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  • 12 May 2018 Essence of Murli today in English

    Brahma Kumaris essence of murli for today in English 12 May 2018 - BapDada - Madhuban - Sweet children, follow the mother and father completely and become worthy. On the basis of remembrance and shrimat, you will be able to be seated on the Father's heart-throne. Q- With which effort can you attain liberation-in-life in a second? A- Make such effort that, at the end, you remember no one except the one Father. For this, keep your intellect detached while living in your household with your family. Continue to forget everything and follow shrimat. Don't prick anyone with thorns. Follow the mother and father at every step. If you have any weaknesses, tell the eternal Surgeon the truth. D- 1. Run in the race to win the throne of the mother and father. Follow them completely._________2. Break your relationships with the old thorns and make this faith firm: "Mine is One and none other.” V- May your treasure-store of love be filled while you give everyone the sustenance of love and power.________To the extent that the children share the treasure-store of the Father’s love, accordingly, the the treasure-store of love becomes full. The experience is as though there is the shower of love at every moment. Give love at one step and repeatedly receive love. At this time, everyone needs love and power. So, enable some to receive love from the Father and others to receive power with which they always have zeal and enthusiasm. This is the special service of special souls. S- Those who remain beyond the cleverness of Maya are deeply loved by the Father.

  • BK murli today in Hindi 20 Sep 2018 Aaj ki Murli

    Brahma Kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 20-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - ज्ञान की एक बूंद है अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो, इसी एक बूंद से मुक्ति-जीवनमुक्ति प्राप्त हो सकती है'' प्रश्नः- किस पुरुषार्थ में अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है? उत्तर:- 1- याद में रहने का पुरुषार्थ करो, इसमें ही अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है। तुम बच्चे जब याद में बैठते हो तो जैसे दूसरों को शान्ति का दान देते हो। 2- आपस में देह-अभिमान की जिस्मानी बातें छोड़ रूहानी बातें करो तो उन्नति होती रहेगी। तुम्हें बाप का शो करना है। जितना शो करेंगे सबको शान्ति और सुख का मार्ग बतायेंगे, उतना इज़ाफा (इनाम) मिलेगा। गीत:- तू प्यार का सागर है...... ओम् शान्ति।यह भक्ति मार्ग में गाते आये हैं। महिमा करते आये हैं। महिमा है परमपिता परमात्मा की। जैसे भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के गायन होते हैं, उत्सव मनाते हैं वह भी गायन है। कोई भी मनुष्य साधू-सन्त आदि का गायन नहीं हो सकता। गाते हैं वह ज्ञान का सागर है। एक भी बूंद मिले तो हम यहाँ से चले जायेंगे। कहाँ जायेंगे? मुक्ति वा जीवनमुक्तिधाम। महिमा होती रहती है परन्तु उनकी महिमा को जानते नहीं हैं। तुम जानते हो सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। दो बाप का राज़ भी समझाया गया है - एक है लौकिक बाप, उनकी याद आने से उसको देह-अभिमान कहा जायेगा। आत्मा को देह देने वाला बाप याद आता है। आत्मा अपने रूहानी बाप को भूल जाती है। यही भूल है। यूं तो कोई भूले हुए नहीं हैं परन्तु कह देते हैं आत्मा ही परमात्मा है, यही भूल है। यह भी कहते हैं कि हम जीव आत्मा हैं। मेरी आत्मा को तंग नहीं करो। तंग तो आत्मा होती है ना। आत्मा को गर्भजेल में सजा मिलती है तो उनको शरीर में दु:ख भासता है। साक्षात्कार भी स्थूल रूप का करायेंगे, तब वह फील करते हैं, हमको दु:ख मिल रहा है। बच्चों को समझाया है पहले-पहले प्रैक्टिस करो हम आत्मा हैं। देह-अभिमानी बनने से संबंध याद आता है - यह चाचा है, मामा है.....। शरीर नहीं है तो कोई भी संबंध नहीं है। आत्मा का ही ज्ञान है। कोई को महान् परमात्मा थोड़ेही कहा जाता है। कोई मर जाता है तो उनकी आत्मा को बुलाया जाता है। ऐसे नहीं कहेंगे कि इनके परमात्मा को बुलाया जाता है। कोई भी हालत में उनको परमात्मा नहीं कहा जाता। न परमात्मा जन्म-मरण में आते हैं। परमात्मा जन्म-मरण रहित है। आत्मा तो पुनर्जन्म लेती रहती है। यह भी समझ गये हैं कि पहले-पहले आत्मा है देवी-देवताओं की, 84 जन्म भी भारत में गाये जाते हैं। अब बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर सम्मुख बैठे हैं। पतित-पावन को ही ज्ञान सागर कहेंगे। बाप को ही कहा जाता है ज्ञानेश्वर। ईश्वर में ज्ञान है सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का। ईश्वर ही सृष्टि को रचते हैं इसलिए उनको रचना का ज्ञान है। रचता कहते हैं तो जरूर रची हुई सृष्टि है, तब तो कहते हैं ना। रचता को बाप कहा जाता है। बहन-भाई को रचता नहीं कहेंगे। रचता हमेशा बाप को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हमारे सम्मुख बाप बैठे हैं। भल विलायत में कोई बैठे होंगे, कहेंगे बाप से हम दूर हैं परन्तु याद तो करेंगे ना। तुमको भी याद करना है, परन्तु लौकिक संबंध को देख पारलौकिक बाप को भूल जाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं उठते-बैठते बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो। मैं आत्मा इस शरीर से चलती हूँ। आत्मा का ज्ञान तो तुमको है। यह जानते हो आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। ऐसे नहीं कहा जाता परमात्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल.....। आत्मा और परमात्मा कहा जाता है।अभी बाप बच्चों के सम्मुख बैठे हैं। कहते हैं आपकी एक बूँद भी बहुत है। परमपिता परमात्मा हम आत्माओं का बाप है। बस, इसको ज्ञान कहा जाता है। ऐसे और कोई को भी कहने की हिम्मत नहीं आयेगी कि तुम सब आत्माओं का मैं बाप हूँ, जिसको ही ज्ञान सागर पतित-पावन कहते हैं। यह कहने कोई को आयेगा नहीं। बाप ही कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। बरोबर, अब महाभारी लड़ाई भी सामने खड़ी है, यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। यह सारा समझाने पर मदार है। चित्र देखने से कोई समझ जाये सो मुश्किल है, जब तक टीचर न समझाये। स्कूल में भी टीचर समझाते हैं ना - यह इन्डिया है, यह लन्दन है। बिगर समझाने बुद्धि में आ न सके। अगर नक्शे में नाम पढ़े तो भी सिर्फ नाम कह सकेंगे। लेकिन कहाँ है, कौन राज्य करते हैं, कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। यहाँ भी हर बात समझने की होती है। आजकल तो पहले भभका चाहिए, शो देखकर ही आयेंगे। अब वहाँ समझाने वाले बड़े अच्छे चाहिए। बच्चे ही समझायेंगे कि यह जगत अम्बा है, सबकी मनोकामनायें सिद्ध करने वाली है। झाड़ के नीचे दिखाते हैं - कामधेनु बैठी है। तो उनसे मिलने लिए भी आयेंगे। जगत पिता है तो जरूर जगत की माँ भी होगी, परन्तु जगत अम्बा इनको कहते हैं क्योंकि कलष माताओं को दिया जाता है। मुख्य जगदम्बा गाई हुई है फिर उनकी सेना भी है।तुम बच्चे एग्जीवीशन करते हो तो उसमें समझाने के लिए बड़े अच्छे-अच्छे बच्चे चाहिए। बाबा ने समझाया है मुख्य बात है बाप के परिचय की। पहले-पहले समझाओ दो बाप हैं। एक है तुम्हारा लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर हद का वर्सा लेते आये, अब बेहद का वर्सा लो। बहुत गई थोड़ी रही..... विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। योग से ही विकर्म विनाश हो सकते हैं। मासी का घर नहीं। अजुन कुछ न कुछ हिसाब-किताब रहा हुआ है तब तो भोगना पड़ता है ना। कितनी मेहनत लगती है। अगर देरी से आयेंगे तो कितना विकर्म विनाश कर सकेंगे। मुश्किलात है ना। यह तो तुम ढिंढोरा पिटवा दो जो कोई फिर उल्हना न देवे। तुम कह सकेंगे हम तो ढिंढोरा पिटवाते, अ़खबार में डलवाते थे। जितना हो सके निमंत्रण तो सभी को मिलना चाहिए। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो। खूब निमंत्रण पत्र बांटो। सबसे जास्ती सर्विस देहली में हो सकती है। देहली है सारे भारत की गद्दी, वहाँ सभी अखबारों के एजेन्ट्स रहते हैं। अ़खबार द्वारा भी इतला करना है। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर वर्सा लेते आये, अभी फिर पारलौकिक बाप से वर्सा लो। जिस वैकुण्ठ को याद करते हो उसका वर्सा बाप से आकर लो। सभी अखबारों में डालते जाओ - शिवबाबा का बर्थ प्लेस है भारत। सभी का उद्धार करने वाला एक ही बाप है। तो सबसे बड़ा तीर्थ परमपिता परमात्मा पतित-पावन का हुआ ना, परन्तु यह किसको पता नहीं है। क्राइस्ट, इब्राहिम, बुद्ध आदि सभी पुनर्जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। क्रिश्चियन लोग खुद भी कहते हैं क्राइस्ट यहाँ ही किसी जन्म में है। क्रिश्चियन लोग भी झाड़ को मानते हैं। नहीं तो इतनी आत्मायें कहाँ से आती हैं। जरूर सेक्शन हैं जहाँ से आते हैं। हिस्ट्री फिर रिपीट जरूर होगी। यह झाड़ बड़ी अच्छी चीज़ है परन्तु इनकी वैल्यु बच्चों के पास नम्बरवार है।बच्चे दूसरों को समझाने के लिए प्रदर्शनी आदि करते हैं। इसमें कोई आर्ट का शो नहीं करना है। आर्ट गैलरी में तो व्यर्थ के चित्र रखते हैं। समझते हैं यह आर्ट है। देवताओं की पतली कमर आदि के किस्म-किस्म के चित्र बनाते हैं। वहाँ देवताओं की तो नेचुरल ब्युटी रहती है। इस समय तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। सतयुग में 5 तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। कृष्ण गोरा और कृष्ण सांवरा गाया हुआ है। वहाँ शरीर की मरम्मत नहीं होती। यहाँ तो देखो कितनी मरम्मत करनी पड़ती है। वहाँ तो भल बूढ़ा हो जाए तो भी दांत आदि सभी साबुत रहते हैं। दांत टूट जाएं तो डिसफिगर हो जाएं। वहाँ तो एकदम फर्स्ट क्लास 16 कला सम्पूर्ण रहते हैं। लूले-लंगड़े होते नहीं। यहाँ तो देखो कैसे लूले-लंगड़े जन्म लेते हैं। तो तुम ऐसे परिस्तान के मालिक बन रहे हो। एक ही मुसाफिर आकर परिस्तान में ले जाते हैं। तुम मुसाफिर यहाँ पार्ट बजाते-बजाते पतित बन जाते हो, आत्मा काली हो जाती है। बाप तो एवर हुसैन है, उनमें कभी खाद नहीं पड़ती है। मैं तो सच्चा सोना हूँ इसलिए मुझे बुलाते हैं। एवर पावन को ही बुलाते हैं - बाबा आओ, हमको भी आप समान बनाओ। तुम एवर पावन तो नहीं बनेंगे। बाकी सतोप्रधान में तो सबको आना है, परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं। नाटक में एक्टर्स भिन्न-भिन्न होते हैं ना। कोई हीरो-हीरोइन होते हैं तो उनको पैसे भी बहुत मिलते हैं। अभी तो गवर्मेन्ट सबके पैसे पकड़ती रहती है। कहा जाता है - किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए, सफली होगी वह जो खर्चे नाम धनी के....... क्योंकि धनी आया हुआ है स्वर्ग की स्थापना करने। जो बाप के मददगार बनेंगे उन्हों का ही सेफ रहेगा। तुमको तो वहाँ ढेर की ढेर मिलकियत होगी। कितना सोना हीरे जवाहर आदि होंगे! परन्तु तुमको उसकी कोई भी परवाह नहीं रहती है। तुमको कोई लूटेंगे थोड़ेही। हीरे-सोने आदि की खानियां सब तुमको नई-नई मिलेंगी। पत्थरों मुआफिक हीरे पड़े होंगे। सब तुमको मिल जाना है। जैसे ईटों के महल बनते हैं वहाँ सोने के महल बनाते रहेंगे। धनवान प्रजा भी सोने के महल बनायेगी। जो पूरे दानी बनते हैं वह भी सोने के बनाते हैं। बाबा सब बातें बतलाते रहते हैं। ऐसे भी नहीं कहते तुम भूख मरो। बच्चों आदि को भी सम्भालना है। रचता का फ़र्ज है सम्भाल करना, दु:खी नहीं करना है। भूख नहीं मारना है। रहमदिल बनना है। मनुष्य कितने दु:खी हैं, जानते हो फैमन पड़ेगा तो बहुत दु:खी होंगे। त्राहि-त्राहि करेंगे, फिर जयजयकार होगी। सब आत्माओं को सुख मिल जायेगा। बाप है ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। सुख हैं दो - एक शान्तिधाम में रहना और दूसरा सुखधाम में रहना। सुखधाम में पवित्रता, सुख, शान्ति सब है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। जब मनुष्य बहुत दु:खी हो जाते हैं, मेरा पार्ट ही उस समय का है इसलिए मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, सर्व का शान्ति दाता, सुखदाता।तुम जानते हो हम बाबा के साथ सबको शान्ति का दान देते हैं। जितना याद में रहेंगे उतना औरों को दान देते रहेंगे। फिर नॉलेज देते हैं सुख के लिए। तो बच्चों को मात-पिता का शो करना है। जितना शो करेंगे, सुख शान्ति का मार्ग बहुतों को बतायेंगे तो इज़ाफा मिलेगा। बाबा तुमको कितना सब नई दुनिया की नई-नई बातें सुनाते हैं। पुरानी दुनिया और नई दुनिया दोनों का साक्षात्कार कराते हैं। और ही जास्ती तुमको साक्षात्कार करायेंगे, परन्तु उनको जो बाबा के पक्के सच्चे बच्चे होंगे। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है। तुम बहुत कुछ देखेंगे जैसे शुरू में भी दिखाया था फिर अन्त में दिखायेंगे। कितने प्रोग्राम आते थे, साक्षात्कार कराते थे। कितनी सजावट, ताज आदि पहनाते थे फिर से भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखायेंगे। मिरूआ मौत मलूका शिकार। उसी समय पार्टीशन में भी मिरूआ मौत था ना। तुमको कोई परवाह नहीं थी। तुम तो जैसे जीते जी मर गये। तो बाबा कहते हैं - बच्चे, पूरी मेहनत करो, पुरुषार्थ करो, हम आत्मा हैं। एक-दो से भी रूहानी बातें करते रहो। जिस्मानी देह-अभिमान की बातें खत्म। जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो जायेंगे वह यह सब नहीं देखेंगे। पास्ट भी तुमने देखा और जो नया होगा वह भी तुम देखेंगे, मेहनत करो। मीठे-मीठे बच्चों को बाप बहुत प्यार करते हैं। प्यारे बच्चों को बहुत प्यार मिलता है। जो अच्छी सर्विस करेंगे उनको प्यार भी मिलेगा, पद भी मिलेगा। भूलो नहीं, हम आत्माओं को निराकार परमपिता परमात्मा शिक्षा दे रहे हैं, स्वर्ग का वारिस बना रहे हैं। दैवी गुणवान बनना है। आगे तो सबमें आसुरी गुण थे। अब बाबा सम्मुख बैठे हैं, जिससे वर्सा मिलता है, उनसे लॅव रहता है, दलाल से नहीं। दलाल तो बीच में हुआ। सौदा तुमको उनसे मिलता है। तो बाप को याद करो। देह-अभिमान को छोड़ते जाओ। मेरा तो एक बाबा, दूसरा कोई भी देहधारी याद न आये। यह तो बाबा पुरानी बूट में आये हैं। मैंने यह लोन लिया है। कल्प पहले भी यह अक्षर कहे होंगे। अब भी कह रहे हैं। आज के ही दिन तुमको यह समझाया था फिर समझा रहा हूँ। कितनी अच्छी विशाल बुद्धि चाहिए। लक्ष्मी-नारायण नम्बरवन बने हैं, जरूर अच्छी प्रालब्ध बनाई होगी। यह गॉड फादरली सैलवेशन आर्मी है, सारी दुनिया को मुक्ति-जीवनमुक्ति की सैलवेशन देने वाली। सर्व का सद्गति दाता राम। गति में तो जाना ही है सारी दुनिया को। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप के साथ सारे विश्व को शान्ति का दान देना है। बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है। 2) एक बाप से पूरा लॅव रखना है। आपस में देह-अभिमान की बातें नहीं करनी है। रूहानी बातें ही करनी है। वरदान:- इन्तजार को छोड़ इन्तजाम करने वाले वियोगी के बजाए सहयोगी सो सहजयोगी भव कई बच्चे इन्तजार करते हैं कि यह छोड़ें तो छूटूं, यह टकराव छोड़ें तो छूटूं-लेकिन ऐसा नहीं होता। यह तो माया के विघ्न वा पढ़ाई में पेपर समय प्रति समय भिन्न-भिन्न रूपों से आने ही हैं। तो यह इन्तजार नहीं करो कि फलाना व्यक्ति पास करे, फलानी परिस्थिति पास करे.. नहीं, मुझे पास करना है। ऐसा इन्तजाम करो। सदा श्रीमत की अंगुली के आधार पर चलते, सहयोगी सो सहजयोगी बनो। कभी सहयोगी कभी वियोगी नहीं। स्लोगन:- अपने उमंग-उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं का उत्साह बढ़ाना - यह सच्ची सेवा है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • BK murli today in Hindi 25 June 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi -Aaj ki murli - BapDada - Madhuban - 25-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन" मीठे बच्चे - इस समय तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, तुम्हें वाणी से परे अब वापिस घर चलना है, इसलिए बाप को याद करो" प्रश्नः- 21 जन्म सुख मिलने का आधार क्या है? उत्तर:- 63 जन्मों की भक्ति। जिन्होंने पहले-पहले सतोप्रधान भक्ति की है अर्थात् जो पुराने अनेक जन्म के भक्त हैं वही अब ज्ञान लेते हैं, उन्हें ही 21 जन्मों का सुख प्राप्त होता है। अभी तुम्हारा भक्ति का पार्ट पूरा हुआ। भगवान तुम्हें भक्ति का फल देने आये हैं। भक्त, भगवान् नहीं हो सकते। गीत:- माता ओ माता तू है सबकी भाग्य विधाता.... ओम् शान्ति।बच्चों ने माता की महिमा सुनी। अब माता को तो भगवान् नहीं कहा जा सकता क्योंकि भगवान् को तो पिता कहा जाता है - परमपिता। अब पिता है तो माता भी जरूर है। माता को बहुत मानने वाले हैं। माता है तो पिता भी है। माता अपने को भगवान् कह न सके। यह प्वाइन्ट धारण करने की है। जगत अम्बा की कितनी महिमा है! ऐसे नहीं कहेंगे कि भगवान् वा बाप सर्वव्यापी है। नहीं, जब मात-पिता कहा जाता है तो बच्चे भी हैं। अगर सर्वव्यापी है, फिर तो सब भगवान् हैं। फिर तो भगवती भी हो नहीं सकती। सर्वव्यापी के ज्ञान में भगवती तो रही नहीं। सभी भगवान् हैं तो आत्मा ही पिता हो गई। माता तो रही नहीं। यह बड़ी अच्छी समझाने की बात है। तुम जानते हो - कोई भी आत्मा अपने को भगवान् कह नहीं सकती। भक्त कहें - हम भगवान् हैं तो फिर माता सिद्ध हो नहीं सकती। और फिर भक्त तो पुनर्जन्म लेते हैं। भगवान् तो पुनर्जन्म ले नहीं सकता। ऐसे तो नहीं भगवान् को अपना शरीर है। तो इस सर्वव्यापी की बात पर अच्छी रीति समझाना है। भक्तों के लिए भगवान चाहिए ना। अनेक भक्त हैं, ब्रदर्स और सिस्टर्स - सभी भक्त हैं। आत्मा कहती है - इस समय मैं भक्ति कल्ट में हूँ। फिर आत्मा कहेगी अब मुझे बाप मिला है, तो मैं ज्ञान में हूँ। आत्मा ही ज्ञान सुनती है। भक्त तो पुनर्जन्म लेते हैं, भगवान् तो पुनर्जन्म ले नहीं सकते। यह इनका शरीर नहीं है। यह तो सभी जानते हैं - पांच तत्वों का शरीर लेकर भगवान् को जन्म नहीं लेना है, वह तो परकाया प्रवेश करते हैं। यह ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी सूक्ष्मवतन वासी हैं। तो हर एक बात अच्छी रीति बुद्धि में बिठानी है। आत्मा कहती हैं मैं एक पुराना शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती हूँ। पुराना शरीर छोटा है वा बड़ा है, एक छोड़ दूसरा लेती हूँ। यहाँ तो अचानक भी छोटे वा बड़े का शरीर छूट जाता है। परन्तु वहाँ तो पूरी आयु होने पर समझते हैं अब पुराना शरीर छोड़ नया लेना है। तो यह ज्ञान आत्मा में है ना। आत्मा पुनर्जन्म लेती है। परमात्मा के लिए तो नहीं कहेंगे। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी परमात्मा नहीं कहेंगे। वे भी सूक्ष्मवतन वासी हैं। बाबा तो मूलवतन वासी हैं। और कोई नहीं समझते कि परमात्मा मूलवतन, निर्वाणधाम में रहने वाले हैं। निर्वाणधाम अर्थात् वह वाणी से परे धाम है इसलिए वानप्रस्थ नाम पड़ा है। वाणी से परे अवस्था में जाने के लिए 60 वर्ष की उम्र के बाद जब बूढ़े होते हैं तो वानप्रस्थ लेते हैं। यहाँ तो तुम छोटे-बड़े सब समझते हो कि हम वानप्रस्थी हैं। आत्मा कहती है - मुझे वाणी से परे स्थान में जाना है। आत्मा को मेल कहा जाता है। जब शरीर में आती है तब आत्मा कहती है - इस समय मुझे मेल अथवा फीमेल का तन मिला है। तो आत्मा को अब वानप्रस्थ में जाने का पुरुषार्थ करना है। आत्मा को मेल कहा जाता है। मातायें कभी वानप्रस्थ नहीं लेती। परन्तु यहाँ बाप समझाते हैं - आत्मा तो मेल है। तुम सभी आत्माओं की वानप्रस्थ अवस्था है। अब सबको वापिस जाना है। मैं तुम सबको वापिस ले जाने के लिए आया हूँ इसलिए अब मुझे याद करो तो मेरे धाम में आ जायेंगे। यह कोई मनुष्य कह न सके। सुप्रीम रूह बाप ही कहते हैं। सन्यासी-उदासी ऐसे बच्चे-बच्चे कह बात कर नहीं सकेंगे। बाप का ज्ञान किसमें है नहीं। पूछो भगवान् कहाँ है? तो कहेंगे सर्वव्यापी है। गोया भगवान् का ज्ञान कोई में है नहीं इसलिए भक्ति करते हैं भगवान् से मिलने के लिए। परन्तु कैसे और कब मिलेंगे? यह किसको पता नहीं है। बाप कहते हैं कोटों में कोई मुझे पहचानते हैं। मनुष्य तो सरसों मिसल अथाह हैं। इनमें कोई जो सिकीलधे हैं वही आकर मुझे पहचानेंगे और बाप से अपना वर्सा लेंगे। तुम समझा सकते हो कि इस समय सभी भक्त हैं। चाहते हैं कि हम भगवान् से भक्ति का फल लेवें। अगर तुम सब भगवान् हो तो फिर भक्त तो कोई हो न सके। अगर तुम भगवान् हो तो बाकी तुमको क्या चाहिए? भक्तों को फिर मिलना है भगवान् से। अपने को भगवान् कहना - यह तो एक इन्सल्ट है, इससे बड़ी इन्सल्ट कोई होती नहीं। अल्लाह से तो हम बहिश्त का वर्सा लेना चाहते हैं। तुम कहते हो - हम अल्लाह हैं! अब तुम ही जज करो। तुमको कोई कहे - हम अल्लाह हैं, यह कैसे हो सकता? अल्लाह तो सबसे बड़ा है। यह बहुत समझने की बातें हैं। कभी भी कोई अपने को अल्लाह वा भगवान् कह न सके। बाप सबका एक होगा। ऐसे बहुत कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। अरे, तुम भगवान हो, हम तो नहीं मानते। हम तो भक्त हैं। आशिक हैं उस माशुक के। एक परमात्मा को ही पतित पावन कहा जाता है।