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  • Writer's pictureShiv Baba, Brahma Kumaris

आज की मुरली 21 Nov 2018 BK murli in Hindi


Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki Gyan Murli madhuban 21-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - पावन बन गति-सद्गति के लायक बनो। पतित आत्मा गति-सद्गति के लायक नहीं। बेहद का बाप तुम्हें बेहद का लायक बनाते हैं।"

प्रश्नः-

पिताव्रता किसे कहेंगे? उसकी मुख्य निशानी सुनाओ?

उत्तर:- पिताव्रता वह है जो बाप की श्रीमत पर पूरा चलते हैं, अशरीरी बनने का अभ्यास करते हैं, अव्यभिचारी याद में रहते हैं, ऐसे सपूत बच्चे ही हर बात की धारणा कर सकेंगे। उनके ख्यालात सर्विस के प्रति सदा चलते रहेंगे। उनका बुद्धि रूपी बर्तन पवित्र होता जाता है। वह कभी भी फ़ारकती नहीं दे सकते हैं।

गीत:- मुझको सहारा देने वाले........

ओम् शान्ति।बच्चे शुक्रिया मानते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। सब एक जैसी शुक्रिया नहीं मानते, जो अच्छे निश्चयबुद्धि होंगे और जो बाप की सर्विस पर दिल व जान, सिक व प्रेम से उपस्थित हैं, वो ही अन्दर में शुक्रिया मानते हैं - बाबा कमाल है आपकी, हम तो कुछ नहीं जानते थे। हम तो लायक नहीं थे - आपसे मिलने के। सो तो बरोबर है, माया ने सबको न लायक बना दिया है। उनको पता ही नहीं है कि स्वर्ग का लायक कौन बनाता है और फिर नर्क का लायक कौन बनाते हैं? वह तो समझते हैं कि गति और सद्गति दोनों का लायक बनाते हैं बाप। नहीं तो वहाँ के लायक कोई हैं नहीं। खुद भी कहते हैं हम पतित हैं। यह दुनिया ही पतित है। साधू-सन्त आदि कोई भी बाप को नहीं जानते। अभी बाप ने तुम बच्चों को अपना परिचय दिया है। कायदा भी है बाप को ही आकर परिचय देना है। यहाँ ही आकर लायक बनाना है, पावन बनाना है। वहाँ बैठे अगर पावन बना सकते तो फिर इतने ना लायक बनते ही क्यों?तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही निश्चयबुद्धि हैं। बाप का परिचय कैसे देना चाहिए - यह भी अक्ल होना चाहिए। शिवाए नम: भी जरूर है। वही मात-पिता ऊंच ते ऊंच है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो रचना हैं। उनको क्रियेट करने वाला जरूर बाप होगा, माँ भी होनी चाहिए। सबका गॉड फादर तो एक है जरूर। निराकार को ही गॉड कहा जाता है। क्रियेटर हमेशा एक ही होता है। पहले-पहले तो परिचय देना पड़े अल्फ का। यह युक्तियुक्त परिचय कैसे दिया जाए - वह भी समझना है। भगवान् ही ज्ञान का सागर है, उसने ही आकर राजयोग सिखाया। वह भगवान् कौन है? पहले अल्फ की पहचान देनी है। बाप भी निराकार है, आत्मा भी निराकार है। वह निराकार बाप आकर बच्चों को वर्सा देते हैं। किसी के द्वारा तो समझायेंगे ना। नहीं तो राजाओं का राजा कैसे बनाया? सतयुगी राज्य किसने स्थापन किया? हेविन का रचयिता कौन है? जरूर हेविनली गॉड फादर ही होगा। वह निराकार होना चाहिए। पहले-पहले फादर की पहचान देनी पड़ती है। कृष्ण को और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को फादर नहीं कहेंगे। उनको तो रचा जाता है। जब सूक्ष्मवतन वालों को भी रचा जाता है, वह भी क्रियेशन है फिर स्थूल वतन वालों को भगवान् कैसे कहेंगे। गाया जाता है देवताए नम:, वह है शिवाए नम:, मुख्य है ही यह बात। अब प्रदर्शनी में तो घड़ी-घड़ी एक बात नहीं समझायेंगे। यह तो एक-एक को अच्छी रीति समझाना पड़े। निश्चय कराना पड़े। जो भी आये, उनको पहले यह बताना है कि आओ तो तुमको फादर का साक्षात्कार करायें। फादर से ही तुमको वर्सा मिलना है। फादर ने ही गीता में राजयोग सिखाया है। कृष्ण ने नहीं सिखाया। बाप ही गीता के भगवान् हैं। नम्बरवन बात है यह। कृष्ण भगवानुवाच नहीं है। रूद्र भगवानुवाच वा सोमनाथ, शिव भगवानुवाच कहा जाता है। हर एक मनुष्य की जीवन कहानी अपनी-अपनी है। एक न मिले दूसरे से। तो जो भी आये तो पहले-पहले इस बात पर समझाना है। मूल बात समझाने की यह है। परमपिता परमात्मा का आक्यूपेशन यह है। वह बाप है, यह बच्चा है। वह हेविनली गॉड फादर है, यह हेविनली प्रिन्स है। यह बिल्कुल क्लीयर कर समझाना है। मुख्य है गीता, उनके आधार पर ही और शास्त्र हैं। