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  • परिवार और बिज़नेस लिए श्रीमत (Q and A)

    Question Answer in Hindi -a response given by us upon an asked question via email. Read here the question and its answer, Shrimat of Shiv baba on How to best handle family and business life using a middle way and satisfy everyone. Asked Question: प्यारे बाबा मैं एक आत्मा हूं मेरा नाम ललित शर्मा है और मैं मयूर विहार दिल्ली मैं रहता हूँ मैं पिछले एक साल से खाली बैठा हूँ पर अब ब्रह्म कुमार भाई संजय भरद्वाज के मार्गदर्शन में मै एक गारमेंट्स का बिज़नेस शुरू कर रहा हूँ मैंने दो लाख पचास हज़ार का बैंक से लोन लिया है जिसमे मैं ९९ रुपए मैं सेल का काम हल्द्वानी या काठगोदाम मैं शुरू करने का सोचा है पर मेरी दुविधा यह है की मैं यह निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि यह काम मैं यहाँ शुरू करूँ या वहाँ पर, क्योंकि मेरी माताजी मेरी धर्मपत्नी मेरी बहन मेरे मित्र यह कह रहे है की मुझे इस काम को यहाँ शुरू करना चाहिए क्योंकि यह मेरे घर कि पास होगा और ये सब लोग मेरी सहायता कर सके पर यहाँ पर जगह कि साथ लेबर भी महंगी है वहां पर सस्ती है और वहां पर लोग भी ईमानदार है लोकेशन भी अच्छी है , क्योंकि अगले महीने से मुझे बैंक कि किश्त हर महीने कि ५००० रुपए भी देनी है , वो भी सात साल तक | बाबा, अपने इस बच्चे का मार्गदर्शन करे l आपका बच्चा ललित शर्मा Our Response: To: ललित कुमार प्रिय मीठे ब्रह्मा कुमार ललित आपका पत्र मिला। आपने अपने जीवन का और व्यापार का समाचार दिया और बाबा से मार्गदर्शन माँगा है। साकार मुरलियो में भी बाबा ने यही समझाया है की ऐसा बाप किसी को डायरेक्शन (direction) नहीं देते की यह बिज़नेस (व्यापार) करो व वो करो, लेकिन इतना जरूर कहेंगे की - बाबा कहते है: ''जो भी करो पूरी लगन से करो और अपने ब्राह्मण धर्म में स्थित रह कर करो ल ब्राह्मण जनम तुम्हारा सर्व श्रेष्ठ जनम है, अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो, तो तुम्हारी चलन भी बहुत रॉयल और दिव्य रहे। शांत मन से सभी को साथ लिए उमंग उत्साह से आगे बढ़ो। सभी को खुश रखो और ख़ुशी से कार्य करो।'' शिव बाबा का एक translight फोटो अपने कर्म क्षेत्र (work place) पर रखने से आपको घडी घडी याद आएगी। जानते हो ना, याद हमारा first subject है। Shiv baba wallpapers: https://www.brahma-kumaris.com/shiv-baba-wallpaper दूसरी बात ( कहा पर बिज़नेस शरू करे ?) पहले तो परिवार की बात भी ठीक है - की नजदीक होंगे, तो परिवार का कोई भी मदद के लिए आ सकता है. और घर से नजदीक है, तो समय बचेगा। दूसरी तरफ आपको बेहतर जगह मिली है, जहा बेहतर मजदूर है ऐसे में 'middle way' अपनाना चाहिए। अगर हो सके, तो वह जहा business बेहतर है, वह ही एक घर ले लो। . पहले आप तपश करो - घर मिल सकता है या नहीं , फिर देखो - अगर घर मिलता है, तो वही रहना, नहीं तो यही अभी के घर के नजदीक ही बिज़नेस शरू कर दो। घर परिवार के समीप रहना अधिक जरूरी है। बाबा के बने हो, तो २ वक्त की रोटी जरूर मिल जाएगी - यह परमात्मा का वचन है। सिर्फ श्रीमत पर चलते रहना। कभी मुरली मिस न हो जाये। और सब बाद में, मुरली सुनना पहले। अपने परिवार को भी ईश्वर परमपिता का और यह ईश्वरीय ज्ञान का परिचय देना। यह videos जरूर देखे और अपने परिवार के साथ भी देखे: https://www.brahma-kumaris.com/single-post/videos-Films-and-Documentaries-1 All videos: https://www.brahma-kumaris.com/videos तो यह शिव बाबा की श्रीमत है - अपना समाचार द्वारा लिखना अच्छा नमस्ते 00

  • BK murli today in Hindi 29 June 2018 - aaj ki murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 29-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे - स्वीटेस्ट बाप आया है, स्वीट बनाने, तुम्हें देवताओं समान स्वीट बनना और बनाना है" प्रश्नः- सदा सुखी बनने का वरदान किन बच्चों को प्राप्त होता है? उत्तर:- जिन्हें ज्ञान रत्नों की वैल्यू है। एक-एक रत्न पद्मपति बनाने वाला है। तुम बच्चे इन रत्नों को धारण कर रूप बसन्त बनो। मुख से सदैव रत्न निकलते रहें तो सदा सुखी बन जायेंगे। जो बच्चे मीठा बनते हैं, उन्हें बाप भी देखकर खुश होते हैं और सदा सुखी बनने का वरदान देते हैं। तुम बच्चे इसी वरदान से एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बन जाते हो। गीत:-आ गये दिल में तू ... ओम् शान्ति।कितना मीठा गीत है। भल बनाया फिल्म वालों ने है, परन्तु वे तो कुछ भी जानते नहीं। तुम मीठे बच्चे इस बेहद के नाटक में पार्ट बजा रहे हो। बेहद के ड्रामा में बेहद का बाप भी अब पार्ट बजा रहे हैं सम्मुख। तुम बच्चों को स्वीट बाबा ही नज़र आता है। आत्मा इन नयनों से (शरीर के आरगन्स से) एक-दो को देखती है। आत्मा भी जो सम्मुख बैठी है, वह जानती है, जिसके लिए बाबा कहते हैं स्वीट चिल्ड्रेन। बाबा कहते हैं मैं सब बच्चों को बहुत स्वीट बनाने आया हूँ। माया ने तुमको बहुत कड़ुआ बना दिया है। यह बाप ही आकर समझाते हैं, तुम कितने स्वीट थे। बरोबर तुम जब मन्दिरों में जाते हो तो देवताओं को कितना स्वीट समझते हो। देवताओं को कितनी मीठी नज़र से देखते हो। कहाँ मन्दिर खुले तो स्वीट देवताओं का दर्शन करें। बनावट तो भल पत्थर की है, परन्तु समझते हैं यह स्वीट होकर गये हैं। शिव के मन्दिर में जाते हैं, वो भी बहुत स्वीटेस्ट हैं। जरूर होकर गये हैं। स्वीटेस्ट ते स्वीटेस्ट, मीठे से मीठा बाप जरूर भारत में ही आया होगा। मन्दिरों में जो भी हैं वो सब होकर गये हैं। जरूर कुछ करके गये हैं। स्वीटेस्ट बाप को जानने वाले बच्चे ही होंगे। तो जरूर कहेंगे निराकार परमपिता परमात्मा सबसे स्वीटेस्ट है।भारत में खास, दुनिया में आम शिवबाबा की महिमा तो बहुत है। शिव काशी विश्व नाथ गंगा - ऐसे बहुत कहते हैं। वहाँ जाकर रहते भी हैं। यह बाबा भी सब तरफ चक्र लगाकर आये हैं। मनुष्य शिव की कितनी महिमा करते हैं! बाप जानते हैं यह सब स्वीट चिल्ड्रेन हैं। घर के बच्चे हैं। सबको नम्बरवार अपना पार्ट मिलता है, परन्तु सबकी नज़र हीरो-हीरोइन पर ही जायेगी। अब इस ड्रामा में जो हीरो-हीरोइन हैं उन्हों के लिए गाते हैं तुम मात-पिता....। अभी तुम बच्चे जानते हो उस मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। दुनिया के सम्मुख तो नहीं हैं। यह है गुप्त। इनका नाम-निशान बिल्कुल ही गुम कर दिया है। सिर्फ चित्र हैं परन्तु उनसे कोई पता नहीं पड़ता। शिव के पुजारी तो बहुत होते हैं। लेकिन पूरा परिचय नहीं है। तुम जानते हो शिवबाबा है स्वीटेस्ट, उन जैसा स्वीट कोई हो नहीं सकता। वह स्वीटेस्ट बाप न आये तो यह पतित दुनिया पावन कैसे बनें। इस समय तुम बच्चों के सिवाए कोई भी स्वीट नहीं है। भल अपने को शिवोहम्, भगवान कहते रहते हैं। लेकिन भगवान तो इतना स्वीटेस्ट है, वह तो परमधाम में रहने वाला है, तुम फिर इस पतित दुनिया में कैसे कहते हो - शिवोहम्, हम भगवान हैं! भगवान तो रचयिता, पतित-पावन है। भगवान को सभी भक्त याद करते हैं। ऐसे नहीं, सब भक्त भगवान हैं। निराकार शिव को ही स्वीटेस्ट कहेंगे। स्वीटेस्ट बाबा द्वारा ही स्वीटेस्ट स्वर्ग में जायेंगे। यह डिनायस्टी रची जा रही है। स्वीटेस्ट बाबा हमको मोस्ट बिलवेड स्वीट बना रहे हैं। जो जैसा होगा ऐसा बनायेगा ना। कहते हैं मैं निराकार हूँ। तुम आत्मायें भी निराकार हो। शिव के मन्दिर में शिवलिंग की पूजा होती है ना। यज्ञ रचते तो सालिग्राम और शिव बनाते हैं। उनकी पूजा करते हैं। बहुत बड़े-बड़े सेठ लोग यज्ञ रचते हैं। रुद्र शिव का भी लिंग बनाते हैं और सालिग्राम भी बनाते हैं। ब्राह्मण लोग पूजा करते हैं। तुम ब्राह्मण ही पूज्य थे फिर पुजारी बने हो। शिव का लिंग बड़ा, सालिग्राम छोटा बनाकर पूजा करते हैं। उसका नाम ही है रुद्र यज्ञ। तो यह हो गई मिट्टी की पूजा। बुत आदि मिट्टी के बनाते हैं यादगार के लिए। फिर पुजारी बैठ पूजा करते हैं। भारत पूज्य था। सतयुग-त्रेता में पुजारीपन नहीं था। आधा कल्प है ज्ञान, आधा कल्प है भक्ति। गाया भी जाता है आप-ही पूज्य और आप-ही पुजारी। फिर कहते हैं सब भगवान हैं। समझते हैं भगवान ही पूज्य था, भगवान ही पुजारी बनता है, इसको उल्टी गंगा कहा जाता है। बाप को तो सब बुलाते हैं - हे भगवान, हे पतित-पावन, हे रहमदिल, पुकारना माना आह्वान करना। भक्ति मार्ग में आधा कल्प भक्त लोग आह्वान करते हैं। स्वर्ग में तो तुम मालिक होंगे। बाप कहते हैं तुमको बहुत स्वीटेस्ट बना रहा हूँ। गॉड फादर कितना मीठा, कितना प्यारा शिव भोला भगवान है। शंकर का तो नाम ही नहीं डालेंगे। शिव निराकार, शंकर आकारी - दोनों को मिलाना तो ग़लत है ना। मनुष्य कोई के भी मन्दिर में जायेंगे तो पूजा एक ही निराकार की करेंगे। सबको मिला देते हैं। अचतम् केशवम्, श्री राम नारायणम्.... अब राम कहाँ, नारायण कहाँ। सबको इकट्ठा कर दिया है।व्यास कौन था - यह कोई भी नहीं जानते। वास्तव में सच्चे व्यास सुखदेव के तुम बच्चे हो। बाबा बैठ सहज योग की नॉलेज सुनाते हैं और उस सुखदेव के हम बच्चे हैं सच्चे-सच्चे व्यास। हम ब्राह्मण हैं। हमको प्रैक्टिकल में बैठ सहज राजयोग सिखलाते हैं, जिससे हम मनुष्य से देवता बनते हैं। देवताओं के आगे जाकर गाते हैं हम पापी, नीच, कड़ुवे हैं। वह तो बहुत मीठे हैं ना। इन लक्ष्मी-नारायण ने ही 84 जन्म लिए हैं। ततत्वम्। यह नॉलेज तुमको ही मिलती है। लक्ष्मी-नारायण में वहाँ यह नॉलेज नहीं होगी। हम वहाँ यह नॉलेज देकर किसी को देवता नहीं बनाते हैं। तो बाकी क्या काम करें? यहाँ तो कितने काम हैं। अभी हम स्वीटेस्ट बाबा के बच्चे हैं, फिर श्री लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। तुम जानते हो हम स्वीटेस्ट फादर से स्वीटेस्ट बनते हैं। शिवबाबा है श्री श्री मीठे ते मीठा। उनसे हम भी मीठे बनते हैं। हम अपने को श्री श्री नहीं कह सकते। यह समझने की बातें हैं। तुम जितना अशरीरी, देही-अभिमानी बनेंगे और मीठे बाप को याद करेंगे उतना मीठा बनेंगे। देही-अभिमानी बन बाप और वर्से को याद करना है। यह एक मुख्य बात न भूलो। मुझे याद करेंगे तो मेरे जैसा मीठा बन जायेंगे। तो ऐसा बनाने वाले बाप को कितना याद करना चाहिए। बाबा मिठास का तो जैसे एक पहाड़ है। कहते हैं ना - सिमर-सिमर सुख पाओ। कोई सिमरणी नहीं सिमरनी है। माला नहीं फेरनी है। सिर्फ याद करना है। कोई को भी यह पता नहीं है कि यह माला किसकी याद में बनी हुई है। सिर्फ राम-राम करते रहते, माला फेरते रहते हैं। अभी तुम समझते हो राम शिव बाबा के हम बच्चे हैं इसलिए सिमरण करते हो। माला फेरना तो पुजारीपन का चिन्ह है। हम बाबा को बहुत याद करते हैं। याद से ही हम एवरहेल्दी, निरोगी बन जाते हैं। बाबा बार-बार कहते हैं अपने को अशरीरी समझ मुझे याद करो तो बेड़ा पार है। बाकी कोई 10-20 भुजा या सूंढ़ वाला मनुष्य नहीं होता। न कोई छींकने से देवता निकल आयेंगे। यह बातें अब सुनते हैं तो समझते हैं यह सब क्या है! यह सब है भक्तिमार्ग की सामग्री। सतयुग में यह कुछ भी होगी नहीं। भक्ति आधा कल्प चलती है। ज्ञान कोई आधा कल्प नहीं चलता है। ज्ञान की प्रालब्ध आधा कल्प चलती है। ज्ञान से 21 जन्म का वर्सा मिलता है। तो जैसे वह भक्ति का वर्सा मिलता है। भक्ति पहले सतोप्रधान थी। फिर सतो, रजो, तमो हो जाती है। जैसे यह भी बाप से वर्सा मिलता है। तो फिर पहले सतोप्रधान, फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। ज्ञान का वर्सा भी सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो होता है। यह समझने की बातें हैं। पहले तो समझना है - हम आत्मा मोस्ट बिलवेड बाप के बच्चे हैं। बाप इस जिस्म में आये हैं। जिस्म बिगर मुरली कैसे सुना सकेंगे। निराकारी दुनिया तो है साइलेन्स वर्ल्ड फिर है मूवी, यह टाकी। तीन लोक हैं ना। एक-एक बात तुम नई सुनते हो। दुनिया में और कोई जान न सके। तुम जानते हो हम आत्मायें साइलेन्स वर्ल्ड से आती हैं। वहाँ की रहवासी हैं, इसलिए उनका नाम ब्रह्माण्ड रखा हुआ है। अण्डे मिसल आत्मायें रहती हैं। परन्तु ऐसे है थोड़ेही। अगर स्टार कहें तो स्टार की पूजा कैसे हो! फल, फूल, दूध आदि उन पर कैसे ठहर सके। नाम तो शिव ठीक है। ऐसे नहीं कि वह बाप बड़ा, हम आत्मायें छोटी हैं। परम माना परमधाम की रहने वाली आत्मा जो मोस्ट बिलवेड है।तुम जानते हो अब हमको बाबा की श्रीमत पर चलना है। बहुत मीठे ते मीठा बाबा आकर हमको मोस्ट स्वीट बनाते हैं। आत्मा स्वीट बनेंगी तो शरीर भी स्वीट मिलेगा। बाप कहते हैं सिर्फ बीज और झाड़ को याद करो। बीज बाप ऊपर में है। वह है वृक्षपति। यह है फाउण्डेशन। फिर इनसे और टाल टालियाँ निकलती हैं। दुनिया में कोई की बुद्धि में यह नहीं है। बाबा कहते हैं - लाडले बच्चे, निराकार बाप इस शरीर द्वारा बोलते हैं। तुम इन कानों से सुनते हो। आत्मा ही धारण करती है। ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश। अंधियारी रात होती है ना। मनुष्य समझते हैं इससे भी अजुन अंधियारा होगा। यह है ही घोर अंधियारा। मनुष्य यह नहीं जानते। अभी तुम रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को जान गये हो। जिसके लिए सन्यासी कहते हैं बेअन्त है। ईश्वर तुम्हारी गत मत न्यारी है। तुम तो समझते हो ईश्वर ही आकर गति सद्गति करते हैं। तुम जानते हो श्रीमत से हम सो नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। कितना भारी नशा है! एम ऑब्जेक्ट तो एक होती है ना। बैरिस्टर बनेंगे, परन्तु नम्बरवार तो बनेंगे ना इसलिए फालो फादर मदर। जानते हो मदर फादर पुरुषार्थ कर नम्बरवन में जाते हैं तो हम भी पुरुषार्थ करें। हम भी इतना स्वीटेस्ट बनें। बच्चे माँ-बाप के तख्त पर जीत पाते हैं ना। वह बड़े हो जायेंगे तो मात-पिता नीचे उतरेंगे। तो जैसे तुम मात-पिता के तख्त पर जीत पाते हो।तुम बच्चों को बहुत प्यारा, बहुत मीठा बनना है। तुम्हारे मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। रूप बसन्त तुम हो। उन्होंने तो एक कहानी बैठ बनाई है। यह है ज्ञान रत्न। जवाहरात को तो बाबा अच्छी रीति जानते हैं। सबसे ऊंच जवाहरात का धन्धा गिना जाता है। यह भी ज्ञान रत्न हैं। एक-एक रत्न की धारणा होती है। इससे तुम अनगिनत पदमपति बनते हो। तुम्हारे महलों में कैसे सोने की ईटें, हीरे जवाहरात लगते हैं! बड़े सुखी रहेंगे। एवर हेल्दी, एवर वेल्दी बनेंगे। यह जैसे बाबा वरदान देते हैं। जितना मीठा बनेंगे, उतना बाप खुश होगा। स्कूल में टीचर स्टूडेण्ट को जानते हैं ना। यह तो बेहद का बाप-टीचर-सतगुरू है। अभी तुम बच्चे सामने बैठे हो तो मुरली भी ऐसी निकलती है। परन्तु फिर ज्ञानी तू आत्मा को बाबा यहाँ रहने नहीं देते। कहते हैं - जाओ, जाकर मनुष्य से देवता बनाने की सेवा करो। जो कड़ुवे ते कड़ुवे, प्लेगी बहुत रोगी हो गये हैं, उनको निरोगी बनाओ। अभी तो एवरेज आयु 40-45 वर्ष होगी। योगी की आयु बहुत बड़ी होती है। कृष्ण को महात्मा, योगेश्वर कहते हैं। उनका जब राज्य था तब एव-रेज आयु 150 वर्ष थी। अब रोगी बन गये हैं। हिसाब तो है ना। परन्तु मनुष्य जानते नहीं। बुद्धि रूपी बर्तन जो सोने का था, उसमें विष (जहर) भरने से यह हाल हो गया है। अब बाबा ज्ञान अमृत डाल सोने का बनाते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप समान स्वीटेस्ट बनना है। मुख से कभी कड़ुवे वचन नहीं निकालने हैं, सदैव मीठा बोलना है। 2) बाप हमको जो अमूल्य ज्ञान रत्न दे रहे हैं, उनकी वैल्यू को समझ अच्छी रीति धारण करना है। वरदान:- बैलेन्स द्वारा ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार कराने वाले सर्व की ब्लैसिंग के पात्र भव l बैलेन्स सबसे बड़ी कला है। याद और सेवा का बैलेन्स हो तो बाप की ब्लैसिंग मिलती रहेगी। हर बात के बैलेन्स से सहज ही नम्बरवन बन जायेंगे। बैलेन्स ही अनेक आत्माओं के आगे ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार करायेगा। बैलेन्स को सदा स्मृति में रखते हुए सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते रहो तो स्वयं भी आगे बढ़ते रहेंगे और अन्य आत्माओं को भी आगे बढ़ायेंगे। स्लोगन:- महावीर वह है जो हर मुश्किल को सहज कर, पहाड़ को राई व रुई बना दे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • BK murli today in English 21 June 2018

    Brahma Kumaris murli today in English - 21/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, don't forget your Godly childhood and thereby lose your highest-on-high inheritance. If you pass fully you will receive a kingdom in the sun dynasty. Question: Why do none of the souls in the golden and silver ages have to repent for their actions? Answer: Because all the souls who go into the golden and silver ages experience their reward of the confluence age. They learn such actions from the Father at the confluence age that they don't have to repent for their actions for 21 births. The Father is now teaching you souls such actions that you become karmateet. You won't then have to experience sorrow for any actions. Song: Do not forget the days of your childhood. Om ShantiYou children heard the sweet song. The unlimited Father explains to you children. The one who is Shri Shri, that is, the most elevated One, is called the Supreme Father, the Supreme Soul. People say: God Shiva speaks; or: God Rudra speaks. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, is called Rudra. So, the Supreme Father, the Supreme Soul, is explaining to His children through this body. No other human being, sage or holy man would say: You are a soul. Your Supreme Father is speaking through this lotus mouth. They call it Gaumukh. It is not a question of water. The Father is the Ocean of Knowledge. There is the rosary of 108 Shri Shri Rudra or Shiva. Therefore, first of all, have the strong faith that Baba is teaching you souls. The soul carries sanskars. It is the soul that studies through the organs. The soul himself says: I shed a body and take another with a different name, form, place and time. When I take rebirth in the golden age, the name and form change. The soul says this. When I am in the golden age, rebirth is also in the golden age. The Father explains: This means that when you are in heaven, you take rebirth there and your name and form continue to change. Incorporeal Shiv Baba, the Father, enters this chariot and explains to you: Children, you have now become My children. You are experiencing a lot of happiness now. We are claiming our inheritance from the unlimited Father through this Brahma. The soul says: I play the part of a barrister or a doctor through this body. I, the soul, was bodiless and then I entered a womb and adopted a body. The Father says: I do not enter a womb. We would not say that the Supreme Father, the Supreme Soul, sheds a body and takes another; no. You take another body. This one (Dada) takes another body. This soul has taken the full 84 births. This soul did not know his births. The soul now knows his 84 births. The soul says: I took birth in the sun dynasty and the soul continued to take rebirth. Then he took birth in the moon dynasty and, while taking rebirth, the soul went through the golden, silver, copper and iron ages. The soul says: I remembered the Father a lot in the copper age. We also worshipped the lingam image of the Supreme Father, the Supreme Soul. I, the soul, was a master in the golden age. I did not worship anyone there. There is no devotion in heaven. For half the cycle, I performed devotion. We have now once again come personally in front of the Father. All of you have now come personally in front of the incorporeal Father through the corporeal one. The Father says: Do not forget your Godly birth. You say: Baba, this is very difficult. What is difficult? I am the Father of you souls. I have come to make you pure from impure. You are studying in order to rule a kingdom in heaven. I, the Supreme Father, the Supreme Soul, have sanskars of knowledge. This is why I am called the Ocean of Knowledge, the Seed of the human world. He Himself says: I truly am the Creator. I reside in the supreme abode. Only once, when I have to teach you, do I come here. I come and make the impure world pure. Definitely, only impure ones remember Me. The pure ones of the golden age will not remember Me. No one would say: Come and make us souls impure; no. It is Maya who has made you impure and this is why you say: Make us pure. However, they don't know when I come. I only come at the confluence age. I don't come at any other time. I have now come. You sweet children have been adopted by Me. You know that Baba is once again teaching you ancient Raja Yoga through which Bharat becomes pure. This is the school of incorporeal God. Incorporeal Baba says: I enter this body. This Brahma is your senior Mama. That Mama, Saraswati, Jagadamba, is the daughter of Brahma. The senior Mama cannot sustain you and this is why Jagadamba has been appointed. This one's body (Brahma's) cannot be called Jagadamba. That One is the Mother and Father. This Brahma is also a mother. An inheritance cannot be received from a mother. An inheritance would be received from a father. You are the mouth-born creation of this mother Brahma. The Father says: Children, after belonging to Me and making effort to claim the sovereignty of heaven, don't be defeated in the war with Maya. Don't run away. Don't forget this Godly childhood. If you forget it, you will have to cry. So BK Saraswati, whom you call Jagadamba, has become an instrument to sustain you. How could this one (Brahma) sustain you? The urn is first of all given to this one. First, this one's ears hear everything, and then Jagadamba is also there to look after you. The Father says: I have now come at the confluence age to take all of you back. Just as there is the month of charity, which is called the most auspicious month, in the same way, this is the most auspicious age when you become the most elevated human beings of all. “Purshottam” means the most elevated human beings of all. Who are they? How did that Shri Lakshmi and Narayan become the most elevated man and woman of all and through whom? The Father says: Through Me. My name is also Shri Shri, the most elevated of all. I make you human beings become like Shri Narayan. I purify the impure through which you become like Lakshmi and Narayan, the most elevated man and woman. The Father says: Children, continue to forget your bodies and all bodily relationships. Have yoga with Me alone. You say: We have become the Father's children. We will become the masters of the heaven that the Father establishes. The Father says: Constantly remember Me alone. This is the pilgrimage of souls or the pilgrimage of intellects. It is the soul that has to imbibe everything. The body is non-living. It becomes living when a soul enters it. The Father explains: Beloved children, the destination of this remembrance is very far. People go on pilgrimages and come back again. They never indulge in vice while on a pilgrimage. They may have greed or become angry, but they would definitely remain pure. Then, when they return home, they become impure. At this time, the soul of everyone is false and everyone’s body is also false. All the souls who have come from the kingdom of Lakshmi and Narayan are impure at this time. There is unlimited happiness, peace and purity in the golden age. In the iron age, none of the three exists; there is sorrow and peacelessness in every home. In some homes, there is so much peacelessness that it is like hell; they fight and quarrel among themselves a great deal. Therefore, the Father says: Do not forget this childhood. If you forget it, you will lose your highest-on-high inheritance. If you forget it and divorce Baba, you will attain a very low status. If you follow shrimat, you will become elevated like Shri Lakshmi and Narayan. Sita and Rama come in the silver age. Two degrees have been reduced by then and this is why they have been given the symbol of warriors. It isn't that there is a war between Rama and Ravan there. Those who conquer Maya go into the deity religion and those who are unable to conquer Maya and fail are called warriors. They will go into the dynasty of Rama and Sita. There are the full 100 marks for those who sit on the number one sun-dynasty throne. If there are a few less marks, you will reach the second number. If you have less than 33% marks, you enter the kingdom later. When the sun dynasty comes to an end, there is the moon dynasty. Those of the sun dynasty then become those of the moon dynasty. The sun-dynasty kingdom then becomes the past. You also have to understand the drama. After the golden age, there is the silver age; you change from satopradhan to the sato stage. Alloy continues to be mixed in. First of all, you are golden, then silver and then copper. You souls now have alloy mixed in you. The lights of souls have been extinguished and the intellects have become stone. The Father is now once again making your intellects divine. He says: O souls, while walking and moving around and carrying out any task, remember the Father. You have to help the Pandava Government for eight hours. You have now come from the devilish clan into the Godly clan. Therefore, if you go back into the devilish clan again, that is, if you remember it again, your sins will not be absolved. All the effort is required for this. Otherwise, you will have to cry and repent a great deal at the end. If a burden of sin remains, the tribunal will sit for you. You will then be given visions: This is what you did in such-and-such a birth. When someone sacrifices himself at Kashi, he is given a vision and then punished. Here, too, you are given visions and Dharamraj would then say: Look, the Father was teaching you through this body of Brahma. He taught you so much, but, in spite of that, you committed these sins. You are not only given a vision of the sins of this birth, but the sins of birth after birth. It takes a lot of time: it is as though you experience punishment for many births and you will then repent and cry a great deal. However, what can be done at that time? This is why I tell you in advance: If you defame My name, there will have to be a lot of punishment. Therefore, children, don't become those who defame Me, your Satguru. Otherwise, there will be punishment and your status will also be reduced. Your true Baba, the true Teacher and the Satguru is just the One. The Father says: This child Brahma remembers Me a lot. He also imbibes knowledge. This one and Mama pass as number one and then become Lakshmi and Narayan. Their dynasty is created. When everyone is making effort, you too should make effort like Mama and Baba and become the masters of their throne. You too should follow the mother and father and be seated on the future throne. No one is able to know the knowledge of the Creator or creation. Those people say: It is infinite. We do not know. They are atheists. Because of not knowing, the people of Bharat, that is, all the children, are experiencing sorrow. They continue to fight and quarrel over water and land. It is said: This is the fruit of your actions of the past. You are now studying with the Father in order to perform such actions that you will never have to repent for your actions for 21 births. He enables you to reach your full karmateet stage. God speaks: O children, after belonging to Me, your Father and Bridegroom, never divorce Me. You should never even have any thought of divorcing Me. There, a wife would not even think of divorcing her husband. A child would never divorce his father. Nowadays, they do this a lot. In the golden age, they never divorce anyone, because you experience the reward there of the effort you make at this time. This is why there is no question of any sorrow or divorce. This pilgrimage of remembrance, the spiritual pilgrimage, is to go to the Supreme Father, the Supreme Soul. The incorporeal Father sits here and speaks to you incorporeal souls through this mouth. So, this is Gaumukh. He is the senior mother. You are the mouth-born creation. The jewels of knowledge emerge through him. How would water emerge from the mouth of a cow? Baba gives you the imperishable jewels of knowledge through this mouth. Each jewel is worth hundreds of thousands of rupees. It is up to you how much you imbibe. The main thing is “Manmanabhav”. This one jewel is the main one. The unlimited Father says: When you remember Me, I am bound to give you the inheritance of unlimited happiness. For as long as you have a body, continue to remember Me and I will give you the sovereignty of heaven because you become obedient and faithful. To the extent that you stay in remembrance, so you purify the world accordingly. Only by having remembrance are your sins absolved. Maya makes you children repeatedly forget. This is why you are cautioned: Never forget the Father. I have come to take you back. The play will repeat from the golden age. I will not become the Master of the golden age. I give you the kingdom of heaven. I will then go and sit in retirement for half the cycle. Then, for half the cycle, no one remembers Me. Everyone remembers Me in sorrow; no one remembers Me in happiness. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Definitely help the Pandava Government for eight hours. Stay in remembrance and do the service of purifying the world. 2. Never perform any wrong actions and thereby cause defamation of the Satguru. Make effort like Mama and Baba and claim the sun-dynasty kingdom. Blessing: May you have all rights and finish dependency by experiencing your right of Him belonging to you. To make the Father belong to you means to experience your right. Where there is a right, you do not have any dependency on the self; there is no dependency on relationships and connections, there is no dependency on matter or adverse situations. When all of these types of dependency finish, you become one with all rights. Those who know the Father and have made Him belong to themselves by knowing Him are great and have all rights. Slogan: To harmonise your sanskars and virtues with everyone as you move along is the speciality of special souls. #english #Murli #brahmakumari #bkmurlitoday

  • 26 June 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 26/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, make effort to become bodiless. “Bodiless” means not to have any bodily religion or relationship. Let the soul continue to remember the Father alone. Question: When will you children have 100% power? What effort must you make for that? Answer: When you children reach the final moments of running in the race of remembrance, you will have 100% power. The arrow will instantly strike the target when you explain this knowledge to anyone at that time. For this, make effort to become soul conscious. Look in the mirror of your heart to check that all the old accounts have been burnt with remembrance. Song: You are the Ocean of Love. We thirst for one drop. Om ShantiYou children know that Alpha (the Father) has now come. There is the praise: We receive liberation-in-life, that is, the sovereignty of heaven, from the Father in a second, because the Father is the Creator of heaven. Liberation-in-life in a second is received from only the Father. Human beings cannot receive it from human beings. As soon as a child is born, he becomes an heir. When someone first comes, you ask that person to fill in a form: Who is the Father of souls? It is said: An embodied soul, a charitable soul. It is not said: Embodied Supreme Soul, Sinful Supreme Soul, Charitable Supreme Soul; no. It is said: a great soul, a charitable soul. It is remembered that souls remained separated from the Supreme Soul for a long time. Therefore, God surely has to come to liberate you from sorrow. So, when people come, first ask them to fill in a form: Who is the Father of you, the soul? Who is the father of the body? There are two separate things: I and mine. I am a soul and this is my body. Where is the place of residence of me, the soul? Who is the Father of you, the soul? It would not be asked: Who is the Father of the Supreme Soul? First of all, you have to know Alpha. He is the Truth, the Ocean of Knowledge. He is the Father of all. No human beings or judges etc. know that they are souls. It is the soul that speaks with the organs of the body: I am a judge, I am a surgeon. Only the one Father makes you soul conscious. You now know that you are souls. All the rest are relatives of your bodies. It is in terms of relationships of bodies that someone is a mother, someone is a father etc. In terms of souls, we are brothers. This has to be explained first. The inheritance of liberation-in-life in a second is remembered. Who is the One who gives liberation-in-life? In the golden age there is liberation-in-life and in the iron age there is a life of bondage. This too has to be explained. The system here of filling in a form is very good. You children know that the memorial of the Father of us souls is here. That incorporeal One is the Father of us souls. We are corporeal. There is the memorial of the incorporeal One. Therefore, He must also surely have come. He is the One who makes impure ones pure, old ones new. The world changes from new to old. There is just the one world. Therefore, the Creator of the world must definitely be One; there cannot be two of them. God is the Creator. He makes this old world new. The new world that was Bharat was heaven. God is One. The world is one. There was the golden age and it is now the iron age. There was ancient Bharat. Therefore, the One who made the world new would have made Bharat new. When people come here for the first time, explain this secret to them: You are a soul. Souls continue to take rebirth. The Father comes and makes you soul conscious. I am a judge, I am a barrister, or, I belong to the Christian religion. All of those are bodily religions. Souls are bodiless and so they don't have any relationships or religions. A soul by himself becomes karmateet. Then, once again, souls have the relationships of mothers and fathers etc. They change their costumes. They change their parts and have new parents. Souls continue to take rebirth. In fact, souls are incorporeal and reside in the incorporeal world. Then, when a soul adopts a body, he says: This is my name and form. The Father sits here and says to you children: Consider yourselves to be souls. You have to return home. You have played parts for 84 births. You became a barrister; you became a king. You are now becoming the masters of the world. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, can say this to souls. These things are not in the intellect of anyone else. They say that each soul is the Supreme Soul. The Father comes and explains to you the secrets of the world cycle. You now know that you truly have been around the cycle of 84 births. This is now your final birth and you have to return home. People make effort to go to the land of liberation. I, the soul, am a resident of the land of liberation but, because of having body consciousness, you don't know this. We souls reside in the incorporeal world. We have come from there to play our parts. All remember God in order to go to God. Therefore, first of all, explain that the soul and the body are two different things. A soul has a mind and intellect in it; he is living. Soul are imperishable. Bodies are perishable. The Father of all souls is that incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, the Knowledge-full One. He alone is called the God of the Gita. All devotees have love for God, the Ocean of Love. He pulls the devotees so much. There can only be one God. There are so many devotees. All are impure. They all remember the Purifier, and so there must be the one incorporeal One. All the rest are His creation. Brahma, Vishnu and Shankar are also a creation. The human world, too, is a creation. The highest-on-high Father is the Resident of the supreme abode. Just as a soul is a star, so the Supreme Father, the Supreme Soul, is a star. It has been explained to you children that there is only one world and that it has to repeat. All the religions have to go around the cycle. All actors are playing their parts. No one's part can be changed. Each part has to be played. First of all, it is essential to explain who the Father of souls is. They say: Oh God, the Father! Who said this? The soul speaks through the body. The Father of souls is the Supreme Father, the Supreme Soul. This is the main thing. You mustn't debate with anyone too much. There is liberation-in-life in a second. The Father explains to you children: Children, become soul conscious! At this time, this world is impure. Because of not knowing God, the Father, they have become orphans. In the golden age they experience the reward. There is no need to remember the Father there. People of the world don't know that the people of Bharat receive this reward from the Father. Bharat becomes heaven. It is Maya (Ravan) that makes it into hell. Bharat has to become old from new. For instance, if a building is going to be 100 years old, it would be said to be old after 50 years. In the same way, the world becomes old from new. Then who will make it new again? How will it repeat? The world was pure. Someone must have made it pure. Only the one Father is the Purifier. He alone would make it pure. Who makes it impure? Who makes it pure? No one can understand this. You now belong to the Father. The Father means the Father. You don't only half believe or three quarters believe in the Father. However, Maya brings you into body consciousness. All the effort required is in becoming bodiless and belonging to the Father. In fact, Maya is a great enemy. You claim the kingdom with the power of yoga. Only by having remembrance do you receive your inheritance from the Father. The power is that of remembrance alone. The Father says: Forget your body and all bodily relations and remember Me because you have to come back to Me. The golden age is liberation-in-life and the iron age is bondage-in-life. There is the bondage of Ravan, the five vices. It doesn't exist there. The Father comes and liberates you. You know that there was supreme peace and prosperity in Bharat. It isn't there now. Therefore, the Supreme Father must surely have established it. He would have come. He comes at the confluence age and makes Bharat liberated-in-life. All the rest of the religions are by-plots. This Bharat is old. When there was the kingdom of deities in new Bharat, there was one religion. That is called heaven. Therefore, when you give the Father's introduction first, they won't argue. The Father only tells the truth. Shrimat is from Him. Next are the instructions of Brahma. Brahma definitely receives instructions from the Father. Brahma is now in the night. He was in the day. “The day of Brahma and the night of Brahma” means the day and night of the Brahma Kumars and Kumaris. The night of Prajapita Brahma would also definitely be the night of the children. The Father explains: I come and first of all create Brahmins through the mouth of Brahma. The Brahmin clan is needed. This sacrificial fire has been created. It would not be said to be the sacrificial fire of Krishna. This is the sacrificial fire of the knowledge of Rudra, this is the rosary of Rudra. Father Shiva created the sacrificial fire at this time. The Father sits here and teaches this. Children, I change you from an ordinary man into Narayan, into kings of kings. This is Raja Yoga. Krishna would not be called God. God teaches Raja Yoga through which you become like Shri Krishna. The main thing is that you children first have to become soul conscious. Otherwise, you won't be able to strike anyone with an arrow. Only by becoming soul conscious and remembering the Father will you receive power. When you become really strong the arrow will be shot at Bhishampitamai. It has to happen gradually. You now continue to receive power. You have to become 100% by the end. You have to run the race. You are now studying. You will become very strong. You should explain that you are living souls and that God, the Father, is One. Ask those people why they say that the soul is the Supreme Soul. God, the Purifier, is only One. You are the ones who take rebirth. God doesn't have a body of His own. He is Rudra, Shiva. Human beings cannot be called God. A name is given to the body of a soul. Souls are all the same. Sometimes a soul has the body of a barrister. It isn't that a soul becomes a dog or a cat etc. The Father says: Beloved children, human beings only become human beings. Animals are a different variety(species). At this time it is as though human beings are worse than animals. Maya has ruined everyone's life according to the drama. The Father now comes and makes everyone's life worthwhile. The people of Bharat call God the Mother and Father. People abroad say: Oh God, the Father! Achcha, if He is the Father, the Mother is also needed with Him. They speak of Eve, but who is she? Who has been called Eve? Mama would not be called Eve. Mama is Jagadamba. This one (Brahma) is called Eve because He creates through this one's mouth and this is why the saying: You are the Mother and Father can be proved. Only the One is called the Mother and Father. There also has to be the mother of Jagadamba. She is also a human. All of these things can be imbibed when you make constant effort to become soul conscious. If there isn't remembrance, you cannot imbibe these things. Maya is very powerful. If you don't stay in remembrance, she will continue to punch you. Maya even punches those who have been here for 10 to 12 years. She turns their faces away. They forget and then say that it wasn't in their fortune. There is the song: I have come having created my fortune. Which fortune did you create when you came? That of marrying Lakshmi. BapDada says: Look in the mirror of your heart: Am I worthy? Have I become as sweet as the Father? The Father says: Become soul conscious! The more you remember Me, the Father, the more you will accumulate. If you don't remember, you won't accumulate. It is only with remembrance that the old account will continue to be burnt away. The fire of yoga means remembrance. I, the soul, am remembering God. The Father also says: Have the faith that you are souls and remember Me. It is a mistake to say that souls are the Supreme Soul. God never takes rebirth. You constantly take rebirth. My birth is divine and unique. I enter an ordinary body. Otherwise, where would Brahmins come from? A mature Prajapita Brahma is needed. A young child is not needed. Krishna is a young child. They always show Radhe and Krishna as young. How could so many people call a young child ‘Prajapita’? How could you call Krishna the Mother and Father? The Supreme Father, the Supreme Soul, has now come as the Guide. He will take all souls back with Him. The Father explains very clearly. First of all ask them to fill in a form. The main thing is: Who is the God of the Gita? Who created this sacrificial fire? This is called the sacrificial fire of Rudra or the sacrificial fire of knowledge. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge, the Father of all. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Become soul conscious, renounce bodily religions and make it firm that we souls are brothers.Become as sweet as the Father. 2. Become soul conscious and give the Father's introduction.You receive the inheritance of liberation-in-life from the Father in a second. You must never debate with anyone. Blessing: May you finish obstacles with zeal and enthusiasm and become a close jewel who is equal to the Father. The zeal and enthusiasm that children have of being close jewels equal to the Father and to give the proof of being a worthy child is the basis of the flying stage. This enthusiasm finishes many types of obstacles that come and helps you to become complete and perfect. The pure and determined thought of zeal and enthusiasm becomes a particularly powerful weapon to make you victorious. Therefore, always have zeal and enthusiasm and the means for this flying stage in your heart. Slogan: Just as a tapaswi soul always sits on a special seat, in the same way, you also have to remain seated on the seat of a constant and stable stage. #english #Murli #bkmurlitoday #brahmakumari

  • Service, Scenes and Stage at the End of World Drama

    What would be the scenes? How will service be done? and How our stage of purusharth (effort making) be? during the end time of world drama cycle. This article will clarify all these answers. 1. How will the Service be done? I, the Soul combined with Supreme Soul with the awareness of my self-respect can do unlimited last final moment service through this combined form. This has been depicted in the image of combined self-respect. During last moment when destructive dance will take gigantic form in the world due to world war, civil war, dreadful diseases, natural calamities there will be no scope for any physical service, at that time we will have to do double service through our complete form i.e. invisible, subtle, double light angelic form stage being stabilized in Shiv-Shakti combined form. Double service means service through determined thoughts and behavior, face, vision or through subtle form where subtle body and incorporeal form is emerged in double light form. God Father Shiva shall also be revealed through this form. In Satyug, the soul (incorporeal form) and subtle body (angelic form) is in emerged form that is physical form is just for name sake which means no bodily feelings, completely light, no sinful karmas. Now, during final moment before departing for soul world incorporeal form and subtle angelic form should be in emerged form of virtues and body consciousness in merged form, ruling controlling power must be such that whenever you wish you must be able to detach yourself and do double service in incorporeal, subtle form. Only those souls who have developed elevated and highest stage through practice of knowledge and yoga for a long period, those who would have unlimited vision and disinterest would be able to perform this service. Since we are the instrument souls to show the path of Mukti dham (Soul world) and Jeevan mukti dham (Heaven), the souls who are craving for happiness and peace, fearful, involved in sorrow and pain will see both the path through our vision i.e through one eye Mukti dham and through other Jeevanmukti dham. At the time of destruction one with the authority of experience can impart Mukti (Liberation) & Jeevan Mukti (Liberation in life). In Treta yuga there will be both Ruling and Religious authority, which is based on true knowledge of soul. In Dwapar yuga there is Ruling authority based on body consciousness, In Kaliyuga even though there is Science authority, all ruling and religious authority will have less effect and in Sangam yuga (Confluence age ) the base of attainments is Yoga siddhi or authority of Experience. 2. How will be our Stage and Service? In the present final moment, Baba demands maximum percentage of those children who are stable in their incorporeal, subtle forms who can do service in subtle world through their incorporeal subtle forms. Such souls can activate the subtle body, subconscious mind and awaken the subtle / dormant energies of souls. Urdhavreta yogi, Shivyogi, Rajrishi, undeviating remembrance, Parkaya pravesh (entering in another’s body ) all these are related to subtle body which has connection with the practice of Rajyoga. Therefore, today there is demand for double service. Through this you can change the mind or impressions of anyone. This is a refine form of service for becoming full and complete which can be done by those who are in highest stage. For this you will have to increase the stability of mind and concentration of the intellect through powerful Amritvela since this is blessing time for making the soul powerful. Secondly, as far as possible practice to be free from waste and vicious thoughts and try to stabilize in powerful thoughts so that waste thoughts are avoided and mental energy is stored. Thirdly, try to experience double light angelic form intermittently many times in a day by becoming detached from the physical body. Fourthly, keep attention to have a pure aatmik (ruhani) vision since body consciousness is the only obstacle that comes in the way of service through thought and marching towards flying stage. Lastly, observe silence as far as possible and come in voice only in case of dire necessity since this will make us free from waste words, retain the mental energy, help in becoming introvert which in turn make easier to achieve constant stage. In Mansa seva i.e service through mind there are 5 things: 1) Vibration - through positive thoughts. 2) Yog Sakash - through lightness – 5 forms / Angelic form practice. 3) Search light - One can do far off place service through the intellectual vision of unlimited. (Behad ki Buddhi) 4) Current - through the power of churning and of a powerul mind. 5) Charge - through embodiment of awareness and giving light of knowledge. Difference between Vibration and Sakash : Physical vibration of 5 elements will only reach corporeal world or physical body whereas Sakash is a spiritual healing for both body and soul. The subtle power of sakash can reach any souls. There can be ups and downs in vibrations but not in sakash. Sakash is received through light and might of Supreme soul. As per one senior sister Sakash include these 7 things : 1) All treasures 2) Good wishes 3) Godly wishes 4) All blessings 5) All virtues 6) All powers 7) All attainments. Light & Might / Yoga and Yaad : Jyoti means Light and bindu (point) means Might. Mukti is through Light and Jeevan Mukti is through Might. Through Light one get connected to Paramdham and through Might one get connected to Supreme soul. Light makes us detach while through Might our sins get absolved. Yoga is through relation and Yaad is through renunciation. (To remember God with every relation whilst being detached with the world). There are varieties in yoga while in Yaad there is no variety, only one baba. Different stages of Yoga : 1) Dehbhan mukt (Beyond body awareness ) 2) Ashariri or Bodiless stage ( detached from 5 sense organs ) 3) Dehi abhimani ( Being in the body, to realize self as soul different from the body , awareness of karavanhar ) 4) Atam abhimani ( soul consciousness ) : To see self and others with atmik vision. 5) Avyakt ( To make use of body while being detached ) 6) Videhi : Experiencing only light in Paramdham ( soul world ) 7) Beejrup ( seed form ) : Experiencing only might in Paramdham ( soul world ) 3. Final Stage and Scenes Visualise painful scene of upheavals on the screen of your mind. The cleaning of old Kaliyuga world has begun. Earth quake has started, except, some regions of north India, all other continents are getting submerged in the huge tsunami waves of the ocean, and everything is turning into ashes by the horrible heat of sun, in the monster form of volcanoes and fire of atomic bombs. Entire natural resources and human made artificial scientific support are getting destroyed causing external and internal darkness. The sky element has become dumb observer to destructive echoes and toxic pollutions. Approx all 700 crore souls, creatures of the world are shedding off their bodily costume and departing towards soul world. Every soul is getting ready to fly with the eternal God father Shiva in original soul point light form leaving body related fame, honor, position, people, material, splendor, gross wealth, land, property etc handing over it from where it has acquired and clearing the karmic accounts of innumerable births. Source: World Transformation Secrets All Brahmin souls are stabilized in the swadharm of peace i.e own religion of peace. Having vision of new yuga and new dynasty. They are uttering Hai Hai and Wah Wah song is emerging from inside us. Wah Baba ! Wah kalyankari drama ! Wah my fortune. Everyone has attained unlimited disinterest in the old world. All sweetness and all relations through one baba, only one similar thought passion “Now have to return to original abode (Paramdham) with Consort or Father and then come back in deity costume in deity world of Satyuga. We are uplifting all souls being stable in the stage of ancestor, great donor, bestower of blessings, world benefactor, image of support, image of upliftment and merciful, being Light house guiding them the path of Mukti ( Soul world) and Jeevan mukti ( Heaven), being Master Satguru giving them Salvation and being Master God fulfilling the wishes of devotees. All the souls will experience the satisfication while heading towards destination place (home of peace and eternal light) singing the glory – Oh God your play is boundless, you only know your destination and thoughts. Source: Most of the above article feed is from Avyakt and Sakar Murlis. Some from visions given by Shiv baba to Sandeshi's (who frequently goes in trance and see divine visions) ---- Useful links ---- Download or View Full PDF Revelations from Murli Hindi - अंतिम समय की सेवा और स्थिति Online Services .

