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  • BK murli today in Hindi 16 June 2018 - Aaj ki Murli

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 16-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “ मीठे बच्चे - जैसे बाप सबको सुख देते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी फूल बन सबको सुख दो, किसी को काँटा नहीं लगाओ, सदा हर्षित रहो” प्रश्न: बाप जब बच्चों से मिलते हैं तो कौन-सी बात और किन मीठे शब्दों में पूछते हैं? उत्तर- मीठे-मीठे लाडले सिकीलधे बच्चे-खुश मौज में हो? यह प्यार के बोल शिवबाबा के मुख से ही अच्छे लगते हैं। प्यार से शिवबाबा पूछते हैं-बच्चे, राजी खुशी हो? क्योंकि बाप जानते हैं बच्चे अभी युद्ध के मैदान में खड़े हैं। माया पहलवान बन बच्चों को पीछे हटाने आती है, इसलिए बाबा पूछते हैं कि-बच्चे, मायाजीत बने हो, सदा समर्थ उस्ताद याद रहता है? खुशी रहती है? गीत: माता ओ माता.... ओम् शान्ति। शिव भगवानुवाच। अब शिव कोई शरीर का नाम नहीं है। इन ब्रह्मा को कोई भगवान कह न सके। ब्रह्मा कहते हैं शिव भगवानुवाच। ब्रह्मा का बाप शिव है। रचयिता बाप जरूर मूलवतनवासी ऊंच ते ऊंच होगा। ब्रह्मा-विष्णु- शंकर को ऊंच ते ऊंच नहीं कहा जाता। ऊंच ते ऊंच एक क्रियेटर बाप ठहरा। बच्चे जानते हैं ऊंच ते ऊंच बाप से हम वर्सा लेने आये हैं। वह बाप स्वर्ग का रचयिता है। अब बाप सम्मुख बैठे हुए हैं। तो मात-पिता भी चाहिए। त्वमेव माताश्च पिता... गाया जाता है। अभी शिवबाबा स्वयं कहते हैं मैं इस तन में आकर मुख वंशावली रचता हूँ। वंशावली माता बिगर तो रच नहीं सकते। तो यह ब्रह्मा माता है। परन्तु यह माता पालना नहीं कर सकती है। यह तो पिता का रूप हो गया। माता का रूप चाहिए। यह दादा (ब्रह्मा) है। यह बड़ी गुह्य, रमणीक बातें समझने की हैं। यह तो बच्चे जानते हैं हम ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं। इनको एडाप्शन कहा जाता है। कुख वंशावली को एडाप्शन नहीं कहेंगे। मुख से कहते हैं तुम मेरी हो। इनको मुख वंशावली कहा जाता है। जैसे सन्यासी होगा तो कहेंगे आप हमारे गुरू हो। वह कहते हैं तुम हमारे शिष्य हो। तो वह हो गये मुख के फालोअर्स। मुख की उत्पत्ति। कुख वंशावली नहीं कहेंगे। अब बाबा पूछते हैं कि शंकराचार्य का बाप कौन? क्या जिससे वह पैदा हुआ, उनको बाप कहेंगे? नहीं। शंकराचार्य का बाप परमपिता परमात्मा है। शंकराचार्य की नई सोल आकर प्रवेश करती है, धर्म स्थापना करने। जैसे परमपिता परमात्मा ने इनमें प्रवेश किया है, वैसे शंकराचार्य की नई सोल ने प्रवेश कर मुख वंशावली बनाई। फिर वह मुख वंशावली चलती है। उन द्वारा धर्म स्थापना होता है। जैसे ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म स्थापना होता है। बाप हर बात समझाते हैं। शिवबाबा ऐसे नहीं कहेंगे कि आत्मायें मेरी मुख वंशावली हैं। आत्मायें तो हैं ही हैं। शिवबाबा आते हैं, आकर इस प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। शिवबाबा इस मुख द्वारा कहते हैं-तुम मेरे हो। बच्चे फिर कहते हैं-बाबा, आप हमारे हो। ब्रह्मा द्वारा ही तुम बच्चे बन सकते हो। शिवबाबा कहते हैं-बच्चे, ख्याल रखना, वर्सा तुमको हमसे लेना है, ब्रह्मा से नहीं मिलना है। बिल्कुल नहीं मिलना है। स्वर्ग की राजधानी का वर्सा हमसे ही मिल सकता है। रचयिता स्वर्ग का मैं हूँ, मुझे हेविनली गॉड फादर कहा जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा को हेविनली गॉड फादर नहीं कहेंगे। फिर इनको मास्टर क्रियेटर कहेंगे। वह हो गया बाप। क्या क्रियेट करते हैं? स्वर्ग की रचना। किस द्वारा? मुख्य एक बच्चा ब्रह्मा है। फिर हैं उनके पोत्रे पोत्रियाँ। एक है रूहानी बाप, दूसरा है जिस्मानी बाप। अब निराकारी रूहानी बाप आये कैसे? जरूर उनको शरीर चाहिए। ऐसे तो नहीं शिवबाबा सागर में पत्ते पर अंगूठा चूसकर आयेगा। शरीर तो चाहिए ना। गाया हुआ है ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण। तो ब्रह्मा का बाप चाहिए। ब्रह्मा का बाप है शिव। इसलिए शिवबाबा कहते हैं-तुमको ब्रह्मा अथवा ब्रह्मा की बेटी सरस्वती को याद नहीं करना है। इन्हों द्वारा तुमको शिवबाबा की याद मिलती है। ब्रह्मा मुख वंशावली में सरस्वती नम्बरवन चली गई। जगत अम्बा का बड़ा भारी मेला लगता है क्योंकि बाल ब्रह्मचारी पवित्र है। पवित्रता से कितना नाम बाला हो जाता है। जगत अम्बा का नाम इस (ब्रह्मा) को दे नहीं सकते। जगत अम्बा जरूर चाहिए। तो बाप कैसे रचना रचते हैं। बाप ही बच्चों को समझाते हैं। बच्चे बहुत हैं ना। कहते हैं रूकमणी, सत्यभामा आदि को भगाया अर्थात् अपना बनाया। ऐसे-ऐसे नाम बहुत डाल दिये हैं। थोड़ा बहुत आटे में नमक कोई ऐसी-ऐसी बातें हैं। महाभारी महाभारत युद्ध भी शास्त्रों में गाई हुई है। फिर उनको कहते थर्ड वर्ल्ड वार। यह रिहर्सल होती रहेगी। फर्स्ट वर्ल्ड वार, सेकेण्ड वर्ल्ड वार, थर्ड वर्ल्ड वार भी है। अब बच्चे जानते हैं यह लड़ाई तो बहुत जोर से लगेगी। नहीं तो मौत कैसे आयेगा। यादव कुल का विनाश, कौरव कुल का विनाश। बाकी पाण्डव कुल रह जाता है। तुम पाण्डव कुल वाले बैठे हो। तुम्हारी बुद्धि में गीता का ज्ञान है। बाप बैठ सब शास्त्रों का सार समझाते हैं। साक्षात्कार कराते हैं। खुद जानते हैं तब तो साक्षात्कार कराते हैं ना। जो भी शास्त्रो-वेद आदि तुमने पढ़े है, मैं तुमको सबका सार सुनाता हूँ। मेरी है सर्व शास्त्रोमई शिरोमणी भगवत गीता। जो मैं राजयोग सिखलाता हूँ उनका बैठकर किताब बनाते हैं। हमने तुम बच्चों को आकर युद्ध के मैदान में नॉलेज दी है। राजयोग सिखलाया है। युद्ध है माया की। उन्होंने फिर स्थूल युद्ध का मैदान दिखाया है। मुख्य जो बड़े होते हैं उनकी बायोग्राफी बताते हैं। तुम्हारे में भी मुख्य कौन-कौन हैं, वह भी बताते हैं। यहाँ बरोबर मुख्य है सरस्वती। ब्रह्मा भी है जिन्होंने यज्ञ की स्थापना की और फिर जिन्होंने शाखाओं की स्थापना की है उन्हों में भी नम्बरवार प्रिय लगते हैं। कहेंगे फलाने द्वारा बहुत ही काँटे से कली और कली से फूल बने हैं। जो अच्छी रीति धारण करते हैं उनको फूल कहा जाता है। काँटे उसको कहते हैं जो एक दो को दु:ख देते हैं। दु:ख देना काँटे का काम है। वह काँटे जड़ हैं। यह फिर हैं ह्यूमन काँटे। बाबा कहते हैं मैं तुमको फूल बनाता हूँ। फूल एक-दो को अथाह सुख देते हैं। वहाँ तो जानवर भी एकदो को सुख देते इसलिए कहा जाता है शेर-बकरी इकठ्ठे जल पीते हैं अर्थात् वहाँ दु:ख बिल्कुल नहीं होता। वह अवस्था अभी बच्चों को धारण करनी है। सतयुग में तो तुमको प्रालब्ध मिलती है। ड्रामा अनुसार नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार धारणा करते रहते हैं और फिर धारणा कराते हैं। पुरूषार्थ बिगर कुछ होता नहीं। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। यह ब्रह्मा तो ऐसे कह न सके। यह कहते हैं तुमको वर्सा बाप से मिलना है। माँ से मिलता नहीं। भल ज्ञान समझाते हैं परन्तु वर्सा उनसे मिलना है जिसके पास जाना है। उनकी आत्मा को भी मेरे पास आना है। मेरे को याद करना है। याद पर ही सारा मदार है। अल्फ मिला तो सब कुछ मिला। अल्फ अर्थात् अल्लाह, ईश्वर। ईश्वर अर्थात् बाप। बच्चा बाप के पास जन्म लेता है। बच्चों को बाप मिला गोया सब कुछ मिला। बाप की सारी प्रापर्टी मिली। सेकेण्ड में सारी प्रापर्टी मिल जाती है। जन्म लिया और सेकेण्ड में बाप की मिलकियत का मालिक बना। यह बाप कहते हैं मैं तुमको मालिक बनाता हूँ, मैं नहीं बनता हूँ। वह तो है सदैव कर्मातीत। हमको कर्मबन्धन से अतीत होकर फिर नये कर्म सम्बन्ध में जुटना है, इसलिए पुरूषार्थ करना है। पुरूषार्थ कराने वाला है बाप। यह वण्डरफुल बातें हैं। बाप बैठ समझाते हैं और सब गुरू लोग मनुष्य हैं। मनुष्य मैं नहीं बनता हूँ। मेरा तो शरीर ही नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को सूक्ष्म चोला है। उनको देवता कहते हैं, मुझे तो देवता नहीं कहते। ऊंच ते ऊंच भगवान ही कहेंगे। गाया जाता है त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव... तो वही माता ठहरी। बाप एडाप्ट करते हैं। माताओं की सेवा करते हैं इसलिए इनका नाम जगत अम्बा पड़ा है। शिवबाबा ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ रचते हैं ब्रह्मा मुख द्वारा। यह है मुख वंशावली। इनको अपना रथ बनाकर रचना रचते हैं। ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ ठहरे। परन्तु ब्रह्मा से तो वर्सा मिल न सके। ब्रह्मा के पास क्या है, कुछ भी नहीं। सब कुछ सन्यास कर दिया। ब्रह्मा तो बेगर है। देह सहित सब कुछ दे दिया। सर्व धर्मानि परित्यज... हम तो आत्मा हैं। बेहद बाप का बच्चा हूँ। यह इनकी आत्मा कहती है। बाबा भी कहते हैं-मेरा यह मुरब्बी बच्चा है। परन्तु प्रजा तो माता द्वारा रचते हैं। तो ब्रह्मा के मुख द्वारा ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ रचते हैं। तुम सब ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ पुरूषार्थ कर रहे हो। तुम ब्राह्मणों को भी इतना ही मीठा बनना है। सबको सुख देना है। बाप कितना मीठा है, ऐसा मीठा बनना है। बाप बहुत प्यार से बोलते हैं-मीठे-मीठे लाडले बच्चे, शिवबाबा कैसे प्यार से बोलते हैं। बच्चे, राजी खुशी हो? यह बाबा भी पूछते हैं। कभी माया का वार तो नहीं होता है ना! तूफान तो माया के बहुत आयेंगे। बॉाक्सिंग में हारना नहीं है। उस्ताद समर्थ बैठा है। माया भी कोई कम नहीं है। परन्तु ऐसे थोड़ेही है कि सबको हरायेगी। अभी तुम तो समझते हो-पहलवान कौन है? माया पर जीत पाने वाले, बरोबर ब्रह्मपुत्रा (ब्रह्मा) सबसे पहलवान है। है तो मेल। फिर नम्बरवार तुम गंगायें हो। फिर मेल्स भी बहुत हैं। जगदीश संजय है, उनको समझाने की टैक्ट बहुत अच्छी है। यह मिलेट्री है। कमाण्डर-इन- चीफ, मेजर, जनरल आदि सब हैं। परन्तु यह है गुप्त रूहानी सेना। भेंट तो है ना। उन्होंने कौरव-पाण्डवों की भेंट उल्टी कर दी है। अब बाप कहते हैं जज करो। मेरी सुमत “श्रीमत” पर चलो। जन्म-जन्मान्तर कुमत पर चलते हो। यह है सुमत। शास्त्रों में लिखा है चिडियाओं ने सागर को हप किया। अब चिडियायें थोड़े-ही सागर को हप कर सकती हैं। चिडियायें तुम बच्चियाँ हो। ज्ञान की भूँ-भूँ करती रहती हो। तुम ज्ञान सागर को पूरा ही हप कर लेती हो। उनसे वर्सा लेकर तुम सब कुछ ले लेती हो। बाप के लिए राजाई आदि कुछ नहीं रखती हो। पूरा हप कर लेती हो। पूरा खजाना ले लेती हो। सब रत्न तुम ले लेती हो। बाकी चिडियायें कोई पंछी थोड़ेही हो। तुम चिडियाओं ने सागर को हप किया है। कहाँ की बात कहाँ पंछियों से जाकर लगाई है। तुमको रत्न दे देते हैं। कहाँ ज्ञान रत्नों की बात, कहाँ पानी का सागर बैठ दिखाया है। है यह ज्ञान सागर, ज्ञान रत्न। रूप-बसन्त की भी कहानी सुनी है। तुम जानते हो रूप बाबा है, इस द्वारा आकर रत्न देते हैं। इनकी कोई वैल्यू नहीं रख सकते। यह नॉलेज है, जिससे बड़ी भारी कमाई होती है। बाप इस मुख द्वारा तुमको रत्न देते हैं। बाप रूप भी है, ज्योति स्वरूप भी है। ज्ञान का सागर है। जरूर ज्ञान ही सुनायेंगे। ज्योति स्वरूप तुम भी हो। परन्तु ज्ञान का सागर एक है। वह आकर राजयोग सिखलाते हैं। पहले ब्रह्मा को फिर तुम बच्चों को बैठ ज्ञान देते हैं। बच्चों को रूपबसन्त बनाते हैं। तुम्हारी आत्मा की झोली एक ही बार आकर भरते हैं। ज्ञान-रत्नों की झोली तुम भरते हो। साधू आदि कहते हैं भर दो झोली। इस भक्ति मार्ग की झोली में क्या रखा है? कुछ भी नहीं। मांगते ही रहते हैं। यह है बुद्धि रूपी झोली। याद से पवित्र बनाते हैं। बर्तन बड़ा शुद्ध चाहिए। नॉलेज भी ब्रह्मचर्य में अच्छी धारण होती है। वह तो होते हैं छोटे बच्चे। यहाँ तो बूढ़े जवान सब हैं। योग से बर्तन शुद्ध होता है। बुद्धि का ताला खुलता है। तुम जानते हो हम बच्चों में युद्ध के मैदान में मुख्य कौन है? ब्रह्मा। सेकेण्ड ग्रेड में मम्मा सरस्वती। इनका नाम तो बहुत ऊंच है। नाम बाला करना है। यह ब्रह्मा तो गुप्त है। शक्ति सेना में नाम है मम्मा का। जगत अम्बा ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। इनकी मम्मा फिर कौन? यह गुह्य बातें अब सुनाते हैं। जरूर कल्प पहले भी सुनाई हुई हैं तब तो कहते हैं - गुह्य बातें सुनाता रहता हूँ। बच्चे तो ढेर आयेंगे। पिछाड़ी तक वृद्धि को पाते रहेंगे। विघ्न भी जरूर पड़ेंगे। परन्तु झाड़ अवश्य फलीभूत होना है। कोई किंग ऑफ फ्लावर है। जैसे माला के ऊपर बाबा का रूप है, तुम भी ऐसे रूप वाले हो। सिर्फ तुम बसन्त नहीं हो। अब बाबा रूप-बसन्त आया है तुमको भी अपने समान बनाते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार: 1) काँटे से फूल बनाने की सेवा करनी है, बाप समान रूप-बसन्त बनना है। 2) समर्थ उस्ताद की सुमत (श्रीमत) पर चल मायाजीत जगतजीत बनना है। कभी भी हार नहीं खानी है। वरदानः हर एक के स्वभाव-संस्कार को जान, टकराने के बजाए सेफ रहने वाले मा. नॉलेजफुल भव l कोई भी बात को छोटा या बड़ा करना - यह अपनी बुद्धि पर है। जबकि एक दो के स्वभाव-संस्कार को जान गये हो तो नॉलेजफुल कभी किसी के स्वभाव-संस्कार से टक्कर नहीं खा सकते। जैसे किसको पता है कि यहाँ ख• है वा पहाड़ है तो जानने वाला कभी टकरायेगा नहीं, किनारा कर लेगा। ऐसे आप भी किनारा करो अर्थात् अपने को सेफ रखो। किसी काम से किनारा नहीं करो लेकिन अपनी सेफ्टी की शक्ति से दूसरे को भी सेफ करना - यही किनारा करना है। स्लोगनः उड़ती कला का अनुभव करना है तो सदा भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति में रहो। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • BK murli today in English 9 June 2018