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी भगवत गीता है। मनुष्य कहते हैं तुम शास्त्र, वेद आदि को मानते हो? अरे, हर एक अपने धर्म शास्त्र को मानेंगे। सभी शास्त्रों को थोड़ेही मानेंगे। हाँ, सब शास्त्र हैं जरूर। परन्तु शास्त्रों को जानने से भी पहले मुख्य बात है बाप को जानना, जिससे वर्सा मिलना है। वर्सा शास्त्रों से नहीं मिलेगा, वर्सा मिलता है बाप से। बाप जो नॉलेज देते हैं, वर्सा देते हैं, उसका पुस्तक बना हुआ है। पहले-पहले तो गीता को उठाना पड़े। गीता का भगवान् कौन है? उसमें ही राजयोग की बात आती है। राजयोग जरूर नई दुनिया के लिए ही होगा। भगवान् आकर पतित तो नहीं बनायेंगे। उनको तो पावन महाराजा बनाना है। पहले-पहले बाप का परिचय दे और यह लिखाओ - बरोबर मैं निश्चय करता हूँ यह हमारा बाप है। पहले-पहले समझाना है शिवाए नम:, तुम मात-पिता........ महिमा भी उस बाप की ही है। भगवान् को भक्ति का फल भी यहाँ आकर देना है। भक्ति का फल क्या है, यह तुम समझ गये हो। जिसने बहुत भक्ति की है, उनको ही फल मिलेगा। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं। समझाया जाता है तुम्हारे बेहद के माँ-बाप वह हैं। जगत अम्बा, जगत पिता भी गाये जाते हैं। एडम और ईव तो मनुष्य को समझते हैं। ईव को मदर कह देते। राइट-वे में ईव कौन है, यह तो कोई नहीं जानते। बाप बैठ समझाते हैं। हाँ, कोई फट से तो नहीं समझ जायेगा। पढ़ाई में टाइम लगता है। पढ़ते-पढ़ते आकर बैरिस्टर बन जाते हैं। एम ऑबजेक्ट जरूर है, देवता बनना है तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। गाते भी हैं तुम मात-पिता........ और दूसरा फिर कहते हैं पतित-पावन आओ। तो पतित दुनिया और पावन दुनिया किसको कहा जाता है, क्या कलियुग अभी 40 हजार वर्ष और रहेगा? अच्छा, भला पावन बनाने वाला तो वह एक बाप है ना। हेविन स्थापन करने वाला है गॉड फादर। कृष्ण तो हो न सके। वह तो वर्सा लिया हुआ है। वह श्रीकृष्ण है हेविन का प्रिन्स और शिवबाबा है हेविन का क्रियेटर। वह है क्रियेशन, फर्स्ट प्रिन्स। यह भी क्लीयर कर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना चाहिए तो तुमको समझाने में सहज होगा। रचयिता और रचना का मालूम पड़ जायेगा। क्रियेटर ही नॉलेजफुल है। वही राजयोग सिखलाते हैं। वह कोई राजा नहीं है, वह राजयोग सिखलाए राजाओं का राजा बनाते हैं। भगवान् ने राजयोग सिखाया है, श्रीकृष्ण ने राज्य पद पाया है, उसने ही गंवाया है, उसको ही फिर पाना है। चित्रों द्वारा बहुत अच्छा समझाया जा सकता है। बाप का आक्यूपेशन जरूर चाहिए। श्रीकृष्ण का नाम डालने से भारत कौड़ी जैसा बन गया है। शिवबाबा को जानने से भारत हीरे जैसा बनता है। परन्तु जब बुद्धि में बैठे कि यह हमारा बाप है। बाप ने ही पहले-पहले नई स्वर्ग की दुनिया रची। अभी तो पुरानी दुनिया है। गीता में है राजयोग। विलायत वाले भी चाहते हैं राजयोग सीखें। गीता से ही सीखे हैं। अभी तुम जान गये हो, कोशिश करते हो औरों को भी समझायें कि फादर कौन है? वह सर्वव्यापी नहीं है। अगर सर्वव्यापी है तो फिर राजयोग कैसे सिखलायेंगे? इस मिस्टेक पर खूब ख्याल चलना चाहिए। जो सर्विस पर तत्पर होंगे उनके ही ख्यालात चलेंगे। धारणा भी तब होगी जब बाप की श्रीमत पर चलेंगे, अशरीरी भव, मनमनाभव हो रहें, पतिव्रता वा पिताव्रता बनें अथवा सपूत बच्चा बनें।