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  • 12 May 2018 Aaj ki Murli ka Saar (Hindi)

    Brahma Kumaris Murli essence today in Hindi - Aaj ki Murli ka Saar - 12 May 2018 - BapDada - Madhuban - "मीठे बच्चे - मात-पिता को पूरा-पूरा फालो कर सपूत बनो, याद और श्रीमत के आधार पर ही बाप के तख्तनशीन बनेंगे।" Q- किस पुरुषार्थ से सेकण्ड में जीवन्मुक्ति प्राप्त हो सकती है? A- पुरुषार्थ करो अन्तकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी याद न आये। इसके लिए बुद्धि को गृहस्थ व्यवहार में रहते भी न्यारा रखो, सब कुछ भूलते जाओ, श्रीमत पर चलते रहो। किसी को भी काँटा नहीं लगाओ। हर कदम में मात-पिता को फालो करो। कोई भी कमी है तो अविनाशी सर्जन को सच-सच बतलाओ। D- 1) मात-पिता के तख्त को जीतने की दौड़ लगानी है। पूरा फॉलो करना है। 2) पुराने कॉटों से सम्बन्ध तोड़ "मेरा तो एक दूसरा न कोई" इस निश्चय में पक्का रहना है। V- हर एक को प्यार और शक्ति की पालना देने वाले प्यार के भण्डार से भरपूर भव-----जो बच्चे जितना सभी को बाप का प्यार बांटते हैं उतना और प्यार का भण्डार भरपूर होता जाता है। जैसे हर समय प्यार की बरसात हो रही है, ऐसे अनुभव होता है। एक कदम में प्यार दो और बार-बार प्यार लो। इस समय सबको प्यार और शक्ति चाहिए, तो किसको बाप द्वारा प्यार दिलाओ, किसको शक्ति ...जिससे उनका उमंग-उत्साह सदा बना रहे - यही विशेष आत्माओं की विशेष सेवा है। S- जो मायावी चतुराई से परे रहते हैं वही बाप को अति प्रिय हैं।

  • 11 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi AajKiMurli BapDada Madhuban 11-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - तुम बेहद के बाप को याद करो, इसमें ही ज्ञान, भक्ति और वैराग्य तीनों समाया हुआ है, यह है नई पढ़ाई'' प्रश्नः- संगम पर ज्ञान और योग के साथ-साथ भक्ति भी चलती है - कैसे? उत्तर:- वास्तव में योग को भक्ति भी कह सकते हैं क्योंकि तुम बच्चे अव्यभिचारी याद में रहते हो। तुम्हारी यह याद ज्ञान सहित है इसलिए इसे योग कहा गया है। द्वापर से सिर्फ भक्ति होती, ज्ञान नहीं होता, इसलिए उस भक्ति को योग नहीं कहा जाता। उसमें कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। अभी तुम्हें ज्ञान भी मिलता, योग भी करते फिर तुम्हारा बेहद की सृष्टि से वैराग्य भी है। गीत:- किसी ने अपना बना के...... ओम् शान्ति।बेहद का बाप समझाते हैं - शास्त्रों की पढ़ाई, वह कोई पढ़ाई नहीं है क्योंकि शास्त्रों की पढ़ाई में कोई एम आब्जेक्ट नहीं है। शास्त्रों से कोई दुनिया का पता नहीं पड़ता है, अमेरिका कहाँ है, किसने ढूँढी, यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। कहते हैं फलाने ने ढूँढी। दूसरे इलाके ढूँढते हैं अपने रहने लिए। देखा मनुष्य बहुत हो गये हैं, रहने लिए जमीन तो चाहिए ना। अब यह सब बातें पढ़ाई की हैं, इसको एज्युकेशन कहा जाता है। तुम्हारा भी यह एज्युकेशन है। इसको आश्रम कहें अथवा इन्स्टीट्युशन कहें वा युनिवर्सिटी कहें? इसमें सब आ जाता है। उस पढ़ाई के नक्शे आदि और हैं। शास्त्रों से रोशनी नहीं मिलती, पढ़ाई से रोशनी मिलती है। तुम्हारी भी पढ़ाई है। वैकुण्ठ किसको कहा जाता है? यह न उस पढ़ाई में है, न शास्त्रों की पढ़ाई में है। यह नॉलेज ही नई है जो एक बाप ही बतलाते हैं। मनुष्य तो कह देते स्वर्ग-नर्क सब यहाँ ही है। बाप ही समझाते हैं स्वर्ग-नर्क किसको कहा जाता है? यह बातें न शास्त्रों में हैं, न उस एज्युकेशन में हैं। तो नई बातें होने कारण मनुष्य मूँझते हैं, कहते हैं ऐसा ज्ञान तो कभी सुना नहीं। यह तो नई वन्डरफुल बातें हैं जो कभी कोई ने नहीं सुनाई हैं। हैं भी बरोबर नई बातें। न उस एज्युकेशन वाले सुना सकते, न सन्यासी आदि सुना सकते, इसलिए परमपिता परमात्मा को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी समझाते हैं। ज्ञान से स्वर्ग और नर्क का विस्तार भी सुनाते हैं। यह नई बातें हैं ना। इस पढ़ाई में सब कुछ है - ज्ञान भी है, योग भी है, पढ़ाई भी है, भक्ति भी है। योग को भक्ति भी कह सकते हैं क्योंकि एक के साथ योग लगाना उनको याद करना होता है। वह भक्त लोग भी याद करते हैं, पूजा करते हैं, गाते हैं। वह भक्ति करना कोई योग नहीं कहेंगे। समझो, जैसे मीरा थी, कृष्ण के साथ योग लगाती थी, उनको याद करती थी परन्तु उसको भक्ति कहा जाता। उनकी बुद्धि में कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। इसको ज्ञान भी कहते, भक्ति भी कहते। योग लगाते हैं, एक को याद करते हैं। सतयुग में न भक्ति होती, न ज्ञान। संगम पर ज्ञान और भक्ति दोनों ही हैं और द्वापर से लेकर सिर्फ भक्ति चलती आई है। किसको याद करना, उसको भक्ति कहते। यहाँ यह ज्ञान भी है, योग भी है, भक्ति भी है। समझ सकते हैं। वह सिर्फ भक्त हैं, तत्व से योग लगाते हैं। परन्तु उनका है अनेकों से योग, इसलिए उनको भक्त कहते। तुम्हारा यह है अव्यभिचारी योग। यह ज्ञान सागर खुद बैठ पढ़ाते हैं। उनसे योग लगाना होता है। वह तो आत्मा को ही नहीं जानते। हम तो जानते हैं। परमपिता परमात्मा बाप के साथ बुद्धियोग लगाने से हम बाप के पास चले जायेंगे। वह हनूमान को याद करते हैं, तो उनका साक्षात्कार हो जाता, उनको व्यभिचारी कहा जाता। यह है अव्यभिचारी योग। सिर्फ एक बाप को याद करना है तो इसमें ज्ञान, भक्ति, वैराग्य सब इकट्ठे हैं। और वह उन्हों का सब अलग-अलग है। भक्ति अलग, ज्ञान भी सिर्फ शास्त्रों का है, वैराग्य भी हद का है। यहाँ बेहद की बात है, हम बेहद के बाप को जानते हैं इसलिए उनको याद करते हैं। वह भल शिव को याद करते परन्तु विकर्म विनाश नहीं होंगे, क्योंकि वह आक्यूपेशन को नहीं जानते। विकर्म विनाश होने का ज्ञान ही नहीं। यहाँ तो बाप की याद से विकर्म विनाश होते हैं। वहाँ काशी कलवट खाते हैं, तो उनके विकर्म विनाश होते हैं। भोगना भोगनी पड़ती है। परन्तु ऐसे नहीं कि तुम्हारे मुआफिक आहिस्ते-आहिस्ते कर्मातीत बनते हैं। नहीं, उनके विकर्म सजायें खाते-खाते खत्म होते हैं, माफ नहीं हो जाते हैं। तो यह पढ़ाई भी है, ज्ञान भी है, योग भी है, इसमें सब है। सिखलाने वाला एक ही बाप है। इनको आश्रम अथवा इन्स्टीट्युशन कहा जाता है। लिखा हुआ बड़ा अच्छा है। आगे ओम् मण्डली नाम रांग था। अभी समझ आई है। यह नाम बिल्कुल अच्छा है। कोई को भी समझा सकते हो कि ब्रह्माकुमार तो तुम भी हो। बाप है सबका रचयिता, उनको पहले-पहले सूक्ष्मवतन रचना है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी, नई सृष्टि रचते हैं तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए। सूक्ष्मवतन वाला तो यहाँ आ न सके। वह है सम्पूर्ण अव्यक्त। यहाँ तो साकार ब्रह्मा चाहिए ना। वह कहाँ से आये? मनुष्य इन बातों को समझ न सकें। चित्र तो हैं ना। ब्रह्मा से ब्राह्मण पैदा हुए। परन्तु ब्रह्मा आये कहाँ से। फिर एडाप्शन होती है। जैसे कोई राजा को बच्चा नहीं होता है तो एडाप्ट करते हैं। बाप भी इनको एडाप्ट करते हैं फिर नाम बदलकर रखते हैं - प्रजापिता ब्रह्मा। वह ऊपर वाला तो नीचे आ न सके। नीचे वाले को ऊपर जाना है। वह है अव्यक्त, यह है व्यक्त। तो इस रहस्य को भी अच्छी रीति समझना है क्योंकि सबका प्रश्न उठता है। कहते हैं दादा को कभी ब्रह्मा, कभी भगवान्, कभी कृष्ण कहते हैं........। अब इनको भगवान् तो कहा नहीं जाता। बाकी ब्रह्मा और कृष्ण तो कह सकते हैं क्योंकि कृष्ण सांवरा बनता है। तो जब रात है तब कहेंगे ब्रह्मा, जब दिन है तब कहेंगे कृष्ण। कृष्ण की आत्मा का अभी यह अन्तिम जन्म है और यह श्रीकृष्ण है आदि का जन्म। यह क्लीयर कर लिखना पड़े। 84 जन्म राधे-कृष्ण के वा लक्ष्मी-नारायण के बताने पड़े। यहाँ फिर उनको एडाप्ट करते हैं। तो ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात हो जाती। वही फिर लक्ष्मी-नारायण का दिन और रात। उनकी वंशावली का भी ऐसे हुआ।तुम अब ब्राह्मण कुल के हो फिर देवता कुल के बनेंगे। तो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का भी दिन और रात हुआ ना। यह बड़ी समझने की बातें हैं। चित्रों में भी क्लीयर है - नीचे तपस्या कर रहे हैं, अन्तिम जन्म है। ब्रह्मा आये कहाँ से? किससे पैदा हो? तो ब्रह्मा को एडाप्ट करते हैं। जैसे राजा एडाप्ट करते हैं, फिर उनको राजकुमार कहते हैं। ट्रांसफर कर देते हैं - प्रिन्स ऑफ फलाना। पहले तो प्रिन्स नहीं था। राजा ने एडाप्ट किया तो नाम डाला प्रिन्स। यह रस्म-रिवाज चलती आई है। बच्चों को यह बुद्धि में आना चाहिए। दुनिया नहीं जानती कि बाप कैसे पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना करते हैं? यह रोशनी तुम बच्चों को है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। आगे चलकर छोटी-छोटी बच्चियां भी बहुत तीखी होती जायेंगी क्योंकि कुमारियां हैं। लिखा हुआ भी है कि कुमारियों द्वारा बाण मरवाये। कुमारियों का चमत्कार नम्बरवन में गया है। मम्मा भी कुमारी है, सबसे तीखी गई है। कहा जाता है डॉटर शोज़ मदर। मदर तो नहीं बैठ कोई से बात करेगी। यह माँ तो हो गई गुप्त, वह मम्मा है प्रत्यक्ष। तो तुम शक्तियों अथवा बच्चों का काम है माँ का शो करना। बहुत अच्छी-अच्छी बच्चियां भी हैं, जिनका पुरुषार्थ अच्छा चलता है। कौरव सम्प्रदाय में भी किन्हों के मुख्य नाम हैं ना, जो महारथी हैं। यहाँ भी महारथियों के नाम हैं। सबसे बड़ा है शिवबाबा। ऊंच ते ऊंच भगवान्। उनका ऊंचा ठांव है। वास्तव में ठांव (रहने का स्थान) तो हम आत्माओं का भी ऊंच है। मनुष्य तो सिर्फ महिमा करते रहते, जानते कुछ भी नहीं। हम आत्मायें भी वहाँ की रहने वाली हैं। परन्तु हमको जन्म-मरण में आकर पार्ट बजाना है। वह जन्म-मरण में नहीं आते, पार्ट उनका भी है, परन्तु कैसे है - यह भी तुम जानते हो। अभी तुम बच्चे समझते हो यह शिवबाबा का रथ है। अश्व अथवा घोड़ा भी है। बाकी वह घोड़ा-गाड़ी नहीं है। यह भी जो भूले हुए हैं, यह ड्रामा में नूँध है। आधाकल्प हम भी भूल में भटकते-भटकते एकदम भटक जाते हैं। अभी रोशनी मिली है तो बहुत खबरदार हो पड़े हैं। जानते हैं यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है, हमको नष्टोमोहा बनना है। कमल फूल समान गृहस्थ व्यवहार में रहते नष्टोमोहा बनने का पुरुषार्थ करना है। तोड़ तो सबसे निभाना है, साथ भी रहना है। यह भट्ठी भी बननी थी, जैसे कल्प पहले बनी थी। अभी तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रह मेहनत करनी है। यहाँ घरबार छोड़ने की बात ही नहीं। हम तो घर में बैठे हैं ना। कितने बच्चे हैं। लौकिक भी थे ना। छोड़ा कुछ भी नहीं है। सन्यासी तो जंगल में चले जाते हैं। हम तो शहर में बैठे हैं। तो उनसे तोड़ निभाना है। बाप की रचना है। बाप कमाकर बच्चे को वर्सा देते हैं। पहले तो वर्सा देते हैं काम विकार का। फिर उनसे छुड़ाकर निर्विकारी बनाना बाप का ही काम है। ऐसे भी होते हैं कहाँ बच्चे माँ बाप को ज्ञान देते हैं, कहाँ बाप बच्चों को ज्ञान देते हैं।यह है ही राजयोग, वह है हठयोग। आत्मा को नॉलेज मिलती है परमात्मा से। मैं (ब्रह्मा) राजाओं का राजा था, अब रंक बना हूँ। रंक से राव गाया हुआ है। बच्चे जानते हैं हम जो सूर्यवंशी थे, अभी शूद्रवंशी बने हैं। यह भी समझाना पड़ता है - नर्क और स्वर्ग अलग है। मनुष्य यह नहीं जानते। तुम्हारे में भी कितने बच्चे कुछ नहीं जानते क्योंकि तकदीर में नहीं है तो पुरुषार्थ क्या करेंगे? किनकी तकदीर में कुछ नहीं है, किनकी तकदीर में सब कुछ है। तकदीर पुरुषार्थ कराती है। तकदीर नहीं है तो पुरुषार्थ क्या करेगे? एक ही स्कूल है, चलता रहता है। कोई बच्चे आधा में गिर पड़ते, कोई चलते-चलते मर पड़ते। जन्म लेना और मरना बहुत होता है। यह नॉलेज कितनी वन्डरफुल है! नॉलेज तो बहुत सहज है, बाकी कर्मातीत अवस्था को पाना इसमें ही सारी मेहनत है। जब विकर्म विनाश हों तब तो उड़ सकें। ध्यान से ज्ञान श्रेष्ठ है। ध्यान में माया के विघ्न बहुत पड़ते हैं इसलिए ध्यान से ज्ञान अच्छा है। ऐसे नहीं कि योग से ज्ञान अच्छा। ध्यान के लिए कहा जाता है। ध्यान में जाने वाले आज हैं नहीं। योग में तो कमाई होती है, विकर्म विनाश होते हैं। ध्यान में कोई कमाई नहीं है। योग और ज्ञान में कमाई है। ज्ञान और योग बिगर हेल्दी-वेल्दी बन नहीं सकते। फिर यह घूमने-फिरने की एक आदत पड़ जाती है। यह भी ठीक नहीं। ध्यान नुकसान बहुत करता है। ज्ञान भी है सेकेण्ड का। योग कोई सेकेण्ड का नहीं है। जहाँ जीना है वहाँ योग लगाते रहना है। ज्ञान तो सहज है, बाकी एवरहेल्दी, निरोगी बनना इसमें मेहनत है। सवेरे उठकर याद में बैठने में भी विघ्न बहुत पड़ते हैं। प्वाइन्ट्स निकालते हैं तो भी बुद्धि कहाँ की कहाँ चली जाती है। सबसे जास्ती तूफान तो पहले नम्बर वाले को आयेंगे ना। शिवबाबा को तो नहीं आ सकते। बाबा हमेशा समझाते रहते हैं तूफान तो बहुत आयेंगे। जितना याद में रहने की कोशिश करेंगे, उतना तूफान बहुत आयेंगे। उनसे डरना नहीं है, याद में रहना है, स्थिर होना है। तूफान कोई हिला न सके, यह अन्त की अवस्था है। यह है रूहानी रेस। शिवबाबा को याद करते रहो। यह भी समझने की और धारण करने की बातें हैं। धन दान नहीं करेंगे तो धारणा नहीं होगी। पुरुषार्थ करना चाहिए। दो बाप की प्वाइन्ट किसको समझाना बहुत इज़ी है। यह भी तुम ही जानते हो - बाप 21 जन्मों का वर्सा देते हैं। तुम कहेंगे इन लक्ष्मी-नारायण को बाप से 21 जन्मों का वर्सा मिला है। बाप ने उनको राजयोग सिखलाया और कोई मुख से कह न सके कि उन्हें भगवान् ने यह वर्सा दिया है। दुनिया में कोई किस बात में, कोई किस बात में खुश रहते। तुम जिस बात में खुश हो उसको कोई नहीं जानते। मनुष्य तो अल्पकाल क्षणभंगुर के लिए खुशी मनाते हैं। तुम हो सच्चे ब्राह्मण कुल भूषण, जो योगी और ज्ञानी हो। तुम्हारे इस अतीन्द्रिय सुख की खुशी को और कोई जान नहीं सकते। वह तो क्या-क्या माथा मारते रहते हैं। मून पर जाने का पुरुषार्थ करते हैं। बहुत डिफीकल्ट मेहनत करते हैं। उन सबकी मेहनत बरबाद हो जानी है। तुम बिना कोई तकल़ीफ के ऐसी जगह जाने का पुरुषार्थ करते हो जहाँ और कोई जा न सके। एकदम ऊंच त ऊंच परमधाम में जाते हो। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) गृहस्थ व्यवहार में रहते नष्टोमोहा भी बनना है। साथ-साथ सबसे तोड़ निभाते कमल फूल समान रहना है। 2) धारणा करने के लिए ज्ञान धन का दान जरूर करना है। ज्ञान और योग से अपनी कमाई जमा करनी है। बाकी ध्यान दीदार की आश नहीं रखनी है। वरदान:- साइलेन्स की शक्ति द्वारा जमा के खाते को बढ़ाने वाले श्रेष्ठ पद के अधिकारी भव जैसे वर्तमान समय साइन्स की शक्ति का बहुत प्रभाव है, अल्पकाल के लिए प्राप्ति करा रही है। ऐसे साइलेन्स की शक्ति द्वारा जमा का खाता बढ़ाओ। बाप की दिव्य दृष्टि से स्वयं में शक्ति जमा करो तब जमा किया हुआ समय पर दूसरों को दे सकेंगे। जो दृष्टि के महत्व को जानकर साइलेन्स की शक्ति जमा कर लेते हैं वही श्रेष्ठ पद के अधिकारी बनते हैं। उनके चेहरे से खुशी की रूहानी झलक दिखाई देती है। स्लोगन:- अपने आप नेचुरल अटेन्शन हो तो किसी भी प्रकार का टेन्शन आ नहीं सकता। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • Thoughts for Today Book Part 2