    Brahma Kumaris murli for today in English - 09/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, put a bead in your mouth, that is, stabilize in your original religion of peace and Maya will not be able to do anything. Question: Only one Shiv Baba is the Innocent Lord; why can no one else be the Innocent Lord? Answer: Because only Shiv Baba has no desires for Himself. He comes and becomes the children’s Server. He liberates you children from the slavery of Maya. He makes every child a master ocean of knowledge, similar to Himself. He fills your aprons with jewels of knowledge. No one else can be an altruistic server like Him. This is why only one Shiv Baba is called the Innocent Lord. Song: No one is unique like the Innocent Lord. Om ShantiThe praise is sung of those who existed on the path of devotion: they were like this. It is said of all those who are here now: They are like this. However, for those who have left their bodies, you would say they were like this. Devotees definitely sing the praise of the Supreme Father. Otherwise, why is the praise sung? He is here now practically. The God of all the devotees is One. He is called the Magician who protects the devotees and grants them salvation. It is remembered that He is the Bestower of Salvation for All. Everyone receives salvation now. Human beings of all the variety of religions that are numberwise will definitely receive liberation and salvation. All human beings definitely go to the land of liberation. They will then come down, numberwise, in their satopradhan stage. The deities will come first, then the warriors and then the merchants; they will definitely change clans. Praise is sung of those who performed good actions when they existed. Such praise only lasts for a temporary period, because you children know that destruction is standing ahead. Those who came at the beginning receive the maximum praise. On the path of devotion, it is the worship of Shiv Baba that begins first. Because of His being here now, He is later praised and worshipped on the path of devotion. There is no devotion in the golden age. They don’t even know what existed before or that the silver age comes after the golden age. You have to use your intellects in this. The path of devotion begins with the copper age. The intelligent children who have memorized knowledge can understand it very clearly. However, they are all parrots. Some of them are able to memorize this knowledge very well, whereas others do not understand anything; they are like pigeons. A parrot can be taught to repeat something. Pigeons cannot learn anything. There are pigeons at Amarnath. Pigeons simply carry messages. A parrot repeats whatever it hears. Pigeons are unable to repeat anything. Here, too, those who are unable to repeat what they have heard are called pigeons. According to the present time, there are human parrots as well as human pigeons. Whatever people say at this time is all useless. The Father is Rup-Basant. Baba has explained that He doesn’t have a large form. If anyone asks what Shiv Baba’s form is, you should explain that Shiv Baba’s form is the same as the form of souls. As is the Father, so His children. Souls are not smaller or larger than the Father. He is the Supreme Father, the Supreme Soul. He is the One who explains to us. His name is the Innocent Lord. He is the very Innocent Lord. He has no desires for Himself, not for even a shell. You children have the faith that the Supreme Father, the Supreme Soul, has explained to us through this body. A soul cannot speak without organs. The Father Himself sits here and explains. People even say that God comes; there is the His Nandigan (chariot of bull that is worshipped). They have shown a bull, but that couldn’t be an animal. It is not that He would jump onto a bull. They speak of Bhagirath, the lucky chariot, but no one knows how the Purifier comes. He must have surely come to transform hell into heaven; this is why He is praised. It is Shiv Baba who is worshipped first. In fact, the number one and true praise belongs to Him. Now they even praise cats and dogs and everything else. They create a Nandigan; they go around with a bull. Shiv Baba now comes in this Nandigan and gives you knowledge. He is giving you the milk of knowledge. His praise is great. God is the Innocent Lord, the One who fills everyone’s apron. They do not say in front of Shiva, “Fill our aprons”! because they understand that He is incorporeal. They take their aprons in front of Shankar for him to fill them. They do not go to Vishnu or Brahma, they go to Shankar because they have combined Shiva with Shankar. They think that Shiva is a form of Shankar. Those who perform worship don’t know the occupation of the ones they worship, because even the first one who becomes a worshipper does not know. This is known as becoming worthy-of-worship deities and then becoming worshippers. You now understand that we were worthy-of-worship deities and that we are the ones who then became worshippers. Shiva is the Resident of the supreme region but He is shown in the temples. Brahma, Vishnu and Shankar, the residents of the subtle region, also have parts, because they definitely do come. Shiva also has to come, but Shankar has no need to come here. They even name streets ‘Trimurti Marg’. They also make stamps of the Trimurti but they show a lion in that. Underneath, they have written: Victory for Truth. This is accurate. However, they do not show any name or trace of Shiva. “Victory for Truth” should not be written under an animal. Only the one Father is the Truth, the One who relates the true story and makes us victorious. He explains everything very clearly. You are becoming master knowledge-full. If all the murlis were kept from the time you started hearing the knowledge, they would fill a whole building. You must have used so much paper and you will have to use a great deal more. The murlis will definitely go to the children. Many copies will be made. The tree continues to grow. You children understand that many storms of Maya will come. Keep a bead in your mouth and Maya will not then be able to do anything. It is very easy to remember Baba. I am a soul; I, the soul, say: My original religion is peace. We are all foreigners who come to this land of Maya. There is a song: O Resident of the faraway land! All souls are residents of the faraway land. You have come to know that you are now definitely in a foreign land. You come from a very faraway land, which is called the incorporeal world. There are many people in the world. You understand that you are all foreigners. Devotees on the path of devotion remember God. Devotees want God to come. What will He do when He does come? You children understand that Baba comes from the supreme abode. He says: I have to transform the impure, iron-aged world into the pure world of heaven. It is not a human being who is teaching you. A human being can neither bring salvation to himself nor grant salvation to others. The play is now coming to an end. At the end, all the actors have to be present. This is also mentioned in the Gita, except that, instead of Shiv Baba, they have written “God Krishna speaks.” Krishna is the first prince. People think that it was he who taught Raja Yoga. However, you now understand that it is the Innocent Lord who teaches Raja Yoga and that He has come. They have put Krishna’s name in the Gita. The knowledge-full Father is called the Innocent Lord. People have made allegations against Krishna. In fact, they are not made against Krishna but against the Father. Previously, no allegations were made against Dada. It was only after the Father came that allegations were made. While he was moving along, the Traveller entered him, and just look how many allegations have been made since then! All of that dancing and games etc. are the games of that One. He is the One who entertains the children. You children understand that you have found Baba and that you are filling your aprons with jewels. Knowledge of the scriptures cannot be called jewels. These jewels are knowledge. Each jewel is worth hundreds of thousands of rupees. At this time, all human beings continue to throw stones at one another and have thus become ones with stone intellects. The Father comes and changes your stone intellects into divine intellects. He transforms kabristan (the graveyard) into paristhan (the land of angels). Death repeatedly comes here and buries people in the graveyard. This does not happen there. Just as a snake sheds its old skin and takes a new one, in the same way, souls shed their old bodies and take new ones. Baba gives this example here; sannyasis then use it for their own purpose. They believe that a bubble merges into the ocean. Some say that a light merges into the light; there are many opinions. You now receive one direction which you have to follow. Baba says: You have been calling out to Me for birth after birth, but I only come once. You called out a great deal, saying: I am Your slave! The Father comes and frees you from slavery. You became Maya’s slaves. The Father comes and liberates you from that. You know that you have done a great deal of devotion. The Father has now come to give you the fruit of your devotion. The part of devotion is now over. There is knowledge, devotion and then disinterest. There are two types of disinterest. The disinterest the sannyasis have, is to leave their homes and families. The disinterest you have, is in the entire old world. You children know that all of this is going to be burnt away; nothing will remain. The wealth of some will remain buried and robbers etc. will come to loot at that time. When an aeroplane crashes or there is a fire, looters go there. Those who live around there also loot it. They have enough time before the police arrive. Destruction will definitely take place. The world is so big. You understand that America etc. still have the pomp of happiness because the Christians came later on. Their part of happiness exists now. They have so much courage. They travel to the moon and the stars. They do not go to the sun, because they know that it will burn them. They try to go to the moon and the stars to acquire land. Because they have heard the expressions ‘sun dynasty’ and ‘moon dynasty’ they think that perhaps there is a world there. The Japanese call themselves those who belong to the sun dynasty. Some call themselves one thing and others call themselves something else. You now understand that Bharat was definitely the sun dynasty and the moon dynasty. There can be no land more elevated than this one was. This drama is predestined. There is no question of changing anything in this. This is something that has to be understood. When you children sit in silence, you should always sit in the awareness of your original religion. You have to remember the Father. You do not have to go to a forest for peace. You can explain to whoever comes: Peace is the necklace around your neck, so where are you searching? The soul says: My original religion is peace. Then, when I enter a body here, I talk. A play cannot be performed in silence. Previously, bioscopes (films) used to be silent. Everything in the subtle region is also ‘movie’; no sound emerges. At that time, whatever they (trance messengers) understood a cycle ago, they come and relate that. It is not a new thing. This whole drama makes us dance through 84 births. This drama is eternal. Everyone adopts a body to play their own parts. Sweetest children, Shiv Baba is saying this. He speaks to you souls and says: Remember Me alone. This Brahma doesn’t say: Remember me alone. These are such deep matters! This one says: I also have to remember that One. I am the Brahmaputra River. A meeting takes place between the Brahmaputra River and the ocean. There is no meeting between the Saraswati River and the ocean. Only one meeting takes place. A huge mela takes place in Calcutta at the confluence of the Brahmaputra River and the ocean. There is one Brahmaputra and the meeting only takes place once. This meeting also takes place here. If there were no Ocean, it would not be called a mela. Wherever Mama goes, a meeting of the rivers takes place. This meeting takes place between the Ocean and the Brahmaputra River. You can understand this for yourselves. If you are able to churn the ocean of knowledge, then just think about how this Ocean is living and how that one is non-living. All the rivers have emerged from the Ocean. This is the auspicious meeting. The Father says again and again: Remember Me alone! You children also tell others: Remember the Father. You cannot say: Children, remember me alone. Baba can say through this one: Children, remember Me alone. You are sitting here in person. You say: Shiv Baba says: Remember Me! Tell everyone: Remember the Father and your final thoughts will lead you to your destination. Death has to come to everyone. Just look what is happening now! America etc. are so huge. This Bombay etc. will not remain afterwards. Very few will remain. There are now millions to govern. There, there will be very few in the beginning. Later, others will continue to come. It has been explained to you children that Maya is very powerful. She will prevent you from having remembrance and will continue to create obstacles. She will turn your faces away from Baba. However, you have to make full effort and become strong mahavirs. You should have such yoga that Maya can never shake you. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.. Essence for Dharna: 1. Stabilize yourself in your original religion of peace. In order to be saved from Maya, keep a bead in your mouth. 2. Have unlimited disinterest in the old world. Before destruction, use everything you have in a worthwhile way. Blessing: May you become an image that attracts by transforming the physical into spiritual and making your home into a temple. While living at home with your family, make the atmosphere of your home such that there is nothing worldly there. Let anyone who comes experience it to be spiritual, not worldly that your home is not ordinary, it is a temple. This is the practical form of service of those who live in a pure household. Let the place serve and let the atmosphere also serve. Just as the atmosphere of a temple attracts everyone, in the same way, let there be the fragrance of purity in your home and that fragrance will automatically spread everywhere and attract everyone. Slogan: Concentrate your mind and intellect with determination and finish the weaknesses and you will then called a true yogi. #bkmurlitoday #english #Murli #brahmakumari

  • 29 May 2018 BK murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 29/05/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, make effort using the force of 20 nails and claim your full inheritance from the Father. Imbibe this knowledge and inspire others to imbibe it. Question: By knowing the value of which aspect can you children become instruments to benefit many? Answer: The Father has had many beautiful medals (badges) made for you. You children should value them a lot. This badge is your true Gita. By using it, you can explain to anyone the secret of the beginning, the middle and the end of the world. You should always have this sign with you. Baba has had these things made with a lot of thought. They will be praised a great deal. Song: Mother o mother, you are the bestower of fortune! Om Shanti. You children heard the song because you are now sitting personally in front of Baba. You also know that the mother of all of you is Jagadamba. However, not the whole world is able to recognise her. It is only in Bharat that they have the picture of Jagadamba and her praise is here too. Abroad, there is greater praise of Shiva because He is the Father of all. Here, there is Jagadamba. Who gave birth to Jagadamba? It would definitely be said that the One who created Jagadamba is the unlimited Father. The mother came later. There is so much praise of the mother. All of you are also mothers. It is said: Salutations to the mothers! Kumaris then become mothers. So, this is the praise of Jagadamba. You children know the full biography of Jagadamba. When you go to the Jagadamba Temple, you would say: All of these are now sitting in the living form. Especially Mama is praised on Wednesday. Shiv Baba's day is Monday. He is also called Somnath (The Lord of Nectar). On Mondays, people pour a small urn (of water or milk) on Shiva. This urn should be poured every day. Why should it be Mondays in particular? Some days are fixed. You understand the meaning of that. Why is He given the names ‘Rudra’, ‘Somnath’, ‘Shrinath’? You children know that the Babul tree has thorns on it. It is only the Father who changes thorns into flowers. You now understand the meaning of that. The whole praise is of Bharat. He only comes here. Christ is compared to Krishna. They make small forms of Christ. They also crown him, but he didn't receive a crown. Everyone praises their own religion. It is only those of the Hindu religion who don't praise it because they don't know their religion. This is why the Father says: They are irreligious. There is might in religion. We are not called those of the Hindu religion now. We are receiving so much power from Baba. So, this is Mama's praise. If it weren't for the Father, how would there be the Shiv Shaktis? The mothers would not have then become worthy of being saluted. God says: Salutations to the mothers! Sannyasis defame women, but their path of isolation is fixed in the drama. The Father comes and explains: That too is a good path. Religions are all good at first. All the new souls that come down are good; they make an impact. For example, there was Arbindo Ghose (1872-1950); he was praised so much! A small sect was established by him. Baba has explained: When new souls come, they come and establish their own sects and cults. For instance, there are the Arya Samajis. It has now been some time since Dayananda (1824-1883) existed. They are all the twigs and branches of the end. They are like mosquitoes that take birth and die. They do make their own impact. For instance, Chidakashi (a religious group) has existed for 100 years at the most. They have expanded so much! There is so much praise. Because those of the Hindu religion do not know themselves, some become converted to other religions. You now know that this drama is predestined and it repeats. Look how many different religions are established! Eventually, the world definitely has to become old. The Father says: I alone make it new. At this time, all are in their stage of total decay. It is now the end of the path of devotion and the beginning of knowledge. This knowledge doesn't continue in the golden age. Baba only gives knowledge once. Then there isn't any need for knowledge for 21 births. You will have received your inheritance from the Father by then. This study doesn't exist in the golden and silver ages. This imperishable study is studied with the eternal Father. You receive the fruit of this for 21 births. Whatever people study is for temporary happiness for one birth. Then they don't have to study. Each one creates his reward of happiness. In worldly relationships, only sons receive an inheritance from their father or grandfather. Here, Baba says: Both males and females can claim their inheritance from Me, according to the effort they make; it is numberwise. (Today, BapDada brought a basketful of various flowers from the garden into the gathering) Look, this flower is Mama. A sitar is also given to Saraswati. For Baba, this rose is fine. Each one of you can also understand how fragrant you are. Shiv Baba is the Master of the Garden; we are His gardeners. Only the one Baba is the Master of the Garden. You know that Baba is making us into flowers. The greatness is not of Jagadamba or Jagadpita. The greatness is of Shiv Baba. If it weren't for Him, they couldn't be praised. It is by remembering Shiv Baba that you receive such a high status. He is God, the Highest on High. He resides in the supreme abode. OK, they say: Goddess Lakshmi and God Narayan. Where do they reside? They are residents of the human world. Who made them so elevated? You are now becoming that. The Creator of the world is truly the Father. God and goddess become the surnames. For instance, when someone becomes a barrister through a barrister, his surname becomes Barrister. Lakshmi and Narayan are the emperor and empress. First of all, they have to become a prince and princess. So Lakshmi and Narayan are the highest of all in the human world. “Shri Shri 108 Jagadguru” is the praise of Shiv Baba. The rosary of 108 is created. That rosary is the highest of all. That is then remembered as the rosary of Vishnu. There is also the rosary of Rudra. Then, the rosary of Rudra becomes the rosary of Vishnu. The rosary of Rudra and the rosary of the devotees are remembered. No one knows the meaning of them. There is a religious book for those of the rosary of devotees, whereas there is the Gita for those in the rosary of Rudra. So, the Father sits here and explains everything very clearly. Baba has had these pictures made in order for you to explain to others. Baba has also had lockets made. On one side is the Trimurti and on the other side is Krishna. This picture is very good. You can do a lot of service using it. You receive a prize from the Government. Baba made effort and had these lockets made for you; they are first class things. Show people this locket and tell them: Come and we will tell you the secret of the whole world through this. We can make you trikaldarshi, trilokinath and the masters of the world. It enters your intellects that the knowledge in them (the lockets) is very good. We give you the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world through these: who rules in the golden age and who rules in the silver age. I make you into spinners of the discus of self-realisation through which you will then become rulers of the globe. Baba has now come and is once again giving you the divine third eye of knowledge. We truly were with Baba in the incorporeal world. These things cannot remain in the intellect of anyone else. Whatever you are taught is new. Although there is that Gita, we do not take that up. Otherwise, they would say: You only take up things from the Gita that suit you. Baba knows that some children are very good and serviceable. There are many in the army. This one is in the Pandava Army. The Father says: Such-and-such a child is very good. He himself imbibes knowledge and also inspires others to do the same. You have to claim your inheritance from the Father by applying the force of 20 nails. Otherwise, there will be great repentance. There will be a special tribunal for you children. You will be given visions. Look, so much was explained to you! On the path of devotion, you have been singing birth after birth: I will surrender myself to You and I will remember You alone. You now understand the meaning of that. You also used to say: God gives everything. Then, when God takes their child back, they begin to insult God. They say: You are this and You are that. You also cause sorrow. They say of the One who gives happiness that He causes sorrow! Therefore, the unlimited Father explains: You have become so senseless! Baba explains to you so clearly! The knowledge in the locket is very good. It has the essence of all the Vedas and scriptures. However, children don't give that much importance to the locket. They don't have such far-sighted, broad intellects. There is an image of the Trimurti on the locket and beneath the image it is written: Godfatherly birthright. They say: God, the Father, the Supreme Father. They definitely say "Father". Father means that we are His children. Devotees are children of God. It isn't that devotees are God. They have brought God on to the path of devotion. So, in that case, who would give those on the path of devotion the fruit of their devotion? However, none of them can understand anything unless it is explained to them. Hardly anyone can understand anything from the literature. You can explain using the lockets. This is the Highest on High, God, the Father. We can tell you the secrets of the life of God, the Father. What task does God, the Father of All, carry out due to which He is called the Father? Then, Brahma and Saraswati are called Adam and Eve and Adam and Bibi. God, the Father, creates creation through them. That God, the Father, is the Father of all souls. This one is Prajapita and we souls are his imperishable children. So then, as you come into the cycle, this one is Prajapita Brahma who is called the great-great-grandfather. Shiva cannot be called the great-great-grandfather. Shiva is just called the Father. He is the Father of all souls. When the genealogical tree of the human world is created, first of all, there are Brahma and Saraswati and then there is further growth through them. The Highest on High is the Supreme Father, the Supreme Soul. The deity religion is established by Him. Then the other religions are established, numberwise. Brahma is always shown as an old man. He is the great-great-grandfather. You children know that Shiv Baba has made you belong to Him through Brahma. We are now claiming our unlimited inheritance from Him. The agent receives his commission by making effort. It is sung: You found the Satguru through the agent. You cannot say this for sannyasis. They don’t know about these things. The Father sits here and explains this. This should sit in the intellects of you children. You can explain: There are so many of us Brahma Kumars and Kumaris. The name of Prajapita Brahma is well known. Baba has had many good cards printed. All the knowledge is included on them. These things are made with so much thought put into them, but they are not valued that much. Those in the military who receive medals wear them. You just have the one medal. They have different inscriptions on their medals. Here, you just have the one inscription. You should show them your card and sit down there and explain to them. The time will also come when there will be a lot of praise of your medals and cards. Baba continues to explain to you very clearly. Some children ask: Baba, how can I have yoga? You have been given an aim. You have to claim your inheritance from your Grandfather. Not everyone in a family would receive an inheritance. Here, everyone has a right. Look how, in the beginning, whole trees (families) came. Then, from those trees, the legs of some were cut off and the arms of others were cut off. However, those who were to become Brahmins are claiming their inheritance. It isn't that the tree will not go to heaven. It will go there, but those who study well will become part of the rosary of victory and the rest will become subjects. Yes, amongst the subjects too, those who want to become wealthy can be shown the way. You can also become one of the very wealthy subjects. Some subjects have even more property than the kings. From the copper age, when kings have a shortage, they take loans from the wealthy. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Baba has come to give us our inheritance. Therefore, apply the full force of 20 nails and definitely claim your full inheritance from the Father. 2. By having remembrance of Shiv Baba, become a fragrant flower and also make others that. Be far-sighted and have a broad intellect and do very good service using the locket. Blessing: May you remain carefree by having faith in the intellect and the awareness of Karavanhar and being a constantly carefree emperor. Brahmin life means to be a carefree emperor. Father Brahma became a carefree emperor and sang the song “I have attained what I wanted; what else remains now?” Whatever work of service remains, Karavanhar is making it happen and will continue to do so. When you always have the awareness that the Father becomes Karavanhar and makes everything happen through us, you will then become carefree. You have the faith that this task has to happen and is already accomplished and you therefore have faith in the intellect; you remain free from any worries and carefree. Slogan: In order to step away from all your weaknesses, imbibe an attitude of unlimited disinterest. #english #Murli #bkmurlitoday #brahmakumari

