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- 8 May 2018 BK murli today in Hindi
Brahma Kumaris murli today in Hindi for 8 May 2018 - BapDada - Madhuban - "मीठे बच्चे - यह ज्ञान बड़े मजे का है, तुम हरेक अपने लिए कमाई करते हो। तुम्हें और किसी का भी ख्याल नहीं करना है, अपनी इस देह को भी भूल कमाई में लग जाना है।" प्रश्नः अविनाशी कमाई करने की विधि क्या है? इस कमाई से वंचित कौन रह जाता है? उत्तर:- यह अविनाशी कमाई करने के लिए रात को वा अमृतवेले जागकर बाप को याद करते रहो, विचार सागर मंथन करो। कमाई में कभी उबासी या नींद नहीं आती। तुम चलते-फिरते भी बाप की याद में रहो तो हर सेकेण्ड कमाई है। तुम्हें इन्डिपेन्डेंट अपने लिए कमाई करनी है। जो उस विनाशी कमाई के लोभ में ज्यादा जाते, वह इस कमाई से वंचित हो जाते हैं। गीत:- जाग सजनियाँ जाग... ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। बुद्धि में बैठा। साजन कहो या बाप कहो, उनको पतियों का पति क्यों कहा जाता है? अंग्रेजी में ब्राइड्स भी कहते हैं। साजन को ब्राइडग्रुम कहते हैं। वह है निराकारी साजन। यहाँ साकारी साजन की कोई बात नहीं। निराकारी साजन को भी सजनी जरूर चाहिए। नहीं तो निराकार साजन भी सजनी बिगर रचना कैसे रचे। बच्चे जानते हैं कि वह निराकार किस सजनी द्वारा रचना रचते हैं। वह परमपिता परमात्मा इसमें प्रवेश कर सभी को जगा रहे हैं। बरोबर नवयुग अर्थात् सतयुग सचखण्ड में जाने लिए हम यहाँ आये हैं। पुराना युग कहा जाता है कलियुग को। तो तुम बच्चों को अनुभव हो रहा है हम यहाँ आये हैं ज्ञान सागर के पास रिफ्रेश होने के लिए, सम्मुख धारणा के लिए। बच्चों को सम्मुख जितना मजा आता है उतना सेन्टर्स पर नहीं। तुम बच्चे सम्मुख हो और सेन्टर्स वाले दूर हैं। यह बच्चों को समझाया है कि हर एक आत्मा रथी है और परमपिता परमात्मा इस तन में रथी है। उनको कहा जाता है परमपिता परम आत्मा। है तो आत्मा ना। वह सदैव परे ते परे रहने वाला है। भगवान को जब याद करते हैं तो नज़र जरूर ऊपर ही जायेगी। ओ परमपिता परमात्मा रहम करो। सभी को पता है कि वह ऊपर रहने वाला है। बाप अपने मुकरर किये हुए रथ में आये हैं। कहते हैं मैं कल्प-कल्प इसमें रथी हूँ क्योंकि इस ब्रह्मा रथ द्वारा ब्राह्मण कुल स्थापन करता हूँ। अगर कृष्ण के तन में आये तो फिर दैवी कुल हो जाए। सतयुग हो जाये। कृष्ण का शरीर सतयुग में होता है। बच्चे समझते हैं हमको बेहद का बाप बैठ तीनों कालों का ज्ञान दे त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दे रहे हैं। जो घड़ी बीत चुकी वह हू-ब-हू रिपीट होगी। जैसे लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर रिपीट होगा। क्राइस्ट को भी अपना पार्ट रिपीट करना है। फिर उस ही नाम, रूप, देश, काल में आने वाले हैं। बाप कहते हैं - मैं भी अपना निराकार रूप बदलकर साकार रूप में आया हूँ। जरूर मनुष्य तन में आयेगा तब तो सुनायेगा। शास्त्रों में तो कच्छ-मच्छ अवतार लिख दिया है। सर्वव्यापी के ज्ञान से समझते हैं कि वह सबमें प्रवेश करता है। अब बाप स्वयं कहते हैं - सजनियाँ, मैं आया हूँ तुमको जगाने, नई दुनिया स्थापन करने। जो सतयुग था वह अब फिर रिपीट होगा। अब नवयुग आने वाला है। दुनिया समझती है नवयुग आने में 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं। यह मनुष्यों की बड़ी भूल है। अभी बच्चे निश्चयबुद्धि हो गये हैं। दुनिया वालों के लिए जरूर नया ज्ञान है। सतयुग में देवी-देवता होंगे और धर्मों का पता भी नहीं रहेगा। अभी और सब पुराने धर्म हैं। नया देवी-देवता धर्म गुम हो गया है फिर अब उस नये धर्म की स्थापना होती है। देवताओं के कुछ न कुछ चित्र हैं। समझते हैं सतयुग में बरोबर राज्य करते थे। वहाँ तुमको यह पता नहीं रहेगा कि लक्ष्मी-नारायण के बाद कोई राम का राज्य आने वाला है। जो कुछ होता जायेगा तुम देखते जायेंगे। फिर कहेंगे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड.. पीछे वालों को यह मालूम रहेगा कि फर्स्ट, सेकेण्ड एडवर्ड होकर गये हैं। आगे फिर कब होंगे - यह नहीं जानेंगे। ड्रामा का पार्ट इमर्ज होता रहेगा। ड्रामा की नॉलेज बाबा ही समझाते हैं। वह भक्ति मार्ग की तीर्थ यात्रा बिल्कुल ही न्यारी है। यह है ज्ञान - बाप और वर्से को याद करना। अभी तुम जानते हो सतयुग में इतना समय राज्य होगा फिर त्रेता में राम-सीता राज्य करेंगे। बच्चों को सीन-सीनरियाँ देखने में आती हैं। तुमने 84 जन्म पूरे किये - यह बुद्धि में है। यह है नई नॉलेज। बाप कहते हैं मैं कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। इस संगम पर परमपिता परमात्मा रथी बना है, हम रथी आत्मा को वापिस ले जाने। हम सब रथी हैं। अपने को आत्मा समझना है। तुम बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। हम आत्माओं ने 84 जन्म का पार्ट बजाया। अब बाबा आया है - हमको सारा राज़ समझाते हैं। पतित से आप समान पावन बनाते हैं। यह बेहद का एक ही बाप है जो बच्चों को आप समान बनाते हैं। लौकिक बाप कभी बच्चों को आप समान नहीं बनाते हैं। एक ही बाप के बच्चे कोई कारपेन्टर होंगे तो कोई सर्जन, कोई इन्जीनियर होंगे। यहाँ ऐसा नहीं है। यहाँ तुम सभी मनुष्य से देवता बनते हो। तुम बैरिस्टर, सर्जन आदि नहीं बनते हो। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं, जिससे हम पढ़कर सो देवता बनते हैं। ऐसा स्कूल कहाँ भी नहीं देखा होगा, जो सब कहें हम सो देवता पद पाने लिए पढ़ रहे हैं। दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती रहती है। फिर मकान भी वृद्धि को पाते जायेंगे। बच्चों का प्रभाव निकलेगा तो बहुत बुलायेंगे। यहाँ आकर हमको मनुष्य से देवता बनाने का राजयोग सिखाओ। बहुत वृद्धि होती जायेगी। बाप फिर भी बच्चों को कहते हैं - रात को अथवा अमृतवेले जागो, इसमें बहुत कमाई है। मनुष्य जो बहुत कमाई करने के शौकीन होते हैं उनको रात को भी ग्राहक मिल जाते हैं तो जागते हैं। मनुष्य को सम्पत्ति 24 घण्टे मिल जाए तो अपनी नींद भी फिटा देते हैं। कमाई में फिर नींद नहीं आती। कमाई नहीं होती तो फिर उबासी, नींद आ जाती है। कमाई में बहुत खुशी होती है। पैसे बढ़ाने का ही मनुष्य प्रयत्न करते हैं कि हम सुखी रहें। बाकी पेट तो एक पाव रोटी ही मांगता है। तुम बच्चों को इस दुनिया में ममत्व नहीं रखना है। ज्यादा लोभ में नहीं जाना है। उसमें भी बुद्धि-योग भागता है, फिर अविनाशी कमाई से वंचित हो जाते हैं। नहीं तो इस कमाई का बहुत ख्याल रखना है। तुम्हारी कमाई सेकेण्ड बाई सेकेण्ड है। फिर अगर चलते-फिरते बाप को याद करो तो बहुत भारी कमाई है। और कमाईयाँ ऐसे चलते-फिरते होती हैं क्या? यह तो वन्डरफुल कमाई है। इन्डिपेन्डेन्ट अपने लिए कमाई करते हो। लौकिक बाप को बच्चों का ख्याल रहता है - बच्चे सुखी रहें, खाते रहें। इसमें बाल-बच्चों का ख्याल नहीं रहता। अपने लिए 21 जन्मों की कमाई करें। कैसा मज़े का ज्ञान है! हरेक बच्चे को अपने लिए कमाई करनी है। बाल-बच्चे, मित्र-सम्बन्धियों को भी याद नहीं करना है। अपनी देह को भी याद नहीं करना है। बाबा को भले इस देह में आना पड़ता है परन्तु है तो देही-अभिमानी। इस समय देह में आते हैं, आकर तुम आत्माओं को नॉलेज देते हैं अथवा सहज कमाई का रास्ता बताते हैं। अगर तुम प्रैक्टिस करते रहो तो बहुत कमाई कर सकते हो। बाबा भी प्रैक्टिस करते हैं बाप को याद करें तो आदत पड़ जाती है। अपने को भूल शिवबाबा याद रहता है क्योंकि शिवबाबा की इसमें प्रवेशता है। यह बाबा समझता है मैं ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ। लौकिक बाप के बच्चे को रहता है ना कि हम बाप की मिलकियत के हकदार हैं। तो इस ब्रह्मा बाबा को भी रहता है कि हम ब्रह्माण्ड के मालिक हैं। बाबा की प्रवेशता है ना। तो वह नशा रहता है - हम ब्रह्माण्ड के मालिक हैं, प्रापर्टी का भी मालिक हूँ। शिवबाबा खुद तो विश्व का मालिक नहीं बनते हैं। मैं ब्रह्माण्ड का मालिक तो विश्व का भी मालिक बनता हूँ। बाबा सिर्फ ब्रह्माण्ड का मालिक है। तुम भी विश्व के मालिक बनते हो ना। राजा चाहे प्रजा - समझते हैं हम विश्व के मालिक हैं, जान गये हैं हम विश्व के मालिक हैं। यह समझने से भी खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। गाया हुआ भी है - अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोपी-वल्लभ के गोप-गोपियों से पूछो। ऐसे नहीं कि गोपी-वल्लभ से पूछो। वल्लभ बाप को कहा जाता है। वल्लभ (बाप) को तो विश्व के मालिकपने का सुख पाना नहीं है। बाप कितना ऊंचा उठाते हैं। यह (ब्रह्मा) कहते हैं मैं भी अपने को ब्रह्माण्ड का मालिक समझता हूँ। सारी दुनिया में यह कोई भी समझ नहीं सकते कि मैं ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ। ऐसे नहीं कि ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। कहाँ ब्रह्म में लीन होना, कहाँ ब्रह्माण्ड का मालिक बनना - बहुत फ़र्क है। तुम जानते हो बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। खुद बाप कहते हैं जागो सजनियाँ। मैं हर एक बात तुमको नई समझाता हूँ। क्या तुम ब्रह्माण्ड के मालिक नहीं बने थे? फिर पार्ट बजाया, अब फिर तुम ब्रह्माण्ड के मालिक बनते हो, फिर तुम विश्व के मालिक बनने वाले हो - यह याद स्थाई रखनी है। इसको कहा जाता है विचार सागर मंथन। इससे तुमको खुशी का पारा बहुत चढ़ेगा। यह तो निश्चय करना चाहिए कि यह हमारा बाप है। बाप के सिवाए ऐसी बातें कोई समझा न सके। दिल में नोट करना चाहिए। यहाँ नोट्स लेते हैं स्मृति में रखने के लिए। फिर यह काम नहीं आयेंगे। बैरिस्टर के पास बहुत किताब रहते हैं। शरीर छूटा, खलास। पता नहीं दूसरे जन्म में क्या बनेंगे। तुम बच्चों की तो एक ही पढ़ाई है। तुम जानते हो स्वयं ब्रह्माण्ड का मालिक बाप, हमको ब्रह्माण्ड और विश्व का मालिक बनाते हैं। फिर भी खुशी का पारा क्यों नहीं चढ़ता? बाबा ने समझाया है यह गीत घर में अपने को रिफ्रेश करने लिए रखने चाहिए। कोई-कोई समझते हैं ज्ञान में आने से हमको घाटा पड़ा है। घाटा-फ़ायदा तो पुरानी दुनिया में है ही। आज कोई वजीर है, किसी ने सूट किया तो खलास। सबको घाटा पड़ता रहता है। किनकी दबी रही धूल में... सबको घाटा है। सिर्फ तुम बच्चों को सदाकाल के लिए फ़ायदा है भविष्य में। सो भी 21 जन्म के लिए। बाकी सारी दुनिया है घाटे में। यह सब है रुण्य के पानी मिसल (मृगतृष्णा समान)। किसको भी मालूम नहीं यह सब मिट्टी में मिल जाना है। सब कब्रदाखिल भस्मीभूत हुए पड़े हैं। तुम यह सब कुछ जानते हो। तुम्हारे में भी जो बहुत होशियार हैं उनको मालूम है यह दुनिया जैसे भंभोर है। सब कब्रदाखिल हो जायेंगे। यादव-कौरव सब कब्रदाखिल हुए थे। बाकी पाण्डवों की विजय हुई थी। विश्व पर अर्थात् नई दुनिया पर विजय पाई क्योंकि तुम पाण्डव ईश्वर को जानते हो। उससे प्रीत रखते हो। जितना जो प्रीत रखते हैं, जितना जो याद करते हैं उतनी वह कमाई करते हैं - ऐसा कभी सुना? भारत का प्राचीन योग बहुत नामीग्रामी है। यह बाबा भी नहीं जानते थे, अब सब बातें बुद्धि में आ गई हैं। बाबा कहते हैं - सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान जो तुमको सुनाता हूँ वह सतयुग में नहीं रहेगा। वहाँ तो तुम्हारी प्रालब्ध के सुख का पार्ट जो कल्प पहले चला था वही चलेगा। यह ज्ञान बाप एक ही बार आकर देते हैं और अन्त तक देते ही रहेंगे। तुम भल कहाँ भी हो, शरीर छूटे तो शिवबाबा की याद हो, त्रिकालदर्शीपने का ज्ञान हो। ज्ञान-अमृत मुख में हो, स्वदर्शन-चक्र याद हो तब प्राण तन से निकले। कहाँ वह भक्तिमार्ग की कहावत, कहाँ यह ज्ञान की बातें। मनुष्य जब मरने पर होते हैं तो हाथ में माला देते हैं। कहते हैं राम-राम कहो तो सद्गति हो जायेगी। परन्तु राम कौन है, कहाँ है - कोई जानते नहीं। कोई राम को, कोई हनूमान को याद करते हैं। अनेकों को याद करना - इसको भक्ति कहा जाता है। अब तुम एक को ही याद करते हो - जो तुमको ज्ञान दे, तुम्हारी सद्गति करते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) स्थाई खुशी में रहने के लिए विचार सागर मंथन करना है। नशे में रहना है कि हम ब्रह्माण्ड और विश्व के मालिक बनने वाले हैं। 2) एक बाप से सच्ची प्रीत रख कमाई करनी है। हम आत्मा इस देह में रथी हैं। रथी समझ देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करना है। वरदान:- बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेवा समझ हर कार्य करने वाले सदा अथक और बन्धनमुक्त भव l प्रवृत्ति को सेवा समझकर सम्भालो, बंधन समझकर नहीं। बाप ने डायरेक्शन दिया है - योग से हिसाब-किताब चुक्तू करो। यह तो मालूम है कि वह बंधन है लेकिन घड़ी-घड़ी कहने वा सोचने से और भी कड़ा बंधन हो जाता है और अन्त घड़ी में अगर बंधन ही याद रहा तो गर्भ-जेल में जाना पड़ेगा इसलिए कभी भी अपने से तंग नहीं हो। फंसो भी नहीं और मजबूर भी न हो, खेल-खेल में हर कार्य करते चलो तो अथक भी रहेंगे और बंधनमुक्त भी बनते जायेंगे। स्लोगन:- भ्रकुटी की कुटिया में बैठकर तपस्वीमूर्त होकर रहो - यही अन्तर्मुखता है। #brahmakumaris #Hindi #bkmurlitoday
- 15 May 2018 - BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - 15 May 2018 - BapDada - Madhuban - 15-05-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - सपूत बन श्रीमत पर चल मात-पिता की आशीर्वाद ले आगे बढ़ते रहो, आशीर्वाद लेने में कभी भूल नहीं करना" प्रश्नः- बाप बच्चों को कौन सा शुभ मार्ग बतलाते हैं, जो कोई भी मनुष्य नहीं बतला सकते? उत्तर:- पतित से पावन बनने का। मुक्ति-जीवनमुक्ति प्राप्त करने का शुभ मार्ग एक बाप ही बतलाते हैं। यह मार्ग किसी को भी पता नहीं है। अगर किसी भी आत्मा को पता होता तो दु:ख आते ही आत्मा फौरन वहाँ भाग जाती। बाप ने तुम्हें मार्ग बताया - बच्चे, देह सहित सब कुछ भूल अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इससे ही पावन बनेंगे। गीत:- ले लो दुआयें माँ बाप की.... ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। अब हम मात-पिता को पतित-पावन तो कहते ही हैं। बच्चे जानते हैं कि जन्म-जन्मान्तर के पापों की गठरी उतरनी है, कैसे? सिर्फ मात-पिता को याद करने से। पुकारते शिवबाबा को ही हैं। ऊंच ते ऊंच ज्ञान बाप समझाते रहते हैं। बच्चे वर्सा लेते हैं बाप से। परन्तु जब तक एडाप्ट न करे, मुख वंशावली न बने तो बच्चे कैसे कहलावे। भक्ति मार्ग वाले तो सिर्फ गाते हैं, तुम यहाँ सम्मुख बैठे हो। बाप कहते हैं अब मैं आया हूँ तुम्हारी जन्म-जन्मान्तर की गठरी को उतारने की राय देने, श्रीमत पर चलाने। यह बाबा नहीं कहते, शिवबाबा कहते हैं - मेरे लाडले सिकीलधे बच्चे, समझते हो बरोबर पतित-पावन बाप ही पापों की गठरी उतारने का मार्ग अथवा पतित से पावन बनाने का मार्ग बताते हैं। जैसे सुभाष मार्ग नाम रखते हैं ना। यह है पतित से पावन बनने का मार्ग। बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चे, मैं तुमको मार्ग बताने आया हूँ। मनुष्य पुकारते रहते हैं - हे पतित-पावन आओ और आकर पतित से पावन बनाने का मार्ग बताओ। तुम्हें अभी वह मार्ग कौन बताते हैं? मोस्ट बिलवेड बाप। साधू आदि साधना करते हैं मुक्ति में जाने लिए। परन्तु जा नहीं सकते। जब दुनिया पतित होती है तब पावन दुनिया का मार्ग बताने बाप को आना पड़ता है। कोई भी मनुष्य मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग बता न सके। तो श्रीमत पर चलना चाहिए। सब संग तोड़ना है। सर्व धर्मानि परित्यज, मामेकम्... देह के जो भी सब धर्म हैं, सभी छोड़ अपने को आत्मा समझो। मैं फलाना हूँ, यह मेरी मिलकियत है - यह सब छोड़ अपने को आत्मा समझो और निरन्तर पुरुषार्थ करो, मेरे को याद करो। मैं शुभ मार्ग बताता हूँ। इन जैसा शुभ मार्ग कोई होता नहीं है। अब यह दु:ख का नाटक पूरा होता है। अभी भी यह दु:ख का पार्ट बजाना चाहते हो क्या? तो और ही दु:खी होंगे। यहाँ कोई भी मनुष्य सुखी नहीं है। अकाले मृत्यु आदि कितनी दु:ख की बातें हैं। कोई एक विरला बड़ी आयु वाले हैं, बाकी तो रोगी बन पड़ते हैं। बाप कहते हैं मैं गाइड बनकर आया हूँ। अब मात-पिता को याद करो। श्रीमत पर चलने से तुम्हारे ऊपर कितनी आशीर्वाद होती है जो तुम सब भाग्यशाली बन जाते हो। बाप कहते हैं तुम विश्व का मालिक बनने वाले हो। बेहद के बाप से विश्व का मालिकपना लेना कोई कम बात थोड़ेही है! पैसे के लिए कितना ठगी आदि करते हैं। यहाँ ऐसी कोई बात नहीं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सदैव के लिए निरोगी बन जायेंगे। 