    Tought for the Day is a book published by Raja Yoga centre, Brahma Kumaris Godly Spiritual University, Mount Abu. Book delivers thoughts for our daily (everyday) life which is the Slogan for the day derived from Sakar and Avyakt Murlis. This slogans are worth implementing in life so that to make our life purposeful and prosperous with wisdom. PEACE It may seem almost useless to talk about peace when all around us we see a continued state of ‘peacelessness’. It is this state that forces on us the necessity of finding our own source of peace to draw upon and live from. Consider the flowers. They too live in this peaceless environment. They too have to endure the pollution and decay of the world of nature. Yet, wherever they are found --by the congested roadside, near the swamps, in the desert, amid the thorns and sometimes even on the dung hill--these are eternally beautiful, gay and fragrant. It is not by chance that flowers are given for every occasion, even the most sorrowful. Flowers call forth images of peace and tranquility. It is their nature. We are also like flowers. We are the flowers of the garden of God. In this worldwide garden of everyday hustle and bustle we too are threatened with pollution and degraded circumstances. Being flowers, we are expected to live in our natural state of peace and spread our fragrance all around us. When we realise that the original nature of our soul is that of peace, we can combine with God who is the Ocean of Peace and so become the embodiment of peace. ..a living, thinking flower. THOUGHTS FOR A PEACEFUL DAY -- MONDAY -- 1. What was the future happens now, what happens now becomes the past - so why worry. 2. Every day has hidden secret; you have seen it many times. 3. If I am impatient to experience the results of my efforts, it is like trying to eat unripe fruit. 4. If you miss an opportunity, do not cloud your eyes with tears; keep your vision clear so that you will not miss the next one. 5. The one who can adjust with humility possesses much greatness. 6. A person who is crooked can never enjoy real peace of mind. His tricks tie him into knots. 7. An honest individual is satisfied with himself as much as others are satisfied with him. 8. The only solution to the most difficult problems in society, the country and world today is character. If character is lost no prestige remains. 9. Your thoughts, speech and actions will bear a seal of full confidence if you are sincere in all your tasks. 10. The two greatest healers are God and Time. 11. If I make others believe I am something that I am not, who is being fooled? 12. Without the establishment of human values, moral and spiritual values, there can never be true freedom. 13. When you are angry a great deal of energy is used up and wasted. Use energy wisely. 14. Silence gives rest to the mind and this means giving rest to the body. Sometimes rest is the only medicine needed. 15. Calmness and tolerance act like air-conditioning in a room;they increase man’s efficiency. 16. The worried convict dies many times before he reaches the gallows. 17. If a man is unable to wipe out his own tendency to anger, how can he criticize anyone for the lack of ability in controlling themselves? 18. Success springs from calmness of the mind.It is a cold iron which cuts and bends hot iron. 19. A simple way to remove fear is to seek knowledge and understanding. 20. Be the magnet of peace so that you can attract peaceless souls. 21. If wealth is lost, nothing is lost; if health is lost, something is lost; if character is lost, all is lost. 22. Once you experience God there is no need to look for anyone better. 23. The end of birth is death. The end of death is birth. 24. If man cannot find peace within himself, can there be peace in this world? 25. The unbelieving man can have no peace, and how can there be happiness for one who lacks peace of mind? 26. God has a broad back; if you have burden let Him take it from you. 27. Silence is not only the absence of sound but also stillness of the mind. 28. If I enjoy praise it means I can be easily hurt by defamation. 29. Only when you accept the rules of freedom can you call yourself free. 30. If every morning you can spend a few moments to sort out your thoughts and remember God, your day will be filled with magic. 31. When you burn with the fire of anger smoke gets in your eyes. 32. The more you try to guess the less you are at rest. 33. Where wisdom is called for force is of little use. 34. Peace is so hard to find because it is under your nose. 35. The fool is never satisfied while the wise man finds wealth in contentment. 36. When you get angry you lose more than your temper. 37. You cannot make a fool of the one who keeps cool. 38. The harmony that exists within the minds of individuals will be reflected in harmonious society. 39. If you allow things to surprise you, you will get easily confused. 40. Real temperature control is to extinguish the heat of anger. 41. Weapons by themselves are not dangerous, it is the anger within man that is harmful. 42. If we realise that wars are born in the minds of men, we would make greater efforts for peace of mind. 43. If I wish to advocate peace do I have to shout and scream? 44. Imagination is like a ferocious lion, do not allow it to run wild. 45. When you are looking for answers always be ready for surprises. 46. A rose can live amongst the thorns and yet never be injured by them; how about you? 47. Anger makes you mad why not be sensible? 48. A man with a bad temper is really angry with himself. 49. The less you speak the more you are listened to. 50. If you ALWAYS do your best you will be free from regrets. . --- Next Article to read --- 25 points of wisdom for a Peaceful 'Sunday' Thoughts for Today (PDF Book) BK Articles (General - Eng and Hindi) Online Services .

  • आज की मुरली 7 Nov 2018 BK murli in Hindi

    Brahma Kumaris murli today Hindi Aaj ki Gyan Murli Madhuban 07-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 24-02-84 मधुबन "मीठे बच्चे - जितना तुम बाप को याद करेंगे उतना तुम्हारी बुद्धि का ताला खुलेगा, जिन्हें घड़ी-घड़ी बाप की याद भूल जाती है, वह हैं अनलकी बच्चे'' प्रश्नः- खाता जमा करने का आधार क्या है? सबसे बड़ी कमाई किसमें है? उत्तर:- खाता जमा होता है दान करने से। जितना तुम दूसरों को बाप का परिचय देंगे उतना आमदनी वृद्धि को पाती जायेगी। मुरली से तुम्हारी बहुत बड़ी कमाई होती है। यह मुरली सांवरे से गोरा बनाने वाली है। मुरली में ही खुदाई जादू है। मुरली से ही तुम मालामाल बनते हो। गीत:- हमें उन राहों पर चलना है...... ओम् शान्ति।रूहानी बाप समझा रहे हैं बच्चों को कि बच्चे गिरना और सम्भलना है। घड़ी-घड़ी बाप को भूलते हो अर्थात् गिरते हो। याद करते हो तो सम्भलते हो। माया बाप की याद भुलवा देती है क्योंकि नई बात है ना। ऐसे तो कोई बाप को कभी भूलते नहीं। स्त्री कभी अपने पति को भूलती नहीं। सगाई हुई और बुद्धियोग लटका। भूलने की बात नहीं होती। पति, पति है। बाप, बाप है। अब यह तो है निराकार बाप, जिसको साजन भी कहते हैं। सजनी कहा जाता है भक्तों को। इस समय सब हैं भक्त। भगवान् एक है। भक्तों को सजनियां, भगवान् को साजन या भक्तों को बालक, भगवान् को बाप कहा जाता है। अब पतियों का पति वा पिताओं का पिता वह एक है। हर एक आत्मा का बाप परमात्मा तो है ही। वह लौकिक बाप हर एक का अलग-अलग है। यह पारलौकिक परमपिता सभी आत्माओं का बाप एक ही गॉड फादर है, उनका नाम है शिवबाबा। सिर्फ गॉड फादर, माउण्ट आबू लिखने से बताओ चिट्ठी पहुँचेगी? नाम तो लिखना पड़े ना। यह तो बेहद का बाप है। उनका नाम है शिव। शिवकाशी कहते हैं ना। वहाँ शिव का मन्दिर है। जरूर वहाँ भी गये होंगे। दिखाते हैं ना राम यहाँ गया, वहाँ गया, गांधी यहाँ गया....... तो बरोबर शिवबाबा का भी चित्र है। परन्तु वह तो है निराकार। उनको फादर कहा जाता है, और किसको सबका फादर कह नहीं सकते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी वह फादर है। उनका नाम है शिव। काशी में भी मन्दिर हैं, उज्जैन में भी शिव का मन्दिर है। इतने मन्दिर क्यों बने हैं, कोई भी नहीं जानते। जैसे लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, कहते हैं यह स्वर्ग के मालिक थे परन्तु स्वर्ग कब था, यह मालिक कैसे बने, यह कोई नहीं जानते। पुजारी जिसकी पूजा करे उनके ही आक्यूपेशन को न जाने तो इसको अन्धश्रधा कहा जायेगा ना। यहाँ भी बाबा कहते हैं परन्तु पूरा परिचय नहीं है। मात-पिता को जानते नहीं। लक्ष्मी-नारायण के पुजारी पूजा करते हैं, शिव के मन्दिर में जाकर महिमा करते हैं, गाते हैं तुम मात-पिता....... परन्तु वह कैसे मात-पिता है, कब बने थे - कुछ भी नहीं जानते। भारतवासी ही बिल्कुल नहीं जानते। क्रिश्चियन, बौद्धी आदि अपने क्राइस्ट को, बुद्ध को याद करते हैं। झट उनकी बायोग्राफी को बतायेंगे - क्राइस्ट फलाने समय पर क्रिश्चियन धर्म की स्थापना करने आया था। भारतवासी किसको भी पूजते हैं, उनको पता नहीं है कि यह कौन हैं? न शिव को, न ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को, न जगत अम्बा, जगतपिता को, न लक्ष्मी-नारायण को जानते, सिर्फ पूजा करते रहते हैं। उन्हों की बायोग्राफी क्या है, कुछ भी नहीं जानते। बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं - तुम जब स्वर्ग में थे तो तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र थे, तुम राज्य करते थे। तुम जानते हो बरोबर हम राज्य करते थे, हमने पुनर्जन्म लिये, 84 जन्म भोगते-भोगते बादशाही गँवा दी। गोरे से काले बन गये हैं। सुन्दर थे, अब श्याम बन गये हैं। आजकल नारायण को सांवरा दिखाते हैं तो सिद्ध होता है वही कृष्ण नारायण था। परन्तु इन बातों को बिल्कुल समझते नहीं।यादव हैं मूसल इन्वेंट करने वाले और कौरव-पाण्डव भाई-भाई थे। वह आसुरी भाई और यह दैवी भाई थे। यह भी आसुरी थे, इन्हों को बाप ने ऊंच बनाकर दैवी भाई बनाया है। दोनों भाइयों का क्या हुआ? बरोबर पाण्डवों की जीत हुई, कौरव विनाश हो गये। यहाँ बैठे हुए भी भल मम्मा-बाबा कहते हैं परन्तु जानते नहीं हैं। बाप की श्रीमत पर नहीं चलते हैं। जानते नहीं हैं कि बाबा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। निश्चय नहीं रहता। देह-अभिमानी होने कारण, देह के मित्र-सम्बन्धियों आदि को याद करते हैं। यहाँ तो देही बाप को याद करना है। यह नई बात हो गई। मनुष्य कोई समझा न सके। यहाँ मात-पिता के पास बैठे हुए भी उनको जानते नहीं। यह वन्डर है ना। जन्म ही यहाँ हुआ। फिर भी जानते नहीं क्योंकि निराकार है। उनको अच्छी रीति समझ नहीं सकते। उसकी मत पर नहीं चलते तो फिर आश्चर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं। जिससे स्वर्ग का 21 जन्मों का वर्सा मिलता है, उनको नहीं जानने से भाग जाते हैं। जो बाप को जानते हैं उनको बख्तावर कहा जाता है। दु:ख से लिबरेट करने वाला तो एक ही बाप है। दुनिया में दु:ख तो बहुत है ना। यह है ही भ्रष्टाचारी राज्य। ड्रामा अनुसार फिर भी 5 हजार वर्ष बाद ऐसी ही भ्रष्टाचारी सृष्टि होगी, फिर बाप आकर सतयुगी श्रेष्ठाचारी स्वराज्य स्थापन करेंगे। तुम मनुष्य से देवता बनने आये हो। यह है मनुष्यों की दुनिया। देवताओं की दुनिया सतयुग में होती है। यहाँ हैं पतित मनुष्य, पावन देवतायें सतयुग में होते हैं। यह तुमको ही समझाया जाता है जो तुम ब्राह्मण बने हो। जो ब्राह्मण बनते जायेंगे उनको समझाते जायेंगे। सब तो ब्राह्मण नहीं बनेंगे। जो ब्राह्मण बनते हैं वही फिर देवता बनेंगे। ब्राह्मण न बना तो देवता बन न सके। बाबा-मम्मा कहा तो ब्राह्मण कुल में आया। फिर है सारा पढ़ाई के पुरुषार्थ पर मदार। यह किंगडम स्थापन हो रही है और इब्राहम, बुद्ध आदि कोई किंगडम स्थापन नहीं करते हैं। क्राइस्ट अकेला आया। किसी में प्रवेश कर क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया फिर जो क्रिश्चियन धर्म की आत्मायें ऊपर में हैं, वह आती रहती हैं। अभी सब क्रिश्चियन्स की आत्मायें यहाँ हैं। अभी अन्त में सबको वापिस जाना है। बाप सभी का गाइड बन सबको दु:ख से लिबरेट करते हैं। बाप ही है सारी ह्युमिनटी का लिबरेटर और गाइड। सब आत्माओं को वापस ले जायेंगे। आत्मा पतित होने कारण वापिस जा नहीं सकती है। निराकारी दुनिया तो पावन है ना। अभी यह साकारी सृष्टि पतित है। अब इन सबको पावन कौन बनाये, जो निराकारी दुनिया में जा सकें? इसलिए बुलाते हैं ओ गॉड फादर आओ। गॉड फादर आकर बतलाते हैं कि मैं एक ही बार आता हूँ, जब सारी दुनिया भ्रष्टाचारी बन जाती है। कितनी गोलियां, बारुद आदि बनाते रहते हैं - एक-दो को मारने के लिए। एक तो बाम्ब्स बना रहे हैं दूसरे फिर नैचुरल कैलेमिटीज़, फ्ल्ड्स, अर्थ क्वेक आदि होंगी, बिजली चमकेगी, बीमार पड़ जायेंगे क्योंकि खाद तो बननी है ना। गन्द की ही खाद बनती है ना। तो इस सारी सृष्टि को खाद चाहिए जो फिर फर्स्ट क्लास उत्पत्ति हो। सतयुग में सिर्फ भारत ही था। अब इतने सबका विनाश होना है। बाप कहते हैं मैं आकर दैवी राजधानी स्थापन करता हूँ और सब ख़त्म हो जायेंगे, बाकी तुम स्वर्ग में जायेंगे। स्वर्ग को तो सब याद करते हैं ना। परन्तु स्वर्ग कहा किसको जाता है - यह कोई को पता नहीं। कोई भी मरेगा कहेंगे स्वर्गवासी हुआ। अरे, कलियुग में जो मरेंगे तो जरूर पुनर्जन्म कलियुग में ही लेंगे ना। इतना भी अक्ल कोई में नहीं है। डॉक्टर आफ फिलॉसाफी आदि नाम रखाते हैं, समझते कुछ नहीं। मनुष्य मन्दिर में रहने वाले थे। वह है क्षीर सागर, यह है विषय सागर। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। पढ़ायेंगे तो मनुष्यों को, जानवर को तो नहीं पढ़ायेंगे।बाप समझाते हैं यह ड्रामा बना हुआ है। जैसा साहूकार मनुष्य वैसा फरनीचर होगा। गरीब के पास ठिक्कर-ठोबर होगा, साहूकार के पास तो इतने वैभव होंगे। तुम सतयुग में साहूकार बनते हो तो तुम्हारे हीरे-जवाहरों के महल होते हैं। वहाँ पर कोई गन्दगी आदि नहीं होती, बांस नहीं होती। यहाँ तो बांस होती है इसलिए अगरबत्ती आदि जगाई जाती है। वहाँ तो फूलों आदि में नैचुरल खुशबू रहती है। अगरबत्ती जलाने की दरकार नहीं पड़ती, उनको हेविन कहा जाता है। बाप हेविन का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं। देखो, कैसे साधारण है। ऐसे बाप को याद करना भी भूल जाते हैं! निश्चय पूरा नहीं तो भूल जाते हैं। जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, ऐसे मात-पिता को भूल जाना कैसी बदकिस्मती है। बाप आकर ऊंच ते ऊंच बनाते हैं। ऐसे मात-पिता की मत पर न चले तो 100 परसेन्ट मोस्ट अनलकी कहेंगे। नम्बरवार तो होंगे ना। कहाँ पढ़ाई से विश्व का मालिक बनना, कहाँ नौकर चाकर बनना! तुम समझ सकते हो हम कहाँ तक पढ़ते हैं। वहाँ सिर्फ धर्म पितायें आते हैं धर्म स्थापन करने, यहाँ मात-पिता है क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। अभी है अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग। लक्ष्मी-नारायण पवित्र थे तो उन्हों की सन्तान भी पवित्र थी। तुम जानते हो हम क्या बनेंगे? मात-पिता कितना ऊंच बनाते हैं तो फालो करना चाहिए ना! भारत को ही मदर फादर कन्ट्री कहा जाता है। सतयुग में सब पवित्र थे, यहाँ पतित हैं। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है परन्तु बाप को याद नहीं करते तो बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। सुनते-सुनते पढ़ाई छोड़ देते हैं तो ताला एकदम बंद हो जाता है। स्कूल में भी नम्बरवार हैं। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि कहा जाता है। पत्थरबुद्धि कुछ भी समझते नहीं, सारे दिन में 5 मिनट भी बाप को याद नहीं करते। 5 मिनट याद करेंगे तो इतना ही ताला खुलेगा। जास्ती याद करेंगे तो अच्छी रीति ताला खुल जायेगा। सारा मदार याद पर है। कोई-कोई बच्चे बाबा को पत्र लिखते हैं - प्रिय बाबा वा प्रिय दादा। अब सिर्फ प्रिय दादा पोस्ट में चिट्ठी डालो तो मिलेगी? नाम तो चाहिए ना! दादा-दादियां तो दुनिया में बहुत हैं। अच्छा!आज दीपावली है। दीपावली पर नया खाता रखते हैं। तुम सच्चे सच्चे ब्राह्मण हो। वह ब्राह्मण लोग व्यापारियों से नया खाता रखाते हैं। तुमको भी अपना नया खाता रखना है। परन्तु यह है नई दुनिया के लिए। भक्ति मार्ग का खाता है बेहद घाटे का। तुम बेहद का वर्सा पाते हो, बेहद की सुख-शान्ति पाते हो। यह बेहद की बातें बेहद का बाप बैठ समझाते हैं और बेहद का सुख पाने वाले बच्चे ही यह सब समझ सकते हैं। बाप के पास कोटों में कोई ही आते हैं। चलते-चलते कमाई में घाटा पड़ता है तो जो जमा किया है वह भी ना हो जाती है। तुम्हारा खाता वृद्धि को तब पाता है जब कोई को दान देते हो। दान नहीं देते हो तो आमदनी की वृद्धि नहीं होती है। तुम पुरुषार्थ करते हो आमदनी की वृद्धि हो। वह तब होगी जब किसको दान करेंगे, फायदा प्राप्त करायेंगे। कोई को बाप का परिचय दिया, गोया जमा हुआ। परिचय नहीं देते हो तो जमा भी नहीं होता है। तुम्हारी कमाई बहुत-बहुत बड़ी है। मुरली से तुम्हारी सच्ची कमाई होती है, सिर्फ यह मालूम पड़ जाए कि मुरली किसकी है? यह भी तुम बच्चे जानते हो जो सांवरे बन गये हैं उन्हों को ही गोरा बनने के लिए मुरली सुननी है। मुरली तेरी में है जादू। खुदाई जादू कहते हैं ना। तो इस मुरली में खुदाई जादू है। यह ज्ञान भी तुमको अभी है। देवताओं में यह ज्ञान नहीं था। जब उनमें ही ज्ञान नहीं था तो पिछाड़ी वालों में ज्ञान कैसे हो सकता? शास्त्र आदि भी जो बाद में बनते हैं वह सब ख़त्म हो जायेंगे। तुम्हारी यह सच्ची गीतायें तो बहुत थोड़ी हैं। दुनिया में तो वह गीतायें लाखों की अन्दाज में होंगी। वास्तव में यह चित्र ही सच्ची गीता हैं। उस गीता से इतना नहीं समझ सकेंगे जितना इन चित्रों से समझ सकेंगे। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अच्छी रीति पढ़ाई पढ़कर स्वयं को बख्तावर (तकदीरवान) बनाना है। देवता बनने के लिए पक्का ब्राह्मण बनना है। 2) देही बाप को याद करने के लिए देही-अभिमानी बनना है। देह को भी भूलने का अभ्यास करना है। वरदान:- दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा सर्व अवगुणों की आहुति देने वाले सन्तुष्ट आत्मा भव जैसे दीपावली पर विशेष सफाई और कमाई का ध्यान रखते हैं। ऐसे आप भी सब प्रकार की सफाई और कमाई का लक्ष्य रख सन्तुष्ट आत्मा बनो। सन्तुष्टता द्वारा ही सर्व दिव्य गुणों का आह्वान कर सकेंगे फिर अवगुणों की आहुति स्वत: हो जायेगी। अन्दर जो कमजोरियाँ, कमियां, निर्बलता, कोमलता रही हुई है, उन्हें समाप्त कर अब नया खाता शुरू करो और नये संस्कारों के नये वस्त्र धारण कर सच्ची दीपावली मनाओ। स्लोगन:- ब्राह्मण कुल के दीपक वही बन सकते जिनके स्मृति की ज्योति सदा जगी हुई है। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • आज की मुरली 8 Nov 2018 BK murli in Hindi