  • आज की मुरली 22 Nov 2018 BK murli in Hindi

    Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki Gyan murli Madhuban 22-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - देही-अभिमानी बनने में ही तुम्हारी सेफ्टी है, तुम श्रीमत पर रूहानी सर्विस में लग जाओ, तो देह-अभिमान रूपी दुश्मन वार नहीं करेगा'' प्रश्नः- विकर्मों का बोझ सिर पर है, उसकी निशानी क्या होगी? उसे हल्का करने की विधि सुनाओ? उत्तर:- जब तक विकर्मों का बोझ है तब तक ज्ञान की धारणा नहीं हो सकती। कर्म ऐसे किए हुए हैं जो बार-बार विघ्न डालते हैं, आगे बढ़ने नहीं देते हैं। इस बोझ से हल्का होने के लिए नींद को जीतने वाले निद्राजीत बनो। रात को जागकर बाबा को याद करो तो बोझ हल्का हो जायेगा। गीत:- माता ओ माता....... ओम् शान्ति।यह हुई जगत अम्बा की महिमा क्योंकि यह है नई रचना। एकदम नई रचना तो होती नहीं है। पुरानी से नई होती है। मृत्युलोक से अमरलोक जाना है। यह जैसे जीने और मरने का सवाल है या तो मृत्युलोक में मरकर ख़त्म होना है या तो जीते जी मरकर अमरलोक में चलना है। जगत की माँ माना जगत को रचने वाली। यह जरूर है बाप स्वर्ग का रचयिता है, रचना रचते हैं ब्रह्मा द्वारा। बाप कहते हैं मैं सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन करता हूँ। आना है संगम पर। कहते भी हैं कल्प के संगमयुगे, हर संगमयुगे आता हूँ। क्लीयर समझानी है। सिर्फ मनुष्यों ने भूल कर नाम बदली कर दिया है। सर्वव्यापी का ज्ञान जो सुनाते हैं, उसमें पूछना पड़ता है यह किसने कहा, कब कहा, कहाँ लिखा हुआ है? अच्छा, गीता का भगवान् कौन है, जो ऐसे कहते हैं? श्रीकृष्ण तो देहधारी है, वह तो सर्वव्यापी हो नहीं सकता। श्रीकृष्ण का नाम बदल जाए तो बात आ जाती है बाप पर। बाप को तो वर्सा देना है। कहते हैं मैं राजयोग सिखाता हूँ - सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी का वर्सा देने। नहीं तो 21 जन्म का वर्सा उन्हें किसने दिया? लिखा भी हुआ है ब्रह्मा मुख से ब्राह्मण रचे। फिर ब्राह्मणों को बैठ नॉलेज सुनाते हैं सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त की। तो जो नॉलेज देने वाला है वह जरूर चित्र भी बनायेंगे समझाने लिए। वास्तव में इसमें कोई लिखने-पढ़ने की बात नहीं है। परन्तु यह सहज कर समझाने लिए चित्र बनाये हुए हैं। इनसे बहुत काम हो सकता है। तो जगत अम्बा की भी महिमा है। शिव शक्ति भी कहा जाता है। शक्ति किससे मिलती है? वर्ल्ड ऑलमाइटी बाप से। ‘वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी' यह अक्षर भी महिमा में देना पड़े। अथॉरिटी माना जो भी शास्त्रों आदि की नॉलेज है, वह सब जानते हैं। अथॉरिटी है समझाने की। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र भी दिखाते हैं और कहते हैं ब्रह्मा मुख कमल द्वारा सभी वेद-शास्त्रों का राज़ समझाते हैं। तो अथॉरिटी हुई ना। तुम बच्चों को सभी वेद-शास्त्रों का राज़ समझाते हैं, दुनिया नहीं जानती कि धर्म शास्त्र किसको कहा जाता है। कहा भी जाता है 4 धर्म। उनमें भी एक धर्म है मुख्य। यह है फाउन्डेशन। बनेन ट्री का मिसाल भी दिया जाता है। इनका फाउन्डेशन सड़ गया है। बाकी टाल-टालियां खड़ी हैं, यह मिसाल है। दुनिया में झाड़ तो बहुत हैं। सतयुग में भी झाड़ तो होंगे ना। करके जंगल नहीं, बगीचे होंगे। काम की चीज़ों लिए जंगल भी होंगे। लकड़ा आदि तो चाहिए ना। जंगल में भी पशु-पंछी बहुत रहते हैं। परन्तु वहाँ सब चीज़ें अच्छी फलदायक होती हैं। पशु-पंछी भी शोभा हैं, परन्तु गंद करने वाले नहीं होंगे। यह पशु-पंछी ब्युटी तो चाहिए ना। सृष्टि ही सतोप्रधान है तो सब चीजें सतोप्रधान होती हैं। बहिश्त फिर तो क्या! पहली-पहली मुख्य बात - बाप से वर्सा लेना है। चित्र बनते रहते हैं, उनमें भी लिखना है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना........ यह अक्षर मनुष्य समझते नहीं इसलिए विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं पालना करने वाले। यह तो समझते हैं। कोटों में कोई ही समझेंगे। फिर यह लिखा है आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती........ नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार अपना पद प्राप्त करते हैं। कहाँ न कहाँ यह बातें लिखी हुई हैं। भगवानुवाच अक्षर भी ठीक है। भगवान् की बायोग्राफी अगर बिगड़ जाए तो सब शास्त्र खण्डन हो जायें। देखने में आता है बाप दिन-प्रतिदिन अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स देते रहते हैं। पहले-पहले तो निश्चय कराना है कि भगवान् ज्ञान का सागर है, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। चैतन्य बीज में नॉलेज किसकी होगी? जरूर झाड़ की होगी। तो बाप आकर नॉलेज समझाते हैं ब्रह्मा द्वारा। ब्रह्माकुमार-कुमारियां नाम अच्छा है। प्रजापिता ब्रह्मा के कुमार-कुमारियां तो ढेर हैं। इसमें अन्धश्रधा की कोई बात नहीं। यह तो रचना है ना। बाबा-मम्मा अथवा तुम मात-पिता सब कहते हैं। जगत अम्बा सरस्वती है ब्रह्मा की बेटी। यह तो प्रैक्टिकल में बी.के. है। कल्प पहले भी ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि रची थी, अब फिर जरूर ब्रह्मा द्वारा ही रचना होगी। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप ही समझाते हैं इसलिए इनको नॉलेजफुल कहा जाता। बीज में जरूर पूरे वृक्ष की नॉलेज होगी। उनकी रचना चैतन्य मनुष्य सृष्टि है। बाप राजयोग भी सिखलाते हैं। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों को बैठ सिखलाते हैं जो ब्राह्मण फिर देवता बनते हैं। सुनने समय मजा तो सबको बहुत आता है, परन्तु देह-अभिमान के कारण धारणा नहीं होती। यहाँ से बाहर गये और ख़लास। अनेक प्रकार का देह-अभिमान है। इसमें बड़ी मेहनत चाहिए।बाप कहते हैं नींद को जीतने वाले बनो। देह-अभिमान छोड़ो, देही-अभिमानी बनो। रात को जागकर याद करना है क्योंकि तुम्हारे सिर पर जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का बोझा बहुत है जो तुमको धारणा करने नहीं देते हैं। कर्म ऐसे किये हुए हैं, इस कारण देही-अभिमानी नहीं बनते। गपोड़े बहुत मारते हैं, बड़े गपोड़े का चार्ट लिख भेजते हैं कि हम 75 परसेन्ट याद में रहते हैं। परन्तु बाबा कहते हैं - इम्पासिबुल है। सबसे आगे चलने वाला खुद कहता है - कितनी भी कोशिश करता हूँ याद करने की परन्तु माया भुला देती है। सच्चा चार्ट लिखना चाहिए। बाबा भी बतलाते हैं ना तो बच्चों को भी फालो करना चाहिए। फालो नहीं करते तो चार्ट भी नहीं भेजते हैं। पुरूषार्थ के लिए समय मिला हुआ है। यह धारणा कोई मासी का घर नहीं। इसमें थकना नहीं होता है। कोई समझने में टाइम लेते हैं, आज नहीं तो कल समझ लेंगे। बाबा ने कह दिया कि जो देवी-देवता धर्म का होगा और धर्म में कनवर्ट हो गया होगा तो वह आ जायेगा। एक दिन अफ्रीकन्स आदि की भी कॉन्फ्रेन्स होगी। भारत खण्ड में आते रहेंगे। आगे कभी आते नहीं थे। अभी सभी बड़े-बड़े आते रहते हैं। जर्मनी का प्रिन्स आदि यह सब कभी बाहर निकलते नहीं थे। नेपाल का जो किंग था उसने कभी रेल देखी नहीं थी, अपनी हद से बाहर कहाँ जाने का हुक्म नहीं था, पोप कभी बाहर नहीं निकला था, अभी आया। आयेंगे सब क्योंकि यह भारत सभी धर्म वालों का बहुत बड़े ते बड़ा तीर्थ है इसलिए यह एडवरटाइज़ जोर से निकलेगी। तुमको सब धर्म वालों को बतलाना है, निमंत्रण देना है। ज्ञान फिर भी वही उठायेंगे जो देवी-देवता धर्म वाले कनवर्ट हो गये हैं, इसमें समझ चाहिए। अगर समझें तो शंख ध्वनि जरूर करें। हम ब्राह्मण हैं ना, हमको गीता ही सुनानी है। बहुत सहज है, बेहद का बाप है स्वर्ग का रचयिता। उनसे वर्सा पाना हमारा हक है, सबका हक है अपने पियर घर (मुक्तिधाम) में जाने का। मुक्ति-जीवनमुक्ति का हक है। जीवनमुक्ति सबको मिलनी है। जीवनबन्ध से मुक्त हो शान्त में जाते हैं फिर जब आते हैं तो जीवनमुक्त हैं। परन्तु सबको सतयुग में तो जीवनमुक्ति नहीं मिलती। सतयुग में जीवनमुक्ति में थे देवी-देवता। पीछे जो आते हैं कम सुख, कम दु:ख पाते हैं। यह हिसाब-किताब है। सबसे कंगाल भारत ही बना है, जो सबसे ऊंच था। बाप भी कहते हैं - यह देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। यह बनी बनाई है, सब अपने-अपने समय पर अपना-अपना पार्ट बजाते हैं। हेविनली गॉड फादर ही हेविन स्थापन करते हैं और कोई कर न सके। क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले बरोबर कहते हैं हेविन था, नई दुनिया थी। क्राइस्ट कोई वहाँ थोड़ेही आयेगा। वह अपने समय पर ही आता है। फिर उनको अपना पार्ट रिपीट करना है। यह सब बुद्धि में बैठे तो श्रीमत पर चलें। सबकी बुद्धि एक जैसी नहीं है। श्रीमत पर चलने की हिम्मत चाहिए। फिर शिवबाबा आप जो खिलाओ, जो पहनाओ........ ब्रह्मा और जगत अम्बा द्वारा। ब्रह्मा द्वारा ही सब कुछ करेंगे ना। तो दोनों कम्बाइन्ड हैं। ब्रह्मा द्वारा ही कर्तव्य करेंगे। शरीर तो दो इकट्ठे नहीं हैं। कोई-कोई कम्बाइन्ड शरीर भी देखा है बाबा ने। सोल तो दोनों की अलग-अलग हो गयी। इसमें बाबा प्रवेश करते हैं, वह है नॉलेजफुल। तो नॉलेज किस द्वारा दे? कृष्ण का चित्र तो अलग है। यहाँ तो ब्रह्मा चाहिए। प्रैक्टिकल में ब्रह्माकुमार-कुमारियां कितने हैं, यह कोई अन्धश्रधा तो नहीं है। एडाप्टेड चिल्ड्रेन को भगवान् पढ़ाते हैं। कल्प पहले जो एडाप्ट हुए हैं वही अब होते हैं। बाहर ऑफिस में तो कोई नहीं कहेंगे हम बी.के. हैं। यह गुप्त हो गया। शिवबाबा की सन्तान तो हैं ही। बाकी रचना नई सृष्टि की रचनी होती है। पुरानी से नया बनाते हैं। आत्मा में खाद पड़ने से पुरानी हो जाती है। सोने में ही खाद पड़ती है तो फिर झूठा हो जाता है। आत्मा झूठी होती है तो शरीर भी झूठा हो जाता है, फिर सच्चा कैसे हो? झूठी चीज़ को आग में डालते हैं, पवित्र करने के लिए। तो कितना बड़ा विनाश होता है। यह त्योहार आदि भी सब भारत के हैं। यह किसके और कब के हैं, कोई जानते नहीं। नॉलेज बहुत कम उठा सकते हैं। पिछाड़ी में करके राजाई मिली, उससे क्या? बहुत थोड़ा सुख हुआ ना। दु:ख तो आहिस्ते-आहिस्ते शुरू हो जाता इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ करना है। कितने नये बच्चे तीखे हो गये हैं। पुराने अटेन्शन नहीं देते। देह-अभिमान बहुत है, सर्विस करने वाला ही दिल पर चढ़ेगा। कहा जाता है ना अन्दर एक, बाहर दूसरा। बाबा अन्दर से प्यार अच्छे-अच्छे बच्चों को करेंगे। कोई बाहर से अच्छे, अन्दर से खराब होते हैं। कोई सर्विस नहीं करते, अन्धों की लाठी नहीं बनते। अभी मरने-जीने का सवाल है। अमरपुरी में ऊंच पद पाना है। मालूम पड़ता है, किस-किस ने कल्प पहले पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाया है, वह सब देखने में आता है। जितना-जितना देही-अभिमानी बनेंगे उतना सेफ्टी में चलते रहेंगे। देह-अभिमान हरा देता है। बाप तो कहेंगे - श्रीमत पर जितना रूहानी सर्विस में चल सको उतना अच्छा है। सबको बाबा समझाते हैं। चित्रों पर समझाना बहुत सहज है। ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो सब हैं, वह शिवबाबा है बड़ा बाबा। फिर नई सृष्टि रचते हैं। गाते भी हैं मनुष्य से देवता..... सिक्ख धर्म वाले भी उस भगवान की महिमा करते, गुरू नानक के अक्षर बहुत अच्छे हैं। जप साहेब को तो सुख मिलेगा। यह है तन्त (सार), सच्चे साहेब को याद करेंगे तो सुख पायेंगे अर्थात् वर्सा मिलेगा। मानते तो हैं एकोअंकार.. आत्मा को कोई काल नहीं खा सकता। आत्मा मैली होती, बाकी विनाश नहीं होती इसलिए अकाल मूर्त कहते हैं। बाप समझाते हैं मैं अकाल मूर्त हूँ तो आत्मायें भी अविनाशी हैं। हाँ बाकी पुनर्जन्म में आती हैं। हम एकरस हैं। साफ बतलाते हैं - मैं ज्ञान का सागर हूँ, रूप-बसन्त भी हूँ। तो यह बातें समझकर समझानी है। अन्धों की लाठी बनना है। जीयदान देना है। फिर कभी अकाले मृत्यु नहीं होगा। तुम काल पर विजय पाते हो। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) श्रीमत पर रूहानी सर्विस करनी है। अन्धों की लाठी बनना है। शंखध्वनि जरूर करनी है। 2) देही-अभिमानी बनने के लिए याद का चार्ट रखना है। रात को जागकर ख़ास याद करना है। याद में थकना नहीं है। वरदान:- स्व-परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित्त बनने वाले श्रेष्ठ सेवाधारी भव आप बच्चों ने स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करने का कान्ट्रैक्ट लिया है। स्व-परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन का आधार है। बिना स्व-परिवर्तन के कोई भी आत्मा प्रति कितनी भी मेहनत करो, परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि आजकल के समय में सिर्फ सुनने से नहीं बदलते लेकिन देखने से बदलते हैं। कई बन्धन डालने वाले भी जीवन का परिवर्तन देखकर बदल जाते हैं। तो करके दिखाना, बदलकर दिखाना ही श्रेष्ठ सेवाधारी बनना है। स्लोगन:- समय, संकल्प और बोल की एनर्जी को वेस्ट से बेस्ट में चेंज कर दो तो शक्तिशाली बन जायेंगे। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 23 Sep 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli

    Brahma Kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 23-09-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 18-01-84 मधुबन स्मृति दिवस का महत्व आज मधुबन वाले बाप मधुबन में बच्चों से मिलने आये हैं। आज अमृतवेले से स्नेही बच्चों के स्नेह के गीत, समान बच्चों के मिलन मनाने के गीत, सम्पर्क में रहने वाले बच्चों के उमंग में आने के उत्साह भरे आवाज, बांधेली बच्चियों के स्नेह भरे मीठे उल्हनें, कई बच्चों के स्नेह के पुष्प बापदादा के पास पहुँचे। देश-विदेश के बच्चों के समर्थ संकल्पों की श्रेष्ठ प्रतिज्ञायें सभी बापदादा के पास समीप से पहुँची। बापदादा सभी बच्चों के स्नेह के संकल्प और समर्थ संकल्पों का रेसपान्ड कर रहे हैं। ''सदा बापदादा के स्नेही भव''। ''सदा समर्थ समान भव, सदा उमंग-उत्साह से समीप भव, लगन की अग्नि द्वारा बन्धनमुक्त स्वतंत्र आत्मा भव''। बच्चों के बन्धनमुक्त होने के दिन आये कि आये। बच्चों के स्नेह के दिल के आवाज, कुम्भकरण आत्माओं को अवश्य जगायेंगे। यही बन्धन में डालने वाले स्वयं प्रभु स्नेह के बन्धन में बंध जायेंगे। बापदादा विशेष बन्धन वाली बच्चियों को शुभ दिन आने की दिल का आथत दे रहे हैं क्योंकि आज के विशेष दिन पर विशेष स्नेह के मोती बापदादा के पास पहुँचते हैं। यही स्नेह के मोती श्रेष्ठ हीरा बना देते हैं। आज का दिन समर्थ दिन है। आज का दिन समान बच्चों को ततत्वम् के वरदान का दिन है। आज के दिन बापदादा शक्ति सेना को सर्व शक्तियों की विल करता है, विल पावर देते हैं। विल की पावर देते हैं। आज का दिन बाप का बैक-बोन बन बच्चों को विश्व के मैदान में आगे रखने का दिन है। बाप अन-नोन है और बच्चे वेलनोन हैं। आज का दिन ब्रह्मा बाप के कर्मातीत होने का दिन है। तीव्रगति से विश्व कल्याण, विश्व परिक्रमा का कार्य आरम्भ होने का दिन है। आज का दिन बच्चों के दर्पण द्वारा बापदादा के प्रख्यात होने का दिन है। जगत के बच्चों को जगत पिता का परिचय देने का दिन है। सर्व बच्चों को अपनी स्थिति, ज्ञान स्तम्भ, शक्ति स्तम्भ अर्थात् स्तम्भ के समान अचल अडोल बनने की प्रेरणा देने का दिन है। हर बच्चा बाप का यादगार शान्ति स्तम्भ है। यह तो स्थूल शान्ति स्तम्भ बनाया है। परन्तु बाप की याद में रहने वाले याद का स्तम्भ आप चैतन्य सभी बच्चे हो। बापदादा सभी चैतन्य स्तम्भ बच्चों की परिक्रमा लगाते हैं। जैसे आज शान्ति स्तम्भ पर खड़े होते हो, बापदादा आप सभी याद में रहने वाले स्तम्भों के आगे खड़े होते हैं। आप आज के दिन विशेष बाप के कमरे में जाते हो। बापदादा भी हर बच्चे के दिल के कमरे में बच्चों से दिल की बातें करते हैं और आप झोपड़ी में जाते हो। झोपड़ी है दिलवर और दिलरूबा की यादगार। दिलरूबा बच्चों से दिलवर बाप विशेष मिलन मनाते हैं। तो बापदादा भी सभी दिलरूबा बच्चों के भिन्न-भिन्न साज़ सुनते रहते हैं। कोई स्नेह की ताल से साज़ बजाते, कोई शक्ति की ताल से, कोई आनन्द, कोई प्रेम की ताल से। भिन्न-भिन्न ताल के साज़ सुनते रहते हैं। बापदादा भी आप सभी के साथ-साथ चक्र लगाते रहते हैं। तो आज के दिन का विशेष महत्व समझा!आज का दिन सिर्फ स्मृति का दिन नहीं लेकिन स्मृति सो समर्थी दिवस है। आज का दिन वियोग वा वैराग्य का दिन नहीं है लेकिन सेवा की जिम्मेवारी के ताजपोशी का दिन है। समर्थी के स्मृति के तिलक का दिन है। ''आगे बच्चे पीछे बाप'' इसी संकल्प को साकार होने का दिन है। आज के दिन ब्रह्मा बाप विशेष डबल विदेशी बच्चों को बाप के संकल्प और आह्वान को साकार रूप देने वाले स्नेही बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। कैसे स्नेह द्वारा बाप के सम्मुख पहुँच गये हैं। ब्रह्मा बाप के आह्वान के प्रत्यक्ष फल स्वरूप, ऐसे सर्व शक्तियों के रस भरे श्रेष्ठ फलों को देख ब्रह्मा बाप बच्चों को विशेष बधाई और वरदान दे रहे हैं। सदा सहज विधि द्वारा वृद्धि को पाते रहो। जैसे बच्चे हर कदम में ''बाप की कमाल है'' यही गीत गाते हैं, ऐसे बापदादा भी यही कहते हैं कि बच्चों की कमाल है। दूरदेशी, दूर के धर्म वाले होते भी कितने समीप हो गये हैं। समीप आबू में रहने वाले दूर हो गये हैं। सागर के तट पर रहने वाले प्यासे रह गये हैं लेकिन डबल विदेशी बच्चे औरों की भी प्यास बुझाने वाले ज्ञान गंगायें बन गये। कमाल है ना बच्चों की इसलिए ऐसे खुशनशीब बच्चों पर बापदादा सदा खुश हैं। आप सभी भी डबल खुश हो ना। अच्छा-ऐसे सदा समान बनने के श्रेष्ठ संकल्पधारी, सर्व शक्तियों के विल द्वारा विल पावर में रहने वाले, सदा दिलवर की दिलरूबा बन भिन्न-भिन्न साज़ सुनाने वाले सदा स्तम्भ के समान अचल-अडोल रहने वाले, सदा सहज विधि द्वारा वृद्धि को पाए वृद्धि को प्राप्त कराने वाले, सदा मुधर मिलन मनाने वाले देश-विदेश के सर्व प्रकार के वैरायटी बच्चों को पुष्प वर्षा सहित बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।आज सभी स्नेही विशेष सेवाधारी बच्चों को वतन में बुलाया था। जगत अम्बा को भी बुलाया, दीदी को भी बुलाया। विश्व किशोर आदि जो भी अनन्य गये हैं सेवा अर्थ, उन सबको वतन में बुलाया था। विशेष स्मृति दिवस मनाने के लिए सभी अनन्य डबल सेवा के निमित्त बने हुए बच्चे संगम के ईश्वरीय सेवा में भी साथी हैं और भविष्य राज्य दिलाने की सेवा के भी साथी हैं। तो डबल सेवाधारी हो गये ना। ऐसे डबल सेवाधारी बच्चों ने विशेष रूप से सभी मधुबन में आये हुए सहयोगी स्नेही आत्माओं को यादप्यार दी है। आज बापदादा उन्हों की तरफ से याद-प्यार का सन्देश दे रहे हैं। समझा। कोई किसको याद करते, कोई किसको याद करते। बाप के साथ-साथ सेवार्थ एडवांस पुरुषार्थी बच्चों को जिन्होंने भी संकल्प में याद किया उन सभी की याद का रिटर्न सभी ने यादप्यार दिया है। पुष्पशान्ता भी स्नेह से याद करती थी। ऐसे तो नाम कितने का लेंवे। सभी की विशेष पार्टी वतन में थी। डबल विदेशियों के लिए विशेष दीदी ने याद दी है। आज दीदी को विशेष बहुतों ने याद किया ना क्योंकि इन्होंने दीदी को ही देखा है। जगत अम्बा और भाऊ (विश्व किशोर) को तो देखा नहीं इसलिए दीदी की याद विशेष आई। वह लास्ट टाइम बिल्कुल निरसंकल्प और निर्मोही थी। उनको भी याद तो आती है लेकिन वह खींच की याद नहीं है। स्वतंत्र आत्मा है। उन्हों का भी संगठन शक्तिशाली बन रहा है। सब नामीग्रामी है ना। अच्छा-कुछ विदेशी भाई-बहन सेवा पर जाने के लिए बापदादा से छुट्टी ले रहे हैं:सभी बच्चों को बापदादा यही कहते हैं कि जा नहीं रहे हो लेकिन फिर से आने के लिए, फिर से बाप के आगे सेवा कर गुलदस्ता लाने के लिए जा रहे हो इसलिए घर नहीं जा रहे हो, सेवा पर जा रहे हो। घर नहीं सेवा का स्थान है, यही सदा याद रहे। रहमदिल बाप के बच्चे हो तो दु:खी आत्माओं का भी कल्याण करो। सेवा के बिना चैन से सो नहीं सकते। स्वप्न भी सेवा के आते हैं ना। आंख खुली बाबा से मिले फिर सारा दिन बाप और सेवा। देखो, बापदादा को कितना नाज़ है कि एक बच्चा सर्विसएबुल नहीं लेकिन इतने सब सर्विसएबुल हैं। एक-एक बच्चा विश्व कल्याणकारी है। अभी देखेंगे कौन बड़ा गुलदस्ता लाता है। तो जा रहे हैं या फिर से आ रहे हैं! तो ज्यादा स्नेह किसका हुआ? बाप का या आपका? अगर बच्चों का स्नेह ज्यादा रहे तो बच्चे सेफ हैं। महादानी, वरदानी, सम्पन्न आत्मायें जा रहे हैं, अभी अनेक आत्माओं को धनवान बनाकर, सजाकर बाप के सामने ले आना। जा नहीं रहे हो लेकिन सेवा कर एक से तीन गुना होकर आयेंगे। शरीर से भल कितना भी दूर जा रहे हो लेकिन आत्मा सदा बाप के साथ है। बापदादा सहयोगी बच्चों को सदा ही साथ देखते हैं। सहयोगी बच्चों को सदा ही सहयोग प्राप्त होता है। अच्छा।डबल विदेशी भाई बहिनों के प्रश्न-बापदादा के उत्तरप्रश्न:- कई ब्राह्मण आत्माओं पर भी ईविल सोल्स का प्रभाव पड़ जाता है, उस समय क्या करना चाहिए?उत्तर:- इसके लिए सेवाकेन्द्र का वातावरण बहुत शक्तिशाली सदा रहना चाहिए और साथ में अपना भी वातावरण शक्तिशाली रहे। फिर यह ईविल प्रिट कुछ नहीं कर सकती है। यह मन को पकड़ती हैं। मन की शक्ति कमजोर होने के कारण ही इसका प्रभाव पड़ जाता है। तो शुरू से पहले ही उसके प्रति ऐसे योगयुक्त आत्मायें विशेष योग भट्ठी रख करके उसको शक्ति दें और वह जो योगयुक्त ग्रुप है वह समझे कि हमको यह विशेष कार्य करना है, जैसे और प्रोग्राम होते हैं वैसे यह प्रोग्राम इतना अटेन्शन से करें तो फिर शुरू में उस आत्मा को ताकत मिलने से बच सकती हैं। भले वह आत्मा परवश होने के कारण योग में नहीं भी बैठ सके, क्योंकि उसके ऊपर दूसरे का प्रभाव होता है, तो वह भले ही न बैठे लेकिन आप अपना कार्य निश्चय बुद्धि हो करके करते रहो। तो धीरे-धीरे उसकी चंचलता शान्त होती जायेगी। वह ईविल आत्मा पहले आप लोगों के ऊपर भी वार करने की कोशिश करेगी लेकिन आप समझो यह कार्य करना ही है, डरो नहीं तो धीरे-धीरे उसका प्रभाव हट जायेगा।प्रश्न:- सेवाकेन्द्र पर अगर कोई प्रवेशता वाली आत्मायें ज्ञान सुनने के लिए आती हैं तो क्या करना चाहिए?उत्तर:- अगर ज्ञान सुनने से उसमें थोड़ा-सा भी अन्तर आता है या सेकण्ड के लिए भी अनुभव करती है तो उसको उल्लास में लाना चाहिए। कई बार आत्मायें थोड़ा-सा ठिकाना ना मिलने के कारण भी आपके पास आती हैं, बदलने के लिए आया है या वैसे ही पागलपन में जहाँ रास्ता मिला, आ गया है वह परखना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसे पागल होते हैं जो जहाँ भी देखेंगे दरवाजा खुला है वहाँ जायेंगे। होश में नहीं होते हैं। तो ऐसे कई आयेंगे लेकिन उसको पहले परखना है। नहीं तो उसमें टाइम वेस्ट हो जायेगा। बाकी कोई अच्छे लक्ष्य से आया है, परवश है तो उसको शक्ति देना अपना काम है। लेकिन ऐसी आत्माओं को कभी भी अकेले में अटेण्ड नहीं करना। कुमारी कोई ऐसी आत्मा को अकेले में अटेण्ड न करें क्योंकि कुमारी को अकेला देख पागल का पागलपन और निकलता है इसलिए ऐसी आत्मायें अगर समझते हो योग्य हैं, तो उन्हें ऐसा टाइम दो जिस टाइम दो-तीन और हों या कोई जिम्मेवार, कोई बुजुर्ग ऐसा हो तो उस समय उसको बुलाकर बिठाना चाहिए क्योंकि जमाना बहुत गन्दा है और बहुत बुरे संकल्प वाले लोग हैं इसलिए थोड़ा अटेन्शन रखना भी जरूरी है। इसमें बहुत क्लियर बुद्धि चाहिए। क्लियर बुद्धि होगी तो हरेक के वायब्रेशन से कैच कर सकेंगे कि यह किस एम से आया है।प्रश्न:- आजकल किसी-किसी स्थान पर चोरी और भय का वातावरण बहुत है, उनसे कैसे बचे?उत्तर:- इसमें योग की शक्ति बहुत चाहिए। मान लो कोई आपको डराने के ख्याल से आता है तो उस समय योग की शक्ति दो। अगर थोड़ा कुछ बोलेंगी तो नुकसान हो जायेगा इसलिए ऐसे समय पर शान्ति की शक्ति दो। उस समय पर अगर थोड़ा भी कुछ कहा तो उन्हों में जैसे अग्नि में तेल डाला। आप ऐसे रीति से रहो जैसे बेपरवाह हैं, हमको कोई परवाह नहीं है। जो करता है उसको साक्षी होकर अन्दर शान्ति की शक्ति दो तो फिर उसके हाथ नहीं चलेंगे। वह समझेंगे इनको तो कोई परवाह नहीं है। नहीं तो डराते हैं, डर गये या हलचल में आये तो वह और ही हलचल में लाते हैं। भय भी उन्हों को हिम्मत दिलाता है इसलिए भय में नहीं आना चाहिए। ऐसे टाइम पर साक्षीदृष्टा की स्थिति यूज़ करनी है। अभ्यास चाहिए ऐसे टाइम। प्रश्न:- ब्लैसिंग जो बापदादा द्वारा मिलती है, उसका गलत प्रयोग क्या है? उत्तर:- कभी-कभी जैसे बापदादा बच्चों को सर्विसएबल या अनन्य कहते हैं या को0ई विशेष टाइटल देते हैं तो उस टाइटल को मिसयूज कर लेते हैं, समझते हैं मैं तो ऐसा बन ही गया। मैं तो हूँ ही ऐसा। ऐसा समझकर अपना आगे का पुरुषार्थ छोड़ देते हैं, इसको कहते हैं मिसयूज़ अर्थात् गलत प्रयोग क्योंकि बापदादा जो वरदान देते हैं, उस वरदान को स्वयं के प्रति और सेवा के प्रति लगाना, यह है सही रीति से यूज़ करना और अलबेला बन जाना, यह है मिसयूज़ करना। प्रश्न:- बाइबिल में दिखाते हैं, अन्तिम समय में एन्टी क्राइस्ट का रूप होगा, इसका रहस्य क्या है? उत्तर:- एन्टी क्राइस्ट का अर्थ है उस धर्म के प्रभाव को कम करने वाले। आजकल देखो उसी क्रिश्चियन धर्म में क्रिश्चियन धर्म की वैल्यू को कम समझते जा रहे हैं, उसी धर्म वाले अपने धर्म को इतना शक्तिशाली नहीं समझते और दूसरों में शक्ति ज्यादा अनुभव करते हैं, यही एन्टी क्राइस्ट हो गये। जैसे आजकल के कई पादरी ब्रह्मचर्य को महत्व नहीं देते और उन्हों को गृहस्थी बनाने की प्रेरणा देने शुरू कर दी है तो यह उसी धर्म वाले जैसे एन्टी क्राइस्ट हुए। अच्छा! वरदान:- बाप के राइट हैण्ड बन हर कार्य में सदा एवररेडी रहने वाले मास्टर भाग्य विधाता भव जो बच्चे राइट हैण्ड बन बाप के हर कार्य में सदा सहयोगी, सदा एवररेडी रहते हैं, आज्ञाकारी बन सदा कहते हाँ बाबा हम तैयार हैं। बाप भी ऐसे सहयोगी बच्चों को सदा मुरब्बी बच्चे, सपूत बच्चे, विश्व के श्रृंगार बच्चे कह मास्टर वरदाता और भाग्य विधाता का वरदान दे देते हैं। ऐसे बच्चे प्रवृत्ति में रहते भी प्रवृत्ति की वृत्ति से परे रहते हैं, व्यवहार में रहते अलौकिक व्यवहार का सदा ध्यान रखते हैं। स्लोगन:- हर बोल और कर्म में सच्चाई सफाई हो तो प्रभू के प्रिय रत्न बन जायेंगे। #bkmurlitoday #brahmakumaris #Hindi