तुम समझा सकते हो कि तुम्हारे बड़े तो कहते रहे रचयिता और रचना बेअन्त है। तुम फिर अपने को रचयिता कैसे कहते हो? बीज बेअन्त हो नहीं सकता। झाड़ को बेअन्त कहते हैं। इतने पत्ते आदि गिन नहीं सकते। एक बीज से कितनी टाल-टालियां, पत्ते आदि निकलते हैं। तुम हो चैतन्य, बोलते-चालते हो। सबसे बड़ी महिमा मनुष्य की होती है। बाप कहते हैं मैं आकर बच्चों को सारे ड्रामा का राज़ समझाता हूँ। यह बना-बनाया ड्रामा है ना। ड्रामा के ऊपर चलते रहना है। तुम बाप के बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो, परमपिता परमात्मा द्वारा क्योंकि वह भी स्वदर्शन चक्रधारी है। तुम आत्माओं को बैठ आप समान बनाते हैं। तुम सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जानते हो। तुम नई दुनिया के लिए, नये धर्म की स्थापना के लिए नई बातें सुनते हो - परमपिता परमात्मा से, जो सृष्टि को भी पावन बनाते हैं। तुमको भी नया बनाते हैं। नई सृष्टि में फिर नया जमाना स्वर्ग का होगा, अभी तो नर्क का जमाना है। तुम नर्क के जमाने में हो। अभी परमपिता परमात्मा ही आकर तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं। यह हरेक बातें नई हैं, धारण करने लायक हैं। परन्तु धारणा सभी को नहीं होती। धारणा होने से खुशी का नशा रहता है। गृहस्थ व्यवहार में रहते इसी नशे में रहना है। स्त्री अथवा पुरुष - हरेक को स्वदर्शन चक्रधारी यहाँ ही बनना है। बाकी भुजायें तो हर एक को दो ही हैं। मनुष्य जो 84 जन्म लेते हैं, उनको 4 भुजायें तो हो नहीं सकती। तुम ऐसे कभी नहीं सुनेंगे कि शंकर को 100 या 1000 भुजायें हैं। ब्रह्मा को भुजायें दिखाई हैं। चार भुजा वाले ब्रह्मा के पास गया, हजार भुजा वाले पास गया। ब्रह्मा की सन्तान वृद्धि को पाते रहते हैं। तो कितनी भुजायें हो जायेंगी? प्रजापिता है ना। सृष्टि रची है तो बरोबर बाहें हैं। बाकी मनुष्य कोई 4-6 भुजा वाले होते नहीं हैं। सूक्ष्म वतन में तो कुछ है नहीं। यह सब बाप बैठ समझाते हैं। कहते हैं इसने (दादा ने) भी बहुत शास्त्र पढ़े, गुरू किये हैं। वह है भक्ति मार्ग। तुम्हारा भक्ति का पार्ट पूरा हुआ। तुम आलराउन्डर हो। शुरू से लेकर तुमने सबसे जास्ती भक्ति की है। भक्त तो इस समय बहुत हैं। तुम तो थोड़े बच्चे हो। बाबा कहते हैं - मैं तुमको साक्षात्कार कराता हूँ। कई भक्त याद करते हैं, उनको भी साक्षात्कार कराता हूँ। तुमने ही सतोप्रधान भक्ति की है, तो जरूर तुमने ही जास्ती जन्म लिये हैं। 63 जन्म तुमने भक्ति की है। उसकी एवज़ 21 जन्म तुमको सुख मिलता है। कितनी समझने की बातें हैं इसलिए नये जो आते हैं उनसे फार्म भराया जाता है। फार्म बड़ा अच्छा है - तुम्हारा गुरू कौन? गुरू किया तो जरूर भक्त ठहरा ना। तुम्हीं भगवान् हो तो गुरू क्यों किया? भगवान्, भगवान् को गुरू कैसे बनायेगा! भक्त भगवान् से मिलने लिए गुरू करेंगे। तुम भगवान् खुद ही हो। बाकी गुरू से क्या बनेंगे? बड़ा युक्ति से, रमजबाजी से समझाना है। रोज़ नई-नई बातें समझाते हैं। मल्ल युद्ध में बड़ा युक्ति से लड़ते हैं। कहाँ से फलाने को अंगूरी लगाऊं, तीर मारूँ।मनुष्यों ने आदि देव ब्रह्मा को महावीर कह मुंझा दिया है। कोई महावीर को हनूमान कहते, क्योंकि हनूमान ने महावीरता दिखाई है। कहाँ वह महावीर फिर उनका नाम पवन पूत रखा है। आदि देव तो ब्रह्मा है, और मनुष्य है। जगत अम्बा भी मनुष्य है। इतनी भुजायें आदि कहाँ है! माता को इतनी भुजायें हों तो हमको भी होनी चाहिए। वन्डरफुल बातें हैं! ऐसे नहीं, सभी धारण कर ज्ञान के उस नशे में रहते हैं। नम्बरवार हैं। उन सतसंगों में कोई ऐसी बात नहीं रहती। यह तो स्कूल है। नम्बरवार बच्चे हैं। कोई को माया का तूफान आया और यह गिरा इसलिए ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती है। फाइनल जब बनेंगे तो उसको रूद्र माला कहेंगे। तुम रूद्र शिवबाबा की सन्तान हो। रूद्र यज्ञ रचते हैं तो रूद्र का चित्र बड़ा बनाते हैं। बाकी छोटे-छोटे सालीग्राम बनाकर पूजा करते हैं। बाप बैठ गुह्य बातें सुनाते हैं। जो सर्विसएबुल बच्चे होंगे उनको अच्छी रीति धारणा होगी और समझा सकेंगे। यह तो बड़ा सहज है। हम आत्मा हैं। कहते हैं ब्रदरहुड हैं। आत्मायें सब भाई-भाई हैं। भाई-भाई कह फिर आपस में लड़ते हैं। जब कहते हो ब्रदरहुड है, फिर फादरहुड कैसे कहते हो? सब ईश्वर कैसे कहते हो? सब भगवान् भाई-भाई कैसे हो सकते हैं? वह तो सब आत्माओं का बेहद का बाप है। कितनी सहज बातें हैं।तुम जानते हो ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना होती है। फिर आहिस्ते-आहिस्ते बढ़ती है। एक से दो, दो से चार होते हैं। ऐसे वृद्धि को पाते रहते हैं। बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर नई सृष्टि रचता होगा ना। जगतपिता, वह है रचने वाला। तुमको रचा है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई प्रजा की रचना रचते हैं अर्थात् पुरानी को नया बनाते हैं। मनुष्य फिर समझते हैं सागर में पीपल के पत्ते पर आया। अच्छा, उसको फिर किसने रचा? यह बाप बैठ समझाते हैं कि नई प्रजा कैसे रचते हैं? वहाँ स्वर्ग में गर्भ में जैसे कि क्षीरसागर में आराम से बैठे हैं। उस समय कोई ज्ञान नहीं रहता। शास्त्रों में तो कैसी बातें लिख दी हैं! प्रलय भी बड़ी और छोटी दिखाते हैं। वह कहते हैं प्रलय होती है। बाप कहते हैं प्रलय कभी होती नहीं। मैं आता हूँ ब्रह्मा द्वारा भारत को पतित से पावन बनाने। पतित दुनिया में मुझे आना पड़ता है। तुम जानते हो कल्प-कल्प हम बच्चे बाप द्वारा भारत को पतित से पावन बनाते हैं। एक-एक को भूं-भूँ करते हैं। सब विकारी पतित हैं। बाप है पतित-पावन, उन द्वारा हम भी खुदाई खिदमदगार बनते हैं। हम भी पावन बनते हैं और बनाते हैं। अच्छा!मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) इस बने बनाये ड्रामा पर चलते रहना है। ज्ञान का सिमरण कर स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। सदा खुशी में रहना है। 2) भक्तों को भगवान् का सत्य परिचय देना है। भटकने से छुड़ाना है। ब्रह्मा की मददगार भुजा बन खुदाई खिदमतगार बनना है। वरदान:- अखण्ड स्मृति द्वारा विघ्नों को विदाई देने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव l संगमयुग विघ्नों को विदाई देने का युग है, जिसको आधाकल्प के लिए विदाई दे चुके उसको फिर आने न दो। सदा याद रखो हम विजयी रत्न हैं, मास्टर सर्वशक्तिमान हैं - यह स्मृति अखण्ड रहे तो शक्तिशाली आत्मा के सामने माया का विघ्न आ नहीं सकता। विघ्न आया फिर मिटाया तो अखण्ड अटल नहीं कहेंगे, इसलिए सदा शब्द पर अटेन्शन दो। सदा याद में रहने से सदा निर्विघ्न रहेंगे और विजय का नगाड़ा बजता रहेगा। स्लोगन:- ईश्वरीय सेवा में खुद को आफर करना ही बापदादा की आफरीन लेना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 4 June 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 04/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, while looking after your home and family, study this course. This is the college to become deities. You have to become gods and goddesses (deities). Question: Due to which of Shiv Baba's tasks has His greatness been remembered? Answer: Shiv Baba changes all the children who are not worth a penny to worth a pound. He changes them from tamopradhan to satopradhan, from impure to pure and this is why His greatness has been remembered. If Shiv Baba were not to come, we children would be useless. The Father, the Lord of the Poor, has come to liberate the poor kumaris and mothers from servitude and this is why the greatness of the Father is sung as the Lord of the Poor. Song: Mother, o mother, you are the bestower of fortune for all. Om Shanti. Children heard praise of their mother. In fact, everyone has a mother. This one is Jagadamba (World Mother). You know whose praise this is. Such a big mela takes place for Jagadamba. No one knows who Jagadamba is. No human being knows the biography of the Supreme Father, Brahma, Vishnu, Shankar or Lakshmi and Narayan who are the highest on high. You now know that Jagadamba is Brahma Kumari Saraswati. Jagadamba doesn't really have as many arms as she has been portrayed with. They portray the goddesses with many arms. In fact, human beings only have two arms each. The Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. All human beings have two arms each. Even Lakshmi and Narayan of heaven have two arms. Brahma, Vishnu and Shankar are in the subtle region. The four-armed image is portrayed to indicate the family path. Mama and Baba are also in the subtle region. There are visions of Vishnu too. Two arms are of Lakshmi and two of Narayan. It isn't that human beings have four arms; no. They have portrayed Vishnu with four arms simply to explain this. They show the goddesses with so many arms. They don't have that many. They have made many pictures of Saraswati, Kali etc. In fact, there is no one like that. All of those are the ornaments of the path of devotion. You are no longer devotees. You are Godfatherly students; you are studying. God comes and gives the devotees the fruit of their devotion. Devotees have blind faith. They keep images of everyone. They keep images of Krishna, Lakshmi and Narayan and also Rama and Sita. They also keep images of Guru Nanak etc. It is like mango chutney. They don’t know the occupation of anyone. They should know why they worship those beings. Who out of them is the highest on high? Narad has been remembered as the main jewel of the male devotees, and Meera is the main one of the female devotees. They have written a story about when Lakshmi gets married. However, marriage, where you choose your own partner, takes place in the golden age. This is hell. All of these examples have been created. In fact, it is not a matter of just one. All males and females of this time are Draupadis or Duryodhans. Draupadis call out: O God, save us from being stripped! In the pictures they have portrayed God continuing to give her sarees. It is said that He saved her from being stripped for 21 births. The Father has now come to protect all of you Draupadis. If you follow shrimat, you won't ever be stripped for 21 births. That is the completely viceless world. Some ask: Baba, will I be able to marry Lakshmi? The Father says: Look in the mirror of your heart to see whether you are worthy. At this time, all human beings have the five vices in them. The completely viceless deities existed in Bharat. They are now completely vicious. In the golden age they have one child and that too is through the power of yoga. They have a vision in advance, just as you have visions of how you will become princes and princesses. There are visions of princes and princesses all dancing together and how you dance with Shri Krishna in the future. Baba has explained that there aren’t any goddesses with so many arms. Lakshmi and Narayan have two arms each. They are said to be an incarnation of Vishnu, the Vishnu dynasty. They are also called Mahalakshmi or Narayan. They show a form of the four-armed image in the Nar-Narayan Temple (ordinary man who becomes Narayan). They also show an image of Mahalakshmi. Lakshmi would not be called Jagadamba. Lakshmi is not a Brahma Kumari. Brahma Kumaris exist here. Saraswati has also been remembered: Saraswati, the mouth-born creation of Brahma. Brahma Kumari Saraswati is called Jagadamba. You know that you are truly the mouth-born creation of Prajapita. One kind is the iron-aged brahmins and the other kind is you confluence-aged Brahmins. Those brahmins, progeny born through a womb, take you on physical pilgrimages. You have become the mouth-born creation. You are those who take people on the spiritual pilgrimage. All of you Brahma’s mouth-born creation change from human beings into deities. The main one among you is Mama who is praised so much. She is the one who fulfils all desires of heaven. You are her children too. Jagadamba teaches Raja Yoga through which you become masters of heaven for 21 births. This is why there is the praise of the Shiv Shakti Army. Lakshmi is the empress and she has one son. Prajapita Brahma and Jagadamba have so many children. Jagadamba has two arms. In the same way, Lakshmi and Narayan also have two arms each. They have created a lot of confusion in the pictures. They show Narayan as dark blue and Lakshmi as fair. It cannot be that Narayan would be dark blue and that Lakshmi would be fair or that Krishna would be dark blue and Radhe fair. The Father sits here and explains: At this time all are ugly. When you were in heaven, you were pure and were therefore beautiful. Then, by sitting on the pyre of lust, you became ugly. Krishna is called the ugly and the beautiful one. He is beautiful in the golden and silver ages and then, while taking 84 births, he becomes ugly by the end. The Krishna soul continues to take rebirth. That same name doesn't remain all the time. At this time, that soul is in the tamopradhan stage. Deities are in the beginning of the golden age. They are the ones who take 84 births. This is a cycle of 84 births. You children heard the praise of Mama. The praise of Mama is different from the praise of Lakshmi. Look at the type of pictures they have created. They show Kali with such a long tongue. There cannot be a human being like that. Even in the subtle region, there couldn't be a Kali like that. There are Brahma, Vishnu and Shankar there. Vishnu is the dual-form. You also show Brahma and Saraswati in the subtle region. So, where did the fearsome Kali come from? They show a very fearsome form of Kali. There couldn't be a Shakti like her who would commit violence. The Father continues to explain every single thing to you. There are so many different types of picture. However, human beings are human beings. Brahma, Vishnu and Shankar are in the subtle region. Above them is the incorporeal world where Shiva and the saligrams reside. There isn't anything else there. All the rest of the pictures are the paraphernalia of the path of devotion. That doesn't exist in the golden and silver ages. Knowledge and devotion: knowledge means the day and devotion means the night. The day of Brahma is knowledge and the night of Brahma is devotion. The golden and silver ages are the day and the copper and iron ages are the night. It is now the extremely dark night. The day is now to come. The Father says: My birth takes place at the confluence age. The end of the iron age is extremely dark, whereas the golden age is totally light. Only at the confluence age do I come to explain to you. There are so many pictures on the path of devotion. The main thing is that the Purifier is Shiv Baba. At this time, all human beings are impure. This is the impure world. If Shiv Baba didn't come, everyone would be not worth a penny. It is the greatness of Shiv Baba that He makes impure ones pure. At this time all are tamopradhan and impure; all are unhappy. At first, pure souls come down and so they are satopradhan. Then, they have to go through the stages of sato, rajo and tamo; it is the same for everything. A baby, too, is satopradhan and this is why it is said: Someone who has knowledge of the brahm element and a child are equal. They have to go through the stages of sato, rajo and tamo. They have to go through the changes. They have to become satopradhan from tamopradhan. The world was also satopradhan and it is now tamopradhan. The Father can make it satopradhan from tamopradhan. Because of not knowing the Father, they continue to remember everyone. They continue to make so many pictures. In that too, they definitely have their own special deity. Similarly, Baba too had many pictures. The main one of them was of Shri Narayan. If someone belongs to the Sikh religion, then, although he would have pictures of Shiva and Lakshmi and Narayan etc., he would remember Guru Nanak a lot more. God, the Highest on High, is only One. His praise is also written: Satnam (name of truth), Karta Purush (One who does everything), Akalmurat (the Immortal Image). The golden age is the truth. It is the truth, that is, this cycle is the truth. You will definitely go around the cycle. The Father sits here and explains all of this. On the path of devotion, they have a temple to the beautiful Krishna, which is separate from the temple to the ugly Krishna. In some places, they also have temples to Shiva. They also have temples to Lakshmi and Narayan, even though they don't know their occupation. The Father comes and explains to you children the secrets of the beginning, middle and end of the world cycle. He makes you into spinners of the discus of self-realisation and makes you the rulers of the globe. Although all of you are householders, you still study this course. Ask the old mothers where they are going and they will reply: We are going to God's college. God speaks: I make you into deities. God is teaching you and making you into gods and goddesses. However, it isn't that the golden age would be called the kingdom of gods and goddesses, no. That is the kingdom of the original eternal deities. Those from abroad speak of Lord Krishna. When Americans see those images of the deities, they would even pay one or two hundred thousand rupees for one of them. When they see ancient things, they are ready to pay even one hundred thousand rupees for them. Even then, those people don't give those images to them because they are ancient things. Old means a matter of 5000 years. The most ancient are the images of the deities. They make so many images on the path of devotion. When the path of devotion begins, they build the Somnath Temple. The Father explains: The people of Bharat were so wealthy. Bharat has now become hell. It has become a complete beggar and poverty-stricken. The history of such a Bharat has to repeat. You children know the whole unlimited history and geography. The deities in the golden age will not know it; this knowledge disappears. No one there is impure that knowledge would have to be given. This knowledge disappears. So, where did the Gita come from? All of those scriptures that have been created belong to the path of devotion. New knowledge is needed for the new world. Was there knowledge of Islam? When Abraham came, he established the religion of Islam and gave knowledge. That was something new, was it not? Here, there are many false allegations made in the Gita, the Ramayana, the Bhagawad etc. The Father says: The number one defamation is of Me – you call Me omnipresent. When such defamation takes place and the residents of Bharat become greatly unhappy, it is then that I come. At this time all are impure. I alone come to make everyone and the whole world pure. This is why I inspire destruction of the old world and establishment of the pure world. Forget this old world. Manmanabhav! Remember the Father and the inheritance. You study this Raja Yoga and become deities. This is the Godfatherly University to study Raja Yoga. This is such a big college and hospital, but you don't receive three feet of land. The Father says: I am making you into the masters of the whole world. This is a hospital-cum-university. Health is received from a hospital and wealth is received through a university. The Father says: I have come to teach you, but you don't have three feet of land. I am the Lord of the Poor. Kumaris and mothers are completely poor. They don't have anything in their hands. Sons receive an inheritance from their father. In fact, the wife is said to be a half-partner. In Bharat, they say to a Hindu wife: Your husband is your guru and your god; he is your everything. However, it shouldn’t be said to a half-partner: I am the guru and god and you are the servant! The Father comes and liberates you from servitude. First is Lakshmi and then Narayan. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Go on the spiritual pilgrimage and also take others. Keep the knowledge of the world cycle in your intellect and become a spinner of the discus of self-realisation. 2. In order to become a deity, forget this old world and remember the Father and the inheritance.Study and teach others new knowledge. Blessing: May you be powerful by becoming a Mahavir and make unconscious ones conscious by giving them the life-giving herb. The sun itself is powerful and so it spreads light with its power everywhere. In the same way, be powerful, give many the life-giving herb and continue to do the service of making unconscious ones conscious and you will then be called a Mahavir. Always have the awareness that you have to be victorious and make everyone victorious. The way to become victorious is to remain busy. Remain busy in the task of self-benefit and world benefit and the atmosphere will continue to become that of destroyers of obstacles. Slogan: Connect your heart constantly to Dilaram (the Comforter of Hearts). This is true tapasya. #brahmakumari #english #Murli #bkmurlitoday