    BrahmaKumaris murli today in Hindi Aaj ki Gyan Murli Madhuban 08-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 24-02-84 मधुबन "मीठे बच्चे - तुम्हारी सच्ची-सच्ची दीपावली तो नई दुनिया में होगी, इसलिए इस पुरानी दुनिया के झूठे उत्सव आदि देखने की दिल तुम्हें नहीं हो सकती'' प्रश्नः- तुम होलीहंस हो, तुम्हारा कर्तव्य क्या है ? उत्तर:- हमारा मुख्य कर्तव्य है एक बाप की याद में रहना और सबका बुद्धियोग एक बाप के साथ जुड़ाना। हम पवित्र बनते और सबको बनाते हैं। हमें मनुष्य को देवता बनाने के कर्तव्य में सदा तत्पर रहना है। सबको दु:खों से लिबरेट कर, गाइड बन मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है। गीत:- तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है........ ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। बच्चे कहते हैं हम स्वर्ग की राजाई का वर्सा पाते हैं। उसे कभी कोई जला न सके, कोई छीन न सके, वह वर्सा हमसे कोई जीत न सके। आत्मा को बाप से वर्सा मिलता है और ऐसे बाप को बरोबर मात-पिता भी कहते हैं। मात-पिता को पहचानने वाला ही इस संस्था में आ सकता है। बाप भी कहते हैं मैं बच्चों के सम्मुख प्रत्यक्ष हो पढ़ाता हूँ, राजयोग सिखाता हूँ। बच्चे आकर बेहद के बाप को अपना बनाते हैं, जीते जी। धर्म के बच्चे जीते जी लिए जाते हैं। आप हमारे हैं, हम आपके हैं। तुम हमारे क्यों बने हो? कहते हो - बाबा, आपसे स्वर्ग का वर्सा लेने हम आपके बने हैं। अच्छा बच्चे, ऐसे बाप को कभी फारकती नहीं देना। नहीं तो नतीजा क्या होगा? स्वर्ग की राजाई का पूरा वर्सा तुम पा नहीं सकेंगे। बाबा-मम्मा महाराजा-महारानी बनते हैं ना, तो पुरुषार्थ कर इतना वर्सा पाना है। परन्तु बच्चे पुरुषार्थ करते-करते फिर फारकती दे देते हैं। फिर जाकर विकारों में फँसते हैं वा हेल में गिरते हैं। हेल नर्क को, हेविन स्वर्ग को कहा जाता है। कहते हैं हम सदा स्वर्ग के मालिक बनने के लिए बाप को अपना बनाते हैं क्योंकि अभी हम नर्क में हैं। हेविनली गॉड फादर, जो स्वर्ग का रचयिता है वह जब तक न आये तब तक कोई हेविन जा न सके। उसका नाम ही है हेविनली गॉड फादर। यह भी तुम अभी जानते हो। बाप कह रहे हैं - बच्चे, तुम समझते हो, बरोबर बाप से वर्सा पाने के लिए हम बाप के पास आये हैं, 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक। परन्तु फिर भी चलते-चलते माया के तूफान एकदम बरबाद कर देते हैं। फिर पढ़ाई को छोड़ देते हैं, गोया मर गये। ईश्वर का बनकर फिर अगर हाथ छोड़ दिया तो गोया नई दुनिया से मरकर पुरानी दुनिया में चला गया। हेविनली गॉड फादर ही नर्क के दु:ख से लिबरेट कर फिर गाइड बन स्वीट साइलेन्स होम में ले जाते हैं, जहाँ से हम आत्मायें आई हैं। फिर स्वीट हेविन की राजाई देते हैं। दो चीज़ देने बाप आते हैं - गति और सद्गति। सतयुग है सुखधाम, कलियुग है दु:खधाम और जहाँ से हम आत्मायें आती हैं वह है शान्तिधाम। यह बाप है ही शान्तिदाता, सुखदाता फार फ्युचर। इस अशान्त देश से पहले शान्ति देश में जायेंगे। उसको स्वीट साइलेन्स होम कहा जाता है, हम रहते ही वहाँ हैं। यह आत्मा कहती है कि हमारा स्वीट होम वह है फिर हम जो इस समय नॉलेज पढ़ते हैं, उससे हमको स्वर्ग की राजधानी मिलेगी। बाप का नाम ही है हेविनली गॉड फादर, लिबरेटर, गाइड, नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, ज्ञान का सागर। रहमदिल भी है। सब पर रहम करते हैं। तत्वों पर भी रहम करते हैं। सभी दु:ख से छूट जाते हैं। दु:ख तो जानवर आदि सबको होता है ना। कोई को मारो तो दु:ख होगा ना। बाप कहते हैं मनुष्य मात्र तो क्या, सभी को दु:ख से लिबरेट करता हूँ। परन्तु जानवरों को तो नहीं ले जायेंगे। यह मनुष्यों की बात है। ऐसा बेहद का बाप एक ही है बाकी तो सब दुर्गति में ले जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप ही स्वर्ग की वा मुक्तिधाम की गिफ्ट देने वाला है। वर्सा देते हैं ना। ऊंच ते ऊंच एक बाप है। सभी भक्त उस भगवान् बाप को याद करते हैं। क्रिश्चियन भी गॉड को याद करते हैं। हेविनली गॉड फादर है शिव। वही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। इसका अर्थ भी तुम बच्चे जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई तो बिल्कुल ऐसे हैं जो कितना भी ज्ञान का श्रृंगार करो फिर भी विकारों में गिरेंगे, गन्दी दुनिया देखेंगे।कई बच्चे दीपमाला देखने जाते हैं। वास्तव में हमारे बच्चे यह झूठी दीपमाला देख नहीं सकते। परन्तु ज्ञान नहीं है तो दिल होगी। तुम्हारी दीवाली तो है सतयुग में, जबकि तुम पवित्र बन जाते हो। तुम बच्चों को समझाना है कि बाप आते ही हैं स्वीट होम वा स्वीट हेविन में ले जाने। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे, धारणा करेंगे, वही स्वर्ग की राजधानी में आयेंगे। परन्तु तकदीर भी चाहिए ना। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ नहीं बनेंगे। यह है श्री शिव भगवानुवाच। जब तक मनुष्यों को बाप की पहचान नहीं मिली है तब तक भक्ति करते रहेंगे। जब निश्चय पक्का हो जायेगा तो फिर भक्ति आपेही छोड़ेंगे। तुम हो होलीनेस। गॉड फादर के डायरेक्शन अनुसार सभी को पवित्र बनाते हो। वह तो सिर्फ हिन्दुओं को वा मुसलमानों को क्रिश्चियन बनायेंगे। तुम तो आसुरी मनुष्यों को पवित्र बनाते हो। जब पवित्र बनें तब हेविन वा स्वीट होम में जा सकें। नन बट वन, तुम सिवाए एक बाप के और कोई को याद नहीं करते हो। एक बाप से ही वर्सा मिलना है तो जरूर उस एक बाप को ही याद करेंगे। तुम पवित्र बन औरों को पवित्र बनाने की मदद करते हो। वह नन्स कोई पवित्र नहीं बनाती हैं, न आप समान नन्स बनाती हैं। सिर्फ हिन्दू से क्रिश्चियन बनाती हैं। तुम होली नन्स पवित्र भी बनाती हो और सभी आत्माओं का एक गॉड फादर से बुद्धियोग जुटाती हो। गीता में भी है ना - देह सहित देह के सभी सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। फिर नॉलेज को धारण करने से ही राजाई मिलेगी। बाप की याद से ही एवरहेल्दी बनेंगे और नॉलेज से एवरवेल्दी बनेंगे। बाप तो है ही ज्ञान सागर। सभी वेदों-शास्त्रों का सार बतलाते हैं। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाते हैं ना। तो यह ब्रह्मा है। शिवबाबा इनके द्वारा सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं। वह है ज्ञान का सागर। इनके द्वारा तुमको नॉलेज मिलती रहती है। तुम्हारे द्वारा फिर औरों को मिलती रहती है।कई बच्चे कहते हैं - बाबा, हम यह रूहानी हॉस्पिटल खोलते हैं, जहाँ रोगी मनुष्य आकर निरोगी बनेंगे और स्वर्ग का वर्सा लेंगे, अपना जीवन सफल करेंगे, बहुत सुख पायेंगे। तो इतने सबकी आशीर्वाद जरूर उनको मिलेगी। बाबा ने उस दिन भी समझाया था कि गीता, भागवत, वेद, उपनिषद आदि सब जो भी भारत के शास्त्र हैं, यह शास्त्र अध्ययन करना, यज्ञ, तप, व्रत, नेम, तीर्थ आदि करना यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री रूपी छांछ है। एक ही श्रीमत भगवत गीता के भगवान् से भारत को मक्खन मिलता है। श्रीमत भगवत गीता को भी खण्डन किया हुआ है, जो ज्ञान सागर पतित-पावन निराकार परमपिता परमात्मा के बदले श्री कृष्ण का नाम डालकर छांछ बना दिया है। एक ही कितनी बड़ी भारी भूल है। अभी तुम बच्चों को ज्ञान सागर डायरेक्ट ज्ञान दे रहे हैं। अभी तुम जानते हो कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, यह सृष्टि रूपी झाड़ की वृद्धि कैसे होती है? तुम ब्राह्मण हो चोटी, शिवबाबा है ब्राह्मणों का बाप। फिर ब्राह्मण से देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह हो गई बाजोली। इसको 84 जन्मों का चक्र कहा जाता है। वेद सम्मेलन करने वालों को भी तुम समझा सकते हो। भक्ति है छांछ, ज्ञान है मक्खन। जिससे मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है। अब अगर तुमको विस्तार से ज्ञान समझना है तो धैर्यवत होकर सुनो। ब्रह्माकुमारियां तुमको समझा सकती हैं। शास्त्रों में भी लिखा हुआ है भीष्मपितामह, अश्वस्थामा आदि को पिछाड़ी में इन बच्चों ने ज्ञान दिया है। अन्त में यह सब समझ जायेंगे कि यह तो ठीक कहते हैं, अन्त में आयेंगे जरूर। तुम प्रदर्शनी करते हो, कितने हजार मनुष्य आते हैं परन्तु निश्चयबुद्धि सब थोड़ेही बन जाते। कोटों में कोई ही निकलते हैं जो अच्छी रीति समझकर निश्चय करते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे लकी ज्ञान सितारों प्रति, मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) पवित्र बन आप समान पवित्र बनाना है। एक बाप के सिवाए किसी को भी याद नहीं करना है। 2) अनेक आत्माओं की आशीर्वाद लेने के लिए रूहानी हॉस्पिटल खोलनी है। सबको गति-सद्गति की राह बतानी है। वरदान:- निश्चयबुद्धि बन लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले डबल सेवाधारी ट्रस्टी भव कई बच्चे सेवा करते-करते थक जाते हैं, सोचते हैं यह तो कभी बदलना ही नहीं है। ऐसे दिलशिकस्त नहीं बनो। निश्चयबुद्धि बन, मेरेपन के संबंध से न्यारे हो चलते चलो। कोई कोई आत्माओं का भक्ति का हिसाब चुक्तू होने में थोड़ा समय लगता है इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, शान्त और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। लौकिक में अलौकिक भावना रखो। डबल सेवाधारी, ट्रस्टी बनो। स्लोगन:- अपनी श्रेष्ठ वृत्ति से वायुमण्डल को श्रेष्ठ बनाना यही सच्ची सेवा है। मातेश्वरी जी के महावाक्य: "यह ईश्वरीय सतसंग कॉमन सतसंग नहीं है''अपना यह जो ईश्वरीय सतसंग है, कॉमन सतसंग नहीं है। यह है ईश्वरीय स्कूल, कॉलेज। जिस कॉलेज में अपने को रेग्युलर स्टडी करनी है, बाकी तो सिर्फ सतसंग करना, थोड़ा समय वहाँ सुना फिर तो जैसा है वैसा ही बन जाता है क्योंकि वहाँ कोई रेग्युलर पढ़ाई नहीं मिलती है, जहाँ से कोई प्रालब्ध बनें इसलिए अपना सतसंग कोई कॉमन सतसंग नहीं है। अपना तो ईश्वरीय कॉलेज है, जहाँ परमात्मा बैठ हमें पढ़ाता है और हम उस पढ़ाई को पूरी धारण कर ऊंच पद को प्राप्त करते हैं। जैसे रोज़ाना स्कूल में मास्टर पढ़ाए डिग्री देता है वैसे यहाँ भी स्वयं परमात्मा गुरू, पिता, टीचर के रूप में हमको पढ़ाए सर्वोत्तम देवी देवता पद प्राप्त कराते हैं इसलिए इस स्कूल में ज्वाइन्ट होना जरूरी है। यहाँ आने वाले को यह नॉलेज समझना जरूर है, यहाँ कौनसी शिक्षा मिलती है? इस शिक्षा को लेने से हमको क्या प्राप्ति होगी! हम तो जान चुके हैं कि हमको खुद परमात्मा आकर डिग्री पास कराते हैं और फिर एक ही जन्म में सारा कोर्स पूरा करना है। तो जो शुरू से लेकर अन्त तक इस ज्ञान के कोर्स को पूरी रीति उठाते हैं वो फुल पास होंगे, बाकी जो कोर्स के बीच में आयेंगे वो तो इतनी नॉलेज को उठायेंगे नहीं, उन्हों को क्या पता आगे का कोर्स क्या चला? इसलिए यहाँ रेग्युलर पढ़ना है, इस नॉलेज को जानने से ही आगे बढ़ेंगे इसलिए रेग्युलर स्टडी करनी है। 2- "परमात्मा का सच्चा बच्चा बनते कोई संशय में नहीं आना चाहिए'' जब परमात्मा खुद इस सृष्टि पर उतरा हुआ है, तो उस परमात्मा को हमें पक्का हाथ देना है लेकिन पक्का सच्चा बच्चा ही बाबा को हाथ दे सकता है। इस बाप का हाथ कभी नहीं छोड़ना, अगर छोड़ेंगे तो फिर निधण का बन कहाँ जायेंगे! जब परमात्मा का हाथ पकड़ लिया तो फिर सूक्ष्म में भी यह संकल्प नहीं चाहिए कि मैं छोड़ दूँ वा संशय नहीं होना चाहिए। पता नहीं हम पार करेंगे वा नहीं, कोई ऐसे भी बच्चे होते हैं जो पिता को न पहचानने के कारण पिता के भी सामने पड़ते हैं और ऐसे भी कह देते हैं हमको कोई की भी परवाह नहीं है। अगर ऐसा ख्याल आया तो ऐसे न लायक बच्चे की सम्भाल पिता कैसे करेगा फिर तो मानो कि गिरा कि गिरा क्योंकि माया तो गिराने की बहुत कोशिश करती है क्योंकि परीक्षा तो अवश्य लेगी कि कितने तक योद्धा रूसतम पहलवान है! अब यह भी जरूरी है, जितना जितना हम प्रभु के साथ रूसतम बनते जायेंगे उतना माया भी रूसतम बन हमको गिराने की कोशिश करेगी। जोड़ी पूरी बनेगी जितना प्रभु बलवान है तो माया भी उतनी बलवानी दिखलायेगी, परन्तु अपने को तो पक्का निश्चय है आखरीन भी परमात्मा महान बलवान है, आखरीन उनकी जीत है। श्वांसो श्वांस इस विश्वास में स्थित होना है, माया को अपनी बलवानी दिखलानी है, वह प्रभु के आगे अपनी कमजोरी नहीं दिखायेगी, बस एक बारी भी कमजोर बना तो खलास हुआ इसलिए भल माया अपना फोर्स दिखलाये, परन्तु अपने को मायापति का हाथ नहीं छोड़ना है, वो हाथ पूरा पकड़ा तो मानो उनकी विजय है, जब परमात्मा हमारा मालिक है तो हाथ छोड़ने का संकल्प नहीं आना चाहिए। परमात्मा कहता है, बच्चे जब मैं खुद समर्थ हूँ, तो मेरे साथ होते तुम भी समर्थ अवश्य बनेंगे। समझा बच्चे। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • 7 Oct 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English 07/10/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 22/01/84 The way to become a well-known server. Today, BapDada is seeing the Deepmala (rosary of lights) of the stable ignited lamps. He is seeing how each of you ignited lamps is unshakeable, free from obstacles and giving light to the world with your own light. This light of the lamps is the light that will awaken souls. You have awakened in order to awaken others and remove the wall of ignorance that is in front of all souls of the world. Because of the darkness, those who have been stumbling around in many different ways are looking with a lot of love at you lamps who have awakened, in the hope that you will fulfil their desires and their need for light. You have to give the light of knowledge to souls who are wandering around in darkness so that the lamps in every home become ignited. (The lights went out.) Even now, do you like this darkness? You love light, do you not? So, similarly, forge a connection with the Father. Give them the knowledge of how to forge a connection.All of you double foreigners have been refreshed, that is, you have become powerful lighthouse s, might-house s , knowledge-full, powerful and successful and are going back to your own service places in order to come back again. To go means to play the part of being an embodiment of success and to come back having multiplied one many times over. You are going in order to bring all the other souls of your family to the Father's home. Just as soldiers with physical strength and the power of science go onto a battlefield to engage in a limited battle, equipped with all weapons, to claim medal s of victory, in the same way, all of you spiritual warriors are going onto the field of service in order to hoist the flag of victory. The more victorious you become, the more medals of victory of love, co-operation, closeness and perfection you will receive from the Father. Therefore, now check how many medals you have received so far. Whatever specialities or titles that have been given there are, how many of those medals have you adopted? You have made a list of special titles, have you not? Keep that list in front of you and check yourself as to whether you have received all of those medals. As yet, the list you have made is very short. Let there be at least 108. Then, seeing so many medals of yours, keep yourself intoxicated with being decorated with so many medals. To go means to carry out a special task and to continue to receive the newest medals. You receive a medal according to the task you carry out. So, this year, all the children who are instruments for service have to have the aim of carrying out a special new task which up to now has still been hidden in the drama, but is fixed. Now, reveal that task. In the world outside, when you carry out a special task, you become very well-known. As well as being known for your speciality everywhere, you also become known as a special soul. In the same way, let each of you think that you have to carry out a special task - that you have to receive a medal of victory. Become well known within the Brahmin family as being in the list of special servers. Stay in spiritual intoxication, not in the intoxication of your name. With the spiritual intoxication of service, become well known with the certificate of being a humble instrument.Today is a congratulations ceremony for the double-foreigners’ group who have become victorious and are going to their place of victory. When anyone