21 जन्म के लिए कितना भारी वर्सा देते हैं! ऐसे बाप से भक्ति मार्ग में प्रतिज्ञा करते आये हो। तुम पर कुर्बान जायेंगे, फिर आपसे स्वर्ग का वर्सा लेंगे। अब तुम जानते हो - हम अपने मोस्ट बिलवेड बाप के पास बैठे हैं। बाप निराकार, निरहंकारी गाया हुआ है। कितना ऊंच ते ऊंच बाप है। जब भक्ति पूरी होती है तब भक्ति मार्ग का फल देने लिए मैं आता हूँ। वह भी बताते हैं - मेरे सच्चे-सच्चे भक्त कौन हैं! जो पहले-पहले पूज्य थे, भगवान-भगवती थे, फिर ऊपर से नीचे आये हैं, सतो-रजो-तमो में आते-आते अब बिल्कुल ही जड़जड़ीभूत हो गये हैं। तुम जानते हो हम सो विश्व के मालिक थे। भारत की बड़ी महिमा है इसलिए सब भारत को मदद करते हैं। जानते हैं भारत पहले बहुत साहूकार था। अब गरीब हो गया है तो सबको तरस पड़ता है। भारत को बहुत गरीब समझकर मदद करते हैं। कोई बहुत साहूकार होते हैं और फिर गरीब बन पड़ते हैं तो उनको दान देने लिए सबकी दिल होती है। बाप कहते हैं भारतवासी कितने मूँझे हुए हैं। शिव जयन्ती मनाते हैं, परन्तु जानते नहीं कि शिवबाबा कब आया, क्या आकर किया। जरूर बाप वर्सा लेकर आया होगा। स्वर्ग का मालिक बनाया होगा। कहते हैं मैं बच्चों को सदा सुखी बनाकर, तख्त देकर वानप्रस्थ में चला जाता हूँ। मैं कोई तमन्ना नहीं रखता हूँ। विश्व का राज्य पाने लिए मैं मालिक नहीं बनता हूँ। ऐसे बिलवेड बाप को कैसे पकड़ना चाहिए। हाथ से पकड़ने की बात नहीं। बुद्धि से पकड़ने की बात है। सबको अपने घर गृहस्थ में भी रहना है। बच्चों की पालना भी करनी है। यह है बेहद का सन्यास। देह सहित जो कुछ है उनको छोड़ना है। यहाँ हरेक चीज़ जड़जड़ीभूत तमोप्रधान है। दु:ख देने वाली है। तत्व भी दु:ख देते हैं। बरसात न पड़ी फेमन हो जाता है। बाढ़ आ जाती है। वहाँ तो यह तत्व आदि सब तुम्हारे ऑर्डर में रहेंगे। पाँच तत्व भी तुम्हारी अवज्ञा नहीं करेंगे। अभी तुम बच्चे बाप से दुआयें ले रहे हो। दुआयें मिलेगी श्रीमत पर। बाप की श्रीमत पर मददगार बनो फिर मुझे याद करो। परन्तु रहो कमल फूल समान। बस, याद से ही तुम इस भारत को स्वर्ग बना देंगे। बाप कहते हैं तुम सिर्फ पवित्र बनो। ऐसे नहीं कि सब मनुष्य अंगुली देंगे। जो कल्प पहले श्रीमत पर बाप के मददगार बने हैं, वही बनेंगे। यह फ़खुर होना चाहिए हम परमपिता परमात्मा के राइट हैण्ड बनते हैं! राइट हैण्ड बनने से पूरा राइटियस बन जायेंगे। विजय माला में पिरो जायेंगे। है बहुत सहज। इसमें कोई हठयोग आदि नहीं कराते हैं। नाटक पूरा हुआ, 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ। अभी छी-छी कपड़ा छोड़ना है। अब मुझे याद करते-करते शान्तिधाम में आ जायेंगे। पहले वहाँ निवास करेंगे फिर तुमको सुख के सम्बन्ध में भेज देंगे। बरोबर हम आत्मायें वहाँ से आती हैं। वह स्वीट होम तो सब भूल गये हैं। मनुष्य काशी कलवट खाते हैं। समझते हैं यहाँ दु:ख है, हम जाते हैं शिव के पास। परन्तु शिवबाबा के पास पहुँच नहीं सकते। यहाँ तो तुम बच्चों को पढ़ाते हैं। तुम कमाई करते हो। पहले बाबा के बच्चे बनते हो। बाबा पढ़ाना शुरू करते हैं फिर तुमको वापिस ले जाते हैं फिर स्वर्ग में भेज देते हैं। प्रजापिता ब्रहमा तो जरूर यहाँ चाहिए ना। तो तुम समझा सकते हो - हम हैं ब्रह्माकुमार कुमारियाँ। ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा। शिवबाबा हमारा दादा है। वर्सा दादे से मिलता है। वह है स्वर्ग का रचयिता। उनसे ही स्वर्ग का वर्सा मिलना है इसलिए बाबा की मत पर चलना है। उनसे आशीर्वाद लेनी है। आज्ञाकारी बच्चे ही आशीर्वाद लेने के हकदार हैं। बाप कहते हैं कपूत नहीं लेकिन सपूत बनो। बाबा का हाथ पूरा पकड़ लो। तुमको बहुत आराम से ले जाते हैं। सब आत्माओं को पंख मिल जाते हैं। तुम जितना बाप को याद करेंगे उतना उड़ने के पंख मिलते जायेंगे। सजा खाने वाले थोड़ेही ऊंच पद पायेंगे। श्रीमत पर चलो फिर सजा के लायक नहीं बनेंगे। पास विद आनर होने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। मम्मा-बाबा के ऊपर भी जीत पानी होती है। बाप बार-बार कहते हैं - बच्चे, बाप से मुख नहीं मोड़ना। कोई सेन्टर स्थापन करते, खूब सेवायें करते, कोई फिर चलते-चलते रूठ जाते हैं, सम्पूर्ण तो कोई बने नहीं हैं। कोई न कोई खिट-खिट होती है। परन्तु कभी भी बाप को छोड़ना नहीं है। बाबा, हम आपके हैं, आपसे वर्सा लेते हैं। गृहस्थ व्यवहार को भी सम्भालना है। यह कोई वह सन्यास नहीं है। तुमने बच्चों को रचा है तो उनकी पालना भी करनी है। उनमें भी कपूत और सपूत जरूर होंगे। कपूत बच्चे सबको तंग करेंगे। बाप कहते हैं तुम सबको पारलौकिक बाप का परिचय दो। बोलो - ओ गॉड फादर कहते हो, फिर सर्वव्यापी कैसे हो सकता है? कहते ही हैं पतित-पावन, गॉड फादर... तो जरूर पतित दुनिया है और पावन दुनिया भी है। सभी आत्माओं का बाप वह एक है। अभी तुम जानते हो हम उस बाप के सामने बैठे हैं जो हमको पतित से पावन बनाकर आशीर्वाद देते हैं - चिरंजीवी रहो। वहाँ तुमको काल खा नहीं सकता। तो बाप कहते हैं श्रीमत पर चलो। सबको सुख दो। बाप आये ही हैं सबको सुखी बनाने। सुख और शान्ति दोनों वर्सा देते हैं। वहाँ तो माया ही नहीं, तो दु:ख कहाँ से आया? यहाँ तो एक दो में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। बाप आये हैं - सुखधाम-शान्तिधाम का मालिक बनाने। उसके लिए तुम पढ़ते हो। बाप ने सभी प्रबन्ध रखे हैं। है तो सब बच्चों का ही। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा सर्वेन्ट हूँ। बच्चे कहते हैं - शिव बाबा, हमारे नाम पर मकान बना लेना। अच्छा, जो हुक्म। बाप भी कहते हैं जो हुक्म बच्चों का। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ही तुम्हारे लिए बनवा रहे हैं। सब कुछ शिवबाबा ही करते हैं। बाबा ने कहा है चिट्ठी भी लिखो तो शिवबाबा केयर ऑफ ब्रह्मा। यह आदत पड़ जानी चाहिए। शिवबाबा को याद करने से कितने पाप कटते हैं। बाबा युक्तियाँ बताते रहते हैं। शिवबाबा केयर ऑफ ब्रह्मा। बहुत सहज है ना। नाम ही है सहज राजयोग और सहज ज्ञान। बाप है ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल... सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताते हैं। यह भी सेकेण्ड की बात है। अब भारतवासियों पर राहू की दशा बदलकर बृहस्पति की दशा बैठती है। बाप कहते हैं बच्चे दुआयें ले लो तो तुम्हारे पाप की गठरी उतरे। मामेकम् याद करने की प्रैक्टिस करो। उठते-बैठते, चलते-फिरते बाप कहते हैं मुझ मोस्ट बिलवेड बाप को याद करो। तुमको कैसा वर्सा देता हूँ! तो माँ-बाप से दुआयें लेने के लायक बनना चाहिए। इसने (ब्रह्मा ने) भी लौकिक बाप की बहुत दुआयें ली है। बाप की बहुत सेवा की है। पिछाड़ी में कहा काशी में निवास कराओ। अच्छा बाबा चलो। वहाँ बिठाकर नौकर-चाकर सब दिये। वहाँ ही उनकी मनोकामना पूरी हुई। बाबा की आशीर्वाद मिली ना। सबकी सर्विस की तो आशीर्वाद मिली। माँ-बाप की आशीर्वाद आगे बढ़ाती है। अभी है बेहद की बात इसलिए सपूत बच्चे बन आशीर्वाद लेनी है। तो श्रीमत पर चलते रहो और सबको मार्ग बताओ। भारतवासी स्वर्ग के मालिक बने थे। अभी बाबा आया है वर्सा देने। कहते हैं सिर्फ मुझ बाप को याद करो और किसके नाम-रूप में नहीं फँसना है। देही अभिमानी बन बाप को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। तुम मात-पिता हम बालक तेरे... अब वह मात-पिता सामने बैठे हैं। बाबा बरोबर आप कल्प पहले आये थे। कल्प-कल्प भी आप ऐसे आते हो। यह हम जानते हैं और कोई नहीं जानते हैं। तुम 84 जन्म के चक्र को जान गये हो। अभी बाप से आशीर्वाद लेने में भूल न करो। यह बड़ी जबरदस्त आशीर्वाद है। बाप तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाकर खुद निर्वाणधाम में बैठ जाते हैं। यह खुद इस सृष्टि का सुख नहीं लेते हैं। अच्छा! बाप कहते हैं विस्तार से क्या सुनाऊं। थोड़ी-सी बात सिर्फ समझ लो - तुम बाप को याद करना भूल जाते हो। गाँठ बाँध लो। मनुष्य कोई बात याद करने लिए गाँठ बाँध लेते हैं तो भूलता नहीं है। तो यह भी भूलना नहीं है। सेन्टर खोलने वालों को कितनी आशीर्वाद मिलती है! स्वर्ग के फाउण्डर को सब कितना याद करते हैं! ओ गॉड फादर, मर्सी ऑन मी। वह है सर्व का सद्गतिदाता, शान्ति दाता.....। बाप कैसे बैठ बच्चों की सेवा करते हैं। कितना ऊंच ते ऊंच बनाते हैं। कोई को भी पता नहीं पड़ता कि बाप इन्हों को क्या बनाते हैं। बाप बच्चों की सेवा में उपस्थित है, बहुत निरहंकारी है, बच्चे किस्म-किस्म के हैं तो भी कहते हैं भावी ऐसी बनी हुई है। बाप कहते हैं मेरी एक्ट हू-ब-हू कल्प पहले मुआफिक चलती है। गाँधी अथवा नेहरू भी चाहते थे कि वन ऑलमाइटी अथॉरिटी गवर्मेन्ट हो। अब यह कार्य बाप कर रहे हैं। आहिस्ते-आहिस्ते जानते जायेंगे। परन्तु टू लेट होते जायेंगे। कर्मातीत अवस्था हुई तो यह शरीर नहीं रहेगा। पिछाड़ी में आने वालों को बहुत अच्छा पुरुषार्थ करना पड़ेगा और ऐसे भी पिछाड़ी में आने वाले बहुत तीखे जाते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप की श्रीमत पर पूरा चल बाप का राइट हैण्ड बन पूरा राइटियस बनना है। बाप का पूरा मददगार बनना है। 2) मात-पिता की आशीर्वाद आगे बढ़ाती है इसलिए आज्ञाकारी बन आशीर्वाद लेनी है। बाप समान निरहंकारी बनना है। वरदान:- एकान्त और एकाग्रता के अटेन्शन द्वारा तीव्रगति से सूक्ष्म सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव l दूर बैठे बेहद विश्व के आत्माओं की सेवा करने के लिए मन और बुद्धि सदा फ्री चाहिए। छोटी-छोटी साधारण बातों में मन और बुद्धि को बिजी नहीं करो। तीव्रगति की सूक्ष्म सेवा के लिए एकान्त और एकाग्रता पर विशेष अटेन्शन दो। बिजी होते भी बीच-बीच में एक घड़ी, दो घड़ी निकाल एकान्त का अनुभव करो। बाहर की परिस्थिति भल हलचल की हो लेकिन मन-बुद्धि को जिस समय चाहो एक के अन्त में सेकण्ड में एकाग्र कर लो तब सच्चे सेवाधारी बन बेहद सेवा के निमित्त बन सकेंगे। स्लोगन:- ज्ञानी तू आत्मा वह है जो ज्ञान के हर राज़ को समझकर राजयुक्त, युक्तियुक्त और योगयुक्त हो कर्म करे। #Hindi #brahmakumaris #bkmurlitoday
- 24 June 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 24-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “मातेश्वरी” रिवाइज 24-04-65 मधुबन“ ज्ञान का तीसरा नेत्र (विजडम) ही लाइफ में सुख और शान्ति का आधार है” गीत: आज अन्धेरे में हम इंसान... ओम् शान्ति। गीत में सुना हम इन्सान अन्धेरे में हैं। लेकिन आज तो दुनिया समझती है कि हम बहुत रोशनी में हैं, कितनी रोशनी हुई है! चाँद तक जा सकते हैं, आकाश, सितारों में घूम सकते हैं। आज मनुष्य क्या नहीं कर सकता है! तो इन सभी बातों को देखकर मनुष्य समझते हैं बहुत रोशनी आ गई है। परन्तु फिर गीत में कहते हैं हम अंधेरे में हैं। तो वह अंधेरा किस बात का है? जबकि इतनी खोज कर रहे हैं, चांद सितारों तक भी जाने की हिम्मत दिखा रहे हैं! यह सब होते भी जो चीज लाइफ में चाहिए, जो लाइफ सुख और शान्ति से सम्पन्न होनी चाहिए वह नहीं है। उसमें तो मनुष्य ऊंचा नहीं गया है ना। लाइफ में सुख शान्ति के बजाए और ही दु:ख अशान्ति बढ़ती जा रही है तो इससे सिद्ध होता है कि जो मनुष्य को चाहिए उसमें नीचे होते जाते हैं, उसका अन्धकार है। अभी देखो घर बैठे इधर देखते हैं, उधर बात करते हैं, टेलीविजन, रेडियो, यह सभी चीजे हैं परन्तु फिर भी जो लाइफ का सुख और शान्ति कहें वो तो चीज नहीं रही है ना। उसका ही अंधकार है इसलिये कहते हैं आज इन्सान अन्धेरे में है। आज देखो रोगों के लिये कितने इलाज, कितनी दवाईयां आदि निकालते रहते हैं लेकिन रोगी तो फिर भी बढ़ते जा रहे हैं तो हमारे लिये दु:ख अशान्ति बढ़ता ही जा रहा है, इसलिए बुलाते हैं अभी तू आ। किसको बुलाते हैं? इसके लिए कोई इन्सान को नहीं बुलाते हैं, परमात्मा को ही पुकारते हैं। इन्सान के पास तो देने के लिए कुछ है भी नहीं। जब कहते हैं हम सब इन्सान हैं तो उसमें साधू सन्त महात्मा आदि सब आ गये। जिन्हों के लिए समझते हैं वो हमको पार करेंगे, अब वह भी तो इन्सान हैं और सब इन्सान अंधकार में हैं इसलिए जो चीज हमें चाहिए वह नहीं मिल पा रही है। फिर परमात्मा को पुकारते हैं और गाते भी हैं कि अन्धे की लाठी तू है। लेकिन अन्धे किसमें हैं? ऐसे तो नहीं कि देखने के लिए आंखें नहीं हैं। इन पदार्थों को और सभी बातों को देखने के लिये यह ऑखे भले हैं लेकिन वह नेत्र नहीं है जिसको ज्ञान नेत्र कहा जाता है। तो यही नेत्र अथवा विजडम नहीं है कि लाइफ में पूर्ण सुख और शान्ति कैसे आवे? लेकिन वो ज्ञान नेत्र कोई यहाँ निकल नहीं आयेगा, यह जो चित्रकारों ने देवताओं के चित्रों में तीसरा नेत्र दिखलाया है इससे कई समझते हैं शायद तीन ऑख वाले कभी मनुष्य थे, परन्तु ऐसे तीन ऑख वाले मनुष्य तो होते नहीं हैं। यह सभी जो चित्रों में अलंकार हैं इनका भी अर्थ समझना है। कभी तीन ऑखें मनुष्य को होती नहीं हैं, भले देवता हो, कोई भी हो। मनुष्य ही देवता है और मनुष्य ही असुर है। वह है मनुष्य की क्वालिफिकेशन। बाकी ऐसे नहीं है कि वह कोई मनुष्य के शरीर की बनावट को बदल देता है जिससे किसको चार भुजायें आ जायेंगी या तीन ऑखें आ जायेंगी! या कोई असुर है तो उसमें कुछ और बनावट का फर्क पड़ जायेगा। जब मनुष्य डिसक्वालिफाईड है तो उसको कहा जायेगा असुर और क्वालिफिकेशन्स में जब सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी है तो वह देवता है। बाकी शरीर की बनावट में फर्क नहीं पड़ता, उसके क्वालिफिकेशन्स में फर्क जरूर पड़ता है, जिसको पवित्र अपवित्र कहो या गुण अवगुण सम्पन्न कहो या भ्रष्टाचार, श्रेष्ठाचार कहो। यह सभी अक्षर आचरण के ऊपर हैं। चार भुजा का भी अर्थ है - दो भुजा नारी की, दो भुजा नर की। तो नर नारी जब पवित्र हैं तो चतुर्भुज का डबल क्राउन, किंगडम का सिम्बल दिखाते हैं। ऐसी राजाई जब थी तो उस राजाई में सभी नर नारी सुखी थे तो उसे चतुर्भुज के रूप में दिखलाया है और रावण को 10 शीश वाला दिखाते हैं, उसका भी अर्थ है। 10 शीश वाला कोई आदमी नहीं होता। यह भी एक विकारों का सिम्बल है, जब अपवित्र प्रवृत्ति है तो 5 विकार स्त्री के और 5 विकार पुरूष के मिला करके 10 शीश दिखा दिये हैं। तो यह नर नारी जब अपवित्र हैं तो संसार ऐसा दु:खी है और जब नर नारी पवित्र हैं तो संसार सुखी है। जब मनुष्य पवित्र हैं तो नेचुरल हेल्दी हैं और उसकी बनावट, फीचर्स, नैचुरल ब्युटी आदि इसका फर्क हो सकता है। बाकी ऐसे नहीं कि उसमें कोई 3 ऑखे या 10 सिर... की बनावट होगी। बाप कहते हैं देखो, यह ज्ञान का नेत्र है। इस नॉलेज के नेत्र से ही सदा सुख शान्ति प्राप्त कर सकते हो। यहाँ तो सब इन्सान खोजते-खोजते थक गये हैं, जितना खोज कर रहे हैं उतना और ही दु:ख-अशान्ति बढ़ता जा रहा है। देखो, खोज तो सुख के लिये करते हैं लेकिन फिर भी उनसे वही चीजें बनती जा रही हैं जो और ही दु:ख देने वाली हैं। अब यह बॉम्ब्स आदि क्या-क्या चीजें निकाली हैं। नहीं तो यही साईस अगर अच्छी तरह से उपयोग (काम) में लगाई जाए तो बहुत चीजों से सुख मिल सकता है। परन्तु विनाश काले विपरीत बुद्धि है ना, इसलिए उस बुद्धि से काम ही उल्टा हो रहा है। अभी यह समय ही विनाश का है इसलिए बुद्धि काम ही उल्टा करती है, दुनिया के नाश का ही सोचती है इसलिए कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि। विपरीत बुद्धि किससे? परमात्मा से। तो अभी किसी की भी प्रीत परमात्मा से नहीं है। माया से सबकी प्रीत हो गई है। कई फिर समझते हैं कि हम इन आंखों से जो भी देखते हैं यह माया है, यह शरीर भी माया है, यह संसार भी माया है, यह धन सम्पत्ति भी माया है परन्तु माया इसको नहीं कहेंगे। धन सम्पत्ति तो देवताओं के पास भी थी। शरीर तो देवताओं का भी था और संसार में तो देवतायें भी थे, फिर क्या वो माया थी क्या? नहीं। माया कहा जाता है 5 विकारों को। विकार ही माया हैं और यह माया ही दु:ख देती है, बाकी धन-सम्पत्ति कोई दु:ख देने की चीज नहीं है। सम्पत्ति तो सुख का साधन है, परन्तु उस सम्पत्ति को भी इम्प्युअर, अपवित्र किसने बनाया है? 5 विकारों (माया) ने। तो माया रूपी विकारों के कारण हर चीज दु:ख का कारण बन गई है। अभी धन से भी दु:ख, शरीर से भी दु:ख, हर चीज से अभी दु:ख प्राप्त हो रहा है क्योंकि हर चीज में अभी माया प्रवेश हो गई है, इसलिये बाप कहते हैं अभी इस माया को निकालो तो फिर तुमको इसी शरीर से, सम्पत्ति से और संसार से सदा सुख मिलेगा, जैसे देवताओं को था। तो माया से बचना माना ऐसे नहीं कि शरीर से ही निकल जाना है या हम संसार में ही नहीं आयें, ऐसे भी कई समझते हैं कि यह संसार ही माया है या कह देते हैं जगत मिथ्या है लेकिन जगत मिथ्या नहीं, जगत तो अनादि है, इसको मिथ्या बनाया गया है। विकारों के कारण मनुष्य दु:खी हुए हैं। अब इस संसार को पवित्र बनाना है। यह संसार पवित्र था, उस पवित्र संसार में देवता रहते थे, वह भी इसी संसार के मनुष्य थे। देवताओं की दुनिया कोई ऊपर थोड़ेही है। हम मनुष्य ही जब देवता थे तब उस संसार को स्वर्ग अथवा हेवन कहते थे। हम मनुष्य ही स्वर्गवासी थे यानि वह टाइम स्वर्ग का था। और हमारी जनरेशन स्वर्ग में चलती थी, तो इन सभी बातों को समझकर अभी माया को मिटाना है यानी विकारों को जीतना है क्योंकि यह धन भी अभी विकारी कर्म के हिसाब से होने के कारण उससे भी दु:ख होता है, शरीर भी विकारी खाते का होने के कारण उसमें रोग, अकाले मृत्यु होती रहती है जिससे दु:ख मिलता है। नहीं तो हमारे शरीर में कभी रोग नहीं था, कभी अकाले मृत्यु नहीं होता था क्योंकि पवित्रता (निर्विकारिता) के बल से बना हुआ था, अभी विकारों से बना हुआ है इसलिये इसमें दु:ख है। अभी इन दु:खों से निकालने और संसार को सुखी बनाने के लिए उसको (परमात्मा को) बुलाते हैं। तो अभी देखो बाप हमें ज्ञान का नेत्र (समझ) दे रहे हैं, उसे बुद्धि में धारण करना है। यह ज्ञान का तीसरा नेत्र हम ब्राह्मणों के पास है, देवताओं के पास नहीं है। पहले हम शुद्र थे, शुद्र माना विकारी, अभी विकारी से पवित्रता के मार्ग पर अपना पाँव रखा है। तो हम ब्राह्मण हो गये। ब्राह्मणों को ही तीसरी ऑख है और देवतायें हैं तो फिर प्रालब्ध है। देवताओं को फिर ज्ञान नेत्र की जरूरत नहीं है इसलिए जो भी अलंकार हैं शंख, चक्र, गदा, पदम आदि यह सब हम ब्राह्मणों के हैं, देवताओं के नहीं। यह शंख भी ज्ञान का है, परन्तु भक्ति मार्ग में उन्होंने वह चीजें स्थूल रख दी हैं। गदा माना 5 विकारों के ऊपर हमने विजय पाई है। चक्कर है यह चार युगों का। हम पहले सो देवता थे फिर कैसे नीचे आये, अभी फिर बाप आया है ऊंचा उठाने के लिये। तो यह सारा चक्कर अभी हमने अपना पूरा किया है। तो यही है स्वदर्शन चक्र यानि स्व को अभी दर्शन अर्थात् साक्षात्कार हुआ है। कोई कहे यह पुराना कैसे हुआ? अरे! यह नियम है। समय पर पुराना होना ही है। जब पुराना हो तब नया बनाया जाए। तो यह सारी चीजें समझने