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  • GOD OF GODS the Movie

    God of Gods is a spiritual film created by Prajatpita Brahma Kumaris - Films and media division. Written and filmed by BK Venkatesh. Learn, watch or download. This movie will give the true understanding of the self (soul), of God (the supreme soul) and the eternal World Drama of 5000 years, passing through the four ages (Golden age, silver age, coppe and iron age). Movie explains when and how God comes and transforms the old world (iron age) into new (Golden age), which is remembered by many names: Satyug, Heaven, Paradise, Garden of Allah, Vaikuntha and more. This is our 'official' page for all info, videos, Full movie, download, and useful links of this movie. ✦ Watch: FULL movie - GOD of Gods - Hindi ✦ Download Full movie in HD (use a PC to download) ✦ Watch: FULL movie - GOD of Gods - ENGLISH ✦ ********************** Here is a public review (experiences) of the movie -> ********************** ✦ Movie Review by BKs and Non-BKs ✦ Movie was released on 3 March 2019 (on the day of Maha Shivratri). This is the first ever film made on our spiritual father (Shiv baba) and world drama cycle that will be displayed in general cinemas. *** Official Movie Poster *** This film will be a beautiful and meaning story of human souls (us) who took a journey of 5000 years within the 4 distinct ages (Golden, silver, copper, iron). This is the story of victory and defeat, rise and fall, of knowledge and ignorance. How God comes at the end of cycle to re-create the Golden age (heaven) in world. It is a true story of us human souls (human beings). Revealed by the God father, our most beloved Shiv baba, in Murli, through prajapita brahma. Welcome to the God fatherly university for liberation in life for all the souls. ✶ WHERE TO WATCH ? You can watch this film as it releases on 3rd of March, at your nearest PVR theaters. Here is the list of cinemas which will show this film. You may download using PC or simply visit the Google Drive shared folder. Download Zipped OR Visit the folder. ✪ (video) Blessings from seniors in Yagya ✪ ***** ✪ Watch trailers of the movie (God of Gods) in Hindi, English, Tamil and Telugu ✪ ▶Watch trailer in Hindi + Review - हिन्दी मे देखे ▶ Watch Trailer in English + Review Watch in Tamil - தமிழ் Watch in Malayalam - తెలుగులో చూడండ All Language Trailers (YouTube Playlist): http://bit.ly/GodOfGodsBk . ▶ GOD OF GODS Movie Making You can visit the same in Hindi - GOD of GODS in Hindi ~~~ Movie Production Team ~~~ Producer ➞ BK Jagmohan & BK IMS Reddy Executive Producer ➞ BK Karuna (mount abu) Writer /Director ➞ BK Venkatesh VFX Supervisor ➞ BK Ajeet Cinematographer ➞ BK Karan Production Controller ➞ BK Parsuman Digital Painter ➞ BK Subhash ✣✣✣ Useful links ✣✣✣ Video Gallery (important videos) Single Videos - Selected About Brahma Kumaris (introduction) Online Internet Services Resources - Audio collection All BK Websites BK Google - Search engine On God-fatherly World Service Brahma Kumaris University press, Madhuban ---------------- * ---------------- #brahmakumari #brahmakumaris #Hindi #english

  • 18 June 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 18-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन" मीठे बच्चे-तुमने ईश्वर की गोद ली है मनुष्य से देवता बनने के लिए, उनकी श्रीमत ही तुम्हें मनुष्य से देवता बना देती है“ प्रश्न: आप मुये मर गई दुनिया-इसका अर्थ क्या है? उत्तर: आप बच्चे जब बाप के पास जीते जी मरते हो तो सारी दुनिया ही खत्म हो जाती है। दूसरे मनुष्य तो जिस दुनिया में मरते हैं उसी दुनिया में जन्म लेते, लेकिन तुम्हारा जन्म फिर इस पुरानी दुनिया में नहीं होता। नया जन्म नई दुनिया में होता है। तुम बच्चों को स्वर्ग की बादशाही मिल जाती है। गीत: मरना तेरी गली में..... ओम् शान्ति।यह भी गायन इस समय का है, जो फिर भक्ति मार्ग में गाया जाता है। इस समय जबकि तुम बाप के पास जीते जी मरते हो तो बरोबर सारी दुनिया ही खत्म हो जाती है। अज्ञान काल में मनुष्य मरते हैं तो फिर उसी ही दुनिया में जन्म लेते हैं। दुनिया कायम है। जिस दुनिया में मरते उसी दुनिया में जन्म लेते हैं। तुम बच्चे जब बाप के बनते हो तो यह दुनिया ही खत्म हो जाती है। कहावत है-आप मुये तो मर गई दुनिया.. परन्तु दुनिया विनाश तो नहीं हो जाती। इस ही दुनिया में फिर जन्म लेना पड़ता है। अभी तुम जबकि जीते जी मरते हो, तो आप मर जाते हो तो दुनिया भी खत्म हो जाती है। तुम मरेंगे तो यह दुनिया ही खत्म हो जायेगी। तुम जानते हो-हम फिर नई दुनिया में आयेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो। ईश्वर का बच्चा होने से हमको सतयुग का बर्थ राइट मिलता है। स्वर्ग की बादशाही मिलती है। नर्क खत्म हो जाता है। इसमें कोई मेहनत नहीं है, सिर्फ बाप को याद करना है। मनुष्य जब कोई मरने पर होते हैं तो उनको कहते हैं राम-राम कहो। पिछाड़ी में उठाने समय कहते हैं-राम नाम सत है... यह भगवान को ही कहते हैं। राम नाम सत है अर्थात् परमपिता परमात्मा जो सत है उसका ही नाम लेना चाहिए। उसको राम कह देते हैं। माला भी राम-राम कह सिमरते हैं। राम-राम की धुनि ऐसी लगाते हैं जैसे बाजा बजाते हैं। तुम बच्चों को बाप समझाते हैं कि कोई आवाज नहीं करना है। सिर्फ बुद्धि से याद करना है। तुम जानते हो-जीते जी ईश्वर की गोद में आने से यह दु:ख रूपी दुनिया खत्म हो जाती है। बाबा हम आपके गले का हार बन जायेंगे। गाया भी जाता है रूद्र माला। राम माला वा कृष्ण माला नहीं कहा जाता है। तुम रूद्र माला में पिरोने लिए इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो कल्प पहले मुआिफक। दूसरा कोई सतसंग नहीं जहाँ ऐसे समझते हो कि हम ईश्वर बाप के गले में पिरोयेंगे। बाप से तो जरूर वर्सा मिलेगा। बाप-कौन कहते हैं? आत्मा। आत्मा में ही मन-बुद्धि है ना। बुद्धि समझती है फिर कहती है। पहले संकल्प आता है फिर कर्मेन्द्रियों से कहा जाता है-बरोबर हम बाबा के बने हैं, बाबा के ही होकर रहेंगे। गॉड फादर कहते हैं ना। फिर पूछो तुम्हारे में गॉड फादर की नॉलेज है? तो कहेंगे गॉड तो सर्वव्यापी है। बोलो-तुम्हारी आत्मा कहती है परमपिता परमात्मा तो पिता है, फिर सर्वव्यापी कैसे होगा? बच्चे में बाप आ गया क्या? बाप को सर्वव्यापी कहना बिल्कुल रांग है। लौकिक बाप के भी 5-7 बच्चे होंगे। क्या वह कहेंगे कि बाबा आप सर्वव्यापी हो? यह भी समझने की बात है। मुख से कहते हो परमपिता, फिर सर्वव्यापी कैसे कहते हो? पिता फिर मेरे में है-यह कैसे हो सकता! बच्चा फिर कहे मेरे में बाप का प्रवेश है, बच्चा थोड़ेही कहेगा मैं बाप हूँ। तुम आत्मा उनके बच्चे हो। फिर कहते हो पिता मेरे में भी है। बाप कैसे बच्चे में होगा? बहुत अच्छी रीति समझकर फिर समझाना है। रूद्र ज्ञान यज्ञ तो मशहूर है। रूद्र है निराकार। कृष्ण तो साकार है। आखरीन भगवान किसको कहा जाये? कृष्ण को तो नहीं कह सकते। मनुष्य तो बहुत भूले हुए हैं-गॉड फादर इज ओमनी प्रेजेन्ट, मेरे में भी है। बाप तो घर में ही रहता और कहाँ रहेंगे। अभी बाप इस बेहद के घर में आया हुआ है। यहाँ विराजमान है। कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है। कुछ पूछना हो तो पूछो। आगे पित्रों को बुलाने का बहुत रिवाज था। पित्र तो आत्मा है ना। पित्र को यानी आत्मा को खिलाया जाता है। कहेंगे आज हमारे दादे का पित्र है, आज फलाने का पित्र है। तो आत्मा को बुलाया जाता है, खिलाया जाता है। समझो किसका स्त्री से प्यार है, उसकी आत्मा को बुलाते हैं। कहते हैं हमने हीरे की फुल्ली पहनाने का वायदा किया था, ब्राह्मण को बुलाकर उसे हीरे की फुल्ली पहनाते हैं। बुलाया तो आत्मा को ना। शरीर थोड़ेही आया। यह रस्म भारत में ही है। जैसे तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो। कोई मर गया तो उनका भोग लगाते हो। सूक्ष्मवतन में वह आत्मा आती है। यह है बिल्कुल नई- नई बातें। जब तक कोई अच्छी रीति न समझे तब तक संशय उठता है। यह क्या करते हैं? ब्राह्मणों की रस्म-रिवाज देखो कैसी है। इस समय सभी मनुष्य-मात्र तमोप्रधान हैं। बाबा तो है ही पतित-पावन। वह कभी तमोप्रधान नहीं होते। मनुष्य को पतितपावन नहीं कहेंगे। पतित-पावन माना सारी दुनिया को पतित से पावन बनाने वाला। वह तो एक बाप के सिवाए दूसरा कोई हो न सके। धर्म स्थापक तो आते हैं अपना-अपना धर्म स्थापना करने। क्रिश्चियन धर्म का सिजरा वहाँ है। पहले क्राइस्ट आया, फिर उनके पिछाड़ी भी आते रहेंगे। वृद्धि को पाते रहेंगे। वह कोई पतित को पावन नहीं बनाते। नम्बरवार उन्हों की संख्या आती है। पतित-पावन तो इस समय चाहिए, जबकि सब कब्रदाखिल हो जाते हैं। सबको पावन बनाने वाला एक ही है। यह तो समझते हो बरोबर इस समय सारी दुनिया जड़जड़ीभूत है। बनेन ट्री का मिसाल देते हैं। बहुत बड़ा झाड़ होता है। उनके नीचे बहुत पार्टियां जाकर बैठती हैं। उसका फाउण्डेशन सड़ा हुआ है। बाकी सब टाल-टालियाँ खड़ी हैं। यह भी झाड़ है। देवी-देवता धर्म का जो झाड़ है उसका फाउण्डेशन उल्टा ऊपर है और जड़ एकदम कट गई है। बाकी सब हैं। बीज हो तब तो फिर से स्थापना करें। बाप कहते हैं-मैं फिर से आकर स्थापना कराता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश। बरोबर अनेक धर्मों का विनाश हुआ था इस महाभारत लड़ाई में। जो राजयोग सीखते थे उन्हों की फिर राजधानी स्थापना हो गई। तुम जानते हो अभी हम बाबा के पास जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे। फिर झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। देवी-देवता धर्म जो था वह इस समय प्राय:लोप है। तो बाप कहते हैं-मैं फिर से आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ। भारत जो ऊंच ते ऊंच था उनको अब ग्रहण लगा हुआ है। काम चिता पर बैठने से इस समय सारी दुनिया काली हो गई है। अब फिर तुम ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हो। तुम जो श्याम बन गये थे, श्याम से गोरा, सुन्दर बनाने वाला है परमपिता परमात्मा। उनकी श्रीमत मिलती है। परमपिता परमात्मा की आत्मा तो एवर प्योर गोरी है। आत्मा में ही खाद पड़ती है। (सोने का मिसाल) अभी तुम जानते हो इस पुरानी दुनिया का विनाश होना है। सबका मौत है। फिर तुमको कहने वाला कोई नहीं रहेगा कि राम-राम कहो। यह मौत ऐसा होता है जो सब मरेंगे। अभी कितने मरेंगे! कितनी खाद मिलेगी! तो क्यों नहीं धरती फर्स्टक्लास अनाज देगी। सतयुग में सब हरे-भरे सब्ज हो जायेंगे। सड़ी हुई चीज को खाद कहा जाता है। किचड़ा जलकर खाद बन जाता है। खाद बनने में भी टाइम लगता है। इस सृष्टि को भी नया बनने में टाइम लगेगा। तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो। कितने बड़े-बड़े फल तुमको दिखाते हैं। शूबीरस पिलाते हैं। तुम विचार करो कितनी खाद मिलेगी-सो भी खास भारत को। वहाँ कितनी अच्छी-अच्छी चीजें निकलेंगी। सूक्ष्मवतन में बैकुण्ठ का शूबीरस तुमको पिलाते हैं। बगीचे आदि का साक्षात्कार कराते हैं। वहाँ हमारा बगीचा होगा। बच्चों ने साक्षात्कार किया है। शूबीरस पीकर आते थे। प्रिन्स बगीचे से फल ले आते थे। अब सूक्ष्मवतन में तो बगीचा हो न सके। जरूर बैकुण्ठ में गये होंगे। एक- एक को साक्षात्कार नहीं करायेंगे। जो निमित्त बनते हैं उनको कराते हैं। हो सकता है अगर तुम याद में रहेंगे, बाबा के बच्चे होकर रहेंगे तो पिछाड़ी में तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे-जो पूरे सरेण्डर होंगे। यह तो पहले भठ्ठी बननी थी। भठ्ठी में पकना था तो बहुत आ गये। बच्चों को समझाया है सिर्फ कोई को लिटरेचर देने से समझ नहीं सकेंगे। समझाने वाला टीचर जरूर चाहिए। टीचर सेकेण्ड में समझायेगा-यह तुम्हारा बाबा है, यह दादा है, यह बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है। सिर्फ कोई को लिटरेचर दिया तो देखकर फेंक देंगे। कुछ भी समझेंगे नहीं। इतना जरूर समझाना है कि बाप आया हुआ है। यह ढिंढोरा पिटवाना तुम्हारा फर्ज है। बरोबर यादव कौरव पाण्डव भी हैं। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। जरूर राजयोग सिखलाने वाला भी होगा। जरूर स्वर्ग की स्थापना भी होगी। एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मो का विनाश होगा। तुम जानते हो हम ही नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार... देवता सिर्फ सूर्यवंशी को कहा जाता है। चन्द्रवंशी को क्षत्रिय कहा जाता है। पहले तो देवता बनना चाहिए ना। नापास होने से क्षत्रिय बन जाते हैं। तो बाप कहते हैं मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे, कितने ढेर सिकीलधे बच्चे हैं। किसका बच्चा गुम हो जाता है, 6-8 मास बाद आकर मिलता है तो कितना प्यार से आकर मिलेगा। बाप को कितनी खुशी होगी। यह भी बाप कहते हैं-लाडले सिकीलधे बच्चे, तुम 5 हजार वर्ष बाद आकर मिले हो! लाडले बच्चे, तुम बिछुड़ गये थे, अब फिर आकर मिले हो बेहद का वर्सा लेने लिए। डीटी वर्ल्ड सावरन्टी इज योर गॉड फादरली बर्थ राइट। बाबा तुमको बेहद की बादशाही देने आया है। यह है हेविनली गॉड फादर। कहते हैं तुम बच्चों के लिए कितनी बड़ी सौगात लाये हैं। परन्तु इतना लायक बनना है। श्रीमत पर चलना है। बाबा-मम्मा कहकर फिर अगर भूल गये या फारकती दे दी तो गले का हार नहीं बनेंगे। बच्चों को कितना प्यार किया जाता है! बाप बच्चों को सिर पर रखते हैं। बेहद के बाप के कितने बच्चे हैं। बाबा कितना ऊंच चढ़ाते हैं। पाँव में जो गिरे हुए हैं उन्हों को भी ऊपर चढ़ाते हैं। तो कितना खुशी में रहना चाहिए और श्रीमत पर चलना चाहिए! एक की मत पर चलना है। अपनी मत पर चला तो यह मरा। श्रीमत पर चलेंगे तो तुम श्रेष्ठ मनुष्य अर्थात् देवता बनेंगे। क्षत्रिय तो फिर भी दो कला कम हो गये। यहाँ है ही मनुष्य से देवता बनने का, क्षत्रिय नहीं। बाप पूछते हैं ना कि कितने नम्बर में पास होंगे? आबरू (इज्जत) रखना। बेहद का बाप भी कहते हैं सूर्यवंशी बनो। जानते हो विजय माला 108 की ही पास हुई है। फालो करना है मम्मा-बाबा को। आप समान स्वदर्शन चक्रधारी बनाकर शिवबाबा के आगे सौगात ले आते हैं। बाबा पूछते हैं कितने को आप समान बनाया है? कितने मजे की बातें हैं! तुम ही समझ सकते हो। नया कोई बिल्कुल नहीं समझेगा। यह मनुष्य से देवता बनने की कॉलेज है। कोई को तो 7 रोज में ही बहुत रंग चढ़ जाता है। कोई को तो बिल्कुल नहीं चढ़ता। छी-छी कपड़े पर बड़ा मुश्किल से रंग चढ़ता है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। पहली-पहली बात बच्चों को समझाई कि पहले सबको बोलो-बेहद के बाप को तुम जानते हो? कहते-हाँ, मेरे में भी है, सर्वव्यापी है। अरे, तुम्हारे में भी है फिर तो पूछने की बात ही नहीं। कहते हो बाप है, तो फिर बाप तेरे में अथवा मेरे में कैसे हो सकता! बाप है, तो बाप से वर्सा जरूर मिलना चाहिए। पहले-पहले अल्फ पर समझाओ। बाप कहते हैं-हे मेरे सिकीलधे बच्चे। ऐसे कोई सन्यासी वा गुरू गोसाई नहीं कह सकते। तुम जानते हो बरोबर हम शिवबाबा के सिकीलधे बच्चे हैं। पाँच हजार वर्ष बाद फिर आकर मिले हो, स्वर्ग का वर्सा लेने। जानते हो हम स्वर्ग के मालिक थे, फिर हम ही मालिक बनते हैं। स्वर्ग में जाना जरूर है। फिर पुरूषार्थ अनुसार ऊंच पद पाना है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) मम्मा-बाबा को फालो कर सूर्यवंशी में आना है। अपनी मत पर नहीं चलना है। श्रीमत से ऊंच देव पद पाना है। 2) हम बाबा के ही होकर रहेंगे-इसी निश्चय में रहना है। कभी किसी बात में संशय नहीं उठाना है। वरदानः बुद्धि के चमत्कार द्वारा आकार में साकार का अनुभव करने वाले दिलाराम के दिलरूबा भव l कई बच्चे आये भल पीछे हैं लेकिन आकार रूप द्वारा भी अनुभव साकार रूप का करते हैं। ऐसे अनुभव से बोलते कि हमने साकार में पालना ली है और अब भी ले रहे हैं। तो आकार रूप में साकार का अनुभव करना यह बुद्धि की लगन का, स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप है। यह भी बुद्धि के चमत्कार का सबूत है। ऐसे बच्चे ही दिलाराम बाप के समीप दिलाराम के दिलरूबा हैं जिनके दिल में सदा यही गीत बजता है - वाह मेरा बाबा वाह। स्लोगनः त्यागी आत्मा के हर कर्म वा कदम में सफलता समाई हुई है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • BK murli today in Hindi 18 July 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki murli - BapDada - madhuban - 18-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन“ मीठे बच्चे - तुम बाप को याद करो, यही याद विश्व के लिए योगदान है, इसी से विश्व पावन बनेगा, बेड़ा पार हो जायेगा” प्रश्नः- किन बच्चों की सम्भाल अन्त समय में स्वयं बापदादा करते हैं? उत्तर:- जो बच्चे बहुत समय से कांटों को फूल बनाने की सर्विस में तत्पर रहते हैं। बाप के पूरे-पूरे मददगार हैं, ऐसे बच्चों की अन्त समय में बाप स्वयं सम्भाल करते हैं। बाबा कहते - मैं अपने मददगार बच्चों को वन्डरफुल सीन-सीनरियां दिखलाकर खूब बहलाऊंगा। वह अन्त में बहुत सुख देखेंगे। साक्षात्कार करते रहेंगे। 2- जिन्हें “एक बाप दूसरा न कोई” यह पाठ पक्का है, ऐसे बच्चों को ही बाप की मदद मिलती है। गीत:- प्रीतम आन मिलो....... ओम् शान्ति।