goes to a place of victory, they go in great splendour, with bands playing in happiness, and they are congratulated with the tilak of victory. It is not farewell (vidaai), but congratulations (badhaai), because BapDada and the family know that victory is guaranteed for such servers. This is why you are celebrating the congratulations ceremony. Victory is already guaranteed, is it not? Simply become an instrument and repeat that because by doing it, you will do it as an instrument and receive the reward of it. The action is just in name because its visible fruit is guaranteed. You are going with the zeal and enthusiasm of this faith, to make others claim their right and bring them here. You have the infinite treasure of rights and, as great donors, are going to donate them and perform charity. We shall now see whether the Pandavas go ahead or the Shaktis go ahead. Whoever carries out a special new task will receive a medal. Either you can make souls emerge for such special service, or you can enable the service place to grow more. Or, you can demonstrate spreading your name everywhere by carrying out a special task; and then again you might prepare such a big group and bring it in front of BapDada. Those who do any of these types of special service will receive a medal of victory. Those who carry out such special tasks also receive full co-operation. Others will offer you a ticket. When all of you went out on service in the beginning, you used to travel first-class to serve. Now, however, you buy your own tickets and you travel second or third class. Now do service of such a Company (organisation) and everything will become possible. Servers receive all facilities. Do you understand? All of you have become content and are going back victorious, are you not? You are not taking back any type of weakness with you, are you? You have sacrificed weaknesses and are going back having become powerful souls, are you not? There aren't any weaknesses remaining, are there? If anything is left, then make special time to end it and then go from here. Achcha.To such constantly unshakeable ignited lamps who always end darkness with the light of knowledge, to those who always play special parts with some speciality of service, to those who attain all the medals which are received from the Father, to those who constantly have faith that victory is guaranteed, to such souls who have the imperishable tilak of victory, to those who are always full of all attainments, to the content souls, BapDada's love, remembrance and namaste.BapDada meeting Jagdishbhai:The jewels who have been sustained with sakar sustenance from BapDada are valued. In the world too, there is nothing like the fruit that becomes ripe on the tree. Today, everyone looks at such experienced souls with so much love. You attained a blessing in your first meeting. Sustenance means you have grown with blessings. This is why by giving sustenance to many souls with your experience of sustenance you will always continue to inspire them to move forward. You will continue to float in the waves of different relationships and different experiences with the Ocean. At the beginning of service, at the time of economy, you became an instrument. Because of being an instrument at the time of economy, the fruit of service is always elevated. You became co-operative at the right time and this is why you received blessings. Achcha.BapDada speaking for the conference :When all of you carry out a task together with united in your zeal and enthusiasm, you easily receive success in that. Because the task is being carried out with everyone's enthusiasm, it will definitely be successful. To unite everyone is also a sign of greatness. When everyone is united, other souls are also able to come closer to celebrate a meeting. To unite the thoughts of hearts means to enable many souls to celebrate a meeting. You are doing everything with this aim and will continue to do so. Achcha. Are all the foreigners all right? Are you content? All of you have now grown up. You are now those who look after everything. Previously, you were still young and so you used to play games of mischief, whereas you have now become those who look after others. It isn't that you need someone to look after you. Now, you are not those who take effort, but those who make effort on others. You are not those who complain, but are complete. You don't have any complaints now, nor will you have any complaints later. It is like this, is it not? Always give news of happiness. For those who didn't come, make them into conquerors of Maya. They won't then have to write many letters. Simply, I am OK. You may write good things, but in short. Achcha.Speaking to the teachers :BapDada has special love for the teachers because you are equal. The Father is the Teacher and you are master teachers. In any case, those who are equal are loved very much. You are moving forward in service with very good zeal and enthusiasm. All of you are rulers of the globe. You toured around and came into contact with many souls and are carrying out the task of bringing many souls close. BapDada is pleased. You do feel that BapDada is pleased with you, do you not? Or, do you feel that you still have to please a little more? He is pleased, but you have to please Him a little more. You are working very hard. You work hard with love and this is why it doesn't feel like hard work. BapDada always says that serviceable children are the crown on the head. You are the crowns on the head. Seeing the zeal and enthusiasm of the children, BapDada gives further co-operation to increase the zeal and enthusiasm. One step of the children and multi-million steps of the Father. Where there is courage, there is automatically the attainment of enthusiasm. When you have courage, you receive the Father's help. This is why you are carefree emperors. Continue to serve and you will continue to receive success. Achcha.The reason for peacelessness is a lack of attainment and the reason for a lack of attainment is impurity. (Avyakt BapDada meeting the guests after the conference ).Today, the Father, the Ocean of Love and the Ocean of Peace, has come to meet His children who love peace and who are embodiments of love. Seeing the one desire of all the souls of the world for peace and true love, BapDada has come to you children to show you the easy way to fulfil that desire. Seeing all the different methods that the children have been using over a long period of time in order to fulfil that desire, the Merciful Father has mercy for you children: You are the children of the Bestower and are asking for a moment's peace or peace for a short time. The children who have a right have become beggars and are wandering around for peace and love. Whilst wandering around, some children have become disheartened. The question arises: Can there be imperishable peace in the world? Can all souls have true, selfless love?In order to answer the children’s question, the Father Himself has had to come. BapDada has come to give you children the good news: Yesterday, you, My children, were the masters of the world of peace and happiness. All souls were bound by the thread of true love. Peace and love were the speciality of your lives. You think that there should be the world of love, the world of happiness and the world of liberation-in-life that you now desire. Yesterday, you were the masters of that world. Today, you are creating that world and tomorrow you will be in that world. It is a matter of only tomorrow. Tomorrow, this land of yours will be the land of heaven. Have you forgotten that it was your kingdom, a kingdom full of happiness, where there was no name or trace of sorrow or peacelessness, where nothing was lacking? Some lack of attainment is the reason for peacelessness and the reason for a lack of attainment is impurity. So, what would there be where there is no impurity and nothing is lacking? Whatever desires you have and whatever plans you create, they will be made practical there. That destiny of the drama is firm and unshakeable; no one can change it. The predestined destiny is already created. The new creation has already been created by the Father. Who are all of you? You are the foundation stone of the new creation. It is because you consider yourselves to be the foundation stone that you have come here. Brahmin souls means images of support for the new world. BapDada is pleased to see the children who are images of support. BapDada also sings the song: Wah, My beloved long-lost and now-found sweetest children! You also sing songs, do you not? You say: You alone are mine and the Father says: You alone are Mine. You used to sing these songs a lot in your childhood, did you not? (Two or three sisters sang that song and BapDada responded in return.)No matter what the sound coming from the mouth is like BapDada hears the sound of the heart. The Father created the song and the children sang it. Achcha. (BapDada was meeting the conference guests in the Meditation Hall and some brothers and sisters were listening to the murli in the History Hall below and in Om Shanti Bhavan) Some children are sitting down below too. BapDada is seeing the faces of love and hearing their sweet complaints. All of you children play your parts of world service from the depths of your hearts with a lot of love. BapDada is congratulating all of you for your love and is swinging you in swings of love. May you have a long life! May you continue to make progress, continue to fly and remain constantly successful! The co-operation of everyone's love has made the task of the world successful. If BapDada were to see the love-filled efforts that each child has made and then speak about them day and night, even that would then be too little. Just as the Father's praise is limitless, so too, the praise of the serviceable children of the Father is also limitless. Love for One, enthusiasm for one thing and the one determined thought of definitely having to give all souls of the world the message of peace. There is success in the practical form of this love and there always will be. Those who are far away are also close. You are not sitting down below, but in BapDada's eyes. Some are going back by train and others by bus, but the Father remembers everyone. The thoughts of their minds reach BapDada. Achcha.You are not guests who have come to the Father's home, but you are those who are going to become great souls. BapDada doesn't see all of you as IPs or VIPs, but as long-lost and now-found children. VIPs will come and see and hear everything for a little while and go away, but children are always seated on the heart throne. No matter where you go, you will be in the heart. Congratulations for reaching your home, the Father's home. BapDada considers all of you children to be the decoration of Madhuban, His home. Children are the decoration of a home. Who are all of you? You are the decoration, are you not? Achcha.To those who always have such determined thoughts, to the stars of success, to those who are always seated on the heart throne, to those who always remain absorbed in remembrance and service, the images of support for the new creation, to those who give the world new light and new life for all time, to those who give everyone an experience of true love, to the loving and co-operative children who are constant companions, BapDada's love, remembrance and namaste. Blessing: May you have a divine life and give the experience of divinity through your every act. BapDada has made each of you children one with a divine life, that is, divine images who have divine thoughts, speak divine words and perform divine acts. Divinity is the elevated decoration of the confluence-aged Brahmins. With his own acts a soul with a divine life will be able to make any soul experience divinity, to go beyond being ordinary. A Brahmin with a divine life cannot perform ordinary acts through the body or have ordinary thoughts in the mind. Such a soul cannot use his wealth in an ordinary way for any task. Slogan: Constantly sing the song in your heart, “I have attained what I wanted to attain”, and your face will remain happy. #bkmurlitoday #brahmakumari #english #Murli

  • 2 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today Hindi Aaj ki Gyan Murli BapDada Madhuban 02-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - तुम अभी पुजारी से पूज्य, बेगर से प्रिन्स बन रहे हो, इसलिए तुम्हें खुशी में खग्गियां मारनी है, कभी भी रोना नहीं है' ' प्रश्नः- अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा से भारत को साहूकार बनाने के लिए बाप तुम्हें किस बात में आप समान बनाते हैं? उत्तर:- बाबा कहते - बच्चे, जैसे मैं रूप बसन्त हूँ, ऐसे तुम्हें भी रूप बसन्त बनाता हूँ। जो अविनाशी ज्ञान रत्न तुम्हें मिले हैं उन्हें धारण कर मुख से दान करो। इसी महादान से भारत साहूकार बनेगा। जैसे तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो ऐसे औरों को भी दो। तुम्हारा फर्ज है सबको रास्ता बताना, सुखदाई बनना। गीत:- इन्साफ की डगर पर..... ओम् शान्ति।