  • आज की मुरली 20 Nov 2018 BK murli in Hindi

    Brahma Kumaris murli today in Hindi 20-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - याद रूपी दवाई से स्वयं को एवर निरोगी बनाओ, याद और स्वदर्शन चक्र फिराने की आदत डालो तो विकर्माजीत बन जायेंगे" प्रश्नः- जिन बच्चों को अपनी उन्नति का सदा ख्याल रहता है, उनकी निशानी क्या होगी? उत्तर:- उनकी हर एक्ट सदा श्रीमत के आधार पर होगी। बाप की श्रीमत है - बच्चे, देह-अभिमान में न आओ, याद की यात्रा का चार्ट रखो। अपने हिसाब-किताब का पोतामेल रखो। चेक करो - कितना समय हम बाबा की याद में रहे, कितना समय किसको समझाया? गीत:- तू प्यार का सागर है........ ओम् शान्ति।यहाँ जब बैठते हो तो बाप की याद में बैठना है। माया बहुतों को याद करने नहीं देती क्योंकि देह-अभिमानी हैं। कोई को मित्र-सम्बन्धी, कोई को खान-पान आदि याद आता रहता है। यहाँ जब आते हो तो बाप का आह्वान करना चाहिए। जैसे लक्ष्मी की पूजा होती है तो लक्ष्मी का आह्वान करते हैं, लक्ष्मी कोई आती नहीं है। यह सिर्फ कहा जाता है तो तुम भी बाप को याद करो अथवा आह्वान करो, बात एक ही है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। धारणा नहीं होती है क्योंकि विकर्म बहुत किये हुए हैं, जिस कारण बाप को भी याद नहीं कर सकते हैं। जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे, हेल्थ मिलेगी। है बहुत सहज, परन्तु माया अथवा पास्ट के विकर्म रूकावट डालते हैं। बाप कहते हैं तुमने आधाकल्प अयथार्थ याद किया है। अभी तो प्रैक्टिकल में आह्वान करते हो क्योंकि जानते हो आने वाला है, मुरली सुनाने वाला है। परन्तु यह याद की आदत पड़ जानी चाहिए। एवर निरोगी बनाने लिए सर्जन दवाई देते हैं कि मुझे याद करो। फिर तुम मेरे से आकर मिलेंगे। मुझे याद करने से ही वर्सा पायेंगे। बाप और स्वीटहोम को याद करना है। जहाँ जाना है, वह बुद्धि में रखना है। बाप ही यहाँ आकर सच्चा पैगाम देते हैं, और कोई भी ईश्वर का पैगाम नहीं देते हैं। वह तो यहाँ स्टेज पर पार्ट बजाने आते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं। ईश्वर का पता नहीं रहता है। उनको वास्तव में पैगम्बर, मैसेन्जर कह नहीं सकते। यह तो मनुष्यों ने नाम लगाये हैं। वह तो यहाँ आते हैं, उनको अपना पार्ट बजाना है। तो याद फिर कैसे करेंगे? पार्ट बजाते पतित बनना ही है। फिर अन्त में पावन बनना है। पावन तो बाप ही आकर बनाते हैं। बाप की याद से ही पावन बनना है। बाप कहते हैं पावन बनने का एक ही उपाय है - देह सहित जो भी देह के सम्बन्ध हैं, उनको भूल जाना है।तुम जानते हो मुझ आत्मा को याद करने का फ़रमान मिला है। उस पर चलने से ही फ़रमानबरदार कहा जायेगा। जो जितना पुरुषार्थ करते हैं उतना फ़रमानबरदार है। याद कम करते तो कम फ़रमानबरदार हैं। फ़रमानबरदार पद भी ऊंच पाते हैं। बाप का फ़रमान है - एक तो मुझ बाप को याद करो, दूसरा नॉलेज को धारण करो। याद नहीं करते तो सजायें बहुत खानी पड़ती। स्वदर्शन चक्र फिराते रहेंगे तो बहुत धन मिलेगा। भगवानुवाच - मुझे याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ अर्थात् ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानो। मेरे द्वारा मुझे भी जानो और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का चक्र भी जानो। दो बातें मुख्य हैं। इस पर अटेन्शन देना है। श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देंगे तो ऊंच पद पायेंगे। रहमदिल बनना है, सबको रास्ता बताना है, कल्याण करना है। मित्र-सम्बन्धियों आदि को सच्ची यात्रा पर ले जाने की युक्ति रचनी है। वह हैं जिस्मानी यात्रायें, यह है रूहानी यात्रा। यह प्रीचुअल नॉलेज कोई के पास नहीं है। वह है सब शास्त्रों की फिलॉसाफी। यह है प्रीचुअल रूहानी नॉलेज। सुप्रीम रूह यह नॉलेज देते ही हैं रूहों को समझाकर वापस ले जाने के लिए।कई बच्चे यहाँ आकर बैठते हैं तो कोई लाचारी बैठते हैं। अपनी स्व-उन्नति का कुछ भी ख्याल नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी हो तो रहमदिल बनें, श्रीमत पर चलें। फ़रमानबरदार नहीं हैं। बाप कहते हैं अपना चार्ट लिखो - कितना समय याद करते हैं? किस-किस समय याद करते हैं? आगे चार्ट रखते थे। अच्छा बाबा को न भेजो, अपने पास तो चार्ट रखो। अपनी शक्ल देखनी है - हम लक्ष्मी को वरने लायक बनें हैं? व्यापारी लोग अपने पास पोतामेल रखते हैं, कोई-कोई मनुष्य अपनी सारे दिन की दिनचर्या लिखते हैं। एक हॉबी रहती है लिखने की। यह हिसाब-किताब रखना तो बहुत अच्छी बात है कि कितना समय हम बाबा की याद में रहे? कितना समय किसको समझाया? ऐसा चार्ट रखें तो बहुत उन्नति हो जाए। बाप राय देते हैं ऐसे-ऐसे करो। बच्चों को अपनी उन्नति करनी है। माला का दाना जो बनते हैं उनको पुरुषार्थ बहुत करना है। बाबा ने कहा था - ब्राह्मणों की माला अभी नहीं बन सकती है, अन्त में बनेगी, जब रूद्र की माला बनेगी। ब्राह्मणों की माला के दाने बदलते रहते हैं। आज जो 3-4 नम्बर में हैं, कल वह लास्ट में चले जाते हैं। कितना फ़र्क हो जाता। कोई गिरते हैं तो दुर्गति को पा लेते। माला से तो गये, प्रजा में भी बिल्कुल चण्डाल जाकर बनते हैं। अगर माला में पिरोना है तो उसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़े। बाबा बहुत अच्छी राय देते हैं - अपनी उन्नति कैसे करो? सबके लिए कहते हैं। भल कोई गूँगा होते भी इशारे से कोई को बाप की याद दिला सकते हैं। बोलने वाले से ऊंचा जा सकते हैं। अंधे लूले कैसे भी हों तन्दरूस्त से भी जास्ती पद पा सकते हैं। सेकेण्ड में इशारा दिया जाता है। सेकेण्ड में जीवन-मुक्ति गाई हुई है ना। बाप का बना और वर्सा तो मिल ही जायेगा। फिर उसमें नम्बरवार पद जरूर हैं। बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बन जाता है। यहाँ तुम आत्मा तो हो ही मेल्स। तो फादर से वर्से का हक लेना है। सारा मदार पुरुषार्थ के ऊपर है। फिर कहेंगे कल्प पहले भी ऐसे पुरुषार्थ किया था। माया के साथ बॉक्सिंग है। पाण्डवों की थी ही माया रावण से लड़ाई। कोई तो पुरुषार्थ कर विश्व के मालिक डबल सिरताज बनते हैं, कोई फिर प्रजा में भी नौकर चाकर बनते हैं। सभी यहाँ पढ़ रहे हैं। राजधानी स्थापन हो रही है, अटेन्शन जरूर आगे वाले दानों तरफ जायेगा। 8 दाने कैसे चल रहे हैं, पुरुषार्थ से मालूम पड़ता है। ऐसे नहीं, अन्तर्यामी हैं, सबके अन्दर को रीड करते हैं। नहीं, अन्तर्यामी माना जानी जाननहार। ऐसे नहीं कि हर एक के दिल की बात बैठकर जानते हैं। जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। एक-एक की दिल को थोड़ेही बैठ रीड करेंगे। मुझे थॉट रीडर समझा है क्या? मै जानीजाननहार हूँ अर्थात् नॉलेजफुल हूँ। पास्ट, प्रेजन्ट, फ्यूचर को ही सृष्टि का आदि, मध्य, अन्त कहा जाता है। यह चक्र कैसे रिपीट होता है, उसकी रिपीटेशन को जानता हूँ। वह नॉलेज तुम बच्चों को पढ़ाने आता हूँ। हर एक समझ सकते हैं कि कौन कितनी सर्विस करते हैं, क्या पढ़ते हैं? ऐसे नहीं कि बाबा एक-एक को बैठ जानते हैं। बाबा सिर्फ यह धन्धा थोड़ेही बैठ करेंगे। वह तो जानी जाननहार मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, नॉलेजफुल है। कहते हैं मनुष्य सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त और जो मुख्य एक्टर्स हैं उनको जानता हूँ। बाकी तो अथाह रचना है। यह जानी-जाननहार अक्षर तो पुराना है। हम तो जो नॉलेज जानता हूँ वह तुमको पढ़ाता हूँ। बाकी तुम क्या-क्या करते हो वह सारा दिन बैठकर देखूँगा क्या? मैं तो सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाने आता हूँ। बाप कहेंगे बच्चे तो बहुत हैं, मैं बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हुआ हूँ। सारी कारोबार बच्चों से है। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनका मैं बाप हूँ। फिर वह सगा है वा लगा है सो मैं समझ सकता हूँ। हर एक की पढ़ाई है। श्रीमत पर एक्ट में आना है। कल्याणकारी बनना है। तुम बच्चे जानते हो बृह्स्पति को वृक्षपति डे कहा जाता है। वृक्षपति भी ठहरा, शिव भी ठहरा। है तो एक ही। गुरूवार के दिन स्कूल में बैठते हैं तो गुरू करते हैं। जैसे सोमनाथ का दिन सोमवार है, शिवबाबा सोमरस पिलाते हैं। यूँ नाम तो उनका शिव है परन्तु पढ़ाते हैं इसलिए सोमनाथ कह दिया है। रूद्र भी सोमनाथ को कहा जाता है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो ज्ञान सुनाने वाला हो गया। नाम बहुत रख दिये हैं। तो उसकी समझानी दी जाती है। शुरू से यह एक ही यज्ञ चलता है, किसी को भी पता नहीं है कि सारी पुरानी सृष्टि की सामग्री इस यज्ञ में स्वाहा होनी है। जो भी मनुष्य हैं, जो कुछ भी है, तत्वों सहित सब परिवर्तन होना है। यह भी बच्चों को देखना है, देखने वाले बड़े महावीर चाहिए। कुछ हो जाए, भूलना नहीं है। मनुष्य तो हाय-हाय, त्राहि-त्राहि करते रहेंगे। पहले-पहले तो समझाना है थोड़ा ख्याल करो, सतयुग में एक ही भारत था, मनुष्य बहुत थोड़े थे, एक धर्म था, अभी कलियुग अन्त तक कितने धर्म हैं! यह कहाँ तक चलेंगे? कलियुग के बाद जरूर सतयुग होगा। अभी सतयुग की स्थापना कौन करेगा? रचता तो बाप ही है। सतयुग की स्थापना और कलियुग का विनाश होता है। यह विनाश सामने खड़ा है। अभी तुम्हें बाप द्वारा पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर का नॉलेज मिला है। यह स्वदर्शन चक्र फिराना है। बाप और बाप की रचना को याद करना है। कितनी सहज बात है।चित्रों में ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन ऑफ ब्लिस लिखते हैं, उसमें ओशन ऑफ लव अक्षर जरूर आना चाहिए। बाप की महिमा बिल्कुल अलग है। सर्वव्यापी कहने से महिमा को ही ख़त्म कर देते हैं। तो ओशन ऑफ लव अक्षर जरूर लिखना है, यह बेहद के माँ-बाप का प्यार है, जिसके लिए ही गाते हैं तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे, परन्तु जानते नहीं हैं। अब बाप कहते हैं तुम मेरे को जानने से सब कुछ जान जायेगे। मैं ही सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान समझाऊंगा। एक जन्म की बात नहीं, सारे सृष्टि के पास्ट, प्रेजन्ट, फ्यूचर को जानते हैं, तो कितना बुद्धि में आना चाहिए। जो देही-अभिमानी नहीं बनते हैं उन्हें धारणा भी नहीं होती है। सारा कल्प देह-अभिमान चला है। सतयुग में भी परमात्मा का ज्ञान नहीं रहता। यहाँ पार्ट बजाने आये और परमात्मा का ज्ञान भूल गये। यह तो समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु वहाँ दु:ख की बात नहीं है। यह बाप की महिमा है, ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। एक बूँद है मन्मनाभव, मध्याजी भव........ यह मिलने से हम विषय सागर से क्षीरसागर में चले जाते हैं। कहते हैं ना - स्वर्ग में दूध-घी की नदियाँ बहती हैं। यह सब महिमा है। बाकी नदी कोई दूध-घी की थोड़ेही हो सकती है। बरसात में तो पानी निकलेगा। घी कहाँ से निकलेगा! यह बड़ाई दी हुई है। यह भी तुम जानते हो स्वर्ग किसको कहा जाता है। भल अजमेर में मॉडल है परन्तु समझते कुछ भी नहीं। तुम कोई को भी समझाओ तो झट समझ जायेंगे। जैसे बाप को आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है वैसे तुम बच्चों की बुद्धि में भी फिरना चाहिए। बाप का परिचय देना है, एक्यूरेट महिमा सुनानी है, उनकी महिमा अपरमपार है। सब एक समान नहीं हो सकते। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। आगे चल देखेंगे, दिव्य दृष्टि में जो बाबा ने दिखाया है वह फिर प्रैक्टिकल होना है। स्थापना और विनाश का साक्षात्कार कराते रहते हैं। अर्जुन को भी दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार कराया था फिर प्रैक्टिकल में देखा। तुम भी इन ऑखों से विनाश देखेंगे। वैकुण्ठ का साक्षात्कार किया है, वह भी जब प्रैक्टिकल में जायेंगे तो फिर साक्षात्कार बन्द हो जायेगा। कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं, जो फिर बच्चों को औरों को समझानी है - बहनों-भाइयों आकर ऐसे बाबा से वर्सा लो, इस ज्ञान और योग के द्वारा।बाबा निमंत्रण पत्र को करेक्ट कर रहे हैं। नीचे सही करते हैं तन-मन-धन से ईश्वरीय सेवा पर उपस्थित हैं, इस कार्य के लिए। आगे चल महिमा तो निकलनी है। कल्प पहले जिन्होंने वर्सा लिया है, उनको आना ही है। मेहनत करनी है। फिर खुशी का पारा चढ़ते-चढ़ते स्थाई बन जायेगा। फिर घड़ी-घड़ी मुरझायेंगे नहीं। त़ूफान तो बहुत आयेंगे, उनको पार करना है। श्रीमत पर चलते रहो। व्यवहार भी करना है। जब तक सर्विस का सबूत नहीं देते तब तक बाबा इस सर्विस में लगा नहीं सकते। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देकर अपना और दूसरों का कल्याण करना है। सबको सच्ची यात्रा करानी है, रहमदिल बनना है। 2) बाप के हर फ़रमान को पालन करना है। याद वा सेवा का चार्ट जरूर रखना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। वरदान:- सच्ची दिल से साहेब को राज़ी करने वाले राज़युक्त, युक्तियुक्त, योगयुक्त भव बापदादा का टाइटल दिलवाला, दिलाराम है। जो सच्ची दिल वाले बच्चे हैं उन पर साहेब राज़ी हो जाता है। दिल से बाप को याद करने वाले सहज ही बिन्दु रूप बन सकते हैं। वह बाप की विशेष दुआओं के पात्र बन जाते हैं। सच्चाई की शक्ति से समय प्रमाण उनका दिमाग युक्तियुक्त, यथार्थ कार्य स्वत: ही करता है। भगवान को राज़ी किया हुआ है इसलिए हर संकल्प, बोल और कर्म यथार्थ होता है। वह राजयुक्त, युक्तियुक्त, योगयुक्त बन जाते हैं। स्लोगन:- बाप के लव में सदा लीन रहो तो अनेक प्रकार के दुख और धोखे से बच जायेंगे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 5 स्वरूप के अभ्यास के लिए 10 विधिया - अव्यक्त बपदादा

    आज बपदादा 5 स्वरूप के अभ्यास के लिए, व तीव्र पुरुषार्थ की विधि दे रहे है l यह है 10 पायंट्स जिसका अभ्यास करने से सहज ही ज्ञान की धारणा भी हो जाएँगी और योग भी उमंग से लगेगा - यह है सहज पुरुषार्थ l (Please SHARE this article to Brahman family and to your connections. Visit our General Articles section for more articles) ओम शांति, प्रिय दैवी भाईयों और बहनों, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस व मम्मा स्मृति दिवस के सुअवसर पर इस समाप्ति वर्ष में बाबा का यह दूसरा नवीनतम प्रोजेक्ट - ५ स्वरुप अभ्यास की दस विधियाँ ब्राह्मण परिवार को तीव्र पुरुषार्थ द्वारा स्व उन्नति हेतु शेयर कर रहा हूँ । इस प्रोजेक्ट में पाँच स्वरुप अभ्यास के दस विभिन्न प्रकार की विधियाँ दर्शायी गयी है जिसका अभ्यास कर हम स्वयं भी लाभान्वित होवें और दूसरों को भी करायें, इसलिए आप को इसे अपने संपर्क में शेयर करना अत्यावश्यक है । वह १० विधियाँ इस प्रकार से है : बेसिक पाँच स्वरुप अभ्यास तीन अवस्थाओं द्वारा पाँच स्वरुप अभ्यास पाँच स्वरुप द्वारा पाँच स्वरूपों की माला को सकाश सात गुणों द्वारा पाँच स्वरुप अभ्यास अष्ट शक्तियों द्वारा पाँच स्वरुप अभ्यास त्रिमूर्ति के विभिन्न संबंधों से पाँच स्वरुप अभ्यास पाँच स्वरुप द्वारा पाँच विकारों को सकाश पाँच स्वरुप द्वारा पाँच तत्वों को सकाश पाँच स्वरुप द्वारा पाँच अवस्थाओं को सकाश पाँच स्वरुप द्वारा आदि रत्नों संग विश्व को सकाश जिस प्रकार से गीता के ११ वाँ अध्याय में विराट विश्व स्वरुप का साक्षात्कार श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कराया उसी तरह यह पाँच स्वरुप की दस विधियों का संकलन भी एक विराट अस्त्र शस्त्र है, पावरफुल ड्रिल है, शिवास्त्र है, परमात्म बम है,पावरफुल स्वदर्शन चक्र है जिससे रावण के दस विकार रूपी शीश को ध्वस्त कर सकेंगे । व्यर्थ संकल्प, बोल, वृत्ति, दृष्टि,कृति और विकार ( ५ नर और ५ नारी के ) इनसे १००% मुक्त हो आधा कल्प के लिए विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जायेंगे और सतयुग की शुरुआत १-१-१ में आ जायेंगे। पाँच स्वरुप के अभ्यास पर बापदादा ने विशेष रूप से ३०-११-१० की अव्यक्त वाणी में जिक्र किया है कि आज बापदादा मन को एकरस बनाने की एक्सरसाइज सीखा रहा है । सारे दिन में हर घंटे में कम से कम ५ सेकंड या ५ मिनट के लिए इन पाँच रूपों की एक्सरसाइज करों, जो रूप सोचो उसका मन में अनुभव करो, मन को बिजी रखो,इससे मन तंदुरुस्त तथा शक्तिशाली रहेगा । जो रूप सामने आएगा उसकी विशेषता का अनुभव होगा । व्यर्थ अयथार्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे । बार बार यह एक्सरसाइज करने से कार्य करते भी यह नशा रहेगा क्योंकि बाप का मन्त्र भी है मनमनाभव,मन यंत्र बन जाएगा मायाजीत बनने में । मन, बुद्धि, संस्कार आर्डर में चलेंगे , सहज ही फुलस्टॉप लगा सकेंगे, मनजीत जगतजीत बन जायेंगे,संस्कार बाप समान बन जायेंगे । फिर बापदादा ने डेट फिक्स करने को कहा कि जिसने संकल्प किया और उस अनुसार प्रैक्टिकल किया अर्थात डेट प्रमाण संपन्न किया उसकी सेरीमनी मनाएंगे । अगर लास्ट सो फ़ास्ट जाकर दिखाएँगे तो सेंटर पर आप का तीव्र पुरुषार्थ का दिन मनाएंगे, फंक्शन करेंगे । सौभाग्यवश जब बाबा ने यह वाणी चलाई तब इस आत्मा ने भी बापदादा के मुखारविंद से इस अनमोल महावाक्य का सम्मुख लाभ लिया और स्टेज पर बाबा से नयन मुलाकात कर वरदान भी प्राप्त किया जिसके फलस्वरूप तभी से ५ स्वरुप के अभ्यास का लाभ उठा रहा हूँ और आज उस महत्वपूर्ण वाणी पर मंथन कर सार रूपी मक्खन निकालने का न सिर्फ सुनहरा मौका मिला है बल्कि उस विशेष वाणी द्वारा हर ब्राह्मण आत्मा में उसकी स्मृति को पुनर्जागृत करने का भी अवसर प्राप्त हुआ है। ईश्वरीय सेवा में, बी.के अनिल कुमार Useful Links Download or View PDF file of this Article 24 केरट गोल्ड जैसा बनने लिए 24 धारणए (मुरली से) 10 Methods to Practice 5 forms of Soul (English) .