  • 11 May 2018 Aaj ki Murli ka Saar

    brahma kumaris murli essence for today 11 May 2018 - BapDada - madhuban - "मीठे बच्चे - तुम्हें अन्त तक यह मीठी नॉलेज सुनते रहना है जब तक जीना है - पढ़ना और योग सीखना है" Q- बाप के साथ-साथ तुम बच्चे किस सेवा के निमित्त बने हुए हो? A- जैसे बाप सारे विश्व को लिबरेट करते हैं, सब पर ब्लिस करते हैं, पीस मेकर बन पीस स्थापन करते हैं ऐसे तुम बच्चे भी बाप के साथ इस सेवा के निमित्त हो। तुम हो सैलवेशन आर्मी। तुम्हें भारत के डूबे हुए बेडे को सैलवेज करना है। 21 जन्मों के लिए सबको सम्पत्तिवान बनाना है। ऐसी सेवा तुम बच्चों के सिवाए और कोई कर नहीं सकता। D- 1) विकर्माजीत बनने के लिए चलते फिरते बाप को याद करने का अभ्यास करना है। याद का चार्ट जरूर रखना है।-----2) अपनी हर चलन से मात-पिता और टीचर का शो करना है। विनाश काल में प्रीत बुद्धि बनकर रहना है। रूहानी सेवा करनी है। V- पहाड़ जैसी बात को भी एक बाबा शब्द की स्मृति द्वारा रूई बनाने वाले सहजयोगी भव-----सहजयोगी बनने के लिए एक शब्द याद रखो - "मेरा बाबा" बस। कोई भी बात आ जाए, हिमालय पहाड़ से भी बड़ी हो लेकिन बाबा कहा और पहाड़ रुई बन जायेगा। राई भी थोड़ी मजबूत, कड़क होती है, रूई नर्म और हल्की होती है। तो कितनी भी बड़ी बात रुई समान हल्की हो जायेगी। दुनिया वाले देखेंगे तो कहेंगे यह कैसे होगा और आप कहेंगे यह ऐसे होगा। बाबा कहा और बुद्धि में टच होगा कि ऐसे करो तो सहज हो जायेगा। यही सहजयोगी जीवन है। S- प्यार के सागर में लवलीन रहो तो सदा समीप, समान और सम्पन्न भव के वरदानी बन जायेंगे।

  • Revelations on Gautam Buddha and Buddhism

    On this article you will know who was Siddharth Gautam Buddha, the time of his coming (2250 years ago) and his task of establishment of the religion of Buddhism. Everything that you need to know about his life, task and after task. A complete biography. Visit then our main section - GOD's revelations. Tip: Listen audio version of this article ♪ Siddharth Guatam Buddha - the Person While you are right that in that time, about 2200 years ago, there were yet many guru (spiritual guides) who were practicing similar methods for liberation from life or to attain the knowledge of self and god, yet only Buddha was successful in claiming the self-realisation, and that too very soon as he sat under the famous Buddha tree. Intentions were quite clear. If one attains complete detachment from the material world, then he comes closer to reaching God, which is the goal of human life as understood by sages of that time. ➥But even when all the sanyasi (those who renunciate and live away from the family life) did not reach that stage of liberation. This was an excellent observation of Mahatma Buddha (that time, Siddharth) and hence he decided to choose a middle way (he called it the balancing force). In this middle way, he preached that one may stay in their family, with their wife and children, enjoy the pleasures of life, and yet renunciate the worldly matters, the attachment towards everyone. This pleased many regional Kings during that time, as Kings cannot leave their Kingdom and its people aside and go and live in a forest. Hence this way Buddha's teachings spread with the help of Kings. ➥This was a fantastic way to see life. New and yet not new. This attracted thousands of followers to Buddha at that time also. Many visited him to get a solution to their life challenges. They began to see Buddha (Siddharth) as a self-realised person. He used to give a brief solution to those coming with long problems. He always encouraged others to think and find a solution themselves, and not to just blindly follow what he says. This nature of buddha, brings him closer to your heart, doesn't it? ✶Creation of Religion (Buddhism) In this, you will learn the process of the creation of Buddhism religion formed and shaped by the vocal teachings of Mahatma Buddha (Siddharth Gautam) The coming of the Soul of Buddha 2250 years ago from now (refer World Drama Cycle), as the story goes, there was a wealthy and happy kingdom in north-eastern ancient India. Siddharth was born for a great life, as a prince of a wealthy kingdom. As Siddharth himself said later, he had almost everything available in his palace. He had four palaces for four seasons. As a brahman predicted, Siddharth began to develop detachment from the world at a young age. He began to realise that life is meant to die one day in sorrow. There is old age, disease and inability. Seeing this, he deeply decided to find a way out of this for the whole world. ➥Now what? One day he finds a Sanyasi (one who have left home for hermitage). He questioned his friend - ''Who is this person and why is he wearing such clothes''. The friend answered, and then you can guess what would happen. It is as if a thirsty person get to an ocean! Now, who can stop the prince to renunciate everything and become a Sanyasi to get his answers of life! He tried to convince his father to let him go on the path of renunciation. But after an unsuccessful prayer to his father, the king, prince Siddharth had to marry. After a few years of marriage, he is still attracted to a life of 'renunciation' as he is now even more desperate to find answers to life. So he escaped, leaving his wife and his newborn son. ➥Initial days were hard for Siddharth, as he would have never stayed hungry, back in his palace. Taking inspiration from the saint, he sat in meditation under the famous Buddha tree for days. This was his search for self-realisation. ➥Yes, Buddha never tried to create a different culture or religion from what already existed in ancient India (Bharat). He only showed an accurate understanding of what God delivered in the Shrimat Bhagavad Geeta. In chapters 3, 4 and 5 of Shrimat Geeta, it is emphasized that one should work in the name of almighty, for the welfare of the world, while not seeing the results (fruit of activities) and one should surrender the fruit to the supreme (God). This way you will stay free from the bondage of Karma and yet enjoy the fruits of your good deeds. ➥The same was explained by the Buddha in a simple and accurate way, Hence conclude that Buddha is really just a wise Soul who took meaningful derivation through constant meditation and applied to his own life and then inspired others as well. ➥Then as hundreds of years passed, people who are followers, made Buddha look as a divine being and started worshipping. But it is said by Buddha himself, not to worshipping the stones, while God is not in his creation. God is above and beyond. And that is what meditation is. Meditation is introspection within the self, and a search for supreme, as a reflection to our own inner nature. (Shrimat Geeta and many other scriptures supports the fact, that we all beings are created in God's image. God is our creator, father, teacher and a guide of all. Religions are established at times and places to show a way to humanity, to follow God, to teach, not to liberate anyone from life. No one can be liberated from this cycle. Life is eternal, as the Soul is eternal.) ✽ After Task ✽ After the Buddha left his corporeal body, the soul still has a part to establish the religion (according to its part in World Drama) and hence the soul has to take another body to fulfill this task. As revealed by Shiv baba in Murlis, the dharma atma (souls who established religions. Eg: Ibrahim, Buddha, Christ, etc) does not take birth through a mother's womb. Instead, those souls come from the above (soul world) and enter a body, through that medium they speak the teachings and thus establish their faith. This way the religions are established. NOTE: The revelation from Gyan Murli, is that Buddha lived 2250 years ago from now, also joins that Ibrahim lived 2500 years ago, while Christ lived 2000 years ago. Useful links Biography of Jesus Christ Revelations from Murli A Godly Message for Christians BK Google -Search Engine