  • A letter to Baba from Iran was Responded

    Email was sent to us from Iran, by BK Hamid Reza about Self transformation, Rajyoga course, his experiences with meditation and opening a new centre in Iran. We have responded in detail with the light of guidance. Original Email sent to us: Dear sir/mam I really like your notes about consciousness and mind. Actually I get to this point through my meditation practice. Yes,we are all light or awareness. I really like to be at a center and practice and become more pure. I live in Iran . I hope and know that the regime in Iran will change and after studying and practise in your center,I would bring this knowledge to Iran . Shiva is the name of god in zoroastrians and we are orginally zoroastrian not muslim . So, if you help me to go to a center and practice and become pure , I really like to make a center in Iran and revive Shiva and purity in Iran again . Thanks in advance Our Response: To: Everything reading Dear Divine Brother/Sister Your letter is received and read. You asked to guide you in light of self transformation, Rajyog and opening a new center in Iran. Here is our guidance. 1. Self transformation: You have now recognised our Spiritual father. The supreme soul. You have experienced the self as a Soul, a point of light. This is a GREAT shift of consciousness. We before use to believe our-self as a being, as a body or as this mind. Never did we realise the soul. Even when we call the name 'Soul', it meant for a body of light, not a point of light. Right? But now, we have understood the knowledge. This point (soul) itself have a journey of maximum 84 births. This smallest point has the highest memory. It is extraordinary fact about life. How this works, no one knows. Baba has explained. You are conscious and then you become unconscious or body conscious. There are 7 virtues of Soul: http://brahma-kumaris.com/7-virtues-of-soul 2. RajYog or meditation: You may are new child of Shiv baba. You live in Iran. There you can do this service. Because there is only 1 or 2 centres in Iran. You can become an important messenger of God, who gives the message of Purity, Peace and universal brotherhood. We all are souls. Son of supreme soul. All are brothers. Then after we take a body, we become brother and sister. This should be explained that God is one. The supreme soul, who is above the Cycle (refer World Drama Cycle). He comes at the end of cycle to transform the world, liberate all souls back to home. Many such points of knowledge are that you should churn and explain to others at the centre. 3. Opening a centre: Baba has already told in Avyakt Murlis, about this. Your house is itself a centre. You follow ALL the principles given by God father to us children. As you follow the Shrimat, your home itself shall be called as a center. ADVICE: Spread letters around your house to your neighbors: ''God has come. Learn the way to reconnect with the original self, and with your spiritual father (god).'' Make a board outside your house. Anyone comes, you shall give them knowledge. This is a GREAT service you CAN DO. Then ask them to listen the Gyan Murli, which they can on internet here: babamurli.com in many languages. They shall come to your home to have an Introduction of the father, the World Drama cycle and of 3 worlds. That is the way you can uplift the self and others. This is a chance not to miss. Waiting for your response. --- Useful links --- What is Murli?: https://www.brahma-kumaris.com/what-is-murli Online services: https://www.brahma-kumaris.com/services Revelations by GOD: https://www.brahma-kumaris.com/revelations Accha In God fatherly world service 00

  • BK murli today in Hindi 12 Sep 2018 Aaj ki Murli

    Brahma Kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 12-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे - तुम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, रूद्र शिवबाबा तुम्हें जो सुनाते हैं वह सुनकर दूसरों को जरूर सुनाना है'' प्रश्नः-बाप ने भी यज्ञ रचा है और मनुष्य भी यज्ञ रचते हैं - दोनों में कौन सा मुख्य अन्तर है? उत्तर:-मनुष्य रूद्र यज्ञ रचते हैं कि शान्ति हो अर्थात् विनाश न हो लेकिन बाप ने रूद्र यज्ञ रचा है कि इस यज्ञ से विनाश ज्वाला निकले और भारत स्वर्ग बनें। बाप के इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से तुम नर से नारायण अर्थात् मनुष्य से देवता बन जाते हो। उस यज्ञ से तो कोई भी प्राप्ति नहीं होती है। गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है...... ओम् शान्ति।यह कितना मीठा गीत है और कितना अर्थ सहित है, जो विशाल बुद्धि वाले होंगे वह अच्छी रीति समझ सकेंगे। बुद्धि भी नम्बरवार है ना। उत्तम-मध्यम-कनिष्ट होते हैं। उत्तम बुद्धि वाले इसका अर्थ अच्छी रीति समझ सकते हैं। तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है, यह कौन याद करते हैं? (बच्चे) कौन से बच्चे? बच्चे तो ढेर हैं। जो ब्राह्मण बने हैं, जो देवता थे, जिन्होंने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं उन्होंने ही जास्ती बुलाया है। वही शिव अथवा सोमनाथ के मन्दिर की स्थापना करते हैं। सिद्ध होता है हम जो पूज्य देवी-देवता थे, अभी पुजारी बने हैं। बरोबर हम पूज्य थे फिर पुजारी बने तो सोमनाथ शिव की पूजा करते हैं। रूद्र यज्ञ बहुत रचते हैं, रूद्र ज्ञान यज्ञ कभी नहीं रचते। रूद्र यज्ञ नाम रखते हैं। अभी भी रूद्र यज्ञ रच रहे हैं। तुम बहुत अच्छा समझा सकते हो - रूद्र कौन है? क्या रूद्र ने कभी यज्ञ रचा था? कैसे रचा फिर क्या उसकी सिद्धि हुई? यह तो कोई नहीं जानते। तुमको अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। परमपिता परमात्मा के सिवाए ज्ञान का तीसरा नेत्र कोई दे नहीं सकता। ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा को ही गाया जाता है। मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कह सकते। अभी तुम जानते हो हमको दादे का वर्सा मिल रहा है जिसको ही याद करते हैं कि बाबा आकर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो। फिर हम भी दान लेकर औरों को करेंगे। बहुत सहज है। सिर्फ याद दिलायेंगे कि तुम्हारे दो बाप हैं। भक्ति मार्ग में दो बाप हो जाते हैं। सतयुग-त्रेता में लौकिक बाप ही होता है। वहाँ वर्सा भी तुम इस समय के पुरुषार्थ अनुसार पाते हो। तो तुम बच्चों का माथा फिरना चाहिए। ऐसी-ऐसी जगह जाकर पूछना चाहिए कि रूद्र यज्ञ किसने रचा था? क्या रूद्र ज्ञान यज्ञ है या रूद्र यज्ञ है? असुल नाम है रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र तो है निराकार। वह कैसे यज्ञ रचेगा? जरूर शरीर धारण करना पड़े। दक्ष प्रजापति का यज्ञ भी मनाते आते हैं। दिखाते हैं दक्ष प्रजापति यज्ञ में अश्व को स्वाहा करते हैं। घोड़े को टुकड़े-टुकड़े कर जलाते हैं। उनको दक्ष प्रजापति यज्ञ कहते हैं। यह तुम अभी जानते हो तो वहाँ लिखना चाहिए यह कौन सा यज्ञ है? बड़ा भभके से यज्ञ करते हैं। बहुत पैसे इकट्ठे करते हैं। बड़े-बड़े आदमी दान करते हैं। कोई 100 निकालते, कोई 500 निकालते। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो तुम सारे स्वाहा होते हो। उसमें तो थोड़ा-थोड़ा पैसा निकाल इकट्ठा करते हैं फिर ब्राह्मण को दक्षिणा मिलती है। यहाँ तो तुमको स्वाहा होना पड़ता है। वहाँ स्वाहा होने की बात नहीं। यहाँ बच्चे कहते हैं बाबा तन-मन-धन सहित मैं आता हूँ, वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे। आहुति में कभी ऐसे नहीं डालेंगे। आरती आदि होगी, चंदा चीरा होगा। बड़ों-बड़ों से लेते हैं। तुम बच्चे जानते हो इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से ही विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है। वह यज्ञ रचते हैं शान्ति के लिए, विनाश के लिए नहीं। वहाँ शान्ति का बड़ा आवाज़ करते हैं। शान्ति तो सारी दुनिया में चाहिए ना। परमात्मा है शान्ति का सागर। तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है। अ़खबार पढ़ते हो तो ख्याल चलना चाहिए - कैसे हम सबको समझायें?बाप जानते हैं कैसे बी.के. दुकान सम्भाल रहे हैं। सेठ का कौन सा दुकान अच्छा चलता है, कौन सा मैनेजर अच्छा है, वह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। यह ब्रह्मा है गोथरी। यह बड़ी रमणीक बातें हैं। तो रूद्र ज्ञान यज्ञ के लिए तो लिखा हुआ है इससे विनाश ज्वाला निकली। वह यज्ञ करते हैं शान्ति के लिए। यह है सच्चा-सच्चा यज्ञ। उन ब्राह्मणों के तो अनेक सेठ होते हैं। यह तुम ब्राह्मणों का एक ही सेठ है। बाप है रूद्र। रूद्र बाप कहो, शिव कहो, सोमनाथ कहो, उसने ज्ञान यज्ञ रचा है, जिसमें तुम बैठे हो। वह यज्ञ तो दो-चार दिन चलेगा। तुम्हारा यह रूद्र ज्ञान यज्ञ तो बहुत बड़ा है। उसमें टाइम लगता है। यह है नर से नारायण अथवा मनुष्य से देवता बनने का यज्ञ। वह तो ऐसे नहीं कहेंगे। बाप बैठ समझाते हैं कैसे उन्हों को सावधान करो। बड़ों-बड़ों को बोलो - यह तुम जो यज्ञ रचते हो, उसमें भूल है। परमपिता परमात्मा कल्प-कल्प संगम पर आते हैं। शास्त्रों में युगे-युगे लिख दिया है। यह भूल कर दी है। वैसे ही रूद्र यज्ञ रचते हैं। वास्तव में रूद्र ज्ञान यज्ञ है। शिव का नाम है रूद्र, उसने ही ज्ञान यज्ञ रचा है। जैसे इब्राहम ने अपना इस्लाम धर्म स्थापन किया, बुद्ध ने बौद्धी धर्म स्थापन किया, वैसे रूद्र का है ज्ञान यज्ञ जिससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होगी। तो गोया वो लोग शान्ति के लिए यज्ञ रचते हैं अर्थात् विनाश नहीं चाहते। स्वर्ग की स्थापना के लिए नर्क का विनाश हो, तो अच्छा ही है ना।भारत है अविनाशी खण्ड। जरूर भारत के मनुष्य सम्प्रदाय बहुत ज्यादा होने चाहिए। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। उनको सारा कल्प हुआ है। शास्त्रों में 33 करोड़ लिख दिया है। परन्तु यह तो समझाना चाहिए - जरूर और धर्म वालों से देवता धर्म की आदमशुमारी जास्ती होगी, लेकिन वह कनवर्ट हो गये हैं तो कैसे निकलें। बौद्धी, क्रिश्चियन, मुसलमान आदि जाकर ढेर बने हैं, इसलिए थोड़ी संख्या हो जाती है। यह भी ड्रामा। इसमें समझने की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। जब तक बुद्धि में ज्ञान नहीं बैठा है तो सिर्फ अर्पणमय होने से क्या फायदा? अर्पणमय तो ढेर बनते हैं परन्तु जो अच्छी रीति धारणा कर और कराते हैं, प्रजा बनाते हैं वही अच्छा पद पा सकते हैं।तो यह गीत एक्यूरेट है - बुलाने को जी चाहता है.......। सबसे पहले 84 जन्म किसने लिए होंगे? जो पहले-पहले थे, वह थे ही देवी-देवतायें। सो भी भारत में थे। अभी तो कोई कहाँ, कोई कहाँ कनवर्ट हो गये हैं। कई तो भारत से बाहर चले गये हैं। नहीं तो वास्तव में भारत जैसा बड़े ते बड़ा तीर्थ और कोई है नहीं। और सभी धर्म स्थापक जो हैं उन्हों को भी पावन बनाने के लिए भगवान् को भारत में आना पड़ता है क्योंकि सब पतित हैं, सबको पावन बनाने वाला एक है। यह तुम जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार यथार्थ रीति जान सकते हैं। तुम कहेंगे हम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हैं, ऐसा कोई यज्ञ होता है क्या, जिसमें इतना समय बैठे हों? क्या बैठ करते हो? रूद्र जो ज्ञान सुनाते हैं वह सुनते ही रहते हो। जहाँ तक रूद्र बाबा इस शरीर में है, सुनाते ही रहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा भी तो जरूर यहाँ होगा ना। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात गाई हुई है। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा का थोड़ेही दिन और रात बनायेंगे। वह तो सूक्ष्मवतनवासी देवता है। दिन और रात का प्रश्न यहाँ का है। ब्रह्मा की रात माना पतित। फिर वही पावन बनते हैं तो दिन होता है। ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। पहले जरूर बाप के बच्चे होंगे फिर पद टीचर से पायेंगे। नम्बरवार हैं ना। यह भी बुद्धि में रहे तो कितनी खुशी रहे। तुम पहले बेहद के बाप के थे ना। यहाँ आये हो पार्ट बजाने। भक्ति मार्ग में बेहद के बाप को याद करते आये हो क्योंकि वह है स्वर्ग का रचयिता। जरूर स्वर्ग की राजाई देने वाला होगा। यह समझाना तो बड़ा सहज है। सेन्सीबुल ही समझा सकेंगे। वास्तव में सेन्सीबुल तुम ब्राह्मण हो। तुम्हारे में जो अक्लमंद हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। दुनिया के अक्लमंद भी नम्बरवार हैं ना। यहाँ भी जो सेन्सीबुल बनते जायेंगे वह जरूर अच्छा नम्बर पायेंगे। हर एक अपनी दिल से पूछे हम कहाँ तक सेन्सीबुल बना हूँ? जैसे बाबा मुरली चलाते हैं वैसे वहाँ भी तुम्हारी मुरली चल सकती है। तुम उन्हें समझाओ कि रूद्र यज्ञ और रूद्र ज्ञान यज्ञ में रात-दिन का फ़र्क है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो उससे विनाश ज्वाला निकली, भारत स्वर्ग बना और यह फिर यज्ञ रचते हैं विनाश न हो अर्थात् स्वर्ग स्थापन न हो। यह तो उल्टी बात हो गई। तब तो बाबा कहते हैं मैं इन सबका उद्धार करने आता हूँ। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचता हूँ। तो तुम प्रतिज्ञा करते हो - बाबा, हम आपसे सुनकर और सुनायेंगे। अच्छा, औरों को सुनाओ। पहले यहाँ तो रिपीट करो। घड़ी-घड़ी रिपीट करो जो फिर कहाँ समझा सको। फर्स्टक्लास प्वाइंट है। उस यज्ञ में तो जौ-तिल आदि डालते हैं, मेरे रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो सारी पुरानी दुनिया की सामग्री स्वाहा हुई थी। परन्तु यह सब बातें कोई की बुद्धि में अच्छी रीति धारण नहीं होती। बाप को याद नहीं करते हैं तो बुद्धि का ताला नहीं खुलता। बाबा कहते हैं - हम भी क्या करें? इस समय सबकी बुद्धि पतित है, उनको पावन बनाता हूँ। जो मेरे को याद नहीं करते, उनमें धारणा नहीं हो सकती। बुद्धि का ताला कैसे खुले? याद से ही खुलेगा। मोस्ट बिलवेड बाप है, उनकी बड़ी महिमा करते हैं। शिवबाबा की कितनी महिमा है! शिव की पूजा भी होती है, तो जरूर आता होगा ना। बिगर आरगन्स क्या आकर करेंगे? तो अब ब्रह्मा में आया हुआ हूँ। तुम बच्चे बापदादा के सामने बैठे हुए हो परन्तु देह-अभिमान होने कारण इतना लॅव, बाप के लिए रिगार्ड नहीं रहता। डायरेक्शन पर मुश्किल चलते हैं। अहंकार में आ जाते हैं। बाप कहते हैं - मैं निरहंकारी हूँ, तुमको इतना अहंकार क्यों आता है? बस, समझते हैं मैं ही होशियार हूँ। इतना देह-अभिमान आ जाता है।अब कोई का पति मर जाता है तो उसकी देह ख़त्म हो गई। बाकी आत्मा निकल गई फिर ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं। देह को तो नहीं बुलाते। भावना रखते हैं तो भावना का भाड़ा मिलता है। पति को याद करते रहे तो पति का साक्षात्कार कर लेंगे। बाबा साक्षात्कार तो कराते हैं ना। ऐसे बहुतों का प्यार होता है। आयेगी तो आत्मा ना। कोई का स्त्री में प्यार है तो भावना का भाड़ा मिल जाता है। स्त्री को देख लेते हैं। चीज़ ले आते हैं, खुद उनको पहनाते हैं। ऐसे बहुत कुछ होता आया है। आगे बहुत विधि से खिलाते थे। जैसे गणेश को अथवा नानक आदि को याद करते हैं तो साक्षात्कार हो जाता है, ऐसे बहुतों को हो सकता है। परन्तु वह चाबी एक ही बाप के हाथ में है। बाप कहते हैं यह साक्षात्कार की बातें भी ड्रामा में नूंधी हुई हैं। साक्षात्कार कराया, ड्रामा चला, ठहरता नहीं है। ड्रामा को भी अच्छी रीति जानना होता है। अरे, बाबा का तो अच्छी रीति रिगार्ड रखो। बाप में इतना रिगार्ड प्यार रखना बड़ा मुश्किल समझते हैं, समझते हैं वह तो निराकार है। कहते हैं यह तो उनका रथ है, इनको हम क्या करेंगे? हम तो निराकार को ही याद करेंगे। अच्छा, निराकार की गोद में जाकर दिखाओ? निराकार साथ खाओ, पियो। तुम इनके पास क्यों आते हो? कहते हैं - नहीं बाबा, आप इसमें हो, आपको ही इसमें विराजमान समझ चलते हैं। यह बड़ा मुश्किल किसकी बुद्धि में रहता है। ऐसे बहुत हैं जो गपोड़े लगाते हैं - हमारा बाबा में बहुत प्यार है, हम इतने घण्टे बाबा को याद करते हैं। बाबा कहते हैं मैं भी पूरा याद नहीं करता हूँ। मैं तो एक ही सिकीलधा बच्चा हूँ फिर भी मैं पुरुषार्थ बहुत करता हूँ। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अर्पण होने के साथ-साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है। ऊंच पद के लिए अच्छी रीति धारणा करनी और करानी है। 2) बाप समान निरहंकारी बनना है। अहंकार छोड़ बाप से अति लॅव वा रिगार्ड रखना है। देह-अभिमान में नहीं आना है। वरदान:- हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले समझदार ज्ञानी तू आत्मा भव l समझदार ज्ञानी तू आत्मा वह है जो पहले सोचता है फिर करता है। जैसे बड़े आदमी पहले भोजन को चेक कराते हैं फिर खाते हैं। तो यह संकल्प बुद्धि का भोजन है इसे पहले चेक करो फिर कर्म में लाओ। संकल्प को चेक कर लेने से वाणी और कर्म स्वत: समर्थ हो जायेंगे। और जहाँ समर्थ है वहाँ कमाई है। तो समर्थ बन हर कदम अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म में पदमों की कमाई जमा करो, यही ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण है। स्लोगन:- बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ने वाले ही उड़ता योगी हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 10 methods for practicing 5 forms of Soul (Panch Swaroop)