की हैं। हर चीज का, हर बात का कैसा-कैसा नियम है इसलिये अभी हमको पुरूषार्थ करके ऊंचा उठना है, नया बनना है। बाकी ऐसे नहीं कह सकते कि जब बाप था तो हमको क्यों गिरने दिया? उसने गिरने थोड़ेही दिया, लेकिन अगर हम गिरे नहीं तो बाप फिर चढ़ाने कैसे आवे, गिरे हैं तभी तो वह आया है। उसका गायन भी है पतित को पावन करने वाला, अगर पतित ही न हों तो पावन करने वाला उसको कहें भी कैसे? तो पतित होना है फिर पावन होना है, फिर पावन से पतित होना है, यह सारा चक्कर है इसलिए इस चक्कर को भी समझना है और खुद को पतित से पावन बनाना है, पूज्यनीय बनना है तब ही हमारी भी महिमा है। तो बनने और बनाने वाले की महिमा गाई जाती है। इसमें बनने वाला और बनाने वाला दो चाहिए ना। ऐसे थोड़ेही बनने वाला भी खुद, बनाने वाला भी खुद। आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा.. ऐसे तो नहीं है ना। बनने वाले अलग और बनाने वाला अलग है इसलिए इन बातों में कभी मूंझना नहीं है, हमको बनना है, ऊंचा उठना है, पुरूषार्थ करना है। बाप आ करके हमको यथार्थ पुरूषार्थ क्या होता है, उसकी समझ देते हैं। ऊंच प्राप्ति का पुरूषार्थ कौन सा है, वह अभी सिखाते हैं, इतना टाइम हमको किसी ने वह पुरूषार्थ नहीं सिखलाया क्योंकि सिखलाने वाले खुद ही सब चक्कर में हैं ना। ऊंचा उठाने वाला भी अभी आया है और आ करके ऊंच उठने का पुरूषार्थ अभी बताते हैं। उसको हम जितना धारण करते हैं उतनी प्रालब्ध पाते हैं। तो यह सभी नॉलेज बुद्धि में है, उसके लिए हमको क्या मेहनत और क्या पुरूषार्थ करना है, उसका ध्यान रखना है। बाकी चक्र को तो अपने टाइम पर चलना ही है। तो बाप जो अभी ऐसा ऊंच कार्य करने के लिये उपस्थित हुआ है, उससे पूरा-पूरा लाभ लेना है। बाकी क्राइस्ट, बुद्ध जिन्होंने भी आ करके कोई कार्य किय्, तो वो कार्य दूसरा है, वह हमारे उतरती कला के समय का है। अभी यह चढ़ती कला के समय का है तो समय को भी समझना है। यह समय है सब आत्माओं को वापस ले जाने का, ऊंचा ले जाने का। वह (धर्म स्थापक) तो आते ही द्वापरकाल से हैं और कलियुग को नीचे होना ही है। तो उन्हों को नीचे ही आना है, पावन से पतित ही बनना है इसलिए उनके लिये नहीं कहा जा सकता है कि वह पतितों को पावन करने वाले हैं। नहीं। यह एक ही है जो आ करके पतितों को पावन बनाते हैं अथवा सर्व आत्माओं को गति सद्गति में ले जाते हैं इसलिए एक की ही रेसपान्सिब्लिटी हो गई ना। कोई कितनी भी बड़ी (महान) आत्मा है वो पहले पवित्र आती है फिर उनको नीचे ही जाना है क्योंकि उनके चक्र का ऐसा टर्न है इसलिए नीचे ही आना है। अपने नियम अनुसार सबको अपना वो चक्र पार करना होता है। तो अभी टाइम है चढ़ने का और चढ़ाने वाला एक ही निमित्त है तो हमको अभी वह सौभाग्य बाप से लेना है। अच्छा। अभी यहाँ आपकी बहुत इनकम हो रही है, एक से सौ गुणा, हजार गुणा अपनी कमाई जमा कर रहे हो। जो उत्साह से करता है तो उस उत्साह का भी मिलता है। जो लाचारी से करता है, तंग होकर मुश्किल से करता है या कोई दिखावे के लिए करता है तो उसे उसी हिसाब से मिलता है। कईयों के अन्दर रहता है दुनिया देखे हमने यह किया, वह किया... कई दान भी करते हैं तो दिखाऊ दान करते हैं कि सबको पता चले, तो उस दान की ताकत आधा तो निकल जाती है इसलिए गुप्त का बहुत महत्व है, उसमें ताकत बनती है, उसका हिसाब ज्यादा मिलता है और शो करने से उसका हिसाब कम पड़ जाता है। तो करने का भी ढंग है। सतोगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी करने में भी हिसाब है। तो कैसे हम अपने कर्मो को श्रेष्ठ बनायें और किस तरह से करें जिसमें हमारा भाग्य ऊंचा बनें तो वो बनाने का भी ढंग चाहिए। अगर ऐसे अच्छे ढंग से चल रहे हैं तो जरूर ऊंची तकदीर बनती जा रही है। अच्छा ! बापदादा और माँ का मीठे-मीठे बहुत अच्छे और सपूत बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमर्निंग। वरदानः बाप समान बेहद की वृत्ति रखने वाले मास्टर विश्व कल्याणकारी भव l बेहद की वृत्ति अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति रखना - यही मास्टर विश्वकल्याणकारी बनना है। सिर्फ अपने वा अपने हद के निमित्त बनी हुई आत्माओं के कल्याण अर्थ नहीं लेकिन सर्व के कल्याण की वृत्ति हो। जो अपनी उन्नति में, अपनी प्राप्ति में, अपने प्रति सन्तुष्टता में राजी होकर चलने वाले हैं, वह स्व-कल्याणी हैं। लेकिन जो बेहद की वृत्ति रख बेहद सेवा में बिजी रहते हैं उन्हें कहेंगे बाप समान मास्टर विश्व कल्याणकारी। स्लोगनः निंदा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ में समान रहने वाले ही योगी तू आत्मा हैं।
- 9 July 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English - 09/07/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, you have come to this spiritual university to change from buddhus (foolish ones) to wise. Wise means pure. You are now studying this study to become pure. Question: What are the main signs of wise children ? Answer: Wise children constantly play with knowledge. They are always intoxicated in Godly intoxication. All the knowledge of the world cycle is in their intellects. They have the intoxication: Our Baba has come from the supreme abode for us and we resided with Him in the supreme abode. Our Baba is the Ocean of Knowledge and we have become master oceans of knowledge. He has come to give us the inheritance of liberation and liberation-in-life. Song: Who has come to the door of my heart? Om ShantiThe soul of the living being knows that our Supreme Father, the Supreme Soul, is personally teaching us; He is teaching us Raja Yoga. Therefore, it is as though this is a Godly University. Why is it called a university? It isn't that all other universities are for the universe. No. That is not for the universe, so it shouldn’t be called a university. Here, you children know that this is the true Godly University. However, none of them can understand this because they are buddhus. Only the Father makes buddhus wise. Human beings bow down in front of those who are wise. They bow down to the deity idols and sannyasis etc. Sannyasis are pure, and so they are definitely wise. They consider purity to be good. This vice of lust causes distress for human beings. This is why householders consider sannyasis who remain pure to be wise and bow down at their feet. As soon as they see someone wearing the costume of a sannyasi, they instantly bow down to him. However, regard for them has now decreased and this is why people take every step with great caution. Previously, when they saw a sannyasi, they would instantly invite him: Swamiji, come to our house. There are now too many of them and they have now become tamopradhan, and this is why there is only regard for those who are very well known. Even eminent people bow down to them. Why? Those eminent people are more educated than sannyasis, but sannyasis are pure because they have adopted renunciation and that is why they are considered to be wise. You are now becoming wise. You now know the Creator and the beginning, middle and end of creation. However, among you too, not all of you have that intoxication. It takes a lot of time for that intoxication to rise. Only at the end will there will be complete intoxication. Now, the more effort you make, the more your intoxication continues to rise. You should constantly remember that the Supreme Soul, the Father of us souls, has come. He is teaching us in order to make us into the masters of the world. Therefore, you should have the pure concern to make effort. Not all of you have that concern. At the time of listening to this, their intoxication rises but as soon as they go outside, everything ends; it is numberwise. The Father of us souls has come. We used to reside with Him in the supreme abode. No one else understands this. Sages and sannyasis etc. are pure. You, too, are numberwise. Not everyone has the faith that our Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge, the Bestower of Liberation-in-Life and that He is making us into the masters of heaven. As soon as you step outside of here, that happiness disappears. Otherwise, you children should have so much happiness. I have taken the support of this body. How else would I teach you Raja Yoga? I don't have a body of My own. If you look at all of those in the temples, they all have their own bodies, whereas I am bodiless. All others have received an angelic or corporeal body. I don't have a body. There is the Somnath Temple and even if you go to the Shiva temples, they have incorporeal forms there. It is just that they have given Him different names. You know that souls come here from the supreme abode. Souls adopt different bodies and play their parts. I do not enter this cycle of 84 births. I am the Resident of the supreme abode. I have entered this body. You would ask, "How does the incorporeal One come?" Yes, He can come. When you feed a departed soul, that soul comes, does he not? The body of that soul doesn't come. The soul enters another body. You understand that the soul enters another person's body. The souls of some ghosts are very mischievous; they throw stones etc. Only when a soul enters a body can he do something. That is called a ghost. Impure souls also enter others. You children have experienced how impure souls wander around until they receive their own bodies. Pure souls also come; this too is fixed in the drama. Whatever has passed is said to be the playing of the drama. The Father explains: I come and enter an ordinary old body. He would definitely need the body of an experienced person. Brahma’s name is very well known and Brahma’s advice is also well known. Where did Brahma receive advice from? Brahma is Shiv Baba's child. So His advice is shrimat, and so the main shrimat has to be through Brahma, whom the Father enters. The people of Bharat don't know these things. They think that all are One. They believe that Krishna, Shiva etc. are all the same. They call Krishna mahatma or yogeshwar, but they don't know why they call him that. The Krishna soul is now studying yoga with Ishwar (Lord – title of Shiva) and becoming yogeshwar (lord of yoga). This is such an incognito secret. People say that God is beyond name and form and that He doesn't have a body. However, you say that the Somnath Temple is a memorial of the incarnation of Shiva. Shiv Baba surely came in the previous cycle and He has now come again. Then the worship of Him will start in the copper age. People celebrate Shiv Ratri (Night of Shiva). The Father sits here and explains: You souls came here from the supreme abode to play your parts. Souls are imperishable and they have parts of 84 births recorded in them. Just as the Father has entered an old body, in the same way, you are also in old bodies. Baba liberates you from your old bodies and gives you new bodies. He shows you the way to change from being worthless shells into valuable diamonds. It is sung: The Beloved is only One. The Father says: I am the Resident of the supreme abode. You too are residents of the supreme abode. I have come in the oldest body of all. Those are also your oldest impure bodies of the final 84th birth. You consider yourselves to be souls. We have completed our 84 births and we are now to receive new bodies in the new world. Therefore, you should remain so happy. It is numberwise: some are completely dull headed. Maya has completely turned their intellects to stone. It is like when you sprinkle water on a hot griddle and it instantly dries up; they are such hot griddles. Oh! but you just have to consider yourself to be a soul, a child of the Father. However, they do not consider themselves to be this. If souls do consider themselves to be this, why do they become those who are amazed and then run away? Maya is very powerful. If you make a mistake, Maya will slap you. Oh! Baba has come to give you the inheritance, and yet you become vicious. She slaps you very strongly. The Father does not slap you. Maya slaps you and turns your face away. There are many who continue to be slapped by Maya. Maya also says: You don't remember the Father and so I slap you. Maya has been given the order. Those who are without wisdom have to be made wise. Therefore, why don't you do service? Are you still going to experience the slipper from Maya? Many continue to experience the slipper. Some experience the slipper of anger and some experience the slipper of attachment. The Father says: Just surrender everything and live like a trustee. When you have donated the vices, why do you take them back and use them again? Vices don't have a form. Regarding your money, you are told to live like a trustee. You may use it, but with great care and with the Father's shrimat. You mustn't commit any sin with that money. Otherwise, you will accumulate the burden of that on your head. Maya is very tamopradhan and she knows when you are not remembering the Father very well and so she thinks: Punch that one! Maya says: If you don’t remember the Father or your inheritance, I will slap you. Many children write: Baba, Maya slapped me. Baba writes back: Yes children, Maya has been given an order: Slap them a great deal when they do not belong to Me. I have come to make you constantly happy but, in spite of that, you children don't remember Me. It is very easy but it does take time. Otherwise, the mercury of happiness would rise by your remembering the Father and the inheritance. Eventually, while remembering Baba, you will just feel a little jerk and: OK, I am now going to Baba. Then I will go to heaven. It will be as though you just have complete Godly intoxication and go back home. Achcha, no one knows that souls are lovers of the Supreme Father, the Supreme Soul. You are true lovers. You have been lovers for half the cycle and have been remembering the Beloved a great deal. However, you didn't know that souls are lovers of the Supreme Father, the Supreme Soul. They say that the soul is the Supreme Soul and that the Supreme Soul is the soul. Here, there is a great difference. You know that God is the Beloved. That pure soul is making us so beautiful. When we souls became dirty, the jewellery (body) also became dirty. Baba has come once again to make you beautiful and you will then receive a golden-aged body. They mix alloy into gold. Now, just see - that is the Adi Dev temple. Someone has named him, “Mahavir”, but they don't know the meaning of that at all. They even call Hanuman, “Mahavir”. There is such a vast difference between calling Hanuman “Mahavir” and then calling Adi Dev, “Mahavir”. Whatever the Jain Maharaj Muni said, that continued to be accepted. Nowadays, there is a lot of occult power. This Baba knows everything. People make a lot of effort. They even make saffron emerge from their hands. People think that that is a wonder and quickly become their followers. Those who have occult powers have many followers. It is not like that here. Baba says: I have come exactly as I did 5000 years ago. No one else can say this. Children say: Baba, we came 5000 years ago and attained the inheritance of heaven from You. We have now come once again and become the children of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, through this Brahma. The world is in the iron age. Where would Brahmins come from in the iron age? Brahmins are needed at the confluence age. The feet and the topknot come together, and so that is a confluence: the confluence of shudras and Brahmins. You change from shudras into Brahmins. No one knows this cycle of 84 births. You know that you are Brahmins and that you have become the children of Brahma in a practical way. You can tell those brahmins: You brahmins call yourselves children of Brahma, but who is the Father of Brahma? They won't be able to tell you. It is like pebbles in a tin can. They would simply say: We brahmins are God. All of you were devotees and you now say: We are becoming worthy of marrying Lakshmi. You are making effort for this. For instance, just remember that you came from the supreme abode. Baba has now come once again to take us back. We too are the masters of Brahmand. Baba has entered an old body. We too are in old bodies. The Father says: I also have to take an old body. Now remember Me, the Father, and your sins will be absolved. He gives you time. You have to serve the Pandava Government for a minimum of eight hours. You also have to teach Raja Yoga, blow the conch shell. You make Bharat in particular and the world in general into heaven with shrimat. Only you go to heaven; those of other religions do not go there. Brahmins, deities, warriors, merchants and shudras are called the variety-form image. You should create a picture of the variety-form image so that people are easily able to understand. They have shown Vishnu as the variety-form image. A picture is definitely needed. They have pictures in schools. Otherwise, little children would not know what an elephant is. They are shown a picture of it. So, here, there are the four ages. It is now the iron age and the cycle will definitely turn. Brahmins exist at the confluence age. The others are physical brahmins, guides. They are not the mouth-born creation of Brahma. The mouth-born creation of Brahma receive the inheritance from the Grandfather. Those brahmins don’t receive the inheritance. You, too, understand these things, numberwise. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Surrender everything with your intellect and live as a trustee. Perform every task with great caution according to shrimat. 2. Remember Baba and the inheritance and experience limitless happiness. While in remembrance of Baba, experience Godly intoxication. Become a true lover. Blessing: May you be a world transformer who burns the rubbish of the world with the fire of yoga. It is only with the fire of yoga, that is, with the power of elevated thoughts and the fire of love that you can burn the rubbish of impurity. In a memorial of the goddesses, it is portrayed that they burnt the devilish powers with fire. That memorial is of the present time. So, first of all, become the form of fire and burn any devilish sanskars and nature and become completely pure and you will then be able to burn the rubbish of the world with yoga and the fire of purity and become an instrument for world transformation. Slogan: An obedient soul is one who remains free from any dictates of the self or others and constantly follows shrimat. #Murli #english #brahmakumari #bkmurlitoday
- BK murli today in Hindi 6 Aug 2018 - Aaj ki Murli
Brahma kumaris murli today in Hindi -BapDada -Madhuban -06-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - खुशबूदार फूल बनो, श्रीकृष्ण है नम्बरवन खुशबूदार फूल इसलिये सभी को बहुत प्यारा लगता है, सभी नयनों पर रखते हैं" प्रश्न: लौकिक में स्वीट सम्बन्ध कौन-सा है और स्वीटेस्ट किसे कहेंगे? उत्तर: लौकिक में भी स्वीट फादर को ही कहा जाता है। तुम बच्चे भी कहते हो हमारा अति मोस्ट लवली स्वीट फादर है, हम उसके लवली बच्चे हैं। स्वीटेस्ट फिर टीचर को कहेंगे क्योंकि टीचर पढ़ाई पढ़ाते हैं। नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम है। तुमको भी पहले नॉलेज मिलती है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए इस नॉलेज को धारण करना और दूसरों को कराना है। गीत:- मरना तेरी गली में.... ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। जब कोई मरते हैं तो दूसरे माँ-बाप के पास जन्म लेते हैं। बाप को बधाई दी जाती है। अब तुम बच्चे जानते हो हम आत्मायें अविनाशी हैं। वह शरीर की बात है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं अर्थात् एक बाप को छोड़ दूसरे बाप के पास जाते हैं। तुमने 84 साकारी बाप लिये हैं। वास्तव में हो निराकार बाप के बच्चे। तुम आत्मायें रहने वाली भी निर्वाणधाम-शान्तिधाम की हो। जहाँ बाप के साथ सभी निवास करते हैं। उसे आत्माओं की दुनिया कहेंगे। तुम आत्मायें भी वहाँ रहती हो तो बाप भी वहाँ रहते हैं। यहाँ लौकिक बाप के बच्चे बनते हो तो उनको भूल जाते हो। सतयुग में तो बाप का कोई सिमरण नहीं करते हैं। बुद्धि नीचे आ जाती है। उनको याद करेंगे तो कहेंगे - ओ बाबा। इनको भी बाबा कहते हैं। वह भी फादर है। लौकिक बाप को यहाँ देखते हैं। पारलौकिक बाप को बुलाते हैं तो नज़र ऊपर जाती है। अभी तुम उस बाबा के बने हो। तुम जानते हो पहले हम पवित्र थे, राज्य-भाग्य किया, अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। दु:खी हुए हैं इसलिये बाप को याद करते हैं। यह वस्त्र (शरीर) पहनते-पहनते अब तमोप्रधान बन गया है। पहले आत्मा और शरीर - दोनों सतोप्रधान थे। फिर आत्मा सतो, रजो, तमो में आती है। पहले गोल्डन थी फिर सिल्वर, कॉपर, आइरन में आये हैं। इसको जेवर भी कहा जाता है। सोने में खाद डालते हैं ना। बाप समझाते हैं अब तुम आत्मायें पतित हो गई हो। सोना काला हो गया है। तुम काले इमप्योर बन गये हो। पहले तुम आत्मा प्योर थी, शरीर भी प्योर था, अब फिर प्योर शरीर कैसे लेंगे? क्या स्नान करने से? स्नान करने से तो कुछ होता नहीं है। आत्मा पुकारती है - हे पतित-पावन बाबा। ‘बाबा' अक्षर कितना मीठा है! बड़ा अच्छा है। भारत में ही ‘बाबा' अक्षर है। बच्चे ‘बाबा-बाबा' करते रहते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो हम आत्म-अभिमानी बन बाप के बने हैं। बाप कहते हैं हमने पहले-पहले तुमको स्वर्ग में भेजा था। पार्ट बजाते-बजाते अभी अन्त में आकर पहुँचे हो। अन्दर में सदैव बाबा-बाबा कहते रहो। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। उनको ही सभी याद करते हैं कि हे पतित-पावन बाबा आओ, हम पतितों को आकर पावन बनाओ। सभी अपनी-अपनी भाषा में पुकारते हैं। जब दुनिया पुरानी होती है तब पुकारते हैं। तो जरूर संगम पर ही आयेंगे। यह भी तुम जानते हो। शास्त्रों में तो अगड़म बगड़म बहुत लिख दिया है। तुम बच्चों को पक्का निश्चय है कि हमारा मोस्ट बिलवेड बाबा है, मोस्ट लवली बाबा है। बाबा भी कहते हैं स्वीट चिल्ड्रेन। स्वीट, स्वीटर, स्वीटेस्ट। अब स्वीट कौन है? लौकिक सम्बन्ध में भी फादर ही स्वीट होता है। फिर स्वीटेस्ट कहेंगे टीचर को। टीचर अच्छा होता है। फिर भी पढ़ाते हैं। कहा भी जाता है - नॉलेज इज सोर्स ऑफ इनकम। तो यह नॉलेज भी सोर्स ऑफ इनकम है।योग को याद, ज्ञान को नॉलेज कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो - तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया था। तब तो शिवजयन्ती मनाते हैं। परन्तु शिवबाबा कैसे आया - यह किसको भी पता नहीं है। चित्रों में त्रिमूर्ति है, शिव है ऊपर में। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, स्थापना कौन कराते हैं? करनकरावनहार शिवबाबा है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के ऊपर है शिव। वह हुई रचना। उनका रचता है शिव। वह निराकार है। यह है साकार सृष्टि। सृष्टि चक्र है, जो रिपीट होता है। सूक्ष्मवतन को सृष्टि का चक्र नहीं कहेंगे। यह मनुष्य सृष्टि ही चक्र लगाती है। बाकी न सूक्ष्मवतन में, न मूलवतन में चक्र की बात है। अभी है कलियुग नर्क। सतयुग है स्वर्ग। अब नर्कवासियों को स्वर्गवासी कौन बनावे? वाम मार्ग में जाने से ही पतित हो जाते हैं। दिन-प्रतिदिन सुख से दु:ख में आते जाते हैं। दुनिया तमोप्रधान बन जाती है, तब कहते हैं यह बिल्कुल ही तमोगुणी बुद्धि है। यह बहुत सतोप्रधान बुद्धि हैं, जैसे देवता समान हैं। वास्तव में पूजा देवताओं की होनी चाहिये। परन्तु देवता तो इस समय कोई हैं नहीं क्योंकि दैवीगुण उनमें हैं नहीं। क्रिश्चियन लोग क्राइस्ट को जानते हैं। उनको पूजते हैं। भारतवासी अपने को देवी-देवता कह नहीं सकते। नाम तो बहुतों के हैं - फलानी देवी, फलाना देवता। परन्तु वह गुण तो हैं नहीं। गाते भी हैं - मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं...... आत्मा किसके सामने कहती है? बाप के सामने कहना चाहिये ना। बाप को भूल भाइयों के पीछे जाकर पड़े हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी ब्रदर्स हैं ना। उनसे कुछ भी मिलने का नहीं है। ब्रदर्स की पूजा करते रहते, नीचे गिरते जाते हैं। अब तुमको तो फादर से वर्सा मिलता है। फादर को कोई जानते नहीं। फादर को सर्वव्यापी कह देते हैं। अरे, फादर का नाम? कह देते हैं वह तो नाम-रूप से न्यारा है। अरे, तुम एक ओर अखण्ड ज्योति स्वरूप कहते हो फिर न्यारा कैसे कहते? यह भी समझते हैं - लॉ मुजीब सबको तमोप्रधान बनना ही है। फिर जब बाप आये तब सबको सतोप्रधान बनाये। आत्मा को प्योर जरूर होना है। सब आत्मायें बाप के साथ रहने वाली हैं। नई दुनिया सो पुरानी दुनिया होनी है।तुम जानते हो अभी हम बाबा के बने हैं। बाबा आया हुआ है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा तन का आधार लेता हूँ। भाग्यशाली रथ में सवार होता हूँ। रथ में जरूर आत्मा तो होगी ना। कहते हैं भागीरथ ने गंगा लाई। अब गंगा जटाओं से कैसे आयेगी? यह तो पहाड़ों से मीठा पानी आता है। सागर से बादल भरकर फिर बरसते हैं। आजकल साइन्स की ताकत से पानी को मीठा बना देते हैं। नेचरल बादल कितने बरसते हैं। कितना पानी आ जाता है। बाढ़ हो जाती है। कहाँ से इतना पानी आता है? बादल ही खींचते हैं। बाकी इन्द्र आदि कुछ है नहीं। यह तो बादल भरकर फिर बरसते हैं। वास्तव में यह है ज्ञान की वर्षा। यह नॉलेज है ना। इनसे क्या होता है? पतित से पावन बनते हैं। गंगा-जमुना नदी सतयुग में भी तो होगी ही। कहते हैं कृष्ण वहाँ खेलपाल आदि करते थे। वास्तव में ऐसी कोई बात है नहीं। वहाँ तो कृष्ण की बहुत सम्भाल से पालना करते हैं। बहुत अच्छा फूल है ना। फूल कितना प्यारा लगता है। फूल से ही सुगन्ध लेते हैं। कांटे से कब सुगन्ध लेते हैं क्या? यह है ही कांटों का जंगल। निराकार बाप कहते हैं मैं आकर गॉर्डन ऑफ फ्लावर बनाता हूँ, इसलिए बबुलनाथ नाम भी रखते हैं। बबुल कांटों को फ्लावर बनाते हैं इसलिए महिमा गाई जाती है - कांटों को फूल बनाने वाला नाथ। तो बाबा से कितना लव होना चाहिए। लौकिक बाप होते भी आत्मा पारलौकिक बाप को याद करती है, क्योंकि दु:खी है। यह भी खेल है। तुम आधा कल्प से याद करते आये हो। वह आते हैं तब तो शिव जयन्ती मनाते हो। तुम जानते हो अभी हम बेहद के बाप के बच्चे बने हैं। हमारा सम्बन्ध उनसे भी है। लौकिक से भी है। बेहद का बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम पावन बन जायेंगे। आत्मा जानती है यह लौकिक बाप है, वह पारलौकिक बाप है। आत्मा पारलौकिक बाप को ही पुकारती है। आत्मा कहती है - हे भगवान्, ओ गॉड फादर। जब फादर घर में बैठा है तो फिर ओ फादर कह क्यों पुकारते हैं? आत्मा उस अविनाशी बाप को याद करती है। वह कब आकर नई दुनिया रचते हैं - यह भी तुम अभी समझते हो। जरूर कहेंगे कि कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर आयेगा। कलियुग की आयु फिर लाखों वर्ष कह देते हैं। मनुष्य भगवान् को पाने के लिये कितना भटकते हैं। सबसे जास्ती भक्ति कौन करते हैं? उनको तो पहले मिलना चाहिए ना। बाप ने समझाया है पहले-पहले भक्ति तुम ही शुरू करते हो। तुमको ही पहले ज्ञान मिलना चाहिए। तुम पहले आसुरी गुणों वाले थे। अब तुम दैवी गुणवान देवता बनते हो। इतने ऊंचे स्वर्ग के तुम मालिक बनते हो। वहाँ की हर चीज फर्स्टक्लास होती है। तुम बहुत बड़े आदमी बनते हो। तुम्हारे लिये वहाँ हीरे-जवाहरों के महल बनेंगे।जब तक ब्राह्मण न बने तब तक शिवबाबा से वर्सा मिल न सके। शूद्र वर्सा ले न सकें। यह यज्ञ है ना। इसमें ब्राह्मण जरूर चाहिये। यज्ञ हमेशा ब्राह्मणों का ही होता है। शिव को रुद्र भी कहा जाता है। तो यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। रुद्र शिवबाबा ने यह ज्ञान यज्ञ रचा हुआ है। भक्ति पूरी होती है तो यज्ञ रचा जाता है। मनुष्य यज्ञ रचते हैं भक्ति मार्ग में। सतयुग में देवतायें कभी यज्ञ आदि नहीं रचते। परन्तु यह है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ। इस नाम से शास्त्रों में भी गायन है। भक्ति और ज्ञान आधा-आधा है। भक्ति है रात, ज्ञान है दिन। यह बाबा समझाते हैं। सदैव बाबा-बाबा करते रहो। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाने वाला है। मोस्ट बिलवेड बाबा है। उनसे जास्ती प्यारा दुनिया में कोई हो नहीं सकता। आधाकल्प बाप को याद किया है। अब जानते हो उस बाप के हम बने हैं। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप को याद करो। सब तो यहाँ रह न सकें। हाँ, उस बाबा के पास रह सकते हो। कहाँ? कौन सा बाबा? उसका नाम? शिवबाबा पास कहाँ रहेंगे? परमधाम में। वहाँ सभी आत्मायें रह सकती हैं। यहाँ तो नहीं रह सकती। यहाँ तो थोड़े ही रहेंगे। यहाँ तो तुम बच्चों को नॉलेज लेनी है। यह पढ़ाई है ना।कोई भी मिलते हैं तो उनको यह बताना चाहिए कि दो बाप हैं - लौकिक और पारलौकिक। दु:ख में पारलौकिक बाप को ही याद करते हैं। वह बाप अब आया हुआ है। मोस्ट बिलवेड शिवबाबा है। कृष्ण भी सबका मोस्ट बिलवेड है। परन्तु शिवबाबा है निराकार और कृष्ण है साकार। कृष्ण को सबका बाप नहीं कहेंगे। वह है विश्व का मालिक। उनको भी बनाने वाला शिव है। दोनों ही प्यारे हैं। परन्तु दोनों में जास्ती प्यारा कौन है? कहेंगे शिव। शिव ही कृष्ण को ऐसा बनाते हैं। बाकी कृष्ण क्या करते हैं? कुछ भी नहीं। तमोप्रधान आत्माओं को बाप ही आकर सतोप्रधान बनाते हैं। तो गायन उनका ही होगा ना। कृष्ण तो बच्चा है, उनका डांस आदि दिखाते हैं। शिवबाबा क्या डांस करेंगे? बाप समझाते हैं तुम सब पार्वतियां हो। शिव अमरनाथ तुमको कथा सुना रहे हैं। दूसरी कोई पार्वती है नहीं। अर्जुन भी एक नहीं, तुम सब अर्जुन हो। द्रोपदियां भी तुम सब हो। वह दुशासन हैं जो नंगन करते हैं। तब पुकारते हैं बाबा हमारी रक्षा करो। बाबा कहते हैं - बच्चे, नंगन कभी नहीं होना। दिखाते हैं ना जब द्रोपदी को नंगन कर रहे थे तो फिर कृष्ण ने उनको 21 चीर दिये। अब 21 साड़ी पहनी जाती हैं क्या? यह भी जैसे एक खेल दिखाते हैं। कृष्ण ऊपर से साड़ियां देते जाते हैं। अब 21 साड़ियां कैसे पहन सकेंगे? वास्तव में अर्थ यह है - बाप नंगन होने से ऐसा बचाते हैं जो तुम 21 जन्म कभी नंगन नहीं होते हो। अच्छा!मीठे-मीठे स्वीट चिल्ड्रेन प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) अन्दर में बाबा-बाबा कहते बाबा समान स्वीट बनना है। आत्म-अभिमानी होकर रहना है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। 2) मोस्ट लवली बाप को याद कर पावन जरूर बनना है। याद की अग्नि से विकारों की खाद निकाल सच्चा सोना बनना है। वरदान: समानता द्वारा समीपता की सीट ले फर्स्ट डिवीजन में आने वाले विजयी रत्न भव! समय की समीपता के साथ-साथ अब स्वयं को बाप के समान बनाओ। संकल्प, बोल, कर्म, संस्कार और सेवा सबमें बाप जैसे समान बनना अर्थात् समीप आना। हर संकल्प में बाप के साथ का, सहयोग का स्नेह का अनुभव करो। सदा बाप के साथ और हाथ में हाथ की अनुभूति करो तो फर्स्ट डिवीजन में आ जायेंगे। निरन्तर याद और सम्पूर्ण स्नेह एक बाप से हो तो विजय माला के विजयी रत्न बन जायेंगे। अभी भी चांस है, टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है। स्लोगन: सुखदाता बन अनेक आत्माओं को दु:ख अशान्ति से मुक्त करने की सेवा करना ही सुखदेव बनना है। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- BK murli today in Hindi 12 July 2018 - Aaj ki Murli
Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 12-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन'' मीठे बच्चे - ज्ञान रत्नों की लेन-देन कर तुम्हें ज्ञान से एक-दो की पालना करनी है, आपस में बहुत-बहुत प्यार से रहना है'' प्रश्नः- बीमारी अथवा कर्मभोग होते भी अपार खुशी किस आधार पर रह सकती है? उत्तर:- विचार सागर मंथन करने की आदत डालो। कोई भी कर्मभोग अथवा बीमारी आती है तो अपने आपसे बातें करो - अब हमने 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया, यह पुरानी जुत्ती है। इस पुराने हिसाब-किताब को चुक्तू करना है। फिर हम 21 जन्मों के लिए सब बीमारियों से छूट जायेंगे। कोई बीमारी छूटती जाती है तो खुशी होती है ना। गीत:- माता ओ माता..... ओम् शान्ति।यह है माताओं की महिमा, वन्दे मातरम्। हे माता, तुम शिवबाबा के भण्डारे से सबकी पालना करती हो। तुमको शिवबाबा के भण्डारे से ज्ञान रत्नों का खजाना मिलता है अथवा ज्ञान अमृत के कलष से तुम्हारी पालना होती है। वास्तव में महिमा शिवबाबा की है, वह करनकरावनहार है। माता है जगदम्बा। जरूर और भी मातायें होंगी, जो यह माताओं की महिमा है। माता बहुत-बहुत अच्छी पालना करती है। शिवबाबा के यज्ञ में जो रहने वाले हैं उन्हों की स्थूल में भी पालना होती है और अविनाशी ज्ञान रत्नों से तो सभी की पालना होती है। पालना करने वाली मैजारिटी मातायें हैं। बहुत हैं जो भाई भी बहनों की पालना करते हैं। ऐसे नहीं, सिर्फ बहन भाई की पालना करती है। दोनों ज्ञान रत्नों की लेन-देन से एक-दो की पालना करते हैं - भाई बहन की, बहन भाई की। बच्चों को बहुत प्यार से रहना है। इस दुनिया में तो एक-दो को विकार ही देते हैं इसलिए जैसे एक-दो के दुश्मन हुए। यहाँ अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना देते हैं। वो तो जैसे पत्थर मारते हैं क्योंकि है ही पत्थरबुद्धि। ऐसे नहीं कि पत्थर मारते हैं, यह तो समझानी है। तुम हो बहन-भाई ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। तुम्हारा नाम भी बड़ा भारी है। ब्रह्माकुमारी है तो कुमार भी जरूर हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां भी होंगे। बोर्ड पढ़ने से घबराना नहीं चाहिए। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे जरूर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ होंगे। यह बुद्धि से काम लिया जाता है।गीत में महिमा है माता की। जगत अम्बा सरस्वती कहें तो भी जरूर बच्चे और बच्चियाँ होंगे। जरूर फैमली होगी। यह भी समझने की बात है ना। समझते भी हैं - प्रजापिता लिखा हुआ है ना। ब्रह्मा को कहा जाता है प्रजापिता ब्रह्मा। यह है साकारी सृष्टि का पिता। गाया हुआ है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कुल की रचना हुई। आदि सनातन पहले-पहले ब्राह्मण हो जाते हैं। वास्तव में आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहना रांग है। वह तो है सतयुग का धर्म। यह आदि सनातन ब्राह्मणों का धर्म जो है वह प्राय:लोप हो गया है। परमपिता परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म रचते हैं। तो यह संगमयुग हो गया देवी-देवता धर्म से भी ऊंच। पहले यह ब्राह्मण धर्म है, जिसको चोटी कहते हैं। इसको कहा जायेगा संगमयुगी आदि सनातन ब्राह्मण धर्म। कितना अच्छा राज़ है समझने का। बाबा ने समझाया है कि पहले जब कोई आते हैं तो उनको बाप का परिचय दो। यह है मुख्य। ब्राह्मणों को तो राजधानी है नहीं। लिखा जाता है सतयुगी डीटी वर्ल्ड सावरन्टी तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। देवी-देवता धर्म तो बरोबर है। परन्तु उनको यह राजधानी कब और कैसे मिलती है - यह भी समझाना पड़ता है इसलिए त्रिमूर्ति का चित्र सामने जरूर रखना है। इसमें लिखा हुआ है - स्वर्ग की बादशाही तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है। किस द्वारा? यह भी लिखना पड़े। यह बोर्ड बनाकर हर एक अपने घर में लगावे। जैसे गवर्मेन्ट के ऑफीसर्स के बोर्ड होते हैं ना। कोई के पास बैज रहते हैं। सबकी अपनी-अपनी निशानी रहती है। तुम्हारी भी निशानी रहनी चाहिए। बाबा डायरेक्शन देते हैं, अमल में लाना तो बच्चों का काम है ना। विहंग मार्ग की सर्विस करनी है। यह बहुत मुख्य चीज़ है। डॉक्टर, बैरिस्टर आदि सबके घर में बोर्ड लगा हुआ होता है ना। तुम्हारा भी बोर्ड लगा हुआ हो - आकर समझो कि शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की बादशाही कैसे मिलती है? बाबा डायरेक्शन देते हैं, जो मनुष्य देखकर वन्डर खायेंगे। अन्दर आयेंगे समझने के लिए। फ्लैट के बाहर भी बोर्ड लगा सकते हो। जिसका जो धन्धा है वह बोर्ड लगाना चाहिए। एक-दो से सीखना चाहिए। परन्तु बच्चों पर माया का वार बहुत होता है, निश्चय नहीं कि हम बाबा के पास जाते हैं। 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ फिर नई दुनिया, स्वर्ग में आकर वर्सा लेंगे। यह याद नहीं रहता है। बाबा कहते हैं कि भल कर्म करो फिर जितना समय मिले तो बाबा को याद करो। तुम यह ढिंढोरा पीटते रहो कि यह सबका अन्तिम जन्म है। पुनर्जन्म मृत्युलोक में फिर नहीं लेना है। तुम भी जानते हो कि मृत्युलोक अभी खत्म होना है। पहले निर्वाणधाम जाना है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी चाहिए, इसको विचार सागर मंथन कहा जाता है। बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी हो। क्या तुमको कछुए जानवर जैसा भी अक्ल नहीं है! वो भी शरीर निर्वाह अर्थ घास आदि खाकर फिर कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठ जाते हैं। तुम बच्चों को तो बाप की याद में रहना है, स्वदर्शन चक्र फिराना है, अपने को मास्टर बीजरूप समझना है। बीज में झाड़ का सारा ज्ञान है - इनकी उत्पत्ति एवं पालना कैसे होती है, ड्रामा में 84 का चक्र कैसे फिरता है? 84 के चक्र के लिए यह चित्र (चक्र का)बनाया जाता है। मनुष्य समझते हैं कि आत्मा 84 लाख योनियों में जाती है। लेकिन तुम्हें बाप ने समझाया है कि तुम सिर्फ 84 जन्म लेते हो। जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले हैं अर्थात् जो ब्राह्मण से देवता बनते है उनके ही 84 जन्म होते हैं। तुम 84 जन्मों को जानते हो। ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन कहते है, इसमें 84 जन्म आ जाते हैं। त्रिमूर्ति का बोर्ड बनाकर लिखना चाहिए - यह ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है, लेना है तो लो। नाउ आर नेवर (अब नहीं तो कभी नहीं)। इस होवनहार महाभारत लड़ाई के पहले पुरुषार्थ करना है।राम (शिव) क्या देते हैं और रावण क्या देते हैं? - यह तुम जानते हो। आधाकल्प है रामराज्य, आधाकल्प है रावणराज्य। ऐसे नहीं, परमात्मा ही दु:ख देते हैं। दु:ख देने वाला तो रावण 5 विकार हैं जो ही विशश बनाते हैं। बच्चों को भिन्न-भिन्न प्रकार की समझानी रोज़ मिलती रहती है तो खुशी में रहना चाहिए ना। तुम जानते हो शिवबाबा रोज़ पढ़ाते हैं। ऐसे नहीं कि साकार को याद करना है। शिवबाबा हमको ब्रह्मा बाबा द्वारा सहज राजयोग सिखलाते हैं। शिवबाबा आते ही प्रजापिता ब्रह्मा में हैं। प्रजापिता ब्रह्मा और किसको कह नहीं सकते। ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। गाया जाता है सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा अथवा राज्य-भाग्य लो। बच्चे कहते हैं कि हम शिवबाबा के बच्चे हैं। वो है ही स्वर्ग का रचयिता तो जरूर हमको भी स्वर्ग की राजाई देंगे। बाबा कैसा वन्डरफुल है! एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति जनक को मिली - यह भी गाया हुआ है। तुम जानते हो कि अब हम शिवबाबा के बने हैं। शिवबाबा को जरूर याद करना पड़े। जैसे बच्चे धर्म की गोद लेते हैं तो जानते हैं कि पहले हम फलाने का बच्चा था, अब फलाने का हूँ, उनसे दिल हटती जायेगी और उनसे जुटती जायेगी। हम यहाँ भी ऐसे कहेंगे कि हम शिवबाबा के एडाप्टेड बच्चे हैं फिर उस लौकिक बाप को याद करने से फ़ायदा ही क्या? मोस्ट बिलवेड बाप इतनी बड़ी सम्पत्ति देने वाला है। बाप भी मेहनत करके बच्चों को लायक बनाते हैं ना! ऐसे बाप को तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। और तो सभी तुमको दु:ख देने वाले हैं फिर भी उनको याद करते रहते हो और मुझ बाप को तुम भूल जाते हो। रहो भल अपने घर में परन्तु याद बाबा को करो। इसमें मेहनत चाहिए। सिर्फ मेरा होकर रहो। निरन्तर मुझे याद करो और नई दुनिया को याद करो। यह तो सारा कब्रिस्तान बनना है। तुम मेरे बने गोया विश्व के मालिक बने। तुम जानते हो कि हम बाबा के बने हैं फिर स्वर्ग के मालिक हम भविष्य में बनेंगे। खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।यह भी जानते हैं कि यह पुराना शरीर है। कर्मभोग भोगना पड़ता है। मम्मा-बाबा भी खुशी से कर्मभोग भोगते हैं। फिर भविष्य 21 जन्म का सुख कितना भारी है। यह तो पुरानी जुत्ती है। कर्मभोग भोगते रहेंगे। फिर 21 जन्म के लिए इससे छूट जायेंगे। कोई बीमारी छूटती जाती है तो खुशी होती है ना। कोई आ़फत आती है फिर हट जाती है तो खुशी होती है ना। तुम भी जानते हो कि अब जन्म-जन्मान्तर के लिए आफतें हट जायेंगी। अभी हम बाबा के पास जाते हैं। यह है विचार सागर मंथन कर प्वाइंट्स निकालना। बाबा राय तो बतलाते हैं कि ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब बाप के पास जाते हैं फिर बाबा का वर्सा पायेंगे। साक्षात्कार भी करते हो। इस समय परोक्ष और अपरोक्ष है। जैसे मम्मा को कोई भी साक्षात्कार नहीं हुआ है, बाबा को तो हुआ है। विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हुआ। इनको भविष्य का साक्षात्कार एक्यूरेट हुआ। परन्तु पहले यह समझ में नहीं आया कि हम यह विष्णु बनेंगे। पीछे समझते गये - हम इस विकारी गृहस्थ धर्म से अब निर्विकारी गृहस्थ धर्म में जाते हैं, तत्त्वम्। तुम भी बाबा की पढ़ाई से ऐसे बनते हो। रेस करनी चाहिए। बाकी गीत में है मम्मा की महिमा। तुम तो जान गये हो कि जगत अम्बा किसको कहा जाता है, वास्तव में मात-पिता कौन है? मात-पिता कहने से जगत अम्बा याद नहीं आयेगी। वह तो है निराकार। यह तुम्हारी बुद्धि में है। पिता तो गॉड फादर ठीक है, वह निराकार है। माता तो निराकार हो न सके। फादर निराकार है, जरूर वर्सा देंगे तो यहाँ आना पड़े ना, जो अपना परिचय दे। तो जरूर उनको माता चाहिए। तो यह ब्रह्मा बड़ी माता हो गई। दादा है निराकार। कितनी वन्डरफुल नॉलेज है। परन्तु यह मेल हो गया क्योंकि मुख वंशावली है ना। यह बड़ी वन्डरफुल नॉलेज है। बाप कहते हैं कि कितना गुह्य राज़ समझाता हूँ। कोई की बुद्धि में बैठ नहीं सकता कि मात-पिता कौन है। वो समझते हैं कृष्ण के लिए। सिर्फ फ़र्क यह किया है। इसको कहा जाता है एकज़ भूल। कोई तो निमित्त बनना चाहिए ना। क्या भूल हुई जो भारत इतना दु:खी होता है? अब तुम जानते हो किसने भुलाया? कारण क्या हुआ जो भूल गये? बरोबर माया रावण ने बेमुख कराया है। जैसे बाबा करनकरावनहार है वैसे माया भी करनकरावनहार दु:ख दाता है। वह करनकरावनहार दु:खदाता और वह (शिवबाबा) करनकरावनहार सुखदाता। माया बाप से बेमुख कराती है। अब बाप खुद कहते हैं कि हे आत्मायें, निरन्तर मुझ बाप को याद करो। तुम हमारे बच्चे हो, तुमको वर्सा लेना है। सिर्फ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बेहद के बाप की मत मिलती है - ब्रह्मा द्वारा। गुरू ब्रह्मा कहते हैं ना। यह तो है भक्ति मार्ग की महिमा। गुरू ब्रह्मा मशहूर है। वह फिर कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है। आगे हम भी समझते थे कि ठीक कहते है। अब समझते हैं कि माया ने इन्हों से ऐसा कहलाया है। माया भूल कराती है नीचे गिराने के लिए और बाबा अभुल बनाते हैं ऊंच चढ़ाने के लिए। बाप बहुत अच्छी तकदीर बनाते हैं। बाप को याद करना है - यह तो बहुत सहज है। अच्छा।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अपने को मास्टर बीजरूप समझ कर्मेन्द्रियों को समेट शांत में बैठने का अभ्यास करना है। 2) विचार सागर मंथन कर खुशी में रहना है और खुशी-खुशी से पुराना कर्मभोग चुक्तू करना है। अपने आपसे बातें करनी है कि हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब जाते हैं बाबा के पास...। वरदान:- मन को बिजी रखने की कला द्वारा व्यर्थ से मुक्त रहने वाले सदा समर्थ स्वरूप भव l जैसे आजकल की दुनिया में बड़ी पोजीशन वाले अपने कार्य की दिनचर्या को समय प्रमाण सेट करते हैं ऐसे आप जो विश्व के नव निर्माण के आधारमूर्त हो, बेहद ड्रामा के अन्दर हीरो एक्टर हो, हीरे तुल्य जीवन वाले हो, आप भी अपने मन और बुद्धि को समर्थ स्थिति में स्थित करने का प्रोग्राम सेट करो। मन को बिजी रखने की कला सम्पूर्ण रीति से यूज़ करो तो व्यर्थ से मुक्त हो जायेंगे। कभी भी अपसेट नहीं होंगे। स्लोगन:- ड्रामा के हर दृश्य को देख हर्षित रहो तो कभी अच्छे बुरे की आकर्षण में नहीं आयेंगे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris
- GOD of Gita is incorporeal Shiv, not Krishna (a deity)
Who is the supreme soul, know the introduction of God of Shrimat Bhagavad Geeta from senior Rajyogi brother Brijmohan. ''God gives us a solution to create a world that is completely free from disease. When the world reaches a state of extreme degradation, God comes to destroy the evil and unrighteousness and re-establish a peaceful and pure world. Gita is a memorial to God’s direct task of creating a satoguni (pure) world. God has come to awaken the people of Bharat – He says lust is the greatest enemy. Today, due to lust, men are committing barbaric acts against women. Only God can perform the task of purifying this viciousness in humans today. It is time for the people of Bharat to recognize God, who is purifying Bharat. '' BK Sister Usha, Mount Abu : Why did Sri Krishna impart wisdom to Pandavas, who were already righteous? He had first gone to Duryodhana, who said that he knew what dharma was but he could not follow it. Similarly, we all know what dharma is, but how many of us walk the path of dharma? It is the time of extreme unrighteousness. Greed, selfishness, lack of generosity are symptoms of Kaliyuga. Spiritual power is the only power that can resolve all problems. God is now giving us that power. Saints and spiritual leaders should join hands to awaken people about the fact that God has come in Bharat in order to transform the world through true spiritual wisdom being imparted by Him. Life today has become very challenging and stressful. More than ever before, people are insecure and anxious about their future. As humans struggle to find solutions to the mounting problems, it is evident that we need a higher wisdom and power to deal with the emerging crises. It is said in the scriptures that God comes at the time of extreme moral degradation. There is a very famous shloka in Bhagavad Gita: “Yada yada hi dharmasya glanirbhawati bharat, abhyuthannam adharmasya tadatmanam srijamyaham”. Looking at the deteriorating condition of the world, we can realise that the time has come when God’s intervention is necessary to bring about a transformation in the world. Mahashivratri or Shiv Jayanti is the most significant of all festivals, for it marks the descent of the Highest on High God Shiva in the human world to liberate human souls from sin and suffering and re-establish heaven or Satyuga on earth. The deep spiritual meaning of Shivratri is that God descends on earth at the time of extreme darkness (ratri) when the condition of the world has become critical. God is incorporeal and immutable. The Shiva lingam denotes the incorporeal form of God Shiva. It signifies the form of God as a point of light, which is very similar to the description of God in many faiths. This is why the twelve well-known Shiva temples in India are also known as Jyotirlingam Math, signifying his form of light. The eternal light that hangs above the ark in every synagogue, the altar lamps in churches, and light symbols associated with Egyptian, Babylonian, Druid, and Norse gods corroborate the widespread belief in the divine light being the image of the one, incorporeal, Supreme Being. The literal meaning of the word Shiva is benefactor, or one who does good to all. Supreme Soul Shiva brings benefit to all souls by performing the divine functions of creating and sustaining a new, pure world and destroying all vices and evil in the old, impure world, i.e., He gives liberation and salvation to all human beings.