प्रीतम और प्रीतमायें। प्रीतम एक है और प्रीतमायें अनेक हैं। प्रीतमायें बुला रही हैं एक भगवान् को। अनेक भक्त बुला रहे हैं, किसलिए? सुख के लिए। कन्या बुलाती है प्रीतम आन मिलो। किसलिए? सुख के लिए। सगाई होती है सुख के लिए। परन्तु अब बच्चे जान गये हैं जबकि रावण राज्य है तो प्रीतम से कोई सुख मिल नहीं सकता। रावण राज्य में सुख हो न सके। प्रीतमायें सब शोकवाटिका में हैं तब तो बुलाती हैं। अशोक वाटिका में तो कोई बुलाते नहीं। कोई दु:ख वा शोक नहीं तो बुलायेंगे क्यों? दु:ख में ही प्रीतम को याद करते हैं फिर प्रीतम मिल जाता है तो आधाकल्प प्रीतमायें याद करने से छूट जाती हैं। अभी तुम जानते हो - सबसे मीठा, सबसे प्यारा प्रीतम है ही एक परमपिता परमात्मा, सबसे ऊंचा सबसे श्रेष्ठ। यहाँ कोई मनुष्य अपने को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कह न सके। भल कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, शिवोहम् परन्तु एक-दो से श्रेष्ठ तो होते ही हैं ना। साधू लोगों में जो ऊंच होते हैं उनको और साधू लोग दण्डवत प्रणाम करते हैं। परन्तु सबसे ऊंच ते ऊंच एक ही प्रीतम परमपिता परमात्मा गाया हुआ है। सब उनको याद करते हैं - जरूर सुख के लिए। जब बहुत दु:ख होता है तो बहुत प्रीतमायें याद करती हैं। अभी बच्चों को इतना दु:ख का अनुभव नहीं है। अजुन तो बहुत दु:ख आने वाला है। जिसको बुलाया जाता है वह आयेंगे तो जरूर ना। तो बाप भी आते हैं। बाप का बनने से एक सेकेण्ड में सुख का वर्सा मिल जाता है। बच्चों को निश्चय होना चाहिए - हमने बाप की गोद ली है तो सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली है। बच्चा पैदा होता है तो गोद में आ जाता है फिर निश्चय हो जाता है कि यह वारिस है। यह भी बेहद का बाप है। अब अच्छी रीति इनको पहचान लेते हैं। पहचान में कोई तकलीफ नहीं है। बच्चे बहुत हैं, गाया जाता है सन शोज़ फादर। तो किसको कहने की दरकार नहीं। ढेर के ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। इतने ढेर बच्चे सिवाए ईश्वर के और किसको होते नहीं। कृष्ण तो दैवीगुणों वाला मनुष्य है। मनुष्य को इतने बच्चे हो नहीं सकते। तुम जानते हो हम शिवबाबा के बच्चे हैं। तुम कह सकते हो कोई भी मनुष्य को इतने बच्चे होते नहीं। कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। गायन तो है ना प्रजापिता ब्रह्मा का। याद करते हैं त्रिकालदर्शी परमात्मा को। भगवान् को ही इतने बच्चे हो सकते हैं। तो वह निराकार जब साकार में आये तब तो एडाप्ट करे। शरीर न हो तो गोद कैसे ले? तुम ईश्वर की गोद में आये हो। जानते हो वही प्रीतम है। सबसे मीठा, सबसे प्यारा है। प्यार करने वाले को प्रीतम कहा जाता है। तुम जानते हो - हमारा ऊंचे ते ऊंचा प्रीतम वह है जिससे हम प्रीतमाओं को स्वर्ग के सुख घनेरे मिलते हैं। उनके सम्मुख बैठे हैं। भक्ति-मार्ग में गाते भी हैं - राम का नाम लेने से मनुष्य पार हो जाते हैं इसलिए राम-राम बहुत कहते हैं। जैसे गंगा नदी को पतित-पावनी समझते हैं। मनुष्य वहाँ जाकर पत्ते पर दीवा जलाते हैं। जैसे कृष्ण को पत्ते पर सागर में अंगूठा चूसता हुआ दिखाते हैं। यह फिर दीवा जगाकर पत्ते पर रखते हैं। आत्मा भी दीपक है। मनुष्यों को तो पूरा ज्ञान नहीं है। उन्हों के लिए तो जैसे एक रस्म हो गई है। दीवा जगाकर कहते हैं - आत्मा पार हो जाती है। परमपिता परमात्मा को तो खिवैया कहा जाता है। विषय सागर से पार ले जाते हैं। उन्होंने अक्षर सुनकर एक रस्म बना दी है। बाप आत्मा का दीवा जगाते हैं। यह सब निशानियां हैं। आत्मा को ही यह शरीर छोड़ जाना पड़ता है - उस पार परमधाम में। तुम जानते हो - आत्मा अज्ञान सागर से उस पार जा रही है। खिवैया तो बाप ही है। गंगा जी को खिवैया अक्षर नहीं दिया जा सकता। खिवैया अथवा साजन तो साथ-साथ चाहिए। कितनों को साथ में उस पार ले जाते हैं, भिन्न-भिन्न नाम रख दिये हैं। बाकी बोट में वा स्टीमर में बिठाए कोई ले नहीं जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो कैसे याद की यात्रा में रहते हैं। इसमें कुछ मुख से राम-राम कहने की दरकार नहीं। मनुष्य तो कहते हैं राम-राम कहो। समझते हैं हम यह नाम दान करते हैं। बाप फिर दान देते हैं - अविनाशी ज्ञान रत्नों का। कहते हैं मीठी-मीठी लाडली आत्मायें मुझ बाप को याद करो। यही बाप की याद विश्व के लिए योगदान है। शिवबाबा को याद करो। वास्तव में राम भी परमपिता परमात्मा को कहते हैं परन्तु फिर रघुपति राघो राजा राम कह देते हैं। तुम बच्चों ने अब ड्रामा को जाना है। स्वर्ग से लेकर के तुमको सब मालूम है कौन-कौन आया है? कैसे फिर आयेंगे? जो कुछ होता आया है वह सब ड्रामा में नूँध है। यह भोग आदि लगाया जाता है - यह सब ड्रामा में नूँध है। नई कोई बात नहीं। तुम साक्षी हो देखते हो। हरेक एक्टर है। जानते हैं वह अपना पार्ट बजाए वापिस जाते हैं खुशी से।मनुष्य कहते हैं मरा तो स्वर्गवासी हुआ। तुम जानते हो हम स्वर्गवासी बनने के लिए पुरुषार्थ करते हैं। मनुष्य काशीवास करते हैं ना। गंगा जी के किनारे पर बैठते हैं। शिव का तो मन्दिर है। शिव की याद में सदैव रहते हैं। गंगा की भी महिमा करते हैं। शिव की भी महिमा करते हैं। गंगा में कोई काशी कलवट नहीं खाते। बरोबर पतित-पावन तो शिव ही है। यह भेद हैं। शिव का मन्दिर है। आगे एक कुएं में शिव पर बलि चढ़ते थे। तुम बनारस वालों को अच्छी रीति ज्ञान दे सकते हो। बोलो - तुम यहाँ बैठे हो, गंगा का कण्ठा भी है। शिव का मन्दिर भी है। फिर तुम शिव पर बलि क्यों चढ़ते हो? शिव पतित-पावन है वा गंगा? वास्तव में पतित-पावन तो शिव ही है। भगवान के पास ही बलि चढ़ते हैं। भगवान्, भगवान् पर बलि थोड़ेही चढ़ेंगे। यह तो हो नही सकता। ऐसे नहीं हम भी भगवान्, तुम भी भगवान्। भगवान् पतित थोड़ेही हो सकता है जो गंगा पर स्नान करने जाते हो। सर्वव्यापी के ज्ञान को तुम झट उड़ा सकते हो। पतित-पावन शिव है - यह सिद्धकर बताना है। बच्चों को प्वाइन्ट दी जाती हैं समझाने लिए। काशी में समझाना सबसे सहज और अच्छा है। शिव का मन्दिर है तो जरूर कभी आया है। शिव को हमेशा बाबा कहा जाता है। उनको अपना शरीर कभी मिलता नहीं। ऐसे तो शिव नाम बहुत बच्चों के हैं। अथवा कृष्ण भी लाखों के नाम होंगे। परन्तु वह कृष्ण तो सतयुग में था ना। कृष्ण के भक्त कृष्ण की मूर्ति उठाए पूजा करेंगे। मनुष्य की तो नहीं करेंगे। तो सिद्ध होता है कृष्ण सतयुग में होता है। मनुष्यों को पता नहीं हैं - राधे-कृष्ण कौन हैं? उन्होंने कब राजाई की है? यह बाप बैठ समझाते हैं।तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। विष्णु के ऊपर यह स्वदर्शन चक्रधारी नाम कैसे पड़ा, क्या किया - यह तो कोई समझा नहीं सकते हैं। बाप तो है निराकार। विष्णु को इतने हथियार कहाँ से आये - कोई जानते नहीं हैं। हम समझते हैं यह सब ड्रामा में नूँध है। भक्ति मार्ग में भी जिन्होंने चित्र बनवाये हैं वही बनायेंगे। सब बना-बनाया खेल है। आधाकल्प भक्ति आधाकल्प ज्ञान मार्ग चलता है। इन बातों को तुम जानते हो। तुमको ही मज़ा आता होगा। जो सच्ची-सच्ची प्रीतमायें हैं, वह प्रीतम तो झूठा है, झूठी और सच्ची चीज़ में फ़र्क तो है ना। झूठा प्रीतम और सच्चा प्रीतम। पत्नि, पति को प्यारा कहती है ना। अभी तुम जानते हो - हम प्रीतमाओं को कैसा मीठा प्रीतम मिला है। उनको प्रीतम भी कहते हैं तो बाप भी कहते हैं। बाप का भी प्यार होता है। बाप से फिर भी वर्सा मिलता है। प्रीतम से प्रीतमाओं को कोई वर्सा नहीं मिलता। अपने को प्रीतमा समझने से भी, बच्चा समझने से वर्से की टेस्ट आती है। शिव को हमेशा बाबा कहते हैं। शिवबाबा को शिवपति कभी नहीं कहेंगे। अभी तुमको कोई शिव का नाम नहीं जपना है। सिर्फ बाबा को याद करो। बच्चे आते हैं तो पूछा जाता है - कब ईश्वर के बने? बच्चा जब तक न बनें तब तक वर्सा मिल न सके। मात-पिता है तो सम्मुख मिलना है। निश्चय किया, मिले नहीं और मर गया तो वर्सा नहीं मिल सकता। ऐसे बहुत हैं जो वर्सा नहीं पाते। प्रजा में चले जाते हैं। बाप कहते हैं निश्चय हो गया यह वही मात-पिता है तो सम्मुख आना पड़े। फिर सर्विस कर आपसमान बनाना है। प्रजा बनानी है और फिर अपना वारिस भी बनाना है। घर बैठे तो नहीं होगा, मेहनत करनी है। इन बातों पर बच्चे विचार सागर मंथन नहीं करते। कृष्ण लीला मशहूर है। लीला तो सतयुग में होती है। यहाँ थोड़ेही हो सकती। यह तो कॉपी करते रहते हैं। स्वर्ग में क्या-क्या होगा, कैसे महल होंगे - यह तो बच्चे महसूस कर सकते हैं। वहाँ की तो बात मत पूछो। मुख पानी होता है। बाप सुख ही देते हैं। दु:ख के लिए बाप का आह्वान थोड़ेही करते है। दुनिया में बड़ा दु:ख है। एक घर में अगर बहू छटेली आ जाती है तो घर को डांवाडोल कर देती है। ऐसे बहुत घर बाबा के देखे हुए हैं। अभी समय बहुत थोड़ा है। बाप के बनो तब बाबा मदद दे। वारिस ही नहीं बनते तो वर्सा देने वाले की मदद कैसे मिले? बाप कहते हैं डरो मत। साहूकार लोग तो डरते हैं। यह बाप तो दाता है। भक्ति मार्ग में भी तुम मेरे अर्थ गरीबों को देते थे। उस अनुसार जन्म मिलता था। अब डायरेक्ट कहता हूँ - हमारा बनो तो तुमको राज्य-भाग्य दूँगा। शिवबाबा को तो कुछ मकान आदि बनाना नहीं है। तुमसे पूछते हैं जबकि सब खलास हो जाना है तो फिर यह मकान आदि क्यों बनाते हो? अरे, तब रहे कहाँ? पिछाड़ी में भी आकर बच्चों को रहना है। तुम पिछाड़ी में बहुत सीन-सीनरियां देखेंगे। बहुत खुशी में रहेंगे। जितना नजदीक समय आता जायेगा, बाबा द्वारा बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे। जो मददगार हो जायेंगे वह पिछाड़ी में बहुत सुख देखेंगे। दु:ख के समय बहुत सुख देखेंगे। वह वन्डरफुल सुख हैं। पाकिस्तान में भी तुम मौज में बैठे थे। वैकुण्ठ में कैसे स्वयंवर होते हैं, लक्ष्मी-नारायण का कैसे राज्य चलता है - सब बाबा साक्षात्कार कराते थे। तुम बहुत देखेंगे अगर शिवबाबा की मत पर कांटों को फूल बनाने में मदद करते रहेंगे, तो कहा जाता है - हिम्मते मर्दा मददे खुदा। ऐसे प्रीतम को तो बहुत याद करना चाहिए। दुनिया थोड़ेही जानती है। इतने ढेर बच्चे हैं तो जरूर उनका मात-पिता होगा ना - जिससे सुख घनेरे मिलते हैं। यह महिमा कोई लौकिक माँ-बाप की थोड़ेही है। तुम प्रैक्टिकल देखते हो कितने ढेर बच्चे हैं। क्रियेटर गॉड फादर है। क्रियेट करेंगे तो एडाप्ट करेंगे ना। किस द्वारा? यह है मुख वंशावली। समझाना बहुत सहज है। अभी ईश्वर की गोद लेते हो फिर दैवी गोद मिलेगी। फिर आसुरी। इस ईश्वरीय गोद से हम शान्तिधाम, सुखधाम जाते हैं। आसुरी गोद से दु:खधाम जाते हैं। यह मंत्र याद कर लो। बांधेली गोपिकायें पुकारती हैं। तो उन्हों के लिए कोई न कोई प्रयत्न करना पड़ता है। बाबा छोटे-छोटे गांव में तो जा नहीं सकेंगे। बड़े गांव में आकर मिलते हैं। जाना तो पड़ता ही है। समझाया जाता है बलिहार भी कैसे जाना है। राजा जनक बलि चढ़ा फिर कहा गया अब ट्रस्टी हो सम्भालो। रचना की पालना तो तुमको जरूर करनी है। तुम अपने को आत्मा ट्रस्टी समझो। माया रावण दु:ख देने वाली है इसलिए रावण का कोई मन्दिर नहीं है। बाकी बुत बना देते हैं। रावण ने बहुत दु:ख दिया है। जितना दु:ख दिया है उतना ही वर्ष-वर्ष उनको जलाते रहते हैं। शिवबाबा ने सुख दिया है, तो उनका मन्दिर बड़ा आलीशान है। रावण दु:ख देने वाले का मन्दिर हो ही नहीं सकता। उसको तो खत्म कर देते हैं। जो कुछ देखने में ही नहीं आता। शिवबाबा का मन्दिर तो देखने में आता है। कितनी पूजा होती है। वास्तव में एवर पूज्य है ही एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। तुम फिर पूज्य से पुजारी बनते हो। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप की याद में रहना है और सबको याद दिलाना है, यही दान करते रहना है। बाप पर बलि चढ़कर फिर ट्रस्टी हो सम्भालना है। 2) साक्षी हो हरेक एक्टर का पार्ट देखना है। हम पार्ट पूरा कर खुशी से वापस जा रहे हैं - इस स्मृति में सदा रहना है। वरदान:- अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर देखते हुए सर्व चिंताओं से मुक्त बेफिक्र बादशाह भव l बेफिक्र रहने की बादशाही सब बादशाहियों से श्रेष्ठ है। अगर कोई ताज पहनकर तख्त पर बैठ जाए और फिकर करता रहे तो यह तख्त हुआ या चिंता? भाग्य विधाता भगवान ने आपके मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींच दी, बेफिक्र बादशाह हो गये। तो सदा अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर देखते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य, इसी फ़खुर में रहो तो सब फिकरातें (चिंतायें) समाप्त हो जायेंगी। स्लोगन:- एकाग्रता की शक्ति द्वारा रूहों का आवाह्न कर रूहानी सेवा करना ही सच्ची सेवा है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 4 Nov 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English 04/11/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 24/02/84 Brahmin birth is the birth of incarnation. BapDada comes into sound to take everyone into the stage beyond sound. He comes to the corporeal world and enters a corporeal body to make you avyakt. Are you always incarnated in your corporeal bodies whilst being in the avyakt stage and considering yourselves to be subtle angels? All of you are incarnations that incarnate. By performing every deed in this awareness, you become the karmateet incarnations who are free from any bondage of karma. An incarnation means someone who comes down here from up above in order to perform elevated deeds. All of you too with your high stage from up above, take the support of a body, enter an old body in the old world in order to perform actions for service. However, your stage remains that of up above and this is why you are incarnations. An incarnation always brings a message from God. All of you confluence-aged, elevated souls have also incarnated in order to give God's message and to enable everyone to meet God. That body is now no longer yours. You have given even your body to the Father. You said: Everything is Yours and therefore nothing is mine. The Father has given you that body on loan for service. You can have no right to something that you have taken on loan. Since that body is not yours, how could there be body consciousness? The soul belongs to the Father and the body also belongs to the Father. So, where did "I" and "mine" come from? There is now just the unlimited consciousness of "I". "I" belong to the Father. As is the Father, so am I the master. Therefore, this is the unlimited consciousness of "I". A limited consciousness of "I" brings obstacles. The unlimited consciousness of "I" makes you free from obstacles and a destroyer of obstacles. In the same way, a limited consciousness of "I" brings you into the spinning of “mine,” whereas the unlimited consciousness of "I" liberates you from all spinning for many births.The unlimited consciousness of "mine" is "My Baba". So the limited is renounced. Become an incarnation, take the support of a body and come to perform actions for service. The Father has given you a loan, that is, He has entrusted you with something for service. You cannot do it for anything wasteful. Otherwise, that would create an account of dishonesty with regard to the treasures entrusted to you. An incarnation doesn't create an account of waste. An incarnation comes, gives a message and leaves. All of you have taken this Brahmin birth for the sake of service and to give a message. The Brahmin birth is the birth in which you have incarnated; it is not an ordinary birth. Therefore, always consider yourself to have incarnated in order to be a world benefactor, a constantly elevated, incarnated soul. Maintain this faith and intoxication. You have come here for a temporary period and you then also have to go back. Now, do you always remember that you have to go back? You are an incarnation. You have now come and you then have to return. This awareness will give you the experience of going beyond and having limitless attainment. On the one hand, beyond and on the other hand, limitless attainment; the two experiences are simultaneous. You are such images of experience, are you not? Achcha.Now, put into a practical form everything you have heard. To listen means to become. Today, Baba has especially come to meet His equals. You are all equals, are you not? The true Teacher has come to meet the instrument teachers. He has come to meet His service companions. Achcha.To those who are always embodiments of the awareness of the unlimited consciousness of "I", to those who remain constantly stable in the unlimited powerful form of "Mine is the one Father alone", to the children who remain stable in an elevated stage, those who take the support of bodies and incarnate as incarnations, BapDada's love, remembrance and namaste.BapDada meeting teachers:This is the gathering of those who are constantly serviceable souls, is it not? Do you always consider yourselves to be unlimited world servers? You are not limited servers, are you? Are all of you unlimited? If any of you were to be sent from one place to somewhere else, are you ready? Are all of you flying birds? Are you flying birds despite the branch of body consciousness. The branch that pulls you to itself the most is this consciousness of the body. The slightest attraction towards old sanskars means that there is the consciousness of the body. "My nature is like this. My sanskars are like this. My way of living is like this. My habits are like this." All of these are signs of body consciousness. So, have you birds flown even from this branch? This is called the karmateet stage, no bondage at all. Karmateet doesn’t mean that you become free from performing actions, but free from any bondage of action. So, actions of the body; this means, for instance, some have the nature of living comfortably, of eating comfortably at the right time, and of doing everything at the right time. This bondage of karma also pulls you to itself. Go beyond this bondage, that is, the habit of even this karma, because you are instruments.Until all of you instrument souls become free from any bondage of karma and sanskars and nature of the body, how would you free others? For instance, illness of the body is the suffering of karma. In the same way, if any bondage of karma pulls you to itself, that suffering of karma also creates obstacles. When