  • 21 Oct 2018 BK murli in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli in Hindi Aaj ki Gyan Murli Madhuban 21-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 20-02-84 मधुबन एक सर्वश्रेष्ठ, महान और सुहावनी घड़ी आज भाग्य बनाने वाले बाप श्रेष्ठ भाग्यवान सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा कैसे कल्प पहले मुआफिक तकदीर जगाकर पहुँच गया है। तकदीर जगाकर आये हो। पहचानना अर्थात् तकदीर जगना। विशेष डबल विदेशी बच्चों का वरदान भूमि पर संगठन हो रहा है। यह संगठन तकदीरवान बच्चों का संगठन है। सबसे पहले तकदीर खुलने का श्रेष्ठ समय वा श्रेष्ठ घड़ी वही है जब बच्चों ने जाना, माना और कहा मेरा बाबा। वह घड़ी ही सारे कल्प के अन्दर श्रेष्ठ और सुहावनी है। सभी को उस घड़ी की स्मृति अब भी आती है ना। बनना, मिलना, अधिकार पाना यह तो सारा संगमयुग ही अनुभव करते रहेंगे। लेकिन वह घड़ी जिसमें अनाथ से सनाथ बने, क्या से क्या बने। बिछुड़े हुए फिर से मिले। अप्राप्त आत्मा प्राप्ति के दाता की बनी वह पहली परिवर्तन की घड़ी, तकदीर जगने की घड़ी कितनी श्रेष्ठ महान है। स्वर्ग के जीवन से भी वह पहली घड़ी महान है, जब बाप के बन गये। मेरा सो तेरा हो गया। तेरा माना और डबल लाइट बने। मेरे के बोझ से हल्के बन गये। खुशी के पंख लग गये। फर्श से अर्श पर उड़ने लगे। पत्थर से हीरा बन गये। अनेक चक्करों से छूट स्वदर्शन चक्रधारी बन गये। वह घड़ी याद है? वह ब्रहस्पति के दशा की घड़ी जिसमें तन-मन-धन-जन सर्व प्राप्ति की तकदीर भरी हुई है। ऐसी दशा, ऐसी रेखा वाली वेला में श्रेष्ठ तकदीरवान बने। तीसरा नेत्र खुला और बाप को देखा। सभी अनुभवी हो ना। दिल में गीत गाते हो ना वाह वह श्रेष्ठ घड़ी! कमाल तो उस घड़ी की है ना! बापदादा ऐसी महान वेला में, तकदीरवान वेला में आये हुए बच्चों को देख-देख खुश हो रहे हैं।ब्रह्मा बाप भी बोले वाह मेरे आदि देव के आदि काल के राज्य-भाग्य अधिकारी बच्चे! शिव बाप बोले वाह मेरे अनादि काल के अनादि अविनाशी अधिकार को पाने वाले बच्चे! बाप और दादा दोनों के अधिकारी सिकीलधे, स्नेही, साथी बच्चे हो। बापदादा को नशा है - विश्व में सभी आत्मायें जीवन का साथी, सच्चा साथी, प्रीत की रीत निभाने वाले साथी बहुत ढूँढने के बाद पाते भी हैं फिर भी सन्तुष्ट नहीं होते। एक भी ऐसा साथी नहीं मिलता और बापदादा को कितने जीवन साथी मिले हैं! और एक-एक, एक दो से महान हैं। सच्चे साथी हो ना! ऐसे सच्चे साथी हो जो प्राण जाएं लेकिन प्रीत की रीत न जाए। ऐसे सच्चे साथी जीवन साथी हो।बापदादा की जीवन क्या है, जानते हो? विश्व सेवा ही बापदादा की जीवन है। ऐसी जीवन के साथी आप सभी हो ना इसलिए सच्चे जीवन के साथी साथ निभाने वाले, बापदादा के कितने बच्चे हैं। दिन-रात किसमें बिजी रहते हो? साथ निभाने में ना। सभी जीवन साथी बच्चों के अन्दर सदा क्या संकल्प रहता है? सेवा का नगाड़ा बजावें। अभी भी सभी मुहब्बत में मगन हो। सेवा के साथी बन सेवा का सबूत लेकर आये हो ना। लक्ष्य प्रमाण सफलता को पाते जा रहे हो। जितना किया वह ड्रामा अनुसार बहुत अच्छा किया, और आगे बढ़ना है ना। इस वर्ष आवाज बुलन्द तो किया लेकिन अभी कोई-कोई तरफ के माइक लाये हैं। चारों ओर के माइक नहीं आये हैं इसलिए आवाज तो फैला लेकिन चारों ओर के निमित्त बने हुए आवाज बुलन्द करने वाले बड़े माइक कहो या सेवा के निमित्त आत्मायें कहो यहाँ आयें और हरेक अपने को अपने तरफ का मैसेन्जर समझकर जाएं। अभी जिस तरफ से आये उस तरफ के मैसेन्जर बनें। लेकिन चारों ओर के माइक आयें और मैसेन्जर बन जाएं। चारों तरफ हर कोने में ये मैसेज सर्व को मिल जाए तो एक ही समय चारों ओर का आवाज निकले। इसको कहा जाता है बड़ा नगाड़ा बजना। चारों ओर एक नगाड़ा बजे, एक ही है, एक हैं, तब कहेंगे प्रत्यक्षता का नगाड़ा।अभी हर एक देश के बैण्ड बजे हैं। नगाड़ा बजना है अभी। बैण्ड अच्छी बजाई है इसलिए बापदादा भिन्न-भिन्न देश के निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा वैराइटी बैण्ड सुन और देख खुश हो रहे हैं। भारत की भी बैण्ड सुनी। बैण्ड की आवाज और नगाड़े की आवाज में भी फर्क है। मन्दिरों में बैण्ड के बजाए नगाड़ा बजाते हैं। अब समझा आगे क्या करना है? संगठन रूप का आवाज, बुलन्द आवाज होता है। अभी भी सिर्फ एक हाँ जी कहे और सभी मिलकर हाँ जी कहें तो फर्क होगा ना। एक है, एक ही हैं, यही एक हैं। यह बुलन्द आवाज चारों ओर से एक ही समय पर निकले। टी.वी. में देखो, रेडियो में देखो, अखबारों में देखो, मुख में देखो यही एक बुलन्द आवाज हो। इन्टरनेशनल आवाज हो इसलिए तो बापदादा जीवन साथियों को देख खुश होते हैं। जिसके इतने जीवन साथी और एक-एक महान तो सर्व कार्य हुए ही पड़े हैं। सिर्फ बाप निमित्त बन श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध बना रहे हैं। अच्छा!अभी तो मिलने की सीजन है। सबसे छोटे और सिकीलधे पोलैण्ड वाले बच्चे हैं। छोटे बच्चे सदैव प्यारे होते हैं। पोलैण्ड वालों को यह नशा है ना कि हम सबसे ज्यादा सिकीलधे हैं। सर्व समस्याओं को पार कर फिर भी पहुँच तो गये हैं ना! इसको कहा जाता है लगन। लगन विघ्न को समाप्त कर देती है। बापदादा के भी और परिवार के भी प्यारे हो। पोलैण्ड और पोरचुगीज़ दोनों ही देश लगन वाले हैं। न भाषा देखी, न पैसे को देखा लेकिन लगन ने उड़ा लिया। जहाँ स्नेह है वहाँ सहयोग अवश्य प्राप्त होता है। असम्भव से सम्भव हो जाता है। तो बापदादा ऐसे स्वीट बच्चों का स्नेह देख हर्षित होते हैं और लगन से सेवा करने वाले निमित्त बने हुए बच्चों को भी आफरीन देते हैं। अच्छी ही मुहब्बत से मेहनत की है।वैसे तो इस वर्ष अच्छे ग्रुप लाये हैं सभी ने। लेकिन इन देशों की भी विशेषता है, इसलिए बापदादा विशेष देख रहे हैं। सभी ने अपने-अपने स्थान पर वृद्धि को अच्छा प्राप्त किया है इसलिए स्थानों के नाम नहीं लेते। लेकिन हर स्थान की विशेषता अपनी-अपनी है। मधुबन तक पहुँचना, यही सेवा की विशेषता है। चारों ओर के जो भी निमित्त बच्चे हैं, उन्हों को बापदादा विशेष स्नेह के पुष्प भेंट कर रहे हैं। चारों ओर की एकानामी में नीचे ऊपर होते हुए भी इतनी आत्माओं को उड़ाकर ले आये हैं। यही मुहब्बत के साथ मेहनत की निशानी है। यह सफलता की निशानी है इसलिए हरेक नाम सहित स्नेह के पुष्प स्वीकार करना। जो नहीं भी आये हैं उन्हों के याद-पत्र बहुत मालायें लाई हैं। तो बापदादा आकार रूप से न पहुँचने वाले बच्चों को भी स्नेह भरी यादप्यार दे रहे हैं। चारों ओर की तरफ से आये हुए बच्चों की याद का रेसपान्ड दे रहे हैं। सभी स्नेही हो। बापदादा के जीवन साथी हो, सदा साथ निभाने वाले समीप रत्न हो, इसलिए सभी की याद पत्रों से पहले, मैसेन्जर के पहले ही बापदादा के पास पहुँच गई और पहुँचती रहती है। सभी बच्चे अब यही सेवा की धूम मचाओ। बाप द्वारा मिले हुए शान्ति और खुशी के खजाने सर्व आत्माओं को खूब बांटो। सर्व आत्माओं की यही आवश्यकता है। सच्ची खुशी और सच्ची शान्ति की। खुशी के लिए कितना समय, धन और शारीरिक शक्ति भी खत्म कर देते हैं। हिप्पी बन जाते हैं। उन्हों को अब हैपी बनाओ। सर्व की आवश्यकता को पूर्ण करने वाले अन्नपूर्णा के भण्डार बनो। यही सन्देश सर्व विदेश के बच्चों को भेज देना। सभी बच्चों को मैसेज दे रहे हैं। कई ऐसे भी बच्चे हैं जो चलते-चलते थोड़ा सा अलबेलेपन के कारण तीव्र पुरुषार्थी से ढीले पुरुषार्थी हो जाते हैं। और कई माया के थोड़े समय के चक्र में भी आ जाते हैं। फिर भी जब फंस जाते हैं तो पश्चाताप में आते हैं। पहले माया की आकर्षण के कारण चक्र नहीं लगता लेकिन आराम लगता है। फिर जब चक्र में फंस जाते हैं तो होश में आ जाते हैं और जब होश में आते हैं तो कहते बाबा-बाबा क्या करें। ऐसे चक्र के वश होने वाले बच्चों के भी बहुत पत्र आते हैं। ऐसे बच्चों को भी बापदादा यादप्यार दे रहे हैं और फिर से यही याद दिला रहे हैं। जैसे भारत में कहावत है कि रात का भूला अगर दिन में घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता। ऐसे फिर से जागृति आ गई तो बीती सो बीती। फिर से नया उमंग, नया उत्साह नई जीवन का अनुभव करके आगे बढ़ सकते हैं।बापदादा भी तीन बार माफ करते हैं। तीन बार फिर भी चांस देते हैं, इसलिए कोई भी संकोच नहीं करें। संकोच को छोड़कर स्नेह में आ जायें तो फिर से अपनी उन्नति कर सकते हैं। ऐसे बच्चों को भी विशेष सन्देश देना। कोई-कोई सरकमस्टाँस के कारण नहीं आ सके हैं और वह बहुत तड़पते याद कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों की सच्ची दिल को जानते हैं। जहाँ सच्ची दिल है वहाँ आज नहीं तो कल फल निकलता ही है। अच्छा!सामने डबल विदेशी हैं। उन्हों की सीजन है ना। सीजन वालों को पहले खिलाया जाता है। सभी देश वाले अर्थात् भाग्यवान आत्माओं को, देश वालों को यह भी एडीशन में नशा है कि हम बाप के अवतरित भूमि वाले हैं। ऐसे सेवा की भारत भूमि, बाप की अवतरण भूमि और भविष्य की राज्य भूमि वाले सभी बच्चों को बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं क्योंकि सभी ने अपनी-अपनी लगन, उमंग-उत्साह प्रमाण सेवा की और सेवा द्वारा अनेक आत्माओं को बाप के समीप लाया इसलिए सेवा के रिटर्न में बापदादा सभी बच्चों को स्नेह के पुष्पों का गुलदस्ता दे रहे हैं। स्वागत कर रहे हैं। आप भी सभी को गुलदस्ता दे स्वागत करते हो ना। तो सभी बच्चों को गुलदस्ता भी दे रहे हैं और सफलता का बैज भी लगा रहे हैं। हरेक बच्चे अपने-अपने नाम से बापदादा द्वारा मिला हुआ बैज और गुलदस्ता स्वीकार करना। अच्छा!ज़ोन वाली दादियाँ तो हैं ही चेयरमैन। चेयर-मैन अर्थात् सदा सीट पर सेट होने वाली, जो सदा सीट पर सेट हैं उनको ही चेयरमैन कहा जाता है। सदा चेयर के साथ नियर भी हैं इसलिए सदा बाप के आदि सो अन्त तक हर कदम के साथी हैं। बाप का कदम और उन्हों का कदम सदा एक है। कदम ऊपर कदम रखने वाली हैं, इसलिए ऐसे सदा के हर कदम के साथियों को पदम, पदम, पदम गुणा यादप्यार दे रहे हैं और बहुत सुन्दर हीरे का पदम पुष्प बाप द्वारा स्वीकार हो। महारथियों में भाई भी आ गये। पाण्डव सदा शक्तियों के साथी हैं। पाण्डवों को यह खुशी है कि शक्ति सेना और पाण्डव दोनों मिलकर जो बाप का कार्य है, उसमें निमित्त बन सफल करने वाले सफलता मूर्त हैं इसलिए पाण्डव भी कम नहीं, पाण्डव भी महान हैं। हर पाण्डव की विशेषता अपनी-अपनी है, विशेष सेवा कर रहे हैं। और उसी विशेषता के आधार पर बाप और परिवार के आगे विशेष आत्मायें हैं इसलिए ऐसी सेवा के निमित्त विशेष आत्माओं को विशेष रूप से बापदादा विजय के तिलक से स्वागत कर रहे हैं। समझा। अच्छा!आप सभी को तो सब मिल गया ना। कमल, तिलक, गुलदस्ता, बैज सब मिला ना। डबल विदेशियों की स्वागत कितने प्रकार से हो गई। यादप्यार तो सभी को मिल ही गया। फिर भी डबल विदेशी और स्व देशी, सभी बच्चे सदा उन्नति को पाते रहो, विश्व को परिवर्तन कर सदा के लिए सुखों के झूले में झूलते रहो। ऐसे विशेष सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।ट्रीनीडाड पार्टी से:- सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें हैं, ऐसे समझते हो! ब्राह्मणों को सदा ऊंची चोटी की निशानी दिखाते हैं। ऊंचे ते ऊंचा बाप और ऊंचे ते ऊंचा समय तो स्वयं भी ऊंचे हुए। जो सदा ऊंची स्थिति पर स्थित रहते हैं वह सदा ही डबल लाइट स्वयं को अनुभव करते हैं। किसी भी प्रकार का बोझ नहीं। न सम्बन्ध का, न अपने कोई पुराने स्वभाव-संस्कार का, इसको कहते हैं सर्व बन्धनों से मुक्त। ऐसे फ्री हो। सारा ग्रुप निर्बन्धन ग्रुप है। आत्मा से और शरीर के सम्बन्ध से भी। निर्बन्धन आत्मायें क्या करेंगी? सेन्टर सम्भालेंगी ना। तो कितने सेवाकेन्द्र खोलने चाहिए। टाइम भी है और डबल लाइट भी हो तो आप समान बनायेंगे ना। जो मिला है वह औरों को देना है। समझते हो ना कि आज के विश्व की आत्माओं को इसी अनुभव की कितनी आवश्यकता है। ऐसे समय पर आप प्राप्ति स्वरूप आत्माओं का क्या कार्य है! तो अभी सेवा को और वृद्धि को प्राप्त कराओ। ट्रीनीडाड वैसे भी सम्पन्न देश है तो सबसे ज्यादा संख्या ट्रीनीडाड सेन्टर की होनी चाहिए। आसपास भी बहुत एरिया है, तरस नहीं पड़ता? सेन्टर भी खोलो और बड़े-बड़े माइक भी लाओ। इतनी हिम्मत वाली आत्मायें जो चाहे वह कर सकती हैं। जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों द्वारा श्रेष्ठ सेवा समाई हुई है। अच्छा! वरदान:- वैरायटी अनुभूतियों द्वारा सदा उमंग-उत्साह से भरपूर रहने वाले विघ्न जीत भव रोज़ अमृतवेले सारे दिन के लिए वैरायटी उमंग-उत्साह की प्वाइंट्स बुद्धि में इमर्ज करो। हर दिन की मुरली से उमंग-उत्साह की प्वाइंट्स नोट करो, वह वैरायटी प्वाइंटस उमंग-उत्साह बढ़ायेंगी। मनुष्य आत्मा का नेचर है कि वैरायटी पसन्द आती है इसलिए चाहे ज्ञान की प्वाइंट मनन करो या रूहरिहान करो, वैरायटी रूप से जीरो बन अपने हीरो पार्ट की स्मृति में रहो, तो उमंग-उत्साह से भरपूर रहेंगे और सब विघ्न सहज समाप्त हो जायेंगे। स्लोगन:- अपनी अवस्था को ऐसा शान्त-चित बना लो जो क्रोध का भूत दूर से ही भाग जाए। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 20 Aug 2018 Aaj ki Murli