यह गीत कांग्रेस से भी लगता है और तुम बच्चों से भी लगता है क्योंकि उन्होंने भी तो सहन करके अंग्रेजों से भारत को छुड़ाया। तो यह गीत उनकी खुशी में है। खुशियां तो मनाते रहते हैं, भल कितना भी किया परन्तु पुरानी दुनिया तो नहीं बदली ना। दुनिया तो वही पुरानी है। तुम बच्चे जानते हो श्रीमत पर हम इस दुनिया को बदल रहे हैं। वह श्रीमत नहीं कहेंगे। श्रीमत है ही एक भगवान् की। तुम हो अभी बाप की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ श्रीमत पर। उन्होंने फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है श्री शिवबाबा की मत। कृष्ण को बाबा कहना शोभता नहीं। श्री शिवबाबा की मत। श्री कृष्ण बाबा की मत तो नहीं कहेंगे। तुम इस भारत को फिर से पवित्र बना रहे हो। भारत खण्ड ही मुख्य है क्योंकि यह बेहद के बाप का बर्थप्लेस है। सारी दुनिया के मनुष्य-मात्र का जो बाप है अर्थात् सर्व का सद्गति दाता है, उनका यह बर्थ प्लेस है। इसको सर्वोत्तम तीर्थ कहा जाता है, इस जैसा ऊंच ते ऊंच तीर्थ कोई है नहीं। परन्तु गीता में नाम बदल दिया है। यह भारतवासी खुद नहीं जानते कि यह भारत बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है। भल शिवरात्रि मनाते हैं परन्तु यह पता नहीं है कि शिव कौन है? कब आया? उनका नाम-रूप क्या है? तुम अब जान गये हो। अभी शिवलिंग के चित्र में सफेद स्टॉर दिखाते हैं, जो मनुष्य क्लीयर समझें कि परमात्मा का यह रूप है। परन्तु पूजा आदि कैसे की जाए - इसलिए बड़ा रूप बनाया है। है वास्तव में स्टॉर। बाबा जौहरी भी है। बाबा को मालूम है एक पत्थर भी होता है जिसको स्टॉर रूबी, स्टॉर फाइन माणिक, स्टॉर नीलम आदि कहते हैं। वह मोस्ट वैल्युबुल होता है। अखबार में भी पड़ा था कि सबसे बड़ा स्टॉर फलाने ख़ज़ाने से चोरी हो गया है। तो यह शिवलिंग लाल तो है, इनमें बीच में है सफेद स्टॉर, स्टॉर लाइट। समझाने में बहुत सहज होगा। स्टॉर सफेद होता है ना। आत्मा का भी सफेद ही साक्षात्कार होता है। चीज़ तो यही है। सिर्फ स्टॉर लगाना है। और कुछ लिखने की दरकार नहीं रहेगी। समझाना बहुत सहज होगा। नीचे यह लिखत तो है ही - आपका जन्म सिद्ध अधिकार स्वर्ग की राजाई क्योंकि हेविनली गॉड फादर है। तो स्टॉर लाइट डालना है। अब बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं। झट काम कर लेना चाहिए। ऐसे पत्थर भी होते हैं जिसमें स्टॉर बड़ा फर्स्टक्लास दिखाई दे। यहाँ उनकी बहुत वैल्यु है। फिर सतयुग में तो इन चीज़ों की वैल्यु होती नहीं। वहाँ यह जवाहरात तो पत्थर गिने जाते हैं, महलों में लगाते रहते हैं। यह दुनिया अब बदल रही है। तुम बच्चे जानते हो हम स्वर्ग का मालिक बनने लिए बाप से वर्सा ले रहे हैं, पढ़ रहे हैं। जितना जो पढ़ेगा उतना ऊंच पद पायेगा। पढ़ना और फिर पढ़ाना भी है, यानी आप समान बनाना है तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। बच्चे समझते हैं हम ब्राह्मण हैं, हमको सच्ची यात्रा सिखलानी है। हरेक को बाप का परिचय देना है। कोई भी मनुष्यमात्र बाप को नहीं जानते। बाप तो एक ही है। बाकी सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक आत्मा का पार्ट न मिले दूसरे से। आत्मा तो अविनाशी है, उनके रूप में कोई फ़र्क नहीं हो सकता। शरीरों में फ़र्क है और हर एक आत्मा के पार्ट का फ़र्क है। हर एक आत्मा जो स्टॉर लाइट है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इम्पेरिसिबुल पार्ट है। यह बातें भी तुम ही जानते हो, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। जैसे आत्मा है, गाते भी हैं चमकता है भ्रकुटी के बीच अजब सितारा। अजब है ना। कितना छोटा-सा स्टॉर, उसमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। यह बातें जब सुनेंगे तो बहुत आ़फरीन देंगे कि बरोबर इन्हों को तो पढ़ाने वाला वह परमात्मा है। तुमको तो सबको पढ़ाना है। भल क्रिश्चियन लोग अंग्रेजी जानने वाले हैं, तुम हिन्दी में बोलो, फिर इन्टरप्रेटर इंगलिश में ट्रांसलेट कर सुनाता जायेगा। उनके पास इन्टरप्रेटर (अनुवाद करने वाले) होते हैं। बाप का परिचय तो देना है। जैसे बाप दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, वैसे तुम बच्चों को भी बनना है। हर एक को रास्ता बताना है। औरों को भी सुखदाई बनाना - यह तुम बच्चों का फ़र्ज है। तुम खुद बाप से इतना वर्सा ले रहे हो तो फिर औरों को भी देना पड़े। यह है महादान। यह एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों के वर्शन्स अगर लाखों रूपये के होते तो फिर भारत इतना कंगाल क्यों होता?तो तुम बच्चों को समझाना है, बाप का परिचय देना है, वह भी परम आत्मा है। रूप भी है, बसन्त भी है। परन्तु अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा कैसे करें? जरूर शरीर चाहिए। तो बाप आकर तुम बच्चों को अर्थात् तुम्हारी आत्मा को रूप-बसन्त बनाते हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा करनी है। मुख द्वारा फिर यह दान देना चाहिए, जिन रत्नों का कोई मूल्य नहीं कर सकता। उस पर भी एक कहानी है। तो यह धारणा करनी चाहिए। कहते हैं ना शिवबाबा बम-बम भोलानाथ भर दे झोली। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरनी है। फिर वहाँ तो तुम्हारे महल हीरे जवाहरों के बन जायेंगे। तो यह हर एक को समझाना है। जहाँ बाप रहते हैं वह है निर्वाणधाम अथवा मुक्तिधाम। बुद्ध आदि के लिए कहते हैं पार निर्वाण गया। तो वह सभी का होम (घर) हुआ ना। वह बाप का भी होम है। बाप अभी आये हैं सबको ले जाने लिए। अथाह धन दे रहे हैं। तो बाप का परिचय तुम नहीं देंगे तो कौन देंगे? बाप कहते हैं यह सब देह के धर्म हैं कि मैं क्रिश्चियन हूँ, फलाना हूँ........ यह सब छोड़ अब मुझ बाप को याद करो। जिसको तुम भक्ति मार्ग में याद करते आये हो। गाया भी जाता है अन्त मती सो गति। ग्रंथ में भी है ना - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे........ अब कूकर, सूकर तो बन नहीं सकते। फिर भी जन्म तो मिलता है ना। यहाँ बाप कहते हैं - देही-अभिमानी बनो, मुझे याद करो। तुम अपने बाप को और घर को भूल गये हो। अब नाटक पूरा होता है फिर रिपीट होना है। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन सब अपना पार्ट रिपीट करते आये हैं। यह ड्रामा अनेक बार रिपीट होता आया है। उनका कोई आदि अन्त नहीं। ड्रामा का आदि, अन्त तो है। फिर-फिर रिपीट होता रहता है, आटोमेटिकली। यह बातें जिनकी समझी हुई हैं उनको औरों को समझाना पड़े कि आकर बाप को जानो। बाप को न जानने से मनुष्य आरफन बन गये हैं। अभी समझो, पोप कहते हैं कि लड़ाई न करो तो भी वह मानेंगे थोड़ेही। क्रिश्चियन लोगों का बड़ा है पोप। सबका गुरू है। फिर गुरू की मत पर क्यों नहीं चलते? यह कोई की भी बात मानने वाले नहीं हैं। बाप ही आकरके मत देते हैं तो सबको समझाना है। धीरे-धीरे सब धर्म वाले समझेंगे। पहले तुम सिर्फ सिन्धी थे, अभी सब आने लगे हैं। क्रिश्चियन्स को भी बाप का परिचय देना चाहिए जिससे वे भी बाप से वर्सा लेने के हकदार बनें। इसमें थकना नहीं चाहिए। यह प्रदर्शनी तो बहुत जोर से चलेगी। सर्विसएबुल बच्चों के ऊपर सर्विस की बड़ी जिम्मेवारी है। वही दिल पर चढ़ेंगे और फिर तख्त पर सवार होंगे। महादानी बनना है और फिर याद करना है बाप को। वह इन्श्योर करते हैं दूसरे जन्म लिए। ईश्वर अर्थ वा कृष्ण अर्थ दान करते हैं। वास्तव में कृष्ण तो है ही साहूकार, उनका तो दान लिया हुआ है, बाप से वर्सा लिया हुआ है। स्वर्ग का प्रिन्स बना तो स्वर्ग स्थापन करने वाले से वर्सा लिया ना। परन्तु कैसे लिया? यह किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। बाप ने ही कृष्ण को भी वर्सा दिया। वर्से को ही दान भी कहा जाता है। कन्या दान करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करने आया हूँ, इसके लिए प्रबन्ध रचना पड़े। भल खर्चा हो, हर्जा नहीं। हमारे पास बच्चों ने साक्षात्कार तो किया है। इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि सब बड़े-बड़े अन्त में आते हैं। जरूर सुनेंगे तब तो पद पायेंगे ना। बच्चों को तो खुश होना चाहिए। क्रिश्चियन का भारत से कनेक्शन बहुत है। राजाई भी ली फिर रिटर्न भी कर रहे हैं। उन्हों को तो भारत की बहुत सम्भाल करनी है। अगर भारत पर कोई चढ़ाई कर ले तो सब पैसे खत्म हो जाएं। उन्हों के पैसे तो बहुत दिये हुए हैं। सारी रकम ही खलास हो जाए इसलिए हर तरह से कोशिश करेंगे भारत को बचाने की। इन्हों को मदद तो चाहिए जरूर और रिटर्न भी चाहिए। उनको तो सम्भाल करनी ही है। बाबा जानते हैं भारत गरीब है तो वहाँ से भी मदद कराते हैं और खुद भी आकर मदद दे रहे हैं। अभी वह मदद देते हैं और भविष्य के लिए फिर बाप मदद देते हैं। तो बहुत अच्छा एक मण्डप बनाकर वहाँ सब क्रिश्चियन को निमंत्रण देना है। कितने अच्छे-अच्छे चित्र हैं, इनमें सारी नॉलेज है। दिन-प्रतिदिन बुद्धि का ताला खुलता जायेगा।तुम जानते हो छोटी आत्मा में कितना भारी पार्ट भरा हुआ है! साइंसदान भी इस बात पर बड़ा वन्डर खायेंगे। साइंसदान भी समझते हैं कि कोई हमको प्रेरता है। विनाश तो होना है जरूर। यह ड्रामा में नूँध है। शंकर की कोई बात नहीं, यह तो निमित्त करके नाम रखा है। नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है। यह बातें सुनने से वह बड़े खुश होंगे, तुमको बहुत थैंक्स देंगे। बहुत फॉरेनर्स आयेंगे। घर बैठे आते हैं तो दान जरूर देना है। अपने लिए तो इस समय सब आरफन, कंगाल हैं। सारी दुनिया छोरे और छोरियां हैं क्योंकि फादर-मदर का ही परिचय नहीं है। तो तुम विश्व के मालिक बनते हो। तो बच्चों को सर्विस का भी नशा होना चाहिए। तार भी देंगे कि आकर समझो, बाप आये हुए हैं सब आत्माओं को ले जाने। आत्मा खुश होती है - बरोबर अब नाटक पूरा हुआ, अब बाबा आये हैं ले जाने। फिर हम सुखधाम में आयेंगे। आधा-कल्प पुजारी बन बाप को याद किया है। अब फिर पूज्य बनना है। तो खुशी में खग्गियां मारनी चाहिए। खुशी न होने से फिर रोते रहते। जो रोते हैं सो खोते हैं। हाँ, ऐसे सुख देने वाले बाप की याद में प्रेम के आंसू आये तो वह माला के दाने हैं। बाप की श्रीमत से श्रेष्ठ बनेंगे। यह बाप भी कहते हैं कदम-कदम पर शिवबाबा की मत पर चलना है। श्रीमत ही श्रेष्ठ है। बड़ी ऊंची पढ़ाई है। तीर्थों पर मनुष्य जाते हैं, बहुत कठिनाईयाँ सामने आती हैं। आगे तो पैदल जाते थे, अभी गवर्मेन्ट ने सहज कर दिया है। तो बाप समझाते हैं कदम-कदम पर श्रीमत पर चलना है। सावधानी से चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। कदम-कदम पर राय लेनी है। चिट्ठी लिखो शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा अथवा ब्रह्माकुमारियां, तो शिवबाबा याद पड़ेगा। परन्तु बहुत बच्चे लिखने में भूल जाते हैं। एक दिन सबकी बुद्धि का ताला जरूर खुलने का है। बच्चों को सर्विस का बहुत शौक चाहिए। सर्विस बहुत करनी है। यह भी ड्रामा में नूँध है। खर्चा आपेही आयेगा। अनायास ही सब कुछ होता जायेगा। बाप कहते हैं तुमको 3 पैर पृथ्वी का मिलना भी मुश्किल है। फिर भी तुमने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया ही है।अच्छा, समझाते तो बहुत हैं, धारणा भी हो। जास्ती भारी माल खाने से फिर हज़म नहीं होता है। प्रदर्शनी में भल आते तो बहुत हैं परन्तु एक को भी यह निश्चय नहीं बैठता है कि इन्हों को पढ़ाने वाला अथवा राजयोग सिखलाने वाला बाप है। पहले-पहले यह निश्चय बिठाना है। तुम समझा सकते हो यह है प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां। रचयिता तो एक ही परमपिता परमात्मा है। बाप से ही वर्सा मिलना है। बाप का जब तक बच्चा न बनें तो वर्सा मिल न सके। भक्तों को फल देने वाला है बाप। इतने सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को भी क्रियेटर कहते हैं। अभी रचना होती है नई दुनिया की। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। अच्छा! मीठे-मीठे लकी सितारों प्रति ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप के दिलतख्त पर बैठने के लिए सर्विस की जवाबदारी लेनी है। महादानी जरूर बनना है। ज्ञान दान करने में कुछ खर्चा हो तो हर्जा नहीं। 2) ऊंची चढ़ाई है इसलिए बहुत सावधानी से चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेते रहना है। वरदान:- भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है। स्लोगन:- राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा हैं। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • Jesus Christ - Revelations on His Life Story and how does he establish his Christian Religion

    Read the in brief biography of Jesus Christ as revealed in Murlis, spoken by the incorporeal God father 'Shiv' through medium of his chariot Prajapita Brahma, after whom the name Brahma Kumaris was given. All below are as it is 'revelations' given from Murli. The truth of how religions of world are established by their respective fathers. Here it is revealed how the Soul of Christ enters the body of Jesus (an ordinary person) and established his religion 2000 years ago. Anything about Christ will be loved by his beloved Christians. So with love for our Christian brothers, we write to you this: Essence : ​ Time: Christ comes to play his part of establishment of Christian religion in the copper age of world cycle after exactly 3000 years after creation of the heaven and 500 years after the end of silver age. ​ Life: The Soul of Christ enters the body of Jesus (when Jesus would be around an age of maturity between 25 and 30) and starts preaching the knowledge through his mouth. In truth, Christ dis not take a birth from the womb of a mother, it was Jesus who took a birth. There are 2 different souls and hence the name is given Jesus Christ signifying both Jesus and the Christ (founder of Christianity) ​ Religion: The Soul of Christ would use the body of Jesus to preach the knowledge about God Father that he has. Soul carries the information. Christ keeps entering the body of Jesus regularly. In about 5 to 7 years only, the whole knowledge was told. It was Jesus who was Crucified and not Christ. No pure soul can get sorrow or pain. Christ was a pure and new soul who just came down from the father (Supreme Soul) 1. As explained on the World Drama Cycle, there was only one religion in world for the first half of the cycle (i.e. 2500 years). There was heaven on earth 3000 yearsvbefore Christ. Cycle of happiness and sorrow exist. Each time is referred as Heaven and hell. When all the souls of world were in their pure stage, it was heaven. When they fell into vices (ate the apple of lust), the copper age begins. Christ comes 500 years after the beginning of Copper Age. It is the copper age only, when the heads of religions (Ibrahim, Buddha, Christ, etc) comes one by one and establish their religions around the world. When their religion is established, the souls which belong to that religion would come down and take a birth in a family where that particular religion is followed. So the head of Christians is Christ and all rest souls which belong to Christian religion would follow the Soul of Christ and come down after him. Here come down means, coming down to this corporeal world from our home, the incorporeal world. 2. "Christ does not take a birth like an ordinary child. In fact, Christ is the name of head of Christian religion and it is not Jesus who established the religion. It is the soul of Jesus, who takes a birth in his mother's womb. When Jesus is around the age of maturity, the Soul of Christ comes and enters his body and starts preaching the knowledge." - Sakar Murli ​ 3. "The soul of Christ is pure when it first comes, hence he cannot suffer pain (crucifixion). It was Jesus's soul who suffered pain during the crucifixion. Soul of Christ had left the body of Jesus after the preaching of knowledge is done." - Sakar Murli ​ 4. "It takes 100 years to establish the Christian religion, so as all religions are established within 100 years of coming of the founder. In those 100 years, knowledge is given and followers of their path are made." - Sakar Murli ​ 5. "Fathers of religions are divine souls who comes on their own time. They are not exactly sent by God. It is automatically that souls comes to play their part in world drama. It is the incorporeal world where souls lives before they enter this corporeal world. In that world, there is no sounds or activity. When the world becomes vicious and starts falling down (spiritually), these fathers of religions comes to establish peace and harmony. " - Sakar Murli Comments: In the memory of soul of Christ, it is present that God is the light. He keeps thus pointing towards him as the creator of heaven. He knew that heaven was created and those who followed the advice of God were uplifted and those who disobeyed, did not achieve that paradise. There was only one religion in the golden and silver ages. Souls were conscious of their true identity, thus it was a perfect world where nature was also at her highest stage. No trace of sorrow, it is a perfect world. Christ is beloved of God Father and thus his name keeps coming in the Murli many times, while Baba (father) tells about how the three major religions of world are established. * Useful links * Buddha -Biography & Revelations: https://www.brahma-kumaris.com/single-post/Gautam-Buddha-and-Buddhism Revelations from Murli: https://www.brahma-kumaris.com/revelations About Us (Brahma Kumaris): https://www.brahma-kumaris.com/about-us .

  • Surrender Letter to Shiv Baba (Become a BK)