a physical illness, some suffering of karma, repeatedly pulls you, it is pain that pulls you, isn’t it? Then, you say: What can I do? Otherwise, I am fine, but there is severe suffering of karma. In the same way, if any particular old sanskar, nature or habit pulls you, that is also the suffering of karma. Any type of suffering of karma will not allow you to become a karma yogi. Therefore, go beyond this too. Why? All of you are souls who are going to claim number one. The meaning of number one is: those who win in everything. Nothing is then lacking. The meaning of teachers is to be those who with their own image constantly give the experience of karmateet Father Brahma and loving and detached Father Shiva. So you have this speciality, do you not? You are friends, are you not? How do you become friends? You cannot be friends with someone without being equal. Therefore, all of you are the Father's friends. You are Godly friends. To be equal is to have friendship. You are those who place your footsteps in the Father's steps because you are friends and also lovers of the Beloved. So the lovers always place their footsteps in the steps of their Beloved. This is the system, is it not? What do they make a couple do when they are getting married? This is what they make them do, is it not? So where was this system created? It was created by you people. Yours is the foot of the intellect but they have understood it to be physical feet. You are the instrument souls with special relationships who fulfil the responsibility of every relationship.The instrument teachers have a much easier method than that of others. Others still have to maintain their relationships, whereas your relationship is always with service and the Father. Even when you are carrying out a worldly task, you always remember when it is the time, for you to go on service. Whoever you are carrying out worldly work for, you automatically have the awareness of that one. For instance, in the world, parents earn an income for their children and so they automatically remember them. Therefore, when you are doing your worldly work, who are you doing that for? Are you doing that for yourself or for service? The more you use for service, the more happiness you have. Never work while thinking that you are doing worldly work. This too is a means of service. It has a different form, but it is still a form of service. Otherwise, if it were worldly service and you didn't have the facilities to serve, you would think about where you could obtain something from, how would you obtain something. “I am unable to manage. I don't know when it will happen.” Do these thoughts not waste your time? Therefore, never say that you are doing a worldly job. It is a non-worldly job. It is for the sake of service. You will then never feel it to be a burden. Otherwise, you sometimes become heavy: “For how long do I have to do this? What will happen?” This is the way for all of you to create your reward easily.There are the three things: body, mind and wealth. If you are using all three things for service, then who will receive the fruit of all those three? Will you receive it or will the Father receive it? To be able to create your reward in all three ways is an additional reward to that of others. Therefore, never get heavy about this. Simply change your motives. It is not for worldly but for non-worldly service. Change this motive. Do you understand? You then become doubly surrendered. You surrendered with your wealth. Everything is for the Father. What is the meaning of surrender? Whatever you have is for the Father, that is, it is for service. This is surrender. Those who are not surrendered, raise your hands! We will have a ceremony for them. You have also created children and you are saying that you are not surrendered. You celebrate your wedding anniversary, so don't say that you are not married. What do you think: the whole group is surrendered, is it not?BapDada praises a great deal the double-foreign children and the teachers who are instruments at the double-foreign places. He isn't praising you just for the sake of it, but you do make special effort with a lot of love. You have to make a lot of effort but, because of love, you don't feel that to be effort. Look, you prepare the groups and bring them here from so very far away. Therefore, BapDada surrenders Himself to you children because of the efforts you make. The double-foreign instrument servers have one very good speciality. Do you know what that speciality is? (Many specialities emerged.) Whatever specialities emerged, check yourself and if they are missing, then fill yourself with them because many good things emerged. BapDada is telling you that He saw one speciality of you double-foreign servers: whatever directions BapDada gives, you do it and put it into a practical form. No matter how much effort you have to make, you definitely have to make it practical. This practical aim is very good. Just as BapDada says that they have to bring a group, so they bring groups.BapDada said that you have to serve VIPs and, initially, you used to say that it was very difficult, but you maintained the courage of having had to do that. So, now, for two years, groups have been coming. You used to say that it was very difficult for VIPs to come here from London. However, you have now shown the practical example. This time, even those from Bharat brought the President here. Nevertheless, the enthusiasm you double foreigners have of definitely having to carry out whatever direction you receive and the love you have for doing it is very good. Seeing the practical result, BapDada sings praise of your speciality. To open centres is a thing of the past. You will continue to open them because you easily have all the facilities there. You can go from here and then open them there. Bharat doesn’t have these facilities. Therefore, to open centres is not a big thing, but you now have to prepare such very good heir-quality souls. One is to prepare heir-quality souls and the other is to prepare those who are powerful in spreading the sound; both are necessary. Heir quality – for instance, with the zeal and enthusiasm for doing service, you have surrendered your body, mind and wealth with your intellect - this is known as heir quality. So you also have to make heir-quality souls emerge. Let there be special attention paid to this. At every centre, let there be such heir quality souls. That centre will then become number one of all the centres.One is to be co-operative in service and the other is to surrender yourself completely. How many such heirs are there? Are there such heirs at every centre? There is a long list that you have created of Godly students and of those who are co-operative in service, but only some are heirs. Whoever receives a direction at any moment, whatever shrimat you continue to receive, continue to move along according to that. So keep both aims. You have to create this type and also that type. One such heir-quality soul can become an instrument to open many centres. This will continue to happen in a practical way when you have the aim. You have now understood your speciality, have you not? Achcha.You are content anyway, or do you need to be asked? You are those who make others content. So, those who make others content would be content themselves anyway, would they not? You do not fluctuate when you see that there is very little service sometimes, do you? When there are obstacles at the centre, you do not then become afraid on seeing the obstacles, do you? For instance, if the biggest of all obstacle comes or a good hand becomes anti and causes a disturbance in your service, what would you do then? Will you become afraid? One is to have mercy for that one while having benevolent feelings – that is a different matter. However, if your stage fluctuates or you have waste thoughts, then that is fluctuation. So, do not create a world with your thoughts. Do not let those thoughts make you fluctuate. This is known as an unshakeable and immovable stage. Let it not be that you become careless by thinking that it is nothing new. Do service, be merciful towards that one and do not fluctuate. So, do not be careless and do not start having any type of feeling. You can always be in any type of atmosphere or environment, but remain unshakeable and immovable. When an instrument person advises you, do not get confused by that. Do not wonder why that person is telling you or how it would happen. Those who are instruments are experienced and out of those who are moving along practically, some are new, whereas others are a little older. So, when any situation comes in front of them, then, because of that situation, they do not have such clear intellects to understand the beginning, middle and end. They can only know the present and so, just seeing the present, the beginning and middle are not as clear to them and so they become confused. At any time, even if a direction is not clear, do not become confused. Just say with patience that you will try to understand it and give that person a little time. At that time, do not be confused and say, “Do not do this” or “Do not do that”, because double foreigners have a free mind to a greater extent, and they can even say “No” with a free mind. Therefore, whenever anything comes your way, first of all think about it with maturity for there is definitely some significance hidden in it. They can ask, “What is the significance of this?” What would be the benefit of this? Explain to us more clearly. You can tell them this. However, never refuse any direction. It is because you refuse it that you become confused This little extra attention is given to the double foreigners. Otherwise, what will happen is that they will not try to understand the directions of you instrument sisters and will start to fluctuate. These sanskars will be filled in those for whom you are the instruments when they see you. Sometimes, some will then sulk and at other times, others will sulk and these games will then continue at the centre. Understand? Achcha. Blessing: May you be a mahavir who passes through every adverse situation in a second with the powers of knowledge and yoga. A mahavir means to be a constant light-and-might-house. Knowledge is light and yoga is might. Those who are full of these powers are able to pass through every adverse situation in a second. If you develop the sanskar of not passing on time, that sanskar will then not allow you to pass fully in the final moments. Those who pass fully on time are said to have passed with honours. Even Dharamraj honours that soul. Slogan: Burn the seed of vices in the fire of yoga and you will not be deceived at that time. #brahmakumari #english #Murli #bkmurlitoday

  • आज की मुरली 15 Nov 2018 BK murli in Hindi

    BrahmaKumaris Gyan murli today Madhuban 15-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - अपनी बुद्धि वा विचारों को इतना शुद्ध, स्वच्छ बनाओ जो श्रीमत को यथार्थ रीति धारण कर बाप का नाम बाला कर सको'' प्रश्नः- बच्चों की कौन-सी अवस्था ही बाप का शो करेगी? उत्तर:- जब बच्चों की निरन्तर हर्षितमुख, अचल-अडोल, स्थिर और मस्त अवस्था बनें तब बाप का शो कर सके। ऐसी एकरस अवस्था वाले होशियार बच्चे ही यथार्थ रीति सबको बाप का परिचय दे सकते हैं। गीत:- मरना तेरी गली में.......... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। कहते हैं आये हैं तेरे दर पे जीते जी मरने के लिए। किसके दर पर? फिर भी यही बात निकलती कि अगर गीता का भगवान् कृष्ण कहें तो यह सब बातें हो न सकें। न कृष्ण यहाँ हो सके। वह तो है सतयुग का प्रिन्स। गीता कोई कृष्ण ने नहीं सुनाई, गीता तो परमपिता ने सुनाई। सारा मदार एक बात पर है। भक्ति में तुम इतनी मेहनत करते आये हो वह तो दरकार नहीं। यह तो सेकेण्ड की बात है। सिर्फ यह एक बात ही सिद्ध करने के लिए भी बाप को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कितनी नॉलेज देनी पड़ती है। प्राचीन नॉलेज जो भगवान् ने दी है वही नॉलेज है, सारी बात गीता पर है। परमपिता परमात्मा ने ही आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना के लिए सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाया है, जो अब प्राय:लोप है। मनुष्य तो समझते हैं कृष्ण कभी फिर आकर गीता सुनायेगा। परन्तु अब तुमको यह अच्छी रीति गोले के चित्र पर सिद्ध करना है कि गीता पारलौकिक परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर ने सुनाई। कृष्ण की महिमा और है, परमपिता परमात्मा की महिमा और है। वह है सतयुग का प्रिन्स, जिसने सहज राजयोग से राज्य-भाग्य पाया है। पढ़ते समय नाम रूप से और है और फिर जब राज्य पाया तब और है - यह सिद्ध कर बताना है। पतित-पावन कृष्ण को कभी नहीं कहेंगे। पतित-पावन है ही एक बाप। अभी फिर से श्रीकृष्ण की आत्मा पतित-पावन द्वारा राजयोग सीख भविष्य पावन दुनिया का प्रिन्स बन रही है। यह सिद्ध कर समझाने में भी युक्तियां चाहिए। फॉरेनर्स को भी सिद्ध कर बताना पड़ता है। नम्बरवन है ही गीता। सर्व शास्त्र-मई श्रीमत भगवत गीता माता। अब माता को जन्म किसने दिया? बाप ही माता को एडाप्ट करते हैं ना। गीता किसने सुनाई? ऐसे नहीं कहेंगे कि क्राइस्ट ने बाइबिल को एडाप्ट किया। क्राइस्ट ने जो शिक्षा दी उनका फिर बाइबिल बनाकर पढ़ते हैं। अब गीता की शिक्षा किसने दी, जो फिर बाद में पुस्तक बनाकर पढ़ते रहते हैं? यह किसको पता नहीं। और सबके शास्त्रों का तो पता है। यह जो सहज राजयोग की शिक्षा है, वह किसने दी है, यह सिद्ध करना है। दुनिया तो दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनती जाती है। यह सब स्वच्छ बुद्धि में ही बैठ सकता है। जो श्रीमत पर नहीं चलते, उनको धारणा हो न सके। श्रीमत कहेगी तुम बिल्कुल समझा नहीं सकते हो। अपने को ज्ञानी मत समझो। पहले तो मुख्य बात यह सिद्ध करनी है कि गीता का भगवान् परमपिता परमात्मा है, वही पतित-पावन है। मनुष्य तो सर्वव्यापी कह देते हैं वा ब्रह्म तत्व कह देते वा सागर कह देते। जो आया सो कह देते - बिगर अर्थ। भूल सारी गीता से निकली है, जो गीता का भगवान् श्रीकृष्ण कह दिया है। तो समझाने लिए गीता उठानी पड़े। बनारस वाले गुप्ता जी को भी कहते थे कि बनारस में यह सिद्ध कर बतलाओ कि गीता का भगवान् कृष्ण नहीं। अब सम्मेलन तो होते हैं, सब रिलीजस मनुष्य कहते हैं क्या उपाय करें जो शान्ति हो जाए? अब शान्ति स्थापन करना पतित मनुष्यों के हाथ में तो है नहीं। कहते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर भी पतित कैसे शान्ति स्थापन कर सकते, जबकि बुलाते रहते हैं परन्तु पतित से पावन बनाने वाले बाप को जानते नहीं हैं। भारत पावन था, अभी पतित है। अब पतित-पावन कौन है? यह कोई की बुद्धि में नहीं आता। कह देते हैं रघुपति राघव...... अब वह राम तो है नहीं। झूठा बुलावा करते हैं। जानते कुछ नहीं। अब यह कौन जाकर बताये? बड़े अच्छे बच्चे चाहिए। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। बड़ा गोला भी बनवाया है, जिससे सिद्ध हो जाए कि गीता भगवान् ने रची। वह तो कह देते कोई भी हो, हैं तो सब भगवान्। बाप कहते हैं तुम बेसमझ हो। मैंने आकर पावन राज्य स्थापन किया, उसके बदले फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया। पतित को ही पावन बनाकर फर्स्ट प्रिन्स बनाता हूँ। भगवानुवाच - मैं कृष्ण की आत्मा को एडाप्ट कर ब्रह्मा बनाए उन द्वारा ज्ञान देता हूँ। वह फिर इस सहज राजयोग से फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का बन जाता है। यह समझानी और कोई की बुद्धि में है नहीं।