  • 8 Oct 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today Hindi BapDada Madhuban (aaj ki murli) 08-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन' 'मीठे बच्चे - सदा खुशी में तब रह सकेंगे जब पूरा निश्चय होगा कि हम भगवानुवाच ही सुनते हैं, स्वयं भगवान हमें पढ़ा रहे हैं'' प्रश्नः- ड्रामा अनुसार इस समय सभी प्लैन क्या बनाते हैं और तैयारी कौन सी करते हैं? उत्तर:- इस समय सभी प्लैन बनाते हैं इतने साल में इतना अनाज पैदा करेंगे। नई दिल्ली, नया भारत होगा। लेकिन तैयारियां मौत की करते रहते हैं। सारी दुनिया के गले में मौत का हार पड़ा हुआ है। कहावत है नर चाहत कुछ और, भई कुछ औरे की और..... बाप का प्लैन अपना है, मनुष्यों का प्लैन अपना है। गीत:- किसी ने अपना बना के मुझको...... ओम् शान्ति।निराकार भगवानुवाच ब्रह्मा तन द्वारा। यह पहली बात तो पक्की कर लेनी चाहिए कि यहाँ कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते, निराकार भगवान् पढ़ाते हैं। उनको हमेशा परमपिता परमात्मा शिव कहा जाता है। बनारस में शिव का मन्दिर भी है ना। पहले-पहले आत्मा को यह निश्चय होना चाहिए कि बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं। जब तक यह निश्चय नहीं तो मनुष्य कोई काम का नहीं है। कौड़ी तुल्य है। बाप को जानने से हीरे तुल्य बन जाते हैं। कौड़ी तुल्य भी भारत के मनुष्य बनते हैं, हीरे तुल्य भी भारत के मनुष्य बनते हैं। बाप आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं। पहले जब तक यह निश्चय नहीं है कि भगवान् पढ़ाते हैं, वह जैसे कि इस कॉलेज में बैठते भी कुछ नहीं समझते हैं। वह खुशी का पारा नहीं चढ़ता। वह है हमारा मोस्ट बिलवेड बाप, जिसको भक्ति मार्ग में दु:ख के समय पुकारते थे - हे परमात्मा, रहम करो। यह आत्मा कहती है, मनुष्य तो समझते नहीं कि लौकिक बाप होते हुए भी हम कौन-से बाप को याद करते हैं? आत्मा मुख द्वारा कहती है यह हमारा लौकिक बाप है, यह हमारा पारलौकिक बाप है। तुम अब देही-अभिमानी बने हो, बाकी मनुष्य हैं देह-अभिमानी। उनको आत्मा और परमात्मा का पता ही नहीं है। हम आत्मायें उस परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं - यह ज्ञान कोई को भी नहीं है। बाप पहले-पहले यह निश्चय कराते हैं भगवानुवाच, मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। तुम देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं, उनको भूल अपने को आत्मा निश्चय कर मुझ बाप को याद करो। कोई मनुष्य वा कृष्ण आदि ऐसे कह न सकें। यह है ही झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार। एक भी सच्चा नहीं। सचखण्ड में फिर एक भी झूठा नहीं होता। यह लक्ष्मी-नारायण सचखण्ड के मालिक थे, पूज्य थे। अभी भारतवासी धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं इसलिए नाम ही है भ्रष्टाचारी भारत। श्रेष्ठाचारी भारत सतयुग में होता है। वहाँ सब सदैव मुस्कराते हैं, कभी बीमार, रोगी नहीं होते। यहाँ भल कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। परन्तु जानते कोई भी नहीं हैं। इस समय का राज्य भी मृगतृष्णा के समान है। एक हिरण की कहानी है ना - पानी समझ अन्दर गया और दलदल में फँस गया। तो इस समय है दुबन का राज्य। जितना श्रृंगारते हैं उतना और ही गिरते जाते हैं। कहते रहते हैं भारत में अनाज बहुत होगा, यह होगा.......। होता कुछ भी नहीं। इसको कहा जाता है - नर चाहत कुछ और, और की और भई। बाप कहते हैं यह कोई राज्य नहीं है। राज्य तो उनको कहा जाए जहाँ कोई किंग-क्वीन हो। यह तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। इरिलीजस, अनराइटियस राज्य है। भारत में तो आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य था। अभी तो कितने धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गये हैं। ऐसा और कोई देश नहीं जो अपने धर्म को नहीं जानते हो। कहा भी जाता है रिलीजन इज माइट। देवताओं का तो सारे विश्व पर राज्य था, अभी तो बिल्कुल ही कंगाल हैं। कितनी बाहर से मदद ले रहे हैं। उन्हों को है बाहुबल की मदद, तुमको है योगबल की मदद। तुम बच्चे जानते हो मोस्ट बिलवेड बाप है जिससे हमको 21 जन्म के लिए सदा सुख का वर्सा मिलता है। वहाँ कभी दु:ख की, रोने आदि की बात ही नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती। न तो आजकल के मुआफिक इकट्ठे 4-5 बच्चे पैदा करते हैं, एक तरफ देखो खाने के लिए नहीं है, कहते हैं बर्थ कन्ट्रोल करो। नर चाहत कुछ और....। समझते हैं न्यु देहली, नया राज्य है। परन्तु है कुछ भी नहीं। मौत सबके गले में पड़ा है। मौत की पूरी तैयारी कर रहे हैं। बरोबर 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक यह वही महाभारत लड़ाई है। बाप कहते हैं यह तो कोई राज्य नहीं है, यह मृगतृष्णा मिसल है। द्रोपदी का भी मिसाल है ना। तुम सब द्रोपदियां हो। बाप का तुमको फ़रमान है कि इन विकारों पर जीत पहनो। हम प्रतिज्ञा करते हैं - हम सदा पवित्र रह भारत को पवित्र बनायेंगे। यह पुरुष लोग पवित्र रहने नहीं देते। कई गुप्त गोपिकायें कितना पुकारती हैं कि यह हमको मारते हैं।तुम जानते हो यह काम महाशत्रु तो मनुष्य को आदि, मध्य, अन्त दु:ख देने वाला है। बाप कहते हैं इस पर तुम्हें जीत पानी है। गीता में भी है भगवानुवाच, काम महाशत्रु है। परन्तु मनुष्य समझते नहीं। बाप कहते हैं पवित्र बनो तब तुम राजाओं का राजा बनेंगे। अब बताओ, राजाओं का राजा बनना है या पतित बनना है? यह एक अन्तिम जन्म बाप कहते हैं मेरे ख़ातिर पवित्र बनो। अपवित्र दुनिया का विनाश, पवित्र दुनिया की स्थापना हो जायेगी। आधाकल्प तुमने विष पीते-पीते इतना दु:ख देखा है, तुम एक जन्म यह नहीं छोड़ सकते हो? अब पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना हो रही है। इसमें जो पवित्र बनेंगे और बनायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। यह राजयोग है। तुम कहते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं तो बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान भी हैं। ब्रह्मा शिव का बच्चा है, तुमको वर्सा देने वाला शिव है। यह इनकारपोरियल गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। वह हेविन स्थापन करने वाला, वर्सा देने वाला शिव है। वही गॉड फादर ब्लिसफुल, नॉलेजफुल बाप बैठ पढ़ाते हैं। परन्तु जब देह-अभिमान निकले तब बुद्धि में बैठे। त़कदीर में नहीं है तो फिर धारणा नहीं होती। बरोबर जगत पिता के तुम बच्चे हो। ब्रह्माकुमार-कुमारियां राजयोग सीख रहे हैं। तुम्हारा ही यादगार खड़ा है। कितना अच्छा मन्दिर है! उनका अर्थ तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानते। पूजा करते, माथा टेकते सब पैसे गँवा दिये। अभी बिल्कुल ही कौड़ी तुल्य बन गये हैं। खाने के लिए अन्न नहीं। अब कहते हैं बच्चे कम पैदा करो। यह कोई मनुष्य की त़ाकत नहीं जो कह सके कि काम महाशत्रु है। यह तो जितना कहेंगे कम पैदा करो उतना ही जास्ती पैदा करेंगे। कोई की ताकत चल नहीं सकती।तुम बच्चों को पहले-पहले यह बात समझानी है कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है, भगवान् एक है। यह एक ही चक्र है जो फिरता रहता है। यह समझने की बातें हैं। मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी यह रूहानी यात्रा का राज़ समझाना है। जिस्मानी यात्रा तो जन्म-जन्मान्तर की, यह रूहानी यात्रा एक ही बार होती है। सबको वापिस जाना है। कोई भी पतित यहाँ रहना नहीं है। अभी कयामत का समय है। इतने जो करोड़ों मनुष्य हैं, यह सब तो सतयुग में नहीं होंगे, वहाँ बहुत थोड़े होंगे। सबको वापिस जाना है। बाप आये ही हैं ले जाने - जब तक यह नहीं समझते हैं तब तक स्वीट होम और सुखधाम याद पड़ नहीं सकता। याद करना तो बहुत सहज है। बाप कहते हैं स्वीट होम चलो। मेरे सिवाए तुमको कोई ले नहीं जा सकता। मैं ही कालों का काल हूँ। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु वन्डर है इतने वर्षों से रहते हुए भी धारणा नहीं होती। कोई तो बहुत होशियार हो जाते, कोई कुछ भी नहीं समझते। इसका मतलब यह नहीं कि पुरानों का ही ऐसा हाल है तो हमारा क्या होगा? नहीं, स्कूल में सभी नम्बरवन थोड़ेही होंगे। यहाँ भी नम्बरवार हैं। सबको समझाना है - बेहद के बाप से वर्सा लेने का अभी समय है। 21 जन्म के लिए सदा सुख का वर्सा पाना है। कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां पुरुषार्थ कर रहे हैं। नम्बरवार तो होते ही हैं।तुम जानते हो पतित-पावन एक ही बाप है। बाकी सब हैं पतित। बाप कहते हैं सबका सद्गति दाता एक है, वही स्वर्ग की स्थापना करते हैं। फिर सिर्फ भारत ही रहेगा, बाकी सब विनाश हो जायेंगे। मनुष्यों की बुद्धि में इतनी बात भी नहीं बैठती है। बाप कहते हैं - बच्चे, मेरे मददगार बनो तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा। गाते तो हैं खुदाई खिदमतगार। वास्तव में वह है जिस्मानी सैलवेशन आर्मी। सच्चे-सच्चे रूहानी सैलवेशन आर्मी तुम हो। भारत का बेड़ा जो डूबा हुआ है उनको सैलवेज करने वाली तुम भारत माता शक्ति अवतार हो। तुम गुप्त सेना हो। शिवबाबा गुप्त तो उनकी सेना भी गुप्त। शिव शक्ति, पाण्डव सेना। सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा यह है, बाकी सब हैं झूठी कथायें इसलिए कहते हैं सी नो ईविल, हियर नो ईविल, मैं जो समझाता हूँ वह सुनो।यह है बेहद का बड़ा स्कूल। इस युनिवर्सिटी के लिए यह मकान बनाये हैं, पिछाड़ी में यहाँ बच्चे आकर रहेंगे। जो योगयुक्त होंगे वह आकर रहेंगे। इन आंखों से विनाश देखेंगे। जो स्थापना तथा विनाश का साक्षात्कार तुम अभी दिव्य दृष्टि से देखते हो फिर तो तुम स्वर्ग में इन आंखों से बैठे होंगे। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। जितना बाप को याद करेंगे उतना बुद्धि का ताला खुलता जायेगा। अगर विकार में गया तो एकदम ताला बन्द हो जायेगा। स्कूल छोड़ दिया तो फिर ज्ञान बुद्धि से एकदम निकल जायेगा। पतित बना फिर धारणा हो न सके। मेहनत है। यह कॉलेज है - विश्व का मालिक बनने लिए। यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां हैं। यह अब भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। यह रूहानी सोशल वर्कर्स हैं जो दुनिया को पावन बना रहे हैं। मुख्य है ही प्योरिटी। श्रेष्ठाचारी दुनिया थी, अभी भ्रष्टाचारी है। यह चक्र फिरता रहता है। यह दैवी झाड़ का सैपलिंग लग रहा है जो आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि को पायेगा। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सच्चे-सच्चे रूहानी सैलवेशन आर्मी बन भारत को विकारों से सैलवेज करना है। बाप का मददगार बन रूहानी सोशल सेवा करनी है। 2) एक बाप से ही सत्य बातें सुननी है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल........इन आंखों से पिछाड़ी की सीन देखने के लिए योगयुक्त बनना है। वरदान:- सरल संस्कारों द्वारा अच्छे, बुरे की आकर्षण से परे रहने वाले सदा हर्षितमूर्त भव अपने संस्कारों को ऐसा इज़ी (सरल) बनाओ तो हर कार्य करते भी इज़ी रहेंगे। यदि संस्कार टाइट हैं तो सरकमस्टांश भी टाइट हो जाते हैं, सम्बन्ध सम्पर्क वाले भी टाइट व्यवहार करते हैं। टाइट अर्थात् खींचातान में रहने वाले इसलिए सरल संस्कारों द्वारा ड्रामा के हर दृश्य को देखते हुए अच्छे और बुरे की आकर्षण से परे रहो, न अच्छाई आकर्षित करे और न बुराई - तब हर्षित रह सकेंगे। स्लोगन:- जो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न है वही इच्छा मात्रम् अविद्या है। मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य ''अजपाजाप अर्थात् निरंतर योग अटूट योग'' 4-2-57 जिस समय ओम् शान्ति कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है मैं आत्मा उस ज्योति स्वरूप परमात्मा की संतान हैं, हम भी उस पिता ज्योतिर्बिन्दू परमात्मा के मुआफिक आकार वाली हैं। बाकी हम सालिग्राम बच्चे हैं तो हमे अपने ज्योति स्वरूप परमात्मा के साथ योग रखना है, उससे ही योग रखकर लाइट माइट का वर्सा लेना है, तभी तो गीता में स्वयं भगवान के महावाक्य हैं, मनमनाभव। मुझ ज्योति स्वरूप पिता के समान तुम बच्चे भी निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ, इसको ही अजपाजाप कहा जाता है। अजपाजाप माना कोई भी मंत्र जपने के सिवाए नेचुरल उस परमात्मा की याद में रहना, इसको ही पूर्ण योग कहते हैं। योग का मतलब है एक ही योगेश्वर परमात्मा की याद में रहना। तो जो आत्मायें उस परमात्मा की याद में रहती हैं, उन्हों को योगी अथवा योगिनियां कहा जाता है। जब उस योग अर्थात् याद में निरंतर रहें तब ही विकर्मों और पापों का बोझ नष्ट हो और आत्मायें पवित्र बनें, जिससे फिर भविष्य जन्म में देवताई प्रालब्ध मिले। अब यह चाहिए नॉलेज तब ही योग पूरा लग सकता है। तो अपने को आत्मा समझ परमात्मा की याद में रहना, यह है सच्चा ज्ञान। इस ज्ञान से ही योग लगता है। अच्छा। ओम् शान्ति। . #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • 12 July 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 12/07/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, sustain one another with knowledge by exchanging jewels of knowledge. Live with one another with great love. Question: On what basis can you maintain limitless happiness while you are unwell or going through the suffering of karma? Answer: Keep the habit of churning the ocean of knowledge. If any suffering of karma comes or an illness occurs, tell yourself: I have now completed my part of 84 births. This is an old shoe. I have to settle my old karmic accounts and I will then become free from all types of illness for 21 births. There is great happiness when one becomes free from any type of illness.Song:Mother o mother! You are the bestower of fortune for all. Om ShantiThis is praise of the mothers. Salutations to the mothers! O mothers, you sustain everyone from Shiv Baba’s treasure-store. You receive jewels of knowledge from Shiv Baba’s treasure-store, that is, you are being sustained from this urn of the nectar of knowledge. In fact, this praise belongs to Shiv Baba, because He is Karankaravanhar, whereas Jagadamba is a mother. Surely, there must be other mothers; this is why mothers are praised. The mothers give very good sustenance. Those who live in Shiv Baba’s yagya are sustained physically and are also sustained with the imperishable jewels of knowledge. Of those who sustain everyone, mothers are the majority. There are many brothers who also sustain sisters. It is not only that sisters sustain brothers. Both sustain one another by exchanging jewels of knowledge: brothers sustain sisters and sisters sustain brothers. You children should live with one another with great love. People in this world only give vice to one another and it is as though they are each other’s enemy. Here, you give the treasures of the imperishable jewels of knowledge. Because they have stone intellects, it is as though they throw stones at one another. It is not that they literally throw stones. That is just an analogy. You are brothers and sisters, Brahma Kumars and Kumaris. Your name is very important. There are Brahma Kumars as well as Kumaris. There is Prajapita Brahma and so there must be Brahma Kumars and Brahma Kumaris as well. People should not become afraid on reading the board. The children of Prajapita Brahma must be Brahma Kumars and Kumaris. You have to make your intellects work on this. The mothers have been praised in the song. Jagadamba is Saraswati. There must be sons and daughters as well; there must be a family. This is also something to be understood. People understand that ‘Prajapita’ is written. Brahma is called ‘Prajapita Brahma’. He is the father of the corporeal world. It is said that the Brahmin clan was created through Prajapita Brahma. Brahmins are the original and eternal clan. In fact, it is wrong to say that the deity religion is the original and eternal one. That is the religion of the golden age. The original, eternal, religion of Brahmins has disappeared. The Supreme Father, the Supreme Soul, establishes the Brahmin religion through Prajapita Brahma. Therefore, this confluence age is even higher than the deity religion. First, there is the Brahmin religion, which is called the topknot. It is called the original, eternal confluence-aged Brahmin religion. It is such a beautiful secret to understand. Baba has explained: First of all, give the Father’s introduction to anyone who comes. This is the main thing. The Brahmins do not have a kingdom. It is written: The golden-aged deity world sovereignty is your Godly birthright. The deity religion definitely did exist, but how and when did they receive that kingdom? This too has to be