    This is the letter to surrender in the Rudra Gyan Yagya, a letter to Shiv Baba that every BK (Brahma Kumari and Kumar) must print, sign and keep it with them. They may also sign a copy of this letter and post to us at any of the 8800 centres around the world OR send the PDF scanned copy via email on shivklight@gmail.com NOTE: You can download the PDF version of this letter to print & sign. Download PDF. Find all our articles listed on page - General Articles. The Surrender Letter On Godly permissions, we present you this unique surrender letter upon following and submitting which, you shall declare yourself, a complete follower of Godly advice. This is surrender letter for all Brahma Kumari and Kumar. Keep this always saved. This will remind you the promise you made to the supreme father – Shiv baba. To: Shiv Baba From: (your name): I am writing today, to you. You are the most beloved personality and everyone knows your name. They call you God, Ishwar and Allah. Yet no one knows you, your identity and the task which you do for the world. O supreme father, I have now recognized you. I am your lost and now found child. I am a soul. You are the supreme soul. I also have now known your identity. You are an ocean of peace, purity, love and knowledge. I received all of these when I remembered you. You are a point of light and you are beyond this World cycle. You have come to purify all the souls and take us back to our supreme home of peace and light, from where we came. Upon your directions, I have taken a vow of complete purity for rest of my life. You have told us that this is our last birth in world cycle. We have now recognised our true spiritual identity. Dearest Baba, I promise that I will remain pure in my thoughts, words and action. I never will give or take sorrow from anyone. Like you, I will become a giver of happiness and knowledge. I declare also myself as your helping hand in your elevated task of World transformation. I will always stay in spiritual service through either with my mind, my mouth and my hands. You have become the power of my hands, the word of my mouth and the elevated thoughts of my mind. O baba, you give us the fortune of heaven. You are the heavenly God Father whom we all prayed. You have now come to make us equal to yourself. You are most kind. No one is like you. You never say a word and you explain everything. Make me as you are. I am all yours. I give all my time, energy and attention in your Gyan Murli, in your world service and in you O creator of world, O remover of all sorrow. At last, I declare that from today, from this second, I surrender myself to you. Whatever you have said in your Murli is locked in my mind. Your advice is my priority. Your knowledge is my food. And benefit of the entire world, benefit to my all brothers and sisters is my goal. I am now a world servant and also a master of all your wealth. Yours now and forever, Signature: (your name) ✱ Guidelines (must read) ✱ Following are guidelines before you submit this form to your nearest BK centre or to Mount Abu Madhuban centre. You must read the below points. 1. By submitting above form, you have taken a vow to God himself. Hence you have to be very careful. You accept that the teacher is Shiv baba and no one else. Him as the father, mother, friend, and the guide. 2. God is incorporeal and does not possess a body. Hence the teachings are taught through medium of Brahma (prajapita) whom we remember as the first human (Adam). Through brahma, God (shiv baba) has adopted us for giving inheritance. You declare: 'I have understood this clearly.' 3. You declare: 'I understand that I will listen or read the Gyan Murli regularly as I took a vow to surrender. I will try my best to transform myself according to the elevated direction (shrimat) given in Murli.' 4. You declare: 'Murli is the source of all understanding. Hence in case I do not know the answer to an asked question, I will direct them to listen to Murli instead of giving an inaccurate answer.' 5. You declare: 'I promise to Shiv baba that I will become a good child, a sincere student and an obedient follower.' Once again, I confirm that this surrender letter is completely followed by me and I will try m best to follow each and every guidelines given in this letter. Time left is very less and hence I would have to be quick in my Purusharth (spiritual effort making) to become pure, powerful and virtuous. NOTE: Please send this letter to the nearest BK centre to your residence or to our main centre (madhuban, mount abu). By sending this letter, you are accepting all the above BK guidelines that you will follow in your life. Visit our Main Website: www.brahma-kumaris.com OR www.bkofficial.com Your Full Name: Number of Years since in Gyaan: Residence and nearest centre: Date of Letter submitted: Your Signature: ✱ Also read this - God's Letter (Shiv baba's message) ---- In the God Fatherly World Servcie --- by Team of Shiv Baba Service ---- Advance Party ---- . #brahmakumari #brahmakumaris #english

  • 2 July 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English 02/07/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, become right hands of the Father, be interested in doing service and pay full attention to shrimat. If anything about service appears in the newspapers, read that and become engaged in service. Question: When will you children be able to glorify the Father's name? Answer: When your behaviour becomes very royal and mature. The behaviour of you children should be like that of a peahen. Jewels, not stones, should always emerge from your lips. Those who let stones emerge defame the name and their status is then destroyed. After belonging to the Father, pay full attention to not committing any sins. Song: Leave your throne of the sky and come down to earth. Om ShantiYou children heard the song. You remember: O Supreme Father, Supreme Soul, change your incorporeal form and come into a corporeal form. What form would He change into? It wouldn’t be said: Come into the form of a fish or crocodile; no. This is the world of sinful souls. People call out to Him to come and purify them. If He is omnipresent, then whom are they calling out to? This song is also played on the radio, but no one understands its meaning. You daughters don't read the newspapers etc. Although you are educated, you are not interested in reading newspapers. Then, there are the brothers. Among them, too, some are interested in doing service, and so they think about how to find ways of serving through the newspapers. There are many who are the decoration of the Brahmin clan. However, in that too, only a handful out of multimillions emerge who would see something in the newspapers and thereby instantly become engaged in service. Baba has made the mothers right hands. Hardly any brothers are ready to do that. Some rare ones pay attention to shrimat accurately. There is this one point of being degraded and elevated. Degraded ones call out: O God, come! Come and make us elevated! All are definitely degraded. It is said: As are the king and queen, so the subjects. ‘King and queen’ means the Government and ‘subjects’ means the people. It has been explained to you children that when Bharat was elevated, it was heaven. If there were degraded beings in heaven too, how could that be called heaven? It would definitely be the Father that everyone remembers who establishes heaven. Only those who are degraded call out. Those who are elevated never call out. Bharat was very elevated, it was heaven and it is now hell. So, there would definitely be degraded beings in hell. Show us proof of elevated beings. You can show their picture: Truly, in the golden age, as are the king and queen so the subjects. Look how elevated this Lakshmi and Narayan were! The very name is heaven. In the copper age, they built temples to such elevated kings and queens and worshipped them. So, surely, they themselves must have been degraded. They say of themselves that they are degraded, lustful, angry and sinful whereas to the deities they say: You are full of all virtues. In Bharat, those who are degraded sing praise of those who are elevated. Degraded kings build temples to the elevated deities. They continue to sing praise of them, bow down to them, salute them and worship them. Baba has explained that the souls who come down from up above to establish a religion would definitely be satopradhan and elevated. Although it is the kingdom of Maya, those who come here for the first time are definitely satopradhan, and this is why they are praised. They then go through the stages of sato, rajo and tamo. The deities were elevated. Everyone also has to go through the stages of sato, rajo and tamo. They have to become degraded. It was printed in the newspapers that there are many organisations who are trying to put an end to corruption. People have been building temples to the elevated deities and worshipping them. They themselves were worthy of worship and elevated and then they themselves became degraded worshippers. They then begin to sit and worship the worthy-of-worship deities. You can now write that the king and queen and the subjects of the golden age were elevated and that it was the viceless world. Later, the degrees continue to decrease. Bharat has to come down. This play is based on Bharat. For half the cycle Bharat was elevated. It doesn't stay like that constantly. From 16 degrees, it has to come down to 14 degrees. Gradually, the degrees decrease and they become tamopradhan. The Father says: When there is extreme degradation, I come. Impure ones are called degraded and pure ones are called elevated. This is something to be understood very clearly. It is said: Shrimad Bhagawad. What does shrimat do? It makes you into elevated kings of kings. It is said: Conquer this Maya and you will become princes and princesses. Just look how, 3000 years before Christ Bharat was 16 celestial degrees elevated. Bharat was the Golden Sparrow. The king, queen and subjects were ever happy in heaven. Then, when the kingdom of Ravan began, they started to become degraded. They themselves say that their officers are corrupt. There are no kings and queens who would say that there is corruption among the people. Here, it is the rule of people over people. All are corrupt. First of all, the Government has to become elevated. Who would make it that? You poor daughters are becoming number one elevated ones. The Father says: I come and make everyone elevated. According to the drama, the whole play is predestined: the same Gita and pictures etc. will emerge again. In Bengal, they have a temple to Kali. They sacrifice their lives calling out to Kali Ma. Where did goddesses such as Kali Ma and Chandika (cremator goddess) etc. come from? Look at their names! Those who have left Baba would become cremators for the subjects. However, those who stay here and perform sinful actions would become cremators for the royal family. At the end, they receive a crown and a royal costume because they are adopted by the Father. This is why goddess Chandika is also worshipped. Knowledge is very deep, but someone should at least imbibe it! For instance, some barristers earn a hundred thousand, whereas others have to wear a torn coat. This study is unlimited. Whatever the Father has explained to you in detail, condense it into a five-minute lecture and have it printed in the newspapers. You should also ask them who established the Hindu religion. They won't be able to tell you. They don't know anything. The behaviour of you Shaktis has to be very royal and mature, like that of a peahen. Let jewels, not stones, continue to emerge from your lips. Those people throw stones. You must never throw stones. Don't defame the name. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.Night class:1. Here, there are good and bad human beings. Such words will not emerge in the golden age. The words, ‘bad’ or ‘sinful souls’, will not emerge there. That is the viceless world. You children know that you were the masters of the world. Bharat, which was the land of kings, the deities, has now become old. People don't know that this is the confluence age. The anchor here has now been raised. We are now going across from this world. There is the Boatman who is taking our boat across. It is in the intellects of you children that you have stumbled around a great deal. Devotees don't know that they are stumbling. They go so far away. You children simply have to remember the Father. It isn't that you become tired of remembering Baba. However, Maya does create obstacles. Souls are lovers of the Supreme Soul. No one knows that the Supreme Soul is the Beloved. Among the children, too, some are deeply in love and they remember the Beloved. You have to make effort to stay constantly in remembrance. The word ‘simaran’(remembrance) belongs to the path of devotion. We are simply remembering Baba. The word for the family path is ‘yaad’ (remembrance). It is a very sweet word. Some say that they forget. Oh really! How can a child say that he forgets his father? Remembrance is very good. You should talk to yourself. You are sitting personally in front of the Mother and Father. You should also be happy. You used to sing to Him: You are the Mother and Father. We are truly claiming our inheritance. Only in remembrance is there effort. You earn a lot of income. You have a huge attainment. You simply have to remain silent and remember Baba. Achcha.2. No one, apart from you Brahmin children, knows when it is the confluence age. There is a lot of praise of the confluence age of this cycle. The Father comes and teaches you Raja Yoga. There would definitely be the confluence age that comes before the golden age. They too are human beings and in that too, some are degraded whereas others are elevated. People sing praise in front of them (the deities): you are most elevated and we are degraded. They themselves say of themselves: I am like this and this. Now, apart from you Brahmins, no one knows about this most auspicious confluence age. How can you advertise it so that people come to know about it? God Himself comes at the confluence age and teaches you Raja Yoga. You know that you are studying Raja Yoga. What method should we create so that people come to know about it? However, it will happen slowly. There is still time. A lot of time has gone by and only a little remains. We say that people should make effort quickly. Otherwise, knowledge is received in a second and you can receive liberation-in-life in a second at the same time. However, the sins of half the cycle that are on your heads will not be cut away in a second. That takes time. People think: There is still time, so why should we go to the Brahma Kumaris? If it is not in their fortune, they take the wrong meaning from your literature. You understand that this is the age to become the most elevated human