तुम्हें पहले तो यह भूल सिद्धकर दिखानी है कि श्रीमत भगवत गीता है सब शास्त्रों की माई बाप। उसका रचयिता कौन था? जैसे क्राइस्ट ने बाइबिल को जन्म दिया, वह है क्रिश्चियन धर्म का शास्त्र। अच्छा बाइबिल का बाप कौन? क्राइस्ट। उनको माई-बाप नहीं कहेंगे। मदर की तो वहाँ बात ही नहीं। यह तो यहाँ मात-पिता है। क्रिश्चियन ने रीस की है कृष्ण के धर्म से, यूँ तो वह क्राइस्ट को मानने वाले हैं। जैसे बुद्ध ने धर्म स्थापन किया तो बौद्धियों का शास्त्र भी है। अब गीता किसने सुनायी? उससे कौन-सा धर्म स्थापन हुआ? यह कोई नहीं जानते। कभी नहीं कहते कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। अभी गोला ऐसा बनाया है, जिससे समझ सकें कि बरोबर परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। राधे-कृष्ण तो सतयुग में हैं। उन्होंने अपने को तो ज्ञान नहीं दिया। ज्ञान देने वाला तो दूसरा चाहिए। कोई ने तो उन्हों को पास कराया होगा। यह राजाई प्राप्त कराने का ज्ञान किसने दिया? किस्मत आपेही तो नहीं बनती। किस्मत बनाने वाला या तो बाप या तो टीचर चाहिए। कहते हैं गुरु गति देते हैं। परन्तु गति सद्गति का भी अर्थ नहीं समझते। प्रवृत्ति मार्ग वालों की सद्गति होती है। बाकी गति माना सब बाप के पास जाते हैं। यह बातें कोई भी समझते नहीं। वह तो भक्ति मार्ग में बहुत बड़े-बड़े दुकान खोलकर बैठे हैं। सच्चे ज्ञान मार्ग की दुकान यह एक ही है बाकी सब भक्ति मार्ग की दुकानें हैं। बाप कहते हैं यह वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। इन जप-तप, वेद-शास्त्र आदि का अध्ययन करने से मैं नहीं मिलता हूँ। मैं तो बच्चों को ज्ञान देकर पावन बनाता हूँ। सारी सृष्टि का सद्गति दाता हूँ। वाया गति में जाकर फिर सद्गति में आना है। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे। यह ड्रामा बना हुआ है। जो कल्प पहले तुमको सिखाया था, जो चित्र बनवाये थे, वह अब बनवा रहे हैं।मनुष्य कहते हैं 3 धर्मों की टांगों पर सृष्टि खड़ी है। एक देवता धर्म की टांग टूटी हुई है इसलिए हिलते रहते हैं। पहले एक धर्म रहता जिसको अद्वेत राज्य कहा जाता है। फिर वह एक टांग कम हो 3 टांगे निकलती हैं, जिसमें कुछ भी ताकत नहीं रहती है। आपस में ही लड़ाई-झगड़ा चलता रहता है। धनी को जानते नहीं। निधनके बन पड़े हैं। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में भी यह बात समझानी है कि गीता का भगवान् कृष्ण नहीं है, परमपिता परमात्मा है। जिसका बर्थ प्लेस भारत है। कृष्ण तो है साकार, वह है निराकार। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसी युक्ति से कार्टून बनाना चाहिए जो सिद्ध हो जाए कि गीता किसने गाई? अंधो के आगे बड़ी आरसी (आइना) रखना है। यह है ही अंधो के आगे आइना। जास्ती टू मच में नहीं जाना है। कड़ी भूल यह है। परमपिता परमात्मा की महिमा अलग है, उसके बदले कृष्ण को महिमा दे दी है। लक्ष्मी-नारायण के चित्र में नीचे राधे-कृष्ण हैं। वही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण सतयुग में, राम-सीता त्रेता में। पहला नम्बर बच्चा श्रीकृष्ण है, उनको फिर द्वापर में ले गये हैं। यह सब है भक्तिमार्ग की नूंध। विलायत वाले इन बातों से क्या जानें। ड्रामा अनुसार यह ज्ञान किसके पास भी है नहीं। कहते भी हैं ज्ञान दिन, भक्ति रात। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। सतयुग स्थापन करने वाला कौन है? ब्रह्मा आया कहाँ से? सूक्ष्मवतन में कहाँ से आया? परमपिता परमात्मा ही सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं। वहाँ ब्रह्मा दिखाते हैं। परन्तु वहाँ तो प्रजापिता ब्रह्मा होता नहीं। जरूर प्रजापिता ब्रह्मा और है। वह कहाँ से आया, यह बातें कोई समझ नहीं सकते। कृष्ण के अन्तिम जन्म में उनको परमात्मा ने अपना रथ बनाया है, यह किसकी बुद्धि में नही है।यह बड़ा भारी क्लास है। टीचर तो समझते हैं ना - यह स्टूडेण्ट कैसा है? तो क्या बाप नही समझते होंगे? यह बेहद के बाप का क्लास है। यहाँ की बात ही निराली है। शास्त्रों में तो प्रलय आदि दिखाकर कितना रोला कर दिया है। कितना घमण्ड है। रामायण, गीता आदि कैसे बैठ सुनाते हैं। कृष्ण ने तो गीता सुनाई नहीं। उसने तो गीता का ज्ञान सुनकर राज्य पद पाया है। सिद्ध कर समझाते हैं, गीता का भगवान् यह है। उनके गुण यह हैं, कृष्ण के गुण यह हैं। इस भूल के कारण ही भारत कौड़ी जैसा बना है। तुम मातायें उनको कह सकती हो कि तुम लोग कहते हो माता नर्क का द्वार है परन्तु परमात्मा ने तो ज्ञान का कलष माताओं पर रखा है, मातायें ही स्वर्ग का द्वार बनती हैं। तुम निंदा कर रहे हो। परन्तु बोलने वाले बड़े होशियार चाहिए। प्वाइन्ट्स सब नोट कर समझाना चाहिए। भक्ति मार्ग वास्तव में गृहस्थियों के लिए है। यह है प्रवृत्ति मार्ग का सहज राजयोग। हम सिद्ध कर समझाने लिए आये हैं। बच्चों को शो करना है। सदैव हर्षितमुख, अचल, स्थिर, मस्त रहना चाहिए। आगे चल महिमा निकलनी जरूर है। तुम सब हो तो ब्रह्माकुमार कुमारियां। कुमारी वह जो 21 जन्मों लिए बाप से वर्सा दिलाये। कुमारियों की महिमा बहुत भारी है। मुख्य कुमारी तुम्हारी मम्मा है। चन्द्रमा के आगे फिर अच्छा स्टॉर भी चाहिए। यह ज्ञान सूर्य है। यह गुप्त मम्मा अलग है। इस राज़ को तुम बच्चे ही समझकर समझा सकते हो। उस मम्मा का नाम अलग है, मन्दिर उसके हैं। इस गुप्त बुढ़ी माँ का मन्दिर थोड़ेही है। यह मात-पिता कम्बाइन्ड है। दुनिया यह नहीं जानती। कृष्ण तो हो नहीं सकता। वह फिर भी सतयुग का प्रिन्स है। कृष्ण में भगवान् आ न सके। समझाना बहुत सहज है। गीता के भगवान् की महिमा अलग है। वह पतित-पावन सारी दुनिया का गाइड, लिबरेटर है। मनुष्य चित्रों से समझ जायेंगे कि बरोबर परमात्मा की महिमा अलग है, सब एक थोड़ेही हो सकते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अपनी अवस्था बड़ी मस्त, अचल अडोल बनानी है। सदा हर्षितमुख रहना है। 2) ज्ञान के शुद्ध घमण्ड (नशे) में रह कर बाप का शो करना है। गीता के भगवान् को सिद्ध कर बाप की सच्ची पहचान देनी है। वरदान:- सर्व प्राप्तियों की अनुभूति द्वारा माया को विदाई दे बधाई पाने वाले खुशनसीब आत्मा भव जिनका साथी सर्वशक्तिमान बाप है, उनको सदा ही सर्व प्राप्तियां हैं। उनके सामने कभी किसी प्रकार की माया आ नहीं सकती। जो प्राप्तियों की अनुभूति में रह माया को विदाई देते हैं उन्हें बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। तो सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं, जो सोचा नहीं वह पा लिया, बाप को पाया सब कुछ पाया ऐसी खुशनसीब आत्मा हो। स्लोगन:- स्वचिन्तन और प्रभुचिन्तन करो तो व्यर्थ चिंतन स्वत: समाप्त हो जायेगा। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 28 Nov 2018 BK murli today in English

    BrahmaKumaris murli today in English 28/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, you should have a great interest in doing the service of changing human beings into deities. However, in order to do this service, you need to have deep dharna yourselves. Question: How do souls become dirty? Which dirt are souls covered with? Answer: Souls become dirty by having remembrance of friends and relatives. The number one rubbish is body consciousness and then the rubbish of greed and attachment begins. Souls become covered with the dirt of the vices. Then they forget to have remembrance of the Father and are unable to do service. Song: My heart desires to call out to You. Om Shanti . This song is very good. Children guarantee: After listening to You I feel like sharing this knowledge with others. Some children do have remembrance and that is also essential. Some would have remembrance and would also have met Baba. It is said that a handful out of multimillions come and claim this inheritance. Your intellects have now become very broad and unlimited. The Father would surely have also come 5000 years ago to teach you Raja Yoga. First of all, you have to explain who spoke this knowledge because that is the biggest mistake. The Father has explained that the Gita, the jewel, the mother of all the scriptures, is the scripture of Bharat. It is just that people have forgotten who spoke the Gita, the jewel, the mother of all scriptures, and which religion was established through that. However, they definitely sing: O God, come! God definitely does come to create the new, pure world. He is the Father of the world, is He not? Devotees sing: When You come, we can receive happiness and peace. Happiness and peace are two things. In the golden age, there is definitely also happiness there, but all the rest of the souls are in the land of peace. This introduction has to be given. In the new world, there is New Bharat, the kingdom of Rama. There is happiness in that world and this is why there is praise of the kingdom of Rama. If that is called the kingdom of Rama, this has to be called the kingdom of Ravan because there is sorrow here. There is happiness there. The Father comes and gives happiness. Everyone else receives peace in the land of peace. The Father is the Bestower of peace and happiness. Here, there is peacelessness and sorrow. So, this knowledge should trickle into your intellects. A very good stage is needed for that. Even little children are taught this, but they cannot explain the meaning. This has to be imbibed very deeply so that if anyone asks you any questions, you can explain to them. A very good stage is needed. Otherwise, due to body consciousness or anger or attachment, you sometimes continue to fall. Some even write: Baba, today, I fell due to anger. Today, I fell due to greed. When your stage becomes strong, there will be no question of falling. There will be a lot of interest in doing the service of changing human beings into deities. The song is very good: Baba, when You come, we will become very happy. The Father definitely has to come, otherwise, who would make the impure world pure? Krishna is a bodily being. You cannot mention his name or the names of Brahma, Vishnu or Shankar for this. People sing: O Purifier, come! So you should ask them: To whom did you say this? Who is the Purifier and when will He come? That One is the Purifier, and, since you call Him, this world must surely be impure. The golden age is called the pure world. Who would make the impure world pure? It is mentioned in the Gita that God Himself truly taught Raja Yoga and enabled you to gain victory over those vices. Lust is the greatest enemy. You have to ask them: Who said that He will teach you Raja Yoga and that lust is the greatest enemy? Who said that He is omnipresent? In which scripture is this written? Of whom is it said that He is the Purifier? Is the Ganges the Purifier or is it someone else? Even Gandhiji used to say: O Purifier, come! The Ganges has always existed. It is not new. The Ganges would be called imperishable; it is just that the elements become tamoguni and so they cause mischief. They make it overflow and bring floods. They then change the direction of its flow. In the golden age, everything works regularly. There cannot be too little or too much rainfall. There is no question of sorrow there. So it should remain in your intellects that the Purifier is our Baba alone. When people remember the Purifier, they say, “Oh God!” “Oh Baba!” Who said this? Souls said it. You know that the Purifier, Shiv Baba, has come. You definitely have to insert the word ‘Incorporeal’. Otherwise, they believe the corporeal one to be this. Souls have become impure and so you cannot say that all are God. To say "I am Brahma" or "I am Shiva" is the same thing. However, the Master of creation is only the one Creator. People give various, very long and complicated meanings; ours is one of just a second. You receive the Father's inheritance in just a second. The Father's inheritance is the kingdom of heaven. That is called liberation-in-life. This is bondage-in-life. You have to explain: Truly, when You come, You will come to give us the inheritance of heaven, liberation and liberation-in-life. This is why it is written that the Bestower of Liberation and Liberation-in-life is the One. This also has to be explained. In the golden age, there is just the one original, eternal, deity religion. There is no name or trace of sorrow there. That is the land of happiness. It is the sun-dynasty kingdom there. Then, in the silver age, it is the moon-dynasty kingdom. Then, in the copper age, those of Islam and the Buddhists come. Each whole part is fixed. Such big parts are fixed in tiny point-like souls and the Supreme Soul. You also have to write in the picture of Shiva: I am not as big as a jyotilingam (oval-shaped light). I am like a star. Souls too are stars. It is remembered: A wonderful star sparkles in the centre of the forehead. So, that is a soul. I am the Supreme Father, the Supreme Soul. However, I am the Supreme, the Purifier. My virtues are distinct. Therefore, all the virtues also have to be written. On one side, write the praise of Shiva and on the other side, write the praise of Shri Krishna. They are opposite things; you have to write this very clearly so that people can read and understand it very clearly. Heaven and hell, happiness and sorrow; whether you call it the day and night of Krishna or the day and night of Brahma, it is the same thing. You know how happiness and sorrow continue. The sun dynasty has 16 celestial degrees and the moon dynasty has 14 degrees. One is completely satopradhan and the other is sato. Those of the sun dynasty then become part of the moon dynasty. When those of the sun dynasty go into the silver age, they definitely take birth in the moon-dynasty clan although they do claim a royal status. These things should be made to sit in your intellects very well. To the extent that you stay in remembrance and become soul conscious, accordingly, you will be able to imbibe. You will also do service very well. You would very clearly tell others: I sit like this, I imbibe like this, I explain in this way and I churn the ocean of knowledge in this way in order to explain to others. Your churning would continue all the time. It is a different matter for those who don't have knowledge; they won’t imbibe anything. If they imbibe knowledge, they have to do service. Service is now continuing to increase a great deal. Day by day, your praise will increase. So many people will then come to your exhibitions. So many pictures will have to be made. A very big marquee will have to be put up. In fact, solitude is needed to explain these things. Our main pictures are those of the tree, the cycle and this picture of Lakshmi and Narayan. People won't be able to understand as clearly from the picture of Radhe and Krishna who they are. At this time, you know that the Father is now making you pure like them. Not everyone will become complete to the same extent. Souls will become pure, but not everyone will imbibe knowledge. If someone doesn't imbibe knowledge, it is understood that he will claim a low status. Your intellects have now become so sharp. It is numberwise in every class. Some are clever and some are dull; this too is numberwise. If a good person is given someone who is third grade to explain knowledge to him, he would think that there is nothing here. This is why effort is made to find someone good at explaining to a good person. Not everyone will pass to the same extent. Baba has a limit. The result of this study is announced every cycle. There are eight main ones who pass, then 100, and then 16,000 and then the subjects. In that, too, there are the wealthy, the poor, all types. It is understood what type of effort each one makes at this time and what status he is worthy of receiving. A teacher would be aware of this. Teachers too are numberwise. Some teachers are good and everyone is pleased that they teach well and also give a lot of love. It would only be a good teacher who would make a small centre into a big centre. You have to do so much with your intellect. You have to become extremely sweet on the path of knowledge. Only when you have full yoga with the sweet Father will you become sweet and you will then also be able to imbibe. Many don't have yoga with such a sweet Baba. They don’t even understand that, while living at home with their family, they have to have full yoga with the Father. Storms of Maya will definitely come. Some would remember their old friends and relatives whereas others would remember something else. The remembrance of friends and relatives makes souls dirty. When there is rubbish in a soul, he becomes afraid. You mustn't be afraid here. Maya will do this. Rubbish will definitely fall on us. Rubbish is thrown in a fire at Holi. If we stay in remembrance of Baba, the rubbish doesn't remain. If you forget the Father, the number one rubbish of body consciousness will fall on you. Then, greed, attachment etc. will all come. You have to make effort for yourself and earn an income and then also make effort to make others the same as yourself. Very good service takes place at the centres. When they come here, they say that they will make arrangements to open centres but, as soon as they leave here, that