    Brahma kumari murli today Hindi -BapDada -Madhuban -20-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - याद की यात्रा में टाइम देते रहो तो विकर्म विनाश होते जायेंगे, सबसे ममत्व मिट जायेगा, बाप के गले का हार बन जायेंगे" प्रश्नः- गॉड फादर द्वारा तुम बच्चे किन दो शब्दों की पढ़ाई पढ़ते हो? उन दो शब्दों में कौन-सा राज़ समाया हुआ है? उत्तर:- गॉड फादर तुम्हें इतना ही पढ़ाता कि - हे आत्मायें, ‘शरीर का भान छोड़ो' और ‘मुझे याद करो' - यह दो शब्दों की पढ़ाई इसीलिए पढ़ाई जाती है क्योंकि अब तुम्हें इस पुरानी दुनिया में पुरानी खाल नहीं लेनी है। तुम्हें नई दुनिया में जाना है। मैं तुम्हें साथ ले चलने आया हूँ इसलिए देह सहित सब कुछ भूलते जाओ। गीत:- तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो........ ओम् शान्ति।बच्चे सालिग्राम जानते हैं कि कोई मनुष्य द्वारा हम शास्त्र नहीं सुनते हैं। इसको सतसंग नहीं कहा जाता है, पढ़ाई कहा जाता है। अगर मनुष्यों से पूछा जाए तो कहेंगे कि हम सतसंग में जाते हैं वा कहेंगे कि हम कॉलेज में जाते हैं। यह तो जानते हो सतसंग में साधू, सन्त, विद्वान आदि सुनाने वाले होंगे। स्कूल में भी मनुष्य टीचर, प्रोफेसर आदि होंगे, यहाँ मनुष्य नहीं हैं। यह है बेहद का रूहानी बाप, जिसको कहा जाता है - त्वमेव माताश्च पिता. . . . . यह महिमा देवताओं की भी नहीं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी नहीं। यह महिमा है निराकार परमपिता परमात्मा की। अब बच्चे जानते हैं कि निराकार परमपिता परमात्मा यह शरीर धारण कर पार्ट बजा रहे हैं। सिवाए इस निराकार परमपिता परमात्मा के कोई भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों को पढ़ा नहीं सकते। ब्रह्मा को भी ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। इसको प्रजापिता कहेंगे, ज्ञान सागर एक ही निराकार परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वही पतितों को पावन बनाने वाला है क्योंकि ज्ञान सागर से ही सद्गति होती है। यह है नई बात। गीता में कृष्ण का नाम डालने से खण्डन कर दिया है। अब मनुष्यों को कैसे पता पड़े कि नॉलेजफुल परमपिता परमात्मा आकर नॉलेज देते हैं। यह मनुष्य भूल जाते हैं। ऐसे नहीं कि शास्त्र आदि द्वापर के आदि में ही बनते हैं। नहीं, समझाया जाता है पहले बाप का चित्र, मन्दिर आदि बनते हैं, जिससे भक्ति शुरू होती है। भक्ति भी बहुत समय परमात्मा की होनी चाहिए क्योंकि ऊंच ते ऊंच वह है। उनकी पूजा पहले शुरू होती है। पूजा लायक है ही एक शिव। ऐसे नहीं कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर वा जगत अम्बा, जगत पिता पूजा के लिए लायक हैं। इन सबको पूज्य बनाने वाला एक ही बाप है। उनकी भक्ति भी जरूर अधिक होगी। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं। इनमें परमपिता परमात्मा न आये तो इनकी पूजा क्या होगी? सबका सद्गति दाता एक ही बाप है। यह विचार सागर मंथन करना होता है। भक्ति कैसे शुरू होगी? शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। बच्चों को विचार सागर मंथन करना है। सरस्वती, जो ब्रह्मा की मुख वंशावली है, उनको भी विचार सागर मंथन करना है। ऊंच ते ऊंच है एक, अगर वह न आये तो दुनिया को पतित से पावन कौन बनाये? सब मनुष्य मात्र पतित हैं। अब शिवबाबा न आये तो स्वर्ग का वर्सा कौन देवे? निश्चयबुद्धि नहीं हैं तो विजय माला में पिरो न सकें। सपूत बच्चे सदैव गले का हार बनते हैं। बाप भी खुश होते हैं - यह बच्चा बड़ा सपूत आज्ञाकारी है। बहुत माँ-बाप होते हैं जिनको 12-14 बच्चे भी होते हैं, जिनमें कोई कपूत, कोई सपूत भी होते हैं। पतित-पावन बाप के सिवाए पतितों का उद्धार कोई कर नहीं सकते हैं। तुम जानते हो कि गंगा नदी पर भी गंगा का मन्दिर है। तो समझाना चाहिए कि यह गंगा फिर कौन है? क्या यह कोई शक्ति है, जिससे पतित से पावन बनते हैं वा पानी से पावन बनते हैं? बाप कहते हैं कि गंगा पतित-पावनी नहीं। सिवाए योग के कोई भी पावन बन नहीं सकते, इसलिए तुम्हें कोई गंगा स्नान नहीं करना है। योग का अर्थ है याद। बुद्धि का योग लगाना है। वह तो बहुत योग आसन आदि लगाते हैं। अनेक प्रकार के हठयोग करते हैं, उनको योग नहीं कहा जाता है। मातायें-अबलायें हठयोग को क्या जानें?मनुष्य स्कूल में पढ़ते हैं, उसमें धक्के खाने की कोई बात नहीं रहती है। कोई न कोई इम्तहान पास करते हैं। जानते हैं यह इम्तहान पास करके यह बनेंगे। यहाँ भी तुम जानते हो - यह भी इम्तहान है, गॉड फादर पढ़ाते हैं। वह है पतित-पावन। तुम्हारी है गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ। बाप पतित से पावन कैसे बनाते हैं? कहते हैं - हे आत्मायें, इस शरीर का भान छोड़ो। इस पुराने शरीर को छोड़ना है। पहले-पहले तुम्हारा शरीर गोरा था, अब आइरन एजड हो गया है। अभी तुमको नई खाल तो यहाँ लेनी नहीं है क्योंकि यहाँ तो 5 तत्व ही तमोप्रधान हैं। अभी मैं तुम बच्चों को अपने साथ ले जाऊंगा। कल्प पहले भी ले गया था। मैं कालों का काल हूँ। सबको वापिस ले जाऊंगा। फिर तुमको अमरपुरी में भेज दूँगा। यह है मृत्यु-लोक, छी-छी दुनिया, इसलिए संगमयुग को 100 वर्ष चाहिए। और तो हर एक युग 1250 साल का होता है। इस पिछाड़ी के संगमयुग की आयु बहुत छोटी है। जैसे ब्राह्मणों की चोटी छोटी होती है वैसे संगमयुग की आयु भी छोटी है। फिर यह दुनिया ख़त्म हो जायेगी, तो नये मकान आदि बनाने शुरू करेंगे। उसमें पहले श्रीकृष्ण आता है। वह शौकीन है महल आदि बनवाने का। कोई तो बहुत शौकीन था ना जिसने सोमनाथ का मन्दिर बनवाया। बिरला भी शौकीन है, कैसा अच्छा मन्दिर बनाया है! नम्बरवन में पूज्य है शिवबाबा, फिर भक्ति मार्ग में भी पहले सोमनाथ का मन्दिर बनता है। सो भी कुछ समय बाद में बनता होगा। फिर पूजा शुरू होगी। अभी तो है घोर अन्धियारा। रात पूरी हो फिर दिन आता है।बाप कहते हैं मैं रात और दिन के बीच में आता हूँ। महाभारी लड़ाई भी है। लिखा हुआ है कि यादवों के पेट से वह चीजें निकली जिससे सारे कुल का विनाश हुआ। तुम देख रहे हो बरोबर विनाश के लिए तैयारी कर रहे हैं। समझते हैं कोई प्रेरक हैं। दोनों ने विनाश के लिए बाम्ब्स बनाकर रखे हैं। आ़फतें भी आनी हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में देख रहे हो - स्थापना भी हो रही है, विनाश भी सामने खड़ा है। समझो, कोई ने विनाश नहीं देखा है, अच्छा, वैकुण्ठ तो देखते हैं ना। अच्छी तरह पढ़कर बाप से पूरा बेहद का वर्सा लेना है। तुमको साकार नहीं पढ़ाते हैं। शास्त्रों आदि की बात नहीं है। यह तो ज्ञान सागर स्वयं पढ़ाते हैं। तुम अपने को देही समझ बाप को याद करते हो। भगवानुवाच - अपने बच्चों प्रति कहते हैं मैं तुम बच्चों के सम्मुख होता हूँ। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनमें से कोई सौतेले हैं, कोई मातेले हैं। मातेले बच्चों को ही वर्से का हक है। संशय बुद्धि को सौतेला कहा जाता है। उनको वर्सा नहीं मिल सकता। वह फिर पुरुषार्थ अनुसार प्रजा में चले जाते हैं। मातेले राजाई में आ जाते हैं। वह बाप को प्यार करते हैं, बाप उनको प्यार करते हैं। गाते भी हैं ना तुम पर बलिहार जाऊंगा, वारी जाऊंगा। बाप कहते हैं मुझे याद करेंगे तो मैं तुमको मदद दूँगा। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा। और सबसे बुद्धियोग तोड़ एक से जोड़ना है। तुम कहते हो हम बाबा के हैं। यह सब कुछ बाबा का है। बाबा को हम कखपन देते हैं और बदले में स्वर्ग के बेहद की बादशाही का वर्सा लेते हैं। इस पुरानी देह से हमारा ममत्व नहीं है। यह तो तमोप्रधान रोगी शरीर है। हमारे पास और क्या है? मनुष्य मरते हैं, सब कुछ छूट जाता है। फिर उनका सब कुछ करनीघोर को दिया जाता है। हम सब कुछ आपको देते हैं। ममत्व मिटाने के लिए हम निरन्तर बाबा को याद करने का पुरुषार्थ करते हैं। माया फिर विघ्न डालती है इसलिए धीरे-धीरे जितना मेरी याद में टाइम देते रहेंगे तो विकर्म विनाश होंगे। वही मेरे गले का हार बनेंगे। कितना सहज समझाते हैं। बाप समझाते हैं यह रथ भी ड्रामा अनुसार मेरा मुकरर किया हुआ है। और किसी में मैं आ भी नहीं सकता हूँ। तुम भी कहते हो - बाबा, कल्प पहले भी हम आपसे इस ही मकान में, इसी ड्रेस में मिले थे और आपसे वर्सा लिया था। तो कितना सहज है।बाप कहते हैं कि सिर्फ मुझे याद करो और कोई भी तरफ बुद्धि न जाये। याद रखना - अन्तकाल जो पुत्र सिमरे, अगर किसी को भी याद किया तो फिर वहाँ जन्म लेना पड़ेगा। कहाँ भी ममत्व नहीं रहना चाहिए। अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने, उनकी कितनी महिमा करते हैं। एकोअंकार..... उनका एक ही नाम है। उनको दूसरा शरीर मिलता ही नहीं है, जो नाम बदली हो। तुम तो 84 जन्म लेते हो तो नाम भी 84 पड़ते हैं। बाप की महिमा में गाते हैं निर्भय, निर्वैर, अकालमूर्त...... वही कालों का काल है, उन्हें काल खा नहीं सकता। मैं सभी को मुक्तिधाम में ले जाऊंगा। निर्वैर, मेरा कोई से वैर नहीं है। अकालमूर्त, अजोनि, मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। उनकी कितनी महिमा गाते हैं। गाया भी जाता है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता..... कलियुग के दु:ख हरते हैं। सतयुग के सुख देते हैं। बच्चे जानते हैं भारत में सतयुग में जीवनमुक्ति थी। बाकी सभी आत्मायें शान्तिधाम में थी, याद पड़ता है ना। तो जरूर बाप जब संगम पर आये, तब सभी को शान्तिधाम ले जाये और तुमको फिर सुखधाम भेज दे। कितनी सहज बात है। परन्तु माया ऐसी है जो यहाँ से बाहर गया तो भूल जायेंगे। जैसे गर्भ जेल में धर्मराज के द्वारा तुमको सजा दिलाता हूँ, त्राहि-त्राहि करते हो कि हम म़ाफी मांगते हैं फिर ऐसे पाप नहीं करेंगे। बाहर निकलने से फिर भी पाप करने लग पड़ते हैं। यह है ही माया का राज्य। सतयुग-त्रेता में माया होती नहीं। वहाँ तो सुख ही सुख रहता है। अभी तुम पढ़ रहे हो। इसमें घरबार छोड़ने की बात नहीं। बाप कहते हैं - देह सहित सब कुछ भूल जाओ। तुम्हारा यह बेहद का सन्यास है। उन सन्यासियों का है हद का सन्यास। जंगल में जाकर फिर लौट आते हैं शहर में। नाम कितने बड़े-बड़े रखवाते हैं। बाप कहते हैं मैं कितना सहज समझाता हूँ। बुढ़ियायें कितनी हैं, कहती हैं हमको धारणा नहीं होती। अच्छा, यह तो जानती हो कि परमात्मा पढ़ाते हैं? वह कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। इसमें तो कोई तकल़ीफ नहीं है। अभी हमने 84 का चक्र पूरा किया है। यह हुआ स्वदर्शन पा। आत्मा को चक्र का दर्शन होता है। यहाँ ही निरोगी काया बनती है। चक्र को जानने से तुम ऊंच पद पायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं कि स्वदर्शन चक्रधारी बनो। कितना सहज समझाते हैं! सहज याद, सहज सृष्टि पा, कोई तकल़ीफ नहीं। यह है सच्ची कमाई। बाकी धन माल तो सब ख़त्म हो जाना है, सब छूट जाता है। सागर को उथल खानी है। नैचुरल कैलेमिटीज भी आनी है। भारत सचखण्ड था, और कोई भी खण्ड नहीं था। भारत है शिवबाबा की जन्म भूमि। बड़े ते बड़ा तीर्थ है। भारत में ही सोमनाथ का मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है! अभी तो ढेर के ढेर बनाते हैं।बाबा कहते हैं कि इस समय की शादी पूरी बरबादी है। शिवबाबा से सगाई पूरी आबादी है। शिवबाबा साजन भी है, स्वर्ग में भेज देते हैं। तुम यहाँ आये हो, जानते हो हम यहाँ बरोबर नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। ऐसे नहीं कि पुरुष जाकर पुरुष ही बनेंगे। बदलते रहते हैं। कोई चोला पुरुष का, कोई स्त्री का। फिर सतयुग से त्रेता कैसे बनता है - वह भी समझाया गया है। अभी तुम बच्चों को नॉलेजफुल गॉड फादर पढ़ाते हैं। मनुष्य तो फादर, टीचर, सतगुरू हो न सकें। फादर और टीचर हो सकते हैं, गुरू हो नहीं सकते हैं। सो भी वह जिस्मानी विद्या। यह बाबा तो एकदम स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। कोई भी बात न समझो तो हजार बार पूछो। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सपूत आज्ञाकारी बन विजय माला में पिरोना है। बाप को अपना कखपन दे, बलिहार हो, सबसे ममत्व मिटा देना है। 2) अंतकाल में एक बाप ही याद रहे उसके लिए और सबसे बुद्धियोग तोड़ निरन्तर बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना है। वरदान:- स्वयं को बाप हवाले कर बुद्धि से भी सरेन्डर होने वाले डबल लाइट भव l अपनी जिम्मेवारी बाप को देकर, स्वयं को बाप हवाले कर दो अर्थात् अपने सब बोझ बाप को दे दो तो डबल लाइट बन जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ तो और कोई भी बात बुद्धि में नहीं आयेगी, बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं, जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी, बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इस रास्ते से सहज मंजिल पर पहुंच जायेंगे। स्लोगन:- अडोलता के तख्त पर विराजमान हो, साक्षी दृष्टा बन पार्ट बजाने वाले ही श्रेष्ठ पार्टधारी हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • BK murli today in Hindi 31 Aug 2018 Aaj ki Murli