beings. It is praised as being like a diamond and then its value is reduced from the golden age to the silver age. This confluence age is the diamond age. Satyug is the golden age. You know that this confluence age is even better than heaven because your birth is like a diamond at this time. There is praise of the land of immortality and then it continues to decrease. So, you can write that the most auspicious confluence age is the diamond age, satyug is the golden age and treta yug is the silver age. You can explain that it is only at the confluence age that we change from human beings into deities. When they make a ring of the eight jewels, they set a diamond in the centre. The show is of the confluence. The confluence age is like a diamond. The value of the confluence age is like that of a diamond. They teach yoga etc and that is called spiritual yoga. However, only the Father is spiritual. It is only at the confluence age that you meet the spiritual Father and receive spiritual knowledge. How can people who have arrogance of the body accept everything so quickly? These things are explained to the poor. So, you should also write: The confluence age is like a diamond and its duration is this long. Satyug is the golden age and its duration is this long. They draw a swastika on the scriptures. So, if you children remembered this much, you would experience so much happiness. Students experience a lot of happiness. Student life is the best life. That is a source of income. This is the study place for changing from humans into deities. Deities were the masters of the world. Only you know that. So, you should experience a lot of happiness. This is why it is remembered: Ask the gopes and gopis of Gopi Vallabh about supersensuous joy. Because the Teacher teaches you till the end, you should remember Him till the end. God is teaching you and He will then also take you back home with Him. People call out: O Liberator, Guide, liberate us from sorrow! In the golden age there is no sorrow. People say: There should be peace in the world. Ask them: When was there peace previously? What age was that? No one knows. The kingdom of Rama is the golden age and the kingdom of Ravan is the iron age. You know this. You children should relate this experience. That is all. What else can I tell you about the things in my heart? I found the unlimited Father who gives the unlimited sovereignty. What other experience should I tell you about? There is nothing else at all. There cannot be any happiness other than this. You should never sulk with anyone and then stay at home. That is like sulking with your fortune. What would you learn if you sulk with your study? The Father has to teach you through Brahma. So, never sulk with one another. That is Maya. There are to be obstacles in the sacrificial fire from the devils.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good night from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Become elevated by following shrimat and do the service of making others elevated. Don't behave in any way that would defame the name of the clan. Let only jewels, not stones, constantly emerge from your lips. 2. While listening to the deep unlimited study in detail, merge the essence of that in yourself and serve others. Pay full attention to shrimat. Blessing: May you be an intense effort-maker and, according to the speed of time, become filled with all attainments and a conqueror of Maya. Accumulate all the attainments you have received from BapDada and remain full with nothing lacking. When something is lacking in your being full, Maya will shake you. The easy way to become a conqueror of Maya is to remain constantly full of attainments. Do not remain deprived of even one attainment: let there be all attainments. According to the speed of time, anything can happen at any time. Therefore, be an intense effort-maker and become full from now. If not now, then never. Slogan: When you have the powers of truth and fearlessness with you, nothing can shake you. #Murli #english #brahmakumari #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 15 July 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - BapDada - Madhuban - 15-07-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 21-12-83 मधुबन तुरत दान महापुण्य का रहस्य आज विधाता, वरदाता बाप अपने चारों ओर के अति स्नेही सेवाधारी बच्चों को देख रहे थे। चारों ओर के समर्थ बच्चे अपने स्नेह की विशेषता द्वारा दूर होते भी समीप हैं। स्नेह के सम्बन्ध द्वारा, बुद्धि की स्पष्टता और स्वच्छता द्वारा समीप का, सन्मुख का अनुभव कर रहे हैं। तीसरे नेत्र अर्थात् दिव्यता के द्वारा उन्हों के नयन बुद्धि रूपी टी.वी. में दूर के दृश्य स्पष्ट अनुभव कर रहे हैं। जैसे इस विनाशी दुनिया के विनाशी साधन टी.वी. में विशेष प्रोग्राम्स के समय सब स्विच आन कर देते हैं। ऐसे बच्चे भी विशेष समय पर स्मृति का स्विच आन कर बैठे हैं। सभी दूरदर्शन द्वारा दूर के दृष्य को समीप अनुभव करने वाले बच्चों को बाप-दादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक ही समय पर डबल सभा को देख रहे हैं।आज विशेष वतन में ब्रह्मा बाप बच्चों को याद कर रहे थे क्योंकि सभी बच्चे जब से जो ब्राह्मण जीवन में चल रहे हैं उन ब्राह्मणों की, समय प्रमाण मंजिल अर्थात् सम्पूर्णता की स्थिति तक किस गति से चले रहे हैं, वह रिजल्ट देख रहे थे। चल तो सब रहे हैं लेकिन गति (स्पीड) क्या है? तो क्या देखा! गति में सदैव एक रफ्तार तीव्र हो अर्थात् सदा तीव्रगति हो, ऐसे कोई में भी कोई देखे। ब्रह्मा बाप ने गति को देख बच्चों की तरफ से प्रश्न किया कि नॉलेजफुल होते अर्थात् तीनों कालों को जानते हुए, पुरुषार्थ और परिणाम को जानते हुए, विधि और सिद्धि को जानते हुए, फिर भी सदाकाल की तीव्रगति क्यों नहीं बना सकते! क्या उत्तर दिया होगा? कारण को भी जानते हो, निवारण की विधि को भी जानते हो फिर भी कारण को निवारण में बदल नहीं सकते!बाप ने मुस्कराते हुए ब्रह्मा बाप से बोला कि बहुत बच्चों की एक आदत बहुत पुरानी और पक्की है - वह कौन सी? क्या करते! बाप प्रत्यक्ष फल अर्थात् ताज़ा फल खाने को देते हैं लेकिन आदत से मजबूर उस ताज़े फल को भी सूखा बना करके स्वीकार करते हैं। कर लेंगे, हो जायेंगे, होना तो जरूर है, बनना तो पहला नम्बर ही है, आना तो माला में ही है - ऐसे सोचते-सोचते प्लैन बनाते-बनाते प्रत्यक्ष फल को भविष्य का फल बना देते हैं। करेंगे, माना भविष्य फल। सोचा, किया और प्रत्यक्ष फल खाया। चाहे स्व के प्रति, चाहे सेवा के प्रति प्रत्यक्ष फल वा सेवा का ताज़ा मेवा कम खाते हैं। शक्ति किससे आती है - ताजे फल से वा सूखे से? कईयों की आदत होती है - खा लेंगे - ऐसे करते ताजे को सूखा फल बना देते हैं। ऐसे ही यहाँ भी कहते यह होगा तो फिर करेंगे, यह ज्यादा सोचते हैं। सोचा, डायरेक्शन मिला और किया। यह न करने से डायरेक्शन को भी ताजे से सूखा बना देते हैं। फिर सोचते हैं कि किया तो डायरेक्शन प्रमाण लेकिन रिजल्ट इतनी नहीं निकली। क्यों? समय पड़ने से वेला के प्रमाण रेखा बदल जाती है। कोई भी भाग्य की रेखा वेला के प्रमाण ही सुनाते वा बनाते हैं। इस कारण वेला बदलने से वायुमण्डल, वृत्ति, वायब्रेशन सब बदल जाता है इसलिए गाया हुआ है ''तुरत दान महापुण्य''। डायरेक्शन मिला और उसी वेला में उसी उमंग से किया। ऐसी सेवा का ताजा मेवा मिलता है, जिसको स्वीकार करने अर्थात् प्राप्त करने से शक्तिशाली आत्मा बन स्वत: ही तीव्रगति में चलते रहते। सभी फल खाते हो लेकिन कौन सा फल खाते हो, यह चेक करो।ब्रह्मा बाप सभी बच्चों को ताज़े फल द्वारा शक्तिशाली आत्मा बनाए सदा तीव्रगति से चलने का संकल्प देते हैं। सदा ब्रह्मा बाप के इस संकल्प को स्मृति में रखते हुए हर समय हर कर्म का श्रेष्ठ और ताजा फल खाते रहो। तो कभी भी किसी भी प्रकार की कमजोरी वा व्याधि आ नहीं सकती है। ब्रह्मा बाप मुस्करा रहे थे। जैसे वर्तमान समय के विनाशी डाक्टर्स भी क्या राय देते हैं! सब ताजा खाओ। जला करके, भून करके नहीं खाओ। रूप बदलकर नहीं खाओ। ऐसे कहते हैं ना। तो ब्रह्मा बाप भी बच्चों को कह रहे थे जो भी श्रीमत समय प्रमाण जिस रूप से मिलती है, उसी समय पर उस रूप से प्रैक्टिकल में लाओ तो सदा ही ब्रह्मा बाप समान तुरत दानी महापुण्य आत्मा बन नम्बरवन में आ जायेंगे। ब्रहृमा बाप और जगत अम्बा फर्स्ट राज्य अधिकारी, दोनों आत्माओं की विशेषता क्या देखी? सोचा और किया। यह नहीं सोचा कि यह करके पीछे यह करेंगे। यही विशेषता थी। तो फालो मदर फादर करने वाले महापुण्य आत्मा, पुण्य का श्रेष्ठ फल खा रहे हैं और सदा शक्तिशाली हैं। स्वप्न में भी संकल्प मात्र भी कमजोरी नहीं। ऐसे सदा तीव्रगति से चल रहे हैं लेकिन कोई में भी कोई।ब्रह्मा बाप को साकार सृष्टि के रचयिता होने के कारण, साकार रूप में पालना का पार्ट बाजाने के कारण, साकार रूप में पार्ट बजाने वाले बच्चों से विशेष स्नेह हैं। जिससे विशेष स्नेह होता है उसकी कमजोरी सो अपनी कमजोरी लगती है। ब्रह्मा बाप को बच्चों की इस कमजोरी का कारण देख स्नेह आता है कि अभी सदा के शक्तिशाली, सदा के तीव्र पुरुषार्थी सदा उड़ती कला वाले बन जाएं। बार-बार की मेहनत से छूट जाएं।सुना ब्रह्मा बाप की बातें। ब्रह्मा बाप के नयनों में बच्चे ही समाये हुए हैं। ब्रह्मा की विशेष भाषा का मालूम है, क्या बोलते हैं? बार-बार यही कहते हैं ''मेरे बच्चे, मेरे बच्चे।'' बाप मुस्कराते हैं। हैं भी ब्रह्मा के ही बच्चे, इसलिए अपने सरनेम में भी ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहते हो ना। शिवकुमार-शिवकुमारी तो नहीं कहते हो। साथ भी ब्रह्मा को ही चलना है। भिन्न-भिन्न नाम रूप से ज्यादा समय साथ तो ब्रह्मा बाप का ही रहता है ना। ब्रह्मा मुख वंशावली हो। बाप तो साथ है ही। फिर भी साकार में ब्रह्मा का ही पार्ट है। अच्छा और रूह-रूहान फिर सुनायेंगे।इस ग्रुप में तीन तरफ की विशेष नदियाँ आई हैं। डबल विदेशी तो अभी गुप्त गंगा है क्योंकि टर्न में नहीं हैं। अभी देहली, कर्नाटक और महाराष्ट्र इन तीन नदियों का मिलन विशेष है। बाकी साथ-साथ चूंगे में हैं। जो टर्न में आये हैं वह तो अपना हक लेंगे ही लेकिन डबल विदेशी भी भाग-भाग करके अपना हक पहले लेने पहुँच गये हैं। तो वह भी प्यारे होंगे ना। डबल विदेशियों को भी चूंगे में माल मिल रहा है। फिर अपने टर्न में मिलेगा। हर तरफ के बच्चे बापदादा को प्यारे हैं क्योंकि हर तरफ की अपनी-अपनी विशेषता है। देहली है सेवा का बीज स्थान और कर्नाटक तथा महाराष्ट्र है वृक्ष का विस्तार। जैसे बीज नीचे होता है और वृक्ष का विस्तार ज्यादा होता है तो देहली बीज रूप बनी। अन्त में फिर बीजरूप धरनी पर ही आवाज होना है। लेकिन अभी कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात तीनों का विशेष विस्तार है। विस्तार वृक्ष की शोभा होती है। कर्नाटक और महाराष्ट्र सेवा के विस्तार से ब्राह्मण वृक्ष की शोभा है। वृक्ष सज रहा है ना। प्रश्न भी यह दो ही पूछते हैं ना। एक तो खर्चे की बात पूछते, दूसरा ब्राह्मणों की संख्या का पूछते हैं। तो महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही संख्या के हिसाब से ब्राह्मण परिवार का श्रृंगार है। बीज की विशेषता अपनी है। बीज नहीं होता तो वृक्ष भी नहीं निकलता। लेकिन बीज अभी थोड़ा गुप्त है। वृक्ष का विस्तार ज्यादा है। अगर देहली में भी आप सब नहीं जाते तो सेवा का फाउन्डेशन नहीं होता। पहला निमंत्रण सेवा का लिया या मिला। लेकिन देहली से ही शुरू हुआ इसलिए सेवा का स्थान भी वो ही बना और राज्य का स्थान भी वो ही बनेगा। जहाँ पहले ब्राह्मणों के पांव पड़े तीर्थ स्थान भी वही बना और राज्य स्थान भी वही बनेगा। विदेश की भी बहुत महिमा है। विदेश से भी विशेष प्रत्यक्षता के नगाड़े देश तक आयेंगे। विदेश नहीं होता तो देश में प्रत्यक्षता कैसे होती इसलिए विदेश का भी महत्व है। विदेश की आवाज को सुन भारत वाले जगेंगे। प्रत्यक्षता का आवाज निकलने का स्थान तो विदेश ही हुआ ना। तो यह है विदेश का महत्व। विदेश में रहने वाले भी हैं तो देश के ही, लेकिन निमित्त मात्र विदेश में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को उमंग-उत्साह में देख देश वालों में भी उमंग-उत्साह और ज्यादा होता है। यह भी उन्हों की गुप्त सेवा का पार्ट है। तो सभी की विशेषता अपनी हुई ना। अच्छा-सदा तुरत दान महापुण्य आत्माएं, सोचने और करने में सदा तीव्र पुरुषार्थी, हर संकल्प, हर सेकण्ड सेवा का मेवा खाने वाले, ऐसे सदा शक्तिशाली फालो फादर और फालो मदर करने वाले, सदा ब्रह्मा बाप के संकल्प को साकार में लाने वाले ऐसे देश-विदेश चारों ओर के समर्थ बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।सेवाधारियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:जो सेवा करता वह मेवा खाता। मेवा खाने वाले सदा तन्दरूस्त रहते हैं। सूखा मेवा खाने वाले नहीं, ताज़ा मेवा खाने वाले। सेवाधारी सो भाग्य अधिकारी। कितना बड़ा भाग्य है। यादगार चित्रों के पास जाकर भक्त लोग सेवा करते हैं। उस सेवा को महापुण्य समझते हैं। और आप कहाँ सेवा करते हो! चैतन्य महातीर्थ पर। वे सिर्फ तीर्थों पर जाकर चक्कर लगाकर आते तो भी महान् आत्मा गाये जाते। आप तो महान् तीर्थ पर सेवा कर महान् भाग्यशाली बन गये। सेवा में तत्पर रहने वाले के पास माया आ नहीं सकती। सेवाधारी माना मन से भी सेवाधारी, तन से भी सेवा में बिजी रहने वाले। तन के साथ मन भी बिजी रहे तो माया नहीं आयेगी। तन से स्थूल सेवा करो और मन से वातावरण, वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करो। डबल सेवा करो, सिंगल नहीं। जो डबल सेवाधारी होगा उसको प्राप्ति भी इतनी होगी। मन का भी लाभ, तन का भी लाभ, धन तो अकीचार (अथाह) मिलना ही है। इस समय भी सच्चे सेवाधारी कभी भूखे नहीं रह सकते। दो रोटी जरूर मिलेंगी। तो सभी ने सेवा की लाटरी में अपना नम्बर ले लिया। जहाँ भी जाओ, जब भी जाओ यह खुशी सदा साथ रहे क्योंकि बाप तो सदा साथ है। खुशी में नाचते-नाचते सेवा का पार्ट बजाते चलो। अच्छा!प्रश्न:- संगमयुग की कौन-सी विशेषता है जो सारे कल्प में नहीं हो सकती?उत्तर:- संगमयुग पर ही हरेक को ''मेरा बाबा'' कहने का अधिकार है। एक को ही सब मेरा बाबा कहते हैं। मेरा कहना अर्थात् अधिकारी बनना। संगम पर ही हरेक को एक बाप से मेरे-पन का अनुभव होता है। जहाँ मेरा बाबा कहा वहाँ वर्से के अधिकारी बन गये। सब कुछ मेरा हुआ। हद का मेरा नहीं, बेहद का मेरा। तो बेहद के मेरे-पन की खुशी में रहो।प्रश्न:- समीप आत्मा की मुख्य निशानी क्या होगी?उत्तर:- समीप आत्माएं अर्थात् सदा बाप के समान हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म करने वाली। जो समीप होंगे वह समान भी अवश्य होंगे। दूर वाली आत्माएं थोड़ी अंचली लेने वाली होंगी। समीप वाली आत्मायें पूरा अधिकार लेने वाली होंगी। तो जो बाप के संकल्प, बोल वह आपके, इसको कहा जाता है समीप।प्रश्न:- कौन सी स्मृति सदा रहे तो कभी टाइम वेस्ट नहीं करेंगे?उत्तर:- सदा यही स्मृति रहे कि अभी संगम का समय है, बहुत ऊंची लाटरी मिली है। बाप हमें हीरे जैसा देवता बना रहे हैं, जिन्हें यह स्मृति रहती वह कभी टाइम वेस्ट नहीं करते। यह नॉलेज ही सोर्स आफ इनकम है इसलिए पढ़ाई कभी भी मिस न हो। प्रश्न:- आत्मा को सबसे प्यारी चीज़ कौन सी है? प्यार की निशानी क्या है? उत्तर:- आत्मा को यह शरीर सबसे प्यारा है। शरीर से इतना प्यार है जो वह छोड़ना नहीं चाहती। बचाव के लिए अनेक प्रबन्ध रचती है। बाबा कहते बच्चे यह तो तमोप्रधान छी-छी शरीर है। तुम्हें अब नया शरीर लेना है इसलिए इस पुराने शरीर से ममत्व निकाल दो। इस शरीर का भान न रहे, यही है मंजिल। प्रश्न:- किसी भी प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने के लिए विशेष कौन सी शक्ति चाहिए? उत्तर:- परिवर्तन करने की शक्ति। जब तक परिवर्तन करने की शक्ति नहीं होगी तब तक निर्णय को भी प्रैक्टिकल में नहीं ला सकते हैं क्योंकि हर स्थान पर हर स्थिति में चाहे स्वयं के प्रति व सेवा के प्रति परिवर्तन जरूर करना पड़ता है। वरदान:- बालक और मालिकपन के बैलेन्स से पुरुषार्थ और सेवा में सदा सफलतामूर्त भव l सदा यह नशा रखो कि बेहद बाप और बेहद वर्से का बालक सो मालिक हूँ लेकिन जब कोई राय देनी है, प्लैन सोचना है, कार्य करना है तो मालिक होकर करो और जब मैजॉरिटी द्वारा या निमित्त बनी आत्माओं द्वारा कोई भी बात फाइनल हो जाती है तो उस समय बालक बन जाओ। किस समय राय बहादुर बनना है, किस समय राय मानने वाला - यह तरीका सीख लो तो पुरुषार्थ और सेवा दोनों में सफल रहेंगे। स्लोगन:- निमित्त और निमार्णचित्त बनने के लिए मन और बुद्धि को प्रभू अर्पण कर दो। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 8 June 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 08/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, you have to follow BapDada's directions of shrimat and become soul conscious. While seeing the image (of Brahma), remember the Father without an image. Question: Due to which greatness are you children remembered as lucky stars? Answer: Due to the greatness of purity. You become pure in this final birth and do the service of making Bharat pure. This is why you lucky stars are even more elevated than the deities. This birth of yours is as valuable as a diamond. You are very elevated servers. At this time, the soul in the Brahma form is even higher than when in the Shri Krishna form because he belongs to the Father at this time. Shri Krishna experiences his reward. Song: You are the portrait of tomorrow. Om ShantiThe Father speaks to the children. The Father is incorporeal and the children are also incorporeal. However, you have to play your parts through the corporeal costumes you have taken. The Father says to the children who play their parts in this way: Now become soul conscious! Have the faith that you are a soul. Don't say: I, the soul, am the Supreme Soul. It was by saying this that you pushed the Father into the cycle of 84 births. You considered yourself to be the Father and you put Him in the cycle of 84 births. By saying this, you went into the extreme depths of hell. The boat has begun to sink. You are now receiving shrimat. You children know that two types of instructions are remembered. One is shrimat. This shrimat is God's, that is, it is the instructions of the unlimited Father. They have inserted Krishna’s name. That is wrong. Krishna cannot be called the Father. There are three fathers. One is the Highest on High, the Supreme Father, the Supreme Soul, the Father of souls. The second one is Prajapita Brahma. He cannot be called the Supreme Soul; he is the Father of People. This one's name is also glorified. Krishna cannot be called Prajapita. The third is a physical father. The unlimited Father says: Children, may you be soul conscious. You are now receiving directions of shrimat. The instructions of both continue at the same time. You feel that Shiv Baba is explaining these elevated versions to you. Instead of saying “Trimurti Shiva”, they have mistakenly said “Trimurti Brahma”. However, there is no meaning in that. By them saying “Trimurti Brahma,” the instructions of Brahma are remembered. They have removed Shiva. They say that Brahma came down from the subtle region and gave directions! You have now understood this. Prajapita Brahma is called the vyakt (gross) Brahma. At present, you are vyakt Brahmins and you will then become avyakt and perfect Brahmins; you Brahmins will become residents of the subtle region. The perfect Brahma and perfect Saraswati both reside there in the subtle region. Vishnu is a dual-form anyway. Two arms are of Lakshmi and two of Narayan. These instructions are very well known. God speaks: It is Shiva who gives Brahma instructions. This one is named Brahma. Brahma exists here in the impure world. This one cannot be called the highest. The two forms of Vishnu – Lakshmi and Narayan – are then in heaven. It is said: Dev, Dev, Mahadev. So, Shankar is Mahadev. You children understand that Shiva is the highest-on-high Father and He creates the creation of the subtle region. The main thing is to follow shrimat. Brahma too became well known by following shrimat. Only the one Brahma is the especially beloved child. Shiv Baba is one and Brahma is also one. “Prajapita Brahma” is said. “Prajapita Vishnu” or “Prajapita Shankar” is not said. You are now sitting in front of Prajapita Brahma. The Father says: While living at home with your families, have the faith that you are souls. Constantly make effort to remember Me alone. Then it is a matter of renunciation. It is said: Knowledge, devotion, disinterest. You have renunciation through disinterest. Sannyasis first make you disinterested by saying that happiness is like the droppings of a crow. This is why they leave their households. It is said that Bharat was heaven in the golden age. Those who reside in hell say that they were residents of heaven. It is in the intellects of you children that there were only deities in heaven. In ancient Bharat they had everything - purity, peace and prosperity. Human beings who are residents of hell sing the praise of the Father who established heaven: You are the Ocean of Happiness, the Ocean of Peace. You receive the inheritance of liberation-in-life from that Father in a second. Baba repeatedly asks you: With whom are you moving along? Only from Shiv Baba will you receive your inheritance. You should only keep Shiv Baba in your intellects. You will receive a lot of happiness in heaven through that. You say that you are moving along with Shiv Baba. A new person would say that Shiv Baba is incorporeal, and that this one is Brahma, and so how can you be moving along with Shiv Baba? He is without an image. You children know that you are sitting personally in front of Shiv Baba. Shiv Baba doesn't have a subtle or physical form. That incorporeal One only comes in this one's body and tells you that this one doesn't know his own births. You now know that you have truly completed your 84 births; 84 births are remembered. Lakshmi and Narayan are in the golden age and so they definitely go round the cycle of 84 births. Those of other religions come here later. They don’t take as many births. At first, souls are satopradhan and, later, they become tamopradhan. So, this is God's shrimat. He also gives instructions to Brahma. However, because he is the especially beloved child, he imbibes it very well and explains to you. Sometimes, He too comes and explains. He says: Children, may you be soul conscious! Both Shiv Baba and Brahma say: May you be soul conscious! You are now sitting personally in front of them in a practical way. He is the One without an image and you are those with an image. You tell everyone: O brother, O soul, remember the Father. He speaks to souls. Caution one another and make progress. The Father says through the body of Brahma: By remembering Me, your Father, you will receive the inheritance of heaven. You mustn't be influenced by those evil spirits. The foremost vice is impure arrogance. Let go of body consciousness. Become soul conscious. Since you are brothers, there definitely has to be the Father. Brahma is the father of you brothers and sisters. The Father of the brothers is the incorporeal One. This one is corporeal. We are all originally incorporeal and we then come to play our parts. These are the versions of Shri Shri God Shiva. Krishna is not God. This one is called Prajapita Brahma. Brahma is more elevated than Krishna. At this time, Brahma is higher than Krishna because the soul was Krishna in the golden age. He has come to belong to the Father in his 84th birth. Therefore, the soul as Brahma is better than as Krishna because he is serving at this time. The soul in Krishna will simply reap the reward. Therefore, who is the more elevated of the two? Is it Krishna, who takes the first birth of the 84 births or is it Brahma of this time? In fact, this birth is considered to be as valuable as a diamond because it is here that you have attainment. There, you would not say that you have attainment. It is at this time that you receive all the property. You are very elevated servers. You make Bharat into heaven, from impure to pure and then you rule it. You are the lucky stars and this is why everyone bows down to you. This is the greatness of purity. This is why the Father says: Lust is the greatest enemy. It has made you impure and you now have to conquer it. The more yoga you have with Me, the Almighty Authority, the purer you will continue to become. You were choking in the ocean of poison for 63 births. This is now your final birth. Sinners like Ajamil have been remembered. In the golden age, there is just the one pure religion of being faithful to one (husband), the pure religion. There is nothing but constant happiness there. Here, people are impure. Sannyasis were satopradhan at first and so they were powerful. They would receive food wherever they were in the forests. They had the power of purity. It wasn’t that they had the power of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. You receive His power. The kingdom of Maya begins in the copper age. The kingdom of Ravan, the five vices, continues for half the cycle. Human beings don’t understand who the Purifier is. They consider the Ganges to be the Purifier. They don’t know the Supreme Father at all. They say that God and His creation are infinite and that the duration of the golden age is hundreds of thousands of years. If it were like that, the population of the deity religion would be larger. The population of Christians, who came later, is now larger. The Father explains this. He gives you this food for your intellects. Your intellects now work so much. The intellects of human beings don’t work now. The lock of knowing the Creator and the beginning, the middle and the end of the creation is locked. Theirs is limited renunciation and hatha yoga. Yours is unlimited renunciation and Raja Yoga. You become kings of kings, the masters of heaven. Those who are impure at this time do not tell you these secrets. They relate the 18 chapters of the Gita and give such vast explanations. They have made so many Gitas. They all have their own opinions. They cannot understand the Gita. Krishna is not God, so how could they understand the Gita? They don’t understand anything at all. You now know that all of them belong to the path of devotion. The five evil spirits have made them into sinners like Ajamil. It is numberwise; they cannot be the same. It is explained that God is One; He comes and teaches you Raja Yoga. Lakshmi, Narayan and their dynasty are becoming satopradhan from tamopradhan. The world history and geography has to repeat once again. First of all, there has to be this faith: Baba, I will now only follow Your shrimat. The fortune of you children is now awakening. You are becoming the masters of the world. The fortune of everyone else is sleeping; they are very unhappy. Original, eternal Bharat was heaven; it is no longer that. They have become tamopradhan and impure. The Supreme Soul is called the Purifier. Krishna is not called that. In heaven, the light of everyone remains ignited. It is said: Deepmala (rosary of lights). Now the rosary is extinguished. The Father says: This is the rosary of My souls (who belong to Me). First, I make the rosary of souls and I then make the rosary of Vishnu. Shiv Baba makes this through Brahma. It has been explained that the rosary of Brahmins cannot be created because sometimes you climb as high as the sky and sometimes you continue to fall down. You change from having intellects with faith to having intellects with doubt. Today, you are very strong Brahmins, you make others the same as yourselves, whereas tomorrow you become shudras. Shiv Baba says: This is why a rosary of Brahmins cannot be created. You are making effort. The rosary of Rudra will be created and this is why you are having yoga. When you have full yoga, the vessels of your intellects will become pure and you will also be able to imbibe. You claim the inheritance by remembering the Father. Your sight is drawn towards your inheritance. Children have their sight on their inheritance from their physical father. Some children say: When will this old man die so that we can receive his property? Some fathers are so miserly that they don’t give anything to their children. They don’t even give housekeeping money to their wives. The Father says: The main thing is to have faith in the intellect. You are holding on to the hand of the One without an image. He says through this one with an image: Remember Me! Your intellects should be like that of a genie. Shiv Baba resides in the supreme abode. Shiv Baba must now be speaking the murli in Madhuban. Repeatedly remember Shiv Baba. You are now sitting here. He says: Constantly remember Me alone and you will become a bead of My rosary. This is the knowledge of the sacrificial fire of Rudra. Brahmins are definitely needed for this. It is not written in the scriptures that Jagadamba was a Brahmin. Only the Father explains this. However, Maya is also very strong. Although you have faith, Maya quickly brings doubt. Then your intellects don’t work to take shrimat and the status is destroyed. Those who ascend taste the sweetness of Paradise, whereas those who fall are totally crushed to pieces and receive a low status among the subjects. You children are the lucky stars of knowledge. You have a huge responsibility. Baba says: Remain cautious and don’t indulge in vice. Your business is to purify the impure. You mustn’t cause anyone sorrow. Make them constantly happy. The Father says “Child, child” even though he is old. He even calls the soul of this one “Child”. This soul too calls that One, “Father”. You have to follow shrimat at every step. All the centres belong to Shiv Baba, not to a human being. Shiv Baba is carrying out establishment through this one. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Feed your intellect with the food of knowledge every day and make it powerful. Make the vessel of your intellect pure with yoga. 2. With the faith that you are holding on to the hand of the Father without an image, repeatedly remember the Father. Don’t cause anyone sorrow. Blessing: May you be a flying bird and overcome all problems by enabling your eternal sanskars to emerge. In your eternal form, all of you are those who fly but, because of a burden, instead of being a flying bird, you have each become a caged bird. Now, enable your eternal sanskars to emerge once again, that is, remain stable in your angelic form. This is called, “easy effort”. When you become a flying bird, adverse situations will remain down below and you will go up above. This is the solution to all problems. Slogan: To consider there to be benefit at every step and to give the donation of power of peace to every soul is real service. #bkmurlitoday #english #Murli #brahmakumari

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