finishes. Baba Himself tells them that they will forget all of these things. Here, you have to stay in the bhatti until you become worthy of explaining to others. The connection with Shiv Baba is the sweetest. It can be understood what type of service you do. You definitely do receive the reward of doing physical service. Many do a lot of hard work. However, there are the subjects. There are subjects in that study and also in this spiritual study. The number one subject is remembrance and then there is the study. All the rest is incognito. This drama has to be understood. No one knows that each age is 1250 years. For how long does the golden age continue? OK, which religion existed there? Who should have the maximum number of births here? Buddhists and those of Islam etc. will not take as many births. These things are not in the intellect of anyone. You should ask those who study the scriptures: What is it that you refer to as the Versions of God? The Gita is the jewel, the mother of all scriptures. In Bharat, there was first the deity religion. What is their scripture? Who spoke the Gita? They cannot be the versions of God Krishna. It is the task of God alone to carry out establishment and destruction. Krishna would not be called God. When did he come? In what form is he now? You definitely have to write the praise of Krishna opposite the praise of Shiv Baba. Shiva is the God of the Gita. Shri Krishna received his status through that. The 84 births of Shri Krishna are also shown. At the end, you also have to show the picture of adopted Brahma. It is as though we have a rosary of 84 births in our intellects. You also definitely have to show the 84 births of Lakshmi and Narayan. You have to churn the ocean of knowledge at night and think about these things further. Liberation-in-life is received in a second. What should we write for that? Liberation-in-life means to go to heaven. However, it is only when the Father, the Creator of heaven, comes that you become His children, because only then can you become the masters of heaven. The golden age is the world of pure and charitable souls. This iron age is the world of sinful souls. That is the viceless world; there is no kingdom of Maya, Ravan, there. Although we won't have any of this knowledge there, we will still have the thoughts: I am a soul and this body has now become old so I now have to shed it. Here, no one even has knowledge of souls. You receive the inheritance of liberation-in-life from the Father. So, you should also remember Him. The Father gives the order: Manmanabhav! Who said, “Manmanabhav” in the Gita? Who can say, “Remember Me and remember the land of Vishnu.”? Krishna cannot be called the Purifier. No one knows the secrets of 84 births. So, you should explain this to everyone. Understand these things and bring benefit to yourselves and to others and you will receive a lot of regard. Be fearless and continue to go here and there. You are very incognito. You can change your dress and go and do service. You should always have the pictures with you. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Have full yoga with the sweet Father and become extremely sweet and soul conscious. Churn the ocean of knowledge, first imbibe it yourself and then explain to others. 2. Make your stage strong. Be fearless. Have an interest in doing the service of changing human beings into deities. Blessing: May you be a master almighty authority and with the authority of self-sovereignty attain the authority of the kingdom of the world. Those who have the authority of self-sovereignty at this time, that is, who are conquerors of their senses can attain the authority of the kingdom of the world. Only those who have a right to self-sovereignty can become those who have a right to the kingdom of the world. So, check: Is the soul a master of the mind, intellect and sanskars, which are the powers of the soul? Does your mind control you or do you control your mind? Do your sanskars sometimes pull you? The stage of one with a right to self-sovereignty is constantly a master almighty authority, who lacks none of the powers. Slogan: When you have the key to all treasures of, “My Baba”, with you, no attraction can then attract you. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday

  • 7 June 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban -07-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे-साइलेन्स के आधार पर तुम विश्व में एक धर्म, एक राज्य की स्थापना करते हो - यह है साइलेन्स का घमन्ड" प्रश्नः- सारी दुनिया अपने आपको श्रापित कैसे करती और बच्चे कैसे करते ? उत्तर:- सारी दुनिया भगवान को सर्वव्यापी कह अपने आपको श्रापित करती और बच्चे बाबा-बाबा कह फिर यदि काम अग्नि से स्वयं को भस्म करते तो श्रापित हो जाते। माया का थप्पड़ लग जाता है। बाबा कहते - हे मीठी लाडली आत्मायें, अब सतोप्रधान बनो, भस्मासुर नहीं। ओम् शान्ति।बच्चे जानते हैं कि हम अभी अन्धियारे से रोशनी में जाते हैं। चन्द्रमा की रोशनी ऐसी है जैसे सूक्ष्मवतन। सूर्य निकलता है तो उसकी तपत (गर्मी) हो जाती है। चन्द्रमा शीतलता देता है। अब यह लाइट तो इन आंखों के लिए है। आत्मा को भी आंखे हैं। आत्मा को बुद्धि की आंखे मिलती हैं। आत्मा जानती है - बरोबर अभी बेहद के बाप को भी जानते हैं और इन आंखों से ब्रह्मा रथ जिसमें शिवबाबा प्रवेश करते हैं उनको भी जानते हैं। तुम बच्चों को पहचान हुई है। यह पहचान तब होती है जबकि सम्मुख मिला जाता है। नंदीगण, भागीरथ भी कहते हैं। नंदीगण हमेशा बैल को दिखाते हैं। भागीरथ फिर मनुष्य को दिखाते हैं। एक शंकर का चित्र दिखाते हैं, समझते हैं उनसे गंगा आई। अब पानी की गंगा तो है नहीं। यह अभी तुम जान गये हो। अभी तुम ब्राह्मणों को सभी शास्त्रों आदि का ज्ञान है। सभी वेदों, ग्रंथों, उपनिषदों आदि का तुम सार समझाते हो। कई बच्चियां हैं जिन्होंने कभी कोई शास्त्र आदि पढ़ा और सुना ही नहीं है। परन्तु सब वेदों शास्त्रों के सार को समझ रही हैं। अनपढ़ और ही पढ़े हुए से तीखे जाते हैं। अनपढ़े आगे पढ़े हुए भरी ढोयेंगे। नहीं तो अनपढ़े, पढ़े के आगे भरी ढोते हैं। यहाँ यह वन्डर है ना। कुछ नहीं पढ़े हुए सब वेद, शास्त्रों, धर्मों, भक्ति मार्ग के कर्म काण्डों को जानते हैं। मनुष्य वानप्रस्थ अवस्था में ही गुरू करते हैं फिर वह बैठ उन्हों को शास्त्र आदि सुनाते हैं। वे समझते हैं इनसे परमात्मा के पास जाने का रास्ता मिलता है। जैसे कोई पहाड़ी है, कहाँ से भी ऊपर चढ़कर जाना है। परन्तु ऐसे तो है नहीं। तुम जो कुछ नहीं जानते थे अभी सब कुछ जान गये हो। कुमारियों द्वारा ही परमपिता परमात्मा ने भीष्म पितामह आदि को ज्ञान बाण मरवाये हैं। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। जगत अम्बा सरस्वती कुमारी है ना। बड़े-बड़े पण्डित सरस्वती सरनेम रखाते हैं। वास्तव में ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान सरस्वती है मम्मा। बरोबर अभी कन्याओं में ताकत जास्ती आती है क्योंकि वह उल्टी सीढ़ी नहीं चढ़ी है। पुरुष जब शादी करता है तो स्त्री में मोह चला जाता है फिर माँ-बाप आदि सबसे मोह निकल स्त्री के मुरीद बन जाते हैं। फिर बच्चे पैदा करते हैं तो उनमें मोह चला जाता है। अभी तुम सबसे नष्टोमोहा बनते हो। अपने को आत्मा निश्चय करते हो। आत्मा का योग है बाप से, योग अर्थात् याद। तुम्हारी बात ही निराली होती है ना। कन्यायें तो पवित्र होती हैं। वह तीर्थ आदि नहीं करती क्योंकि हैं ही पवित्र। मनुष्य तीर्थों पर जाते हैं पाप काटने। समझते हैं गंगा पतित-पावनी है। पतित-पावन तो एक होना चाहिए ना। गंगा पतित-पावनी है तो फिर वहाँ क्यों जाते हैं। वहाँ देखने जाते हैं। कहते हैं तीर मारा फिर गंगा निकली। कुछ न कुछ गऊमुख आदि बनाकर रखते हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं - बच्चे, तुम आत्मा हो। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। वह बाप भी है। सतगुरू भी है। मन्दिरों में कृष्ण के पांव दिखाते हैं। शिवबाबा को तो अपने पैर हैं नहीं क्योंकि उनको शरीर ही नहीं है जो कोई चरणों की धूल बनें। बाबा कहते हैं - बच्चे, तुमको शिवबाबा के चरणों की धूल नहीं बनना है। मैं इन सब कलियुगी रस्म-रिवाजों से तुम बच्चों को आकर छुड़ाता हूँ। मेरे चरण हैं नहीं। शिव को तो शरीर है नहीं। यह तो ब्रह्मा का तन है इसलिए तुम शिवबाबा की पूजा नहीं कर सकते। इस भाग्यशाली रथ में शिव आया है। भक्तिमार्ग में शिवोहम् कहने वालों पर फूल आदि चढ़ाते हैं। यह है सब भक्ति मार्ग की रस्म-रिवाज। अर्थ कुछ भी समझते नहीं। कहते हैं स्त्रियों को लिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए। परन्तु वह कौन है - यह भी समझते नहीं। वास्तव में शिव कोई ऐसा लिंग रूप तो है नहीं। वह तो स्टार है, उनकी पूजा क्यों नहीं कर सकते। शिव माना ही है परमपिता परमात्मा कल्याणकारी। वास्तव में उनकी पूजा तो बहुत होनी चाहिए। शिव कल्याणकारी एक ही है। वही पतित से पावन बनाते हैं। सबका कल्याण करते हैं। जो पहले नम्बर में लक्ष्मी-नारायण थे वही 84 जन्म ले पतित बनें हैं तो सब पतित हो गये। सतोप्रधान से रजो तमो में सब आ गये हैं। सबका कल्याण करने वाला एक ही बाप ठहरा। इस समय मनुष्य सब पतित बने हैं। पहले आने से ही पतित नहीं होते हैं। पहले तो पावन होते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं - मेरे लाडले सिकीलधे बच्चे वा सालिग्रामों, सुनते हो बाप इस मुख से क्या कह रहे हैं? और कोई तो कह न सके। कोई भी सन्यासी आदि कह न सकें कि हम एवर पावन इस शरीर द्वारा तुम आत्माओं से बोल रहा हूँ। बाप ही कह सकते हैं। कई बाबा-बाबा कह कर भी फिर भस्मासुर बन जाते हैं। माया थप्पड़ लगा देती है तो अपने को भस्म कर देते हैं। काम अग्नि है ना। बाप आकर इस भस्मासुर-पने से छुड़ाते हैं। समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चे तुम मेरी सन्तान हो। तुम ब्रह्माण्ड में रहते हो। वहाँ तुम अशरीरी हो इसलिए कोई संकल्प विकल्प नहीं चलता है, फिर पार्ट में आते हो - यह भी ड्रामा बना हुआ है। अभी तुम्हारी प्रालब्ध खड़ी है। अभी तुम हो त्रिकालदर्शी। यह संस्कार तुम्हारे यहाँ ही प्राय:लोप हो जाते हैं। यह ज्ञान वहाँ नहीं रहेगा। जब तक यहाँ हो तो ज्ञान है। समझो कोई यहाँ से संस्कार ले जाते हैं वह फिर इमर्ज होते हैं तो उसी अनुसार इस शक्ति सेना में आकर दाखिल हो सकते हैं। (लड़ाई वालों का मिसाल) उनमें थोड़ा बड़ा होने से ही मिलेट्री में दाखिल हो जाते हैं। कोई को यहाँ आना होगा तो संस्कार जो ले जाते हैं उस अनुसार अच्छे घर में जाकर जन्म लेते हैं फिर ऐसे संस्कारों वाले छोटे बच्चे भी यहाँ आते हैं। फिर स्वर्ग में नया जन्म लेंगे, तो यहाँ के संस्कार खत्म हो जायेंगे। फिर राजधानी के संस्कार आयेंगे प्रालब्ध भोगने के लिए। यह संस्कार मर्ज हो जाते हैं। कई बच्चों का बहुत लव रहता है। तो वह आत्मा देखकर खुश होती है। परन्तु आरगन्स छोटे होने कारण बोल नहीं सकते हैं। बड़ा होने से संस्कार इमर्ज होते जायेंगे। बाप कितनी बातें समझाते हैं।परमपिता परमात्मा है तो पिता से वर्सा जरूर मिलना चाहिए। वह है ही स्वर्ग का रचता। नर्क का रचता नहीं कहेंगे। तुम बच्चे जानते हो हम बाबा से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। कल्प पहले भी लिया था। इसी समय पर ही बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिलता है। यह सिर्फ तुम ही कह सकते हो। यह हैं बिल्कुल नई बातें। तुम समझाते हो गीता है माई बाप। बाकी सब शास्त्र हैं उनके बाल-बच्चे। गीता से ही राजयोग का व स्वर्ग की राजाई का वर्सा मिलता है। बाकी बाल-बच्चों से वर्सा क्या मिलेगा। तुम तो अब पारसबुद्धि बनते हो, तुम्हारे महल आदि भी बहुत क्वीक बनेंगे। तुम्हारा है साइलेन्स का घमन्ड, उन्हों का है साइंस का घमण्ड। तुम सर्वशक्तिमान बाप से राजाई लेते हो। भारत के तुम मालिक बनते हो। यह हमेशा बुद्धि में रखो - विश्व का रचता हमको विश्व का मालिक बनाने लिए पढ़ाते हैं। एक सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति देते हैं तो क्या एक सेकेण्ड में बाप इसमें प्रवेश नहीं कर सकेंगे। एक सेकेण्ड में आत्मा यहाँ से लण्डन-अमेरिका आदि में जाए जन्म लेती है। आत्मा एकदम फ्लाइंग स्क्वाइड है। है कितना छोटा स्टार। पुन-र्जन्म तो जरूर मानेंगे। तुमने कितने पुनर्जन्म लिए हैं। 84 जन्मों में जरूर आना है जो बिल्कुल ही पतित शूद्र बुद्धि हैं वे आकर फिर से स्वच्छ बुद्धि बनते हैं। स्वच्छ बुद्धि का संग जरूर ऐसा ही बनायेगा। अभी तुम मास्टर ज्ञान सागर ठहरे। जो बाप में गुण हैं वह तुम धारण करते हो। तुम भी कहते हो मन्मनाभव। तो तुम्हारी आत्मा स्वच्छ हो जायेगी। बाकी दिव्य दृष्टि की चाबी बाबा के पास ही है। तुम मनुष्य से देवता बनते हो इसलिए बच्चे को भी ताज दिखाते हैं। नहीं तो छोटे बच्चों को ताज नहीं होता। वह प्रिन्स ही देखते हैं। मातायें साक्षात्कार में देखती है - हम जाकर महारानी बनेंगी। ज्ञान से भी समझ सकते हैं अभी हमारी आत्मा पतित है। मैं कारपेन्टर हूँ, मैं गरीब हूँ - यह आत्मा बोलती है। अभी तुम जानते हो शिवबाबा द्वारा हम देवता बन रहे हैं। आत्मा ही पतित और पावन बनती है। अभी मैं आत्मा पतित हूँ तो शरीर भी ऐसे पतित हैं। खाद पड़ी है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करते विचार सागर मंथन करते रहना चाहिए। तो फिर आदत पड़ जायेगी। विचार सागर मंथन तुम बच्चों को करना है - राइट क्या है, रांग क्या है।अपने को आत्मा निश्चय करना है। मैं ब्राह्मण हूँ। शरीर द्वारा आत्मा को ही बुलाते हैं। शरीर को क्यों नहीं बुलाते। खिलाते भी आत्मा को है। अच्छा, आत्मा कैसे खायेगी? ब्राह्मण के शरीर द्वारा खायेगी ना। स्त्री समझती है पति की आत्मा को बुलाया है। किसको स्त्री में प्यार होता है जब उनकी आत्मा को बुलाते हैं तो समझते हैं अब इनको क्या सौगात दें। फिर उनको अंगूठी वा फुल्ली पहना देते हैं। है तो आत्मा शरीर तो नहीं आ सकता। वास्तव में आत्मा कोई आती भी नहीं है। यह सब ड्रामा में नूंध है। यह भी एक खेल है। वह समझते हैं फलाना आया हुआ है। मैं उनको खिलाता हूँ। बड़े आदमी को धूमधाम से खिलाते हैं। यह रस्म-रिवाज है। वास्तव में ब्राह्मणों को कोई नौकरी नहीं करनी है। परन्तु आजकल पेट के लिए सब कुछ करते हैं। नहीं तो ब्राह्मण लोग अपने को बहुत ऊंच समझते हैं। परन्तु वह हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण। तुम्हारी बहुत महिमा है। तुम अब समझ गये हो। हम सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज को जानते हैं। सिवाए एक बाप के और कोई को नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। जिनको मनुष्य से देवता बनाते हैं उनको भी गोद जरूर चाहिए क्योंकि यह है मात-पिता। बाप आकर तुमको इन द्वारा रचते हैं। यह बातें और कोई की समझ में मुश्किल आती हैं। कितनी वन्डरफुल बातें हैं! कहते हैं दिन-प्रतिदिन तुमको गुह्य राज़ सुनाता हूँ। अन्त तक यह नॉलेज धारण करनी है। पिछाड़ी में जाकर कर्मातीत अवस्था होगी। 8 पास विद ऑनर होते हैं। मिलेट्री में मरते हैं तो उनको पूरा सम्मान देते हैं। यह सब पुरुषार्थ कर रहे हैं, कर्मातीत बनने की रेस है। कौन अच्छी रीति योग लगाते और रूद्र माला में जाते हैं। मम्मा-बाबा तो प्रसिद्ध हैं फिर हैं नम्बरवार। पास विद आनर्स को फुल मार्क्स मिलते हैं। वह सजा आदि कुछ नहीं खाते हैं। उन्हों का मान बहुत है। हमेशा 9 रत्न गाये जाते हैं, 8 नहीं। 4 की जोड़ी हो जाती। बाकी है एक बीच में बाप। वह लोग तो अर्थ को नहीं समझते। जिसने जो राय दी वह बना देते हैं। जैनी लोग कितना हठयोग करते हैं, बाल निकालते हैं। यह तो हिंसा हो गई। यह सन्यास तो दु:ख देने वाला है। तुमको तो कुछ भी नहीं करना पड़ता है। तुमको तो टैम्पटेशन देकर तुमसे विकारों का सन्यास कराते हैं। यह नॉलेज भी तुम्हारे सिवाए और कोई में नहीं है। बरोबर 84 जन्मों का चक्र लगाया। अभी हम वापिस जाते हैं। जितना योग में रहेंगे तो पवित्र बन सकेंगे। याद में रहते और सर्विस करते रहें तो उनको जास्ती फल मिलेगा। मोस्ट बिलवेड बाप है जिससे 21 जन्मों के लिए सुख का वर्सा मिलता है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) कर्मातीत बनने की रेस करनी है। अच्छा फल प्राप्त करने के लिए याद में रहकर सर्विस करनी है। 2) स्वच्छ बुद्धि वालों का संग करके स्वच्छ बनना है। बाप के गुणों को स्वयं में धारण करना है। स्वयं को कभी भी श्रापित नहीं करना है। वरदान:- मालिक बन कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले कर्मयोगी, कर्मबन्धनमुक्त भव l ब्राह्मण जीवन कर्मबन्धन का जीवन नहीं, कर्मयोगी जीवन है। कर्मेन्द्रियों के मालिक बन जो चाहो, जैसे चाहो, जितना समय कर्म करने चाहो वैसे कर्मेन्द्रियों से कराते चलो तो ब्राह्मण सो फरिश्ता बन जायेंगे। कर्मबन्धन समाप्त हो जायेंगे। यह देह सेवा के अर्थ मिली है, कर्मबन्धन के हिसाब-किताब की जीवन समाप्त हुई। पुरानी देह और देह की दुनिया का संबंध समाप्त हुआ, इसलिए इसे मरजीवा जीवन कहते हैं। स्लोगन:- दिलाराम के साथ का अनुभव करना है तो साक्षीपन की स्थिति में रहो। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • Time of God’s Descent for World Transformation