    This is the 5 Swaroop Abhyas short article in English. As Avyakt BapDada guided many times in murlis, here are 10 methods to practice the 5 forms of Soul (Point of light Soul, Deity form, Worshipped idol form, Brahman form, Angelic form) Om Shanti divine brothers & sisters, Sharing baba’s another new project to beloved Brahman family – 5 forms practice using ten methods for self-progress (purusharth) through intense effort in this year of completion (samapti varsh: 2018). In this project, ten various types of 5 forms practice method is depicted which if practiced can benefit ourselves and others. Therefore it is very essential to be shared to those in connection. ➤Access PDF version of this article to download, print and keep safe. In the picture, you are seeing the 5 forms we take during the world cycle. Soul - incorporeal point of conscious light (our original form) Deity form (corporeal perfect form of us in the golden age or satyug) Worshipped form (our form as praised during bhakti for worshipping) Brahmin form (our present simple corporeal form in which we are doing purusharth to become pure) Angel (our light form in subtle world for subtle service) 10 methods of practising 5 Swaroop are: 1) Basic Five forms practice 2) Five forms practice through three stages 3) Sakash to five forms rosary through five forms 4) Five forms practice through seven virtues 5) Five forms practice through eight powers 6) Five forms practice through various trinity relations 7) Sakash to five vices through five forms 8) Sakash to five elements through five forms 9) Sakash to five stages through five forms 10) Sakash to world through five forms with Aadi ratnas. Learn More➣ Five Forms of Soul and its Practice (in Detail) ➥Just as in 11th Chapter of Shrimat Geeta Shri Krishna gave vision of Virat Vishwa swarup (Enormous World form) to Arjuna, in a similar way the compilation of ten methods of five forms is an enormous weapon, powerful drill, Shivastra (weapon of Shiva), God bomb, powerful swadarshan chakra through which ten vices in the form of 10 heads of Ravana can be destroyed, can get 100% rid of waste thought, speech, attitude, vision, action and vices ( 5 of male and 5 of female ) and able to gain victory over it for half the cycle and come in 1-1-1 at the beginning of Satyuga. ➥Bapdada has specially mentioned on 5 form practice in Avyakt Murli of 30-11-2010: "Today Bapdada is teaching an exercise to keep your mind constant and stable. Throughout day perform this 5 forms exercise at least for 5 seconds to 5 minutes every hour, whatever forms you think about, experience that in a second." Meaning: Experience them in your mind, create a thought: I am a Soul, I come down from the Soul world to play my part in the beautiful Golden age (Satyug)... now this is the end of cycle and its time to go back home... such churning of knowledge would make the 5 Swaroop (5 forms) practice easy and natural. Keep your mind busy in this. Useful Links Download or View Full PDF Five Forms of Soul and its Practice (in Detail) Five Forms Article (Hindi) 5 forms of Soul (YouTube) Daily Murli Website

  • BK murli today in Hindi 1 Sept 2018 Aaj ki Murli

    Brahma kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 01-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ''मीठे बच्चे-विचार सागर मंथन कर श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान् अन्तर को स्पष्ट करो'' प्रश्नः- ब्रह्मा बाबा अपने आपसे क्या बातें करते हैं? उन्हें वन्डर क्या लगता है? उत्तर:- ब्रह्मा बाबा अपने आपसे बातें करते-पता नहीं क्या होता जो शिवबाबा घड़ी-घड़ी भूल जाता है। ऐसे तो नहीं, बाप जब प्रवेश करते हैं तब याद रहती है, बाबा चले जाते हैं तो याद भूल जाती है। परन्तु मैं तो उनका बच्चा हूँ, याद भूल क्यों जाती? क्या मेरी याद से ही बाबा आते हैं? ऐसे-ऐसे बाबा अपने आपसे बातें करके वन्डर खाते रहते हैं। गीत:- तू प्यार का सागर है....... ओम् शान्ति।शिवबाबा बैठ करके अपने सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं कि गीता का भगवान् कौन है? क्योंकि इस समय भारत में है अज्ञान अन्धियारा। इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा, अज्ञान अन्धियारा। फिर सोझरा चाहिए ज्ञान का। परमपिता परमात्मा को ही मनुष्य मानते हैं कि वह ज्ञान का सागर है, नॉलेजफुल है। अच्छा, वह ज्ञान का सागर है, उनसे क्या मिलता है? नदियों से पानी मिलता है तो भर-भर कर स्नान भी करते हैं। तुमको ज्ञान सागर से क्या मिलता है? एक बूँद। बाप आकर बच्चों को समझाते हैं-मैं ज्ञान का सागर हूँ, तुमको बूँद देता हूँ। कौन सी बूँद? सिर्फ कहता हूँ-मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुम मुझे याद करो। समझो कि हम अपने शान्तिधाम-सुखधाम जाते हैं।ज्ञान सागर एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति वैकुण्ठ में भेज देते हैं। घर बैठे भी दिव्य दृष्टि दे देते हैं। मनुष्य तो एक-दो को सामने दृष्टि देते हैं। बाबा घर बैठे साक्षात्कार करा लेते हैं। एक बूँद मिलने से तुम यहाँ से चले जाते हो। यहाँ बैठे-बैठे तुम वैकुण्ठ मे चले जाते हो। अब बाप बैठ समझाते हैं। गीता का भगवान् कौन है? वह है ज्ञान का सागर निराकार। मनुष्य तो गाते हैं श्रीकृष्ण के लिए। अब तुमको समझाना है श्रीकृष्ण ने ज्ञान नहीं सुनाया। पहले-पहले तो कहते हैं कृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया। कंसपुरी थी। फिर आवाज हुआ-हे कंस, तुमको मारने वाला आया है। यह तो जानते हो सब असुर हैं। कंस, जरासन्धी, अकासुर, बकासुर पाप आत्मायें सबका विनाश करने लिए उनका जन्म दिखाते हैं। तो श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। वह तो छोटा था। फिर ज्ञान कब दिया? वह तो युद्ध के मैदान में कृष्ण का बड़ा रूप दिखाते हैं, छोटा तो नहीं दिखाते हैं। वैसे ही कृष्ण जयन्ती के बाद फिर गीता जयन्ती दिखाते हैं। कुछ समय के बाद जब वह बड़ा हुआ तब ज्ञान दिया होगा। यह भी दिखाते हैं-जन्म लिया है। टाइम भी दिखाते हैं-रात्रि के समय। यहाँ तुम देखते हो शिवबाबा की पधरामनी हुई है। कोई को पता नहीं कि कब प्रवेशता हुई। शिवबाबा तो बच्चा बना नहीं है। वह तो बुढ़े वानप्रस्थ अवस्था में आया है। कब आया-उसकी डेट है नहीं। कृष्ण की तो तिथि-तारीख है और वह गर्भ से पैदा हुआ है। यहाँ शिवबाबा तो ज्ञान का सागर है। उनको छोटा होना नहीं है, जो फिर बड़ा होकर ज्ञान सुनाये। कृष्ण तो मनुष्य था। मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता है। उनका तो जन्म ही स्वर्ग में हुआ। वह किसको राजयोग सिखला न सके, क्योंकि खुद ही राजा है। बरोबर तुम जानते हो निराकार बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। पतितों को पावन, राजाओं का राजा बनाते हैं।उस हद के रात और दिन तथा इस बेहद के रात और दिन के अर्थ में भी फ़र्क है। यह है संगम जबकि ब्रह्मा की रात पूरी हो ब्रह्मा का दिन शुरू होता है। यह है बेहद की रात्रि, अज्ञान अन्धियारा। सतयुग में है सोझरा। उस रात की बात नहीं। वह तो कृष्ण का जन्म रात में मनाते हैं। वह हुई हद की बात, यह है बेहद की। बाप कहते हैं मैं आता हूँ, मेरी कोई तिथि-तारीख नहीं। कृष्ण-राम आदि की तो तिथि-तारीख है। मुख्य हैं ही दो।अभी कृष्ण जयन्ती आती है ना। उन्हों को समझाना है कृष्ण तो छोटा बच्चा है। रात और दिन तो ब्रह्मा का गाया जाता है। ब्रह्मा का दिन कृष्ण है और ब्रह्मा की रात ब्रह्मा है। ब्रह्मा ही फिर सो कृष्ण बनता है। कृष्ण की रात वा कृष्ण का दिन नहीं कहेंगे। वह तो समझते हैं कृष्ण भगवान् है, वह हाजिराहजूर है। तो इस पर भी समझाना है। तुम्हारी है शिवजयन्ती वा शिव रात्रि कहो। शिव जयन्ती कहना ठीक है। यह भी समझाना होता है। वह गर्भ में तो आते नहीं हैं। साधारण तन में आते हैं। कृष्ण की तो 8 पीढ़ी चलती हैं। छोटेपन में उनको मोहन अथवा कृष्ण कहते हैं। जैसे प्रिन्स ऑफ वेल्स है वैसे पहले-पहले गद्दी इन्द्रप्रस्थ की-प्रिन्स आफ इन्द्रप्रस्थ। फिर वह प्रिन्स से किंग होगा। कृष्ण अक्षर नहीं, महाराजा नाम ही गाया जाता है। श्री लक्ष्मी-नारायण को महाराजा-महारानी कहते हैं। किंग अक्षर अंग्रेजों का है, असुल नाम महाराजा-महारानी है। ऐसे नहीं कि नारायण ने ज्ञान दिया था। स्वयंवर बाद कृष्ण फिर श्री नारायण बनता है। अब इस ज्ञान सागर शिव का नाम तो बदलता नहीं। एक ही नाम है। उनका वह रथ तो बड़ा है। आने से ही ज्ञान सुनाना शुरू कर दिया है। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं जानते थे। समझ में आता है इनमें आया हुआ है, जो साक्षात्कार कराते हैं। नॉलेज दे रहे हैं। यह साक्षात्कार का राज़ अथवा यह नॉलेज शुरू में पहले समझ में नहीं आती थी। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं-शुरू में बनारस गये तो दीवारों पर गोले आदि निकालते रहते थे। समझ में कुछ भी नहीं आता था-यह क्या है? क्योंकि यह तो जैसे बेबी बन गये। नया जन्म लिया ना। कहते हैं ना-बाबा, हम 8-10 मास का आपका बच्चा हूँ तो मैं भी बच्चा हो गया। तो पहले कुछ समझ में नहीं आता था। वह ज्ञान की बातें ही और थी। अगड़म-बगड़म क्या-क्या बैठ निकालते थे। अभी तो सीखते-सीखते कितने वर्ष हो गये हैं! अभी बाप की बातें समझ में आती हैं। बच्चों को कृष्ण जयन्ती पर समझाना है। चित्र तो बरोबर हैं। झाड़ में ब्रह्मा का चित्र भी है। मक्खन तो यह हप कर लेते हैं। विश्व के मालिकपने का माखन है। कृष्ण सतयुग की प्रालब्ध लेकर के आया है। श्रीकृष्ण है सतयुग का पहला प्रिन्स फिर उनके बच्चे भी प्रिन्स बनेंगे। यह है उनकी प्रालब्ध जो कलियुग में तो थी नहीं। तो यह सूर्यवंशी की प्रालब्ध किसने बनाई? गाया जाता है-ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश। ज्ञान सागर तो शिवबाबा है। वह आये हैं और स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। कान्ट्रास्ट बतलाना है। कृष्ण कैसे गीता सुना सकता, वह तो बच्चा है। गर्भ में आया है। दिखाते हैं-वहाँ कंस, जरासन्धी आदि थे। परन्तु वहाँ असुर तो हो न सकें। असुरों और देवताओं की लड़ाई दिखाते हैं। तो जरूर असुर कलियुग अन्त में होंगे, देवतायें सतयुग आदि में होंगे। दोनों की लड़ाई तो लगी नहीं है। महाभारत लड़ाई बरोबर है। देवतायें तो यहाँ हो न सकें। असुरों की असुरों में लड़ाई चली है। मुसलमानों का राज्य भी देखते हो। बरोबर यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं।पाण्डव हैं नानवायोलेन्स, योगबल वाले। यहाँ तो रक्त की नदियां बहती रहती हैं। दुश्मनी तो है ना। पार्टीशन में रक्त की नदी अच्छी ही बही थी ना। भाई-भाई की युद्ध हुई, भाई-भाई तो हैं ना। लड़ाई उन्हों की लगती है, नहीं तो रक्त की नदी कैसे बहे? यह तो एक-दो का खून करते हैं। तलवारें चलाते हैं तब रक्त की नदी बहती है। और है यह संगम का समय। रक्त की नदियों बाद फिर घी की नदियां बहनी है। कृष्ण तो छोटा प्रिन्स है। फिर उनकी भी बैठ ग्लानी की है। उनको तो ज्ञान सागर कह नहीं सकते। देवताओं की महिमा तो गाई जाती है-सर्वगुण सम्पन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम...... यह महिमा बच्चे की नहीं हो सकती। महिमा हमेशा राजा-रानी की चलती है। वह फिर लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में और कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। कितनी बड़ी भूल कर दी है! लक्ष्मी-नारायण की छोटेपन की कहानी भी कोई बता नहीं सकते। राम-सीता की भी कुछ न कुछ बतलाते हैं। कृष्ण की भी उल्टी-सुल्टी बात बतलाते हैं। कुछ तो सुल्टी कहानी भी बताओ। लक्ष्मी-नारायण की तो महिमा गाई जाती है-सर्वगुण सम्पन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमो धर्म.....। अच्छा, उन्हों को राज्य किसने दिया? मनुष्य का नाम सुन मूँझ जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण कहने से तुम चले जाते हो सतयुग में। यह है नर से नारायण बनने की कथा। कृष्ण बनने की कथा नहीं कहते, इसको सत्य नारायण की कथा कहेंगे। सत्य कृष्ण की कथा नहीं कहा जाता। सच्चा बाबा ज्ञान सागर यह कथा सुनाते हैं। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की कथा है। उसमें श्री लक्ष्मी-नारायण की कथा भी आ जाती है। उनके 84 जन्मों की कथा दिखलाते हैं। श्री नारायण की कथा से बेड़ा पार हुआ। बरोबर बाप बैठ बच्चों को नर से नारायण बनने की सच्ची कथा सुनाते हैं। श्री नारायण तो बड़ा है ना। स्वयंवर से पहले कौन थे? क्या लक्ष्मी-नारायण ही नाम था या दूसरा और कोई नाम था? हैं राधे-कृष्ण, जिनका स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण नाम रखा है। बाबा एसे (निबन्ध) देते हैं फिर तुमको विचार सागर मंथन करना चाहिए। पहले नम्बर की भूल है यह। तुम जानते हो अभी है कलियुग। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। कलियुग का समय भी है। कलियुग के बाद जरूर सतयुग होगा। बाप कहते हैं-मैं गाइड बन आया हूँ, रावण के चम्बे से छुड़ाए वापिस ले जाने। आत्माओं को ही ले जाऊंगा।गाया जाता है आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल....... ऐसे नहीं कि कृष्ण अलग रहे बहुकाल। महिमा ही उस निराकार की है-सुन्दर मेला कर दिया जब वह सतगुरू मिला दलाल। यहाँ तो सब गुरू ही हैं। गाया हुआ है-सतगुरू मिला दलाल...... सत परमपिता परमात्मा दलाल के रूप में मिलते हैं। सौदा दलाल द्वारा होता है। यह भी सगाई होती है। आत्मा और परमात्मा अलग हैं। परमात्मा है निराकार वह आकर इसमें प्रवेश कर तुम्हारी सगाई करते हैं। खुद दलाल बनते हैं। कहते हैं मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। इस शरीर में बैठ कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं तुमको माया रावण से लिबरेट कर साथ ले जाऊगाँ, तुमको फिर राजाई देकर मैं निर्वाणधाम में बैठ जाऊंगा। कृष्ण थोड़ेही ऐसे कहेंगे। यह है ही आत्मा और परमात्मा। कृष्ण तो छोटा बच्चा है। बातें तो बहुत हैं समझाने की। तो बाबा ने समझाया है कैसे इसमें प्रवेशता हुई? फिर समझने लगा-मैं राजाओं का राजा बनता हूँ। विष्णु का साक्षात्कार हुआ और दिल में बहुत खुशी हुई। फिर विनाश का साक्षात्कार भी हुआ। परन्तु इतना समझ में नहीं आया। अभी समझते हैं बाबा ने यह साक्षात्कार कराया-तुम नर से नारायण बनेंगे। परन्तु उस समय इतनी समझ नहीं थी। जैसे बाबा रात को बतला रहे थे-पता नहीं क्या होता है जो शिवबाबा को याद करना भूल जाता हूँ। ऐसे तो नहीं बाप जब प्रवेश करते हैं तब समझता हूँ बाबा आया है, याद रहती है, बाबा चला जाता है तो भूल जाता हूँ। प्वाइन्ट सुनाते हैं तो फील होता है-बेहद का बाप आकर सुनाते हैं। परन्तु मैं खुद ही भूल जाता हूँ। क्या मेरी याद से ही आता है? ऐसे कहें-मैं घड़ी-घड़ी याद करता हूँ। भल आवे इसमें तो सबका कल्याण है। याद ही मुख्य हो जाती है। आये, न आये, बाप को याद जरूर करना है। बाबा ने समझाया है कि गीता जयन्ती के बाद होती है कृष्ण जयन्ती। पहले है शिवजयन्ती फिर गीता जयन्ती फिर कृष्ण जयन्ती। शिव तो बड़ा है। फट से आया और गीता सुनाई। छोटा तो नहीं है। इन बातों पर विचार सागर मंथन करना चाहिए-कैसे हम समझायें?पहले ख्याल करो-शिव किसको कहते हैं, जिसकी रात्रि मनाई जाती है। सतयुग है श्रीकृष्ण की राजधानी। नर से नारायण बनने की नॉलेज तो जरूर फादर ही देंगे, वह नॉलेजफुल है। और किसको नॉलेजफुल नहीं कहा जाता। गॉड इज नॉलेजफुल, रचयिता, बीजरूप है। वही ड्रामा की नॉलेज सुनायेंगे। ड्रामा कब शुरू होता है और फिर कब पूरा होता है, किसको पता ही नहीं है। सतयुग से कलियुग अन्त तक वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है-यह कोई समझा नहीं सकते। सुनावे वह जो त्रिकालदर्शी हो। त्रिकालदर्शी तो कोई है नहीं, सिवाए एक के। वही तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान् अन्तर को स्पष्ट कर घोर अन्धियारे से निकालने की सेवा करनी है। 2) बाबा जो एसे (निबन्ध) देते हैं उस पर विचार सागर मंथन करना है। ख्याल करना है-कैसे किसको समझायें। वरदान:- खुशी के खजाने से सम्पन्न बन सदा खुश रहने और खुशी का दान देने वाले महादानी भव l संगमयुग पर बापदादा ने सबसे बड़ा खजाना खुशी का दिया है। रोज़ अमृतवेले खुशी की एक प्वाइंट सोचो और सारा दिन उसी खुशी में रहो। ऐसे खुशी में रहते दूसरों को भी खुशी का दान देते रहो, यही सबसे बड़े ते बड़ा महादान है क्योंकि दुनिया में अनेक साधन होते हुए भी अन्दर की सच्ची अविनाशी खुशी नहीं है, आपके पास खुशियों का भण्डार है तो दान देते रहो, यही सबसे बड़ी सौगात है। स्लोगन:- महान आत्माओं का परम कर्तव्य है - उपकार, दया और क्षमा। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 29 June 2018 BK murli today 29 June 2018

