बड़ा कड़ा है। एक घड़ी आधी घड़ी........ फिर बढ़ाते रहना है। बाबा को याद करने से बुद्धि का ताला खुलेगा। विचार सागर मंथन कोई शिवबाबा नहीं करते हैं, उनको दरकार ही नहीं विचार सागर मंथन की। तुमको दरकार रहती है - किसको कैसे समझायें? तो कभी भी रूठना नहीं चाहिए। एक दो का रिगॉर्ड रखना चाहिए। कई बच्चों को महारथियों का रिगॉर्ड रखना आता नहीं। ब्राह्मणियां जो हैं वह फिर भी मुख्य हैं। 10-12 को आपसमान तो बनाती हैं ना। तो उनका रिगॉर्ड रखना पड़े। तुम जैसेकि शिवबाबा के एजेन्ट हो। सभी एजेन्ट्स एक जैसे तो नहीं होते हैं। नम्बरवार होते हैं फिर भी एजेन्ट्स तो हैं ना। कोई तो बहुत अच्छी रीति धारणा करते हैं। रात-दिन सर्विस में तत्पर रहते हैं। शिवबाबा भी यहाँ सर्विस पर आये हैं ना। बाबा कहते हैं मैं डबल काम करता हूँ। भक्तों की भी सर्विस करता हूँ। तुम जानते हो सारी दुनिया में साक्षात्कार कराने का कर्तव्य कौन करते हैं? भल ड्रामा में सब पहले से नूँध है। उसी समय साक्षात्कार होता है। समझते हैं गॉड फादर ने दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार कराया, जहाँ-तहाँ साक्षात्कार होते हैं। यह साक्षात्कार भी ड्रामा में नूँध है, इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए। यह हैं नई बातें। सृष्टि का चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। कोई-कोई का यह स्वदर्शन चक्र अच्छा तीखा फिरता है, कोई का कम। तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो। सर्विस के लिए बुद्धि चलती रहेगी नम्बरवार। कोई का तो स्वदर्शन चक्र फिरता ही नहीं। हवा तो लगती है परन्तु कोई का बहुत तीखा फिरता है, कोई का बहुत कम फिरता है। कोई का तो बिल्कुल फिरता ही नहीं। स्वदर्शन चक्र नहीं फिरेगा तो बाकी क्या पद पायेंगे? तो यह नई बात हुई ना। बाप समझाते रहते हैं वर्सा लेना है तो अभी लो। नहीं तो फिर पछतायेंगे, रोयेंगे। टीचर का शो करना है ना। यह कितना बड़ा कॉलेज है। अच्छी रीति पढ़ते हैं तो पद भी अच्छा पाते हैं। प्रण करना चाहिए - हम पूरा फॉलो करेंगे। फॉलो मदर-फादर। ऐसे भी नहीं है बैरिस्टर का बच्चा बैरिस्टर ही बनेगा। नहीं। कोई डाक्टर बनेगा, कोई इन्जीनियर, कोई तो शैतान डाकू भी निकल पड़ते हैं। बाप कहते हैं मेरा शो निकालने तुम नर से नारायण बनकर दिखाओ। मेरा भी गायन होगा, तुम्हारा भी गायन होगा। तुम भी देवता बनेंगे। हमारा मन्दिर बनेगा तो तुम्हारा भी बनेगा। मुख्य मन्दिर होना चाहिए एक शिवबाबा का। फिर उनके साथ ब्रह्मा और बच्चे। देलवाड़ा मन्दिर में वैराइटी है ना। यही बड़े ते बड़ा यादगार है। तुम चैतन्य में बैठे हो। शक्ति की शेर पर सवारी, महारथी की हाथी पर सवारी दिखाते हैं। गज को ग्राह ने हप किया। बाप की याद नहीं रहती है तो माया ग्राह हप कर लेता है। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी माया ग्राह खा लेती है। इसमें बड़ी गम्भीरता चाहिए और अभिमान नहीं आना चाहिए - मैं यह करता हूँ। जितना हो सके हर बात में माताओं को आगे रखना है। माता का रिगॉर्ड रखना है। सब चाबी माता के हाथ में होनी चाहिए। माता द्वारा समाचार आना चाहिए। हाँ, कहाँ-कहाँ कन्या अथवा माता से कुमार होशियार होते हैं। उनको फिर राय लिखनी है। हुक्म सरकार का राज्य रानी का है। पहले रानी, फिर राजा। पहले माता गुरू चाहिए। पुरुष को गुरू बनने का कायदा नहीं। माता को आगे करना है। लॉ ऐसे कहता है। भल कहाँ पुरुष भी निमित्त बनते हैं, जो माताओं को ज्ञान में ले आते हैं परन्तु मैजॉरिटी माताओं की है। अहंकार नहीं होना चाहिए - मैं सब जानता हूँ, मैं होशियार हूँ। होशियार माताओं को बनाना है। माता द्वारा सेन्टर आदि चलाना है। अन्त में सन्यासी आदि को भी माताओं के ही बाण लगने हैं। तो कायदेसिर चलना है। परमपिता परमात्मा की निंदा करने वाले ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। बाबा सावधान सबको करते हैं। बहुत मीठा बनना है। कोई की बात पसन्द नहीं आती है तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो। क्रोध बहुत नुकसान करता है। कोई-कोई लिखते हैं - काम से क्रोध को क्यों नहीं तीखा रखें। परन्तु नहीं। काम तो आदि-मध्य-अन्त दु:ख को प्राप्त कराता है। पतित पावन एक ही बाप गाया हुआ है। सन्यासी पावन नहीं बना सकते। तो तुम नई बातें सुनते हो ऊंच ते ऊंच भगवान् बैठ तुमको पढ़ाते हैं। उनको ही श्री श्री कहा जाता है। फिर मनुष्य सृष्टि में श्री लक्ष्मी, श्री नारायण, श्री राम, श्री सीता को कहते हैं। अच्छा, उन्हों को ऐसा श्रेष्ठ किसने बनाया? श्री श्री शिवबाबा ने। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1. आपस में एकमत होकर रहना है। एक दो को रिगॉर्ड देना है। रूठकर कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है। 2. क्रोध बहुत नुकसान-कारक है इसलिए जो बात पसन्द नहीं आती है, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है। क्रोध नहीं करना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। वरदान: बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त भव l बाह्यमुखता अर्थात् व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और संबंध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के व्यर्थ चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से दूर.....यह बाह्यमुखता के रस भी बाहर से बहुत आकर्षित करते हैं, इसलिए पहले इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं, जब इन बंधनों से मुक्त बनो तब कहेंगे जीवनमुक्त। स्लोगन: जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त साक्षी व रहमदिल है वही तपस्वी है। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi
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