    When does God has to appear before us, and what does he come and do? Every aspect to the supreme being is NOW revealed.. Change has many stages. Everything in this world begins fresh and new, then it slowly grows old and decays, and finally it ends to begin anew. Thus see there is a constant cycle. The change that humanity has been waiting for for millennia is now happening. Every time humanity faced a social, moral or religious crisis, great souls emerged on earth to lead them towards a better future, closer to the truth of life, to the God. It is in times of moral decadence and social unrest that religious preceptors, prophets, messiahs and saints were born to deliver humanity from unrighteousness and suffering. However, in spite of all their efforts, the world has continued to fall deeper into the quagmire of immorality, unrighteousness and falsehood. The magnitude of human suffering has been compounded to extreme levels. Just as when a building becomes old and develops minor cracks it is repaired by skilled workers, but when it becomes very old and begins to fall apart, the builder pulls it down and builds it anew, the present world, in the Iron Age, has reached a stage of total decay. Now is not the time to talk about temporary fixes and change, but to bring about complete transformation. In perhaps the most famous passage in the Bhagavad Gita, God as represented by Shri Krishna is quoted as saying that He descends on Earth when unrighteousness reaches extreme proportions. God says that he comes to redeem all souls, destroy evil and re-establish a righteous order. But when in the history of this world does God perform this task? The passage in the Gita contains the words sambhavami yuge yuge, which has led people to believe that God’s descent takes place in each of the four yugas or Ages in the cycle of time. Is that the case? After some reflection it becomes clear that this is not possible. The cycle of time begins with the Golden Age, when both human souls and the elements of nature are in their purest state. In the Golden and Silver Ages all souls are happy and no one calls for God’s help. If God were to come at the end of both these Ages, then peace, prosperity and joy should continue and there should be no suffering. But pain and sorrow begin in the Copper Age, when humans lose the awareness that they are souls and begin to identify themselves with their bodies, which gives rise to vices such as lust, anger, greed and ego. As humans come increasingly under the influence of vices, their suffering increases. As the Copper Age gives way to the Iron Age, this process of degradation gathers pace – which would not have happened had God come to salvage humanity at the end of the Copper Age. Humans call out to God in times of sorrow and when things deteriorate beyond human tolerance. God, the redeemer, rejuvenator and remover of sorrow, then comes to restore peace and happiness in this world. God’s descent, thus, is meant to remove human suffering and rejuvenate the world. Finally, seeing that His children are unable to get out of the grip of vices and suffering, God comes to this world to remind them of their true, spiritual identity and their innate virtues. He also tells them about their relationship with Him and how they can regain their original, pure state by remembering Him. By this remembrance, souls fill themselves with power and virtues, gradually overcoming the influence of vices. Souls that make the effort to get cleansed in this way and attain a divine status become worthy of taking birth in the Golden Age that dawns after the Iron Age. All other souls are also liberated from sorrow in this process of change when God brings about the destruction of all evil and paves the way for the dawn of the Golden Age. In the entire cycle of time, it is only at the end of the Iron Age that this massive and positive process of world transformation takes place. It can only be carried out by God. During the rest of the cycle souls undergo a process of degradation – very slow in the beginning and faster as time goes by. It is only at the confluence of the Iron and Golden Ages, when God intervenes, that this process ends and there is a new beginning. One of the most quoted and famous verses of the Bhagavad Gita is this verse from Chapter 4 “Yada yada hi dharmansya glanirbhavti Bharatam abhuytthanam adharamasya tadatmaanaam srajamyham paritranayaye sadhunaam vinashaaya duskritam dharma sansthapanarthya...” (According to this verse, God says that whenever there is decline of dharma or righteousness, He manifests Himself to destroy evil and re-establish the principles of dharma in every cycle of yugas or ages. In essence, God says that He manifests at the end of every cycle for the task of world transformation. He comes to transform the entire world from its degraded state to a pure, virtuous state .. (continues in next blog post) - See to know How God appears before us, among us. #bkmurlitoday #english

  • Guidelines for Brahma Kumari & Kumar (BKs)

    TIPS for Brahma Kumaris - (specially for new-born Shiv baba's children & Godly Students ) - God's Elevated Directions / Disciplines / pure Food (Sattvik Bhojan) / Guidance for spiritual effort making Shrimat / Maryadaaye / Dharnaye / Shresth Purusharth * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * Knowledge of Raja Yog is ancient yet not accurately known. Now God again teaches us this supreme knowledge of Yog (not Yoga) through which we become a master of physical senses and therby of the world. Soul reaches a unity in virtues and powers with the father (God) as the souls (we) remember our long lost father - the supreme soul. This Godly knowledge is more a matter of understanding, implementing, & realizing. God is bodiless (a point of light) and hence seeing him with this eyes is not of a concern. But to experience the divine presence of God, as many souls have when they learn accurately the RajaYog, you must first start. Where and How to start? For that, here is the complete guidance. Most Beloved Shiv Baba says - "Only when you children will ‘revive’ your original pure and perfect personality, will it be possible to help remove the pain and suffering of this old world and bring the new world (heaven) in lesser time." - Sakar Murli Just as the bird has to find the courage to let go of the branch in order to fly, so we also must let go of our worldly branches if we are to know the exhilaration of soaring to the highest potential of our life. The branches we hold to are our inner attachments - our false beliefs, confused ideas and nagging memories of the past... And then there are the outer attachments - people, possessions, positions and privileges and relationships, to mention a few. As long as we hold on to these we will live in constant fear (of letting go, and loss) and we will never be free. Just watch birds... by letting go of one branch they are able to spend the rest of their life alighting on a million other branches, and they enjoy the view from each. Are you flying and soaring in your life, or are you stuck on one branch, cursing your fortune as you see others as they fly past. The branches are not tying you down, YOU have to let go. Go on, try it ...let go! Chhodo toh Chootey. Concentrate on doing the task of obeying Baba's Shrimat - His elevated directions / principles, and you will see the magic of His love working on you. Have constant Remembrance, (Yaad) undying Faith, and explicit love. When we follow His Shrimat and continue to perform good actions in His Remembrance, then will we be truly blessed with a wonderful fortune of many many births. God is called and known as the 'Creator of Heaven'. So whom the the heaven belong? To his children. We are his children. Heaven is God's garden. Children are allowed to play. Which children? Those children who are obedient and who did good Karma in accordance with God's advice (Shrimat in Murli). The secret is to live by our original, pure, intrinsic values of life, come what may, and thus win Baba's Heart-throne and be blessed forever! So without wasting any more time speed up and put in your best efforts to come 'Last so Fast so First' - Beeso Naakhuno ka Zore Dekar Purusharth Ko Teevra Karo, Toh Last so Fast so First Ja Sakte Ho ! If i really want to ' Pass with Honours ' let me concentrate on all the 4 subjects - * my personal study - Gyan, * my obedience to inculcation - Dharna, * my surrendered intellect for service - Seva, * and above all my constant attention on Baba's sweet remembrance - Yaad . None but ONE Shivbaba! One support, One faith, One trust in BABA alone - Ek BABA Doosra Na Koi !! Realise ... that it is better, * not to go into too much expansion of Baba's Knowledge, but concentrate more on that which is essential for my progress. * not to have doubt in Baba's Murli - even if the instrument-teacher is mistaken, Baba will make it right. * not to criticise or compare our respected Seniors. All these are not in anyway connected with my own efforts - purusharth of attaining my 1st priority - my original pure and perfect personality! Remember - As the COMPANY you keep, so do you get coloured - ''Jaisa sang vaisa rangg'' As the FOOD, so does the Mind functions - ''Jaisa ann vaisa mann'' As your THOUGHTS, so do your sense organs react (speech & actions) - ''Jaise sankalp vaise bole aur karam'' Certain principles/disciplines/directions - Shrimat to be observed daily : 1. Develop the habit of observing SILENCE: - Maintain Silence between 4 am to 8 am. daily. - Observing any one day of Silence every week is also empowering. - Observe "traffic-control" ie. stop the traffic of waste or negative thoughts, by observing 2 mins Silence once every hour. 2. Wake up daily any time between 3 am to 5 am, atleast for 1/2 to 3/4 hour, to do Nectar Time Meditation ie.- Amrit Vela Yog. - Become aware of the definition of introversion - antarmukhta, concentration - Ekagrata, and title of self-respect - Swamaan . - While practicing yoga throughout the day, be constantly aware of your seat of self-respect - Swamaan ka aasan throughout the day. 3. 'MURLI' is the direct versions of Shiv BABA our Supreme Teacher, as initially & actually spoken by Him through His medium Brahma Baba since 1936. These precious teachings have been preserved through the years, are circulated to all the 9000 Brahma Kumaris branches throughout the world, and read out daily during 'Murli-Class' to the BK students by the teacher-in-charge. - MURLI - is food for the mind, so studying Murli is a must for every BK. Attend Murli class daily at your local center - punctual and accurate attendance. Realize the importance of spiritual. - Study - be alert. For fast restoration to perfect health, its most important to eliminate waste thoughts. The best therapy for this : - Fill yourself, rather, saturate your mind, churning this Knowledge to such an extent that there is no room left for Maya (the vices), or negative / waste / impure thoughts to enter your mind. Postive / powerful / pure thoughts obtained from Baba's Murli, are the seeds we sow for an elevated destiny. - Make time also for Self-Study / Home-Work, as per ones convenience. - You have gone through our 7-Day Basic-Introductory-Course. Murlis are the Advanced-Course/Classes, direct sustenance from God (Shiv baba) - Every single thing that you are getting to read, watch or listen to from the Brahma Kumaris via the TV, internet, classes by teachers, etc. are all derived from Baba's Murlis. Therefore it is very important to study the Murli daily. The added advantage of listening to it in a BK gathering is the powerful vibrations that will help re-charge you at the centre, and will benefit anyone who diligently studies, and implements the teachings in their daily lives. - We have heard stories of how the Gope-Gopis used to get intoxicated listening to Sri Krishna's "Murli" (fllute). That is only the memorial of this moment in history (Sangamyuga), when God the only Perfect One is reciting His True Bhagwad Gita i.e. His Murli of Knowledge. 4. Only consume 'sattwic' - pure food Means - Food cooked only by a BK in Baba's accurate remembrance with a calm, clear and focused mind in a clean atmosphere. - Cooking with loving feelings brings lightness and happiness to the cook, the food, and to those consuming it. - Such vibrations directly help purify the mind and body. - Sattvik food means pure vegetarian food, NOT containing any onion or garlic ( as these contain a pungent chemical that easily aggravates the vices present in the soul). Source: Shrimat on Food 5. Every night before going to bed do atleast 15- 30 mins. meditaiton, and report your whole days activities / diary / chart to Baba i.e : · Sharing news of the day's activities to Baba. · Did I perform all actions in the awareness of my title? · Did I fulfill my promise given for today? · Did I observe all the principles to be observed faithfully? If not, which one and why did i fail? · How much time did I spend in Baba's Remembrance? . Am I content with my account of accumulation? Etc... ABOVE ALL let me be a humble incognito instrument / child / student / follower of Mamma and Baba, and silently WITNESS this beautiful Brahmin life, inspite of all the ups and downs I may have to face! Tolerate, die-alive, and continue to learn - "Jhuk-jhuk, marr-marr, seekh-seekh" Even if you don't get time to study the classes, etc. you are receiving the murli daily via this internet, do spare atleast 20 to 25 minutes to read through them or listen the audio at least once a day. This will serve as 'food for thought' throughout the day. Imbibe immediately what you understand, the rest Baba will clarify in due time. Be constantly intoxicatied that you are now God's special chosen child, an elevated student in God's University, and God Himself is teaching you and your fotune is great! Shivbaba and Brahmababa are both together affectionately called 'BaapDada', i.e. Baap means father, & Dada means elder brother. Shivbaba is our Parlokik - Spiritual Father (God,) the Father of all souls, and also our Grand-Father, since He is Brahma Baba's Father. Creator of heaven. Brahma Baba is our Alokik father - the father of humanity, and not only our eldest brother, but also our great-great-grandfather since he is our first ancestor or the first deity of the human tree - the Kalp Vruksh. ____________________________ Flowers from God's garden On Godfatherly (Godly) Service 00 ---------------- Useful Links ---------------- About Us - Brahma Kumari Godly University 7 days RajYog course online (Eng) What is Raja Yog meditation? Resources - For Everything Forum - Question Answers . #brahmakumari #brahmakumaris

