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Writer's pictureShiv Baba, Brahma Kumaris

BK murli today in Hindi 18 Aug 2018 Aaj ki Murli


Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki murli -BapDada -Madhuban -18-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अमृतवेले उठ मेडीटेशन में बैठो, विचार करो - मैं आत्मा हूँ, हमारा बाबा बागवान है, वही खिवैया है, मैं उसकी सन्तान हूँ, मालिक बन ज्ञान रत्नों का सिमरण करो"

प्रश्नः- किस एक बात का महत्व दुनिया में भी है तो बाप के पास भी है?

उत्तर:- दान का। तुम बच्चों को रहमदिल बन सबके ऊपर तरस खाना है। सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देना है। दानियों की बहुत महिमा होती है। अ़खबार में भी उनका नाम निकलता है। तो तुम्हें भी सबको दान करना है अर्थात् मेडीटेशन सिखलाना है।

गीत:- मुझको सहारा देने वाले.......

ओम् शान्ति।सहारा उनको दिया जाता है जो डूबते हैं, उनको पार करने के लिये सहारा देते हैं क्योंकि खिवैया नाम तो भारतवासी जानते हैं। खिवैया का काम है डूबने वाले को बचाना। बच्चे जानते हैं - भारतवासियों का बेड़ा डूबा हुआ है। हर बात भारतवासियों के लिये ही है। और कोई खण्ड के लिये नहीं कहेंगे। यह भी तुम समझते हो। सत्य नारायण की कथा अथवा अमरनाथ की कथा भी यहाँ होती है। तुम जबकि सुबह को मेडीटेशन में बैठते हो तो किसको याद करते हो? भक्ति मार्ग में तो कोई किसको, कोई किसको याद करते हैं। उन सबकी साधना है अयथार्थ। सिखलाने वाला खिवैया वा बागवान तो कोई है नहीं। गुरू लोग भी मेडीटेशन सिखलाते हैं कि ऐसे-ऐसे करो। बहुत प्रयत्न करते हैं याद में रहने के लिये। योग साधना कहा जाता है। वह तो मनुष्य, मनुष्य को कराते हैं। अभी तुम जानते हो इस बगीचे का माली अथवा मालिक है परमपिता परमात्मा। कांटों के जंगल का मालिक है रावण। माया रावण कांटों का जंगल बनाती है। यह तुम्हारी बातें भी कोई-कोई जानते हैं। भूल जाते हैं। माया भुला देती है। मेडीटेशन में बैठने में भी माया बड़ा विघ्न डालती है। मेडीटेशन कैसे करो - यह भी बाप सिखलाते हैं। तुम तो कर्मयोगी हो। दिन में तो कर्म करना ही है। उसके लिये कोई बंधन नहीं है। दिन में कभी भी मेडीटेशन नहीं होती है। दिन में तो खाना-पीना, खेलना-कूदना, धन्धाधोरी करना होता है। उसमें याद थोड़े-ही रह सकती है। कहते तो बहुत हैं कि हम सारा दिन याद में रहते हैं परन्तु है तो बड़ा मुश्किल। बाबा अनुभव बतलाते हैं। अमृतवेले का समय सतोगुणी होता है, उस समय याद करना सहज है। अमृतवेले का टाइम सबसे अच्छा है। दिन में तो लफड़े रहते हैं। हाँ, कर्म करते समय याद स्थाई रह सकती तो है बहुत अच्छा। परन्तु बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं - मैं कोशिश करता हूँ बाबा की याद में रह तुमसे बात करुँ। अन्दर यह नशा रहता है - मैं स्वयं बाप (प्रजापिता ब्रह्मा) बच्चों से बात करता हूँ। मैं स्वयं मनुष्य सृष्टि का बाप हूँ - ऐसा समझने से नशा चढ़ता है। बाकी मैं आत्मा हूँ, परमपिता परमात्मा बाप को याद कर बात करुँ, वह याद बड़ा मुश्किल रहती है। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं ना। बाप सिखलाते भी हैं। यह तो जानते हैं हम बागवान हैं। बागवान तो जरूर बगीचा ही बनायेंगे। कांटों को थोड़े-ही बनायेंगे। माली कांटों का बीज थोड़े-ही लगायेंगे। माली हमेशा बागवान होते हैं, फूल लगाते हैं। तो बाबा भी फूल लगाते हैं। फारेस्ट बनाने वाली है माया। उनकी मत पर चलने से मनुष्य कांटे बन जाते हैं। यह तो ज्ञान मिला है - बाबा बागवान है, खिवैया है, रहमदिल भी है, बीजरूप भी है। रात को जब बैठते हैं तो ख्याल चलता है - यह कितना बड़ा बगीचा है! पहले कितना छोटा था! तो योग के साथ-साथ ज्ञान भी चाहिए। मनुष्यों के पास ज्ञान तो कुछ भी नहीं है। अनेक प्रकार के योग लगाते हैं। किसी न किसी की याद में बैठते होंगे। ज्ञान की बात ही नहीं। काली माँ की याद में बैठे होंगे तो सिर्फ काली की शक्ल ही सामने आयेगी। जगदम्बा को याद करते रहेंगे। वह है भक्ति मार्ग। न बाप की याद, न वर्से की याद रहती है। भक्ति बहुत तरीके से करते हैं। माला फेरते हैं। कोई तो गुप्त फेरते हैं। हमारी भी है गुप्त माला। तो यह रस्म-रिवाज भक्ति मार्ग में कितनी चलाते हैं। बाबा को छोटेपन का अनुभव है। जैसे बाप फेरते थे, हम भी उनको देख एक कोठरी में बैठ माला फेरते थे। राम-राम कहते थे। बस, ज्ञान कुछ भी नहीं। अभी तुम बच्चों में तो ज्ञान है। अमृतवेले इस मेडीटेशन में बैठने की आदत पड़ जाये तो बड़ा मजा आयेगा। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं। ज्ञान में भी रमण करते रहते हैं। कितना बड़ा बगीचा है। पहले छोटा था। बीज भी याद आया, बगीचा भी याद आया। कैसे बगीचा बनता है - बाबा में भी यह ज्ञान है, हमारे में भी यह ज्ञान है। सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है। अन्दर चलता रहता है, इसको मेडीटेशन कहा जाता है। बाप की भी खुशी, ज्ञान की भी खुशी रहती है। दोनों चीजें याद आती हैं। वह तत्व ज्ञानी ऐसे मेडीटेशन में नहीं बैठते हैं। उनको तो जरूर तत्व ही याद आयेगा। बस, तत्व में लीन हो जाना है। रचयिता और रचना का तो उन्हों को पता ही नहीं है। तो उन्हों की और तुम बच्चों की बात और है।बाबा बीजरूप है - हमको यह नॉलेज है। रात को बैठने से अच्छे-अच्छे ख्यालात आयेंगे। समझ सकते हैं भक्ति मार्ग में क्या-क्या करते थे। कितने हठयोग आदि सिखलाते हैं। अभी तो समझ मिली है बाप को याद करने से उनकी सारी रचना (झाड़) याद आ जाती है। हम 84 जन्मों का चक्र लगाकर आये हैं। अभी हम जाते हैं वापिस। यह ड्रामा का चक्र फिरता रहता है। ज्ञान धन को भी याद करते, धन देने वाले को भी याद करते हैं। जितना याद में रहेंगे उतना अवस्था परिपक्व होती जायेगी। तुम किसको भी समझा सकते हो - मेडीटेशन में हम कैसे बैठते हैं। मनुष्यों को तो अनेक प्रकार की मत मिलती है - फलाने को याद करो। यहाँ हम सब एक मत पर हैं, एक की ही याद में रहते हैं। छोटे, बड़े, बूढ़े - सबको एक ही मत मिलती है। मेडीटेशन में तो बैठना होता है ना। हम आत्मा सो परमात्मा तो हो नहीं सकते। आत्मा कहती है - हमने 84 जन्म पूरे किये, अब वापिस जाना है। परमात्मा ऐसे कहेंगे क्या? वह तो पुनर्जन्म में आते नहीं हैं। तुम्हारे पास जब कोई आये तो उसे हाल में ले आओ। कोई अच्छे-अच्छे आदमी आते हैं, देखो, समझने की चाहना है तो यहाँ ले आओ, उन्हें समझाओ कि हम कैसे मेडीटेशन करते हैं। रात में भी मेडिटेशन करते हैं, दिन में भी करते हैं। हम याद करते हैं एक बाप को। बाप का फ़रमान है - मुझे याद करो और रचना के चक्र को याद करो। 