- 7 Nov 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English 07/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, the more you remember the Father, the more the locks on your intellects will open. Those who repeatedly forget to have remembrance of the Father are called unlucky children. Question: What is the basis of accumulating in your account? What brings the greatest income? Answer: You accumulate in your account by donating. To whatever extent you give the Father’s introduction to others, to that extent, your income increases. You earn a huge income by studying the murlis. These murlis change you from ugly to beautiful. There is Godly magic in the murli. It is by studying the murli that you become very wealthy. Song: We have to follow the path on which we may fall and have to be cautious. Om Shanti . The spiritual Father explains to you children: Children, you have to fall and you have to be cautious. To forget the Father repeatedly means to fall and to remember the Father is to be cautious. Maya makes you forget the Father. This is a new aspect. In fact, no one can ever forget his father. A wife would never forget her husband. As soon as they become engaged, their intellects yoga is connected to one another. There is no question of forgetting. A husband is a husband and a father is a father. Now, this one is the incorporeal Father and is also called the Bridegroom. Devotees are called brides. At this time all are devotees whereas there is only the one God. Devotees are called brides and God is called the Bridegroom. Similarly, devotees are called children and God is called the Father. Now, the Husband of all husbands and the Father of all fathers is One. The Supreme Soul is in fact the Father of every single soul, whereas each one has an individual physical father. That parlokik, Supreme Father is the only one God, the Father, of all souls. His name is Shiv Baba. If you simply address an envelope: God, the Father, Mount Abu, would your letter arrive here? You have to write the name on it. That one is the unlimited Father. His name is Shiva. People talk about Shiva Kashi. There is a Shiva Temple there. Surely, He must have been there too. They show that Rama went here and there and that Gandhi went here and there. So, it is true that there is an image of Shiv Baba here and there. However, He is incorporeal. He is called the Father. No one else can be called the Father of all. He is also the Father of Brahma, Vishnu and Shankar. His name is Shiva. There is the temple to Him at Kashi and there is also a temple in Ujjain. No one knows why so many temples have been built to Him. Similarly, those who worship Lakshmi and Narayan say that they were the masters of heaven, but no one knows when heaven existed or how they became the masters of it. If worshippers do not know the occupation of the ones they worship, they are called those with blind faith. Here, too, although some of you say “Baba”, you still don’t have full recognition. You don’t know the Mother and Father. The worshippers of Lakshmi and Narayan worship them. They also go to the temples of Shiva and praise Him and sing: You are the Mother and Father. However, they don’t know how He is their Mother and Father or when He became that. The people of Bharat do not understand anything at all. Christians and Buddhists etc. remember Christ and Buddha. They can instantly tell you their biography, that Christ came at such-and- such a time to establish the Christian religion, whereas the people of Bharat do not know anything about the ones they worship. They don’t know anything about Shiva, nor do they know Brahma, Vishnu or Shankar, or the World Mother (Jagadamba) or the World Father or Lakshmi or Narayan; they just continue to worship them. They don’t know anything about their biographies. The Father sits here and explains to souls: When you were in the golden age, souls and bodies were both pure; you used to rule there. You know that you truly ruled there. Then, while taking rebirth and experiencing 84 births, you lost that kingdom and from beautiful, you became ugly. You were beautiful, but have now become ugly. Nowadays, they make Narayan's picture dark blue too, to show that Krishna was Narayan. However, people don’t understand these aspects at all. The Yadavas were the ones who invented the missiles and the Kauravas and the Pandavas were brothers. Those brothers were devilish whereas these brothers are divine. These brothers also used to be devilish. However, the Father makes them into elevated, divine brothers. So, what happened to the two sets of brothers? There was definitely victory for the Pandavas whereas the Kauravas were destroyed. While sitting here, although some say “Mama” and “Baba”, they don’t know them. They do not follow the Father’s shrimat. They don’t know that Baba is teaching them Raja Yoga. They are not able to maintain that faith. Because of being body conscious, they remember their bodily friends and relatives etc. Here, you have to remember the bodiless Father. This is a new aspect which no human being is able to explain. Even while sitting here with the Mother and Father, some don’t recognise Him. This is a wonder. Although they have taken birth here, they don’t recognise Him, because He is incorporeal. They are not able to understand Him clearly. Then, because they don't follow His directions, they become those who run away, even after having been amazed by the knowledge. If they do not recognise the One who gives them the inheritance of heaven for 21 births, they run away. Those who recognise the Father are said to be fortunate. It is only the one Father who liberates everyone from sorrow. There is a great deal of sorrow in the world. In any case, this kingdom is corrupt. According to the drama, after 5000 years, there will again be the same corrupt world. Then the Father will come again to establish the pure and elevated kingdom of self- sovereignty of the golden age. You have come here to become deities from human beings. This is the world of human beings. The world of deities exists in the golden age. Here, there are impure human beings. Pure deities exist in the golden age. Only those who become Brahmins have this explained to them. Those who become Brahmins will continue to receive explanations. Not everyone will become a Brahmin. Those who become Brahmins are the ones who will later become deities. If they don’t become Brahmins, they cannot become deities. Once they say “Mama” and “Baba,” they enter the Brahmin clan. Then, everything else depends on how much effort they make to study. A kingdom is being established. Abraham and Buddha etc. do not establish a kingdom. Christ came alone and entered someone’s body to establish the Christian religion. Then the souls who belong to the Christian religion continued to follow him down from up above. All the Christian souls are now here. Now, at the end, everyone has to go back home. The Father becomes the Guide for everyone and liberates them from sorrow. The Father is the Liberator and the Guide for the whole of humanity. He will take all souls back. Souls cannot return home because they are impure. The incorporeal world is pure. This corporeal world is now impure. Now, who can purify them all, so that they can return to the incorporeal world? This is why they call out: O God, the Father, come! God, the Father, comes and tells us that He only comes once, when the whole world has become corrupt. They continue to make so many bullets and bombs etc. in order to kill one another. On the one hand, they are making bombs, and on the other hand, there will be natural calamities, floods and earthquakes etc. Lightening will flash, and people will fall ill, because fertilizer has to be made! Fertilizer is usually made out of rubbish. This whole world is going to need manure in order to produce first-class crops. Only Bharat existed in the golden age. So many are now going to be destroyed. The Father says: I come to establish the deity kingdom; everything else is to be destroyed and you will then go to heaven. Everyone remembers heaven, but no one knows what heaven is. When someone dies, they say that he has gone to heaven. Ah! but if someone dies in the iron age, he would surely take rebirth in the iron age. Some don’t even have this much sense. Although they give themselves such titles as Doctor of Philosophy etc., they don’t understand anything. Human beings used to be worthy of living in a temple. That was the ocean of milk whereas it is now the ocean of poison. It is the Father who explains all of these things. He teaches human beings. He doesn’t teach animals. The Father explains: This drama is predestined. As is a wealthy person, so is his furniture. The poor have clay pots whereas the wealthy would have so many material possessions. You are wealthy in the golden age and so you have palaces of gold and diamonds. There is neither dirt etc. there, nor any bad odours. Here, there are bad odours. This is why incense sticks are lit. There, there is the natural fragrance of flowers etc. There is no need to light incense sticks there. It is called heaven! The Father is teaching you in order to make you into the masters of heaven. Just look how ordinary He is! You even forget to remember such a Father. You forget Him because you don’t have full faith. It is a matter of such misfortune to forget the Mother and Father from whom you receive your inheritance of heaven. The Father comes and makes you the highest of all. If you do not follow the directions of such a Mother and Father, you would be considered to be 100% most unlucky. Everyone will be numberwise. There is such a huge difference between becoming a master of the world by studying and becoming a maid or servant. You can understand to what extent you are studying. Elsewhere, founders of religions come to establish their religions, whereas here, there is the Mother and Father because this is the family path. It used to be the pure family path and it is now the impure family path. When Lakshmi and Narayan were pure, their children were also pure. You understand what you will become. The Mother and Father makes you so elevated and so you should follow Him. It is Bharat that is called the Mother Father country. In the golden age, everyone was pure whereas here, everyone is impure. Everything is explained so clearly to you, yet you do not remember the Father, and so the locks on your intellects remain closed. While listening, you renounce the study; the locks on your intellect become completely locked. In schools, too, they are numberwise. Reference is made to a stone intellect and a divine intellect. Those with stone intellects do not understand anything, because they don’t remember the Father for even five minutes out of the whole day. If they were to remember Him for five minutes, the locks on their intellects would open that much. If they were to remember Him more, the locks would open fully. Everything depends on remembrance. Some children write a letter to Baba addressed: “Dear Baba” or “Dear Dada”. Now, if you simply address the letter to “Dear Dada” and post it, would it arrive here? You definitely need to write the name. There are many Dadas and Dadis in the world. Achcha. Today is Deepawali. People open new accounts at Deepawali. You are true Brahmins. Those brahmin priests make businessmen open new accounts. You also have to keep new accounts, but these are for the new world. The accounts of the path of devotion are of unlimited loss. You attain the unlimited inheritance and you attain unlimited peace and happiness. The unlimited Father sits here and explains these unlimited aspects, but only the children who are to receive unlimited happiness are able to understand all of these things. Only a handful out of multimillions come to the Father. Some, while moving along, start losing their income. Then, whatever they have accumulated is cancelled. Your account increases when you donate to others. If you do not donate, your income does not increase. You are making effort to increase your income. That will only happen when you donate to others and enable them to receive benefit. To give the Father’s introduction to someone means to accumulate. If you do not give the Father’s introduction, you do not accumulate anything. Your income is extremely great. You can earn a true income by studying the murli, but you need to know whose murli it is. You children also know that those who have become ugly have to listen to the murli in order to become beautiful. “There is magic in Your murli”. They speak of God's magic. So, there is Godly magic in this murli. It is now that you have this knowledge. Deities did not have this knowledge. Since they didn’t have this knowledge, how could those who came after them have this knowledge? All the scriptures that were written later on will also be destroyed. There are very few of your true Gitas, whereas they must number hundreds of thousands in the world. In fact, it is these pictures that are the true Gita. They are not able to understand as much from those Gitas as they can from these pictures. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Study very well and make yourself fortunate. In order to become a deity, become a firm Brahmin. 2. In order to remember the bodiless Father, become soul conscious. Practise forgetting your body. Blessing: May you be a contented soul who invokes divine virtues by making an offering of all your defects into the sacrificial fire. On Deepawali, special attention is paid to cleanliness and to earning an income. Similarly, you have to keep the aim of having cleanliness in every way and also of earning an income and becoming a contented soul. It is only with contentment that you are able to invoke all the divine virtues. The offering of defects will then be made automatically. Finish weaknesses, deficiencies, feelings of being powerless and the delicate nature that remain within you and now begin a new account, wear the new clothes of new sanskars and celebrate the true Deepawali. Slogan: Only those whose light of awareness is constantly lit can become the lamps of the Brahmin clan. #english #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday
- 16 Nov 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English 16/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, you have to become spiritual guides and go on this pilgrimage and enable others to go on it. This remembrance is your pilgrimage. Continue to have remembrance and your mercury of happiness will rise. Question: Which sanskars disappear and which sanskars remain as soon as you go to the incorporeal world? Answer: There, the sanskars of knowledge disappear and only the sanskars of the reward remain. It is on the basis of these sanskars that you experience your reward in the golden age. The sanskars of studying and making effort do not remain there. Once you receive your reward, this knowledge ends. Song: O traveller of the night do not become weary. The destination of dawn is not far off. Om Shanti . Here, God Shiva speaks to you personally. It says in the Gita that God Shri Krishna speaks. However, Krishna cannot personally appear in front you with that same name and form. It is incorporeal God who speaks and He speaks to you personally. If they say: “God Krishna speaks”, it is as though they are referring to a corporeal being. Those who relate the Vedas and scriptures would never say “God speaks”, because those sages, holy men and mahatmas etc. are all corporeal. The Father says: O spiritual travellers. The spiritual Father would surely say to souls: Children, don’t become weary. Some become weary while on a pilgrimage, and so they turn back. Those are physical pilgrimages. They visit many different temples while going on a physical pilgrimage. Some visit the Shiva Temple where all the physical images of the path of devotion are kept. That Supreme Spirit, the Supreme Father, the Supreme Soul, gives you this knowledge and says to you souls: O children, connect your intellects in yoga to Me alone. When people go on those pilgrimages, there are brahmin priests sitting there who sing and relate stories from the scriptures to them. However, yours is only the one true story of becoming a true Narayan, that is, of becoming Narayan from an ordinary man. You understand that you will first go to the sweet home and that you will later come down to the land of Vishnu. At this time you are in the land of Brahma. This is called your parents’ home. You don’t have any jewellery etc. because you are in your parents’ home. You understand that you are to receive limitless happiness in your in- laws’ home. Here, in your iron-aged in-laws’ home, there is limitless sorrow. You have to go across to that land of happiness. You have to be transferred from here. The Father will seat you all in His eyes and take you home. Krishna’s father has been portrayed carrying him across the river in a basket. Here, the unlimited Father takes you children across to your in-laws’ home. First, He will take you to your incorporeal home and later send you to your in-laws’ home. You will forget all of these aspects of the in-laws’ home and the parents’ home. That is your incorporeal Parent’s home. There, you will have forgotten this knowledge. The sanskars of knowledge will have disappeared and only the sanskars of your reward will remain. Then the only awareness you children will have will be of your reward. You will go and take a birth of happiness according to your reward. You have to go to the land of happiness. Once you receive your reward, this knowledge finishes. You understand that the same acts of the reward will take place again. Your sanskars will become those of the reward. Your sanskars are now those of making effort. It is not that the sanskars of both effort and reward will remain there; no. This knowledge does not remain there. This is your spiritual pilgrimage and the Father is your Chief Guide. In fact, you also become spiritual guides and take everyone along with you. Those guides are physical, whereas you guides are spiritual. They go to Amarnath with great pomp and splendour. Large groups go especially to Amarnath with pomp and splendour. Baba has seen many sages and holy men etc. take musical instruments there. They also take a doctor along with them because the climate there is cold and some fall ill. Your pilgrimage is very easy. The Father says: Your pilgrimage is one of remembrance. The main thing is remembrance. The mercury of happiness of you children will remain high if you continue to have remembrance. You also have to take others along with you on this pilgrimage. This pilgrimage only takes place once. Those physical pilgrimages begin to take place on the path of devotion, but they don’t begin right at the beginning. It is not that the temples and images are made straightaway; they are made gradually later on. First, the temple to Shiva will be built. They first build a Somnath temple (image of Shiva) in their homes, so that there is no need to go anywhere. All of those temples etc. are built later on. It takes a great deal of time because the new scriptures, new pictures, new temples continue to be made very slowly. It takes time because there also have to be those who study the scriptures. It is when the cults etc. increase that the thought arises to create scriptures. It takes time to create so many pilgrimage places, so many temples and pictures. Although it is said that the path of devotion begins in the copper age, it still takes time. The degrees continue to decrease. Devotion is at first unadulterated and it then becomes adulterated later. The evidence of all these aspects has been shown very clearly in the pictures. Those who explain should use their intellects on how they should make such pictures to explain these various aspects. These ideas are not in everyone’s intellect; all are numberwise. Some are not able to use their intellects at all for this, and so they receive a status accordingly. It is understood what they will become. As you go further, you will understand this more. When war takes place you will see everything practically. You will then repent a great deal. You will not be able to study at that time. At the time of war, there will be cries of distress; you will not be able to listen to them. Who knows what will happen? You saw what happened at the time of partition. The time of destruction is very severe. Yes, you will receive many visions through which you will come to know how much each one has studied. There will be a great deal of repentance and you will also receive visions. You stopped studying and this is why your condition has become such. How can Dharamraj punish you without first giving you a vision? He will give visions of everything. You will not be able to do anything at that time. You will say: “Oh! my destiny! The time for making effort will have ended. Therefore, the Father says: Why not make effort now? It is by doing service that you will climb on to the Father’s heart throne. The Father would say: This child is doing good service. If a military person dies, his colleagues, friends and relatives are also given an award. Here, it is the unlimited Father who gives you the award. You receive the award for your future 21 births from the Father. Each one of you should place your hand on your heart and ask yourself how much you study. If you are unable to imbibe knowledge, it would be said that it is not in your fortune. It would be said that your karma is not so good. Those who have performed a lot of bad actions cannot take in any of this knowledge. The Father explains: Sweet children, you also have to take your companions with you on this spiritual pilgrimage. It is your duty to tell everyone about this pilgrimage. Tell them that this pilgrimage of ours is spiritual whereas other pilgrimages are physical. They show a magic lake near Rangoon. It is said that by bathing in it, you can become a fairy. However, no one becomes a fairy. It is a question of bathing in knowledge through which you become an empress of Paradise. It is a common thing for you to go and come from Paradise through the powers of knowledge and yoga. In fact, you are stopped from repeatedly going into trance, as that would become a habit. Therefore, this is the Mansarovar of knowledge. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes and gives you this knowledge through this human body. This is why it is called Mansarovar. The meaning of the word ‘Mansarovar’ comes from the ocean; it is very good to bathe in the ocean of knowledge. The wife (of an emperor) in Paradise is called an empress. The Father says: You too become the masters of Paradise. There is love for the children. There is mercy for all. There is also mercy for the holy men. It is written in the Gita that God also uplifts the holy men. Upliftment takes place through knowledge and yoga. You children need to be very alert and active in order to explain to others. Tell them: Everything you know is like buttermilk. You do not know the One who gives the butter. The Father explains everything to you very clearly, but it all depends on how much of it sits in your intellects. By recognizing the Father, human beings become like diamonds. By not knowing Him, human beings become like shells and completely impure. By knowing the Father, they become pure. There is no one pure in the impure world. The children who are maharathis will be able to explain these aspects very well. There are many Brahma Kumars and Kumaris. The name Prajapita Brahma is renowned. You are the mouth-born children of Prajapita Brahma. Brahma has been portrayed with 100 arms and 1000 arms. It has also been explained that Brahma cannot have that many arms. Brahma has many children. Whose child is Brahma? He too has a Father. Brahma is Shiv Baba’s child. Who else could be his father? It cannot be a human being. Brahma, Vishnu and Shankar are remembered as residents of the subtle region; they cannot come here. Brahma, the Father of People, would surely be here. He cannot create people in the subtle region. Therefore, the Supreme Father, the Supreme Soul, comes and creates the Shakti Army through the mouth of Brahma. You first have to introduce yourselves as the mouth-born children of Brahma. Tell them that they too are the children of Brahma. Prajapita Brahma is the father of all. Later, other generations emerge from him and then the names keep changing. You are now Brahmins. You can see how many children Prajapita Brahma has in a practical way. The children must surely receive the inheritance. Brahma does not have any property. It is Shiv Baba who has all the property. Brahma is Shiva’s son. You receive your inheritance from the unlimited Father. Shiv Baba sits here and teaches you through Brahma. You receive your inheritance from the Grandfather. Baba explains a great deal, but you don’t have yoga. What can the Father do if you do not do things according to the law? The Father says: That is your fortune! If you were to ask Baba, Baba could tell you what status you would receive from your present condition. Your heart is the witness to tell you how much service you do and to what extent you follow shrimat. Shrimat says: Manmanabhav! Continue to give everyone the introduction of the Father and the inheritance. Continue to beat these drums. Baba continues to give you a signal that you have to explain to the Government, so that they too can understand that the strength of Bharat has definitely been lost. There is no yoga with the Supreme Father, the Supreme Soul, the Almighty Authority. When you have yoga with Him, you are able to conquer Maya and thereby become the masters of the world. You have to conquer Maya while living at home with your families. The Father is our Helper. So much is explained to you, but you have to imbibe it. Baba has explained: Wealth is not reduced by donating it. Only when you do service will you climb on to Baba’s heart throne. Otherwise, it is impossible. This does not mean that Baba does not love you. Baba loves the serviceable ones. You have to make effort to make everyone worthy of going on the pilgrimage. Manmanabhav! This is a spiritual pilgrimage. Remember Me and you will come to Me. After going to the land of Shiva, you will go to the land of Vishnu. Only you children know these things. Although they study a great deal, none of them understands the meaning of “Manmanabhav”. The Father gives you this great mantra: Remember Me and you will become conquerors of sin. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Bathe in knowledge. Serve others with love and climb on to the Father's heart throne. Do not become careless at this time of making effort. 2. You have to go across this iron-aged land of sorrow to the land of happiness by sitting on the Father's eyelids. Therefore, transfer everything you have. Blessing: May you merge yourself in the Ocean of Love and remove the dirt of any consciousness of “I” and become a pure soul. Those who remain constantly merged in the Ocean of Love have no consciousness of anything of the world. Because of being merged in love, they easily go beyond all situations. It is said of devotees that they are lost in God, but children are constantly drowned (merged) in love. They have no awareness of the world, and all consciousness of “mine” finishes. All the many types of “mine” make you dirty, but when just the one Father is “mine”, the dirt is removed and the soul becomes pure. Slogan: To instil and make others instil the jewels of knowledge into the intellect is to be a holy swan. #Murli #brahmakumari #english #bkmurlitoday
- 2018 समाप्ति वर्ष की तैयारी पर एक चिंतन
भक्ति में शब्दों का खेल चलता है तो ज्ञान में संकल्पों का । भक्ति में गायन और पूजन तो ज्ञान में पूज्य बनने का पुरुषार्थ होता है । भक्ति में सुनना और कहना होता है तो ज्ञान में लक्ष्य निरधारित कर दृढ़ इच्छा शक्ति से अपनी मंजिल तरफ बढ़ना होता है जिसके लिए *बहुतकाल का पुरुषार्थ* जरुरी है तब कहीं जाकर सफलता प्राप्त होती है । *सहज पुरुषार्थ* करो जिससे हल्का और सरल बनो । *बोझिल और कन्फ्यूज्ड* नहीं बनना है । *ज्ञान धारणा के लिए होता है तो सेवा संतुष्टता के लिए । यह रिजल्ट नहीं तो क्या फायदा* । एक स्थान पर बैठ योग करना है तो चलते फिरते भी अभ्यास होना चाहिए, शब्दों में आना पड़ता है तो मौन से भी काम निकलना चाहिए, तन का ख्याल रखें तो मन का भी, धन जीवनयापन के साथ साथ परमार्थ के श्रेष्ठ कार्य में भी सफल करें । हर बात में *बैलेंस* होना चाहिए । जो भी कार्य करें उसका आधार *प्यूरिटी* हो तभी कार्य *श्रेष्ठ और विशेष* होगा। इस देह की भ्रकुटी में आत्मा की स्मृति रहे तो दूसरों प्रति भी आत्मिक दृष्टि रहे , लाइट के कार्ब में रहकर ५ तत्वों को भी सकाश देने का अभ्यास करते रहें । वृत्ति और दृष्टि श्रेष्ठ रहेंगे तो स्थिति भी ऊँची हो जायेगी । *अभी समेटने की शक्ति को बढ़ाएं , ज्यादा विस्तार में नहीं जायें, वृत्ति व दृष्टि सदा बेहद में रहे, एक बाप का ही आधार हो, बाप के ही दिल्ररूपी तख़्त पर सदा विराजमान रहें, बाप के समीप रहेंगे तो समान बन जायेंगे । अब तक जो भी खजाने जमा किये हैं वह किसलिए ? चेक करो, टेस्ट करो और यूज़ करो* । use करेंगे तो पता चलेगा कि काम कर भी रहा है , नहीं तो अंत समय में धोखा भी दे सकता है । शस्त्रों को भी युद्ध करने के पहले अच्छी तरह से चेक कर रेडी करते हैं तुम्हारा भी माया के साथ रूहानी युद्ध है तो यहाँ भी उसी तरह से लागू होता है । *अपने रहे हुए कमी कमजोरियों को, पुराने स्वाभाव संस्कारों को, कर्मों के हिसाब किताब को पूर्ण रूप से समाप्त करना ही समाप्ति वर्ष मनाना है,* संकल्प मात्र में भी विकारों की अविद्या रहें शुद्रपना के संस्कार कुछ भी शेष ना रहे । जरा भी कहीं *लगाव, झुकाव, मनमुटाव, आसक्ति,अहंभाव, हदपना के संस्कार* अंश वंश में रहे हुए हैं तो समाप्ति की परमाहुती नहीं दे सकेंगे व नयी दुनिया का महाद्वार नहीं खोल पायेंगे । *पुरुषार्थ की असहजता, मन की चंचलता, वैमनस्यता व विषय लोलुपता, बुद्धि की संकीर्णता एवं संस्कारों की अशुद्धता को सदा के लिए अलविदा कहना ही समाप्ति वर्ष मनाना है* । अब *सुनना, सुनाना नहीं* बस *बनने पर ही विशेष अटेंशन* होना चाहिए याने *स्व की कमी कमजोरी* को परख उसका श्रेष्ठ दैवी संस्कारों में *परिवर्तन.. परिवर्तन.. परिवर्तन* । *दूसरों को बदलने से न आप बदलोगे न दूसरों को सुनने से बदलेंगे, स्वयं को ही स्वयं को बदलना है अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और स्वानुभूति के आधार से ।* देवताई संस्कारों से सुसज्जित 🤴🏻 हमारा आत्मा रूपी⭐ रूहानी विमान परमधाम एअरपोर्ट पर पहुँचने के लिए सदा तैयार रहे,बस ready, steady, go ️पांच तत्वों के आकाश को पार कर परमतत्व के अनंताकाश में विश्राम और परमशान्ति पाने के लिए और पुनः स्वर्णिम दुनिया में उड़ान भरने के लिए । --- Useful links --- 'Revelations' from Gyan Murli 7 days Raja Yog course in Hindi World Transformation Secrets .