  • 8 Nov 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English 08/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, your real Deepmala (festival of lights) will be in the new world. This is why you shouldn’t have any desire to see the false festivals of this old world. Question: You are holy swans. What is your duty? Answer: Your main duty is to stay in remembrance of the one Father and to connect the intellect of everyone in yoga to the one Father. You become pure and make everyone pure. You have to remain constantly engaged in the task of changing human beings into deities. You have to liberate everyone from sorrow, become guides and show them the path to liberation and liberation-in-life. Song: Having found You, we have found the whole world. The earth and sky all belong to us. Om Shanti . You children heard the song. You children say that you are claiming your inheritance of the kingdom of heaven. No one can ever burn that; no one can snatch that away from us; no one can win that inheritance from us. Souls receive the inheritance from the Father and such a Father is truly called the Mother and Father. Only those who recognise the Mother and Father can come to this institution. The Father also says: I reveal Myself personally in front of the children and teach them Raja Yoga. Children come and make the unlimited Father belong to them while alive. Children are adopted while alive. You belong to Me and I belong to you. Why do you belong to Me? You say: Baba, we have become Yours to claim the inheritance of heaven from You. OK child; never divorce such a Father. Otherwise, what would be the result? You would not be able to claim the full inheritance of the kingdom of heaven. Baba and Mama become the emperor and empress. Therefore, you have to make effort and claim such an inheritance. However, while making effort, some children divorce the Father and then go and become trapped in the vices and fall into hell. Hell is hell and heaven is heaven. You say: We make the Father belong to us in order to become the masters of heaven for all time because we are at present in hell. Until Heavenly God, the Father, who is the Creator of Heaven, comes, no one can go to heaven. His very name is Heavenly God, the Father. You know that at this time. The Father says: Children, you understand that you have truly come to the Father to claim your inheritance from Him as you did 5000 years ago. However, while you are moving along, the storms of Maya completely ruin you. You then stop studying, that is, you die. If, after belonging to God, you let go of His hand, it means you have died from the new world and gone back to the old world. It is only Heavenly God, the Father, who liberates you from the sorrow of hell, becomes your Guide and takes you back to the sweet silence home from where we souls came. He then gives us the kingdom of sweet heaven. The Father comes to give two things: liberation and salvation. The golden age is the land of happiness and the iron age is the land of sorrow and the land from where we souls come is the land of peace. That Father is the Bestower of Peace and the Bestower of Happiness for the future. From this peaceless land, we will first go to the land of peace. That is called the sweet silence home. We reside there. It is the soul that says: That is our sweet home and then, by studying the knowledge at this time, we will receive the kingdom of heaven. The name of the Father is Heavenly God, the Father, the Liberator, the Guide, the knowledge-full, blissful, Ocean of Knowledge. He is also merciful. He has mercy for everyone. He also has mercy for the elements. Everyone becomes liberated from sorrow. Even animals etc. experience sorrow. If you killed one, it would experience sorrow, would it not? The Father says: I liberate everyone, not just human beings from sorrow. However, I will not take animals back with Me. This refers to human beings. There is only one such unlimited Father; all the rest take you into degradation. You children know that only the unlimited Father will give you the gift of heaven, the land of liberation. He gives you the inheritance. The Highest on High is the one Father. All devotees remember that God, the Father. Christians also remember God. Shiva is Heavenly God, the Father. He alone is knowledge-full and blissful. You children understand the meaning of this. You are also numberwise. Some are such that, no matter how much you decorate them with knowledge, they still fall into vice and are attracted towards the dirty world. Some children go to see Deepmala. In fact, My children shouldn’t look at that false Deepmala but, because they don't have knowledge, they have that desire. Your Diwali is in the golden age when you become pure. You children have to explain that the Father just comes to take you to the sweet home and sweet heaven. Those who study well and imbibe knowledge will go to the kingdom of heaven. However, it has to be in your fortune. If you don't follow shrimat, you won't become elevated. These are the versions of Shri Shri God Shiva. Until human beings receive the recognition of God, they will continue to perform devotion. When faith becomes firm, devotion is automatically renounced. You are ‘ holiness’. You make everyone pure according to the directions of God, the Father. Those people make Hindus and those of Islam into Christians. You make devilish human beings pure. Only when they become pure can they go to heaven or the sweet home . None but One. You don't remember anyone except the one Father. Only from the one Father are you to receive the inheritance and so you would surely only remember that one Father. You become pure and help to make others pure. Those nuns don't purify anyone or make others into nuns like themselves. They simply convert Hindus into Christians. You holy nuns purify everyone and enable all souls to forge a connection with their intellects in yoga to the one God, the Father. It says in the Gita: Renounce your body and all bodily relations, consider yourself to be a soul and remember the Father. Then, only by imbibing knowledge will you receive a kingdom. Only by having remembrance of the Father will you become ever healthy, and with knowledge become ever wealthy. The Father is the Ocean of Knowledge. He tells you the essence of all the Vedas and scriptures. They portray the scriptures in the hands of Brahma. This one is Brahma. Shiv Baba explains the essence of all the Vedas and scriptures to you through this one. He is the Ocean of Knowledge. You continue to receive knowledge through this one. Others then continue to receive it through you. Some children say: Baba, I am opening this spiritual hospital where diseased human beings can come and become free from disease and claim their inheritance of heaven. They can make their lives worthwhile and receive a lot of happiness. Therefore, they would definitely receive blessings from all those many people. Baba also explained the other day that to study the scriptures of Bharat such as the Gita, the Bhagawad, the Vedas and Upanishads etc., to hold sacrificial fires, to do tapasya, to fast, make certain vows and go on pilgrimages are all like buttermilk; they are the paraphernalia of the path of devotion. By following the one shrimat of the God of the one Bhagawad Gita, Bharat receives the butter. The Shrimad Bhagawad Gita has been falsified so that, instead of the name of the Ocean of Knowledge, the Purifier, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, they have inserted Shri Krishna’s name and turned it into buttermilk. This is the one big mistake. The Ocean of Knowledge is giving you children knowledge directly. You now know how this world cycle turns and how the world tree grows. You Brahmins are the topknot and Shiv Baba is the Father of Brahmins. You will then become deities from Brahmins, then warriors, merchants and shudras. This is the somersault. This is called the cycle of 84 births. You can also explain to those who hold gatherings where the Vedas are read: Devotion is buttermilk whereas knowledge is the butter through which you receive liberation and liberation-in-life. If you want to understand knowledge in depth, then listen with patience. The Brahma Kumaris can explain it to you. It is also mentioned in the scriptures that these children gave knowledge to Bhishampitamai and Ashwathama etc. (characters in Mahabharatha) at the end. At the end, everyone will understand that what you say is correct. They will definitely come at the end. When you hold exhibitions, so many thousands of people come, but not everyone becomes one who has full faith in the intellect. Out of multimillions, only a handful understand very well and have that faith. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, lucky stars of knowledge, love, remembrance and good morning, numberwise, according to your efforts, from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Become pure and make others pure like yourself. Don't remember anyone except the one Father. 2. In order to receive blessings from many souls, open a spiritual hospital. Show everyone the path to liberation and salvation. Blessing: May you be a double server and a trustee with a faithful intellect and have spiritual feelings for the your physical relatives. Some children get tired while serving and think that so-and-so is never going to change. Do not become disheartened in this way. Have faith in the intellect, become detached from the consciousness of “mine” and continue to move on. It takes time for some souls for their account of the path of devotion to be settled. Therefore, have patience, become stable in the stage of a detached observer, and continue to give all souls your co-operation of peace and power. Have spiritual feelings for your physical relatives, become a double server and a trustee. Slogan: To make the atmosphere elevated with your elevated attitude is true service. #english #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday

  • 29 Oct 2018 BK murli in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris Shiv baba murli today Hindi Madhuban 29-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन' 'मीठे बच्चे - आज्ञाकारी बनो, बाप की पहली आज्ञा है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो'' प्रश्नः- आत्मा रूपी बर्तन अशुद्ध क्यों हुआ है? उसको शुद्ध बनाने का साधन क्या है? उत्तर:- वाह्यात बातों को सुनते और सुनाते आत्मा रूपी बर्तन अशुद्ध बन गया है। इसको शुद्ध बनाने के लिए बाप का फ़रमान है हियर नो ईविल, सी नो ईविल........ एक बाप से सुनो, बाप को ही याद करो तो आत्मा रूपी बर्तन शुद्ध हो जायेगा। आत्मा और शरीर दोनों पावन बन जायेंगे। गीत:- जो पिया के साथ है....... ओम् शान्ति।ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्चों ने समझा हुआ है। बच्चों को घड़ी-घड़ी प्वाइन्ट्स दी जाती हैं। जैसे घड़ी-घड़ी कहा जाता है बाप और वर्से को याद करो। यहाँ कोई मनुष्य की याद नहीं है। मनुष्य, मनुष्य की वा किसी देवता की याद दिलायेंगे। पारलौकिक बाप की याद कोई दिला न सके क्योंकि बाप को कोई जानते नहीं। यहाँ तुमको घड़ी-घड़ी कहा जाता है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। जैसे बाप को बच्चे होते हैं तो सब समझ सकते हैं यह बाप से वर्सा लेने आया है। फिर उनको बाप और वर्सा याद रहता है। यहाँ भी ऐसे है। जरूर बच्चे बाप को जानते नहीं हैं इसलिए बाप को आना पड़ता है। जो बाप के साथ हैं उन्हों के लिए यह ज्ञान बरसात है। वेद शास्त्रों में जो ज्ञान है वह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री। जप, तप, दान, पुण्य, संध्या, गायत्री आदि जो कुछ करते हैं वह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री। सन्यासी भी भक्त हुए। पवित्रता बिगर कोई शान्तिधाम में जा नहीं सकते इसलिए वह घरबार छोड़ जाते हैं। परन्तु सारी दुनिया तो ऐसे नहीं करेगी। उन्हों के इस हठयोग की भी ड्रामा में नूँध है। तुम बच्चों को राजयोग सिखलाने कल्प-कल्प एक ही बार आता हूँ। मेरा और कोई अवतार होता नहीं है। रीइनकारनेशन आफ गॉड। वह हुआ ऊंच ते ऊंच। फिर रीइनकारनेशन आफ जगत अम्बा और जगत पिता भी जरूर होने चाहिए। वास्तव में रीइनकारनेशन अक्षर सिर्फ बाप से ही लगता है। सद्गति दाता एक ही बाप है। यूँ तो हर एक चीज़ फिर से रीइनकारनेट होती है। जैसे अभी भ्रष्टाचार है तो कहेंगे भ्रष्टाचार रीइनकारनेट हुआ है। फिर से भ्रष्टाचार हुआ है, फिर से श्रेष्ठाचार आयेगा। रीइनकारनेट तो हर चीज़ का होता है। अभी पुरानी दुनिया है फिर नई दुनिया आयेगी। नई दुनिया के बाद कहेंगे फिर से पुरानी दुनिया आनी है। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। जब यहाँ बैठते हो तो हमेशा ऐसे समझो - मैं आत्मा हूँ, मुझे बाप का फ़रमान मिला हुआ है मुझे याद करो। बच्चों के सिवाए तो और कोई को बाप का फ़रमान मिल न सके। फिर बच्चों में कोई तो आज्ञाकारी होते हैं, कोई आज्ञा न मानने वाले भी होते हैं। बाप कहते हैं - हे आत्मायें, तुम मेरे साथ बुद्धि का योग लगाओ। बाप आत्माओं से बात करते हैं, और कोई विद्धान-पण्डित आदि ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं आत्माओं से बात करता हूँ। वह तो आत्मा सो परमात्मा समझ लेते हैं। वह है रांग। तुम बच्चे जानते हो कि शिवबाबा इस शरीर द्वारा हमें समझा रहे हैं। शरीर बिगर तो एक्ट हो न सके। पहले-पहले तो यह निश्चय चाहिए। निश्चय बिगर तो कुछ भी बुद्धि में नहीं बैठेगा। पहले निश्चय चाहिए कि हम आत्माओं का बाप वह निराकार परमपिता परमात्मा है और साकार में है प्रजापिता ब्रह्मा, हम हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां। शिव के तो सब आत्मायें बच्चे हैं इसलिए शिवकुमार कहेंगे, कुमारी नहीं। यह सब बातें धारण करनी है। धारणा तब होगी जब निरन्तर याद करते रहेंगे। याद करने से ही बुद्धि रूपी बर्तन शुद्ध होगा। वाह्यात बातें सुनते-सुनते बर्तन अशुद्ध बन गया है, उसको शुद्ध बनाना है। बाप का फ़रमान है मुझे याद करो तो तुम्हारी बुद्धि पवित्र होगी। तुम्हारी आत्मा में खाद पड़ गई है, अब पवित्र बनना है। सन्यासी कहते हैं आत्मा निर्लेप है। बाप कहते हैं आत्मा में ही खाद पड़ी है। श्रीकृष्ण की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। दोनों पवित्र सिर्फ सतयुग में ही होते हैं। यहाँ तो हो नहीं सकते। तुम आत्मायें नम्बरवार पवित्र होती जा रही हो। अभी पवित्र बनी नहीं है। कोई भी पवित्र नहीं है। सब पुरुषार्थ कर रहे हैं। अन्त में नम्बरवार सबकी रिजल्ट निकलेगी।बाप आकर सभी आत्माओं को फ़रमान करते हैं कि मुझे याद करो, अपने को अशरीरी समझो, देही-अभिमानी बनो। मूल यह बात बाप बिगर कोई समझा नहीं सकते। पहले यह पूरा निश्चय होगा तो विजय पायेंगे, निश्चय नहीं होगा तो विजय नहीं पायेंगे। निश्चय बुद्धि विजयन्ती, संशय बुद्धि विनशयन्ती। गीता में कोई-कोई अक्षर बहुत अच्छे हैं। इसको कहा जाता है आटे में नमक। बाप कहते हैं मैं तुमको सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाता हूँ कि इनमें क्या-क्या है? यह सब हैं भक्तिमार्ग के रास्ते। इनकी भी ड्रामा में नूँध है। यह प्रश्न नहीं उठ सकता कि यह भक्तिमार्ग क्यों बनाया हुआ है? यह तो अनादि बना बनाया ड्रामा है। तुमने भी इस ड्रामा में बाप से स्वर्ग के मालिक बनने का वर्सा अनेक बार लिया है और लेते रहेंगे। कभी अन्त नहीं हो सकता। यह चक्र अनादि फिरता ही रहता है। तुम बच्चे अभी दु:खधाम में हो फिर शान्तिधाम में जायेंगे, शान्तिधाम से सुखधाम में जायेंगे फिर दु:खधाम में आयेंगे - यह अनादि चक्र चलता ही रहता है। सुखधाम से दु:खधाम आने में तुम बच्चों को 5 हजार वर्ष लगते हैं। जिसमें तुम 84 जन्म लेते हो। सिर्फ तुम बच्चे ही 84 जन्म लेते हो, सब नहीं ले सकते। यह बेहद का बाप तुमको डायरेक्ट समझा रहे हैं, और बच्चे फिर मुरली सुनेंगे वा पढ़ेंगे या टेप सुनेंगे। टेप भी सब नहीं सुन सकते। तो पहले-पहले तुम बच्चों को उठते-बैठते इस याद में रहना है। मनुष्य तो माला फेरते राम-राम जपते हैं। रुद्राक्ष की माला कहते हैं ना। अब रुद्र तो है भगवान्। फिर इस माला में मेरु दाना इकट्ठा है। वह तो विष्णु के युगल स्वरूप हैं। वह कौन हैं? यह मात-पिता जो फिर विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बनते हैं इसलिए इनको मेरु कहा जाता है। फूल है शिवबाबा फिर मेरु यह मम्मा-बाबा जिनको मात-पिता कहते हो। विष्णु को मात-पिता नहीं कह सकेंगे। लक्ष्मी-नारायण को मात-पिता तो उनके बच्चे ही कहेंगे। आजकल तो सबके आगे जाकर कहते हैं त्वमेव माताश्च पिता..... बस, कोई एक ने महिमा की तो उनके पीछे फालो करने लग पड़ते। यह है ही अनराइटियस दुनिया। कलियुग को कहा जाता है अनराइटियस, सतयुग को कहा जाता है राइटियस। वहाँ आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं। सतयुग में कृष्ण गोरा है, फिर अन्तिम जन्म में उनकी आत्मा सांवरी बनी है। यह ब्रह्मा-सरस्वती इस समय सांवरे हैं ना। आत्मा काली बन गई है तो उनका जेवर भी काला बन गया है। सोने में ही खाद पड़ती है, उससे जेवर भी जो बनता है वह खाद वाला। सतयुग में जब देवी-देवताओं की गवर्मेन्ट है तो यह झूठ (खाद) होती नहीं। वहाँ तो सोने के महल बनते है। भारत सोने की चिड़िया था, अभी तो मुलम्मा है। ऐसे भारत को फिर से स्वर्ग बाप ही बना सकते हैं।