explained. This is why you definitely have to keep a picture of the Trimurti in front of you. On it is written: The kingdom of heaven is your birthright. You also have to write: Through whom? Make this board and each of you should put one up at your home, just as government officers have boards. Some have badges. Just as each one has his own sign, so you should also have a sign. Baba gives directions and it is the task of the children to put them into practice so that service can take place at a fast speed. This is something very important. Doctors, barristers etc. all have boards put up outside their homes. Baba gives directions: You should also have a board put up: “Come and understand how Shiv Baba gives the kingdom of heaven through Brahma.” People will be amazed on seeing it and will go inside to understand more. You can even put up a board outside your flat. They put up a board indicating what their business is. You should learn from one another. However, Maya attacks the children a great deal. They do not have the faith that they are going to Baba. The parts of 84 births are over and you will go to the new world of heaven to receive your inheritance. However, you are not able to remember this. Baba says: By all means, perform actions, but remember Baba in whatever time you have. Continue to beat the drums that this is the last birth of everyone. You will no longer take rebirth in this land of death. You also understand that this land of death is about to end. First, you have to return to the land of nirvana. You should talk to yourself in this way. This is known as churning the ocean of knowledge. The Father says: You are karma yogis. Don’t you have as much wisdom as even a tortoise? They eat grass to live and then sit down peacefully and withdraw their physical organs. You children have to stay in remembrance of the Father, spin the discus of self-realization and consider yourselves to be master seeds. The whole knowledge of the tree is merged in the Seed: how it is created, how it is sustained and how the cycle of 84 births of the drama turns. The picture of the cycle of 84 births has been created. Human beings think that souls take birth in 8.4 million species, but the Father has explained that you only take 84 births. Those who belong to the original, eternal, deity religion, that is, those who become deities from Brahmins, are the ones who take 84 births. You know these 84 births. It is said: The day of Brahma and the night of Brahma; 84 births are included in this. Make a board of the Trimurti and write: This is your Godly birthright; if you wish to claim it, claim it now. Now or never! Make effort before the Mahabharat War takes place. You understand what Rama (Shiva) gives and what Ravan gives. For half a cycle it is the kingdom of Rama and, for half a cycle, the kingdom of Ravan. It is not that God causes sorrow. It is Ravan, the five vices, that causes sorrow and makes you vicious. You children continue to receive different types of explanation every day and you should therefore remain happy. You understand that Shiv Baba teaches you every day. It is not that you have to remember the corporeal one. Shiva is teaching you easy Raja Yoga through Brahma Baba. Shiv Baba enters Prajapita Brahma. No one else can be called Prajapita Brahma. Brahmins are also definitely needed. It has been remembered: Claim your inheritance of liberation and liberation-in-life, that is, your fortune of the kingdom, in a second. Children say that they are the children of Shiv Baba. He is the Creator of heaven, and so He would definitely give them the kingdom of heaven. Baba is so wonderful! Janak received liberation-in-life in a second. This too has been remembered. You understand that you now belong to Shiv Baba. You definitely have to remember Shiv Baba. When children are adopted, they are aware that they were previously children of so-and-so and that they are now children of someone else. Their hearts move away from their real parents and become attached to the parents who have adopted them. Here, too, you would say that you are the adopted children of Shiv Baba. In that case, what is the benefit in remembering your physical fathers? The most beloved Father gives you such great wealth. The Father makes effort on you children and makes you worthy. You forget such a Father again and again. Everyone else causes you sorrow and yet you continue to remember them and you forget Me, your Father! By all means, live at home, but remember Baba. This requires effort. Simply belong to Me and constantly remember Me and the new world. The whole world is to become a graveyard. If you belong to Me, you will become the masters of the new world. You know that you now belong to Baba and that, in the future, you will become the masters of heaven. Your mercury of happiness should rise. You also understand that your bodies are old. You have to endure the suffering of karma. Mama and Baba also remain happy while experiencing the suffering of karma. There will then be great happiness for the future 21 births. These bodies are old shoes and you will continue to endure the suffering of karma. Then you will be liberated from this for 21 births. You become happy when you are freed from an illness. There is happiness when a calamity is removed. You understand that calamities will be removed for birth after birth. We are now going to Baba. This is churning the ocean of knowledge and extracting points. Baba advises you to talk to yourself in this way: I have completed the cycle of 84 births and am now going to the Father. I will then receive my inheritance from Baba. You also have visions. At this time, some of you have visions and some of you don’t. For example, Mama never had any visions, whereas Baba had visions. He had visions of destruction and establishment. He had an accurate vision of the future. However, he did not initially understand that he was to become Vishnu. He understood later that he was to leave the vicious household religion and go into the viceless household religion. The same applies to you. You also become the same through Baba’s study. You have to race ahead. However, in the song, Mama is praised. You have come to know who the one called Jagadamba is. Who is actually the Mother and Father? By your saying, “Mother and Father”, Jagadamba will not be remembered. It applies to the incorporeal One. This is only in your intellects. It is accurate that God, the Father, is the Father. He is incorporeal. The mother cannot be incorporeal. Since the Father is incorporeal, He would surely have to come here in order to introduce Himself and to give you your inheritance. Therefore, He definitely needs a mother. This Brahma is the senior mother whereas the Grandfather is incorporeal. This is such wonderful knowledge! However, this one is a male because he is a mouth-born creation. This is very wonderful knowledge. The Father says: I explain such deep secrets to you. It cannot sit in anyone’s intellect who the Mother and Father is. They think it applies to Krishna. This is the only difference. This is called the one mistake. Someone has to become an instrument. What mistake was made that Bharat became so unhappy? You understand who made you forget Baba. What made you forget Him? It was definitely Maya, Ravan, who made you turn away from Him. Just as Baba is Karankaravanhar, so Maya too is a karankaravanhar, a bestower of sorrow. She is karankaravanhar, the bestower of sorrow and Shiv Baba is Karankaravanhar, the Bestower of Happiness. Maya turns you away from the Father. The Father Himself says: O souls, now constantly remember Me, your Father. You are My children and you have to claim your inheritance. Simply remember Me and your sins will be absolved. You receive instructions from the unlimited Father through Brahma. It is said: Guru Brahma. This praise belongs to the path of devotion. Guru Brahma is very well known. However, they say that God is omnipresent. Previously, we also used to think that what they said was right. You now understand that Maya made them say this. Maya causes you to make mistakes to bring you down and Baba makes you go beyond making mistakes in order to uplift you. The Father makes your fortune very good. You have to remember the Father; this is very easy. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Consider yourself to be a master seed, withdraw your sense organs and practise sitting in silence. 2. Churn the ocean of knowledge and remain happy. Settle the old suffering of your karma with happiness. Talk to yourself: I have completed 84 births and am now going to Baba. Blessing: May you constantly be an embodiment of power and remain free from all waste with the art of keeping your mind busy. In today’s world, those who are in a high position set their daily work schedule according to the time. Similarly, you, who are images of support for world renewal, the hero actors in the unlimited drama, the ones whose lives are as valuable as a diamond, you also have to set your programme to stabilise your minds and intellects in a powerful stage. Make full use of the art of keeping your mind busy and you will become free from all waste. You will then never get upset. Slogan: Remain cheerful while observing every scene of the drama and you will never be attracted by anything good or bad. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday

  • 6 May 2018 - BK Murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 6 may 2018 - 06/05/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti - Revision - 30/07/83 Where there is true love, there cannot be any wave of sorrow (BapDada's elevated versions on Didi Manmohiniji leaving the body.) Today, Baba is seeing the children who have claimed a right to the unshakeable kingdom, the victorious children who stay in an unshakeable stage. On the basis of having the sanskars of being unshakeable now, you have been unshakeable every cycle in making the first effort of attaining the reward of the unshakeable kingdom. If you watch every scene of the drama while remaining stable at the confluence-aged top point of the drama cycle, you will automatically remain unshakeable and immovable. It is only when you come down from the top point that there is upheaval. Where do all of you Brahmins, you elevated souls, live? In the cycle, the confluence age is the highest age. In terms of the picture, the confluence age is shown at the highest point and, in terms of the ages, the smallest age would be said to be a point. If you remain on that highest point, in the highest place, in an elevated stage, with this elevated knowledge, in remembrance of the highest-on-high Father, doing the highest-on-high service and being embodiments of remembrance, you will remain constantly powerful. Where there is power, all waste is ended for all time. Every Brahmin is making effort to end waste. The account of waste and the karmic accounts of waste have ended, have they not? Or are there still some old accounts of waste? When you took your Brahmin birth, you promised “The body, mind and wealth all belong to You.” Therefore, all waste thoughts ended because you gave your mind to the Almighty Father. In the last two or three days, you haven't made your mind belong to yourself instead of making it belong to Baba, have you? The trustees have been given the direction to have powerful thoughts constantly in their minds. So, is there any margin for anything wasteful? Did you have waste thoughts? You would say that you showed your love. All of you are tied in the thread of the family's love and that is very good. If you shed pearls of love, those pearls became invaluable, but if you shed tears of wasteful thoughts of “Why?” or “What?” that is accumulated in the account of waste. The pearls of love have become a sparkling garland around your loving Didiji's neck. There are many such garlands of such true love around Didi's neck. However, if you had a stage of upheaval - of even one percent - and shed tears, they didn't reach Didi. Why? She was constantly a victorious, unshakeable, immovable soul and is that even now, and so the remembrance of those who have upheaval cannot reach those who are unshakeable. That just remains here. These cannot become pearls and sparkle in the garland. Whatever the stage and position of a soul are, the remembrance of other souls in the same stage and position reaches that soul. You have love and this is a very good sign. If you love her, then surrender your love. Where there is true elevated love, there cannot be any waves of sorrow, because you have gone beyond the land of sorrow. All the sweet complaints also reached here. Everyone's complaint was: Why was our sweet Didi called? BapDada said: The one whom everyone finds to be so sweet, the Father, would also find her sweet. If there is a need for sweetness, who would be called? Those who are the sweetest of all. All of you think and also repeatedly question why the special souls of the advance party are still incognito. You want them to be revealed, do you not? According to the time, some of the souls of the advance party are invoking the elevated souls. Souls who are the original jewels are required for the special task of the original transformation. Special yogi souls who are able to experiment with their power of yoga are required. Souls who are partners with the Bestower of Fortune are needed. Even Brahma is called the bestower of fortune. Do you understand why she has been called? Do you think about what is going to happen here and how it will happen? When Father Brahma became avyakt, you saw what happened and how it happened. Do you think that Dadi is alone now? She doesn't think that. All of you think that. It is like this, is it not? (Signalling towards Dadiji.) You have your divine unity (one of the groups of the sakar days), do you not? So, do you not have the arms of those who belong to the divine unity? There is the divine unity, is there not? Why was that group formed? In order for you to co-operate with one another. Whenever you want and whoever you call, everyone is ready to serve. The Dadis have a lot of love inside for one another. None of you know about it and so you ask: What will happen now? Didi alone proved that all of you original jewels are one. She showed this, did she not? After Father Brahma, in the corporeal form, the nine worship-worthy jewels revealed themselves on the field of service. So, the nine jewels or the rosary of eight are constantly co-operating with one another. Who are in the rosary of eight? Those