बाप फ़रमान करते हैं जितना हो सके याद को बढ़ाते रहो। देह-अभिमान में आने से तुम याद नहीं करते, न बुद्धि पवित्र होती है। शेरनी के दूध के लिए कहते हैं सोने का बर्तन चाहिए। इसमें भी पिताव्रता बर्तन चाहिए। अव्यभिचारी पिताव्रता बहुत थोड़े हैं। कोई तो बिल्कुल जानते नहीं। जैसे छोटे बच्चे हैं। बैठे भल यहाँ हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं। जैसे बच्चे को छोटेपन में ही शादी करा देते हैं ना। गोद में बच्चा ले शादी कराई जाती है। एक-दो में दोस्त होते हैं। बहुत प्रेम होता है तो झट शादी करा देते हैं तो यह भी ऐसे है। सगाई कर ली है परन्तु समझते कुछ भी नहीं। हम मम्मा-बाबा के बने हैं, उनसे वर्सा लेना है। कुछ भी नहीं जानते। वन्डर है ना। 5-6 वर्ष रहकर भी फिर बाप को अथवा पति को फ़ारकती दे देते हैं। माया इतना तंग करती है।तो पहले-पहले सुनाना चाहिए - शिवाए नम:। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी रचयिता यह है। ज्ञान का सागर यह शिव है। तो अब क्या करना चाहिए? त्रिमूर्ति के बाजू में जगह पड़ी है, उस पर लिखना चाहिए कि शिवबाबा और कृष्ण दोनों के आक्यूपेशन ही अलग हैं। पहली बात यह जब समझाओ तब कपाट खुलें। और पढ़ाई है भविष्य के लिए। ऐसी पढ़ाई कोई होती नहीं। शास्त्रों से यह अनुभव नहीं हो सकता। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम पढ़ते हैं सतयुग आदि के लिए। स्कूल पूरा होगा और हमारा फाइनल पेपर होगा। जाकर राज्य करेंगे। गीता सुनाने वाले ऐसी बातें समझा नहीं सकते। पहले तो बाप को जानना है। बाप से वर्सा लेना है। बाप ही त्रिकालदर्शी हैं, और कोई मनुष्य दुनिया में त्रिकालदर्शी नहीं। वास्तव में जो पूज्य हैं वही फिर पुजारी बनते हैं। भक्ति भी तुमने की है, और कोई नहीं जानते। जिन्होंने भक्ति की है वही पहले नम्बर में ब्रह्मा फिर ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। आपेही पूज्य भी यह बनते हैं। पहले नम्बर में पूज्य ही फिर पहले नम्बर में पुजारी बनें हैं, फिर पूज्य बनेंगे। भक्ति का फल भी पहले उन्हें मिलेगा। ब्राह्मण ही पढ़कर फिर देवता बनते हैं - यह कहाँ लिखा हुआ नहीं है। भीष्म पितामह आदि को मालूम तो पड़ा है ना कि इन्हों से ज्ञान बाण मरवाने वाला कोई और है। यह समझेंगे जरूर कि कोई त़ाकत है। अभी भी कहते हैं कोई त़ाकत है जो इन्हों को सिखाती है।बाबा देखते हैं यह सब मेरे बच्चे हैं। इन आंखों से ही देखेंगे। जैसे पित्र (श्राद्ध) खिलाते हैं तो आत्मा आती है और देखती है - यह फलाने हैं। खायेगा तो आंखे आदि उनके जैसी बन जायेंगी। टैप्रेरी लोन लेते हैं। यह भारत में ही होता है। प्राचीन भारत में पहले-पहले राधे-कृष्ण हुए। उन्हों को जन्म देने वाले ऊंच नहीं गिने जायेंगे। वह तो कम पास हुए हैं ना। महिमा शुरू होती है कृष्ण से। राधे कृष्ण दोनों अपनी-अपनी राजधानी में आते हैं। उन्हों के मां-बाप से बच्चे का नाम जास्ती है। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। गुप्त खुशी रहती है। बाप कहते हैं मैं साधारण तन में ही आता हूँ। इतना माताओं का झुण्ड सम्भालना है इसलिए साधारण तन लिया है, जिससे खर्चा चलता रहा। शिवबाबा का भण्डारा है। भोला भण्डारी, अविनाशी ज्ञान रत्नों का भी है और फिर एडाप्टेड बच्चे हैं, उन्हों की भी सम्भाल होती आती है। यह तो बच्चे ही जाने।पहले-पहले जब शुरू करो तो बोलो शिव भगवानुवाच - वह सबका रचयिता है फिर कृष्ण को ज्ञान सागर, गॉड फादर कैसे कह सकते? लिखत ऐसी क्लीयर हो जो पढ़ने से अच्छी रीति बुद्धि में बैठे। कोई-कोई को तो दो तीन वर्ष लगते हैं समझने में। भगवान् को आकर भक्ति का फल देना है। ब्रह्मा द्वारा बाप ने यज्ञ रचा। ब्राह्मणों को पढ़ाया, ब्राह्मण से देवता बनाया। फिर नीचे आना ही है। बड़ी अच्छी समझानी है। पहले यह सिद्धकर बताना है - श्रीकृष्ण हेविनली प्रिन्स है, हेविनली गॉड फादर नहीं। सर्वव्यापी के ज्ञान से बिल्कुल ही तमोप्रधान बन गये हैं। जिसने बादशाही दी, उनको भूल गये हैं। कल्प-कल्प बाबा राज्य देते हैं और हम फिर बाबा को भूल जाते हैं। बड़ा वन्डर लगता है। सारा दिन खुशी में नाचना चाहिए। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अव्यभिचारी पिताव्रता हो रहना है। याद को बढ़ाते बुद्धि को पवित्र बनाना है।