बाप समझाते हैं, श्रीमत भगवानुवाच है ना। कृष्ण तो दैवीगुणों वाला है, दो भुजा, दो टांग वाला है। चित्रों में तो कहाँ नारायण को, कहाँ लक्ष्मी को 4 भुजायें दी हैं। समझते कुछ भी नहीं। ‘ओम्' अक्षर भी कहते हैं, ओम् का अर्थ बताते हैं - ओम् माना मैं गॉड, जिधर देखता हूँ गॉड ही गॉड है। परन्तु यह तो रांग है। ओम् माना अहम् आत्मा। बाप भी कहते हैं अहम् आत्मा परन्तु मैं सुप्रीम हूँ इसलिए मुझे परमात्मा कहा जाता है। मैं परमधाम में रहता हूँ। ऊंचे ते ऊंच भगवान् फिर सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की आत्मा है। फिर नीचे आओ तो यह मनुष्य लोक है। वह दैवी लोक, वह आत्माओं का लोक जिसको मूलवतन कहा जाता है। यह बातें समझने की हैं। तुम बच्चों को यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान मिलता है जिससे तुम भविष्य में मालामाल डबल सिरताज बनते हो। देखो, श्रीकृष्ण को दोनों ताज है ना। फिर वही बच्चा चन्द्रवंशी में आता है तो दो कला कम हो जाती हैं। फिर वैश्य वंशी में आयेंगे तो और 4 कला कम हो जायेगी। फिर लाइट का ताज उड़ जायेगा। बाकी रत्न जड़ित ताज रहेगा। फिर जो अच्छा दान-पुण्य करते हैं, उनको एक जन्म के लिये अच्छी राजाई मिलती है। फिर दूसरे जन्म में भी अच्छा दान-पुण्य किया तो फिर भी राजाई मिल सकती है। यहाँ तो तुम 21 जन्मों के लिए राजाई पा सकते हो, मेहनत करनी पड़ती है। तो बाप अपना परिचय देते हैं, कहते हैं - आई एम सुप्रीम सोल इसलिए उनको परमपिता परम आत्मा अर्थात् परमात्मा कहा जाता है। तुम बच्चे उस सुप्रीम को याद करते हो। तुम हो सालिग्राम, वह है शिव। शिव का बड़ा लिंग और सालिग्राम मिट्टी के बनाते हैं। यह कौन सी आत्माओं का यादगार बनाते हैं, यह भी कोई नहीं जानते। तुम शिवबाबा के बच्चे भारत को स्वर्ग बनाते हो इसलिए तुम्हारी पूजा होती है। फिर तुम देवता बनते हो तब भी तुम्हारी पूजा होती है। शिवबाबा के साथ तुम इतनी सर्विस करते हो इसलिए सालिग्रामों की भी पूजा होती है। जो उत्तम से उत्तम कर्तव्य करते हैं, उन्हों की पूजा होती है और कलियुग में जो अच्छा काम करते है उन्हों का यादगार बनाते हैं। कल्प-कल्प बाप तुम बच्चों को सारे सृष्टि चक्र का राज़ समझाते है अर्थात् तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं। स्वदर्शन चक्र विष्णु को नहीं हो सकता, वह तो देवता बन गया। यह ज्ञान सारा तुमको है। फिर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे तो यह ज्ञान नहीं रहेगा। वहाँ तो सब सद्गति में हैं। तुम बच्चे यह ज्ञान अभी ही सुनते हो फिर राजाई पा लेते हो। स्वर्ग की स्थापना हो गई फिर ज्ञान की दरकार नहीं रहती।बाप ही आकर अपना और रचना का पूरा परिचय देते हैं। सन्यासियों ने माताओं की निंदा की है, परन्तु बाप आकर माताओं को उठाते हैं। बाप यह भी समझाते हैं कि यह सन्यासी न होते तो भारत काम चिता पर बैठ एकदम ख़ाक हो जाता। जब देवी-देवता वाम मार्ग में गिरते हैं तो उस समय अर्थक्वेक बड़ी जोर की होती है फिर सब नीचे चला जाता है। और खण्ड आदि तो होते नहीं, भारत ही होता है। इस्लामी आदि तो पीछे आते हैं तो फिर वह सतयुग की चीजें यहाँ रहती नहीं। तुम जो सोमनाथ का मन्दिर देखते हो वह कोई वैकुण्ठ का नहीं है। यह तो भक्ति मार्ग में बना है, जिसको मुहम्मद गज़नवी आदि ने लूटा। बाकी देवताओं के महल आदि सब अर्थक्वेक में गायब हो जाते हैं। ऐसे नहीं कि महल के महल नीचे गये हैं वही फिर ऊपर आ जायेंगे। नहीं, वह तो अन्दर ही टूट फूट सड़ जाते हैं। फिर उसी समय खोदते हैं तो कुछ न कुछ मिलता है। अभी तो कुछ भी नहीं मिलता है। शास्त्रों में कोई यह बातें नहीं हैं। सद्गति दाता है ही एक बाप। पहले-पहले तो यह निश्चय चाहिए। निश्चय में ही माया विघ्न डालती है। कहते हैं भगवान् कैसे आयेगा? अरे, शिव जयन्ती है तो जरूर आये होंगे। बाप ने समझाया है मैं बेहद के दिन और बेहद की रात के संगम पर आता हूँ। यह कोई नहीं जानते कि किस समय आता हूँ? तुम बच्चे जानते हो। बाप ने ही यह नॉलेज दी है और दिव्य दृष्टि से यह चित्र आदि बनवाये हैं। गीता में भी कल्प वृक्ष का कुछ वर्णन है। बच्चों को कहते हैं हम तुम अभी हैं, कल्प पहले भी थे और फिर कल्प-कल्प मिलते रहेंगे। मैं कल्प-कल्प तुमको यह ज्ञान दूँगा। तो चक्र भी सिद्ध होता है। परन्तु तुम्हारे सिवाए कोई समझ न सके। यह सारे सृष्टि चक्र का चित्र है, जरूर कोई ने बनवाया है। बाप भी इस पर, बच्चे भी इस पर समझाते है। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) हर बात में विजय का आधार निश्चय है इसलिए निश्चयबुद्धि जरूर बनना है। सद्गति दाता बाप में कभी संशय नहीं उठाना है। 2) बुद्धि को पवित्र वा शुद्ध बनाने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। वाह्यात (व्यर्थ) बातें न सुननी है, न सुनानी है। वरदान:- अपने शक्ति स्वरूप द्वारा अलौकिकता का अनुभव कराने वाले ज्वाला रूप भव अभी तक बाप शमा की आकर्षण है, बाप का कर्तव्य चल रहा है, बच्चों का कर्तव्य गुप्त है। लेकिन जब आप अपने शक्ति स्वरूप में स्थित होंगे तो सम्पर्क में आने वाली आत्मायें अलौकिकता का अनुभव करेंगी। अच्छा-अच्छा कहने वालों को अच्छा बनने की प्रेरणा तब मिलेगी जब संगठित रूप में आप ज्वाला स्वरूप, लाइट हाउस बनेंगे। मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सभी आपके आगे परवाने समान चक्र लगाने लग जायें। स्लोगन:- अपनी कर्मेन्द्रियों को योग अग्नि में तपाने वाले ही सम्पूर्ण पावन बनते हैं। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • आज की मुरली 5 Nov 2018 BK murli today in Hindi

    Brahma Kumaris murli today Hindi Aaj ki Gyan Murli Madhuban 05-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति मधुबन "मीठे बच्चे - एवरहेल्दी-एवरवेल्दी बनने के लिए तुम अभी डायरेक्ट अपना तन-मन-धन इन्श्योर करो, इस समय ही यह बेहद का इन्श्योरेन्स होता है'' प्रश्नः- आपस में एक-दूसरे को कौन-सी स्मृति दिलाते उन्नति को पाना है? उत्तर:- एक-दूसरे को स्मृति दिलाओ कि अब नाटक पूरा हुआ, वापस घर चलना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया, 84 जन्म पूरे किये, अब शरीर रूपी वस्त्र उतार घर चलेंगे। यही है तुम रूहानी सोशल वर्कर की सेवा। तुम रूहानी सोशल वर्कर सबको यही सन्देश देते रहो कि देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल बाप और घर को याद करो। गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........ ओम् शान्ति। जहाँ गीता की पाठशालायें होती हैं वहाँ अक्सर करके यह गीत गाते हैं। गीता सुनाने वाले पहले यह श्लोक गाते हैं। यह जानते तो नहीं हैं कि किसको बुलाते हैं। इस समय धर्म ग्लानि है। पहले है प्रार्थना फिर वह रेसपान्स करते हैं आओ, फिर से आकर गीता ज्ञान सुनाओ क्योंकि पाप बहुत बढ़ गये हैं। वह फिर रेसपान्स करते हैं कि हाँ, जबकि भारत के लोग पाप आत्मा दु:खी बन जाते हैं, धर्म ग्लानि हो पड़ती है तब मैं आता हूँ। स्वरूप बदलना पड़ता है जरूर मनुष्य तन में ही आयेंगे। रूप तो सब आत्मायें बदलती हैं। तुम आत्मायें असुल निराकारी हो फिर यहाँ आकर साकारी बनती हो। मनुष्य कहलाती हो। अभी मनुष्य पापात्मा, पतित हैं तो मुझे भी अपना रूप रचना पड़े। जैसे तुम निराकार से साकारी बने हो, मुझे भी बनना पड़े। इस पतित दुनिया में तो श्रीकृष्ण आ न सके। वह तो है स्वर्ग का मालिक। समझते हैं श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई परन्तु कृष्ण तो पतित दुनिया में हो न सके। उनका नाम, रूप, देश, काल, एक्ट सब बिल्कुल अलग है। यह बाप बतलाते हैं। कृष्ण को तो अपने मात-पिता हैं, उसने माँ के गर्भ से अपना रूप रचा। मैं तो गर्भ में नहीं जाता। मुझे रथ तो जरूर चाहिए। मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। पहला नम्बर तो है श्रीकृष्ण। इनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म हुआ 84वाँ जन्म। तो मैं इसमें ही आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। श्रीकृष्ण तो ऐसे नहीं कहते कि मैं अपने जन्मों को नहीं जानता हूँ। भगवान् कहते हैं जिसमें मैंने प्रवेश किया है, वह अपने जन्मों को नहीं जानता। मैं जानता हूँ, कृष्ण तो राजधानी का मालिक है। सतयुग में है सूर्यवंशी राज्य, विष्णुपुरी। विष्णु कहा जाता है लक्ष्मी-नारायण को। कहाँ भी भाषण होता है तो यह रिकार्ड काफी है क्योंकि यह तो भारतवासी खुद गाते हैं। जब धर्म प्राय: लोप हो जाए तब तो फिर से गीता सुनाऊं। वही धर्म फिर से स्थापन करना है। उस धर्म के कोई मनुष्य ही नहीं हैं तो फिर गीता का ज्ञान कहाँ से निकला? बाप समझाते हैं - सतयुग-त्रेता में कोई शास्त्र आदि होते नहीं। यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री, इन द्वारा मेरे साथ कोई मिल नहीं सकते। मुझे तो आना पड़ता है, आकर सबको सद्गति देता हूँ वाया गति। सबको वापिस जाना पड़ता है। गति में जाकर फिर स्वर्ग में आना है। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। बाप कहते हैं एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है। गाया हुआ है गृहस्थ व्यवहार में रहते एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति अर्थात् दु:ख रहित। सन्यासी तो जीवनमुक्त बना न सकें। वह तो जीवनमुक्ति को मानते ही नहीं। इन सन्यासियों का धर्म सतयुग में तो होता ही नहीं है। सन्यास धर्म तो बाद में होता है। इस्लामी, बौद्धी आदि यह सब सतयुग में नहीं आयेंगे। अभी और सब धर्म हैं बाकी देवता धर्म है नहीं। वे सब और धर्मों में चले गये हैं। अपने धर्म का पता नहीं है। कोई भी अपने को देवता धर्म का मानते ही नहीं। जयहिन्द कहते हैं - वह तो बाप है नहीं। भारत की जय, भारत की खय (हार) कब होती है - यह थोड़ेही कोई जानते हैं। भारत की जय तब होती है जब राज्य-भाग्य मिलता है, जब पुरानी दुनिया का विनाश होता है। खय करता है रावण। जय करते हैं राम। ‘जय भारत' कहेंगे। ‘जय हिन्द' नहीं। अक्षर बदल दिया है। गीता के अक्षर अच्छे-अच्छे हैं। ऊंच ते ऊंच है भगवान्, कहते हैं मेरा कोई मात-पिता नहीं है। मुझे अपना रूप आपेही बनाना पड़ता है। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। कृष्ण को माता ने जन्म दिया। मैं तो क्रियेटर हूँ। ड्रामा अनुसार यह भक्तिमार्ग के लिए सब शास्त्र आदि बने हुए हैं। यह गीता, भागवत आदि सब देवता धर्म पर ही बनाये हुए हैं। जबकि बाप ने देवी-देवता धर्म की स्थापना की है, वह पास्ट हो गया फिर फ्युचर होगा। आदि-मध्य-अन्त को, पास्ट प्रेजन्ट और फ्युचर कहते हैं। इसमें आदि-मध्य-अन्त का अर्थ अलग है। जो पास्ट हो गया वही फिर प्रेजन्ट होता है। जो पास्ट की कहानी सुनाते हैं वह फ्युचर में रिपीट होगी। मनुष्य इन बातों को नहीं जानते। जो पास्ट होता है, उनकी कहानी बाबा प्रेजन्ट में सुनाते हैं फिर फ्युचर में रिपीट होगी। बड़ी समझने की बातें हैं, बड़ी रिफाइन बुद्धि चाहिए। कहाँ भी तुमको बुलाते हैं तो भाषण बच्चों को करना है। सन शोज़ फादर। बच्चे बतायेंगे हमारा फादर कौन है। फादर तो जरूर चाहिए, नहीं तो वर्सा कैसे लेंगे। तुम तो बहुत ऊंचे से ऊंचे हो परन्तु इन बड़े आदमियों को भी मान देना पड़ता है। तुम्हें सबको बाप का परिचय देना है। सब गॉड फादर को पुकारते हैं, प्रार्थना करते हैं - हे गॉड फादर आओ लेकिन वह है कौन। तुम्हें शिवबाबा की भी महिमा करनी है, श्रीकृष्ण की भी महिमा करनी है और भारत की भी महिमा करनी है। भारत शिवालय, हेविन था। 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था, वह किसने स्थापन किया? जरूर ऊंच ते ऊंच भगवान् ने। ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा शिवाए नम: हुआ। शिव जयन्ती भारतवासी मनाते हैं परन्तु शिव कब पधारे थे, यह किसको पता नहीं है। जरूर हेविन से पहले संगम पर आया होगा। कहते हैं कल्प-कल्प के संगमयुगे-युगे आता हूँ, हर एक युग में नहीं। अगर हर एक युग कहो तो भी 4 अवतार होने चाहिए। उन्होंने तो कितने अवतार दिखाये हैं। ऊंचे से ऊंचा एक बाप है जो ही हेविन रचते हैं। भारत ही हेविन था, वाइसलेस था फिर तुम यह प्रश्न उठा नहीं सकते हो कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं। वह तो जो रस्म-रिवाज होगी वह चलेगी। तुम क्यों फिक्र करते हो। पहले तुम बाप को तो जानो। वहाँ आत्मा का ज्ञान रहता है। हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। रोने की बात नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती है। खुशी से शरीर छोड़ देते हैं। तो बाप ने समझाया है मैं कैसे रूप बदलकर आता हूँ। कृष्ण के लिए नहीं कहेंगे। वह तो गर्भ से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर है सूक्ष्मवतनवासी। प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए, हम उनकी सन्तान हैं। वह निराकार बाप अविनाशी है, हम आत्मायें भी अविनाशी हैं। परन्तु हमको पुनर्जन्म में जरूर आना है। यह ड्रामा बना हुआ है। कहते हैं फिर से आकर गीता का ज्ञान सुनाओ, तो जरूर सब चक्र में आयेंगे, जो होकर गये हैं। बाप भी होकर गये हैं फिर आये हुए हैं। कहते हैं फिर से आकर गीता सुनाता हूँ। बुलाते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया है। सब पतित हैं तब तो पाप धोने के लिए गंगा स्नान करने जाते हैं। स्वर्ग में यह भारत ही था, भारत है ऊंच अविनाशी खण्ड सबका तीर्थ स्थान। सब मनुष्य-मात्र पतित हैं। सबको जीवनमुक्ति देने वाला वह बाप है। जरूर जो इतनी बड़ी सर्विस करते हैं, उनकी महिमा गानी चाहिए। अविनाशी बाप का बर्थप्लेस है भारत। वही सबको पावन बनाने वाला है। बाप अपने बर्थ प्लेस को छोड़ और कहाँ जा न सके। तो बाप बैठ समझाते हैं मैं कैसे रूप रचता हूँ। सारा मदार धारणा पर है। धारणा पर ही तुम बच्चों का मर्तबा है। सबकी मुरली एक जैसी हो नहीं सकती। भल काठ की मुरली सब बजायें तो भी एक जैसी नहीं बजा सकते। हर एक की एक्ट का पार्ट अलग है। इतनी छोटी-सी आत्मा में कितना भारी पार्ट है। परमात्मा भी कहते हैं हम पार्टधारी हैं। जब धर्म ग्लानी होती है तब मैं आता हूँ। भक्ति मार्ग में भी मैं देता हूँ। ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं तो ईश्वर ही उनका फल देते हैं। सब अपने को इन्श्योर करते हैं। जानते हैं इसका फल दूसरे जन्म में मिलेगा। तुम इन्श्योर करते हो 21 जन्मों के लिए। वह है हद का इन्श्योरेन्स, इन्डायरेक्ट और यह है बेहद का इन्श्योरेन्स, डायरेक्ट। तुम तन-मन-धन से अपने को इन्श्योर करते हो फिर अथाह धन पायेंगे। एवर-हेल्दी, वेल्दी बनेंगे। तुम डायरेक्ट इन्श्योर कर रहे हो। मनुष्य ईश्वर अर्थ दान करते हैं, समझते हैं ईश्वर देगा। वह कैसे दिलाते हैं यह थोड़ेही समझते हैं। मनुष्य समझते हैं जो कुछ मिलता है ईश्वर देता है। ईश्वर ने बच्चा दिया, अच्छा, देते हैं तो फिर लेंगे भी जरूर। तुम सबको मरना जरूर है। साथ कुछ भी तो नहीं जायेगा। यह शरीर भी खत्म होना है इसलिए अब जो इन्श्योर करना है वह करो फिर 21 जन्म इन्श्योर हो जायेंगे। ऐसे नहीं कि इन्श्योर कर और सर्विस कुछ भी न करो, यहाँ ही खाते रहो। सर्विस तो करनी है ना। तुम्हारा खर्चा भी तो चलता है ना। इन्श्योर कर और खाते ही रहते तो मिलेगा कुछ नहीं। मिले तब जब सर्विस करो तो ऊंच पद भी पायेंगे। जितना जो जास्ती सर्विस करते हैं, उतना जास्ती मिलता है। थोड़ी सर्विस तो थोड़ा मिलेगा। गवर्मेन्ट के सोशल वर्कर भी नम्बरवार होते हैं। उनके बड़े-बड़े हेड्स होते हैं। अनेक प्रकार के सोशल वर्कर्स हैं। वह हैं जिस्मानी, तुम्हारी है रूहानी सर्विस। हर एक को तुम यात्री बनाते हो। यह है बाप के पास जाने की रूहानी यात्रा। बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को और गुरू गोसाई आदि को भी छोड़ो। मामेकम् याद करो। परमपिता परमात्मा निराकार है, साकार रूप धारण कर समझाते हैं। कहते हैं मैं लोन लेता हूँ, प्रकृति का आधार लेता हूँ। तुम भी नंगे आये थे, अब फिर सबको वापिस जाना है। सब धर्म वालों को कहते हैं, मौत सामने खड़ा है। यादव, कौरव खलास हो जायेंगे। बाकी पाण्डव फिर आकर राज्य करेंगे। यह गीता एपीसोड रिपीट हो रहा है। पुरानी दुनिया का विनाश होना है, 84 जन्म लेते-लेते अब यह ओल्ड हो गया है। 84 जन्म पूरे हुए, नाटक पूरा हुआ। अब वापिस जाना है, शरीर छोड़ घर जाते हैं। एक-दो को यही स्मृति दिलाते हैं - अभी वापिस जाना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया है 84 जन्मों का। यह नाटक अनादि बना हुआ है, जो-जो जिस धर्म वाले हैं, उनको अपने सेक्शन में जाना है। जो देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है, उनके लिए सैपलिंग लग रही है। जो फूल होंगे वह आ जायेंगे। अच्छे-अच्छे फूल आते हैं फिर माया का तूफान लगने से गिर पड़ते हैं फिर ज्ञान की संजीवनी बूटी मिलने से उठ पड़ते हैं। बाप भी कहते हैं तुम शास्त्र पढ़ते आये हो। बरोबर इनके गुरू आदि भी थे। बाप कहते हैं गुरूओं सहित सबकी सद्गति करने वाला एक ही है। एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति। राजा-रानी तो प्रवृत्ति मार्ग हो गया। वाइसलेस प्रवृत्ति मार्ग था। अब सम्पूर्ण विशश हैं। वहाँ रावण का राज्य होता नहीं। रावण का राज्य आधाकल्प से शुरू होता है, भारतवासी ही रावण से हार खाते हैं। बाकी और सब धर्म वाले अपने-अपने समय पर सतो, रजो, तमो से पास होते हैं। पहले सुख फिर दु:ख में आते हैं। मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति है ही। इस समय सब तमोप्रधान जड़जड़ीभूत हैं, हर आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा नया शरीर लेती है। बाप कहते हैं मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। मेरा कोई बाप हो नहीं सकता। और सबको तो बाप हैं। कृष्ण का भी जन्म माँ के गर्भ से होता है। यही ब्रह्मा जब राज्य लेंगे तब गर्भ से जन्म लेंगे। इनको ही ओल्ड से न्यु बनना है। 84 जन्मों का ओल्ड है। मुश्किल कोई को यथार्थ बुद्धि में बैठता है और नशा चढ़ता है। यह कस्तुरी नॉलेज है खुशबूदार। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) रूहानी सोशल वर्कर बन सबको रूहानी यात्रा सिखानी है। अपने देवी-देवता धर्म की सैपलिंग लगानी है। 2) अपनी रिफाइन बुद्धि से बाप का शो करना है। पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को सुनाना है। वरदान:- सबको अमर ज्ञान दे अकाले मृत्यु के भय से छुड़ाने वाले शक्तिशाली सेवाधारी भव दुनिया में आजकल अकाले मृत्यु का ही डर है। डर से खा भी रहे हैं, चल भी रहे हैं, सो भी रहे हैं। ऐसी आत्माओं को खुशी की बात सुनाकर भय से छुड़ाओ। उन्हें खुशखबरी सुनाओ कि हम आपको 21 जन्मों के लिए अकाले मृत्यु से बचा सकते हैं। हर आत्मा को अमर ज्ञान दे अमर बनाओ जिससे वे जन्म-जन्म के लिए अकाले मृत्यु से बच जाएं। ऐसे अपने शान्ति और सुख के वायब्रेशन से लोगों को सुख-चैन की अनुभूति कराने वाले शक्तिशाली सेवाधारी बनो। स्लोगन:- याद और सेवा का बैलेन्स रखने से ही सर्व की दुआयें मिलती हैं। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

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