84 जन्म भी गाये जाते हैं। जरूर पहले-पहले देवी-देवतायें थे। उन्हों के ही 84 जन्म भी गाये जाते हैं। यह चक्र का राज़ अच्छी रीति समझाना पड़े। हमको बाप और उनकी रचना का यह चक्र याद रहता है। बाप की याद और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। हम सबकी एक ही मत है। हम हैं श्रीमत पर। वह पतित-पावन बाप ही आकर बेहद स्वर्ग का वर्सा देते हैं। तो बाप को जरूर याद करना पड़े ना। बाप द्वारा ही हम वर्सा पाते हैं। फिर गिरते हैं, अन्त में पतित बन जाते हैं। बाप रचयिता तो रचना की ही नॉलेज देंगे। गॉड फादर इज़ नॉलेजफुल, पतित-पावन। तो जरूर पतित दुनिया में आकर पावन बनायेंगे ना। ऐसे तुम कोई को बैठ समझायेंगे तो प्रभावित होंगे। बोलो, सिर्फ अच्छा-अच्छा कहकर नहीं जाओ, यह तो प्रैक्टिकल में लाना है। जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा बहुत है। इसमें टाइम लगता है।तुमको समझाना है - बाबा आया हुआ है, मौत सामने है, ग़फलत करेंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगे। शुभ कार्य में देरी नहीं करना चाहिए। अब सीखकर जाओ। इस मेडीटेशन में बैठने से तुमको नशा अच्छा चढ़ेगा। अभी बाप को याद करो। तुम्हारा बाप तो है ना। भक्ति मार्ग में जन्म-जन्मान्तर याद करते आये हो। लौकिक बाप तो हर जन्म में बदलता है फिर भी तुम निराकार बाप को जरूर याद करते हो क्योंकि वह है अविनाशी बाप। विनाशी (लौकिक) बाप से विनाशी वर्सा मिलता है। अविनाशी बाप से अविनाशी वर्सा मिलता है। हम एक श्री श्री की श्रीमत से श्रेष्ठ बनते हैं। आदि सनातन तो देवी-देवता धर्म ही है। उनसे फिर और बिरादरी निकलती हैं। सन्यासियों का है रजोप्रधान सन्यास। यह है सतोप्रधान सन्यास। यह है ही राजयोग।भारत का मुख्य शास्त्र है गीता। तो मेडीटेशन के लिये यह समझाना है - बाप हमको ऐसे मेडीटेशन सिखलाते हैं। भगवान् कभी मनुष्य को नहीं कह सकते। भगवान् तो सबका एक होना चाहिये ना। वही पतित-पावन है, वही हेविनली गॉड फादर है और आते भी भारत में हैं। उनका भक्ति मार्ग में कितना बड़ा मन्दिर बना हुआ है। उस श्री श्री की मत से ही हम श्रेष्ठ बनते हैं। इन बातों को बैठ समझो। बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानो। यह और कोई नहीं जानते। सतयुग की आयु ही इतनी बतलाते हैं। पहले झाड़ नया होता है तो उसको स्वर्ग कहेंगे। फिर वह जड़जड़ीभूत हो जाता है। अभी यह सारी दुनिया नर्क है। घर-घर तो क्या सारी दुनिया ही नर्क है। यह है ही कांटों का जंगल। एक-दो को कांटा ही लगाते रहते हैं। बाप आकर फिर गार्डन ऑफ अल्लाह बनाते हैं। बाप आकर बहिश्त स्थापन करते हैं। तुम जानते हो फूलों का बगीचा किसको और