    Brahma Kumaris murli today in English - 29/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, the sweetest Father has come to make you sweet. You have to become as sweet as the deities and make others sweet. Question: Which children receive the blessing of remaining constantly happy? Answer: Those who value the jewels of knowledge. Each jewel is one that makes you a multimillionaire. You children have to imbibe these jewels and become rup and basant. If only jewels constantly continue to emerge from your lips, you can become constantly happy. The Father is pleased to see the children who become sweet and He gives them the blessing of remaining constantly happy. You children become ever wealthy and ever healthy through this blessing. Song: You have come into my heart. Om Shanti. This is such a sweet song. Although the film industry composed this song, they don't know anything. You sweet children are playing parts in this unlimited play. The unlimited Father is now playing a part in the unlimited drama, personally in front of you. You children only see sweet Baba in front of you. Souls see one another with their eyes (organs of the body). The souls that are sitting personally in front and for whom Baba says: "Sweet children" also know that. Baba says: I have come to make all the children very sweet. Maya has made you very bitter. Only the Father comes and explains this. You used to be so sweet. When you go to the temples, you consider the deities to be so sweet. You look at the deities with such sweet vision. You wait in anticipation for the temple to open so that you can have a sight of the sweet deities. Although they are made of stone, you understand that they were sweet when they existed. You go to the Shiva Temple. He is the sweetest. He definitely also existed in the past. The sweetest of all, the sweetest Father of all, must definitely have come in Bharat. All those who are in the temples existed in the past. They must definitely have done something when they existed. It would only be the children who know the sweetest Father. Therefore, it would definitely be said that the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is the sweetest of all. There is a lot of praise of Shiv Baba in Bharat in particular and the whole world in general. Many say: Shiva Kashi Vishwanath Ganga (Shiva, the One who resided at Kashi, the Lord of the World who brought the Ganges). They even go and reside there. This Baba has also gone around everywhere. People praise Shiva so much. The Father knows that all of you are sweet children. You are children of the family. Each one of you receives your part, numberwise. However, everyone’s vision would go to the hero and heroine. They sing: “You are the mother and father” to those who are the hero and heroine in this drama. You children know that you are sitting personally in front of that mother and father. You are not in front of the world. This is incognito. They have completely lost all name and trace of this one. They just have the image, but you can’t tell anything from that. There are many worshippers of Shiva, but they don’t have the full introduction. You know that Shiv Baba is the sweetest and that no one can be as sweet as He is. If that sweetest Father didn’t come, how would this impure world become pure? At this time, no one except you children are sweet. They say “Shivohum” (I am God). However, God is the sweetest. He is the Resident of the supreme abode. How can you say “Shivohum” (I am God) in this impure world? God is the Creator and the Purifier. All devotees remember God. It isn’t that all devotees are God. Only incorporeal Shiva is said to be the sweetest. You will go to sweetest heaven through sweetest Baba. A dynasty is being created. Sweetest Baba is making us most beloved and sweet. Whatever someone is like, he will make others the same as himself. He says: I am incorporeal. You souls are also incorporeal. A Shivalingam is worshipped in the Shiva Temple. When they create a sacrificial fire, they create saligrams and Shiva. They then worship those. Big merchants create sacrificial fires. They make a lingam of Rudra Shiva and also make saligrams. Brahmin priests carry out the worship. Now, you Brahmins were worthy of worship and then became worshippers. They make a big lingam of Shiva and small saligrams and worship those. That is called the sacrificial fire of Rudra. So, that is worshipping clay. They make idols etc. of clay as a memorial. The worshippers then sit and worship them. Bharat was worthy of worship. There was no worshipping in the golden and silver ages. For half the cycle there is knowledge and for half the cycle there is devotion. It is remembered: You are worthy of worship and you are a worshipper. Then, they say: All are God. They believe that God was worthy of worship and that God became a worshipper. That is called the Ganges flowing backwards. Everyone calls out to the Father: Oh God! Oh Purifier! Oh Merciful One! To call out means to invoke. For half the cycle on the path of devotion, devotees make invocations. In heaven, you will be the masters. The Father says: I am making you the sweetest. God, the Father, is so sweet, so lovely. Shiva is the Innocent Lord. They would not even mention the name of Shankar. Shiva is incorporeal and Shankar is subtle and so saying that both of them are one and the same is wrong. When human beings go to anyone’s temple, they only worship the incorporeal One. They have mixed everyone up. They sing praise of Rama and Narayan. There is a vast difference between Rama and Narayan. They have put all of them together. No one knows who Vyas was. In fact, you are the true Vyas, the children of Sukhdev. Baba sits here and gives you the knowledge of easy yoga and tells us that we are the true Vyas, the children of Sukhdev. We are Brahmins. He sits here and teaches us easy Raja Yoga in a practical way through which we change from human beings into deities. They go in front of the deities and sing: “We are sinners, degraded and bitter”. They are very sweet. This Lakshmi and Narayan have taken 84 births. The same applies to you. Only you receive this knowledge. Lakshmi and Narayan will not have this knowledge there. There, we don’t make anyone into deities through this knowledge. So, what will we do there? Here, you are so useful. We are now the children of sweetest Baba. We will then become Shri Lakshmi and Narayan. You know that we are becoming the sweetest through the sweetest Father. Shiv Baba is Shri Shri, the sweetest of all. We also become sweet through Him. We cannot call ourselves Shri Shri. This is something to be understood. To the extent that you become bodiless and soul conscious and remember the sweet Father, to that extent you will become sweet. Become soul conscious and remember the Father and the inheritance. Don’t forget this main thing. If you remember Me, you will become as sweet as I am. So, how much should you remember such a Father who makes you like this! It is as though Baba is a mountain of sweetness. It is said: Receive happiness by remembering Him. This is not a rosary of which you have to turn the beads. You don’t have to turn the beads of a rosary. You simply have to remember Me. No one knows in whose memory the rosary is created. They simply continue to say, “Rama, Rama!” and turn the beads of a rosary. You now understand that you are the children of Rama, Shiv Baba, and that this is why we remember Him. To turn the beads of a rosary is a sign of being a worshipper. We remember Baba a great deal. We become ever healthy and free from disease by having remembrance. Baba repeatedly tells you: Consider yourself to be bodiless and remember Me and your boat will go across. There aren’t any human beings with 10 or 20 arms or an elephant’s trunk, nor can deities be born by someone sneezing. When you hear all of those things now, you wonder what all of that is. All of that is the paraphernalia of the path of devotion. In the golden age, none of those things will exist. Devotion lasts for half the cycle. Knowledge doesn’t last for half the cycle. Only the reward of knowledge lasts for half the cycle. You receive the inheritance for 21 births through knowledge, just as you receive the inheritance of devotion. Devotion is at first satopradhan and it then goes through the stages of sato, rajo and tamo. That too is like an inheritance you receive from the Father. So, first of all, you are satopradhan, and then you go through the stages of sato, rajo and tamo. The inheritance of knowledge is also satopradhan, sato, rajo and tamo. These things have to be understood. First of all, you souls have to understand that you are children of the most beloved Father. The Father has entered this body. How could He speak the murli without a body? The incorporeal world is the silence world. Then there is the ‘movie’ (subtle region) and then this is the ‘talkie’. There are the three worlds. You listen to everything new. No one else in the world can know this. You souls know that you come from the silence world. That place is called Brahmand because we are residents of that place. Souls reside there in an egg-shaped form. However, they are not like that. If you say that He is a star, how could a star be worshipped? How could you place fruit, flowers or milk on it? The name “Shiva” is fine. It isn’t that because He is the Father, He is big and we souls are small. “Supreme” means the Soul that resides in the supreme abode and is the most beloved. You know that you now have to follow the Father’s shrimat. Baba, the sweetest of the sweet, comes and makes us most sweet. When a soul becomes sweet, he receives a sweet body. The Father says: Simply remember the Seed and the tree. The Father, the Seed, is up above. He is the Seed of the tree. This is the foundation. Other twigs and branches emerge from this. This isn’t in the intellect of anyone in the whole world. Baba says: Beloved children, the incorporeal Father is speaking through this body. You listen with those ears. It is souls that imbibe. When the Sun of Knowledge rises, the darkness of ignorance is dispelled. There is the dark night. Human beings think that it will get darker still. However, this is extreme darkness. Human beings don’t know this. You now know the Creator and the beginning, the middle and the end of creation, whereas sannyasis say that He is infinite. God, Your ways and means are unique! You understand that God Himself comes and grants liberation and salvation. You know that you will become Narayan from an ordinary man and Lakshmi from an ordinary woman by following shrimat. The intoxication is so great! There is one aim and objective. You might become a barrister, but you would become that, numberwise. This is why you have to follow the mother and father. You know that the mother and father make effort and claim number one, and so you should also make effort. You also become just as sweet. Children gain the throne of their parents. When the children have grown up and become seniors, the parents come down. That is like you gaining the throne of your parents. You children have to become very lovely and very sweet. Only jewels should always emerge from your lips. You are rup and basant. They sat and made up a story. These are jewels of knowledge. Baba knows the jewellery business very well. The jewellery business is considered to be the highest of all. These are jewels of knowledge. Each jewel is imbibed. Through these, you become multimillionaires countless times over. Your palaces will be built of golden bricks and studded with diamonds and jewels. You will remain very happy there. You will become ever healthy and ever wealthy. It is as though Baba is giving you a blessing. The sweeter you become, the happier the Father will be. In a school, teachers know the students. That One is the unlimited Father, Teacher and Satguru. You children are now sitting in front of Baba and so the murli that emerges is likewise. However, Baba doesn’t let knowledgeable souls remain here. He says: Go outside and serve to change human beings into deities. Make those who have become the most bitter and most diseased free from disease. The average lifespan now is 40 to 45 years. The lifespan of a yogi soul is very long. Krishna is called a great soul, Yogeshwar. When it was his kingdom, the average lifespan was 150 years. Now people have become diseased. There is an account, but people don’t know this. The vessel of the intellect that was golden has reached this condition because it is filled with poison. Baba is now pouring the nectar of knowledge into it and making it golden. Achcha.To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Become the sweetest like the Father. Never let bitter words emerge from your lips. Always speak sweetly. 2. Understand the value of the invaluable jewels of knowledge that the Father gives us and imbibe them very well. Blessing: May you grant a vision of your blissful life with your balance and become worthy of receiving everyone’s blessings. Balance is the greatest art. When you have a balance of remembrance and service, you will continue to receive the Father’s blessings. With a balance in every aspect, you will easily become number one. It is your balance that will grant many souls a vision of your blissful life. While keeping a balance in your awareness at all times, continue to experience all attainments and you yourself will continue to move forward and also enable all souls to move forward. Slogan: A mahavir is one who makes all difficulties easy and turns a mountain into a mustard seed (rai) or cotton wool (rui). #bkmurlitoday #brahmakumari #Murli #english