- 10 Oct 2018 BK murli today in English
Brahma Kumaris murli today in English 10/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, everything the Father tells you is new for the new world. He gives you new directions and this is why His ways and means are remembered as unique. Question: In which aspect does the merciful Father caution all you children in order for you to make your fortune elevated? Answer: Baba says: If you want to make your fortune elevated, do service. If you simply eat and sleep and don't do service, you won't be able to make your fortune elevated. To eat without doing service is wrong. Therefore, Baba cautions you. Everything depends on how you study. You Brahmins have to study and teach others. You have to relate the true Gita. The Father has mercy for you and this is why He continues to enlighten you about everything. Song: From the day that You and I met, everything has seemed new. Om ShantiThe spiritual Father explains to you. When children find the unlimited Father, everything He tells them is new because this Father is the One who establishes the new world. Human beings cannot say such new things. The Father, who is also called Heavenly God, the Father, is the unlimited Father who establishes heaven. It is Ravan who establishes hell. There are five vices in the female and five vices in the male. That is the Ravan community. So, these things that Baba has told you about are new, are they not? It is the Supreme Father, the Supreme Soul, who is called Rama, who creates heaven. It is Ravan who creates hell. People make an effigy of him every year and burn it. Once someone has been burnt, you wouldn’t be able to see his effigy (form) again. That soul goes and takes another body; his features etc. all change. Here, they make a Ravan with the same features every year and then burn it. In fact, just as incorporeal Shiv Baba doesn't have any features, in the same way, Ravan doesn't have any features either. Ravan is the vices. The Father explains what the people on the path of devotion want. God comes to give the fruit of devotion and to give protection because there is a lot of sorrow in devotion. There is temporary happiness. The lives of the people of Bharat are very unhappy. Someone's child might have died, someone might have gone bankrupt; their lives are unhappy. The Father says: I come to make everyone's life happy. The Father comes and tells you new things. He says: I have come to establish heaven. There, you will not indulge in vice. That is the viceless kingdom and this is the vicious kingdom. If you want the kingdom of heaven, then only the Father establishes that. Ravan establishes the kingdom of hell. The Father asks you: Will you come to heaven? Will you become the emperors and empresses of Paradise, the masters of the world? These things are not mentioned in the Vedas or scriptures. The Father doesn't tell you to say, "Rama, Rama" or to stumble from door to door or go to the temples and pilgrimage places or study the Gita and Bhagawad etc; no. There are no scriptures in the golden age. No matter how many Vedas and scriptures you study or how many sacrificial fires you hold or chanting you do or donations you give or charity you perform, all of that is simply stumbling. There is no attainment through that. There is no aim or objective on the path of devotion. I have come to make you into the masters of heaven. At this time, all are residents of hell. If you tell anyone that he is a resident of hell, he would get upset. In fact, you know that the iron age is called hell and that the golden age is called heaven. The Father has brought the sovereignty of Paradise. He says: If you want to become the masters of heaven, you definitely have to become pure. The main thing is purity. Some people say that they would never be able to remain pure. Oh! but you are made pure so that you can go to heaven. First of all, you have to return to the land of peace and then go to heaven. You tell those of all religions: You have to renounce your body, become bodiless and then return home. Therefore, you have to break body consciousness. It is a bodily religions when you say, "I am a Christian" or "I am a Buddhist". Souls reside in the sweet home. So, the Father says: Will you return to the land of liberation? There, you will remain in peace. Tell Me, how will you be able to go back? Remember Me, your Father, and your sweet home. Renounce all the religions of the body. “This one is a maternal uncle, this one is a paternal uncle”. Renounce all those bodily relations. Consider yourself to be a bodiless soul. Remember Me! That’s all. This is the only effort. I do not tell you anything else. Renounce all the scriptures etc. that you have studied. I am giving you new directions for the new world. It is said that God's ways and means are unique. ‘Gati’ is said to be liberation. The Father tells you new things. When people hear these things, they say that whatever you tell them here are new things. These are not the things of the scriptures. In fact, these are the things of the Gita, but people have falsified the Gita. I have not taken up the Gita, the religious book. That is written later. I speak knowledge to you. No one else would ever say: You are My long-lost and now-found children. Only the incorporeal, Supreme Soul says this. He speaks to incorporeal souls. The souls listen to Him. This body is the organ. No one understands these things. There, human beings speak to human beings whereas the Supreme Soul sits here and speaks to souls. We souls listen to Him through these ears. You know that the Supreme Father, the Supreme Soul, sits here and explains to us. People wonder how God would explain. They think that it is God Krishna who speaks. Oh! but Krishna is a bodily being. I am not a bodily being. I am bodiless and I speak to bodiless souls. So, people are amazed when they hear these new things. The children who heard this in the previous cycle like this a lot. They study here and they say: Mama, Baba. There cannot be blind faith here. In a worldly way too, children would call their parents mother and father. You now have to stop remembering those worldly parents and remember the parlokik Mother and Father. This parlokik Mother and Father is the One who teaches you the exchange of nectar. He says: O children, now stop giving and taking poison. Give one another the teachings that I give you and you will become the masters of heaven. If you listen to even a little, you will go to heaven. However, if you are unable to make others the same as yourselves, you will go and become maids and servants. Maids and servants are numberwise. The maids and servants who look after the children would surely be those with a good status. If, while staying here, you don't study, you become maids and servants. Subjects too are numberwise. Those who study well receive a very high status. The wealthy subjects would have maids and servants. Each one of you has to look at your own face: What am I worthy of becoming? If any of you were to ask Baba, Baba would quickly tell you. The Father knows everything and He also shows you the evidence for why that is what you will become. Even though someone may have surrendered himself or herself, there is an account in that too. If they have surrendered themselves but don't do service and simply continue to eat and drink, they use up and finish what they gave. They eat away all they gave and don't do service and they therefore become third-class maids and servants. Yes, if someone does service and eats, that’s fine. If someone doesn't do any service, but simply eats away, he would use everything up and would then accumulate a burden. Some stay here and eat away whatever they gave. Some don't give anything, but they do perform a lot of service and so they claim a high status. Mama didn't give any wealth, but she attains a very high status because she does Baba's spiritual service. There is an account. Some have the intoxication that they gave everything they had to Baba and that they have surrendered themselves. However, they do eat, do they not? Baba gives you all the examples. If you don’t do service, you just eat and finish it all. It is said: Those who sleep lose out. To eat without doing eight hours of service is wrong. If you continue to eat, you won't be able to accumulate anything and you will then have to do service. The Father has to tell you everything so that no one can say: Why didn't You tell us before? Baba gave everything and he also continued to do service and that’s why he receives a high status. If you surrender yourself but simply sit and eat away and don't do service, what would you become? Some don't follow shrimat. Baba is especially explaining to you so that, at the end, no one can ask: Why is my status like this? The Father explains: This will be the consequence cycle after cycle if you do not do service and eat for free. Therefore, Baba continues to caution you. You should understand that your status would be destroyed for cycle after cycle. Baba feels mercy and this is why He enlightens you about everything. If you don't do service, you won't be able to claim a high status. Those who live at home with their families and do service receive a very high status. Everything depends on studying and teaching others. You are Brahmins. You have to relate the true Gita. Those people carry a religious book under their arms. You don’t carry anything under your arms. You are true Brahmins. You have to relate the truth and enable them to have true attainment. All the rest have made you go into loss. This is why it is written that all of that is false. Baba tells you the truth and makes you into the masters of the land of truth. These matters have to be understood. It is not a small thing to become a master of the world! Those who are sensible children will continue to make plans: We will build such buildings with golden bricks. We will do this. While a child of a wealthy person is growing up, he would have such thoughts as: I will do this and I will build this. You too are going to become princes in the future and so you would have the interest: I will build such palaces that no one else would have. Those who study well and teach others would have these thoughts. There will be the sovereignty. So, you should have such thoughts in your intellects: With which number will I pass? This is a very big school. Many hundreds of thousands and millions will come here to study. Only the Father sits here and explains all of these things. God is One. He is called the Mother and Father. He comes and adopts you. These are such deep matters. This is a new school and the One teaching you is new. He explains to you so well. The aprons of those who are worthy will be filled. They will remember the Father. The Mother and Father never forget anyone. So, how can the children of the confluence age forget the Father? Achcha. The world is in chaos whereas you children are in silence. There is peace in silence and happiness in peace. You know that, after liberation, there is liberation-in-life. You children simply have to remember two words: Alpha, Allah, and beta, the sovereignty. By simply remembering one Alpha, you received the sovereignty. What else remains? There is then just buttermilk left. When you have found Alpha, it means you have found the butter and all the rest is buttermilk. It is like that, is it not? We stay in silence. You know that you stay in silence and follow shrimat. However, it is a wonder that some children don't remember Alpha fully; they forget Him. Maya brings storms. The Father also says: Manmanabhav, madhyajibhav. These words are mentioned in the Gita. You should ask those who study the Gita: What is the meaning of “Manmanabhav and Madhyajibhav”? The Father says: Remember Me and you will receive the sovereignty. Renounce all bodily religions and become bodiless and remember the Father and you will receive the sovereignty. It is also mentioned in the Granth: Chant the name of Alpha and you will receive the sovereignty. You receive the sovereignty of the land of truth. Compared to the world, you are completely unique. No one else would say this. The Father is telling you new things. All the rest only speak of old things. This is something very easy. Belong to Alpha and you will receive the sovereignty. You still have to make effort. The more service you do to make others the same as yourself, the more fruit you will receive. People neither know Alpha nor beta. Beta means the butter of the sovereignty. They show butter in the mouth of Krishna. Surely, the One who established heaven would have given the sovereignty. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. You have to return to the sweet home. Therefore, forget bodily religions and relations and consider yourself to be bodiless. Maintain this practice. 2. Give others the teachings that you have received from the Father. Make others the same as yourself. You definitely have to do eight hours of service. Blessing: May you give and take power through your drishti and be a great donor and become an image that grant blessings. As you progress further, there will be no time or circumstances to serve with words. Then, it is only by being a bestower of blessings and a great donor that you will be able to give an experience of the powers of peace, love, happiness and bliss. When you used to go in front of the non-living idols, you received vibrations from their faces and you experienced divinity from their eyes. It is because you did this service in the corporeal form that the non-living images were created. Therefore, practise giving and taking power through your drishti and you will become a great donor and an image that grants blessings. Slogan: Let there be the sparkle of happiness, peace and joy in your features and you can make the future elevated for many souls. #brahmakumari #Murli #bkmurlitoday #english
- 2018 समाप्ति वर्ष में 24 कैरट सम्पूर्ण बनने के लिए 24 पॉइंटस
(2018 is described by Baba as the Samapti Varsh) Here are 24 points of Murli to become like 24 carat Gold) समाप्ति वर्ष में २४ कैरट सम्पूर्ण बनने के लिए २४ पॉइंटस : 1) अमृतवेला (२.० से ४.४५ AM ) को ठीक करने का पुरुषार्थ अवश्य करना है । यह वेला मिस न होने के साथ साथ पावरफुल और लवफुल हो इस पर भी ध्यान देना है । बाबा के महावाक्य हैं “बच्चे तुम सिर्फ अपना अमृतवेला ठीक करो तो मैं तुम्हारा सब कुछ ठीक कर दूँगा । 2) बाबा की साकार और अव्यक्त मुरलियों पर अधिक से अधिक मनन चिंतन करें । सेवाकेंद्र पर क्लास में मुरली सुनने से संगठन का विशेष बल और वायुमंडल का अतिरिक्त सहयोग मिलता है । 3) नुमाःशाम अथवा संध्याकाल योग ( ६.३० से ७.३० PM ), अकेले या संगठित रूप से अवश्य करें जिसमें विश्व की आत्माओं वा प्रकृति प्रति योगदान (सकाश ) देना है । 4) रात्रि को सोने से पहले कम से कम १५ – ३० मिनट योग करें , यदि हो सके तो साकार या अव्यक्त मुरली पूरी या सार पढ़कर अंत में बाबा को चार्ट देकर श्रेष्ठ संकल्प करके बाबा की याद में सोना है । इससे विकर्मों के बोझ से हलके होने में मदत मिलेगी और दूसरे दिन की शुरुआत श्रेष्ठ संकल्पों से होगी । 5) सेवाकेंद्र से कनेक्शन जरुर रखें । बाबा के कमरे में कुछ समय के लिए योग अवश्य करें इससे आत्मा की बैटरी चार्ज हो जायेगी और कर्मक्षेत्र में श्रेष्ठ स्थिति बनी रहेगी । 6) बाबा और माया दोनों के बहुरूपी कार्य हैं और दोनों ही सर्वशक्तिमान हैं इस बात को ना भूलें और माया से हर पल जागरूक रहें । 7) अपने लक्ष्य और जिम्मेवारी प्रति सतर्कता रखनी है । पुरुषार्थ और पढ़ाई अंत तक चलनी है इसमें तनिक भी आलस्य और अलबेलापन ना आये इसकी खबरदारी रखनी है । इसके लिए सदा उमंग उत्साह में रहना जरुरी है । 8) विस्तार से सार में अधिक रूचि रखें । आत्मा बिंदी, शिवबाबा बिंदी ड्रामा बिंदी इसमें ही सारा विस्तार समाया हुआ है । 9) शब्दों से अधिक अपने कर्मों द्वारा गुणों को दर्शायें । 10) तन मन धन तीनों को सेवा में सफल करने पर अटेंशन हो । कुछ नहीं कर सकते तो सदा रहमदिल बन सर्व को दुआएं दो दुआएं लो । यह सहज और शक्तिशाली सेवा है, जिसमें समय और मेहनत कम लगती है और रिजल्ट ज्यादा निकलती हैl 11) चारों ही सब्जेक्ट पर ध्यान देना जरुरी है पर वर्तमान समय अनुसार दैवी गुणों की धारणा पर अधिक फोकस हो क्योंकि बाकी सब्जेक्ट पर ध्यान देने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है अब अपने चलन और चेहरे द्वारा स्वयं को और बाप को प्रत्यक्ष करने का समय आ गया है, इससे ही वास्तविक प्रत्यक्षता होगी पढ़ाई की और पढ़ाने वाले की । आचार, विचार, उच्चार और आहार शुद्धि में सभी धारणाओं का समावेश हो जाता है । 12) जब तक बेहद की दृष्टि और आत्मिक दृष्टि नहीं बनेगी तब तक समझना मंजिल अभी दूर है। 13) विकार और दैहिक आकर्षणों से अब इच्छा मात्रम अविद्या होनी चाहिए । यह तभी संभव है जब यह हमारे संकल्पों और स्वप्न में भी आना बंद कर दे । 14) याद के चार्ट को ४ से ८ घंटे तक बढ़ाओ, इसके लिए एक स्थान पर ही बैठ कर योग नहीं करनी है पर कर्म करते हुए याद जरुरी है क्योंकि यही अभ्यास अंत समय में अचल अडोल स्थिति बनाने में और अंतिम समय की सेवा में मदद करेगा । देही अभिमानी , फ़रिश्ता स्थिति और बीज रूप अवस्था इन तीनों को योगाभ्यास में जरुर शामिल करें । 15) श्रेष्ठ कर्म तुरंत करें और बुरे कर्म करने के पहले बार बार सोचे, हो सके तो बापदादा को सामने रख कर विचार करें, सूक्ष्म मदत मिलेगी । 16) जीवन में हर बात में बैलेंस जरुरी है यही सर्वश्रेष्ठ साधना है और बुद्धि की स्पष्टता यही सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक है क्योंकि बैलेंस से जीवन में स्थिरता आती है तो स्पष्टता हमें सही दिशा की ओर उन्मुख करता है और अंत में निरहंकारी और नम्र बनाता है । 17) प्रेम और संतुष्टता का गुण बहुत ही आवश्यक है क्योंकि सर्वप्रति प्रेम ही सुखी दुनिया का आधार है और संतुष्टता सर्वप्रप्तियों का आधार है । जिसमें ये दोनों गुण हैं उससे दूसरे सभी भी प्रेम करते हैं और संतुष्ट रहते हैं जिससे उसका दुआओं का और पुण्य का खाता जमा होता रहता है । 18) एकांत वासी, मौन और विचार सागर मंथन इन तीनों का अभ्यास आपको अशरीरी स्थिति बनाने में मदत करेगी । 19) स्वदर्शन चक्र अथवा पाँच स्वरुप और ट्रैफिक कण्ट्रोल का अभ्यास बीच बीच में करते रहें, इससे मन समर्थ बन दैवी गुणों का विकास होता है । परदर्शन, धूतीपना अथवा व्यर्थ बातों में अपना बहुमूल्य समय ना गवाएँ । संगम का अमूल्य समय सारे कल्प में एक बार ही मिलता है यह स्मृति में रख समय सफल करें वर्ना अंत में पश्चाताप ही करना पड़ेगा । 20) अहंकार एक क्षण में ही सभी कमाई चट कर पद भ्रष्ट करने का समार्थ्य रखता है । कृतज्ञता, नम्रता के गुण और निमित्तपन का भाव है तो अहंकार को स्थान नहीं मिलेगा। रेस करने की मनाही नहीं है पर रीस ना करें । 21) अन्दर एक बाहर दूसरा ऐसे दोहरा व्यक्तित्व वाला ना बने नहीं तो बीच मझधार में अटक जायेंगे । सच्चे और साफ़ दिल वाले ही भगवान को पसंद है । 22) जो स्व चेकिंग कर स्व को चेंज करेगा वही अपने संस्कारों को परिवर्तन कर सकेगा । 23) बीच बीच में अब घर जाना है और नयी दुनिया में आना है अर्थात मुक्ति धाम और जीवन मुक्ति धाम की स्मृति का अभ्यास करते रहें इससे नष्टोमोहा और बेहद के वैरागी बनने में सहयोग मिलेगा । 24) आखिर में, मन्मनाभव, एक बाप दूसरा न कोई ,एक बल एक भरोसा यही सर्वश्रेष्ठ तपस्या है, इनको जो अमल में लायेगा और हर घड़ी अंतिम घड़ी समझते हुए बहुत काल के अभ्यास द्वारा सदा एवररेडी रहेगा वही अचानक के सेकंड का फाइनल पेपर में पास हो आगे नंबर लेगा । ---- Useful Links ---- 5 स्वरूप के अभ्यास के लिए 10 विधि (अव्यक्त बपदादा): https://www.brahma-kumaris.com/single-post/5-swaroop-abhyas-avyakt-bapdada-hindi Revelations from Murli: https://www.brahma-kumaris.com/revelations BK ARTICLES (Hindi & English): 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