2) बाप का युक्तियुक्त परिचय देने की विधि निकालनी है। विचार सागर मंथन कर अल्फ को सिद्ध करना है। निश्चयबुद्धि बन सेवा करनी है।

वरदान:- स्वउन्नति का यथार्थ चश्मा पहन एक्जैम्पुल बनने वाले अलबेलेपन से मुक्त भव

जो बच्चे स्वयं को सिर्फ विशाल दिमाग की नज़र से चेक करते हैं, उनका चश्मा अलबेलेपन का होता है, उन्हें यही दिखाई देता है कि जितना भी किया है उतना बहुत किया है। मैं इन-इन आत्माओं से अच्छा हूँ, थोड़ी बहुत कमी तो नामीग्रामी में भी है। लेकिन जो सच्ची दिल से स्वयं को चेक करते हैं उनका चश्मा यथार्थ स्वउन्नति का होने के कारण सिर्फ बाप और स्वयं को ही देखते, दूसरा, तीसरा क्या करता - यह नहीं देखते। मुझे बदलना है बस इसी धुन में रहते हैं, वह दूसरों के लिए एक्जैम्पल बन जाते हैं।

स्लोगन:- हदों को सर्व वंश सहित समाप्त कर दो तो बेहद की बादशाही का नशा रहेगा।

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