  • BK murli today in Hindi 20 July 2018 - aaj ki murli

    Brahma Kumaris murli today Hindi - aaj ki murli - madhuban - ”मीठे बच्चे – बाप को अपनी अवस्था का समाचार खुले दिल से दो, खुली व सच्ची दिल में ही बाप की याद टिक सकती है” प्रश्नः- इस समय छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था होते भी तुम कौन-से बोल मुख से नहीं कह सकते हो? उत्तर:- बाबा, अभी जल्दी करो, अभी हम घर चलें, यहाँ तो बहुत दु:ख है। बाबा कहते – तुम बच्चे ऐसा कभी नहीं कह सकते क्योंकि तुम अभी ईश्वर के सम्मुख बैठे हो। अभी तुम्हें शीतल गोद मिली है। इस समय तुम ऊंचे ते ऊंचे बने हो। सतयुग में डिग्री कम हो जायेगी। दैवी सन्तान बनेंगे, ईश्वरीय नहीं इसलिये तुम जल्दी नहीं कर सकते। गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है……. ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बुलाने वाले बच्चों ने अब जाना। भक्त भगवान् को बुलाते हैं। अब तुम भक्त तो नहीं ठहरे। तुम हो बच्चे। बच्चे तो याद भी करते हैं। लिखते भी हैं कि बाबा, हम सम्मुख सुनने चाहते हैं। निमंत्रण देते रहते हैं – बाबा, आपसे सम्मुख सुनें। अब सिवाए ब्रह्मा मुख के डायरेक्ट सुनना तो मुश्किल है। बच्चे जानते हैं – बाबा कल्प पहले माफिक आये हुए हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण नाम कितना अच्छा दिया हुआ है। ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो बहुत हैं। उन्हों को ज्ञान मिला हुआ है। परमपिता परमात्मा जो ज्ञान का सागर है, उनको ही सुख का सागर भी कहा जाता है। गाया भी हुआ है – दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। वह तो शिवबाबा ही है। नाम कितने भिन्न-भिन्न दिये हैं। गायन तो बहुत हैं ना। गाते हैं – हर-हर अर्थात् दु:ख को हरो। भगवान् के लिये ही गाते हैं। परन्तु भगवान् का पता न होने कारण ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के लिये कह देते हैं। देव-देव महादेव। शिव को भूल शंकर के लिये कह देते – हर-हर महादेव……..। ब्रह्मा और विष्णु को महादेव नहीं कहेंगे। वह तो दोनों स्थूल पार्ट में आते हैं। शंकर सूक्ष्मवतन में ही रहता है। दु:ख हरने वाला पतित-पावन तो एक निराकार भगवान् है। शंकर को पतित-पावन नहीं कहेंगे। महिमा सारी एक की है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण वा राधे-कृष्ण हैं जिनका अलग-अलग जन्म होता है। विष्णु अवतरण भी गाया हुआ है। चतुर्भुज दिखाते हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि पहले लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग में प्रिन्स-प्रिन्सेज राधे-कृष्ण बनते हैं। यह तुम ही जानते हो। यह भी जानते हो – माया का बड़ा भारी तूफान सूक्ष्म में आता है। माया भुला देती है। बहुत तूफान लाती है। कोई भी बात खुली दिल से बच्चे पूछते रहें तो प्रश्न का उत्तर मिल सकता है। तूफान भी अनेक प्रकार के आते हैं। स्वप्न, छी-छी विकल्प अनेक प्रकार के आते हैं। आंधी, तूफान को कहा जाता है। अब यह ब्रह्मा तो नामीग्रामी है। बाकी भी बाबा ने प्रवेश किया है तो बहुत नामीग्रामी हो गया है। जैसा-जैसा मनुष्यों का देश वैसा वेष भी होता है। अभी तो देखो कोई लूले-लंगड़े, कोई कुब्जा, किसकी आंख नहीं होगी। वहाँ तो नैचुरल ब्युटी है क्योंकि पांच तत्व भी सतोप्रधान हैं। तो यह ज्ञान सम्मुख सुनने के लिये बच्चियां बुलाती है। गीतों में भी कुछ न कुछ ठीक है। जैसे देवता धर्म प्राय:लोप है फिर भी मन्दिर यादगार तो हैं ना। यादगार सभी धर्म वालों का है। यह तुम बच्चे ही समझते हो बरोबर ऊंच ते ऊंच एक निराकार भगवान् को कहा जाता है। उनका ही गायन है और है भी संगमयुग, जब आत्मायें और परमात्मा मिलते हैं। आत्मायें तो बहुत हैं ना। वृद्धि होती रहेगी। अभी तुम बच्चे सम्मुख सुन रहे हो औरों की भी दिल होती है सम्मुख सुनें। यहाँ आ नहीं सकते। बांधेलियां हैं। और कोई भी सतसंगों में जाने लिये कभी किसको मना नहीं करते। बम्बई में गीता सुनाते हैं, कोई भी धर्म वाले जा सकते हैं। फीस नहीं है। भिन्न-भिन्न गुरू पास जाते रहते हैं कि कहाँ से सहज रास्ता मिल जाये। मुक्ति और जीवन्मुक्ति के रास्ते का किसको पता नहीं है इसलिये बहुत ढूँढते हैं। यहाँ तो कोई गुरू-गोसाई हैं नहीं। ब्रह्माकुमार और कुमारियां, बस। महात्मा कोई नहीं। जैसे तुम हो वैसे यह (दादा) है। फ़र्क कुछ नहीं है। वेष आदि में कोई फ़र्क नहीं है। यह शॉल आदि भी कभी उतार देता हूँ। परन्तु ड्रामानुसार यह जैसे आफीशल ड्रेस है। ड्रेस को तो देखना नहीं है। बुद्धि शिवबाबा तरफ चली जाती है। और सभी मनुष्य शरीर को देखेंगे। तुम अपने शरीर को भी भूलते हो और इस दादा के शरीर को भी भूलते हो। देही-अभिमानी बनना है। इनके शरीर को नहीं याद करना है। शिवबाबा इन द्वारा हमको राजयोग सिखलाते हैं। वही नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी है। आदि-मध्य-अन्त का राज़ इस समय बैठ सुनाते हैं।बुढ़ियों आदि के लिये भी बड़ा सहज है। उन स्कूलों में तो बुढ़ियायें कुछ समझ न सकें। यह सबके लिये सहज है। बाप सिर्फ कहते हैं – मुझे याद करो। जैसे मनुष्य मरने पर होते हैं तो मंत्र देते हैं – राम-राम कहो, यह कहो। बहुत करके वानप्रस्थ के बाद ही गुरू का मंत्र लेते हैं। परन्तु अभी तो बाप कहते हैं – सारी पुरानी दुनिया का विनाश होना है। बुढ़े, जवान, छोटे – सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। ऐसे तो और कोई कह न सकें। कहेंगे – सबका मौत लाने तैयार हुए हो क्या? हाँ, मौत तो सबका होना ही है। कोई-कोई कहते हैं – बाबा, यहाँ अजुन कब तक रहेंगे, हम जल्दी जावें? यहाँ बहुत दु:ख है। आगे चलकर भी ऐसे-ऐसे कहेंगे। बाबा कहते हैं – ऐसे क्यों कहते हो? अरे, इस समय तो तुम ईश्वर के सम्मुख हो। फिर तो डिग्री डिग्रेड हो जायेगी। जाकर दैवी सन्तान बनेंगे। अभी यह शीतल गोद अच्छी है। वहाँ (स्वर्ग) तो होगा ही शीतल। परन्तु यहाँ तो तत्ते (गर्म) को भी शीतल बनाया जाता है तो वह अच्छा रहता है। ऐसे नहीं कि अभी जल्दी करो। अभी तो हम ऊंच ते ऊंच हैं। नामाचार ही सारा इस समय का है। देलवाड़ा मन्दिर भी इस समय का है। सारी सृष्टि के आत्माओं की दिल लेने वाला है बाप। दिलवाला मन्दिर सभी के लिये है। आत्मा शरीर द्वारा पुकारती है – बाबा, आओ, आकर हमको नया बनाओ, हम पुराने हो गये हैं। आत्मा और शरीर दोनों ही पुराने हैं। आत्मा बुद्धिहीन अंधी बनी है। मनुष्य को थोड़ेही अंधा कहा जाता है। आंखे तो हैं ना। परन्तु बुद्धि अंधी है। आत्मा में जो बुद्धि है याद करने की वह बिल्कुल भूल गई है। तो गोपिकायें कोई कहाँ, कोई कहाँ से बुलाती है। बांधेली गोपिकायें छोटे-छोटे गांव से बुलाती रहती हैं। बाप समझाते हैं – बच्चे, सतयुग में गृहस्थ आश्रम था, पवित्र था। अभी तो विष के लिये कितना हैरान करते हैं। यह नहीं समझते कि यहाँ निर्विकारी बनाया जाता है। निर्विकारी बनने से फिर क्या बनेंगे – वह भी पता नहीं। सन्यासी भी पवित्र बनने लिये भागते हैं। परन्तु उनको यह पता नहीं कि हम पवित्र बन पवित्र दुनिया में जायेंगे। इन बातों को वह मानते ही नहीं। इस समय इतना दु:ख है जो समझते हैं इससे मुक्ति अथवा मोक्ष अच्छा है। बाप ने समझाया है – ड्रामा में मोक्ष किसको मिलता ही नहीं है। अभी तुम जानते हो। बाप कहते हैं – सिर्फ इतना याद करो कि 84 जन्म पूरे हुए, अब बाबा आया है लेने लिये। बाप को याद नहीं करेंगे तो तूफान बहुत लगेंगे। विवेक भी कहता है – निरन्तर याद करना बड़ा मुश्किल है। भल बाबा कहते हैं – तुम कर्मयोगी हो। परन्तु देखा गया है कर्म करने के समय याद भूल जाती है। ऐसी अवस्था को पाने में टाइम लगता है। इसमें बहुत पुरुषार्थ करना होता है। कॉलेज में पुरुषार्थी बच्चों को रात-दिन पढ़ने की हॉबी रहती है। कोशिश करते हैं गवर्मेन्ट से स्कॉलरशिप ले लेवें। बहुत माथा मारते हैं। फिर बड़े खुश होते हैं। यहाँ भी बाप कहते हैं – तुम अच्छी रीति पढ़कर स्कॉलरशिप लो। पहले-पहले तख्तनशीन बन जाओ। दौड़ी लगानी चाहिये। तुम जानते हो – अभी बाप सम्मुख बैठे हैं। डायरेक्ट इस रथ में बैठ बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं। ब्रह्मा का तन तो मुकरर है। बाप कहते हैं – मैं आत्माओं से बात करता हूँ। तुम पुकारते थे – बाबा, आओ। अब मैं आया हूँ। तुम आत्मायें भी निराकार हो। हम भी निराकार हैं। तुम भक्ति मार्ग में भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल धारण कर याद करते आये हो। अब सम्मुख तुमसे बात कर रहा हूँ। तुमको तो अपने शरीर का आधार है। हमको यह लोन लेना पड़ता है। बाप बच्चों को कहते हैं – अब यह पुराना चोला छोड़ना है। नाटक पूरा हुआ, अब निरन्तर बाप को याद करने की कोशिश करो। अगर और कुछ याद पड़ता रहेगा तो फिर सजायें खानी पड़ेगी। जितना हो सके औरों की याद निकाल दो। यात्रा पर जाते हैं तो बुद्धि में वही याद रहती है। बस, हम श्रीनाथ द्वारे जाते हैं। तुम्हारी है सच्ची रूहानी यात्रा। आत्मा परमात्मा के साथ योग लगाती है। फिर शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने लिये यहाँ आते-जाते हैं। कहाँ भी हो याद रहनी चाहिये। तुम जानते हो भगवान् सर्वव्यापी नहीं, वह तो बाप है और बाप से तो वर्सा मिलता है। सर्वव्यापी कहने से कोई मतलब ही नहीं निकलता। बाप को तो वर्सा देना होता है। उनको यह आश नहीं रहती कि मुझे वर्सा मिलना है। आश रहेगी – बच्चों को वर्सा देना है। इस बाप की भी दिल में है – हमको वर्सा देना है। बाप और बच्चों का सम्बन्ध है। बच्चों को वर्सा लेना है, बाप को देना है। बाप फिर क्या लेंगे! उनको देना होता है। सच्ची आत्मा पर साहेब राज़ी होता है तो कितना सच्चा बनना चाहिये। परन्तु सभी बच्चे हो ना तो वर्सा देने वाले बाप को याद करना चाहिये। कच्चे बच्चों को याद नहीं रहता है। शरीर निर्वाह अर्थ भल कर्म करो फिर फुर्सत के समय बाप को याद करो। याद की यात्रा का रजिस्टर तुम्हारा ठीक होता जायेगा तो खुशी रहेगी। मनुष्य को जो आदत पड़ती है वह वृद्धि को पाती है। बुद्धि में रहना चाहिये हमारे 84 जन्म पूरे हुए। अब नाटक पूरा हुआ। अभी हम जाते हैं अपने घर इसलिये बाप कहते हैं – मुझे याद करो। गीता में भी दो बार मन्मनाभव लिखा हुआ है। कुछ-कुछ बातें आटे में लून हैं।अन्य धर्म वालों के कोई चित्र आदि नहीं रहते हैं। तुम्हारे चित्र हैं। ब्रह्मा का भी अजमेर में चित्र है। ब्राह्मणों में भी बहुत प्रकार के हैं। भिन्न-भिन्न नाम रखे हुए हैं। भाषायें देखो कितनी हैं! बच्चे जानते हैं – हमारी राजधानी में एक ही भाषा होगी। वहाँ की भाषा ही और है। संस्कृत आदि नहीं होती है। बच्चियां वहाँ की भाषा आदि सुनाती थी। अब तुम बच्चों को खुशी रहनी चाहिये। हम राजधानी स्थापन कर रहे हैं। फिर वहाँ अपनी भाषा होगी। यहाँ की भाषायें वहाँ नहीं हो सकती। ड्रामा की नूँध अनुसार फिर वही अपने महल आदि बनायेंगे। कल्प पहले मुआफिक। यहाँ यह ब्रिटिश गवर्मेन्ट ने न्यु देहली बनाई ना। तुम जानते हो हम देहली नाम नहीं रखेंगे। यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी है। हमको नये ते नई दुनिया चाहिये। वहाँ तो हीरे-जवाहरों के महल बनेंगे। अभी तो वह महल नहीं हैं। बुद्धि कहती है हम बहुत फर्स्टक्लास महल बनायेंगे। यह तो छी-छी दुनिया है। ऐसी-ऐसी आपस में बातें करनी चाहिये। बहन जी, भाई जी हम तो जायेंगे फिर आकर अपनी राजधानी सम्भालेंगे। ऐसे लिबास पहनेंगे। आगे जेवर आदि सब सच्चे पहनते थे। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में कितने जेवर आदि होंगे। शिव का मन्दिर क्या होगा? शिव का लिंग भी हीरों का बनाते हैं। यह भी समझने की बातें हैं। हमारे शिवबाबा के मन्दिर को बरोबर मुसलमानों ने आकर लूटा है। जो भक्ति मार्ग के शुरू में बनाया था। तुम जानते हो द्वापरयुग से शिवबाबा के मन्दिर बने हैं। आपेही पूज्य से फिर पुजारी बन जाते हैं। पहले-पहले सोमनाथ का मन्दिर बना है। सोमरस कहा जाता है नॉलेज को। नॉलेज देने वाला बाप है जिससे तुम धनवान बनते हो। फिर उसी धन से तुम बाप का मन्दिर बनाते हो। पूजा भी तो होगी ना। घर-घर में मन्दिर बनाते हैं। तुम जानते हो जब भक्ति मार्ग शुरू होगा तो फिर हम पुजारी बन मूर्ति आदि बनायेंगे। तुम बच्चे जानते हो – हम अभी आशिक बने हैं माशूक परमात्मा के, उनसे वर्सा लेने लिये। वह विकार के लिये आशिक होते हैं। यह फिर आत्मा परमात्मा माशूक की आशिक होती है। देखते हो – सभी भक्त उनको याद करते हैं। उस माशूक की महिमा बड़ी भारी है! आशिक जो पतित बन गये हैं उन्हों को पावन बनाते हैं। आत्मा ही पतित, आत्मा ही पावन बनती है। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) स्कॉलरशिप लेने के लिये अच्छी रीति पढ़ना है, तख्तनशीन बनने की दौड़ लगानी है। कर्म करते याद में रहना है। 2) हम रूहानी यात्रा पर हैं, इसलिये और सबकी याद बुद्धि से निकाल बाप की याद में निरन्तर रहना है। याद का रजिस्टर ठीक रखना है। वरदान:-रूहानियत की शक्ति द्वारा दूर रहने वाली आत्माओं को समीपता का अनुभव कराने वाले मा. सर्वशक्तिमान भव l जैसे साइन्स के साधनों द्वारा दूर की हर वस्तु समीप अनुभव होती है, ऐसे दिव्य बुद्धि द्वारा दूर की वस्तु समीप अनुभव कर सकते हो। जैसे साथ रहने वाली आत्माओं को स्पष्ट देखते, बोलते, सहयोग देते और लेते हो, ऐसे रूहानियत की शक्ति द्वारा दूर रहने वाली आत्माओं को समीपता का अनुभव करा सकते हो। सिर्फ इसके लिए मास्टर सर्वशक्तिमान, सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रहो और संकल्प शक्ति को स्वच्छ बनाओ। स्लोगन:-अपने हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा औरों को प्रेरणा देने वाले ही प्रेरणामूर्त हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • 17 June 2018 Essence of Murli today in Hindi

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli ka Saar - 17 06 2018 BapDada - madhuban - एकाग्रता से सर्व शक्तियों की प्राप्ति V- याद और सेवा द्वारा सब चक्करों को समाप्त कर शमा पर फिदा होने वाले सच्चे परवाने भव -----जो बच्चे याद और सेवा में सदा बिजी रहते हैं वह सभी चक्करों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं। कोई भी चक्र रहा हुआ होगा तो चक्कर ही लगाते रहेंगे। कभी सम्बन्धों का चक्कर, कभी अपने स्वभाव संस्कार का चक्कर, ऐसे व्यर्थ के सभी चक्कर समाप्त तब होंगे जब बुद्धि में सिवाए शमा के और कुछ भी न हो। शमा पर फिदा होने वाले शमा के समान बन जाते हैं। ऐसे फिदा होने वाले अर्थात् समा जाने वाले ही सच्चे परवाने हैं। S- जो सच्चे पारस बने हैं उनके संग में लोहे सदृश्य आत्मायें भी सोना बन जाती हैं।

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