    Brahma kumari murli today in Hindi Aaj ki Murli BapDada 31-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - अपनी स्थिति साक्षी तथा हर्षित रखने के लिए स्मृति में रहे कि हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है, बनी बनाई बन रही" प्रश्नः- तुम बच्चे किस एक पुरुषार्थ द्वारा अपनी अवस्था जमा सकते हो? उत्तर:- माया के तूफानों को डोन्टकेयर करो और बाप जो श्रीमत देते हैं उसे कभी भी डोन्टकेयर न करो, इससे तुम्हारी अवस्था अचल-अडोल हो जायेगी, स्थिति सदा साक्षी और हर्षित रहेगी। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कभी भी रोना न आये। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना.....। गीत:- तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो..... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। अक्सर करके भक्ति मार्ग वाले मन्दिरों में जाते हैं, चाहे शिव के, चाहे लक्ष्मी-नारायण के, चाहे राधे-कृष्ण के या अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों में जायेंगे। सबके आगे यही महिमा करेंगे - त्वमेव माता-च-पिता..... फिर कहते हैं - त्वमेव विद्या द्रविणम्...... माना तुम मात-पिता भी हो, पढ़ाने वाले भी हो। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण वा राम-सीता को त्वमेव माता-च-पिता नहीं कहेंगे क्योंकि उन्हों को तो अपने ही बच्चे होंगे। वह ऐसी महिमा नहीं गायेंगे। वास्तव में महिमा एक शिव की है। वह महिमा गाते हैं देव-देव महादेव। माना तुम ब्रह्मा, विष्णु, शंकर से भी ऊंच हो। भक्ति मार्ग में तो कोई अर्थ समझ न सके। अब बाप कहते हैं तुमने भक्ति बहुत की है, अब तुम मेरे से समझो और इस पर गौर करो कि सच क्या है, झूठ क्या है? तुम बच्चे अब समझते हो - बाप के बारे में और देवताओं के बारे में जो भी महिमा करते हैं वह सारी रांग है। अभी जो तुमको मैं समझाता हूँ वही राइट है।बच्चों को समझाते हैं यह उल्टा वृक्ष है, इसका बीज है परमपिता परमात्मा। वह ऊपर में रहते हैं। वह तो चैतन्य बीज है ना। तुम ठहरे बच्चे। कई कहते हैं कि सब बीज आदि में भी आत्मा है। लेकिन वह तो जड़ है ना। बाप को कहा ही जाता है मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीजरूप। अब मनुष्य गाते हैं - ओ गॉड फादर। अच्छा, झाड़ को तुम चैतन्य ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। मनुष्य में यह ज्ञान है कि यह बीज है। बीज में जरूर झाड़ का ज्ञान होना चाहिए। परन्तु जड़ होने के कारण बता नहीं सकते। मनुष्य तो समझ जाते हैं कि बीज नीचे है, उनसे झाड़ निकला हुआ है। कल्प वृक्ष और बनेन ट्री की भेंट करते हैं। वह जड़ है, यह चैतन्य है। कलकत्ते में बड़ का बहुत बड़ा झाड़ है। उनका थुर सारा निकल गया है, सिर्फ झाड़ खड़ा है। फाउण्डेशन है नहीं, वन्डर है ना। बाप समझाते हैं इस झाड़ का भी फाउण्डेशन है नहीं। देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है, बाकी सारा झाड़ खड़ा है। कितने मठ-पंथ हैं! यह है बेहद का झाड़। बेहद का बाप बैठ समझाते हैं। बाबा लिखते भी हैं शिवबाबा का बर्थ डे हीरे जैसा है क्योंकि शिवबाबा ही कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं, स्वर्ग बनाते हैं। अभी तो भारत कितना कंगाल बन गया है। मनुष्य हम सो, सो हम कहते हैं परन्तु समझते तो कुछ नहीं। हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा - यह ढिंढोरा सन्यासियों ने पिटवाया है। तुम अर्थ सहित जानते हो। हम सो ब्राह्मण बने हैं फिर हम सो देवता बनेंगे फिर हम सो क्षत्रिय..... वर्ण में आयेंगे। आत्मा कहती है हम इन वर्णों में जायेंगे। हम शूद्र थे, अभी हम ब्राह्मण कुल में आये हैं। परमपिता परमात्मा ही सबको रचने वाला है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देवताओं को भी रचने वाला वह है। अभी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। तुम कहते हो त्वमेव माता-च-पिता.... तो माता भी यह बरोबर है। बाप बैठ बच्चों को बहलाते हैं। भक्ति मार्ग में मीरा भक्तिन थी। वह है भक्त माला। ज्ञान माला भी है। ज्ञान माला का नाम है रुद्र माला। रावण माला नहीं कहेंगे। रावण की भक्ति तो नहीं करते। राम माला है। भल अभी रावण राज्य है परन्तु रावण की माला नहीं होती। भक्त माला होती है, असुरों की माला तो नहीं होती। भक्त शिरोमणी में एक तो मीरा है उनको कृष्ण का साक्षात्कार होता था। लोक लाज सारी खोई थी। सेकेण्ड नम्बर में शिरोमणी भक्त कौन है? नारद। हाँ, उनका गायन है, दृष्टान्त दिया जाता है। यह तो सब बातें बैठ बनाई हैं। रीयल नहीं है।बाप कहते हैं कि मेल-फीमेल सब सीतायें हैं। सब रावण की शोकवाटिका में है। लंका की बात नहीं, भारत की ही बात है। एक ही बाप सर्व का सद्गति दाता है। वह एक न हो तो भारत कुछ काम का नहीं है। सबसे जास्ती पतित और सबसे जास्ती पावन भारत ही बनता है। भारत ही सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। भल अपने-अपने पैगम्बरों के तीर्थों पर जाते हैं परन्तु सबका सद्गति दाता एक बाप है। भारत ही अविनाशी खण्ड है। बाप कहते हैं मैं यहाँ आकर भारत को जीवनमुक्ति देता हूँ, बाकी सबको मुक्ति देता हूँ, सबका सद्गति दाता मैं हूँ। सचखण्ड स्थापन करने वाला बाप एक ही है। सचखण्ड में राज्य करने के लिए बच्चों को लायक बनाते हैं, खुद राज्य नहीं करते। बाप बैठ समझाते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ भारत को सद्गति देने। बाकी सबको गति में वापस ले जाता हूँ। हर एक मनुष्य मात्र की जो आत्मा है, हर एक में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इसको कहा जाता है बनी बनाई बन रही..... समझो, किसका बाप मर गया, उसने जाकर दूसरा जन्म लिया, अब रोने से क्या होगा? साक्षी होकर देखना है। यह ड्रामा है, इसमें रोने की दरकार नहीं है। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना है। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाओ, बीबी मरे तो भी हलुआ खाओ। यह उन्हों के लिए है जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कुछ भी दु:ख न हो। बेहद के बाप को याद करते रहना है। इतनी अडोल अवस्था होनी चाहिए जैसे अंगद को रावण हिला नहीं सका। माया है बड़ी जबरदस्त। तुम स्थेरियम रहते हो। माया के कितने भी तूफान लगे, डोंटकेयर, घबराना नहीं है, फंक नहीं होना है। पुरुषार्थ करके अवस्था को जमाना है। बातें तो बहुत अच्छी समझाते हैं। तुम समझते हो हम पार्वतियां हैं, शिवबाबा अमरकथा सुनाते हैं। अमरलोक में है आदि-मध्य-अन्त सुख। इस मृत्युलोक में तो आदि-मध्य-अन्त दु:ख ही दु:ख है। त्योहार आदि सब इस समय के हैं। लक्ष्मी-नारायण आदि का कोई त्योहार नहीं। वह क्या सर्विस करते हैं। तुम ब्राह्मण बहुत सर्विस करते हो। देवताओं की आत्मा को सोशल वर्कर नहीं कहेंगे - न जिस्मानी, न रूहानी। तुम हो रूहानी-जिस्मानी डबल सोशल वर्कर।अच्छा, मनुष्यों को नष्टोमोहा बनने में मेहनत लगती है क्योंकि उनके पास कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। यहाँ तो तुमको प्राप्ति बहुत है तो बहुत नष्टोमोहा होना चाहिए ना। एक बाबा के साथ योग लगाना है - बाबा, ओ मीठे-मीठे बाबा, आपको हमने पूरा जान लिया है, आगे तो सिर्फ कहने मात्र गॉड फादर कहते थे, अभी तो आप आये हो फिर से स्वर्ग की राजाई देने, यह कलियुग तो कब्रिस्तान होने वाला है इसलिए हम इसको क्यों याद करें। बाप कहते हैं इस कब्रिस्तान में, गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे याद करो। यह तो बहुत सहज है। जैसे भक्ति मार्ग में मनुष्य कृष्ण की पूजा करते रहते हैं, बुद्धि धन्धे धोरी में भागती रहती है। मन का घोड़ा कहाँ न कहाँ भागता रहेगा, तवाई के मुआफिक। बाप कहते हैं कि शरीर निर्वाह करते बुद्धि का योग मेरे साथ लगाओ। मेरी याद से तुम्हें बहुत प्राप्ति होगी। और सबसे तो अल्पकाल की प्राप्ति होती है। कितनी नौधा भक्ति की, अच्छा, फिर क्या हुआ? साक्षात्कार किया, बस ना। मुक्ति-जीवन-मुक्ति तो नहीं मिली। अब बाप कहते हैं कि तुम 21 जन्मों के लिए विश्व के मालिक बनते हो। स्वर्ग में गर्भ भी महल होता है। यहाँ तो गर्भ जेल है। कृष्ण जन्माष्टमी आदि का तुमको कुछ भी मनाना करना नहीं है। तुमको सिर्फ समझाना है कि कृष्ण का जन्म कब हुआ? कृष्ण अभी कहाँ है? तुम जानते हो अभी हम कृष्णपुरी का मालिक बनने के लिए पढ़ रहे हैं। बाप के पास बैठे हैं। बाप को हाथ जोड़े जाते हैं क्या? टीचर पढ़ाते हैं तो क्या उनको हाथ जोड़ना होता है, महिमा करनी होती है? टीचर से तो पढ़ना है। बच्चे बाप को घड़ी-घड़ी हाथ जोड़ते हैं क्या? इस समय तो तुम घर में हो। तुमको भासना आती है यह बाप भी है, पतित-पावन भी है। इस समय 5 विकारों का ग्रहण लगने के कारण तुम बिल्कुल ही काले बन गये हो। 5 विकारों ने काला कर दिया है। सतयुग में तुम गोरे सुन्दर थे, अभी श्याम हो। श्रीकृष्ण सुन्दर था, अभी श्याम है। कितने बारी श्याम और सुन्दर बना होगा! कंसपुरी ही कृष्णपुरी बन जाती है। कृष्णपुरी फिर कंसपुरी बन जाती है।तुम आत्मायें ही तो ब्रह्माण्ड की रहने वाली हो। ब्रह्म तत्व कहा जाता है। अहम् ब्रह्म कहना भी भ्रम है। तुम ब्रह्माण्ड के मालिक हो। तुम्हारा सिंहासन ब्रह्माण्ड है। बाप कहते हैं मैं तो ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ ही। तुम आत्मायें भी कहती हो - हमारा देश वास्तव में ब्रह्माण्ड है। वहाँ तुम्हारी आत्मायें पवित्र हैं। तुम ब्रह्माण्ड के मालिक हो तो फिर विश्व के भी मालिक हो। मैं तो सिर्फ ब्रह्माण्ड का ही मालिक हूँ। मुझे इस पुराने तन में आना पड़ता है, जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं। बच्चों को मुरली अच्छी तरह 5-6 बार पढ़ना वा सुनना चाहिए तब ही बुद्धि में बैठेगी और खुशी का पारा चढ़ेगा। माया घड़ी-घड़ी याद भुला देती है। इसमें कोई हठ आदि करने की बात नहीं। फुर्सत मिली, अच्छा, बाबा को याद करना है कछुए मिसल। सबसे अच्छा है - अमृतवेले का टाइम। उसका असर सारे दिन रहेगा। यह भी बच्चों को समझाया गया है कि पहले खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाना है। शिवबाबा के यज्ञ से खाते हैं तो पहले उनको भोग लगाना पड़े। यह सब सूक्ष्मवतन में साक्षात्कार होते हैं। ड्रामा में नूंध है। तुमको भोग लगाना है शिवबाबा को। वह तो निराकार है। गाया भी जाता है देवताओं के लिए - उनको ब्रह्मा भोजन की आश थी क्योंकि तुम ब्रह्मा भोजन खाकर ब्राह्मण से देवता बनते हो। सूक्ष्मवतन में देवतायें आते हैं, महफिल लगती है, यह सब खेल-पाल है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बुद्धि में पूरी एम ऑब्जेक्ट रख नष्टोमाहा बनना है। इस कब्रिस्तान को भूल बाप को याद करना है। रूहानी जिस्मानी सेवा करनी है। 2) खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाना है। अमृतवेले का समय अच्छा है इसलिए उस समय उठकर बाप को याद करना है। मुरली 5-6 बार सुननी वा पढ़नी जरूर है। वरदान:- रूहानी नशे द्वारा दु:ख-अशान्ति के नाम निशान को समाप्त करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव l रूहानी नशे में रहना अर्थात् चलते-फिरते आत्मा को देखना वा आत्म-अभिमानी रहना। इस नशे में रहने से सर्व प्राप्तियों का अनुभव होता है। प्राप्ति स्वरूप रूहानी नशे में रहने वाली आत्मा के सब दुख दूर हो जाते हैं। दुख-अशान्ति का नाम निशान भी नहीं रहता क्योंकि दुख और अशान्ति की उत्पत्ति अपवित्रता से होती है। जहाँ अपवित्रता नहीं वहाँ दु:ख अशान्ति कहाँ से आई! जो पावन आत्मायें हैं उनके पास सुख और शान्ति स्वत: ही है। स्लोगन:- जो सदा एक की लगन में मगन हैं वही निर्विघ्न हैं। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi

  • 28 Aug 2018 BK murli today in English

    Brahma kumaris murli today in English -28/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, you have now become like diamonds from shells. To attain God’s lap means to become like a diamond. Shrimat makes you become like diamonds. Question: What is the reason why some receive a royal status in the golden age whereas others receive the status of a servant or a subject? Answer: Those who study the knowledge of the Ocean of Knowledge very well and imbibe it, those who donate the jewels of knowledge to others and make them similar to themselves at the confluence age receive a royal status in the golden age. Those who are careless or create chaos by coming into body consciousness claim the status of a subject. Those who do not pay attention to this study become servants. Om Shanti Those who are becoming like diamonds from shells, who are My long-lost and now-found effort-making children, know that they can be attacked by storms of Maya. You children make effort to become like diamonds from shells. However, by not following shrimat, you are attacked again by the storms of Maya and your lights are blown out. There is also a song about this. You children have now come to know that you used to be worthy-of-worship deities. The soul hears this from the most beloved, unlimited Father. It is the praise of Him being God, the Highest on High, that is sung. Everyone in the world remembers Him because there is definitely nothing but sorrow in this world. Don’t think that all human beings are senseless. They understand that ancient Bharat was very elevated and that there were no other lands or religions at that time. This is why Bharat is called the ancient land. They understand this much, but how and when that happened or how and when Bharat will become like a diamond again, they do not know. You children are now sitting personally in front of Baba and those who live abroad or at other centres also listen. The unlimited Father, who makes you like a diamond, says: This is your last Godly birth in which God sits here and teaches you to become like diamonds. Therefore, you should have so much regard for such a Father. Regard is given to the true Father, the true Teacher and the Satguru. The Father says: I am the One who gives you children happiness. I come at this time and give you children instructions to make you happy. The shrimat that God gave was later written by human beings in the Gita. However, it was not written accurately. He is now making you the highest on high, like diamonds. Although all souls of the whole world are children of the Father, it is only you who go into the golden age. There is also Brahma, the Father of Humanity. At this time, you are called the grandchildren of Shiv Baba and you are also called the great, great-grandchildren. Expansion continues to take place. In fact, I, the Father, am the Creator of everyone. If you ask people who created you, they would reply: Allah or Khuda (God). They do understand this much, but how He creates them or how the population increases, they don’t know any of that. It is you who understand that the creation is very small in the golden age. There must surely be the Creator who creates the new world. He enables you to attain a deity status in the new world, and so He must definitely have the old world destroyed. No one knows this. People write many books and scriptures. They think that those are scriptures of philosophy. Knowledge is called philosophy. However, no one knows that only the one Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. You attain knowledge from that One and become like diamonds. To attain God’s lap means to have a birth like a diamond. The Father who makes everyone become like diamonds is making us like diamonds. His greatness is remembered. There is no question of greatness in the golden age. This thought doesn’t even arise there. You now understand that, at this time, you are neither shudras nor deities, but that you are Brahmins. You are called spinners of the discus of self-realisation. You become spinners of the discus of self-realisation here and you then go and rule in the kingdom of the clan of Vishnu. It is here that you have to become spinners of the discus of self-realisation and like a lotus flower. Here, there is effort whereas there, you have the reward. No one in the world knows about these things. The Father says: Maya has made you into those with degraded intellects. You were deities, like diamonds. At first, you didn’t know this. There are many opinions in the world; some say one thing and others say something else. Some say that when human beings die, they are reborn. Others say that whatever your thoughts are, that is what you become. There are people with many different opinions. You are the ones who follow shrimat. By following shrimat, your ideas become elevated. Only you understand these aspects; not everyone can understand them. Although someone may be a millionaire or billionaire, he finds it difficult to accept this knowledge. Hardly any come because the wealthy have a lot of complications. It is fixed in the drama that only the poor come into God’s lap. This chariot belongs to that One. Bap and Dada are both together. Only you know this. Incorporeal God does not have a body of His own, and so He surely has to take a body on loan, because only then can God speak. There cannot be the versions of God Krishna. People would instantly recognise him. This One is incorporeal which is why no one knows Him. Nowadays, many human beings change their clothes and dress up as Krishna in order to earn money. They have all become followers of Maya. You have now become the followers of God. Some become 100% followers of God and seek asylum with Him, whereas everyone else is trapped in the asylum of Maya, Ravan. Baba has explained that the people of Bharat in particular are all in the cottage of sorrow. The whole world is Lanka. People have only written limited things in the scriptures. The unlimited Father speaks unlimited things. You understand that you are now in the lap of God and that you will become deities, masters of the new world. Maya does not exist there. Those who belong to the sun dynasty and the moon dynasty are very wealthy. Then, when you go into the merchant clan, you build temples of gold and diamonds. The first ones to build such temples of gold and diamonds used to live in such palaces. This is why it is remembered that Bharat was like a diamond. Now it is like a shell. This is an impure world. Bharat was the pure land of truth. Bharat is now an impure land; we couldn’t call Bharat pure now. We are now becoming pure. That world was completely viceless. Krishna’s praise is very high. People swing an image of him in a swing, but they do not know his biography. You understand that it is now the iron age. Bharat was the golden age. It is only the people of Bharat who can take 84 births. People accept these things when you explain to them properly. The people of Bharat become like diamonds by going into God’s lap. As are the king and queen, so the subjects. The subjects, too, are said to be like diamonds. Now kings, queens and subjects are like shells. The Father who makes you become like diamonds has now come, and so you should make full effort. You have to have full yoga with the Father who makes you into diamonds. You understand that you are being made into the masters of Paradise by Shiv Baba. Everything depends on how you study. Everyone should have the thought of studying. Even while doing work at home, consider yourselves to be students of God, the Father. Your study is very easy. It is necessary to come and listen even for a moment. Such very good points continue to emerge so that someone can be struck by an arrow at any time. Therefore, no matter what happens, you definitely have to listen to the murli. If you cannot listen to the murli, you should study this knowledge in whatever way you can; arrangements can be made. First, you should spend a week understanding these things very well. After that, you have to study in order to understand the new points. Baba continues to teach you. Many points continue to emerge. You should also write on the board outside: Brothers and sisters, come in for Yoga. We can enable you to become like diamonds through this easy knowledge and easy Raja Yoga. You have all the posters. It is very easy to explain them, just as little children are shown toys and taught, “This is an elephant, this is what an elephant does and this is a camel etc.” Human beings don’t know the Supreme Soul or what He does. If they don’t know what tasks He performs, He then has no importance left. Therefore, you have to use the pictures to explain to them: This is the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. He is the One who makes everyone become like a diamond. We receive our inheritance from Him through Brahma. Shiv Baba teaches Brahma Kumars and Kumaris and makes them into deities. It is because you have been taught, that you can explain to others. Previously, you did not know that the Supreme Father, the Supreme Soul, comes and teaches. The explanation of how Bharat was like a diamond and how it has now become like a shell is very easy. Therefore, why do you chase after shells? All of that wealth etc. is going to turn to dust. You should now earn a true income for the land of truth. If you don’t earn a full income, you will become ordinary subjects. You will become servants of the subjects. You belong to the Father and you then divorce Him! Therefore, Baba explains: Children, you can ask for a murli and read it at home. You will continue to receive murlis. Wherever you are, you definitely have to study the murli. Study and teach others. You can do service even while living abroad. You have to give the Father’s introduction. It is only at the end that your influence will spread. They will understand that ancient Bharat used to be heaven. A great deal of wealth was looted from here. In the golden age, you become the living masters of the world, that is, you rule the kingdom. Then, on the path of devotion, you keep non-living images in a little corner of a room and make a memorial. Equipment for worship is also needed. You have now come to know everything about how you were worthy of worship and how you have now become worshippers. How long does it take us to become worthy of worship from worshippers? How were the temples created? We are the ones who got those temples built. We created non-living images of ourselves and started worshipping ourselves. These are such wonderful things! The Father explains: Children, now don’t be careless! It is by becoming soul conscious that you will become like diamonds. Don’t become body conscious. By becoming body conscious, you create a great deal of chaos and you not only destroy yourselves, but you also destroy others. By studying with just the one Ocean of Knowledge, some claim the peacock throne, whereas others become maids and servants. Just look, Lakshmi and Narayan were the emperors of heaven. They are praised and worshipped a great deal. Temples are built to them. You understand that you are now once again becoming Lakshmi and Narayan of the sun dynasty. Then, from the sun dynasty, you will go into the moon dynasty. To claim a kingdom means to attain such a high status. You have to make such effort and inspire others. If you do not know how to inspire others, it means you have not learnt to make effort yourself. You cannot become a king or queen if you cannot make others similar to yourself. You have to donate the imperishable jewels of knowledge. Very few have this intoxication. By remaining soul conscious, your degree of happiness will rise. Just look how much concern Mama and Baba have. The Father feels compassion when a daughter is being beaten; he thinks about how she can be saved. There is a great deal of chaos created when asylum is given. Bharat receives a lottery from the Almighty Authority Shiv Baba, in order to become like a diamond. You are now listening personally and you enjoy it. Baba continues to inject a dose into you. You children should follow shrimat at every step. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Definitely have regard for the Father, the Teacher and the Satguru, who gives you happiness. To follow His instructions means to have regard for Him. 2. While doing your housework consider yourself to be a student of God, the Father. Pay full attention to this study. Never miss a murli. Earn a true income for the land of truth. Blessing: May you become an embodiment of success and receive everyone’s blessings by keeping a balance between remembrance and service. The children who serve while staying in remembrance do not need to work as hard and yet they receive greater success because, by keeping a balance of the two, you receive blessings. The souls whom you serve while staying in remembrance give blessings of “Wah, Wah!” from their minds: Wah elevated soul! Wah soul who has changed my life. Those who constantly receive such blessings have natural happiness without having to work hard for it and easily they experience success while moving forward. Slogan: Those who have coolness in their lives are able to conquer the burning hearts of others. #english #Murli #bkmurlitoday #brahmakumaris

  • 26 Aug 2018 BK murli today in English

    26/08/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 31/12/83 If the hand of shrimat is in your hands, you will continue to move with your hand in His hand throughout the whole age. Today, the Beloved has come to the shores of the ocean, that is, to the shore of Madhuban to celebrate a sweet meeting with His spiritual lovers. All of you have come from so far away to celebrate a meeting. Why? You will not find such a wonderful Beloved throughout the whole cycle. There is just the one Beloved, but how many lovers are there? The one Beloved has so many lovers. So, today, Baba has especially come to the gathering of lovers. You celebrate in a gathering; you don't have to say anything. So, today, Baba has not come to speak knowledge to you; He has come to meet you and to celebrate a meeting. The double foreign children have especially come to celebrate today. You have come with the thought of celebrating the New Year. In this New Year, BapDada is also giving you greetings filled with love and co-operation. The confluence age is the new age. The future golden age is the reward of the present new age and new life. For Brahmins, it is now the new and elevated age. The new age, the new world, the new days and new nights began for you the moment you became Brahmins. Every moment of this new age and new life is worth multimillions; it is worth diamonds. In the golden age you won't sing the song: This day feels like a new day, this night feels like a new night. This refers to the present time. From the beginning, with which song did BapDada awaken you? Do you remember that song? Awaken o brides, awaken! Why should you awaken? Because the new age has come. This is the song of your childhood, is it not? You have now created new songs. The original song that the Father played was that one, was it not? So, when is it the new age? Now! Beside the old, this is new, is it not? Your old world and old life have now changed. You have come into a new life. You were unconscious. Were you aware of who you are? So you were unconscious, were you not? From being unconscious, you became conscious. You experienced a new life, did you not? As soon as you opened your eyes, you saw your new relationship and new world, did you not? So, greetings for the New Age and the New Year, in this new age.In the world outside too, people say to one another "Happy New Year!" In fact, they are never ever happy, but they say, "Happy New Year!" Now, not only will all of you genuinely say "Happy New Year!" but you will say "Happy New Age!" The whole age is an age of happiness. When you say "Happy New Year", what do you do when you give these greetings? The custom abroad is to first of all shake hands. How does BapDada shake hands with you? They shake hands physically for just a second. However, BapDada shakes hands with you throughout the whole age, that is, He gives you His hand of one elevated direction (shrimat), shakes hands with you and takes you back with Him at the end. You always have the hand of shrimat with you and this is why you continue to move along with your hand in His hand throughout the whole age. To walk hand-in-hand is also a sign of love and co-operation. Whenever someone walking gets tired, another person holds his hand and they walk together. The spiritual Beloved never lets go of the hands of the lovers. His promise is that you will have His hand and company till the end. All of you lovers have caught hold of His hand very firmly, have you not? You are not holding it loosely, are you? You are not going to let go of it, are you? Those who let go of it and then hold onto it again, raise your hands! Is there anyone here who sometimes holds it and then sometimes lets go of it?This is their speciality; they are not those who hide anything. They are those who speak honestly and, just by them speaking about it honestly, half the obstacle is thereby removed. However, for how long will you continue with a weak bargain? In the old year, you are going to finish all the customs and systems of the past, are you not? Or, will the same customs and systems continue in the New Year? Whatever has happened up to now, put a full stop to that and, from now on, apply the tilak of awareness of constantly holding His hand and keeping His company. On an important day or a day of happiness, they especially apply a tilak as a symbol of happiness, and fortune. It is also the symbol of being wed. On the day of a special bhatthi of remembrance, you apply a tilak of awareness, do you not? Why do you apply it? Why do you especially apply a tilak on the day of a bhatthi? You apply a tilak on that day as a symbol of the determination to remain the embodiment of an easy and elevated yogi throughout the whole day. So, today, those who are a little weak, with your determined thoughts, put a tilak as a full stop and secondly, apply a tilak of your form of power. Do you know how to put a full-stop? Do the Pandavas know how to apply a full stop? Achcha, do the Shaktis know how to apply a full stop? An indelible full stop? What did all of you promise this morning? You are going to celebrate a ceremony, are you not? (We are going to have a marriage ceremony.) Are you not already married? Have you not produced any children yet? You are already married, but you have come to celebrate your wedding anniversary. Those who are not yet married, raise your hands! No matter how much mischief you get up to, the Beloved is not going to leave you alone, because He knows that, if He lets go of you, where would you go? Nowadays, the custom abroad is that they leave the family and become hippies. So, do you want to be a hippy? Do you want to become ever happy or a hippy? Look at their condition; you can't even bear to look at them. All of you are sovereigns. This is why BapDada knows that you sometimes become mischievous. However, BapDada has promised you that He will take you back with Him and so He cannot break His promise. This is why you have to go with Him. Achcha.What newness will you bring about in the New Year? You will do something new, will you not? Have you made any plans? Have the instrument teachers made any plans? You will reveal in this land who the God of the Gita is, but what will you do abroad? To put into a practical form the things that are still missing is very good. According to the time, everything is becoming practical. With this aspect, you will beat the drums in Bharat. You will awaken the religious leaders and also create a lot of upheaval. When someone has woken up a little and says "This is very good" and goes back to sleep, then, when they don't wake up from sleep again, you pour very cold water on them. So by especially pouring very cold water on the people of Bharat, they will awaken. Achcha. So what newness will you bring about this year?In the world outside, wherever there is an upheaval, you have to hoist at that place the flag of a constantly unshakeable stage of happiness. The Government may be in upheaval, but let the incognito jewels of God constantly keep flying the flag of being complete and unshakeable. Let the Government's attention also be drawn to the unique incognito souls in this country who are completely unique and lovely to the whole world. Make those who consider themselves to be poor become full to overflowing with imperishable wealth, and give them the experience of being the most overflowing souls who are constantly multimillionaires. Spread such a wave that they forget the sorrow of their poverty. Let whoever comes here feel that they have become overflowing with limitless treasures and also experience that there is another type of wealth - that with this wealth, physical wealth will automatically come close to you. It doesn't cause you sorrow. Achcha. So, what newness will you bring about abroad in the New Year? Centres continue to open and will continue to be opened. Now, this year, abroad too, let there be especially be quality service in a unique way. All of you have a special quality anyway, but now all of you quality souls have to prepare a special group of even more quality souls who can become co-operative in the task of establishment. Now prepare such a group abroad from people from all around the world, so that this group can especially become instruments to serve the people of Bharat. The well-known ones who spread the sound are a different group. However, this group has to be of those who are in a relationship with you, whereas the other group is of those who are only in contact with you. This group has to be of quality and in closer relationship. You are experienced in the special transformation of life. Therefore, through your experience, enable more heir-quality souls, with even more quality, to continue to emerge. That is the group who are instruments for service and this is the group of heir-quality servers. They need to be well known and also heirs. When such a group is prepared abroad, let them go on a tour of this land. With the power of your experience, inspire all the politicians, religious leaders and all types of souls to want to have the same experience. Therefore, now prepare a group of heir quality serviceable souls who can tour around. Do you understand?The facilities to spread the sound abroad everywhere are easy. This is why the sound is spreading abroad and will continue to spread. However, the facilities to spread sound in Bharat are not so easy. You need to do personal service to awaken the people of Bharat. In that too, let it be service through your very simple experiences. People of Bharat especially will be transformed when they hear about the special experiences of transformation. People of Bharat are much more attracted when they hear the experiences of experienced people who have stories of such powerful transformation in their lives. In Bharat they have the system of listening to stories etc. Do you understand? What do the people abroad have to do? So many teachers have come, so prepare such a group and bring it here. Achcha.BapDada is giving a rosary of blessings as the special gift for the New Year. When a ceremony takes place, you are garlanded. BapDada is giving all you lovers a gift of a rosary of blessings. "May you always remain content and with this contentment make others content. Let every thought be filled with speciality. Let every word and deed be filled with speciality. Remain constantly full of such speciality. Always have an easy nature, easy words and actions filled with easiness. Remain embodiments of such easiness. Always follow the directions of the One, have all relationships with the One, have all attainments from the One and have the easy practice of being constantly with the One. Remain constantly happy and distribute the treasures of happiness. Spread waves of happiness over everyone. In the same way, let the smile of happiness sparkle on your face. Always remain cheerful in this way. Always stay in remembrance and make progress. Always keep the rosary of blessings with you. Do you understand? This is the gift for the New Year. Achcha.To those who constantly have all blessings, to the elevated souls who are immortal with their hands in His hand and are in His company, to those who bring the speciality of newness in every thought in their practical lives, to such special souls, immortal love and remembrance for the New Year of the New Age; love, remembrance and namaste for the flying stage.Personal Meetings:Do you constantly consider yourselves to be charitable souls? The greatest charity of all is to give others the Father's message and make them belong to the Father. You are the charitable souls who perform such elevated actions because a charitable soul at this time becomes a soul worthy of worship for all time. Only a charitable soul becomes worthy of worship. Charity for a short time too enables you to attain fruit. That is for a temporary period whereas this is imperishable charity because you make them belong to the eternal Father. The fruit received from this is imperishable. You become souls worthy of worship for birth after birth. Therefore, constantly continue to perform charitable deeds whilst considering yourselves to be charitable souls. The account of sin has ended. The account of past sins has also ended, because by performing charity, the weight of charitable deeds becomes greater, and the sins therefore decrease. Continue to perform charitable deeds and the balance of charity will increase and that of sins will reduce, that is, it will end. Simply check that every thought is a charitable thought and that every word is a charitable word. There mustn't be any wasteful words. Sins will not be cut away with waste and you won’t receive the fruit of charity. Therefore, let every action, every word and every thought be of charity. Always remember that you are such elevated, charitable souls who constantly perform elevated actions. What is the work of the confluence-aged Brahmin souls? To perform charity, for the more charitable work you do, the more happiness you experience. When you give someone a message whilst simply moving along, that happiness lasts for so long. So charitable deeds always increase your treasures of happiness, whereas sinful deeds make you lose your happiness. If your happiness vanishes, then understand that even if you have not committed a big sin, a small sin has definitely been committed. To become body conscious is also a sin, because when you don't remember the Father, that would definitely be sin, would it not? Therefore, may you be a constantly charitable soul. Achcha.Midnight greetings to all the children:To all the loving long-lost and now-found constantly serviceable children, greetings for new zeal and a new life filled with new enthusiasm and for the New Year. The confluence age is the New Age in which every moment is new. Every thought brings newest zeal and enthusiasm. In such an age, BapDada constantly gives you congratulations for the New Age. Nevertheless, He is giving special love and remembrance on the special day, so that you too always make new service plans for yourself and put them into a practical form. Also continue to inspire others with your new life. BapDada received letters of love and remembrance and greetings cards for the New Year from all the residents of London and all those abroad. He also received several gifts. In such a New Age, BapDada is especially giving greetings filled with blessings for the New Year to the children who perform elevated actions and who create the New Age. All of you are doing very good service with love and effort. May you always remain busy in service and, through your service, enable others to have the right to receive the inheritance from the Father. Achcha.To all the children in this land and abroad, special good wishes over and over again filled with love and remembrance. Achcha. Blessing: May you be constantly co-operative and accumulate everything by using what still remains of your body, mind and wealth for the Godly task. Each one’s finger has been shown in the memorial of lifting the Goverdhan mountain. This is a sign of your co-operation. In the picture of the memorial, they have portrayed the Father’s company and also service. You children are now co-operating with BapDada and this is why the memorial has been created. However much of your body, mind and wealth you used on the path of devotion, 99% of that was wasted. Apply the remaining one per cent for God’s task with a true heart and you will once again accumulate multi-million fold. Slogan: Those who are humble automatically receive respect from everyone. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday

  • BK murli today in Hindi 2 Aug 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma kumaris murli today in Hindi - BapDada- madhuban 02-08-2018 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन" मीठे बच्चे - बाप का बिन्दी स्वरूप है, उसे यथार्थ पहचानकर याद करो यही समझदारी है" प्रश्न: बेहद की दृष्टि से स्वप्न का अर्थ क्या है? इस संसार को स्वप्नवत संसार क्यों कहा गया है? उत्तर: स्वप्न अर्थात् जो बात बीत गई। तुम अभी जानते हो यह सारा संसार अभी स्वप्नवत् है अर्थात् सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक सब कुछ बीत चुका है तुम्हें अभी सेकेण्ड में इस स्वप्न-वत् संसार की स्मृति आ गई। तुम सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त, मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल-वतन को जानकर मास्टर भगवान् बन गये हो। गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे..... ओम् शान्ति।शिवबाबा अपने मीठे-मीठे बच्चों, सिकीलधे सालिग्रामों को बैठ समझाते हैं। सालिग्राम ही शिवबाबा के बच्चे ठहरे ना। बच्चे जानते हैं कि हमको वह पढ़ाते हैं, जिनको रिंचक भी कोई जानते नहीं हैं। शिव के मन्दिर में जाते हैं परन्तु वहाँ तो इतना बड़ा शिवलिंग देखते हैं। यह थोड़ेही समझते हैं कि हमारा बाबा बिन्दी है। जो बच्चे शिवबाबा को इतना बड़ा समझ याद करते हैं वा करते होंगे - वह भी भोले हैं क्योंकि वह भी रांग है। बाप समझाते हैं कि मैं बिन्दी हूँ, अब बिन्दी को कोई क्या समझ सके। भल कोई कहते हैं अखण्ड ज्योति स्वरूप है, फलाना है परन्तु नहीं, वह है बिन्दी। उनको याद करना बड़ा मुश्किल है। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। भक्ति मार्ग में आदत पड़ी हुई है शिवलिंग पर फूल चढ़ाने वा पूजा करने की तो वह याद रहता है। परन्तु यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं कि हमारा बाबा बिन्दी रूप है। सारे ड्रामा में उनका जो पार्ट है वह बजाते हैं। बिन्दी की बैठ महिमा करेंगे क्या कि सुख का सागर है, शान्ति का सागर है....। कितना छोटा बिन्दी रूप है।बच्चे पूछते हैं किसको ध्यान में रखें? इन बातों को तो समझदार ही समझ सकें। नहीं तो वही शिव का लिंग याद आ जाता है। कृष्ण तो अच्छी रीति बुद्धि में बैठ सकता है। यह तो है बिन्दी। गीत में भी कहते हैं कि याद करो तो याद न आये फिर वह सूरत कैसी है? यह भी वन्डरफुल है, इतनी छोटी बिन्दी है! ज्ञान का डांस करते हैं। कहा जाता है - यह स्वप्नों का संसार है। बीती हुई बात को स्वप्न कहा जाता है। स्वप्नवत् संसार, जो बीत गया है वह तुम्हारी बुद्धि में आता है। सारा ब्रह्माण्ड मूलवतन, सूक्ष्मवतन, सतयुग, त्रेता, द्वापर - सारा स्वप्न हो गया। जो पास्ट हो जाता है वह स्वप्न हो गया। अब कलियुग का भी अन्त है। यह स्वप्नवत् संसार हुआ ना। वह हद के स्वप्न आते हैं। तुमको बेहद का बुद्धि में आता है। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी भी सब स्वप्न हो गया। इसको कहा जाता है स्वप्नों का संसार। इतना राज़ और कोई नहीं जानते सिवाए तुम बच्चों के। सतयुग में कितने अथाह सुख थे - वह सब पास्ट हो गये। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में आदि, मध्य, अन्त का पूरा ज्ञान है। एक बाप की ही याद रहनी चाहिए। बाप जो समझाते हैं और कोई समझा न सके। तुम्हारी बुद्धि में स्वप्नों का संसार है। यह यह पास्ट हो गया - बुद्धि जानती है ना। तुमको ऊपर से लेकर सारी नॉलेज बुद्धि में हैं - आदि से अन्त तक की। तुम अब त्रिकालदर्शी-त्रिलोकीनाथ बन गये हो। त्रिलोकीनाथ बनने से तुम जैसे भगवान् हो जाते हो। भगवान् बैठ तुमको शिक्षा देते हैं। सेकेण्ड में स्वप्न आता है ना। तो सेकेण्ड में तुमको सारा याद आना चाहिए - बीज और झाड़। बाबा भी कहते हैं - आदि, मध्य, अन्त का मेरे पास ज्ञान है इसलिए ही मुझे ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल, जानी-जाननहार कहते हैं। जानते हैं हरेक की अवस्था ऐसी ही रहेगी। एक-एक की अवस्था को हम क्या बैठ जानेंगे! जो अवस्था कल्प पहले थी, उस अवस्था में हैं। सो तो तुम भी जानते हो। पुरुषार्थ कराने के लिए कहते हैं - अच्छी रीति पुरुषार्थ करो।अभी तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। तुम जानते हो यह-यह पास्ट हो गया है - ऐसे देवतायें राज्य करते थे फिर आकर राज्य करेंगे। पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर यह याद करते रहेंगे। उनको ही स्वदर्शन चक्र कहा जाता है। शिवलिंग को याद करने में तो हिरे हुए हैं। तो समझते हैं कि बाबा ज्योर्तिलिंगम है। बिन्दी कहें तो मूँझ पड़े। वह समझते हैं आत्मा छोटी है, परमात्मा बड़ा है। अभी तुम बच्चे जानते हो - इस कलियुगी दुनिया में इस समय देखो भभका कितना है! इसको माया का भभका कहा जाता है। माया का पाम्प है। कहते हैं ना - अभी दुनिया कितनी अच्छी बन गई है। बड़े-बड़े महल बन गये हैं। अमेरिका का कितना भभका है! चीजें कितनी ऩफीस बनती हैं। हम समझते हैं कि यह तो मुलम्मे की चीजें हैं जो अभी खत्म हो जायेंगी। दिन-प्रतिदिन बड़ी-बड़ी इमारतें, डैम्स आदि ऐसे बनायेंगे, जैसे बिल्कुल नई दुनिया है। मायावी पुरुष हैं ना। आसुरी सम्‍प्रदाय का भभका है। यह सब है तिलस्म (जादू), अभी गया कि गया। बड़े-बड़े साइन्स घमन्डी जो हैं उन्हों की बुद्धि में है कि यह सब खत्म हो जायेंगे। एक-दो को कह देते हैं तुम इन्टरफियर न करो, नहीं तो सब ख़त्म हो जायेंगे। अमेरिका अपने को बलवान समझता है तो जरूर सेकेण्ड नम्बर में भी कोई होगा जो सामना करे। गाया हुआ है - दो बिल्ले लड़ते हैं। यादवों ने अपने कुल का विनाश किया, तो वह दो बिल्ले हुए ना। वही प्रैक्टिकल हो रहा है।तुम बच्चे जानते हो - आगे भी इस समय तुमने ही नॉलेज ली थी। अब भी ले रहे हो। बाप आकर सारी नॉलेज समझाते हैं। जैसे बाप की बुद्धि में है वैसे तुम बच्चों की बुद्धि में भी है। शिव कहा जाता है बिन्दी को। आत्मा में भी सारा पार्ट है। तुम्हारा है आलराउन्ड पार्ट, सतयुग से लेकर कलियुग तक। सतयुग-त्रेता में तुम जब सुख भोगते हो तो उस समय बाप का कोई पार्ट नहीं। बाप कहते हैं कि मेरे से भी तुम्हारा जास्ती पार्ट है। तुम सुख में रहते हो तो मैं निर्वाणधाम में हूँ। मेरा कोई पार्ट ही नहीं। तुमने आलराउन्ड पार्ट बजाया है तो थके भी तुम होंगे इसलिए लिखा हुआ है - चरण दबाये हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम थक गये होंगे। तुमने आधाकल्प भक्ति की, दर-दर धक्के खाये हैं। भक्ति मार्ग में भटकते-भटकते तुम थक जाते हो फिर बाप आकर उजूरा देते हैं, पुजारी से पूज्य बना देते हैं। तुम जानते हो हम सो पूज्य थे फिर पुजारी बने हैं। ऐसे नहीं कि परमात्मा आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी है। नहीं, हम ही बनते हैं।भारत ही अविनाशी खण्ड गाया जाता है। भारत है शिवबाबा की जन्मभूमि। जन्मभूमि पर ही मनुष्य कुर्बान होते हैं। कांग्रेसियों ने भी देखो, कितना माथा मारा जन्म भूमि के लिए। फॉरेनर्स को बाहर निकाल दिया। यह जन्म भूमि स्वर्ग थी। फिर 5 विकारों रूपी माया ने आकर हप किया है। हम रावण को बड़ा दुश्मन समझते हैं। यह कोई भी नहीं समझते कि बड़े ते बड़ा दुश्मन माया रावण है, जो हमारी राजाई खा गया है। यह जैसे कि गुप्त चूहे मुआफिक फूँक देता और काटता रहता है, जो किसको पता भी नहीं पड़ रहा है। काटते-काटते एकदम देवाला मार दिया है। किसको पता नहीं है, हमारा राज्य भाग्य छीन लिया है। कोई को पता नहीं है हमारा दुश्मन कौन है? हम कंगाल कैसे बने? माया बड़ा चूहा है - आधाकल्प खाते-खाते भारत को कौड़ी जैसा बना दिया है। बड़ा ही बलवान है। अभी फिर तुम चुपके से उस पर जीत पा रहे हो। तुम जानते हो कि हम कैसे गुप्त रीति राज्य ले लेते हैं। जैसे गुप्त रीति गँवाया है फिर लेते भी गुप्त रीति से हैं। कोई भी नहीं जानते - अभी फिर इस पर जीत पानी है। कितने महीन राज़ हैं! बाबा की मदद से हम फिर से राज्य-भाग्य लेते हैं। कोई हाथ-पांव नहीं चलाते हैं। गुप्त रीति से हम अपना बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं, जो आधाकल्प रहेगा। वह चूहा माया तो आहिस्ते-आहिस्ते खाता है और तुम अभी राज्य एक ही बार ले लेते हो 21 जन्म के लिए। 84 जन्मों का राज़ भी तुमको समझाया गया है। इतने-इतने जन्म लिए हैं। तुम जानते हो सतयुग में हमारी आयु बहुत बड़ी थी। फिर अपवित्र भोगी बनते हैं तो द्वापर-कलियुग में 63 जन्म लेते हैं। यह बाबा बैठ समझाते हैं। कल्प-कल्प माया ऐसे राज्य लेती है फिर हम उनसे लेते हैं। गीत में गाते तो हैं - कौन देश से आया, कौन देश में है जाना.......? परन्तु समझते नहीं हैं। तुम तो जानते हो आत्मा किस देश से आई है? क्यों आई है? सारा चक्र बुद्धि में है। सारे ड्रामा में हीरो-हीरोइन पार्ट है शिवबाबा का। शिवबाबा के साथ पार्टधारी कौन-कौन हैं? पहले-पहले जन्म देते हैं - ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को फिर तुम बच्चों को। तुम बाप के साथ मददगार ठहरे। बाप अपना पार्ट बजाकर अपने धाम चले जाते हैं और तुम मददगारों को भी साथ में मुक्तिधाम में ले जाते हैं। तुम मुक्तिधाम जाकर फिर जीवनमुक्ति में चले जायेंगे। कितना अच्छी रीति बुद्धि में रखना चाहिए! तो यह है सपनों का संसार जो बीत गया।तुम जानते हो कि सतयुग-त्रेता में देवी-देवतायें रहते थे, अभी नहीं हैं। गीत का कितना गुह्य राज़ है - कैसे सपनों का संसार बुद्धि में लेकर बैठे हैं? सारा चक्र कैसे फिरता है? जो नॉलेज बाबा में है वह हमारे में भी है। बेहद के बाप में ही यह सारी बेहद की नॉलेज हैं। बच्चे जानते हैं - यह भी स्वप्न हो जायेगा। यह बड़ी समझने और समझाने की बातें हैं। सतयुग-त्रेता में यह बातें किसकी बुद्धि में होती नहीं। गुह्य प्वाइन्ट्स मिलती रहती हैं। बुद्धि में सारा चक्र रहना चाहिए। भक्ति मार्ग क्या है, कब से शुरू होता है, इससे कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ। भक्ति करते-करते नुकसान में ही आ गये हैं। अब फिर से तुम कौड़ी से हीरे जैसा बनते हो। माया कौड़ी मिसल बना देती है। बाबा ज्ञान डान्स सिखलाते हैं। फिर वहाँ जाकर तुम डान्स करेंगे। यह बातें बड़ी वन्डरफुल जानने लायक हैं। यहाँ की रस्म-रिवाज वहाँ बिल्कुल नहीं होती है। वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड। वहाँ माया का नाम-निशान नहीं होता। पहले तुम बाबा को याद करो, वर्सा तो ले लो, बाकी वहाँ की रस्म-रिवाज जो होगी, वही चलेगी। वहाँ की रस्म-रिवाज सब नई होगी। वहाँ यह उत्सव आदि होंगे नहीं। यहाँ गमी (उदासी) रहती है, तब शादमाना (उत्साह दिलाने वाले उत्सव) मनाते हैं। वहाँ तो नित्य है ही शादमाना। रोने की दरकार नहीं रहती। उत्सव मनाने की बात नहीं रहती। सदैव हमारे बड़े दिन होंगे। वहाँ शादी भी धूमधाम से होती है, दहेज मिलता है, दास-दासियाँ मिलती हैं। बाकी त्योहार आदि की दरकार नहीं रहती। यह हैं ही संगम के त्योहार, जो भक्ति मार्ग में मनाये जाते हैं। वहाँ तो सदैव खुशियाँ ही खुशियाँ हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1. स्वदर्शन चक्र फिराते माया पर गुप्त रीति विजय प्राप्त करनी है। बाप समान नॉलेजफुल होकर रहना है।बाप जो है, जैसा है, उसे यथार्थ बिन्दी रूप में जानकर याद करना है। 2. बिन्दू बन, बिन्दू बाप की याद में रहना है। भोला नहीं बनना है। वरदान: अपनी सर्व विशेषताओं को कार्य में लगाकर उनका विस्तार करने वाले सिद्धि स्वरूप भव l जितना-जितना अपनी विशेषताओं को मन्सा सेवा वा वाणी और कर्म की सेवा में लगायेंगे तो वही विशेषता विस्तार को पाती जायेगी। सेवा में लगाना अर्थात् एक बीज से अनेक फल प्रगट करना। इस श्रेष्ठ जीवन में जो जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में विशेषतायें मिली हैं उनको सिर्फ बीज रूप में नहीं रखो, सेवा की धरनी में डालो तो फल स्वरूप अर्थात् सिद्धि स्वरूप का अनुभव करेंगे। स्लोगन: विस्तार को न देख सार को देखो और स्वयं में समा लो - यही तीव्र पुरुषार्थ है। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi

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