कांटों का जंगल किसको कहा जाता है। तुम दैवी फूल बन रहे हो। तो चिन्तन चलता रहना चाहिए। बाबा में भी यह नॉलेज है। बच्चों में भी यह नॉलेज है। ऐसे-ऐसे ख्यालात चलाने से रात को बड़ा मजा आयेगा, ऐसे-ऐसे समझायें। बिचारे कुछ नहीं जानते हैं इसलिए अपने को तरस पड़ता है। ओ गॉड फादर कहते हैं। परन्तु बाप को और उनकी रचना को जानते नहीं हैं। हम भी अब अल्लाह के बच्चे बने हैं। समझाने का भी बड़ा नशा चाहिए। अविनाशी ज्ञान रत्न हैं तो फिर दान करना चाहिए। दानी की बहुत-बहुत महिमा करते हैं। अ़खबार में भी पड़ता है। रिलीजस माइन्डेड ही दान करते हैं। तुम तो हो ही रिलीजस माइन्डेड। दान ही नहीं करेंगे तो मिलेगा क्या? दान तो जरूर देना है। ज्ञान दान देना तो अति सहज है। बाबा बतलाते हैं - हम ऐसे मेडीटेशन में बैठते हैं, इस दुनिया का चक्र ऐसे फिरता है। पहले एक धर्म था। पीछे यह धर्म निकले हैं। यह सब बिरादरियां हैं। यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में बैठनी चाहिए। मनुष्यों को योग का बहुत शौक रहता है। बोलो, हमारा मेडीटेशन चलकर देखो। रिलीजस माइन्डेड जो होते हैं वह मेडीटेशन हाल देखकर खुश होते हैं। रिलीजस माइन्डेड मनुष्य कभी पाप नहीं करते। तुम्हारे पास समझाने की प्वाइन्ट्स तो बहुत हैं। परन्तु बच्चे नम्बरवार हैं। कोई की बुद्धि का ताला ही नहीं खुलता है। बाप को याद नहीं करते तो ताला खुलेगा कैसे? है बहुत सहज बात। समझाना है हम याद में कैसे बैठते हैं। मनुष्यों को तो पता नहीं कि हम किसको याद करते हैं! हमको सिखलाने वाला स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा है जो सबका बाप है। वह पतित-पावन गॉड फादर हमको राजयोग सिखलाते हैं। अब तुम सीखो, न सीखो। हम सबकी तो एक ही मत है। श्री श्री से हम मत ले रहे हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। जैसे बाप नॉलेजफुल, वैसे बच्चे। मनुष्य से देवता एक ही बाप बनाते हैं। ऐसे-ऐसे विचार करने से रात को भी बहुत मजा आयेगा। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अमृतवेले उठ याद में बैठ ज्ञान का रमण करना है। ज्ञान धन को भी याद करना है तो ज्ञान दाता को भी याद करना है।

2) ईश्वरीय नशे में रहकर सेवा करनी है। सबको मेडीटेशन करने की सहज विधि समझानी है। एकमत होकर रहना है।

वरदान:- प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी द्वारा बाप के समीप आने वाले देही-अभिमानी भव l

जैसे शरीर की पर्सनैलिटी आत्माओं को देहभान में लाती है, ऐसे प्युरिटी की पर्सनैलिटी देही-अभिमानी बनाए बाप के समीप लाती है। प्युरिटी की पर्सनैलिटी आत्माओं को प्युरिटी की तरफ आकर्षित करती है, प्युरिटी की रॉयल्टी धर्मराजपुरी की रॉयल्टी देने से छुड़ा देती है। इसी रायॅल्टी अनुसार भविष्य रायॅल फैमली में आ सकेंगे। देही-अभिमानी बच्चे इस पर्सनैलिटी द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाले रूहानी दर्पण बन जाते हैं।

स्लोगन:- हरेक की विशेषता को देखने का चश्मा सदा लगा रहे तो विशेष आत्मा बन जायेंगे।

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