who take responsibility in service are Arjuna, that is, part of the rosary of eight. So the eight special jewels or the nine jewels are playing their parts on the stage of service, and to play your part is to reveal your part and your number. BapDada would not give a number like that, but it is your part that reveals your number. So the eight jewels are constantly loving and co-operative with one another. This is why the souls who have been co-operating in service from the beginning will always continue to play their parts of co-operating. Do you understand? What other questions do you have? Do you question why you were not told before? If Baba had told you this, you would have become yogis of Didi. The part of the drama is unique (vichitra – without an image) and a picture cannot be taken of something that is without an image. A test paper of upheaval comes suddenly and, even now, this special soul has a part; her part is lovely and unique to the souls who have already gone. You will continue to experience the company and co-operation of this elevated soul in every field. Father Brahma has his own part and her part cannot be like his. However, the speciality of this soul has always been to give zeal and enthusiasm to service and to make others yogi and co-operative and for them to experiment. This is why this special sanskar of this soul will, from time to time, give you all the experience of remaining co-operative. Every soul has his own unique part. Achcha. You came to Madhuban, showed the form of your love and played your parts for the sake of service in the world. You all have come here to spread waves of love, the fragrance of love and rays of love. Therefore, welcome! BapDada is congratulating everyone on behalf of Didiji for their love and their service. Didi is also watching this; she is sitting in front of the TV. You can also see it if you go to the subtle region. This is also a stamp of service. Baba also remembered the daughter Kamal (Didi's sister-in-law) in this gathering. She is also remembering you and all of those who gave their co-operation to the loving and elevated souls. All the tireless children, whether they are sitting here or not, all of you showed your love with good wishes, pure feelings for just the One. That too has been very elevated. For that, Didi especially told BapDada: Give special remembrance and thanks on my behalf to such a loving and serviceable family. So, today, BapDada is carrying out Didi's wish. Today, BapDada is giving a message as the Messenger. Whatever happened in the drama is filled with a lot of significance. All of you love Didi and Didi loved service. This is why service pulled her to itself. Whatever happened was the best of all for opening many curtains of transformation. Neither was it Bhagwati's (doctor) fault, nor was it God's fault. This is a secret in the drama. In this, neither Bhagwati nor Bhagawan (God) could do anything. Never think about a doctor that they did this or performed that operation. Never think that. The love she gave till the end was that of a mother. This is why she didn't fall short of doing anything from her side. This is the performance of the drama. Do you understand? Therefore, don't have any thoughts. Today, I am just being obedient and have come as the Messenger to give a message on behalf of Didi. To all those who remain stable in an unshakeable stage, to those who have claimed a right to the unshakeable kingdom, to those whose intellects have faith and who remain carefree, Trimurti love remembrance and namaste to the victorious children. Achcha. BapDada called all the Dadis onto the stage and made them sit in a semi-circle: The Divine Unity has come here. The rosary is created, is it not? (Speaking to Dadiji) Now, this one (Dadi Janki) and this one (Dadi Chandermani) are your especially co-operative souls. This chariot (Gulzar Dadi) has a double part: BapDada's part and this part is a double part. Everyone co-operates with you. Call this one (Dadi Nirmal Shanta - Brahma Baba's physical daughter) when the weather is fine. All of you are flying birds, are you not? You don't have any bondage of service. Free birds fly as soon as you clap. It is like that, is it not? You are free birds, you are not bound to a special place or special service. There is the bond of world service and unlimited service. This is why you are free. Wherever and whenever there is a need, let it be, "I first". Each of you soul has your own part. The group of Divine Unity is the group that gives sustenance and the Manohar Party is a group that moves forward on the field of service. Now, together with service, there is a special need for sustenance. Just as many souls saw Didi as a mother in terms of sustenance, in the same way, the Mother and Father are one. However, because of being an instrument to play this part in the corporeal form, she played a special part of giving sustenance. In the same way, the original jewels have to give sustenance – you have to give sustenance to enable souls to claim a right to receive the Father's sustenance. It is the Father's sustenance that you have to receive, but you also have to be made worthy of receiving it. So, this soul (Didiji) did very good, number one service of making souls worthy of that. So, all of you are number one, are you not? You are not in the second rosary, are you? You are in the first rosary, are you not? So, all of you who are in the first rosary are number one, are you not? Achcha. Call the Pandavas! All the main senior brothers came onto the stage in front of BapDada: You Pandavas too are the original jewels, are you not? Pandavas are also in the rosary; it isn't just Shaktis in the rosary, there are Pandavas too. In which rosary do you see yourselves? All of you know this and the Father also knows this, but you Pandavas are also especially in this rosary of remembrance, are you not? Who are you? Who understands the self? No task can be accomplished without the Pandavas. To the extent that the Shaktis have power, the Pandavas too have unlimited power for this is why the four-armed image is shown. The combined form: both of you, in the combined form, are achieving success in the task of service. Don't think that just these Dadis are the eight special deities, or that they are the nine jewels, for the Pandavas are among them. Do you understand? Constantly have the crown of this much responsibility. You always have the crown, do you not? All of you co-operate with one another. All of you are the Father's arms and Dadi's co-operative souls and instruments in the corporeal form. The one slogan "We are all one" is the means of constant success. You are those who perform the dance of harmonising sanskars. You will constantly continue to perform this dance in the gathering of elevated souls in every birth. When you perform the dance here, what part does it mean you will constantly play? You will always be friends with elevated souls. You will be their relatives. You will be very close relatives and also be companions as friends and relatives. You will all be friends and also be relatives. So you are the instruments. This was the heart-to-heart conversation with Didi. Therefore, all of the Shaktis and Pandavas became the flowers in the bouquet of shrimat. All of you have special love for Didi, do you not? Achcha. Today, I have come to celebrate a meeting just like that. So, I am now taking leave. (Dadiji placed bhog in front of BapDada and Baba said): Today, I have come to meet you all officially and so Baba won't accept bhog. First, let the children accept it and then the Father. We will continue to meet again and eat and feed one another, but today, I have come as Didi's Messenger. A messenger departs after giving the message. Didi had asked Me to shake hands with Dadi. (BapDada shook hands with Dadiji and then flew to the subtle region. Blessing: May you be seated on your immortal throne and the heart-throne and use your physical senses according to your orders as the master of yourself. “I am a soul seated on the immortal throne, that is, I am a self-sovereign king.” When a king is seated on his throne, all his workers do everything according to his orders. By being seated on the throne, your physical senses automatically do everything according to your orders. Those who are seated on their immortal thrones always have the Father’s heart-throne, because, by considering yourself to be a soul, you remember the Father. There is then neither the body, nor are there bodily relations or possessions: the one Father is your world. Therefore, being seated on the immortal throne, you are automatically seated on the Father’s heart-throne. Slogan: To imbibe the powers to discern, decide and adopt is to be a holy swan. #brahmakumari #english

  • 21 May 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - aaj ki murli - BapDada - Madhuban -21-05-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे - आत्म-अभिमानी भव, एक बाप की श्रीमत पर चलते रहो, तुम्हारा ऊंच कुल है, तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनो" प्रश्नः-शिव शक्ति पाण्डव सेना प्रति बाप का डायरेक्शन कौन-सा है? उत्तर:-बाप का डायरेक्शन है - श्रीमत पर चल तुम इस भारत का बेड़ा पार करो। सर्व धर्मान् परित्यज... मामेकम् याद करो। पावन बनकर औरों को पावन बनाओ। तुम शिव शक्ति, पाण्डव सेना पवित्र बन अपने तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करो। तुम श्रीमत पर नानवायोलेन्स (अहिंसा) के बल से भारत की सच्ची सेवा करो। गीत:-ओम् नमो शिवाए.... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। यह है निराकार शिव परमपिता परमात्मा की महिमा। उनको भगवान कहा जाता है। भगवान एक ही होता है। भारतवासियों के भगवान अनेक हैं। कुत्ता, बिल्ली, पत्थर, भित्तर सबको भगवान मान लेते हैं और खुद को भी भगवान समझते हैं इसलिए भगवान कहते हैं यह सब नास्तिक हैं। परमपिता परमात्मा की तो बहुत महिमा है, पतित सृष्टि को पावन करते हैं अथवा कौड़ी जैसे कंगाल भारत को हीरे जैसा सिरताज बनाते हैं। 5 हज़ार वर्ष की बात है जबकि भारत डबल सिरताज था। यह कौन समझाते हैं? वही परमपिता परमात्मा शिव, जिसको ज्ञान का सागर भी कहते हैं। महिमा रचता बाप की है, बाकी तो सब हैं रचना। भारतवासी कहते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे। भारत को सुख घनेरे थे, अब नहीं हैं। अब है आसुरी रावण सम्प्रदाय। हरेक नर-नारी में 5 विकार व्यापक हैं, इसमें राजा-रानी, साधू-सन्यासी आदि सब आ जाते हैं। कोई न कोई विकार है जरूर। यह है ही पतित दुनिया, पतित भारत। सतयुग में भारत पावन था। पवित्र गृहस्थ धर्म, पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। अभी है अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग। भारत डबल सिरताज था, अथाह धन था, हीरे-जवाहरों के महल थे, बाद में मुसलमानों आदि ने लूटकर अपने मस्ज़िदों, कब्रों आदि में हीरे-जवाहर लगाये हैं। भारतवासी तो बिल्कुल ही कंगाल बन गये हैं। मेरे को भूलने कारण नास्तिक बन पड़े हैं। मैं तो भारतवासियों को देवता बनाता हूँ। महिमा भी है कि तुम मात-पिता... तो जरूर बाप से ही स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। उनसे स्वर्ग के सुख घनेरे मिल सकते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ - राजयोग और ज्ञान सिखला करके। परमपिता परमात्मा आत्माओं को आकर पढ़ाते हैं, कहते हैं आत्म-अभिमानी भव। ऐसे नहीं, परमात्म-अभिमानी भव। यह रांग है। ईश्वर सर्वव्यापी है नहीं। बाप है शिव और बच्चे हैं सालिग्राम। दोनों ही परमधाम में रहते हैं। तो हम सब आत्मा ठहरे। सन्यासी फिर कह देते ब्रह्मोहम्, ब्रह्म ही ब्रह्म है। बाकी सब झूठ है। हम भी ब्रह्म हैं। अब श्री श्री 108 जगत गुरू, पतित-पावन तो एक है, उनको ही सतगुरू कहा जाता है। जो पतित दुनिया में रहने वाले हैं उनको पतित-पावन कैसे कहेंगे? वह खुद ही पतित हैं तो औरों को पावन कैसे करेंगे। जो पहले पवित्र हैं उनको भी शादी कराए और ही पतित बना देते हैं।अब शिवबाबा कहते हैं - बच्चे, आत्म-अभिमानी भव। अपने को आत्मा निश्चय करो। बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। श्रीकृष्ण को भगवान नहीं कहा जा सकता। वह है दैवी गुणों वाला मनुष्य। सतयुग का प्रिन्स था। परमपिता परमात्मा की महिमा बहुत भारी है। खुद आत्माओं को कहते हैं - हे आत्मायें, तुम जब सतयुग में थी तो कितनी पावन थी, अब पतित बन पड़ी हो। अब अगर तुमको फिर से सुखी बनना है तो श्रीमत पर चलो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है ही भगवान की। मनुष्य तो एक तऱफ कहते - भगवान नाम-रूप से न्यारा है फिर कह देते - वह सर्वव्यापी है, इसको कहा जाता है धर्म ग्लानि। कोई को पता नहीं कि भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। वह किसने स्थापन किया - कुछ नॉलेज नहीं। बाप और बाप की रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं। मनुष्य ही जानेंगे, जानवर तो नहीं जानेंगे। शिवबाबा को भी बाबा कहा जाता है। फिर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कुल की स्थापना होती है। कोई भी मनुष्य नहीं जानते कि परमपिता परमात्मा हमको कैसे रचते हैं और फिर कैसे पालना कराते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है मनुष्य सृष्टि को रचने वाला, फिर परमपिता परमात्मा को भी क्रियेटर कहते हैं। वह आत्माओं का बाप है। तो सब हो गये शिव की सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। वर्सा उस मात-पिता से मिलता है। बाबा कहते हैं मैंने तुमको जन्म दिया तो याद फिर भी मुझे करना है और वर्से को भी याद करो। मौत सामने है। मरने समय कहते हैं भगवान को याद करो। अब भगवान खुद कहते हैं - बच्चे, तुम मेरी श्रीमत पर चलो। एक है यादव मत, दूसरी है कौरव मत। यह है पाण्डव मत। पाण्डवों को मिलती है ईश्वरीय मत। गाया भी हुआ है विनाश काले विप्रीत बुद्धि। पाण्डवों की है प्रीत बुद्धि।तुम जानते हो - यह है झूठ खण्ड। पाँच हज़ार वर्ष पहले था सचखण्ड। देवतायें राज्य करते थे। भारतवासी सारे विश्व के मालिक थे जो अभी नहीं हैं। अभी तुम फिर से विश्व के मालिक बन रहे हो। सतयुग में वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी का राज्य था, अभी वह नहीं है। बाप कहते हैं फिर से मैं स्थापन कर रहा हूँ। बाकी सब धर्म खलास हो जायेंगे। अब तुम पतित-पावन परमात्मा को याद करो, अपने को आत्मा समझो। पाप-आत्मा, पुण्य-आत्मा कहा जाता है। भारत में सब पुण्य-आत्मायें थे, अभी पाप-आत्मायें हैं। पुण्य-परमात्मा नहीं कहेंगे। तुम बच्चों के अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। अब मैं आया हूँ बच्चों को वापस ले जाने, मैं तुम्हारा बेहद का बाप टीचर भी हूँ। तुमको बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी का राज़ बतलाकर स्वदर्शन चक्रधारी बनाता हूँ। देवतायें स्वदर्शन चक्रधारी नहीं होते। ब्राह्मणों का है सबसे ऊंच कुल। ब्राह्मण चोटी हैं ना। प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान जो फिर देवता बनने वाले हैं। बाप कहते हैं तुम पहले ब्राह्मण थे, फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने। पुनर्जन्म लेते आये। अब फिर तुमको शिक्षा दे देवी-देवता बनाता हूँ। इस समय भारतवासी बिल्कुल कब्रदाखिल हैं और अपने को बड़े-बड़े टाइटिल देते रहते हैं - सर्वोदया लीडर। सर्व अर्थात् सारी सृष्टि के मनुष्य मात्र पर दया, सो तो मनुष्य कर न सके। नॉलेजफुल, ब्लिसफुल एक ही बाप को कहा जाता है। अब बाबा कहते हैं सर्व धर्मान् परित्यज.... मामेकम् याद करो तो योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। ऐसे नहीं, पतित-पावनी गंगा है। पतित-पावन एक ही बाप है। यह है शिव शक्ति पाण्डव सेना, जो पवित्र रहते हैं। यह भारत की मातायें शिव शक्ति पाण्डव सेना हैं जो तन-मन-धन से इस भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। एक तऱफ है नानवायोलेन्स, दूसरे तरफ है वायोलेन्स। वह क्या करते हैं और तुम क्या करते हो? यादगार खड़ा है, 5 हज़ार वर्ष पहले जो सेवा की थी उनका यादगार है। तुम सर्विस करते हो। यह नॉलेज है, इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। तुम शिव के मन्दिर में जाते हो परन्तु जानते नहीं कि शिवबाबा तो स्वर्ग का रचयिता है। तो उनसे जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। परमात्मा हमेशा बच्चों को सुख का वर्सा देते हैं इसलिए सब उनको याद करते हैं - पतित-पावन आओ। हे बाबा, हमको आकर फिर से स्वर्ग का राज्य-भाग्य दो, आकर जीवन्मुक्ति दो। सद्गति दाता भगवान ही है। पावन बनकर औरों को पावन बनाने वाले तुम शिवशक्ति पाण्डव सेना हो। तुम श्रीमत पर भारत का बेड़ा पार करने वाले हो। तुम्हें बाप की श्रीमत मिली हुई है - सर्व धर्मान् परित्यज.. मामेकम् याद करो। वह बाप है सत्-चित-ज्ञान का सागर, सुख का सागर..। वह आते हैं बच्चों को पढ़ाने। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आत्मायें सुनती हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप कहते हैं तुम हो सिकीलधे बहुतकाल से बिछुड़े हुए.... परमधाम से पहले कौन सी आत्मायें आती हैं? जिनको अन्त तक यहाँ रहना है। स्वर्ग के आदि में यह देवी-देवतायें थे। उन्होंने ही पूरे 84 जन्म भोगे हैं। जब परमपिता परमात्मा आते हैं तो बहुत काल से जो बिछुड़ी हुई आत्मायें हैं वही पहले-पहले आकर बाप से वर्सा लेती हैं। बच्चे, गृहस्थ व्यवहार में रहते बाबा को याद करो, कमल फूल समान रहो, श्रीमत पर फिर से ऐसा श्रेष्ठ बनो। आधाकल्प तुमने बहुत सुख भोगा था फिर माया रावण ने आसुरी मत से तुमको गिराया। जो सूर्यवंशी थे वही चन्द्रवंशी बने.... अब फिर शूद्र से ब्राह्मण बने हो। तुम हो गुप्त। तुमको कोई पहचानते नहीं। बेहद का बापू जी कहता है मैं सारे सृष्टि का बापू जी हूँ, स्वर्ग तो मैं ही स्थापन करूँगा। हद के बापू जी ने फॉरेनर्स को भगाया। यह फिर सबको इस सृष्टि से भगाकर ले जाते हैं। अनेक धर्मों का विनाश, एक धर्म की स्थापना हो रही है। इन सब बातों को समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा होगा। जो सूर्यवंशी राज्य में आते हैं वही फिर आकर राज्य करेंगे। यह बड़ा झाड़ है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है। कलियुग है काँटों का जंगल और सतयुग है फूलों का बगीचा। जो एक दो को सुख देते हैं उनको कहा जाता है दैवी सप्रदाय। जो दु:ख देते हैं उनको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय। शिवबाबा आकर शिवालय स्थापन करते हैं। तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। भारत में पहले दैवी सम्प्रदाय थे फिर आसुरी सम्प्रदाय अथवा शूद्र सम्प्रदाय बने हैं। अब फिर तुम दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। अब तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो फिर देवता बनेंगे। इस चक्र को अच्छी रीति समझना है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। वन्दे मातरम्। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सबको सुख दे दैवी सम्प्रदाय का बनना है। आसुरी सम्प्रदाय वाला कोई भी कर्तव्य नहीं करना है। शिवालय की स्थापना में मददगार बनना है। 2) आत्म-अभिमानी होकर रहना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बाप को ही याद करना है। योग अग्नि से अपने विकर्म दग्ध करने हैं। वरदान:- रूहानी गुलाब बन चारों ओर रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले आकर्षण मूर्त भव l सदा स्मृति रहे कि हम भगवान के बगीचे के रूहानी गुलाब हैं। रूहानी गुलाब अर्थात् कभी भी रूहानियत से दूर होने वाले नहीं। जैसे फूलों में खुशबू समाई हुई होती है, ऐसे आप सबमें रूहानियत की खुशबू ऐसी समाई हुई हो जो ऑटोमेटिक चारों ओर फैलती रहे और सबको अपनी ओर आकर्षित करती रहे। अभी आप ऐसे खुशबूदार वा आकर्षण मूर्त बनते हो तब आपके यादगार मन्दिर में भी अगरबत्ती आदि से खुशबू करते हैं। स्लोगन:- परोपकारी वह है जो स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करने के निमित्त बनते हैं। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 24 Aug 2018 Aaj ki Murli

    Brahma kumaris murli today Hindi -BapDada -Madhuban -24-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहना है, किसी बात का फिक्र नहीं करना है" प्रश्नः- जिनकी अवस्था अच्छी है, उनकी निशानियां क्या होंगी? उत्तर:- उन्हें किसी भी बात में रोना नहीं आयेगा। मुरझायेंगे नहीं, गम वा अफसोस नहीं होगा। हर सीन साक्षी होकर देखेंगे। कभी क्यों, क्या के प्रश्न नहीं करेंगे। किसी के नाम रूप को याद नहीं करेंगे, एक बाबा की याद में हर्षितमुख रहेंगे। गीत:- माता ओ माता .... ओम् शान्ति।मीठे बच्चों को फरमान है कि बेहद के बाप को याद करते रहो। जो भी नाम रूप वाले बच्चे बाप की सर्विस में हैं, उनसे यह ज्ञान और योग सुनना है। वह भी यही सुनायेंगे कि बाप को याद करो क्योंकि वर्सा उनसे मिलता है। मम्मा भी तो वही सुनाती है, बच्चे भी वही सुनाते हैं कि शिवबाबा को याद करो। तुम बच्चे यहाँ शिवबाबा की याद में बैठे हो, तुम्हें कोई फिकर नहीं करना है क्योंकि तुम बेहद के बाप से यह वर्सा ले रहे हो। इनमें कोई भी शरीर छोड़कर जाते हैं तो हम कहेंगे कि यह भी भावी है। कल्प पहले भी यह हुआ था क्योंकि ड्रामा के ऊपर भी तो चलना पड़े ना, जिससे कोई फिक्र नहीं रहे। आज मम्मा गई, कल और भी कोई चले जायेंगे फिर भी बाप को मुरली सुनानी है जरूर। बाबा तुम बच्चों को नई-नई प्वाईन्ट्स सुनाते, उनका अर्थ समझाते रहते हैं और यही सबको कहते हैं कि बच्चे बाप को याद करो, कोई भी नाम रूप में फसों मत। यह तो सब बच्चों के लिए ज्ञान है। आगे चल करके और भी बहुत कुछ वन्डरफुल बातें देखने की हैं। इस समय तो हैं ही दु:ख की बातें, परन्तु उस दु:ख का हमें कोई फिकर नहीं है। देखो, यह बाबा (साकार) तो कोई फिकर में नहीं है क्योंकि जानते हैं कि हमको तो बाबा को ही याद करना है, हमको बाबा से वर्सा लेना है। बाबा ने समझाया है कि क्रियेशन से कोई वर्सा नहीं मिलता है, क्रियेशन को क्रियेटर से वर्सा मिलना है इसलिये जो भी क्रियेशन (बच्चे और बच्चियां) हैं, उन्हें एक क्रियेटर को याद करना है। चाहे कुछ भी हो जाये। समझो कोई भी ऐसा विघ्न पड़ता है तो उसमें संशय की तो कोई बात ही नहीं है क्योंकि एक शिवबाबा को ही याद करना है, इसमें ही बच्चों का कल्याण है। अगर कोई अच्छी सर्विस करते-करते चला जाता है तो समझना चाहिए कि जो भी कोई जाता है, उसे जा करके और कहाँ पार्ट बजाना है। कोई न कोई कल्याण के कारण यह सब कुछ होता है क्योंकि बाप कल्याणकारी है और यह संगमयुग ब्राह्मणों का है ही कल्याणकारी। हर एक बात में कल्याण समझ फखुर में ही रहना है क्योंकि हम ईश्वरीय सन्तान हैं। ईश्वर से वर्सा लेते हैं, वर्सा लेते-लेते कोई चले जाते हैं तो जरूर उनका कोई और पार्ट होगा, इससे भी जास्ती कोई कार्य करना है।अहो सौभाग्य! जो हमारा ही पार्ट है कल्प पहले मुआफिक बाप के मददगार बनने का। मददगार बनते-बनते कोई जनरल भी मर पड़ते हैं। हम समझते हैं ड्रामा अनुसार ही यह सब कुछ होता है, कोई गया तो क्या हुआ। हमें उनके लिए कुछ करना नहीं है। हमारा तो सब कुछ गुप्त है। वास्तव में अवस्था उनकी अच्छी है, जिन्हें कभी आंसू न आये। कभी ऐसे भी न समझे कि मम्मा का शरीर छूट गया, अब क्या होगा! ऑसू आये तो नापास हो जायेंगे क्योंकि बाप बैठा है ना, जो हम सबको वर्सा दे रहे हैं। वह तो अमर ही है, उसके लिये कभी कोई ऑसू आने की दरकार भी नहीं है। हम तो खुद भी खुशी से शरीर छोड़ने के लिये पुरुषार्थ कर रहे हैं। मम्मा का भी कोई कार्य अर्थ इस समय जाने का था, यह भी ड्रामा है। कोई भी अपनी अवस्था अनुसार शरीर छोड़े तो उनका कल्याण है। बहुत अच्छे घर में जन्म लेकरके वहाँ भी कुछ अपनी खुशी देंगे। छोटे-छोटे बच्चे भी सबको खुश कर देते हैं। सभी उनकी बहुत महिमा करते हैं। तो बच्चों का ड्रामा के ऊपर और बाप के ऊपर मदार है। जो कुछ भी होता है, सेकण्ड बाय सेकण्ड.. वह ड्रामा की नूँध है, ऐसा समझ करके खुशी में, सदा हर्षित रहना चाहिए।कोई भी नाम रूप में हम लोगों को फंसना नहीं है। पता है यह शरीर है, इसको तो जाना ही है। हरेक का पार्ट नूँधा हुआ है, हम रोयेंगे तो क्या रोने से उनका पार्ट बदल सकता है, इसलिये बच्चों को बिल्कुल अशरीरी, शान्त और फिर हर्षितमुख रहना है। अटल, अखण्ड राज्य लेना है तो ऐसा बनना भी है। कोई भी इत़फाक हो जावे तो कहेंगे भावी है ड्रामा की, अफसोस की तो कोई बात नहीं। कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था। इतफाक तो होने ही हैं, चलते-चलते अर्थक्वेक्स हो जाते हैं। ऐसे नहीं है कि तुम्हारे में से कोई नहीं मरने हैं, नहीं। कोई भी मर सकते हैं, कोई भी इत़फाक हो सकता है इसलिए बाबा समझाते हैं कि बच्चे हमेशा बाप की याद में, फ़खुर में रहो। इसमें जो पार्ट जिसको मिला हुआ है वह बजाता है, उसमें हमको क्या करना है। हमारा ज्ञान ही ऐसा है - अम्मा मरे तब भी हलुआ खाना, यानि ज्ञान रत्न देना। समझो बाबा कहता है, यह बाबा भी चला जाये... तो तुम बच्चों को फिर भी नॉलेज तो मिली हुई है कि हमको शिवबाबा से वर्सा लेना है, इनसे तो नहीं लेने का है। बाप कहते हैं यह सब बच्चे जो हैं मेरे से वर्सा ले करके दूसरों को रास्ता बताते हैं। तुम बच्चों को अन्धों की लाठी बनना है, बाप का परिचय देना है। हरेक के ऊपर मेहर करना है। तुम्हारा यही पुरुषार्थ है कि यह बिचारे दु:खी हैं, इनको सुख का रास्ता बतायें। इस दुनिया में सिवाए एक बाप के और कोई भी सुख का रास्ता बताने वाला है ही नहीं। लिबरेटर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता एक ही है, उनको ही याद करना है।यहाँ दु:ख की कोई भी बात नहीं होनी चाहिए, कुछ भी हो जाये। भले हम जानते हैं तुम्हारी मम्मा सर्विसएबुल सबसे नम्बरवन गाई जाती है। उनके हाथ में सितार दिखाते हैं, बरोबर जगदम्बा यानि मातेश्वरी वह बहुत अच्छा समझाती थी। वह भी कहती थी कि शिवबाबा को याद करो। मुझे नहीं याद करना। मनमनाभव, मध्याजीभव - यह दो अक्षर मशहूर हैं। बाकी तो डिटेल है।तो कोई भी हालत में, कोई भी संशय किसको पड़े, यह क्या हुआ, ऐसा क्यों हुआ... तो इससे अपना ही नुकसान कर देंगे। तुम बच्चों को कोई भी हालत में दु:ख की महसूसता नहीं आनी चाहिए। भले बीमारी हो, कुछ भी हो... यह तो कर्मभोग है। बाबा से पूछते हैं - बाबा यह क्या है? बाबा कहेंगे यह तुम्हारा कर्मभोग है। अगर कोई बात ड्रामा में पहले से बताने की नहीं है तो मैं कैसे बताऊं...! यह बाबा भी साक्षी हो करके देखते हैं, तो बच्चों को भी साक्षी हो करके देखना है और बाप की याद में फ़खुर में रहना है कि हम ईश्वर की सन्तान हैं, ईश्वर के पोत्रे और पौत्रियाँ हैं। ईश्वर से वर्सा ले रहे हैं। बरोबर हम जानते हैं मम्मा ने भी ईश्वर का वर्सा लेते-लेते, शरीर छोड़ दिया। हम हर एक को तो बस बाप और वर्से को याद करना है। सारा मदार पुरुषार्थ पर है। यह बच्चे भी महसूस कर सकते हैं कि जितना हम पढ़ेंगे उतना ऊंचा पद पायेंगे। ऊंचा प्रिन्स बनेंगे। सूर्यवंशी भी प्रिन्स और चन्द्रवंशी भी प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेस हैं। तो बच्चों को पढ़ाई पढ़ना ही है, कुछ भी हो जाये पढ़ना जरूर है। ऐसे थोड़ेही है - कोई का माँ/बाप मरता है तो बच्चा पढ़ाई छोड़ देगा, नहीं। तो तुमको भी पढ़ाई रोज़ पढ़ना है। तुम्हें एक दिन भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है, सर्विस भी हर हालत में जरूर करनी है। हर वक्त बुद्धि में वही एक बाबा याद रहे। तुम्हें वही पढ़ा रहे हैं और उनसे ही वर्सा लेना है। उसने ही हमारी बुद्धि का ताला खोला है। सारे ब्रह्माण्ड, सूक्ष्मवतन और फिर सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान हमारे बुद्धि में है। इसी ज्ञान से हम चक्रवर्ती बनते हैं। बस, उसी नशे में, मौज में रह सबको सुनाना भी ऐसे ही है क्योंकि तुम बच्चे जो पक्के ब्राह्मण बने हो, तुन्हें कोई फिक्र नहीं है। इसमें कोई मुरझाने की, फिक्र करने की बात ही नहीं है। ऐसी अच्छी अवस्था चाहिए।तुम समझते हो कि अन्त में विजय हमारी होनी ही है, ढेर के ढेर अपना वर्सा लेने के लिये आयेंगे। कुछ भी हो, तुम्हारे सर्विस की वृद्धि होती ही रहेगी, सिर्फ तुम्हारी एक्टिविटी दैवी चाहिए। उसमें कोई भी आसुरी गुण नहीं चाहिए। किससे लड़ना, झगड़ना, किससे कडुवा बोलना या अन्दर में कुछ लालच, लोभ, क्रोध ..आदि अगर होगा तो बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी इसलिए कोई को भी दु:ख नहीं देना है। सबको सुख का रास्ता बताना है। कोई छोटे बच्चे हैं, चंचलता करते हैं तो भी चमाट नहीं मारनी है। उन्हें भी प्यार से चलाना है। घर में भी बड़ा युक्ति से चलना है। कई हैं जो यहाँ बहुत अच्छी तरह से समझते हैं, घर में जाते हैं तो उन्हें माया हैरान करती है। यह भी बाप समझते हैं कि बच्चे तूफान जोर से आते रहेंगे, दिनप्रतिदिन तूफान और विघ्न पड़ते रहेंगे, तुम्हें घबराना नहीं है। बाप कहते हैं इस हमारे रूद्र ज्ञान यज्ञ में अथाह विघ्न पड़ेंगे, क्योंकि यह नई नॉलेज है।कोई पूछते हैं तुम शास्त्रों को मानते हो? बोलो हाँ, मानते हैं यह सब भक्तिमार्ग के शास्त्र हैं। यह ज्ञान मार्ग है। ज्ञानेश्वर बाप कहते हैं मुझे याद करो बस, हम भी तुमको कहते हैं बाप को याद करो। करो न करो तुम्हारी मर्जी। अभी नर्क है, रावण राज्य है। अब बाप और स्वर्ग को याद करो। तुम गंगा में स्नान तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो, फिर भी दुनिया पतित बनती आई है। अभी बाप कहते हैं बस, मुझे याद करो। जो यहाँ के होंगे उनके संस्कार ही देखने में आयेंगे, वह झट समझ जायेंगे।तुम अभी बेहद के बुद्धिवान हो। सयाने को बुद्धिवान कहा जाता है। तो तुम्हें उसी नशे में रहना है। बाकी गम की कोई बात नहीं है, यह हम जान गये कि ड्रामा चल रहा है। तुम कहेंगे वाह! मम्मा गई! वह एक्टर दूसरा एक्ट करने गई। इसमें मूंझने की, रोने की, दु:ख की दरकार नहीं है। वह कोई ऊंची सर्विस करने के लिये गई। तुम दिन-प्रतिदिन ऊंचे बनते जाते हो। कोई शरीर छोड़ेगा तो भी ऊंची सर्विस जाके करेगा, इसलिए बच्चों को कोई भी दु:ख नहीं होना चाहिए। मम्मा क्या, सभी जायेंगे। हमको भी बाबा के पास जाना है, हमारा काम है बाबा से। सबका काम है बाबा से, मम्मा का काम था बाबा से। अभी उनसे वह नॉलेज पा करके सर्विस करके जाके कोई दूसरी सर्विस के लिये दूसरा पार्ट बजाने गई। हम साक्षी हो करके देखते हैं। ऐसे नहीं कि मम्मा चली गई, फलानी चली गई, यह चली गई... अरे आत्मा सर्विस के लिये गई। शरीर तो सब खाक में ही मिलने हैं। इसलिये कभी भी बच्चों को कोई प्रकार का फिक्र नहीं करना है। हाँ, यह सत्य है, यह जो स्टूडेन्ट बाबा का था, यह बड़ा अच्छा था। अच्छा समझाता था... गाया जाता है। अगर कोई भी प्रकार का संशय आया तो यह खत्म हुआ, पद से भ्रष्ट हो जायेगा इसलिये बाबा बच्चों को समझाते रहते हैं बच्चे, कोई प्रकार का फिक्र नहीं करो। डायरेक्शन्स जो मिलते हैं उन्हें अमल में लाते रहो। ऐसे मत समझो कि यह क्या हो गया? फिक्र उनको होगा जो बाप को और नॉलेज को भूलेगा। तुम बच्चे सभी मास्टर नॉलेजफुल हो। जिसका जो पार्ट है, उसमें हम कर ही क्या सकते हैं?अच्छा - रात्रि को तो सब याद में बैठे, अच्छी कमाई हो गई। बाबा यहाँ आ करके बच्चों को देखते हैं, खुश होते हैं कि यह बगीचा बन रहा है। अभी ब्राह्मण हैं, इसके पीछे देवी-देवताओं का बगीचा बनना है। अभी यहाँ सब पुरुषार्थी हैं। कोशिश कर रहे हैं अच्छा फूल बनने की। कांटे को फूल बनाने का शो करेंगे। तुम्हें यहाँ स्थेरियम होकर बैठना है। बाबा देखो कितना पक्का कराते हैं। बाबा का फरमान मिला हुआ है सिर्फ मुझे याद करो। कोई ने रोया तो बाबा कहेंगे जिन रोया तिन खोया। बाबा देख रहा है कोई मुरझाया हुआ फूल तो नहीं है? नहीं। सब महावीर हैं। ऐसे-ऐसे विघ्न तो आने ही हैं। ड्रामा है, भावी है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अपनी दैवी एक्टिविटी बनानी है। कभी भी लड़ना, झगड़ना नहीं है, कडुवा नहीं बोलना है, लोभ लालच नहीं रखना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। सबको सुख का रास्ता बताना है। 2) कोई भी विघ्न में संशय नहीं उठाना है, ड्रामा की निश्चित भावी समझ फखुर में रहना है, फिक्र नहीं करना है। वरदान:- सदा भरपूरता की अनुभूति द्वारा टेढ़े रास्ते को सीधा बनाने वाले शक्ति अवतार भव l सदा शक्ति के, गुणों के, ज्ञान के, खुशी के खजाने से भरपूर रहो तो भरपूता के नशे से टेढ़ा रास्ता भी सीधा हो जायेगा। अगर खाली होंगे तो खड्डा बन जायेगा और खड्डे में गिरने से मोच आयेगी। जो कमजोर और खाली होते हैं उन्हें संकल्पों की मोच आती है। शक्ति अवतार अर्थात् टेढ़े को सीधा करने का कान्ट्रैक्ट लेने वाले। ऐसा कान्ट्रैक्ट लेने वाले कभी यह नहीं कह सकते कि रास्ता टेढा है। अगर कोई गिरते हैं तो अटेन्शन की कमी है या बुद्धि भरपूर नहीं है। स्लोगन:- रूहाब को धारण करने वाले ही रूहानी गुलाब हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

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